जागरूकता: ठगों के तरह-तरह के रूप

ठगों के अलगअलग अंदाज और किरदार देख कर आम लोग सम झ ही नहीं पाते हैं और जब तक वे सम झ पाते हैं, तब तक ठगी के शिकार हो जाते हैं.ठग कभी अनपढ़गंवार के रूप में सामने आते हैं, तो कभी गांव के ठेठ देहाती बन जाते हैं. वे कभी भगवान दिखाने वाले बहुरुपिए होते हैं, तो कभी लखपतिकरोड़पति बनाने का आसान तरीका बताते हैं. ठगी का शिकार आखिर में सिर्फ हाथ मलता रह जाता है, क्योंकि पुलिस भी ठगों को पकड़ कर उस का लूटा गया सामान और रुपयापैसा लौटा पाने में निकम्मी ही साबित होती है.ठग अपना उल्लू तो सीधा कर लेते हैं, लेकिन लूटा गया इनसान कई तरह की परेशानियों में घिर जाता है. लापरवाह इनसान को ठग आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं. ठगी के अनोखे अंदाज देखिए :

अनपढ़ बन कर मांगते मदद

अगर बैंक में कभी कोई अनपढ़गंवार इनसान मदद मांगे तो सावधान हो जाएं, क्योंकि वह आप को चूना लगा कर फुर्र हो सकता है.छत्तीसगढ़ में रायपुर के उइला की एक बैंक में एक कंपनी में काम करने वाला नरेश पैसे जमा करवाने पहुंचा. वहां 2 नौजवानों ने खुद को अनपढ़गंवार बताते हुए उस से मदद मांगी.

मदद मांगने पर नरेश ने न सिर्फ उन का फार्म भर दिया, बल्कि अपना बैग उन्हें थमा कर उन के पैसे जमा करने खुद लाइन में लग गया. उन नौजवानों ने नरेश को कागज में लिपटी गड्डी दी और कहा कि इस में एक लाख रुपए हैं. नरेश ने भरोसे में उसे खोल कर नहीं देखा. काउंटर पर पता चला कि गड्डी में नोट नहीं कोरे कागज के टुकड़े थे. बदहवास नरेश को कुछ नहीं सू झा. जब तक वह कुछ सम झ पाता, ठग कहीं दूर जा चुके थे. नरेश के बैग में 30,000 रुपए थे.

बेईमान बनते हैं ईमानदार

किसी को अगर लूटना या ठगना है, तो अपनी ईमानदारी का सुबूत पेश कर दो, फिर आसानी से आप उसे चूना लगा सकते हैं. ऐसा ही एक वाकिआ रायपुर गुढि़यारी के अंबे एग्रो इंडस्ट्रीज के कैशियर सुरेश कुमार के साथ हुआ था. वे अपनी कंपनी के लिए चैक से 2 लाख रुपए कैश कराने आए थे. रुपए कैश करा कर उन्होंने अपनी बाइक के हैंडल में उन्हें रखा था. इतने में सामने से गुजरते हुए एक नौजवान ने उसे कुछ रुपए गिरने की बात बताई.

सुरेश ने पलट कर देखा, तो 50-100 के नोट सड़क पर गिरे पड़े थे. उन्हें लगा कि रुपए जेब से गिरे हैं. लिहाजा, वे पैसे उठाने के लिए आगे बढ़े. इतने में दूसरे नौजवान ने दौड़ कर उन की बाइक से बैग उठाया और वहां से भाग निकला.

जब तक सुरेश कुमार माजरा सम झ पाते, तब तक लुटेरा भाग निकला. इसी बीच रुपए दिखा कर भटकाने वाला नौजवान भी फरार हो चुका था.

ऐसी ही ठगी के शिकार हुए सैयद अख्तर. रायपुर विजया बैंक कचहरी चौक पर ट्रांसपोर्टर सैयद अख्तर बैंक से पैसे ले कर निकले और उन्हें कार की पिछली सीट पर रख दिया. पीछे से एक ठग ने जमीन पर उन से रुपए गिरने की बात कही. जैसे ही सैयद अख्तर रुपए उठाने के लिए झुके, ठग कार से रुपयों से भरा बैग ले कर भाग निकला.

पता पूछते हैं ठग अपने जाल में शिकार को फांसने के लिए कई तरीके अपनाते हैं. कई बार वे शहर में अजनबी होने की बात कह कर किसी का पताठिकाना पूछते हैं. यह पूछने का उनका असल मकसद ठगी करना होता है. बूढ़ापारा के रहने वाले उत्तम चंद्र जैन चांदी के व्यापारी हैं. इन्होंने अपने ड्राइवर को बैंक से 2 लाख रुपए कैश करा कर निकालते देखा. बस, फिर क्या था. वहीं से उन का पीछा किया गया.

ड्राइवर ने रुपए अपनी बाइक की डिक्की में रखे थे. जैसे ही वे घर के सामने रुके, ठग उन के करीब पहुंच कर किसी का पता पूछने लगे. ड्राइवर ने अपनी गाड़ी खड़ी की और आगे जा कर कहा कि इस गली से जाइए, आगे चौक पर उन का मकान है. इतने में पीछे से एक नौजवान आया और डिक्की खोल कर रुपए ले कर तेजी से भाग खड़ा हुआ. ड्राइवर ने पलट कर देखा, तो वह बहुत दूर जा चुका था. पता पूछने वाला ठग भी अपनी बाइक से फरार हो गया.

लखपति बनाने का  झांसा उपहार योजना में लखपति बनाने और बैंकौक घुमाने का  झांसा दे क 8 करोड़ रुपए की ठगी की जा रही है. नरेंद्र मोदी योजना का नाम ले कर रजिस्ट्रेशन कराने के बहाने औरतों से पैसे जमा किए जाते हैं.

ठगों ने  झांसे में फांसने के लिए तगड़ी प्लानिंग की. रामपुर आरंभ में रहने वाले विजय और अमित ने सदस्य बनाने के लिए बड़ेबड़े होटलों में पार्टियां आयोजित की. पूरा आयोजन इतनी शानोशौकत से किया जाता था कि औरतें उस के झांसे में आ जाएं और तुरंत सदस्य बन जाएं.

सदस्यों से हर महीने की किस्त के रूप में 6,000 रुपए लेने का प्रावधान रखा गया. योजना में शामिल होने के लिए कहा गया कि हर महीने एक लकी ड्रा निकाला जाएगा, जिस का पहला पुरस्कार एक लाख रुपए, दूसरा बैंकौक का टूर और अन्य पुरस्कार के रूप में टीवी, फ्रिज वगैरह देने का औफर दिया गया. अंत में योजना पूरी होने के बाद पूरी रकम ब्याज समेत लौटाने का वादा किया गया.

इतना मुनाफा और घूमने का मौका देख कर लोग इन के  झांसे में आ गए. सदस्य उस समय सकते में आ गए, जब उन्होंने योजनाकारों के दफ्तर में महीनों से ताला लटका देखा. तब उन्हें सम झ आया कि वे ठगे गए हैं. लखपति तो नहीं बन पाए, हां, पुलिस और अदालत के चक्कर शुरू हो गए.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रुस्तम नगर के रहने वाले पवन शर्मा ने छोटे नोट ले कर बड़े नोट देने पर डबल करने का  झांसा दिया. लोगों को भरमाया कि वह एक के 3 गुना पैसे कर के तुरंत देगा.

जब इस तरह कुछ लोगों को 3 गुना पैसे मिलने की बात जाहिर हो गई, तो लोगों की लंबी कतारें लग गईं. बिना मेहनत किए पैसे को तिगुना करने के लालची लोगों ने न सिर्फअपने घर और जेवर गिरवी रखे, बल्कि बच्चों को भी गिरवी रख दिया. लापरवाह होते हैं शिकार ठगी के शिकार लोगों की गहराई से स्टडी करने पर यह बात सामने आई कि ज्यादातर लोग लापरवाह होते हैं, जिस के चलते वे ठगी के शिकार होते हैं.

अब नरेश को ही लीजिए, जो बैंक में पैसे जमा करने गया था. ठग ने अनपढ़गंवार बन कर उस से मदद मांगी. मदद के नाम पर उस ने उस आदमी का फार्म भी भरा और उस से नकली रुपए की गड्डी ले कर जमा कराने लाइन में खड़ा हो गया.

यहां चूक नरेश से यह हुई कि वह अपना रुपए से भरा बैग उस अनजान आदमी को थमा गया. अगर वह ऐसी लापरवाही नहीं करता, सावधानी बरतता, रुपए से भरा बैग अपने पास ही रखता तो शायद वह न लुटता.

कुछ ऐसा ही किया उत्तम चंद्र जैन के ड्राइवर ने. उन्होंने बाइक की डिक्की में रुपए रख दिए और गाड़ी छोड़ कर अनजान आदमी को पता बताने चले गए. ठग ऐसी ही लापरवाही के इंतजार में रहते हैं. लालच में न आएं आज के भौतिकवादी युग में लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा पाने का लालची हो गया है. जब कोई लखपति बनाने का  झांसा देता है, तो आदमी उस का शिकार हो जाता है. लोगों की इसी लालची सोच का फायदा उठा कर विजय और अमित ने वीसी उपहार योजना चला कर एक  झटके में 8 करोड़ रुपए ठगे और फरार  हो गए.

लोग यह सोचने की जहमत नहीं उठाते हैं कि आखिर कोई कैसे कुछ ही दिनों में एक का 3 तिगुना पैसा दे सकता है? अगर यहां गहराई से सोचें तो धोखे की गंध आ ही जाती है, लेकिन लालच में अंधा इनसान सोचने की ताकत नहीं रखता. लिहाजा, इनसान की ऐसी लालची सोच का फायदा अहमदाबाद के अशोक जडेजा जैसे शख्स आसानी से उठा लेते हैं.

क्यों कोसते हैं पुलिसको अगर आप सावधान नहीं हैं, अपने काम के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, सचेत नहीं हैं, मिनटों में लखपति, करोड़पति बनना चाहते हैं और ठगी का शिकार हो जाते हैं, तो पुलिस प्रशासन को मत कोसिए. ऐसी ठगी के लिए आप खुद जिम्मेदार हैं. आखिर पुलिस एकएक आदमी की हिफाजत नहीं कर सकती. अपने जानमाल की हिफाजत की सब से पहली जवाबदेही आदमी की अपनी होती है.

अकसर लोग असावधानी और हद दर्जे की लालची सोच के चलते ठगे जाते हैं. पुलिस का काम पुलिसिंग का 2 पार्ट प्रिवैंशन और डिटैक्शन होता है. प्रिवैंशन का मतलब अपराध की रोकथाम के लिए किए जाने वाले उपाय. अपराध हो जाने के बाद पुलिस अपराधियों को पकड़ने के लिए जो कार्यवाही करती है, वह डिटैक्शन के तहत आता है.

पुलिस डिटैक्शन पर ज्यादा ध्यान देती है. ठगी, चोरी, लूटपाट की वारदात होने के बाद पुलिस इन्हें पकड़ने में ज्यादातर नाकाम ही साबित होती है. अपराध हो ही न, इस के लिए पुलिस प्रशासन को प्रिवैंशन की प्राथमिकता देनी चाहिए. इस के लिए पुराने अपराधियों पर निगाह रखी जानी चाहिए. बाहर से आने वालों पर कड़ी निगाह रखी जाए. बदमाशों के जमावड़े वाले ठिकाने जैसे ढाबा, गुमटियां और गलीमहल्लों में लगातार छापेमारी की जानी चाहिए. प्रिवैंशन का खास तरीका गश्त होता है. गश्त में पुलिस को पूरी ताकत  झोंकनी चाहिए.

Best Of Manohar Kahaniya: माशूका की खातिर- भाग 1

3 अक्तूबर, 2017 को भैरवनाथ के छोटे बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने इस अवसर पर घर पर एक पार्टी का आयोजन किया था. उस पार्टी में भैरवनाथ ने बोकारो से अपने पिता राजेंद्र प्रसाद और मां गायत्री देवी को भी धनबाद में अपने कमरे पर बुला लिया था. पार्टी में भैरवनाथ ने कालोनी में रहने वाले अपने कुछ जानने वालों को भी बुलाया था. देर रात तक चली पार्टी में भैरवनाथ के बच्चों ने भी खूब मजे किए. बच्चों के साथ बड़ों ने भी इस मौके पर खूब डांस किया था.

कुल मिला कर पार्टी सब के लिए यादगार रही. पार्टी एंजौय से घर के सभी लोग थक गए थे. उन की टांगों ने जवाब देना शुरू कर दिया था, इसलिए वे अपनेअपने कमरों में सोने के लिए चले गए. थकान की वजह से उन्हें जल्द ही नींद भी आ गई.

अगली सुबह रोजमर्रा की तरह घर में सब से पहले राजेंद्र प्रसाद उठे. देखा घर में सन्नाटा पसरा था. उन्होंने सोचा कि रात काफी देर तक बच्चों ने पार्टी का आनंद लिया था, उस की थकान की वजह से देर तक सो रहे हैं.

यही सोचते हुए वह घर से वह बाहर टहलने के लिए निकल गए. थोड़ी देर बाद जब वह वापस घर लौटे तो घर में वैसा ही सन्नाटा था, जैसा जाने से पहले था. यह देख कर उन का माथा ठनका. ऐसा पहली बार हुआ था कि जब बहू अनुपमा और बच्चे इतनी देर तक सो रहे हैं. वह बच्चों को उठाना चाहते थे.

ये भी पढ़ें- इस पुजारी ने की 5 शादियां और फिर उन को धकेल दिया जिस्मफरोशी के धंधे में

राजेंद्र प्रसाद पहले बेटे भैरवनाथ के कमरे तक गए तो उस के कमरे पर बाहर से सिटकनी बंद मिली. यह देख कर वे चौंक गए कि सुबहसुबह बेटा और बहू बच्चों को ले कर कहां चले गए, जबकि बाहर जाते हुए वह उन्हें दिखाई भी नहीं दिए थे. सिटकनी खोल कर जैसे ही उन्होंने दरवाजे से भीतर झांका तो बुरी तरह चौंके. बैड पर बहू अनुपमा और दोनों बच्चों की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं. वे चीखते हुए उल्टे पांव वहां से भाग खड़े हुए.

चीखने की आवाज सुन कर उन की पत्नी गायत्री देवी की नींद टूट गई. वह तेजी से उस ओर लपकीं, जिस तरफ से आवाज आई थी. उन्होंने देखा कि आंगन के पास उन के पति खड़े थरथर कांप रहे थे. अभी भी गायत्री ये नहीं समझ पा रही थीं कि उन्होंने ऐसा क्या देख लिया जो कांप रहे हैं. उन्होंने पति को झकझोरते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे भैरव की मां, गजब हो गया. किसी ने बहू और दोनों बच्चों का कत्ल कर दिया है. बिस्तर पर तीनों की लाशें पड़ी हैं.’’ कह कर राजेंद्र प्रसाद जोरजोर से रोने लगे.

इतना सुनना था कि गायत्री भी रोनेबिलखने लगीं. वह रोती हुई बोलीं, ‘‘अरे भैरव को बुलाओ, देखो कहां है?’’

‘‘घर में वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं सुबहसुबह कहां चला गया.’’ राजेंद्र प्रसाद ने कहा.

भैरवनाथ के घर में सुबहसुबह रोने की आवाज पड़ोसियों ने सुनी तो वे भी परेशान हो गए. इंसानियत के नाते कुछ लोग भैरवनाथ के घर जा पहुंचे. कमरे में 3-3 लाशें देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. इस के बाद तो देखतेदेखते वहां मोहल्ले के काफी लोग जमा हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना को देख कर लोगों का कलेजा कांप उठा. उसी दौरान किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. धनबाद की न्यू कालोनी जहां यह घटना घटी थी, वह क्षेत्र बरवा अड्डा के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना थाना बरवा अड्डा को प्रसारित कर दी गई.

तिहरे हत्याकांड की सूचना मिलते ही बरवा अड्डा के थानाप्रभारी मनोज कुमार एसआई दिनेश कुमार और अन्य पुलिस वालों के साथ न्यू कालोनी पहुंच गए. यह जानकारी उन्होंने एसपी पीयूष कुमार पांडेय और डीएसपी मुकेश कुमार महतो को भी दे दी. सूचना दे कर उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

ये भी पढ़ें- Best of Manohar Kahaniya: पति की गरदन पर प्रेमी का वार

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की जांच शुरू कर दी थी. छानबीन के दौरान सब से पहले थानाप्रभारी मनोज कुमार ने राजेंद्र प्रसाद और उन की पत्नी गायत्री देवी से पूछताछ की. उन से पता चला कि भैरवनाथ सुबह से ही गायब है. वह कहीं दिखाई नहीं दिया. यह सुन कर थानाप्रभारी का माथा ठनका.

लाश के पास धमकी भरा पत्र भी मिला

छानबीन के दौरान घटनास्थल से आधार कार्ड की फोटोकौपी पर लाल स्याही से लिखा धमकी भरा 3 पन्नों का खत मिला. खत सिरहाने दूध की बोतल के नीचे दबा कर रखा गया था. लिखने वाले ने अपना नाम नहीं लिखा था. इस में अज्ञात ने राजेंद्र प्रसाद को धमकी दी थी, ‘‘गवाही देने के चलते तुम्हारे बेटे भैरवनाथ का अपहरण कर के ले जा रहे हैं. उस की भी लाश मिल जाएगी. तुम्हारे बेटे ने एक लाख दिया है. 2 लाख रुपए दे कर इसे ले जाना. पुलिस को इस की सूचना नहीं देना वरना अंजाम और भयानक हो सकता है.’’

पत्र पढ़ कर पुलिस को किसी साजिश की आशंका होने लगी.

पुलिस को शक था कि भैरवनाथ ने ही हत्या की वारदात को अंजाम देने के बाद जांच को गुमराह करने के लिए यह पत्र लिखा है. पुलिस कई बिंदुओं पर छानबीन करने लगी.

राजेंद्र प्रसाद से पुलिस ने भैरवनाथ का मोबाइल नंबर लिया. पुलिस ने जब उस नंबर पर काल की तो उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. पुलिस ने मौके से बरामद पत्र को अपने कब्जे में ले लिया ताकि उसे जांच के लिए भेजा जा सके.

लाशों का मुआयना करने पर पता चला कि तीनों की हत्याएं अलगअलग तरीके से की गई थीं. अनुपमा का किसी चीज से गला घोंटा गया था, जबकि दोनों बच्चों की हत्या गला रेत कर की गई थी. दूसरे कमरे में अनुपमा के कपड़े फर्श पर बिखरे पड़े मिले थे. अलमारी भी खुली हुई थी. लग रहा था जैसे उस में कुछ ढूंढा गया हो.

सीआईएसएफ की डौग स्क्वायड टीम ने घटनास्थल की जांच की. खोजी कुत्ता शव को सूंघने के बाद घर की सीढ़ी से छत के ऊपर गया और फिर नीचे उतर कर घर से करीब ढाई सौ मीटर दूर एक जुए के अड्डे तक पहुंचा. वहां शराब की बोतल और ग्लास मिले. टीम को शक हुआ कि हत्या के बाद हत्यारों ने यहां आ कर शराब पी होगी.

ये भी पढ़ें- प्रिया मेहरा मर्डर केस भाग 2 : लव कर्ज और धोखा

सूचना पा कर अनुपमा के पिता राजेंद्र राय परिवार के अन्य लोगों के साथ हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा से मौके पर पहुंच गए. उन्होंने आरोप लगाया कि बेटी और उस के बच्चों को भैरवनाथ, उस के पिता राजेंद्र प्रसाद और मां गायत्री ने मिल कर मारा है.

उन से बातचीत करने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के जब लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी की, तभी अनुपमा के घर वालों ने पुलिस का विरोध करते हुए मांग की कि पहले आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए. घटना की सूचना पर विधायक फूलचंद मंडल, जिला पंचायत सदस्य दुर्योधन प्रसाद चौधरी, कांग्रेस नेता उमाचरण महतो आदि ने मौके पर पहुंच कर पीडि़त परिवार के लोगों को ढांढस बंधाया और एसपी पीयूष कुमार पांडेय से हत्या में शामिल लोगों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

एसपी ने आश्वासन दिया कि जल्द ही केस का खुलासा कर हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. उन के आश्वासन के बाद ही घर वालों ने शव उठाने दिए.

अगले भाग में पढ़ें- अफेयर बना कलह की वजह

Best Of Manohar Kahaniya: माशूका की खातिर- भाग 3

सौजन्य-मनोहर कहानियां

राजेंद्र काफी समझदार और सुलझे हुए इंसान थे. इस बात को वह अच्छी तरह से समझ रहे थे कि दामाद ने जो किया है, वह उचित नहीं है. लेकिन गलतियां इंसान से ही होती हैं.

उस से भी एक भूल हुई है. निश्चय ही उस की यह पहली गलती है, अपनी भूल को सुधारने के लिए उसे एक मौका देना चाहिए. उन्होंने बेटी को समझाया. जमाने भर की उसे नसीहत दी, तब जा कर वह पति के पास लौट जाने को तैयार हुई.

माफी मांगने के बाद भी मिलता रहा प्रेमिका से

उस के बाद राजेंद्र ने इस संबंध में दामाद से बात की. उसे समझाया कि उस ने जो किया है, वह गलत है. फिर कहा, ‘‘तुम्हारा भरपूरा परिवार है. पत्नी और 2 बच्चे हैं. उन मासूम बच्चों का तनिक भी खयाल नहीं आया.’’

ससुर की बात सुन कर भैरव काफी शर्मिंदा हुआ. उस ने ससुर से वादा किया कि उस से दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी. यह जून, 2017 की बात है.

एक महीने अनुपमा मायके में रही. पिता के समझाने के बाद वह बच्चों को ले कर पति के पास धनबाद लौट आई. भैरवनाथ ने पत्नी को भरोसा दिया कि दोबारा ऐसा नहीं होगा. लेकिन कुछ दिनों बाद भैरव फिर पुरानी हरकतें करने लगा. लेकिन इस बार सजग हो कर और पत्नी से छिप कर प्रेमिका रूपा से बातें करता था. फिर भी अनुपमा को पति पर शक हो गया कि वह अभी भी रूपा से बातें करता है.

इस बार अनुपमा ने हजारीबाग के रेवाली के रहने वाले अपने ममेरे भाई विवेक राय से बात की. वह भी धनबाद में ही रहता था. विवेक ने किसी तरह उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि भैरव किसी एक नंबर पर ज्यादा बातें करता है. उस नंबर पर विवेक ने काल की तो उसे एक महिला ने रिसीव किया. यह बात विवेक ने अनुपमा को बता दी. अब अनुपमा का शक यकीन में बदल गया कि भैरव के अभी भी रूपा से संबंध बने हुए हैं.

इस के बाद रूपा को ले कर अनुपमा का पति से रोज झगड़ा होने लगा. घर की सारी बातें भैरव रूपा से बता देता था. उसे रूपा दिलोजान से मोहब्बत करती थी. उस से अलग रहने की बात वह सोच भी नहीं सकती थी. ऐसा ही हाल भैरव का भी था. वह रूपा के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.

एक दिन रूपा भैरव के साथ रहने की जिद पर अड़ गई लेकिन पत्नी अनुपमा इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. भैरव भारी दबाव में था. इस कारण वह तनाव में रहने लगा. वह किसी भी हालत में रूपा को नहीं छोड़ना चाहता था.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Stories: शादी जो बनी बर्बादी

अपनी पत्नी और बच्चे उसे रास्ते का कांटा दिखने लगे क्योंकि उन के होते हुए वह रूपा को घर नहीं ला सकता था. अंत में उस ने पत्नी और बच्चों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उसे बेटे अभय के जन्मदिन का मौका सब से अच्छा लगा.

3 अक्तूबर, 2017 को भैरव के बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने एक पार्टी का आयोजन किया. पार्टी में उस के मांबाप, मकान में रह रहे अन्य किराएदार, कुछ रिश्तेदारों, मोहल्ले वालों के अलावा रूपा भी आई थी. रूपा को जैसे ही अनुपमा ने देखा, उस का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तब पार्टी का मजा किरकिरा हो गया. अनुपमा आगबबूला हो गई और रूपा से उलझ गई. दोनों में काफी झगड़ा हुआ.

वह कभी नहीं चाहती थी कि उस की सौतन बनी रूपा उस के पति के गले की हड्डी बन जाए. रूपा समझ गई थी कि अनुपमा उसे देख कर खुश नहीं है. लेकिन उसे इस से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था.

वह अपनी राह के रोड़े को जल्द से जल्द हटा हुआ देखना चाहती थी. रूपा पार्टी के दौरान भैरव को बारबार उकसाती रही कि मौका अच्छा है, हाथ से जाना नहीं चाहिए. बहरहाल, रात साढ़े 9 बजे केक कटा और खुशी का माहौल था. पार्टी के बाद बाहर के आए लोग अपने घरों को चले गए. रात साढ़े 12 बजे बिजली गुल हो गई, जो करीब 2 बजे आई. तब तक घर के लोग जागे हुए थे. बिजली आने के बाद परिवार के सभी लोग अपनेअपने कमरों में सो गए.

आभा और अभय दादी गायत्री देवी के कमरे में सो रहे थे. भैरव ने दादी के पास सो रहे बच्चों को अपने बैडरूम में पत्नी के पास ला कर सुला दिया. क्योंकि उसे अपनी योजना को अंजाम जो देना था. उधर रूपा के आने से नाखुश अनुपमा पहले ही कमरे में आ कर सो गई थी. बिजली आने के बाद रूपा अपने दूसरे रिश्तेदार के यहां चली गई ताकि उस पर कोई संदेह न करे.

ऐसे दिया वारदात को अंजाम

योजना के अनुसार, तड़के 3 बजे के करीब भैरवनाथ दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा. कमरे से निकल कर बाहर आया. दूसरे कमरे में सो रहे मांबाप के दरवाजे पर उस ने सिटकनी चढ़ा दी. फिर लौट कर वह अपने कमरे में आया, जहां पत्नी और बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे. उस ने जूते के फीते से पत्नी का गला उस वक्त तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. फिर बाजार से खरीद कर लाए चाकू से पहले बेटी आभा फिर अभय का गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.

उस नराधम का ऐसा करते हुए एक बार भी हाथ नहीं कांपा. फिर साक्ष्य छिपाने और खुद को बचाने के लिए अपने हाथों से लिखे 3 पन्नों के लेटर को बैड के पास ऐसे मोड़ कर रखा ताकि किसी की भी नजर उस पर आसानी से पड़ जाए.

घटना को अंजाम देने के बाद भैरवनाथ भोर में 4 बजे के करीब भाग कर धनबाद रेलवे स्टेशन पहुंचा. वहां से होते हुए रांची चला गया. वहां से पटना होते हुए मुंबई चला गया. मुंबई में ठिकाना नहीं मिलने पर फ्लाइट से फिर पटना लौटा और पटना से रांची होते हुए 14 अक्तूबर को बोकारो के जैनामोड़ पहुंचा.

ये भी पढ़ें- लव में हत्या : नेता जी आखिरकार जेल गए

उस के पास के सारे पैसे खत्म हो चुके थे, इसलिए वहां के एक दुकानदार के पास अपना मोबाइल गिरवी रख दिया. उस ने खुदकुशी के इरादे से जैनामोड़ में ही सल्फास की 4 गोलियां खा लीं और अपने घर पहुंचा. घर पहुंचते ही तबीयत बिगड़ने पर परिजनों ने उसे बीजीएच हौस्पिटल में भरती करा दिया, जहां से धनबाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस से सल्फास की गोलियों के बारे मे पूछताछ की तो उस ने मोबाइल गिरवी रख कर सल्फास खरीदे जाने की बात बताई. पुलिस उसे ले कर उस दुकान पर पहुची, जहां उस ने अपना फोन गिरवी रखा था. भैरवनाथ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त जूते का फीता और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने हत्या के लिए उकसाने के आरोप में रूपा देवी को उस की ससुराल भाटडीह, मुदहा से 24 अक्तूबर, 2017 को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. केस की जांच थानाप्रभारी मनोज कुमार कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों और सोशल मीडिया पर आधारित

Best Of Manohar Kahaniya: माशूका की खातिर- भाग 2

तीनों लाशों का पोस्टमार्टम कराने के बाद लाशें उन के घर वालों को सौंप दी गईं. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. रिपोर्ट में बताया कि किसी पतले तार से अनुपमा का गला घोंटा गया था.

जबकि दोनों बच्चों अभय कुमार व आभा कुमारी का गला किसी धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से उन की श्वांस नली कट गई थी. आगे की जांच के लिए तीनों का विसरा भी सुरक्षित रख लिया गया था.

राजेंद्र प्रसाद की तहरीर पर थानाप्रभारी मनोज कुमार ने फरार उन्हीं के बेटे भैरवनाथ शर्मा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उसे तलाश करने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित की गईं.

पुलिस ने अनुपमा के परिजनों से पूछताछ की तो उस के पिता राजेंद्र राय ने चौंका देने वाली बात बताई, ‘‘दामाद भैरवनाथ से बेटी के संबंध कुछ अच्छे नहीं थे. बेटी के साथ वह अकसर मारपीट करता था.’’

अफेयर बना कलह की वजह

‘‘मारपीट करता था, क्यों?’’ इंसपेक्टर मनोज कुमार ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘मारपीट करने के पीछे कोई खास वजह थी क्या?’’

ये भी पढ़ें- लव में हत्या : नेता जी आखिरकार जेल गए

‘‘जी सर, एक युवती से दामाद का अफेयर थे. अनुपमा पति की करतूत को जान चुकी थी. वह ऐसा करने से मना करती थी. इसी बात से चिढ़ कर वह उसे मारतापीटता था.’’

‘‘वह युवती कौन है? उस का नामपता वगैरह कुछ है?’’ मनोज कुमार ने पूछा.

‘‘हां है, सब कुछ है. युवती का नाम रूपा देवी है और उस का मोबाइल नंबर ये है..’’ कहते हुए राजेंद्र राय ने पौकेट डायरी निकाल कर उस में से रूपा का नंबर उन्हें बता दिया. थानाप्रभारी ने उसी समय अपने फोन से वह नंबर डायल किया तो वह नंबर बंद मिला.

पुलिस टीम ने भैरवनाथ को पकड़ने के लिए उस के खासखास ठिकानों पर दबिश दी. मुखबिरों को भी लगा दिया. पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. घटना हुए 9 दिन बीत गए, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. पुलिस मायूस नहीं हुई. वह उस की तलाश में जुटी रही.

10वें दिन यानी 14 अक्तूबर 2017 को मुखबिर ने पुलिस को एक खास सूचना दी.  उस ने पुलिस को बताया कि आरोपी भैरवनाथ ने जहर खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की है. वह बोकारो के एक प्राइवेट अस्पताल की आईसीयू में भरती है.

पुलिस टीम बिना समय गंवाए बोकारो रवाना हो गई. सब से पहले बोकारो के उस अस्पताल पहुंची, जहां भैरवनाथ का इलाज चल रहा था. वह वहीं मिल गया. उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए डाक्टरों की सलाह मानते हुए पुलिस ने उसे उसी अस्पताल में भरती रहने दिया और खुद उस की निगरानी में लगी रही.

3 दिन बाद जब भैरव की हालत सामान्य हुई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर धनबाद ले आई. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस को पत्नी और बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली –

34 वर्षीय अनुपमा मूलरूप से झारखंड के हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा की रहने वाली थी. उस के पिता राजेंद्र राय ने सन 2013 में बड़ी धूमधाम से उस की शादी बोकारो के पुडरू गांव के रहने वाले भैरवनाथ शर्मा से की थी. भैरव के साथ अनुपमा हंसीखुशी से रह रही थी. बाद में वह एक बेटी और एक बेटे की मां भी बनी.

ये भी पढ़ें- जानलेवा गेम ब्लू व्हेल : भाग 3

जीविका चलाने के लिए भैरवनाथ पत्नी और बच्चों को ले कर बोकारो से धनबाद आ गया था और वहां न्यू कालोनी में किराए के 2 कमरे ले कर रहने लगा. उस ने एक कारखाने में नौकरी कर ली.

जब दो पैसे की बचत होने लगी तो उस ने मातापिता को अपने पास बुला लिया. मातापिता कुछ दिनों उस के पास और कुछ दिनों गांव में रहने लगे. बड़ी हंसीखुशी के साथ परिवार के दिन कटने लगे. यह बात सन 2015 के करीब की है.

साल भर बाद भैरवनाथ और अनुपमा की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया, जिस ने दोनों की जिंदगी तिनके के समान बिखेर कर रख दी. घर की खुशियों में आग लगाने वाली उस तूफान का नाम था रूपा देवी.

दरअसल रूपा देवी भैरवनाथ की चचेरी भाभी थी. उस का परिवार बोकारो के भाटडीह मुदहा में रहता है. 2 साल पहले उस के पति की लीवर कैंसर से मौत हो गई थी. उस दौरान भैरव ने चचेरे भाई की तीमारदारी में तनमन और धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया था. भाई को बचाने के लिए उस ने दिनरात एक कर दिया था.

भाई की मौत के बाद भैरव भाभी रूपा देवी का दुख देख कर टूट गया. उसे उस समय बड़ा दुख होता था, जब वह जवान भाभी के तन पर सफेद साड़ी देखता था. सफेद साड़ी के बीच लिपटी रूपा का मन उसे रंगीन दिखता था. दरअसल, पति की तीमारदारी के दौरान रूपा का झुकाव भैरव की ओर हो गया था. रंगीनमिजाज भैरव ने भाभी के निमंत्रण को कबूल कर लिया था.

एक दिन दोनों ने मौका देख कर एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. ड्यूटी से लौट कर आने के बाद भैरव सारा काम छोड़ मोबाइल ले कर घंटों तक रूपा से प्यारभरी बातें करने बैठ जाता था. पत्नी जब पूछती कि किस से बातें कर रहे हो तो वह इधरउधर की बातें कह कर टाल देता था. उस के दबाव बनाने पर वह उस पर चिल्ला पड़ता था.

जब पत्नी के सामने खुली भैरव की पोल

बात 1-2 बार की होती तो समझ में आती, लेकिन मोबाइल पर लंबीलंबी बातें करना तो भैरव की दिनचर्या में ही शामिल हो गई थी. ड्यूटी से घर आने के बाद बच्चों का हालचाल लेना तो दूर की बात, उन की ओर देखता भी नहीं था और घंटों मोबाइल से चिपका रहता था.

पति की इस हरकत ने अनुपमा को उस पर संदेह करने के लिए विवश कर दिया था. लेकिन वह इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ थी कि उस का पति उस के पीठ पीछे क्या गुल खिला रहा है. ये बातें ज्यादा दिनों तक कहां छिपती हैं. जल्द ही भैरव की सच्चाई खुल कर अनुपमा के सामने आ गई.

इस के बाद अनुपमा ने घर में विद्रोह कर दिया. कलई खुलते ही भैरवनाथ के सिर से इश्क का भूत उतर गया. अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए पत्नी के सामने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगा कि अब ऐसा नहीं करेगा, गलती हो गई. पति के लाख सफाई देने के बावजूद अनुपमा ने पति की बातों पर यकीन नहीं किया. बच्चों को ले कर वह मायके चली गई. उस ने मांबाप से पति की करतूत बता दी.

ये भी पढ़े- इस पुजारी ने की 5 शादियां और फिर उन को धकेल

उस वक्त अनुपमा के पिता राजेंद्र राय ने भैरवनाथ से तो कुछ नहीं कहा, वह बेटी को ही समझाते रहे कि अगर पति को ऐसे ही छोड़ दोगी तो मामला बनने की बजाय और बिगड़ जाएगा. अपना गुस्सा थूक दो और पति के पास लौट जाओ पर अनुपमा ने पति के पास लौटने से साफ इनकार कर दिया.

अगले भाग में पढ़ें- ऐसे दिया वारदात को अंजाम

न्याय- क्या हुआ था रुकमा के साथ

सांझ का धुंधलका गहराते ही मुझे भय लगने लगता है. घर के  सामने ऊंचीऊंची पहाडि़यां, जो दिन की रोशनी में मुझे बेहद भली लगती हैं, अंधेरा होते ही दानव के समान दिखती हैं. देवदार के ऊंचे वृक्षों की लंबी होती छाया मुझे डराती हुई सी लगती है. समझ में नहीं आता दिन की खूबसूरती रात में इतनी डरावनी क्यों लगती है. शायद यह डर मेरी नौकरानी रुकमा की अचानक मृत्यु होने से जुड़ा हुआ है.

रुकमा को मरे हुए अब पूरा 1 माह हो चुका है. उस को भूल पाना मेरे लिए असंभव है. वह थी ही ऐसी. अभी तक उस के स्थान पर मुझे कोई दूसरी नौकरानी नहीं मिली है. वह मात्र 15 साल की थी पर मेरी देखभाल ऐसे करती थी जैसे मां हो या कोई घर की बड़ी.

मेरी पसंदनापसंद का रुकमा को हमेशा ध्यान रहता था. मैं उस के ऊपर पूरी तरह आश्रित थी. ऐसा लगता था कि उस के बिना मैं पल भर भी नहीं जी पाऊंगी. पर समय सबकुछ सिखा देता है. अब रहती हूं उस के बिना पर उस की याद में दर्द की टीस उठती रहती है.

वह मनहूस दिन मुझे अभी भी याद है. रसोईघर का नल बहुत दिनों से टपक रहा था. उस की मरम्मत के लिए मैं ने वीरू को बुलाया और उसे रसोईघर में ले जा कर काम समझा दिया तथा रुकमा को देखरेख के लिए वहीं छोड़ कर मैं अपनी आरामकुरसी पर समाचारपत्र ले कर पसर गई.

सुबह की भीनीभीनी धूप ने मुझे गरमाहट पहुंचाई और पहाडि़यों की ओर से बहने वाली बयार ने मुझे थपकी दे कर सुला दिया था.

अचानक झटके से मेरी नींद खुल गई. ध्यान आया कि नल मरम्मत करने आया वीरू अभी तक काम पूरा कर के पैसे मांगने नहीं आया था. हाथ में बंधी घड़ी देखी तो उसे आए पूरा 1 घंटा हो चुका था. इतने लंबे समय तक चलने वाला काम तो था नहीं. फिर मैं ने रुकमा को कई बार आवाज दी पर उत्तर न पा कर कुछ विचित्र सा लगा क्योंकि वह मेरी एक आवाज सुनते ही सामने आ कर खड़ी हो जाती थी. मजबूर हो कर मैं खुद अंदर पता लगाने गई.

रसोईघर का दृश्य देख कर मैं चौंक गई. गैस बर्नर के ऊपर दूध उफन कर बह गया था जिस के कारण लौ बुझ गई थी और गैस की दुर्गंध वहां भरी हुई थी. वीरू और रुकमा अपने में खोएखोए रसोईघर में बने रैक के सहारे खडे़ हो कर एकदूसरे को देख रहे थे. सहसा मुझे प्रवेश करते देख दोनों अचकचा गए.

मैं ने क्रोधित हो कर दोनों को बाहर निकलने का आदेश दिया. नाक पर कपड़ा रख कर पहले बर्नर का बटन बंद किया. फिर मरम्मत किए हुए नल की टोंटी की जांच की और बाहर आ गई. वीरू को पैसे दे कर चलता किया और रुकमा को चायनाश्ता लाने का आदेश दे कर मैं फिर आरामकुरसी पर आ बैठी.

वातावरण में वही शांति थी. लेकिन रसोईघर में देखा दृश्य मेरे दिलोदिमाग पर अंकित हो गया था. रुकमा चाय की ट्रे सामने तिपाई पर रखने के लिए जैसे ही मेरे सामने झुकी तो मैं ने नजरें उठा कर पहली बार उसे भरपूर नजर से देखा.

मेरे सामने एक बेहद सुंदर युवती खड़ी थी. वह छोटी सी बच्ची जिसे मैं कुछ साल पहले ले कर आई थी, जिसे मैं जानती थी, वह कहीं खो गई थी. मेरा ध्यान ही नहीं गया था कि उस में इतना बदलाव आ गया था. मेरी दी हुई गुलाबी साड़ी में उस की त्वचा एक अनोखी आभा से दमक रही थी. उस की खूबसूरती देख कर मुझे ईर्ष्या होने लगी.

मैं ने चाय का घूंट जैसे ही भरा, मुंह कड़वा हो गया. वह चीनी डालना भूल गई थी. वह चाय रखने के बाद हमेशा की तरह मेरे पास न बैठ कर अंदर जा ही रही थी कि मैं ने रोक लिया और कहा,  ‘‘रुकमा, यह क्या? चाय बिलकुल फीकी है और मेरा नाश्ता?’’

बिना कुछ कहे वह अंदर गई और चीनी का बरतन ला कर मेरे हाथ में थमा दिया.

मैं ने फिर टोका, ‘‘रुकमा, नाश्ता भी लाओ. कितनी देर हो गई है. भूल गई कि मैं खाली पेट चाय नहीं पीती.’’

वह फिर से अंदर गई और बिस्कुट का डब्बा उठा लाई और मुझे पकड़ा दिया. मैं ने चिढ़ कर कहा, ‘‘रुकमा, मुझे बिस्कुट नहीं चाहिए. सवेरे नाश्ते में तुम ने कुछ तो बनाया होगा? जा कर लाओ.’’

वह अंदर चली गई. बहुत देर तक जब वह वापस नहीं लौटी तो मैं चाय वहीं छोड़ कर उसे देखने अंदर गई कि आखिर वह बना क्या रही है.

वह रसोईघर में जमीन पर बैठी धीरेधीरे सब्जी काट रही थी. उस का ध्यान कहीं और था. मेरे आने की आहट भी उसे सुनाई नहीं दी. कुछ ही घंटों में उस में इतना अंतर आ गया था. पल भर के लिए चुप न रहने वाली रुकमा ने अचानक चुप्पी साध ली थी.

रोज मैं उसे अधिक बोलने के लिए लताड़ लगाती थी पर आज मुझे उस का चुप रहना बुरी तरह अखर रहा था.

सिर से पानी गुजरा जा रहा था. मैं ने उस से दोटूक बात की, ‘‘रुकमा, जब से वह सड़कछाप छोकरा वीरू नल ठीक करने आया, तुम एकदम लापरवाह हो गई हो. क्या कारण है?’’

