लौकडाउन : भाग 2

राय साहब ने जल्दी से मालिनी को फोन किया, ‘‘तुम अभी घर आ जाओ, हमें दाह संस्कार करना होगा. लाश को ज्यादा समय तक घर में नहीं रखा जा सकता.’’

लेकिन मालिनी ने असमर्थता जाहिर करते हुए आने से इनकार कर दिया. उस ने राय साहब को समझाने की कोशिश की कि शहर भर में पुलिस तैनात है. मैं नहीं आ सकती. कल आती हूं. बस एक ही दिन की तो बात है.

राय साहब क्या करते, उन्हें दिन भर पत्नी की लाश के साथ अकेले रहना था. वह बंगले में घूमघूम कर वक्त बिताने लगे. न खाना, न पीना.

राय साहब पर बिजली तब गिरी, जब प्रधानमंत्री ने अगले 21 दिन के लिए लौकडाउन की घोषणा कर दी. मालिनी नहीं आ सकी तो राय साहब को आत्मग्लानि होने लगी. उन के दिलोदिमाग में भय के बादल मंडराने लगे थे. कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने जल्दी से बंगले की सारी खिड़की, दरवाजे बंद कर लिए. बाहर गेट पर ताला लगा दिया, जिस से कोई अंदर न आ सके.

कुछ पल शांत बैठ कर उन्होंने खुद को संभाला. एक कार मालिनी ले गई थी. गनीमत थी कि दूसरी खड़ी थी. उन्होंने सोचा रात में लाश को गाड़ी में ले जा कर ठिकाने लगा देंगे. बंगले से बाहर के लोग अंदर कुछ नहीं देख सकेंगे.

ये भी पढ़ें- हिम्मत : क्या बबली बचा पाई अपनी इज्जत

लेकिन बंगले के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे थे, जिन से राय साहब को बंगले के बाहर सड़क पर आनेजाने वालों की जानकारी मिल जाती थी.

राय साहब ने अपने मोबाइल पर सीसीटीवी फुटेज देखे, चारों तरफ मुस्तैदी से तैनात पुलिसकर्मी नजर आए. लौकडाउन का सख्ती से पालन कराया जा रहा था. आनेजाने वालों की चैकिंग हो रही थी. ऐसे में बाहर जाना खतरे से खाली नहीं था.

इतने दिन लाश के साथ गुजारना भयावह था. वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि जिंदगी ठहर सी गई. राय साहब की हालत खराब होने लगी. लाश के साथ रहना उन की मजबूरी थी. बारबार बैडरूम में जा कर वह चैक करते कि दामिनी का शरीर सुरक्षित है या नहीं.

पूरे बंगले में सिर्फ वह थे और दामिनी का मृत शरीर. लाश को घर में रखे रहना चिंता की बात थी. शरीर के सड़ने से बदबू फैल सकती थी. उन्होंने बैडरूम में एसी चला कर दामिनी के शरीर को पलंग पर लिटा दिया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. कभी वह कमरे के बाहर जाते तो कभी खिड़कियों से झांकते. उन्हें बाहर जाने से भी डर लगने लगा था.

घबराहट धीरेधीरे कुंठा में परिवर्तित होने लगी थी. चेहरे पर भय और ग्लानि के भाव नजर आने लगे थे. वह जितना खुद को संयत करते, दामिनी की मौत को ले कर उन्हें उतना ही अपराधबोध होता. ऐसी स्थिति में उन्हें एकएक दिन गुजारना मुश्किल हो रहा था.

एक दिन वह कमरे में दामिनी को देखने गए तो न जाने किस भावावेश में पत्नी के मृत शरीर से लिपट गए और पागलों की तरह रोने लगे. उन के मुंह से खुदबखुद अपराधबोध के शब्द निकल रहे थे.

‘‘दामिनी, मुझे माफ कर दो. तुम्हें मेरी गलती की इतनी सजा मिली. इस घर के कोनेकोने में तुम्हारी यादें बसी हैं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता, प्लीज वापस आ जाओ. मैं ने मालिनी पर विश्वास कर के गलती की. मुझे माफ कर दो,’’ रोतेरोते उन की आंखें लाल हो गईं.

थोड़ी देर बाद राय साहब ने महसूस किया जैसे कोई उन के हाथ को सहला रहा हो. किसी की गर्म सांसें उन के चेहरे पर महसूस हुईं. उन के आगोश में कोई खास लिपटा था. वह मदमस्त से उस निश्चल धारा में बहने लगे. तभी अचानक न जाने कहां से उन के पालतू कुत्ते आ गए और उन के साथ खेलने लगे.

खेलतेखेलते कुत्तों ने अचानक उन के हाथों की अंगुलियों को मुंह में दबा लिया. राय साहब अंगुलियों को छुड़ाना चाहते थे, लेकिन उन की पकड़ मजबूत थी. कुत्तों के पैने दांतों के बीच दबी अंगुलियां कट सकती थीं. इस डर से वह जोर से चिल्लाने लगे. भयभीत हो कर उन्होंने आंखें खोलीं तो खुद को बिस्तर पर पाया. यह स्वप्न था. याद आया, उन के कुत्ते तो एक महीना पहले ही मर गए थे. शायद उन्हें जहर दिया गया था.

राय साहब की हालत पागलों वाली हो गई थी. खाने की चिंता तक नहीं रहती थी. सुबह को डिलिवरी बौय गेट के बाहर दूध और ब्रेड रख जाता था, उसी से काम चलाना होता था. उन्होंने देखा कि दामिनी के हाथ में उन का हाथ फंसा हुआ है. वह उन के शरीर से लिपटी हुई थी.

डर से राय साहब की चीख निकल गई. वह पसीने से तरबतर थे. भय से कांपते हुए वह जमीन पर बैठ गए. सांस उखड़ने लगी, गला सूख रहा था. किसी तरह उठ कर लड़खड़ाते कदमों से वह किचन की तरफ भागे. वहां खड़े हो कर उन्होंने 2-3 गिलास पानी पी कर खुद को संयत किया.

एक दिन राय साहब मानसिक उद्विग्नता की स्थिति में दामिनी की लाश के पास बैठे थे. तभी उन्होंने महसूस किया कि कोई मजबूती से उन का हाथ पकड़े है, लेकिन दिखा कोई नहीं. वह सोचने लगे, दामिनी ही होगी. इस तरह हाथ वही पकड़ती थी.

राय साहब को पत्नी की लाश के साथ घर में रहते हुए 15-20 दिन हो गए थे. हर एक दिन एकएक साल की तरह लग रहा था. बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल, भयग्रस्त चेहरा उन के सुंदर चेहरे को डरावना बना रहे थे.

घर में जो मिला, खा लिया. अब वह खाने से ज्यादा पीने लगे थे. गनीमत थी कि उस रोज की पार्टी की काफी शराब बच गई थी, वरना वह भी नहीं मिलती.

धीरेधीरे राय साहब को इन बातों की आदत सी पड़ने लगी. पहले वह लाश को देख कर डरते थे. लेकिन अब उस से बातें भी करने लगे थे. उन की मानसिक स्थिति अजीब सी हो गई थी.

ये भी पढ़ें- टूटे घरौंदे : भाग 1

दामिनी उन की कल्पना में फिर से जी उठी. उस की अच्छाई, उस का निस्वार्थ प्रेम अकल्पनीय था. उन की दुनिया, भले ही वह खयालों में हो, फिर से दामिनी के इर्दगिर्द सिमटने लगी. काल्पनिक दुनिया में उन्होंने दामिनी से अपने सारे गिलेशिकवे दूर कर लिए.

अब उन की काल्पनिक दामिनी हर समय उन के साथ रहने लगी. नशे में धुत राय साहब घंटों तक दामिनी से बातें करने लगे. रोजाना दामिनी का शृंगार करना और उस के पास ही सो जाना, उन की दिनचर्या में शामिल हो गया.

आत्मग्लानि, अकेलापन और दुख राय साहब को मानसिक रूप से विक्षिप्त बना रहा था. बिछोह की अग्नि प्रबल होती जा रही थी. एक दिन वह पागलों जैसी हरकतें करने लगे. दामिनी के सड़ते हुए शरीर को गंदा समझ कर वह गीले कपड़े से साफ करने लगे तो शरीर से चमड़ी निकलने लगी.

तेज बदबू आ रही थी. फिर भी राय साहब किसी पागल दीवाने की तरह उस का शृंगार करने लगे. फिर उन्होंने अलमारी से शादी वाली साड़ी निकाली और दामिनी के शरीर पर डाल कर उसे दुलहन जैसा सजाने की कोशिश की. फिर मांग में सिंदूर भर कर निहारने लगे.

उन की नजर में वह वही सुंदर दामिनी थी. वह दामिनी से बातें करने लगे, ‘‘देखो दामिनी, कितनी सुंदर लग रही हो तुम.’’

राय साहब ने उस के माथे पर अपने प्यार की मुहर लगाई, फिर गले लग कर बोले, ‘‘अब तुम आराम करो, तुम तैयार हो गई हो. मैं भी नहा कर आता हूं. हमें बाहर जाना है.’’

राय साहब किसी पागल की तरह मुसकराए. वह कई दिनों से सोए नहीं थे. अब सुकून से सोना चाहते थे. आंखों में नींद भरी थी. पर आंखें थीं कि बंद नहीं हो रही थीं. गला सूख रहा था, उन्होंने उठ कर पानी पीया.

फिर न जाने किस नशे के अभिभूत हो कर नींद की ढेर सारी गोलियां खा लीं. उस के बाद वह बाथरूम में गए और टब में लेट गए. उन के मुंह से अस्फुट से शब्द निकल रहे थे कि आज उन का और दामिनी का पुनर्मिलन होगा.

एक महीने बाद जब लौकडाउन खत्म हुआ तो घर का गार्ड काम पर लौट आया. उस ने घर का दरवाजा देखा, वह अंदर से बंद था. फिर फोन लगाया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. काफी देर तक घंटी बजाने के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

कोई रास्ता न देख गार्ड ने पुलिस को बुलाया. बंगले के अंदर जाने पर तेज बदबू आ रही थी. सभी को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. अंदर जा कर देखा तो राय साहब और दामिनी की लाशें पड़ी थीं. लाशें सड़ चुकी थीं. एक लाश पलंग पर सुंदर कपड़ों में थी तो दूसरी वहीं जमीन पर तकिए के साथ पड़ी थी.

वहां की हालत देख कर सब का कलेजा मुंह को आ गया. दोनों का पोस्टमार्टम कराया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि दोनों की दम घुटने के कारण मौत हुई थी. यानी दोनों का कत्ल किया गया था, लेकिन किस ने? यह बात हर किसी को परेशान कर रही थी कि जब सारे दरवाजे बंद थे तो घर के अंदर 2 कत्ल कैसे हुए.

पुलिस ने जांच में आत्महत्या वाले एंगल पर भी गौर किया. इस दिशा में जांच की गई तो एक बुक रैक के पास एक मेज पर दामिनी की तसवीर रखी मिली, जिस के पास अगरबत्तियों की राख पड़ी थी. वहीं फोल्ड किया एक पेपर रखा था.

ये भी पढ़ें- उम्मीद : संतू को क्या थी सांवरी से उम्मीद

पुलिस ने खोल कर देखा. उस में राय साहब ने अपने मन के उद्गार लिखे थे. लिखा था, ‘मेरी दामिनी की हत्यारी मालिनी है. मुझे मालूम है, मालिनी मुझे भी मार डालेगी. मैं खुद भी यही चाहता हूं, क्योंकि मैं दामिनी का गुनहगार बन कर पुलिस और जेल की जलालत नहीं सह पाऊंगा. उस के पास मेरे बंगले की डुप्लीकेट चाबियां हैं. दामिनी के बिना मैं भी जीना नहीं चाहता.

‘बस एक चाहत है कि मालिनी मेरे बंगले को बेच न पाए. यह मेरे बेटे श्रेयस का है. अगर ऐसा नहीं हो पाया तो उस के इस कमीने बाप की आत्मा को कभी शांति नहीं मिल पाएगी.’

लौकडाउन : भाग 1

मालवा अपने इतिहास के लिए प्रसिद्ध है. जो लोग मालवा के इतिहास को जानते हैं, उन्हें आज भी यहां की मिट्टी में सौंधीसौंधी गंध आती है. इसी मालवा का सुप्रसिद्ध शहर है इंदौर.

पिछले 50-55 सालों में नगरोंमहानगरों ने बहुत तरक्की की है. स्थिति यह है कि एक नगर में 2-2 नगर बन गए हैं. एक नया, दूसरा पुराना. इंदौर की स्थिति भी यही है. शहरों या महानगरों में अंदर पुराने शहरों की स्थितियां भी अलग होती हैं. छोटेछोटे घर, पतली गलियां और इन गलियों के अपने अलग मोहल्ले.

खास बात यह कि इन गलियोंमोहल्लों में लोग एकदूसरे को जानते भी हैं और मानते भी हैं. जरूरत हो तो मोहल्ले के लोगों से हर किसी का खानदानी ब्यौरा मिल जाएगा. राय साहब का बंगला पुराने इंदौर के बीचोबीच जरूर था, लेकिन छोटा नहीं, बहुत बड़ा. बाद में बसे मोहल्ले ने बंगले को घेर जरूर लिया था. लेकिन उस की शानोशौकत में कोई कमी नहीं आई थी. वैसे एक सच यह भी था कि जो लोग बंगले के आसपास आ कर बसे थे, उन्हें जमीन राय साहब ने ही बेची थी.

राय साहब के बंगले की अपनी अलग ही खूबसूरती थी, ऐसा लगता था जैसे अथाह समुद्र में कोई टापू उग आया हो. तरहतरह के फूलों के अलावा कई किस्म के फलों के पेड़ भी थे. इस लंबेचौड़े खूबसूरत बंगलों में कुल मिला कर 3 लोग रहते थे, राय साहब, उन की पत्नी दामिनी और एक गार्ड. राय दंपति का एकलौता बेटा श्रेयस राय लंदन में पढ़ रहा था.

ये भी पढ़ें- उम्मीद : संतू को क्या थी सांवरी से उम्मीद

गार्ड का कोई खास काम नहीं था, इसलिए रात को वह घर चला जाता था. हां, राय साहब के पास 2 लग्जरी कारें थीं, जब उन्हें कहीं जाना होता था तो गार्ड ही ड्राइवर बन जाता था. वह नहीं होता तो दामिनी कार ड्राइव करती थीं.

सामाजिक और आर्थिक रूप से उच्चस्तरीय लोगों के यहां पार्टियां वगैरह होना मामूली बात है. कभीकभी ऐसी पार्टियां केवल दोस्तों तक ही सीमित होती हैं. राय साहब भी पार्टियों के शौकीन थे. वह पार्टियों में जाते भी थे और समयसमय पर बंगले पर पार्टियां करते भी थे.

एक बार दामिनी के साथ वह एक पार्टी में गए तो वहां मालिनी मिल गई. वह लंदन में उन के साथ पढ़ती थी. दोनों में अच्छीभली दोस्ती थी. हां, पारिवारिक स्तर पर दोनों में से कोई भी एकदूसरे को नहीं जानता था.

राय साहब मन ही मन मालिनी को पसंद करते थे. उन्होंने उस से प्रेम निवेदन भी किया था, लेकिन रूपगर्विता मालिनी ने उन का प्रेम निवेदन ठुकरा दिया था. इस से राय साहब को दिली चोट पहुंची थी.

बाद में राय साहब जब भारत लौट आए तो शाही अंदाज में उन की शादी दामिनी से हो गई थी. दामिनी मालिनी से कहीं ज्यादा खूबसूरत थीं, उस में शाही नफासत भी थी. इस के बावजूद वह मालिनी को नहीं भूल सके. कभीकभी उन के दिल में मालिनी नाम का कांटा चुभ ही जाता था. यही वजह थी कि 25-30 साल बाद अचानक मालिनी को देख राय साहब को पुरानी बातें याद आ गईं.

पार्टी में राय साहब ने मालिनी को देखा जरूर, लेकिन अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. मालिनी हाथ में शराब का जाम थामे खुद ही उन के पास आ गई. राय साहब उस की ओर से अनभिज्ञ बने रहे. उसी ने नजदीक आ कर उन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कैसे हैं शांतनु साहब?’’

मालिनी को नशा तो नहीं हुआ था, लेकिन उस की नशीली आंखों में ऐसा कुछ जरूर था, जो पल भर के लिए राय साहब को अंदर तक विचलित कर गया.

‘‘अच्छा हूं मालिनी, तुम बताओ इतने बरसों बाद यहां?’’

‘‘काम के सिलसिले में आई थी. लंबे समय बाद मुलाकात हो रही है, कभी अपने घर बुलाना.’’ मालिनी ने निस्संकोच कहा.

इस से पहले कि वह या राय साहब कुछ कहते, दामिनी ने आ कर राय साहब के हाथों में हाथ डाल दिए. फिर बोली, ‘‘अब घर चलो, कितनी देर हो गई है, आज आप ने पी ज्यादा ली है.’’

दामिनी के आने पर राय साहब ने मालिनी से दामिनी का परिचय कराया. औपचारिक बातों के बाद पतिपत्नी वहां से चले गए. राय साहब वहां से चले तो गए लेकिन मालिनी की यादों को साथ ले गए. मालिनी को भी लगा जैसे बरसों बाद कोई अपना मिला हो.

लेकिन यह जुदाई नहीं बल्कि मुलाकातों की शुरुआत थी. दोनों आए दिन पार्टियों वगैरह में मिलने लगे. एक बार मालिनी ने ताना मारा तो राय साहब ने उसे घर आने का निमंत्रण दे दिया. इस के बाद मालिनी यदाकदा बंगले पर आने लगी. अविवाहित मालिनी को राय साहब के ठाठबाठ, शानोशौकत, इतना बड़ा बंगला देख कर दामिनी की किस्मत से रश्क होने लगा. उस के मन में एक टीस सी उठी कि काश उस ने राय साहब के प्रस्ताव को ठुकराया न होता, तो आज दामिनी की जगह वह होती.

मालिनी के आनेजाने से राय साहब के दिल में दबी चिंगारी सुलगने लगी, जिसे मालिनी ने भी महसूस किया. यही भावना दोनों को एकदूसरे की तरफ खींचने लगी. नतीजतन दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

उम्र के इस पड़ाव पर भी दोनों पारस्परिक आकर्षण, ताजगी, रोमांस और रूमानियत से जीवन में रंग भरने लगे. धीरेधीरे मालिनी का बंगले पर आना बढ़ गया. उस ने दामिनी से भी अपनत्व भरी मित्रता कर ली थी.

ये भी पढ़ें- टूटे घरौंदे : भाग 3

बढ़ते हुए कदमों ने मालिनी व राय साहब को एकदूसरे के बिलकुल नजदीक ला दिया था. दोनों प्रेम में घायल पंछियों की तरह खुले आसमान में उड़ान भरना चाहते थे. यह जानते हुए भी कि यह संभव नहीं है. एक दिन मौका मिला तो मालिनी ने राय साहब से कहा, ‘‘शांतनु, ऐसा कब तक चलेगा, अब दूरियां बरदाश्त नहीं होतीं.’’

राय साहब ने तो कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन किस्मत ने जल्दी दोनों को मौका दे दिया.

उस दिन राय साहब ने बंगले पर छोटी सी पार्टी रखी थी, दोस्तों के लिए. मालिनी को भी बुलाया था. देर रात तक चली पार्टी का नशा पूरे शबाब पर था.

मालिनी ने चुपके से दामिनी के ड्रिंक में नींद की गोलियां मिला दीं. अधूरी तमन्नाओं और रात रंगीन करने की चाहत ने उसे अंधा बना दिया था.

जब नशे का असर शुरू होने लगा तो वह दामिनी को उस के कमरे में ले गई. राय साहब ने देखा तो पीछेपीछे आ कर पूछा, ‘‘दामिनी को क्या हुआ?’’

मालिनी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘पार्टी खत्म करो, फिर बात करेंगे. सब ठीक है.’’

पलभर रुक कर उस ने राय को सब कुछ बता कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. उसे कुछ नहीं होगा. बस नशा थोड़ा ज्यादा हो गया है. अब वह सुबह तक नहीं उठेगी. बस रात की ही बात है.’’ कहते हुए मालिनी राय साहब के गले लग गई.

लेकिन तभी अचानक दामिनी उठ गई, वह नशे में थी. यह देख मालिनी डर गई. जल्दी में कुछ नहीं सूझा तो उस ने दामिनी को धक्का दे दिया, जिस से वह पलंग से टकरा कर वहीं लुढ़क गई.

नशे में चूर राय साहब के लिए उस वक्त आंख और कान मालिनी बनी हुई थी, इसलिए वह इस मामले की गहराई में नहीं गए. उन्होंने वही माना जो मालिनी ने कहा.

पार्टी खत्म हो गई. विदा ले कर सब चले गए. राय साहब ने वेटरों को भी मेहनताना दे कर भेज दिया.

सुबह जब नशे की खुमारी उतरी तो राय साहब को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह लंबे डग भरते हुए अपने कमरे की तरफ भागे. लेकिन दामिनी कमरे में नहीं थी.

उन्होंने बाथरूम का दरवाजा खोला तो मुंह से चीख निकल गई. दामिनी बाथटब के अंदर पानी में पड़ी थी. राय साहब ने उसे बाथटब से बाहर निकाल कर पेट से पानी निकालने का प्रयास किया. मुंह से सांस देने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. दामिनी का शरीर ठंडा पड़ चुका था.

राय साहब की चीख सुन कर मालिनी दौड़ी आई. दामिनी को निस्तेज देख कर उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, ये सब कैसे हो गया?’’ बात उस के गले में अटक रही थी. आंखें डबडबाने को थीं.

दामिनी के शव को देख उस ने रुआंसी हो कर कहा, ‘‘मैं ने ड्रिंक में सिर्फ नींद की गोलियां मिलाई थीं. मैं इस की जान नहीं लेना चाहती थी.’’

राय साहब ने उसे गुस्से में परे धकेल दिया. फिर चीख कर बोले, ‘‘जाओ, जल्दी से किसी डाक्टर को बुलाओ. यह नहीं होना चाहिए था.’’

मालिनी के चेहरे पर भय उतर आया था. फिर भी उस ने राय साहब को शांत करने की कोशिश की.

