शब्बीर की मौत के बाद दोबारा शादी का जोड़ा पहन कर इकबाल को अपना पति मानने के लिए बानो को दिल पर पत्थर रख कर फैसला करना पड़ा, क्योंकि हालात से समझौता करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता भी तो उस के पास नहीं था.
अपनी विधवा मां पर फिर से बोझ बन जाने का एहसास बानो को बारबार कचोटता और बच्ची सोफिया के भविष्य का सवाल न होता, तो वह दोबारा शादी की बात सोचती तक नहीं.
‘‘शादी मुबारक हो,’’ कमरे में घुसते ही इकबाल ने कहा.
‘‘आप को भी,’’ सुन कर बानो को शब्बीर की याद आ गई.
इकबाल को भी नुसरत की याद आ गई, जो शादी के 6-7 महीने बाद ही चल बसी थी. वह बानो को प्यार से देखते हुए बोला, ‘‘क्या मैं ने अपनी नस्सू को फिर से पा लिया है?’’
तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया.
‘‘क्या बात है?’’ कहते हुए इकबाल ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने उस की साली सलमा रोतीबिलखती सोफिया को लादे खड़ी है.
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‘‘आपा के लिए यह कब से परेशान है? चुप होने का नाम ही नहीं लेती. थोड़ी देर के लिए आपा इसे सीने से लगा लेतीं, तो यह सो जाती,’’ सलमा ने डरतेडरते कहा.
‘‘हां... हां... क्यों नहीं,’’ सलमा को अंदर आ जाने का इशारा करते हुए इकबाल ने गुस्से में कहा.
रोती हुई सोफिया को बानो की गोद में डाल कर सलमा तेजी से कमरे से बाहर निकल गई. इधर बानो की अजीब दशा हो रही थी. वह कभी सोफिया को चुप कराने की कोशिश करती, तो कभी इकबाल के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती.