गांठ खुल गई: भाग 2

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‘‘यह कहने के लिए बुलाया है कि जो होना था वह हो गया. अब मुद्दे की बात करते हैं. सचाई यह है कि हम अब भी एकदूसरे को चाहते हैं. तुम मेरे लिए बेताब हो, मैं तुम्हारे लिए.

‘‘इसलिए शादी होेने तक हम रिश्ता बनाए रख सकते हैं. चाहोगे तो शादी के बाद भी मौका पा कर तुम से मिलती रहूंगी. ससुराल कोलकाता में ही है. इसलिए मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

श्रेया का चरित्र देख कर गौतम को इतना गुस्सा आया कि उस का कत्ल कर फांसी पर चढ़ जाने का मन हुआ. लेकिन ऐसा करना उस के वश में नहीं था. क्योंकि वह उसे अथाह प्यार करता था. उसे लगता था कि श्रेया को कुछ हो गया तो वह जीवित नहीं रह पाएगा.

उसे समझाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे इतना प्यार करती हो तो शादी मुझ से क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘इस जमाने में शादी की जिद पकड़ कर क्यों बैठे हो? वह जमाना पीछे छूट गया जब प्रेमीप्रेमिका या पतिपत्नी एकदूसरे से कहते थे कि जिंदगी तुम से शुरू, तुम पर ही खत्म है.

‘‘अब तो ऐसा चल रहा है कि जब तक साथ निभे, निभाओ, नहीं तो अपनेअपने रास्ते चले जाओ. तुम खुद ही बोलो, मैं क्या कुछ गलत कह रही हूं? क्या आजकल ऐसा नहीं हो रहा है?

‘‘दरअसल, मैं सिर्फ कपड़ों से ही नहीं, विचारों से भी आधुनिक हूं. जमाने के साथ चलने में विश्वास रखती हूं. मैं चाहती हूं कि तुम भी जमाने के साथ चलो. जो मिल रहा है उस का भरपूर उपभोग करो. फिर अपने रास्ते चलते बनो.’’

श्रेया जैसे ही चुप हुई, गौतम ने कहा, ‘‘लगा था कि तुम्हें गलती का अहसास हो गया है. मुझ से माफी मांगना चाहती हो. पर देख रहा हूं कि आधुनिकता के नाम पर तुम सिर से पैर तक कीचड़ से इस तरह सन चुकी हो कि जिस्म से बदबू आने लगी है.

‘‘यह सच है कि तुम्हें अब भी अथाह प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें भूल जाना मेरे वश की बात नहीं है. लेकिन अब तुम मेरे दिल में शूल बन कर रहोगी, प्यार बन कर नहीं.’’

श्रेया ने गौतम को अपने रंग में रंगने की पूरी कोशिश की, परंतु उस की एक दलील भी उस ने नहीं मानी.

उस दिन से गौतम पहले से भी अधिक गमगीन हो गया.

इस तरह कुछ दिन और बीत गए. अचानक इषिता ने फोन पर बताया कि उस ने कोलकाता में ट्रांसफर करा लिया है. 3-4 दिनों में आ जाएगी.

3 दिनों बाद इषिता आ भी गई. गौतम के घर गई तो वह गहरी सोच में था.

उस ने आवाज दी. पर उस की तंद्रा भंग नहीं हुई. तब उसे झंझोड़ा और कहा, ‘‘किस सोच में डूबे हुए हो?’’

‘‘श्रेया की यादों से अपनेआप को मुक्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ गौतम ने सच बता दिया.

इषिता गुस्से से उफन उठी, ‘‘इतना सबकुछ होने के बाद भी उसे याद करते हो? सचमुच तुम पागल हो गए हो?’’

‘‘तुम ने कभी किसी को प्यार नहीं किया है इषिता, मेरा दर्द कैसे समझ सकती हो.’’

‘‘कुछ घाव किसी को दिखते नहीं. इस का मतलब यह नहीं कि उस शख्स ने चोट नहीं खाई होगी,’’ इषिता ने कहा.

गौतम ने इषिता को देखा तो पाया कि उस की आंखें नम थीं. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी आंखों में आंसू हैं. इस का मतलब यह है कि तुम ने भी प्यार में धोखा खाया है?’’

‘‘इसे तुम धोखा नहीं कह सकते. जिसे मैं प्यार करती थी उसे पता नहीं था.’’

‘‘यानी वन साइड लव था?’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझो.’’

‘‘लड़का कौन था. निश्चय ही वह कालेज का रहा होगा?’’

इषिता उसे उलझन में नहीं रखना चाहती थी, रहस्य पर से परदा हटाते हुए कह दिया, ‘‘वह कोई और नहीं, तुम हो.’’

गौतम ने चौंक कर उसे देखा तो वह बोली, ‘‘कालेज में पहली बार जिस दिन तुम से मिली थी उसी दिन तुम मेरे दिल में घर कर गए थे. दिल का हाल बताती, उस से पहले पता चला कि तुम श्रेया के दीवाने हो. फिर चुप रह जाने के सिवा मेरे पास रास्ता नहीं था.

‘‘जानती थी कि श्रेया अच्छी लड़की नहीं है. तुम से दिल भर जाएगा, तो झट से किसी दूसरे का दामन थाम लेगी. आगाह करती, तो तुम्हें लगता कि अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उस पर इलजाम लगा रही हूं. इसलिए तुम से दोस्ती कर ली पर दिल का हाल कभी नहीं बताया.

‘‘श्रेया के साथ तुम्हारा सबकुछ खत्म हो गया, तो सोचा कि मौका देख कर अपनी मोहब्बत का इजहार करूंगी और तुम से शादी कर लूंगी. पर देख रही हूं कि आज भी तुम्हारे दिल में वह ही है.’’

दोनों के बीच कुछ देर तक खामोशी पसर गई. गौतम ने ही थोड़ी देर बार खामोशी दूर की, ‘‘उसे दिल से निकाल नहीं पा रहा हूं, इसीलिए कभी शादी न करने का फैसला किया है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मैं ने जो तपस्या की है उस का फल मुझे नहीं दोगे?’’ इषिता का स्वर वेदना से कांपने लगा था. आंखें भी डबडबा आई थीं.

‘‘मुझे माफ कर दो इषिता. तुम बहुत अच्छी लड़की हो. तुम से विवाह करता तो मेरा जीवन सफल हो जाता. पर मैं दिल के हाथों मजबूर हूं. किसी से भी शादी नहीं कर सकता.’’

इषिता चली गई. उस की आंखों में उमड़ा वेदना का समंदर देख कर भी वह उसे रोक नहीं पाया. वह उसे कैसे समझाता कि श्रेया ने उस के साथ जो कुछ भी किया है, उस से समस्त औरत जाति से उसे नफरत हो गई है.

3 दिन बीत गए. इषिता ने न फोन किया न आई. गौतम सोचने लगा, ‘कहीं नाराज हो कर उस ने दोस्ती तोड़ने का मन तो नहीं बना लिया है?’

उसे फोन करने को सोच ही रहा था कि अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस समय शाम के 6 बज रहे थे. फोन किसी अनजान का था.

उस ने ‘‘हैलो’’ कहा तो उधर से किसी ने कहा, ‘‘इषिता का पापा बोल रहा हूं. तुम से मिलना चाहता हूं. क्या हमारी मुलाकात हो सकती है?’’

उस ने झट से कहा, ‘‘क्यों नहीं अंकल. कहिए, कहां आ जाऊं?’’

‘‘तुम्हें आने की जरूरत नहीं है बेटे. 7 बजे तक मैं ही तुम्हारे घर आ जाता हूं.’’

इषिता उसे 3-4 बार अपने घर ले गई थी. वह उस के मातापिता से मिल चुका था.

उस के पिता रेलवे में उच्च पद पर थे. बहुत सुलझे हुए इंसान थे. वह उन की इकलौती संतान थी. मां कालेज में अध्यापिका थीं. बहुत समझदार थीं. कभी भी उस के और इषिता के रिश्ते पर शक नहीं किया था.

इषिता के पापा समय से पहले ही आ गए. गौतम के साथसाथ उस की मां और बहन ने भी उन का भरपूर स्वागत किया.

उन्होंने मुद्दे पर आने में बहुत देर नहीं लगाई. पर उन चंद लमहों में ही अपने शालीन व्यक्तित्व की खुशबू से पूरे घर को महका दिया था. इतनी आत्मीयता उड़ेल दी थी वातावरण में कि उसे लगने लगा कि उन से जनमजनम का रिश्ता है.

कुछ देर बाद इषिता के पापा को गौतम के साथ कमरे में छोड़ कर मां और बहन चली गईं तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, इषिता तुम्हें प्यार करती है और शादी करना चाहती है. उस ने श्रेया के बारे में भी सबकुछ बता दिया है.

‘‘श्रेया से तुम्हारा रिश्ता टूट चुका है तो इषिता से शादी क्यों नहीं करना चाहते? वैसे तो बिना कारण भी कोई किसी को नापसंद कर सकता है. यदि तुम्हारे पास इषिता से विवाह न करने का कारण है तो बताओ. मिलबैठ कर कारण को दूर करने की कोशिश करें.’’

उसे लगा जैसे अचानक उस के मन में कोई बड़ी सी शिला पिघलने लगी है. उस ने मन की बात बता देना ही उचित समझा.

‘‘इषिता में कोई कमी नहीं है अंकल. उस से जो भी शादी करेगा उस का जीवन सार्थक हो जाएगा. कमी मुझ में है. श्रेया से धोखा खाने के बाद लड़कियों से मेरा विश्वास उठ गया है.

‘‘लगता है कि जिस से भी शादी करूंगा वह भी मेरे साथ बेवफाई करेगी. ऐसा भी लगता है कि श्रेया को कभी भूल नहीं पाऊंगा और पत्नी को प्यार नहीं कर पाऊंगा,’’ गौतम ने दिल की बात रखते हुए बताया.

‘‘इतनी सी बात के लिए परेशान हो? तुम मेरी परवरिश पर विश्वास रखो बेटा. तुम्हारी पत्नी बन कर इषिता तुम्हें इतना प्यार करेगी कि तुम्हारे मन में लड़कियों के प्रति जो गांठ पड़ गई है वह स्वयं खुल जाएगी.’’

वे बिना रुके कहते रहे, ‘‘प्यार या शादी के रिश्ते में मिलने वाली बेवफाई से हर इंसान दुखी होता है, पर यह दुख इतना बड़ा भी नहीं है कि जिंदगी एकदम से थम जाए.

‘‘किसी एक औरतमर्द या लड़कालड़की से धोखा खाने के बाद दुनिया के तमाम औरतमर्द या लड़केलड़की को एकजैसा समझना सही नहीं है.

‘‘यह जीवन का सब से बड़ा सच है कि कोई भी रिश्ता जिंदगी से बड़ा नहीं होता. यह भी सच है कि हर प्रेम संबंध का अंजाम शादी नहीं होता.

‘‘जीवन में हर किसी को अपना रास्ता चुनने का अधिकार है. यह अलग बात है कि कोई सही रास्ता चुनता है कोई गलत.

‘‘श्रेया के मन में गलत विचार भरे पड़े थे. इसलिए चंद कदम तुम्हारे साथ चल कर अपना रास्ता बदल लिया. अब तुम भी उसे भूल कर जीने की सही राह पर आ जाओ. गिरते सब हैं पर जो उठ कर तुरंत अपनेआप को संभाल लेता है, सही माने में वही साहसी है.’’

थोड़ी देर बाद इषिता के पापा चले गए. गौतम ने मंत्रमुग्ध हो कर उन की बातें सुनी थीं.

श्रेया के कारण लड़कियों के प्रति मन में जो गांठ पड़ गई थी वह खुल गई.

अब देर करना उस ने मुनासिब नहीं समझा. इषिता के पापा को फोन किया, ‘‘अंकल, कल अपने घर वालों के साथ इषिता का हाथ मांगने आप के घर आना चाहता हूं.’’

उधर से इषिता के पापा ने कहा, ‘‘वैलकम बेटे. देर आए दुरुस्त आए. अब तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. तुम ने अपने भीतर के डर पर विजय जो प्राप्त कर ली है.’’

गांठ खुल गई: भाग 1

श्रेया से गौतम की मुलाकात सब से पहले कालेज में हुई थी. जिस दिन वह कालेज में दाखिला लेने गया था, उसी दिन वह भी दाखिला लेने आई थी.

वह जितनी सुंदर थी उस से कहीं अधिक स्मार्ट थी. पहली नजर में ही गौतम ने उसे अपना दिल दे दिया था.

गौतम टौपर था. इस के अलावा क्रिकेट भी अच्छा खेलता था. बड़ेबड़े क्लबों के साथ खेल चुका था. उस के व्यक्तित्व से कालेज की कई लड़कियां प्रभावित थीं. कुछ ने तो खुल कर मोहब्बत का इजहार तक कर दिया था.

उस ने किसी का भी प्यार स्वीकार नहीं किया था. करता भी कैसे? श्रेया जो उस के दिल में बसी हुई थी.

श्रेया भी उस से प्रभावित थी. सो, उस ने बगैर देर किए उस से ‘आई लव यू’ कह दिया.

वह कोलकाता के नामजद अमीर परिवार से थी. उस के पिता और भाई राजनीति में थे. उन के कई बिजनैस थे. दौलत की कोई कमी न थी.

गौतम के पिता पंसारी की दुकान चलाते थे. संपत्ति के नाम पर सिर्फ दुकान थी. जिस मकान में रहते थे, वह किराए का था. उन की एक बेटी भी थी. वह गौतम से छोटी थी.

अपनी हैसियत जानते हुए भी गौतम, श्रेया के साथ उस के ही रुपए पर उड़ान भरने लगा था. उस से विवाह करने का ख्वाब देखने लगा था.

कालांतर में दोनों ने आधुनिक रीति से तनमन से प्रेम प्रदर्शन किया. सैरसपाटे, मूवी, होटल कुछ भी उन से नहीं छूटा. मर्यादा की सारी सीमा बेहिचक लांघ गए थे.

2 वर्ष बीत गए तो गौतम ने महसूस किया कि श्रेया उस से दूर होती जा रही है. वह कालेज के ही दूसरे लड़के के साथ घूमने लगी थी. उसे बात करने का भी मौका नहीं देती थी.

बड़ी मुश्किल से एक दिन मौका मिला तो उस से कहा, ‘‘मुझे छोड़ कर गैरों के साथ क्यों घूमती हो? मुझ से शादी करने का इरादा नहीं है क्या?’’

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श्रेया ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’

वह तिलमिला गया. किसी तरह गुस्से को काबू में कर के बोला, ‘‘कहा तो नहीं था पर खुद सोचो कि हम दोनों में पतिपत्नी वाला रिश्ता बन चुका है तो शादी क्यों नहीं कर सकते हैं?’’

‘‘मैं ऐसा नहीं मानती कि किसी के साथ पतिपत्नी वाला रिश्ता बन जाए तो उसी से विवाह करना चाहिए.

‘‘मेरा मानना है कि संबंध किसी से भी बनाया जा सकता है, पर शादी अपने से बराबर वाले से ही करनी चाहिए. शादी में दोनों परिवारों के आर्थिक व सामाजिक रुतबे पर ध्यान देना अनिवार्य होता है.

‘‘तुम्हारे पास यह सब नहीं है. इसलिए शादी नहीं कर सकती. तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि अब मेरा पीछा करना बंद कर दो, नहीं तो अंजाम बुरा होगा.’’

श्रेया की बात गौतम को शूल की तरह चुभी. लेकिन उस ने समझदारी से काम लेते हुए उसे समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी.

आखिरकार, उसे लगा कि श्रेया किसी के बहकावे में आ कर रिश्ता तोड़ना चाहती है. उस ने सोचा, ‘उस के घर वालों को सचाई बता दूंगा तो सब ठीक हो जाएगा. परिजनों के कहने पर उसे मुझ से विवाह करना ही होगा.’

एक दिन वह श्रेया के घर गया. उस के पिता व भाई को अपने और उस के बारे में सबकुछ बताया.

श्रेया अपने कमरे में थी. भाई ने बुलाया. वह आई. भाई ने गौतम की तरफ इंगित कर उस से पूछा, ‘‘इसे पहचानती हो?’’

श्रेया सबकुछ समझ गई. झट से अपने बचाव का रास्ता भी ढूंढ़ लिया. बगैर घबराए कहा, ‘‘यह मेरे कालेज में पढ़ता है. इसे मैं जरा भी पसंद नहीं करती. किंतु यह मेरे पीछे पड़ा रहता है. कहता है कि मुझ से शादी नहीं करोगी तो इस तरह बदनाम कर दूंगा कि मजबूर हो कर शादी करनी ही पड़ेगी.’’

वह कहता रहा कि श्रेया झूठ बोल रही है परंतु उस के भाई और पिता ने एक न सुनी. नौकरों से उस की इतनी पिटाई कराई कि अधमरा हो गया. पैरों की हड्डियां टूट गईं.

किसी पर किसी तरह का इलजाम न आए, इसलिए गौतम को अस्पताल में दाखिल करा दिया गया.

थाने में श्रेया द्वारा यह रिपोर्ट लिखा दी गई, ‘घर में अकेली थी. अचानक गौतम आया और मेरा रेप करने की कोशिश की. उसी समय घर के नौकर आ गए. उस की पिटाई कर मुझे बचा लिया.’

थाने से खबर पाते ही गौतम के पिता अस्पताल आ गए. गौतम को होश आया तो सारा सच बता दिया.

सिर पीटने के सिवा उस के पिता कर ही क्या सकते थे. श्रेया के परिवार से भिड़ने की हिम्मत नहीं थी.

उन्होंने गौतम को समझाया, ‘‘जो हुआ उसे भूल जाओ. अस्पताल से वापस आ कर पढ़ाई पर ध्यान लगाना. कोशिश करूंगा कि तुम पर जो मामला है, वापस ले लिया जाए.’’

उन्होंने सोर्ससिफारिश की तो श्रेया के पिता ने मामला वापस ले लिया.

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अस्पताल में गौतम को 5 माह रहना पड़ा. वे 5 माह 5 युगों से भी लंबे थे. कैलेंडर की तारीखें एकएक कर के उस के सपनों के टूटने का पैगाम लाती रही थीं.

उसे कालेज से निकाल दिया गया तो दोस्तों ने भी किनारा कर लिया. महल्ले में भी वह बुरी तरह बदनाम हो चुका था. कोई उसे देखना नहीं चाहता था.

श्रेया के आरोप पर किसी को विश्वास नहीं हुआ तो वह थी इषिता. वह उसी कालेज में पढ़ती थी और गौतम की दोस्त थी. वह अस्पताल में उस से मिलने बराबर आती रही. उसे हर तरह से हौसला देती रही.

गौतम घर आ गया तो भी इषिता उस से मिलने घर आती रही. शरीर के घाव तो कुछ दिनों में भर गए पर आत्मसम्मान के कुचले जाने से उस का आत्मविश्वास टूट चुका था.

मन और आत्मविश्वास के घावों पर कोई औषधि काम नहीं कर रही थी. गौतम ने फैसला किया कि अब आगे नहीं पढ़ेगा.

परिजनों तथा शुभचिंतकों ने बहुत समझाया लेकिन वह फैसले से टस से मस नहीं हुआ.

इस मामले में उस ने इषिता की भी नहीं सुनी. इषिता ने कहा था, ‘‘ पढ़ना नहीं चाहते हो तो कोई बात नहीं. क्रिकेट में ही कैरियर बनाओ.’’

‘‘मेरा आत्मविश्वास टूट चुका है. कुछ नहीं कर सकता. इसलिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,’’ उस ने दोटूक जवाब दिया था.

वह दिनभर चुपचाप घर में पड़ा रहता था. घर के लोगों से भी ठीक से बात नहीं करता था. किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर भी नहीं जाता था. हर समय चिंता में डूबा रहता.

पहले छुट्टियों में पिता की दुकान संभालता था. अब पिता के कहने पर भी दुकान पर नहीं जाता था. उसे लगता था कि दुकान पर जाएगा तो महल्ले की लड़कियां उस पर छींटाकशी करेंगी तो वह बरदाश्त नहीं कर पाएगा.

इसी तरह घटना को 2 वर्ष बीत गए. इषिता ने ग्रैजुएशन कर ली. जौब की तलाश की, तो वह भी मिल गई. बैक में जौब मिली थी. पोस्टिंग मालदह में हुई थी.

जाते समय इषिता ने उस से कहा, कोलकाता से जाने की इच्छा तो नहीं है पर सवाल जिंदगी का है. जौब तो करनी ही पड़ेगी, पर 6-7 महीने में ट्रांसफर करा कर आ जाऊंगी. विश्वास है कि तब तक श्रेया को दिल से निकाल फेंकने में सफल हो जाओगे.

इषिता मालदह चली गई तो गौतम पहले से अधिक अवसाद में आ गया. तब उस के मातापिता ने उस की शादी करने का विचार किया.

मौका देख कर मां ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं कि इषिता सिर्फ तुम्हारी दोस्त है. इस के बावजूद यह जानना चाहती हूं कि यदि वह तुम्हें पसंद है तो बोलो, उस से शादी की बात करूं?’’

‘‘वह सिर्फ मेरी दोस्त है. हमेशा दोस्त ही रहेगी. रही शादी की बात, तो कभी किसी से भी शादी नहीं करूंगा. यदि किसी ने मुझ पर दबाव डाला तो घर छोड़ कर चला जाऊंगा.’’

गौतम ने अपना फैसला बता दिया तो मां और पापा ने उस से फिर कभी शादी के लिए नहीं कहा. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

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लेकिन एक दोस्त ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘श्रेया से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, यह अच्छी तरह जानते हो. फिर जिंदगी बरबाद क्यों कर रहे हो? किसी से विवाह कर लोगे तो पत्नी का प्यार पा कर अवश्य ही उसे भूल जाओगे.’’

‘‘जानता हूं कि तुम मेरे अच्छे दोस्त हो. इसलिए मेरे भविष्य की चिंता है. परंतु सचाई यह है कि श्रेया को भूल पाना मेरे वश की बात नहीं है.’’

दोस्त ने तरहतरह से समझाया. पर वह किसी से भी शादी करने के लिए राजी नहीं हुआ.

इषिता गौतम को सप्ताह में 2-3 दिन फोन अवश्य करती थी. वह उसे बताता था कि जल्दी ही श्रेया को भूल जाऊंगा. जबकि हकीकत कुछ और ही थी.

हकीकत यह थी कि इषिता के जाने के बाद उस ने कई बार श्रेया को फोन लगाया था. पर लगा नहीं था. घटना के बाद शायद उस ने अपना नंबर बदल लिया था.

न जाने क्यों उस से मिलने के लिए वह बहुत बेचैन था. समझ नहीं पा रहा था कि कैसे मिले. अंजाम की परवा किए बिना उस के घर जा कर मिलने को वह सोचने लगा था.

तभी एक दिन श्रेया का ही फोन आ गया. बहुत देर तक विश्वास नहीं हुआ कि उस का फोन है.

विश्वास हुआ, तो पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘तुम से मिल कर अपना हाल बताना चाहती हूं. आज शाम के 7 बजे साल्ट लेक मौल में आ सकते हो?’’ उधर से श्रेया ने कहा.

खुशी से लबालब हो कर गौतम समय से पहले ही मौल पहुंच गया. श्रेया समय पर आई. वह पहले से अधिक सुंदर दिखाई पड़ रही थी.

उस ने पूछा, ‘‘मेरी याद कभी आई थी?’’

‘‘तुम दिल से गई ही कब थीं जो याद आतीं. तुम तो मेरी धड़कन हो. कई बार फोन किया था, लगा नहीं था. लगता भी कैसे, तुम ने नंबर जो बदल लिया था.’’

उस का हाथ अपने हाथ में ले कर श्रेया बोली, ‘‘पहले तो उस दिन की घटना के लिए माफी चाहती हूं. मुझे इस का अनुमान नहीं था कि मेरे झूठ को पापा और भैया सच मान कर तुम्हारी पिटाई करा देंगे.

‘‘फिर कोई लफड़ा न हो जाए, इस डर से पापा ने मेरा मोबाइल ले लिया. अकेले घर से बाहर जाना बंद कर दिया गया.

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‘‘मुंबई से तुम्हें फोन करने की कोशिश की, परंतु तुम्हारा नंबर याद नहीं आया. याद आता तो कैसे? घटना के कारण सदमे में जो थी.

‘‘फिलहाल वहां ग्रैजुएशन करने के बाद 3 महीने पहले ही आई हूं. बहुत कोशिश करने पर तुम्हारे एक दोस्त से तुम्हारा नंबर मिला, तो तुम्हें फोन किया. मेरी सगाई हो गई है. 3 महीने बाद शादी हो जाएगी.

लाश को मिला नाम

पंचकूला के थाना मनसादेवी के पास सेक्टर-5 के निकट मजदूरों और कामगारों ने अपने रहने के लिए कच्चे झोपड़ीनुमा मकान बना रखे हैं. 27 अप्रैल, 2019 की सुबह 6 बजे इन्हीं झुग्गियों की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने झाडि़यों के बीच एक लाश से धुआं उठते देखा.

यह देखते ही महिलाएं उलटे पांव भागती हुई बस्ती में लौट आईं. उन्होंने शोर मचा कर यह बात सब को बताई. लाश के जलने की बात सुन कर बस्ती के लोग महिलाओं द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. उन्होंने भी वहां एक लाश से धुआं उठते देखा. लाश बुरी तरह झुलस चुकी थी.

इसी दौरान किसी ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन किया. चंडीगढ़ पुलिस कंट्रोलरूम ने घटना की सूचना संबंधित थाना मनीमाजरा को भेज दी. थोड़ी देर बाद थाना मनीमाजरा पुलिस मौके पर पहुंची तो उस ने बताया कि जिस जगह लाश पड़ी है, वह क्षेत्र हरियाणा के पंचकूला इलाके में आता है.

मनीमाजरा पुलिस ने यह खबर पंचकूला के थाना मनसादेवी को भेज दी. सूचना मिलने पर थाना मनसादेवी के एसएचओ विजय कुमार अपनी टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंच गए. साथ ही उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी दी.

कुछ ही देर में डीसीपी कमलदीप गोयल, एसीपी (क्राइम) नुपूर बिश्नोई, पंचकूला क्राइम इनवैस्टीगेशन एजेंसी के प्रभारी अमन कुमार फोरैंसिक टीम सहित मौके पर पहुंच गए. जिस लाश के बारे में सूचना दी गई थी, वह मनसादेवी कौंप्लेक्स, विश्वकर्मा मंदिर की बैक साइड पर थाना मनसादेवी से मात्र 500 मीटर की दूरी पर झाडि़यों में पड़ी थी.

पुलिस जब वहां पहुंची, तब भी शव से धुआं उठ रहा था. इस से पुलिस को लगा कि कुछ देर पहले ही शव में आग लगाई गई थी. वह लाश किसी युवती की थी. पुलिस ने मौके पर देखा कि उस के गले में फंदा लगा हुआ था. युवती की जीभ भी बाहर निकली हुई थी और टांगें पूरी तरह फैली हुई थीं. यह सब देख कर दुष्कर्म की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता था.

मौके पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने भी वहां से कुछ सबूत जुटाए. झाडि़यों पर पड़ी बोरी भी कब्जे में ले ली गई. पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आया कि युवती की किसी अन्य जगह पर गला घोंट कर हत्या करने के बाद शव को यहां ठिकाने लगाने की कोशिश की गई थी.

शिनाख्त जरूरी थी

झाडि़यों के पास कच्चे रास्ते पर किसी दोपहिया वाहन के टायरों के निशान भी मिले. ऐसा लगता था, युवती का शव किसी वाहन से वहां तक लाया गया होगा. पुलिस को लगा, जब हत्यारे शव लाए होंगे तो कहीं न कहीं किसी सीसीटीवी कैमरे में कैद जरूर हुए होंगे. युवती के शरीर पर घाव के कई निशान भी मिले.

बहरहाल, मनसादेवी थाना पुलिस ने घटनास्थल पर सब से पहले पहुंचे पीसीआर में तैनात हैडकांस्टेबल सतीश की सूचना पर हत्या और लाश को ठिकाने लगाने की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. शव को सेक्टर-6 जनरल अस्पताल की मोर्चरी में 72 घंटों के लिए सुरक्षित रखवा दिया गया.

लाश इतनी बुरी तरीके से जल चुकी थी कि उस की शिनाख्त करनी बहुत मुश्किल थी. पुलिस के सामने पहला अहम काम था शव की शिनाख्त कराना. उस के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था.

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. चंडीगढ़ पुलिस से भी घटनास्थल के रास्ते की तरफ आने वाले क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों को चैक करने की सहायता मांगी गई. इस काम में सीआईए, सेक्टर-19, क्राइम ब्रांच और कई थानों की टीमें लगी थीं.

मृतका के फोटो भी सभी थानों में भिजवा दिए गए थे और पिछले माह लापता हुई 20 से 30 साल की युवतियों के रिकौर्ड भी खंगाले गए. इस के अलावा अधजले शव की पहचान के लिए डीसीपी कमलदीप गोयल के आदेश पर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर की पुलिस को भी सूचना भेज दी गई.

सीआईए इंसपेक्टर अमन कुमार ने सीसीटीवी कैमरे में दिखने वाली एक कार के चालक को हिरासत में ले लिया था, लेकिन लंबी पूछताछ के बाद जब उस से हत्या के संबंध में कोई क्लू नहीं मिला तो उसे छोड़ दिया गया. वहीं मनसादेवी थाना पुलिस ने भी इस मामले में कई संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की, पर कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस इस मामले की हर पहलू से जांच कर रही थी.

कार चालक को सीआईए ने भले ही छोड़ दिया था, लेकिन उसे क्लीन चिट नहीं दी थी क्योंकि उस की काले रंग की अल्टो कार की लोकेशन आईटी पार्क से मनसादेवी कौंप्लेक्स के बीच रात एक से 3 बजे के बीच ट्रेस की गई थी.

पुलिस ने मृतका की शिनाख्त के लिए गलीगली में उस के पोस्टर लगवा दिए थे, इस के अलावा विभिन्न अखबारों, लोकल टीवी चैनलों पर भी उस की फोटो दिखाई गई थी. इस का नतीजा यह निकला कि लाश मिलने के 2 दिन बाद अखबार से खबर पढ़ कर इंदिरा कालोनी निवासी लल्लन प्रसाद थाना मनसादेवी पहुंच गया. उस ने एसएचओ से कहा, ‘‘साहब, अखबार में जो अधजली लाश बरामद होने की खबर छपी है, वह लाश मेरी बेटी गुरप्रीत की है.’’

लल्लन की बात सुन कर एसएचओ ने उस से पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है?’’

‘‘हां साहब, मुझे शक नहीं विश्वास है कि यह काम मेरी बेटी के प्रेमी ने किया होगा.’’ लल्लन ने फूटफूट कर रोते हुए यह बात पुलिस को बताई.

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लल्लन ने बताया कि उस की बेटी गुरप्रीत नौवीं कक्षा में पढ़ती थी. उस का प्रेम प्रसंग इंदिरा कालोनी के ही रहने वाले एक लड़के से चल रहा था. वह लड़का दूसरी बिरादरी का था, इसलिए हम ने अपनी बेटी को समझाया और जब वह नहीं मानी तो हम ने 2 महीने पहले उस की मंगनी अपनी रिश्तेदारी के एक लड़के के साथ तय कर दी थी.

वह 23 मार्च, 2019 को सुबह 8 बजे स्कूल जाने के लिए घर से निकली थी. लेकिन शाम तक नहीं लौटी. हम ने भी इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि गुरप्रीत इस से पहले भी अपने प्रेमी के साथ घर से चोरीछिपे कई बार जा चुकी थी. लेकिन 1-2 दिन बाद वह अपने आप ही घर लौट आती थी. उन्हें उम्मीद थी कि इस बार भी वह 1-2 दिन में लौट आएगी. पर इस बार ऐसा नहीं हुआ.

जब 2 दिन तक वह घर नहीं लौटी तो हम ने पहले तो रिश्तेदारी में बेटी की तलाश की, लेकिन जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो चंडीगढ़ के मनीमाजरा थाने में उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी. वह तो नहीं मिली लेकिन इस बार उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

हालांकि पहले तो पुलिस ने उस की बातों पर विश्वास नहीं किया, लेकिन जब युवती की फोटो सीआईए प्रभारी के पास पहुंची तो वह भी दंग रह गए.

पहचान ली गई लाश

उन्होंने तुरंत वह फोटो मनसादेवी थानाप्रभारी को भेजी और दावा करने वाले व्यक्ति को एसएचओ विजय कुमार के पास भेज दिया. विजय कुमार ने उसे मोर्चरी में रखी झुलसी हुई लाश को पहचानने के लिए अस्पताल चलने को कहा. इस पर लल्लन अपनी पत्नी प्रभा के साथ अस्पताल पहुंच गया.

दोनों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई दी तो लल्लन प्रसाद और उस की पत्नी प्रभा ने लाश को पहचान कर उस की शिनाख्त अपनी बेटी गुरप्रीत के रूप में की. अखबारों से मिली जानकारी के बाद उसी दिन अधजले शव की पहचान के लिए अस्पताल में 60 से अधिक लोग पहुंचे थे, जिस में ट्राइसिटी के अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर आदि जगहों के लोग भी शामिल थे, जिन की बेटियां, पत्नियां पिछले कुछ महीनों से लापता थीं. लेकिन शव की शिनाख्त उन में से किसी ने भी नहीं की थी.

30 अप्रैल, 2019 को डाक्टरों के पैनल ने लाश का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि मृतका की हत्या गला घोंट कर की गई थी और उस के पेट में चाकू से 3 वार भी किए गए थे. महिला 5 माह की गर्भवती थी. अंत में कागजी काररवाई करने के बाद उस की लाश लल्लन के हवाले कर दी गई थी. उसी दिन उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया था.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस को अब लल्लन की बेटी के हत्यारों और हत्या के कारण का पता लगाना था. इस के पहले कि इस मामले में पुलिस आगे कुछ कर पाती, अगले दिन दिनांक 30 अप्रैल को कहानी में एक नया मोड़ आ गया.

कहानी में आया नया मोड़

इस ट्विस्ट से पंचकूला पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. लल्लन अपनी जिस बेटी गुरप्रीत का अंतिम संस्कार कर चुका था, वही गुरप्रीत अपने गायब होने के करीब 38 दिनों बाद 30 अप्रैल को रात करीब 9 बजे आईटी थाने में अचानक पहुंच गई. उस ने पुलिस को बताया कि मैं जिंदा हूं, मेरे प्रेमी को बेवजह मेरी हत्या के आरोप में फंसाया जा रहा है. इस में मेरे पिता की कोई चाल हो सकती है. गुरप्रीत ने बताया कि वह जहां भी गई थी, अपनी मरजी से गई थी. जब उस ने समाचारपत्रों में अपनी हत्या की खबर पढ़ी तो वह हैरान रह गई. इसलिए सच्चाई बताने के लिए वह सीधे थाने चली आई.

आईटी थानाप्रभारी लखबीर सिंह ने इस बात की सूचना एसएचओ मनसादेवी को देने के बाद देर रात तक गुरप्रीत से पूछताछ की. अगले दिन यानी पहली मई को उस का मैडिकल करवाने के बाद उसे सिटी मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर उस का इकबालिया बयान दर्ज करवाया.

एसएचओ मनसादेवी विजय कुमार ने जब लल्लन और उस की पत्नी प्रभा को थाने बुला कर इस बारे में पूछा तो वह गिड़गिड़ा कर कहने लगा, ‘‘साहब, आप ने लाश और उस के जो फोटो हमें दिखाए थे, उस के नाक और कान मेरी बेटी से बिलकुल मिलते थे. इसीलिए हम ने उसे अपनी बेटी की लाश समझा.’’

लल्लन तो इतनी बात कह कर बच निकला पर पंचकूला पुलिस को इस मामले से बचना इतना आसान नहीं था. उस की खिल्ली उड़ रही थी. बहरहाल, गुरप्रीत के लौट आने से लल्लन और चंडीगढ़ पुलिस ने तो चैन की सांस ली पर पंचकूला पुलिस की मुश्किलें बढ़ गई थीं.

लल्लन के गलत शिनाख्त करने के बाद पुलिस ने मृतका को गुरप्रीत मान कर उस का अंतिम संस्कार करवा दिया था और आस लगाए बैठी थी कि लाश की शिनाख्त हो गई है तो उस के हत्यारे भी जल्द पकड़े जाएंगे, पर नए हालात में पुलिस के हाथ खाली थे.

पुलिस एक ऐसी अंधेरी खाई में घुस चुकी थी, जहां से जल्दी निकलना संभव नहीं था. न तो पुलिस के पास मृतका के बारे में कोई जानकारी थी और न हत्यारों का कोई सुराग. कुल मिला कर पुलिस को इस ब्लाइंड केस को सुलझाने के लिए नए सिरे से तहकीकात करनी थी. क्योंकि मृतका गर्भवती थी, इसलिए पुलिस अब इसे औनर किलिंग के एंगल से भी देख रही थी.

दूसरी ओर लल्लन की बेटी के वापस आने से उस के तथाकथित प्रेमी की मां ताज ने अपने रिश्तेदारों और मोहल्ले वालों के साथ थाने जा कर हंगामा खड़ा कर दिया और थाने में बैठे लल्लन और उस की पत्नी प्रभा को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘मैं कहती थी न कि मेरा बेटा ऐसा कभी नहीं कर सकता, वह गुरप्रीत से सच्ची मोहब्बत करता है, उस की हत्या नहीं कर सकता. लल्लन और उस के परिवार ने पुरानी रंजिश निकालने के  लिए मेरे बेटे को फंसाने की कोशिश की है.’’

आखिर लाश की हो गई शिनाख्त

अब थाना मनसादेवी पुलिस इस की जांच करने में जुट गई कि आखिर वह युवती कौन थी, जिस का अंतिम संस्कार लल्लन ने अपनी बेटी गुरप्रीत जान कर किया. थोड़ी कोशिश के बाद मनसादेवी पुलिस को मृतका के बारे में एक छोटी सी जानकारी मिली.

पता चला कि वह लाश सूरजपुर की रहने वाली किसी युवती की थी. पुलिस जब सूरजपुर पहुंची तो वहां मृतका का पिता ऋषिपाल मिला. मनसादेवी पुलिस ने ऋषिपाल से बात की तो उस ने बताया कि उस की बेटी आरती 26 अप्रैल की रात से लापता है. उस ने पुलिस में गुमशुदगी दर्ज करा दी है.

इस बार पुलिस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पुलिस ने युवती की झुलसी हुई लाश के जो सैंपल सुरक्षित रखे हुए थे, उन से ऋषिपाल का डीएनए मैच करवा कर देखा तो वह मिल गया. इस से यह बात भी साबित हो गई कि मृतका ऋषिपाल की ही बेटी थी. अब इस बात की पुष्टि हो गई कि वह अधजला शव ऋषिपाल की 28 वर्षीय बेटी सुनीता उर्फ आरती का था.

सुनीता शादीशुदा महिला थी. उस की 11 साल की एक बेटी भी है. सुनीता की शादी लगभग 12 साल पहले हुई थी. पिछले 3-4 सालों से उस की अपने पति से अनबन चल रही थी, जिस कारण वह अपने मातापिता और भाईभाभी के साथ सूरजपुर में ही रह रही थी.

पुलिस ने मृतका के परिजनों से उस का मोबाइल नंबर ले कर उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की. उस में एक ऐसा नंबर हाथ लगा, जिस से मृतका की घंटों तक बातें हुआ करती थीं. वह नंबर चेक टाउन के रहने वाले 26 वर्षीय आनंद नाम के युवक का था.

पुलिस ने आनंद के नंबर की जांच की तो 27 अप्रैल, 2019 को उस के फोन की लोकेशन भी उसी जगह की मिली, जहां सुनीता उर्फ आरती की झुलसी हुई लाश मिली थी. सारे सबूत मिल जाने के बाद 3 मई, 2019 को सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर अमन कुमार ने अपनी टीम के साथ मनीमाजरा, पीपली से आनंद और उस के छोटे भाई आजाद को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के दौरान आनंद ने बिना कोई नौटंकी किए अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने ही सुनीता उर्फ आरती की हत्या की थी, क्योंकि वह उसे शादी करने के लिए ब्लैकमेल कर रही थी.

हालांकि बाद में ब्लैकमेल वाली बात झूठी साबित हुई थी. बहरहाल, उसी दिन डीएसपी कमल गोयल ने प्रैसवार्ता कर इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया था. अगले दिन आनंद और आजाद को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान की गई विस्तृत पूछताछ में इस हत्याकांड की कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई.

जिस प्रकार मृतका सुनीता उर्फ आरती का अपने पति से विवाद चल रहा था और वह अपनी बेटी के साथ अपने भाई के घर अकेली रह रही थी, ठीक उसी तरह से आनंद भी अपनी पत्नी के साथ विवाद के चलते अकेला अपने मांबाप के साथ रह रहा था.

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आज से लगभग 9 महीने पहले सुनीता अपनी भाभी के साथ किसी शादी में जाने के लिए लहंगा खरीदने सेक्टर-19 की मार्केट स्थित एक शोरूम में गई थी. आनंद भी उसी शोरूम पर काम करता था. यहीं दोनों की पहली मुलाकात हुई थी और पहली नजर में ही दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. दोनों ने अपनेअपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए थे और अकसर रात को फोन पर घंटों बातें किया करते थे.

अकेले रहने के कारण दोनों देहसुख पाने के लिए तड़प रहे थे. सो इस के बाद दोनों के बीच संबंध बन गए थे. पहले तो दोनों बाहर कहीं होटल आदि में मिल कर अपनी प्यास बुझा लिया करते थे, लेकिन बाद में मृतका आनंद के घर पीपली टाउन जाने लगी थी.

वैसे इन दोनों के संबंधों का दोनों के घर वालों को पता था. उन दोनों के बीच सब ठीकठाक ही चल रहा था. दोनों खुश भी थे और आपस में शादी कर लेना चाहते थे.

एक दिन अचानक सुनीता को पता चला कि वह गर्भवती हो गई है तो उस ने यह बात आनंद को बताते हुए कहा कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है और अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. आनंद को यह बात अच्छी नहीं लगी. उस ने बात टालते हुए कहा, ‘‘इस बारे में बाद में बात करेंगे.’’

सुनीता को उस का यह रूखा व्यवहार अच्छा नहीं लगा. कहां तो उस ने सोचा था कि बच्चे वाली बात सुन कर आनंद खुश हो जाएगा, लेकिन यहां तो बात उलटी ही निकली. बच्चे की बात को ले कर दोनों के बीच तनाव पैदा हो गया था. आरती जब भी आनंद से शादी की बात करती तो वह टाल देता था. इसी तरह तनाव भरे माहौल में समय बीतता गया और आरती के पेट में पल रहा बच्चा 5 माह का हो गया था.

अब तो आरती के शरीर में भी परिवर्तन आ गया था. दूसरी ओर आनंद शादी से साफ इनकार करने लगा था. दरअसल आनंद शुरू से ही शादीवादी के लिए तैयार नहीं था. वह बस मुफ्त में मजे लेने के पक्ष में था. उस का कहना था कि हम दोनों केवल अपनेअपने शरीर की जरूरतें पूरी करते हैं. जबकि सुनीता इस मामले में गंभीर थी.

छली गई थी सुनीता

आनंद हर समय सुनीता पर इस बात का दबाव डालता था कि वह अबार्शन करवा कर इस मुसीबत से छुटकारा पा ले. एक दिन तो शादी को ले कर हो रही बहस के दौरान उस ने आरती से यहां तक कह दिया, ‘‘मैं कैसे मान लूं कि यह बच्चा मेरा ही है. क्या पता मेरे अलावा तुम्हारे संबंध न जाने किनकिन लोगों के साथ होंगे.’’

यह बात आरती को बहुत बुरी लगी. इस बात को ले कर दोनों में काफी नोकझोंक हुई. आनंद सुनीता से अपना पीछा छुड़ाने की पहले से ही योजना बना चुका था. अब उसे अपनी योजना को अमली जामा पहनाना था. 26 अप्रैल को दोनों की फोन पर शादी वाली बात को ले कर काफी बहस हुई. अंत में आनंद ने उसे रात 8 बजे घर पर मिलने के लिए बुलाया.

जब सुनीता वहां पहुंची तो आनंद के साथ उस का छोटा भाई आजाद भी था. आनंद ने फिर से उसे गर्भपात कराने के लिए कहा, जबकि सुनीता किसी भी कीमत पर गर्भपात कराने के लिए तैयार नहीं थी. वह अपनी बात पर अड़ी थी. इसे ले कर आनंद और सुनीता के बीच झगड़ा हो गया.

आनंद ने सुनीता पर अबार्शन का दबाव बनाने के लिए गुस्से में आ कर कई थप्पड़ मारे. इस पर सुनीता ने गुस्से में आ कर अपना गला अपनी चुन्नी से दबा लिया, जिस से वह बेहोश हो कर जमीन पर पड़ी थी. तभी दोनों भाइयों ने वह चुन्नी और खींच दी, जिस से उस का गला घुटने से मौत हो गई और उस की जीभ भी बाहर निकल आई. इस के बाद आनंद ने चाकू से पेट और आसपास के हिस्से में 3 वार किए.

हत्या करने के बाद दोनों भाइयों ने सुनीता के शव को जूट की बोरी में डाला और लाश को सुनीता की ही एक्टिवा पर अगले हिस्से में रख लिया. मनीमाजरा से चल कर दोनों भाई मनसादेवी थाने के क्षेत्र में पहुंचे, जहां उन्होंने सुनीता का शव झाडि़यों में डाल दिया. वहां घुप्प अंधेरा था और जगह भी एकदम सुनसान थी.

लाश को ठिकाने लगाने के लिए उन्हें यह जगह ठीक लगी. इस के बाद दोनों भाई मनीमाजरा स्थित पैट्रोल पंप पर पहुंचे, जहां उन्होंने एक्टिवा की टंकी फुल करवाई और वापस लाश के पास पहुंच गए.

एक्टिवा की टंकी से पैट्रोल निकाल कर उन्होंने लाश पर छिड़का और आग लगा कर वहां से अपने घर चले आए. यह बात 26-27 अप्रैल की रात की है. हालांकि आरोपियों ने अपनी तरफ से हत्या का कोई सबूत नहीं छोड़ा था, फिर भी पुलिस मोबाइल डिटेल्स के सहारे दोनों हत्यारोपियों तक पहुंच ही गई.

दोनों भाइयों से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि के दौरान सीआईए पुलिस ने मृतका की एक्टिवा और हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. मामले की तफ्तीश चल रही है. पुलिस महिला की हत्या के आरोपी आनंद और आजाद को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है.

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पुलिस को संदेह है कि इस हत्याकांड में कोई और भी शामिल हो सकता है. पुलिस सभी पहलुओं पर जांच कर रही है. इस के अलावा पुलिस यह भी जांच कर रही है कि 38 दिनों तक गुरप्रीत आखिर कहां और किस के साथ रही थी.

कहानी सौजन्य:  मनोहर कहानी

परिवर्तन : शिव आखिर क्यों था शर्मिंदा

शेव बनाते हुए शिव सहाय ने एक उड़ती नजर पत्नी पर डाली. उसे उस का बेडौल शरीर और फैलता हुआ सा लगा. वह नौकरानी को धुले कपड़े अच्छी तरह निचोड़ कर सुखाने का आदेश दे रही थी. उस ने खुद अपनी साड़ी झाड़ कर बताई तो उस का थुलथुल शरीर बुरी तरह हिल गया, सांस फूलने से स्थिति और भी बदतर हो गई, और वह पास पड़ी कुरसी पर ढह सी गई.

क्या ढोल गले बांध दिया है उस के मांबाप ने. उस ने उस के जन्मदाताओं को मन ही मन धिक्कारा-क्या मेरी शादी ऐसी ही औरत से होनी थी, मूर्ख, बेडौल, भद्दी सी औरत. गोरी चमड़ी ही तो सबकुछ नहीं.
‘तुम क्या हो?’ वह दिन में कई बार पत्नी को ताने देता, बातबात में लताड़ता, ‘जरा भी शऊर नहीं, घरद्वार कैसे सजातेसंवारते हैं? साथ ले जाने के काबिल तो हो ही नहीं. जबतब दोस्तयार घर आते हैं तो कैसी शर्मिंदगी उठानी पड़ती है.’

जब देखो सिरदर्द, माथे पर जकड़ कर बांधा कपड़ा, सूखे गाल और भूरी आंखें. उस के प्रति शिव सहाय की घृणा कुछ और बढ़ गई. उस ने सामने लगी कलाकृतियों को देखा.

वार्निश के डब्बों और ब्रशों पर सरसरी निगाह डाली. बिजली की फिटिंग के सामान को निहारा. कुछ देर में मिस्त्री, मैकेनिक सभी आ कर अपना काम शुरू कर देंगे. उस ने बेरहमी से घर की सभी पुरानी वस्तुओं को बदल कर एकांत के उपेक्षित स्थान में डलवा दिया था.

क्या इस औरत से भी छुटकारा पाया जा सकता है? मन में इस विचार के आते ही वह स्वयं सिहर उठा.

42 वर्ष की उम्र के करीब पहुंची उस की पत्नी कमला कई रोगों से घिर गई थी. दवादारू जान के साथ लगी थी. फिर भी वह उसे सब तरह से खुश रखने का प्रयत्न करती लेकिन उन्नति की ऊंचाइयों को छूता उस का पति उसे प्रताडि़त करने में कसर नहीं छोड़ता. अपनी कम्मो (कमला) के हर काम में उसे फूहड़पन नजर आता. सोचता, ‘क्या मिला इस से, 2 बेटियां थीं जो अब अपना घरबार बसा चुकी हैं. बाढ़ के पानी की तरह बढ़ती दौलत किस काम आएगी? 58 वर्ष की उम्र में वह आज भी कितना दिलकश और चुस्तदुरुस्त है.

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कुरसी पर निढाल सी हांफती पड़ी पत्नी के रंगे बाल धूप में एकदम लाल दिखाई दे रहे थे. वह झल्लाता हुआ बाथरूम में घुस गया और देर तक लंबे टब में पड़ा रहा. पानी में गुलाब की पंखडि़यां तैर रही थीं. हलके गरम, खुशबूदार पानी में निश्चल पड़े रहना उस का शौक था.

कमला उस के हावभाव से समझ गई कि वह खफा है. उस ने खुद को संभाला और कमरे में आ कर दवा की पुडि़या मुंह में डाल ली.

बड़ी बेटी का बच्चा वैभव, उस ने अपने पास ही रख लिया था. बस, उस ने अपने इस लाड़ले के बचपन में अपने को जैसे डुबो लिया था. नहीं तो नौकरों से सहेजी इस आलीशान कोठी में उस की राहत के लिए क्या था? ढाई दशकों से अधिक समय से पत्नी के लिए, धनदौलत का गुलाम पति निरंतर अजनबी होता गया था. क्या यह यों ही आ गई? 18 वर्ष की मोहिनी सी गोलमटोल कमला जब ससुराल में आई थी तो क्या था यहां?

तीनमंजिले पर किराए का एक कमरा, एक बालकनी और थोड़ी सी खुली जगह थी. ससुर शादी के 2 वर्षों पहले ही दिवंगत हो चुके थे. घर में थीं जोड़ों के दर्द से पीडि़त वृद्धा सास और 2 छोटी ननदें.
पिता की घड़ीसाजी की छोटी सी दुकान थी, जो पिता के बाद शिव सहाय को संभालनी पड़ी, जिस में मामूली सी आय थी और खर्च लंबेचौड़े थे. उस लंबे से कमरे में एक ओर टीन की छत वाली छोटी सी रसोई थी.

दूसरी ओर, एक किनारे परदा डाल कर नवदंपती के लिए जगह बनाई गई थी. पीछे की ओर एक अलमारी और एक दीवारघड़ी थी. यही था उस का सामान रखने का स्थान. दिन में परदा हटा दिया जाता. शैय्या पर ननदें उछलतीकूदती अपनी भाभी का तेलफुलेल इस्तेमाल करने की फिराक में रहतीं.
कमला मुंहअंधेरे रसोई में जुट जाती. बच्चों को स्कूल जाना होता था, और पति को दुकान. जल्दी ही वह भी एक प्यारी सी बच्ची की मां बन गई

शुरू में शिव सहाय अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था. उसे लगता, उस की उजलीगुलाबी आभा लिए पत्नी कम्मो गृहस्थी की चक्की में पिसती हुई बेहद कमजोर और धूमिल होती जा रही है. रात को वह उस के लिए कभी रबड़ी ले आता तो कभी खोए की मिठाई.
कमला का आगमन इस परिवार के लिए समृद्धि लाने वाला सिद्ध हुआ. दुकान की सीमित आय धीरेधीरे बढ़ने लगी.

कमला ने पति को सलाह दी कि वह दुकान में बेचने के लिए नई घडि़यां भी रखे, केवल पुरानी घडि़यों की मरम्मत करना ही काफी नहीं है. चुपके से उस ने पति को अपने कड़े और गले की जंजीर बेचने के लिए दे दीं ताकि वह नई घडि़यां ला सके. इस से उस की आय बढ़ने लगी. काम चल निकला.

किसी कारण से पास का दुकानदार अपनी दुकान और जमीन का एक टुकड़ा उस के हाथों सस्ते दामों में बेच कर चला गया. दुकान के बीच का पार्टीशन निकल जाने से दुकान बड़ी हो गई. उस की विश्वसनीयता और ख्याति तेजी से बढ़ी. घड़ी के ग्राहक दूरपास से उस की दुकान पर आने लगे. मौडर्न वाच शौप का नाम शहर में नामीगिरामी हो गया.

मौडर्न वाच शौप से अब उसे मौडर्न वौच कंपनी बनाने की धुन सवार हुई. उस के धन और प्रयत्न से घड़ी बनाने का कारखाना खुला, बढि़या कारीगर आए. फिर बढ़ती आमदनी से घर का कायापलट हो गया. बढि़या कोठी, एंबेसेडर कारें और सभी आधुनिक साजोसामान.

बस पुरानी थी, तो पत्नी कमला. दौलत को वह अपने प्रयत्नों का प्रतिफल समझने लगा. लेकिन दिल के किसी कोने में उसे कमला के त्याग व सहयोग की याद भी उजागर हो जाती. अभावों की दुनिया में जीते उस के परिवार और उसे, आखिर इसी औरत ने तो संभाल लिया था. उस ने खुद भी क्याकुछ नहीं किया, घर सोनेचांदी से भर दिया है. इस बदहाल औरत के लिए रातदिन डाक्टर को फोन खटखटाते, मोटे बिल भरते खूबसूरत जिंदगी गंवा रहा है.

यदाकदा उस के मन में तूफान सा उठने लगता, वह अर्द्ध बीमार सी पत्नी पर गालियों की बौछार कर देता. कितनी सीधी और शांत औरत है. किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं. बस, एक मुसकान चिपकाए खाली सा चेहरा और उस की सुखसुविधाओं का ध्यान.

गृहस्थी की गाड़ी यों ही हिचकोले खाती चल रही थी. कभीकभी एक दुष्ट विचार उस के मन में गहरा जाता. काश, कोई अच्छी सी पत्नी आ सकती इस घर में. पर नई गृहस्थी बसाने की बात क्या सोची भी जा सकती है? वह नाना बन चुका है. नवासा 21 वर्ष का होने को आया. इंजीनियर बनने में कुल 2 साल ही तो शेष हैं. वही तो संभालेगा उस का फलताफूलता धंधा. रिश्ते के लिए अभी से लोग चक्कर लगाने लगे हैं. ऊपर की मंजिल उस के लिए तैयार कराई गई है, उस का एअरकंडीशंड बैडरूम और अनोखी साजसज्जा का ड्राइंगरूम. उस के लिए पत्नी के चुनाव के बारे में वह बहुत सजग है.

नाश्ते की मेज पर बैठा वह पत्नी से वैभव के संबंध के बारे में सलाहमशवरा करना चाहता था लेकिन आज वह और भी पुरानी व बीमार दिखाई दे रही थी. उस की मेज की दराज में अनेक फोटो और पत्र वैभव के संबंध में आए पड़े हैं. लेकिन क्या इस फूहड़ स्त्री से ऐसे नाजुक प्रसंग को छेड़ा जा सकता है?

वह कुछ देर तक चुप बैठा ब्रैड के स्लाइस का टुकड़ा कुतरता रहा. मन ही मन अपनेआप पर झुंझलाता रहा. न जाने क्यों व्यर्थ का आवेश उस की आदत बन चुकी है. उस की दरिद्रता के दिनों की साथी, उस की सहायिका ही नहीं, अर्द्धांगिनी भी, न जाने क्यों आज उस के लिए बेमानी हो चुकी है? कभीकभी अपनी सोच पर वह बेहद शर्मिंदा भी होता.

कमला को पति की भारी डाक देखने तक में कोई रुचि नहीं थी. नौकर गेट पर लगे लैटरबौक्स से डाक निकाल कर अपने साहब की मेज पर रख आता था. लेकिन आज नाश्ते के बाद बाहर टंगे झूले पर बैठी कमला ने पोस्टमैन से डाक ले कर झूले के हत्थे पर रख लिया.

2-3 मोटे लिफाफे झट से नीचे गिर पड़े. उस ने उन्हें उठाया तो उसे लगा लिफाफों में चिट्ठी के साथ फोटो भी हैं. सोचने लगी, किस के फोटो होंगे? उस ने उन्हें उलटापलटा, तो कम चिपका एक लिफाफा यों ही खुल गया. एक कमसिन सी लड़की की फोटो उस में से झांक रही थी. उस ने पत्र पढ़ा. वैभव के रिश्ते की बात लिखी थी. तो यह बात है, चुपचाप बहू लाने की योजना चल रही है. और उसे कानोंकान खबर तक नहीं.

क्या हूं मैं, केवल एक धाय मात्र? उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. सदा से सब की झिड़कियां खाती आई हूं. पहले सास की सुनती रही. उन से डरडर कर जीती रही. यहां तक कि छोटी ननदें भी जो चाहतीं, कह लेती थीं. उसे सब की सहने की आदत पड़ गई है. उस की अपनी बेटियां भी उस की परवा नहीं करतीं और अब यह व्यक्ति, जो कहने को पति है, उसे निरंतर तिरस्कृत करता रहता है.

आखिर क्या दोष है उस का? कल घर में धेवते की बहू आएगी तो क्या समझेगी उसे? घर की मालकिन या कोने में पड़ी एक दासी? उस की दशा क्या होगी? उस की आज जो हालत है उस का जिम्मेदार कौन है? क्यों डरती है वह हर किसी से?

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उस के पति ने भी कभी उस के रूप की सराहना की थी. उसे प्यार से दुलराया था. छाती से चिपटा कर रातें बिताई थीं. अब वह एक खाली ढोल हो कर रह गई है.

साजसज्जा की सामग्री से अलमारियां भरी हैं. साडि़यों और सूटों से वार्डरोब भरे पड़े हैं. लेकिन इस बीमार थुलथुल देह पर कुछ सोहता ही नहीं.

कम्मो झूले से उठ खड़ी हुई और ड्रैसिंग मेज पर जा कर खुद को निहारने लगी. क्या इस देह में अब भी कुछ शेष है? उसे लगा, उस के अंदर से एक धीमी सी आवाज आ रही है, ‘कम्मो, अपनी स्थिति के लिए केवल तू ही जिम्मेदार है. तू अपने पति की उन्नति में सहायक बनी लेकिन उस की साथी नहीं बनी. वह ऊंचाइयां छूता गया और तू जमीन का जर्रा बनती गई. वह आधी रात को घर में घुसा, तू ने कभी पूछा तक नहीं. बस, उस के स्वागत में आंखें बिछाए रही.’

उस की इच्छा हुई वह भी आज गुलाब की पंखडि़यों में नहाए. उस ने बाथरूम के लंबे टब में गुलाब की पंखडि़यां भर दीं, गीजर औन कर दिया. गरम फुहारों से टब लबालब भर गया तो उस में जा कर लेटी रही. उस में से कुछ समय बाद निकली तो काफी हलका महसूस कर रही थी. आज उस ने अपनी मनपसंद साड़ी पहनी और हलका मेकअप किया.

अब वह जिएगी तो अपने लिए, कोई परवा करे या न करे. एक आत्मविश्वास से वह खिलने लगी थी. स्नान के बाद ऊपर जा कर धूप में जाने की इच्छा उस में प्रबल हो उठी, लेकिन एक अरसे से वह सीढि़यां नहीं चढ़ी थी. घर की ड्योढ़ी लांघती तो उस की सांस बेकाबू हो जाती है, फिर इतनी अधिक सीढि़यां कैसी चढ़ेगी? फिर भी, आज उसे स्वयं को रोक पाना असंभव था. उस ने धीरेधीरे 3-4 सीढि़यां चढ़ीं, तो सांस ऊपरनीचे होने लगी.

वह बैठ गई. सामान्य होने पर फिर चढ़ने लगी. कुछ समय बाद वह छत पर थी. नीले आसमान में सूर्य चमक रहा था. उसे अच्छा लगा. वह आराम से झुक कर सीधी हो सकती है. बिना कष्ट के उस ने आगेपीछे, फिर दाएंबाएं होने का यत्न किया तो एक लचक सी शरीर में दौड़ गई. तत्पश्चात थोड़ी देर बाद वह बिना किसी परेशानी के नीचे उतर आई.

रसोई में रसोइया खाना बनाने की तैयारी कर रहा था. कमला काफी समय से वहां नहीं झांकी थी. नंदू पूछता, ‘क्या बनेगा’ तो बेमन से कह देती, ‘साहब की पसंद तू जानता ही है.’ पुराना नौकर मालिकों की आदतें जान गया था. इसलिए बिना अधिक कुछ कहे वह उन के लिए विभिन्न व्यंजन बना लेता. समय पर नाश्ता और खाना डायनिंग टेबल पर पहुंच जाता. घी, मसालों में सराबोर सब्जियां, चावल, रायता, दाल, सलाद सभी कुछ. कमला तो बस 2-4 कौर ही मुंह में डालती थी, पर फिर भी काया फूलती ही गई. उस का यही बेडौल शरीर ही तो उसे पति से दूर कर गया है.

कमला नीचे आई तो रसोईघर में घुस गई. उसे आज स्वयं भोजन बनाने की इच्छा थी. कमला ने हरी सब्जियां छांट कर निकालीं, फिर स्वयं ही छीलकाट कर चूल्हे पर रख दीं. आज से वह उबली सब्जियां खाएगी.

शिव सहाय कुछ दिनों के लिए बाहर गया था. कमला एक तृप्ति और आजादी महसूस कर रही थी. आज की सी जीवनचर्या को वह लगातार अपनाने लगी. शारीरिक श्रम की गति और अधिक कर दी. उसे खुद ही समझ में नहीं आया कि अब तक उस ने न जाने क्यों शरीर के प्रति इतनी लापरवाही बरती और मन में क्यों एक उदासी ओढ़ ली.

शिव सहाय दौरे से वापस आया और बिना कमला की ओर ध्यान दिए अपने कामों में व्यस्त हो गया. पतिपत्नी में कईकई दिनों तक बातचीत तक नहीं होती थी.

शिव सहाय कामकाज के बाद ड्राइंगरूम की सामने वाली कुरसी पर आंख मूंद कर बैठा था. एकाएक निगाह उठी तो पाया, एक सुडौल नारी लौन में टहल रही है. उस का गौर पृष्ठभाग आकर्षक था. कौन है यह? चालढाल परिचित सी लगी. वह मुड़ी तो शिव सहाय आश्चर्य से निहारता रह गया. कमला में यह परिवर्तन, एक स्फूर्तिमय प्रौढ़ा नारी की गरिमा. वह उठ कर बाहर आया, बोला, ‘‘कम्मो, तुम हो, मैं तो समझा था…’’

कम्मो ने मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘क्या समझा आप ने कि कोई सुंदरी आप से मिलने के इंतजार में टहल रही है?’’

शिव सहाय ने बोलने का और मौका न दे कम्मो को अपनी ओर खींच कर सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी बहुत उपेक्षा की है मैं ने. पर यकीन करो, अब भूल कर भी ऐसा नहीं होगा. आखिर मेरी जीवनसहचरी हो तुम.’’ कम्मो का मन खुशी से बांसों उछल रहा था वर्षों बाद पति का वही पुराना रूप देख कर. वही प्यार पा कर उस ने निर्णय ले लिया कि अब इस शरीर को कभी बेडौल नहीं होने देगी, सजसंवर कर रहेगी और पति के दिल पर राज करेगी.

वैभव की शादी के लिए वधू का चयन दोनों की सहमति से हुआ. निमंत्रणपत्र रिश्तेदारों और परिचितों में बांटे गए. शादी की धूम निराली थी.

सज्जित कोठी से लंबेचौड़े शामियाने तक का मार्ग लहराती सुनहरी, रुपहली महराबों और रंगीन रोशनियों से चमचमा रहा था. स्टेज पर नाचरंग की महफिल जमी थी तो दूसरी ओर स्वादिष्ठ व्यंजनों की बहार थी. अतिथि मनपसंद पेय पदार्थों का आनंद ले कर आते और महफिल में शामिल हो जाते.

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आज कमला ने भी जम कर शृंगार किया था. वह अपने अनूठे सौंदर्य में अलग ही दमक रही थी. कीमती साड़ी और कंधे पर सुंदर पर्र्स लटकाए वह इष्टमित्रों की बधाई व सौगात ग्रहण कर रही थी. वह थिरकते कदमों से महफिल की ताल में ताल मिला रही थी.

लोगों ने शिव सहाय को भी साथ खींच लिया. फिर क्या था, दोनों की जोड़ी ने वैभव और नगीने सी दमकती नववधू को भी साथ ले लिया. अजब समां बंधा था. कल की उदास और मुरझाई कमला आज समृद्धि और स्वास्थ्य की लालिमा से भरपूर दिखाई दे रही थी. ऐसा लग रहा था मानो आज वह शिव सहाय के घर और हृदय पर राज करने वाली पत्नी ही नहीं, उस की स्वामिनी बन गई थी.

और सीता जीत गई

बीच में एक छोटी सी रात है और कल सुबह 10-11 बजे तक राकेश जमानत पर छूट कर आ जाएगा. झोंपड़ी में उस की पत्नी कविता लेटी हुई थी. पास में दोनों छोटी बेटियां बेसुध सो रही थीं. पूरे 22 महीने बाद राकेश जेल से छूट कर जमानत पर आने वाला है.

जितनी बार भी कविता राकेश से जेल में मिलने गई, पुलिस वालों ने हमेशा उस से पचाससौ रुपए की रिश्वत ली. वह राकेश के लिए बीड़ी, माचिस और कभीकभार नमकीन का पैकेट ले कर जाती, तो उसे देने के लिए पुलिस उस से अलग से रुपए वसूल करती.

ये 22 महीने कविता ने बड़ी परेशानियों के साथ गुजारे. अपराधियों की जिंदगी से यह सब जुड़ा होता है. वे अपराध करें चाहे न करें, पुलिस अपने नाम की खातिर कभी भी किसी को चोर, कभी डकैत बना देती है.

यह कोई आज की बात थोड़े ही है. कविता तो बचपन से देखती आ रही है. आंखें रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर खुली थीं, जहां उस के बापू कहीं से खानेपीने का इंतजाम कर के ला देते थे. अम्मां 3 पत्थर रख कर चूल्हा बना कर रोटियां बना देती थीं. कई बार तो रात के 2 बजे बापू अपनी पोटली को बांध कर अम्मां के साथ वह स्टेशन छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चले जाते थे.

कविता जब थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे मालूम पड़ा कि बापू चोरी कर के उस जगह से भाग लेते थे और क्यों न करते चोरी? एक तो कोई नौकरी नहीं, ऊपर से कोई मजदूरी पर नहीं रखता, कोई भरोसा नहीं करता. जमीन नहीं, फिर कैसे पेट पालें? जेब काटेंगे और चोरी करेंगे और क्या…

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लेकिन आखिर कब तक ऐसे ही सबकुछ करते रहने से जिंदगी चलेगी? अम्मां नाराज होती थीं, लेकिन कहीं कोई उपाय दिखलाई नहीं देता, तो वे भी बेबस हो जाती थीं.

शादीब्याह में वे महाराष्ट्र में जाते थे. वहां के पारधियों की जिंदगी देखते तो उन्हें लगता कि वे कितने बड़े नरक में जी रहे हैं.

कविता ने बापू से कहा भी था, ‘बापू, हम यहां औरंगाबाद में क्यों नहीं रह सकते?’

‘इसलिए नहीं रह सकते कि हमारे रिश्तेदार यहां कम वहां ज्यादा हैं और यहां की आबोहवा हमें रास नहीं आती,’ बापू ने कहा था.

लेकिन, शादी के 4-5 दिनों में खूब गोश्त खाने को मिलता था. बड़ी खुशबू वाली साबुन की टिकिया मिलती थी. कविता उसे 4-5 बार लगा कर खूब नहाती थी, फिर खुशबू का तेल भी मुफ्त में मिलता था. जिंदगी के ये 4-5 दिन बहुत अच्छे से कटते थे, फिर रेलवे स्टेशन पर भटकने को आ जाते थे.

इधर जंगल महकमे वालों ने पारधी जाति के फायदे के लिए काम शुरू किया था, वही बापू से जानकारी ले रहे थे, जिस के चलते शहर के पास एक छोटे से गांव टूराखापा में उस जाति के 3-4 परिवारों को बसा दिया गया था.

इसी के साथ एक स्कूल भी खोल दिया गया था. उन से कहा जाता था कि उन्हें शिकार नहीं करना है. वैसे भी शिकार कहां करते थे? कभी शादीब्याह में या मेहमानों के आने पर हिरन फंसा कर काट लेते थे, लेकिन वह भी कानून से अपराध हो गया था.

यहां कविता ने 5वीं जमात तक की पढ़ाई की थी. आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना था.

बापू ने मना कर दिया था, ‘कौन तुझे लेने जाएगा?’

अम्मां ने कहा था, ‘औरत की इज्जत कच्ची मिट्टी के घड़े जैसी होती है. एक बार अगर टूट जाए, तो जुड़ती नहीं है.’

कविता को नहीं मालूम था कि यह मिट्टी का घड़ा उस के शरीर में कहां है, इसलिए 5 साल तक पढ़ कर घर पर ही बैठ गई थी. बापू दिल्ली या इंदौर से प्लास्टिक के फूल ले आते, अम्मां गुलदस्ता बनातीं और हम बेचने जाते थे. 10-20 रुपए की बिक्री हो जाती थी, लेकिन मौका देख कर बापू कुछ न कुछ उठा ही लाते थे. अम्मां निगरानी करती रहती थीं.

कविता भी कभीकभी मदद कर देती थी. एक बार वे शहर में थे, तब कहीं कोई बाबाजी का कार्यक्रम चल रहा था. उस जगह रामायण की कहानी पर चर्चा हो रही थी. कविता को यह कहानी सुनना बहुत पसंद था, लेकिन जब सीताजी की कोई बात चल रही थी कि उन्हें उन के घर वाले रामजी ने घर से निकाल दिया, तो वहां बाबाजी यह बतातेबताते रोने लगे थे. उस के भी आंसू आ गए थे, लेकिन अम्मां ने चुटकी काटी कि उठ जा, जो इशारा था कि यहां भी काम हो गया है.

बापू ने बैठेबैठे 2 पर्स निकाल लिए थे. वहां अब ज्यादा समय तक ठहर नहीं सकते थे, लेकिन कविता के कानों में अभी भी वही बाबाजी की कथा गूंज रही थी. उस की इच्छा हुई कि वह कल भी जाएगी. धंधा भी हो जाएगा और आगे की कहानी भी मालूम हो जाएगी.

बस, इसी तरह से जिंदगी चल रही थी. वह धीरेधीरे बड़ी हो रही थी. कानों में शादी की बातें सुनाई देने लगी थीं. शादी होती है, फिर बच्चे होते हैं. सबकुछ बहुत ही रोमांचक था, सुनना और सोचना.

उन का छोटा सा झोंपड़ा ही था, जिस पर बापू ने मोमजामा की पन्नी डाल रखी थी. एक ही कमरे में ही वे तीनों सोते थे.

एक रात कविता जोरों से चीख कर उठ बैठी. बापू ने दीपक जलाया, देखा कि एक भूरे रंग का बिच्छू था, जो डंक मार कर गया था. पूरे जिस्म में जलन हो रही थी. बापू ने जल्दी से कहीं के पत्ते ला कर उस जगह लगाए, लेकिन जलन खूब हो रही थी.

कविता लगातार चिल्ला रही थी. पूरे 2-3 घंटे बाद ठंडक मिली थी. जिंदगी में ऐसे कई हादसे होते हैं, जो केवल उसी इनसान को सहने होते हैं, कोई और मदद नहीं करता. सिर्फ हमदर्दी से दर्द, परेशानी कम नहीं होती है.

आखिर पास के ही एक टोले में कविता की शादी कर दी गई थी. लड़का काला, मोटा सा था, जो उस से ज्यादा अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन था तो वह उस का घरवाला ही. फिर वह बापू के पास के टोले का था, इसलिए 5-6 दिनों में अम्मां के साथ मुलाकात हो जाती थी.

यहां कविता के पति की आधा एकड़ जमीन में खेती थी. 8-10 मुरगियां थीं. लग रहा था कि जिंदगी कुछ अच्छी है, लेकिन कभीकभी राकेश भी 4-5 दिनों के लिए गायब हो जाता था. बाद में पता चला कि राकेश भी डकैती या बड़ी चोरी करने जाता है. हिसाब होने पर हजारों रुपए उसे मिलते थे.

कविता भी कुछ रुपए चुरा कर अम्मां से मिलने जाती, तो उन्हें दे देती थी.

लेकिन कविता की जिंदगी वैसे ही फटेहाल थी. कोई शौक, घूमनाफिरना कुछ नहीं. बस, देवी मां की पूजा के समय रिश्तेदार आ जाते थे, उन से भेंटमुलाकात हो जाती थी. शादी के  4 सालों में ही वह 2 लड़कियों की मां बन गई थी.

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इस बीच कभी भी रात को पुलिस वाले टोले में आ जाते और चारों ओर से घेर कर उन के डेरों की तलाशी लेते थे. कभीकभी उन के कंबल या कोई जेवर ही ले कर वे चले जाते थे. अकसर पुलिस के आने की खबर उन्हें पहले ही मिल जाती थी, जिस के चलते रात में सब डेरे से बाहर ही सोते थे. 2-4 दिनों के लिए रिश्तेदारियों में चले जाते थे. मामला ठंडा होने पर चले आते थे.

इन्हें भी यह सबकुछ करना ठीक नहीं लगता था, लेकिन करें तो क्या करें? आधा एकड़ जमीन, वह भी सरकारी थी और जोकुछ लगाते, उस पर कभी सूखे की मार और कभी ओलों की बौछार हो जाती थी. सरकारी मदद भी नहीं मिलती थी, क्योंकि जमीन का कोई पट्टा भी उन के पास नहीं था. जोकुछ भी थोड़ाबहुत कमाते, वह जमीन खा जाती थी, लेकिन वे सब को यही बताते थे कि जमीन से जो उग रहा है, उसी से जिंदगी चल रही है. किसी को यह थोड़े ही कहते कि चोरी करते हैं.

पिछले 7-8 महीनों से बापू ने महुए की कच्ची दारू भी उतारना चालू कर दी थी. अम्मां उसे शहर में 1-2 जगह पहुंचा कर आ जाती थीं, जिस के चलते खर्चापानी निकल जाता था.

कभीकभी राकेश रात को सोते समय कहता भी था कि यह सब उसे पसंद नहीं है, लेकिन करें तो क्या करें? सरकार कर्जा भी नहीं देती, जिस से भैंस खरीद कर दूध बेच सकें.

एक रात वे सब सोए हुए थे कि किसी ने दरवाजे पर जोर से लात मारी. नींद खुल गई, तो देखा कि 2-3 पुलिस वाले थे. एक ने राकेश की छाती पर बंदूक रख दी, ‘अबे उठ, चल थाने.’

‘लेकिन, मैं ने किया क्या है साहब?’ राकेश बोला.

‘रायसेन में बड़े जज साहब के यहां डकैती डाली है और यहां घरवाली के साथ मौज कर रहा है,’ एक पुलिस वाले ने डांटते हुए कहा.

‘सच साहब, मुझे नहीं मालूम,’ घबराई आवाज में राकेश ने कहा. कविता भी कपड़े ठीक कर के रोने लगी थी.

‘ज्यादा होशियारी मत दिखा, उठ जल्दी से,’ और कह कर बंदूक की नाल उस की छाती में घुसा दी थी.

कविता रो रही थी, ‘छोड़ दो साहब, छोड़ दो.’

पुलिस के एक जवान ने कविता के बाल खींच कर राकेश से अलग किया और एक लात जमा दी. चोट बहुत अंदर तक लगी. 3-4 टोले के और लोगों को भी पुलिस पकड़ कर ले आई और सब को हथकड़ी लगा कर लातघूंसे मारते हुए ले गई.

कविता की दोनों बेटियां उठ गई थीं. वे जोरों से रो रही थीं. वह उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकती थी. पूरी रात जाग कर काटी और सुबह होने पर उन्हें ले कर वह सोहागपुर थाने में पहुंची.

टोले से जो लोग पकड़ कर लाए गए थे, उन सब की बहुत पिटाई की गई थी. सौ रुपए देने पर मिलने दिया. राकेश ने रोरो कर कहा, ‘सच में उस डकैती की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’

लेकिन भरोसा कौन करता? पुलिस को तो बड़े साहब को खुश करना था और यहां के थाने से रायसेन जिले में भेज दिया गया. अब कविता अकेली थी और 2-3 साल की बेटियां. वह क्या करती? कुछ रुपए रखे थे, उन्हें ले कर वह टोले की दूसरी औरतों के साथ रायसेन गई. वहां वकील किया और थाने में गई. वहां बताया गया कि यहां किसी को पकड़ कर नहीं लाए हैं.

वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.’

हजार रुपए बरबाद कर के कविता लौट आई थी. बापू के पास गई, तो वे केवल हौसला ही देते रहे और क्या कर सकते थे. आते समय बापू ने सौ रुपए दे दिए थे.

कविता जब लौट रही थी, तब फिर एक बाबाजी का प्रवचन चल रहा था. प्रसंग वही सीताजी का था. जब सीताजी को लेने राम वनवास गए थे और अपमानित हुई सीता जमीन में समा गई थीं. सबकुछ इतने मार्मिक तरीके से बता रहे थे कि उस की आंखों से भी आंसू निकल आए, तो क्या सीताजी ने आत्महत्या कर ली थी? शायद उस के दिमाग ने ऐसा ही सोचा था.

जब कविता अपने टोले पर आई, तो सीताजी की बात ही दिमाग में घूम रही थी. कैसे वनवास काटा, जंगल में रहीं, रावण के यहां रहीं और धोबी के कहने से रामजी ने अपने से अलग कर के जंगल भेज दिया गर्भवती सीता को. कैसे रहे होंगे रामजी? जैसे कि वह बिना घरवाले के अकेले रह रही है. न जाने वह कब जेल से छूटेगा और उन की जिंदगी ठीक से चल पाएगी.

इस बीच टोले में जो कागज के फूल और दिल्ली से लाए खिलौने थोक में लाते, उन्हें कविता घरघर सिर पर रख कर बेचने जाती थी. जो कुछ बचता, उस से घर का खर्च चला रही थी. अम्मांबापू कभीकभी 2-3 सौ रुपए दे देते थे. जैसे ही कुछ रुपए इकट्ठा होते, वह रायसेन चली जाती.

पुलिस ने राकेश को कोर्ट में पेश कर दिया था और कोर्ट ने जेल भेज दिया था. जमानत करवाने के लिए वकील 5 हजार रुपए मांग रहा था. कविता घर का खर्च चलाती या 5 हजार रुपए देती? राकेश का बड़ा भाई, मेरी सास भी थीं. वे घर पर आतीं और कविता को सलाह देती रहती थीं. उस ने नाराजगी भरे शब्दों में कह दिया, ‘क्यों फोकट की सलाह देती हो? कभी रुपए भी दे दिया करो. देख नहीं रही हो कि मैं कैसे बेटियों को पाल रही हूं,’ कहतेकहते वह रो पड़ी थी.

जेठ ने एक हजार रुपए दिए थे. उन्हें ले कर कविता रायसेन गई, जो वकील ने रख लिए और कहा कि वह जमानत की अर्जी लगा देगा.

उस वकील का न जाने कितना बड़ा पेट था. कविता जो भी देती, वह रख लेता था, लेकिन जमानत किसी की नहीं हो पाई थी. बस, जेल जा कर वह राकेश से मिल कर आ जाती थी. वैसे, राकेश की हालत पहले से अच्छी हो गई थी. बेफिक्री थी और समय से रोटियां मिल जाती थीं, लेकिन पंछी पिंजरे में कहां खुश रहता है. वह भी तो आजाद घूमने वाली कौम थी.

कविता रुपए जोड़ती और वकील को भेज देती थी. आखिर पूरे 22 महीने बाद वकील ने कहा, ‘जमानतदार ले आओ, साहब ने जमानत के और्डर कर दिए हैं.’

फिर एक परेशानी. जमानतदार को खोजा, उसे रुपए दिए और जमानत करवाई, तो शाम हो गई. जेलर ने छोड़ने से मना कर दिया.

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कविता सास के भरोसे बेटियां घर पर छोड़ आई थी, इसलिए लौट गई और राकेश से कहा कि वह आ जाए. सौ रुपए भी दे दिए थे.

रात कितनी लंबी है, सुबह नहीं हुई. सीताजी ने क्यों आत्महत्या की? वे क्यों जमीन में समा गईं? सीताजी की याद आई और फिर कविता न जाने क्याक्या सोचने लगी.

सुबह देर से नींद खुली. उठ कर जल्दी से तैयार हुई. बच्चियों को भी बता दिया था कि उन का बाप आने वाला है. राकेश की पसंद का खाना पकाने के लिए मैं जब बाजार गई, तो बाबाजी का भाषण चल रहा था. कानों में वही पुरानी कहानी सुनाई दे रही थी. उस ने कुछ पकवान लिए और टोले पर लौट आई.

दोपहर तक खाना तैयार कर लिया और कानों में आवाज आई, ‘राकेश आ गया.’

कविता दौड़ते हुए राकेश से मिलने पहुंची. दोनों बेटियों को उस ने गोद में उठा लिया और अपने घर आने के बजाय वह उस के भाई और अम्मां के घर की ओर मुड़ गया.

कविता तो हैरान सी खड़ी रह गई, आखिर इसे हो क्या गया है? पूरे

22 महीने बाद आया और घर छोड़ कर अपनी अम्मां के पास चला गया.

कविता भी वहां चली गई, तो उस की सास ने कुछ नाराजगी से कहा, ‘‘तू कैसे आई? तेरा मरद तेरी परीक्षा लेगा. ऐसा वह कह रहा है, सास ने कहा, तो कविता को लगा कि पूरी धरती, आसमान घूम रहा है. उस ने अपने पति राकेश पर नजर डाली, तो उस ने कहा, ‘‘तू पवित्तर है न, तो क्या सोच रही है?’’

‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है…’’ कविता ने कहा. उस ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘पूरे 22 महीने बाद मैं आया हूं, तू बराबर रुपए ले कर वकील को, पुलिस को देती रही, इतना रुपया लाई कहां से?’’

कविता के दिल ने चाहा कि एक पत्थर उठा कर उस के मुंह पर मार दे. कैसे भूखेप्यासे रह कर बच्चियों को जिंदा रखा, खर्चा दिया और यह उस से परीक्षा लेने की बात कह रहा है.

उस समाज में परीक्षा के लिए नहाधो कर आधा किलो की लोहे की कुल्हाड़ी को लाल गरम कर के पीपल के सात पत्तों पर रख कर 11 कदम चलना होता है.

अगर हाथ में छाले आ गए, तो समझो कि औरत ने गलत काम किया था, उस का दंड भुगतना होगा और अगर कुछ नहीं हुआ, तो वह पवित्तर है. उस का घरवाला उसे भोग सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है.

राकेश के सवाल पर कि वह इतना रुपया कहां से

लाई, उसे सबकुछ बताया. अम्मांबापू ने दिया, उधार लिया, खिलौने बेचे, लेकिन वह तो सुन कर भी टस से मस नहीं हुआ.

‘‘तू जब गलत नहीं है, तो तुझे क्या परेशानी है? इस के बाप ने मेरी 5 बार परीक्षा ली थी. जब यह पेट में था, तब भी,’’ सास ने कहा.

कविता उदास मन लिए अपने झोंपड़े में आ गई. खाना पड़ा रह गया. भूख बिलकुल मर गई.

दोपहर उतरतेउतरते कविता ने खबर भिजवा दी कि वह परीक्षा देने को तैयार है. शाम को नहाधो कर पिप्पली देवी की पूजा हुई. टोले वाले इकट्ठा हो गए. कुल्हाड़ी को उपलों में गरम किया जाने लगा.

शाम हो रही थी. आसमान नारंगी हो रहा था. राकेश अपनी अम्मां के साथ बैठा था. मुखियाजी आ गए और औरतें भी जमा हो गईं.

हाथ पर पीपल के पत्ते को कच्चे सूत के साथ बांधा और संड़ासी से पकड़ कर कुल्हाड़ी को उठा कर कविता के हाथों पर रख दिया. पीपल के नरम पत्ते चर्रचर्र कर उठे. औरतों ने देवी गीत गाने शुरू कर दिए और वह गिन कर 11 कदम चली और एक सूखे घास के ढेर पर उस कुल्हाड़ी को फेंक दिया. एकदम आग लग गई.

मुखियाजी ने कच्चे सूत को पत्तों से हटाया और दोनों हथेलियों को देखा. वे एकदम सामान्य थीं. हलकी सी जलन भर पड़ रही थी.

मुखियाजी ने घोषणा कर दी कि यह पवित्र है. औरतों ने मंगलगीत गाए और राकेश कविता के साथ झोंपड़े में चला आया.

रात हो चुकी थी. कविता ने बिछौना बिछाया और तकिया लगाया, तो उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि बरसों से जो मन में सवाल उमड़ रहा था कि सीताजी जमीन में क्यों समा गईं, उस का जवाब मिल गया हो. सीताजी ने जमीन में समाने को केवल इसलिए चुना था कि वे अपने घरवाले राम का आत्मग्लानि से भरा चेहरा नहीं देखना चाहती होंगी.

राकेश जमीन पर बिछाए बिछौने पर लेट गया. पास में दीया जल रहा था. कविता जानती थी कि 22 महीनों के बाद आया मर्द घरवाली से क्या चाहता होगा?

राकेश पास आया और फूंक मार कर दीपक बुझाने लगा. अचानक ही कविता ने कहा, ‘‘दीया मत बुझाओ.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मैं तेरा चेहरा देखना चाहती हूं.’’

‘‘क्यों? क्या मैं बहुत अच्छा लग रहा हूं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘तुझे जो बिरादरी में नीचा देखना पड़ा, तू जो हार गया, वह चेहरा देखना चाहती हूं. मैं सीताजी नहीं हूं, लेकिन तेरा घमंड से टूटा चेहरा देखने की बड़ी इच्छा है.’’

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उस की बात सुन कर राकेश भौंचक्का रह गया. कविता ने खुद को संभाला और दोबारा कहा, ‘‘शुक्र मना कि मैं ने बिरादरी में तेरी परीक्षा लेने की बात नहीं कही, लेकिन सुन ले कि अब तू कल परीक्षा देगा, तब मैं तेरे साथ सोऊंगी, समझा,’’ उस ने बहुत ही गुस्से में कहा.

‘‘क्या बक रही है?’’

‘‘सच कह रही हूं. नए जमाने में सब बदल गया है. पूरे 22 महीनों तक मैं ईमानदारी से परेशान हुई थी, इंतजार किया था.’’

राकेश फटी आंखों से उसे देख रहा था, क्योंकि उन की बिरादरी में मर्द की भी परीक्षा लेने का नियम था और वह अपने पति का मलिन, घबराया, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर खुश थी, बहुत खुश. आज शायद सीता जीत गई थी.

एक आंख का नूर

घर में घुसते ही वारिस ने अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘‘सलमा, 2 कप चाय बनाना.’’

सलमा खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. पति ने 2 कप चाय मांगी थी, इस का मतलब उस के साथ कोई आया था. उस ने किचन से बाहर आ कर देखा तो वारिस किसी हमउम्र युवक के साथ बैठा था. सलमा उसे पहचानती नहीं थी. इस का मतलब वह पहली बार आया था.

कुछ देर में सलमा चाय और पानी ले कर आई तो युवक ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया. वह चायपानी की ट्रे रख कर खड़ी हुई तो वारिस ने उस युवक का परिचय कराया, ‘‘यह मेरा दोस्त सुलतान है, सीबीगंज के मथुरापुर गांव में रहता है. ये भी आटो ड्राइवर है.’’

चाय पी कर सुलतान जाने के लिए उठा तो सलमा ने कहा, ‘‘अभी आप इन से कह रहे थे कि आप की पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है. मतलब घर में खाना भी नहीं बना होगा. खाने का समय है, खाना खा कर जाना.’’

सुलतान संकोचवश कुछ नहीं बोला तो वारिस ने पत्नी की हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘अब तुम्हारी भाभी ने कह दिया है तो खाना खाना ही होगा. यह बिना खाना खाए नहीं जाने देगी.’’

सुलतान बैठ गया. सलमा ने जल्दीजल्दी सुलतान और पति के लिए खाना लगाया. सलमा ने सुलतान को इतने प्यार से खाना खिलाया कि वह जरूरत से ज्यादा खा गया. वह पेट पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘भाभी, आप बहुत अच्छा खाना बनाती हैं.’’

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30 वर्षीय सुलतान ने 2 निकाह किए थे. उस का पहला निकाह 5 साल पहले बरेली के बाकरगंज में रहने वाली रानो से हुआ था, जिस से उसे 2 बेटियां और एक बेटा था. रानो का चालचलन ठीक न होने पर सुलतान उसे उस के मायके छोड़ आया था.

इस के बाद सुलतान ने दूसरा निकाह बिहार के कटिहार जिले की शबीना से किया, जिस से 2 बेटे हुए.

सुलतान आटो चलाता था. एक ही काम में होने के वजह से दोनों में गहरी दोस्ती थी. वारिस अपने परिवार के साथ फतेहगंज (पश्चिम) के मोहल्ला कंचननगर में रहता था. परिवार में उस की पत्नी सलमा और 2 बेटे थे. जबकि सुलतान अपनी पत्नी और बेटियों के साथ महानगर बरेली के गांव मथुरानगर में रहता था.

दोस्ती की वजह से एक दिन वारिस सुलतान को अपने घर ले गया और चायनाश्ता ही नहीं, खाना भी खिलाया. उस दिन सुलतान ने कुछ नहीं कहा, लेकिन 4 दिन बाद उस की गाड़ी खराब हो गई तो वह वारिस के घर जा पहुंचा. पता चला वारिस नहा रहा है.

सुलतान ने सलमा से कहा, ‘‘भाभी, उस दिन आप ने जो खाना खिलाया था, बहुत स्वादिष्ट था. आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

‘‘मैं और काम भी बहुत अच्छे से करती हूं.’’ सलमा ने एक आंख दबा कर कहा.

सुलतान सलमा की इस हरकत से दंग रह गया. वह कुछ कहता, तभी वारिस ने बाथरूम से बाहर आ कर कहा, ‘‘सुबहसुबह कैसे आना हुआ भाई?’’

‘‘यार, मेरी गाड़ी खराब हो गई है, उसे मिस्त्री के यहां पहुंचाना है. मेरी गाड़ी अपनी गाड़ी में बांध लो तो आसानी हो जाएगी.’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए मैं काम पर नहीं जाऊंगा. तुम मेरी गाड़ी ले जाओ. उसी में अपनी गाड़ी बांध लेना. उसे मिस्त्री के यहां छोड़ कर पूरे दिन मेरी गाड़ी चलाना, शाम को गाड़ी खड़ी करने आओगे तो हिसाब दे देना.’’

सुलतान वारिस की गाड़ी ले गया. दिन भर गाड़ी चला कर वह हिसाब देने आया तो सलमा उस के लिए पानी ले कर आई. सुलतान ने गिलास थामते हुए उस की ओर देखा तो उस ने फिर आंख दबा दी. सुलतान अचकचा गया. सलमा धीरे से बोली, ‘‘मौका मिले तो आ जाना.’’

सुलतान को सलमा की हरकतें अजीब लग रही थीं. उस ने आने के लिए क्यों कहा, यह सोचते हुए सुलतान अपने घर आ गया.

एक दिन सुलतान स्टैंड पर खड़ा सवारियों का इंतजार कर रहा था, तभी उसे सलमा आती दिखाई दी. सब से आगे सुलतान का ही आटो खड़ा था. इसलिए उस ने सुलतान के पास आ कर मुसकराते हुए पूछा, ‘‘क्या मुझे मेरे घर तक छोड़ दोगे?’’

‘‘क्यों नहीं भाभी, आओ बैठो.’’ कह कर सुलतान सवारियों का इंतजार किए बिना ही सलमा को ले कर चल पड़ा.

सुलतान चुपचाप गाड़ी चला रहा था. उसे इस तरह खामोश देख कर सलमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, बहुत खामोश हो?’’

‘‘तबीयत कुछ भारीभारी सी है. आज वरिस नहीं दिखा, कहीं गया है क्या?’’

‘‘वह बाहर गए हुए हैं. आज बहुत गरमी है, घर चलो. तुम्हें नींबू का शरबत पिलाती हूं.’’ सलमा ने मीठे स्वर में कहा.

‘‘नहीं भाभी, आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है. ड्राइवरों को गरमीसर्दी सब झेलनी पड़ती है.’’

‘‘कुछ भी हो, शरबत तो पीना ही पड़ेगा.’’ सलमा ने जिद की.

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सुलतान चुप रह गया. उस ने सलमा के घर के सामने गाड़ी रोकी तो सलमा ने आटो से उतर कर ताला खोला. उस ने सुलतान को अंदर बुला कर बैठा दिया और खुद शरबत बनाने लगी.

कांच के 2 गिलासों में शरबत ला कर वह सुलतान के पास बैठ गई. शरबत पी कर सुलतान उठने लगा तो सलमा ने उस का हाथ पकड़ कर बिठाते हुए कहा, ‘‘इतनी गरमी में कहां जाओगे, थोड़ी देर बैठो न. आज मैं भी अकेली हूं, दोनों बातें करते हैं.’’

सुलतान बैठ गया तो सलमा उठी और बाहर का दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी. सुलतान अचकचाया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सलमा को ऐसी कौन सी बात करनी है जो अंदर से दरवाजा बंद कर दिया.

दरवाजा बंद कर के सलमा सुलतान के पास बैठ गई और बोली, ‘‘तुम ने यह तो बता दिया था कि खाना बहुत अच्छा बना था, लेकिन यह नहीं बताया कि खाना बनाने वाली कैसी लगी?’’

यह सुन कर सुलतान की हैरानी और बढ़ गई. अकेले में दोस्त की पत्नी के साथ इस तरह बैठना उसे ठीक नहीं लग रहा था. इस के अलावा वह डर भी रहा था. उस की हालत देख कर सलमा ने कहा, ‘‘डरने की कोई बात नहीं है. इस समय यहां कोई नहीं आएगा.’’

लेकिन उस के आश्वासन के बावजूद सुलतान का डर कम नहीं हुआ. वह वहां से निकलने के बारे में सोच रहा था कि सलमा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो.’’

सुलतान घबरा कर उठ खड़ा हुआ, ‘‘भाभी, मैं शादीशुदा हूं. मुझ से ऐसी बात न करो.’’

सलमा ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं ने तुम से यह थोड़े ही कहा है कि मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. लेकिन मुझे तुम से प्यार जरूर हो गया है.’’

सलमा उस के एकदम करीब आ गई. सुलतान थोड़ा खिसकते हुए बोला, ‘‘वारिस क्या सोचेगा?’’

‘‘कोई कुछ नहीं सोचता सुलतान, सही बात तो यह है कि हर कोई अपने सुख के चक्कर में घूम रहा है. किसी के बारे में सोच कर परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं अपने बारे में सोचती हूं, मेरे पति भी अपने बारे में सोचते हैं. अब तुम भी अपने बारे में सोचो.’’

‘‘ये कैसी बातें कर रही हो आप?’’

‘‘ये अपने दिल से पूछो, अगर तुम्हारे दिल में मेरे साथ समय बिताने की इच्छा न होती तो तुम गाड़ी ले कर बाहर से ही लौट जाते, अंदर कतई नहीं आते.’’

‘‘अंदर तो आप ने बुलाया है.’’

‘‘ठीक है, बुलाया था पर तुम मना भी कर सकते थे.’’ सलमा ने कहा.

सुलतान हैरान था. यह सच था कि पिछले कई दिनों से वह सलमा के बारे में सोच रहा था. कई बार वह उस के दरवाजे तक आया भी था, लेकिन बाहर से ही लौट गया था.

सलमा उस के कंधे पर हाथ रख कर बोली, ‘‘प्यार करना गुनाह नहीं है. मैं जानती हूं कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए एक नरम कोना है. मौके का फायदा उठाने से मत चूको.’’

उलझन में फंसा सुलतान सलमा के आकर्षण में बंधा था, इसलिए चाह कर भी वहां से नहीं जा पा रहा था. सुनसान घर में अकेली औरत नाजायज संबंध बनाने के लिए मजबूर कर रही थी. आखिर सुलतान ने खुद को सलमा के हवाले कर दिया.

उस दिन वह सलमा के घर से निकला तो उस की स्थिति अजीब सी थी. वह गाड़ी ले कर सीधा घर आ गया. जल्दी वापस आने पर शबीना ने कहा, ‘‘आज जल्दी आ गए, तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘सिर थोड़ा भारी लग रहा था. मैं ने सोचा थोड़ा आराम कर लूंगा तो ठीक हो जाऊंगा. मैं सोना चाहता हूं.’’ कह कर सुलतान कमरे में जा कर लेट गया. कुछ देर पहले उस के साथ जो कुछ गुजरा था, वह सब उसे याद आने लगा. उसे लगा कि वह शबीना का गुनहगार है.

वह अपराधबोध से ग्रस्त था. उस ने सोचा जो हो गया सो हो गया. भविष्य में वह ऐसी गलती नहीं करेगा. यह सोच कर उस का दिल कुछ हलका हुआ. लेकिन उस की वह रात करवट बदलते हुए गुजरी. सुबह उठा तो सिर भारी था.

सुबह को सुलतान काफी देर तक नहाता रहा, जिस से मन को कुछ शांति मिली. नाश्ते के बाद वह गाड़ी ले कर चला गया. सीधीसादी शबीना को पता ही नहीं चला कि पति ने उस के साथ बेवफाई कर डाली है.

अगले कुछ दिनों में सब सामान्य हो गया. सुलतान वारिस के घर की तरफ नहीं गया. लेकिन सलमा ने उसे फिर से तलाश कर कुछ सामान लाने को कहा. वारिस बाहर था, इसलिए सुलतान ने सामान ला कर सलमा के घर पर दे दिया. उस दिन भी सुलतान सलमा से दूर नहीं रह पाया.

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वह खुद को संभालने की लाख कोशिश करता, लेकिन उस की कोशिश धरी रह जाती. जब उसे लगा कि संभलना मुश्किल है तो उस ने सलमा के साथ इसे सिलसिला ही बना लिया.

दोनों को मौके की तलाश रहने लगी. मोबाइल फोन ने उन की राह आसान कर दी थी. इसी बीच सुलतान और वारिस आटो चलाना छोड़ कर कैंटर चलाने लगे थे. सुलतान फतेहगंज पश्चिमी के ही नवाजिश अली का कैंटर चलाता था, तो वारिस इमरान रजा का.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सलमा सुलतान को अपना बलमा तो नहीं बना सकती थी, लेकिन उस के दिल का सुलतान वही था.

7 फरवरी को देर रात तक सुलतान घर नहीं लौटा तो शबीना को चिंता हुई. उस ने पौने 8 बजे सुलतान को फोन किया तो उस ने आधे घंटे में पहुंचने की बात कही. लेकिन देर रात होने पर भी वह घर नहीं लौटा. उस का मोबाइल भी बंद हो गया था.

पति के बारे में पता करने के लिए शबीना ने अपने जेठ शाने अली को फोन किया तो पता चला कि वह राजस्थान से माल ले कर फतेहगंज लौट आया था. शाने अली ने शबीना से कहा कि रात होने की वजह से वह कहीं रुक गया होगा. सुबह होने पर भी जब सुलतान घर नहीं पहुंचा तो शाने अली उस की तलाश में लग गया.

8 फरवरी की सुबह फतेहगंज (पश्चिम) थाना क्षेत्र के गांव सफरी के कुछ लोगों ने सड़क किनारे स्थित बलवीर के खेत में एक अज्ञात युवक की लाश पड़ी देखी.

वहां भीड़ एकत्र हुई तो बात गांव के प्रधान तक पहुंची. प्रधान ने मौके पर जा कर देखा और इस की सूचना फतेहगंज (पश्चिम) थाने को दे दी.

सूचना मिलने पर इंसपेक्टर चंद्रकिरन पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र 28-30 साल रही होगी. मृतक के गले पर कसे जाने के निशान मौजूद थे. साथ ही सिर पर काफी गहरे घाव भी थे.

घाव किसी वजनदार ठोस वस्तु के प्रहार के लग रहे थे. लाश के आसपास घटनास्थल का निरीक्षण करने पर कोई सुराग नहीं मिला. अलबत्ता वह मृतक के संघर्ष करने के निशान जरूर मौजूद थे. कई जगह मिट्टी उखड़ी हुई थी, कई लोगों के पैरों के निशान भी थे. मतलब हत्यारे एक से ज्यादा थे.

इस बीच लाश मिलने की सूचना आसपास के क्षेत्रों में फैल गई थी. कुछ लोगों ने लाश की फोटो सोशल मीडिया पर डाल दी थी. शाने अली के कुछ परिचितों ने फोटो देखी तो शाने अली को बताया कि सफरी गांव के पास एक लाश मिली है, कहीं वह सुलतान की तो नहीं, जा कर देख ले. शाने अली शबीना और भाई इरशाद के साथ मौके पर पहुंच गया.

लाश सुलतान की निकली. लाश की शिनाख्त हो गई तो इंसपेक्टर चंद्रकिरन ने सुलतान की पत्नी शबीना से पूछताछ की. उस ने बताया कि रात पौने 8 बजे सुलतान को फोन किया था तो उस ने आधे घंटे में घर पहुंचने की बात कही थी, लेकिन वह घर नहीं आया.

उस ने सुलतान के कैंटर मालिक नवाजिश अली और उस के बहनोई पर सुलतान की हत्या का शक जताते हुए बताया कि एक माह पहले रुपयों के लेनदेन को ले कर सुलतान का उन से झगड़ा हुआ था. दोनों ने सुलतान को जान से मारने की धमकी दी थी.

इसी बीच सीओ जगमोहन सिंह बुटोला और एसपी (ग्रामीण) संसार सिंह भी मौके पर पहुंच गए. अधिकारियों ने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद आवश्यक पूछताछ की. उस के बाद वह इंसपेक्टर चंद्रकिरन को दिशानिर्देश दे कर वापस लौट गए.

शबीना की लिखित तहरीर पर नवाजिश अली और उस के बहनोई के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

इंसपेक्टर चंद्रकिरन ने केस की जांच शुरू की तो पता चला नवाजिश कैंसर से पीडि़त है और काफी समय से अस्पताल में भरती है. ऐसे में सुलतान की हत्या में उस का हाथ नहीं हो सकता था.