राय साहब गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. मालिनी ने उन के कंधे पर हाथ रख कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तुम शांत हो जाओ, इस की सांस बंद हो चुकी है. डाक्टर से क्या कहोगे? पुलिस केस बनेगा. तहकीकात होगी. बात का बतंगड़ बन जाएगा. शाम को चुपचाप दाह संस्कार कर देंगे, इसी में हमारी भलाई है.

‘‘इन परेशानियों से बचने के लिए हमारा चुप रहना ही ठीक रहेगा. मैं तुम्हारे साथ हूं, चिंता मत करो. मैं रात को आऊंगी. गार्ड छुट्टी पर है, कलपरसों तक आएगा. किसी को पता नहीं चलेगा.’’ मालिनी ने राय साहब को शांत कराने की कोशिश की.

मालिनी की बात से सहमत होने के अलावा राय साहब के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उन्हें समझाने के बाद मालिनी बोली, ‘‘अब मैं जा रही हूं. शाम को आऊंगी. तुम्हारी गाड़ी ले जा रही हूं. चाबी दे दो.’’

ये भी पढ़ें- हिम्मत : क्या बबली बचा पाई अपनी इज्जत

राय साहब से कार की चाबी ले कर मालिनी बाहर निकल गई. राय साहब उसे छोड़ने बाहर आए. वह कार ले कर निकल गई तो मुख्य गेट उन्होंने ही बंद किया.

राय साहब ने किसी तरह दिन काटा और शाम को मालिनी के आने का इंतजार करने लगे. मन को बहलाने के लिए वह टीवी पर समाचार सुन रहे थे, तभी एक खबर ने उन्हें चौंका दिया. देश में कोरोना महामारी फैलने की वजह से जनता कर्फ्यू लगा दिया गया था.  किसी को भी घर से बाहर निकलने की मनाही थी. बात साफ थी आज रात वे दामिनी के शव के साथ बाहर नहीं जा सकते थे.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

 

पत्रकारजी

…और नेताओं की कुर्सी हिलने लगी. आखिर पत्रकार जी ने बाण ही ऐसा चलाया था, जो अचूक था. हमारे शहर में हालांकि पत्रकार तो बहुतेरे हैं. मगर नेताओं की कुर्सी हिला सके, वह तो बस पत्रकार जी के बस या कहें बूते की बात हुआ करती है.

तो नेताओं की कुर्सी हिलने लगी थी.

पत्रकार जी ने ऐसी खोज खबर भरी रिपोर्टिंग की कि मुख्यमंत्री तलक कान खड़े हो गए .आप कहेंगे- भई! आखिर रिपोर्टिंग क्या थी ?…रुकिये!   हमारे पास इतना वक्त नहीं कि आपको एक एक बात तफसील से बताते फिरें.

हम तो सिर्फ यह बता रहे हैं… और जरा कान खोल कर सुन लीजिए… नेताओं की कुर्सी डग-मग, डग-मग हिलने लगी. साधु समान मुख्यमंत्री से  जब कस्बे के नेतागण राजधानी में मिलने पहुंचे तो देखते ही उन्होंने कहा- “अमां! आप लोग क्या खा कर राजनीति कर रहे हो…! ”

ये भी पढ़ें- उम्मीद : संतू को क्या थी सांवरी से उम्मीद

सभी एक दूसरे की ओर देखने लगे. सांसद, विधायक की ओर, और विधायक पार्टी के सदर की और प्रश्न वाचक भाव लेकर देखने लगा. सभी की आंखों में असहजता का भाव था.

मुख्यमंत्री सांसद की और दृष्टिपात करते हुए बोले- “कस्बे के एक पत्रकार को तुम लोग काबू में नहीं रख पाये…वह यहां तक आ धमका.”

“जी .” सांसद बांसुरीनंद हकलाये.

“हां…अब कस्बे और आसपास के पत्रकारों को तो कम से कम आप लोग सुलटा लिया करो. यह बड़ी कमजोरी की बात है… एक कस्बे का पत्रकार राजधानी और हमारे गिरेबां तक आ पहुंचा.

छी…!” मुख्यमंत्री  डॉ. चमनानंद  का मुंह मानो कड़ुवा हो गया था.

“- माई बाप… जरूर यह यह गलती, इस लखनानंद  की होगी…इसने संसदीय सचिव बनने के बाद न तो पत्रकारों को पार्टी दी, न ही विज्ञापन बांटे…बस यही गलती हो गई इससे. ” सांसद बांसुरीनंद  ने आंखों पर चश्मे को ठीक से बैठाते हुए विनम्रता भरे शब्दों में कहा. यह सुन लखनानंद  उचक कर आगे आया-

“हुजूरे आला ! यह बात बेबुनियाद है, मैं तो कस्बे के हर एक पत्रकार से मधुर संबंध रखता हूं. बीच-बीच में खुश भी रखता हूं . एक-दो को तो ऐसे रखा है कि सुबह उठकर मुझसे बाते किये बिना और रात को सोने से पहले…कस्बे की एक एक बात का हालो हवास दिए बिना नींद भी नहीं आती है.”

मुख्यमंत्री ने अपने प्रिय विधायक और  संसदीय सचिव की और स्निग्ध मुस्कुराहट डालते  हुए देखा.

सांसद और विधायक को साफ-साफ बचता देख पीछे दुबके खड़े जिले के सदर अशोकानंद  हाथ जोड़कर आगे आए, -“मालिक ! मैं भी गुनाहगार नहीं हूं.मेरी बखत ही क्या है, मगर मैं कस्बे  के पत्रकारों को भरसक साध कर रखे हुए  हूं.. मेरे पास कोई बड़ा स्रोत भी नहीं है… मगर…” सदर अपनी सफाई दे रहा था कि मुख्यमंत्री ने सभी की और तीक्ष्ण दृष्टिपात करते हुए थोड़ा सा कठोर होते हुए कहा-” मैं एक खास पत्रकार की और तुम सभी का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं.”

” जी हुजूर ! ” सांसद, विधायक और सदर के साथ मौजूद वरिष्ठ पार्टी कार्यकर्ता समवेत स्वर में बोल पड़े.

” एक पत्रकार है, जिसने बडे मार्के की शिकायत की हुई है…

सूचना अधिकार के तहत . अब हम क्या करें .” मुख्यमंत्री डॉ. चमनानंद यह कह कर चुप हो गए और सभी की ओर नजरें फिराने लगे.

… “हुजूर आदेश !”… सभी शहद से लिपटे हुए शब्द नि:सृत करने लगे.

मुख्यमंत्री बोले-” सूचना  अधिकार का ब्रह्मास्त्र चलाकर तुम्हारे कस्बे के पत्रकार ने मानो हमको घायल कर दिया है…. अब हमारा कार्यालय जवाब देता है तो मुश्किल… नहीं देता है तो मुश्किल…. ”

ये भी पढ़ें- हिम्मत : क्या बबली बचा पाई अपनी इज्जत

” हुजूरे आलिया !  सांसद उछल पड़े- “आप…. मैं समझ गया आप तनिक भी चिंता न करें. अरे पत्रकार जी तो हैं… इसका काम ही उंगली करना है आप…. निश्चित रहिए, हम उसे देख लेंगे.” सदर अशोकानंद ने  कंधे उचका कर कर कहा -” हां हां… ठीक हो जायेगा .”

विधायक लखनानंद  ने धीमे स्वर में कहा- “माई बाप! गलती हो गई होगी… मुआफ करें….हम उसे देख लेंगे.”

दोनों सांसद की और उत्सुक भाव से देखने लगे. सांसद डॉ. बांसुरीनंद हंसकर बोले,- “अरे हमारे पत्रकार जी तो हैं ही ऐसे….थोड़ा टेढ़े है मगर उसे बुलाकर सीधा कर लेंगे. हमसे बाहर नहीं जाएगा ।”

” हूं !” मुख्यमंत्री ने हुंकार भरी और हौले से मुस्कुरा कर आगे बढ़ गए । सभी नेताऔ ने लौटते ही पत्रकार जी  को तलब किया. सांसद डॉक्टर बांसुरीनंद ने उसे वक्र दृष्टि से  देखा और कहा- “कइसे रे ! ऐसने पत्रकारिता करथे .”

पत्रकार जी सामने सोफे पर बैठे है.सोच रहे हैं… इनसे बैर ठीक नहीं. पुलिस कप्तान, कलेक्टर सभी इनके इशारे पर नृत्य कर रहे हैं.आत्मसमर्पण में ही बुद्धिमत्ता है .

सांसद चुप हुए तो विधायक बोल पड़े- “अरे भाई यह कैसी पत्रकारिता है.कुछ लिखो पढ़ो… सुचना अधिकार से क्या होगा ? सरकार से टकराकर खैर से रहा है कोई…”

” मुख्यमंत्री महोदय! को हम लोगों ने आश्वस्त किया है. पत्रकार जी हमारे हैं, चुक हो गई होगी .हम समझा लेंगे . यह सदर की सुमधुर वाणी थी.

पत्रकार जी की आंखें झुकी हुई थी.

पलकें उठाई  बारी-बारी सबको देख कर धीरे से उसने मन की पीड़ा उड़ेली – ” में क्या करता ! स॔सदीय सचिव बने तो  कोई विज्ञापन नहीं,… सांसद  बने तो कुछ नहीं …. जन्मदिन आया कुछ नहीं, कस्बे में मुख्यमंत्री आये, खाली डब्बा, मै क्या करता बताओ.”

“- चलो शांत हो जाओ.,” सांसद बांसुरीनंद  ने जेब से  एक हजार  का नोट निकाला …. “लो रख लो ..और विधायक चल  तहूं  एक हजार दे.”

ये भी पढ़ें- Short Story : भाईदूज (राधा ने मोहन को कैसे बनाया भाई)

” -ऐ पांच सौ मेरी ओर से .”

सदर अशोकानंद  के चेहरे पर हास्य है . पत्रकार जी ने रुपये थामे. चाय पी और दफ्तर की ओर कदम बढ़ा दिए.

लौकडाउन : मालिनी ने शांतनु को क्यों ठुकरा दिया था?

उम्मीद : संतू को क्या थी सांवरी से उम्मीद

संतू किसी ढाबे पर ट्रक रोकने का मन बना रहा था, तभी सड़क के किनारे खड़ी सांवरी ने हाथ दे कर ट्रक रुकवाया और इठलाते हुए कहा, ‘‘और कितना ट्रक चलाएगा… चल, आराम कर ले.’’ संतू ने सांवरी पर निगाह डाली. ट्रक की खिड़की से सांवरी के कसे हुए उभारों को देख कर संतू एक बार तो पागल सा हो गया.

संतू को अच्छी तरह मालूम था कि इस रास्ते पर ढाबे वाले ग्राहकों को लुभाने के लिए लड़कियों का सहारा लिया करते हैं. उस ने ट्रक सड़क किनारे लगाया और सांवरी के बताए रास्ते पर चल कर उस की झोंपड़ी में पहुंच गया. सांवरी कह रही थी, ‘‘अरे, ढाबे वाले अच्छा खाना कहां देते हैं, इसलिए तुझे यहां अपना समझ कर ले आई. अब तू आराम से खापी, मौज कर. सुबह निकल लेना.’’