मेरे बारबार पूछने पर भी उस का मुंह नहीं खुला. मानो सांप सूंघ गया हो. उस के इस तरह खामोश होने से दुखी हो कर मैं ने उस वीरू के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि वह विवाहिता है तथा 2 छोटे बच्चे भी हैं. यह भी पता चला कि वह और रुकमा अकसर सब्जी की दुकान में मिला करते हैं.

मुझे रुकमा का विवाहित वीरू से इस तरह मिलने की बात सुन कर बहुत बुरा लगा. यह मेरी प्रतिष्ठा का प्रश्न था. उस की बदनामी के छींटे मेरे ऊपर भी गिर सकते थे. मैं रुकमा को बुला कर डांटने का विचार कर ही रही थी कि गेट के बाहर जोरजोर से बोलने की आवाज सुनाई दी. देखा, एक बूढ़ा व्यक्ति मैलेकुचैले कपड़ों में अंदर आने की कोशिश कर रहा है और चौकीदार उसे रोक रहा है. मैं ने ऊंचे स्वर में चौकीदार को आदेश दिया कि वह उसे अंदर आने दे.

आते ही वह बुजुर्ग मेरे पैरों पर गिर कर रोने लगा. बोला, ‘‘मां, मेरी बेटी का घर बचाओ. मेरा दामाद आप की नौकरानी रुकमा से शादी करने के लिए मेरी बेटी को छोड़ रहा है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारा दामाद कौन, वीरू?’’

प्रत्युत्तर में वह जमीन पर सिर पटक कर रोने लगा. मैं भौचक्की सी सोचने लगी ‘तो मामला यहां तक बिगड़ चुका है.’

मैं ने उसे सांत्वना देते हुए वचन दिया कि मैं किसी भी हालत में उस की बेटी का घर नहीं उजड़ने दूंगी.

आश्वस्त हो कर जब वह चला गया तो रुकमा को बुला कर मैं ने बुरी तरह डांटा और धमकाया, ‘‘बेशर्म कहीं की, तुझे शादी की इतनी जल्दी पड़ी है तो अपने बापभाई से क्यों नहीं कहती? विवाहित पुरुष के पीछे पड़ कर उस की पत्नी का घर बरबाद क्यों कर रही है? मैं आज ही तेरे भाई को बुलवाती हूं.’’

वह अपने बाप से ज्यादा हट्टेकट्टे भाई से डरती थी जो जरा सी बात पर झगड़ा करने और किसी को भी जान से मार देने की धमकी के लिए मशहूर था. रुकमा बुरी तरह से डर गई. बहुत दिनों बाद उस की चुप्पी टूटी. बोली, ‘‘अब मैं उस की ओर देखूं भी तो आप सच में मेरे भाई को खबर कर देना.’’

कान पकड़ कर वह मेरे पैरों में झुक गई. इस घटना के बाद सबकुछ सामान्य सा हो गया प्रतीत होता था. मैं अपने काम में व्यस्त हो गई.

मुश्किल से 15 दिन ही बीते थे कि एक दिन दोपहर में जब मैं बाहर से घर लौटी तो दरवाजे पर ताला लगा देख कर चौंक गई. रुकमा कहां गई? यह सवाल मेरे दिमाग में रहरह कर उठ रहा था. खैर, पर्स से घर की डुप्लीकेट चाबी निकाल कर दरवाजा खोला और अंदर गई तो घर सांयसांय कर रहा था. दिल फिर से आशंका से भर गया और रुकमा की अनुपस्थिति के लिए वीरू को दोषी मान रहा था.

शाम हो गई थी पर रुकमा अभी तक लौटी नहीं थी. चौकीदार सब्जी वाले के  यहां पता लगाने गया तो पता चला कि आज दोनों को किसी ने भी नहीं देखा. वीरू के घर से पता चला कि वह भी सवेरे से निकला हुआ था. आशंका से मेरा मन कांपने लगा.

2 दिन गुजर गए थे. वीरू व रुकमा का कहीं पता नहीं था. मैं ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी थी. किसी ने रुकमा के बाप व भाई को भी सूचित कर दिया था. सब हैरान थे कि वे दोनों अचानक कहां गुम हो गए. पुलिस जंगल व पहाडि़यों का चप्पाचप्पा छान रही थी. उधर रुकमा का भाई अपने हाथ में फसल काटने वाला चमचमाता हंसिया लिए घूमता दिखाई दे रहा था.

एक सप्ताह बाद मुझे पुलिस ने एक स्त्री की क्षतविक्षत लाश की शिनाख्त करने के लिए बुलवाया जोकि पहाडि़यों के  पास जंगली झाडि़यों के झुरमुट में पड़ी मिली थी. लाश के ऊपर की नीली साड़ी मैं तुरंत पहचान गई जोकि रुकमा ने मेरे घर से जाते समय चुरा ली थी. मुझे लाश पहचानने में तनिक भी समय नहीं लगा कि वह रुकमा ही थी.

रुकमा का मृत शरीर मिल गया था. पर वीरू का कहीं पता नहीं था और उस का भाई अब भी हंसिया लिए घूम रहा था. चौकीदार ने बताया कि पहाड़ी लोग अपने घरपरिवार को कलंकित करने वाली लड़की या स्त्री को निश्चित रूप से मृत्युदंड देते हैं. साथ ही वह उस के प्रेमी को भी मार डालते हैं जिस के  कारण उन के घर की स्त्री रास्ता भटक जाती है.

मुझे दुख था रुकमा की मृत्यु का. उस से भी अधिक दुख था मुझे कि मैं वीरू की पत्नी का घर बचाने में असमर्थ रही थी. मैं बारबार यही सोचती कि आखिर वीरू गया कहां? मैं इसी उधेड़बुन में एक शाम रसोईघर में काम कर रही थी कि पिछवाड़े किसी के चलने की पदचाप सुनाई दी. सांस रोक कर कान लगाया तो फिर से किसी के दबे पैरों की पदचाप सुनाई दी. हिम्मत बटोर कर जोर से चिल्लाई ‘‘कौन है? क्या काम है? सामने आओ, नहीं तो पुलिस को फोन करती हूं.’’

रसोईघर के पिछवाड़े की ओर खुलने वाली खिड़की के सामने जो चेहरा नजर आया उसे देख कर मेरे मुंह से मारे खुशी के आवाज निकल गई, ‘‘तुम जीवित हो?’’

वह वीरू था. फटेहाल, बदहवास चेहरा, मेरे घर के पिछवाडे़ में घने पेड़ों के बीच छिपा हुआ था. किसी ने भी मेरे घर के पीछे उसे नहीं खोजा था. वह डर के मारे बुरी तरह कांप रहा था.

मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे चौकीदार की चौकन्नी आंखों से वह कैसे बचा रहा. मुझे भी उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उस ने नल ठीक करने के साथ रुकमा को बिगाड़ दिया था. मन करने लगा कि लगाऊं उसे 2-4 थप्पड़. पर उस की हालत देख कर मैं ने क्रोध पर काबू पाना ही उचित समझा.

पिछवाड़े का दरवाजा खोल कर उसे रात के घुप अंधेरे में चुपचाप अंदर बुला लिया क्योंकि मुझे उस की पत्नी व बच्चों को उन का सहारा लौटाना था. मैं ने उसे खाने को दिया और वह उस पर टूट पड़ा. उस का खाना देख कर लगा कि भूख भी क्या चीज है.

वीरू के खाना खा लेने के बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने यह बहुत घिनौना काम किया है कि विवाहित हो कर भी एक कुंआरी लड़की को अपने जाल में फंसाया. तुम्हारे कारण ही उस की हत्या हुई है. तुम दोषी हो अपनी पत्नी व बच्चों के, जिन्हें तुम ने धोखा दिया. तुम ने तो रुकमा से कहीं अधिक बड़ा अपराध किया है. तुम्हारे साथ मुझे जरा भी सहानुभूति नहीं है पर मैं मजबूर हूं तुम्हारी रक्षा करने के लिए क्योंकि मैं ने तुम्हारी मासूम पत्नी के पिता को वचन दिया है कि उस की बेटी का घर मैं कदापि उजड़ने नहीं दूंगी.’’

ऐसा कहते हुए मैं ने उसे रसोईघर के भंडारगृह में बंद कर ताला लगा दिया. वीरू, रुकमा तथा उस का भाई तीनों अपराधी थे. लेकिन इन के अपराध की सजा वीरू की पत्नी व बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए. करे कोई, भरे कोई. इन्हें न्याय दिलवाना ही होगा तो इस के लिए मुझे वीरू की रक्षा करनी होगी.

मुझे वीरू से पता चला कि रुकमा की हत्या के अपराध में उस के जिस भाई को पुलिस ढूंढ़ रही थी वह उस के घर में घात लगाए उस की बीवी व बच्चों को बंधक बना कर छिपा बैठा था. इस रहस्य को केवल वही जानता था क्योंकि रात के अंधेरे में जब वह अपने बीवीबच्चों से मिलने गया था तो तब उस ने उस को वहां छिपा हुआ देखा था.

वीरू को सुरक्षित ताले में बंद कर मैं आश्वस्त हो गई और फिर तुरंत ही रुकमा के भाई को सजा दिलवाने के लिए मैं ने पुलिस को फोन द्वारा सूचित कर दिया. यही एक रास्ता था मेरे पास अपना वचन निभाने का और वीरू की पत्नी व बच्चों का सहारा लौटा कर घर बचाने का, उन्हें न्याय दिलाने का.

मेरी शिकायत पर पुलिस रुकमा के भाई को पकड़ कर ले गई. मैं ने ताला खोल कर वीरू को बाहर निकाल कर कहा, ‘‘जाओ, अपने घर निश्ंिचत हो कर जाओ. अब तुम्हें रुकमा के भाई से कोई खतरा नहीं है. वह जेल में बंद है.’’

वीरू ने अपने घर जाने से साफ मना कर दिया. वह अब भी भयभीत दिखाई दे रहा था. मेरा माथा ठनका. रहस्य और अधिक गहराता जा रहा था. मैं ने उस से बारबार पूछा तो वह चुप्पी साधे बैठा रहा.

मैं क्रोध से चीखी, ‘‘आखिर अपने ही घर में तुम्हें किस से भय है? मैं तुम्हें सदा के लिए यहां छिपा कर नहीं रख सकती. अगर तुम ने सच बात नहीं बताई तो मैं तुम्हें भी पुलिस के हवाले कर दूंगी. क्योंकि सारी बुराई की जड़ तो तुम्ही हो.’’

वह हकलाता हुआ बोला, ‘‘मांजी, किसी से मत कहिएगा, मेरे बच्चे बिन मां के हो जाएंगे. मेरी पत्नी ने मेरे ही सामने रुकमा की हत्या की थी और अब वह मेरे खून की भी प्यासी है. मुझे यहीं छिपा लो.’’

कहते हुए वह फफकफफक कर रोने लगा.

कातिल फिसलन: दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस

कातिल फिसलन: दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस- भाग 3

सलोनी की बात सुनते ही पास खड़ी महिला सिपाही ने उसे मारने के लिए हाथ ऊपर किया, लेकिन राम सिंह ने उसे रोक दिया और सलोनी से पूछा, ‘‘तो तुम्हारी उंगलियों के निशान उस छड़ पर कैसे आए?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम साहब… मुझे नहीं मालूम,’’ कहते हुए सलोनी फूटफूट कर रोने लगी. दारोगा राम सिंह बाहर निकला तो उस ने सुधीर को बच्चों के साथ थाने की बैंच पर बैठा पाया.

दारोगा राम सिंह ने सुधीर से कहा, ‘‘तुम अपने वकील से बात कर लो. अगर वकील रखने में पैसों की समस्या आ रही है तो कोर्ट में अर्जी दे देना. कोर्ट तुम को वकील मुहैया कराएगा.’’

दारोगा राम सिंह को उन लोगों से हमदर्दी होने लगी थी, क्योंकि उस ने सुखलाल का असली रूप वीडियो में देख लिया था, लेकिन सुधीर गुस्से में चिल्ला उठा, ‘‘मुझे कोई वकील नहीं करना साहब. मैं क्यों परेशान होऊं उस के लिए, जो उस सुखलाल के साथ गुलछर्रे उड़ाती थी और मुझे ही जेल भिजवा दिया था. हो गया होगा दोनों में पैसों को ले कर झगड़ा और यह खून हो गया.’’

‘‘ऐसा नहीं है सुधीर…’’ दारोगा राम सिंह ने उसे समझाया, ‘‘गैरकानूनी हथियार रखने के जुर्म में तुम्हारी जो गिरफ्तारी पहले हुई थी, वह सुखलाल ने केवल तुम्हारी बीवी को पाने के लिए साजिशन कराई थी. इस में तुम्हारी बीवी का कोई कुसूर नहीं था. वह बेचारी तो बस तुम्हारे लिए उस के आगे झुकती चली गई. वह तुम से और केवल तुम से ही प्यार करती है.’’

सुधीर हैरानी से दारोगा राम सिंह का मुंह ताकने लगा. राम सिंह ने सुखलाल के मोबाइल फोन में मिला वही वीडियो उस के आगे चला दिया.

‘‘नहींनहीं… बंद कीजिए इसे दारोगा बाबू,’’ वीडियो देखता हुआ सुधीर चिल्लाया. सलोनी के शरीर पर सुखलाल का हाथ लगने वाला सीन वह नहीं देख पाया और वहीं बैठ कर रोने लगा. सलोनी के प्रति उस का शक आंसुओं से बाहर निकल चुका था.

सुधीर बोला, ‘‘मैं तो उसी रात सुखलाल को मारने उस के कमरे में गया था साहब, जिस के अगले दिन उस की लाश मिली. उस समय वह सो रहा था, लेकिन कानूनी बंधन का डर मुझे रोकने में कामयाब हो गया और मैं घर से निकल कर पूरी रात तनाव में इधरउधर भटकता रहा.

‘‘कल दोपहर को घर लौटने पर उस हैवान के मरने की खुशखबरी मिली. खैर, चाहे उसे मेरी सलोनी ने मारा हो या जिस ने भी, मैं उस का शुक्रगुजार हूं.’’

पिता को यों रोते देख साथ खड़े बच्चे और भी सहम गए. राम सिंह ने सुधीर को उठाया और लौकअप की ओर इशारा किया. उस का संकेत समझ कर सुधीर बेतहाशा सलोनी से मिलने भागा. सलोनी भी उसे देखते ही उस की ओर दौड़ी, लेकिन दीवार बनी सलाखों ने उस के पैर रोक दिए.

सुधीर उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘चिंता मत करना. चाहे जैसे भी हो, तुम को यहां से मैं छुड़ा कर ले जाऊंगा, वरना अपनी भी जान दे दूंगा,’’ इतना कह कर वह वहां से चल दिया.

कुछ दिन बीत गए. दारोगा राम सिंह का बचपन एक अनाथ के रूप में बीता था. मांबाप के बिना बच्चों की क्या हालत होती है, वह अच्छी तरह जानता था. सलोनी थाने में बंद थी और सुधीर वकील खोजने में. ऐसे में उस के बच्चे किस हाल में होंगे?

दारोगा राम सिंह को चिंता हुई तो वह अपनी पत्नी के साथ खानेपीने का कुछ सामान ले कर सुधीर के घर आया. उस का सोचना सही निकला और बच्चे बेसहारा जैसे घर में बैठे मिले.

दारोगा राम सिंह ने उन से पूछा, ‘‘पापा कहां हैं बेटा?’’

‘‘वे तो सुबह से बाहर गए हैं… हम को भूख लगी है, लेकिन पास वाली आंटी ने अभी तक खाना नहीं दिया,’’ बड़े वाले बेटे ने कहा.

दारोगा राम सिंह का कलेजा भर आया. उस ने अपनी बीवी की ओर देखा. राम सिंह की बीवी ने दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठाया और बोली, ‘‘मैं भी तो तुम्हारी आंटी हूं. देखो, मैं लाई हूं खाना.’’

वह उन को खाना खिलाने लगी. कुछ देर सकुचाने के बाद बच्चे उस से घुलनेमिलने लगे.

तभी छोटा वाला बेटा बोल पड़ा, ‘‘आंटीआंटी, मेरे भैया बहुत बहादुर हैं.’’

‘‘अच्छा, क्या किया है भैया ने?’’

‘‘भैया ने उस विलेन अंकल को नीचे गिरा दिया, जो मम्मी को आएदिन परेशान करता था.’’

दारोगा राम सिंह को उस की यह बात सुन कर झटका लगा. उस ने तुरंत उस की ओर देखा, लेकिन फिर समझदारी से काम लेते हुए बड़े वाले बेटे से पूछा, ‘‘बेटा, तुम ने ऐसा क्यों किया जो तुम्हारा यह प्यारा सा छोटा भाई बता रहा है?’’

बड़ा वाला बेटा मुसकरा कर बोला, ‘‘अंकल, मम्मी कहती हैं कि मच्छर मारने वाली दवा पीने से आदमी मर जाता है, इसलिए मैं ने वही दवा उस विलेन अंकल के जूस में मिला दी थी. छोटे भाई ने तो मेरा फोटो भी लिया था.’’

दारोगा राम सिंह के कानों में जैसे बम फूट रहे थे. बड़े वाले बेटे ने उसे मोबाइल फोन में अपना वह फोटो भी दिखाया, जिस में वह सुखलाल के शराब की बोतल को जूस की बोतल समझ के उस में लिक्विडेटर मिला रहा था.

दारोगा राम सिंह कुछ और पूछता, इस से पहले ही छोटा वाला बेटा बोला, ‘‘रात को हम ने चुपके से सीढ़ी पर कंचे रख दिए थे… विलेन अंकल रोज की तरह बाथरूम जाने के लिए बाहर आए और फिसल कर नीचे गिर गए. इस का मैं ने वीडियो भी बनाया है. मेरे भैया… बहुत बहादुर…’’ कह कर वह ताली बजाने लगा.

दारोगा राम सिंह ने वीडियो लिस्ट से जल्दी से वह वीडियो खोजा. सचमुच उस में बड़ा वाला बेटा सीढ़ी पर कंचे रखता दिख रहा था और उस के तुरंत बाद सुखलाल अपना पेट पकड़े वहां आया क्योंकि लिक्विडेटर मिली शराब पी कर सोने के बाद शायद उस की तबीयत बिगड़ रही थी. उस का पैर इसी जल्दी में कंचों पर पड़ा और वह नीचे गिर गया, जहां जमीन पर पड़ी छड़ पेट में धंस गई होगी और वह मर गया.

चूंकि छड़ों के वे टुकड़े सलोनी ने ही उधर फेंके थे, सो उन पर उस की उंगलियों के निशान भी मिल गए, इस घटना का समय बिलकुल वही था जो पोस्टमार्टम में सुखलाल की मौत का बताया गया था.

‘‘बेटा, तुम ने ऐसा क्यों किया?’’ दारोगा राम सिंह ने बड़े बेटे से पूछा.

वह लड़का बोला, ‘‘वे विलेन अंकल मम्मी को हमेशा परेशान करते थे. मैं ने बहुत बार छिप कर देखा था. उस दिन मम्मी के सिर में उन्होंने ही चोट लगा दी थी. जब मैं स्कूल से आया तो पता चला और मुझे बहुत गुस्सा आया.’’

‘‘और यह मोबाइल फोन कहां से मिला तुम को?’’

‘‘यह नानाजी ने हम को दिया है वीडियो गेम खेलने के लिए,’’ बड़े बेटे के कहने के बाद वे दोनों बच्चे फिर खाना खाने लगे.

दारोगा राम सिंह ने अपनी पत्नी की ओर देखा. वह भी हैरान थी. उस ने पूछा, ‘‘बचपन को क्या सजा दी जाएगी?’’

‘‘बचपन किलकने के लिए होता है…’’ दारोगा राम सिंह का चेहरा अब तनाव मुक्त दिखने लगा था. वह हंसते हुए बोला, ‘‘यह केस कानून के लिए एक हादसा माना जाएगा. इन बच्चों की मां भी कुछ दिनों में घर आ जाएगी.’’

सेक्स के दौरान फेविक्विक से चिपका कपल

बात राजस्थान के उदयपुर के गोगुंदा थानांतर्गत केलाबावड़ी के जंगल से शुरू होती है, जिस में 2 जिंदगियां

खत्म हो गईं और एक के माथे पर हत्या का आरोप लग गया. इस जिले में उबेश्वर के जंगलों में मजावद गांव के पास 18 नवंबर, 2022 की सुबहसुबह लाश मिलने की सूचना पर कांस्टेबल विजेश कुमार और कांस्टेबल भवानी सिंह मौके पर पहुंच गए. वहां उन्हें 2 लाशें नग्नावस्था में मिलीं. एक लाश युवक की थी, जबकि दूसरी एक युवती की.

पास में महिला के कपड़े कुरती और लेगी पड़ी थी. जबकि वहीं जींसटीशर्ट भी थी. बरामद लाश के आसपास पाए गए उन के कुछ सामानों से उन की पहचान राहुल मीणा (30) और सोनू कुंवर (28) के रूप में हुई. कांस्टेबल ने इस की जानकारी गोगुंदा के एसएचओ योगेंद्र व्यास को दे दी. उन्होंने उन्हें बताया कि दोनों लाशों को क्षतिग्रस्त किया गया है. ऐसा जान पड़ता है, जैसे मरने वालों पर किसी ने गुस्सा निकाला हो.

उस ने अपने अधिकारियों को यह भी बताया कि पुरुष के गुप्तांग और स्त्री के वक्षों को नुकसान पहुंचाया गया है. शरीर की चमड़ी जगहजगह उधड़ी हुई है.

शहर से ही सटे जंगल में 2 लाशें मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई. पुलिसकर्मियों की इस पहल के बाद उदयपुर के एसपी विकास कुमार ने हत्याकांड की जांच के लिए टीमें बनाईं.

गोगुंदा के एसएचओ योगेंद्र व्यास की देखरेख में जांच शुरू की गई. घटनास्थल से मिले सुराग के आधार पर मालूम हुआ कि राहुल मीणा एक सरकारी स्कूल में टीचर था. दोनों मृतकों का पता भी मालूम हो गया था. उन के घर 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित अलगअलग गांवों में थे.

उदयपुर के एसपी विकास कुमार के दिशानिर्देश पर गहन जांच की जाने लगी. पहली प्राथमिकता हत्याकांड में शामिल अपराधियों का पता लगाना और संबंधित साक्ष्य जुटाने की थी. आगे की जांच के सिलसिले में 200 लोगों से पूछताछ की गई और आसपास के 50 स्थानों के सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए. दोनों मृतकों के मोबाइल नंबर भी मिल गए, उन की  बीते 2 हफ्ते की काल डिटेल्स निकलवाई गई.

जांच में यब भी पता चला कि दोनों मृतक शादीशुदा थे. उन के अपनेअपने जीवनसाथी थे. शादीशुदा होते हुए भी उन के द्वारा जंगल में सैक्स संबंध के लिए आने का मतलब प्रेमप्रसंग और अवैध रिश्ते का लग रहा था. पुलिस ने मृतक राहुल मीणा की पत्नी से पूछताछ की तो कई संदिग्ध बातों की जानकारी मिली.

उस ने पुलिस को बताया कि उस के पति के अवैध संबंध सोनू कुंवर नाम की महिला से थे. कुछ समय पहले उन की जानपहचान भादवी गुड़ा स्थित शेषनाग मंदिर में आतेजाते हुई थी. वह मंदिर इच्छापूर्ति मंदिर के रूप में दूरदूर तक मशहूर है.

पति के नाजायज रिश्ते के बारे में मालूम होने पर उस ने विरोध जताया था. इसे ले कर उस का पति के साथ हर रोज झगड़ा होने लगा. उन्हीं दिनों उस की मंदिर से जुड़े तांत्रिक भालेश कुमार से मुलाकात हुई. वह पिछले 7-8 सालों से भादवी गुड़ा स्थित उस इच्छापूर्ति मंदिर में रह कर लोगों को कष्ट निवारण के लिए ताबीज बना कर देता था.

इसी के साथ राहुल और सोनू के मोबाइल डिटेल्स से भी एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर  लगातार कई बार बातें करने के बारे में पता लगा. वह नंबर उसी तांत्रिक भालेश कुमार का था.

राहुल की पत्नी ने पुलिस को बताया कि उस ने तांत्रिक से मदद मांगी थी. दूसरी तरफ पुलिस को तांत्रिक से राहुल और सोनू के बातचीत करने के सुराग मिलने से जांच की सूई अनैतिक संबंध के साथसाथ तंत्रमंत्र और अंधविश्वास की ओर भी घूम गई.

फिर क्या था पुलिस ने तांत्रिक भालेश कुमार को तुरंत थाने बुलवा लिया. उस से राहुल और सोनू के बारे में पूछताछ की गई. तांत्रिक मंदिर का एक जानामाना व्यक्ति था. उस की समाज में काफी इज्जत थी. उस के पास लोग दूरदूर से अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से ले कर घरेलू झगड़े आदि के निदान के लिए आते थे.

यह जानते हुए भी कि भालेश के उपाय निहायत ही अंधविश्वास वाले थे, लेकिन लोग उस के पास मानसिक संतुष्टि के लिए आते थे.

भालेश ने खुद को राहुल और सोनू के साथ किसी भी तरह की गहरी जानपहचान होने से इनकार कर दिया. उस ने बताया कि उस के पास हर दिन अनेक लोगों के फोन आते रहते हैं और लोग उस से मिलते हैं. वे दोनों भी उसी जैसे थे.

पुलिस के यह कहने पर कि दोनों की उस के साथ कई बार लंबीलंबी बातें हुई हैं. यहां तक कि उस ने रात में भी बातें की हैं. उन की हत्या कर दी गई है.

उस की समस्या के बारे पूछे जाने पर भालेश बौखला गया और इस बारे में गुप्त रखने की बात बताई. किंतु जब पुलिस ने उस पर अंधविश्वास बढ़ाने और तंत्रमंत्र कर लोगों को बरगलाने के कानून में जेल भेजने की धमकी दी, तब वह टूट गया.

हालांकि पूछताछ के क्रम में भालेश ने खुद को एक सिद्ध पुरुष और विकट साधना और लंबे समय तक मंत्र जाप करने वाला व्यक्ति बताया.

उस ने यह भी बताया कि उस की इसी योग्यता के पुण्य प्रताप से उसे इस मंदिर में जगह मिली हुई है. यहां वह लोगों की समस्याओं का निदान करता है.

इसी के साथ उस ने कथित तौर पर राहुल और सोनू के बीच अवैध संबंध तथा अंधविश्वास की हैरान कर देने वाली बातें बताईं. साथ ही दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने की बात भी कुबूल कर ली.

उस के बाद राहुल और सोनू कुंवर की हत्या के बारे में जो खुलासा हुआ, वह काफी चौंकाने वाला निकला— कोरोना प्रकोप का असर काफी हद तक कम होने के बाद लौकडाउन खुला तो मंदिर भी खुल गए थे. लोगों का आनाजाना शुरू हो गया था. लोग नई तरह की अजीबोगरीब समस्या ले कर आने लगे थे.

इन में अधिकांश लोग प्रेम विवाह, दांपत्य जीवन में तकरार, विवाह टूटने, आर्थिक स्थिति बिगड़ने, कानूनी मामले में फंसने आदि से ले कर अवैध रिश्ते से छुटकारा पाने तक की समस्या के निदान के लिए आते थे.

उन्हीं में राहुल की पत्नी समेत सोनू कुंवर के परिजन भी थे. राहुल की पत्नी ने तांत्रिक भालेश से अपनी समस्या बताई कि वह पति को वश में रखने के लिए कोई उपाय बताए. उस का पति किसी दूसरी औरत के साथ प्रेम संबंध बनाए हुए है और उस की उपेक्षा करता है. यहां तक कि उस के साथ यौन संबंध भी नहीं बनाता है. लंबे समय से राहुल देर रात को घर आ रहा था और शराब पी कर अकसर झगड़ा करता था. इस पर राहुल के परिवार के लोग मंदिर में भालेश जोशी के पास आए और राहुल के ऐसा करने का कारण पूछा.

इस पर तांत्रिक भावेश ने राहुल और सोनू कुंवर के बीच में अफेयर की बात बता दी थी. राहुल के इस व्यवहार से क्षुब्ध हो कर उस की पत्नी तांत्रिक भालेश से मदद मांगने आई थी.

इस सिलसिले में राहुल भी भालेश से मिला था. लेकिन उस की तमन्ना कुछ और ही थी. वह भी प्रेमिका से छुटकारा पाना चाहता था. बताते हैं कि उस की नजर तांत्रिक भालेश की बेटी पर थी. इस कारण सोनू कुंवर से छुटकारा दिलाने का कोई उपाय पूछा.

जबकि सोनू कुंवर भी अलग से भावेश से मिली थी. वह राहुल से गहरे संबंध कायम बनाए रखने और उस के पत्नी से संबंध तुड़वाने की मांग कर रही थी. ऐसे में भालेश उलझन में घिर गया था. वह समझ नहीं पा रहा था कि किस की बात माने और किस के खिलाफ व किस के पक्ष में तंत्र साधना करे.

तंत्रमंत्र और ताबीज आदि से जुड़ी एक सच्चाई को वह अच्छी तरह जानता था कि इस से किसी समस्या का निदान नहीं निकलता है. यह सिर्फ मानसिक संतुष्टि भर होता है. किंतु हां, उस ने भी रोजीरोटी के लिए दूसरे फरेबी तांत्रिकों की तरह ही एक ज्ञानी और सिद्ध तांत्रिक होने का चोला पहन लिया था.

दूसरों की समस्याओं का निदान करने वाले भालेश खुद समस्या में फंस गया था, क्योंकि उसे सोनू कुंवर ने काम नहीं करने पर बदनाम करने की धमकी दी थी.

इसी तरह राहुल तांत्रिक भालेश की बेटी को भी चाहता था. उस ने तांत्रिक से कहा कि वह अपनी तंत्रसाधना के जरिए उस की इच्छा की पूर्ति करे. उस ने धमकी दी कि यदि उस की इच्छा पूरी नहीं हुई तो वह उस के खिलाफ दुष्प्रचार कर उस की छवि को पलक झपकते ही मिटा सकता है. भालेश दोनों तरफ से तंत्रमंत्र के झूठे साम्राज्य के ध्वस्त होने और अपनी बदनामी होने से घबरा गया. उस के सामने उलझन यह थी कि राहुल और सोनू दोनों वशीकरण की साधना करना चाहते थे.

जैसा कि उन्हें मालूम था कि भालेश ने वशीकरण सीख कर और सवा लाख मंत्रजाप कर ही सिद्धि हासिल की है. उस के बारे में लोगों में ऐसी मान्यता थी कि इस जाप के पूरा होते ही उन की हर इच्छा पूर्ण हो जाती है.

एक तरफ भालेश के सामने राहुल की इच्छापूर्ति के लिए बेटी को दांव पर लगाने की बात थी. दूसरी तरफ सोनू की धमकी थी. सोनू कुंवर ने भालेश का हाथ पकड़ते हुए धमकी दी थी कि यदि उस ने उसे वशीकरण नहीं सिखाया तो वह सभी को बता देगी कि उस ने मेरे साथ गलत हरकत करने की कोशिश की है. यह बात पुलिस को भी बता दूंगी और वह जेल जाएगा. उस का बनाबनाया नाम खत्म कर दूंगी.

तांत्रिक ने बेटी के दांव पर लगे होने की बात  सामने नहीं आने दी और उस ने दोनों से छुटकारा पाने के लिए एक साजिश रच डाली. उस ने राहुल और सोनू कुंवर को अपनी इच्छापूर्ति के लिए आखिरी बार यौन संबंध बनाने के लिए राजी कर लिया. इस के लिए वे दोनों तैयार हो गए. तांत्रिक ने दोनों को हिदायत दी कि वे अपनी इच्छाओं के बारे में किसी से जिक्र नहीं करेंगे. घटना वाले दिन यानी 15 नवंबर, 2022 की शाम को तांत्रिक क्रिया के बहाने राहुल और उस की प्रेमिका को गोगुंदा इलाके के एकांत जंगल में ले गया और उन्हें अपने सामने ही सैक्स संबंध बनाने को कहा.

राहुल मीणा और सोनू कुंवर उस के कहे अनुसार सैक्स संबंध बनाने लगे. जिस के बाद उस ने मंत्र जाप करते हुए एक बोतल से तरल पदार्थ उन पर उड़ेल दिया. वह तरल पदार्थ उन दोनों के गुप्तांगों तक भी पहुंच गया.

वह तरल पदार्थ दरअसल फेविक्विक था, जिस के दोनों के बदन पर गिरते ही वे चिपक गए. प्रेमी युगल को जरा भी समय नहीं मिल पाया कि वे उस से बच सकें. कुछ समझ पाते, तब तक वे बुरी तरह चिपक चुके थे. अलग होने की कोशिश में दोनों के गुप्तांगों व शरीर के अन्य हिस्सों की चमड़ी उधड़ गई.

उधर तांत्रिक भालेश ने राहुल का प्राइवेट पार्ट काट दिया और सोनू कुंवर के वक्षों पर भी वार कर दिया. उस के बाद उन दोनों की हत्या कर वहां से वह फरार हो गया. हत्या के लिए उस ने चाकू और पत्थर का इस्तेमाल किया था. हत्याकांड को अंजाम देने के लिए तांत्रिक ने 15 रुपए वाली 50 फेविक्विक खरीदी थीं. उन्हें खोल कर सारा तरल पदार्थ एक छोटी बोतल में भर लिया था.

इतनी अधिक संख्या में फेविक्विक खरीदने को ले कर किसी तरह की साजिश का कोई शक नहीं हुआ, क्योंकि वह ताबीज बनाता था इस वजह से वह पहले भी अकसर फेविक्विक खरीदा करता था.

मर्डर के दौरान तांत्रिक के अंगूठे और हाथपैर पर भी फेविक्विक लग गई थी, जिसे हटाने के प्रयास में उस के हाथपैर की खाल भी उधड़ गई थी. तांत्रिक उस दिन के बाद से पट्टी बांध कर घूम रहा था.

हालांकि उस ने इस दौरान पूरी सतर्कता बरतते हुए हाथों में ग्लव्स पहन रखे थे, फिर भी ग्लव्स के फटने से उस के हाथों में फेविक्विक लग गई थी. पुलिस ने तांत्रिक भालेश से पूछताछ कर उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

कातिल फिसलन: दारोगा राम सिंह के पास कौनसा आया था केस- भाग 2

तफतीश पूरी होने तक के लिए सुखलाल के कमरे को सील कर दारोगा राम सिंह वहां से चला गया.

दोपहर को अचानक सुधीर लौट आया. सलोनी भाग कर उस से लिपट गई और पूछा, ‘‘कहां चले गए थे आप अचानक आधी रात से?’’

‘‘दुकान के लिए निकलना है मुझे…’’ सुधीर ने बेरुखी से उसे खुद से अलग करते हुए कहा.

सलोनी उसे देखती रह गई. उस ने फिर बातों का सिलसिला शुरू करना चाहा, ‘‘अरे, पुलिस आई थी यहां. सुखलाल की मौत हो गई न आज…’’

‘‘हां, मुझे पता चला है पड़ोसियों से इस बारे में,’’ सुधीर ने उसे बीच में ही टोक दिया, ‘‘तुम को पैसे की तंगी हो जाएगी, फिर अब तो…’’

सलोनी उस की बात सुन कर सन्न रह गई. सुधीर तीखे लहजे में आगे बोला, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि हम को अब किराया नहीं मिल सकेगा न.’’

इतना कह कर सुधीर अपना थैला ले कर दुकान के लिए निकल गया. सलोनी उस के कहे का मतलब अच्छी तरह समझ रही थी. वह बच्चों को अपनी बांहों में भर कर उदास मन से फिर वहीं बैठ गई.

कुछ दिन ऐसे ही बीतते रहे. उधर सुखलाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. दारोगा राम सिंह उसे पढ़ने में लगा था. सुखलाल की मौत की वजह पेट में लोहे की छड़ धंसना बताई गई थी. बाकी शरीर पर लगी चोटें जानलेवा नहीं थीं. इस के अलावा एक बात जिस ने राम सिंह को चौंका दिया, वह थी सुखलाल के शरीर में मिली जहरीली चीज की मात्रा. जहरीली चीज भी क्या थी, घरों में मच्छर भगाने के लिए काम में आने वाला लिक्विडेटर उस की शराब में मिलाया गया था.

दारोगा राम सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या मतलब है? लिक्विडेटर इतना ज्यादा जहरीला नहीं होता कि कोई उस का इस्तेमाल किसी को जहर दे कर मारने के लिए करे. और सुखलाल खुद उसे पीएगा नहीं, फिर यह क्या चक्कर है? फोरैंसिक और फिंगर प्रिंट रिपोर्टें भी उस के सामने थीं. उन के मुताबिक जो छड़ सुखलाल के पेट में धंसी थी, उस पर सुखलाल के अलावा एक और आदमी की उंगलियों के निशान मिले थे. सुखलाल पर एकसाथ इतने सारे हमले कैसे हुए? पहले शराब में जहरीली चीज दी गई, उस के बाद पेट में छड़ घोंपी गई. मारने वाले को इतने से भी संतोष नहीं मिला तो उस ने उस को ऊपर से नीचे गिरा दिया और सुखलाल ने अपने बचाव के लिए किसी को कोई आवाज क्यों नहीं दी?

दारोगा राम सिंह को समझ आने लगा कि सुखलाल की मकान मालकिन सलोनी उस से झूठ बोल रही है. उस ने गुप्त रूप से उस के पड़ोसियों से पूछताछ शुरू कर दी. बाकियों ने तो कुछ खास बात नहीं बताई लेकिन सुखलाल के कमरे की खिड़की के ठीक सामने रहने वाले छात्र विवेक ने कहा, ‘‘सर, उस

रात मैं रोज की तरह जाग कर अपने कंपीटिशन के इम्तिहान की तैयारी में जुटा था तो मैं ने सुधीर भैया को सीढि़यों से ऊपर सुखलाल चाचा के कमरे में जाते देखा था, पर वे बाहर कब आए, इस का मुझे ध्यान नहीं.’’

‘‘अच्छा,’’ राम सिंह को ऐसी ही किसी बात का शक तो पहले से था. उस ने आगे पूछा, ‘‘सुखलाल और सुधीर

की कोई दुश्मनी? वह तो किराएदार था उस का.’’

‘‘सर… वह…’’ विवेक खुल कर कुछ बोलने से बचता दिखा. राम सिंह ने उसे भरोसा दिलाया कि केस में उस का नाम नहीं आएगा.

विवेक ने डरतेडरते कहा, ‘‘सर, सुधीर भैया को शक था सुखलाल चाचा और सलोनी भाभी को ले कर…’’

दारोगा राम सिंह मुसकरा उठा कि यहां भी वही चक्कर. वह वहां से चल पड़ा. गैरकानूनी हथियार रखने के केस में सुधीर के पहले भी गिरफ्तार होने की जानकारी तो उसे अपने थाने के रिकौर्ड से मिल ही चुकी थी. वह चाहता तो सुधीर को सीधे गिरफ्तार कर सकता था, मगर वह अपने महकमे के दूसरे पुलिस वालों सा नहीं था. किसी भी केस को बिना किसी पक्षपात के हल करना उस की पहचान थी.

दारोगा राम सिंह को अब सुखलाल के मोबाइल फोन की तलाश थी. उसे वह न तो सुखलाल के कमरे में मिला था और न ही उस के कपड़ों में. अचानक उस की छठी इंद्रिय ने उस से कुछ कहा और वह उसी जगह आया जहां सुखलाल की लाश पड़ी मिली थी.

दारोगा राम सिंह ने इधरउधर खोजना शुरू किया और आखिर एक पौधे के पीछे छिपा पड़ा सुखलाल का मोबाइल फोन उसे मिल गया.

थाने आ कर दारोगा राम सिंह उसे खंगालने लगा और जल्दी ही अपने काम की चीज उसे नजर आ गई. उस में सुखलाल और सलोनी का एक वीडियो था जो शायद सुखलाल ने चोरीछिपे बनाया था. उस में सुखलाल अपने कपड़े उतारते हुए कह रहा था, ‘बस, मुझे खुश करो, तुम्हारा पति तुरंत थाने से बाहर आ जाएगा.’

वहीं सलोनी उस के आगे गिड़गिड़ा रही थी, ‘मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं… मुझे ऐसा काम करने को मजबूर मत कीजिए.’

लेकिन सुखलाल ने उस की एक न सुनी और अपने दिल की कर के ही उसे बिस्तर पर लिटा दिया. वीडियो को आगे देखना राम सिंह को सही नहीं लगा. वह हर औरत की इज्जत करता था. उस ने ऐसे भी कई केस देखे थे जहां औरत

ने अपने साथ हुए इस तरह के जुल्मों

का बदला खुद लिया था. उस ने अपनी इसी सोच के साथ एक बार फिर सलोनी से मिलने का फैसला किया और उस के घर पहुंचा.

‘‘दारोगा बाबू, आप यहां,’’ सलोनी उसे देख कर ठिठक गई.

‘‘डरिए नहीं… बस, आप से कुछ जानकारियां चाहिए थीं,’’ दारोगा राम सिंह उसे सहज करने के लिए बोला और सामान्य तरीके से इसी केस के सिलसिले में बातें करने लगा.

इसी बीच दारोगा राम सिंह ने अपना मोबाइल फोन सलोनी के हाथ में दिया जिस से उस की उंगलियों के निशान उस पर आ जाएं और उन का मिलान छड़ पर मिले निशानों से हो सके.

सलोनी उस की यह चालाकी समझ नहीं सकी. राम सिंह ने वापस आ कर उन निशानों की जांच कराई और इस बार फिर उस का सोचना सही निकला. छड़ पर सुखलाल के अलावा सलोनी की

ही उंगलियों के निशान थे. उस ने तुरंत सलोनी को गिरफ्तार कर लिया.

लौकअप में सलोनी दारोगा राम सिंह के सामने रोरो कर कहने लगी, ‘‘दारोगा साहब, मैं ने किसी का खून नहीं किया है. जिंदगी तो मेरी उस सुखलाल ने बरबाद की थी. मैं अकेली उस भारीभरकम आदमी को कैसे मार सकती हूं? मैं ने तो अपने घर की साफसफाई में कुछ दिनों पहले ही लोहे की छड़ों के सारे टुकड़े पास की उसी खाली जमीन में फेंक दिए थे.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें