हत्यारा हमसफर : भाग 2

भारी पुलिस सुरक्षा के बीच 3 डाक्टरों के एक पैनल ने श्वेता और उस के मासूम बेटे श्रीयम के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद दोनों शव मृतका के पति रोहित के बजाय मृतका के मातापिता को सौंप दिए गए.

सुरेश कुमार मिश्रा बेटी श्वेता व नाती श्रीयम के शव सर्वोदय नगर (कानपुर) स्थित अपने घर ले आए. वहां भैरवघाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

अंतिम संस्कार का दृश्य बड़ा ही हृदय विदारक था. शव यात्रा के समय 22 महीने के श्रीयम का शव श्वेता की गोद में था. ठीक इसी तरह उन्हें चिता पर लिटाया गया. श्वेता का एक हाथ बेटे के ऊपर था. ठीक वैसे ही जैसे कोई सो रही मां अपने बेटे को अपनी बांहों की सुरक्षा देती है. श्मशान घाट पर जिस ने भी यह दृश्य देखा उस का कलेजा फट गया. लोग तो अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक सके.

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उधर डबल मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिए जयपुर पुलिस अधिकारियों ने मृतका के पति रोहित तिवारी पर शिकंजा कसा और उस से सख्ती से पूछताछ की. पुलिस अधिकारी उसे एयर पोर्ट ले गए और घटना वाले दिन यानी 7 जनवरी की सीसीटीवी फुटेज खंगाली.

पता चला कि उस रोज रोहित तिवारी सुबह 9 बजे एयरपोर्ट पहुंचा था और पत्नी की हत्या की सूचना मिलने के बाद एयरपोर्ट से घर को निकला था. फुटेज से यह भी पता चला कि रोहित घटना के समय वहां एक बैठक में मौजूद था.

उस के मोबाइल की लोकेशन भी दिन भर एयरपोर्ट की ही मिल रही थी. सारे सबूत रोहित के पक्ष में जा रहे थे जिस से पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पा रही थी. यद्यपि पुलिस अधिकारियों को पक्का यकीन था कि दोहरी हत्या में रोहित का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ हो सकता है.

पुलिस ने रोहित पर कड़ा रुख अपनाया तो पुलिस पर दबाव बनाने के लिए उस ने कोर्ट का रुख किया. 9 जनवरी को रोहित ने जयपुर की निचली अदालत में अपने वकील दीपक चौहान के मार्फत प्रार्थना पत्र दे कर पुलिस पर प्रताडि़त करने का अरोप लगाया.

कोर्ट ने इस मामले में प्रताप नगर थानाप्रभारी को 10 जनवरी को प्रकरण से जुड़े तथ्यों के साथ उपस्थित होने का आदेश दिया.

रोहित की इस काररवाई से पुलिस बौखला गई. जिस मोबाइल फोन से रोहित के मोबाइल पर मैसेज किया गया था, पुलिस ने उस मोबाइल फोन की जांच में जुट गई. जांच से पता चला कि श्वेता अपने मोबाइल फोन में पैटर्न लाक लगाती थी, जिसे कोई दूसरा नहीं खोल सकता था.

इस का मतलब मैसेजकर्ता ने श्वेता का सिम निकाल कर किसी दूसरे मोबाइल में डाला था. मैसेज करते समय इस मोबाइल फोन की लोकेशन जयपुर के सांगानेर की मिली. पुलिस फोन के आईएमईआई नंबर के सहारे उस दुकानदार तक पहुंची, जहां से वह हैंडसेट खरीदा गया था.

वहां से मोबाइल खरीदार के बारे में जानकारी नहीं मिली तो उस फोन के आईएमईआई (इंटरनैशनल मोबाइल इक्विपमेंट आइडेंटिटी) नंबर को ट्रेस कर पुलिस मैसेजकर्ता तक पहुंच गई.

पुलिस मैसेजकर्ता को उस के घर से पकड़ कर थाने ले आई. उस ने अपना नाम सौरभ चौधरी निवासी भरतपुर (राजस्थान) तथा हाल पता सांगानेर बताया. उस से जब श्वेता व उस के मासूम बेटे श्रीयम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने ऐसा कुछ करने से इनकार किया.

लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो वह टूट गया और दोहरी हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. सौरभ चौधरी ने बताया कि रोहित तिवारी ने ही उसे 20 हजार रुपए दे कर पत्नी व बेटे की हत्या की सुपरी दी थी. मतलब दोहरी हत्या की साजिश रोहित ने ही रची थी.

सौरभ से पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने 10 जनवरी, 2020 को रोहित तिवारी को भी बंदी बना लिया. थाने में जब उस का सामना सौरभ चौधरी से हुआ तो उस का चेहरा लटक गया और उस ने सहज ही पत्नी श्वेता की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

डबल मर्डर के हत्यारों के पकड़े जाने की जानकारी पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और डीसीपी (पूर्वी) डा. राहुल जैन को हुई तो वह थाना प्रताप नगर आ गए. उन्होंने आरोपियों से पूछताछ की, फिर प्रैसवार्ता कर घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 302/201 तथा 120बी के तहत सौरभ चौधरी तथा रोहित तिवारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर एक ऐसे पति की कहानी सामने आई जिस ने दूसरी शादी रचाने के लिए अपनी पत्नी व बच्चे के कत्ल की साजिश रच डाली.

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उत्तर प्रदेश के कानुपर महानगर के काकादेव थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है सर्वोदय नगर. सुरेश कुमार मिश्रा अपने परिवार के साथ इसी सर्वोदय नगर में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी मिश्रा के अलावा एक बेटा और 3 बेटियां थीं. सुरेश कुमार मिश्रा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) में अधिकारी थे, जो अब रिटायर हो चुके हैं. उन का आलीशान मकान है, मिश्राजी अपनी 2 बेटियों की शादी कर चुके थे.

श्वेता सुरेश कुमार मिश्रा की सब से छोटी बेटी थी. वह अपनी दोनों बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी. जब वह आंखों पर काला चश्मा लगा कर घर से बाहर निकलती थी तो लोग उसे मुड़मुड़ कर देखते थे, लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती थी. श्वेता ने कानपुर छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय से बीए किया था.

वह आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सके, लेकिन पिता सुरेश कुमार मिश्रा कोई अच्छा घरवर ढूंढ कर उस के हाथ पीले करना चाहते थे. उन्होंने उस के लिए वर की खोज भी शुरू कर दी. उसी खोज में उन्हें रोहित तिवारी पसंद आ गया.

रोहित के पिता उमाशंकर तिवारी मूल रूप से औरैया जनपद के गांव कंठीपुर के रहने वाले थे, लेकिन वह दिल्ली के गांधी नगर के रघुवरपुरा स्थित माता मंदिर वाली गली में रहते थे. उमाशंकर तिवारी के परिवार में पत्नी कृष्णादेवी के अलावा बेटा रोहित तथा 2 बेटियां थीं. बेटियों की शादी वह कर चुके थे.

रोहित अभी कुंवारा था. रोहित पढ़ालिखा हैंडसम युवक था. वह इंडियन आयल कारपोरशन में मैनेजर था. उस की पोस्टिंग दिल्ली में ही थी. सुरेश कुमार मिश्रा ने रोहित को देखा तो उसे अपनी बेटी श्वेता के लिए पसंद कर लिया.

फिर 24 जनवरी, 2011 को रीतिरिवाज से रोहित के साथ श्वेता का विवाह धूमधाम से कर दिया. उस की शादी में उन्होंने लगभग 30 लाख रुपए खर्च किए थे.

शादी के बाद श्वेता और रोहित ने बड़े प्रेम से जिंदगी का सफर शुरू किया. हंसतेखेलते 2 साल कब बीत गए दोनों में किसी को पता ही न चला. लेकिन इन 2 सालों में श्वेता मां नहीं बन सकी. सूनी गोद का दर्द जहां श्वेता और रोहित को था, वहीं श्वेता के सासससुर को भी टीस थी. सास कृष्णादेवी तो श्वेता को ताने भी देने लगी थी.

इतना ही नहीं, श्वेता को कम दहेज लाने की भी बात कही जाने लगी. उस के हर काम में कमी निकाली जाने लगी. यहां तक कि उस के खानपान और पहनावे पर भी सवाल उठाए जाने लगे. उसे तब और गहरी चोट लगी जब उसे पता चला कि उस के पति रोहित के किसी अन्य लड़की से नाजायज संबंध हैं, जो उस के साथ कालेज में पढ़ती थी.

वर्ष 2013 में जब श्वेता की प्रताड़ना ज्यादा बढ़ गई तो वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. यहां वह 7 महीने तक रही. उस के बाद एक प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता ने बीच में पड़ कर समझौता करा दिया. उस के बाद सुरेश कुमार मिश्रा ने श्वेता को ससुराल भेज दिया.

ससुराल में कुछ समय तक तो उसे ठीक से रखा गया. लेकिन उसे फिर से प्रताडि़त किया जाने लगा. मांबाप की नुकताचीनी पर रोहित उसे पीट भी देता था. कृष्णा देवी तो सीधेसीधे उसे बांझ होने का ताना देने लगी थी. ननद नूतन और मीनाक्षी भी अपने मांबाप व भाई का ही पक्ष ले कर प्रताडि़त करती थीं.

ससुराली बातों की प्रताड़ना से दुखी हो कर श्वेता ने एक रोज अपनी बड़ी बहन सपना को एक खत भेजा, जिस में उस ने अपना दर्द बयां करते हुए लिखा, ‘सपना दीदी, रोहित तथा उस के मांबाप मुझे बहुत परेशान करते हैं. चैन से जीने नहीं देते. सब पीटते हैं, मुझे नीचा दिखाते हैं. खाने को भी नहीं देते. यहां तक कि मेरे पहनावे पर सवाल उठाते हैं.

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‘‘मुझे यह भी पता चला है कि रोहित के एक युवती से संबंध हैं. वह उस के कालेज समय की दोस्त है. वह उसी से प्यार करता है. यही वजह है कि वह मुझे प्रताडि़त करता है. उसे मेरी हर बात बुरी लगती है. मामूली बातों पर मारपीट कर घर से जाने को कहता है. सासससुर भी उसी का साथ देते हैं. नौकरानी की तरह दिन भर घर का काम करवाते हैं. यदि मेरे साथ कोई अप्रिय वारदात हो जाए तो ये सभी जिम्मेदार होंगे.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

जिद : मां के दुलार के लिए तरसी थी रेवा

एक पति ऐसा भी : भाग 3

इस बार विनीता ससुराल आई तो उस के तेवर उग्र थे. बात व्यवहार करने का तरीका भी बदल गया था. शायद पति द्वारा किया गया अपमान उसे सता रहा था. जब वह बीते पलों के बारे में सोचती तो उस की आंखें में गुस्सा उतर आता. सास उस के काम में रोकाटोकी करती तो वह उस से झगड़ा कर बैठती. पति को भी वह करारा जवाब दे देती थी.

बहू के इस व्यवहार से दुखी हो कर खेमराज अहिरवार ने उसे संयुक्त परिवार में रखने के बजाय अलग कर दिया. उन्होंने उसे अजनारी रोड वाला मकान रहने को दे दिया. इस टिन शेड वाले मकान के पीछे वाले भाग में प्रमोद विनीता व बच्चों के साथ रहने लगा. मकान के अगले हिस्से में बने 3 कमरे किराए पर उठे थे.

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इस मकान में लगभग 6 माह तक विनीता और प्रमोद ठीक से रहे, उस के बाद दोनों में पुन: झगड़ा होने लगा. झगड़ा बेरोजगारी को ले कर होता था. मकान में आने वाले किराए से विनीता परिवार का खर्चा नहीं चला पा रही थी. उसे सदैव आर्थिक परेशानी से जूझना पड़ता था.

वह प्रमोद से खर्चा मांगती तो वह कहता कि मायके से ले कर आओ. विनीता 2-4 बार तो मायके से खर्च के पैसे ले आई. लेकिन हर बार जाने से उस ने मना कर दिया. तब प्रमोद उस से झगड़े पर उतारू हो जाता. इस तरह उन में तकरार होने लगी.

साल 2018 की फरवरी माह की बात है. एक रोज खाना न बनाने को ले कर विनीता को प्रमोद ने पीट दिया तो विनीता महिला थाने पहुंच गई. वहां उस ने पति की शिकायत की तो प्रमोद को थाने बुलाया गया. वहां पुलिस ने प्रमोद को डरायाधमकाया और झगड़ा या मारपीट न करने की नसीहत दी. बाद में पुलिस ने इस मामले को जिला परिवार परामर्श केंद्र भेज दिया. परामर्श केंद्र से दोनों का समझौता हो गया.

विनीता और प्रमोद के बीच समझौता हो जरूर गया था, लेकिन उन के बीच तनाव कम नहीं हुआ था. किसी न किसी बात को ले कर उन में झगड़ा हो ही जाता था. प्रमोद के मन में अब विनीता के प्रति नफरत की आग सुलगने लगी थी. यह आग जब शोला बन गई तो प्रमोद ने विनीता की हत्या करने की ठान ली और हत्या की गहरी साजिश रच डाली.

योजना के अनुसार 18 मई, 2018 की सुबह करीब 10 बजे प्रमोद अपने पिता खेमराज के घर पहुंचा. उस के साथ उस की तीनों बेटियां भी थीं. उस ने पिता से कहा कि वह काम करने के लिए दिल्ली जा रहा है, विनीता को भी साथ ले जाएगा. इसलिए इन्हें यहां छोड़ने आया है.

न जाने क्यों पिता खेमराज व मां रामवती ने आवारा बेटे की बातों पर विश्वास कर लिया और वह उन मासूम बच्चियों को अपने पास रखने के लिए तैयार हो गए.

बेटियों को मातापिता के घर छोड़ कर प्रमोद वापस घर आ गया. चूंकि विनीता की बेटियां एकदो दिन के लिए दादादादी के घर चली जाती थीं, इसलिए विनीता ने इस तरह ज्यादा ध्यान नहीं दिया और न ही पति से तर्कवितर्क किया.

प्रमोद भी दिनभर सामान्य बना रहा. पति की साजिश की विनीता को जरा भी भनक नहीं लगी. शाम को विनीता ने खाना बनाया. उस ने पहले प्रमोद को खाना खिलाया फिर स्वयं भी खाना खाया. चौकाबरतन साफ कर वह चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद वह गहरी नींद में सो गई.

लेकिन प्रमोद की आंखों में नींद नहीं थी. उसे तो इसी वक्त का इंतजार था. वह आहिस्ताआहिस्ता विनीता की चारपाई के पास पहुंचा और उसी की साड़ी से उस का गला कसने लगा. विनीता की आंखें खुलीं तो पति को गला घोंटते पाया.

उस ने बचाव का भरपूर प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सकी. कुछ देर घटपटाने के बाद उस की मौत हो गई.

पत्नी की हत्या करने के बाद प्रमोद ने रात के सन्नाटे में कमरे के अंदर फावड़े से करीब 4 फीट गहरा गड्ढा खोदा और उस में विनीता की लाश दफन कर दी. दूसरे रोज वह ईंट की गिट्टी लाया और कमरे में बिछा कर दुरमुट से खूब कुटाई की. फिर राजमिस्त्री से कमरे का फर्श बनवा दिया.

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किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी. इस के बाद वह कमरा बंद कर दिल्ली चला गया. दिल्ली में वह क्या करता है, कहां रहता है इस की जानकारी उस ने न तो अपने मांबाप को दी और न ही किसी और को.

इधर जब 3 महीने बीत गए और उर्मिला की बेटी से फोन पर भी बात नहीं हो सकी तो उर्मिला अपनी बड़ी बेटी वंदना के साथ उस के घर आई. लेकिन कमरे में ताला लटक रहा था. वह रामनगर स्थित विनीता के ससुर खेमराज के पास गई. खेमराज ने बताया कि विनीता और प्रमोद दिल्ली में हैं. बच्चे उस के साथ हैं. प्रमोद दिल्ली में नौकरी करने लगा है.

उर्मिला ने खेमराज से प्रमोद का मोबाइल नंबर लिया और फिर प्रमोद से फोन पर बात की. प्रमोद ने बताया कि वह दिल्ली में है. विनीता भी उस के साथ है. उर्मिला ने जब उस से विनीता से बात कराने को कहा तो उस ने कह दिया कि वह इस समय ड्यूटी पर है, विनीता से बात नहीं हो पाएगी.

इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. जब भी उर्मिला या कालीचरण प्रमोद से फोन पर बात करते और विनीता से बात कराने को कहते तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. न ही वह दिल्ली में अपने रहने का ठिकाना बताता था.

धीरेधीरे एक साल बीत गया. लेकिन वह बेटी की आवाज नहीं सुन सकी. विनीता के संबंध में जानकारी करने उर्मिला कभीकभी उस के अजनारी रोड स्थित घर भी आती थी और किराएदारों से पूछताछ करती थी. लेकिन उसे क्या पता था कि जिस बेटी की तलाश में वह भटक रही है, उस का शव कमरे में दफन है.

उर्मिला जब परेशान हो गई तो उस ने प्रमोद की टोह में उसी के मकान में रहने वाले एक किराएदार की मदद ली. उर्मिला ने उस से कहा कि जब भी प्रमोद अपने कमरे में आए उसे तत्काल मोबाइल पर फोन कर दे. उस ने किराएदार को अपना फोन नंबर दिया, साथ ही सटीक सूचना पर पैसों का लालच भी दिया.

3 जनवरी, 2020 की सुबह उर्मिला को किराएदार ने सूचना दी कि प्रमोद दिल्ली से अपने घर आया है और कमरे में मौजूद है. लेकिन उस के साथ विनीता नहीं है. यह सूचना पाते ही उर्मिला और कालीचरण उरई कोतवाली पहुंच गए और पुलिस को सूचना दी.

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5 जनवरी, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त प्रमोद कुमार अहिरवार से पूछताछ कर उसे उरई की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट डी. एन. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मां की हत्या और पिता के जेल जाने के बाद मासूम बच्चियों को संभालने की जिम्मेदारी मृतका की बहनों ने ली है. मृतका की बड़ी बहन वंदना 4 वर्षीय कनिष्का का पालनपोषण करेगी जबकि लाली 3 वर्षीय गुंजन का. नौभी 2 वर्षीय परी का पालनपोषण करेगी. तीनों के पति भी इस के लिए तैयार हो गए.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिद : भाग 3- मां के दुलार के लिए तरसी थी रेवा

वैब चौइस से उसे प्लेन में अच्छी सीट मिल गई थी और वह सामान रख कर सोने के लिए पसर गई. 1-2 घंटे की गहरी नींद के बाद रेवा की आंख खुल गई. पहले सीट के सामने वाली टीवी स्क्रीन पर मन बहलाने की कोशिश करती रही, फिर बैग से च्युंगम निकालने के लिए हाथ डाला तो साथ में मां की वह डायरी भी निकल आई. मन में आया कि देखूं, आखिर मां मुझ से क्या कहना चाहती थीं जो उन्हें इस डायरी को लिखना पड़ गया. कुछ देर सोचने के बाद उस ने उस पर लगी सील को खोल डाला और समय काटने के लिए पन्ने पलटने शुरू किए. एक बार पढ़ने का सिलसिला जब शुरू हुआ तो अंत तक रुका ही नहीं.

पहले पेज पर लिखा, ‘‘सिर्फ अपनी प्रिय रेवा के लिए,’’ दूसरे पन्ने पर मोती के जैसे दाने बिखरे पड़े थे. लिखा था, ‘‘मेरी प्रिय छोटी सी लाडो बिटिया, मेरी जान, मेरी रेवू, जब तुम यह डायरी पढ़ रही होगी, मैं तुम्हारे पास नहीं हूंगी. इसीलिए मैं तुम्हें वह सबकुछ बताना चाहती हूं जिस की तुम जानने की हकदार हो.

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‘‘मैं अपने मन पर कोई बोझ ले कर जाना नहीं चाहती और तुम मेरी बात समझने तो क्या, सुनने के लिए भी तैयार नहीं थी. सो, जातेजाते अपनी वसीयत के तौर पर यह डायरी दे कर जा रही हूं क्योंकि तुम हमारी पहली संतान हो तुम, जैसी नन्ही सी परी पा कर मैं और तुम्हारे पापा निहाल हो उठे थे.

‘‘धीरेधीरे मैं तुम में अपना बचपन तलाशने लगी. छोटी होने के नाते मैं जिस प्यार व चीजों से महरूम रही, वे खिलौने, वे गेम मैं ढूंढ़ढूंढ़ कर तेरे लिए लाती थी. जब तुम्हारे पापा कहते, ‘तुम भी बच्चे के साथ बच्चा बन जाती हो,’ सुन कर ऐसा लगता कि मेरा अपना बचपन फिर से जी उठा है. धीरेधीरे मैं तुम में अपना रूप देखने लगी और तुम्हारे साथ अपना बचपन जीने लगी. जो कुछ भी मैं बचपन में नहीं हासिल कर पाई थी, अब तलाश करने की कोशिश करने लगी.

‘‘समय के साथ तुम बड़ी होने लगी और मेरी फिर से अपना बचपन सुधारने की ख्वाहिश बढ़ने लगी. तुम पढ़ने में बहुत तेज थी. प्रकृति ने तुम्हें विलक्षण बुद्धि से नवाजा था. तुम हमेशा क्लास में प्रथम आती और मुझे लगता कि मैं प्रथम आई हूं. यहां तुम्हें यह बताना चाहती हूं कि मैं बचपन से ही पढ़ाई में काफी कमजोर थी, पर तुम्हें यह बताती रही कि मैं भी हमेशा तुम्हारी तरह कक्षा में प्रथम आती थी. इसीलिए मेरे मन में एक ग्रंथि बैठ गई थी कि मैं तुम्हारे द्वारा अपनी उस कमी को पूरा करूंगी.

‘‘समय के साथसाथ मेरी यह चाहत सनक बनती चली गई और मैं तुम पर पढ़ाई के लिए अधिक से अधिक जोर डालने लगी. जब मुझे लगा कि घर पर तुम्हारी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाएगी, तो मैं ने तुम्हारे पापा के लाख समझाने को दरकिनार कर छोटी उम्र में ही तुम्हें होस्टल में डाल दिया. इस तरह मैं ने तुम्हारा बचपन छीन लिया और तुम भी धीरेधीरे मशीन बनती चली गई. दूसरी तरफ रेवती पढ़ने में कमजोर थी और मैं उसे खुद ले कर पढ़ाने बैठने लगी. जरा सी डांट पर रो देने वाली रेवती, हमारे प्यारदुलार का ज्यादा से ज्यादा हकदार बनती चली गई और मुझे पता ही नहीं चला. और तो और, मुझे पता नहीं चला कि कब तुम्हारे हिस्से का प्यार भी रेवती के हिस्से में जाने लगा.

‘‘तुम्हारे लिए अपना प्यार जताने का हमारा तरीका थोड़ा अलग था. मैं सब के सामने तुम्हारी तारीफों के कसीदे पढ़ कर, उस पर गर्व करने को ही प्यार देना समझती रही. पर सच जानो रेवू, मैं तुम्हें उस से भी ज्यादा प्यार करती थी जितना कि रेवती को करती थी. पर क्या करूं, यह कभी बताने या दिखाने का मौका ही नहीं मिल सका या हो सकता है कि मेरा प्यार दिखाने या जताने का तरीका ही गलत था.

‘‘जैसेजैसे तुम बड़ी होती गई, तुम्हारे मन में धीरेधीरे विद्रोह के स्वर उभरने लगे. मैं तुम्हें आईएएस बनाना चाहती थी जिस से अपनी हनक अपने जानपहचान, नातेरिश्तेदारों व दोस्तों पर डाल सकूं. पर तुम ने इस के लिए साफ इनकार कर दिया और प्रतियोगिता के कुछ प्रश्न जानबूझ कर छोड़ दिए. तुम्हारी या कहो मेरी सफलता में कोई बाधा न आए, इसलिए मैं ने तुम्हें किसी लड़के से प्यारमुहब्बत की इजाजत भी नहीं दी थी. पर तुम ने उस में भी सेंध लगा दी और विद्रोह के स्वर तेज कर दिए और सरस से चुपचाप विवाह कर लिया.

‘‘तुम तो विलक्षण प्रतिभा की धनी थी, इसलिए एक मल्टीनैशनल कंपनी ने तुम्हें हाथोंहाथ ले लिया. पर तुम ने अपनी मां के एक बड़े सपने को चकनाचूर कर दिया. इस के बाद तो तेरी मां ने सपना ही देखना बंद कर दिया. समय के साथ, मैं ने तुम्हारे पति को भी स्वीकार कर लिया और सबकुछ भूल कर तुम्हारे कम मिले प्यार की भरपाई करने में जुट गई. पर अब तुम इस के लिए तैयार नहीं थी, तुम्हारे मन में पड़ी गांठ, जिसे मैं खोलने या कम से कम ढीला करने की कोशिश कर रही थी, उसे तूने पत्थर सा कठोर बना लिया था. हां, अपने पापा के साथ तुम्हारा व्यवहार सदैव मीठा, स्नेहपूर्ण व बचपन जैसा ही बना रहा.

‘‘तुम्हारी यह बेरुखी या अनजानेपन वाला व्यवहार मेरे लिए सजा बनता गया, जिसे लगता है मैं अपने मरने के बाद भी साथ ले कर जाऊंगी. पर रेवू, कभी तूने सोचा कि मैं भी तो एक मां हूं और हर मां की तरह मेरा दिल भी अपने बच्चों के प्यार के लिए तरसता होगा. तुम और रेवती दोनों मेरी भुजाओं की तरह हो और मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं ने अपने दाएं हाथ, अपनी रेवी पर ज्यादा भरोसा कर लिया. हर मां की तरह मेरे मन में भी कुछ अरमान थे, कुछ सपने थे जिन्हें मैं ने तुम्हारी आंखों से देखने की कोशिश की. अगर इस के लिए मैं गुनाहगार हूं, तो मैं अपना गुनाह स्वीकार करती हूं. पर अफसोस तूने तो बिना कुछ मेरी सफाई सुने, मेरे लिए मेरी सजा भी मुकर्रर कर दी और उस की मियाद भी मेरे मरने तक सीमित कर दी.

‘‘मैं ने यह डायरी इस आशय से तुम्हें लिखी है कि शायद आज तुम मेरी बात को समझ सको और अपनी मां को अब माफ कर सको. अंत में ढेर सारे आशीर्वाद व उस स्नेह के साथ जो मैं तुम्हें जीतेजी न दे सकी…तेरी मां.’’

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डायरी का आखिरी पन्ना पलट कर, रेवा ने उसे बंद कर दिया. कभी न रोने वाली रेवा का चेहरा आंसुओं से तरबतर होता चला गया और इतने दिनों की वो जिद, वो गांठ भी साथ ही घुलने लगी. पर आज उस ने भी उन आंसुओं को न तो पोंछा, न ही रोका. उसे लगा सर्दी बढ़ गई है और उस ने कंबल को सिर तक ढक लिया. वह ऐसे सो गई जैसे कोई बच्चा अपनी मां की खोई हुई गोद में इतमीनान से सो जाता है.

आज रेवा को भी लगा कि मां कहीं गई नहीं है और पूरी शिद्दत से आज भी उस के पास है. मां की गोद में सोई रेवा की आंखों से आंसू मोती बन कर बह रहे थे. तभी उसे लगा, मां ने उस के आंसू पोंछ कर कहा, ‘अब क्यों रोती है मेरी लाड़ो, अब तो तेरी मां हमेशा तेरे पास है.’ …और रेवा करवट बदल कर फिर गहरी नींद में चली गई.

जिद : भाग 2- मां के दुलार के लिए तरसी थी रेवा

इस शहर से जाने के बाद भी पापा, हर महीने एक बार छुट्टी वाले दिन जरूर मिलने आते और कभीकभार मम्मी भी साथ में आतीं. मां आते ही उस के हालचाल जानने से पहले ही पढ़ाई के बारे में पूछने बैठ जातीं. सो, पापा का अकेले आना, उसे हमेशा बड़ा भाता था. वह जो भी फरमाइश करती, पापा तुरंत पूरी करते, तरहतरह की ड्रैसेस दिलाते, लंच व डिनर बाहर ही होता व उस की मनपसंद आइसक्रीम दिन में कई बार खाने को मिलती. इस तरह धीरेधीरे रेवा अपनी मां से दूर होने लगी और अकसर एक रटारटाया मुहावरा उस के मुंह पर आने लगता, ‘‘मां तो बस, रेवती की ही मां हैं. सारा प्यार मां ने उस के लिए ही रख छोड़ा है, मुझ से तो वे प्यार करती ही नहीं.’’

इंटर तक रेवा उसी कालेज में पढ़ती रही और उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में पूरे प्रदेश में मैरिट में प्रथम स्थान प्राप्त कर कीर्तिमान स्थापित कर दिया. उस कालेज की पिं्रसिपल ने तो फेयरवैल पार्टी वाली स्पीच में यहां तक कह दिया कि इस लड़की रेवा का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में होेने से कोई नहीं रोक सकता और इस कालेज को उस पर बहुत गर्व है.

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छोटे से शहर लखनऊ के उस छोटे कालेज से निकल कर रेवा को लेडी श्रीराम कालेज, दिल्ली में दाखिला हाथोंहाथ मिल गया. साथ ही, मां ने उसे आईएएस के ऐंट्रैंस की कोचिंग भी जौइन करा दी. फिर तो रेवा अपनी पढ़ाई की भागदौड़ में इस तरह मसरूफ हो गई कि उसे मां के पास रहने और उन का प्यारदुलार पाने का मौका ही नहीं मिला जिस के लिए वह हमेशा तरसती रही थी.

पता नहीं कैसे, एक दिन अचानक रेवा को लगने लगा कि वह तो एकदम मशीन बनती जा रही है और इस के लिए अब उस का मन कतई तैयार नहीं था. रहरह कर उसे अब बचपन के वे दिन याद आ रहे थे, जब वह मांबाप के प्यार से वंचित रही. धीरेधीरे उस में विद्रोह के मूकस्वर उठने लगे. सब से पहले उस ने कालेज में टौप करने के लक्ष्य को ढीला छोड़ना शुरू कर दिया. उस के मन में एकाएक खयाल आया कि अगर वह दूसरे स्थान पर आ जाती है, तो किसी को क्या फर्क पड़ने वाला है. इस के बाद उस ने आईएएस कोचिंग में भी ढील देनी शुरू कर दी. इन बातों से रेवा की एक अजीब सी जिद हो गई. इस कारण वह क्लास में पहले द्वितीय, फिर तृतीय स्थान पर आ गई जिस से उस के सभी साथी आश्चर्यचकित रह गए. इसी तरह आईएएस कोचिंग के साप्ताहिक टैस्टों में उस के नंबर कमतर आने शुरू हो गए.

जैसे ही मां को इस का पता चला, वे दिल्ली पहुंच गईं और उसे लगातार डांटती रहीं. रेवा को यह देख कर बड़ा सदमा लगा कि रेवती को हर साल नंबर कम आने पर प्यार से समझाने वाली मां, आज कहां खो गई हैं. मां तो डांट कर चली गईं, पर रेवा के मन में एक विद्रोह की चिनगारी को अनजाने में और भड़का गईं. रेवा सोचती रही कि मां अगर प्यार के दो बोल बोल कर समझा देतीं तो कौन सा आसमान छूना उस के लिए संभव न था.

इसी बीच एक और बात हो गई. मां की खास सहेली मंदिरा का लड़का और उस का बालपन का सखा सरस भी दिल्ली आ गया. एक दिन सरस से उस की मुलाकात एक मौल में हो गई. दोनों ने वहां कौफी पी और एकदूसरे का मोबाइल नंबर एक्सचेंज किया. फिर तो आपस में बातों का सिलसिला ऐसा चला कि बचपन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, पता ही न चला. सरस ने अपनी मां से जब इस बारे में बात की तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा.

अगला अवसर मिलते ही, सरस की मां मंदिरा आंटी, मां के पास पहुंच गई. जैसे ही उन्होंने मां को बताया कि सरस व रेवा आपस में प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं, मां का चेहरा उतर गया. जब उन्हें पता चला कि सरस ने इंजीनियरिंग की है और वह जौब पाने के लिए प्लेसमैंट फौर्म भर रहा है, तो मां ने इस शादी के लिए यह कह कर इनकार कर दिया कि रेवा को तो अभी आईएएस बनना है. एक इंजीनियर व आईएएस में शादी कैसे हो सकती है.

जैसे ही रेवा को इस बात का पता चला, विद्रोह की वह छोटी सी चिनगारी एकदम ज्वाला बन गई. परिणामस्वरूप, उस ने प्रतियोगिता परीक्षा का एक पेपर ही छोड़ दिया. मां को जब इस का पता चला तो वे बहुत चीखीचिल्लाईं. कितनी ही बार पूछने पर भी कि उस ने ऐसा क्यों किया, रेवा खामोश बनी रही. कुछ असर न होता देख, मां रेवा को समझाने बैठ गई. काफी देर बाद, रेवा ने जो पहला वाक्य कहा, वह यह था कि वे उसे सरस से विवाह करने देंगी या नहीं, अन्यथा दोनों कोर्टमैरिज कर लेंगे. अब तो मां रोने बैठ गईं, परंतु इन बातों का रेवा पर कोई असर नहीं हुआ. कुछ दिन रुक कर वह दिल्ली लौट गई और उस ने पत्रकारिता के कोर्स में प्रवेश ले लिया. धीरेधीरे रेवा ने घर आना भी कम कर दिया.

इधर, सरस को एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर जौब मिल गई और उधर रेवा को दूरदर्शन के न्यूज चैनल में काम मिल गया. मां ने लाख समझाया, पर रेवा ने भी जिद पकड़ ली और इस के बाद फिर आईएएस की प्रतियोगिता में बैठी ही नहीं. बाद में सरस और रेवा ने विवाह कर लिया जिस में मां शामिल तो हुईं पर बड़े ही बेमन से. इस के कुछ सालों बाद, रेवा सरस के साथ लास एंजिल्स चली गई और वहीं की नागरिकता ले ली.

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‘‘दीदी, चाय बना रही हूं, पियोगी.’’ रेवती की आवाज सुन कर रेवा वापस वर्तमान में लौट आई. उसे लगा कि बचपन की कड़वाहट फिर से मुंह को कसैला कर गई. कई बार रेवा मन को समझा चुकी है कि मां के जाने के बाद उसे अब सबकुछ भूल जाना चाहिए. परंतु वह क्या करे, मन के बेलगाम घोड़े अब भी उसी जानीपहचानी व अनचाही राह पर निकल पड़ते हैं.

मां की बरसी के बाद रेवा ने जाने की तैयारी शुरू कर दी. रेवती के बहुत कहने के बाद, उस ने मां के कपड़ों में से 1-2 साडि़यां रख लीं और मां की 1-2 छोटीबड़ी तसवीरें. आखिर नियत तिथि पर रेवा चली गई. यद्यपि उस ने लाख मना किया, पर रेवती व उस का पति राकेश उसे एअरपोर्ट तक छोड़ने आए. उस का छोटा बच्चा रेवा मौसी की गोद में ही बैठा रहा और लगातार उस से पूछता रहा, ‘‘मौसी, आप फिर कब आओगी?’’ रेवा उस नन्हे से, फिर से आने का वादा कर के सिक्योरिटी चैक से अंदर चली गई. उसे लगा कि जितना वह इन बंधनों को भूलना चाहती है, एक नया मोहपाश उसे बांधने को तैयार खड़ा मिलता है.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

एक पति ऐसा भी : भाग 2

पुलिस अधिकारियों के समक्ष जब प्रमोद से पूछताछ की गई तो पत्नी की हत्या कर शव ठिकाने लगाने की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी –

जालौन उत्तर प्रदेश राज्य का एक पिछड़ा जिला है. जहां आवागमन के साधन भी कम हैं और रेल सुविधा भी नहीं है. इस पिछड़ेपन के कारण जालौन जिले के सभी प्रशासनिक कार्य उरई कस्बे में होते हैं. उरई, जालौन जिले का उपजिला कहलाता है, यहां दवा बनाने वाली मशहूर कंपनी सन इंडिया फार्मेसी है, जहां सैकड़ों कर्मचारी काम करते हैं, जिस से वहां दिनभर चहलपहल बनी रहती है.

उरई कस्बे से 3 किलोमीटर दूर एक गांव है सरसौखी, जो थाना कोतवाली उरई के अंतर्गत आता है. इसी सरसौखी गांव में कालीचरण अहिरवार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 4 बेटियां वंदना, लाली, नौभी तथा विनीता थीं.

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मध्यमवर्गीय कालीचरण के घर का खानापीना व अन्य खर्च खेत में पैदा होने वाली फसलों से चलता था. इसी से बच्चों की परवरिश होती गई. जैसेजैसे बेटियां जवान होती गईं, कालीचरण ने उन की शादी कर दी. वह 3 बेटियों के हाथ पीले कर चुके थे. अब सब से छोटी बेटी विनीता ही शादी के लिए बची थी.

विनीता अपनी अन्य बहनों से कुछ ज्यादा ही खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चारचांद लगाता था उस का स्वभाव. हाईस्कूल पास करने के बाद वह आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन मांबाप ने यह कह कर उस की पढ़ाई पर विराम लगा दिया कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की के लिए वर खोजने में दिक्कत होती है और दहेज भी ज्यादा देना पड़ता है.

कालीचरण अपनी अन्य बेटियों की तरह विनीता को भी इज्जत के साथ उस के हाथ पीले कर देना चाहता था, किंतु इन्हीं दिनों विनीता के कदम बहक गए. जिस की वजह से गांव बिरादरी में उन की बदनामी होने लगी.

गरीबों की जमापूंजी उन की मानमर्यादा और इज्जत होती है. जब कालीचरण को इस बात का पता चला तो अपनी इज्जत बचाए रखने के लिए वह विनीता के लिए वर की खोज में जुट गए. काफी प्रयास के बाद एक रिश्तेदार के माध्यम से वर के रूप में उन्हें प्रमोद कुमार मिल गए.

प्रमोद कुमार के पिता खेमराज अहिरवार उरई कस्बे के रामनगर मोहल्ले में रहते थे. खेमराज के परिवार में पत्नी रामवती के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा प्रमोद कुमार था. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. प्रमोद कुमार ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था और रोजगार की तलाश में जुटा था. खेमराज, दिल्ली स्थित राष्ट्रीय भवन निर्माण विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था.

सरकारी कर्मचारी होने के साथसाथ उस की खेती की भी जमीन थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

रामनगर मोहल्ले में उस के 2 मकान थे. एक मकान में वह स्वयं परिवार साहित रहता था, जबकि दूसरा मकान अजनारी रोड पर रेलवे क्रासिंग के पास था, टिन शेड वाले इस मकान में किराएदार रहते थे.

हालांकि प्रमोद कुमार बेरोजगार था और उस का रंगरूप भी सामान्य था. लेकिन उस के पिता खेमराज की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कालीचरण ने उसे अपनी बेटी विनीता के लिए पसंद कर लिया. फिर सामाजिक रीतिरिवाज से 25 अप्रैल, 2011 को विनीता का प्रमोद कुमार के साथ विवाह कर दिया.

शादी के बाद विनीता जब अपनी ससुराल पहुंची तो ससुराल में सब खुश थे, लेकिन विनीता खुश नहीं थी. दरअसल शादी के पहले विनीता ने पति के रूप में जिस सजीले युवक के सपने संजोये थे, प्रमोद वैसा नहीं था.

एक तो वह सांवले रंग का था, दूसरे वह अक्खड़ स्वभाव का था. इस के अलावा वह बेरोजगार भी था. शुरू में तो विनीता ने पति के साथसाथ सासससुर की भी सेवा की लेकिन आगे चल कर धीरेधीरे उस के स्वभाव में बदलाव आने लगा.

अब विनीता का मन ससुराल में कम मायके में ज्यादा लगने लगा. इस से प्रमोद को शक होने लगा कि कहीं शादी से पहले विनीता के गांव के किसी युवक से अवैध संबंध तो नहीं थे. उस ने इस बाबत गुप्तरूप में पता किया तो जानकारी मिली कि शादी से पहले विनीता के कदम डगमगा गए थे.

विनीता के अपने ही अतीत ने उस के जीवन में कैक्टस उगा दिए थे, जिस में खुशियां कम कांटे ज्यादा थे. उन कांटों की चुभन से पतिपत्नी के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. दोनों के बीच लड़ाईझगड़ा व मारपीट होने लगी थी. तब तक दोनों की शादी को 5 साल बीत गए थे. इन 5 सालों में विनीता 3 बेटियों कनिका, गुंजन और परी की मां बन चुकी थी.

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एक के बाद एक 3 बेटियों के जन्म को ले कर भी घर में कलह होती थी. सास रामवती वंश बढ़ाने के लिए बेटा चाहती थी. इसलिए वह विनीता को ताने मारती रहती थी. हालांकि विनीता का ससुर खेमराज उस की बेटियों से प्यार करता था और हर तरह से खयाल रखता था. वह जब भी बाजार हाट से घर आता, बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था.

विनीता का पति प्रमोद बेरोजगार था. पति की बेरोजगारी से भी वह परेशान रहती थी. उसे अपने व बच्चों के पालनपोषण के लिए सासससुर का ही मुंह ताकना पड़ता था. जरूरत का सामान खरीदने को विनीता सास से पैसे मांगती तो कभी वह दे देती, कभी बुरी तरह झिड़क देती थी. तब विनीता मन मसोस कर रह जाती.

विनीता ने पति को कुछ कामधाम करने को कई बार कहा, परंतु प्रमोद ने एक नहीं सुनी. उल्टे वह विनीता से कहता कि घर में किस चीज की कमी है. सारा खर्च मांबाप कर तो रहे हैं.

एक रोज प्रमोद शराब पी कर घर आया तो विनीता ने उसे जलील करते हुए कहा, ‘‘एक तो करेला, दूसरे नीम चढ़ा. कुछ काम करतेधरते नहीं और शराब भी पीते हो. कम से कम अपना नहीं तो अपने बाप की इज्जत का तो खयाल रखो.

विनीता की सच्चाई भरी कड़वी बात सुनकर प्रमोद कुमार के तनबदन में आग सुलग उठी. वह विनीता पर टूट पड़ा और लातघूंसों से उस की पिटाई करने लगा. उस के हाथ तभी थमे जब वह हांफने लगा. पति की पिटाई से विनीता इतनी आहत हुई कि वह तीनों बच्चों को ससुराल में छोड़ कर मायके चली गई. उस ने अपने ऊपर हुए जुल्म की दास्तां अपनी मां उर्मिला को बताई. तब उर्मिला ने बेटी को ससुराल न भेजने का फैसला किया.

विनीता को मायके आए हुए अभी 2 महीने भी नहीं बीते थे कि प्रमोद उसे लेने आ गया. लेकिन उर्मिला ने बेटी को भेजने से साफ मना कर दिया. उस ने कहा कि वह ऐसे निठल्ले के साथ बेटी को नहीं भेजेगी जो उसे प्रताडि़त करे. सास ने जलील किया तो प्रमोद मुंह लटका कर वापस लौट आया.

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बहू के चले जाने से खेमराज की भी मोहल्ले में बदनामी होने लगी थी. उस की पत्नी रामवती का भी गली से गुजरना दूभर हो गया था. पासपड़ोस की महिलाएं विनीता को ले कर तरहतरह की अफवाहें फैलाने लगी थीं. इन अफवाहों पर विराम लगाने के लिए खेमराज विनीता को लाने उस के मायके पहुंचा और कालीचरण से बच्चों की परवरिश की खातिर विनीता को भेजने का अनुरोध किया. काफी सोचविचार के बाद कालीचरण ने बेटी को समझाबुझा कर ससुराल भेज दिया.

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जिद : भाग 1- मां के दुलार के लिए तरसी थी रेवा

रेवा अपनी मां की मृत्यु का समाचार पा कर ही हिंदुस्तान लौटी. वह तो भारत को लगभग भूल ही चुकी थी और पिछले कई वर्षों से लास एंजिल्स में रह रही थी. उस ने वहीं की नागरिकता ले ली थी. पिता के न रहने पर करीब 15 वर्ष पूर्व रेवा भारत आई थी. यह तो अच्छा हुआ कि छोटी बहन रेवती ने उसे तत्काल मोबाइल पर मां के न रहने का समाचार दे दिया था. इस से उसे अगली ही फ्लाइट का टिकट मिल गया और वह अपने सुपरबौस की मेज पर 15 दिन की छुट्टी की अप्लीकेशन रख कर, तत्काल फ्लाइट पकड़ने निकल गई.

मां का अंतिम संस्कार उसी की वजह से रुका हुआ था. सख्त जाड़े के दिन थे. घाट पर रेवा, रेवती और उस के पति तथा परिवार के अन्य दूरपास के सभी नातेरिश्तेदार भी पहुंचे हुए थे. यद्यपि घाट पर छोटे चाचा और मौसी का बड़ा लड़का भी मौजूद थे लेकिन इस का समाधान घाट के पंडितों द्वारा ढूंढ़ा जा रहा था कि दोनों बहनों में से किस के पास मां को मुखाग्नि देने का अधिकार अधिक सुरक्षित है, तभी रेवती ने प्रस्तावित किया, ‘‘पंडितजी, मां को मुखाग्नि देने का काम बड़ी बेटी होने के कारण रेवा दीदी करेंगी. उन्होंने ही हमेशा मां के बड़े बेटे होने का फर्ज निभाया है.’’

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काफी देर बहस होती रही. आखिर में बड़ी जद्दोजेहद के बाद यह निर्णय हुआ कि यह कार्य रेवा के हाथों ही संपन्न करवाया जाए. हमेशा जींसटौप पहनने वाली रेवा, आज घाट पर पता नहीं कहां से मां की साड़ी पहन कर आई थी और एकदम मां जैसी ही लग रही थी. ऐसा लग रहा था कि मां से हमेशा खफाखफा रहने वाली रेवा के मन पर मां के चले जाने का कुछ तो असर जरूर हुआ है.

अगले 3-4 दिन बड़ी व्यस्तता में बीते. मां की मृत्यु के बाद के सभी संस्कार विधिविधान से संपन्न किए गए. पंडितों के अनुसार, बरसी का हवनयज्ञ आदि 10 दिन से पहले करना संभव नहीं होगा. रेवा के वापस जाने से 2 दिन पूर्व की तिथि नियत की गई. अगले दिन रेवती ने घर की साफसफाई की जिम्मेदारी संभाल ली. रेवा ने पहले ही कह दिया, ‘‘तू मां की लाड़ली बिटिया थी, इसलिए मां का ये घर, सामान, जमीनजायजाद व धनसंपत्ति, अब तू ही संभाल. न तो मेरे पास इतनी फुरसत है, न ही मुझे इस की जरूरत. और सुन, अब मैं इंडिया नहीं आ सकूंगी, इसलिए अपने पति शरद से पूछ कर, अगर कहीं मेरे हस्ताक्षर की जरूरत हो तो अभी करा ले.

आखिर तू ही तो मां की असली वारिस है. मैं तो वर्षों पहले यहां से विदेश चली गई और वहीं की ही हो कर रह गई. तू ने ही मां और पापा की देखभाल की है, उन्हें संभाला है. समझी कि नहीं, रेवती की बच्ची.’’ रेवा दीदी के मुंह से काफी दिनों बाद ‘रेवती की बच्ची’ सुन कर रेवती को बड़ा अच्छा लगा जैसे बचपन के कुछ क्षण फिर से वापस आने को आतुर हों.

घर की साफसफाई के बाद मां का सामान ठीक करने का नंबर आया. उन के कपड़े करीने से, बड़े सलीके से और तरतीबवार उन के वार्डरोब में हैंगर पर लटके हुए थे. शेष साडि़यां, ब्लाउज व पेटीकोट का सैट बना कर पौलिथीन में पैक कर के रखे हुए थे. मां ऐसी ही थीं, हर चीज उन्हें कायदे से रखने की आदत या यह कहो मीनिया था और वे यह चाहती थीं कि उन की बेटियां भी अपना घर उसी तरह सजासंवरा व सुव्यवस्थित रखें. बचपन में अगर नहाने के बाद तौलिया एक मिनट के लिए सही जगह फैलाने से रह जाता, तो समझो हम लोगों की शामत आ जाती थी. पापा थोड़े लापरवाह किस्म के इंसान थे और रेवा भी उन पर ही गई थी. सो, वे दोनों अकसर मां की डांट खाते रहते थे.

आखिर में, मां की बुकशैल्फ ठीक करने का नंबर आया. मां की रुचि साहित्यिक थी और जहां कहीं भी कोई अच्छी किताब उन्हें नजर आ जाती, वे उसे खरीदने में तनिक भी देर न लगातीं. इस प्रकार धीरेधीरे मां के पास दुर्लभ साहित्य का खजाना एकत्र हो गया था. बुकशैल्फ झाड़पोंछ कर किताबों को लगातेलगाते रेवती को किताबों के पीछे एक काले रंग की डायरी दिखाई दी जिस पर लिखा था, ‘सिर्फ प्रिय रेवा के लिए.’ रेवती कुछ देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही. डायरी इस तरह सील थी कि उसे खोलना आसान नहीं था. रेवती ने डायरी झाड़पोंछ कर रेवा दीदी को पकड़ा दी.

रेवा सोफे पर पसरी हुई थी, उस ने उचक कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘मां तेरे लिए एक डायरी छोड़ गई हैं, रख ले,’’ रेवती ने कहा. रेवा थोड़ी देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही, फिर उस ने उसे वैसा ही रख दिया. उसे चाय की तलब लगी थी, उस ने रेवती से चाय पीने के लिए पूछा तो चाय बनाने किचन में चली गई. सोचने लगी कि मां ने पता नहीं, डायरी में क्या लिखा होगा. मां को तो जो कुछ लिखना था, रेवती को लिखना चाहिए था, आखिर वह उस की ‘ब्लूआइड’ बेटी जो थी.

रेवा सोचने लगी, ‘मां तो वैसे भी रेवती को ही चाहती थीं, मुझे तो उन्होंने हमेशा अपने से दूर ही रखा. पता नहीं मैं उन की सगी बेटी हूं भी या नहीं.’ फिर सोचने लगी कि चलो, अब तो मां चली ही गई, अब उन से क्या शिकवाशिकायत करना. उसे आज तक, बल्कि अभी तक, समझ में नहीं आया कि मां सब से तो अच्छी तरह बोलतीबतियाती थीं, पर उस के साथ हमेशा कठोर क्यों बन जाती थीं.

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रेवा शुरू से पढ़ने में बड़ी तेज थी और अपनी क्लास में हमेशा टौप करती, जबकि रेवती औसत दर्जे की स्टूडैंट थी. मां रेवती को रोज जबरदस्ती पढ़ाने बैठतीं और उस पर मेहनत करतीं, तब जा कर वह किसी तरह क्लास में पास होती थी. उधर, रेवा ने अपने स्कूलकालेज में मार्क्स लाने के कितने ही कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए और ऐसे नए मानक गढ़ दिए जिन का टूटना असंभव सा था. स्कूलकालेज में रेवा पिं्रसिपल व टीचर के प्यार से ज्यादा, इज्जत की हकदार बन बैठी थी. उस के क्लासमेट उस की ज्ञान की वजह से उस से एक तरह से डरते थे और एक दूरी बना कर ही रखते थे और इन्हीं कारणों से उस की कोई अच्छी सहेली भी नहीं बन सकी.

मां ने तो वैसे भी उसे तीसरी क्लास से ही होस्टल में डाल दिया था. कई बार रोने के बाद भी उन का दिल नहीं पसीजा. खैर, पापा हर शनिवार की शाम को उसे घर ले जाने के लिए आ जाते और सोमवार की सुबह उसे स्कूल छोड़ जाते. रेवा के लिए वह एक दिन बड़ा सुकूनभरा होता, दिनभर वह अपने पापा के साथ मस्ती करती. मां कई बार पूछतीं कि कोर्स की कोई कौपीकिताब लाई कि नहीं, और वह इन प्रश्नों से बचने के लिए पापा के पीछे दुबक जाती. उस के 8वीं पास करने के साथ ही पापा का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. सो, सप्ताह में एक दिन घर आनेलाने का चक्कर भी खत्म हो गया.

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एक पति ऐसा भी : भाग 1

उस दिन 3 जनवरी 2020 तारीख थी. सुबह के यही कोई 10 बज रहे थे. जालौन जिले की कोतवाली उरई के प्रभारी निरीक्षक शिवगोपाल वर्मा अपने कार्यालय में बैठे थे और बीती रात पकड़े गए मादक पदार्थ तस्करों से पूछताछ कर रहे थे, तभी एक बुजुर्ग दंपति उन के कार्यालय में आया.

दोनों आगंतुक घबराए हुए थे. उन के माथे पर चिंता की लकीरें थीं. वर्मा ने तस्करों से पूछताछ बंद कर उन्हें सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘बताइए, आप लोग कहां से आए हैं और क्या परेशानी है?’’

कुरसी पर बैठने के बाद उस शख्स ने कहा, ‘‘साहब, हम सरसौखी गांव से आए हैं, मेरा नाम कालीचरण है और साथ में आई मेरी पत्नी उर्मिला है. हम ने अपनी बेटी विनीता की शादी उरई कस्बे के रामनगर मोहल्ला निवासी खेमराज अहिरवार के बेटे प्रमोद कुमार के साथ की थी.

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‘‘प्रमोद कुमार ने हमारी बेटी विनीता को गायब कर दिया है, डेढ़ साल से बेटी से हमारा संपर्क नहीं हुआ. प्रमोद के पिता खेमराज से पूछा तो उस ने बताया कि विनीता प्रमोद के साथ दिल्ली में है. हम ने जब भी फोन कर प्रमोद से विनीता से बात कराने का आग्रह किया तो वह टालमटोल कर देता था.

वह दिल्ली में कहां रहता है. उस ने हमें कभी नहीं बताया. आज मुझे पता चला कि प्रमोद दिल्ली से गांव आया है और अपने घर में मौजूद है. साहब आप से मेरा अनुरोध है कि उस से पूछताछ कर हमारी बेटी विनीता का पता लगाएं.’’

कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने कालीचरण की बात गौर से सुनी और उन की परेशानी को समझा. उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि वह थाने में बैठ कर इंतजार करें. वह प्रमोद को थाने बुला कर उस से पूछताछ कर विनीता का पता लगवाते हैं. आश्वासन पा कर कालीचरण पत्नी उर्मिला के साथ थाने में इंतजार करने लगे.

कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने एसआई विश्वनाथ सिंह तथा कांस्टेबल मानवेंद्र सिंह को सारी बात बता कर प्रमोद को थाने लाने का आदेश दिया. कुछ ही देर में दरोगा विश्ववनाथ सिंह, कांस्टेबल मानवेंद्र सिंह के साथ मोटरसाइकिल से प्रमोद के अजनारी रोड स्थित मकान पर जा पहुंचे. प्रमोद उस समय घर पर नहीं था.

उस के घर में किराए पर रहने वाले किराएदारों ने बताया कि प्रमोद रेलवे क्रासिंग की ओर गया है. पहचान के लिए पुलिस ने एक किराएदार को साथ लिया और रेलवे क्रासिंग पहुंच गई. प्रमोद रेलवे फाटक के पास मिल गया.

किराएदार के इशारे पर पुलिस ने उसे पकड़ लिया और कोतवाली ले आई. बेटे की गिरफ्तारी की जानकारी खेमराज को हुई तो वह भी कोतवाली आ गया.

कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने प्रमोद कुमार के चेहरे पर तिरछी नजर डालते हुए पूछा, ‘‘प्रमोद, सचसच बताओ, तुम्हारी पत्नी विनीता कहां है? क्या तुम ने उसे गायब कर दिया है या…’’

‘‘साहब, यह सब अटपटी बातें आप मुझ से क्यों पूछ रहे हैं?’’ प्रमोद जवाब देने के बजाय उलटे वर्मा से ही प्रश्न कर बैठा.

‘‘इसलिए कि विनीता के मातापिता ने शिकायत दर्ज कराई है कि तुम ने उन की बेटी को गायब कर दिया है. पिछले डेढ़ साल से तुम ने न तो उन की विनीता से बात कराई और न ही मिलवाया. न ही तुम ने उन्हें दिल्ली में रहने का अपना ठिकाना बताया.’’ कोतवाल ने कहा.

‘‘साहब, ससुराल वालों से हमारी पटती नहीं है, जिस से मैं ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी.’’ प्रमोद बोला.

‘‘तो अब बताओ कि विनीता कहां है?’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘वह दिल्ली में है.’’ प्रमोद ने बताया.

‘‘उस से मोबाइल फोन पर बात कराओ.’’ उन्होंने कहा.

‘‘साहब, विनीता के पास मोबाइल फोन नहीं है, इसलिए उस से बात नहीं हो सकती.’’ प्रमोद बोला.

‘‘देखो, प्रमोद तुम पुलिस को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हो. मैं तुम से आखिरी बार पूछता हूं कि विनीता कहां है?’’ वर्मा तमतमा गए.

लेकिन प्रमोद ने जुबान नहीं खोली. तब वर्मा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उन्होंने दरोगा विश्वनाथ सिंह तथा सुशील कुमार पाराशर को प्रमोद से सच उगलवाने की जिम्मेदारी सौंपी.

वह दोनों प्रमोद कुमार को अलग कमरे में ले गए और उस से जब सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. इस के बाद उस ने विनीता का जो राज खोला उसे सुन कर पुलिस भी दंग रह गई.

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प्रमोद ने बताया कि उस ने अपनी पत्नी विनीता की हत्या 18 मई, 2018 को कर दी थी और शव को अपने कमरे में दफन कर उस के ऊपर पक्का फर्श बनवा दिया था. इस के बाद वह दिल्ली चला गया था. विनीता की हत्या की जानकारी न तो उस के मातापिता को थी और न ही उस के मकान में रहने वाले किराएदारों को. विनीता का शव अब भी कमरे में ही दफन है.

कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने इस सनसनीखेज घटना की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दी और एसआई साबिर अली, विश्वनाथ सिंह, सुशील कुमार पारासर, हैड कांस्टेबल संत किशोर तथा जगदीश हत्यारोपी प्रमोद कुमार को साथ ले कर प्रमोद के अजनारी रोड, रामनगर स्थित मकान पर पहुंच गए. वह टिन शेड वाला मकान था. जिस के आगे के भाग में किराएदार रहते थे. प्रमोद मकान के पिछले भाग में रहता था.

प्रमोद कुमार पुलिस को अपने टिन शेड वाले कमरे में ले गया और बताया कि विनीता का शव इसी कमरे में फर्श के नीचे दफन है. पुलिस अभी कमरे का निरीक्षण कर ही रही थी कि सूचना पा कर एसपी डा. सतीश कुमार तथा सीओ (सिटी) संतोष कुमार भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. चूंकि मामला महिला की हत्या कर शव जमीन में दफन होने का था. अत: घटनास्थल पर उरई सिटी मजिस्ट्रैट हरिशंकर शुक्ला को भी सूचना दे कर बुला लिया गया.

सिटी मजिस्ट्रैट हरिशंकर शुक्ला की मौजूदगी में पुलिस अधिकारियों ने हत्यारोपी प्रमोद कुमार की निशानदेही पर कमरे के अंदर खुदाई शुरू कराई. पुलिस के जवानों ने पहले कमरे की पक्की फर्श तोड़ी फिर कच्ची जमीन को फावड़े से खोदना शुरू किया. 4 फीट खुदाई करने के बाद महिला का कंकाल बरामद हो गया. सिटी मजिस्ट्रैट हरिशंकर शुक्ला ने कंकाल को गड्ढे से बाहर निकलवाया.

अब तक मौके पर विनीता के मातापिता तथा ससुर भी आ गए थे. कालीचरण तथा उन की पत्नी उर्मिला ने जब महिला के कंकाल को देखा तो वह फफक पड़े और उन्होंने कपड़ों से उस की पहचान अपनी बेटी विनीता के रूप में कर दी. प्रमोद के पिता खेमराज ने भी कंकाल की पहचान बहू विनीता के रूप में की.

विनीता की हत्या और कंकाल बरामद होने की खबर रामनगर मोहल्ले में फैली तो लोग अवाक रह गए. सैकड़ों की भीड़ घटनास्थल पर आ पहुंची. कालीचरण के परिवार में भी कोहराम मच गया. उस की अन्य बेटियां वंदना, लाली व नौथी भी सूचना  पा कर मौके पर आ गईं. विनीता का कंकाल देख कर सभी विलखविलख कर रो रही थीं. पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सांत्वना दी और समझाया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. इस के बाद मजिस्ट्रैट हरीशंकर शुक्ला की निगरानी में कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने कंकाल का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए उरई के सरकारी अस्पताल भेज दिया. डीएनए की जांच हेतु मृतका के बाल सुरक्षित रख लिए गए.

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चूंकि प्रमोद कुमार ने पत्नी विनीता की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया था और जमीन में दफन शव को भी बरामद करा दिया था, इसलिए कोतवाल शिवगोपाल वर्मा ने मृतका के पिता को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत प्रमोद कुमार के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक पति ऐसा भी

‘वासना’ : परमो धर्म?

प्रथम घटना- जिला दुर्ग के थाना अंडा अंतर्गत दो लोगों ने अपने रिश्तेदार की इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वह उन दोनों पर चारित्रिक संदेह करता था. और मजाक उड़ाता रहता था.

दूसरी घटना- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में वीआईपी कॉलोनी के पास एक शख्स की  हत्या हो गई क्योंकि वह अपने  छोटे भाई की पत्नी से संबंध बनाते पकड़ा गया था.

तीसरी घटना- जिला कोरबा के कटघोरा थाना अंतर्गत घटित हुई है जिसमें एक युवती ने अपनी 12 साल की सगी  बहन की हत्या कर दी. क्योंकि वह उसके प्रेम संबंधों को देख चुकी थी और  कारगुज़ारी माता-पिता से बताने को कह रही थी.

वासना, काम, सेक्स, प्रेम प्यार यह ऐसे शब्द हैं जो हमें संवेदनशील  बनाते हैं और भटकने को मजबूर भी करते हैं. यह जीवन का आधार है तो यह अति हो जाने के बाद जीवन को समाप्त कर देने का भी बयास बन जाते हैं.

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यही समाज, देश का सत्य है. ऐसी घटनाएं हमारे आसपास अक्सर घटती होती हैं जो संदेश देती हैं कि मानवीय मर्यादा और हमारी  परंपराओं के अनुरूप अगर व्यवहार नहीं होगा तो उसका दुष्परिणाम विपरीत भी आ सकता है.

आज इस रिपोर्ट में हम ऐसे तथ्य का खुलासा करने का प्रयास कर रहे हैं. ताकि बहुतेरे लोग जो जीवन में भूल कर रहे हैं, गलत राह पर चल जाते हैं, सबक लें, और मर्यादा का रास्ता कभी भी न छोड़ें.

वासना में अंधी हो गई

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा में 22 अगस्त को घटित एक लोमहर्षक घटना ने संपूर्ण प्रदेश को कंपायमान  कर दिया .

25 साल के युवक  से 16 साल की नाबालिक लड़की ने प्रेम प्रसंग में इस कदर दीवानी हो गयी  की अपनी छोटी 12 साल की मासूम बहन को मौत की नींद सुलाने में उस वासना की  दीवानी के हाँथ नहीं कांपे. मासूम का दोष सिर्फ इतना था की  बहन ने बड़ी बहन को एक लड़के के  साथ रंगरेलियां मनाते आपत्तिजनक स्थित में देख लिया था. बस क्या था बड़ी बहन ने छोटी बहन को मौत की नींद सुला दिया.

मामला  कटघोरा थाना अंतर्गत ग्राम मालदा जिला कोरबा में घटित हुआ है जहां 22 अगस्त को कटघोरा पुलिस को सुचना मिली की ग्राम मालदा के एक नाबालिक बच्ची का शव खाट में पड़ा है पुलिस मौके पर पहुंच कर देखती है की मृतिका के सर से खून बहा हुआ है गंभीर चोट के निशान दिख रहे है. पुलिस को समझने में देर नहीं लगा की हत्या हुई है. बड़ी बहन से पूछताछ पुलिस ने शुरू की तो में उसने अंततः रोते हुए अपना अपराध कबूल कर लिया और बताया की जब वापस आयी तब मैंने अपनी छोटी बहन से अपना मोबाईल वापस माँगा उसने देने से इंकार कर दिया. तब मैंने ही उसकी हत्या कर दी.

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लेकिन पुलिस को उस लड़की के बयान में बनावटीपन दिखाई दिया तब जिस मोबाईल को वह हत्या का कारण बता रही थी उसका सिम निकाल कर सायबर सेल को दिया गया. आगे जांच में खुलासा हुआ कि  एक विशेष नंबर से 8-10 बार बात हुई है. पुलिस ने उस नंबर को इस्तेमाल करने वाले को हिरासत में लेकर पूछताछ की तब पता चला की विनय कुमार जगत नामक व्यक्ति जो की बंधन बैंक कटघोरा में  पदस्थ था  की लोन के सिलसिले में उक्त लड़की से जान पहचान हुई थी. आगे चलकर दोनों का प्रेम संबंध हो गया. और घटना के दिन मृतिका ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था घर में किसी को न बता दे इस आशंका के चलते दोनों ने मिलकर छोटी बहन की हत्या कर दी.

चूंकि परिवार के सभी सदस्य तीजा मनाने गांव गए हुए थे इसलिए घर में बच्चों के अलावा कोई नहीं था. पुलिस ने दोनों वासना के अंधे आरोपियों को गिरफ्तार कर धारा 302,34 के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया है.

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सनसनीखेज खुलासा

पुलिस को पूछताछ में बड़ी बहन ने बताया कि प्रेमी विनय ने मृतिका छोटी बहन के चेहरे को तकिए से जोरदार दबाए रखा. जब उसकी मौत हो गई तब बड़ी बहन ने टंगिये के पाशा से उसके सिर पर संघातिक वार कर दिया. प्रेमी ने खुद को बचाने के लिए प्रेमिका को पुलिस के सामने कहानी गढ़ने को कहा और खुद वहां से फरार हो गया.सुबह जब लोगो का हुजूम उमड़ा और तफ्तीश के लिए पुलिस  घटनास्थल पहुंची तो उसने यह कहानी उनके सामने सुनाई.

हालांकि लोगों को भी  इस बात के सन्देह था कि महज मोबाइल के लिए इतनी बड़ी वारदात को वह अंजाम नही दे सकती . पुलिस जांच में यह भी उजागर हुआ कि माँ-बाप के घर पर नही होने पर प्रेमिका बड़ी बहन की अपने प्रेमी विनय से मिलने की योजना थी. इसी योजना  के तहत देर रात विनय उससे मिलने पहुंचा था.दोनो उसी कमरे में मौजूद थे जहाँ बगल के बिस्तर पर नाबालिक छोटी बहन भी सोई हुई थी. वे जब आपत्तिजनक हालत में मिल रहे थे  तभी उसकी नींद उचट  गई. अपनी बहन और प्रेमी को रंगे हाथों देखना  उसे भारी पड़ा और फिर दोनों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी. ऐसे ही सच्चे अपराधी घटनाक्रम को देखकर यह कहा जा सकता है कि जब कामवासना के फेर में पैर बहक  जाते हैं तो इंसान अंधा हो जाता है और रिश्ते भी तार-तार हो जाते हैं.

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