ये भी पढ़ें- Short Story : पापा मिल गए (सोफिया को कैसे मिले उसके पापा)

संतू के ऊपर सांवरी की खुमारी चढ़ती जा रही थी. चूल्हा अभी गरम था. रोटी और मटन की खुशबू ने संतू की भूख और बढ़ा दी थी. चूल्हे की लौ में सांवरी की देह तपे हुए सोने सी लग रही थी. उस ने देशी दारू का पौवा निकाला और संतू को पिला कर दोनों ने खाना खाया.

खाना खाने के थोड़ी देर बाद ही वह सांवरी के आगोश में समा गया. सुबह 5 बजे जब संतू जागा, तब उस ने देखा कि न वहां सांवरी थी और न ही सड़क किनारे ट्रक. ट्रक में कम से कम एक लाख रुपए का सामान भरा हुआ था. अब अगर वह बिना सामान के लौटेगा, तब कंपनी को क्या जवाब देगा और जेल की हवा खानी पड़ेगी सो अलग.

तभी कुछ दूरी पर संतू को अपना ट्रक खड़ा दिखा. जब वह वहां पहुंचा, तब उस ने देखा कि उस का सामान गायब था, लेकिन कुछ दूर खड़ी सांवरी हंस रही थी. संतू कुछ बोले, इस के पहले ही सांवरी ने संतू से कहा, ‘‘ऐ ड्राइवर, अब चुपचाप निकल ले. इसी में तेरी भलाई है, वरना…’’

संतू ने कहा, ‘‘तू ने अपनी कातिल निगाहों से तो मुझे घायल कर ही दिया है, अब एक एहसान और कर कि इस चाकू से मुझे भी घायल कर दे, ताकि…’’ खून से लथपथ संतू किसी तरह ट्रक चला कर कंपनी के दफ्तर पहुंचा. कंपनी ने संतू को इलाज के लिए 10 हजार रुपए दिए और एक महीने की छुट्टी दी.

ये भी पढ़ें- मीठी परी : एक परी बन कर आई थी सिम्मी

कंपनी वाले इसलिए खुश हो रहे थे कि सामान भले ही गया, पर उस का बीमा तो मिल जाएगा, लेकिन संतू ट्रक सहीसलामत ले आया था.

अब घर पर रमिया संतू की दवादारू कर रही थी. संतू ठीक हो गया था और रात को ट्रक ले कर इस उम्मीद से उसी रास्ते से गुजर रहा था कि सांवरी उसे फिर मिलेगी.

टूटे घरौंदे : भाग 3

वह किसी को कुछ समझा नहीं सकता था न कोई सफाई दे सकता था. ललिता ने सबकुछ क्यों किया यह तो उसे आजतक नहीं पता चला न उस ने जानना चाहा लेकिन उस के दिमाग में कई बार यह बात जरूर कौंधी थी कि सुमन ललिता की एकलौती बेटी थी. क्या इस का मतलब यह कि किशोर में कुछ कम… नहीं नहीं वह इस तरह की कोई बात सोचना भी नहीं चाहता था.

वह अब क्या करेगा नहीं जानता. लेकिन कविता को सब सच बता देगा यह तो तय है. लेकिन, कविता से माफी मांग लेने से या माफी मिल भी जाए तब भी गांववालों और किशोर से कैसे सामना करेगा यह वह नहीं जानता. उस की एक गलती इतने सालों बाद उस का घरौंदा तोड़ देगी मुरली ने इस की कल्पना भी नहीं की थी.

दिन लंबा था और उसे काटना बेहद मुश्किल. कोमल बाहर आंगन में अपने खिलौनों में गुम थी और कविता कभी धम से एक परात पटकती तो कभी भगौना.

सुबह के वाकेया को 3 घंटे बीत चुके थे. धूप गहराई हुई थी. मुरली और कोमल अंदर कमरे में थे और कविता ने रसोई को अपना कमरा बना रखा था. घर में लाइट नहीं थी और यह दिल्ली तो थी नहीं कि इनवर्टर चला पंखें की हवा खा सकें. गरमी से मुरली का सिर भन्ना रहा था, पंखा ढुलकाते हुए उस के हाथ दुखने लगे थे. कोमल सो रही थी और मुरली उसे भी हवा कर रहा था. लेकिन, छोटी सी रसोई में कविता गरमी से कम और आक्रोश से ज्यादा तप रही थी.   मुरली को चिंता होने लगी कि कविता कहीं बीमार न पड़ जाए.

“कविता,” मुरली ने रसोई के दरवाजे पर खड़े हो कर कहा

कविता पसीने से लथपथ थी. उस आंखें गुस्से में रोने से लाल थीं यह मुरली देख पा रहा था. कविता की जिंदगी में दुखों के बादल कभी नहीं छाए थे. वह अच्छे घर की लड़की थी, 10वीं पास थी जो उस के लिए कालेज से कम न था. घर में 3 और बहनें थीं जो आसपास के गांवों में बिहा दी गईं थी और दो भाई थे जिन के पास पिता के छोड़े हुए खेतखलिहान थे, मकान था और मां के कुछ गहने भी. कविता के हिस्से नाममात्र की चीजें आईं थी लेकिन घर में सब से छोटी होने के नाते उसे इस की भी कोई उम्मीद नहीं थी, सो वह खुश थी.

ये भी पढ़ें- Short Story : बदनाम गली (क्या थी उस गली की कहानी)

अपने घर और आसपास की सहेलियों में वह पहली थी जो शादी कर दिल्ली आई थी. मुरली सुंदर लड़का था और शादी के बाद जो कुछ एक पत्नी को अपने पति से चाहिए होता है वह सब उस से उसे मिला था. मुरली की बातें, रवैया, बोलचाल सभी से कविता प्रभावित थी और उस पर मर मिटती थी. कोमल के जन्म के बाद से तो उसे जैसे सब कुछ मिल गया था. उस का मानना था कि एक बच्ची को वह जितना सुख दे सकते हैं उतना दो बच्चों को नहीं दे पाएंगे और इसलिए वह दूसरा बच्चा नहीं चाहती थी. मुरली उस की इस बात से बेहद प्रभावित हुआ था और हामी भर दी थी.

जीवन का यह पहला और सब से बड़ा आघात कविता को इस तरह लगेगा यह उस की कल्पना से परे था. वह मुरली को किसी और से बांटने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी, और किसी गैर औरत के साथ संबंध रखने की बात उस के दिल में उतर नहीं रही थी. उसे लगने लगा जैसे मुरली इतने साल उस से प्यार करने का केवल ढोंग रचता आया है और उस की खुशियों का संसार केवल झूठ की इमारतों से बना हुआ था.

“कविता, एक बार बात सुन लो,” मुरली ने एक बार फिर कहा लेकिन कविता ने उसे देख कर मुंह फेर लिया था.

“जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है, मेरा उस औरत…” मुरली कह ही रहा था कि कविता ने उस की बात बीच में ही काट दी और बोली, “इसीलिए आते थे तुम यहां. और कितनी औरतों के साथ घर बसाएं हैं तुम ने और कितने बच्चे पाले हुए हैं यहां,” उस का गला रूंध गया था.

“ऐसा कुछ नहीं है, मैं ऐसा आदमी नहीं हूं तुम जानती हो. यह बस सालों पहले की गलती थी और बस एक ही बार हुआ था जो हुआ था. मैं इस औरत से उस के बाद कभी मिला भी नहीं, न मुझे कुछ सालों पहले तक सुमन के बारे में पता था. मेरे लिए तुम और कोमल ही मेरा सब कुछ हो और कोई भी नहीं….”

“हां, इसलिए तो धोखा दिया है इतना बड़ा. मैं कल ही अपने भैया के घर चली जाऊंगी मनीना. रख लेना अपनी दोनों बेटियों को और उस औरत को अपने पास. मुझे न यहां रहना है न किसी से कोई रिश्ता रखना है. यह दिन देखने से अच्छा तो मैं शहर में कोरोना से ही मर जाती,” कविता कहती ही जा रही थी.

“तुम कहीं नहीं जाओगी और न मरने की बातें करोगी,” मुरली की आंखों में आंसू थे. वह कविता के आगे घुटनों के बल झुक गया और उस के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कहने लगा, “मैं ने कभी उस से प्यार नहीं किया, किसी से नहीं किया तुम्हारे अलावा, सच कह रहा हूं. हम जल्द ही दिल्ली चलेंगे और इस गांव की तरफ मुड़ कर नहीं देखेंगे. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई, मुझे माफ कर दो,” मुरली सुबकने लगा था. कविता और मुरली दोनों ही रोये जा रहे थे और अब शब्द भी उन के कंठ में अटक कर रह गए थे.

कुछ देर ही बीती थी कि दरवाजे पर एकबार फिर दस्तक हुई. मुरली उठा और मुंह पोंछ कर दरवाजा खोलने गया. कविता ने सिर पर दुपट्टे से पल्ला डाला और रसोई से बाहर खड़ी हो देखने लगी.

दरवाजे पर खुद को मुखिया समझने वाले कुछ बुजुर्ग, चौधरी बन घूमने वाले कुछ नौजवान जिन में से कईयों को मुरली जानता था, लाठी लिए एक बूढ़ी औरत जिसे उम्र के चलते चौधराइन बनने की पूरी इजाजत थी, कुछ औरतें जो मुंह पर पल्ला डाले चुगली के इस सुनहरे अवसर को छोड़ना नहीं चाहती थीं, और कुछ बिना किसी मतलब के आए बच्चे थे. किशोर भी वहीं था लेकिन उस के चहरे पर कोई गुस्सा नहीं था बल्कि असमंजस के भाव मालूम पड़ते थे.

मुरली ने हाथ जोड़े तो बाहर खड़े लोगों में से मुरली के दूर के ताऊ लगने वाला वृद्ध पूरे अधिकार से आंगन में आने लगा जिन के पीछे पूरी फौज भी आ धमकी. मुरली जानता था अब यहां पंचायती होगी और उस पर खूब कीचड़ उछलेगा पर वह यह नहीं जानता था कि असल कीचड़ में किशोर लथपथ होने वाला है.

लोगों ने आंगन का कोनाकोना घेर लिया और कोई चारपाई तो कोई जमीन पर ही चौकड़ी जमा बैठ गया.

“गांव में सुबह से तुम लोगों के बारे में बाते हो रही हैं, हम ने सोची कि पूछें गाम में का माजरो है,” बुजुर्ग मुखिया ने कहा.

“तेरे और किशोर की लुगाई के बीच का चलरो है तू खुद ही बता दे,” दूसरे बुजुर्ग ने कहा.

“मुखिया जी, मैं तुम से कह रहा हूं के ऐसी कोई बात ना है, दोनों छोरियों की शकल मिल रही है तो बस इत्तेफाक है,” किशोर ने कहा.

किशोर के मुंह से यह सुन कर मुरली को हैरानी हुई. मतलब या तो किशोर सब जानता है या जानना नहीं चाहता है.

“जा दुनिया में एक शक्ल के 7 आदमी होते हैं, तुम लोग गांव के गवार ही रहोगे, बेमतलब बहस कर रहे हैं. मैं तुम से कह रहा हूं ना घर कू चलो, यह पंचायती करने का कोई फायदा नहीं है. बात का बतंगड़ मत बनाओ,” किशोर ने फिर कहा.

