Romantic Story: अंधेरा छंट गया – क्या नीला और आकाश के सपने पूरे हुए?

Romantic Story: शाम का सुरमई अंधेरा फैलने लगा था. खामोशी की आगोश में पार्क सिमटने लगा था. कुछ प्रेमी जोड़ों की मीठी खिलखिलाहटें सन्नाटे को चीरती हुई नीला और आकाश को विचलित कर देती थीं. हमेशा की तरह फूलों की झाडि़यों से बनी पर्णकुटी में एकदूजे का हाथ थामे, उदासी की प्रतिमूर्ति बने, सहमे से बैठे, आंसुओं से भरी मगर मुहब्बत से लबरेज नजरों से एकदूसरे को निहार रहे थे. दोनों के बीच मौन पसरा हुआ था पर वातावरण में सायंसायं की आवाज मुखरित थी.

‘‘कुछ तो कहो आकाश, 2 दिन ही रह गए हैं मेरी मंगनी होने में. उस के बाद मैं बाबूजी के अजीज मित्र के बेटे रितेश की मंगेतर हो जाऊंगी जो शायद मेरे जीतेजी संभव नहीं है,’’ नीला के हृदय से निकले इन शब्दों ने आकाश के हृदय को चीर कर रख दिया.

‘‘शायद यही हमारी नियति है, वरना इन 6 महीनों में क्या मुझे एक छोटीमोटी नौकरी भी नहीं मिलती. पिताजी के गुजर जाने के बाद किसी तरह ट्यूशन आदि कर के अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी की और नौकरी की तलाश में लग गया. नौकरी तो नहीं मिली लेकिन बड़े भाई की दया पर जीने के लिए मजबूर हो कर भाभी की आंखों की किरकिरी बन गया हूं. ऐसे में तुम्हीं कहो न, मैं क्या करूं? केवल प्यार के सहारे तो जीवन नहीं चलता है. बेरोजगारी के माहौल में झुलस जाएंगे. फूलों की सेज पर पली राजकुमारी को अपने साथ ठोकर खाने के लिए मैं कोई ऐसावैसा कदम भी नहीं उठाना चाहता. मेरी मानो तो तुम रितेश से शादी कर लो,’’  आकाश के स्वर रुकरुक कर निकले थे.

‘‘नहीं आकाश, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? मेरा जीवन तुम में बस गया है और जीवन के बिना क्या कोई जीवित रह पाया है. मेरी समझ से कल हम इस शहर को छोड़ कर दिल्ली चले जाएंगे. वहां मेरी बचपन की सहेली नीता रहती है, जो हमारे रहने की व्यवस्था करेगी. मैं ने उस से बात कर ली है. उस के पति एक महीने के लिए अमेरिका गए हैं. उन के आने तक हम वहीं रहेंगे. फिर उसी बीच हम कुछ न कुछ इंतजाम कर ही लेंगे. मैं ने कुछ रुपए भी जोड़ रखे हैं. पहले हम यहां से निकलें तो.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि हम यहां से कायरों की तरह भाग जाएं? मेरा मन यह रास्ता कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’

नीला रोती हुई बोली, ‘‘अगर तुम्हें नौकरी मिल भी जाती है, तो भी मेरे घर वाले तुम्हारे साथ मेरा रिश्ता करने के लिए तैयार नहीं होंगे. जिस जाति के लोग नौकर बन कर आज तक हमारी सेवा कर रहे हैं, मजाल है कि वे कभी हमारी बराबरी में बैठने का साहस कर के हम से ऊंचे स्वर में बात करें. उसी जाति के लड़के को वे इस जन्म में तो क्या, अगले सौ जन्मों में भी अपना दामाद स्वीकार नहीं करेंगे. ब्राह्मण की लड़की कुर्मी जाति के लड़के से प्यार कर के शादी करने का दुस्साहस करे, तुम क्या समझते हो, वे स्वीकार करेंगे? मुझे जीतेजी काटकूट कर गाड़ देंगे. मैं ने नीता की मदद से सारा इंतजाम कर लिया है. कल रात को हम दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे. अब तुम मुझे स्टेशन पर ही मिलोगे. पार्लर जाने के बहाने मैं घर से निकल कर सीधे वहीं चली आऊंगी.’’ और आकाश के साथ नीला पार्क से निकल गई.

सच में प्रेम का आगमन जीवन का अर्थ तो बदलता ही है, नातेरिश्तों के तमाम बंधनों से मुक्त भी कर देता है.

दूसरे दिन अपने आकाश के साथ, नीला ने मां के नाम संदेश छोड़ते हुए बचपन की दहलीज छोड़ दी.

संदेश यों था, ‘मेरे प्यार को किसी तरह आप लोग अपनाते नहीं और मैं आप की पसंद को जीतेजी स्वीकृत नहीं करती. मेरे समक्ष यही विकल्प था कि हम कहीं दूर जा कर अपने सपनों में रंग भरते हुए दुनिया बसा लें. आकाश मुझे नहीं, मैं आकाश को भगा कर लिए जा रही हूं. सवर्णों से लड़ने की इतनी हिम्मत उस में कहां? पुलिस आदि के चक्कर में पड़े तो आप लोग अपनी ही रुसवाई करवाएंगे. हम दोनों बालिग हैं, कानून या समाज हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. मेरी इस धृष्टता को क्षमा करिएगा. कभी, प्यार से हमें अपनाया तो ठीक है वरना अपनी इकलौती बेटी को भूल कर मेरे दोनों भाइयों के साथ सुखी रहिएगा, मां.’

दिल्ली पहुंच कर नीता की सहायता से कोर्ट में आकाश के साथ शादी कर ली तो नीला को ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे सारी दुनिया ही सिमट कर उस की बांहों में आ गई हो.

कुछ हफ्तों के अंदर ही नीला और आकाश ने नीता को हृदय से आभार प्रकट करते हुए एक रिहायशी इलाके में अपना आशियाना ढूंढ़ ही लिया. तीसरी मंजिल पर एक कमरे के फ्लैट में नीला और आकाश की प्यारभरी गृहस्थी रचबस गई तो नौकरी की तलाश करना दोनों का जनून बन गया. सुबह होते ही जैसेतैसे खाना बना कर डब्बे में पैक कर के दोनों ही नौकरी की खोज में निकल जाया करते थे.

मेहनत रंग लाई. नीला को एक पांचसितारा होटल में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई. असीम सौंदर्य की मलिका होने के साथ वह अति प्रतिभाशाली भी थी. फर्राटेदार अंगरेजी भी बोल लेती. होटल का मैनेजर तो नीला की शालीनता से इतना प्रभावित हुआ कि उस ने जो भी अपनी मांग और शर्त रखी बेझिझक उस पर स्वीकृति की मुहर लगा दी. नीला को नौकरी मिलने से आकाश को खुशी नहीं हुई. नौकरी मिलने का कारण उस ने नीला की प्रतिभा से ज्यादा उस के सौंदर्य को समझा. दरअसल, पढ़लिख जाने से ही वर्षों की पुरुषवादी मानसिकता समाप्त नहीं हो जाती. नीला ने आकाश के अंतर्मन को पढ़ लिया. बड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोली, ‘‘निराश क्यों होते हो, बहुत जल्द तुम्हें भी नौकरी मिल जाएगी. फिर हम और हमारे इंद्रधनुषी सपने होंगे. इतनी बेकारी में इतनी जल्दी नौकरी मिलना बहुत ही खुशी की बात है. चलो, खुश हो जाओ. आज की इस बड़ी उपलब्धि को हम ठंडीठंडी कुल्फी के साथ सैलिब्रेट करेंगे.’’

आरंभ में नीला, आकाश के साथ ही घर से निकल जाया करती थी. वह होटल की राह मुड़ जाती थी और आकाश दूसरी राह की ओर. वह नौकरी की तलाश में जीतोड़ मेहनत कर रहा था. ऐसे ही कशमकश में दिन पंख लगा कर उड़ते रहे पर आकाश को कोई नौकरी नहीं मिली. आशा के साथ हर दिन सूर्योदय होता और निराशा के साथ अस्त हो जाता. घरबाहर की जिम्मेदारियों के बोझ तले नीला की जवानी कुम्हलाई जा रही थी. फूल से भी कोमल नीला वज्र से भी कठोर हो गई थी. जानबूझ कर सबकुछ ओढ़ा गया था, फिर किस से शिकवाशिकायत की जाती. पर आकाश की वेदना को नीला निराशा व उदासीभरी आंखों से ही सहला दिया करती थी. टूटन दोनों ओर थी जिसे अनछुई छुअन से ही दोनों बांटते हुए जी रहे थे.

सिर्फ नीला की तनख्वाह से गृहस्थी के खर्च पूरे नहीं हो पा रहे थे. नीला के बदन से एकएक कर के सारे जेवर गायब हो रहे थे जिस का मलाल आकाश को भी था पर अपनी बेकारी में कर ही क्या सकता था. गृहस्थी के पहिए तले दोनों के अरमान दम तोड़ रहे थे. सारे इंद्रधनुषी सपने लुप्त हो चुके थे. तसल्ली के लिए दोनों के होंठों पर छिटकी हुई थकी मुसकान, निराशा के गहन अंधेरे को चीर अंतरंग उमंग बन कर उन्हें परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति दे रही थी.

नीता के पति ने आकाश को किसी फैक्टरी में 10 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर नौकरी दिला दी जो इतनी महंगाई और दिल्ली जैसे शहर में पर्याप्त तो नहीं थी पर डूबते जहाज को एक तिनके का सहारा जैसा जरूर मिल गया था. उन दोनों की खुशियों का ठिकाना नहीं था. जैसेतैसे डूबतेउतराते उन की गृहस्थी की नैया आगे बढ़ रही थी. मकानमालकिन से नीला की घनिष्ठता दिनोंदिन गहराती जा रही थी. अपने दुखसुख को नीला निसंकोच उन से साझा करती थी. वे भी हर प्रकार की सहायता के लिए तत्पर रहती थीं. उन का वश चलता तो वे उन से किराए की रकम भी न लेतीं लेकिन उन के पति पक्के बिजनैसमैन थे. नौकरी करने के साथ आकाश अच्छी और ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी तलाश करता रहा जो उतना आसान नहीं था जितना उस ने सोच रखा था.

इधर, नीला भी होटल से थक कर चूर लौटती थी. लंच और डिनर तो वह होटल में ही ले लिया करती. घर आ कर कुछ भी करने की स्थिति में नहीं रहती थी. नीला आ कर रात का खाना बनाएगी, इस आशा में आकाश बैठा रहता था.

‘‘मैं बहुत थक गई हूं, कुछ भी करने की हिम्मत नहीं है. प्लीज आकाश, कुछ भी अपने लिए बना लो. सोचती हूं कल से तुम्हारा खाना होटल से ही लेती आऊंगी. वहां पर काम करने वालों को कम रेट पर ऐसी सुविधाएं हैं.’’ आकाश को खीझ तो बहुत आती पर भूख तो कोई बहाना नहीं सुनती. ब्रैड खा कर सो जाता.

इधर, कितने दिनों से नीला के होटल से देर से घर आने में, और वह भी मैनेजर की गाड़ी में, आकाश को परेशान कर के रख दिया था. नीला भी तो कितनी बदल गई थी. पहले उस पर कितना प्यार उड़ेलती थी पर अब रात में आकाश जब भी उस की ओर हाथ बढ़ाता, अपनी थकान की बात कहते हुए वह दूर छिटक जाती थी. रविवार को भी वह ड्यूटी करने लगी थी. पूछने पर सपाट सा उत्तर, ‘‘अतिरिक्त समय में काम करने पर जो कमाई होगी उस से हम घरगृहस्थी का समान खरीदेंगे.’’

मैनेजर जरूरत से ज्यादा उस पर मेहरबान है, इधर कुछ दिनों से नीला यह देख व महसूस कर रही थी. दिन में कई बार किसी न किसी बहाने से उसे अपने चैंबर में बुला लेता था. चायकौफी के दौर के साथ इधरउधर की बातें किया करता था. कभी अपनी मृत पत्नी को याद कर के भावुक हो जाता तो कभी अपनी बेटी की बातें कर के खुश हो लेता. कभी उस ने मर्यादा की सीमा का अतिक्रमण नहीं किया था, इसलिए नीला को उस का साथ भाने लगा था.

आकाश अब उस के देर से लौटने पर आपत्तियां उठाने लगा था, पति नाम का जीव जो था वह. सुसज्जित घर, खाना, कमाई, सब से बढ़ कर पत्नी का सान्निध्य चाहिए था उसे. नीला कभीकभी खीझ कर रह जाती थी. राजकुमारी की तरह पलीबढ़ी नीला को अपने निर्णय पर कभीकभी पश्चात्ताप होने लगता था. एक सीमा तक उस ने अपने प्यार से आकाश को बदल दिया था पर अब एकदूसरे के प्रति दोनों की भावनाएं परिवर्तित हो चुकी थीं.

नीला और मैनेजर के बीच निश्चय ही अवैध संबंध है, यह सोचसोच कर आकाश अंदर ही अंदर पागल हो रहा था. नीला के सहयोग न करने के बावजूद उस के शरीर से जबरदस्ती करने में बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती थी उसे. आपसी मनमुटावों ने आएदिन तूतूमैंमैं का रूप अख्तियार कर लिया था. अब घर लौट कर आने में भी नीला को कोई आकर्षण नहीं रह गया था. उसे मैनेजर का संगसाथ भाने लगा था. मन लायक नौकरी नहीं मिलने के कारण आकाश का रौद्र रूप नीला को सहमा कर रख देता था. सारी मर्यादाओं की सीमा का अतिक्रमण करते हुए एक दिन उस ने नीला पर हाथ उठा दिया तो किसी घायल शेरनी की तरह उस ने भी आकाश को नहीं बख्शा.

उस दिन उस ने होटल में रात की ड्यूटी ले ली. युद्ध का अखाड़ा बने उस प्यार के आशियाने में लौटने की उस की जरा सी भी इच्छा नहीं हुई. नीला को रुके देख कर मैनेजर भी होटल में ही रुक गया. रात के सन्नाटे में मैनेजर ने नीला का सान्निध्य चाहा तो चीखनेचिल्लाने के बदले नीला ने बड़ी शालीनता से उन्हें समझा दिया.

‘‘माना कि आकाश को जीवनसाथी बनाना मेरा हद तक पागलपन था. बरात नहीं आई, सात फेरे क्या, कोई रस्म नहीं हुई. मां के गले लिपट कर रोई नहीं. उन की कोख को लज्जित करते हुए चोर की तरह बाबुल की दहलीज से भाग निकली. उस के प्यार और विश्वास के सहारे ही तो इतना बड़ा कदम उठा सकी थी. सर, दिल का वह भी इतना बुरा नहीं है. बस, हमारा समय खराब है. कितनी तकलीफ उठा कर बाधाओं से लड़ कर उस ने इतनी ऊंची डिगरी ली थी पर उस डिगरी का हुआ क्या, बेरोजगारी का दावानल सारे देश में फैला हुआ है जिस में झुलस रहे हैं आकाश जैसे युवकों के सपने. हर क्षेत्र में अमरबेल की तरह पसरी हुई राजनीति ने युवकों का सर्वनाश कर के रख दिया है. जिस दिन आकाश अपनी बेकारी पर विजय प्राप्त कर लेगा, उस के योग्य उस की पसंद की नौकरी मिल जाएगी, हमारा छोटा सा आशियाना खूबसूरत जहां बन जाएगा. हम उस के राजारानी बन कर चांदतारे पकड़ेंगे.

‘‘लेकिन कब तक, कह नहीं सकती. सर, आप बहुत अच्छे हैं. आप को एक से एक सहगामिनी मिल जाएंगी. आप के आकर्षणपाश में मैं भी बंधी हूं. एक बार आप हाथ बढ़ाएंगे, मैं किसी लता की तरह आप से लिपट जाऊंगी. फिर वह हो जाएगा जिसे कदापि नहीं होना चाहिए. प्लीज सर, शरीरप्राप्ति के लिए हमारी दोस्ती को दांव पर न लगाइए,’’ कह कर नीला ने अपनी हथेलियों में मुंह को छिपा लिया और फूटफूट कर रो पड़ी. दोनों के बीच समय मूक बना रहा. बेकारी के भूलभुलैये में एक पत्नी ने अपनी अस्मिता की गरिमा को खोने नहीं दिया था. यह बेकारी के मुंह पर एक बहुत बड़ा तमाचा था. अपनी पीठ पर छुअन का एहसास होते ही नीला ने चौंक कर सिर उठाया. मैनेजर के मुख से रुकरुक कर निकलता स्वर उस के कानों में अनमोल बूंदों को टपका रहा था, ‘‘मेरी इस अक्षम्य गलती को क्षमा कर देना, नीला. बेहद सुंदरता व असीम प्रतिभा की स्वामिनी का इतना मर्यादित रूप मैं ने जीवन में पहली बार देखा है. शिखर सी ऊंची तुम्हारी मानसिकता पर मुझे गर्व है. तुम ने मुझ भटके को राह दिखाई तो क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ कर नहीं सकता.

‘‘सुनो, कल तुम आकाश को साथ लाना. होटल का पूरा ऐडमिनिस्ट्रेशन कल से वही संभालेगा. रहने को फ्लैट, गाड़ी व सारी सुविधाएं तुम दोनों को मिलेंगी. तुम्हारे जीवन से अंधेरे के एकएक कतरे को खींच कर मैं रोशनी भर दूंगा. होेटल के मालिक होटल की सारी जिम्मेदारी मुझे सौंप कर अपने बेटे के पास अमेरिका जा चुके हैं. मैं जो चाहूं, करूं.

‘‘कसौटी पर कसे ऐसे खरे सोने मिलते कहां हैं. यह एक दोस्त को एक दोस्त का प्यारभरा तोहफा होगा.’’ निसंकोच हो कर नीला ने होटल मैनेजर की बांहों को थाम लिया. वहां कोई वासना नहीं थी. इस छुअन से स्नेह, प्यार, मनुहार, विश्वास छलक रहा था. कहीं दूर सूर्य की स्वर्णिम किरणें बिखर रही थीं. उन के साथ नीला के भी जीवन के अंधेरे का अंत हो चुका था. जितना हो सके, पढ़ेलिखे बेकारों का मार्गदर्शन कर के उन का हौसला बढ़ाएगी वह. घने घिरे बादलों में उन को क्षितिज तलाशने में किसी दामिनी की तरह सभी हताश लोगों का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश करेगी. इस निश्चय के साथ ही नीला उत्सुक हो कर अपने आकाश की बांहों में सिमटने के लिए जल्द से जल्द घर पहुंचने को बेचैन हो उठी. उस का पोरपोर आकाश के प्यार में ध्वनितप्रतिध्वनित हो रहा था.

Romantic Story: स्वीकार – क्यों आनंद से आनंदी परेशान थी?

Romantic Story: आनंदी के ब्याह को लगभग 5 वर्ष होने को हैं. आनंदी सुशील, मृदुभाषी, गृहकार्य में दक्ष और पूरे परिवार का कुशलतापूर्वक ध्यान रखने वाली, सारे गुणों से परिपूर्ण, एक कुशल गृहिणी है. इस‌ के‌ बावजूद, आज तक वह अपनी ससुराल के लोगों का दिल नहीं जीत पाई. वैसे तो वह पूरे परिवार की पसंद से इस घर में ब्याह कर आई थी लेकिन आज केवल अपने पति आनंद की पसंद बन कर रह गई है.

एक आनंद ही है जिस का प्यार आनंदी को घर के दूसरे सदस्यों के अपशब्द, बेरुखी और तानों को सहने व उन्हें नज़रअंदाज़ करने की ताकत देता है. आनंद के प्यार के आगे उसे सारे दुख फीके लगते हैं. आनंदी अपने दुख का आभास आनंद को कभी नहीं होने देती, क्योंकि वह जानती है यदि आनंद को उस के दुख का भान हुआ तो वह उस से भी ज्यादा दुखी होगा. आनंद सदा उस से कहता है, “आनंदी, तुम्हें मुसकराता देख मैं अपने सारे ग़म भूल जाता हूं. तुम सदा अपने नाम की भांति यों ही हंसती, मुसकराती, खिलखिलाती और आनंदित रहा करो.”

आनंदी को याद है वह दिन जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी. उस‌ की मुंहदिखाई की रस्म में नातेरिश्तेदार और आसपड़ोस की सारी महिलाओं की हंसीठिठोली के बीच हर कोई आनंदी की खूबसूरती की तारीफ किए जा रहा था और घर का हर सदस्य इस बात पर इतरा रहा था कि घर में बेहद खूबसूरत बहू ब्याह कर आई है.

आनंदी से शादी के पहले आनंद से शादी के लिए क‌ई लड़कियां इनकार कर चुकी थीं. आज आनंदी जैसी बेहद खूबसूरत बहू पा कल्याणी फूले नहीं समां रही थी. आनंद सांवला और साधारण नैननक्श वाला था.  वहीं, आनंदी दूध की तरह गोरी और तीखे नैननक्श की. जो आनंदी को एक बार देख ले तो उस का दीवाना हो जाए और कभी न भूल पाए यह हसीन चेहरा.

स्कूलकालेज के दिनों में तो आनंदी के क‌ई दीवाने थे. महल्ले से ले कर कालेज तक हर कोई आनंदी को पाना चाहता था. हर किसी की आंखों में आनंदी की खूबसूरती का नशा और उस के शरीर को पाने की हवस साफ झलकती थी. कभीकभी पड़ोस की चाची, उस की मां से बातोंबातों में कह जातीं, ‘अपनी आनंदी के  हाथ जल्दी पीले कर दो, वरना उस की खुबसूरती की वजह से कभी कोई ऊंचनीच हो गई तो कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगी.’ यह सब सुन आनंदी की  मां के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जातीं और आनंदी को उस की खूबसूरती बेमानी लगने लगती.

इसी हंसीठिठोली के बीच सासुमां की एक सहेली ने कहा, “कल्याणी, तेरी बहू तो चांद है चांद.” उस पर सासुमां अपनी भौंहें मटकाती और थोड़ा इतराती हुई बोलीं, “चांद में दाग होता है. मेरी बहू बेदाग है. लाखों में एक है मेरी बहू.” ऐसा कहती हुईं सासुमां ने अपनी आंखों से काजल निकाल आनंदी के कानों के पीछे लगा दिया. सासुमां का प्यार देख आनंदी मन ही मन प्रकृति का धन्यवाद करने लगी कि उसे इतना प्यार करने वाला परिवार मिला है.

इसी दौरान कुछ ही देर में एक बुजुर्ग महिला के आने पर जब आनंदी ने उस महिला के पैर छुए तो  वे आशीष देती हुई बोलीं, “दूधो नहाओ पूतो फलो.” फिर आगे बोलीं, “बहूरानी, अब जल्दी से इस घर को एक वारिस दे दो.” इस बात पर तो जैसे सासुमां की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और वे हसंती हुई बोलीं, “अरे मौसी, आप के आशीर्वाद से तो मैं जल्द ही दादी बन जाऊंगी.” जैसे ही आनंदी के कानों में ये शब्द पड़े, वह बेचैन हो उठी और उसे हर्ष व उल्लास का यह मौका बोझिल लगने लगा.

कुछ समय तक सब  ठीक चलता रहा. घर के सभी सदस्यों से आनंदी को भरपूर प्यार मिलता रहा. लेकिन सब के प्यार में कुछ न कुछ स्वार्थ छिपा था. हर रिश्ता कुछ न कुछ मांग रहा था. सासुमां अकसर आनंदी से दबी आवाज़ में धीरे से पूछतीं, ‘खट्टा खाने का मन तो नहीं…?’

इस सवाल पर आनंदी थोड़ा असहज और दुखी हो जाती. जवाब में हलके से सिर नहीं में हिला देती. सालदरसाल धीमी आवाज बढ़ती ‌हुई तेज आवाज में तबदील हो गई और फिर तानों में.घर के अन्य सदस्यों के बीच अब आनंद की दूसरी शादी की फुसफुसाहट शुरू होने लगी. इन सब से बेखबर आनंद, आनंदी पर निस्वार्थ प्रेम लुटाए जा रहा था.

आज रविवार का दिन है, आनंद की छुट्टी है. घर पर सभी सदस्य हैं. आनंद और आनंदी मां से कुछ कहना चाहते हैं. लेकिन मां और घर के अन्य सदस्य किसी दूसरे कार्य में व्यस्त हैं. सभी के क्रियाकलापों से ऐसा लग रहा है मानो घर पर ख़ास मेहमान आने वाले हैं. पर इस बात की जानकारी न तो आनंदी को है और न ही आनंद को.  तभी, मां आनंद को संबोधित करती हुई बोलीं, “आनंद, अभी‌ तुम घर पर ही रहना, कहीं जाना मत.”

आनंद ने प्रश्न किया, “मां, क्या मेरा रहना जरूरी है?” इस पर मां झुंझलाती हुई‌ बोलीं, “जरूरी है, तभी तो कह रही हूं.”

निर्धारित समय पर आगंतुक आ पहुंचे. उन के आदरसत्कार का सिलसिला शुरू हुआ. तभी आनंदी चायनाश्ता ले कर पहुंची. उसे देखते ही अतिथि में से एक महिला, जो साथ आई लड़की की मां थी, बोली, “देखिए कल्याणी जी, मैं अपनी बेटी की शादी आप के बेटे आनंद ‌से तभी करूंगी जब आप का बेटा अपनी‌ पहली पत्नी से तलाक लेगा.” इस‌ बात पर कल्याणी आगंतुक महिला को आश्वस्त करती हुई बोलीं, “आप चिंता न करें, मेरा बेटा वही करेगा जो मैं चाहूंगी.”

आनंदी वहीं खड़ी सब चुपचाप सुन रही थी. आनंद भी वहीं उपस्थित था और वह भी सारी बातें सुन रहा था. अचानक आनंद मां की ओर देखते हुए बोला, “हां, मां, क्यों नहीं, मैं बिलकुल वही करूंगा जो आप चाहेंगीं.” यह‌ सुनते ही आनंदी के पैरोंतले जमीन खिसक गई. उस की आंखें डबडबा गईं. वह सोचने लगी, ‘क्या यह वही आनंद है जिस से उस की 5 मिनट की पहली मुलाकात में ही उस के मन में आनंद के लिए प्यार जगा गया. आनंद की वह बेबाक सचाई बयां करने का अंदाज जिस ने आनंदी का दिल जीत लिया और जिस की वजह से वह इस शादी के लिए हां कर बैठी.’

तभी आनंदी के कानों में आनंद के ये शब्द पड़े,  “मैं आप सभी को एक सचाई बताना चाहूंगा.” ऐसा कहते हुए आनंद कोने में खड़ी आनंदी को खींचते हुए सब के सामने ला कर बोला, “ये जो आप सब के सामने खड़ी है, ये कभी भी मां बन सकती है लेकिन मैं पिता नहीं बन सकता क्योंकि कमी इस में नहीं, मुझ में है और यह सब जानते हुए भी इस ने मुझे स्वीकार किया है. यह चाहती तो बाकी लड़कियों की तरह मुझे अस्वीकार कर सकती थी, लेकिन इस ने ऐसा नहीं‌ किया. आप‌ लोगों को क्या लगता है जिन लड़कियों ने मुझ से‌ शादी से इनकार किया, वे मेरे साधारण नैननक्श की वजह से था. नही. उन्होंने मुझ से शादी इसलिए नहीं की क्योंकि मैं उन्हें पहले ही बता देता कि मैं उन्हें वह सुख नहीं दे पाऊंगा जिस की वे कामना रखती हैं. लेकिन इस ने मुझे मेरी कमियों के साथ स्वीकार किया. इस ने मेरी भावनाओं को समझा. इसे पता है शादी केवल 2 जिस्मों का मेल नहीं, 2 परिवारों का भी मेल है.”

आनंद अपनी मां की ओर  देखते हुए बोला, “मां, तुम तो एक नारी हो‌, तुम्हें क्या लगता है, हर वक्त हर परिस्थिति में केवल नारी ही जिम्मेदार होती है?  मां, अब तुम बताओ, क्या मुझे आनंदी को इस बात के लिए तलाक देना चाहिए कि वह अपने सुख की परवा किए बगैर मेरा साथ चुपचाप निभाती रही.

आनंद के मुख से यह सब सुन सभी शांत हो ग‌ए जैसे भयानक तूफान के बाद सब शांत हो जाता है. घर के सभी लोगों के चेहरे पर अब पश्चात्ताप साफ नजर आ रहा था. सासुमां की आंखों में भी आनंदी से क्षमायाचना के भाव साफ़ झलक रहे थे. सासुमां कुछ कहती, उस से पहले आनंदी मां के पैरों को छू कर बोली, “मां, मैं और ‌आनंद अनाथालय से एक बच्ची गोद लेना चाहते हैं. आप की स्वीकृति चाहिए.”

मां बहू आनंदी के माथे पर अपना चुंबन अंकित करती हुई बोलीं, “हां, क्यों नहीं, कहो बेटा, कब चलना है हमें.”

Family Story: धोखा – क्या संदेश और शुभ्रा शादी से खुश थे?

Family Story: संदेश और शुभ्रा ने एकदूसरे को पसंद कर शादी के लिए रजामंदी दी थी. दोनों के परिवारों ने खूब अच्छी तरह देखपरख कर संदेश और शुभ्रा की शादी करने का फैसला किया था. यह कोई प्रेम विवाह नहीं था. रिश्तेदारों ने ही ये रिश्ता करवाया था.

संदेश एमबीए कर के एक कंपनी में सहायक मैनेजर के पद पर काम कर रहा था, तो शुभ्रा भी एमए कर के सिविल सर्विस के लिए कोशिश कर रही थी. ऐसे में शुभ्रा के एक रिश्तेदार ने संदेश के बारे में शुभ्रा के मम्मीपापा को बताया. शुभ्रा के मम्मीपापा रिश्ते की बात करने के लिए संदेश के घर गए.

संदेश के पिताजी बैंक से रिटायर्ड थे तो मम्मी घरेलू औरत थी. इस तरह देखादिखाई के बाद संदेश और शुभ्रा की शादी हुई.

संदेश के मातापिता उस के बड़े भाई के साथ रहते थे, तो संदेश दूसरे शहर में सर्विस करता था, इसलिए संदेश के मातापिता ने शुभ्रा को उस के साथ भेज दिया, ताकि उन को रहनेखाने में कोई दिक्कत न हो.

शुभ्रा संदेश के साथ रहने के लिए इस शहर में चली आई. संदेश के परिवार ने शहर की एक अच्छी सोसाइटी में फ्लैट ले कर दे दिया था, ताकि बारबार किराए के मकान के बदलने से छुटकारा मिल जाए.

3 कमरों का यह फ्लैट तीसरी मंजिल पर था. शुभ्रा के आने से तो मानो फ्लैट महक उठा. सुबह जब संदेश औफिस चला जाता, तो शुभ्रा अपने हाथों से साफसफाई करती, झाड़पोंछ कर घर को एकदम साफसुथरा रखती.

शाम को जैसे ही संदेश घर आता, उस के हाथ से ब्रीफकेस ले कर शुभ्रा रखती. उस के शर्ट के बटन खोलती, फिर पहले पानी और उस के बाद दोनों इकट्ठा ही चायनाश्ता करते. शाम को कभी पार्क, कभी मौल, तो कभी किधर घूमने अकसर निकल जाते संदेश और शुभ्रा. नईनई शादी हुई है, तो दोनों एकदूसरे को टूट कर प्यार करतेकरते एकदूसरे की बांहों में ऐसे समा जाते कि सुबह ही आंखें खुलती.

एकदूसरे की बांहों में समाए, प्यार करतेकरते कब शादी की सालगिरह आ गई, पता नहीं चला. शुभ्रा को तो सुबह जब संदेश ने चूम कर मुबारकबाद दी, तब याद आया.

औफिस जाते समय संदेश ने शुभ्रा से कहा, ‘‘आज शाम को बाहर चलेंगे, वहीं खाना खा कर आएंगे.’’

शाम 6 बजे सही समय पर संदेश घर आ गया, शुभ्रा पहले से ही तैयार थी. बस, संदेश तैयार होने लगा और थोड़ी देर में ही वे घर से निकल पड़े.

संदेश ने पहले से ही होटल में टेबल बुक करवा रखी थी. वहां पहुंच कर संदेश ने पहले स्नैक्स, उस के बाद खाने का और्डर दे दिया था.

जब तक वेटर ये सब ले कर आता, संदेश ने शुभ्रा को हाथ आगे करने को कहा.

जैसे ही शुभ्रा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, संदेश ने एक हीरे की बहुत ही सुंदर अंगूठी उस की उंगली में पहना दी.

यह देख शुभ्रा की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने संदेश को चूम लिया. दोनों खाना खा कर खुशीखुशी घर लौटे और सो गए.

प्यार का यह सिलसिला ठीकठाक चल ही रहा था कि अचानक संदेश के बरताव में शुभ्रा ने बदलाव महसूस करना शुरू कर दिया.

अब शाम को संदेश बहुत थकाहारा सा औफिस से लेट आता. इस के बाद खाना खा कर थोड़ीबहुत इधरउधर की बात करता, फिर सोने की तैयारी करता.

शुभ्रा उस को प्यार करने के लिए कहती, तो कभी थकावट, कभी गैस, तो कभी कोई बहाना बना कर मुंह फेर कर सो जाता. सुबह भी औफिस के लिए एक घंटा तय समय से पहले निकल जाता. सुबह इतनी हड़बड़ाहट में होता कि कभी लंच बौक्स भूल जाता, तो शुभ्रा भाग कर उस को थमा कर आती.

शुभ्रा इस की वजह जानने की कोशिश में थी, लेकिन अभी तो वह जान नहीं पाई.

ऐसे बोझिल माहौल से छुटकारा पाने के लिए शुभ्रा सुबह सोसाइटी के पार्क में घूमने लगी. सोसाइटी की एक आंटी से शुभ्रा की मुलाकात हो गई. अब सुबहसुबह दोनों इकट्ठे बैठ कर कसरत करतीं और बतियाती थीं.

एक दिन एक नौजवान लड़का भी वहां जौगिंग कर रहा था. शुभ्रा ने उसे देखा, तो आंटी ने शुभ्रा को देख लिया और शुभ्रा से कहा, ‘‘मीठा है ये.’’

शुभ्रा इस का मतलब नहीं समझी, तो आंटी ने बताया, ‘‘यह ‘गे’ है.’’

शुभ्रा ने पूछा, ‘‘कहां रहता है, यह?’’

आंटी ने कहा, ‘‘तेरे फ्लैट के नीचे वाले फ्लैट में किराए पर रहता हैं.’’

इस के बाद शुभ्रा अपने घर आ गई और आंटी अपने घर चली गई. लेकिन शुभ्रा उस नौजवान के बारे में सोच कर भिन्नाती रही कि आदमी हो कर भी यह सब. यह बात शुभ्रा के दिमाग से निकल ही नहीं रही थी.

आज भी संदेश बड़ी हड़बड़ाहट में तैयार हो कर निकला. शुभ्रा संदेश के जाने के बाद कपड़े धो कर बालकनी में सुखाने के लिए डाल रही थी, तभी उस ने नीचे देखा कि संदेश सोसाइटी से दफ्तर के लिए अब निकल रहा है, घर से निकलने के एक घंटे बाद…

शुभ्रा के दिल में शक ने जन्म ले लिया था. शाम को संदेश दफ्तर से घर आया, तो शुभ्रा ने ब्रीफकेस लिया और उस को टेबल पर रख ही रही थी कि वह खुल गया और उस में से डीओ, परफ्यूम, अंडरवियर जैसी चीजें बाहर आ गईं.

संदेश की नजर उन पर पड़ी, तो भाग कर उन को ब्रीफकेस में डाल कर बंद कर दिया.

शुभ्रा ने जब देखा, तो पूछ ही लिया, ‘‘यह सब किस के लिए…?’’

संदेश ने बहाना बना दिया कि औफिस का एक कर्मचारी रिटायर हो रहा?है, उस को गिफ्ट में देने के लिए यह सब लाया है. शुभ्रा ने कहा, ‘‘रिटायरमैंट के गिफ्ट में यह सब कौन देता है?’’

खैर, बात आईगई हो गई.

अब शुभ्रा को सब समझ आने लगा था. उस ने कई दिन जांचपड़ताल की और एक दिन सही समय पर संदेश को उस नौजवान के फ्लैट से निकलते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया. संदेश के चेहरे का रंग उड़ गया.

शुभ्रा संदेश को फ्लैट में ले कर आई. वहां संदेश ने उस नौजवान के साथ अपना संबंध स्वीकार कर लिया और कहा कि इस से संबंध बनाने के बाद मुझे तुम में या लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं रही. दोनों में काफी कहासुनी हुई.

शुभ्रा ने संदेश से कहा, ‘‘तुम ने मुझे धोखा दिया है. मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकती,’’ वह गुस्से में फुफकारती हुई निकल गई और संदेश भी अपना सूटकेस ले कर घर से निकल पड़ा.

संदेश ने शुभ्रा को रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुकी.

संदेश आंखों से ओझल होती शुभ्रा को देख कर अपने बाल नोचने लगा.

Family Story: अपना घर – सीमा अपने मायके में खुश क्यों नहीं थी?

Family Story, लेखिका- अर्चना खंडेलवाल

मोबाइल की घंटी बजते ही सीमा ने तुरंत फोन उठा लिया. रिसीवर के दूसरी ओर मां थी, ‘‘मां, आप को ही याद कर रही थी. भैया रवाना हो गए? आप सब को देखे महीना हो गया.’’ सीमा थोड़ी सी रोंआसी हो कर बोली, ‘‘भैया कब तक आएंगे? मु?ा से तो सब्र नहीं हो रहा. अब कब आ कर आप सब से मिलूं.’’

‘‘आ रहा है बेटा, तेरे बिना घर ही सूना हो गया. तू तो हमारे घर की रौनक थी. तेरे बाबूजी, भैया, मैं, हम सब को तू बहुत ही याद आती है. तेरी नई भाभी भी तु?ा से मिलने को अधीर है. दीदी कब आएंगी, बस यही पूछती रहती है. अच्छे से सामान पैक कर लेना. खानेपीने का सब रख लेना. ट्रेन से नीचे मत उतरना. मौसम थोड़ा ठंडा है, कुछ हलका ओढ़ने को रख लेना.’’

‘‘हां मां हां, अब मैं बच्ची नहीं रही. शादी हो चुकी है, मैं सब मैनेज कर लूंगी.’’ कह कर सीमा ने फोन रख दिया. ‘मां भी न,’ यह सोच कर सीमा मुसकरा दी.

दूसरे दिन सवेरे जल्दी उठ कर सीमा ने फाइनल पैकिंग कर ली. सीमा की सास ने आज उसे रसोई से छुट्टी दे दी ताकि वह आराम से सब पैक कर ले. रोहन से दूर होने का दुख था पर महीनेभर बाद मायके जाने की खुशी अलग थी. तभी डोरबेल बजी, ‘‘भैया, आप आ गए,’’ भैया को देख कर सीमा की प्रसन्नता देखने लायक थी.

सास ने दोपहर का खाना लगाया. पहली बार बहू के भाई की आवभगत में कोई कमी नहीं रखी. आते ही पूरा घर संभाल लिया. सीमा तो हमारे घर के कणकण में रचबस गई है, बेटा. इस के जाते ही बहुत अखरेगा. सीमा अपनी तारीफ में सास द्वारा कहे गए शब्दों के बो?ातले दबे जा रही थी.

‘‘जी,’’ मांजी, सास के पांव छू कर विदा ली. रोहन ने भैया, सीमा को रेलवे स्टेशन तक छोड़ दिया.

सीमा और उस के भैया की शादी दो दिनों के अंतराल से हुई थी. पहले भाभी घर में आई, एक दिन बाद सीमा की बिदाई. ज्यादा दिन साथ रहे नहीं, दोनों अपनीअपनी शादी में व्यस्त थीं. आज सीमा शादी के एक महीने बाद मायके में रहने जा रही है. दूर भी तो इतना भेज दिया, बारबार जल्दी से मायके आ भी नहीं सकते. ट्रेन की दूरी तो बहुत खल रही थी. काफी उत्साहित थी, सब से मिलने के लिए.

शादी के बाद रस्मोरिवाज, रिश्तेदारों के यहां आनेजाने में ही वक्त निकल गया. रोहन के साथ हनीमून की मीठी यादें याद करती रही, कभी मायके में बिताया हर पल. शादी के बाद लड़की 2 नावों की सवारी करती है, दोनों में संतुलन कर के चलती है. मायके वाले भी उतने ही प्रिय होते हैं जितने ससुराल वाले. मायके में जिंदगी का अल्हड़पन बीतता है. और ससुराल में जिम्मेदारी और कर्त्तव्यों को वहन करना होता है. मायके में कोई रोकटोक नहीं, कोई बंदिश नहीं, सब से बड़ी बात वहां अपेक्षाएं नहीं थीं.

ट्रेन में भैया, भाभी के गुणों की ही व्याख्या करते रहे हैं. सीमा का मन अधीर हो गया, भाभी से मिलने को.

घर की इकलौती लाड़ली सीमा काफी चतुर व सम?ादार थी. मां की बीमारी के चलते सारे घर की जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर थी. कौन सी चीज कहां रखनी है, कौन सा सामान किस तरह से घर में सैट करना है. अमुक चादर बैड पर जंचेगी या नहीं. अमुक टेबल कमरे के किस कौर्नर में रखें, गमले में आज कौन से फूल महकेंगे. सुबह के नाश्ते से ले कर रात के खाने में क्या बनेगा. सब काम सीमा के फैसले से होते थे. सीमा मां, बाबूजी, भैया के साथ अपनी ही दुनिया में डूबी हुई थी.

एकाएक उसे आभास हुआ घर में उस की शादी के चर्चा होने लगी. रोज कहीं न कहीं बाबूजी लड़का देख कर आते. उस दिन जब बूआ आई थीं, सम?ा रही थीं, ‘‘लड़की को सही वक्त पर उस के घर भेज दो, यह तो पराया घर है. एक दिन तो उसे यह घर छोड़ कर जाना है,’’ बूआ की बात कानों से सुनी, तभी से सीमा की सांस ऊपरनीचे हो गई. क्यों यह पराया घर है. जिस घर पलीबढ़ी, खेलीकूदी, हर खुशी पाई. किसी के पास जवाब नहीं था, पर सब को यही कहना था, जाना तो होगा. आखिर सब के सम?ाने पर सीमा मान गई. पर उस ने शर्त रखी कि वह मां को बीमार छोड़ कर नहीं जाएंगी. पहले भैया की भी शादी कीजिए. शर्त मान  ली गई संयोग से सुयोग्य लड़की भी  मिल गई.

ज्योंज्यों मायका नजदीक आ रहा था, वैसे ही सीमा की बेचैनी भी बढ़ने लगी. आखिर उस का घर दिख गया. रोमरोम पुलकित हो गया. भैया ने जैसे ही सामान उतारा, सीमा ने घर के आंगन में पांव रखा कि चौंक गई. बाहर आंगन में उस ने जो छोटा सा बगीचा तैयार किया था, सुबहशाम पानी डाला करती थी, जहां बैठ कर अकसर पढ़ाई किया करती थी, कितनी मेहनत से तरहतरह के पौधे लगाए थे, उस के बगीचे का नामोनिशान नहीं था. आंगन की महकती खुशबू को बेजान पत्थरों ने दबा दिया था. सारा आंगन पक्का करवा दिया गया था.

भैया ने सीमा के चेहरे के भाव पढ़ लिए, दबी जबान में बोले, ‘‘यह तुम्हारी भाभी ने कहा, सारा घर मिट्टी से सन जाता है, वैसे भी तुम्हारे जाते ही सारे फूल मुर?ा गए थे.’’

उतरे चेहरे से सीमा अंदर ड्राइंगरूम में पहुंची. मांभाभी से मिली. भाभी चायनाश्ते में जुट गई. ड्राइंगरूम का नक्शा ही बदल गया था. सीमा की पेंटिंग्स दीवार से उतर कर घर के पिछवाड़े तक जा पहुंचीं, भाभी की बनाई पेंटिंग से रूम सज रहा था. दीवान पर पेंटिंग की चादर की जगह भाभी के हाथ की कशीदे की चादर फब रही थी. अब सोफा सैट की दिशा भी बदल गई. गमलों में बनावटी फूल खिल रहे थे. परदों के रंग भी उलटपुलट हो गए.

उसे लगा वह किसी नई जगह पर आ गई है. सीमा मनमसोस कर रह गई, कहने वाली थी कि मां यह क्या? तभी मां बोली, ‘‘तेरे घर पर सब ठीक है.’’

सीमा बोली, ‘‘हां, मां, मेरे घर पर सब ठीक है.’’

उधर मां भाभी की बनाई चीजों की तारीफ करते नहीं थक रही थी. तेरी भाभी ने आते ही अपना घर संभाल लिया. ‘सच है, यह भाभी का घर है, मेरा तो कभी था ही नहीं,’ हौले से सीमा बुदबुदा दी. यह घर पराया था नहीं, पर अब लगने लगा. मेरी इस घर में कोई अहमियत नहीं रही, सीमा मन ही मन रो दी.

रात के खाने से निबटी थी. अब उसे मेहमानों का कमरा दिया गया. रातभर सोचसोच कर करवट बदलती रही.

बचपन के स्कूल के, हर पल, हर क्षण याद आते रहे. वह अपने ही मन को सम?ाती रही. मां, बाबूजी, भैया, भाभी के प्यारदुलार में कोई कमी नहीं है. फिर भी अब वह बात नहीं रही जो शादी से पहले थी. हिचकिचाहट नहीं थी. कुछ भी काम करना हो, अब पूछना होता है. भाभी के हिसाब से घर की किचन की सैटिंग है, तो मु?ो क्यों अखर रहा है. अपनेआप से सवाल करने लगी. मैं ने भी तो रोहन का घर संभाल लिया है. जैसे मु?ो पता है, घर की कौन सी चीज कहां रखी है. यह सोचतेसोचते जाने कब आंख लग गई.

सुबह नाश्ते की टेबल पर भैया ने मां के हाथ में रुपए दिए. मां ने आवाज लगाई, ‘‘बहू ये रुपए अलमारी में रख दे,’’ सीमा ने रुपयों से एकाएक नजरें चुरा लीं. शादी से पहले चाबी सीमा के ही हाथ में रहती थी. कुछ दिन मायके में रही. उस की उपस्थिति मात्र मेहमानस्वरूप ही रही. उसे महसूस हुआ, शादी के बाद लड़की ही नहीं, उस की तमाम चीजें शौक, पसंद भी पराए हो जाते हैं.

मां, भैया, भाभी ने कुछ और दिन रुकने को कहा पर सीमा टस से मस नहीं हुई. उस के अपने पराए और पराए अपने हो गए थे. अगले दिन रोहन लेने आ गए. बिना किसी मोह, आंसू के सीमा अपने पति के साथ अपने घर चल दी.

घर की इकलौती लाड़ली सीमा काफी चतुर व सम?ादार थी. मां की बीमारी के चलते सारे घर की जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर थी. कौन सी चीज कहां रखनी है, कौन सा सामान किस तरह से घर में सैट करना है. अमुक चादर बैड पर जंचेगी या नहीं. अमुक टेबल कमरे के किस कौर्नर में रखें, गमले में आज कौन से फूल महकेंगे.

Romantic Story: कितने दिल – क्या रमन और रमा का कोई पुराना रिश्ता था?

Romantic Story: वे दोनों तकरीबन एक महीने से एकदूसरे को जानने लगे थे. रोज शाम को अपनेअपने घर से टहलने निकलते और पार्क में बतियाते.

आज भी दोनों ने एकदूसरे को देखा और मुसकरा कर अभिवादन किया.‘‘तो सुबह से ही सब सही रहा आज?’’ रमा ने पूछ लिया तो रमन ने ‘हां’ कह कर जवाब दिया.

‘‘और फिर दोनों में सिलसिलेवार मीठीमीठी गपशप  शुरू हो गई. रमा रमन से 5 साल छोटी थीं. वे रमण की बातें गौर से सुनतीं और अपना विचार व्यक्त करतीं. रमन ने उन को बताया था कि वे परिवार से बहुत ही नाखुश रहने लगे हैं. सब को अपनीअपनी ही सू झती है. सब की अपनी मनपसंद दुनिया और अपने  मनपसंद अंदाज हैं.

रमन का स्वभाव ही ऐसा था कि जब भी गपशप करते तो अचानक ही पोंगा पंडित जैसी बात करने लगते, कहते, ‘‘रमाजी, पता है…’’ तो वे तुरंत कहतीं, ‘‘जी नहीं, नहीं पता है.’’

तब वे बगैर हंसे अपनी रौ में बोलते रहते, ‘‘इस दुनिया में 2 ही फल  हैं, एक तुम जो चाहो वह न मिले और दूसरा तुम जो चाहो वह मिल जाए.’’

यह सब सुन कर रमा अपनी हंसी दबा कर कहतीं, ‘‘अच्छा जी, तो आप का आश्रम कहां है. जरा दीक्षा लेनी थी.’’

यह सुन कर रमन काफी गंभीर और उदास हो जाते. तो वे मन बदलने को कुछ लतीफे सुनाने लगतीं, ‘‘रमनजी, ‘गुरुजी, जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे…’ उक्त गीत में नायक नायिका से क्या कहना चाहता है, संक्षेप में भावार्थ बताओ रमनजी?’’

रमन सवाल सुन कर सकपका ही जाते. वे बहुत सोचते, पर उन से उत्तर देते ही नहीं बनता था. रमा कुछ पल के बाद खुद ही कह देतीं, ‘‘रमनजी, इस गाने में नायक नायिका से कह रहा है कि ठीक है तुम से माथाफोड़ी कौन करे.’’

उस के बाद दोनों ही जोरदार ठहाका लगाते. अकसर रमन उपदेशक हो जाते. वे कहते, ‘‘मेरे मन में प्रकृतिप्रेम भरा है और  मैं तुम को यह सलाह इसलिए नहीं दे रहा कि मैं बहुत सम झदार हूं बल्कि इसलिए कि मैं ने गलतियां तुम से ज्यादा की हैं और इस राह में जा कर मु झे सुकून मिला.’’

रमा भी किसी वामपंथी की मानिंद  बोल उठतीं, ‘‘रमनजी, 3 बातों पर निर्भर करता है हमारा भरोसा, हमारा अपना सीमित विवेक, हम पर सामाजिक दबाव और आत्मनियंत्रण का अभाव.

अब इस में मैं ने अपने भरोसे की चीज तो पा ली है और खुश हूं.’’

मगर रमन तब भी रमा के मन को नहीं सम झ पाते थे. उन की भारीभरकम बातें  सुन कर पहलेपहल तो रमा को ऐसा लगता था कि रमन शायद बहुत बड़े कुनबे का बो झा ढो रहे होंगे, बहुत सहा होगा, और इसीलिए अब उन को उदासी ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है.

फिर एक दिन रमा ने जरा खुल कर ही जानना चाहा कि आखिर माजरा क्या है और रमन से बोलीं, ‘‘मैं अब 60 वर्ष पूरे कर रही हूं.’’

‘‘और मैं 65,’’ कह कर रमन हंस दिए.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मेरे बेटेबहू मु झे कहते हैं जवान बूढ़ी.’’

‘‘अच्छाअच्छा,’’ रमन ने गरदन हिला कर जवाब दिया. जरा सा मुसकरा भी दिए.

‘‘मैं जानना चाहती हूं कि आप को कितने लोग मिल कर इतना दुखी कर रहे हैं कि आप परेशान ही नजर आते हो?’’

रमाजी में बहुत ही अपनापन था. वे रमन के साथ बहुत चाहत से बात करती थीं. यही कारण था कि रमन ने बिना किसी संकोच के सब बता दिया कि वे सेवानिवृत्ति फैक्ट्री सुपरवाइजर हैं और इकलौते बेटे को 5 साल की उम्र से उन्होंने अपने दम पर ही पाला. कभी सिगरेट, शराब, सुपारी, पान, तंबाकू किसी चीज को हाथ तक नहीं लगाया.

पिछले साल ही बेटे का विवाह हो गया है. आज स्थिति ऐसी है कि वह और उस की पत्नी अपने ही में मगन हैं. बहू एक स्टोर चलाती है और बेटा शू स्टोर चलाता है. दोनों का  अलगअलग काम है और बहुत अच्छा चल रहा है.

‘‘ओह, तो यह बात है. आप को यह महसूस हो रहा है कि अब आप की कोई वैल्यू ही नहीं रही, है न?’’ रमा ने कहा.

‘‘मगर, वैल्यू तो अब आप की नजर में भी कम ही हो गई होगी. अब आप को यह पता लग गया कि मैं महज सुपरवाइजर था,’’ रमन फिर उदास हो गए.

उन की इस बात पर रमा हंस पड़ीं और बोलीं, ‘‘कोई भी काम छोटा नहीं होता. आप हर बात पर उदासी को अपने पास मत बुलाया कीजिए, यह थकान की  जननी है और थकान बिन बुलाए ही बीमारियों को आप के शरीर में प्रवेश करा देगी.

‘‘आप को पता नहीं, मैं खुद भी ऐसी ही हूं. मगर मेरा अंदाज ऐसा है कि मेरे बेटाबहू मु झ को बहुत प्यार करते हैं क्योंकि मैं मन की बिलकुल साफ हूं. मैं ने 20 साल की उम्र में प्रेमविवाह किया और 22 साल की उम्र में अपने बेटे को ले कर पति को उन की प्रेमिका के पास छोड़ दिया. उस के बाद पलट कर भी नहीं देखा कि उस बेवफा ने बाकी जिंदगी क्या किया और कितनी प्रेमिकाएं बनाईं, कितनों का जीना दूभर किया.

‘‘मैं मातापिता के पास आ कर रहने लगी और बेटे की परवरिश के साथ ही बचत पर अपना पूरा ध्यान लगा दिया. मेरा बेटा भी सिर्फ सरकारी स्कूल और कालेज में ही पढ़ा है. अब वह एक  शिक्षक है और पूरी तरह से सुखी है.

‘‘हां, तो मैं बता रही थी कि मेरे पीहर में बगीचे हैं जिन में 50 आम के पेड़ हैं,

50 कटहल और इतने ही जामुन व आंवले के. मैं ने इन की पहरेदारी का  काम किया और पापा ने मु झे बाकायदा पूरा वेतन दिया. जब मेरा बेटा 10वीं में आया तो मेरे पास पूरे 20 लाख रुपए की  पूंजी थी. मेरे भाई और भाभी ने मु झे कहीं जाने नहीं दिया.

‘‘मेरी उन से कभी अनबन नहीं हुई. वे हमेशा मु झे चाहते रहे क्योंकि उन के बच्चों को मेरे बेटे के रूप में एक मार्गदर्शक मिल रहा था. और मेरी पूंजी बढ़ती गई.

‘‘बेटे की नौकरी पक्की हो गई थी और उस ने विवाह का इरादा कर लिया था, इसलिए हम लोग यहां इस कालोनी में रहने लगे. पिछले साल ही मेरे बेटे का  भी विवाह हुआ है. अपनी बढि़या बचत से और जीवनशैली के बल पर ही मैं आज करोड़पति हूं, मगर सादगी से रहती हूं. अपना सब काम खुद करती हूं और कभी भी उदास नहीं रहती.

‘‘पर आप तो हर बात पर गमगीन हो जाते हो. इतने दिनों से आप की व्यथाकथा सुन कर यही लगता है कि आप पर बहुत ही अत्याचार किया जा रहा है. आप इस तरह लगातार दुख में भरे रहे तो दुनिया से जल्दी विदा हो जाएंगे. आप हर बात पर परेशान रहते हो, यह मु झ को बहुत विचलित कर देता है. सुनो, एक आइडिया आया है मु झे. आप एक काम करो, मैं कुछ दिन आप के घर चलती हूं, वहां का माहौल बदलने की कोशिश करूंगी. मैं तो हर जगह सामंजस्य बना लेती हूं. मैं 20 साल पीहर में रही हूं.’’

‘‘मगर, आप को ऐसे कैसे, कोई कारण तो होगा न. मेरे घर पर… वहां मैं क्या कहूंगा?’’ रमन बोले.

‘‘बहुत आसान है. मेरी बात गौर से सुनो. आज आप एक गरम पट्टी बांध कर घर वापस जाओ, कह देना कि यह कलाई अब अचानक ही सुन्न हो गई है, कोई सहारा देने वाला तो चाहिए न जो हाथ पकड़ कर जरा संभाल ले. फिर कहना मैं आप के दोस्त की कोई रिश्तेदार हूं. आप कह देना कि बुढि़या है, मगर ईमानदार है, मेरा पूरा ध्यान रख लेगी वगैरहवगैरह. वे भी सोचेंगे कि चलो सही है बैठेबैठे सहायिका भी मिल गई.’’

‘‘कोशिश कर के देखता हूं,’’ रमन ने कहा और पास के मैडिकल स्टोर से गरम पट्टी खरीद कर अपने घर की तरफ जाने वाली गली में चले गए.

रमा का तीर निशाने पर लगा. तैयारी कर के वे रमन के घर पहुंच गई थीं. उन के आने से पहले तो रमन के बेटेबहू ने उन की एक इमेज बना रखी थी और उन को एक अति साधारण महिला सम झा था मगर जब आमनासामना हुआ तो रमा का  आकर्षक व्यक्तित्व देख कर उन्होंने रमा के पैर छू लिए.

रमा ने भी खूब दिल से सिर पर हाथ फेरा. रमा को तो पहली नजर में रमन के  बेटेबहू बहुत ही अच्छे लगे. खैर, सब की अपनीअपनी सम झ होती है, यह सोच कर वे किसी निर्णय पर नहीं पहुंचीं और सब आने वाले समय पर छोड़ दिया.

अगली सुबह से ही रमा ने मोरचा संभाल लिया था. रमन अपने कलाई वाले दर्द पर कायम थे और बहुत ही अच्छा अभिनय कर रहे थे. रमा को सुबह जल्दी जागने की आदत थी, इसलिए सब के जागने तक वे नहाधो कर चमक रही थीं. खुद चाय पी चुकी थीं. रमन को भी

2 बार चाय मिल गई थी. साथ ही, वे हलवा और पोहे का नाश्ता तैयार कर चुकी थीं.

बेटेबहू बिलकुल ही भौचक थे. वे इतना लजीज नाश्ता कर के गद्गद थे.  बेटा और बहू दोनों अपने काम पर निकले तो रमन ने हाथ चलाया और रसोई में बरतन धोने लगे.

रमा ने मना किया तो वे जिद कर के मदद करने लगे क्योंकि वे जानते थे कि 3 दिनों तक बाई छुट्टी पर रहेगी.

शाम को बेटा और बहू रमा से कह कर गए थे कि आज वे बाहर से पावभाजी ले कर आएंगे, इसलिए रमा भी पूरी निश्ंिचत रहीं और आराम से बाकी काम करती रहीं. उन्होंने आलू के चिप्स बना दिए और साबूदाने के पापड़ भी. गमलों की सफाई कर दी. एक ही दिन में उन की इतनी मेहनत देख कर रमन का परिवार हैरत में था.

रात को सब ने मिलजुल कर पावभाजी का आनंद लिया. रमन और रमा रोज शाम को लंबी सैर पर भी जा रहे थे. कुछ जानने वालों ने अजीब निगाहों  से देखा. मगर दोनों ने इस की परवा नहीं की.

इसी तरह पूरा एक सप्ताह कैसे गुजर गया, कुछ पता ही न चला.

रमन और उन के बेटेबहू रमा के दिल से प्रशंसक हो चुके थे. वे चाहते थे कि रमा वहां कुछ दिन और रहें. रमन का  चेहरा निखर उठा था. उन की उदासी जाने कहां चली गई थी. बेटेबहू उन से बहुत प्रेम से बात करते थे. वातावरण बहुत ही आनंदमय हो गया था.

रमा अपने मकसद में कामयाब रहीं. उन को कुछ सिल्क की  साडि़यां  उपहार में मिलीं क्योंकि रमा ने रुपए लेने से मना कर दिया था.

रमा चली गईं और रमन को शाम की  सैर पर आने को कह गईं. शाम को रमा सैर पर नहीं आ सकीं. रमन को उन्होंने संदेश भेजा कि वे सपरिवार 2 दिनों के  लिए कहीं बाहर जा रही हैं.

रमन ने अपना मन संभाला. मगर तकरीबन एक सप्ताह गुजर गया और रमा नहीं आईं. रमन के किसी संदेश का जवाब नहीं दिया.

रमन को फोन करते हुए कुछ संकोच होने लगा, तो वे मनमसोस कर रह गए.

एक पूरा महीना ऐसे ही और आगे  निकल गया. लगता था रमन और बूढ़े हो गए थे. मगर वे रमा के बनाए आलू के  चिप्स और पापड़ खाते तो लगता कि रमा यहीं पर हैं और उन से बातें कर रही हैं.

एक शाम उन का मन सैर पर जाने का  हुआ ही नहीं. वे नहीं गए. अचानक देखते क्या हैं कि रमा उन के घर के दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई हैं. वे हतप्रभ रह गए. वे सोचने लगे कि अरे, यह क्या हुआ. पीछेपीछे उन के बेटेबहू भी आ गए.

अब तो रमन को सदमा लगा. वे अपनी जगह पर से खड़े हो गए. बहू ने कहा, ‘‘रमा आंटी, अब यहां एक महीना रहेंगी और हम उन के गुलाम बन कर रहेंगे.’’ रमन ने कारण जानना चाहा तो बहू ने बताया कि उस की छोटी बहन अभी होम साइंस पढ़ रही है. उस को कालेज के  अंतिम प्रोजैक्ट के लिए अनुभवी महिला के साथ समय बिताना है और डायरी बनानी है, इसलिए.

‘‘ओह अच्छा, बहुत अच्छा. बहू, बहुत ही सही निर्णय है,’’ रमन के चेहरे पर लाली आ गई, ‘‘मगर उन के परिवार से बात कर ली?’’

‘‘परिवार मना कैसे करता. मेरी बहन और रमा आंटी तो फेसबुक दोस्त हैं और आंटी का परिवार तो समाजसेवा का  शौकीन है. है न रमा आंटी?’’ रमन की बहू चहक रही थी.

रमा ने अपने व्यवहार की दौलत से अपने जीवन में कितने सारे दिल जीत लिए थे.

बात ऐसे बनी

एक फ्रूट विक्रेता बहुत चालाक था. वह अपने हाथों का ऐसा हुनर दिखाता था कि ग्राहक के फल वाले लिफाफे में वह एक दागी फल डाल कर उस से साफ फल निकाल लेता था.

ग्राहकों को इस का पता घर जा कर लगता था. और बाद में इस बाबत कोई ग्राहक उस से शिकायत करता तो वह कहता था, ‘‘मां कसम, मैं ने आप को खराब फल नहीं दिया था.’’

एक दिन मैं ने उस से 160 रुपए के फ्रूट्स खरीदे और उसे सारे नोट जो कई जगह से कटेफटे थे दे दिए.

अगले दिन वह कहने लगा, भैया कल तुम ने सारे नोट खराब दिए हैं, उन्हें बदलो. मैं ने उसे कहा कि हां मैं ने नोट खराब ही दिए थे परंतु अब मैं उन्हें वापस नहीं लूंगा.

मैं ने उस से कहा कि तुम हर ग्राहक को एक सड़ागला फल जरूर देते हो तो घर जा कर उस ग्राहक को कितना बुरा लगता होगा, जब वह खराब फल देखता होगा. मेरी इस बात को सुन कर वह बोल उठा, ‘‘बाबूजी, आप ने मेरी आंखें खोल दीं.’’

Romantic Story: टूटा हुआ रिश्ता – मालवा सुहागरात की रस्म पर क्यों रोने लगी?

Romantic Story, लेखक- चंद्रशेखर दुबे

मालवा के विवाह के अवसर पर एक बड़ी मनोरंजक रस्म अदा होती है. बरात के रवाना हो जाने के बाद वर के घर पर रतजगा होता है. महल्ले व नातेरिश्ते की सभी स्त्रियां उस रात वर के घर पर इकट्ठी होती हैं और फिर जागरण की उस बेला में विवाह की सारी रस्में पूरे विधिविधान से संपन्न की जाती हैं. कोई स्त्री वर का स्वांग भरती है तो कोई वधू का.

फिर पूजन, कन्यादान, पलंगफेरे वगैरह की रस्में पूरी की जाती हैं. मंचोच्चार भी होता है, दानदहेज भी दियालिया जाता है, अच्छाखासा नाटक सा होता है. हंसीमजाक का वह आलम रहता है कि हंसतेहंसते स्त्रियों के पेट दुखने लगते हैं. घर में पुरुषों के न होने से स्त्रियां खूब खुल कर हंसतीखेलती हैं. सारे महल्ले को जैसे वे सिर पर उठा लेती हैं.

इस मनोरंजक प्रथा को इन स्त्रियों ने नाम दिया है, ‘टूटिया’ यानी टूटा हुआ. न जाने इस प्रथा को यह अनोखा नाम क्यों दिया गया? उधर असली विवाह होता है और इधर बरात में वर के साथ न जा पाने वाली स्त्रियां विवाह में भाग लेने के अपने शौक को इस ‘टूटिया’ रस्म द्वारा पूरा करती हैं.

बसंती भाभी को इस रस्म से बड़ा लगाव सा है. महल्ले में टूटिया का अवसर आते ही वे सब काम छोड़ कर दौड़ी चली जाती हैं. इस अवसर पर वधू बनने के लिए भी वे बड़ी उत्सुक रहती हैं. दूसरी स्त्रियों की तो इस के लिए खुशामद करनी पड़ती है, मगर बसंती भाभी तो खुद ही कह देती हैं, ‘‘अरी, तो चिंता क्यों करती हो? कोई नहीं बनती तो मैं ही बन जाती हूं दुलहन. दुलहन बनने में कैसा संकोच. औरत जात दुलहन बनने के लिए ही सिरजी है. समय की बलवान ही दुलहन बनती है. और नकली दुलहन बनना भी सब को बदा है?’’

यों दुलहन बनने के साथ ही अपने नकली वर का अपने हाथों से शृंगार करने का भी बसंती भाभी को शौक रहा है. दूल्हे का निर्णय होते ही वे उस का हाथ थाम कर गद्गद कंठ से कहती हैं, ‘‘चलो, दूल्हे राजा, मेरा मनचीता शृंगार करो. तुम मेरे दूल्हे बन रहे हो, तो मेरे मनमाफिक शृंगार करना पड़ेगा.’’

मास्टर साहब के लड़के की बरात जाते ही बंसती भाभी अपनी आदत के अनुसार सब से पहले उन के घर पहुंच गईं. आते ही स्त्रियों के इकट्ठा होने की बड़ी व्यग्रता से प्रतीक्षा करने लगीं. उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि पड़ोसिनों व नातेरिश्ते वालियों का कामकाज अभी तक क्यों नहीं निबटा. अगर देर से टूटिया शुरू करेंगी तो सारी रस्में रातभर में पूरी नहीं होंगी. कैसी हैं ये औरतें? इन्हें इस मामले में उत्साह ही नहीं है. इस बहाने हंसनेखेलने का मौका मिल जाता है, इतना भी ये नहीं समझतीं. कामकाज तो रोज ही करना है, पर यह टूटिया रोज कहां होता है?

8-10 स्त्रियों के आ जाने पर सहज ही बात चल पड़ी, ‘‘आज दुलहन कौन बनेगी?’’

बसंती भाभी ने फौरन जवाब दिया, ‘‘मैं बनूंगी. दुलहन की फिकर मत करो. दुल्हा की तलाश करो. बोलो, कौन बनेगा मेरा दूल्हा?’’

सभी स्त्रियों ने इनकार करते हुए कहा, ‘‘नहीं, बाबा, तुम्हारा दूल्हा बनने की सामर्थ्य हम में नहीं है.’’

तभी रेखा आ गई. उस ने आते ही पूछा, ‘‘क्या बात है, दूल्हादुलहन अभी तक सजे क्यों नहीं?’’

बसंती भाभी ने फौरन कहा, ‘‘अरी, मैं दुलहन बनी कब की सजीसंवरी बैठी हूं. लेकिन अभी तक दूल्हा ही नहीं सजा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस, तेरा ही इंतजार था.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘तुझे दूल्हा बनाना है न.’’

‘‘नहीं, बाबा, तुम्हारा दूल्हा मैं नहीं बन सकूंगी.’’

‘‘क्यों? मैं क्या इतनी बुरी हूं?’’

‘‘नहीं, बसंती भाभी, तुम तो हजारों में एक हो. रूपरंग, चालढाल, नाकनक्श, बातचीत सब में हीरा हो.’’

‘‘क्यों मजाक कर रही है रेखा?’’

‘‘यह मजाक नहीं है, बसंती भाभी. मैं अगर पुरुष होती तो…’’

‘‘तो क्या करती?’’

‘‘तो मैं सचमुच तुम से शादी कर लेती, और अगर शादी नहीं हो पाती तो मैं तुम्हें भगा ले जाती.’’

रेखा की इस बात पर ऐसे कहकहे लगे, ऐसी तालियां बजीं कि  आसपास के घरों से जो स्त्रियां अभी तक नहीं आई थीं, वे भी निकल आईं.

बंसती भाभी रेखा का हाथ थाम कर गद्गद कंठ से बोलीं, ‘‘तब तो आज मैं तुझे दूल्हा बनाए बिना नहीं मानूंगी.’’

‘‘नहीं, बाबा, मुझे बख्शो.’’

‘‘नहीं, रेखा, मैं आज तुझे नहीं छोड़ूंगी.’’

‘‘नहीं, बसंती भाभी, किसी और को दूल्हा बना लो.’’

‘‘अरी, तेरे से अच्छा दूल्हा भला मुझे कहां मिलेगा.’’

रेखा ने चुहल की, ‘‘घर से ठेकेदार भैया को बुला दूं?’’

‘‘अरी, वे तो बरात में गए हैं. आज की रात तो बस तू ही मेरा दूल्हा है.’’

‘‘तुम हमें परेशान तो नहीं करोगी, बसंती भाभी?’’

‘‘अरी, अपने मन के दूल्हे को भला कोई परेशान करती है?’’

सभी स्त्रियों ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘मन से तेरे

को दूल्हा बना रही है तो बन

जा भागवान.’’

कहकहे पर कहकहे लगाते हुए सभी रेखा को विवश करने लगीं. बसंती भाभी तो मास्टर साहब के घर में से मरदाना लिबास भी ले आईं. रेखा की साड़ी उतारते हुए वे उसे पैंटशर्ट पहनाने लगीं. रेखा न…न… करती रही मगर बसंती भाभी ने उसे मरदाना लिबास पहना दिया.

पांवों में मोजे पहनातेपहनाते बसंती भाभी ने रेखा के कोट के खुले हुए बटन को लक्ष्य कर कहा, ‘‘अरी, तू मेरा दूल्हा बन रही है तो इसे तो ढक ले.’’

दूसरी स्त्रियों ने भी चुटकी ली, ‘‘हां, री. और जरा मूंछें भी लगा ले.’’

बसंती भाभी को यह बात पसंद नहीं आई. वे बोलीं, ‘‘नहीं, री, अब तो मुंछमुंडों का जमाना है. मूंछें भला कौन रखता है?’’

स्त्रियों ने चुटकी ली, ‘‘भाभी, दूर क्यों जाती हो, अपने घर में ही देखो न. हमारे ठेकेदार भैया तो अभी भी बड़ीबड़ी झबरी मूंछों के कायल हैं. तू भी बड़ी सी मूंछें लगा ले रेखा.’’

रेखा ने भी बसंती भाभी को छेड़ने के खयाल से कहा, ‘‘हां री, ले आओ मूंछें. मूंछों से मैं पूरा मर्द दिखूंगी.’’

बसंती भाभी का चेहरा उतर गया. वे तुनक कर बोलीं, ‘‘मैं नहीं लगाने दूंगी मूंछें.’’

रेखा ने शरारत से मुसकराते हुए कहा, ‘‘हम तो लगाएंगे मूंछें.’’

‘‘तो फिर मैं तुझे दूल्हा नहीं बनाऊंगी.’’

‘‘मत बनाओ.’’

रेखा कोट उतारने लगी. बसंती भाभी ने रेखा का हाथ थाम लिया और अनुनय के स्वर में बोलीं, ‘‘रेखा, मुझे परेशान

मत कर.’’

‘‘परेशान तो तुम कर रही हो, भाभी.’’

‘‘मैं ने क्या किया?’’

‘‘मुझे मूंछें क्यों नहीं लगाने दे रही हो? ठेकेदार भैया की भी मूंछें हैं तो फिर मेरी…’’

‘‘तू उन का नाम यहां मत ले.’’

‘‘क्यों न लूं?’’

‘‘इस टूटिया में तो मेरी मरजी का शृंगार करने दे, पगली.’’

बसंती भाभी के भीगे कंठ व उन की इस भंगिमा से रेखा द्रवित हो गई. शरारत की मुद्रा को त्याग कर आज्ञाकारी बच्चे की तरह वह उन के सामने बैठती हुई बोली, ‘‘अच्छा, भाभी, तुम अपना मनचीता शृंगार कर दो.’’

बसंती भाभी को जैसे वरदान सा मिल गया. वे ललक कर रेखा का शृंगार करने लगीं. रजवाड़ा ढंग से उन्होंने रेखा के सिर पर साफा बांधा. भाल पर चमचच चमकती बिंदिया भी लगा दी और फूलों का सेहरा भी बांध दिया.

सारा शृंगार हो जाने पर बंसती भाभी ने अपनी जीरो नंबर की ऐनक उतारी और उसे दूल्हे को पहनाने लगीं.

रेखा की आंखों में फिर शरारत की चमक आ गई. अपनी फूटती हंसी को रोक कर वह बोली, ‘‘बसंती भाभी, ऐनक मैं नहीं लगाऊंगी.’’

बसंती भाभी ने दयनीय मुद्रा बना कर कहा, ‘‘नहीं, री, ऐनक बिना तो दूल्हा जंचता ही नहीं है.’’

‘‘नहीं, भाभी. ऐनक लगाने पर लोग चश्मा चंडूल कहते हैं.’’

‘‘कहने दे. तू तो चश्मा लगा ले.’’

रेखा जानती थी कि बसंती भाभी ऐनक लगवाए बिना मानेंगी नहीं. मगर वह फिर भी इनकार करती ही रही, ‘‘आजकल ऐनक का फैशन ही नहीं है.’’

‘‘कौन कहता है? आजकल ही तो ऐनक का फैशन है.’’

‘‘नहीं है, भाभी. चाहो तो सब से पूछ लो.’’

सभी स्त्रियों को इस शरारत में मजा आ रहा था. इसीलिए बिना पूछे ही उन्होंने अपना मत व्यक्त किया, ‘‘कमजोर नजर वाले ही लगाते हैं ऐनक.’’

रेखा ने फौरन इस बात का सिरा थाम कर कहा, ‘‘भाभी, सुना आप ने?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना है…मैं तो अपने दूल्हे को ऐनक पहनाऊंगी.’’

रेखा ने भाभी के कान से मुंह सटाते हुए फुसफुसा कर कहा, ‘‘क्यों, ऐनक वाला अभी भी मन में बैठा है क्या?’’

भाभी का गुस्से से मुंह फूल गया. दूसरी स्त्रियां इस बात को सुन नहीं पाईर् थीं, इसलिए वे चिल्लाईं, ‘‘यह क्या गुपचुप बातें हो रही हैं? शादी अभी हुई नहीं और अभी से कानाफूसी चलने लगी.’’

इस बात का न तो बसंती भाभी ने उत्तर दिया, न ही रेखा ने. रेखा ने भाभी के हाथ से ऐनक ले कर पहन लिया और दूसरी ही बात छेड़ दी, ‘‘यह क्या देरदार लगा रखी है? जल्दी कराओ न हमारी शादी.’’

स्त्रियों ने चुटकी ली, ‘‘क्यों, ऐसी क्या बेकरारी है?’’

रेखा इठलाती हुई बोली, ‘‘बेकरारी क्यों नहीं होगी? एक रात के ही लिए तो दुलहन मिल रही है, और वह भी भाभी जैसी नगीना.’’

‘‘अभी भी अपनी दुलहन को भाभी ही कहे जाएगी?’’

‘‘नहीं, री, शादी तो करा दो. फिर मैं इसे प्राणप्यारी कहूंगी, प्रियतमा कहूंगी.’’

‘‘पर दूल्हा तो दुलहन के सामने हलका लग रहा है.’’

‘‘लगने दो. है तो दुलहन का मनपसंद.’’

कहकहे पर कहकहे लगते रहे. मगर भाभी का चेहरा फिर भी नहीं खिला.

रेखा से यह छिपा न रहा. वह भाभी के कान के पास मुंह ले जा कर फिर फुसफुसाई, ‘‘मेरी बात का बुरा मान गईं, भाभी?’’

भाभी ने फुसफुसाते हुए उत्तर दिया, ‘‘नहीं, री, बुरा क्यों लगेगा? तूने सच ही तो कहा है. यह बावरा मन उस छलिया को अब क्यों…?’’

‘‘मन की लीला मन ही समझता है भाभी, और कोई नहीं…’’

रेखा की बात को काटते हुए एक स्त्री बोली, ‘‘अरी, मन की लीला को सुहागरात के समय समझनासमझाना. अभी पूजन तो होने दे. इतनी उतावली मत बन.’’

यह बात ठहाकों में ही डूब गई और विवाह की रस्में विधिवत शुरू हो गईं. वर और वधू के फर्जी मांबाप ने अपनीअपनी संतान को अपने पास खींच लिया. तुरंत मंत्रों का उच्चारण होने लगा. हर शब्द पर अनुस्वर लगालगा कर नई संस्कृत में मंत्र बनाए गए. जो कुछ कमी रह गई थी, उस की पूर्ति अस्पष्ट उच्चारण से कर ली गई. विवाहघर जैसी धूमधाम मच गई.

देखतेदेखते पूजन, कन्यादान सब हो गया. विवाह कराने वाले पंडितजी ने दहेज के लिए मंत्रोच्चार किया, ‘‘दहेज फौरन दें.’’

ठहाके लगाने वाली और ताली पीटने वाली स्त्रियां फौरन दौड़ीं और दहेज की वस्तुएं ले आईं. किसी ने दहेज में झाड़ू दी तो किसी ने जूतों की जोड़ी. कोई अलबेली कंकड़ ले आई तो किसी ने टूटी कंघी ही दी. इसी तरह एक से एक निराली वस्तुएं दहेज में आती गईं. बाकायदा सब की सूची बनी. उस सूची में नाम व वस्तु दर्ज की गई. हंसतेहंसते सभी के पेट दुखने लगे.

दानदहेज से निबटते ही दूल्हादुलहन का जलूस निकाला गया. दूल्हादुलहन को तांगे में बैठाया गया. बैंडबाजा आगेआगे और तांगा पीछेपीछे चला. बाकी स्त्रियां मंगल गीत गाती हुई तांगे के पीछेपीछे हो लीं. सारे महल्ले में खलबली मच गई. कुछ लोग हैरान हुए, कुछ मुसकराए.

सब रस्मों को निबटाने के बाद विवाह की खास रस्म सुहागरात का आयोजन हुआ. दूल्हादुलहन को एक कमरे में धकेल कर कुंडी चढ़ा दी गई. कुछ अलबेली इस मौके के गीत गाने लगीं तो कुछ चुहल करने लगीं. ऐसेऐसे फिकरे कसे गए, ऐसेऐसे मजाक हुए कि यदि कोईर् पुरुष सुन ले तो उसे अपने कानों पर विश्वास न हो. भले घरों की स्त्रियां भी ऐसा मजाक कर सकती हैं, यह वह कभी मान भी नहीं सकता.

बसंती भाभी इस सब से बेखबर सी अपने आज के दूल्हे को बांहों में भींचे जा रही थीं. चुंबन पर चुंबन लिए जा रही थीं. दूल्हा बनी रेखा चुंबनों की इस बाढ़ से जैसे घबरा गईर् थी. वह अपनी इस दुलहन की बांहों की कैद से मुक्त होने की कोशिश कर रही थी. वह बारबार समझा रही थी. मगर भाभी पर तो तो जैसे नशा सा सवार हो गया था. वे जैसे होश में ही नहीं थीं. तमाशा देखने वाली स्त्रियां हंसहंस कर दोहरी हुई जा रही थीं.

बसंती भाभी को परे झटक कर रेखा बाहर आने के लिए उठी कि तमाशा देखने वालियों ने बाहर से दरवाजे की कुंडी लगा दी. भाभी ने दौड़ कर भीतर से कुंडी लगा ली.

रेखा चीखी, ‘‘यह क्या कर रही हो?’’

भाभी ने नाटकीय स्वर में कहा, ‘‘छलिया, आज तो खुल कर खेल लेने दे.’’

रेखा ने साश्चर्य कहा, ‘‘होश में आओ भाभी. मैं छलिया नहीं हूं, यह टूटिया है.’’

रेखा को बांहों में भींचते हुए भाभी फुसफुसाईं, ‘‘वह भी तो टूटिया ही था. वह छलिया मुझे छल कर चला गया. उसे दौलत चाहिए थी तो वह मुझे भुलावा क्यों देता रहा? मेरे बाबूजी ने तो पहले ही कह दिया था कि उन के पास कुमकुम और कन्या के सिवा और कुछ भी नहीं है. फिर भला वह छलिया ऐनक लगा कर, मोहिनी मूरत बना कर मुझे क्यों ठगता रहा? ठगने के बाद भी अब वह मेरे मन में क्यों डेरा जमाए हुए है? जाता क्यों नहीं?’’

भाभी फफकफफक कर रोने लगीं. रेखा ने उन्हें अपनी बांहों में ले कर उन के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘उसे अब भूल जाजो, भाभी. ठेकेदार भैया में ही मन लगाओ.’’

‘‘ठेकेदार तो अब मेरे सबकुछ हैं ही. भले ही वे मेरे काका की उमर के हों, पर अब हैं तो मेरे पति. उन्होंने गरीब बाप की इस बेटी को अपनाया तो. दुहाजू ही सही, पर वर तो मिल गया मुझे. मेरा रोमरोम उन का है री. पर इस मुए मन को कैसे समझाऊं? वह छलिया…’’

भाभी का कंठ रुंध सा गया. बाहर से स्त्रियां कुंडी खटखटाती हुई शोर मचाए जा रही थीं. फब्ती पर फब्ती कस रही थीं, मगर भाभी और रेखा अपनेआप में ही डूबी हुई थीं. भाभी की व्यथा से रेखा भी अभिभूत हो गई थी. वह भाभी के गालों पर चुंबन अंकित करती हुई उन्हें अपनी बांहों में कसे जा रही थी. भाभी उन बांहों में पड़ी बुदबुदाए जा रही थीं, ‘‘छलिया, अब तो मुझे छोड़ दे. तेरामेरा नाता टूट गया. अब क्यों मुझे सताता है रे?’’

Romantic Story: मन के बंधन – दिल पर किसी का जोर नहीं चलता!

Romantic Story, लेखक-  डा. अशोक बंसल

मैं ने बहुत कोशिश की उस के नाम को याद कर सकूं. असफल रहा. इंग्लिश वर्णमाला के सभी अक्षरों को बिखेर कर उस के नाम को मानो बनाया गया था. यह उस का कुसूर न था. चेकोस्लोवाकिया में हर नाम ऐसा ही होता है. वह भी चैक नागरिक था. वेरिवी के शानदार शौपिंग कौंप्लैक्स की एक बैंच पर बैठा था. 70-80 वर्ष के मध्य का रहा होगा.

यह बात ज्यादा पुरानी नहीं. आस्ट्रेलिया आए मुझे एक माह ही तो हुआ था. म्यूजियम और घूमनेफिरने की कई जगहों की घुमक्कड़ी हो गई, तो परदेश के अनजान चेहरों को निहारने में ही मजा आने लगा. आभा बिखेरते शहर मेलबर्न के उपनगर वेरिवी के इस वातानुकूलित भव्य मौल में जब मैं चहलकदमी करतेकरते थक गया, तो बरामदे में पड़ी एक बैंच पर जा बैठा. पास में एक छहफुटा गोरा पहले से बैठा था. गोरे की आंखों की चमक गायब थी, खोईखाई आंखें मानो किसी को तलाश रही थीं.

आस्ट्रेलिया की धरती ने डेढ़ सौ साल पहले सोना उगलना शुरू किया था. धरती की गरमी को आज भी विराम नहीं लगा है. इस धरती में समाए सोने की चमक ने परदेशियों को लुभाने का सिलसिला सदियों से बनाए रखा है. शानदार और संपन्न महाद्वीप में लोग सात समंदर पार कर चारों दिशाओं से आ रहे हैं. नतीजा यह है कि सौ से ज्यादा देशों के लोग अपनीअपनी संस्कृतियों को कलेजे से लगाए यहां जीवन जी रहे हैं.

बैंच पर बैठा मैं इधर से उधर तेज कदमों से गुजरती गोरी मेमों को कनखियों से निहारतेनिहारते सोचने लगता था कि वे किस देश की होंगी. भारत, पाकिस्तान, लंका और चीन के लोगों की पहचान करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी. पर सैकड़ों देशों के लोगों की पहचान करना सरल काम न था. एकजैसी लगने वाली गोरी मेमों को देख कर जब आंखों में बेरुखी पैदा हुई तो बैंच पर बैठे पड़ोसी के देश की पहचान करने की पहेली में मन उलझ गया. स्पेन का हो नहीं सकता, इटली का है नहीं, तो फिर कहां का. तभी एक गोरे ने मेरे पड़ोसी बूढ़े के पास आ कर ऐसी विचित्र भाषा में बतियाना शुरू किया कि मेरे पल्ले एक शब्द न पड़ा. गोरा चला गया, तो मैं अपनेआप को न रोक पाया.

मैं ने बूढ़े की आंखों में आंखें डालते बड़ी विनम्रता से हिंदुस्तानी इंग्लिश में पूछा, ‘‘आप किस देश से हैं?’’

मेलबर्न में बसे मेरे मित्र ने मुझे समझा दिया था कि परदेश में अपरिचितों से बिना जरूरत बात करने से बचना चाहिए. लेकिन पड़ोसी गोरे ने जिस सहजता और आत्मीयता से मेरे सवाल का जवाब दिया था उस से मेरे सवालों में गति आ गई. उस ने अपने देश चेकोस्लोवाकिया का नाम उच्चारित किया तो मैं ने उस का नाम पूछा. नाम काफी लंबा था. मेरे लिए उसे बोलना संभव नहीं. सच पूछो तो मुझे याद भी नहीं. सो, मैं उसे चैक के नाम से उस का परिचय आप से कराऊंगा.

उस की इंग्लिश आस्ट्रेलियन थी. पर वह संभलसंभल कर बोल रहा था ताकि मैं समझ सकूं.

मेरे 2 सवालों के बाद चैक ने मुझ में दिलचस्पी लेनी शुरू की, ‘‘आप तो इंडियन हैं.’’ उस की आवाज में भरपूर आत्मविश्वास था.

मेरे देश की पहचान उस ने बड़ी सरलता से और त्वरित की, इसे जान कर मुझे गर्व हुआ और खुशी भी. मेरी दिलचस्पी बूढ़े चैक में बढ़ती गई, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’

‘‘एल्टोना,’’ उस ने जवाब दिया.

दरअसल, मेलबर्न में 10 से

15 किलोमीटर की दूरी पर छोटेछोटे अनेक उपनगर हैं. एल्टोना उन में एक है. उपनगर वेरिवी, जहां हम चैक से बतिया रहे थे, एल्टोना से 10 किलोमीटर दूर है.

चैक खानेपीने के सामान को खरीदने के लिए अपनी बस्ती के बाजार के बजाय

10 किलोमीटर की दूरी अपनी कार में तय करता है. पैट्रोल पर फुजूलखर्ची करता है. वक्त की कोई कीमत चैक के लिए नहीं क्योंकि वह रिटायर्ड जिंदगी जी रहा है. लेकिन सरकार से मिलने वाली पैंशन

15 सौ डौलर में गुजरबसर करने वाला फुजूलफर्ची करे, यह मेरी समझ से बाहर था. इस पराई धरती पर रहते हुए मुझे मालूम पड़ गया था कि यहां एकएक डौलर की कीमत है.

चैक की दरियादिली कहें या उस का शौक, मैं ने सोचा कि अपनी जिज्ञासा को चैक से शांत करूं.

तभी सामने की दुकान से मेरी पत्नी को मेरी ओर आते देख चैक बोला, ‘‘आप की पत्नी?’’

मैं ने मुसकराते कहा, ‘‘आप ने एक बार फिर सही पहचाना.’’

चैक अपने अनुमान पर मेरी मुहर लगते देख थोड़ी देर इस प्रकार प्रसन्न दिखाई दिया मानो किसी बालक द्वारा सही जवाब देने पर किसी ने उस की पीठ थपथपाई हो.

‘‘आप कितने समय से साथ रह रहे हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘40 वर्ष से,’’ मैं ने कहा.

वह बोला, ‘‘आप समय के

बलवान हैं.’’

मुझे यह कुछ अटपटा लगा. पत्नी के साथ रहने को वह मेरे समय से क्यों जोड़ रहा था, जबकि यह एक सामान्य स्थिति है. इस के साथ ही मेरी जबान से सवाल निकल पड़ा, ‘‘और आप की पत्नी?’’

मेरा इतना पूछना था कि चैक के माथे पर तनाव उभर आया. चैक की आंखों ने क्षणभर में न जाने कितने रंग बदले, मुझे नहीं मालूम. पलकें बारबार भारी हुईं, पुतलियां कई बार ऊपरनीचे हुईं. मैं कुछ अनुमान लगाऊं, इस से पहले चैक के भरेगले से स्वर फूटे, ‘‘थी, लेकिन अब वह वेरिवी में किसी दूसरे पुरुष के साथ रहती है.’’

मैं चैक के और करीब खिसक आया. उस के कंधे पर मेरा हाथ कब चला गया, मुझे नहीं मालूम. चैक ने इस देश में हमदर्दी की इस गरमी को पहले कभी महसूस नहीं किया था. उस ने मन को हलका करने की मंशा से कहा, ‘‘हम 30 साल साथसाथ रहे थे.’’

मैं ने देखा, यह बात कहते चैक के होंठ कई बार किसी बहेलिया के तीर लगे कबूतर के पंखों की तरह फड़फड़ाए थे.

‘‘यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ?’’ मुझ से रुका न गया.

शब्द उस के मुंह में थे, पर नहीं निकले. गला रुंध आया था. उस ने हाथों से जो इशारे किए उस से मैं समझ गया. मानो कह रहा हो, सब समयसमय का खेल है. मगर, मेरी जिज्ञासा मुझ पर हावी थी.

मैं ने अगला सवाल आगे बढ़ा दिया, ‘‘आप का कोई झगड़ा हुआ था?’’

‘‘ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था,’’ वह बोला, ‘‘वह एक दिन मेरे पास आई और बोली, ‘चैक, आई एम सौरी, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी. मैं ने और स्टीफन ने एकसाथ रहने का फैसला किया है.’ फिर वह चली गई.’’

‘‘आप ने उसे रोका नहीं?’’

‘‘मैं कैसे रोकता, यह उस का फैसला था. यदि वह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रह कर ज्यादा खुश है तो मुझे बाधा नहीं बनना चाहिए.’’

मैं हैरानी से उसे देख रहा था.

‘‘लेकिन हां, आप से झूठ नहीं कहूंगा. मैं ने उस के लौटने का इंतजार किया था.’’ वह आगे बोला.

उस की आंखें नम हो रही थीं. वह फिर बोला, ‘‘आखिर, हम लोग 30 साल साथ रहे थे. मुझे हर रोज उसे देखने की आदत पड़ गई थी,’’ हाथ के इशारे से बैंच के सामने वाली दुकान की ओर संकेत करते हुए उस ने कहा, ‘‘इस दुकान में हम लोग अकसर आते थे. यह उस की पसंदीदा दुकान थी.’’

मैं समझ गया कि वेरिवी के शौपिंग कौंपलैक्स में वह उस दुकान के सामने की बैंच पर क्यों बैठता है.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘यहां उस से मुलाकात होती है?’’

‘‘मुलाकात नहीं कह सकते. वह स्टीफन के साथ यहां आती थी. बहुत खुश नजर आती थी. मैं उसे यहीं से देख लिया करता था. उसे देख कर लगता था कि उन दोनों को किसी तीसरे व्यक्ति की जरूरत नहीं है. वह खुश थी. लेकिन…’’ वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘पिछली बार मैं ने उसे देखा था तो वह अकेली थी.’’

मैं ने देखा कि रोजलिन के चेहरे पर गहरी उदासी उतर आई थी. कुछ परेशान लग रही थी. उस ने मुझे देख लिया था. हमारी नजरें मिलीं, मगर वह बच कर निकल जाना चाहती थी. मैं ने आगे बढ़ कर अनायास ही उस का हाथ थाम लिया था, पूछा था, ‘कैसी हो?’ उस ने मेरी आंखों में देखा था, मगर कुछ बोल नहीं पाई थी. उस के हाथ फड़फड़ा कर रह गए थे. वह हाथ छुड़ा कर चली गई थी. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता था कि वह ठीक तो है. अब जब वह मिलेगी, तो पूछूंगा कि वह खुश तो है.’’

‘‘आप की यह मुलाकात कब हुई थी?’’

‘‘करीब 2 साल पहले.’’

उस की आंखें डबडबा रही थीं और मैं हैरत से उसे देख रहा था. वह पिछले 2 साल से इस बैंच पर बैठ कर इंतजार कर रहा था ताकि वह उस से पूछ सके कि ‘वह खुश तो है.’

उस दिन मैं ने उस के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रख कामना की थी कि उस का इंतजार खत्म हो.

मैं अपने देश लौट आया था. मगर चैक मेरे दिमाग पर दस्तक देता रहा. बहुत से सवाल मेरे मन में कौंधते रहे. क्या उस की मुलाकात हुई होगी? क्या रोजलिन उस को मिल गई होगी या वह उसी बैंच पर आज भी उस का इंतजार कर रहा होगा?

Romantic Story: ऐ दिल है मुश्किल

Romantic Story: देखने सुनने व पढ़ने वालों को तो यही लगेगा कि मैं कोई चरित्रहीन स्त्री हूं पर मुझे समझ नहीं आता कि क्या मैं इन दिनों सचमुच एक चरित्रहीन स्त्री की तरह व्यवहार कर रही हूं. अपने मनोभाव प्रकट करना, किसी को अपने दिल की बात समझाना मेरे लिए बहुत मुश्किल है. वैसे भी, दिल की मुश्किल बातें समझनासमझाना सब के लिए आसान है क्या? मैं रश्मि, एक विवाहित स्त्री, एक युवा बेटी पलाक्षा की मां और एक बेहद अच्छे इंसान अजय की पत्नी, अगर किसी विवाहित परपुरुष में दिलचस्पी ले कर अपने रातदिन का चैन खत्म कर लूं तो क्या कहा जाएगा इसे?

मुझे अजय से कोई शिकायत नहीं, पलाक्षा से भी बहुत प्यार है. फिर, सोहम के लिए मैं इतनी बेचैन क्यों हूं, समझ नहीं आता. उस की एक झलक पाने के लिए अपने फ्लैट के कोनेकोने में भटकती रहती हूं. वह जहांजहां से दिख सकता है वहांवहां मंडराती रहती हूं रातदिन. अगर कोई ध्यान से मेरी गतिविधियों को देखे तो उसे मेरी हालत किसी 18 साल की प्यार में पड़ी चंचल किशोरी की तरह लगेगी. और मैं शक के घेरे में तुरंत आ जाऊंगी. पर उम्र के इस पड़ाव पर जैसी मैं दिखती हूं, मेरे बारे में कोई यह सोच भी नहीं सकता कि क्या अंतर्द्वंद्व मचा रहता है मेरे दिल में.

मैं बिलकुल नहीं चाहती कि मैं किसी परपुरुष की तरफ आकर्षित होऊं. पर क्या करूं, दिल पर कभी किसी का जोर चला है, जो मेरा चलेगा. लेकिन नहीं, यह भी नहीं कह सकते. सोहम का चलता है न अपने दिल पर जोर. मुझ में रुचि रखने के बाद भी वह कितनी मर्यादा, कितनी सीमा में रहता है. उस की पत्नी है,

2 बच्चे हैं, कितना मर्यादित, संतुलित व्यवहार है उस का. अपने प्रति मेरा आकर्षण भलीभांति जान चुका है वह. अपने औफिस के लिए निकलते समय उस के इंतजार में खिड़की में खड़े मुझे देखा है उस ने. फिर जब वह वापस आता है उस ने वहीं खड़े देखा है मुझे.

अपनी बेचैनियों से मैं कितनी थकने लगी हूं? बाहर से सबकुछ शांत लगता है, पर मेरे भीतर ही भीतर भावनाओं का तूफान उठता है. कभीकभी मेरा मन करता है अजय से कहूं, कहीं और फ्लैट ले लें या हम यहां से कहीं और चले जाएं पर यह बात मेरी जबान पर कभी आ ही नहीं पाती. उलटा, ऐसी बातों के छिड़ने पर मेरे मुंह से झट निकलता है कि मैं तो इस फ्लैट में मरते दम तक रहूंगी. कभी मन करता है कि उस के बारे में सोचने से बचने के लिए लंबी छुट्टियों पर कहीं चली जाऊं. पर कोई लंबा प्रोग्राम बनते ही मैं उसे 3 या 4 दिन का कर देती हूं. मैं कहां रह सकती हूं इतने दिन सोहम को बिना देखे. कभी सोचती हूं अपने बैडरूम की खिड़की पर हमेशा परदा खींच कर रखूं ताकि मेरा ध्यान सोहम की तरफ न जाए. पर होता कुछ और ही है. 6 बजे उठते ही आंखें पूरी तरह खुलने से पहले ही मैं अपने बैडरूम की खिड़की का परदा हटा देती हूं, जिस से सोहम अपने बैडरूम में अपनी पत्नी की, बच्चों की स्कूल जाने में, मदद करता दिख जाए.

मैं ने देखा है वह एक नजर मेरी खिड़की पर डालता है, फिर अपने कामों में लग जाता है. हां, बस एक नजर. मैं ने उसे कभी बेचैनी से मेरी ओर देखते नहीं देखा और मैं आंख खुलने से ले कर रात को बैड पर जाने तक हरपल उसी के बारे में सोचती हूं. वह अपने बच्चों को स्कूल बस में बिठाने के लिए निकलता है, फिर 15 मिनट बाद वापस आता है, फिर उस की पत्नी औफिस जाती है. शाम को पहले घर वही आता है. फिर, अपने बच्चों को ले कर पार्क जाता है. 2 साल पहले मेरी बेचैनियों का यह सिलसिला वहीं से तो शुरू हुआ था. एकदूसरे को देखना, फिर हायहैलो, फिर नाम की जानपहचान. बस, फिर इस के आगे कभी कुछ नहीं.

हैरान हूं मैं अपने दिल की हालत पर, क्यों मैं उस के आगेपीछे किसी बहकी सी पागलप्रेमिका की तरह रातदिन घूमती हूं. क्या हो गया है मुझे? सबकुछ तो है मेरे पास. मुझे उस से कुछ भी नहीं चाहिए. फिर यह क्या है जो उस के सिवा कुछ ध्यान नहीं रहता. हर समय वह अपने वजूद के साथ मुझे अपने आसपास महसूस होता है. उस की मर्यादित चालढाल, उस की बोलती सी आंखें, मुझे देख कर उस की रहस्यमयी मुसकराहट सब हर समय मेरे दिल पर छाई रहती हैं. रात में उस के फ्लैट की लाइट बंद होने तक मेरी नजरें वहीं गड़ी रहती हैं. वह गाना है न, ‘तुझे देखदेख कर है जगना, तुझे देख कर है सोना…’ मुझे अपने ऊपर बिलकुल फिट लगता है. पर इस उम्र में, इस स्थिति में सोहम की तरफ मेरा यों खिंचा जाना.

मेरी तबीयत कभीकभी इस बेचैनी से खराब हो जाती है. अजीब सा तनाव रहने लगता है. दिनभर एक अपराधबोध सालता कि एक परपुरुष की तरफ खिंच कर मैं अपना कितना समय खराब करती हूं. मेरे लिए समाज में रहते हुए उस के नियमों की अवहेलना करना संभव नहीं है. मैं अजय की प्रतिष्ठा भी कभी दांव पर नहीं लगाऊंगी.

पहले मुझे घर के कामों से, अपने सामाजिक जीवन से फुरसत नहीं मिलती थी. अब? अब मैं घर से ही नहीं निकलना चाहती. दोस्तों के बुलाने पर न मिलने के बहाने सोचती रहती हूं. पूरा दिन यह अकेलापन अच्छा लगने लगा है. किसी से बात करने की जरूरत ही नहीं लगती. सोहम के औफिस जाने के बाद मैं अपने काम शुरू करती हूं. उस के आने तक फारिग हो कर अपने फ्लैट से उसे देखने के मौके और जगहों पर भटकती रहती हूं. कभीकभी इधरउधर बेवजह कुछ करते रहने से थक कर बिस्तर पर पड़ जाती हूं. पता नहीं, तब कहां से कुछ आंसू पलकों के कोनों से अचानक बह निकलते हैं. जो घाव किसी को दिखाए भी न जा सकें, वे ज्यादा ही कसकते हैं.

बहुत मुश्किल में हूं. बहुतकुछ कर के देख लिया. सोहम से ध्यान नहीं हटा पाती. क्या करूं, कहां चली जाऊं. कहीं जा कर तो और बेचैन रहती हूं, फौरन लौट आती हूं. क्या करूं जो इस दिल को करार आए. अजय और पलाक्षा तो इसे मेरा गिरता स्वास्थ्य और थकान समझ कर रातदिन मेरा ध्यान रख रहे हैं. तब, मैं और अपराधबोध से भर उठती हूं. दिल की बातें इतनी उलझी हुई, इतनी मुश्किल क्यों होती हैं कि कोई इलाज ही नहीं दिखता और वह भी मेरी उम्र में कि जब किसी भी तरह की कोई उम्मीद ही नहीं है. इस दिल को कब और कैसे करार आएगा, इस अतर्द्वंद्व का कोई अंत कब होगा? और क्या अंत होगा? ऐसा क्या होगा जो मेरा ध्यान सोहम की तरफ से हट जाएगा? कहते हैं कि समय हर बात का जवाब है. अगर ऐसा है तो बस, इंतजार है मुझे उस समय का.

Romantic Story: आधा सच – किरण की किस बात से परेशान हो गई थी रश्मि?

Romantic Story: बहुत दिनों से सोच रही हूं. आज भी जब हवा का एक हलका सा झोंका बदन को छू कर निकलता है तो उस खुशबू का एहसास करा देता है, पर यह खुशबू तो लगातार आ रही है. कुछ देर बैठे रहने के बाद भी उस खुशबू का एहसास रहा. रश्मि ने आसपास झांका, फिर अपने कमरे की खिड़की से झांक कर देखा.

नीचे वाले घर में नए किराएदार अपना सामान रख रहे थे. कुछ मजदूर बाहर खड़े ट्रक से सामान अंदर ला रहे थे. उस ट्रक के पास एक सजीला नौजवान सफेद कमीज और काली पैंट पहने मजदूरों को सामान यथास्थान रखने का निर्देश दे रहा था. ‘इस का मतलब मेरे सपनों का राजकुमार हमारे नीचे वाले घर में किराएदार के रूप में रहने आया है,’ यह सोचते हुए रश्मि के मन में गुदगुदी होने लगी और वह वापस अपने पलंग पर आ गई.

कालेज जाते समय जब रश्मि रास्ता पार कर रही थी तब उस ने उस नौजवान को पहली बार देखा था. उसे देखते ही रश्मि का दिल जोर से धड़कने लगा. फिर तो पिछले 15 दिन में उस ने 3-4 बार उसे अपनी सोसायटी में देखा. जब भी वह आसपास होता तो एक भीनीभीनी सी खुशबू का झोंका रश्मि के मन को सराबोर कर देता.

2-3 दिन से ज्वर के कारण रश्मि कालेज नहीं जा पाई थी, तो उस का हालचाल जानने उस की सहेली कमल उस से मिलने आ गई. रश्मि ने जब कमल को उस युवक के बारे में बताया तो वह भी उसे छेड़ने लगी कि अब तो रोज ऊपरनीचे करते समय सपनों के राजकुमार के दर्शन होते होंगे. बातों ही बातों में कमल ने बताया कि कालेज में अंगरेजी की नई प्रोफैसर आई हैं. इतने में मां जूस के 2 गिलास ले कर आईं और बोलीं, ‘‘इसे पी कर तैयार हो जाओ. दोपहर का खाना हम लोग बाहर खाएंगे, क्योंकि रसोइए ने 3-4 दिन की छुट्टी ली है.’’

सुनते ही रश्मि के होश उड़ गए कि अब तो खाना बाहर खाना पड़ेगा, उसे खुद ही चायनाश्ता अपने व मां के लिए बनाना पड़ेगा, क्योंकि उस की आधुनिक मां को किचन के काम से ऐलर्जी थी. वे तो एक भी बार चाय नहीं बनाती थीं. किचन में काम करना उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं था. किचन में काम करना उन्हें गुलामी जैसा लगता था.

मम्मीपापा और रश्मि तैयार हो कर नीचे आए तो देखा कि एक 25-26 साल की महिला साड़ी का पल्लू कमर में खोंसे बालों का बेतरतीब ढंग से जूड़ा बांधे सामान इधर से उधर रख रही है, पर वह युवक कहीं नजर नहीं आ रहा है. उस महिला की नजर जैसे ही रश्मि के परिवार पर पड़ी तो उस ने बड़ी शालीनता से नमस्ते किया.

तभी पापा ने हमारा परिचय कराते हुए कहा कि यह मिसेज किरण सूरज हैं. सूरज व किरण हमारे नए किराएदार हैं. मिसेज शब्द रश्मि के दिमाग पर हथौड़े की तरह बजने लगा यानी उस के सपनों का राजकुमार सूरज शादीशुदा है, उस का दिल बैठ गया. हालात पर काबू पाने के लिए वह जल्दीजल्दी कार में जा कर बैठ गई. घर वापस आते ही वह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर के लेट गई. काफी देर सोचने के बाद वह सो गई. जब सो कर उठी तो अपनेआप को उस ने समझा लिया था कि चलो, बात आगे बढ़ने से पहले ही खत्म हो गई.

शाम को उस ने मुंह धोया फिर अपने तथा मम्मी के लिए चाय बनाई. चाय पी कर मम्मी ने कहा, ‘‘थोड़ा नीचे जा कर नए किराएदारों से मिल लो, मैं तो नहीं जा सकती, क्योंकि मेरे सिर में दर्द है. आ कर फिर रात का खाना भी बाहर से और्डर कर देना.’’

मन न होते हुए भी रश्मि नीचे आई तो देखा कि किरण अभी भी उसी साड़ी में वैसे ही सामान कमरे में सजा रही है और उस के रसोईघर से बहुत अच्छी खुशबू आ रही है. खुशबू से रश्मि की भूख जाग गई. उस से दोपहर को भी खाना सही से नहीं खाया गया था.

रश्मि को देखते ही किरण ने दौड़ कर उस का स्वागत किया और उसे ड्राइंगरूम में बैठाया. कुछ ही देर में किरण ने ड्राइंगरूम को बहुत अच्छे ढंग से सजा दिया था. रश्मि को बैठा कर किरण रसोईघर से उस के लिए चाय व नाश्ता ले आई. प्लेट में तले हुए पकौड़े देख कर रश्मि ने मुंह सिकोड़ लिया.

रश्मि नाश्ते के लिए मना करने वाली थी कि किरण ने प्लेट से एक पकौड़ा उठा कर रश्मि के मुंह में यह कह कर डाल दिया कि आप हमारे घर पहली बार आई हैं, कुछ तो खाना ही पड़ेगा.

पकौड़े इतने स्वादिष्ठ थे कि पहला पकौड़ा खाने के बाद रश्मि अपनेआप को रोक नहीं पाई और 5 मिनट में ही उस ने प्लेट खाली कर दी. अपनी व्यस्तता देख कर उसे खुद पर ग्लानि होने लगी. फिर उस ने किरण से कहा कि अगर आप लोगों को किसी चीज की जरूरत हो तो बताइएगा. जल्दीजल्दी सीढ़ी चढ़ कर वह अपने कमरे में आ गई.

शाम को रसोइए के न आने के कारण डिनर का प्रोग्राम बाहर ही था. रेस्तरां में मम्मीपापा के साथ खाना खाते हुए उस ने देखा कि सामने वाली टेबल पर वही युवक यानी सूरज एक स्मार्ट युवती के साथ बैठ कर डिनर कर रहा है.

अपनी तरफ पीठ होने के कारण रश्मि उस युवती का चेहरा तो नहीं देख पाई, लेकिन उस के बालों का जूड़ा बांधने का ढंग तथा उस का स्टाइल देख कर साफ पता चल रहा था कि यह महिला एक आधुनिका है.

अपनी टेबल पर अंधेरा होने के कारण सूरज उस के मम्मीपापा को नहीं देख पाया. अचानक उसे किरण पर बहुत दया आने लगी. रात को वह सूरज के चरित्र के बारे में सोचने लगी. उसे लगा कि उस ने तो अपनेआप को सही समय पर संभाल लिया लेकिन बेचारी किरण का क्या होगा, उसे तो पता भी नहीं कि उस का पति बाहर किस के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा है.

अगले दिन रश्मि कालेज जाने के लिए सीढि़यां उतर रही थी तो उस ने देखा कि किरण अपने पति के लिए किचन में नाश्ता व खाना तैयार कर रही है. उस ने सीढि़यों से ही किरण को सुप्रभात कहा और तेजी से कालेज के लिए निकल गई.

कालेज जा कर पता चला कि अंगरेजी की जो नई टीचर आने वाली थीं, वे 2 दिन बाद जौइन करेंगी. क्लास खाली देख कर सभी दोस्तों ने मिल कर शाहरुख खान की नई पिक्चर देखने का प्रोग्राम बनाया.

फिल्म समाप्त होने के बाद जैसे ही रश्मि व उस की सहेलियां बाहर निकलीं तो उस ने देखा कि सूरज भी अपनी उस आधुनिका के साथ फिल्म देखने आया है. हाईहील पहने उस आधुनिका का चेहरा भीड़ के कारण रश्मि नहीं देख पाई, लेकिन इस बार उस ने अपने दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं डाला.

घर आ कर उस ने देखा कि नीचे ताला लगा हुआ है. ‘लगता है किरण कहीं बाहर गई है,’ सोचते हुए रश्मि अपने कमरे में आ गई. किरण से अब उस को सहानुभूति हो गई थी. बेचारी अपने पति के लिए कितना काम करती है. अच्छा खाना पकाती है, लेकिन उस का पति किसी आधुनिका के साथ बाहर घूमता रहता है.

आज रसोइया आ गया था, इसलिए उन्हें खाना खाने बाहर नहीं जाना पड़ा. अगले दिन रश्मि तबीयत खराब होने के कारण कालेज नहीं जा पाई. किरण ने जब उस की तबीयत के बारे में सुना तो वह उस के लिए टमाटर का स्वादिष्ठ सूप बना कर उस का हालचाल पूछने घर आई.

सूप पी कर रश्मि को बहुत अच्छा लगा. साथ ही रश्मि ने सोचा कि वह किरण को सूरज की असलियत बता दे ताकि वह किचन की चारदीवारी से बाहर निकल कर खुद को सजाएसंवारे तथा कुछ पढ़लिख ले ताकि सूरज उस आधुनिका के बजाय किरण को साथ ले कर घूमे.

अगले दिन सवेरेसवेरे खटरपटर की आवाज से रश्मि की आंख खुल गई. ‘शायद किरण किचन में अपने पति के लिए खाना बना रही है,’ रश्मि ने सोचा. अब वह स्वस्थ थी. उठ कर वह भी कालेज के लिए तैयार हो गई.

जब वह कालेज के लिए निकली तो देखा कि मां अभी सो कर उठी हैं. उस ने मां को बाय किया और कालेज के लिए निकल गई. नीचे देखा तो ताला लगा हुआ था. सोचा कालेज से आ कर वह किरण से बात करेगी.

आज कालेज में अंगरेजी की नई लैक्चरर की क्लास थी. रश्मि की सीट खिड़की के पास थी, जो कोरिडोर में खुलती थी. खिड़की से उस ने देखा कि मैडम आ रही हैं, ‘‘अरे, यह तो वही हाईहील, जूड़ा बांधने का वही ढंग, वही स्टाइल. अरे, यह तो सूरज की गर्लफ्रैंड है यानी कि हमारी अंगरेजी की नई टीचर.’’

उसे बड़ा गुस्सा आया. उस ने सोचा, ‘चलो, आज इस का चेहरा भी देख लेते हैं,’ लेकिन जैसे ही मैडम ने कक्षा में प्रवेश किया और रश्मि की नजर उस के चेहरे पर पड़ी तो उस के होश उड़ गए… ‘अरे, यह तो किरण है,’ वही आधुनिका जिसे उस ने कई बार सूरज के साथ घूमते देखा, लेकिन उस का चेहरा नहीं देख पाई. फिर उसे ध्यान आया कि किचन में खाना बनाते हुए किरण का चेहरा जो हाथ धो कर अपने पल्लू से पोंछती है, आज वही किरण उस के सामने खड़ी लगातार अंगरेजी में लैक्चर दे रही है. उस के शब्द रश्मि के सिर के ऊपर से निकलते जा रहे थे, लेकिन कानों ने सुनना बंद कर दिया था.

Family Story: निराधार डर – माया क्यों शक करती थी

Family Story: ‘‘शादी हुई नहीं कि बेटा पराया हो जाता है,’’ माया किसी से फोन पर कह रही थीं, ‘‘दीप की शादी हुए अभी तो केवल 15 दिन ही हुए हैं और अभी से उस में इतना बदलाव आ गया है. पलक के सिवा उसे न कोई दिखाई देता है, न ही कुछ सूझता है. ठीक है कि पत्नी के साथ वह ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहता है, पर मां की उपेक्षा करना क्या ठीक है.’’ यह सुन कर दीप हैरान रह गया. उस ने अनुमान लगाया कि फोन के दूसरी तरफ सोमा बूआ ही होंगी. वही हैं जो इस तरह की बातों को शह देती हैं. वह भी तो हमेशा अपने बेटेबहू को ले कर नाराज रहती हैं. सब जानते हैं कि सोमा बूआ की किसी से नहीं बनती. वे तो सभी से परेशान रहती हैं और दूरपास का कोई ऐसा रिश्तेदार नहीं है जो उन के व्यंग्यबाणों का शिकार न हुआ हो. अपने बेटे को तो वे सब के सामने जोरू का गुलाम तक कहने से नहीं चूकती हैं. पर मां, उस के बारे में ऐसा सोचती हैं, यह बात उसे भीतर तक झकझोर गई. घर में और तो किसी ने ऐसा कुछ नहीं कहा, तो मां को ऐसा क्यों लग रहा है. पापा, उस की बहन दीपा, किसी ने भी तो ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया है जिस से लगे कि वह शादी के बाद बदल गया है. फिर मां को ही क्यों लग रहा है कि वह बदल गया है.

पलक को इस समय नए घर में एडजस्ट होने में उस का सहयोग और साथ चाहिए और वही वह उसे दे रहा है तो इस से क्या वह मां के लिए पराया हो गया है. पलक के लिए यह घर नया है, यहां के तौरतरीके, रहनसहन सीखनेसमझने में उसे समय तो लगेगा ही और अगर वह यहां के अनुरूप नहीं ढलेगी तो क्या मां नाराज नहीं होंगी. आखिर मां क्यों नहीं समझ पा रही हैं कि पलक के लिए नए माहौल में ढल पाना सहज नहीं है. इस के लिए उसे पूरी तरह से अपने को बदलना होगा और वह चाहती है कि इस घर को जल्दी से जल्दी अपना बना लें ताकि सारी असहजता खत्म हो जाए. वह पूरी कोशिश कर रही है, पर मां का असहयोग उसे विचलित कर देता है. दीप खुद हैरान था मां के व्यवहार को देख कर. मां तो ऐसी नहीं हैं, फिर पलक के प्रति वे कटु कैसे हो गई हैं.

‘‘मां, ये कैसी बातें कर रही हैं आप? मैं पराया कहां हुआ हूं? बताइए न मुझ से कहां चूक हो गई या आप की कौन सी बात की अवहेलना की है मैं ने? हां, इतना अवश्य हुआ है कि मेरा समय अब बंट गया है. मुझे अब पलक को भी समय देना है ताकि वह अकेलापन महसूस न करे.

‘‘अभी मायके की यादें, मांबाप, भाईबहन से बिछुड़ने का दुख उस पर हावी है. हम सब को उसे सहयोग देना चाहिए ताकि वह खुल कर अपनी बात सब से कह सके. उसे थोड़ा वक्त तो हमें देना ही होगा, मां छुट्टियां खत्म हो जाने से पहले वह भी सब कुछ समझ लेना चाहती है, जिस से औफिस और घर के काम में उसे तालमेल बिठाने में दिक्कत न हो.’’

‘‘मुझे तुझ से बहस नहीं करनी है, चार दिन हुए हैं उसे आए और लगा है उस की तरफदारी करने.’’ पलक अपने कमरे में बैठी मांबेटे की बातें सुन रही थी. उसे हैरानी के साथसाथ दुख भी हो रहा था कि आखिर मां, इस तरह का व्यवहार क्यों कर रही हैं. वह तो उन के तौरतरीके अपनाने को पूरे मन से तैयार है, फिर मां की यह सोच कैसे बन गई कि उस ने दीप को अपनी मुट्ठी में कर लिया है. कमरे में दीप के आते ही उस ने पूछा, ‘‘मुझ से कहां चूक हो गई, दीप, जो मां इस तरह की बात कर रही हैं. मैं ने कब कहा कि तुम हमेशा मेरे पल्लू से बंधे रहो. इतना अवश्य है कि मां से मुझे किसी तरह भी सहयोग नहीं मिल रहा है, इसलिए मुझे तुम्हारे ऊपर ज्यादा निर्भर होना पड़ रहा है. फिर चाहे वह घरगृहस्थी से जुड़ी बात हो या रसोई के काम की या फिर मेरे दायित्वों की. इसी कारण तो हम हनीमून के लिए भी नहीं गए ताकि मुझे इस माहौल में एडजस्ट होने के लिए समय मिल जाए. जानते ही हो कि छुट्टी भी मुश्किल से एक महीने की ही मिली है.’’

‘‘मैं खुद हैरान हूं, पलक कि मां इस तरह का व्यवहार क्यों कर रही हैं. जबकि उन्हें ही मेरी शादी की जल्दी थी. हमारी लव मैरिज उन की स्वीकृति के बाद ही हुई है. शादी से पहले तो वे तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकती थीं, फिर अब अचानक क्या हो गया. कितने चाव से उन्होंने शादी की एकएक रस्म निभाई थी. सोमा बूआ टोकती थीं तो मां उन की बातों को नजरअंदाज कर देती थीं. सब से यही कहतीं, मेरा तो एक ही बेटा है, उस की शादी में अपने सारे चाव पूरे करूंगी. आज वे सोमा बूआ की बातों को सुन रही हैं, उन से ही हमारी शिकायत कर रही हैं. ‘‘आज उन्हें अपने ही बेटे की खुशी खल रही है. उन्हें तो इस बात की तसल्ली होनी चाहिए कि हम दोनों खुश हैं और एकदूसरे से प्यार करते हैं. डरता हूं सोमा बूआ कहीं हमारे बीच भी तनाव न पैदा कर दें. मां ने उन की बातें सुनीं तो अवश्य ही उन के बेटेबहू की तरह हमारे बीच भी झगड़े होने लगेंगे.’’

‘‘मुझ पर विश्वास रखो दीप, ऐसा कुछ नहीं होगा,’’ पलक के स्वर में दृढ़ता थी. ‘‘हमें मां के भीतर चल रही उथलपुथल को समझ कर उन से व्यवहार करना होगा. उन के मनोविज्ञान को समझना होगा. दीप, मनोविज्ञान की छात्र रहने के कारण मैं उन की मानसिक स्थिति बखूबी समझ सकती हूं. जब बेटे की शादी होती है तो कई बार एक डर मां के मन में समा जाता है कि अब तो उस का बेटा हाथ से निकल गया. उस में सब से खराब स्थिति बेटे की ही होती है, क्योंकि वह ‘किस की सुने’ के चक्रव्यूह में फंस जाता है. त्रिशंकु जैसी स्थिति हो जाती है उस की. पत्नी जो दूसरे घर से आती है वह पूरी तरह से नए परिवेश में ढलने के लिए उस पर ही निर्भर होती है, और मां को लगता है कि बेटा जो आज तक हर काम उन से पूछ कर करता था, अब बीवी को हर बात बताने लगा है. बस, यही वजह है जब मां को लगता है कि उन की सत्ता में सेंध लगाने वाली आ गई है और वह बहू के खिलाफ मोरचा संभाल लेती है. लेकिन हमें मां को उस डर से बाहर निकालना ही होगा.’’

‘‘पर यह कैसे होगा?’’ दीप पलक की बात सुन थोड़ा असमंजस में था. वह किसी भी तरह से मां को दुखी नहीं देख सकता था और न ही चाहता था कि पलक और मां के संबंधों में कटुता आए.

‘‘यह तुम मुझ पर छोड़ दो, दीप. बस यह खयाल रखना कि मां चाहे मुझ से जो भी कहें, तुम हमारे बीच में नहीं बोलोगे. इस तरह बात और बिगड़ जाएगी और मां को लगेगा कि मेरी वजह से मांबेटे के रिश्ते में दरार आ रही है या बेटा मां से बहस कर रहा है. हालांकि उन की जगह कोई नहीं ले सकता पर फिर भी हमें उन्हें बारबार यह एहसास कराना होगा कि उन की सत्ता में सेंध लगाने का मेरा कोई इरादा नहीं है. ‘‘हर सदस्य की परिवार में अपनी तरह से अहमियत होती है. बस, यही उन्हें समझाना होगा. उस के बाद उन के मन से सारे भय निकल जाएंगे तब वे तुम्हें ले कर शंकित नहीं होंगी कि तुम उन के बुढ़ापे का सहारा नहीं बनोगे, न ही वे इस बात से चिंतित रहेंगी कि मैं उन के बेटे को उन से छीन लूंगी.’’

‘‘सही कह रही हो तुम, पलक. मैं ने भी कई घरों में यही बात देखी है. इसी की वजह से न चाहते हुए मेरे दोस्त वैभव को शादी के बाद अलग होने को मजबूर होना पड़ा था. सासबहू की लड़ाई में वह पिस रहा था. यह देख उस के पापा ने ही उस से अलग हो जाने को कहा था. बेटा हाथ से न निकल जाए का डर, यह अनिश्चतता कि बुढ़ापे में कहीं वे अकेले न रह जाएं, बहू घर पर अधिकार न कर ले, बहू की बातों में आ कर कहीं बेटा बुरा व्यवहार न करे या घर से न निकाल दे, ये बातें जब मन में पलने लगती हैं तो निराधार होने के बावजूद संबंधों में कड़वाहट ले आती हैं. मैं नहीं चाहता कि मेरे परिवार में ऐसा कुछ हो. मैं अपने मांबाप को किसी हाल में नहीं छोड़ सकता,’’ दीप भावुक हो गया था.

‘‘दीप, अब अंदर ही बैठा रहेगा या बाहर भी आएगा. देखो, तुम्हारे मामामामी आए हैं,’’ मां के स्वर में झल्लाहट साफ झलक रही थी. दीप को बुरा लगा पर पलक ने उसे शांत रहने का इशारा किया. बाहर आ कर दोनों ने मामामामी के पैर छुए. फिर पलक किचन में उन के लिए चायनाश्ता लेने चली गई. ‘‘दीदी, अब तो आप का मन खूब लग रहा होगा. पलक काफी मिलनसार और खुशमिजाज लड़की है. बड़ों का आदर भी करती है. जब कुछ दिन पहले दीप और पलक घर आए थे तभी पता लग गया था. बहुत प्यारी बच्ची है.’’ अपनी भाभी के मुंह से पलक की तारीफ सुन माया ने सिर्फ सिर हिलाया. यह सच था कि पलक उन्हें भी अच्छी लगती थी, पर उस की तारीफ करने से वे डरती थीं कि कहीं इस से उन का दिमाग खराब न हो जाए. पलक उस की हर बात को मानती थी, पर वे थीं कि एक दूरी बनाए हुए थीं, पता नहीं पढ़ीलिखी, नौकरी वाली बहू बाद में कैसे रंग दिखाए. वैसे ही बेटा उस के आगेपीछे घूमता रहता है, न जाने क्यों उन के अंदर एक खीझ भर गई थी जिस के कारण वे पलक से खिंचीखिंची रहती थी. और इस वजह से उन के पति और बेटी भी उन से नाराज थे.

‘‘मां, आप एक मिनट के लिए यहां आएंगी,’’ पलक ने 5 मिनट बाद आवाज लगाई, ‘‘मां, प्लीज मुझे बता दीजिए कि मामामामी को क्या पसंद है. आप तो सब जानती हैं.’’ माया को यह सुन अच्छा लगा. पलक जब नाश्ता ले कर आ रही थी तो उस ने मामी को कहते सुना, ‘‘मानना पड़ेगा दीदी, इतनी पढ़ीलिखी होने पर भी पलक में घमंड बिलकुल नहीं है, वरना कमाने वाली लड़कियां तो आजकल रसोई में जाने से ही परहेज करती हैं. ‘‘उस दिन जब हमारे घर आई थी तभी परख लिया था मैं ने कि इस में नखरे तो बिलकुल नहीं हैं. मेरी भाभी की बहू को ही देख लो. उस ने शादी के बाद ही साफ कह दिया था कि घर का कोई काम नहीं करेगी. नौकर रखो या और कोई व्यवस्था करो, उसे कोई मतलब नहीं है. भाभी की तो उस के सामने एक नहीं चलती. आप को तो खुश होना चाहिए बेटाबहू दोनों ही आप को इतना मान देते हैं.’’

‘‘अरे, अभी उसे आए दिन ही कितने हुए हैं. औफिस जाना एक बार शुरू करने दो, सारे रंग सामने आ जाएंगे,’’ पलक को आते देख माया एकदम चुप हो गईं. पलक को बुरा तो बहुत लगा पर वह हंसते हुए नाश्ता परोसने लगी. दीप अंदर ही अंदर कुढ़ कर रहा गया था. वह कुछ कहना ही चाहता था कि पलक ने उसे इशारे से मना कर दिया. मामी ने महसूस किया कि माया पलक के प्रति कुछ ज्यादा ही कटु हो रही हैं और दीप को अच्छा न लगना स्वाभाविक ही था. जातेजाते वे बोलीं, ‘‘दीदी, हो सकता है आप को मेरा कुछ कहना अच्छा न लगे, पर आप पलक के बारे में कुछ ज्यादा ही गलत सोच रही हैं. हो सकता है उस में कुछ कमियां हों, तो क्या हुआ. वे तो सभी में होती हैं. बच्ची को प्यार देंगी तो वह भी आप का सम्मान करेगी. मुझे तो लगता है कि वह आप के जितना निकट आना चाहती है, आप उस से उतनी ही दूरियां बनाती जा रही हैं. ‘‘दीप की खुशी के बारे में सोचें. पलक की वजह से ही वह चुप है, पर कब तक चुप रहेगा. बेटा चाहे वैसे दूर न हो, पर आप की सोच की वजह से दूर हो जाएगा. बहू बेटे को छीन लेगी, यह डर ही आप को रिश्ते में दरार डालने के लिए मजबूर कर रहा है. पलक को खुलेदिल से अपना लीजिए, वरना बेटा सचमुच छिन जाएगा.’’

‘‘सही तो कह रही थीं तुम्हारी भाभी,’’ रात को मौका पाते ही उन के पति ने उन्हें समझाना चाहा, ‘‘इतनी अच्छी बहू मिली है, पर तुम ने दूसरों के बेटेबहू के किस्से सुन एक धारणा बना ली है जो निराधार है. आज वह हर बात तुम से पूछ रही है, लेकिन अगर तुम्हारा यही रवैया रहा तो दीप ही सब से पहले तुम्हारा विरोध करेगा. ‘‘सोचो, अगर पलक उसे तुम्हारे खिलाफ भड़काने लगे तो क्या होगा. सोमा की बातों पर मत जाओ. बहू को दिनरात ताने दे कर उस ने संबंध खराब किए हैं. नए घर में जब एक लड़की आती है तो उस के कुछ सपने होते हैं, वह नए रिश्तों से जुड़ने की कोशिश करती है. पर तुम हो कि उस की गलतियां ही ढूंढ़ती रहती हो. इस तरह तुम दीप को दुखी कर रही हो. क्या तुम नहीं चाहतीं कि तुम्हारा बेटा खुश रहे.

‘‘कल हमारी दीपा के साथ भी उस की सास ऐसा ही व्यवहार करेगी तो क्या वह सुखी रह पाएगी या तुम बरदाश्त कर पाओगी? अपने डर से बाहर निकलो माया, और पलक व दीप पर विश्वास करो.’’ पूरी रात माया कशमकश से जूझती रहीं. सच में बेटे के छिन जाने का डर ही उन्हें पलक के साथ कठोर व्यवहार करने को मजबूर कर रहा है. आखिर जितना प्यार वे दीप और दीपा पर उड़ेलती हैं, पलक को दें तो क्या वह भी उन की बेटी नहीं बन जाएगी. जरूरी है कि उसे बहू के खांचे में जकड़ कर ही रखा जाए? वह भी तो माया में मां को ही तलाश रही होगी? माया जब सुबह उठीं तो उन के चेहरे पर कठोरता और खीझ के भाव की जगह एक कोमलता व नजरों में प्यार देख पलक बोली, ‘‘मां, आइए न, साथ बैठ कर चाय पीते हैं. आज संडे है तो दीप तो देर तक ही सोने वाले हैं.’’

‘‘तुम क्यों इतनी जल्दी उठ गईं? जाओ आराम करो. नाश्ता मैं बना लूंगी.’’ ‘‘नहीं मां, हम मिल कर नाश्ता बनाएंगे और इस बहाने मैं आप से नईनई चीजें भी सीख लूंगी.’’ डाइनिंग टेबल पर मां को पलक से बात करते और खिलखिलाते देख दीप हैरान था. पलक ने आंखों ही आंखों में जैसे उसे बताया कि उसे यहां भी मां मिल गई हैं.

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