बेटे का पाप : भाग 2

शिवम उस की तारीफ करते हुए पहले भी ऐसा कुछेक बार कर चुका था. रानी शिवम के मन की यौन जिज्ञासाओं को समझती थी. इसलिए उस की हरकतों का बुरा नहीं मानती थी.

वह जानती थी कि शिवम का मन इस से आगे कुछ और भी चाहता होगा, पर वह शिवम से यही कहती थी, ‘‘बेसब्र मत बनो, मैं तुम से प्यार करती हूं और शादी के बाद पूरी तरह तुम्हारी हो जाऊंगी, तब जो जी चाहे करना.’’

शिवम भी उस की भावनाओं को समझ कर खुद को रोक लेता था. लेकिन आज माहौल एकदम बदला हुआ था. शिवम के नग्न भीगे कसरती बदन को देख कर रानी की सोई हुई भावनाएं जाग उठी थीं. जब शिवम ने उस की पतली कमर में हाथ डाल कर जिस तरह उस के होंठों को चूमा तो उस के बदन में चिंगारियां चटखने लगी थीं.

एक फुट के फासले पर खड़े शिवम के हाथ में रानी की कलाई थी और निगाहों में एक सवाल था. वह अपलक रानी के चेहरे को निहार रहा था. जबकि रानी की झुकी हुई आंखें चोरीचोरी उस के बदन को देख रही थीं. उस की नजरों के लक्ष्य को समझ कर शिवम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जब तुम्हारा हूं तो मेरे शरीर का जर्राजर्रा तुम्हारा है इन पर तुम्हारा ही हक है.’’

रानी लजा गई. चेहरे पर हया की लाली फैली तो कांपते होंठों से उस ने कहा, ‘‘तुम बहुत शरारती होते जा रहे हो.’’

‘‘हुस्न का खजाना बांहों में हो तो बड़ेबड़े तपस्वी बेईमान हो जाते हैं.’’ कहते हुए शिवम रानी के एकदम करीब खिसक आया. उस ने अपने दोनों हाथ दीवार पर टिका कर उस ने रानी को अपनी जद में ले लिया. फिर धीरे से अपने होंठ उस के होंठों की तरफ  बढ़ाए.

‘‘नहीं शिवम यह ठीक नहीं है,’’ रानी ने उसे रोकना चाहा, लेकिन शिवम तब तक अपने जिस्म का बोझ उस पर डाल चुका था. तन की गरमी पा कर रानी का विरोध मंद पड़ गया.

रानी भी खुद पर नियंत्रण न रख सकी. फिर दोनों पहली बार आनंद की एक नई दुनिया की सैर को निकल गए. मंजिल मिलने के बाद ही वह एकदूसरे से अलग हुए.

रानी को हासिल करने के बाद शिवम उस का और भी दीवाना हो गया. उस की सुबह रानी से शुरू होती थी और शाम रानी पर खत्म होती थी. उन को अलग होने का बिलकुल भी मन नहीं होता था लेकिन लोकलाज के चलते शिवम अपने घर और रानी अपने घर जाने को मजबूर हो जाती.

दोनों विवाह कर के एक साथ जिंदगी बिताना चाहते थे लेकिन यह संभव नहीं था. क्योंकि वे एक जाति के नहीं थे. ऐसे में लक्ष्मी देवी कभी भी अपने बेटे शिवम को दूसरे कुल में शादी करने की अनुमति नहीं देती.

लक्ष्मी देवी पुजारिन होने के कारण धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह हरगिज दोनों के रिश्ते को मंजूरी नहीं देती. अपनी मां के बारे में शिवम बखूबी जानता था. ऐसे में शिवम के दिमाग में उथलपुथल मचने लगी कि क्या करे, क्या न करे.

उसे सिर्फ एक ही रास्ता सूझा कि वह आर्यसमाज मंदिर में रानी से शादी कर ले और उसे ले कर कहीं दूर चला जाए. रानी से  शिवम ने बात की तो उस का भी यही कहना था कि जब परिवार हमारे मन की करेंगे नहीं, हमारी खुशियों के बारे में नहीं सोचेंगे तो हम क्यों उन के बारे में सोचें. हम भी वही करेंगे जो हमें सही लगेगा.

आपसी सहमति के बाद दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में विवाह कर लिया. विवाह कर के दोनों बहुत खुश थे. क्योंकि वह एक नई जिंदगी की शुरुआत जो कर रहे थे.

विवाह करने के बाद शिवम ने कुछ सोच कर अपनी मां लक्ष्मी देवी को रानी के साथ विवाह करने के बारे में बताया तो लक्ष्मी देवी ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई, ‘‘निखट्टू घर में पड़ेपड़े मेरे दिए निवाले तोड़ता रहा, कभी एक पैसे का काम नहीं किया. अब ऊपर से चोरीछिपे शादी कर लेने की बात कर रहा है. पहले तुझे, अब उसे भी छाती पर बैठा कर खिलाऊं, ऐसा कभी नहीं हो सकता. वैसे भी मैं तेरी इस शादी को नहीं मानती.’’

‘‘आप मानो न मानो रानी से मेरी शादी हो चुकी है. मैं उसे हरगिज नहीं छोड़ सकता.’’ इतना कह कर शिवम वहां से चला गया.

लक्ष्मी देवी बैठ कर सिसकने लगी और उस दिन को कोसने लगी, जब शिवम पैदा हुआ था. वह सिसकते हुए बोली, ‘‘ऐसे कपूत से तो निपूती रहती.’’

इस के बाद मांबेटे में शादी की बात को ले कर रोज झगड़ा होने लगा.

दूसरी ओर रानी के घरवालों ने उस के लिए उपयुक्त वर देख कर उस का रिश्ता पक्का कर दिया. रानी इस से घबरा उठी. एक तरफ रानी की शादी तय हो गई, दूसरी ओर लक्ष्मी देवी उस को अपनाने को तैयार नहीं थी.

ऐसे में दोनों घर से भाग कर कहीं और अपनी दुनिया बसाने के बारे में सोचने लगे. शिवम के पास कोई कामधाम तो था नहीं, जो पैसे होते. इसलिए शिवम ने फैसला किया कि वह घर में रखे रुपए और गहने चोरी से निकाल कर रानी के साथ भाग जाएगा.

 

बेटे का पाप : भाग 1

जब किसी को किसी से प्यार हो जाए, तो उस की हालत अजीब हो जाती है. सोतेजागते उस का ही खयाल, उस के ही सपने आते हैं. सीने में अजीब सी आग भरी होने का अहसास होता है. इतना ही नहीं, आंखों और नींद में रार मच जाती है. प्रेम दीवानी रानी का यही हाल था. जब तक वह अपने प्रेमी शिवम शर्मा को देख न लेती तब तक बेचैनी उसे सताती रहती थी.

शिवम कहीं दूर नहीं रानी के घर के पास ही रहता था. बचपन से रानी उसे देखती आ रही थी. उस के प्रति मन में कभी किसी प्रकार की भावना नहीं आई थी. मोहल्ले में जैसे सब रहते थे, वैसे ही शिवम रहता था. शिवम का थोड़ा महत्त्व इसलिए था कि दूसरे लोगों के मकान कुछ फासले पर थे, जबकि शिवम रानी के घर के पास ही रहता था.

प्यार के लिए मुद्दत के इंतजार की जरूरत नहीं होती. यह तो कुदरत की वह नेमत है, जो किसी भी पल इंसान को मिल जाती है. गर्मियों की एक सुबह की बात है. कहीं जाने के लिए शिवम रानी के घर के सामने से गुजर रहा था. उस वक्त उस के जेहन में कल्पना तक नहीं थी कि कुछ क्षणों बाद उस के जीवन में एक नया मोड़ आने वाला है.

गरमी के मौसम में लू चलने के कारण धूल बहुत उड़ती है. इसीलिए लोग घरों के सामने पानी की छिड़काव कर देते हैं, ताकि धूल न उड़े.

उस सुबह रानी भी पानी से भरी बाल्टी ले कर अपने घर के सामने छिड़काव करने के लिए दरवाजे पर आई. वह यह नहीं देख पाई कि सामने से शिवम निकल रहा है. उस ने बाल्टी के पानी से मग भरा और दरवाजे से बाहर फेंक दिया. फेंका गया पानी शिवम पर गिरा. कुछ पल के लिए वह चौंक गया और उस के पैर जहां के तहां ठिठक गए.

रानी भी उसे देखती रह गई. मन में वह सोच रही थी कि यह उस से क्या हो गया. शिवम न जाने कहां जा रहा था, उस की एक गलती से उस के कपड़े भीग गए. शिवम अब उसे बहुत डांटेगा.

रानी हैरान तब हुई, जब शिवम ने अपने गीले कपड़े झटके और रानी की आंखों में देख कर मुसकराने लगा. शिवम की मुसकराहट ने रानी के डर को दूर कर दिया, वह बोली, ‘‘मैं ने तुम्हें आते नहीं देखा था, गलती से पानी फेंक दिया, माफ  कर दो.’’

‘‘गरमी के इस मौसम में ठंडा पानी मन को तरावट देता है. थोड़ी देर के लिए ही सही, ताजगी और तरावट का मजा आ गया,’’ शिवम हंसने लगा, ‘‘रही कपड़े भीगने की बात तो उस की चिंता नहीं. मौसम ऐसा है कि कुछ कदम चलते ही गरम हवा कपड़े सुखा देगी.’’ वह एक बार फिर मुसकराया और अपनी राह चल पड़ा.

शिवम की मुसकान में न जाने ऐसा क्या था कि तीर की तरह रानी के जिगर के पार हो गई. उस ने बाल्टी से पानी का मग भरा और अपने सिर पर उड़ेल लिया.

रानी की मां ने यह तमाशा देखा तो वह चिल्लाई,‘‘दरवाजे पर खड़ी हो कर तू खुद को क्यों भिगो रही है, नहाना है तो घर के भीतर आ कर नहा ले.’’

‘‘मम्मी, मैं नहा नहीं रही, ठंडे पानी से कपड़े भिगो कर खुद को ताजगी और तरावट से भर रही हूं.’’ वह बोली.

इस के बाद वह महसूस करने लगी कि जब शिवम भीगा होगा, तब उस ने ऐसा ही महसूस किया होगा. उस पल से एक अहसास ही नहीं जुड़े, दिल के तार भी जुड़ गए. बस इस के बाद शिवम बहुत तेजी से रानी के दिलोदिमाग पर छाता चला गया.

शिवम का हाल भी रानी से अलग नहीं था. पानी फेंकने में हुई चूक के बाद उस का हैरान चेहरा और फैली आंखें शिवम के दिल में बस गई थीं.

बस इसी एक बात ने उस की सोच को नई दिशा दे दी. शिवम ने रानी के बारे में सोचा तो वह यकायक अपनी सी लगने लगी. दिल भी उछल कर बोलने लगा कि हां उसे भी रानी से प्यार हो गया है.

ताजनगरी आगरा के जगदीशपुरा थाना क्षेत्र के वैशाली नगर, नगला गूजर में रमेश चंद्र शर्मा रहते थे. परिवार में उन की पत्नी लक्ष्मी देवी और इकलौता पुत्र शिवम शर्मा था. रमेश चंद्र पंडिताई का काम करते थे. उसी से परिवार का खर्च चलता था.

करीब 12 साल पूर्व रमेश चंद्र की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी. अब लक्ष्मी देवी पर अपना और बेटे का पेट भरने और उसे अच्छी जिंदगी देने की जिम्मेदारी आ गई.

पति की पंडिताई को करते देखते हुए लक्ष्मी भी उस में पारंगत हो गई थी. इसलिए पति की मृत्यु के पश्चात एक मंदिर की पुजारिन बन गई. वहां आने वाले चढ़ावे से अपना और बेटे का पेट पालने लगी.

25 साल के हो चुके शिवम ने केवल इंटरमीडिएट तक ही पढ़ाई की थी. उस ने कुछ दिन एक कपड़े की दुकान पर काम किया, फिर वहां से छोड़ दिया. बेरोजगारी में दिन काटने लगा. मां जो लाती उसी में वह गुजारा कर लेता.

लक्ष्मी देवी के मकान के पास ही कालीचरण का मकान था. 20 वर्षीय रानी कालीचरण की ही बड़ी बेटी थी. रानी ने हाईस्कूल तक ही पढ़ाई की थी. पासपास रहने के कारण दोनों परिवार एकदूसरे से परिचित थे.

बचपन से रानी और शिवम एकदूसरे को देखते आ रहे थे. किशोरावस्था को पार कर के युवावस्था में प्रवेश कर गए, तब भी उन के मन नहीं मचले. उस दिन पानी के मग ने दोनों के बीच एक बेनाम रिश्ता बना दिया. ऐसा बेनाम रिश्ता जिस में तड़प, बेचैनी, कसक और प्यार था.

उस दिन से शिवम और रानी की आंखें एकदूजे के दीदार की प्यासी रहने लगीं. शिवम फुरसत में होता तो वह अपने घर के चबूतरे पर बैठा होता. मन रानी के बारे में सोच रहा होता और प्यासी आंखें उस के द्वार पर टकटकी लगाए होतीं.

शिवम को देखने के लिए किसी बहाने से रानी भी घर के बाहर आ जाती. दोनों की आंखें मिलतीं तो दोनों के लब खिल जाते. इस के साथ ही धड़कनों की गति बढ़ जाती.

रानी और शिवम में बातचीत होनी सामान्य बात थी. पूरे मोहल्ले के सामने बात भी करते तो उन के रिश्ते पर कोई शक नहीं करता. कहते हैं कि न, जब प्यार होता है तो मन में चोर भी पैदा हो जाता है. रानी और शिवम के मन में भी चोर पैर जमाए बैठा था. सो एकांत में सामना होते ही मानो उन की हिम्मत जवाब देने लगती.

शिवम को भी डर लगता कि प्रेम निवेदन सुन कर रानी भड़क गई तो सिर पर इतने जूते पड़ेंगे कि वह गंजा हो जाएगा.

कुछ दिन यूं ही आंखमिचौली चलती रही, फिर एक दिन मौका मिला तो शिवम ने हिम्मत कर के मन की बात कह दी, ‘‘रानी, मुझे तुम से प्यार हो गया है, अब तुम भी अपने प्यार को जता कर मेरे दिल की रानी बन जाओ.’’

शर्म से रानी के गाल गुलाबी हो गए. उस ने सिर झुका लिया और पैर के अंगूठे से जमीन खुरचने की नाकाम कोशिश करने लगी.

रानी के अंदाज से वह समझ गया कि डरने की कोई बात नहीं. रानी भी उस से प्यार करती है.

प्रेम तभी आनंद देता है जब उस का प्रदर्शन किया जाए. शिवम भी रानी के मुंह से उस के दिल का हाल सुनना चाहता था. इसलिए उसे बोलने के लिए उकसाया, ‘‘कहो न, तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

रानी ने सिर उठा कर शिवम की आंखों में देखा, उस के बाद पुन: नजरें नीची कर लीं. मुसकराई, इकरार में सिर हिलाया और तेजी से उस के सामने से हट गई. शिवम का दिल बल्लियों उछलने लगा, वह समझ गया कि रानी को भी उस से प्यार है.

मोहब्बत का इजहार और इकरार होते ही रानी व शिवम की प्रेम कहानी शुरू हो गई. कभी शिवम का सूना घर, कभी पार्क तो कभी सुनसान स्थान रानी और शिवम की मोहब्बत के खामोश गवाह बनने लगे.

शिवम की मां मंदिर चली जाती तो घर में शिवम ही अकेला रह जाता था. ऐसे में रानी मिलने के लिए शिवम के घर आ जाती थी. वहां उस से घंटों बतियाती, प्यार भरी बातें करती.

एक रोज रानी सजसंवर कर शिवम के घर पहुंची. उस ने नया सूट पहन रखा था. शिवम के कमरे में दाखिल हुई तो उसे शिवम नहीं दिखा, वह बाथरूम में था. रानी ने आवाज लगाई, ‘‘शिवम!’’

‘‘कौन?’’ शिवम ने बाथरूम के अंदर से ही पूछा.

‘‘अच्छा तो जनाब मेरी आवाज भी नहीं पहचानते. आ कर बताऊं कौन हूं मैं?’’ रानी का लहजा शरारत भरा था.

‘‘बिलकुल आ जाओ, मैं कौन सा डरता हूं.’’ वह बोला.

रानी को लगा कि इस समय अन्य कोई वहां आ गया तो बदनामी होगी उस की. वह वापस मुड़ी और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. दरवाजा बंद करने के बाद उस ने बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक दी तो शिवम ने उसे अंदर खींच लिया. शिवम मात्र अंडरवियर पहने हुए था. उस का पूरा शरीर पानी से भीगा हुआ था.

शिवम की आंखों में शरारत नाच रही थी. उस ने रानी को करीब खींचा तो वह चिहुंक उठी, ‘‘छोड़ो मेरा सूट गीला हो जाएगा, आज ही पहना है इसे. मैं तो तुम्हें अपना सूट दिखाने आई थी कि तारीफ  क रोगे तुम मेरी.’’

‘‘तारीफ  तो मैं तुम्हारी हमेशा करता हूं, आज फिर से कह रहा हूं कि तुम से हसीन इस जहां में कोई नहीं है.’’ कहते हुए शिवम ने उस के होंठों को चूम लिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

WhatsApp के जरिये खेत में बुलाकर लड़कियां करती है यह गंदा काम

आज कल हमें बहुत सी ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती है जिनमें महिलाओं का शोषण किया जाता है. लेकिन अगर लड़कियां इस बात का फायदा उठाने लग जाएं तो क्या होगा. हमारे देश में बहुत सी लड़कियों का ऐसा गिरोह है जो लड़कों को अपने जाल में फंसाकर उनसे पैसे लूट रही हैं. लड़के लड़कियों के इस जाल में बहुत ही जल्दी फंस जाते हैं.

अब एक नया मामला सामने आया है. इसमें समीर नाम के एक लड़के ने पुलिस को बताया कि रात को WhatsApp पर एक लड़की ने मुझे मैसेज किया और उसने मुझे एक सुनसान जगह पर बुलाया. सुनसान जगह पर बुलाने के बाद वहां पर लड़की ने अपने 5 लोगों को और बुला लिया और उन सभी ने उस लड़के के साथ लूटमार की और उसके सारे पैसे ले गए.

पुलिस ने जब छानबीन की तो पता चला कि कविता और उसकी छोटी बहन लड़कों को WhatsApp पर मैसेज करके सुनसान जगह पर बुलाती थी और वहां पर पहले से ही उनके लोग मौजूद होते थे. जब लड़का लड़की को किस करने लग जाता तो यह लोग उनका वीडियो बना लेते और फिर इन्हें ब्लैकमेल करके इनसे पैसे वगैराह ले लेते.

जब छात्र जिंदगी में खुदकुशी के बन जाए चश्मदीद

वैसे तो हिंदी वैब सीरीज ‘फ्लेम्स’ जवान होते स्कूली छात्रों के पहले प्यार और रोमांस पर बनी है, पर इस में एक सीन बड़ा झकझोर देने वाला है, जिस में मेन किरदार रजत उर्फ रज्जो का बड़ा भाई इंजीनियरिंग के अपने एक सैमेस्टर के बीच में ही घर आ जाता है और जब उस के सब्र का बांध टूट जाता है, तब वह अपने पिता को बताता है कि उस के खास दोस्त ने होस्टल में खुदकुशी कर ली है और यह बात उस के दिमाग से निकल नहीं रही है.
ऐसा नहीं है कि होस्टल में किसी छात्र की खुदकुशी कोई नई बात हो, बल्कि आएदिन हम असली जिंदगी में भी खबरें पढ़ते रहते हैं कि तनाव के चलते फलां कालेज के लड़के या लड़की ने खुदकुशी कर ली.
साल 2022 के आखिरी महीने में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के कमलापुर कसबे में बने राजा बहादुर सूर्य बख्श सिंह इंटर कालेज की 3 छात्राओं द्वारा एक हफ्ते के अंदर खुदकुशी किए जाने के मामले से पूरे इलाके में सनसनी मच गई थी.
नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में देश में 11,396 बच्चों ने खुदकुशी की थी, जो साल 2019 के मुकाबले 18 फीसदी ज्यादा थी. साल 2019 में 9,613 जबकि साल 2018 में 9,413 बच्चों ने खुदकुशी की थी.
ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं, लेकिन बतौर आम आदमी पहले तो हम सब लोग उस इनसान के प्रति हमदर्दी जताते हैं, जो अपनी जान अपनी नासमझी की वजह से गंवा देता है और फिर उस के परिवार के लिए अफसोस करते हैं कि उन की जिंदगी तो जीतेजी नरक हो गई, पर हमारा ध्यान कभी उन हमउम्र छात्रों की तरफ नहीं जाता है, जो इस तरह की बेदर्द मौत के चश्मदीद बनते हैं.
ऐसे बच्चों पर क्या बीतती होगी, जो अपने रूम पार्टनर को फांसी से झूलते या हाथ की कटी नस से बेसुध बिस्तर पर पड़े या फिर इमारत की छत से छलांग लगाते देख लेते हैं?
एक ऐसे ही छात्र की आपबीती सुनते हैं. हरियाणा के फरीदाबाद शहर में रहने वाले दीपक (बदला नाम) कुरुक्षेत्र से अपनी पढ़ाई कर रहे थे. वहां उन के होस्टल के सामने एक तिमंजिला इमारत में भी कई छात्र किराए पर रहते थे.
दीपक ने उस खौफनाक मंजर के बारे में बताया, ‘‘एक दिन हम कुछ छात्र अपने होस्टल की छत पर बैठे थे. सामने उस इमारत की छत के किनारे एक लड़का खड़ा था, जिस ने देखते ही देखते छलांग लगा दी. यह देख कर हमारी तो ऐसीतैसी हो गई कि अभी तो अच्छाभला खड़ा था और एकदम से कूद गया.
‘‘हम सब ने हल्ला मचा दिया कि ‘सुसाइड कर लिया, सुसाइड कर लिया’. फिर उसे अस्पताल ले जाया गया, पर उसे बचाया नहीं जा सका. इसी बीच उस लड़के के एक दोस्त ने बताया कि वह डिप्रैशन में था. उस के कुछ पेपर क्लियर नहीं हुए थे और पैसे के मामले में भी वह एक गरीब घर का लड़का था.
‘‘सच कहूं, तो वह कांड देख कर मैं ने सोच लिया था कि अब कालेज नहीं जाऊंगा. उसी समय मैं ने अपने मम्मीपापा को फोन कर के बताया कि मैं अभी घर आ रहा हूं, पर उन्होंने कहा कि घबराओ मत और कल आ जाना.
‘‘मैं रुक तो गया, पर अगले 2 दिन तक होश सा खो दिया था. बारबार उस लड़के की सड़क पर पड़ी लाश ही मेरे दिमाग में घूम रही थी. घर आने के बाद ही मैं अपने घर वालों की मदद से यह बात भूल पाया.’’
कालेज लाइफ में छात्र अपनी उम्र के उस पड़ाव पर होते हैं, जहां उन्हें अच्छेबुरे की उतनी समझ नहीं होती है. घर से दूर वे अपने अकेलेपन को दूर करने या पढ़ाई के बोझ के चलते कई बार नशे के चक्कर में पड़ जाते हैं और अपनी जिंदगी को और मुश्किल कर लेते हैं. गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड से रिलेशनशिप टूटने को वे इस कदर दिल से लगा लेते हैं कि उन्हें अपनी जान भी बोझ लगने लगती है.
बहुत से छात्र तो पढ़ाई ढंग से न कर पाने या पैसे की कमी या फिर जातिवाद की वजह से इतने ज्यादा तनाव में आ जाते हैं कि खुदकुशी करना ही उन्हें सब से बेहतर लगता है.
वजह कोई भी हो, पर खुदकुशी करना किसी समस्या का हल नहीं है. लेकिन कोई अगर ऐसा कर लेता है, तो वह तो इस दुनिया से चला जाता है, पर उन दूसरे लोगों को अनचाहा दुख दे जाता है, जो उस की मौत के चश्मदीद होते हैं.
दीपक ने अपने हालात के बारे में बताया, ‘‘मैं ने खुद को अपने दोस्तों के साथ रह कर संभाला. आप पार्टी कर के, कोई गेम खेल कर या कहीं घूम कर अपनेआप को संभाल सकते हैं.’’
यह सच है कि इस तरह के भयानक हादसों को भूलना आसान नहीं होता है, पर जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए ऐसा करना जरूरी होता है.
मनोवैज्ञानिक डाक्टर पुलकित शर्मा ने इस सिलसिले में बताया, ‘‘जब हम छात्र जीवन में अपने आसपास किसी और छात्र को खुदकुशी करते देखते हैं, तो हमारा मन बहुत ही ज्यादा डर और दुख से भर जाता है. डर यह नहीं होता कि उस का भूत वहां पर घूमेगा, जैसे कि लोग कहते हैं, पर डर इस चीज से होता है कि जब हमारी उम्र का कोई हिम्मत हार गया तो कहीं हम भी हिम्मत न हार जाएं.
‘‘छात्र जीवन में तो दुख, तकलीफ, दबाव, पढ़ाई ठीक से न कर पाना, प्यार में धोखा खाना, यह सब तो चलता ही रहता है, लेकिन कभी हौसला नहीं हारना चाहिए.
‘‘लेकिन, जब कोई ऐसे हादसों को अपनी आंखों से देख लेता है, तो उसे अपने मन में उठने वाली डर की भावनाओं को अपने अच्छे दोस्त या परिवार वालों से शेयर करना चाहिए. बातचीत से मन हलका होता है, जबकि मन में ऐसी बातें रखने से और ज्यादा घबराहट होगी.
‘‘अपनी जिंदगी को कभी शौर्ट टर्म विजन से मत देखिए. छात्र जीवन तो हमारी जिंदगी का एक छोटा सा हिस्सा है. अगले 10-15 साल के बाद तो याद भी नहीं रहेगा कि पढ़ाई के दौरान क्या हुआ था. अगर छात्र जीवन में आप
को कभी हारना भी पड़ जाता है, तो
उसे मुसकराहट के साथ स्वीकार करें. हम इनसान हैं और हम से गलती हो सकती है.
‘‘इस के अलावा आप एक बैलेंस्ड लाइफ जिएं. ज्यादा देर तक मत जागें. नशे से दूर रहें. साथ ही, अपने खानेपीने का भी ध्यान रखें. खुद को दिमागी तौर पर मजबूत करें. अच्छी किताबें और पत्रिकाएं पढ़ें. अपनी पसंद का कोई काम जरूर करें. दोस्तों से मिलें. परिवार और वार्डन को अपनी समस्या जरूर बताएं और धीरेधीरे उस कांड को भूलने की कोशिश करें.’’

दोस्ती के दम पर कर डाला गंदा काम

महेश उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के कस्बा बिंदकी का एक दबंग किसान था. स्थानीय राजनीति में भी उस की अच्छी पकड़ थी. वह एक बार का प्रधान भी रह चुका था. उस की 4 बेटियां थीं, जिन में नीलम सब से छोटी थी. नीलम के अलावा वह तीनों बेटियों का विवाह कर चुका था. सब से छोटी होने की वजह से थोड़ा चंचल स्वभाव की नीलम घर में सब की लाडली थी. वह शादी लायक हुई तो महेश ने सन 2006 में जिला कानपुर के गांव रघुनाथपुर के रहने वाले जगदेव कुशवाहा के बेटे पिंटू से उस की शादी कर दी. पिंटू अपने पिता के साथ खेतीकिसानी करता था.

पिंटू खूबसूरत पत्नी पा कर खुद को बहुत खुशकिस्मत समझ रहा था. जबकि नीलम दुबलेपतले और सांवले रंग के पिंटू को पा कर अपने को बदकिस्मत समझ रही थी. नीलम सुंदर होने के साथ तेजतर्रार भी थी, इसलिए पिंटू उस से दबादबा सा रहता था और उस की हर बात मानता था. कुछ ही दिनों बाद नीलम पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी.

पिंटू बहुत मेहनती था. वह सुबह 8-9 बजे खेतों पर चला जाता था तो शाम को ही घर लौटता था. वह नीलम को खुश रखने की हरसंभव कोशिश करता था, लेकिन तुनकमिजाज नीलम उस से खुश नहीं रहती थी. कभी वह कम कमाई का रोना रोती तो कभी अपने भाग्य को कोसती. दरअसल, नीलम ने हृष्टपुष्ट, सुंदरसजीले पति के सपने संजोए थे, लेकिन मिला उस के एकदम उलट था. वह उसे किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं कर पाता था. इस तरह जैसेजैसे उस के साथ नीलम की जिंदगी कट रही थी.

पिंटू का एक दोस्त था इंद्रपाल. वह पड़ोसी गांव लालपुर का रहने वाला था और वह हैंडपंप लगवाने के ठेके लेता था. हृष्टपुष्ट शरीर का इंद्रपाल मजाकिया स्वभाव का था. पिंटू को जब भी फुरसत मिलती तो वह इंद्रपाल के गांव पहुंच जाता. वहां दोनों साथ खातेपीते और खूब बातें करते. पहले पिंटू शराब नहीं पीता था, लेकिन नीलम के बर्ताव से दुखी हो कर वह शराब पीने लगा था. धीरेधीरे वह शराब का लती बन गया था. एक दिन पिंटू के घर का हैंडपंप खराब हो गया तो मरम्मत के लिए उस ने इंद्रपाल को बुला लिया. पिंटू की शादी के बाद इंद्रपाल उस दिन पहली बार पिंटू के घर आया था. शादी के बाद नीलम के रूपरंग में और निखार आ गया था. इंद्रपाल ने नीलम को देखा तो वह उस की आंखों में रचबस गई.

हैंडपंप ठीक होने के बाद नीलम इंद्रपाल को पैसे देने लगी तो इंद्रपाल ने पैसे नहीं लिए. उस ने कहा, ‘‘भाभी, पिंटू मेरा दोस्त है, फिर पैसे किस बात के. आप बहुत सुंदर हैं. एक बार देख कर मुसकरा देंगी तो हम समझेंगे कि पैसा मिल गया.’’

अपने रूप की तारीफ सुन कर नीलम इंद्रपाल को गौर से निहारने लगी. फिर मुसकरा कर अपना सिर नीचे कर लिया. दिल में नीलम को बसा कर इंद्रपाल भी वहां से चला गया. इस के बाद इंद्रपाल और पिंटू जब कभी मिलते, पिंटू उसे घर ले आता. इंद्रपाल चाहता भी यही था.

नीलम को आकर्षित करने के लिए वह कभी उस के लिए साड़ी ले आता तो कभी साजशृंगार का सामान. थोड़ी नानुकुर के बाद नीलम यह स्वीकार कर लेती. पिंटू को खुश करने के लिए वह उस के साथ शराब पार्टी करता था. इंद्रपाल की आमदनी अच्छी थी इसलिए वह खूब खर्च करता था. कभीकभी वह नीलम को भी हजार-5 सौ रुपए दे देता था. इस तरह नीलम का झुकाव उस की तरफ होता गया. इंद्रपाल अब पिंटू की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आने लगा.

जून की तपती दोपहर में एक दिन इंद्रपाल नीलम के घर पहुंचा. नीलम उस समय कमरे में सो रही थी. गरमी अधिक होने की वजह से नीलम सिर्फ पेटीकोटब्लाउज पहने हुए थी. आसपास सन्नाटा पा कर इंद्रपाल नीलम के घर पहुंचा तो उस का कमरा बंद था, मगर खिड़की खुली हुई थी.

अविवाहित इंद्रपाल ने खिड़की से कमरे में झांका तो अस्तव्यस्त कपड़े में सो रही नीलम को देख कर वह बेकाबू हो उठा. पेटीकोट से बाहर झांकती नीलम की अधखुली टांगें तथा उफनते वक्षस्थल देख कर इंद्रपाल की धड़कनें बढ़ गई. उस ने दरवाजा खटखटाया तो नीलम की आंख खुल गईं.

नीलम ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने मंदमंद मुसकराते इंद्रपाल को देख कर वह शर्म की वजह से चारपाई की तरफ बढ़ी. उस ने चारपाई पर रखी साड़ी लपेटनी चाही पर इंद्रपाल ने उस की साड़ी एक तरफ फेंक कर दरवाजा भीतर से बंद कर दिया. इस के बाद उस ने नीलम को अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘कब तक तरसाओगी भाभी?’’

इस के बाद इंद्रपाल ने नीलम के बदन को चूमना शुरू कर दिया. नीलम ने उस का कोई विरोध नहीं किया तो इंद्रपाल ने उस के बचे हुए कपड़े भी उतार दिए. नीलम भी उस से लिपट गई और चंद मिनटों में उन्होंने सारी मर्यादाएं तोड़ दीं. इस के बाद अवैध संबंधों का यह खेल आए दिन खेला जाने लगा.

पिंटू अपनी पत्नी के प्रेमप्रसंग से बिलकुल अनजान था. लेकिन पासपड़ोस के लोगों में इंद्रपाल और नीलम के नाजायज संबंधों को ले कर चर्चा होने लगी थी. पर उन दोनों ने इस की परवाह नहीं की. इंद्रपाल नीलम का दीवाना था तो नीलम उस की मुरीद. धीरेधीरे इंद्रपाल उस पर अपना अधिकार समझने लगा.

एक दिन पिंटू ने नीलम से कहा कि वह बीजखाद के लिए कानपुर जा रहा है. वह रात में नहीं आ पाएगा. अगले दिन शाम तक ही लौट सकेगा. उसे किसी चीज की जरूरत हो तो बता दे, वह इंतजाम कर जाएगा.

नीलम बोली, ‘‘घर पर सब सामान है. तुम चिंता मत करो. अगर सिद्धनाथ मंदिर जाओ तो वहां से हमारे लिए प्रसाद जरूर ले आना.’’

पिंटू चला गया. उस के जाते ही उस ने इंद्रपाल को फोन कर के पति के कानपुर जाने की बात कह कर उसे रात में घर आने को कह दिया. पर पिंटू कानपुर गया ही नहीं था. दरअसल जब वह घाटमपुर स्टेशन पर पहुंचा तो उसे गांव का गिरिंदपाल मिल गया.

उस ने बताया कि वह खाद लेने कानपुर गया था, लेकिन गोदाम में स्टाक नहीं है. 2-4 दिनों बाद ही खादबीज आएगा. गिरिंद की बात सुन कर पिंटू ने कानपुर जाने का इरादा छोड़ दिया और घाटमपुर स्थित ऐतिहासिक शिवमंदिर चला गया. वहां दर्शन कर के वह प्रसाद ले आया.

पिंटू रात 9 बजे घर पहुंचा, उस समय नीलम इंद्रपाल की बांहों में समाई बेसुध पड़ी थी. पिंटू ने खिड़की से यह सब देखा तो आगबबूला हो उठा. उसे अपने दोस्त से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. लेकिन सोचविचार के बाद उस ने खून का घूंट पी कर चुप रहना ही उचित समझा. उस ने सोचा कि इतनी रात को वह घर में कलह करेगा तो पूरा मोहल्ला जाग जाएगा, जिस से बदनामी उसी की होगी.

पिंटू पंचायत घर गया और वहां पड़े तख्त पर लेट गया. रात भर वह सो नहीं सका. सारी रात करवटें बदलता रहा. सवेरे वह उठा और इंद्रपाल के घर पहुंच गया. इंद्रपाल उस का तमतमाया चेहरा देख कर समझ तो गया कि शायद उसे उस पर शक हो गया है लेकिन खुद को सामान्य रखते हुए उस ने पूछा, ‘‘पिंटू भैया, आज सवेरेसवेरे?’’

‘‘हां इंद्रपाल, बात ही ऐसी है कि आना पड़ा.’’ पिंटू ने कहा.

‘‘मेरे लायक कोई काम?’’ इंद्रपाल ने पूछा.

‘‘आओ, मेरे साथ चलो, कहीं एकांत में बैठ कर बातें करते हैं.’’ पिंटू ने कहा.

इंद्रपाल उस के साथ चल पड़ा. गांव से बाहर निकल कर दोनों बंबा की पुलिया पर बैठ गए तो पिंटू ने पूछा, ‘‘आजकल मेरी पत्नी तुम पर काफी मेहरबान है?’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’ इंद्रपाल ने अनजान बनते हुए कहा.

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो.’’ पिंटू ने कहा.

‘‘इतना नाराज क्यों हो रहे हो भैया?’’

‘‘कल रात तुम कहां थे?’’

‘‘अपने घर पर.’’

‘‘सफेद झूठ.’’

इंद्रपाल ने सिर झुका कर मौन साध लिया. उसे इस तरह देख कर पिंटू होंठ चबाते हुए बोला, ‘‘तू मेरा दोस्त नहीं होता तो मैं तुझे कल रात तब ही कुल्हाड़ी से काट डालता, जब तू नीलम के साथ था. अब तू अगर अपनी खैर चाहता है तो ध्यान रखना कि फिर कभी मेरे घर की ओर भूल कर भी कदम मत रखना, वरना मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

इंद्रपाल को खरीखोटी सुना कर पिंटू अपने घर पहुंचा और पत्नी की जम कर पिटाई की. नीलम और इंद्रपाल को चेतावनी देने के बाद पिंटू शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. पत्नी की बेवफाई से वह बुरी तरह टूट गया. उस ने दाढ़ीमूंछ बढ़ा ली और नशे का लती बन गया.

दूसरी ओर नीलम और इंद्रपाल ने एकदूसरे से मिलनाजुलना तथा बोलना बंद कर दिया. पिंटू और इंद्रपाल की दोस्ती में दरार पड़ गई थी. लेकिन यह दरार ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. वजह यह कि पिंटू को पीनेखाने की दिक्कत होने लगी थी क्योंकि उस के पीनेखाने पर इंद्रपाल ही खर्च करता था.

अपनी इन्हीं मजबूरियों के चलते पिंटू ने इंद्रपाल से फिर से दोस्ती कर ली. दोनों साथ बैठ कर फिर खानेपीने लगे. इंद्रपाल ने वादा किया कि वह नीलम को अब कभी बुरी नीयत से नहीं देखेगा. लेकिन वह ज्यादा दिनों तक अपना वादा नहीं निभा सका और नीलम से लुकछिप कर मिलने लगा.

लेकिन सावधानी बरतने के बावजूद नीलम का कारनामा छिपा न रह सका. इस बार नीलम और इंद्रपाल को पड़ोसन सावित्री ने रंगेहाथों पकड़ लिया. सावित्री ने यह बात पिंटू को बताई तो उस का खून खौल उठा. उस ने नीलम की जम कर पिटाई कर दी.

पिंटू एक तरफ अपने गद्दार दोस्त से परेशान था तो दूसरी ओर पत्नी से, जो उस की आंखों में धूल झोंक कर रंगरलियां मना रही थी. आखिर जब बात पिंटू की बरदाश्त के बाहर हो गई तो उस ने गद्दार दोस्त इंद्रपाल को सबक सिखाने का फैसला कर लिया.

इंद्रपाल को सबक सिखाने के लिए पिंटू ने लालपुर गांव निवासी मोहनलाल गुप्ता से बात की. मोहनलाल ने पहले तो नानुकुर की, लेकिन बाद में पिंटू का साथ देने को तैयार हो गया. दरअसल, मोहनलाल का झगड़ा अपने भाई राजेंद्र से होता रहता था. वह झगड़ा पैतृक संपत्ति के बंटवारे को ले कर था.

इस झगड़े में इंद्रपाल राजेंद्र का साथ देता था, जिस से मोहनलाल इंद्रपाल से रंजिश रखता था. इसी कारण पिंटू ने जब इंद्रपाल को ठिकाने लगाने की बात मोहनलाल से की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गया.

पहले से तैयार योजना के तहत पिंटू 12 फरवरी, 2017 की शाम इंद्रपाल से मिला. उस ने कहा, ‘‘इंद्रपाल, आज मेरा मूड ठीक नहीं है. सिर और बदन में दर्द हो रहा है. मन में अजीब सी बेचैनी है.’’

इंद्रपाल खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘दोस्त, तुम्हारे मर्ज की दवा मेरे पास है. उस से सिरदर्द भी गायब हो जाएगा और मूड भी ठीक हो जाएगा. 2 पैग लगाते ही हवा में उड़ने लगोगे.’’

इस के बाद इंद्रपाल ने पिंटू के साथ शराब पी. वहां से वापस लौटते समय दोनों बंबा की पुलिया पर बैठ गए. उसी समय मोहनलाल आ गया. मोहनलाल ने इंद्रपाल से तो बात नहीं की, लेकिन पिंटू से बातें करने लगा. इसी बीच मौका पा कर पिंटू ने इंद्रपाल को दबोच लिया.

इंद्रपाल ने छूटने की कोशिश की तो मोहनलाल उस पर टूट पड़ा और लातघूंसों से मारमार कर उसे पस्त कर दिया. हिम्मत कर के इंद्रपाल जान बचा कर भागा, लेकिन कदमों ने उस का साथ नहीं दिया और सरसों के खेत में गिर पड़ा. उसी समय मोहनलाल ने इंद्रपाल को दबोच लिया तो पिंटू ने तेज धार वाले चाकू से उस का गला रेत दिया. उन्होंने इंद्रपाल का धड़ तो वहीं खेत में छोड़ दिया, लेकिन उस के सिर को ले जा कर एक किलोमीटर दूर रायपुर गांव निवासी राकेश वाजपेयी के मटर के खेत में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए.

सुबह लालपुर का रामू तेली अपने खेत पर पहुंचा तो उसे पड़ोसी के खेत में किसी का धड़ पड़ा दिखाई दिया. उस ने यह जानकारी गांव वालों को दी तो गांव के तमाम लोग इकट्ठा हो गए. इसी बीच किसी ने थाना घाटमपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी अजय कुमार यादव पुलिस फोर्स के साथ लालपुर पहुंच गए.

अजय कुमार यादव ने वारदात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी और जांच में जुट गए. सरसों के खेत में एक युवक की सिरविहीन लाश पड़ी थी. उस के सिर का पता नहीं था. थानाप्रभारी सिर की तलाश में जुट गए. वहां मौजूद गांव के कुछ लड़के भी सिर खोजने लगे.

दोपहर 12 बजे के करीब अजय कुमार यादव को सूचना मिली कि पड़ोसी गांव रायपुर में राकेश वाजपेयी के मटर के खेत में किसी का कटा सिर पड़ा है. सूचना पाते ही वह रायपुर पहुंचे और राकेश वाजपेयी के मटर के खेत से कटा सिर बरामद कर लिया. सिर और धड़ को जोड़ा गया तो लालपुर गांव के लोग चौंके. वहां मौजूद रामपाल फूटफूट कर रोने लगा. उस ने बताया कि यह लाश उस के भाई इंद्रपाल की है.

उसी समय एसपी ग्रामीण राजेश कुमार सिंह भी आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतक के घर वालों से बात की. चूंकि लाश की शिनाख्त हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. अजय कुमार यादव ने मृतक के भाई रामपाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गांव का मोहनलाल गुप्ता इंद्रपाल से रंजिश रखता था. शक है कि उसी ने इंद्रपाल की हत्या की है. शक के आधार पर पुलिस ने मोहनलाल गुप्ता को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई लेकिन उस ने हत्या से साफ इनकार कर दिया.

16 फरवरी, 2017 को पुलिस ने पुन: मोहनलाल से सख्ती से पूछताछ की. इस बार पुलिस की सख्ती से मोहनलाल टूट गया और इंद्रपाल की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि रघुनाथपुर निवासी पिंटू की पत्नी नीलम से इंद्रपाल के नाजायज संबंध थे. पिंटू के कहने पर उस ने उस की हत्या की थी.

मोहनलाल के बयानों के आधार पर पुलिस ने पिंटू को भी हिरासत में ले लिया. पिंटू ने जब थाने में मोहनलाल को देखा तो अपना अपराध स्वीकार कर लिया. चूंकि दोनों ने अपराध स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मृतक के भाई रामपाल की ओर से इंद्रपाल की हत्या का मुकदमा मोहनलाल और पिंटू के खिलाफ दर्ज कर लिया और पिंटू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू बरामद करा लिया, जिसे उस ने अपने खेत में छिपा दिया था.

17 फरवरी, 2017 को थाना घाटमपुर पुलिस ने पिंटू और मोहनलाल को कानपुर की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हिम्मत ने दिलाई वरदी वालों को सजा

बीकौम की छात्रा स्मिता भादुड़ी न तो कोई पेशेवर अपराधी थी और न ही किसी थाने में उस के खिलाफ कोई केस दर्ज था. उस का गुनाह महज इतना था कि वह अपने दोस्त के साथ कार में बैठ कर बातें कर रही थी. बदमाशों की सूचना पर वहां पहुंचे तथाकथित बहादुर पुलिस वालों ने जोश में आ कर सरकारी असलहे से गोलियां दाग दीं. एक गोली ने स्मिता का सीना चीर दिया.

पुलिस वालों ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उन के सिर पर ऐनकाउंटर के बदले मैडल और प्रमोशन पाने का जुनून सवार था. बेगुनाह छात्रा की हत्या का मामला सीबीआई को दिया गया. आखिरकार 3 पुलिस वालों को कुसूरवार मान कर उन्हें माली जुर्माने के साथसाथ उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

इसे लाचारी, इंसाफ की राह में कानूनी दांवपेंच की चाल कहें या कुछ और, अपनी होनहार बेटी स्मिता को खो चुके परिवार को इंसाफ के लिए 15 साल का लंबा, थकाऊ और पीड़ा देने वाला इंतजार करना पड़ा.

ऐनकाउंटर में शामिल पुलिस वाले इस दौरान न केवल आजाद रहे, बल्कि बचने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपनाते रहे. इतना ही नहीं, लंबे वक्त में मजे से नौकरी कर के वे अपने पदों से रिटायर भी हो गए.

पुलिस के डरावने चेहरे से रूबरू हुए स्मिता के परिवार के दर्द का हिसाब शायद कोई कानून नहीं दे सकता है. कुसूरवार पुलिस वाले अब सलाखों के पीछे हैं.

इस मामले से सीख भी मिलती है कि किसी की जान की कीमत पर मैडल व प्रमोशन पाने की ख्वाहिश देरसवेर सलाखों के पीछे पहुंचा कर भविष्य अंधकारमय भी कर देती है.

-यों मारी गई होनहार छात्रा

स्मिता ऐनकाउंटर मामला रोंगटे खड़े कर देता है. स्मिता भादुड़ी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की मोदी कालोनी में रहती थी. उस के पिता एसके भादुड़ी मोदी कंपनी में बतौर इंजीनियर थे. उन के परिवार में पत्नी प्रतिमा के अलावा 2 बेटियां थीं, बड़ी प्रीति और छोटी स्मिता. उन का एक बेटा सुप्रियो भी था.

21 साला स्मिता बीकौम के आखिरी साल की छात्रा थी. स्मिता की दोस्ती मोहित त्योगी से थी. दोनों के बीच मुलाकातें होती रहती थीं. साल 2000 में 14 जनवरी की सर्द शाम थी वह. स्मिता अपने घर से मोहित से मिलने के लिए निकली. वे दोनों कार नंबर यूपी15जे-0898 से घूमने निकल गए.

दिल्लीदेहरादून हाईवे से सटे गांव सिवाया की कच्ची सड़क पर कार रोक कर वे बातें करने लगे. वहां कार खड़ी देख किसी ने बदमाश होने के शक में पुलिस को खबर दे दी.

इसी बीच शाम के तकरीबन साढ़े 7 बजे इलाकाई थाना दौराला इंस्पैक्टर अरुण कौशिक, सिपाही भगवान सहाय व सुरेंद्र के साथ जीप ले कर वहां पहुंच गए. उन्होंने सोचा कि कोई बड़ा गैंग होगा. अपने पीछे पुलिस की गाड़ी देख मोहित ने कार आगे बढ़ा दी. इस पर पुलिस वालों ने पीछा करते हुए एकसाथ 11 गालियां दाग दीं. गोलियां कार पर भी लगीं और एक गोली ने स्मिता के सीने को चीर दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

बुरी तरह घबराया मोहित कार रोक कर सरैंडर करने की मुद्रा में फौरन बाहर आ गया. पुलिस वालों ने उसे पीटपीट कर दोहरा कर दिया. इस बीच इंस्पैक्टर अरुण कौशिक ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी थी कि बदमाशों से मुठभेड़ हो गई है और दोनों तरफ से गोलीबारी हो रही है.

मौके पर पहुंचे तब के एसएसपी आरपी सिंह को भी गुमराह करने की कोशिश की गई, लेकिन दहशतजदा मोहित की जबानी हकीकत खुलते ही सभी के होश उड़ गए.

छींटदार सलवारसूट व सफेद रंग का कार्डिगन पहने खून से लथपथ स्मिता कार की सीट पर पड़ी थी. नासमझी का परिचय दे कर इंस्पैक्टर ने खून से अपने हाथ रंग लिए थे. बेगुनाह छात्रा की मौत पर तीनों पुलिस वालों को फौरन सस्पैंड कर दिया गया.

जिन दिनों यह ऐनकाउंटर हुआ था, उन दिनों पुलिस वालों के सिर पर जुनून सवार था कि ऐनकाउंटर करो और प्रमोशन पाओ. दरअसल, पुलिस की नौकरी में थोड़ी बहादुरी से प्रमोशन पा लिया जाता था. इंस्पैक्टर अरुण कौशिक भी इसी फोबिया के शिकार थे. पुलिस ने समझदारी दिखाई होती, तो स्मिता आज जिंदा होती.

चश्मदीद गवाह मोहित की तरफ से इंस्पैक्टर अरुण कौशिक, सिपाही भगवान सहाय व सुरेंद्र के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. खाकी पर खून के छींटे लगने का मामला तूल पकड़ गया. तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

-इंसाफ की लंबी लड़ाई

यह मामला उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंचा, तो केस सीबीआई को चला गया. सीबीआई 3 साल तक जांच करती रही. इस बीच तीनों आरोपी जेल से छूट गए और बहाली पा कर नौकरी करने लगे. इतना ही नहीं, इंस्पैक्टर अरुण कौशिक सीओ भी बन गए.

केस वापस लेने के लिए सीबीआई ने 26 फरवरी, 2004 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. अदालत में सुनवाई कई साल चलती रही. आरोपी पुलिस वालों ने पीडि़त परिवार पर कई तरह से दबाव बनाया. मोहित को डरायाधमकाया गया, लेकिन इंसाफ की आस में उस ने हार नहीं मानी. तीनों आरोपियों ने मामले को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट से स्टे ले लिया और मजे से नौकरी की.

आरोपियों ने कानूनी हथकंडे अपना कर अदालत बदलने की मांग की और कई सुनवाई पर पेश नहीं हुए. नौकरी कर के तीनों रिटायर भी हो गए.

सालों चले केस में गाजियाबाद स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने हत्या, जानलेवा हमले व मारपीट का कुसूरवार करार देते हुए आखिरकार 14 दिसंबर, 2015 को तीनों आरोपियों को उम्रकैद व डेढ़डेढ़ लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई.

जज नवनीत कुमार ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मामला विरल से विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है. वरिष्ठ लोक अभियोजन अधिकारी कुलदीप पुष्कर की इस मामले में अदालत में दी गई यह दलील माने रखती है कि पुलिस का काम कानून का पालन करना और कराना है. अगर पुलिस ही कानून का पालन न करे और कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी की हत्या कर दे, तो ऐसे हालात में समाज में दहशत फैलती है.

कुसूरवार पुलिस वालों पर आरोप साबित होने में 15 साल, 9 महीने और 16 दिन लग गए. सजा होते ही तीनों को डासना जेल भेज दिया गया.

-दर्द से गुजरा परिवार

बेटी की मौत से दुखी भादुड़ी परिवार जिस गम, दहशत और दर्द के दरिया से गुजरा, उस की भरपाई कानून की कोई धारा नहीं करती. पुलिस का घिनौना रूप आज भी उन्हें डराने का काम करता है. उन चंद लफ्जों ने इंजीनियर एसके भादुड़ी की दुनिया हिला दी थी, जब एक पुलिस अफसर ने उन से कहा, ‘आप की बेटी को पुलिस ने गलती से गोली मार दी है और उस की मौत हो गई है.’

उस रात की यादें कोई नहीं भुला पाता. सिरफिरे पुलिस वालों की करतूत से हंसतेखेलते परिवार पर स्मिता की मौत के साथ ही गम व मुसीबतों का पहाड़ टूट गया.

बेटी स्मिता की मौत के गम में मां प्रतिमा भादुड़ी डिप्रैशन में आ गईं. लाख समझाने पर भी वे बेटी का दर्द नहीं भुला सकीं. ज्यादा दवाओं के सेवन से उन का लिवर खराब हो गया. वे बीमार हुईं, तो इलाज कराया गया. परिवार माली रूप से परेशान हो गया. बाद में साल 2011 में उन की मौत हो गई.

स्मिता का भाई सुप्रियो ग्राफिक डिजाइनर है. दोनों बापबेटे अकेले रहते हैं. अदालत के फैसले से वे खुश तो हैं, लेकिन कहते हैं कि ऐसा करने वालों को फांसी होनी चाहिए थी.

-क्या सबक लेगी पुलिस

स्मिता का मामला उन पुलिस वालों के लिए एक सबक है, जो वरदी की हनक में बिना सोचेसमझे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में अव्वल दर्जा हासिल कर रही उत्तर प्रदेश पुलिस में ऐसे पुलिस वालों की एक बड़ी जमात है, जो गंभीर आरोपों से दामन दागदार किए हुए है. उन के कारनामे जनता में डर पैदा करते हैं.

पुलिस से आम आदमी कितना सुरक्षित महसूस करता है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी थाने में आने से डरते हैं. पुलिस अगर बेगुनाहों के खून से हाथ रंगने लगे, तो बात सोचने वाली हो जाती है. स्मिता का मामला सबक जरूर देता है कि गलत कामों की सजा देरसवेर मिलती जरूर है. इस मामले में पुलिस वाकई सबक लेगी, इस में शक है.

फिर वही अपराध : हैवानियत की इंतहा

26 नवंबर, 2016 की बात है. दोपहर के ढाई बजे थे. घड़ी पर जैसे ही मनोज कुमार की नजर पड़ी, उस के मुंह से ‘ओफ्फ…काफी देर हो गई’ की आवाज निकली. उसे कहीं जाना था, इसलिए वह फटाफट घर से निकल कर सवारी पकड़ने के लिए गांव से बाहर सड़क पर आ गया. सड़क पर पहुंच कर वह वाहन का इंतजार कर ही रहा था कि अचानक उस की नजर सड़क के बाईं पटरी पर सरपतों की झाड़ी में पहुंची. वहां पर एक लड़की की लाश पड़ी थी.

चूंकि मनोज केराकत कोतवाली का चौकीदार भी था, इसलिए वह जिज्ञासावश उस जगह पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थी.

उस लड़की की उम्र 10-12 साल लग रही थी. वह बैंगनी रंग का कढ़ाईदार सलवारसूट पहने हुई थी. उस का गला कटा हुआ था. लाश मिलने की सूचना कोतवाली में देना उस की जिम्मेदारी थी, इसलिए जिस जगह उसे जाना था, वहां न जा कर वह सीधे केराकत कोतवाली पहुंच गया. कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार को उस ने लड़की की लाश मिलने की जानकारी दे दी. उस ने यह भी बता दिया कि लाश गांव शिवरामपुर खुर्द के रहने वाले भीम सिंह के खेत के किनारे पर है.

मनोज की सूचना पर कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार फौरन पुलिस टीम के साथ मौके की तरफ रवाना हो गए. इस की जानकारी उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. घटनास्थल की दूरी केराकत कोतवाली से महज 12 किलोमीटर थी, इसलिए कुछ ही देर में वह मौके पर पहुंच गए.

तब तक लाश मिलने की जानकारी आसपास के क्षेत्रों में भी फैल गई थी, इसलिए वहां काफी संख्या में ग्रामीणों की भीड़ भी जुट गई थी. कोतवाली प्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया तो लग रहा था कि उस के साथ शायद दुराचार किया गया है. उसी दौरान क्षेत्राधिकारी (केराकत) राकेश पांडेय, उपजिलाधिकारी सहदेव मिश्रा भी वहां पहुंच गए. जितने लोग वहां खड़े थे, पुलिस ने उन सब से उस लड़की की शिनाख्त करानी चाही पर कोई भी उसे नहीं पहचान सका. तब पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

चौकीदार मनोज कुमार की तहरीर पर भादंसं की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मौके से मृतका या हत्यारे के बारे में कोई ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस के जरिए पुलिस आगे बढ़ सके. इस के बावजूद पुलिस अपने स्तर से ही केस की जांच करने लगी.

कोतवाली प्रभारी मृतका की पहचान को ले कर उलझे हुए थे. दूसरे दिन समाचारपत्रों में यह खबर प्रमुखता से छपी तो 28 नवंबर की शाम को वाराणसी के जैतपुरा थाना क्षेत्र से कुछ लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. उन्हें जब वह लाश दिखाई गई तो आजाद कुरैशी नाम के एक शख्स ने उस की पुष्टि अपनी बेटी मुसकान के रूप में की. कोतवाली पहुंच कर उस ने अपनी बेटी के कपडे़ भी पहचान लिए.

29 नवंबर को उस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में दुष्कर्म की भी पुष्टि हो गई. चूंकि मुसकान की रिपोर्ट भादंवि की धारा 363 के तहत जैतपुरा थाने में 26 नवंबर को दर्ज हुई थी. इसलिए एसएसपी नितिन तिवारी के निर्देश पर कोतवाली प्रभारी नरेंद्र कुमार ने यह केस थाना जैतपुरा को स्थानांतरित कर दिया.

अब जैतपुरा थानाप्रभारी रमेश यादव यह जानने में लग गए कि मुसकान का हत्यारा कौन है. इस संबंध में उन्होंने मुसकान के मातापिता से बात की तो मां रजिया सुलतान ने बताया कि पड़ोस के एक आदमी ने मोहल्ले के ही पप्पू गुप्ता के साथ मुसकान को मल्लाही बगीचे की तरफ जाते देखा था. पप्पू को गांव के सभी लोग जानते थे कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का है. इसलिए उन्हें बेटी को ले कर चिंता हुई. जब वह पप्पू के घर गईं तो वह नहीं मिला.

रजिया से बात करने के बाद थानाप्रभारी को भी पप्पू पर ही शक हो गया. पुलिस ने उस की तलाश के लिए मुखबिर भी सक्रिय कर दिए. पुलिस ने 29 नवंबर को ही मुखबिर की सूचना पर 30 वर्षीय पप्पू गुप्ता को दबोच लिया. वह कहीं भागने की फिराक में था.

जब पुलिस ने उस से मुसकान के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह बहुत देर तक टिक नहीं पाया और उस ने स्वीकार कर लिया कि मुसकान की हत्या उस ने ही की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह मानवता को शर्मसार करने वाली निकली. उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के जैतपुरा के अंतर्गत एक मोहल्ला है शक्कर तालाब. यहीं पर आजाद कुरैशी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रजिया सुलतान के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. आजाद कुरैशी मोहल्ले में ही चिकन की दुकान चलाता था.

घर के काम निपटाने के बाद रजिया घर में खाली रहती तो उस ने अखबार की थैलियां बनानी शुरू कर दीं. उस के पास थैलियों की मांग बढ़ने लगी तो कभीकभार बच्चे भी उस के काम में शरीक हो जाते थे. इस तरह इस काम से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

26 नवंबर का दिन था. सुबह के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे. रजिया घर के कामकाज में लगी हुई थी कि तभी उसी के मोहल्ले का पप्पू गुप्ता उस के दरवाजे पर आया. वह गली में घूमघूम कर हाथ ठेले पर मूंगफली के दाने, चने आदि बेचता था. उस के लिए वह थैलियां रजिया से ही ले जाता था. उस दिन भी वह थैलियां लेने आया था. जैसे ही पप्पू ने दरवाजा खटखटाया तो दरवाजे पर रजिया की ननद रेशमा आई. वह उस से बोली, ‘‘अभी थैलियां तैयार नहीं हैं. थोड़ी देर में हो जाएंगी.’’

इस पर वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 मिनट रुक जाता हूं. तैयार कर के दे दीजिए.’’ इतना कह कर वह वहीं रुक गया, जबकि रेशमा घर के अंदर चली गई. इतने में रजिया की 10 वर्षीय बेटी मुसकान घर का कूड़ा फेंकने के लिए बाहर निकली तो पप्पू ने उसे 10 रुपए दे कर नजदीक की दुकान से पान लाने को कहा.

पैसे ले कर मुसकान पान की दुकान की ओर गई तभी पीछेपीछे पप्पू भी हो लिया. चूंकि पप्पू के मन में कुछ और ही था, इसलिए वह मुसकान को पान की दुकान से बहलाफुसला कर अपनी स्कूटी पर बिठा कर वाराणसी से करीबन 45 किलोमीटर दूर जौनपुर जिले की केराकत कोतवाली क्षेत्र के एक खेत में ले गया. वहां डराधमका कर उस ने उस मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म किया फिर बाद में ब्लेड से उस का गला भी रेत डाला.

उस की हत्या करने के बाद वह स्कूटी से वाराणसी लौट आया था और छिपछिप कर लोगों पर नजर रखने लगा. जब उसे पता चला कि पुलिस उस के पीछे पड़ी है तो उसे वहां से कहीं भागना ही उचित लगा. लेकिन उस से पहले ही वह पुलिस के हाथ लग गया.

उधर मुसकान कूड़ा फेंकने के बाद भी घर नहीं आई तो रजिया उसे घर से बाहर देखने निकली. पर वह नहीं दिखी और न ही वहां पप्पू गुप्ता दिखा जो थैलियां लेने के इंतजार में दरवाजे के बाहर खड़ा था.

रजिया उसे पड़ोसियों के यहां खोजने गई, पर वह वहां भी नहीं मिली. बेटी की चिंता में रजिया की धड़कनें तेज होने लगीं. खबर मिलने पर रजिया का पति आजाद कुरैशी भी दुकान से घर चला आया.

वह भी परिवार और मोहल्ले के लोगों को ले कर आसपास बेटी की खोज में जुट गया लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चल पाया. उसी दौरान मोहल्ले के ही एक आदमी ने बताया कि मुसकान पप्पू के साथ कुछ देर पहले मल्लाही बगीचे की ओर जाते दिखी थी.

यह खबर मिलते ही रजिया और उस के पति ने पप्पू के घर का रुख किया. घर पर पप्पू तो नहीं मिला बल्कि उस की पत्नी नेहा (काल्पनिक नाम) मिली. उस ने बताया कि पप्पू घर पर नहीं है. वह सुबह से ही निकले हैं

पप्पू आपराधिक प्रवृत्ति का था. मोहल्ले के सभी लोग उसे अच्छी तरह जानते थे. सन 2004 में उस ने एक 7 साल की बच्ची के साथ रेप और हत्या की कोशिश की थी.

उस बच्ची के बयान के बाद उसे 10 साल की सजा हुई थी. वह 10 साल की सजा काट कर जेल से हाल ही में बाहर आया था. ऐसे में उस के साथ मुसकान के गायब होने से उस के परिवार वाले ही नहीं, बल्कि मोहल्ले के लोग भी परेशान और आशंकित थे.

अंत में सभी लोग एक राय हो कर सीधे जैतपुरा थाना पहुंच गए, जहां थानाप्रभारी रमेश यादव को पूरी बात बताने के साथ बेटी मुसकान का पता लगाने की गुहार लगाई. तब पुलिस ने 26 नवंबर को ही अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मामला दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद जैतपुरा थाना पुलिस मुसकान और पप्पू को तलाशने लगी. पर दोनों का ही पता नहीं लगा. मुसकान का पता न लगने पर मोहल्ले के लोगों में भी आक्रोश भर गया. लोगों ने पुलिस को आंदोलन करने की भी धमकी दे डाली.

तीसरे दिन सोमवार 29 नवंबर, 2016 को जैसे ही अखबारों के माध्यम से जौनपुर में बच्ची का शव पाए जाने की खबर आजाद कुरैशी को हुई तो वह परिजनों के साथ जौनपुर पहुंच गए. तब पता चला कि वह लाश किसी और की नहीं, बल्कि मुसकान की ही थी.

पप्पू गुप्ता से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 363, 366, 367(च), 302, आईपीसी व पोक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जहां उस की जमानत नहीं हो पाई थी, वहीं उस के किए पर उस के 2 छोटे भाई और पत्नी भी शर्मसार हैं. उन्हें मोहल्ले वालों के तानों से दोचार होना पड़ रहा है.

साहब की चतुराई: क्या था रामलाल का आइडिया?

तबादले पर जाने वाला नौजवान अफसर विजय आने वाले नौजवान अफसर नितिन को अपने बंगले पर ला कर उसे चपरासी रामलाल के बारे में बता रहा था. नितिन ने जब चपरासी रामलाल की फिल्म हीरोइन जैसी खूबसूरत बीवी को देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया. नितिन बोला, ‘‘यार, तुम्हारी यह चपरासी की बीवी तो कमाल की है. तुम ने तो इस के साथ खूब मजे किए होंगे?’’ ‘‘नहीं यार, ये छोटे लोग बहुत ही धर्मकर्म पर चलते हैं और इस के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ये लोग पद और पैसे के लिए अपनी इज्जत को नहीं बेचते हैं. मैं ने भी इसे लालच दे कर पटाने की खूब कोशिश की थी, मगर इस ने साफ मना कर दिया था.’’

यह सुन कर नितिन विजय की ओर हैरानी से देखने लगा.

नितिन को इस तरह देख विजय अपनी सफाई में बोला, ‘‘ये छोटे लोग हम लोगों की तरह नहीं होते हैं, जो अपने किसी काम को बड़े अफसर से कराने के लिए अपनी बहनबेटियों और बीवियों को भी उन के साथ सुला देते हैं. हमारी बहनबेटियों और बीवियों को भी सोने में कोई दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि वे तो अपने स्कूल और कालेज की पढ़ाई करते समय अपने कितने ही बौयफ्रैंड्स के साथ सो चुकी होती हैं.’’ इतना सुन कर नितिन मन ही मन  उस चपरासी की बीवी को पटाने की तरकीब सोचने लगा.

विजय से चार्ज लेने के बाद नितिन अपने सरकारी बंगले में रहने लग गया था. शाम को जब वह अपने बंगले पर आया, तो चपरासी रामलाल उस से बोला, ‘‘साहब, आप को शराब पीने का शौक हो तो लाऊं? पुराने साहब तो रोजाना पीने के लिए बोतल मंगवाते थे.’’

‘‘और क्याक्या मंगवाते थे तुम्हारे पुराने साहब?’’

चपरासी रामलाल बोला, ‘‘कालेज में पढ़ने वाली लड़की भी मंगवाते थे. वे पूरी रात के उसे 2 हजार रुपए देते थे.’’ ‘‘ले आना,’’ सुन कर नितिन ने उस से कहा, तो वह उन के लिए शराब की बोतल और उस लड़की को ले आया था.

उस लड़की और उस अफसर ने शराब पी कर रातभर खूब मजे किए. जाते समय नितिन ने उसे 3 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि वह चपरासी रामलाल से कहे कि तुम्हारे ये कैसे साहब हैं, जिन्होंने रातभर मेरे साथ कुछ किया ही नहीं था, बल्कि मुझे छुआ भी नहीं था, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए मुफ्त में दे दिए हैं.’’ उस लड़की ने चपरासी रामलाल से यह सब कहने की हामी भर ली. जब वह लड़की वहां से जाने लगी, तो चपरासी रामलाल से बोली, ‘‘तुम्हारे ये साहब तो बेकार ही रातभर लड़की को अपने बंगले पर रखते हैं, उस के साथ कुछ करते भी नहीं हैं, मगर फिर भी उस को पैसे देते हैं. तुम्हारे साहब का तो दिमाग ही खराब है.’’

यह सुन कर चपरासी रामलाल हैरान हो कर उस की ओर देखने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो रातभर मुझे छुआ भी नहीं, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए दे दिए हैं,’’ कह कर वह वहां से चली गई. उस लड़की की बातें सुन कर चपरासी रामलाल सोचने लगा था कि उस के अफसर का दिमाग खराब है या वे औरत के काबिल नहीं हैं, फिर भी उन्हें औरतों को अपने साथ सुला कर उन पर अपने पैसे लुटाने का शौक है. चपरासी रामलाल अपने कमरे पर आ कर बीवी सरला से बोला, ‘‘हमारे ये नए साहब तो बेकार ही अपने पैसे लड़की पर लुटाते हैं.’’ ‘‘वह कैसे?’’ सुन कर सरला ने रामलाल से पूछा, तो वह बोला, ‘‘कल रात को मैं साहब के लिए एक लड़की लाया था, लेकिन उन्होंने उस के साथ कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने उसे छुआ भी नहीं, मगर फिर भी उन्होंने उसे 3 हजार रुपए दे दिए.’’

यह सुन कर उस की बीवी सरला हैरानी से उस की ओर देखने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘क्यों न अपने इस साहब से हम पैसे कमाएं?’’ ‘‘वह कैसे?’’ सरला ने उस से पूछा, तो वह बोला, ‘‘तुम इस साहब के साथ सो जाया करो. यह साहब तुम्हारे साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मुफ्त में ही हम को पैसे मिल जाएंगे. उन पैसों से हम अपने लिए नएनए गहने भी बनवा लेंगे और जरूरत का सामान भी खरीद लेंगे.

‘‘मेरा कितने दिनों से नई मोटरसाइकिल खरीदने का मन कर रहा है, मगर पैसे न होने से खरीद ही नहीं पाता हूं. जब तुम्हें नएनए गहनों में नए कपड़े पहना कर मोटरसाइकिल पर बिठा कर अपने गांव और ससुराल ले जाऊंगा, तो वे लोग हम से कितने खुश होंगे. हमारी तो वहां पर धाक ही जम जाएगी.’’ ‘‘कहीं यह तुम्हारा साहब मुझ से मजे लेने लग गया तो…’’ खूबसूरत बीवी सरला ने अपना शक जाहिर किया, तो वह उसे तसल्ली देते हुए बोला, ‘‘तुम इस बात की चिंता मत करो. वह तुम से मजे नहीं लेगा.’’

पति रामलाल की इस बात को सुन कर बीवी सरला अपने साहब के साथ सोने के लिए तैयार हो गई. शाम को अपने साहब के लिए शराब लाने के बाद रात को चपरासी रामलाल ने अपनी बीवी सरला को उन के कमरे में भेज दिया. साहब जब उस पर हावी होने लगे, तो उसे बड़ी हैरानी हो रही थी, क्योंकि उस के पति ने तो उस से कहा था कि साहब उसे छुएगा भी नहीं, मगर उस का साहब तो उस पर ऐसा हावी हुआ था कि… रातभर में साहब ने उसे इतना ज्यादा थका दिया था कि वह सो न सकी. सरला को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन गुस्से को दबा कर मुसकराते हुए दूसरे दिन अपने पति से वह बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो मुझे छुआ भी नहीं. हम ने मुफ्त में ही उन से पैसे कमा लिए.’’ यह सुन कर उस का पति रामलाल अपनी अक्लमंदी पर खुशी से मुसकराने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘मुझे रातभर तुम्हारी याद सताती रही थी. क्यों न हम तुम्हारी बहन नीता को गांव से बुला कर तुम्हारे साहब के साथ सुला दिया करें. ‘‘तुम्हारा साहब उस के साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मिले पैसों से हम उस की शादी भी धूमधाम से कर देंगे.’’

यह सुन कर रामलाल बीवी सरला की इस बात पर सहमत हो गया. वह उस से बोला, ‘‘तुम इस बारे में नीता को समझा देना. मैं आज ही उसे फोन कर के बुलवा लूंगा.’’ शाम को जब चपरासी रामलाल की बहन नीता वहां पर आई, तो सरला उस से बोली, ‘‘ननदजी, तुम गांव के लड़कों को मुफ्त में ही मजे देती फिरती हो. किसी दिन किसी ने देख लिया, तो गांव में बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम यहीं रह कर हमारे साहब के साथ रातभर सो कर मजे भी लो और पैसे भी कमाओ.’’ यह सुन कर उस की ननद नीता खुशी से झूम उठी थी. रातभर वह साहब के साथ मौजमस्ती कर के सुबह जब उन के कमरे से निकली, तो बहुत खुश थी. साहब ने उसे 5 हजार रुपए दिए थे. कुछ ही दिनों में चपरासी रामलाल अपने लिए नई मोटरसाइकिल ले आया था और अपनी बीवी सरला और बहन नीता के लिए नएनए जेवर और कपड़े भी खरीद चुका था, क्योंकि उस के साहब अपने से बड़े अफसरों को खुश रखने के लिए उन दोनों को उन के पास भेजने लगे थे. एक दिन सरला और नीता आपस में बातें करते हुए कह रही थीं कि उन के साहब तो रातभर उन्हें इतने मजे देते हैं कि उन्हें मजा आ जाता है.

उन की इन बातों को जब चपरासी रामलाल ने सुना, तो वह अपने साहब की इस चतुराई पर हैरान हो उठा था. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. रामलाल ने सोचा कि जो हो रहा है, होने दो. उन से पैसे तो मिल ही रहे हैं. उन पैसों के चलते ही उस की अपने गांव और ससुराल में धाक जम चुकी थी, क्योंकि आजकल लोग पैसा देखते हैं, चरित्र नहीं.

एटीएम क्लोनिंग : लोग ठगे जा रहे हैं

पिछले दिनों खबर आई थी कि क्लोनिंग के डर से कई बैंकों ने अपने लाखों ग्राहकों के एटीएम कार्ड ब्लौक कर दिए हैं. खबर सुन कर हम ने भी एटीएम का रुख किया. पत्नी का कार्ड बच गया था, मगर अपना कार्ड ब्लौक मिला.

फिर क्या था, भागदौड़ शुरू हो गई. बैंक में जा कर नए एटीएम कार्ड के लिए अर्जी दी. इन पंक्तियों के लिखने तक तो नया एटीएम कार्ड मिल नहीं पाया था. बैंक वाले कह रहे हैं कि जल्द ही मिल जाएगा.

इस परेशानी के दौरान यों ही एटीएम क्लोनिंग के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई, तो जो जानकारी मिली, उस से बड़ी हैरानी हुई. हैरानी इसलिए, क्योंकि एटीएम क्लोनिंग करने वालों को पकड़ना भले ही मुश्किल हो, लेकिन एटीएम क्लोनिंग को ध्वस्त करना ज्यादा मुश्किल नहीं है, लेकिन फिर भी देशभर में हल्ला मचा हुआ है और लोग परेशान हैं.

साइबर माहिरों के मुताबिक, कोई भी जालसाज या हैकर एटीएम कार्ड की क्लोनिंग के लिए 2 जगहों पर काम करता है. ये जगह हैं:

1. एटीएम कार्ड मशीन के अंदर डालने वाली जगह.

2. एटीएम मशीन में कीबोर्ड के ऊपर वाली जगह.

साइबर माहिरों के मुताबिक, कार्ड की नकल बनाने के लिए जालसाज एटीएम कार्ड ऐंटर करने वाली जगह पर पोर्टेबल स्कैनर लगा देते हैं. ये स्कैनर इस तरह से बने होते हैं कि इन की बनावट एटीएम मशीन के कार्ड ऐंटर करने वाले हिस्से से बिलकुल मिलतीजुलती होती है, जिस से ज्यादातर लोग अंदाजा नहीं लगा पाते हैं कि वहां कोई स्कैनर भी लगा हुआ है.

जैसे ही कोई शख्स अपना कार्ड अंदर डालता है, वैसे ही उस का फोटो स्कैन हो जाता है, जिसे जालसाज एडीशनल ट्रैपिंग उपकरण के जरीए हासिल कर लेते हैं.

हम सभी जानते हैं कि एटीएम कार्ड का इस्तेमाल उस के पिन नंबर के बिना नहीं किया जा सकता है, इसलिए एटीएम पिन के बिना स्कैन किए गए फोटो की कोई अहमियत नहीं है, इसीलिए जालसाज एटीएम मशीन के कीबोर्ड के ठीक ऊपर कैमरा लगा देते हैं.

यह कैमरा भी ऐसा होता है, जिस के बारे में आम आदमी आसानी से नहीं पता कर पाता है. यह कैमरा पिन नंबर डालते ही उसे अपने अंदर दर्ज कर लेता है. इस तरह से एटीएम कार्ड समेत पूरा डाटा जालसाजों के पास पहुंच जाता है.

अब सवाल यह उठता है कि एटीएम मशीन बैंक की है और उस में स्कैनर या कैमरा कोई और लगा गया, तो क्या बैंकों को नियमित रूप से अपनी मशीनों की जांच नहीं करानी चाहिए?

निश्चित रूप से कोई आम आदमी स्नैकर या कैमरे का पता नहीं लगा सकता, लेकिन बैंक तो नियमित निरीक्षण से ऐसा कर सकता है. पूरा मामला मशीन के बाहरी हिस्से में की गई गड़बड़ का है, जिसे जांच कर के पकड़ा जा सकता?है.

हर एटीएम में नियमित रूप से रकम डाली जाती है. उस समय कीबोर्ड या दूसरी किसी जगह पर लगे कैमरे या कार्ड ऐंट्री पौइंट पर लगे स्कैनर की पड़ताल की जा सकती है.

हर एटीएम पर सिक्योरिटी गार्ड भी तैनात रहता है. उसे भी कैमरे या स्कैनर को पहचानने की ट्रेनिंग दी जा सकती है, ताकि वह थोड़ेथोड़े समय पर मशीन की जांच करता रहे कि उस पर कोई कैमरा या स्कैनर तो नहीं लगा है.

इस के अलावा बैंक के तकनीकी माहिर भी कुछ ऐसे सामान्य संकेत या दिशानिर्देश जारी कर सकते हैं, जिस से आम आदमी भी यह पहचान सके कि मशीन में कोई गलत कैमरा या स्कैनर तो नहीं लगा है.

मिसाल के तौर पर, एटीएम में कार्ड डालने की जगह पर हर समय लाइट जलती रहती है, जबकि अगर उस के आगे स्कैनर लगा होगा, तो स्कैनर में लाइट नहीं जलती है. इसी तरह के कुछ और संकेत भी बैंक ग्राहकों को बता सकते हैं, जिस से कि लोग खुद ही बैंक को सूचना दे सकें कि फलां एटीएम मशीन में यह गड़बड़ है.

कुलमिला कर सारा मामला एटीएम मशीन के बाहरी हिस्से की बारीकी से जांच करने का है, जिसे बैंक आसानी से अपने लैवल पर या लोगों को कोई तरीका बता कर अंजाम दे सकते हैं और उन्हें लुटने से बचा सकते हैं.

बाबा का सच : अंधविश्वास की एक सच्ची कहानी

मेरा तबादला उज्जैन से इंदौर के एक थाने में हो गया था. मैं ने बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन आया. रेल चलने के साथ ही उज्जैन के थाने में रहते हुए वहां गुजारे दिनों की यादें ताजा होने लगीं. हुआ यह था कि एक दिन एक मुखबिर थाने में आ कर बोला, ‘‘सर, एक बाबा पास के ही एक गांव खाचरोंद में एक विधवा के घर ठहरा हुआ है. मुझे उस का बरताव कुछ गलत लग रहा है.’’

उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया. फिर मेरे पास उस बाबा के खिलाफ कोई ठोस सुबूत भी नहीं था. लेकिन मुखबिर से मिली सूचना को हलके में लेना भी गलत था, सो उसी रात  मैं सादा कपड़ों में उस विधवा के घर जा पहुंचा. उस औरत ने पूछा, ‘‘आप किस से मिलना चाहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘दीदी, मैं ने सुना है कि आप के यहां कोई चमत्कारी बाबा ठहरे हैं, इसीलिए मैं उन से मिलने आया हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, अभी तो बाबा अपने किसी भक्त के घर गए हैं.’’

‘‘अगर आप को कोई एतराज न हो, तो क्या मैं आप से उन बाबा के बारे में कुछ बातें जान सकता हूं? दरअसल, मेरी एक बेटी है, जो बचपन से ही बीमार रहती है. मैं उस का इलाज इन बाबा से कराना चाहता हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, जितनी जानकारी मेरे पास है, वह मैं आप को बता सकती हूं.

‘‘एक दिन ये बाबा अपने 2 शिष्यों के साथ रात 8 बजे मेरे घर आए थे.

‘‘बाबा बोले थे, ‘तुम्हारे पति के गुजरने के बाद से तुम तंगहाल जिंदगी जी रही हो, जबकि उस के दादाजी परिवार के लिए लाखों रुपयों का सोना इस घर में दबा कर गए हैं.

‘‘‘ऐसा कर कि तेरे बीच वाले कमरे की पूर्व दिशा वाला कोना थोड़ा खोद और फिर देख चमत्कार.’

‘‘मैं अपने बीच वाले कमरे में गई, तभी उन के दोनों शिष्य भी मेरे पीछेपीछे आ गए और बोले, ‘बहन, यह है तुम्हारे कमरे की पूर्व दिशा का कोना.’

‘‘मैं ने कोने को थोड़ा उकेरा, करीब 7-8 इंच कुरेदने के बाद मेरे हाथ में एक सिक्का लगा, जो एकदम पीला था.

‘‘उस सिक्के को अपनी हथेली पर रख कर बाबा बोले, ‘ऐसे हजारों सिक्के इस कमरे में दबे हैं. अगर तू चाहे, तो हम उन्हें निकाल कर तुझे दे सकते हैं.’

‘‘मैं ने बाबा से पूछा, ‘बाबा, ये दबे हुए सिक्के बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?’

‘‘वे बोले, ‘तुझे कुछ नहीं करना है. जो कुछ करेंगे, हम ही करेंगे, लेकिन तुम्हारे मकान के बीच के कमरे की खुदाई करनी होगी, वह भी रात में… चुपचाप… धीरेधीरे, क्योंकि अगर सरकार को यह मालूम पड़ गया कि तुम्हारे मकान में सोने के सिक्के गड़े हुए हैं, तो वह उस पर अपना हक जमा लेगी और तुम्हें उस में से कुछ नहीं मिलेगा.’

‘‘आगे वे बोले, ‘देखो, रात में चुपचाप खुदाई के लिए मजदूर लाने होंगे, वह भी किसी दूसरे गांव से, ताकि गांव वालों को कुछ पता न चल सके. इस खुदाई के काम में पैसा तो खर्च होगा ही. तुम्हारे पति ने तुम्हारे नाम पर डाकखाने में जो रुपया जमा कर रखा है, तुम उसे निकाल लो.’

‘‘इस के बाद बाबा ने कहा, ‘हम महीने भर बाद फिर से इस गांव में आएंगे, तब तक तुम पैसों का इंतजाम कर के रखना.’

‘‘डाकखाने में रखे 4 लाख रुपयों में से अब तक मैं बाबा को 2 लाख रुपए दे चुकी हूं.’’

‘‘दीदी, क्या मैं आप के बीच वाले कमरे को देख सकता हूं?’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, वैसे तो बाबा ने मना किया है, लेकिन इस समय वे यहां नहीं हैं, इसलिए आप देख लीजिए.’’

मैं फौरन उठा और बीच के कमरे में जा पहुंचा. मैं ने देखा कि सारा कमरा 2-2 फुट खुदा हुआ था और उस की मिट्टी एक कोने में पड़ी हुई थी. मुझे लगा कि अगर अब कानूनी कार्यवाही करने में देर हुई, तो इस औरत के पास बचे 2 लाख रुपए भी वह बाबा ले जाएगा.

मैं ने उस औरत से कहा, ‘‘दीदी, मैं इस इलाके का थानेदार हूं और मुझे उस पाखंडी बाबा के बारे में जानकारी मिली थी, इसलिए मैं यहां आया हूं.

‘‘आप मेरे साथ थाने चलिए और उस बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाइए, ताकि मैं उसे गिरफ्तार कर सकूं.’’

उस औरत को भी अपने ठगे जाने का एहसास हो गया था, इसलिए वह मेरे साथ थाने आई और उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. चूंकि बाबा घाघ था, इसलिए उस ने उस औरत के घर के नुक्कड़ पर ही अपने एक शिष्य को नजर रखने के लिए  बैठा दिया था. इसलिए उसे यह पता चलते ही कि मैं उस औरत को ले कर उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने थाने ले गया हूं. वह बाबा उस गांव को छोड़ कर भाग गया. इस के बाद मैं ने आसपास के गांवों में मुखबिरों से जानकारी भी निकलवाई, लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

मैं यादों की बहती नदी से बाहर आया, तब तक गाड़ी इंदौर रेलवे स्टेशन पर आ कर ठहर गई थी. जब मैं ने इंदौर का थाना जौइन किया, तब एक दिन एक फाइल पर मेरी नजर रुक गई. उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. रिपोर्ट में लिखा था, ‘गडे़ धन के लालच में एक मां ने अपने 7 साला बेटे का खून इंजैक्शन से निकाला.’ उस मां के खिलाफ लड़के के दादाजी और महल्ले वालों ने यह रिपोर्ट लिखाई थी. यह पढ़ कर मैं सोच में पड़ गया कि कहीं यह वही खाचरोंद गांव वाला बाबा ही तो नहीं है.

मैं ने सबइंस्पैक्टर मोहन से कहा, ‘‘मैं इस मामले में उस लड़के के दादाजी से बात करना चाहता हूं. उन्हें थाने आने के लिए कहिए.’’

रात के तकरीबन 10 बजे एक बुजुर्ग  मेरे क्वार्टर पर आए. मैं ने उन से उन का परिचय पूछा. तब वे बोले, ‘‘मैं ही उस लड़के का दादाजी हूं.’’

‘‘दादाजी, मैं इस केस को जानना चाहता हूं,’’ मैं ने पूछा.

वे बताने लगे, ‘‘सर, घर में गड़े धन के लालच में बहू ने अपने 7 साल के बेटे की जान की परवाह किए बगैर इंजैक्शन से उस का खून निकाला और तांत्रिक बाबा को पूजा के लिए सौंप दिया.’’

‘‘दादाजी, आप मुझे उस बाबा के बारे में कुछ बताइए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, यह बात तब शुरू हुई, जब कुछ दिनों के लिए मैं अपने गांव गया था. फसल कटने वाली थी, इसलिए मेरा गांव जाना जरूरी था. उन्हीं दिनों यह तांत्रिक बाबा हमारे घर आया और बहू से बोला कि तुम्हारे घर में गड़ा हुआ धन है. इसे निकालने से पहले थोड़ी पूजापाठ करानी पड़ेगी.’’

‘‘मेरी बहू उस के कहने में आ गई. फिर उस तांत्रिक बाबा ने रात को अपना काम करना शुरू किया. पहले दिन उस ने नीबू, अंडा, कलेजी और सिंदूर का धुआं कर उसे पूरे घर में घुमाया, फिर उस ने बीच के कमरे में अपना त्रिशूल एक जगह जमीन पर गाड़ा और कहा कि यहां खोदने पर गड़ा धन मिलेगा.

‘‘उस के शिष्यों ने एक जगह 2 फुट का गड्ढा खोदा. चूंकि रात के 12 बज चुके थे, इसलिए उन्होंने यह कहते हुए काम रोक दिया कि अब खुदाई कल करेंगे.

‘‘इसी बीच मेरी 5 साल की पोती उस कमरे में आ गई. उसे देख कर तांत्रिक गुस्से में लालपीला हो गया और बोला कि आज की पूजा का तो सत्यानाश हो गया है. यह बच्ची यहां कैसे आ गई? अब इस का कोई उपचार खोजना पड़ेगा.

‘‘अगले दिन रात के 12 बजे वह तांत्रिक अकेला ही घर आया और बहू से बोला, ‘तू गड़ा हुआ धन पाना चाहती है या नहीं?’

‘‘बहू लालची थी, इसलिए बोली, ‘हां बाबा.’

‘‘फिर बाबा तैश में आ कर बोला, ‘कल रात उस बच्ची को कमरे में नहीं आने देना चाहिए था. अब उस बच्ची को भी ‘पूजा’ में बैठा कर अकेले में तांत्रिक क्रिया करनी पड़ेगी. जाओ और उस बच्ची को ले आओ.

‘‘इस पर मेरी बहू ने कहा, ‘लेकिन बाबा, वह तो सो रही है.’

‘‘बाबा बोला, ‘ठीक है, मैं ही उसे अपनी विधि से यहां ले कर आता हूं.

‘‘अगले दिन सुबह उस बच्ची ने अपनी दादी को बताया, ‘रात को वह तांत्रिक बाबा मुझे उठा कर बीच के कमरे में ले गया और मेरे सारे कपड़े उतार कर उस ने मेरे साथ गंदा काम किया.’

‘‘जब मेरी पत्नी ने बहू से पूछा, तो वह बोली, ‘बच्ची तो नादान है. कुछ भी कहती रहती है. आप ध्यान मत दो.’

‘‘अगले दिन बाबा ने बीच का कमरा खोद दिया. लेकिन कुछ नहीं निकला. फिर वह बाबा बोला, ‘बाई, लगता है कि तुम्हारे ही पुरखे तुम्हारे वंश का खून चाहते हैं, तुम्हें अपने बेटे की ‘बलि’ देनी होगी या उस का खून निकाल कर चढ़ाना होगा.’

‘‘गड़े धन के लालच में मां ने बिना कोई परवाह किए अपने बेटे का खून ‘इंजैक्शन’ से खींचा और उस का इस्तेमाल तांत्रिक क्रिया करने के लिए बाबा को दे दिया.

‘‘यह सब देख कर मेरी पत्नी से रहा नहीं गया और उस ने फोन पर ये सब बातें मुझे बताईं. मैं तभी सारे काम छोड़ कर इंदौर आया और अपने पोते और महल्ले वालों को ले कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई.’’

‘‘दादाजी, इस समय वह तांत्रिक बाबा कहां है?’’

‘‘सर, मेरी बहू अभी भी उस के मोहपाश में बंधी है. चूंकि उसे मालूम पड़ चुका है कि मैं ने उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है, इसलिए वह हमारे घर नहीं आ रहा है, लेकिन मैं उस पर नजर रखे हुए हूं.’’

सुबह एक मुखबिर आया और बोला, ‘‘सर, एक सूचना मिली है कि अपने इलाके की एक मलिन बस्ती में एक तांत्रिक आज ही आ कर ठहरा है.’’

रात के 12 बजे मैं अपने कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचा. एक पुलिस वाले ने एक मकान से  धुआं निकलते देखा. हम ने चारों तरफ से उस मकान को घेर लिया. जब मैं ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘क्या है? यहां पूजा हो रही है. आप जाइए.’’

इतना सुनते ही मैं ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया और बीच के कमरे में पहुंचा. मुझे देखते ही वह तांत्रिक बाबा भागने की कोशिश करने लगा, तभी मेरे साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और गाड़ी में डाल कर थाने ले आए.

थाने में थर्ड डिगरी देने पर उस ने अपने सारे अपराध कबूल कर लिए, जिस में खाचरोंद गांव में की गई ठगी भी शामिल थी. मैं थाने में बैठा सोच रहा था कि अखबारों में गड़े धन निकालने के बारे में ऐसे ठग बाबाओं की खबरें अकसर छपती ही रहती हैं, फिर भी न जाने क्यों लोग ऐसे बाबाओं के बहकावे में आ कर अपनी मेहनत की कमाई को उन के हाथों सौंप कर ठगे जाते हैं?

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