इस जानकारी के बाद उन्होंने सुलतान के प्रेम प्रसंग के संबंध में जानकारी जुटाई तो उस के किसी महिला से प्रेम प्रसंग की जानकारी मिली. इस पर उन्होंने सुलतान के मोबाइल की कालडिटेल्स निकलवाई. पता चला कि एक नंबर पर उस की हर रोज काफी देर तक बातें होती थीं.

वह नंबर सुलतान के नाम ही था. इस का मतलब यह था कि सुलतान ने ही वह नंबर किसी को दिया था. उस नंबर की लोकेशन फतेहगंज (पश्चिम)  के कंचननगर मोहल्ले की थी.

और जानकारी जुटाई गई तो पता चला सुलतान की दोस्ती कंचननगर में रहने वाले वारिस उर्फ चांद से थी. इस के बाद रहस्य से परदा उठते देर नहीं लगी. पता चला कि सुलतान के नाजायज संबंध वारिस की पत्नी सलमा से थे. सुलतान की हत्या इन्हीं संबंधों की परिणति थी.

इस के बाद इंसपेक्टर चंद्रकिरन ने 28 फरवरी को वारिस को गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो मामला नाजायज संबंधों का ही निकला.

सलमा और सुलतान के नाजायज संबंधों की भनक पड़ोसियों को भी लग गई थी. जब वारिस घर पर नहीं रहता था तो सुलतान घंटों तक उस के घर में पड़ा रहता था. इस से पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि सुलतान और सलमा के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी.

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एक पड़ोसी ने वारिस को इस बारे में बता दिया था. यह जान कर कि सुलतान ने उसे दोस्ती में दगा दे कर उस की पीठ में धोखे का खंजर घोंपा है, वह आगबबूला हो उठा. इस के बाद उस ने सलमा को खूब पीटा और सुलतान का दिया हुआ मोबाइल और सिम भी खोज लिया, जिसे उस ने तोड़ दिया.

इस के बाद उस ने सुलतान को उस की दगाबाजी और इज्जत से खेलने के लिए सबक सिखाने का फैसला कर लिया.

इस के लिए उस ने कंचननगर में ही रहने वाले अपने फुफेरे भाई आमिर और भांजे दानिश उर्फ टाइगर को साथ देने के लिए तैयार कर लिया. दोनों ट्रांसपोर्ट पर मजदूरी का काम करते थे.

7 फरवरी की रात को सुलतान दिल्ली से माल ले कर बरेली आया. माल उतारने के बाद उस ने कैंटर को ठिरिया खेतल के नासिर ट्रांसपोर्ट पर खड़ा कर दिया. इस के बाद वह अपने घर की ओर चल दिया.

रास्ते में वारिस, आमिर और दानिश ने उसे मथुरापुर चलने की बात कह कर अपने कैंटर के केबिन में बैठा लिया. जब वारिस ने कैंटर शंघा-अगरास रोड पर मोड़ा तो सुलतान विरोध करने लगा. इस पर तीनों ने गमछे से उस का गला दबा दिया. सुलतान बेहोश हो गया.

सफरी गांव के पास उसे कैंटर से उतारा गया तो होश आने पर सुलतान ने भागने की कोशिश की. इस पर तीनों ने लोहे की रौड से पीटपीट कर उसे मार डाला और उस की लाश खेत में डाल दी.

खून से सने कपड़ों को इन लोगों ने एक थैले में रख कर टूल बौक्स में डाल दिया और अपनेअपने घर चले गए.

लेकिन गुनाह छिप न सका. वारिस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड और खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. इस के बाद वारिस को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

2 मार्च को पुलिस ने दानिश उर्फ टाइगर को भी गिरफ्तार कर लिया. साथ ही हत्या में इस्तेमाल वारिस का कैंटर नंबर यूपी25सी टी9339 भी बरामद कर लिया. कथा लिखे जाने तक आमिर फरार था, उस की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

अपराध : भाग 2

अमन को हाई ब्लड प्रेशर की दिक्कत थी. नैना का प्लान था कि शनिवार सुबह वह अमन के लंच में उस की बीपी की दवाइयां जरूरत से ज्यादा डाल देगी जिस से लंच के बाद उस की तबीयत बिगड़ेगी और शाम तक तो उस का खेल खत्म हो जाएगा. उस की औटोप्सी रिपोर्ट में जब आएगा कि उस की मौत हाइ डोज से हुई है तो सब को लगेगा कि उस ने जान कर दवाई इतनी मात्रा में ली. इस तथ्य की पुष्टी के लिए वह सब को कहेगी कि अमन डिप्रेस्सड रहने लगा था क्योंकि वे दोनों कब से बच्चा चाहते थे पर वह कंसीव नहीं कर पा रही थी और अमन की नौकरी से भी वह खासा टेंशन में था और इन्हीं सब चीजों की वजह से परेशान था. नैना को पूरा यकीन था कि वह बच निकलेगी.

शनिवार की सुबह प्लान के मुताबिक नैना ने अमन के टिफिन में दवाई मिला दी. अमन औफिस के लिए निकल गया. आज भी नैना ने कामवाली को छुट्टी दे रखी थी. विकास 12 बजे नैना के घर आ गया. नैना उसे देखते ही उस के गले से लिपट गई. उस के चेहरे को चूमने लगी. दोनों एकदूसरे की आगोश में खोने लगे. उन्हें बेडरूम में जाने की भी सुध नहीं रही. वे वहीं सोफे पर गिर गए. तभी दरवाजे की घंटी बजी. नैना और विकास एकदूसरे को देखने लगे. आखिर, इस वक्त कौन हो सकता है.

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नैना ने अपनी टीशर्ट और लोअर पहना और दरवाजे की तरफ बड़ गई. नैना ने अंदर वाला दरवाजा खोला ताकि वह जाली वाले दरवाजे से देख सके कि बाहर कौन है और वह उसे वहीं से लौटा दे. नैना ने दरवाजा खोला तो बाहर अमन को देख कर सन्न रह गई. वह अमन को तो लौटा नहीं सकती थी. उस की कनपट्टी से पसीने की लंबीलंबी धारें बहने लगीं. उस ने दरवाजा खोला और अमन का बैग हाथ में ले लिया.

‘तुम इतनी जल्दी कैसे?’ नैना ने हिम्मत कर पूछा

‘कुछ काम नहीं था और मैं ने अपना रेजिग्नेशन भी दे दिया तो बस आ गया.’

अमन अंदर बढ़ा और सामने विकास को अधनंग अवस्था में देख उस का सिर घूम गया. एक आदमी उस के घर में, अधनंग, उस की पत्नी के साथ क्या कर रहा था यह सोचने में उसे ज्यादा समय नहीं लगा. विकास अमन को देख उठ खड़ा हुआ. अमन मुड़ा और उस ने पीछे खड़ी, आंसू बहा रही नैना को देख उस के मुंह पर जोरदार तमाचा मार दिया. अमन के नैना पर हाथ उठाते ही विकास अमन पर कूद पड़ा.

अमन और विकास की आपस में हाथापाई होने लगी. नैना ने सामने टेबल पर पड़े कांच के वास को उठाया और ध्म्म से अमन के सिर पर मार दिया. अमन निढाल हो जमीन पर गिर पड़ा.

‘यह….य…य….यह क्या किया तुम ने?’ विकास ने अपना माथा पकड़ लिया.

‘मुझे नहीं पता…. यह कैसे हुआ मुझे नहीं पता… हमें इस की लाश को ठिकाने लगाना होगा.’ नैना सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गई.

‘मैं…मैं…हां, शाम को इस की लाश को गाड़ी में डाल फेंक आएंगे यमुना में. या कहीं गाड़ देंगे. यह सही है,’ विकास के पसीने छूट रहे थे.
‘हां, ठीक है.’

6 घंटे बीत गए थे. बाहर अंधेरा गहराने लगा था. अचानक विकास का फोन बज उठा. नैना विकास का मुंह ताकने लगी. विकास के हावभाव अचानक बदल गए. वह फोन पर जोरजोर से कहने लगा, ‘कैसे, कब…हां, मैं अभी आया…मैं आ रहा हूं…’

‘क्या हुआ,’ नैना पूछने लगी.

‘घर से फोन था. पापा की तबीयत अचानक खराब हो गई है, मुझे जाना होगा,’ विकास उठते हुए कहने लगा.

‘तुम पागल हो गए हो क्या? मैं यहां इस लाश का क्या करूं? पुलिस के आने का इंतजार? एक बात याद रखो, मैं जेल गई तो तुम्हें साथ ले कर जाऊंगी समझे तुम?’ नैना चिल्ला उठी.

‘मैं कल सुबह अंधेरा रहते आ जाऊंगा. किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा. पक्का जान, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा,’ विकास ने कहा और वहां से चला गया.

नैना रातभर सो नहीं पाई. उसे पता था अगर जल्द ही उस ने इस लाश से छुटकारा नहीं पाया तो इस की बदबू से सब जान जाएंगे कि माजरा क्या है. उस की आंखें पथरा रहीं थीं. कभी उसे लगता कि अमन का मर जाना ही उस के लिए सही है और कभी उसे लगता कि उस ने अपने हाथों अपनी गृहस्थी तोड़ दी. वह अमन के चेहरे को देखती तो कांपने लगती. उस ने घर की सभी लाइटें जला रखी थीं. लिविंग रूम का एसी फुल कर दिया ताकि कुछ भी हो लेकिन लाश बदबू न छोड़े.

अगली सुबह विकास नहीं आया. विकास करोल बाग में रहता था. मिडिल क्लास फैमिली थी उस की, घर का एकलौता बेटा था. एमफिल का विद्यार्थी था. उस के मातापिता को उस की अय्याशियों और आशिकी दोनों का ही कोई ज्ञान नहीं था. रविवार सुबह जनता कर्फ़्यू के चलते उसे कोई साधन नहीं मिला जिस से वह नैना के घर पहुंच सके और नैना घर से निकलने का रिस्क ले नहीं सकती थी. नैना उसे बारबार फोन कर रही थी लेकिन विकास फोन नहीं उठा रहा था. आखिर विकास ने फोन उठाया भी था तो अचानक काट दिया था.

अब नैना अपने पति अमन की लाश के साथ इस घर में अकेली थी, बिलकुल अकेली. रविवार शाम जब सभी अपनी बालकनियों में आ कर खड़े हुए तो नैना बाहर नहीं निकली. तालियों और थालियों का शोर नैना के अंदर के खालीपन को अब भर नहीं सकता था. उस की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी थी. वह अमन को देखती, फिर उस की नजर खिड़की की तरफ जाती और फिर अमन की तरफ.

रात 9 बजे जनता कर्फ़्यू हटना था. नैना एक बार फिर विकास को फोन मिलाने लगी. विकास का फोन स्विच औफ आने लगा. नैना ने दिनभर में उसे जितने भी मैसेज किए उन में से एक भी उसे डिलीवर नहीं हुआ था. नैना समझ गई कि विकास अब नहीं आएगा और अब वह अकेली है जिसे यह सब कुछ हैंडल करना है.

नैना ने अमन की लाश को पैर से पकड़ कर खिसकाने की कोशिश की. अमन का शरीर भारी था, नैना पूरा दम लगा कर उसे खींच रही थी और अचानक गिर पड़ी. वह फिर से उठी और उसे खिसकाने की कोशिश करने लगी. किसी तरह मशक्कत कर वह उसे बेडरूम तक ले गई और बेड के अंदर उस की लाश डाल दी. उस ने बेडरूम का एसी भी फुल पर रखा जिस से बदबू थमी रहे. उस ने पूरे घर में अपने महंगे से महंगे फ्रेश्नर को छिड़क दिया. पोछा मारा, हर तरफ से खून के धब्बे हटाए, अमन के फोन को एयरप्लेन मोड पर डाला मगर नेट औन रखा. रविवार का दिन बीत गया. विकास का कोई कौल नहीं आया. लाश ठिकाने लगाने की कोई सुध नहीं थी नैना को. वह अकेले लाश का क्या करेगी उसे कुछ समझ नहीं आया.

अमन के दोस्त और परिवार के एक के बाद एक मैसेज आने लगे कि उस का फोन बंद क्यों है और नैना अमन बन कर उन सभी के मैसेज का रिप्लाई कर कहने लगी कि फोन में नेटवर्क नहीं है. नैना ने इंटरनेट पर काफी कुछ सर्च किया और जाना कि लाश की बदबू 2-3 दिन में घर में फैल जाएगी और शायद बाहर भी, साथ ही, लाश डिकम्पोज होने लगेगी, सड़नेगलने लगेगी.

नैना को पता था कि वह ज्यादा दिन इस खेल को अंजाम नहीं दे पाएगी. उस ने अपनी कामवाली को घर आने से मना कर दिया और कहा कि कोरोना के चलते वह कुछ दिन छुट्टी ले ले. अगले दिन 23 मार्च की शाम नैना ने तय किया कि वह विकास के घर जाएगी और उस को पकड़ कर लाएगी, आखिर वह अपनी गलती से इस तरह भाग कैसे सकता है. खून में उस की भागीदारी पूरी थी तो लाश को ठिकाने लगाने का जिम्मा केवल नैना के सिर क्यों?

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नैना का यह प्लान भी धराशायी हो गया जब प्रधानमंत्री ने 21 दिनों के राष्ट्रीय लौकडाउन की घोषणा की. अब तो नैना किसी भी हालत में घर से बाहर नहीं निकल सकती थी. नैना रोने लगी, बिलखने लगी. कमरा लाश की गंध से भर उठा था. अमन की मौत को 3 दिन बीत चुके थे. पिछले 3 दिनों से उस ने खाने के नाम पर बासी 2 रोटियां ही खाई थीं. नैना उठी, अमन का उतारा हुआ मास्क पहना, बेडरूम में गई और अपना सब से महंगा पर्फ्यूम उठा कमरे में छिड़कने लगी. पिछले 3 दिनों से उसे ढंग से नींद नहीं आई थी. आज वह दूसरे बेडरूम में गई और जा कर सो गई, चैन की नींद.

अमन की मौत के चौथे दिन से लौकडाउन शुरू हो गया था. लोग अपनेअपने घरों में थे. बच्चे, बड़े सभी अपनी बालकनी में आ कर बैठने लगे. 4 दिननों से बंद खिड़कियां देख सभी को अजीब लगा जरूर पर पूछने का मन आखिर किस का होगा. यही तो हमारी हाइ सोसाइटी है जिसे खुद से ज्यादा किसी और से मतलब नहीं है. पड़ोस की महिमा जो अकसर बालकनी में खड़ी हो नैना से बातें किया करती थी, ने नैना को कौल किया. नैना पहले तो कौल नहीं उठाने वाली थी पर किसी को कोई शक न हो इसलिए उठा लिया.

“हैलो, हाय नैना, कहां हो आजकल दिखाई नहीं देती?”

“वो….एक्चुअली घर पर ही हूं पर कोरोना है न इसलिए सोशल डिस्टेन्स मैंटेन कर रहे हैं हम और कोई बात नहीं है,” नैना अपनी घबराहट छिपाते हुए कहने लगी.
“अच्छाअच्छा गुड, चलो ठीक है, बाय.”

नैना को लगा अब सब ठीक है. बस कुछ दिनों की बात है और फिर वह इस लाश से छुटकारा पा लेगी. उस के पास सोचने का बहुत सारा समय था अब. वह कभी विकास के धोके को याद करती, कभी नितिन के बारे में सोचती, कभी आकाश के बारे में तो कभी अपने मम्मीपापा का ख्याल आ जाता. शादी के बाद से अपनी पुरानी ज़िंदगी से वह कोई खास वास्ता नहीं रखती थी पर अब जैसे सब उस की आंखो के सामने कौंध रहा था. घर में हर पल गहरी होती लाश की बदबू से उस का दम घुटने लगा था लेकिन वह मजबूर थी.

वहां, सोसाइटी के लोगों के पास अब एकदूसरे की तांकाझांकी करने का पूरा समय था. लोगों ने नोटिस करना शुरू किया कि नैना और अमन को देखे उन्हें जाने कितने दिन हो गए. इस पर एक दिन बालकनी में खड़ी महिमा ने बगल वाली ज्योत्सना को कहा कि उसे लगता है कि नैना या अमन में से किसी एक को कोरोना हो गया है जिस कारण वे आइजोलेशन में हैं और इस से उन की पूरी सोसाइटी की जान खतरे में आ सकती है. ज्योत्सना ने यही बात अपनी पड़ोसन मिनी को बताई, मिनी ने कमलेश को और उस ने नीतिका को. पूरी सोसाइटी में बात फैल गई कि नैना या अमन को कोरोना हुआ है.

लोगों ने उन दोनों की कंप्लैन कोरोनावायरस हेल्पलाइन पर की और अगली सुबह नैना के घर के बाहर डाक्टरों की टीम खड़ी थी. सभी के मुंह पर मास्क था लेकिन उन्हें माजरा समझने में देर नहीं लगी. दरवाजे के बाहर तक लाश की बदबू आने लगी थी. नैना ने घंटी सुनी लेकिन वह दरवाजा खोलने की हिम्मत नहीं कर पाई. वह डर से कांपने लगी और बाथरूम में जा कर बैठ गई. दरवाजा खोला गया और दरवाजा खुलते ही नैना का राज भी खुल गया.

अमन की लाश हिरासत में ली गई. नैना और अमन के घरवालों को खबर भेजी गई. लौकडाउन के चलते वे अपने घरों में इस दुख से तड़पने को मजबूर थे. विकास को भी पकड़ा गया. नैना और विकास के खिलाफ सबूतों की लंबी लिस्ट थी पुलिस के पास. दोनों के मैसेज, कौल रिकोर्ड्स, हाई डोज वाला अमन के बैग में पड़ा सड़ा हुआ लंच, वास के टुकड़े और अमन की लाश.

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नैना ने जो अपराध किया उस की सजा तो उसे मिलेगी ही, लेकिन यह अपराध एक दिन या दो दिन पहले नहीं उपजा था. इस की जड़ें नैना के जीवन में बहुत पहले से ही उपजने लगी थीं. खैर, अमन की जान गई, नैना का वर्तमान भविष्य सब गया और रह गया तो बस उस का यह अपराध.

अपराध : भाग 1

“मुझे बहुत घबराहट हो रही है. तुम आ जाओ ना, कैसे भी आओ बस आ जाओ. मुझे अब डर लग रहा है…बहुत डर. तुम सुन रहे हो न? हैलो… हैलो… विकास… तुम सुन रहे हो न.. हैलो…..” उस तरफ से फोन कटा तो मानो नैना की सांसे भी थमने लगी. उस ने सोफे के बगल में पड़ी पति अमन की लाश की तरफ एक बार फिर नजर घुमाई और उस के होंठ थरथराने लगे और वह विकास को फिर फोन मिलाने लगी.

नैना और अमन की शादी जिस समय हुई थी तब नैना महज 23 साल की थी. कालेज के समय में तो कितने रिलेशनशिप्स रहे थे उस के लेकिन जब उस के लिए अमन का रिश्ता आया तो वह झट मान गई. मानती कैसे नहीं, अमन अच्छे घर का पैसे वाला आदमी था हालांकि उम्र में 6 साल बड़ा था नैना से लेकिन नैना को इस से कुछ खासा फर्क नहीं पड़ा था. उस की आंखों में तो जनकपुरी का 4 बीएचके का फ्लैट चमक रहा था जिस की तस्वीरें अपनी सहेलियों को भेजभेज कर वह दिखा देगी कि उस की जिंदगी भी क्या जिंदगी है. नैना की शादी के दिन करीब आ रहे थे तो उस के इंस्टाग्राम और व्हाट्सेप पर मैसेजों की कतारें बढ़ने लगी थीं. कभी एक्स बौयफ्रेंड का मैसेज होता तो कभी उस बौयफ्रेंड का जिस से वह ब्रेकअप करना ही भूल गई थी.

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नैना के मातापिता उस की इन हरकतों से अंजान थे. नैना अपने दोनों भाइयों से छोटी थी. यही कारण था कि उसे जितना रोका जाता वह उतना ही पंख फड़फड़ा उड़ने की कोशिश करती. हमेशा से गर्ल्स स्कूल में पढ़ी नैना के 10वीं से 12वीं कक्षा के बीच ही 3 बौयफ्रेंड रहे थे. पहले से तो उसे लगा जैसे उसे प्यार हो गया है लेकिन जब वह उस से अपने लिए कुछ मांगती और वह मना कर देता तो वह खीझ उठती. वह उस से अपनी सहेली कविता की मदद से मिली थी. कविता के मोहल्ले का ही लड़का था वह और नैना के स्कूल की छुट्टी के समय स्कूल के बाहर खड़ा होता था. नैना जब कविता के बौयफ्रेंड को देखती तो उसे लगता जैसे कविता ने जानबूझ कर उसे इस कालेकलूटे लड़के के साथ बांधा है. सो, पढ़ाई का बहाना मार नैना ने उस से ब्रेकअप कर लिया.

नैना ने जब कविता के बौयफ्रेंड नितिन को देखा था तभी से उस पर मोहित होने लगी थी. स्कूल से बंक मार जब कविता, नैना, साक्षी और तान्या घूमने गईं थीं तो वहां नितिन और साक्षी का बौयफ्रेंड विनय भी आया था. जब भी नैना का नितिन से सामना होता वह ऐसे दिखाने की कोशिश करती कि वह बेहद शालीन और शांत किस्म की लड़की है जबकि नितिन जानता था कि वह कितनी तेजतर्रार है. कविना ने नैना को बताया था कि नितिन अकसर उसे किस करने के लिए कहता था जिस पर वह मना कर देती थी. उस दिन लोधी गार्डेन घूमते हुए जब साक्षी, तान्या, विनय और कविता तस्वीरें क्लिक कर रहे थे तब नैना नितिन की तरफ इशारा कर झील के पास जाने लगी. नितिन ने कविता से कहा कि उसे यहां गर्मी लग रही है और वह भी झील के पास जा रहा है. झील के पास पहुंच बेंच पर बैठी नैना को देख नितिन उस के पास जा कर बैठ गया. नैना उस की आंखों में देख धीरेधीरे आंखें बंद करती हुई आगे झुकने लगी. नितिन ने मौका हाथ से जाने नहीं दिया और आगे झुक नैना को किस करने लगा. कविता नितिन को ढूंढते हुए वहां पहुंची तो नैना और नितिन को एकदूसरे को किस करते देख विफर पड़ी. वह उन दोनों को गालियां देने लगी जिस पर नैना ने भी उसे भुला भला कहना शुरू कर दिया. उस दिन के बाद न नैना और कविता ने एकदूसरे से कभी बात की और न नितिन ने उन दोनों से.

नैना 12वीं में थी तो उस के घर के बगल में रहने वाले आकाश से उसे प्यार हो गया या उसे लगा कि उसे प्यार हो गया. नैना का भाई शुभम मेरठ में पढ़ रहा था क्योंकि ग्रेजुएशन के बाद उस का कोई एंट्रैन्स क्लियर नहीं हुआ था कि वह दिल्ली में ही पढ़ सके. नैना के सब से बड़े भैया नाइट शिफ्ट में नौकरी करते थे इसीलिए दिनभर सोते थे और रात में औफिस जाते थे. मम्मीपापा को बस एक फिक्र थी कि नैना थोड़ा पढ़ ले और अच्छे घर में उस की शादी हो जाए. उन्हें नैना की परवरिश या व्यवहार में कभी कुछ गलत लगा ही नहीं. नैना शाम को भैया के औफिस के लिए घर से निकलते ही अपने कमरे में चली जाती थी. नैना के 50 गज के घर में उस का कमरा सब से ऊपर था. नैना की बालकनी और आकाश की बालकनी एकदूसरे से जुड़ी हुई थी. नैना बालकनी की ग्रिल पर चादर सुखाने के बहाने डाल देती और उस के सहारे बैठ जाती. आकाश भी यही किया करता. दोनों एकदूसरे से बातें करते और किसी को दिखते भी नहीं. नैना जब कालेज के फर्स्ट इयर में आई तो उस का मन आकाश से ऊब गया. अपने कालेज के बौयफ़्रेंड्स के साथ वह कितनी ही बार हमबिस्तर भी हुई थी लेकिन उसे रिलेशनशिप से बोरियत होने लगती और वह कोई न कोई बहाना बना ब्रेकअप कर लेती.

अमन से शादी के बाद जब नैना इस घर में आई थी तो उसे मानो वह सब मिल गया था जिस की उसे चाहत थी, पैसा, आजादी और लक्जरी. अमन एक मल्टी नैशनल कंपनी में एचआर की पोस्ट पर था. अच्छा कमाता था, चालबाजियों से दूर शांत किस्म का लड़का. उस की भी कालेज के समय से कई गर्लफ्रेंड्स रही थीं लेकिन वह हमेशा से सीरियस रिलेशनशिप्स से दूर रहा था. उस के मम्मीपापा और बहन चंडीगढ़ में रहते थे और वह यहां दिल्ली में. चडीगढ़ में भी उस का अच्छा खासा घरबार था. अमन हमेशा से एक ही शर्त पर रिलेशनशिप में आता रहा कि वह शादी की कमिटमेंट नहीं कर सकता क्योंकि उस के मातापिता जातिधर्म को अत्यधिक महत्व देते हैं और इसलिए वह उन की मर्जी से ही शादी करेगा. औफिस में उसे एक लड़की बेहद पसंद थी लेकिन फिर वही कि वह शादी नहीं करेगा इसलिए वह लड़की उस के साथ कुछ दिन सैक्सुअल रिलेशनशिप में रही और फिर उस ने भी अमन से ब्रेकअप कर लिया. इस ब्रेकअप के बाद ही अमन के घरवालों ने उसे नैना से मिलवाया और किसी पंडेपुजारी और रिश्तेदारी के चलते दोनों की शादी हो गई. नैना दुबलीपतली, चटख गोरे रंग की, लंबे बाल और मदमस्त चाल वाली लड़की थी तो वहीं अमन मझले कदकाठी का गोरा मगर कम आकर्षक किस्म का लड़का था. नैना को देखते ही अमन उस पर लट्टू हो गया था तो वहीं अमन के स्टेटस ने नैना का दिल जीत लिया था.

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शादी के कुछ महीने तो नैना और अमन ने बड़े मजे से गुजारे, घूमना फिरना, ढेरों तस्वीरें लेना उन्हें अपने सोश्ल मीडिया पर पोस्ट करना, सैक्स का लुत्फ उठाना और नएनए एक्सपेरीमेंट्स करना. लेकिन, धीरेधीरे नैना इस जिंदगी से भी ऊबने लगी. अमन नैना की आंखों में झांकने की कोशिश करता और नैना अपनी निगाहें हटा लेती. सैक्स के तुरंत बाद भी जब अमन उसे बाहों में भरता तो नैना करवट ले सो जाती. नैना अपनी सहेलियों से अमन के परफ़ौर्मेंस को ले कर बातें करती तो कोई उस पर हंसने लगती तो कोई कहती पति के साथ रात में मज़ा नहीं तो दिन के लिए कोई और ढूंढ़ ले, और फिर यहां वहां की बातें होने लगतीं.
नैना घर पर ही रहती थी, अमन ने कई बार उसे कहा कि वह घर पर बोर हो तो नौकरी कर सकती है.

लेकिन नैना के मन में नौकरी का दूरदूर तक ख्याल नहीं था. एक दिन यों ही इंस्टाग्राम पर उसे किसी लड़के का मैसेज आया और नैना उस से बातें करने लगी. नौर्मल फ्लर्टिंग से शुरू हुई बात सैकस्टिंग तक पहुंच गई. पहले वह उस लड़के को डीप नेक वाली तस्वीरें भेजती और फिर अपनी सैक्सी लौंजरी फ़्लौंट करने लगी. नैना को इन सब में मजा आने लगा. बात एकदूसरे से मिलने तक भी पहुंची और एकदिन नैना दोपहर 1 बजे घर से निकली और शाम 5 बजे लौटी. आजकल रूम मिलना भी कोई मुश्किल काम नहीं. कामवाली को उस ने छुट्टी दे ही रखी थी तो उसे कोई टेंशन नहीं थी.

यह लड़का यही कोई 22 साल का था तो नैना को वैसे भी इस से प्यार जैसा कोई मतलब नहीं था लेकिन सैक्स में नैना को मजा आ रहा था. इस लड़के के साथ दो महीने टाइमपास के बाद नैना दूसरे और फिर तीसरे लड़के के साथ भी चैटिंग, सैक्सस्टिंग और फिर सैक्स करने लगी. अमन इन सब से अंजान था और नैना उसे शक का कोई मौका भी नहीं देती थी.

इसी तरह एक दिन वह विकास से मिली. विकास उसे अपनी एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में मिला था. विकास ने नैना को देखा तो उस पर लट्टू हो गया. विकास आकर्षक व्यक्तित्व का व्यक्ति था, लंबा कद, लहराते बाल, एमफिल का स्टूडेंट. नैना की शादी को अभी 2 साल भी नहीं हुए थे. विकास की हमउम्र भी थी. पार्टी में उस ने पेंसिल स्कर्ट और पीच कलर का टौप पहना हुआ था. गले में एक चैन और सिंदूर तो वह अब लगाती ही नहीं थी. इतनी अच्छी पर्स्नालिटी की लड़की पर आखिर किस का दिल न आए.

दोनों का इंटरोडक्शन हुआ और बातें शुरू होने लगीं. पसंदनापसंद, खूबसूरती की तारीफें, गाने डेडिकेट करना, साथ घूमनाफिरना, क्लब जाना और न जाने क्या क्या. नैना को हर समय विकास का ख्याल आता रहता, उस से मिलने का मन करता. वह उसे चाहने लगी थी और अब अमन के साथ उसे कोई खुशी नहीं थी.

‘सुनो,’ नैना ने एक दिन विकास को मैसेज किया.

‘कहो,’ विकास का जवाब आया.

‘मैं सोच रही थी कि आज कहीं चलते हैंम आई मीन समझ रहे हो न?’ नैना रोमांटिक होते हुए कहने लगी.

‘कहां जाना है?’ विकास मंदमंद मुसकाते हुए कहने लगा.

‘ज्यादा भोले मत बनो. तुम्हें पता है मैं कहां जाने की बात कर रही हूं, रूम में चलते हैं कहीं,’ नैना ने बनावटी अंदाज में कहा.

‘अच्छा क्या करेंगे,’ विकास भी बनावटी भोलेपन से कहने लगा.

‘अच्छा, बताऊं तुम्हें अब? जाओ नहीं जाना कहीं.’

‘अरे बाबा, मजाक कर रहा हूं मेरी जान, तुम समझती ही नहीं हो. मैं तो कब से तड़प रहा था.’

बस फिर क्या, नैना और विकास के मिलनेजुलने और सैक्स का सिलसिला चल पड़ा. अब वह बाहर जाने की बजाए विकास को घर बुलाने लगी.

एक दिन नैना ने अपनी कामवाली को छुट्टी दे रखी थी. विकास और नैना बेड पर लेटे हुए थे. विकास अनायास ही बोल पड़ा, ‘नैना, अपने पति को तलाक दे दो. मुझे तुम से शादी करनी है, हमेशा तुम्हारे साथ ही रहना है. हम दोनों साथ रहेंगे हमेशा.’

‘बेबी, तुम कमाते हो नहीं, तलाक से एक पैसा नहीं मिलेगा, खाएंगे क्या?’ नैना विकास के बालों को सहलाते हुए बोली.

‘तलाक नहीं दे सकती तो हम कबतक ऐसे छुपछुप कर मिलते रहेंगे?’

‘और कर भी क्या सकते हैं? तुम खुद बताओ?’ नैना बोल उठी.

विकास उठ कर अपने कपड़े पहनने लगा. उस का मन उदास होने लगा था. ‘हम कुछ दिन नहीं मिलेंगे अब,’ विकास ने कहा.

‘क्यों? अचानक यह शादी की बात कर के तुम मुझे उलझन में डाल रहे हो. तुम जानते हो मैं अमन को नहीं छोड़ सकती ऐसे, फिर भी?’

‘मैट्रो से आना अब सही नहीं है. तुम ने सुना न कोरोनावायरस के बारे में. मैं बस कुछ दिन रिस्क नहीं लेना चाहता. और तुम्हें इस बीच हमारे रिश्ते के बारे में सोचने का समय भी मिल जाएगा.’
‘बेबी, बस यही है तुम्हारी मोहब्बत? कोरोना से इतना डर कि मुझ से नहीं मिलोगे?’

‘कम से कम मुझे तुम से मोहब्बत तो है, तुम्हारी तरह दो नाव पर सवारी तो नहीं कर रहा मैं,’ विकास ने तंज कसते हुए कहा.

‘अच्छा, तो क्या करूं? मार दूं क्या अपने पति को तुम्हारे लिए?’ नैना अचानक चिल्ला उठी.

‘हां, मार दो,’ विकास ने कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया.

घड़ी में 8 बजकर 16 मिनट हुए और दरवाजे की बेल बजी. अमन को देख नैना ने मुसकुराते हुए उस के हाथ से बैग लिया. अमन अपने मुंह से मास्क हटाने लगा और सोफे पर जा बैठ गया. नैना अमन के लिए पानी का गिलास ले आई.

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‘कोरोनावायरस बहुत ज्यादा फैलने लगा है न?’ नैना ने अमन को गिलास थमाते हुए कहा.

‘हां, बहुत ज्यादा. सुनने में आ रहा है कि जल्द ही प्रधानमंत्री इस पर कुछ ऐक्शन लेने वाले हैं. हमारा काम भी वर्क फ़्रौम होम होने वाला है जल्दी ही. चलो अच्छा है इस बहाने तुम्हारे साथ समय बिताने का मौका भी मिलेगा.’

‘हां, डार्लिंग बिलकुल,’ नैना ने कहा और झूठी मुस्कराहट के साथ अमन को देखने लगी.

‘नैना, मुझे लग रहा है मुझे नई नौकरी के बारे में सोचना चाहिए.’
‘क्यों?’

‘मैं काफी समय से इंक्रीमेंट के बारे में सोच रहा हूं पर यह कंपनी खुद ही नुकसान में चल रही है तो नहीं करेगी.’

‘अच्छा, तुम्हें जैसा ठीक लगे.’

अमन बाथरूम में था जब नैना ने विकास को मैसेज किया, ‘मेरे पास एक प्लान है.’

अगले दिन प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि इस रविवार जनता कर्फ़्यू लगने वाला है. अमन की शनिवार को अकसर छुट्टी होती है लेकिन इस बार उसे औफिस बुलाया गया था. नैना ने विकास के साथ अमन को जान से मारने का प्लान ऐसा बनाया था कि किसी को उस पर भूल कर भी शक नहीं होता और वह अमन के मरने के बाद चैन से विकास के साथ रहती.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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