टौमी : प्यार और स्नेह की अनोखी दास्तान

पति की सुपारी : भाग 1

बात 8 जुलाई, 2020 की है. सुबह के साढे़ 7 बज गए थे. पंकज गुप्ता स्टील की 2 लीटर वाली डोलची हाथ में लटकाए दूध लेने शहरी बाजार समिति की ओर जा रहा था. वह रोजाना दूध लेने इसी समय पर जाया करता था. ऐसा नहीं था कि मोहल्ले में कोई दूधिया दूध देने नहीं आता था, लेकिन पंकज को आशंका थी कि दूधिए दूध में मिलावट करते हैं, इसलिए वह उन से दूध नहीं लेता था.

दूसरे इसी बहाने उस की मार्निंग वाक भी हो जाती थी. इसलिए वह सुबहसुबह दूध लेने पैदल ही निकल जाता था. पंकज बिजली विभाग में नौकरी करता था.

पंकज जैसे ही शहरी समिति के गेट के सामने पहुंचा, पीछे से तेजी से एक अपाचे मोटरसाइकिल उस के बगल से हो कर गुजरी. बाइक पर 2 युवक सवार थे. बगल से बाइक गुजरने पर विकास हड़बड़ा गया और गिरतेगिरते बचा.

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संभल कर बुदबुदाते हुए वह आगे बढ़ा. वह थोड़ी दूर ही बढ़ा होगा कि वही बाइक मुड़ कर फिर उसी की ओर आई. बाइक को आता देख पंकज यह सोच कर रुक गया कि शायद बाइक सवार युवकों की नीयत ठीक नहीं है. उन के निकल जाने के बाद ही आगे बढ़ेगा.

पंकज सोच रहा था कि बाइक निकले तो आगे बढ़े, लेकिन बाइक उस के पास आ कर रुक गई. इस से पहले कि पंकज कुछ समझ पाता, बाइक पर पीछे बैठे युवक ने निशाना साध कर 2 गोलियां उस के सिर में उतार दीं और मौके से फरार हो गए.

गोली लगते ही पंकज धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा. चूंकि सुबह का वक्त था, लोग अभी अपनेअपने घरों में ही थे. गोली की आवाज सुन कर पासपड़ोस के लोग जमा हो गए. उन्होंने जमीन पर खून से लथपथ पड़े पंकज को पहचान लिया.

पंकज पटना शहर के मोहल्ले अगवानपुर में रहता था. घटनास्थल से उस का घर थोड़ी दूर पर था. भीड़ में से किसी ने वारदात की सूचना बाढ़ थाने को दे दी और पंकज के घर पर भी खबर भिजवा दी. घटना की सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. पत्नी शोभा और दोनों मासूम बेटियां चीखचीख कर रोने लगी. शोभा जिस हाल में थी, मासूमों को साथ लिए उसी हाल में घटनास्थल की ओर दौड़ी.

मौके पर पहुंची तो देखा पति पंकज हाथ में बाल्टी लिए चित अवस्था में लहूलुहान पड़ा है. पुलिस के खिलाफ पति की लाश से लिपट कर रोने लगी. मां को रोते देख कर बच्चे भी बिलखबिलख कर रो रहे थे. बच्चों को रोते देख वहां खड़े लोगों का दिल पसीजने लगा.

उसी समय बाढ़ थाने के थानाप्रभारी संजीत कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. पुलिस को देख कर स्थानीय लोग जाने के बजाए वहीं डटे रहे. उन में पुलिस के खिलाफ भारी आक्रोश था. दरअसल, उसी इलाके में कुछ दिनों पहले भी 2 हत्याएं हो चुकी थीं. दोनों घटनाओं के हत्यारे अभी भी फरार थे. अब तीसरी हत्या बिजलीकर्मी पंकज की हो गई थी.

इस हत्या से स्थानीय नागरिकों में पुलिस की भूमिका को ले कर गहरा आक्रोश था. आक्रोश बढ़ने पर लोग पंकज की हत्या के विरोध में राष्ट्रीय राजमार्ग 31 को जाम कर प्रदर्शन करने लगे. नागरिकों के धरने पर बैठते ही पुलिस के हाथपांव फूल गए.

आननफानन में थानाप्रभारी संजीत कुमार ने एएसपी अंबरीश राहुल और एसएसपी उपेंद्र शर्मा को घटना की जानकारी दे दी. स्थिति तनावपूर्ण और विस्फोटक होती जा रही थी. स्थिति पर काबू पाने के लिए पुलिस ने सब से पहले मृतक की लाश अपने कब्जे में ली और कागजी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए पटना मैडिकल कालेज भिजवा दी.

घटनास्थल का निरीक्षण करने पर पुलिस को वहां से कारतूस के 2 खोखे मिले, जिन्हें पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर कब्जे में ले लिया. उधर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम की सूचना मिलते ही एएसपी अंबरीश राहुल मौके पर पहुंच कर प्रदर्शनकारियों को मनाने में जुट गए. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि हत्यारों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी हो.

एएसपी ने उन्हें भरोसा दिया कि अपराधी जो भी होंगे, उन की गिरफ्तारी जल्द से जल्द होगी.

एएसपी के आश्वासन पर प्रदर्शनकारियों ने जाम खोला. मृतक की पत्नी शोभा की तहरीर पर थानाप्रभारी संजीत कुमार ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस के लिए पंकज हत्याकांड चुनौती की तरह था, क्योंकि इस के पहले 2 हत्याओं का अब तक खुलासा नहीं हो सका था. हत्यारों को गिरफ्तार करने के लिए नागरिकों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था.

अगले दिन कुछ सम्मानित लोग बिजली कर्मचारी पंकज कुमार गुप्ता हत्याकांड के खुलासे के लिए एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा से मिले और हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसएसपी ने अपने दफ्तर में आपात बैठक बुलाई.

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बैठक में एएसपी अंबरीश राहुल और 4 थानों के थानाप्रभारियों एसओ (बख्तियारपुर) कमलेश प्रसाद शर्मा, एनटीपीसी एसओ अमरदीप कुमार, मोकामा एसओ राजनंदन, एसओ (बाढ़) संजीत कुमार, एएसआई राकेश कुमार रंजन, अनिरुद्ध कुमार, सिपाही अमित कुमार और शिव चंद्र शाह शामिल हुए.

एसएसपी ने शहर में हुई हत्याओं के खुलासे न होने पर नाराजगी जताई और पंकज गुप्ता के केस को खोलने के लिए उसी समय टीम बना दी. टीम का नेतृत्व उन्होंने एएसपी राहुल को सौंपा.

पुलिस टीम जांच में जुट गई. उस के लिए सब से बड़ा सवाल यह था कि पंकज की हत्या क्यों की गई? इस सवाल का जवाब मृतक की पत्नी ही दे सकती थी. पुलिस ने अपनी तफ्तीश मृतक के घर से शुरू की.

पुलिस ने शोभा से पंकज की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने पति की किसी से भी दुश्मनी होने की जानकारी से इनकार कर दिया. ऐसे में यह घटना पुलिस के लिए चुनौती बन गई.

घटना की तह तक पहुंचने के लिए पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई और मदद के लिए मुखबिरों की भी मदद ली. मृतक की काल डिटेल्स में पुलिस को ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से घटना का खुलासा हो पाता.

लेकिन 2 दिनों बाद यानी 10 जुलाई को मुखबिर ने पुलिस को जो चौंकाने वाली जानकारी दी, उसे सुन कर पुलिस अधिकारी हैरान रह गए. मुखबिर ने एसओ संजीत कुमार को बताया कि 9 जुलाई को शोभा ने अपने भारतीय स्टेट बैंक के एकाउंट से करीब पौने 3 लाख रुपए निकाले थे.

यह बात पुलिस को खटकी कि आखिर इतनी बड़ी रकम उस ने क्यों निकाली? पुलिस को हैरान करने वाली यह रकम ही सुराग की कड़ी बनी. एएसपी अंबरीश राहुल को शोभा पर शक हुआ कि कहीं पति की हत्या में पत्नी का ही हाथ तो नहीं है? पुलिस ने शोभा का फोन नंबर हासिल किया. उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और साथ ही उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

संजीत कुमार ने काल डिटेल्स का बारीकी से अध्ययन किया तो चौंके. उन का शक सही निकला. घटना वाली रात से सुबह घटना के बाद तक शोभा लगातार किसी से फोन पर बात करती रही थी. काल डिटेल्स से घटना की तसवीर साफ होती दिख रही थी.

जिस नंबर पर शोभा ने बात की थी, पुलिस ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवा ली. वह नंबर सन्नी उर्फ गोलू निवासी अगवानपुर का था. मुखबिर के जरिए पुलिस को हत्यारे की सही जानकारी मिल गई थी. पंकज की हत्या में उस की पत्नी शोभा भी शामिल थी. शोभा ने प्रेमी सन्नी को सवा 3 लाख की सुपारी दे कर पति की हत्या करवाई थी.

इस के बाद पुलिस ने हत्या की अलगअलग कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. 12 जुलाई को हत्या की कड़ी पूरी तरह जुड़ गई तो पुलिस ने शोभा और उस के प्रेमी सन्नी दोनों को अगवानपुर से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने दोनों से सख्ती से पूछताछ शुरू की. जल्द ही दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. गोलू ने पंकज की हत्या में शामिल अन्य साथियों के नाम भी बता दिए. गोलू की निशानदेही पर पुलिस ने 5 और आरोपियों मुकेश (मृतक का सगा साला), मनीष कुमार, मोहित कुमार उर्फ आदित्य, राजा सिंह और आयुष को गिरफ्तार कर लिया. मुकेश को छोड़ बाकी सभी आरोपी अगवानपुर के ही निवासी थे.

अगले दिन 13 जुलाई, 2020 को एएसपी अंबरीश राहुल ने पुलिस लाइन में पत्रकारवार्ता बुलाई, जिस में पंकज हत्याकांड के सातों आरोपितों को  पत्रकारों के सामने पेश किया. सभी आरोपियों ने हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल कर लिया.

इस के बाद उन्होंने हत्या की पूरी कहानी पत्रकारों के सामने परोस दी. वार्ता संपन्न होने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. आरोपियों से पूछताछ के बाद कहानी कुछ ऐसे सामने आई –

35 वर्षीय पंकज कुमार गुप्ता मूलरूप से पटना जिले के बाढ़ थाने के अगवानपुर का रहने वाला था. उस के परिवार में कुल 4 सदस्य थे. पतिपत्नी और 2 बच्चे. उस का परिवार हर तरह सुखी था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. वह बिजली विभाग में नौकरी करता था, जहां से उसे अच्छीभली तनख्वाह मिलती थी. कुछ ऊपर से भी कमाई कर लेता था.

पंकज की पत्नी शोभा भले ही खूबसूरत नहीं थी लेकिन वह पढ़ीलिखी और सलीकेदार औरत थी. वह परिवार के अच्छेबुरे का खयाल रखती थी. पंकज और शोभा दोनों एकदूसरे की खुशियों पर पूरा ध्यान देते थे.

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लेकिन कालांतर में पता नहीं उन की खुशियों को किस की बुरी नजर लग गई, जिस ने हंसतेखेलते परिवार को महाभारत का मैदान बना दिया. कल तक जो पतिपत्नी एकदूसरे पर अपनी जान छिड़कते थे, वही अब एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे.

कहानी में जिस दिन से गोलू उर्फ सन्नी नाम के किरदार का प्रवेश हुआ था उसी दिन से पंकज के हंसतेखेलते घर में कलह शुरू हो गई थी. हुआ कुछ यूं था कि पंकज दिन भर ड्यूटी पर घर से बाहर रहता था. उस के 2 छोटे बच्चे थे. उन की देखभाल शोभा ही करती थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पति की सुपारी : भाग 2

पंकज पैसे कमा कर पत्नी की हथेली पर रख देता था. उस के बाद घर में क्या हो रहा है, इस से उसे कोई मतलब नहीं रहता था. पति के इस रवैए से शोभा खिन्न रहती थी और दुखी भी.

बात 2 साल पहले की है. शोभा की बड़ी बेटी तान्या की तबियत ज्यादा खराब हो गई थी. उसे अस्पताल ले जा कर डाक्टर को दिखाना था. शोभा पति से कई बार कह चुकी थी कि बेटी को ले जा कर डाक्टर को दिखा दे. लेकिन पंकज नौकरी की दुहाई दे कर उस से कहता कि वही उसे ले जा कर किसी अच्छे डाक्टर को दिखा लाए.

अगवानपुर से कुछ दूरी पर एक नर्सिंगहोम था. शोभा बच्चों के इलाज के लिए यहीं आया करती थी. उस दिन भी वह बेटी को दिखाने इसी नर्सिंगहोम में आई थी. वहीं पर गोलू उर्फ सन्नी नाम का एक युवक भी अपने किसी परिचित को दिखाने आया था.

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बातोंबातों में दोनों के बीच परिचय हुआ. पता चला कि दोनों एक ही मोहल्ले अगवानपुर के रहने वाले हैं. गोलू साधारण शक्लसूरत का गबरू जवान था. लेकिन चपल और बातूनी. अपनी बातों से हर घड़ी सभी को गुदगुदाता रहता था. शोभा उस की बातें सुन कर अपनी हंसी काबू नहीं कर पा रही थी.

वह खिलखिला कर हंस पड़ती थी. शोभा की हंसी गोलू के दिल में मकाम कर गई. हर घड़ी उस की आंखों के सामने शोभा का हंसता चेहरा थिरकता रहता था. कुंवारा गोलू समझ नहीं पा रहा था उसे ये क्या गया है.

शोभा 28 साल की शादीशुदा औरत थी जबकि गोलू उस से 7 साल छोटा यानी 21 साल का नौजवान था. गोलू के दिमाग पर शोभा के अक्स की रंगीन चादर बिछी थी, जो हटने का नाम ही नहीं ले रही थी. एक ही मुलाकात में गोलू को शोभा के गदराए जिस्म से प्यार हो गया था. वह उस के दीदार के लिए बेचैन रहने लगा.

शोभा गोलू की इस चाहत से अंजान थी. उसे नहीं पता था एक ही मुलाकात में गोलू उस का दीवाना बन जाएगा. उस दिन के बाद शोभा बेटी को ले कर कई बार नर्सिंगहोम गई.

इत्तफाक की बात यह रही कि शोभा जबजब बेटी को दिखाने नर्सिंगहोम पहुंचती, उसे उसे गोलू वहीं मिल जाता था. शोभा गोलू को देखती, उसे देखते ही उस के होंठों पर मीठी सी मुसकान थिरक उठती थी. गोलू भी उसे देख कर मुसकरा देता था.

धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई. बाद में ये दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. एक शादीशुदा औरत के इश्क में गोलू ऐसा डूबा कि उसी का हो कर रह गया. उसे देखे बिना गोलू को चैन नहीं मिलता था.

इधर पति के ड्यूटी पर चले जाने के बाद शोभा फोन कर के गोलू को अपने घर बुला लेती और उस के साथ घंटों रंगरेलियां मनाती. बंद दरवाजे के अंदर शोभा और गोलू का प्यार जवां हो रहा था. जमाने की नजरों से बेखबर दोनों मोहब्बत के सागर में गोते लगा रहा थे.

वे समझते थे कि उन की मोहब्बत के बारे में कोई नहीं जानता. हर प्यार करने वाले को यही भ्रम होता है. जबकि मोहल्ले में दोनों के प्रेम के चर्चे होने लगे थे. फिजाओं में फैली उन के प्यार की खुशबू आखिरकार पति पंकज तक पहुंच ही गई.

पंकज को यकीन नहीं हुआ. वह तो पत्नी को बेहद प्यार जो करता था. वह सोच रहा था कि पत्नी उसे धोखा कैसे दे सकती है. किसी की बातों पर उसे यकीन नहीं हो रहा था.

लेकिन वह उन बातों को झुठला भी नहीं पा रहा था. सच सामने लाने के लिए वह पत्नी की जासूसी में जुट गया. जब भी पंकज पत्नी को फोन करता, उस का फोन व्यस्त मिलता था. अब पंकज को यकीन होने लगा कि जरूर शोभा का किसी के साथ चक्कर है.

समझदारी का परिचय देते हुए एक दिन पंकज ने पत्नी को उस के अफेयर को ले कर अप्रत्यक्ष तौर से समझाया ताकि पत्नी को यह न पता चले कि उसे उस के संबंधों के बारे में पता चल चुका है. पति का बारबार उसी की ओर इशारा कर के बात करने से शोभा समझ गई कि पति को उस पर शक हो गया है.

फिर क्या था, उस दिन के बाद से शोभा संभल गई और प्रेमी गोलू को भी सावधान कर दिया कि पति को उन के संबंधों पर शक हो गया है. जब तक वह उस के शक को मिटा नहीं देती, तब तक हमारा मिलना कम होगा. हम फोन पर ही बातें करेंगे.

शोभा ने पति को विश्वास दिलाने के लिए कई कलाएं पेश कीं, लेकिन पंकज सब समझ रहा था.

उसे उस की बातों पर तनिक भी यकीन नहीं हुआ. एक दिन तो पंकज ने शोभा को फोन पर प्रेमी से बात करते रंगेहाथ पकड़ लिया. यही नहीं उस ने जब पत्नी के हाथ पर गोलू के नाम का लिखा टैटू देखा तो उस का खून खौल उठा.

कोई भी पति यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि उस की पत्नी अपने जिस्म पर किसी पराए मर्द का नाम लिखाए. उस दिन पंकज का गुस्सा पत्नी के अंगअंग पर टूटा. कई दिनों का गुस्सा पंकज ने उस पर उतार दिया. साथ ही सख्त हिदायत भी दी कि आज के बाद फिर प्रेमी से बात करने या मिलने की कोशिश की तो वह उसे जान से मार देगा.

पति से पिटी शोभा ने भी उस से कह दिया, ‘‘गोलू मेरी जान है. मैं उस से दूर रह कर जिंदा नहीं रह सकती. तुम चाहो तो मेरी जान ही क्यों न ले लो. मुझे मर जाना मंजूर है लेकिन गोलू के बिना जीना मंजूर नहीं.’’

इस के बाद इसी बात को ले कर अकसर रोजाना ही शोभा की पिटाई होने लगी. पति की रोजरोज मारपीट से शोभा ऊब गई थी.

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उस ने पति नाम की बीमारी से छुटकारा पाने की योजना बनाई और प्रेमी गोलू से पति को रास्ते से हमेशा के लिए हटाने की बात कही.

शोभा के प्यार में अंधे गोलू ने प्रेमिका की बात मान ली और पंकज को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. इस काम के लिए गोलू ने अपने दोस्त मनीष से मदद मांगी और साजिश में शामिल कर लिया.

मनीष गोलू का साथ देने के लिए तैयार हो गया. गोलू जानता था कि मनीष का एक दोस्त है, जो भाड़े पर हत्या करता है. गोलू के कहने पर मनीष ने क्रिमिनल मोहित से संपर्क साधा और काम करने को कहा लेकिन मोहित ने यह कहते हुए हत्या की सुपारी लेने से इनकार कर दिया कि वह ये काम नहीं करता. लेकिन उस का एक दोस्त राजा सिंह है जो ये काम करता है, उन्हें उस से मिला देगा, काम हो जाएगा.

मोहित ने मनीष को राजा सिंह से मिलवा दिया. राजा ने काम के बदले एडवांस के रूप में 50 हजार रुपए मांगे. मनीष ने यह बात गोलू को बताई और गोलू ने प्रेमिका शोभा से एडवांस के 50 हजार रुपए मांगे. शोभा के पास इतनी रकम नहीं थी. उस ने अपने भाई मुकेश से पैसे मांगे तो उस ने भी हाथ खड़े कर दिए, लेकिन उस की साजिश में शामिल हो कर उस का साथ देने लगा.

शोभा ने पति की हत्या के लिए उस के बनवाए अपने सोने के झुमके 45 हजार रुपए में बेच दिए. यह रकम राजा सिंह को दे दी गई.

उस के बाद आगे की योजना तय हो गई. फिर राजा सिंह ने घटना को अंजाम देने के लिए शूटर आयुष को सुपारी दी. आयुष ने काम के बदले शोभा से 3 लाख रुपए की डिमांड की. लेकिन ये सौदा सवा 3 लाख में तय हुआ.

शोभा ने आयुष को बताया कि वह एडवांस के रूप में राजा सिंह को 50 हजार रुपए दे चुकी है. बाकी के पैसे काम होने के बाद दे देगी. शूटर आयुष को विश्वास दिलाने के लिए शोभा ने दस्तखत कर के एक ब्लैंक चैक उसे दे दिया. चैक पाने के बाद शूटर ने 8 जुलाई को घटना को अमली जामा पहना दिया.

7/8 जुलाई, 2020 की रात शोभा ने पति की हत्या के संबंध में गोलू को फोन में बातें की थीं. रोज की तरह पंकज सुबह दूध लेने स्टील की डोलची ले कर घर से निकला तो शोभा ने गोलू को फोन कर के बता दिया कि पंकज घर से निकल चुका है.

उस ने यह भी कहा कि आयुष पंकज को गोली मारे तो गोली की आवाज उसे जरूर सुनाए. गोलू ने उस से कहा ऐसा ही होगा. पंकज के घर से निकलने की बात गोलू ने शूटर आयुष को बता दी. उस समय आयुष पंकज के घर के आसपास ही मंडरा रहा था.

जैसे ही गोलू का फोन आया वह सतर्क हो गया और अपाचे मोटरसाइकिल ले कर पंकज के पीछेपीछे लग गया. आयुष बाइक पर पीछे बैठा था, जबकि राजा सिंह बाइक चला रहा था. घर से निकल कर पंकज जैसे ही शहर समिति गेट के पास पहुंचा, बाइक पर पीछे बैठे शूटर आयुष ने पंकज को लक्ष्य साध कर उस के सिर में 2 गोलियां उतार दीं.

गोली मारते समय आयुष ने अपना मोबाइल फोन औन किया हुआ था, उधर शोभा अपने फोन को कान से लगाए हुए थी. गोली की आवाज सुन कर शोभा की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. इधर गोली मारने के बाद दोनों बदमाश बाइक ले कर फरार हो गए.

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घटना के दूसरे दिन शोभा भाई मुकेश को ले कर भारतीय स्टेट बैंक पहुंची और बैंक से 2 लाख 80 हजार रुपए निकाल कर शूटर आयुष को दे दिए. मुखबिर के जरिए यह बात पुलिस को पता चल गई.

एएसपी अंबरीश राहुल की सूझबूझ से पंकज कुमार गुप्ता हत्याकांड से परदा उठ गया और घटना में शामिल सभी अपराधी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. पुलिस ने आरोपियों से हत्या में प्रयुक्त बाइक, पिस्टल और 2 जिंदा कारतूस बरामद किए.

जिस प्रेमी गोलू से शोभा शादी रचाने का ख्वाब देख रही थी, उस ने भी इस घटना के बाद उस से शादी करने से इनकार कर दिया था. शोभा न इधर की रही, न उधर की.

पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

टौमी : भाग 3- प्यार और स्नेह की अनोखी दास्तान

अब सोचती हूं कि जिस से मैं ने सालों पहले कैलिफोर्निया में कुत्ता रखने के बारे में बात की थी, उसे नहीं पता कि वह क्या कह रही थी. उस ने मुझे साफ मना कर दिया था. उस के विचार से कुत्ता मुझ से किसी भी हालत में जुड़ नहीं सकता क्योंकि मैं उस की देखभाल नहीं कर सकती. मैं तो उसे खाना तक नहीं दे सकती हूं. ऐसी हालत में कुत्ता मुझ से बिलकुल नहीं जुड़ेगा. पर वह गलत थी क्योंकि टौमी को तो मुझ से जुड़ने में जरा भी समय नहीं लगा.

टौमी के लिए यह कोई मसला ही नहीं था कि कौन उस के लिए खाना रखता है. जब तक मैं न कह दूं, वह खाने को छूता तक नहीं था. मेरी कुरसी के बायीं ओर उस का एक छोेटा व लचीला पट्टा बंधा होता था. वह जानता था कि छोटा पट्टा काम का पट्टा है और लचीला, छोटाबड़ा होने वाला आराम से घूमने वाला पट्टा है. वह मेरे स्वामी होने के एहसास को अच्छी तरह जानता था. उसे पता था कि घर का मालिक कौन है, चाहे उसे खाना कोईर् भी परोसे.

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टौमी मेरी असमर्थताओं को भी जान गया था. उस ने समाधान निकाल लिया था कि मैं कैसे उसे सहला सकती हूं, उसे कैसे अपना प्यारदुलार दे सकती हूं. अपनी परिचारिका की सहायता से सुबहसुबह मैं थोड़ाथोड़ा अपनी बाहों को फैलाने की चेष्टा करती थी. हमारे रिश्ते की शुरुआत में ही टौमी, जब मेरी बाहें अधर में, हवा में होतीं, मेरे सीने पर आ जाता और मेरी गरदन चाटने लगता और फिर अपने शरीर को मेरे हाथों के नीचे स्थापित कर लेता. उस का यह प्रयास हर रोज सुबह के नाश्ते से पहले उस के आखिरी दम तक बना रहा.

मेरे लिए उस से जुड़ने के वास्ते यह बहुत जरूरी था कि मैं उसे उस की जरूरत की सब चीजें प्रदान करूं, विशेषरूप से पहले साल. मैं उसे रोज घुमाने ले जाती चाहे कितनी भी गरमी या सर्दी हो. पर दूसरे साल से इस में ढील पड़ गई. सर्दी में दूसरों को मैं ने यह काम सौंप दिया. हां, अधिक सर्दी के दिन छोड़ कर, मैं ही उसे घुमाने ले जाती थी. या यों कहूं कि मैं उस के साथ घूमती थी.

पहले पहल अकेले जाने में बड़ी समस्या आई. बाहर से अंदर आते समय तो वाचमैन मेरे लिए दरवाजा खोल देता था और लिफ्ट का बटन दबा देता था. मैं अपनी फ्लोर पर जा कर अपने घर का मुख्यद्वार अपने सिर में लगे कंट्रोल से खोल लेती थी. पर अकेले बाहर जाने की समस्या विकट थी कि कैसे एलिवेटर का बटन दबाया जाए. दीवार पर क्या चिपकाया जाए जिस की मदद से टौमी एलिवेटर का बटन दबा सके. इस में समय लग रहा था कि एक दिन मैं ने अपनी माउथस्टिक से बटन दबाने की सोची. स्टिक की लंबाई पूरी पड़ गई और समस्या हल हो गई.

अब मैं आसपड़ोस के लोगों से भी मिलने लगी, डौग पार्क में भी मेरी कइयों से दोस्ती हो गई. साथ ही, मैं अपने कई काम खुद ही करने लगी. अब मैं अकेले टौमी के साथ बाहर जाने के लिए प्रोत्साहित होने लगी. मेरी बाहर अकेले जाने की घबराहट कब खत्म हो गई, पता ही न चला. लोग मेरे से पहले टौमी को देख लेते थे और उस की वजह से ही मेरी व्हीलचेयर अजनबियों को कम भयग्रस्त करती थी.

जब मैं टौमी से पहले की अपनी जिंदगी देखती हूं कि किस तरह मैं ने खुद को अपने फ्लैट तक सीमित कर लिया था, कैद कर लिया था तो स्वयं को पहचान भी नहीं पाती हूं. मैं टौमी की बदौलत बहुत ही आत्मनिर्भर, आरामदेह, शांतिप्रद, सुखी हो गई थी. मैं इतने साल कैसे एक कौकून की तरह बंद कर के रही, आश्चर्य करती हूं. टौमी मुझे उस स्थिति के नजदीक ले आया जो दुर्घटना के पहले थी. ऐसी स्थिति जो इन परिस्थितियों में मेरे लिए खुशहाली लाई. टौमी ने मेरे लिए उस संसार के द्वार खोल दिए थे जो मैं ने अपने लिए अनावश्यक रूप से स्वयं ही बंद कर लिए थे.

हमारी झोली में कई साहसिक और कुछ भयग्रस्त करने वाले किस्से भी हैं. आज भी उन्हें याद कर सिहर जाती हूं. पार्क में एक रात अकेले होने पर पिट बुल द्वारा अटैक अभी भी बदन को सिहरा जाता है. एक बार वह मुश्किल से एलिवेटरद्वार बंद होने से पहले अंदर घुस पाया था. एक बार तो वह कार से टकरातेटकराते बचा था. मैं ने अपनी व्हीलचेयर का पहिया कार की ओर मोड़ दिया था जिस से कि मेरे पैरों पर भले ही आघात हो पर कम से कम टौमी बच जाए. लेकिन हम दोनों ही बच गए.

हालांकि आखिर में टौमी खाने के प्रति थोड़ा लालची होने लगा था लेकिन फिर भी वह जैकेट पहन कर काम में जरा भी शिथिलता नहीं आने देता था. हां, कौटेज में जाने पर वह मस्तमौला हो जाता था. वहां वह ज्यादा से ज्यादा ड्राइववे तक मेरे साथ जाता. उस के बाद मैं कितना ही उसे पुचकारती, बढ़ावा देती, वह मेरे साथ आगे न बढ़ता. हां, किसी और के साथ मजे में वह सब जगह घूमता. मैं सोचती कि क्या यह इस स्थान के प्रति मेरी भावनाओं को समझ रहा है. मैं सालों बाद भी, उस स्थान से जहां मैं गिरी थी, स्वयं को उबार नहीं पा रही थी. मेरे अंतर्मन के किसी कोने में उस स्थान के प्रति हलकी सी भयग्रस्त भावना समाई हुई थी. शायद इसीलिए, यह वहां नहीं जाना चाहता था.

एक सुबह मैं ने अपनी उस असुरक्षा की भावना को जड़ से उखाड़ फेंकने का निश्चय किया और संपूर्ण साहस बटोर, परिचारिका को बिना बताए उस पथ पर चल दी. ड्राइववे पर टौमी कुछ दूर तक मेरे साथसाथ चला पर आधे रास्ते जा, स्वभावगत वह वहीं रुक गया. मैं धीरेधीरे आगे बढ़ती रही, टौमी को पुकारती रही पर वह टस से मस न हुआ. बस, खड़ा देखता रहा. मैं ने भी अपना प्रण न छोड़ा, बढ़ती गई. ड्राइववे के अंतिम छोर पर मैं रुकी. पलट कर मैं ने उसे कई बार पुकारा, हर आवाज में- कड़ी, उत्साहित, डांटने वाली, आदेश वाली, मानमनौवल वाली, भयभीत आवाज की नकल करते हुए भी पुकारा, यहां तक कि भावनात्मक ब्लैकमेल भी किया पर वह वहीं चुपचाप खड़ा रहा. फिर झल्ला कर मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं अकेले ही आगे जा रही हूं. मैं ने सोचा कि देखूं कि वह मुझे आंखों से ओझल हो, देख क्या करता है. जैसे ही मैं पलटी, पाया कि गाड़ी के पहिए रेत में धंस अपनी ही जगह पर घूम रहे हैं. मेरी पीठ टौमी व कौटेज की तरफ थी. मैं करीबकरीब उसी जगह पर फंसी थी जहां सालों पहले गिरी थी.

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मुझे याद नहीं, कि वास्तव में मेरे मुंह से पूरी तरह से टौमी का नाम निकला भी था या नहीं, कि मैं ने उसे अपनी ओर दौड़ता हुआ आता महसूस किया. फिर मुझे याद नहीं कि मैं ने इतने सालों के साथ में कभी भी उस की ऐसी शारीरिक मुद्रा देखी हो. उस की मौन भाषा, उस की शारीरिक मुद्रा बारबार मुझ से पूछ रही थी कि मैं तुम्हारे लिए क्या करूं.

मैं ने कहा, ‘टौमी, बोलो.’ अधिकतर जब भी मैं टौमी को ऐसा आदेश देती थी, वह एक बार भूंकता था या कभीकभी जब ज्यादा उत्साहित होता तो 2 बार. पर इस समय वह मेरे आदेश देने पर कई बार भूंका, जैसे वह समय की नजाकत पहचान रहा हो.

मैं टौमी की शारीरिक भाषा से पार नहीं पा रही थी. उस की उस समय की दयनीय आंखें, उस की मुखमुद्रा जीवनभर मेरे साथ रहेंगी. मैं उस की प्रशंसा करती रही और उसे बोलने को उत्साहित करती रही. तकरीबन 10-15 मिनट लगे होंगे जब मैं ने पदचापों को अपनी ओर आते सुना. यदि टौमी न होता तो न जाने मैं कब तक और किस हाल में वहां पड़ी होती.

यादें, न जाने कितनी यादें, अब तो बस टौमी की यादों का पिटारा ही साथ रह गया है.

टौमी : भाग 2- प्यार और स्नेह की अनोखी दास्तान

मित्र के सुझाव पर फिर यह विचार पनपने लगा क्योंकि उस के साथसाथ मैं ने भी महसूस किया कि सचमुच मुझे कुत्ते की आवश्यकता है. मैं स्वयं को अकेला, असुरक्षित सा महसूस करने लगी थी. स्टोर का या थोड़ा सा बाहर घूमने जाने का काम, जो मैं अकेले कर सकती थी, उस के लिए भी मैं अपनी परिचारिका को साथ घसीटे रहती थी यह जानते हुए भी कि मुझे उस की जरूरत नहीं. कोईर् भी व्यक्ति मेरी दशा देख कर अपनेआप ही मेरे लिए दरवाजा खोल देता या दुकान वाले मेरी पसंद की चीज मुझे अपनेआप काउंटर से उठा कर दे देते व मेरे पर्स से यथोचित पैसे निकाल लेते. मैं मन ही मन सोचती कि ऐसी कई बातों के लिए मुझे किसी भी परिचारिका की जरूरत नहीं है. मैं स्वयं ही यह सब कर सकती हूं, फिर भी नहीं कर रही हूं.

एक दिन तो बाजार से आते हुए फुटपाथ पर कठपुतली का नाच देखने के लिए रुक तो गई, मजा भी आया पर फिर पता नहीं क्यों, बस घर जाने का ही मन करता रहा और वहां रुक न सकी. हालांकि मैं परिचारिका की छुट्टी कर स्वयं घर जाने में सक्षम थी. रुकने का मन भी था और घर में ऐसा कुछ नहीं था जिस के लिए मुझे वहां जल्दी पहुंचने की विवशता हो.

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कई बार मित्रों के साथ फुटबौल देखने जाने का आमंत्रण या अन्य कार्यक्रमों के आमंत्रण भी स्थगित करती रही. पता नहीं क्यों, असुरक्षा की भावना से ग्रसित रही.

एक दिन गरमी की छुट्टियों में अपनी कौटेज में थी तब फिर पालतू कुत्ता रखने की भावना ने जोर पकड़ा. हुआ यों कि दोपहर के समय मेरे भाईबहन के बच्चे पास के बाजार में घूमने के लिए चले गए और मेरी परिचारिका मेरे साथ बैठेबैठे झपकी लेने लगी. मैं ने उसे अंदर जा कर सोने के लिए कहा. बाद में मैं बोर होने लगी और बिना किसी को बताए घूमने के लिए चल दी.

ड्राइववे के आगे थोड़ी सी ढलान थी. चेयर को संभाल न सकी और मैं घुटनों के बल गिर गई. चिल्लाने की कोशिश की, यह जानते हुए भी कि वहां सुनने वाला कोई नहीं है. तब सोचा, काश, मेरे पास कुत्ता होता. परिचारिका की नींद खुलने पर मुझे अपनी जगह न पा वह मेरा नाम पुकारतेपुकारते ढूंढ़ने निकली. मेरी दर्दभरी आवाज सुन वह मुझ तक पहुंची.

मैं ने अब मेरे जैसे लोगों की सहायता करने वाले ‘वर्किंग डौग’ की सक्रिय रूप से खोज करनी शुरू की. नैशनल सर्विस डौग्स संस्था के माध्यम से मैं ने टौमी को चुना. या यों कहें कि टौमी ने मुझे चुना. वहां के कार्यकर्ता टौमी के साथ मुझे जोड़ने से पहले यह देखना चाहते थे कि वह मेरी व्हीलचेयर के साथ कैसा बरताव करता है, मेरी चेयर के प्रति उस की कैसी प्रतिक्रिया होगी. मुझे टौमी के बारे में कुछ भी बताए बिना उन्होंने मुझे टोटांटो स्पोर्ट्स सैंटर में आमंत्रित किया जहां 6 कुत्तों से मेरा परिचय कराया. टौमी मेरी चेयर के पास ही सारा समय लेटा रहा.

बेला, जिस ने टौमी को पालापोसा था, ने बताया था, ‘टौमी शुरू से ही अलग किस्म का था. छोटा सा पिल्ला बड़ेबड़े कुत्तों की तरह गंभीर था. इस की कार्यप्रणाली अपनी उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्व थी. लगता था कि उसे पता था कि वह इस संसार में किसी महत्त्वपूर्ण काम के लिए आया है.

टौमी को स्वचालित दरवाजों के बटन दबा कर खोलना, रस्सी को खींच कर कार्य करना, फेंकी हुई चीज को उठा कर लाना या बताने पर कोई वस्तु लाना, जिपर खोलना, कोट पकड़ कर खींचना, बत्ती का बटन दबा कर जलाना या बुझाना, बोलने के लिए कहने पर भूंकना आदि काम सिखाए गए थे. टौमी हरदम काम को बड़े करीने से करता था.’

‘पर, हां, वह शैतान भी कम नहीं था. एक दिन बचपन में उस ने 7 किलो का अपने खाने का टिन खोल डाला और उस में से इतना खाया कि उस का पेट फुटबौल की तरह फूल गया था. और फिर उस के बाद इतनी उलटी की कि बच्चू को दिन में भी तारे नजर आने लगे. लेकिन फिर कभी उस ने ऐसा नहीं किया.

‘टौमी को मेरे फ्लैट और पड़ोस में प्रशिक्षित किया गया. रोज प्रशिक्षित करते समय उसे बैगनी रंग की जैकेट पहनाईर् जाती. जैकेट जैसे उस का काम पर जाते हुए व्यक्ति का बिजनैस सूट था. उस की जैकेट उस के लिए व बाकी लोगों के लिए इस बात का संकेत थी कि वह इस समय काम पर तैनात है. लोगों के लिए यह इस बात का भी संकेत था कि वे ‘वर्किंग डौग’ के काम में उसे थपथपा कर, पुचकार कर उस के काम में वे बाधा न डालें.’

शुरू में मुझे यह अच्छा लगा कि टौमी फर्श पर अपने बिस्तरे में सोए. पहली

2 रातें तो यह व्यवस्था ठीकठाक चली. तीसरी सुबह टौमी ने मेरे बिस्तरे के पास आ कर मेरे चेहरे के पास अपना मुंह रख दिया. मैं भी उस का विरोध न कर पाई और उसे अपने बिस्तरे पर आमंत्रित कर बैठी. उस ने एक सैकंड की भी देरी नहीं की और मेरे बिस्तरे पर आ गया. जब मुझे बिस्तर से मेरी व्हीलचेयर पर बैठाया गया तो वह मेरे शरीर द्वारा बिस्तर पर बनाए गए निशान पर लोटने लगा. मुझे कुत्तों के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं था, फिर भी मेरे विचार से वह मेरे शरीर की खुशबू में स्वयं को लपेट रहा था. उस दिन से वह हर समय मेरे साथ ही सोने लगा था, फिर कभी वह फर्श पर नहीं सोया.

टौमी ने जल्दी ही सीख लिया था कि मेरी व्हीलचेयर कैसे काम करती है. पहले हफ्ते गलती से व्हीलचेयर के नीचे उस का पंजा आतेआते बचा था. उस के बाद से वह कभी भी मेरी व्हीलचेयर के नीचे नहीं आया. चेयर की क्लिक की आवाज पर वह तुरंत उस से नियत फासले पर काम की तैनाती मुद्रा में खड़ा हो जाता. आरंभ से ही लोगों ने मेरे प्रति उस की प्रतिक्रिया की तारीफ करनी शुरू कर दी थी. वह शुरू से अपनी प्यारीप्यारी आंखों द्वारा मेरे चेहरे को देखते हुए मेरे आदेश, निर्देश व आज्ञा की कुछ इस तरह प्रतीक्षा करता था कि मेरा मन स्वयं ही उस पर पिघल जाता था.

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अधिकतर लोग कुत्तों को प्यार करते हैं और टौमी को देख तो वैसे ही प्यार उमड़ पड़ता था. पहले महीने जब मैं एक सरकारी रिसैप्शन में गई तो मुख्यमंत्री ने मुझ से हाथ मिलाने के बाद पूछा, ‘क्या मैं इसे सहला सकता हूं?’ मैं ने कहा कि अभी यह काम पर तैनात है. मुझ से बात करने के बाद जब वे अगले व्यक्ति से बात करने लगे तो टौमी जल्दी से उन की टांगों पर अपना भार डाल उन के पैरों पर बैठ गया. मुख्यमंत्री हंस कर बोले, ‘अरे, मुझे इसे सहलानेदुलारने का मौका मिल ही गया.’

गोल्डन रिट्रीवर और लैब्राडोर अच्छी नस्ल के और अपने खुशनुमा स्वभाव के कारण सब से अच्छे वर्किंग डौग होते हैं. काम इन के लिए सचमुच आनंददायी होता है. टौमी तो हरदम ऐसा पूछता हुआ लगता कि बताओ, अब मैं और क्या करूं? ये खाने के भी शौकीन होते हैं. मैं काम करते समय अपने उस स्टैंड के पास, जिस पर मेरी ‘माउथस्टिक’ होती थी, जिस से मैं काम करने के लिए बटन दबाया करती थी, उस के लिए बिस्कुट रखती थी और उसे उस के हर अच्छे काम पर इनामस्वरूप बिस्कुट नीचे गिरा देती थी. कुछ ही दिनों में टौमी इतना कुशल हो गया था कि वह उन्हें बीच रास्ते में हवा में ही पकड़ लेता था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

टौमी : भाग 1- प्यार और स्नेह की अनोखी दास्तान

आज 8 सालों के अपने संरक्षक टौमी की यादें दिल को मसोस रही हैं. आंसू थम नहीं रहे हैं. इन 8 सालों में टौमी मेरा सबकुछ बन गया था. एक ऐसा साथी जिस पर मैं पूरी तरह निर्भर रहने लगी थी. टौमी ने तो अपना पूरा जीवन मुझ पर न्योछावर कर दिया था. सालभर का भी तो नहीं था, जब वह मेरे पास आया था मेरा वाचडौग बन कर. और तब से वह वाचडौग ही नहीं, मेरे संरक्षक, विश्वासपात्र साथी के रूप में हर क्षण मेरे साथ रहा. 20 साल पहले की घटना आज भी जरा से खटके से ताजी हो जाती है, हालांकि उस समय यह आवाज खटके की आवाज से कहीं भारी लगी थी. और लगती भी क्यों न, बम विस्फोट की आवाज न होते हुए भी गोली की आवाज उस समय बम विस्फोट जैसी ही लगी थी.

रीटा के शरीर में उस आवाज की याद से झुरझुरी सी दौड़ गई. वसंत का बड़ा अच्छा दिन था. सड़क के दोनों ओर खड़े पेड़ नईनईर् पत्तियों से सज गए थे. क्रैब ऐप्पल्स के पेड़ों पर फूलों की बहार अपनी छटा दिखा रही थी. शीत ऋतु में जमी बर्फ के पहाड़ देख जहां शरीर में झुरझुरी पैदा हो जाती थी वहीं उस दिन वसंत की कुनकुनी धूप शरीर के अंगों को सहती बड़ी सुखदायक लग रही थी.

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इस सुहावने मौसम में रीटा के होंठ एक बहुत पुराना गीत गुनगुना उठे थे. हालांकि गीत कुनकुनी धूप का नहीं, सावन की फुहार का था. और हो भी क्यों न, सावन की फुहार…रीटा 18 वर्ष की ही तो थी. उस अवस्था में इसी रस की फुहार के सपने ही तो सभी लड़कियां देखती हैं. गीत गुनगुना उठी, ‘ओ सजन, बरखा बहार आई, रस की फुहार लाई, अंखियों में प्यार लाई…,’ शायद यह उम्र का तकाजा था कि मन कहीं से कहीं भटक रहा था.

जहां गीत को याद कर रीटा मुसकरा उठी वहीं उस दिन की याद कर उस का बदन सिहर उठा. वह कालेज के दूसरे साल में पढ़ रही थी. छुट्टियों में उस ने एक दुकान पर पार्टटाइम नौकरी कर ली. दुकान में उस समय वह अकेली थी. कोई ग्राहक नहीं था, सो वह गुनगुनाती हुई शैल्फ पर सामान लगा रही थी कि अचानक हलके से खटके से उस का ध्यान भंग हुआ. सोचा कि कोई ग्राहक आया है, वह उठ कर कैश काउंटर के पास गई. रीटा ने पूछने के लिए मुंह ऊपर उठा कर खोला ही था कि क्या चाहिए? उस ने देखा ग्राहक का मास्क से ढका चेहरा और उस की अपनी ओर तनी पिस्तौल की नली. इस आकस्मिक दृश्य व व्यवहार से बौखला गई वह. फिर शीघ्र ही संभल गई. पिस्तौलधारी के आदेश पर उस ने उसे कैश काउंटर से सारे डौलर तो दे दिए पर साथ ही, उस की आंख बचा पुलिस के लिए अलार्म बजाने का प्रयत्न भी किया. अपने अनाड़ीपन में उस का यह प्रयत्न पिस्तौलधारी की नजर से अनदेखा न रह पाया और उस ने गोली दाग दी.

जब उसे होश आया, दुकान का मालिक रोरो कर कह रहा था, ‘‘रीटा, मैं ने कहा था कि यदि कभी भी ऐसी परिस्थिति आए तो चुपचाप पैसा दे देना. अपने को किसी खतरे में मत डालना. पैसा जीवन से बढ़ कर नहीं है. यह तुम ने क्या कर लिया?’’ रीटा ने सांत्वना देने के लिए उठ कर बैठने का प्रयत्न किया पर यह क्या, रीटा अचंभे में पड़ गई क्योंकि वह उठ नहीं पा रही थी.

रीटा अतीत में खोई हुई थी. उसे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होने में कई महीने लगे थे. अब तक रीटा ने इस तथ्य को पूरी तरह आत्मसात कर लिया था कि अब पूरा जीवन इसी विकलांगता के साथ ही उसे जीना है, चाहे निरर्थक जिए या अब इस जीवन को कोई सार्थकता प्रदान करे. और फिर वह अपने पुराने सपने को पूरा करने में लग गई. हालांकि डेढ़दोसाल जब वह अपने मातापिता के साथ रही, वह उन पर तथा भाईबहन पर पूरी तरह निर्भर रही. पर उस के बाद सोच में पड़ गई कि कब तक वह सब पर निर्भर रहेगी. इस विकलांगता में भी उसे आत्मनिर्भर बनना है. इसी दिशा में उस ने टोरंटो यूनिवर्सिटी में अपने पहले के कोर्स खत्म कर के अपनी ग्रेजुएशन पूरी की. फिर उस ने एरिजोना जाने की ठान ली क्योंकि वहां का मौसम पूरे साल अच्छा रहता है. उस के स्वास्थ्य के लिए एरिजोना का मौसम उपयुक्त था.

रीटा के लिए एक विशेष कारवैन बना दी गई थी जिस में वह सफर कर सके, फिर भी उसे किसी ऐसे की जरूरत तो थी ही जो उसे ड्राइव कर सके. घर से बाहर क्या, घर के अंदर भी वह अकेले समय नहीं बिता पा रही थी. वह सोच में पड़ गई थी कि मातापिता तो नहीं, पर क्या भाईबहन में कभी न कभी आगे चल कर उस के प्रति रोष की भावना नहीं उभरेगी. रीटा इस स्थिति से बचना चाहती थी. इसलिए उस ने एरिजोना जा कर स्वतंत्ररूप से अपनी पढ़ाई पूरी करने का निर्णय लिया था.

तकरीबन 3 साल बाद जब वह टोरंटो लौटी तब तक वह काफी आत्मनिर्भर हो चुकी थी. परिवार का प्यार तो उस के साथ हरदम रहा. मातापिता उम्र के इस दौर में स्वयं ही धीरेधीरे अक्षम हो रहे थे. सो, उन्हें यह देख कर खुशी ही हुई कि रीटा ने अपने जीवन को एक नए ढर्रे पर अच्छी तरह चलाने का गुर सीख लिया है. उस ने पत्रकारिता तथा मैनेजमैंट में डिगरी हासिल कर ली और टोरंटो के एक अखबार में नौकरी भी कर ली है. अब वह आर्थिक रूप से भी किसी पर निर्भर नहीं रही.

टोरंटो में रीटा ने सैंट लौरेंस में फ्लैट किराए पर ले लिया क्योंकि यह उस के काम करने के स्थान से बिलकुल पास था. वह अपनी इलैक्ट्रिक व्हीलचेयर में आसानी से कुछ ही मिनटों में वहां पहुंच सकती थी. साथ ही, यह स्थान ऐसा था कि उसे यहां हर तरह की सुविधा थी. यह मार्केट नैशनल ज्योग्राफिक में दुनिया की सब से अच्छी मार्केट बताई गई है. साथ ही यहां से मैसी मौल, एयर कनाडा सैंटर, थिएटर, पार्क आदि मनोरंजन की जगहें भी पासपास थीं. सो, यह स्थान हर तरह से सुविधाजनक था.

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हालांकि सबकुछ ठीकठाक ही चलने लगा था, यहां मैं बहुत चीजें कर सकती थी लेकिन वास्तव में, कम से कम स्वयं खुद से, मैं कुछ भी नहीं कर रही थी.

पर जब से टौमी आया, सबकुछ बदल सा गया. लंबे समय तक, इस दुर्घटना के बाद मैं अपनी हरेक बात को शूटिंग से पहले और शूटिंग के बाद के कठघरे में रखती थी पर टौमी के आने बाद अब हरेक बात टौमी से पहले और टौमी के आने के बाद के संदर्भ में होने लगी.

टौमी के आने से पहले मैं कभी भी शौपिंग, या किसी भी काम के लिए, यहां तक कि अपनी व्हीलचेयर पर जरा सा घूमने के लिए भी, अकेले नहीं जाती थी. मेरी बिल्ंिडग में ही पूरे हफ्ते चौबीसों घंटे खुलने वाला ग्रोसरी स्टोर है, वहां भी मैं कभी अकेले नहीं गई. घर में अकेले ही पड़ी रहती थी. हां, मेरे पास एक अफ्रीकन ग्रे तोता रौकी जरूर था जिसे अपने जैसे किसी और पक्षी का साथ न होने की वजह से इंसानी साथ की बहुत जरूरत थी. हालांकि रौकी बहुत प्यारा था पर मेरी अवस्था के मुताबिक, अच्छा पालतू पक्षी नहीं था. वह मेरी देखभाल करने वाली नर्सों को काट लिया करता था, सो वे उस से भयभीत रहती थीं. स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उसे काफी देखभाल की जरूरत थी और मैं उस की देखभाल अच्छी तरह नहीं कर सकती थी. आखिरकार वह एक दिन स्वयं ही अपने कंधे पर किए गए घाव की सर्जरी के दौरान चल बसा. उस की अकाल मृत्यु के दुख ने मुझे, लोगों के कहने पर भी किसी और पक्षी को रखने का मन नहीं बनाने दिया.

6 महीने बाद एक दिन एक मित्र ने कहा कि क्यों नहीं मैं एक सर्विस डौग के बारे में सोचती. हालांकि कुछ समय पहले भी मैं ने इस दिशा में सोचा था और कैलिफोर्निया की एक संस्था, जो कुत्तों को प्रशिक्षित करती है, से बात भी की थी, पर उन के विचार से मेरी पक्षाघात, लकवा की स्थिति इतनी गंभीर है कि कुत्ता मुझ से जुड़ नहीं पाएगा क्योंकि मुझ में उसे खिलानेपिलाने या सहलाने तक की क्षमता नहीं है. सो, मैं ने इस दिशा में सोचना ही छोड़ दिया था.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

पति की सुपारी

50 करोड़ की आग

50 करोड़ की आग : भाग 3

कुछ देर तक वह फूलों की क्यारी में बैठा रहा. फिर उठ कर लड़खड़ाते कदमों से लौन से निकलने लगा. उस के दिमाग पर धुंध छाई हुई थी और वह बारबार सिर झटक रहा था. थोड़ी देर के लिए वह एक पेड़ के तने से टेक लगा कर बैठ गया.

वह घंटी की आवाज थी, जो बहुत दूर से आती महसूस हो रही थी. वह आंखें खोल कर आवाज की दिशा में देखने लगा. वह फायर ब्रिगेड की गाड़ी की घंटी की आवाज थी जो मोड़ घूम कर उसी सड़क पर आ चुकी थी.

विक्रम सिर झटकता हुआ संभल कर बैठ गया. कुछ देर वह फायर ब्रिगेड की आवाज सुनता रहा, फिर रेंगता हुआ झाडि़यों की ओर बढ़ने लगा. मकान के पीछे की ओर कांटों वाली झाडि़यों की बाड़ पार करते हुए उस के हाथ जख्मी हो गए. उस ने होंठ दांतों तले दबा लिया. ठीक उसी समय फायर इंजन ललिता हाउस के सामने आ कर रुका, विक्रम उठ कर लड़खड़ाते कदमों से दूर हटने लगा.

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मडप हालांकि उस के लिए अजनबी था. लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां उसे शरण मिल सकती थी. वह लड़खड़ाते हुए चलता रहा, उस का रुख शहर के सब से बड़े पुलिस अफसर मोहित के घर की ओर था.

अंधेरी गलियों में छिपतेछिपाते मोहित के घर तक पहुंचने में उसे 45 मिनट लगे. उस ने दरवाजे पर घंटी का बटन दबा दिया और दीवार से टेक लगा कर खड़ा हो गया.

मोहित उस समय बिस्तर पर कुछ कागजात फैलाए बैठा था. उन में उस की स्वर्गवासी पत्नी का वसीयतनामा, बैंक की स्लिपें और ललिता हाउस के बीमा के कागजात थे.

वह हिसाब लगा रहा था कि मकान के बीमा के सिलसिले में उस ने अब तक कितना प्रीमियम अदा किया था. उसे बीमा कंपनी से 50 करोड़ की धनराशि में से उस के अदा किए गए प्रीमियम और बाकी खर्चे काट कर उसे क्या बचेगा.

घंटी की आवाज सुन कर मोहित चौंका. उस ने घड़ी देखी 4 बजकर 10 मिनट हुए थे. वह कागजात और पेन बिस्तर पर छोड़ कर उठा और जैसे ही बाहरी दरवाजा खोला, विक्रम को देख बुरी तरह उछल पड़ा.

‘‘माई गौड, तुम…’’ कहने के साथ मोहित ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की, लेकिन इस बीच विक्रम दरवाजे में पैर फंसा चुका था.

‘‘दरवाजा खोलो, मुझे अंदर आने दो मोहित.’’ विक्रम ने थके हुए स्वर में कहा.

‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’ मोहित उस के पैर को ठोकर मारते हुए बोला, ‘‘मेरा तुम से कोई संबंध नहीं और न ही मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं. चले जाओ यहां से. अपने साथ तुम मुझे भी फंसाओगे.’’

विक्रम ने अचानक पिस्तौल निकाल लिया और उस की पसलियों पर गड़ाते हुए गुर्राया, ‘‘मुझे अंदर आने दो.’’

पिस्तौल देख कर मोहित की आंखों में डर उभरा और उस ने दरवाजा खोल दिया. डर से उस के हाथ और टांगें कांपने लगी थीं.

‘‘इजी विक्रम,’’ वह थरथराते लहजे में बोला, ‘‘मेरी बात सुनो, भावावेश में आने की आवश्यकता नहीं है. परिस्थिति को समझने की कोशिश करो.’’

विक्रम उसे देखता हुआ अंदर दाखिल हो गया. मोहित ने दरवाजा बंद कर दिया, मगर उस का हाथ अभी तक दरवाजे के हैंडिल पर था. डर के मारे उस के हाथ कांप रहे थे.

‘‘तुम मुझ से क्या चाहते हो विक्रम?’’ उस की बातों में भय झलक रहा था, ‘‘मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’

‘‘मुझे सिर के लिए एक रुमाल और एक चादर चाहिए,’’ विक्रम बोला.

‘‘क्यों नहीं, तुम्हें जिस चीज की जरूरत हो, मैं देने को तैयार हूं.’’

‘‘इस के अलावा तुम मुझे अपनी गाड़ी में थाणे छोड़ कर आओगे,’’ विक्रम ने कहा.

मोहित को सीने में सांस रुकती हुई महसूस हुई, ‘‘देखो विक्रम…’’ वह शुष्क होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘परिस्थिति को समझने की कोशिश करो. मेरे लिए तुम्हें थाणे ले जाना संभव नहीं है. मैं यहां का इंचार्ज हूं. किसी प्रकार का रिस्क नहीं ले सकता.अगर किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो न सिर्फ सारे किएधरे पर पानी फिर जाएगा बल्कि तुम्हारे साथ मैं भी जेल…..’’

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‘‘बंद करो बकवास,’’ विक्रम ने उसे पिस्तौल की नाल से टोहका दिया, ‘‘मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. अगर तुम ने मना किया तो…’’

‘‘ठीक है विक्रम, ठीक है,’’ मोहित हाथ उठाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हारी मदद करने को तैयार हूं, लेकिन इस तरह चीखने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘तकलीफ मेरी बरदाश्त से बाहर हो रही है,’’ विक्रम ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘मुझे डाक्टरी मदद की जरुरत है. इस से पहले कि मेरा दम निकल जाए, मुझे थाणे ले चलो, जल्दी करो, गाड़ी निकालो.’’

‘‘एक मिनट मैं कपड़े तो बदल लूं,’’ मोहित बोला.

‘‘नहीं, उस की जरूरत नहीं है, मेरे लिए एकएक पल कीमती है गाड़ी निकालो.’’ विक्रम चीखा. मोहित को उस का हुक्म मानना पड़ा. विक्रम उसे दोबारा कमरे में जाने का मौका नहीं देना चाहता था.

रात के सन्नाटे में मोहित की कार थाणे की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी. विक्रम पैसेंजर सीट पर बैठा हुआ था. उस ने मोहित का ओवरकोट और पुराना हैट पहन रखा था. जो उस के सिर की जली हुई त्वचा पर काफी तकलीफ दे रहा था.

कार को लगने वाले झटकों से विक्रम दाएंबाएं झूल रहा था. स्टीयरिंग पर मोहित की पकड़ काफी मजबूत थी, उस की गर्दन पर पसीने की धार बह रही थी. वह बारबार कनखियों से विक्रम की ओर देख रहा था.

‘‘बारबार मेरी तरफ क्या देख रहे हो?’’ विक्रम ने एक बार उसे अपनी तरफ देखते पा कर कहा, ‘‘मैं अभी जिंदा हूं, मरा नहीं हूं. सामने देख कर गाड़ी चलाओ, कहीं गाड़ी को टकरा मत देना, इंचार्ज साहब.’’

मोहित ने कोई जवाब नहीं दिया, वह सामने सड़क पर देखने लगा. भटान सुरंग से एक किलोमीटर पहले उस ने गाड़ी रोक ली.

‘‘विक्रम प्लीज, मुझे थाणे जाने पर मजबूर मत करो. मैं किसी किस्म का खतरा मोल नहीं ले सकता.’’

‘‘मुझे जल्द से जल्द किसी अच्छे डाक्टर के पास पहुंचना है.’’ विक्रम जख्मी होंठों पर जुबान फेरते हुए बोला, ‘‘और तुम मुझे यहां इस वीराने में छोड़ने के बजाए थाणे ले चलोगे, क्योंकि मेरी इस हालत के जिम्मेदार भी तुम हो. गाड़ी स्टार्ट करो.’’ विक्रम दर्द पर काबू पाने के लिए सीट पर आगेपीछे झूलने लगा.

‘‘गाड़ी स्टार्ट करो’’ वह गला फाड़ कर चिल्लाया.

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मोहित ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट कर दी. उस की टांगें और हाथ बुरी तरह कांप रहे थे, जिस से उस के लिए गाड़ी पर कंट्रोल रखना काफी मुश्किल हो रहा था, लेकिन वह जैसेतैसे गाड़ी चला रहा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

50 करोड़ की आग : भाग 4

लोनावाला पहुंच कर उस ने गाड़ी सिटरस होटल के अंदर मोड़ दी. मनमोहन इसी होटल में ठहरा हुआ था. वह चंद पल स्टीयरिंग व्हील के सामने बैठा रहा, फिर विक्रम की ओर मुड़ कर बोला, ‘‘देखो विक्रम, हम यहां पहुंच गए हैं. तुम कोई ऐसी हरकत नहीं करोगे, जिस से मुझे या तुम्हें पछताना पड़े.

‘‘मैं एक जिम्मेदार आदमी हूं. मेरे 3 बेटे हैं जो हौस्टल में रहते हैं. मैं समझता हूं तुम एक अच्छा आदमी होने का सबूत दोगे और मुझे किसी किस्म का नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करोगे. वैसे भी तुम मुझे नुकसान पहुंचाओगे ही क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम कमीने आदमी हो.’’ विक्रम ने होंठ चबाते हुए कहा, ‘‘मेरी यह हालत देख कर भी तुम ने घर का दरवाजा बंद करने की कोशिश की थी. तुम इतने बेगैरत हो कि मरते हुए आदमी के हलक में पानी की बूंद भी नहीं डाल सकते. अगर मेरे पास पिस्तौल न होता तो तुम कभी मेरी मदद नहीं करते.’’

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‘‘मेरे सब से छोटे बेटे की उम्र 5 साल है’’ मोहित घिघियाया, ‘‘क्या तुम 5 साल के बच्चे के सिर से उस के बाप का साया छीन सकते हो? विक्रम तुम जो कहोगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

‘‘तुम झूठ बोलते हो,’’ विक्रम दहाड़ा, ‘‘मैं जानता हूं तुम्हारी कोई औलाद नहीं है. तुम्हारी बीवी कई साल पहले मर गई थी. तुम ने ललिता हाउस के बीमा की रकम हासिल करने के लिए इमारत को आग लगवाई है, क्योंकि तुम जानते हो कि चंद माह बाद तुम्हें इस मकान का कुछ भी नहीं मिलेगा.

‘‘मुझे शक है कि तुम्हारी बीवी भी अपनी मौत नहीं मरी होगी. उस की दौलत पर कब्जा करने के लिए तुम ने उस की हत्या ही की होगी. बहरहाल, मैं इस समय तुम से किसी किस्म की बहस करने के मूड में नहीं हूं, मनमोहन को बुला कर लाओ, मैं कार में बैठा हूं.’’

मोहित छलांग लगा कर कार से उतर गया और तेजतेज कदमों से होटल में दाखिल हो गया. उस की वापसी में चंद मिनट से अधिक का समय नहीं लगा. उस के साथ मनमोहन और श्याम भी थे. मनमोहन ने कार का दरवाजा खोल कर जब अंदर झांका तो विक्रम के जख्मी होंठों पर मंद मुसकान आ गई.

‘‘खूब… बहुत खूब!’’ मनमोहन सीटी बजाते हुए बोला.

‘‘ओहो!’’ श्याम ने कहा, ‘‘लगता है यह सीधे मोर्चे से आ रहा है.’’

‘‘अगर तुम उस मकान को जा कर देखोगे तो मुझे भूल जाओगे,’’ विक्रम ने कहा.

‘‘तुम बेहोश होने की तैयारी तो नहीं कर रहे हो विक्रम?’’ श्याम आगे झुकते हुए बोला.

विक्रम आगेपीछे झूल रहा था. उस की आंखें बंद थीं, फिर एकाएक उस का सिर डैशबोर्ड से टकराया और वह दाईं ओर झूल गया.

दोबारा होश आने पर उस ने खुद को ऐसे कमरे में पाया, जिस की दीवारों पर मकड़ी के जाले लटके हुए थे. छत पर मद्धिम रोशनी का बल्ब झूल रहा था. उसी पल मनमोहन की आवाज उस के कानों से टकराई जो डाक्टर को संबोधित करते हुए कह रहा था, ‘‘सुनो डाक्टर, यह मरना नहीं चाहिए. इसे हर हालत में जिंदा रखना है क्योंकि लाश को ठिकाने लगाना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसलिए इस की दोनों टांगें और दोनोंं हाथ भी काटने पड़ें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘मैं इसे बचाने की कोशिश करूंगा,’’ डाक्टर की आवाज सुनाई दी, ‘‘नौजवान है, इसे खुद भी जिंदा रहने की ख्वाहिश होगी.’’

‘‘अब तुम जाओ मोहित, इसे हम संभाल लेंगे.’’ मनमोहन ने कहा.

‘‘मुझ से बहुत बड़ी बेवकूफी हो गई,’’ मोहित ने जवाब दिया, ‘‘तुम लोगों पर भरोसा कर के मैं ने अपना मानसम्मान, अपनी जिंदगी सब दांव पर लगा रखी है. अगर यह मर गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे. बहरहाल, मैं जा रहा हूं.’’

विक्रम की आंखें बंद थीं. उस ने मोहित के जाते कदमों की आवाज सुनी और एकाएक गहरीगहरी सांस लेने लगा.

मोहित जब वहां से निकला तो दिन की रोशनी छा चुकी थी. सुबह की ताजा हवा में उस ने लंबीलंबी सांस ली और कार में बैठ गया.

कार तेज गति से हाइवे पर दौड़ रही थी. मोहित के चेहरे पर सुकून था. अब उसे विक्रम की ओर से कोई चिंता नहीं थी. मरे तो मर जाए. उसे यकीन था कि मनमोहन और श्याम उसे संभाल लेंगे. वह मन ही मन ललिता हाउस और उस के बीमा की रकम के बारे में सोचने लगा, 50 करोड़ बड़ी रकम थी. वह बाकी की जिंदगी आराम से गुजार सकता था.

मोहित को यकीन था कि बीमा कंपनी का स्थानीय एजेंट भी सूचना पा कर मकान के मलबे के पास पहुंच गया होगा. स्थानीय एजेंट से उस का अच्छा परिचय था. वह अपने संबंधों के आधार पर उसे मजबूर कर सकता था कि दुर्घटना की जांच रिपोर्ट जल्द से जल्द पूरी कर के कंपनी को भेज दे ताकि क्लेम की अदायगी में देर न लगे.

जब उस ने कार हाइवे से ललिता हाउस की तरफ मोड़ी तो धूप फैल चुकी थी. फैक्ट्री एरिया से आगे निकलते ही उस ने कार का रुख अपने घर की ओर मोड़ दिया. उस ने सोचा था कि कपड़े बदल कर ललिता हाउस की तरफ जाएगा.

मोहित भविष्य की योजनाएं बनाता हुआ घर पहुंच गया. कार रोक कर वह नीचे उतरा और आगे बढ़ कर जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा तो चौंका. दरवाजा हलके से दबाव से खुल गया. अचानक उसे याद आया कि विक्रम के साथ जाते हुए उस ने दरवाजा लौक नहीं किया था.

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वह होंठ सिकोड़े धीमे सुर में सीटी बजाता हुआ अपने बैडरूम में दाखिल हुआ लेकिन पहला कदम रखते ही वह इस तरह रुक गया जैसे जमीन ने उस के पैर पकड़ लिए हों. उस का दिल उछल कर हलक में आ गया और सीने में सांस रुकता हुआ महसूस होने लगा.

कमरे में उस का एक मातहत इंसपेक्टर, एक सबइंसपेक्टर और 2 कांस्टेबल के अलावा बीमा कंपनी का एजेंट भी मौजूद था, जिस के हाथ में वे तमाम कागजात नजर आ रहे थे, जिन्हें वह रखा छोड़ गया था.

‘‘हैलो बौस,’’ इंसपेक्टर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रात आप के मकान को आग लगने के बाद हम ने कई बार फोन कर के संपर्क करना चाहा मगर कामयाब न हो सके. मैं ने सोचा संभव है आप घर पर मौजूद न हों, लगभग एक घंटे पहले मिस्टर ठाकुर…’’ उस ने बीमा कंपनी के एजेंट की ओर इशारा किया, ‘‘मिस्टर ठाकुर भी आग लगने की सूचना पा कर ललिता हाउस पहुंच गए थे. यह फौरी तौर पर आप से मिलना चाहते थे.

इस बार भी फोन पर संपर्क नहीं हो पाया तो हम स्वयं यहां चले आए और यहां आप के बिस्तर पर बिखरे हुए ये कागजात…’’ उस ने ठाकुर के हाथ में पकड़े कागजात की तरफ इशारा करते हुए वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

‘‘यह तुम्हारी ही हैंड राइटिंग है न मिस्टर मोहित?’’ ठाकुर ने सवालिया निगाहों से उस की ओर देखा.

‘‘हां.’’ आवाज मोहित के हलक से फंसीफंसी सी निकली.

‘‘इस सिलसिले में हम आप से कुछ पूछना चाहेंगे बौस.’’ इंसपेक्टर बोला.

उस के होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान थी, ‘‘और मेरा खयाल है, यह बातचीत पुलिस स्टेशन पहुंच कर ही होना चाहिए, वहां एसपी साहब भी इंतजार कर रहे हैं, चलिए बौस.’’

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औफिसर इंचार्ज मोहित सिर झुकाए अपने मातहतों के आगेआगे चल दिया. वह जान गया था कि उस का खेल खत्म हो चुका है.

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