ये भी पढ़ें- डुप्लीकेट: आखिर मनोहर क्यों दुखी था  

मुरली सब के बीच चुप बैठा था और कविता कोने में खड़ी सब सुन रही थी.

“ऐसे कैसे मान लें के कोई बात ना है. हम कोई आंधरे थोड़ी हैं. तेरी बीवी का चक्कर है इस मुरली के साथ, हम जा बात की सचाई जानीवो चाहत हैं,” एक ने कहा.

“मुखिया जी, तुम मेरे घर के मामले में मत कूदो, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं,” किशोर बोला.

“ऐसे कैसे न बोलें, यह तेरे घर का मामला नहीं है अब गाम को मामला है, गाम की इज्जत को मामलो है,” बूढ़ी औरत ने कहा.

“अरे, चम्पा जा तू जाके इस की लुगाई को बुलाके ला,” दूसरे बुजुर्ग ने कहा.

ललिता भी मुरली के आंगन में आ गई. उस ने मुंह घूंघट से ढका हुआ था और हाथ बांधे खड़ी थी. सुमन उस के साथ ही थी.

“हां, ये छोरी तेरी और मुरली की है बता अब सब को,” पीछे से आवाज आई.

“गाम से निकाल दो ऐसी औरत को तो, पति के पीठपीछे रंगरलियां मनाने वाली औरत है ये,” किसी औरत ने कहा.

“मैं न कहता था ललिता भाभी के चालचलन अच्छे न हैं, अब देख लो,” यह गली का ही कोई लड़का था जिस की किशोर से अच्छी दोस्ती थी और ललिता से भी बेधड़ंग मजाक किया करता था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

टूटे घरौंदे : भाग 2

गांव के जो एकदो लोग किशोर के साथ दरवाजे पर थे वह भी दोनों बच्चियों की एक सी शक्ल देख कर हैरान थे. किशोर की आंखें भी लगभग फटी हुई थीं, कविता को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ और सब से अलग मुरली अपनी नजरें सभी से छुपाने लगा.

हरतरफ से आवाज आने लगी, कोई कहता “ये तो एक ही शक्ल की हैं,” तो कहीं से आवाज आती “बिलकुल जुड़वां बहनें लग रही हैं”.

ऐसा लग रहा था जैसे सचमुच किसी फिल्म का दृश्य हो. जैसे गोविंदा की एक फिल्म में उस की दो बीवियों से दो बच्चे थे और दोनों की ही शक्लें बिलकुल एक जैसी थीं.

सुमन और कोमल की उम्र में एक साल का अंतर था लेकिन शक्ल में रत्ती बराबर का भी नहीं. सुमन की आंखें भी बड़ी और गोल थीं, कोमल की आंखें भी. सुमन के होंठ भी पतले थे, कोमल के होंठ भी. सुमन का माथा भी चौड़ा था, कोमल का भी. यहां तक कि सुमन का रंग भी गोरा था और कोमल का भी. आखिर, यह कैसे संभव था कि दो अलगअलग कोख से जन्मी बच्चियां एक सी हों बजाए कि उन का पिता एक हो.

सभी के दिमाग में यह बात आने में देर नहीं लगी. किशोर सुमन को ले कर अपने घर चला गया.  किशोर की पत्नी ललिता घर में पसीनापसीना हो रखी थी. किशोर ने उसे देखा और देखते ही उस की बांह कसकर भींच ली.

ये भी पढ़ें- उस रात: राकेश और सलोनी ने क्या किया

“चल कमरे में,” किशोर ने कहा.

“क्या… हुआ?” ललिता ने हकलाते हुए कहा.

“इस छोरी की शक्ल उस मुरली की छोरी से कैसे मिलती है?”

“मुझे क्या पता, और आप पूछ क्यों रहे हैं, भला मुझे कैसे पता होगा.”

किशोर ललिता की बात सुन कर कुछ नहीं बोला. वह वहां से उठ कर बाहर निकल गया.

सुमन समझ नहीं पाई कि उस की शक्ल किसी से मिलने पर पापा खुश होने की बजाए नाराज क्यों हो रहे हैं. उस ने मम्मी से जा कर पूछा, “मम्मी, पापा को क्या हुआ?”

“कुछ नहीं, जा कमरे में जा कर खेल,” इतना कह ललिता कुछ सोचते हुए अपने काम में लग गई.

मुरली ने दरवाजा बंद किया तो कविता की आंखों में उसे ढेरों सवाल साफ दिखाई दे रहे थे. उसे समझ आ गया था कि जो राज उस ने 12 सालों तक छुपा कर रखा था अब वह और नहीं छुपा पाएगा.

“तुम जो सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है,” मुरली ने कविता से कहा तो वह रसोई में जा बर्तन धोने लगी जोकि ऐसा लग रहा था जैसे बर्तन पटक रही हो.

मुरली चारपाई पर लेट गया और हाथ अपनी आंखों पर रख अतीत में गुम होने लगा.

मुरली जवान तंदरुस्त लड़का था जिस की सुबह दिनभर खेत में घूमने और रात दोस्तों के साथ महल्ले में मटरगश्ती करते निकलती थी. किशोर मुरली का बचपन का दोस्त था. दोनों का घर अगलबगल में ही था तो जब देखो तब दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना रहता था. किशोर की शादी जब ललिता से हुई थी तब मुरली और किशोर दोनों ही 19 वर्ष के थे और ललिता 18 वर्ष की. शादी में जब पहली बार मुरली ने ललिता को देखा था तो उसे वह बेहद अच्छी लगी थी.

शादी के बाद जब भी मुरली किशोर के घर जाता तो ललिता को निहारने से खुद को रोक नहीं पाता था. ललिता मुरली के सामने अकसर घूंघट में रहती थी. सासससुर के होते हुए तो उसे लगभग 24 घंटे ही घूंघट में रहने की हिदायतें दी गईं थीं. मुरली समझता था कि जिस नजर से वह ललिता को देख रहा है वह सही नहीं है लेकिन उस के खयाल उस के काबू में नहीं थे. ललिता खूबसूरत थी, उस का गोरा रंग, हिरणी सा शरीर, पतली बाहें, सबकुछ मुरली को अपनी तरफ खींचता था, लेकिन उस की ललिता को पाने की ख्वाहिश पूरी नहीं होगी यह वह जानता था.

‘भाभी, किशोर को भेजना तो जरा,’ एक दोपहर मुरली ने दरवाजे पर खड़े हो कर कहा.

‘वह सो रहे हैं, आप जगाना चाहें तो आ जाइए,’ ललिता ने मुरली से कहा.

मुरली ललिता के पीछेपीछे कमरे तक चला गया. ललिता के सासससुर दोनों ही घर पर नहीं थे तो उस ने कमरे में घुसते हुए अपना घूंघट हटा लिया. मुरली किशोर को उठाने तो गया था लेकिन ललिता को देख वह चुपचाप सोते हुए किशोर के बगल में बैठ गया. ललिता की नजरें भी मुरली पर टिकी थीं. मुरली को यकीन नहीं हुआ कि सच में ललिता उसे इस तरह देख रही है. वह थोड़ा सकपका गया और किशोर को जगाने लगा.

अगले दिन से मुरली किसी न किसी बहाने छत पर जाने लगा जहां उसे दूसरे कोने पर ललिता उसी समय पर दिख जाती थी. उसे पता था कि यह कोई इत्तेफाक नहीं है, ललिता जानबूझ कर छत पर आती है.

लेकिन, वह यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर ललिता किशोर की बजाय उस में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रही है. मुरली तो अविवाहित है लेकिन ललिता किसी की पत्नी होते हुए यह सब क्यों कर रही है.

मुरली ललिता की तरफ आकर्षित था लेकिन ललिता का आकर्षण कितना खतरनाक साबित हो सकता था यह भी वह अच्छी तरह समझता था. और फिर एक दिन वही हुआ जो वह सोच रहा था.

किशोर के मातापिता दूसरे गांव एक शादी में गए हुए थे. घर पर सिर्फ किशोर और ललिता ही थे. मुरली और किशोर अपने बाकी दोस्तों के साथ मुरली के घर खानेपीने में लगे थे. किशोर ने एक के बाद एक गिलास शराब पी ली जिस कारण उस के लिए होश संभालना मुश्किल होने लगा. रात गहराने लगी थी और सभी दोस्त एकएक कर अपने घर जाने लगे. किशोर ने इतनी पी ली थी कि उसे ठीक से खड़े होने में भी परेशानी हो रही थी.

मुरली किशोर को उस के घर ले जाने लगा. रात गहरी थी और लोग अपने घरों में सोए थे. मुरली ने पहले सोचा था कि किशोर को उस की छत से ही छोड़ आए पर फिर सोचा कि उसे सीढ़ियों पर चढ़ाना मुश्किल होगा तो सीधा दरवाजे से ही ले गया.

ये भी पढ़ें- डुप्लीकेट: आखिर मनोहर क्यों दुखी था 

घर में घुसा तो मुरली की मदद करने के लिए ललिता किशोर को पकड़ने लगी. किशोर को पकड़तेपकड़ते ललिता के हाथ मुरली के हाथों को बारबार छू रहे थे. मुरली के लिए इस तरह किसी औरत का छूना बहुत नया था. खुद को रोक पाना मुरली के लिए कठिन था, और आज तो मौका भी था और ललिता की ‘हां’ थी यह भी वह जानता था. किशोर को कमरे में लेटा कर वह कमरे से बाहर निकला तो ललिता ने कमरे से निकल दरवाजे पर कुंडी लगा दी और मुरली को देखने लगी.

उस ने मुरली को दूसरे कमरे में आने का इशारा किया और मुरली उस के पीछे चला गया. उसे ललिता से कुछ पूछने की सुध नहीं थी और ललिता उसे कुछ बताना नहीं चाहती थी. लगभग 45 मिनट मुरली और ललिता का जिस्मानी संबंध चलता रहा. मुरली उत्तेजित था और उस ने वासना के चलते एक दोस्त की भूमिका भुला दी थी.

वह अपने घर गया तो इस ग्लानी ने उसे घेर लिया. एक तरफ वह ललिता के साथ इस प्रसंग को दोहराना चाहता था और दूसरी तरफ इस बात को स्वीकारना नहीं चाहता था कि उस ने अपने दोस्त की पीठ में छूरा घोंपा है. उस ने किशोर के घर जाना छोड़ दिया. किशोर और बाकी दोस्त उसे बुलाने आते तो साफ मना कर देता. ललिता की तो शक्ल ही नहीं देखना चाहता था वह.

एक हफ्ता ही हुआ था कि उस ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया था. दिल्ली में उस के दूर की रिश्तेदारी का एक लड़का नौकरी कर रहा था. उसी के भरोसे वह दिल्ली आ गया. समयसमय पर घर पर बात हो जाती तो सभी की खबर मिल जाती. 6 महीने बाद घर आया तो ललिता के गर्भवती होने की बात जान कर भी उसे कोई हैरानी नहीं हुई. वह दो दिन के लिए आया था और किसी से मिले बिना ही चला गया था. किशोर और बाकी दोस्त उसे बड़ा आदमी तो कभी घमंडी कहते और अपनी दिनचर्या में रम जाते.

ललिता की बच्ची को ले कर मुरली को पहली बार हैरानी तब हुई जब उस की बेटी कोमल 4 साल और ललिता की बेटी सुमन 5 साल की थी. वह गांव आया था जमीन के किसी मसले को ले कर जब उस ने सुमन को पहली बार देखा था. उस का चेहरा हूबहू कोमल जैसा था. मुरली समझ चुका था कि उस रात ललिता और उस के बीच जो कुछ भी हुआ उस से ललिता गर्भवती हुई थी और यह बच्ची किशोर की नहीं बल्कि मुरली की थी.

ये भी पढ़ें- Short Story : बदनाम गली (क्या थी उस गली की कहानी)

उस ने फैसला कर लिया था कि कभी दोनों बच्चियों का न सामना होने देगा न किसी को यह बात पता चलने देगा. पर अब इतने सालों बाद बात हाथ से निकल चुकी थी. उस के पास गांव वापस आने के अलावा कोई चारा ही नहीं था. शहर में भूखों मरने की नौबत आने से पहले निकल जाना जरूरी था. राज खुलने की आशंका तो उसे थी लेकिन यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा यह उस ने नहीं सोचा था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

टूटे घरौंदे : भाग 1

“पापा, वहां क्या कुएं से पानी पीते हैं?”

“नहीं, नलका लगा है घर में.”

“मिट्टी के घर हैं क्या वहां?”

“नहीं, जैसे यहाँ हैं वैसे ही हैं.”

“और लालटेन जलानी पड़ेगी क्या?”

“नहीं, लाइट आतीजाती रहती है, अब चुप हो जा गांव जा कर पूछना,” मुरली ने अपनी 11 वर्षीया बेटी के एक के बाद एक प्रश्न से झेंप कर उसे चुप कराते हुए कहा.

मुरली अपनी पत्नी कविता और बेटी कोमल को 11 वर्षों बाद अपने गांव माकरोल ले कर जा रहा था. माकरोल उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले का छोटा सा गांव है. मुरली ने 13 साल पहले यह गांव छोड़ा था. वह गांव से अकेला दिल्ली आया था जिस के एक साल बाद ही उस की मां भी यहां आ गई थीं. यहीं उस की शादी मनीना में रहने वाली कविता से करा दी गई थी. जब मुरली की बेटी दो साल की हुई तो मां उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी थीं.

ये भी पढ़ें- ग्रहण हट गया: भाग 1

वर्तमान में दिल्ली की हालत तो किसी से छुपी हुई नहीं है. कोरोना के चलते जितना सरकारी धनकोश लोगों के लिए खाली है उस से कही ज्यादा आम आदमी की जेब खाली हो चुकी है. दो महीने से काम न होने के चलते शहर के बोर्डर खुलते ही मुरली ने परिवार के साथ वापस गांव लौटने का फैसला कर लिया था.

बस में 6 घंटों का सफर अब समाप्त हो चुका था. मुरली, कविता और कोमल अपने सामान से लदालद भरे 4 बैग ले कर बस से उतरे. कविता का मुंह उस के दुपट्टे से, मुरली का गमछे और कोमल का मास्क से ढका हुआ था. गांव का नजारा शहर से बेहद अलग था. लग रहा था मानो कोरोना ने यहां किसी को छूआ ही न हो. लोग अब भी गुट बनाए बैठे बातें करते साफ दिख रहे थे.

गांव में जैसेजैसे मुरली बढ़ने लगा, उस के माथे पर बल पड़ने लगे. पसीना ऐसे झूटने लगा जैसे जून की गर्मी ने उस अकेले को ही जकड़ा हो. गली में आगे बढ़तेबढ़ते लोगों की नजरें टकटकी लगाए आने वाले उन छह कदमों को देख रही थीं. मुरली ने अपना गमछा हटाया और गली के कोने में बैठे आदमी को देख बोला, “और भैया का हाल है, सब ठीकठाक है?”

“अरे, भैया, कैसे हो, बहुत दिनों बाद आए हो.”

“हां, हम तो सब ठीक हैं, तुम सुनाओ तुम्हारे का हाल हैं,” मुरली बोला.

“हां भैया, कर रहे हैं हम तो अपना गुजारो,” वह कविता और कोमल की तरफ देखते हुए बोला, “भाभी नमस्ते, हम बिजेंदर, हम जेइ महल्ला में रेहत हैं कभी घर घूमने आइयों.”

कविता ने नमस्ते की मुद्रा में सिर हिला दिया.

“और चाची नजर ना आरीं कहां हैं?” मुरली ने बिजेंदर से पूछा.

“भैया, वो भैंस नभाईवे गई हैं,” बिजेंदर बोला.

यह सुन कोमल जोरजोर से हंसने लगी. वह अपने आसपास के इस नए माहौल को देखने में व्यस्त थी. कभी पूछती कि मम्मी यह कौन है वो कौन है, तो कभी कहती घर कितना दूर है जल्दी चलो. वहीं, मुरली आसपास जो भी जानपहचान का मिलता उसे नमस्ते कहता हुआ तो कभी हालचाल का आदानप्रदान करता हुआ जा रहा था.

थोड़ी दूरी पर ही मुरली एक घर के आगे आ कर रुका और अपना बैग खोल चाबी निकालने लगा. लाल रंग के गेट वाला यह घर मुरली का था. मुरली गेट खोलने लगा, तभी सामने वाले घर से एक बुजुर्ग बाहर निकल कर आए. उन्हें देख मुरली बोला, “ताऊ नमस्ते. ताई नजर नहीं आ रही, कहां गईं.”

“भैया तेरी ताई मर गई,” उन ताऊजी ने जवाब दिया.

“हैं, कैसे?” मुरली ने हैरानी से पूछा.

“खेत में घांस लेने गई, सांप खा गयो,” उन्होंने बात पूरी की.

मुरली सुन कर थोड़ा सकुचाया पर फिर नमस्ते कह घर के अंदर बढ़ गया. कविता और कोमल भी घर में घुस चैन की सांस ले पा रहे थे. कोमल ने अपना मास्क उतारा और घर को निहारने लगी. दो मिनट के लिए मुरली की नजरें कोमल पर टिकीं और लगने लगा जैसे वह किसी खयाल में डूब गया हो. उस ने कोमल से अपना ध्यान हटाया और जूते उतारने लगा.

घर बिलकुल गंदा पड़ा था, कहीं जाले लटक रहे थे, तो कहीं तसवीरों पर मिट्टी की परतें जमी हुई थीं. मुरली साल में दो बार 4-6 दिनों के लिए यहां आता था लेकिन अकेला, इसलिए हलकीफुलकी साफसफाई हो जाती थी.

ये भी पढ़ें- Short Story : बदनाम गली (क्या थी उस गली की कहानी)

सुबह 11 से शाम 7 बजे तक कविता, कोमल और मुरली घर की सफाई में ही रम गए. चारपाई के नीचे से घासफूस हटाई गई, खिड़की से जाले झाड़े गए, बर्तनों को मांजा गया, चादरें बिछाई गईं और ढुलकाने के लिए हाथ वाले पंखें निकाले गए. दिनभर की मशक्कत के बाद तीनों खाना खाने बैठे तो एकबार फिर मुरली किसी सोच में खो गया.

“क्या सोच रहे हो?” कविता ने पूछा.

“नहीं, कुछ नहीं,” मुरली ने कहा.

“पापा, यहां मेरे दोस्त बन जाएंगे न?” कोमल बोलने लगी.

“कोई जरूरत नहीं है किसी से दोस्ती करने की. मेरा मतलब कि… कोरोना फैला है न बेटा तो जितना हो सके घर में रहो बाहर मत जाना,” मुरली की आवाज में हिचकिचाहट थी.

“हां, लेकिन थोड़ा तो बाहर निकलेंगे ही, किसी से हांहूं तो करेंगे ही न,” कविता ने कहा.

“कह दिया न कोई जरूरत नहीं है. तुम किसी को जानते नहीं हो तो ज्यादा रिश्ते जोड़ने की जरूरत नहीं है, वैसे भी हमें जिंदगी भर यहां नहीं रहना है.”

“पर..,” कविता कुछ बोलने ही जा रही थी कि मुरली ने उसे अचानक टोकते हुए कहा, “अब क्या चैन से खाना भी नहीं खाने दोगी क्या?”

कविता ने आगे कुछ नहीं कहा. कोमल का चेहरा भी मुरझाने लगा था, उसे लगा कि इस नए घर में बिना किसी दोस्त के वह बहुत बोर होने वाली है.

मुरली वैसे तो अपने परिवार से बेहद प्यार करता था, उन के साथ हंसताखेलता था, लेकिन इस गांव के जिक्र से ही वह हमेशा खिन्न जाता था. अब गरीबी में आटा गीला वाली बात तो यह हुई थी कि आखिर उसे यहीं रहने आना पड़ा, और इस बार अपने परिवार समेत.

मुरली के घर के बगल वाले घर की दीवार बिलकुल बराबर की थी. दोनों छतें आपस में जुड़ी हुई थीं और उस पर सब से अलग तो यह कि दोनों ही छतों पर बाउंडरी नहीं थी. वह घर किशोर का था. किशोर, एक जमाने में मूरली का दोस्त हुआ करता था पर अब सब बदल चुका था.

अगली सुबह कोमल छत पर अपने खिलौने ले कर गई तो उसे बगल वाली छत पर एक लड़की दिखी. कोमल ने उसे देखा तो देखती ही रह गई. उस ने उसे एक बार देखा, फिर पलक झपका कर एकबार फिर देखा, आंखों को मसल कर फिर देखने लगी. जितनी बार देखती उतनी ही ज्यादा हैरान होती.

वह उस लड़की के पास गई और कहने लगी, “तू कौन है, और तू…. एक मिनट बस यहीं रुक मैं अभी आई,” कह कर कोमल भागती हुई नीचे गई.

“मम्मी….मम्मी… जल्दी चलो देखो उस लड़की को.”

“क्या देखना है, बेटा काम करने दे जा. अभी तेरे पापा उठेंगे तो चिल्लाने लगेंगे,” कविता ने झाड़ू लगाते हुए कहा.

“अरे मम्मी, लेकिन एक बार देखो तो,” कोमल मम्मी के दाएंबाएं घूमती हुई बोली.

“कोमल, बेटा जा कर खेल और काम करने दे मुझे,” कविता ने गुस्से से कहा तो कोमल मुंह बनाते हुए निकल गई.

कोमल वापस छत पर पहुंची तो वह लड़की वहां से जा चुकी थी. उस ने यहांवहां झांकने की कोशिश की तो उसे वह लड़की कहीं नहीं दिखी. आखिर कोमल अपने खिलौने ले कर वापस कमरे में आ गई. खिड़की पर टंगे शीशे में वह बारबार अपना चेहरा देखने लगी. कभी मुंह दाईं तरफ करने लगती तो कभी बाईं तरफ, कभी ऊपर तो कभी नीचे.

उसे देख कविता पूछने लगी, “यह क्या नौटंकी लगा रखी है तू ने सुबहसुबह.”

“अरे, मम्मी आप को नहीं पता वहां छत पर जो लड़की थी न बिलकुल मेरी जैसी दिख रही थी. बिलकुल मेरी जैसी मतलब बिलकुल मेरी ही जैसी.”

“बिलकुल तेरी जैसी का क्या मतलब, कुछ भी बोलती है.”

