टूटे घरौंदे : भाग 4

किशोर और मुरली चुपचाप खड़े थे और बोलने वाले मुंह केवल गांव के लोगों के थे. सभी कुछ न कुछ कहे जा रहे थे.

“देखो अब भी कैसे खड़ी है, बोल किसकिस के साथ चक्कर चल रो है तेरा,” मुखिया वृद्ध ने कहा.

“मैं सुमन के सिर पर हाथ रख के बोलरी हूं मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं है,” आखिर में सुबकते हुए ललिता ने कहा.

“इतना सब कर के भी मुंह खोलने की हिम्मत है इस की,” एक औरत ने कहा.

“मुंह दिखाने लायक न छोड़ा खानदान को,” यह किशोर की दूर के रिश्ते की बुआ थी जिस ने ललिता के कंधे पर जोर से प्रहार करते हुए कहा था. यह देख गांव की एकदो और औरतें भी ललिता को गाली देने लगीं और कभी उस की पीठ पर कोई जोर से मारती तो कोई सिर पर.

अपनी मम्मी के साथ यह सब होता देख सुमन जोरजोर से रोने लगी. ललिता ने सुमन का हाथ कस कर पकड़ा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे उन दोनों का ही यहां कोई नहीं है.

“धक्के मार के गांव से निकालो इस औरत को, हमारी संस्कृति को मजाक बनाके रख दियो. गांव की बाकी छोरियां क्या सीखेंगी इस से, जातबिरादरी में किसी को मुंह ना दिखा सकते अब,” मुखिया ने कहा.

“मुझे इतना ज्ञान देने की बजाए आप इन को कुछ क्यों नहीं कहते? इन में कमी है पूछो इन से?” ललिता ने चिल्ला कर कहा.

“यह क्या बके जा रही है?” आसपास मौजूद सभी लोग चौंक कर कहने लगे.

“क्या बके जा रही हूं? शादी के बाद कोई सुख नहीं मिला इन से तो मेरे जो मन में आया मैं ने किया, इन से कोई कुछ क्यूं नहीं पूछा रहा है,” ललिता ने कहा तो किशोर वहां से उठ कर जाने लगा. किशोर के मुंह पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

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“अरे, कैसी बेशर्म छोरी है, जा अपनी नाजायज औलाद को ले कर मर कहीं चुल्लू भर पानी में,” किशोर की दूर की बुआ चिल्ला कर बोली.

“खबरदार जो मेरी बेटी के लिए कुछ भी कहा. मेरा मुंह ना खुलवाओ नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. जो सुबह शाम महाभारत देखती हो उस में तो बड़ा गुणगान करती हो अर्जुन का, भीम का, वो कौन सा अपने बाप के जने है. उन्हें तो कभी नाजायज नहीं कहा,” ललिता ने कहा.

यह सुन कर दूर की बुआ के कानों से धुआं निकल गया. उन्होंने ललिता के बाल पकड़ लिए और उसे गालियां देने लगीं, अपशब्द कहने लगीं. वहां मौजूद लोगों में से कोई ललिता के साथ नहीं था न किसी ने उस के हक में कुछ कहा. मुरली भी चुपचाप यह सब देख रहा था. यह सब सुनते हुए कोमल भी कमरे से निकल आई थी और सुमन की ही तरह वह भी यह दृश्य देख रही थी.

ललिता ने उन बुआ का हाथ पकड़ा तो एक और औरत ललिता पर हावी होने आ गई. यह देख कविता अपनी जगह से ललिता के बगल में आई और उन औरतों को हटाते हुए बोली, “गलत क्या कह रही है वो. गलती इस अकेली की तो है नहीं न. इस को मारनेपीटने से या बच्ची को नाजायज कहने से आप लोगों को क्या मिलेगा?”

“तू बीच में मत बोल यह हमारे गाम का मामलो है,” एक आदमी ने कहा.

“आप से ज्यादा यह मेरे घर का मामला है. जाइए आप यहां से सभी,” कविता ने कहा.

“यह औरत हमारे घर नहीं आएगी न इस की छोरी को हम घर में घुसने देंगे,” रिश्तेदार बुआ बोलीं.

इस बात पर अन्य लोग भी हामी भरने लगे कि अब ललिता यहां नहीं रहेगी.

“ललिता, इन की बात मत सुनो, किशोर तुम्हारा पति है ऐसे कैसे छोड़ सकता है तुम्हें,” कविता ने कहा.

ललिता ने कविता के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, “मैं अपनी मां के घर अतरौली चली जाऊंगी, अब मेरा यहां कुछ नहीं है, लेकिन, मेरी छोरी को ले गई तो उस की जिंदगी खराब हो जाएगी. न वो पढ़लिख पाएगी और न उस के सिर पे बाप का साया होगा,” कहते हुए ललिता मुरली की तरफ मुड़ी, “तुम बाप हो न इस के, रख लो इसे. मैं तुम्हारा घर नहीं तोड़ना चाहती लेकिन मैं इसे ले जाने लायक नहीं हूं और इस के पापा को लगता था कि यह भगवान की कृपा से पैदा हुई है लेकिन, सचाई जान कर वो इसे अब नहीं आपनाएंगे. बच्चे किसी की कृपा से नहीं होते यह समझने में उन्हें इतने साल लग गए.”

“पर…,” मुरली कुछ कहता उस से पहले ही कविता बोल पड़ी, “सुमन हमारे साथ रहेगी, मेरी न सही इन की बेटी तो है न.”

लोग बढ़बढ़ाने लगे और ‘कैसी औरत है’, “बेचारा ‘घोर कलयुग आ गया है’, ‘बेचारा किशोर किस के पल्ले पड़ गया’,  कहते हुए निकलने लगे.

आखिर में ललिता जाने लगी तो सुमन उस से लिपट गई.

“मम्मी, कहां जारी है,” सुमन ने रोते हुए कहा, “मुझे भी ले चल.”

“नहीं, अब यही तेरा घर है,” ललिता ने घूंघट हटाया और पल्लू से सुमन के आंसू पोंछने लगी.

“नहीं, मुझे अपने घर जाना है, पापा के पास जाना है, मुझे भी ले चल.”

“एकबार कह दिया ना यहीं रहना है. ना मैं तेरी मां हूं न वो तेरे पापा. बचपन में मांग लिया था तुझे हम ने. अब और नहीं पाल सकते, जा अब,” ललिता ने सुमन का हाथ झड़कते हुए कहा.

कविता की आंखे भर आईं थी यह सब देखते हुए. ललिता वहां से चली गई और कुछ देर बाद एक बैग में सुमन के कपड़े और कुछ खिलौने दे गई. मुरली ने ललिता को देने के लिए कविता के हाथ में कुछ पैसे दिए थे जिन्हें लेने से कविता ने यह कह कर मना कर दिया था कि उन के इतने एहसान वह नहीं चुका पाएगी. जाते हुए वह सुमन को गले से लगा कर गई थी और सुमन उसे नहीं छोड़ रही थी. आखिर ललिता को उसे छोड़ जाना ही पड़ा.

किशोर ललिता के जाते ही अपने चाचा के घर रहने चला गया था, लोगों के मुंह से बारबार जो कुछ हुआ वह सुनना उस की बर्दाश्त के बाहर था. जाते हुए वह सुमन से मिल कर भी नहीं गया था.

शाम हो चुकी थी. सुमन कोने में खड़ी रो रही थी. कविता खुद नहीं समझ पा रही थी कि आखिर यह सब कैसे हो गया. कोमल मुरली के साथ चारपाई पर बैठी हुई थी.

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कविता ने सुमन को अपने पास बुलाना चाहा पर वह नहीं आई. वह खुद उठ कर उस के पास गई, बोली, “यह तुम्हारा घर है और यह तुम्हारी बहन है. हमें तुम चाची चाचा कह सकती हो. भूख लगी होगी न कुछ खा लो.”

“मुझे नहीं खाना है,” सुमन ने सुबकते हुए कहा.

“नहीं खाओगी तो बीमार हो जाओगी,” कह कर कविता ने कोमल को देखते हुए कहा, “कोमल इधर आ.”

कोमल आ गई.

“स्कूल में मैडम क्या कहतीं हैं, जब कोई खाना नहीं खाता तो क्या होता है?” कविता ने कोमल से पूछा.

“खाना नहीं खाते तो पेट में दर्द होने लगता है और चक्कर आने लगते हैं और दिमाग कमजोर हो जाता है,” कोमल बोली.

“लेकिन, मम्मी तो कुछ और कहवे है,” सुमन ने कहा.

“क्या कहती है?” कविता ने पूछा.

“मम्मी तो कह रही कि पेट में भूख के मारे चूहे मर जाते हैं और बदबू आने लगती है.”

“तू चिंता मत कर, मैं बिल्ली पकड़ कर ले आउंगी, वो तेरे चूहे खा जाएगी और बदबू भी नहीं आएगी,” कोमल ने कहा तो सुमन उस की बात सुन कर खिलखिला कर हंस दी.

यह देख मुरली और कविता मुस्कराने लगे. उन्हें इस नई जिंदगी में ढलने में वक्त लगेगा पर उम्मीदें थीं कि सब ठीक हो जाएगा.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

टूटे घरौंदे

हैवान होते पति

मामला 1

14 मई, 2019 को इंदौर शहर में एक औरत के आपरेशन में डाक्टरों ने उस के प्राइवेट पार्ट से मोटरसाइकिल का एक पार्ट निकाला, जो बच्चेदानी और पेशाब की थैली के बीच में फंसा था.

पार्वती (बदला नाम) इंदौर के स्कीम नंबर 71 में अपने पति प्रकाश भील के साथ एक झुग्गी में रहती थी. वे दोनों मेहनतमजदूरी कर के अपना और अपने 6 बच्चों का पेट पाल रहे थे.

बात अब से तकरीबन 2 साल पहले की है जब एक रात उन दोनों में जम कर झगड़ा हुआ. झगड़े की वजह थी पार्वती का शक कि प्रकाश के किसी औरत से नाजायज संबंध हैं.

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जैसे ही पार्वती ने इस बात पर एतराज जताया तो ‘तूतू मैंमैं’ शुरू हो गई जो झगड़े में तबदील हुई तो गुस्साए प्रकाश ने पार्वती के प्राइवेट पार्ट में बेरहमी से मोटरसाइकिल का क्लच लीवर घुसेड़ दिया.

उस समय चूंकि प्रकाश के साथसाथ पार्वती ने भी शराब पी रखी थी, इसलिए उसे दर्द महसूस नहीं हुआ और वह सो गई. लेकिन दर्द दूसरे दिन भी बरकरार रहा तो वह घबरा गई. बात कुछ ऐसी थी कि किसी को बताते हुए भी उसे शर्म आ रही थी.

इस शर्म का खमियाजा पार्वती दर्द की शक्ल में 2 साल झेलती रही, लेकिन 12 मई, 2019 को जब दर्द बरदाश्त के बाहर हो गया तो वह एमवाई अस्पताल गई जहां ऐक्सरे होने पर पता चला कि उस के प्राइवेट पार्ट के भीतर कोई भारीभरकम चीज घुसी हुई है.

पार्वती ने डाक्टरों को 2 साल पहले का सच बताया तो वे दहल गए और उसे पहले पुलिस में रिपोर्ट करने का मशवरा दिया. प्रकाश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होने के बाद डाक्टरों ने आपरेशन कर उस के प्राइवेट पार्ट से 9 सैंटीमीटर लंबा और 3 सैंटीमीटर चौड़ा मोटरसाइकिल का क्लच लीवर निकाला.

एमवाई अस्पताल की औरतों की नामी डाक्टर सोमेन भट्टाचार्य समेत डेढ़ दर्जन डाक्टरों की टीम ने इस आपरेशन को अंजाम दिया तब कहीं जा कर पार्वती की जान बच पाई.

मामला 2

दूसरा हादसा भोपाल के हनुमानगंज थाने के हमीदिया रोड का है. 13 मई, 2019 की सुबह निशा (बदला नाम) जब काम पर जा रही थी तो उस के पति रामप्रकाश ने उस पर तेजाब से हमला कर दिया. इस तेजाबी हमले में निशा बुरी तरह झुलस गई और राहगीरों ने आटोरिकशा में ले जा कर उसे हमीदिया अस्पताल में भरती कराया.

जिस भीड़ ने पति को पकड़ा, उसे नहीं मालूम था कि मामला क्या है. लिहाजा, उन्होंने रामप्रकाश को लुटेरा समझ कर तबीयत से धुन दिया जिस से वह भी अधमरा हो गया. निशा की छाती, पीठ और गरदन बुरी तरह झुलस गई थी.

जब थाने में मामला दर्ज हुआ तब पता चला कि 38 साला रामप्रकाश एक होटल में खाना बनाने का काम करता था. उस ने तकरीबन 15 साल पहले निशा से लव मैरिज की थी और दोनों के 3 बच्चे थे.

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कुछ दिनों से रामप्रकाश को शक हो गया था कि निशा के एक बैंक मुलाजिम से संबंध हैं तो उस ने बीवी के साथ मारपीट शुरू कर दी.

रामप्रकाश आदतन शराबी था. जब रोजरोज की कलह और मारकुटाई निशा की बरदाश्त से बाहर होने लगी तो वह रामप्रकाश से अलग हो कर द्वारिका नगर महल्ले में किराए का मकान ले कर रहने लगी.

लेकिन रामप्रकाश ने वहां भी निशा का पीछा नहीं छोड़ा. वह अकसर वहां पहुंच कर पत्नी को मारता था.

तंग आ कर निशा ने वकील के जरीए उसे तलाक का नोटिस भिजवा दिया तो रामप्रकाश आगबबूला हो गया. इस से उस का शक और पुख्ता हो गया.

तलाक के नोटिस को भी उस ने अपनी बेइज्जती समझा. लिहाजा, हादसे वाले दिन वह स्टील के बरतन में तेजाब ले कर बस स्टौप पर निशा का इंतजार करने लगा और जैसे ही वह आई तो उस पर तेजाब उड़ेल दिया.

प्रकाश की तरह रामप्रकाश भी जेल में है. अपने बयान में उस ने पुलिस को बताया कि उस का इरादा तो पत्नी को मार डालने का था, लेकिन वह बच गई.

मामला 3

सुनील (बदला नाम) अपनी पत्नी ज्योति (बदला नाम) के साथ शराब के नशे में मारपीट करता था. उसे भी पत्नी के चालचलन पर शक था.

पत्नी पुलिस वाली हो तो उस के साथ जरूरत से ज्यादा मारपीट करना मुमकिन नहीं रह जाता, इसलिए सुनील ने दूसरा तरीका अपनाया. उस ने ज्योति के पर्सनल फोटो सोशल मीडिया पर शेयर कर दिए थे. इस से ज्योति का किसी को मुंह दिखाना दूभर हो गया तो उस ने झक मार कर कमला नगर थाने में सुनील की इस करतूत की रिपोर्ट लिखाई.

सुनील भी प्रकाश और रामप्रकाश की तरह जेल में बंद है.

तीसरे का रोल अहम

तीनों ही मामलों में एक बात समान है कि पतिपत्नी के बीच कोई तीसरा या तीसरी थी जो पत्नी की ही ऐसी गत की वजह बने. इस में नुकसान भी पत्नी का ही हुआ जिस पर यह कहावत लागू होती है कि छुरा खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरे पर कटना तो खरबूजे को ही पड़ता है.

शुरू के 2 मामलों में तीसरे या तीसरी की ऐंट्री शादी के कई साल बाद हुई जबकि तीसरे मामले में तीसरे को आए ज्यादा दिन नहीं हुए थे यानी शक इस तरह की वारदातों की बड़ी वजह है जिस के चलते पतिपत्नी रोज झगड़ते हैं, फिर एक दिन पति अपनी मर्दानगी दिखा ही देता है. इस के बाद वह अपने अंजाम और बच्चों की जिंदगी की भी परवाह नहीं करता है.

शादीशुदा जिंदगी में कोई पति या पत्नी यह बरदाश्त नहीं कर पाते हैं कि उन के पार्टनर के कहीं और संबंध बनें तो यह हक कम पार्टनर का आदी हो जाना ज्यादा है. पार्टनर का अलग कहीं संबंध बना लेना कोई नई बात नहीं है और इस में पत्नियां भी पीछे नहीं रहती हैं.

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लेकिन अफसोस की बात यह कि पिटती हमेशा पत्नी ही है क्योंकि औरत होने के नाते वह कुदरती तौर पर कमजोर होती है और घर के बाहर उस का कोई सहारा आमतौर पर नहीं होता है.

पुलिस में जाना भी इस समस्या का हल नहीं है क्योंकि पुलिस वाले जब तक कोई बड़ी वारदात न हो तब तक पतिपत्नी के बीच दखल नहीं देते हैं.

जाएं तो जाएं कहां

निशा ने सही कदम उठाया था लेकिन अलग होने के बाद भी पति उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. शादी के

5-6 साल बाद अगर पतिपत्नी में झगड़े होते हैं और पत्नी अलग रहने का फैसला लेती है तब उस का साथ कोई नहीं देता और कोई देता भी है तो उस की कीमत वसूलता है.

पत्नियां अगर मायके में जा कर रहें तो वहां भी बोझ समझी जाती हैं और उन्हें अपने ही घर में नौकरों की तरह काम करना पड़ता है.

फिर पति की मारकुटाई की सताई औरतें जाएं तो जाएं कहां? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है और इस का फायदा ही पति उठाते हैं.

नौबत या बात जब जान लेने और देने तक आ जाए तब जरूर पत्नियों को संभल जाना चाहिए और यह समझना चाहिए कि रोजरोज एक ही मसले पर कलह किसी के लिए ठीक नहीं, इसलिए कलह की वजह कुछ भी हो, पति के मुंह ज्यादा नहीं लगना चाहिए. खासतौर से उस वक्त, जब वह शराब के नशे में हो.

तो क्या फिर पत्नियां यों ही पिटती रहेंगी या फिर पति की हैवानियत का शिकार होती रहेंगी? इस सवाल का जवाब बड़े अफसोसजनक ढंग से हां में ही निकलता है, क्योंकि समाज मर्दों का है, घर के मुखिया वे ही होते हैं और पत्नी जब ज्यादा खिलाफत या कलह करती है, तो उसे मारने तक उतारू हो आते हैं.

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चिंता की बात हैवान शौहरों की तादाद में इजाफा होना है. रोज हजारों पार्वती, निशा और ज्योति शौहर की हैवानियत का शिकार हो रही होती हैं, लेकिन कड़वा सच यही है कि वे जाएं तो जाएं कहां?

स्मृति चक्र

स्मृति चक्र: भाग 1

लेखिका- विनीता कुमार

विभा ने झटके से खिड़की का परदा एक ओर सरका दिया तो सूर्य की किरणों से कमरा भर उठा.

‘‘मनु, जल्दी उठो, स्कूल जाना है न,’’ कह कर विभा ने जल्दी से रसोई में जा कर दूध गैस पर रख दिया.

मनु को जल्दीजल्दी तैयार कर के जानकी के साथ स्कूल भेज कर विभा अभी स्नानघर में घुसी ही थी कि फिर घंटी बजी. दरवाजा खोल कर देखा, सामने नवीन कुमार खड़े मुसकरा रहे थे.

‘‘नमस्कार, विभाजी, आज सुबहसुबह आप को कष्ट देने आ गया हूं,’’ कह कर नवीन कुमार ने एक कार्ड विभा के हाथ में थमा दिया, ‘‘आज हमारे बेटे की 5वीं वर्षगांठ है. आप को और मनु को जरूर आना है. अच्छा, मैं चलूं. अभी बहुत जगह कार्ड देने जाना है.’’

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निमंत्रणपत्र हाथ में लिए पलभर को विभा खोई सी खड़ी रह गई. 6-7 दिन पहले ही तो मनु उस के पीछे पड़ रही थी, ‘मां, सब बच्चों की तरह आप मेरा जन्मदिन क्यों नहीं मनातीं? इस बार मनाएंगी न, मां.’

‘हां,’ गरदन हिला कर विभा ने मनु को झूठी दिलासा दे कर बहला दिया था.

जल्दीजल्दी तैयार हो विभा दफ्तर जाने लगी तो जानकी से कह गई कि रात को सब्जी आदि न बनाए, क्योंकि मांबेटी दोनों को नवीन कुमार के घर दावत पर जाना था.

घर से दफ्तर तक का बस का सफर रोज ही विभा को उबा देता था, किंतु उस दिन तो जैसे नवीन कुमार का निमंत्रणपत्र बीते दिनों की मीठी स्मृतियों का तानाबाना सा बुन रहा था.

मनु जब 2 साल की हुई थी, एक दिन नाश्ते की मेज पर नितिन ने विभा से कहा था, ‘विभा, जब अगले साल हम मनु की सालगिरह मनाएंगे तो सारे व्यंजन तुम अपने हाथों से बनाना. कितना स्वादिष्ठ खाना बनाती हो, मैं तो खाखा कर मोटा होता जा रहा हूं. बनाओगी न, वादा करो.’

नितिन और विभा का ब्याह हुए 4 साल हो चुके थे. शादी के 2 साल बाद मनु का जन्म हुआ था. पतिपत्नी के संबंध बहुत ही मधुर थे. नितिन का काम ऐसी जगह था जहां लड़कियां ज्यादा, लड़के कम थे. वह प्रसाधन सामग्री बनाने वाली कंपनी में सहायक प्रबंधक था. नितिन जैसे खूबसूरत व्यक्ति के लिए लड़कियों का घेरा मामूली बात थी, पर उस ने अपना पारिवारिक जीवन सुखमय बनाने के लिए अपने चारों ओर विभा के ही अस्तित्व का कवच पहन रखा था. विभा जैसी गुणवान, समझदार और सुंदर पत्नी पा कर नितिन बहुत प्रसन्न था.

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विलेपार्ले के फ्लैट में रहते नितिन को 6 महीने ही हुए थे. मनु ढाई साल की हो गई थी. उन्हीं दिनों उन के बगल वाले फ्लैट में कोई कुलदीप राज व सामने वाले फ्लैट में नवीन कुमार के परिवार आ कर रहने लगे थे. दोनों परिवारों में जमीन- आसमान का अंतर था. जहां नवीन कुमार दंपती नित्य मनु को प्यार से अपने घर ले जा कर उसे कभी टौफी, चाकलेट व खिलौने देते, वहीं कुलदीप राज और उन की पत्नी मनु के द्वारा छुई गई उन की मनीप्लांट की पत्ती के टूट जाने का रोना भी कम से कम 2 दिन तक रोते रहते.

एक दिन नवीन कुमार के परिवार के साथ नितिन, विभा और मनु पिकनिक मनाने जुहू गए थे. वहां नवीन का पुत्र सौमित्र व मनु रेत के घर बना रहे थे.

अचानक नितिन बोला, ‘विभा, क्यों न हम अपनी मनु की शादी सौमित्र से तय कर दें. पहले जमाने में भी मांबाप बच्चों की शादी बचपन में ही तय कर देते थे.’

नितिन की बात सुन कर सभी खिलखिला कर हंस पड़े तो नितिन एकाएक उदास हो गया. उदासी का कारण पूछने पर वह बोला, ‘जानती हो विभा, एक ज्योतिषी ने मेरी उम्र सिर्फ 30 साल बताई है.’

विभा ने झट अपना हाथ नितिन के होंठों पर रख उसे चुप कर दिया था और झरझर आंसू की लडि़यां बिखेर कर कह उठी थी, ‘ठीक है, अगर तुम कहते हो तो सौमित्र से ही मनु का ब्याह करेंगे, पर कन्यादान हम दोनों एकसाथ करेंगे, मैं अकेली नहीं. वादा करो.’

बस रुकी तो विभा जैसे किसी गहरी तंद्रा से जाग उठी, दफ्तर आ गया था.

लौटते समय बस का इंतजार करना विभा ने व्यर्थ समझा. धीरेधीरे पैदल ही चलती हुई घंटाघर के चौराहे को पार करने लगी, जहां कभी वह और नितिन अकसर पार्क की बेंच पर बैठ अपनी शामें गुजारते थे.

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सभी कुछ वैसा ही था. न पार्क बदला था और न वह पत्थर की लाल बेंच. विभा समझ नहीं पा रही थी कि उस दिन उसे क्या हो रहा था. जहां उसे घर जाने की जल्दी रहती थी, वहीं वह जानबूझ कर विलंब कर रही थी. यों तो वह इन यादों को जीतोड़ कोशिशों के बाद किसी कुनैन की गोली के समान ही सटक कर अपनेआप को संयमित कर चुकी थी.

हालांकि वह तूफान उस के दांपत्य जीवन में आया था, तब वह अपनेआप को बहुत ही कमजोर व मानसिक रूप से असंतुलित महसूस करती थी और सोचती थी कि शायद ही वह अधिक दिनों तक जी पाएगी, पर 3 साल कैसे निकल गए, कभी पीछे मुड़ कर विभा देखती तो सिर्फ मनु ही उसे अंधेरे में रोशनी की एक किरण नजर आती, जिस के सहारे वह अपनी जिंदगी के दिन काट रही थी.

उस दिन की घटना इतना भयानक रूप ले लेगी, विभा और नितिन दोनों ने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी.

एक दिन विभा के दफ्तर से लौटते ही एक बेहद खूबसूरत तितलीनुमा लड़की उन के घर आई थी, ‘‘आप ही नितिन कुमार की पत्नी हैं?’’

‘‘जी, हां. कहिए, आप को पहचाना नहीं मैं ने,’’ विभा असमंजस की स्थिति में थी.

उस आधुनिका ने पर्स में से सिगरेट निकाल कर सुलगा ली थी. विभा कुछ पूछती उस से पहले ही उस ने अपनी कहानी शुरू कर दी, ‘‘देखिए, मेरा नाम शुभ्रा है. मैं दिल्ली में नितिन के साथ ही कालिज में पढ़ती थी. हम दोनों एकदूसरे को बेहद चाहते थे. अचानक नितिन को नौकरी मिल गई. वह मुंबई चला आया और मैं, जो उस के बच्चे की मां बनने वाली थी, तड़पती रह गई. उस के बाद मातापिता ने मुझे घर से निकाल दिया. फिर वही हुआ जो एक अकेली लड़की का इस वहशी दुनिया में होता है. न जाने कितने मर्दों के हाथों का मैं खिलौना बनी.’’

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जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

Short Story : पापा मिल गए- सोफिया को कैसे मिले उसके पापा

शब्बीर की मौत के बाद दोबारा शादी का जोड़ा पहन कर इकबाल को अपना पति मानने के लिए बानो को दिल पर पत्थर रख कर फैसला करना पड़ा, क्योंकि हालात से समझौता करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता भी तो उस के पास नहीं था.

अपनी विधवा मां पर फिर से बोझ बन जाने का एहसास बानो को बारबार कचोटता और बच्ची सोफिया के भविष्य का सवाल न होता, तो वह दोबारा शादी की बात सोचती तक नहीं.

‘‘शादी मुबारक हो,’’ कमरे में घुसते ही इकबाल ने कहा.

‘‘आप को भी,’’ सुन कर बानो को शब्बीर की याद आ गई.

इकबाल को भी नुसरत की याद आ गई, जो शादी के 6-7 महीने बाद ही चल बसी थी. वह बानो को प्यार से देखते हुए बोला, ‘‘क्या मैं ने अपनी नस्सू को फिर से पा लिया है?’’

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया.

‘‘क्या बात है?’’ कहते हुए इकबाल ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने उस की साली सलमा रोतीबिलखती सोफिया को लादे खड़ी है.

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‘‘आपा के लिए यह कब से परेशान है? चुप होने का नाम ही नहीं लेती. थोड़ी देर के लिए आपा इसे सीने से लगा लेतीं, तो यह सो जाती,’’ सलमा ने डरतेडरते कहा.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं,’’ सलमा को अंदर आ जाने का इशारा करते हुए इकबाल ने गुस्से में कहा.

रोती हुई सोफिया को बानो की गोद में डाल कर सलमा तेजी से कमरे से बाहर निकल गई. इधर बानो की अजीब दशा हो रही थी. वह कभी सोफिया को चुप कराने की कोशिश करती, तो कभी इकबाल के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती.

सोफिया के लिए इकबाल के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था. इस पर बानो मन ही मन सोचने लगी कि सोफिया की भलाई के चक्कर में कहीं वह गलत फैसला तो नहीं कर बैठी?

सुबह विदाई के समय सोफिया ने अपनी अम्मी को एक अजनबी के साथ घर से निकलते देखा, तो झट से इकबाल का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी, ‘‘आप कौन हैं? अम्मी को कहां ले जा रहे हैं?’’

सोफिया के बगैर ससुराल में बानो का मन बिलकुल नहीं लग रहा था. अगर हंसतीबोलती थी, तो केवल इकबाल की खातिर. शादी के बाद बानो केवल 2-4 दिन के लिए मायके आई थी. उन दिनों सोफिया इकबाल से बारबार पूछती, ‘‘मेरी अम्मी को आप कहां ले गए थे? कौन हैं आप?’’

‘‘गंदी बात बेटी, ऐसा नहीं बोलते. यह तुम्हारे खोए हुए पापा हैं, जो तुम्हें मिल गए हैं,’’ बानो सोफिया को भरोसा दिलाने की कोशिश करती.

‘‘नहीं, ये पापा नहीं हो सकते. रोजी के पापा उसे बहुत प्यार करते हैं. लेकिन ये तो मुझे पास भी नहीं बुलाते,’’ सोफिया मासूमियत से कहती.

सोफिया की इस मासूम नाराजगी पर एक दिन जाने कैसे इकबाल का दिल पसीज उठा. उसे गोद में उठा कर इकबाल ने कहा, ‘‘हां बेटी, मैं ही तुम्हारा पापा हूं.’’

यह सुन कर बानो को लगने लगा कि सोफिया अब बेसहारा नहीं रही. मगर सच तो यह था कि उस का यह भरोसा शक के सिवा कुछ न था. इस बात का एहसास बानो को उस समय हुआ, जब इकबाल ने सोफिया को अपने साथ न रखने का फैसला सुनाया.

‘‘मैं मानता हूं कि सोफिया तुम्हारी बेटी है. इस से जुड़ी तुम्हारी जो भावनाएं हैं, उन की मैं भी कद्र करता हूं, मगर तुम को मेरी भी तो फिक्र करनी चाहिए. आखिर कैसी बीवी हो तुम?’’ इकबाल ने कहा.

‘‘बस… बस… समझ गई आप को,’’ बानो ने करीब खड़ी सोफिया को जोर से सीने में भींच लिया.

इस बार बानो ससुराल गई, तो पूरे 8 महीने बाद मायके लौट कर वापस आई. आने के दोढाई हफ्ते बाद ही उस ने एक फूल जैसे बच्चे को जन्म दिया. इकबाल फूला नहीं समा रहा था. उस के खिलेखिले चेहरे और बच्चे के प्रति प्यार से साफ जाहिर था कि असल में तो वह अब बाप बना है.

आसिफ के जन्म के बाद इकबाल सोफिया से और ज्यादा दूर रहने लगा था. इस बात को केवल बानो ही नहीं, बल्कि उस के घर वाले भी महसूस करने लगे थे.

इकबाल के रूखे बरताव से परेशान सोफिया एक दिन अम्मी से पूछ बैठी, ‘‘पापा, मुझ से नाराज क्यों रहते हैं? टौफी खरीदने के लिए पैसे भी नहीं देते. रोजी के पापा तो रोज उसे एक सिक्का देते हैं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है बेटी. पापा तुम से भला नाराज क्यों रहेंगे. वे तुम्हें टौफी के लिए पैसा इसलिए नहीं देते, क्योंकि तुम अभी बहुत छोटी हो. पैसा ले कर बाहर निकलोगी, तो कोई छीन लेगा.

‘‘पापा तुम्हारा पैसा बैंक में जमा कर रहे हैं. बड़ी हो जाओगी, तो सारे पैसे निकाल कर तुम्हें दे देंगे.’’

‘‘मगर, पापा मुझे प्यार क्यों नहीं करते? केवल आसिफ को ही दुलार करते हैं,’’ सोफिया ने फिर सवाल किया.

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‘‘दरअसल, आसिफ अभी बहुत छोटा है. अगर पापा उस का खयाल नहीं रखेंगे, तो वह नाराज हो जाएगा,’’ बानो ने समझाने की कोशिश की.

इसी बीच आसिफ रोने लगा, तभी इकबाल आ गया, ‘‘यह सब क्या हो रहा है बानो? बच्चा रो रहा है और तुम इस कमबख्त की आंखों में आंखें डाल कर अपने खो चुके प्यार को ढूंढ़ रही हो.’’ इकबाल के शब्दों ने बानो के दिल को गहरी चोट पहुंचाई.

‘यह क्या हो रहा है?’ घबरा कर उस ने दिल ही दिल में खुद से सवाल किया, ‘मैं ने तो सोफिया के भले के लिए जिंदगी से समझौता किया था, मगर…’ वह सिसक पड़ी.

इकबाल ने घर लौटने का फैसला सुनाया, तो बानो डरतेडरते बोली, ‘‘4-5 रोज से आसिफ थोड़ा बुझाबुझा सा लग रहा है. शायद इस की तबीयत ठीक नहीं है. डाक्टर को दिखाने के बाद चलते तो बेहतर होता.’’

इकबाल ने कोई जवाब नहीं दिया. आसिफ को उसी दिन डाक्टर के पास ले जाया गया.

‘‘इस बच्चे को जौंडिस है. तुरंत इमर्जैंसी वार्ड में भरती करना पड़ेगा,’’ डाक्टर ने बच्चे का चैकअप करने के बाद फैसला सुनाया, तो इकबाल माथा पकड़ कर बैठ गया.

‘‘अब क्या होगा?’’ माली तंगी और बच्चे की बीमारी से घबरा कर इकबाल रोने लगा.

‘‘पापा, आप तो कभी नहीं रोते थे. आज क्यों रो रहे हैं?’’ पास खड़ी सोफिया इकबाल की आंखों में आंसू देख कर मचल उठी.

डरतेडरते सोफिया बिलकुल पास आ गई और इकबाल की भीगी आंखों को अपनी नाजुक हथेली से पोंछते हुए फिर बोली, ‘‘बोलिए न पापा, आप किसलिए रो रहे हैं? आसिफ को क्या हो गया है? वह दूध क्यों नहीं पी रहा?’’

सोफिया की प्यारी बातों से अचानक पिघल कर इकबाल ने कहा, ‘‘बेटी, आसिफ की तबीयत खराब हो गई है. इलाज के लिए डाक्टर बहुत पैसे मांग रहे हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं पापा. आप ने मेरी टौफी के लिए जो पैसे बैंक में जमा कर रखे हैं, उन्हें निकाल कर जल्दी से डाक्टर अंकल को दे दीजिए. वह आसिफ को ठीक कर देंगे,’’ सोफिया ने मासूमियत से कहा.

इकबाल सोफिया की बात समझ नहीं सका. पूछने के लिए उस ने बानो को बुलाना चाहा, मगर वह कहीं दिखाई नहीं दी. दरअसल, बानो इकबाल को बिना बताए आसिफ को अपनी मां की गोद में डाल कर बैंक से वह पैसा निकालने गई हुई थी, जो शब्बीर ने सोफिया के लिए जमा किए थे.

‘‘इकबाल बाबू, बानो किसी जरूरी काम से बाहर गई है, आती ही होगी. आप आसिफ को तुरंत भरती कर दें. पैसे का इंतजाम हो जाएगा,’’ आसिफ को गोद में चिपकाए बानो की मां ने पास आ कर कहा, तो इकबाल आसिफ को ले कर बोझिल मन से इमर्जैंसी वार्ड की तरफ बढ़ गया.

सेहत में काफी सुधार आने के बाद आसिफ को घर ले आया गया.

‘‘यह तुम ने क्या किया बानो? शब्बीर भाई ने सोफिया के लिए कितनी मुश्किल से पैसा जमा किया होगा, मगर…’’ असलियत जानने के बाद इकबाल बानो से बोला.

‘‘सोफिया की बाद में आसिफ की जिंदगी पहले थी,’’ बानो ने कहा.

‘‘तुम कितनी अच्छी हो. वाकई तुम्हें पा कर मैं ने नस्सू को पा लिया है.’’

‘‘वाकई बेटी, बैंक में अगर तुम्हारी टौफी के पैसे जमा न होते, तो आसिफ को बचाना मुश्किल हो जाता,’’ बानो की तरफ से नजरें घुमा कर सोफिया को प्यार से देखते हुए इकबाल ने कहा.

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‘‘मैं कहती थी न कि यही तुम्हारे पापा हैं?’’ बानो ने सोफिया से कहा.

इकबाल ने भी कहा, ‘‘हां बेटी, मैं ही तुम्हारा पापा हूं.’’

सोफिया ने बानो की गोद में खेल रहे आसिफ के सिर को सीने से सटा लिया और इकबाल का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मेरे पापा… मेरे अच्छे पापा.’’

Best of Manohar Kahaniya: जैंट्स पार्लरों में चलता गरम जिस्म का खेल

बिहार की राजधानी पटना के तकरीबन हर इलाके में जैंट्स पार्लरों की भरमार सी है. चमचमाते और रंगबिरंगे पार्लर मनचले नौजवानों और मर्दों को खुलेआम न्योता देते रहते हैं. इन पार्लरों के आसपास गहरा मेकअप किए इठलातीबलखाती और मचलती लड़कियां मोबाइल फोन पर बातें करती दिख जाती हैं. अपने परमानैंट ग्राहकों को सैक्सी बातों से रिझातीपटाती नजर आ ही जाती हैं. वैसे, इन पार्लरों में हर तरह की ‘सेवा’ दी जाती है. कुरसी के हैडरैस्ट के बजाय लड़कियों के सीने पर सिर रख कर शेव बनवाने और फेस मसाज का मजा लीजिए या फिर लड़कियों के गालों पर चिकोटियां काटते हुए मसाज का मजा लीजिए.

फेस मसाज, हाफ बौडी मसाज से ले कर फुल बौडी मसाज की सर्विस हाजिर है. जैसा काम, वैसी फीस यानी पैसा फेंकिए और केवल तमाशा मत देखिए, बल्कि खुद भी तमाशे में शामिल हो कर जिस्मानी सुख का भरपूर मजा उठाइए.

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जैंट्स पार्लरों में ग्राहकों से मनमाने दाम वसूले जाते हैं. शेव बनवाने की फीस 5 सौ से एक हजार रुपए तक है. फेस मसाज कराना है, तो एक हजार से 2 हजार रुपए तक ढीले करने होंगे. हाफ बौडी मसाज के लिए 3 हजार से 5 हजार रुपए देने पड़ेंगे और फुल बौडी मसाज के तो कोई फिक्स दाम नहीं हैं.

पटना के बोरिंग रोड, फ्रेजर रोड, ऐक्जिबिशन रोड, डाकबंगला रोड, कदमकुआं, पीरबहोर, मौर्यलोक कौंप्लैक्स, स्टेशन रोड, राजा बाजार, कंकड़बाग, एसके नगर वगैरह इलाकों में जैंट्स मसाज पार्लरों की भरमार है.

पिछले कुछ महीनों में पुलिस की छापामारी से जैंट्स पार्लरों का धंधा कुछ मंदा तो हुआ?है, पर पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है. थानों की मिलीभगत से जैंट्स पार्लरों का खेल चल रहा है.

कुछ साल पहले तक मसाज पार्लरों में नेपाली और बंगलादेशी लड़कियों की भरमार थी, पर अब उन की तादाद कम हुई है. बिहार और उत्तर प्रदेश की  लड़कियां अब उन में काम कर रही हैं. इन में ज्यादातर गरीब घरों की लड़कियां ही होती हैं, जो पेट की आग बुझाने के लिए यह धंधा करने को मजबूर हैं.

फ्रेजर रोड के एक पार्लर में काम करने वाली सलमा बताती है कि उस का शौहर उसे छोड़ कर मुंबई भाग गया. अपनी 7 साल की बेटी को पालने के लिए उसे मजबूरी में मसाज पार्लर में काम करना पड़ा.

इसी तरह पति की मौत हो जाने के बाद ससुराल वालों की मारपीट की वजह से रोहतास से भाग कर पटना पहुंची सोनी काम की खोज में बहुत भटकी, पर उसे कोई काम नहीं मिला. बाद में उस की सहेली ने उसे जैंट्स पार्लर में काम दिलाया.

सोनी बताती है कि पहले तो उसे मर्दों की सैक्सी निगाहों और हरकतों से काफी शर्म आती थी. कई बार यह काम छोड़ने का मन किया, पर अब इन सब की आदत हो गई है.

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समाजसेवी प्रवीण सिन्हा कहते हैं कि ऐसे पार्लरों में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियों और औरतों के पीछे बेबसी और मजबूरी की कहानी होती है. कुछ लड़कियां ही ऐसी होती हैं, जो ऐशमौज करने और महंगे शौक पूरा करने के लिए मसाज करने और जिस्म बेचने का काम करती हैं.

वहां आसपास रहने वाले लोगों की कई शिकायतों के बाद कभीकभार पुलिस जागती है और एकसाथ कई मसाज पार्लरों पर छापामारी कर कई लड़कियों, पार्लर चलाने वालों और दर्जनों ग्राहकों को पकड़ कर ले जाती है.

पुलिस देह धंधा करने के आरोप में लड़कियों और ग्राहकों की धरपकड़ करती है. 2-3 दिनों तक तो पार्लर पर ताला दिखता है और फिर पुलिस, कानून और समाज के ठेकेदारों को ठेंगा दिखाते हुए धंधा चालू हो जाता है और बेधड़क चलता रहता है.

पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि जिस्मानी धंधे की शिकायत मिलने के बाद ही पुलिस छापामारी करती है. प्रिवैंशन औफ इम्मोरल ट्रैफिक ऐक्ट के तहत शिकायतों के बाद छापामारी की जाती है. पार्लर से पकड़ी गई लड़कियां या औरतें यह नहीं बताती हैं कि उन्हें जबरदस्ती या लालच दे कर काम कराया जा रहा है. वे तो पुलिस को यही बयान देती हैं कि वे अपनी मरजी से काम कर रही हैं. अगर वे देह बेचने को मजबूर नहीं की गई हैं, तो प्रिवैंशन औफ इम्मोरल ट्रैफिक ऐक्ट बेमानी हो जाता है. इस से कानून कुछ नहीं कर पाता है.

पुलिस के एक रिटायर्ड अफसर की मानें, तो ऐसे पार्लरों पर छापामारी पुलिस के लिए पैसा उगाही का जरीया भर है. पुलिस को पता है कि ऐसे मसाज पार्लरों पर कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है, वह महज रोबधौंस दिखा कर ‘वसूली’ कर लड़कियों और संचालकों को छोड़ देती है. जो पार्लर सही समय पर थानों में चढ़ावा नहीं चढ़ाते हैं, वहीं छापामारी की जाती है.

पटना हाईकोर्ट के वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि जिस्म के धंधे और यौन शोषण की शिकायत पर कानूनी कार्यवाही तभी हो सकती है, जब वह दबाव बना कर कराया जा रहा हो. जब किसी औरत का जबरन या खरीदफरोख्त के लिए यौन शोषण नहीं किया जा रहा है, तो वह कानूनन देह धंधा नहीं माना जाएगा.

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मसाज पार्लरों से पकड़ी गई लड़कियां कभी यह नहीं कहती हैं कि उन से जबरन कोई काम कराया जा रहा है, फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि किसी जैंट्स पार्लर में जिस्मफरोशी का धंधा चलता है?

कातिल कौन

स्मृति चक्र: भाग 2

लेखिका- विनीता कुमार

विभा को तो मानो सांप सूंघ गया था. आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया था. उस ने झट फ्रिज से बोतल निकाल कर पानी पिया और अपने ऊपर नियंत्रण रखते हुए अंदर से किवाड़ की चटखनी चढ़ा कर उस लड़की से पूछा, ‘‘तुम ने अभी- अभी कहा है कि तुम नितिन के बच्चे की मां बनने वाली थीं…’’

‘‘मेरा बेटा…नहीं, नितिन का बेटा कहूं तो ज्यादा ठीक होगा, वह छात्रावास में पढ़ रहा है,’’ युवती ने विभा की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘तुम अब क्या चाहती हो? मेरे विचार से बेहतर यही होगा कि तुम फौरन  यहां से चली जाओ. नितिन तुम्हें भूल चुका होगा और शायद तुम से अब बात भी करना पसंद नहीं करेगा. तुम्हें पैसा चाहिए? मैं अभी चेक काट देती हूं, पर यहां से जल्दी चली जाओ और फिर कभी इधर न आना?’’ विभा ने 10 हजार रुपए का चेक काट कर उसे थमा दिया.

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‘‘इतनी आसानी से चली जाऊं. कितनी मुश्किल से तो अपने एक पुराने साथी से पैसे मांग कर यहां तक पहुंची हूं और फिर नितिन से मुझे अपने 6 साल का हिसाब चुकाना है,’’ युवती ने व्यंग्य- पूर्वक मुसकराते हुए कहा.

थोड़ी देर बाद घंटी बजी. विभा ने दौड़ कर दरवाजा खोला. नितिन ने अंदर कदम रखते हुए कहा, ‘‘शुभ्रा, तुम…तुम यहां कैसे?’’

विभा की तो रहीसही शंका भी मिट चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. युवती ने अपनी कहानी एक बार फिर नितिन के सामने दोहरा दी थी.

विभा के अंदर जो घृणा नितिन के प्रति जागी थी, उस ने भयंकर रूप ले लिया था. नितिन बारबार उसे समझा रहा था, ‘‘विभा, यह लड़की शुरू से आवारा है. मेरा इस से कभी कोई संबंध नहीं था. हर पुराने सहपाठी या मित्र को यह ऐसे ही ठगती है. विभा, नासमझ न बनो. यह नाटक कर रही है.’’

पर विभा ने तो अपना सूटकेस तैयार करने में पलभर की भी देरी नहीं की थी. वह नितिन का घर छोड़ कर चली गई. कोशिश कर के नवीन कुमार के दफ्तर में उसे नौकरी भी मिल गई. कुछ समय मनु के साथ एक छोटे से कमरे में गुजार कर बाद में विभा ने फ्लैट किराए पर ले लिया था.

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घर छोड़ने के 5-6 माह बाद ही विभा को पता चला कि वह लड़की धोखेबाज थी. उस ने डराधमका कर नितिन से बहुत सा रुपया ऐंठ लिया था. उस हादसे से वह एक तरह से अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठा था. चाह कर भी विभा फिर नितिन से मिलने न जा सकी.

नवीन कुमार के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में विभा नहीं गई. जब विभा घर पहुंची तो मनु सो चुकी थी. विभा कपड़े बदल कर निढाल सी पलंग पर जा लेटी. उस दिन न जाने क्यों उसे नितिन की बेहद याद आ रही थी.

रात के 11 बजे कच्ची नींद में विभा को जोरजोर से किवाड़ पर दस्तक सुनाई दी. स्वयं को अकेली जान यों ही एक बार तो वह घबरा उठी. फिर हिम्मत जुटा कर उस ने पूछा, ‘‘कौन है?’’

बाहर से कुलदीप राज की आवाज पहचान उस ने द्वार खोला. पुलिस की वर्दी में एक सिपाही को देख एकाएक उस के पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई.

‘‘आप ही विभा हैं?’’ सिपाही ने पूछा.

‘‘ज…ज…जी, कहिए.’’

‘‘आप के पति का एक्सीडेंट हो गया है. नशे की हालत में एक टैक्सी से टकरा गए हैं. उन की जेब में मिले कागजों व आप के पते तथा फोटो से हम यहां तक पहुंचे हैं. आप तुरंत हमारे साथ चलिए.’’

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‘‘कैसे हैं वह?’’

‘‘घबराएं नहीं, खतरे की कोई बात नहीं है,’’ सिपाही ने सांत्वना भरे स्वर में कहा.

विभा का शरीर कांप रहा था. हृदय की धड़कन बेकाबू सी हो गई थी. एक पल में ही विभा सारी पिछली बातें भूल कर तुरंत मनु को पड़ोसियों को सौंप कर अस्पताल पहुंची.

नितिन गहरी बेहोशी में था. काफी चोट आई थी. डाक्टर के आते ही विभा पागलों की भांति उसे झकझोर उठी, ‘‘डाक्टर साहब, कैसे हैं मेरे पति? ठीक तो हो जाएंगे न…’’

डाक्टर ने विभा को तसल्ली दी, ‘‘खतरे की कोई बात नहीं है. 2-3 जगह चोटें आई हैं, खून काफी बह गया है. लेकिन आप चिंता न करें. 4-5 दिन में इन्हें घर ले जाइएगा.’’

विभा के मन को एक सुखद शांति मिली थी कि उस के नितिन का जीवन खतरे से बाहर है.

5वें दिन विभा नितिन को ले कर घर आ गई थी. अस्पताल में दोनों के बीच जो मूक वार्त्तालाप हुआ था, उस में सारे गिलेशिकवे आंसुओं की नदी बन कर बह गए थे.

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बचपन में विभा के स्कूल की एक सहेली हमेशा उस से कहती थी, ‘विभा, एक बार कुट्टी कर के जब दोबारा दोस्ती होती है तो प्यार और भी गहरा हो जाता है.’ उस दिन विभा को यह बात सत्य महसूस हो रही थी.

नितिन ने विभा से फिर कभी शराब न पीने का वादा किया था और उन की गृहस्थी को फिर एक नई जिंदगी मिल गई थी.

इतने वर्ष कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला था. उस दिन विभा की बेटी मनु की शादी हो रही थी.

‘‘नितिन, वह ज्योतिषी कितना ढोंगी था, जिस ने तुम्हें फुजूल मरनेजीने की बात बता कर वहम में डाला था. चलो, मनु का कन्यादान करने का समय हो रहा है,’’ विभा ने मुसकराते हुए कहा.

विदाई के समय विभा ने मनु को सीख दी थी, ‘‘मनु, कभी मेरी तरह तुम भी निराधार शक की शिकार न होना, वरना हंसतीखेलती जिंदगी रेगिस्तान के तपते वीराने में बदल जाएगी.’’

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कातिल कौन : भाग 3

लेखक- अहमद यार खान

इस पर दोनों गुत्थमगुत्था हो गए. लड़कों ने बीचबचाव कराया. सफदर ने धमकी दी कि वह उसे जान से मारेगा. सफदर वहां से चला आया.

अरशद की बात सुन कर मुझे खयाल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सफदर ने अपनी मां की हत्या खुद ही कर दी हो. अगर ऐसा हुआ हो तो फिर सवाल यह था कि सफदर की हत्या किस ने की? जबकि जो पग चिह्न शादो की लाश के पास पाए गए थे, वही सफदर के घर के सहन में पाए गए. दोनों क ी हत्या भी एक ही तरह से की गई थी.

मुझे यह देखना था कि वह आदमी कौन था. सब से पहले मैं ने परवीन से बात करने के बारे में सोचा. मैं ने नंबरदार से कहा कि वह परवीन को बुलाए. उस ने अपनी नौकरानी को परवीन को बुलाने भेज दिया.

वह लड़की आ कर मेरे सामने बैठ गई. वह करीब 16-17 साल की होगी. वह मामूली सी लड़की घबराई हुई थी. मैं ने सब से पहले उस से अपनी कलाई दिखाने के लिए कहा. उस ने कलाई आगे कर दी. उस में लाल रंग की बची हुई चूडि़यां थीं और उस की कलाई पर चूड़ी के कुछ घाव भी थे.

मैं ने उस से बड़े प्यार से कहा, ‘‘चूड़ी तो बहुत अच्छी पहन रखी हैं. लगता है कहीं गिरने से टूट गई हैं.’’

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‘‘हां, मैं गिर गई थी.’’ वह कलाइयों को देख कर बोली, ‘‘चोट भी लगी और चूडि़यां भी टूट गईं.’’

‘‘कहां गिरी थीं?’’

वह एकदम घबरा गई. फिर संभल कर बोली, ‘‘वो…एक सहेली के घर गिरी थी.’’

‘‘कौन सी सहेली?’’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘उस का नाम बताओ?’’

वह सोच में पड़ गई. सीधीसादी देहाती लड़की थी. उस में चालाकी नहीं थी. कोई चालाक लड़की होती तो तुरंत कोई नाम बता देती.

‘‘मैं तुम्हारी सहेली का नाम बता देता हूं, जिस के घर में तुम्हारी चूडि़यां टूटी थीं.’’ मैं ने जेब से रूमाल में बंधे चूडि़यों के टुकड़े उस के सामने रख दिए और कहा, ‘‘मैं तुम्हारी सहेली के घर से उठा लाया हूं.’’

चूडि़यों के टुकड़े देख कर उस की हालत ऐसी हो गई जैसे अभी बेहोश हो कर गिर जाएगी. मैं ने उसे तसल्ली दी, ‘‘घबराने की जरूरत नहीं है. किसी से मिलना कोई पाप नहीं है और न ही यह कोई अपराध है.’’

वह फिर संभल गई.

‘‘सफदर की हत्या हो गई है और मुझे उस के हत्यारे को पकड़ना है. तुम इस मामले में मेरी मदद करो. यह बताओ, वहां कौन आया था, तुम्हारा बाप या भाई?’’ मैं ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा.

‘‘उन में से कोई नहीं आया था. उन्हें तो इस मामले की खबर भी नहीं है. वह अब्बास था.’’

सुन कर मुझे झटका सा लगा. उस ने कहा, ‘‘वह वहां पहले से मौजूद था.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने वहां जो कुछ देखा, वह मुझे सचसच बताओ.’’

उस के जवाब में परवीन ने मुझे सब कुछ बता दिया. अपने और सफदर के संबंध के बारे में भी.

उस ने बयान में बताया कि वह सफदर से चोरीछिपे मिलती थी. जब सफदर की मां की हत्या हो गई तो वह उस के घर जा कर मिलती थी. घटना वाले दिन भी वह रात में सफदर के घर गई. दरवाजा खुला था.

वह अंदर गई तो देखा सफदर जमीन पर पड़ा था और उस की गरदन में कपड़ा पड़ा हुआ था. फिर वह आदमी सीधा खड़ा हो गया.

यह देख कर परवीन की चीख निकल गई. चीख सुन कर वह उस की ओर पलटा. वह अब्बास था. परवीन उसे देख कर भागना चाहती थी, लेकिन उस के कदम वहीं जम गए. अब्बास ने उस की कलाई पकड़ कर खींचा तो चूडि़यां टूट गईं.

उस के बाद अब्बास ने पूरी ताकत से उस की गरदन अपनी बाजुओं में दबा ली, जिस से उस की आंखें निकल आईं और सांसें उखड़ने लगीं. वह अपनी गरदन छुड़ाने की कोशिश करने लगी. अपने नाखूनों से उस की कलाई को नोचा लेकिन अब्बास पर उस का कोई असर नहीं हुआ. मौत उस की आंखों के सामने नाचने लगी.

फिर अब्बास ने उस की गरदन छोड़ दी और वह सफदर के ऊपर गिर गई. अब्बास बोला, ‘‘यह केवल नमूना था, अगर तूने अपनी जबान खोली तो तुझे भी मार दूंगा.’’

वह इतना डर गई थी कि कुछ बोल नहीं सकी.

‘‘एक बात याद रखना परवीन,’’ अब्बास ने उस से कहा, ‘‘अगर तूने जबान खोली तो फिर मैं पूरे गांव को बता दूंगा कि तू सफदर के साथ कौन सा खेल खेल रही थी. सोच ले, तेरे मांबाप का क्या हाल होगा. उन में जरा भी शर्म होगी तो डूब मरेंगे.’’

अब्बास ने परवीन को इतना डरा दिया था कि वह बिलकुल चुप रहने लगी थी. मैं ने परवीन को भेज दिया और थाने आ कर एएसआई और एक कांस्टेबल को अब्बास को गिरफ्तार करने के लिए भेज दिया. यह दोहरे हत्याकांड की कहानी थी. मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि अब्बास ने मांबेटे की हत्या क्यों की थी, जबकि वह शादो और उस के बेटे से बहुत प्यार करता था.

एएसआई अब्बास को हथकड़ी लगा कर ले आया. वह बहुत गुस्से में था. दोनों मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गए. अब्बास बोला, ‘‘यह ज्यादती है. आप मुझे कहते, मैं दौड़ा चला आता.’’

मैं ने रूखेपन से कहा, ‘‘कोई ज्यादती नहीं है अब्बास, हत्यारों को इसी तरह थाने लाया जाता है.’’

‘‘लगता है तुम्हें अब भी मेरे ऊपर शक है?’’ अब्बास अकड़ में बोला.

मैं ने कहा, ‘‘शक नहीं है, दोनों हत्याएं तुम ने की हैं. मेरे पास पक्के सबूत हैं. कहो तो एकएक तुम्हारे सामने रख दूं. अच्छा यही है कि तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो और बयान दे दो.’’

मेरी बात सुन कर पहले तो वह घबराया और फिर हर अपराधी की तरह अपने आप को निर्दोष बताने लगा. मैं ने उस से क हा, ‘‘अपनी आस्तीन ऊपर करो.’’

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उसने बांह ऊपर की तो परवीन के नाखूनों से लगे घाव दिखाई दे गए.

वह घबरा गया, ‘‘वो…वो…’’

‘‘झूठ मत बोलना, परवीन ने मुझे सब कुछ बता दिया है. बोलो, अपना अपराध स्वीकार करते हो?’’

वह ऐसे ढीला पड़ गया, जैसे गुब्बारे से हवा निकल गई हो. मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने दोनों की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने केवल सफदर की हत्या की है. शादो की हत्या उस के बेटे सफदर ने की थी. वह हमारा मिलना पसंद नहीं करता था.’’ अब्बास ने कहा.

उस के इस बयान से सारा मामला समझ में आ गया. सफदर को उस की मां का अब्बास से मिलना अच्छा नहीं लगता था. वह उस लड़के के तानों से दुखी था.

अब्बास ने बताया कि जब सफदर के पिता की मृत्यु हो गई थी तब सफदर छोटा था. लेकिन जब वह बड़ा हुआ तो उसे उस की मां का अब्बास से मिलना अच्छा नहीं लगता था. कई बार वह इस मामले में अपनी मां से लड़ा भी था.

घटना वाली रात शादो और अब्बास खंडहर में बैठे थे कि सफदर वहां आ गया. अब्बास ने मुझ से झूठ कहा था कि वह अंधेरे में आने वाले को पहचान नहीं सका था. शादो ने सफदर को देखते ही कहा, ‘‘तुम पीछे से निकल जाओ, मैं सफदर को संभाल लूंगी.’’

बाद में पता लगा शादो की हत्या हो गई.

शादो के मरने के बाद अब्बास बहुत दुखी हुआ और मौके की तलाश में रहा कि सफदर को ठिकाने लगाए. फिर एक रात उस ने सफदर को भी ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इस के लिए वह उस के घर गया.

सफदर उसे देख कर हैरान हुआ. उस ने कहा कि वह उस से कुछ बात करने आया है, लेकिन सफदर को पता नहीं था कि अब्बास के रूप में उस की मौत आई है.

सफदर उसे ले कर अंदर कमरे में जाने लगा. अब्बास ने मौका देख कर पीछे से उस के गले में पड़े गमछे को उस की गरदन में लपेट कर खींच लिया और उसे दबाता चला गया.

सफदर बहुत उछला कूदा, लेकिन अब्बास ताकतवर था. उस ने सफदर को नीचे गिरा कर उस पर पैर रख दिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तक उस का दम नहीं निकल गया.

अब्बास ने गमछा गरदन में ही रहने दिया. उस ने अपनी शादो का बदला बिलकुल वैसे ही लिया था, जैसे उस ने अपनी मां को गले में दुपट्टे का फंदा डाल कर मारा था. फिर परवीन दिखाई दी. उस के बाद की कहानी परवीन सुना चुकी थी. यह बयान दे कर वह बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगा. मैं उस की भावनाओं को समझ रहा था. वह मांबेटे से बहुत प्यार करता था.

केस तैयार कर के मैं ने अदालत में दाखिल कर दिया. अब्बास अपने बयान पर कायम रहा. मैं ने परवीन की गवाही भी दिलवाई, जिस के कारण वह गांव में बदनाम भी हो गई. अदालत ने उसे मृत्युदंड दिया. उस के वकील ने अपील के लिए कहा, लेकिन उस ने यह कह कर मना कर दिया कि शादो के बिना अब वह जीना नहीं चाहता.

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इस कहानी का एक दुखद पहलू यह भी रहा कि बदनामी की वजह से परवीन ने नहर में कूद कर जान दे दी. मुझे इस का बहुत दुख हुआ. लेकिन मैं क्या करता, क्योंकि बिना गवाही के अदालत सजा नहीं देती.

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