पास सो रहे मुरली की आंख खुल गई. “क्या हो रहा है,” वह बोला.

“पापा, मैं ने न बिलकुल अपनी जैसी एक लड़की देखी ऊपर छत पर,” कोमल कहने लगी.

“क्या…?” मुरली अचानक उठ कर बैठ गया. “बिलकुल तेरी जैसी नहीं दिख रही होगी, नींद में तुझे कुछ भी दिखता है. और तुझे कहा था न यहांवहां नहीं मंडराना. एक दिन हुआ नहीं और नाटक शुरू.”

“छत पर ही तो गई थी. अब क्या कैद हो जाए घर में, बच्ची एक तो अकेली है यहां ऊपर से छत पर भी न जाए. आप को दो दिन नहीं हुए यहां आए और आप का तो मानो रवैया ही बदल गया है,” कविता शिकायती लहजे में बोलने लगी.

“ऐसा कुछ नहीं है और तुम…..” मुरली कह ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

मुरली दरवाजा खोलने गया. सामने किशोर और उस की बेटी सुमन को देख हक्काबक्का हो गया. ऐसा नहीं था कि वह उन दोनों को पहली बार देख रहा हो लेकिन आज वह उसे साक्षात यम नजर आ रहे थे.

ये भी पढ़ें- डुप्लीकेट: आखिर मनोहर क्यों दुखी था  

“भैया, शहर ते कब लौटे हो गांव, बताया भी नहीं चुपचाप आ गए,” किशोर कहने लगा.

“कल ही आए हैं. सबेरेसबेरे कैसे आना हुआ?” कहते हुए मुरली के माथे से पसीने की बूंदें गिरने लगीं.

“हमारी छोरी सुमन बोल रही कि पापा बगल वाली छत पर को मेरे जैसे छोरी दीखी, तो हम ने सोची देख लें,” किशोर ने कहा तो अंदर से कविता और कोमल भी निकल आए.

“मम्मी देखो बिलकुल मेरे जैसी दिख रही है,” कोमल कविता से कहने लगी.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

हिम्मत : क्या बबली बचा पाई अपनी इज्जत

अंधेरा होते ही बबली का पति काम कर के अपने घर आ गया था. बबली भी एक कबाड़ी के गोदाम पर गंदगी के ढेर से बेकार चीजों की छंटाई का काम करती थी. उसे 2 सौ रुपए रोजाना मिलते थे. पतिपत्नी दोनों बड़ी लगन से मेहनतमजदूरी करते थे, तभी घर का खर्च चल पाता था.

कबाड़ी के गोदाम पर बबली जैसी 4-5 औरतें काम करती थीं. सभी औरतें झोंपड़पट्टी इलाके की थीं. उन के पति भी किसी चौधरी के खेतों में काम करते थे. सुबह 6 बजे जाते थे और शाम को 6 बजे थकेहारे लौटते थे. घर आते ही उन में इतनी ताकत नहीं होती थी कि अपनी झोंपड़ी से थोड़ी दूर पैदल जा कर नहर में नहा आएं.

बबली का पति मेवालाल तो रोजाना की इस कड़ी मेहनत से सूख कर कांटा हो गया था. उस के बदन का रंग काला पड़ गया था.

गरमी के चलते कई दिनों से नल में पानी नहीं आ रहा था. अगर पानी आ भी जाता था, तो गरीब बस्ती से पहले दबंग लोगों की कालोनी थी, जहां हर घर में बिजली की मोटर लगी थी. जब बड़े घरों में बिजली की मोटरें चलेंगी, तो गरीबों के नल में पानी आना कतई मुमकिन नहीं. ऐसे हालात में गरीब बस्ती वालों का एकमात्र सहारा बस्ती से थोड़ी दूर बहती गंदे पानी की नहर थी.

अंधेरा होने पर बस्ती की जवान बहूबेटियों की इज्जत पर कितनी बार हमले हो चुके थे. गरीब लोग दबंगों के ऐसे हमले सहने को मजबूर थे.

मेवालाल सारा दिन मेहनतमजदूरी करने की वजह से प्यास से मरा जा रहा था. उसे नहाना भी था. घर में पानी की एक बूंद नहीं थी. उस ने बबली को नहर से पानी लाने को कहा.

बबली भी थकी हुई थी. उस ने तुनक कर जवाब दिया, ‘‘इतनी दूर से पानी कैसे लाऊंगी? मैं भी थकी हुई हूं. तुम नहर पर जा कर नहा आओ. देर भी हो गई है. अंधेरा फैला हुआ है.’’

ये भी पढ़ें- स्मृति चक्र

‘‘सारा दिन काम करतेकरते पूरे जिस्म से जान निकली जा रही है. अगर मैं मर गया, तो तुम विधवा हो जाओगी. चलता हूं तो चक्कर आते हैं. कहीं नहर में गिर गया तो…

‘‘मेरी नखरे वाली बिल्लो, जा पानी ले आ. अभी तो 3 बेटियां ब्याहनी हैं. अकेले ही तीनों को कैसे ठिकाने लगाओगी?’’ मेवालाल ने बबली की चिरौरी की, तो वह मान गई.

‘‘हांहां, मैं ही मिट्टी की बनी हूं. मुझ पर ही जवानी चढ़ी जा रही है. सारा दिन मैं भी तो मेहनत करती हूं,’’ बबली ने भी अपनी हालत बयान करते हुए थकेहारे लहजे में कहा, तो मेवालाल खामोश रहा. भारी थकावट के चलते उस का बदन दर्द के मारे दुखा जा रहा था. उस की उम्र अभी 35 साल से ज्यादा नहीं थी, मगर कमजोरी के चलते कितनी बीमारियों ने उस के बदन में घर बना लिया था.

थकीहारी बबली ने दुखी मन से बड़ा बरतन उठाया और पानी लेने चली गई. रास्ता कच्चा और ऊबड़खाबड़ था. अंधेरे के चलते बबली ठोकर खाती नहर

की तरफ बढ़ रही थी, तभी उस के कानों में एक मर्दाना आवाज आई. उस के सामने इलाके का दबंग आदमी रास्ता रोक कर खड़ा हो गया था. वह शायद शराब के नशे में चूर था. वह पहले भी इसी रास्ते पर बबली से जोरजबरदस्ती कर चुका था. बसअड्डे पर उस की मोटर मेकैनिक की दुकान थी.

उस दबंग की 2 बार शादी हुई थी. दोनों ही बार उस की शराब पीने की आदत के चलते घरवालियां भाग चुकी थीं. अब वह दूसरों की घरवालियों पर तिरछी नजर रखता था.

बबली कबाड़ के गोदाम पर काम करती थी. गोदाम का मालिक पाला राम उस का दोस्त था. इसी दोस्ती के चलते वह दबंग बबली पर अपना हक समझने लगा था.

‘‘अरे, इस अंधेरी रात में इतनी दूर से पानी ले कर आओगी. इस तरह तो तेरी जवानी का कचरा हो जाएगा. मेरी रानी, तू अगर रात को मेरे पास आ जाया करे, तो मैं तेरी झोंपड़ी के सामने ही पानी का ट्यूबवैल लगवा दूंगा. बोल, रोज रात को मेरे कमरे पर आया करेगी?’’ सामने रास्ता रोक कर उस मोटर मेकैनिक ने रोमांटिक होते हुए पूछा.

‘‘मुझे अपने घरवाले के लिए नहाने का पानी ले जाना है. मैं सारा दिन काम कर के थकीहारी लौटी हूं. कहीं दूसरी गंदी नाली में मुंह मार,’’ दहाड़ते हुए बबली ने कहा.

‘‘अरे, क्यों उस मरे हुए आदमी के लिए अपनी मस्त जवानी बरबाद कर रही है? उसे छोड़ कर मेरे साथ आ जा. मैं तुझे रानी बना कर रखूंगा,’’ कहते हुए हवस से भरे उस मोटर मेकैनिक ने थकीहारी बबली को गोद में उठा कर साथ ही के खाली प्लाट में जमीन पर गिरा दिया और उस की साड़ी उतारने पर आमादा हो गया.

सारे दिन की थकीहारी बबली अपनेआप को बचा नहीं पा रही थी. मोटर मेकैनिक अपनी मनमानी कर के माना. बबली अपनी आबरू गंवा बैठी.

जातेजाते वह दबंग 5 सौ रुपए का नोट देते हुए बोला, ‘‘ऐसे ही मजे देती रहेगी, तो तुझे मालामाल कर दूंगा.’’

‘‘मैं थूकती हूं तेरे रुपयों पर. आज तो तू ने अपनी मनमरजी कर ली, दोबारा ऐसी कोशिश मत करना. अगर कोशिश की, तो बहुत बुरा अंजाम होगा,’’ बबली ने उसे चेतावनी दी. उस ने अपने कपड़े पहने और रोतीसिसकती पानी लाने नहर पर चली गई.

घर जा कर बबली ने पति को सारी बात बताई और यह भी कहा कि मोटर मेकैनिक की बेहूदा हरकत पर उसे सबक सिखाना बहुत जरूरी हो गया है.

अगली सुबह मेवालाल बबली के साथ बस्ती के नजदीक पुलिस थाने पहुंचा. पहलेपहल तो थानेदार ने उन की शिकायत सुनी ही नहीं, उलटे बबली पर ही देह धंधा करने का आरोप लगा दिया.

जब बबली ने बड़े साहब के पास जाने की धमकी दी, तब थानेदार ने एक पुलिस वाला भेज कर मोटर मेकैनिक को थाने बुला लिया.

थानेदार ने जब मोटर मेकैनिक को बबली के साथ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करने की धमकी दी, तो वह थानेदार के साथ मुंशी के केबिन में घुस गया.

पता नहीं, मुंशी के केबिन में उन के बीच क्या कानाफूसी हुई. थोड़ी देर में थानेदार केबिन से मोटर मेकैनिक के साथ बाहर निकला और उस के साथ बबली को धमकाते हुए फिर कभी ऐसी गलती न करने की चेतावनी देते हुए थाने से निकाल दिया.

ये भी पढ़ें- Short Story : पापा मिल गए (सोफिया को कैसे मिले उसके पापा)

बबली ज्वालामुखी की तरह दहक उठी थी. वह तो मोटर मेकैनिक से बदला लेना चाहती थी. तब उस ने अपनी बस्ती की तमाम सयानी औरतों के सामने अपना दर्द रखा. साथ ही, यह गुहार भी लगाई कि अगर ऐसे दबंगों पर शिकंजा न कसा गया, तो ये किसी की भी बहनबेटी पर जबरन हाथ डाल सकते हैं.

सब औरतों ने बबली को भरोसा दिलाया कि अगर अब फिर कभी मोटर मेकैनिक ऐसी हरकत करेगा, तो वह बस्ती की दबंग औरत फुलवा को फोन कर के जगह बता दे.

बबली ने एक पुराना मोबाइल फोन खरीदा. उस ने सोच लिया था कि अगर मोटर मेकैनिक दोबारा ऐसा करता है, तो उस का अंजाम बहुत बुरा होगा. अब वह रोजाना नहर पर रात के अंधेरे में पानी लेने जाती थी.

एक दिन शाम ढलने के बाद वह पानी लेने गई, तभी मोटर मेकैनिक फिर मिल गया.

‘‘क्यों रानी, मेरी शिकायत पुलिस में कर के देख ली? क्या हुआ… कुछ भी नहीं. थानेदार भी मेरा चेला है. मेरे दबदबे से तो उस की हवा निकलती है. मेरी रातें रंगीन कर दे मेरी रानी. मैं तुझे महारानी बना दूंगा,’’ शराब के नशे में झूमते हुए मोटर मेकैनिक ने बबली के उभारों पर हाथ रखा.

‘‘यहां रास्ते में कोई आ जाएगा. मैं नदी पर जा रही हूं. तुम आगेआगे वहीं पहुंचो. नहाधो कर वहीं पर मजे लूटेंगे,’’ मन ही मन सुलगते हुए बबली शहद घुली आवाज में बोली.

बबली की यह बात सुन कर मोटर मेकैनिक खुशी के मारे झूम उठा. वह तेजतेज चलते हुए आगे बढ़ने लगा.

बबली ने अपनी बस्ती की फुलवा को फोन कर दिया. वह धीरेधीरे चलते हुए नहर के किनारे पहुंची.

मोटर मेकैनिक बेसब्री के आलम में जल्दीजल्दी बबली की साड़ी खोलने लगा.

बबली ने झिड़क कर उसे रोक दिया, ‘‘रुको… मैं नहा तो लूं. बदन की थकावट उतर जाएगी, तो मस्ती मारने का मजा भी खूब आएगा,’’ बबली ने रोकना चाहा, तो मोटर मेकैनिक रुका नहीं. उस ने बबली को अपनी बांहों में कस कर जमीन पर गिरा दिया.

मोटर मेकैनिक उस पर झपटने ही वाला था कि तभी एकसाथ कई आवाजें सुन कर वह चौंक उठा.

बस्ती की कितनी औरतें हाथों में जूतेचप्पलें ले कर आई थीं. जवान लड़के भी पूरी तैयारी के साथ वहां पहुंच गए थे. सब के हाथों में टौर्च भी थी.

‘‘बदमाश, तू दूसरों की बहनबेटियों को अपनी जागीर समझता है. बहुत जोश भरा है तेरे अंदर? अभी तेरा इलाज करते हैं,’’ बस्ती की फुलवा गुस्से के मारे दहाड़ उठी थी. इस के बाद तो रात के अंधेरे में सब उस मोटर मेकैनिक पर बरस पड़े.

मोटर मेकैनिक की हालत खराब हो गई थी. उसे कोई बचाने वाला नहीं था. सब उसे पकड़ कर घसीटते हुए बस्ती में ले आए.

‘‘यह ले, इस कागज पर दस्तखत कर दे, वरना तेरी हालत और भी बुरी हो जाएगी,’’ फुलवा ने एक सादा कागज उस के सामने रखते हुए कहा.

‘‘यह क्या है?’’ बुरी तरह घायल मोटर मेकैनिक ने बड़ी मुश्किल से पूछा. उस की आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था. अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करते ही वह जमीन पर चीखते हुए गिर पड़ा था.

‘‘अगर फिर कभी दोबारा तुम ने किसी भी बहनबेटी की तरफ बुरी नजर से देखा, तो तेरा अंगअंग काट दिया जाएगा. इस सजा की जिम्मेदारी सिर्फ तेरी होगी. किसी दूसरे को आरोपी नहीं माना जाएगा, इसलिए तेरे दस्तखत कराना जरूरी है.

‘‘हम इस कागज की एक कौपी थाने में और एक कौपी कचहरी में जमा कराएंगे,’’ फुलवा ने सारी बात समझाई, तो उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

उस की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. जबान मानो तालू से चिपक गई थी.

ये भी पढ़ें- बदलते जमाने का सच

‘‘अरे, मोटर मेकैनिक बाबा, अभी दस्तखत कर दो, वरना गुस्से में आई ये औरतें तेरा आज ही अंग भंग कर देंगी. अगर तुम इन औरतों से बच गए, तो हम तुझे अभी नहर में फेंक देंगे. बस्ती में हमारी मांबहनें रहती हैं. जल्दी दस्तखत कर,’’ वहां जमा हुए लड़कों में से एक ने कहा.

मोटर मेकैनिक ने कांपते हाथों से कागज पर अपने दस्तखत करने में ही भलाई समझी. दस्तखत करते ही वह बेहोश हो गया.

बबली ने साथ आई औरतों का शुक्रिया अदा किया. उस ने महसूस किया कि हिम्मत और सूझबूझ से बड़ी से बड़ी मुसीबत से पार पाई जा सकती है.

Best of Crime Stories : जीजा से जब लड़े नैन

दिल्ली जल बोर्ड में नौकरी करने वाला संजीव कौशिक अपनी पत्नी अंजू कौशिक को हर तरह से खुश रखता था. वह जो भी मांग करती, संजीव उसे जल्द से जल्द पूरी करने की कोशिश करता था. इस के बावजूद भी अंजू उसे पहले की तरह प्यार नहीं करती. आए दिन पति के प्रति उस का व्यवहार बदलता जा रहा था. बेटे के भविष्य को देखते हुए संजीव अपने घर में कलह नहीं करना चाहता था पर अंजू उस की बात को गंभीरता से समझने की कोशिश नहीं कर रही थी.

संजीव फरीदाबाद की ग्रीनफील्ड कालोनी का रहने वाला था. दिल्ली ड्यूटी करने के बाद जब वह घर पर पहुंचता तो घर वाले अंजू के बारे में बताते कि वह बेलगाम हो कर अकेली पता नहीं कहांकहां घूमती है. संजीव इस बारे में जब पत्नी से पूछता तो वह उलटे उस से झगड़ने पर आमादा हो जाती थी. इस के बाद संजीव को भी गुस्सा आ जाता तो वह उस की पिटाई कर देता था. इस तरह उन दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories : जैंट्स पार्लरों में चलता गरम जिस्म का खेल

संजीव अपने स्तर से यही पता लगाने की कोशिश करने लगा कि आखिर उस की पत्नी का किस के साथ चक्कर चल रहा है. पर उसे इस काम में सफलता नहीं मिल सकी. आखिर इसी साल जनवरी महीने में जब अंजू घर से भाग गई तो हकीकत सामने आई. पता चला कि अंजू के अपने ही ननदोई यानी संजीव के बहनोई राजू के साथ ही नाजायज संबंध थे.

जबकि संजीव का शक किसी मोहल्ले वाले पर था, लेकिन उसे क्या पता था कि उस का बहनोई ही आस्तीन का सांप बना हुआ है. अंजू जब राजू के साथ भागी थी तो अपने बेटे को भी साथ ले गई थी. तब संजीव ने फरीदाबाद के सेक्टर-7 थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस के करीब एक महीने बाद अंजू को करनाल से बरामद किया गया था.

घर लौटने के बाद अंजू ने अपने किए की पति से माफी मांगी और भविष्य में राजू से न मिलने का वादा भी किया था. संजीव ने उसे माफ कर फिर से स्वीकार कर लिया. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी भले छोड़ दे लेकिन हेराफेरी नहीं छोड़ता. यही हाल अंजू का भी था.

कुछ दिनों तक तो अंजू ठीक रही लेकिन जब उसे अपने ननदोई यानी प्रेमी राजू की याद आती तो वह बेचैन रहने लगी. उधर राजू भी अंजू से मिलने के लिए बेताब था.

ये भी पढ़ें- कातिल कौन

दोनों ही जब एकदूसरे से मिलने के लिए मचलने लगे तब वे चोरीछिपे मिलने लगे. संजीव को जब पता चला तो उस ने पत्नी को समझाया पर वह नहीं मानी.

society

वैसे भी जब किसी महिला के एक बार पैर फिसल जाते हैं तो वह रोके से भी नहीं रुकते. क्योंकि अवैध संबंधों की राह बड़ी ही ढलवां होती है. उस राह पर यदि कोई एक बार कदम रख देता है तो उस का संभलना मुश्किल होता है. यही हाल अंजू का हुआ.

संजीव अंजू के चालचलन से बहुत परेशान हो चुका था. उस की वजह से उस की रिश्तेदारियों में ही नहीं, बल्कि मोहल्ले में भी बदनामी हो रही थी. पत्नी को समझासमझा कर वह हार चुका था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसी बदचलन पत्नी का क्या करे. पत्नी की वजह से वह तनाव में रहने लगा.

17 मार्च, 2018 को भी किसी बात को ले कर संजीव का पत्नी से झगड़ा हो गया. उस समय उस का 15 वर्षीय बेटा मनन अपने ताऊ के यहां था. झगड़े के दौरान अंजू ने ड्रेसिंग टेबल से कैंची निकाल कर पति पर हमला कर दिया. बचाव की कोशिश में संजीव की छोटी अंगुली (कनिष्ठा) कट गई. अंगुली कटने पर संजीव के हाथों से खून टपकने लगा.

ये भी पढ़ें- शौहर की साजिश : भाग 3

इस के बाद संजीव को गुस्सा आ गया. उस ने पत्नी से कैंची छीन कर उसी कैंची से उस की गरदन पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. उस ने उस की गरदन पर तब तक वार किए, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. इस के बाद उस ने उस की गरदन काट कर अलग कर दी.

society

पत्नी की हत्या करने के बाद संजीव ने खून से सने अपने हाथपैर साफ किए और कपड़े बदल कर उस ने कहीं भाग जाने के मकसद से एक बैग में अपने कुछ कपड़े भर लिए. फिर वह अपने बड़े भाई के पास गया. वहां मौजूद बेटे ने बैग के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि इस में कपड़े हैं जो धोबी को देने हैं. फिर वह वहां से चला गया.

दोपहर करीब एक बजे मनन जब घर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. उस ने पड़ोसियों से अपनी मां के बारे में पूछा तो कुछ पता नहीं चला. पिता को फोन मिलाया तो वह भी बंद मिला. तब उस ने फोन कर के अपने ताऊ को वहां बुला लिया.

ताऊ ने शक होने के बाद पुलिस को सूचना दी. पुलिस जब वहां पहुंची तो आसपास के लोग जमा थे. कमरे का ताला तोड़ कर पुलिस जब कमरे में गई तो बैडरूम में अंजू की लाश पड़ी थी, जिस का सिर धड़ से अलग था. फिर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories : प्यार पर प्रहार

पत्नी की हत्या करने के बाद संजीव 3 दिनों तक इधरउधर घूमता रहा. बाद में उसे लगा कि चाहे वह कितना भी छिपा रहे, पुलिस एक न एक दिन उसे गिरफ्तार कर ही लेगी. यही सोच कर उस ने खुद ही न्यायालय में आत्मसमर्पण करने का फैसला ले लिया और 21 मार्च, 2018 को फरीदाबाद न्यायालय में पहुंच कर आत्मसमर्पण कर दिया.

कोर्ट ने इस की सूचना डीएलएफ क्राइम ब्रांच को दे दी. तब क्राइम ब्रांच के इंचार्ज अशोक कुमार कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने संजीव कौशिक को गिरफ्तार कर पूछताछ की, जिस में संजीव ने अपना अपराध स्वीकार कर पत्नी की हत्या में प्रयुक्त कैंची आदि पुलिस को बरामद करा दी. पुलिस ने संजीव कौशिक से पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें