प्यार की भूल

गली में जैसे ही बाइक के हौर्न की आवाज सुनाई दी, शमा के साथसाथ उस की सहेलियां भी चौंक उठीं. क्योंकि वह बाइक शमा के प्रेमी नरेंदर की थी. नरेंदर अपनी बाइक से कपड़ों की फेरी लगाता था. शमा के घर के नजदीक पहुंचते ही वह बारबार हौर्न बजाता. तभी तो बाइक के हौर्न की आवाज सुनते ही एक सहेली ने शमा को छेड़ते हुए कहा, ‘‘लो जानेमन, आ गई तुम्हारे यार की कपड़ों की चलतीफिरती दुकान.’’

‘‘हट बदमाश, तू तो ऐसे कह रही है जैसे वह केवल मेरे लिए ही यहां आता है. क्या मोहल्ले का और कोई उस से कपडे़ नहीं खरीदता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या, वह तेरे लिए ही तो इस गांव में आता है.’’ सहेलियों ने शमा को छेड़ते हुए कहा, ‘‘वह बेचारा तो सारे गांव छोड़ कर पता नहीं कहां से धक्के खाता हुआ तेरे दीदार के लिए इस गांव में आता है.’’

सहेलियों की चुहलबाजी से शमा शरमा गई और उन के बीच से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

जब वह कमरे से बाहर निकली तो गुलाबी रंग का फूलों के प्रिंट वाला सुंदर सूट पहन कर आई थी. यह सूट पिछले सप्ताह नरेंद्र ने उसे यह कहते हुए दिया था कि इसे सिलवा कर तुम ही पहनना, किसी और को मत देना. इसे मैं अमृतसर से सिर्फ तुम्हारे लिए ही लाया हूं. यूं समझो शमा, यह सूट मेरे प्यार की निशानी है.

नरेंदर के दिए उसी सूट को पहन कर शमा घर से निकली. नरेंदर उस के सामने खड़ा था. जैसे ही वह घर से बाहर आई, उसे देख कर वह खुश हो गया. वह मंत्रमुग्ध सा हो कर उसे ऊपर से नीचे तक देखता रह गया था. उस सूट ने उस की खूबसूरती में चारचांद लगा दिए थे. वह किसी अप्सरा से कम सुंदर नहीं लग रही थी.

घर की ओट में खड़ी शमा की सहेलियां जब जोरजोर से हंसी तो शमा और नरेंदर की तंद्रा भंग हुई. घबराहट और शरम से भरी शमा ने जल्दीजल्दी नरेंद्र से कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलती हूं.’’

नरेंदर ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘नहीं शमा, आज नहीं. आज मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है.’’

शमा के कदम वहीं रुक गए.

जालंधर शहर की बस्ती शेख निवासी नरेश चौहान के 2 बेटे थे सुरेंदर चौहान और नरेंदर चौहान. कई साल पहले किसी वजह से नरेश की मृत्यु हो गई, जिस की वजह से परिवार का भार उन की पत्नी सुदेश कुमारी के ऊपर आ गया. जो सगेसंबंधी थे, उन्होंने भी मदद करने के बजाय सुदेश का साथ छोड़ दिया था. मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने जैसेतैसे दोनों बच्चों का पालनपोषण किया. जहां तक हो सका, उन्हें पढ़ाया भी.

बड़ा बेटा सुरेंदर जब जवान हो कर किसी फैक्ट्री में काम करने लगा तो घर के हालात कुछ सामान्य हुए. कुछ समय बाद उस ने कुछ रुपए इकट्ठे कर के और कुछ इधरउधर से कर्ज ले कर छोटे भाई नरेंदर को कपड़े का काम करवा दिया. उसे एक मोटरसाइकिल भी खरीदवा दी. नरेंदर सुबह कपड़े का गट्ठर बांध कर अपनी बाइक पर रखता और जालंधर से बाहर दूरदूर गांवों में जा कर कपड़ा बेचता.

मोटरसाइकिल से गांवगांव घूम कर कपड़ों की फेरी लगाने पर उस का काम चल निकला. अब दोनों भाई कमाने लगे तो वे पैसे मां को दे देते. मां ने पैसे जोड़जाड़ कर बड़े बेटे सुरेंदर की शादी कर दी.

पर शादी के कुछ दिनों बाद वह अपनी पत्नी को ले कर अलग रहने लगा था. जबकि नरेंदर मां के साथ रहता था. नरेंदर खूब मेहनत कर रहा था. उस का व्यवहार भी अच्छा था जिस की वजह से उसे ठीकठाक आमदनी हो जाती थी.

एक बार वह कपड़े बेचने के लिए नंगल लाहौरा गांव गया. वहां की रहने वाली भोलीनामक महिला उसे अपने घर बुला कर ले गई.

उस दिन भोली व उस की बेटी शमा ने उस से 5 हजार रुपए के कपड़े खरीदे. उसी समय उस की मुलाकात शमा से हुई थी. शमा बहुत खूबसूरत थी. उसी दिन उस की शमा से आंखें लड़ गईं.

इस के बाद वह नंगल लाहौरा गांव का रोजाना ही चक्कर लगाता और शमा के घर के नजदीक बाइक पहुंचते ही बारबार हौर्न बजाता.

हौर्न की आवाज सुनते ही शमा घर से बाहर निकल आती थी. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराने लगते थे. कभीकभी अच्छे कपड़े दिखाने की बात कह कर वह भोली के घर में भी चला जाता था.

जब नरेंदर उस के यहां ज्यादा ही आनेजाने लगा तो शमा के घर वालों ने उस से बेरुखी से बात करनी शुरू कर दी. इस बारे में नरेंदर ने शमा से फोन पर पूछा तो शमा ने घर वालों की नाराजगी के बारे में बता दिया. घर वालों से चोरीछिपे शमा नरेंदर से मिलती रही. उन की फोन पर भी बात होती रहती. इस तरह उन का प्यार परवान चढ़ता रहा. यह सन 2004 की बात है.

नरेंदर शमा की पूरी पारिवारिक स्थिति जान गया था. शमा की 5 बहनें और एक भाई था. पिता की पहले ही मौत हो चुकी थी. घर की पूरी जिम्मेदारी शमा की मां भोली के कंधों पर ही थी. शमा की बड़ी बहन शादी लायक थी, उस के लिए भोली कोई अच्छा लड़का तलाश रही थी.

नरेंदर जितना शमा को चाहता था, उस से कई गुना अधिक शमा भी उस से प्यार करती थी. नरेंदर हृष्टपुष्ट और भला लड़का था. वह कमा भी अच्छा रहा था, इसलिए उसे उम्मीद थी कि शमा की शादी उस से कर देने पर भोली को कोई ऐतराज नहीं होगा.

पर पता नहीं क्यों नरेंदर ने किसी के माध्यम से शमा से शादी करने का प्रस्ताव भोली के पास भेजा तो भोली ने उस के साथ बेटी का रिश्ता करने से साफ इनकार कर दिया. इस से दोनों प्रेमियों के इरादों पर पानी फिर गया.

ऐसे प्रेमियों के पास घर से भाग कर शादी करने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचता, सो शमा और नरेंदर ने भी घर से भाग कर शादी करने की योजना बनाई.

नरेंदर ने मंदिर के पंडित से ले कर वकील तक का इंतजाम कर के शमा से कहा, ‘‘शमा, अब मेरी बात गौर से सुनो. मैं ने शादी की सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं. कल सुबह तुम्हें किसी बहाने से अपने गांव से निकल कर बसअड्डे पहुंचना है. फिर वहां से कोई बस पकड़ कर तुम जालंधर आ जाना. मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा. वहां से हम साथसाथ चंडीगढ़ चलेंगे और वहीं शादी कर लेंगे. तुम चिंता मत करो, मैं ने सारा इंतजाम कर लिया है.’’

‘‘मैं घर से कपड़े भी लेती आऊं?’’ शमा ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम्हें कुछ भी साथ लाने की जरूरत नहीं है. तुम बस इतना करना कि टाइम से पहुंच जाना.’’ नरेंदर ने शमा को अच्छी तरह समझा दिया था. इतना ही नहीं उस ने किराएभाड़े के लिए कुछ पैसे भी उसे दे दिए थे.

योजना के अनुसार शमा निर्धारित समय पर नरेंदर के पास जालंधर पहुंच गई. फिर वहां से बस द्वारा दोनों चंडीगढ़ पहुंच गए. पहले उन्होंने एक मंदिर में शादी की फिर उस शादी को नोटरी पब्लिक के जरिए रजिस्टर भी करवा लिया.

नरेंदर शमा से शादी कर के बहुत खुश था. उस ने अपनी शादी के लिए बहुत बढि़या इंतजाम कर रखा था. हनीमून को वह यादगार बनाना चाहता था इसलिए उस ने चंडीगढ़ में ही एक थ्रीस्टार होटल में सुइट बुक करवा रखा था. वह बेहद उत्सुक था पर उस रात उस की उत्सुकता ठंडी पड़ गई. उस के सारे अरमानों पर पानी फिर गया.

उस के दिल को इतना बड़ा धक्का लगा कि उस ने सोचा भी नहीं होगा. क्योंकि अपनी मनपसंद की जिस शमा को वह जीजान से चाहता था, सब के विरोध के बावजूद जिस से उस ने शादी की, वह लड़की नहीं बल्कि किन्नर निकली. अब पूरा ब्रह्मांड उसे घूमता नजर आ रहा था. वह बुदबुदाने लगा कि मैं समाज को अब क्या मुंह दिखाऊंगा.

इस के बाद वह बैड से उठ कर जोरजोर से रोने लगा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. गुस्से से तमतमाते हुए उस ने शमा के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘बताओ, मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था. अपनी जान से ज्यादा तुम्हें प्यार किया था और तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया. बताओ, क्यों किया ऐसा? सच बताओ नहीं तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा.’’ नरेंदर के सिर पर जैसे खून सवार हो गया था.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती नरेंदर, तुम्हारे प्यार की कसम. मैं तो बचपन से ही ऐसी हूं. मां ने कहा था कि शादी के बाद अपने आप ठीक हो जाऊंगी.’’ शमा ने मासूमियत से जवाब दिया था.

नरेंदर समझ गया कि या तो शमा इतनी भोली है कि उसे इस बारे में कुछ पता नहीं या वह बेहद चालाक है. लेकिन बात कुछ भी रही हो, पर अब वह क्या करे. यह प्रश्न बारबार नरेंदर के दिमाग में घूम रहा था. वक्त की बेरहम आंधी ने उस की खुशियों के चमन को एक झटके में उखाड़ कर तहसनहस कर दिया था. शमा के मिन्नतें करने पर नरेंदर उसे अपने घर ले गया.

2 दिन अपने घर पर रखने के बाद उस ने शमा को घर से निकालते हुए कह दिया, ‘‘शमा, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. अब मैं यह बताना चाहता हूं कि तुम इस घटना को एक बुरा सपना समझ कर भूल जाना. मैं भी भूलने की कोशिश करूंगा. हां, एक बात याद रखना कि आज के बाद कभी भूल कर भी मेरे सामने मत आना. जिस दिन तुम मेरे सामने आ गई तो समझ लेना कि वह दिन तुम्हारी जिंदगी का आखिरी दिन होगा.’’

शमा को इतनी जल्दी भुला देना नरेंदर के लिए आसान नहीं था. इसलिए उस ने जालंधर से दूर जाना उचित समझा. वह अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर अपनी मां को ले कर दिल्ली आ गया. यहां उस ने औटो चलाना शुरू कर दिया. दूसरी ओर शमा भी अपनी मां के पास चली गई.

वक्त के साथ सब कुछ सामान्य होता चला गया था. दूसरी ओर शमा की बड़ी बहन की शादी राजकुमार नामक युवक के साथ हो गई. शादी के बाद भोली के ऊपर लोगों का कर्ज भी हो गया था.

मां जो मेहनतमजदूरी करती, उस से बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल पाता था. ऐसी हालत में शमा ने मां का हाथ बंटाना जरूरी समझा. उस ने एक आर्केस्ट्रा ग्रुप जौइन कर लिया. इस काम में अच्छीखासी कमाई थी सो घर के हालात धीरेधीरे बदलने लगे.

शमा जालंधर के आर्केस्ट्रा ग्रुप में काम करती थी. गांव से जालंधर आने में शमा को परेशानी होती थी, इसलिए वह अपनी मां और भाईबहन को जालंधर ले आई. वहीं उस ने एक किराए का कमरा ले लिया. शमा और नरेंदर दोनों अपनेअपने काम में लग गए थे, इसलिए उन की प्रेमकहानी का अंत हो चुका था.

वक्त के बेरहम थपेड़ों में दोनों ने एकदूसरे को भुला दिया था. इस तरह वक्त का पहिया अपनी गति से घूमता रहा था. एकएक कर इस बात को पूरे 11 साल गुजर गए थे. न तो नरेंदर को पता था कि शमा अब कहां है और न ही शमा यह जानती थी कि उसे अपने घर से निकालने के बाद नरेंद्र कहां और किस हाल में है.

पहली मई 2017 की बात है. शमा रात 8 बजे अपने घर से अपनी स्कूटी पर किसी काम से बाजार जाने के लिए निकली. चलते समय उस ने अपनी मां से कहा था कि वह किसी जरूरी काम से बाहर जा रही है, थोड़ी देर में लौट आएगी. लेकिन वह उस रात घर नहीं लौटी तो भोली ने शमा को फोन मिलाया. पर उस का फोन बंद था.

रात भर तलाशने पर भी शमा का कहीं कोई पता नहीं चला. अगली सुबह शमा की एक सहेली ने बताया कि रात शमा उस को बस्ती शेख के तेजमोहन नगर की गली नंबर 6 के कोने पर मिली थी, पूछने पर उस ने बताया था किसी रिश्तेदार से मिलने जा रही है.

‘‘लेकिन यहां हमारा कोई रिश्तेदार तो क्या, कोई जानकार भी नहीं रहता.’’ भोली ने बताया.

बहरहाल, भोली अपने बेटे और दामाद को साथ ले कर तेजमोहन नगर की गली नंबर 6 में पहुंची तो मकान नंबर 3572/19 के सामने शमा की स्कूटी खड़ी मिली. आसपास के लोगों से पूछने पर पता चला कि वह मकान पिछले 4 महीनों से किसी नरेंदर चौहान ने किराए पर ले रखा था.

मकान के बाहर छोटा सा ताला था. भोली और उस के बेटे और दामाद ताला खोल कर जब भीतर गए तो वहां का नजारा देख कर उन सब के होश उड़ गए. बैड पर शमा की लाश पड़ी थी. तब भोली ने इस की सूचना थाना डिवीजन-5 पुलिस को दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखबीर सिंह अपने सहयोगी इंसपेक्टर नरेश जोशी के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल का मुआयना करने से पता चला कि मृतका के गले में दुपट्टा कसा हुआ था. इस के अलावा उस की गरदन पर गहरा घाव भी था.

पूछताछ करने पर पता चला था कि उस मकान में नरेंदर चौहान किराए पर रहता था. वह मृतका का पति था. पड़ोसियों ने बताया कि शमा रात करीब सवा 8 बजे वहां पहुंची थी. इस के कुछ देर बाद ही उस के कमरे से लड़ाईझगड़े की जोरजोर की आवाजें आने लगी थीं. कुछ देर बाद आवाजें आनी बंद हो गईं. रात करीब साढ़े 10 बजे उन्होंने नरेंदर और उस की मां को घर के बाहर निकल कर कहीं जाते हुए देखा था.

भोली ने भी अपने बयान में यही बताया था कि शमा की हत्या उस के दामाद नरेंदर चौहान और उस की मां सुदेश चौहान ने मिल कर की है.

इंसपेक्टर सुखबीर सिंह ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी. भोली के बयान के आधार पर पुलिस ने नरेंदर चौहान और उस की मां सुदेश चौहान के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर तहकीकात शुरू कर दी.

3 डाक्टरों के पैनल ने शमा की लाश का पोस्टमार्टम कर जो रिपोर्ट दी, उस में उन्होंने साफ लिखा था कि शमा एक किन्नर थी और उस की मौत गला घोंटने और गरदन पर कोई तेज नुकीली चीज के वार से हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस ने नरेंदर की तलाश शुरू कर दी. इस के लिए पुलिस की टीमें लगातार छापेमारी कर रही.

खास मुखबिर भी नरेंदर की तलाश में दिनरात एक किए हुए थे. 7 जुलाई 2017 को एक मुखबिर ने सूचना दी कि नरेंदर अपनी मां के साथ दिल्ली के सब्जीमंडी क्षेत्र में छिपा हुआ है.

सूचना मिलते ही पुलिस टीम दिल्ली रवाना हो गई और मुखबिर द्वारा बताए पते पर दबिश दे कर नरेंदर को गिरफ्तार कर के दिल्ली से जालंधर ले आई. उस समय वहां उस की मां मौजूद नहीं थी.

नरेंदर को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया पर रिमांड अवधि में उस ने अपना मुंह नहीं खोला. तब 10 जुलाई को उसे फिर से अदालत में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर ले कर सख्ती से पूछताछ की गई.

आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही शमा की हत्या की थी. पुलिस अधिकारियों के सामने अपनी कहानी बताते हुए वह जोरजोर से दहाड़ें मार कर रोने लगा. उस ने उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

नरेंदर अपनी मां के साथ दिल्ली में रह रहा था और औटो चला कर अपना गुजारा कर रहा था, जबकि शमा जालंधर में आर्केस्ट्रा का काम करते हुए अपनी मां और भाईबहनों के साथ रह रही थी. इत्तफाक से दिल्ली में नरेंदर की मां बीमार रहने लगी थी उस की सेवा के लिए नरेंदर का काम प्रभावित होने लगा था.

मां के इलाज पर भी काफी खर्च आ रहा था. ऐसे में जालंधर में रहने वाले नरेंदर के भाई सुरेंदर ने उसे सलाह दी कि वह मां को ले कर जालंधर चला आए. दोनों भाई मिल कर मां का इलाज भी करवा लेंगे और कामधंधा भी प्रभावित नहीं होगा.

भाई की सलाह मान कर नरेंदर मां को साथ ले कर दिल्ली छोड़ कर जालंधर की बस्ती शेख में किराए का कमरा ले कर रहने लगा यहां भी उस ने औटो चलाना शुरू कर दिया था.

यह लगभग 3 महीने पहले की बात है. तब तक न शमा जानती थी कि नरेंदर इन दिनों जालंधर में है और न ही नरेंदर यह बात जानता था कि शमा अब जालंधर में रहती है. नरेंदर शमा को एक दु:स्वप्न समझ कर पूरी तरह भुला चुका था.

30 अप्रैल, 2017 की बात है. उस दिन शाम के समय शमा को नरेंदर के चाचा का लड़का छिंदा बाजार में मिल गया था. दोनों बड़े दिनों बाद मिले थे, इसलिए भीड़ से हट कर आपस में बातें करने लगे. बातोंबातों में छिंदा ने उसे बता दिया कि आजकल नरेंदर भाई भी यहीं रह रहे हैं. शमा ने छिंदा से नरेंदर का फोन नंबर ले लिया.

अगले दिन शमा ने नरेंदर को फोन कर के मिलने की इच्छा जताई तो पहले नरेंद्र ने मिलने से इनकार कर दिया. उस ने कहा, ‘‘अब हमारे बीच कुछ नहीं बचा है, मैं तुम्हें भूल भी चुका हूं इसलिए मिलने का क्या फायदा?’’

‘‘सिर्फ एक बार मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’ शमा ने कहा तो वह तैयार हो गया. उसी दिन पहली मई को शमा रात करीब 8 बजे नरेंदर से मिलने उस के घर पहुंच गई.

शमा को देखते ही नरेंदर का खून खौल उठा. उस की आंखों के सामने बीते दिनों की बातें किसी चलचित्र की तरह दिखाई देने लगी थीं. बड़ी मुश्किल से उस ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए ठंडे लहजे में कहा, ‘‘शमा, तुम्हें यहां मेरे पास नहीं आना चाहिए था. याद है, मैं ने अलग होते समय तुम से क्या कहा था?’’

शमा मुसकरा कर बोली, ‘‘अभी भी गुस्सा हो मुझ से?’’

तभी नरेंदर ने कहा, ‘‘अच्छा, जो हुआ सो हुआ. शायद यही नियति ने लिखा था. अब एक काम करते हैं तुम आर्केस्ट्रा का काम छोड़ दो. हम दोनों अपने प्यार से मिल कर एक नई दुनिया बसाते हैं. रहा सवाल संतान का तो हम कहीं से कोई बच्चा गोद ले लेंगे.’’

‘‘नहीं नरेंदर, अब चाह कर भी मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती और न ही आर्केस्ट्रा का काम छोड़ सकती हूं. मेरे इसी काम से मेरे परिवार का खर्च चलता है. मैं उन्हें भूखा नहीं मार सकती.’’ शमा बोली.

नरेंदर को गुस्सा आ गया. वह उसे गालियां देते हुए बोला, ‘‘तो मेरे पास यहां क्या करने आई है? याद है, मैं ने क्या कहा था. जिस दिन तू मेरे सामने आएगी, मैं तुझे खत्म कर दूंगा.’’ नरेंदर ने उसे जोरदार थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘मैं सब कुछ भूलभाल कर तुझे अपनाने को दोबारा तैयार हो गया और तू है कि अपने बहनभाई और रंडियों वाले नाचगाने का पेशा छोड़ने को तैयार नहीं है. आज मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

कह कर नरेंदर वहां से उठ कर दूसरे कमरे में गया और अपनी मां को उठा कर जबरदस्ती बाथरूम में बंद कर दिया. इस के बाद वह शमा के पास पहुंचा और उसी के दुपट्टे से उस ने उस का गला घोंट दिया. कहीं वह जिंदा न रह जाए, यह सोच कर उस ने एक तेजधार चाकू का भरपूर वार शमा की गरदन पर किया था.

उस की हत्या करने के बाद उस ने बाथरूम का दरवाजा खोल कर अपनी मां को बाहर निकाला. मां सुदेश ने बाहर आ कर जब शमा की लाश देखी तो उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. सुदेश ने नरेंदर को काफी भलाबुरा कहा. पर अब कुछ नहीं हो सकता था. इस के बाद वह मां को ले कर दिल्ली चला गया. पर पुलिस ने उसे वहीं से ढूंढ निकाला.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे अदालत में पेश किया गया और अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक सुदेश गिरफ्तार नहीं हो सकी थी.

-कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चाओं पर आधारित

रंगीन शौक पड़ गया जान पर भारी

राजस्थान में आम लोगों के होली खेलने के अगले दिन पुलिस वाले होली खेलते हैं. इस की वजह यह है कि होली पर पुलिस वाले आम लोगों की सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ड्यूटी पर तैनात रहते हैं. इसलिए पुलिस विभाग अगले दिन होली खेलता है. उस दिन पुलिस वाले पूरी मस्ती में होते हैं. पुलिस अधिकारियों के घरों और रिजर्व पुलिस लाइनों में दोपहर तक यही सिलसिला चलता रहता है.

इस बार 13 मार्च को आम लोगों ने होली खेली थी, इसलिए पुलिस वालों ने 14 मार्च को होली खेली. दोपहर तक चली पुलिस वालों की होली की मस्ती की खुमारी शाम तक उतरने लगी थी. जयपुर के थाना मानसरोवर के ज्यादातर पुलिस वाले वरदी पहन कर अपनी ड्यूटी पर आ गए थे. 1-2 ही थे, जो किसी वजह से नहीं आए थे, इस से कामकाज पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था.

शाम 6-7 बजे के बीच थाना मानसरोवर के लैंडलाइन फोन की घंटी बजी तो ड्यूटी अफसर ने रिसीवर कान से लगा कर कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘सर, आप थाना मानसरोवर से बोल रहे हैं न?’’ दूसरी ओर से पूछा गया.

‘‘जी कहिए, मैं थाना मानसरोवर से ही बोल रहा हूं?’’ ड्यूटी अफसर ने कहा.

‘‘सर, मैं हीरापथ से बोल रहा हूं.’’ दूसरी ओर से किसी आदमी की घबराई हुई सी आवाज आई, ‘‘सर, हीरापथ के मकान नंबर 55/31 से बहुत तेज दुर्गंध आ रही है. इस मकान में रहने वाले बापबेटे भी नजर नहीं आ रहे हैं. सर, मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है.’’

‘‘मकान से दुर्गंध कब से आ रही है?’’ ड्यूटी अफसर ने फोन करने वाले से पूछा.

‘‘सर, दुर्गंध तो होली के बाद से ही आ रही है, लेकिन अब असहनीय हो गई है.’’ फोन करने वाले ने कहा और फोन काट दिया.

फोन कटने के तुरंत बाद ड्यूटी अफसर ने फोन द्वारा मिली सूचना थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह राणावत को दे दी. सूचना की सच्चाई का पता करने के लिए थानाप्रभारी ने एक सबइंसपेक्टर और 4 सिपाहियों को हीरापथ पर भेज दिया. मानसरोवर जयपुर महानगर की सब से बड़ी आवासीय कालोनी है. मुख्य मार्ग को क्रौस करते हुए मुख्य सड़कों के नाम स्वर्णपथ, रजतपथ, किरणपथ, कावेरीपथ आदि हैं.

पुलिस को हीरापथ पर स्थित उस मकान को खोजने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. हीरापथ पर आईसीआईसीआई बैंक के सामने 5 मंजिला एक निर्माणाधीन होटल के पास बहुत सारे लोग खड़े बातें कर रहे थे. पुलिस समझ गई कि घटना उसी मकान में घटी है.

पुलिस ने गाड़ी वहां जा कर रोक दी. सबइंसपेक्टर ने वहां खड़े लोगों से पूछा कि क्या बात है तो भीड़ में से एक अधेड़ ने आगे आ कर कहा, ‘‘साहब, आप यह जो होटल देख रहे हैं, यह मकान नंबर 55/31 पर बना हुआ है. इसी मकान से तेज दुर्गंध आ रही है. इस मकान में रहने वाले बापबेटे का भी कुछ अतापता नहीं है.’’

‘‘इस मकान में बापबेटे ही रहते थे?’’ सबइंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘सर, हमें ज्यादा कुछ पता नहीं है. बस इतना पता है कि यहां कोई सक्सेना साहब रहते थे, साथ में उन का बेटा रहता था. परिवार में शायद कोई महिला नहीं है.’’ अधेड़ ने कहा.

‘‘आप को इन सक्सेना साहब के बारे में ज्यादा क्यों नहीं पता?’’

‘‘साहब, वह झगड़ालू किस्म के आदमी थे, इसलिए उन की किसी से ज्यादा पटती नहीं थी.’’ अधेड़ ने कहा.

‘‘ठीक है, चलो देखते हैं.’’ सबइंसपेक्टर ने कहा.

सबइंसपेक्टर होटल की ओर बढ़े तो दुर्गंध की वजह से उन्हें नाक पर रूमाल रखनी पड़ी. मकान में बने होटल का गेट धक्का देते ही खुल गया. शायद वह खुला ही पड़ा था. पुलिस होटल के अंदर घुसी तो सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. होटल निर्माण का भी कुछ सामान पड़ा था. इधरउधर पड़े सामान से सहज ही अंदाजा लग गया कि इस घर को होटल में तब्दील किया जा रहा था और इन दिनों निर्माणकार्य चल रहा था.

पुलिस ने मकान की तलाशी ली तो ग्राउंड फ्लोर पर पीछे के कमरे में एक बुजुर्ग का शव पड़ा मिला. शव के सीने पर पानी की टंकी का ढक्कन रखा था. वहीं एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था. पत्थर पर खून के निशान थे. इस से लगा कि बुजुर्ग की हत्या सिर पर पत्थर मार कर की गई थी.

इस के बाद पुलिस पहली मंजिल पर पहुंची तो वहां एक युवक का शव पड़ा मिला. युवक के हाथ कपड़े से आगे की ओर बंधे थे. उस के कपड़े खुले थे. दोनों शवों से तेज बदबू आ रही थी. सबइंसपेक्टर ने आसपास के लोगों से शवों की शिनाख्त कराई. लोगों ने उन की शिनाख्त राजनारायण सक्सेना और उन के बेटे सौरभ सक्सेना के रूप में की.

सबइंसपेक्टर ने यह सूचना थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह राणावत को दी तो उन्होंने उच्चाधिकारियों को इस जानकारी से अवगत करा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी सहित अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक एक्सपर्ट को भी बुला लिया गया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट ने तो साक्ष्य जुटा लिए, पर डौग स्क्वायड से पुलिस को कोई खास मदद नहीं मिली. लाशों को देख कर ही लग रहा था कि ये हत्याएं 3-4 दिन पहले की गई थीं. स्थितियों से यही लग रहा था कि बदमाशों ने सौरभ को बंधक बना कर राजनारायण सक्सेना से कोई सौदा करने या लूटपाट की कोशिश की थी. सौरभ को चोट लगने पर राजनारायण ने भागने की कोशिश की होगी तो बदमाशों ने उन्हें मार दिया. उस के बाद सौरभ को भी मार डाला.

इस बात पर भी विचार किया गया कि पितापुत्र का अपने किसी परिचित या रिश्तेदार से प्रौपर्टी को ले कर कोई विवाद तो नहीं चल रहा था, तमाम कोणों पर विचार किए गए, लेकिन पुलिस को हत्या की वजह पता नहीं लग सकी. उसी दिन थाना मानसरोवर में इस दोहरे हत्याकांड का केस दर्ज कर लिया गया.

पुलिस आयुक्त ने अधिकारियों के साथ मीटिंग कर हत्या के इस मामले पर व्यापक विचारविमर्श किया. इस के बाद पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) मनीष अग्रवाल और अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) योगेश गोयल ने सहायक पुलिस आयुक्त देशराज यादव के निर्देशन में थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह राणावत के नेतृत्व में 3 टीमें गठित कर दीं, जिस में थाना शिप्रापथ और मानसरोवर के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीमों ने आसपास के लोगों से पूछताछ कर राजनारायण सक्सेना और उन के बेटे सौरभ के बारे में जानकारी जुटाई. पता चला कि करीब 73 साल के राजनारायण सक्सेना कृषि विभाग में उपनिदेशक के पद से रिटायर हुए थे. करीब 43 साल के उन के बेटे सौरभ सक्सेना ने मुंबई से इलैक्ट्रिकल में इंजीनियरिंग की थी.

करीब 6 साल पहले उस की शादी हुई थी, लेकिन उस का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा. शादी के 4-5 साल बाद ही उस का पत्नी से तलाक हो गया था. राजनारायण सक्सेना की पत्नी इंद्रा की डेढ़ साल पहले मौत हो गई थी. उस के बाद घर में बापबेटे ही रह गए थे.

राजनारायण सक्सेना ने 3 साल पहले अपने मकान को होटल में तब्दील करने का फैसला लिया और उसे तोड़वा कर होटल का रूप देने लगे थे. पत्नी की मौत के बाद काम रोक दिया गया था. इधर कुछ महीने पहले फिर से निर्माण कार्य शुरू करा दिया गया था. अब तक निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका था. कमरों में पीओपी करवाई जा रही थी. फिनिशिंग और सजावट का पूरा काम बाकी था.

जांच में पता चला कि सौरभ सक्सेना के पास कई मोबाइल फोन थे. जो पुलिस को मिल गए थे. उन की काल डिटेल्स की जांच की गई तो पता चला उस के पास गोवा, मुंबई, असम और कोलकाता से फोन आते थे. इस से पुलिस को शक हुआ कि सौरभ कहीं किसी तरह की सट्टेबाजी का काम तो नहीं करता था?

पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि 10 मार्च की रात करीब साढ़े 10 बजे सौरभ ने अपने घर के पास ही एक मोबाइल फोन की दुकान से अपने एक मोबाइल में बैलेंस डलवाया था, उस समय उस के साथ एक आदमी और था. इस से अंदाजा लगाया गया कि सौरभ की हत्या 10 मार्च की रात साढ़े 10 बजे के बाद की गई थी. सक्सेना के घर के आंगन में 12 मार्च के अखबार पड़े थे, जिन्हें खोला नहीं गया था.

जांच में एक बात यह भी सामने आई कि 14 मार्च की रात करीब 8 बजे के बाद पितापुत्र की हत्या का पता चला था, उस से करीब 4 घंटे पहले शाम 4 बजे के करीब एक महिला सक्सेना के घर से लैपटौप वाला बैग और एकदूसरे अन्य बैग में कुछ सामान ले कर निकली थी. वह महिला साड़ी पहने थी और उस की उम्र 30-35 साल थी.

एक पड़ोसी ने जब उसे टोका तो उस ने कहा था कि सौरभ भैया ने बुलाया था. सौरभ के पास कभीकभी महिलाएं आतीजाती रहती थीं. इसलिए उस पड़ोसी ने महिला पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

 

पड़ोसियों से पता चला था कि सौरभ रात को अपने घर के अंदर और बाहर की सभी लाइटें जला कर रखता था, लेकिन होली की रात को उन के घर में अंधेरा छाया था. इस से पड़ोसियों ने अनुमान लगाया था कि दोनों बापबेटे कहीं गए हैं. चूंकि वे दोनों झगड़ालू थे और पड़ोसियों से बिना बात झगड़ा कर लेते थे, इसलिए किसी ने सक्सेना के घर की ओर ज्यादा ताकझांक नहीं की. जांच में पता चला था कि सौरभ ने घटना से कुछ दिनों पहले अपने घर के ग्राउंडफ्लोर पर सीसीटीवी कैमरे लगवाए थे. पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की तलाश की तो वह घर में बने पानी के टैंक में टूटे हुए मिले. इन कैमरों का रिकौर्डर भी नहीं मिला. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्यारे को सक्सेना के घर की पूरी जानकारी थी.

यह भी पता चला था कि निर्माणकार्य के दौरान मेहनतमजदूरी को ले कर बापबेटे का कई बार मजदूरों और मिस्त्रियों से झगड़ा हुआ था. सौरभ की मजदूरों से मारपीट भी हुई थी. इस से यह भी सोचा गया कि रुपयों के लेनदेन को ले कर किसी मजदूर या मिस्त्री ने तो इन बापबेटे की हत्या नहीं कर दी?

पुलिस को राजनारायण सक्सेना के कुछ रिश्तेदारों का पता चला तो उन से भी बात की गई. लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस की जांच ज्योंज्यों आगे बढ़ रही थी, बापबेटों के बारे में नईनई बातें सामने आ रही थीं. लेकिन हत्या के बारे में कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

तमाम लोगों से पूछताछ और जांच के बाद पुलिस को यह अंदाजा जरूर हो गया कि हत्यारों का सुराग निर्माणकार्य में लगे मजदूरों और मिस्त्रियों से ही मिल सकता है. इस के बाद पुलिस ने मानसरोवर इलाके में वीटी रोड की चौखटी पर बैठने वाले मिस्त्रियों, मजदूरों और ठेकेदारों से पूछताछ शुरू की. कुछ महिलाओं से भी पूछताछ की गई.

इस काररवाई के बाद पुलिस ने 19 मार्च को 3 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में टोंक जिले के उनियारा के लतीफगंज पायगा गांव का रहने वाला राकेश मीणा, उस के साथ 5 साल से लिवइनरिलेशन में रह रही करौली निवासी गीता उर्फ पूजा मीणा तथा करौली के गुणेसरा का रहने वाला रमेश सैनी था.

पुलिस ने तीनों से पूछताछ की तो इस दोहरे हत्याकांड का खुलासा हो गया. पता चला कि सौरभ सक्सेना के शराब और शबाब के शौक ने ही उस की और उस के पिता की जान ली थी. पुलिस द्वारा तीनों से की गई पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजनारायण सक्सेना और उन के बेटे सौरभ 3 साल से अपने मकान को होटल बनवा रहे थे. इस के लिए वे मानसरोवर के वीटी रोड की चौखटी से खुद ही मिस्त्री और मजदूर लाते थे. इसलिए उस इलाके के ज्यादातर मजदूरों और मिस्त्रियों को इस बात का पता था कि सौरभ की मां की मौत के बाद से घर में बापबेटे ही रहते हैं.

राकेश मीणा मकानों में मार्बल और टाइल्स लगाने का काम करता था. रमेश सैनी मार्बल घिसाई का काम करता था. मकान का काम करने के दौरान ही राजनारायण और सौरभ से इन की जानपहचान हुई थी. तभी उन्हें बापबेटों की कमजोरियों का पता चल गया था.

सौरभ के कहने पर ही कुछ दिनों पहले राकेश और रमेश ने उसे एक महिला उपलब्ध कराने की बात कही. उस के हां करने पर राकेश ने अपने साथ लिवइन रिलेशन में रह रही गीता उर्फ पूजा को इस के लिए तैयार कर लिया.

करीब 2 महीने पहले राकेश ने रमेश और गीता के साथ मिल कर योजना बनाई कि सक्सेना के घर शराब की पार्टी की जाए. जब दोनों नशे में हो जाएं तो एकएक कर उन्हें मार कर उन के घर रखी नकदी और ज्वैलरी लूट ली जाए.

इस के बाद राकेश अपने साथियों के साथ अकसर सौरभ के यहां आने लगा और रात में शराब की पार्टी करने लगा. उसी बीच उस ने सौरभ की तमाम व्यक्तिगत जानकारियां जुटाने के साथ यह भी जान लिया कि घर में नकदी व गहने कहां रखे हैं. सारी जानकारी जुटा कर राकेश रमेश और गीता उर्फ पूजा के अलावा 6 साल की बेटी को ले कर 10 मार्च की रात सौरभ के घर पहुंचा.

उस ने कहा कि एक दिन बाद होली है, इसलिए होली से पहले वे शराब की पार्टी करना चाहते हैं. इसी के साथ राकेश ने गीता की ओर आंख मार कर सौरभ से कहा कि अगर वह चाहे तो इस के साथ मौजमस्ती भी कर सकता है. गीता की गदराई जवानी को देख कर सौरभ का मन मचल उठा और वह शराब की पार्टी करने को तैयार हो गया.

इस के बाद राकेश और रमेश ने सौरभ के साथ शराब पी. इस बीच गीता और राकेश की बेटी उसी कमरे में एक कोने में बैठ कर नमकीन और स्नैक्स खाती रहीं. सौरभ को जब नशा चढ़ा तो वह गीता को ले कर मकान की पहली मंजिल पर चला गया. कुछ देर बाद गीता और सौरभ नीचे आ गए.

सौरभ ने एक पैग शराब और पी और नशे में झूमने लगा. वह एक ओर चला गया तो कुछ देर बाद राकेश ने उधर देखा, जहां उस की बेटी बैठी थी. वहां उसे बेटी दिखाई नहीं दी तो वह बेटी को ढूंढता हुआ पहली मंजिल पर पहुंचा.

वहां उस ने देखा कि सौरभ उस मासूम बच्ची के साथ गलत हरकतें कर रहा था. यह देख कर उस का सारा नशा उतर गया. उस की आंखों से अंगारे बरसने लगे. उस ने सौरभ को पकड़ कर उस का गला दबा दिया. सौरभ बेहोश हो गया. शोरशराबा सुन कर नीचे से रमेश और गीता भी पहली मंजिल पर आ गए. तीनों ने उस के हाथपैर बांध दिए और उस का गला दबा कर मार डाला.

सौरभ की हत्या कर सभी नीचे उतर रहे थे, तभी शोरशराबा सुन कर ग्राउंड फ्लोर से राजनारायण सक्सेना चिल्लाने लगे. राकेश ने पानी के टैंक का ढक्कन उठा कर उन के सिर पर दे मारा. बुजुर्ग राजनारायण गिर पड़े तो सभी ने उन का भी गला दबा दिया. उन की भी सांसें थम गईं.

बापबेटे को मौत की नींद सुला कर रमेश सक्सेना के घर से करीब 2 लाख रुपए के गहने और नकदी के अलावा मोबाइल फोन आदि ले कर साथियों के साथ चला गया. ये सभी पुलिस की गतिविधियों पर पूरी तरह नजर रखे हुए थे, साथ ही दिन में 1-2 चक्कर सक्सेना के घर के लगा लेते थे, ताकि पता चलता रहे कि पुलिस क्या कर रही है?

3-4 दिनों तक कोई हलचल नहीं हुई तो ये लोग निश्ंिचत हो गए कि बापबेटे अकेले ही रहते थे, इसलिए उन के मरने का किसी को पता नहीं चलेगा. इस के बाद 14 मार्च की दोपहर को राकेश और गीता सक्सेना के घर गए और वहां से एलईडी टीवी, सीपीयू, कंप्यूटर मौनिटर, प्रोजेक्टर और वीडियो कैमरा उठा लाए.

उसी दिन शाम को राकेश गीता के साथ उत्तर प्रदेश के शहर मथुरा चला गया, जहां उन्होंने गोवर्धन परिक्रमा की. 16 मार्च को वह वहां से रमेश सैनी के घर करौली चला गया. एक दिन बाद गीता के साथ मेंहदीपुर बालाजी के दर्शन कर के जयपुर लौट आया. पुलिस ने 19 मार्च को उसे और गीता को जयपुर से और रमेश सैनी को करौली रामपुर गांव से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में राकेश ने अपने गांव का पता गलत बताने के साथ कहा कि उस के मातापिता भी नहीं हैं. लेकिन जांच में उस का गांव टोंक जिले का लतीफगंज पाया गया. उस के मातापिता भी जीवित मिले.

10 साल से वह मोहिनी देवी उर्फ गीता के साथ लिवइन रिलेशन में रहता था, जिस के तथा मिल कर उस ने दोनों बापबेटों की हत्या की थी. गीता को पूर्व पति धनराज मीणा से एक बेटा और एक बेटी है. राकेश ने सौरभ की हत्या की वजह बेटी से गलत हरकत करना बताया है, लेकिन पुलिस का मानना है कि राकेश ने अपने बचाव के लिए यह बयान दिया है. पुलिस ने बच्ची का मैडिकल करवाया है, जिस से ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

राकेश और उस के साथियों ने अगर अपराध किया है तो कानून उन्हें सजा देगा, लेकिन सौरभ के शराब और शबाब के शौक ने उस की तो जान ले ही ली, बूढे़ पिता को भी जान से हाथ धोना पड़ा.

जयपुर महानगर की सब से बड़ी और व्यस्त कालोनी में शिक्षित लोगों के साथ ऐसी वारदात होगी, किसी ने सोचा भी नहीं था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बदनामी का दाग जिसने सब तबाह कर दिया

7 अगस्त, 2016 की सुबह 7 बजे सायरा ने अपनी छत से पड़ोस में रहने वाली सुनीता की छत पर देखा तो वहां का नजारा देख कर वह सन्न रह गई. छत पर सुनीता के देवर राजेश की लाश खून से लथपथ पड़ी थी. उस ने शोर मचाया तो आसपड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए. सायरा ने 100 नंबर पर फोन कर के इस बात की सूचना पुलिस को भी दे दी थी. पीसीआर वैन कुछ ही देर में आ गई. यह स्थान दक्षिणपश्चिम दिल्ली के थाना रनहौला के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम की सूचना पर के एसआई ब्रह्मप्रकाश हैडकांस्टेबल संजय एवं कांस्टेबल नरेश कुमार के साथ सुनीता के घर पहुंच गए थे.

जैसे ही ये सभी दूसरी मंजिल पर पहुंचे, बरामदे में सुनीता की लाश पड़ी मिली. उस की हत्या चाकू से गला रेत कर की गई थी. वह चाकू लाश के पास ही पड़ा था. उन्हें सुनीता के मकान की दूसरी मंजिल की छत पर उस के देवर की लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी, इसलिए वह छत पर गए तो छत पर बिछी चटाई पर सुनीता के देवर राजेश की लाश पड़ी थी.

राजेश का सिर फटा हुआ था. लाश के पास ही हथौड़ा पड़ा था, जिस पर खून लगा था. इस का मतलब हत्या उसी हथौड़े से की गई थी. चटाई पर शराब की एक बोतल, 2 गिलास, एक लोटे में पानी तथा एक कटोरी में तली हुई कलेजी रखी थी. इस से साफ लग रहा था कि यहां बैठ कर 2 लोगों ने शराब पी थी.

पड़ोसियों ने बताया कि मृतक राजेश कुमार हरियाणा के जिला सोनीपत के गांव हुमायूंपुर में रहता था. वह अकसर सुनीता के घर आता रहता था. पड़ोसियों ने एक बात यह भी बताई कि राजेश जब भी यहां रात को ठहरता था, सुनीता की छोटी बेटी ज्योति अपनी सहेली के घर सोने चली जाती थी. ब्रह्मप्रकाश के दिमाग में यह बात बैठ गई कि चाचा राजेश के आने पर ज्योति अपना घर छोड़ कर किसी और के यहां सोने क्यों चली जाती थी?

ब्रह्मप्रकाश ने इस दोहरे हत्याकांड की सूचना थानाप्रभारी सुभाष मलिक को भी दे दी थी. थोड़ी देर में वह भी अपने कुछ मातहतों के साथ आ गए थे. उन्होंने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड टीम को भी बुला लिया था. थानाप्रभारी की सूचना पर एसीपी (नांगलोई) आनंद राणा भी आ गए थे.

निरीक्षण के बाद जब ज्योति से पूछा गया कि अपना घर होते हुए भी वह अपनी सहेली के घर सोने क्यों गई थी तो जवाब देने के बजाय वह शरमाने लगी. इस से आनंद राणा समझ गए कि मामला कुछ ऐसा होगा, जिसे वह बताना नहीं चाहती. सारी कारवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

डीसीपी ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी आनंद राणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी सुभाष मलिक, इंसपेक्टर एस.एस. राठी, हैडकांस्टेबल नरेंद्र, कांस्टेबल विक्रांत, अनिल, वीरेंद्र, नरेश, प्रवीण, संजीव, महिला कांस्टेबल परमिंदर आदि को शामिल किया गया.

टीम में शामिल महिला कांस्टेबल परमिंदर ने ज्योति से पूछा कि चाचा के आने पर वह उस रात दूसरे के यहां सोने क्यों गई थी तो ज्योति ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘चाचा और मम्मी शराब पी कर अश्लील बातें ही नहीं, अश्लील हरकतें करने लगते थे. कल रात भी जब दोनों नशे में एकदूसरे से अश्लील हरकतें करने लगे तो मैं रात 10 बजे के करीब गुस्से में सहेली के घर चली गई थी.’’

‘‘सुबह तुम्हें घटना की खबर कैसे मिली?’’

‘‘करीब 8 बजे सहेली के पापा ने मुझे बताया.’’ कह कर ज्योति रोने लगी.

इंसपेक्टर एस.एस. राठी ने उसे सांत्वना दे कर पूछा, ‘‘तुम्हारे खयाल से तुम्हारी मम्मी और चाचा की हत्या कौन कर सकता है?’’

‘‘साहब, पता नहीं इन्हें किस ने मारा है, मुझे सिर्फ इतना पता है कि पापा की मौत के बाद मम्मी बेलगाम हो गई थीं.’’

एस.एस. राठी को इस हत्याकांड की वजह समझ में आ गई. उन्होंने सुनीता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर देखी तो उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उन्हें संदेह हुआ. वह नंबर ज्योति के पति कप्तान सिंह का था. कप्तान के नंबर पर घटना वाली रात पौने 2 बजे सुनीता के फोन से फोन किया गया था.

एस.एस. राठी की समझ में यह नहीं आया कि जब कप्तान के संबंध सास और पत्नी से ठीक नहीं थे तो उतनी रात को सुनीता ने कप्तान को फोन क्यों किया? इस बारे में उन्होंने ज्योति से बात की तो उस ने बताया कि उस के और मम्मी के कप्तान से कोई संबंध नहीं थे, इसलिए फोन पर बात करने वाली बात संभव नहीं है. उन्होंने ज्योति से कप्तान का पता ले लिया. वह हरियाणा के भालगढ़ का रहने वाला था. पुलिस ने उस के यहां छापा मारा और उसे हिरासत में ले कर दिल्ली आ गई.

कप्तान सिंह से जब इस दोहरे हत्याकांड के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि राजेश और सुनीता की हत्या उस के छोटे भाई अमित ने अपने दोस्त सुमित शर्मा के साथ मिल कर की थी. इस के बाद कप्तान सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने रोहतक के गांव बिचपड़ी से सुमित शर्मा और सोनीपत से अमित को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

रामकुमार मूलरूप से हरियाणा के सोनीपत जिले के हुमायूंपुर के रहने वाले जिले सिंह का बेटा था. उस के पास खेती की 7 एकड़ जमीन थी. उस के परिवार में 2 बेटियों के अलावा एक बेटा अंकित था. बाद में उस ने दिल्ली के रनहौला में मकान बनवा लिया और परिवार के साथ वहीं रहने लगा.

सुनीता हरियाणा के रोहतक की रहने वाली थी. शादी से पहले ही उस के कदम बहक गए थे. जब परिवार की बदनामी होने लगी थी तो पिता ने उस का विवाह रामकुमार से कर दिया था. रामकुमार की कुछ जमीन अच्छे पैसों में बिकी थी, इसलिए वह जम कर शराब पीने लगा था. बाद में सुनीता को भी उस ने अपने रंग में रंग लिया था. लगातार ज्यादा शराब पीने से रामकुमार की बड़ी आंत में कैंसर हो गया, जिस से उस की मौत हो गई. सुनीता को पति के मरने का कोई गम नहीं हुआ, इस के बाद वह और भी स्वच्छंद हो गई. इलाके के कई युवकों से उस के नाजायज संबंध बन गए.

शराब पी कर वह रात में अपने किसी प्रेमी को बुला लेती. बड़ी बेटी का विवाह रामकुमार के सामने ही हो चुका था. छोटी बेटी ज्योति ने मां की अय्याशी पर लगाम लगाने की कोशिश की तो उस ने उस का विवाह कप्तान सिंह से कर के उसे दूर कर दिया. कप्तान सिंह सोनीपत में संगमरमर का व्यापार करता था. वह भी पक्का शराबी था. शराब पी कर वह ज्योति से मारपीट करता था. पति से तंग आ कर वह मायके आ कर रहने लगी. सुनीता के अवैध संबंध अपने सगे देवर राजेश से भी थे. शादीशुदा राजेश की नजर सुनीता की संपत्ति पर थी. इसलिए वह उसे दूसरी पत्नी के रूप में रखना चाहता था.

कप्तान का परिवार खानदानी और रईस था. कप्तान और घर वालों को सुनीता के चालचलन की जानकारी हो चुकी थी, इसलिए कप्तान के मातापिता नहीं चाहते थे कि ज्योति मायके में रहे. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि सुनीता कहीं ज्योति को भी अपनी तरह न बना दे. इसलिए उन्होंने ज्योति को लाने के लिए कप्तान और छोटे बेटे अमित को कई बार रनहौला भेजा.

मांबेटी ने दोनों भाइयों को हर बार अपमानित कर के भगा दिया था. कप्तान और उस के घर वालों को सुनीता की हर खबर मिलती रहती थी. लोग उस की अय्याशी के किस्से सुना कर उन की हंसी उड़ाते थे. इस से अमित का खून खौल उठता था. वह अकसर भाई से कहा करता था कि उस की सास की वजह से उन लोगों की बड़ी बदनामी हो रही है. देखना एक दिन वह उसे मार देगा.

एक दिन अमित सुनीता के घर गया और सुनीता को काफी समझाया. यही नहीं, उस ने चेतावनी भी दी कि वह सुधर जाए वरना अंजाम बुरा होगा. सुनीता ने उस की धमकी पर गौर करने के बजाय उसे धक्के मार कर घर से भगा दिया. अपमानित हो कर अमित घर तो लौटा आया, लेकिन उस ने तय कर लिया कि वह उसे जीवित नहीं छोड़ेगा. अपने दोस्त सुमित शर्मा के साथ मिल कर उस ने सुनीता की हत्या की योजना बना डाली.

रोज की तरह 6 अगस्त, 2016 की रात करीब 12 बजे अमित सुमित शर्मा को ले कर सुनीता के घर पहुंचा. सुनीता ने गुस्से में कहा, ‘‘इतनी रात को तुम लोग यहां क्या लेने आए हो?’’

अमित उसे धक्का दे कर अंदर ले गया तो नशे में धुत सुनीता उसे गालियां देने लगी. दूसरी मंजिल की छत पर शराब पी रहे राजेश को पता चला कि अमित आया है तो वह भी अमित को ऊपर से गालियां देने लगा. अमित का पारा चढ़ गया. वह छत पर पहुंचा और राजेश के चेहरे पर घूंसे मारने लगा.

सुमित भी ऊपर पहुंचा. वहां रखा हथौड़ा उठा कर पूरी ताकत से उस ने राजेश के सिर पर मारा, जिस से उस का सिर फट गया और थोड़ी देर में उस की मौत हो गई. सुनीता डर कर नीचे अपने कमरे की ओर भागी तो अमित और सुमित भी उस के पीछे दौड़े. सुमित ने बरामदे में सुनीता को दबोच लिया. अमित ने रसोई से सब्जी काटने वाली छुरी ला कर सुनीता का गला रेत दिया. सुनीता भी कुछ देर में मर गई.

इस के बाद अमित ने कहा, ‘‘सुमित, अपना फोन देना. पुलिस को हमारी लोकेशन का पता न चले, इसलिए मैं अपना फोन नहीं लाया.’’

अमित की नजर बैड पर रखे सुनीता के मोबाइल पर गई तो उस ने फोन उठा कर बड़े भाई कप्तान का नंबर मिला कर कहा, ‘‘मैं ने उस कुलटा को सबक सिखा दिया है.’’

इस के बाद सुमित के साथ मकान से बाहर आया और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचा, जहां से सुबह 5 बजे ट्रेन से सोनीपत चला गया. अमित निश्चिंत था कि किसी को पता नहीं चलेगा कि राजेश और सुनीता की हत्या किस ने की है मगर सुनीता की हत्या उस ने की है, लेकिन सुनीता के फोन से कप्तान को फोन कर के उस ने जो भूल की, उसी ने उसे कानून के फंदे में फंसा दिया.

8 अगस्त को पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा अमित और सुमित के खिलाफ दर्ज कर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. चूंकि कप्तान हत्याकांड में शामिल नहीं था, इसलिए पुलिस ने उसे छोड़ दिया. मामले की जांच एस.एस. राठी कर रहे हैं.

भाई के अपहरण में बहन भी शामिल

16 अक्तूबर, 2016 की दोपहर को यही कोई डेढ़ बजे पुर्निषा उर्फ गुड्डी मम्मी रेखा पालेचा के साथ एक्टिवा स्कूटी से जोधपुर शहर की मानसरोवर कालोनी में रहने वाले अपने मामा रितेश भंडारी के घर पहुंची. बहन और भांजी को देख कर वही नहीं, घर के सभी लोग खुश हो गए. नाश्तापानी और थोड़ी बातचीत के बाद पुर्निषा अपने 5 साल के ममेरे भाई युग को खिलाने लगी.

बेटे युग के अलावा रितेश की एक 10 साल की बेटी भी थी. पुर्निषा जब भी मामा के घर आती थी, अपने ममेरे भाईबहनों के साथ खेलने में मस्त हो जाती थी. वह दोनों को खूब प्यार करती थी. करीब आधे घंटे बाद पुर्निषा युग को अपनी स्कूटी पर बिठा कर चौकलेट दिलाने के लिए ले गई.

पुर्निषा जब भी मामा के यहां आती थी, युग को खानेपीने की चीजें दिलाने या स्कूटी पर घुमाने ले जाती थी. उस के साथ युग के जाने पर किसी को कोई शक वगैरह होने की गुंजाइश भी नहीं थी.

युग और पुर्निषा को घर से गए आधे घंटे से ज्यादा का वक्त हो गया और दोनों लौट कर नहीं आए तो घर वालों का ध्यान उन के ऊपर गया. प्यार से पुर्निषा को सभी गुड्डी कहते थे. घर वालों को चिंता हुई कि गुड्डी युग को ले कर कहां चली गई कि अभी तक लौट कर नहीं आई.

घर के सभी लोग इसी बात पर विचार कर रहे थे कि तभी रितेश के फोन की घंटी बजी. रितेश ने फोन की स्क्रीन देखी तो उस पर उन की भांजी गुड्डी का नंबर था. उन्होंने फोन रिसीव कर के पूछा, ‘‘हां गुड्डी, बताओ, इस समय तुम कहां हो? बहुत देर हो गई, अभी तक घर क्यों नहीं लौटी?’’

इस के बाद दूसरी तरफ से पुर्निषा की कांपती आवाज आई, ‘‘मामा, आप मामी से बात कराइए.’’

रितेश ने मोबाइल अपनी पत्नी को देते हुए कहा, ‘‘गुड्डी का फोन है, बात करो.’

कान पर फोन लगा कर युग की मम्मी बोलीं, ‘‘हां, गुड्डी बोलो, क्या बात है? तुम कहां हो?’’

पुर्निषा कांपती आवाज में बोली, ‘‘मामी, मेरा और युग का कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया है. ये लोग 50 लाख रुपए फिरौती मांग रहे हैं. ये बड़े ही खतरनाक लोग लग रहे हैं, इसलिए प्लीज मामी, पुलिस को सूचना दिए बगैर आप 50 लाख रुपए ले कर जल्द आ जाइए, वरना ये लोग हमें मार देंगे.’’

गुड्डी के साथ उन के बेटे का भी अपहरण हुआ था, इसलिए इस खबर से वह एकदम से घबरा गईं. वह जल्दी से बोलीं, ‘‘गुड्डी, तुम हो कहां, युग कहां है? यह तो बताओ कि पैसे कहां पहुंचाने हैं?’’

‘‘मामी, हमें पता नहीं, यह कौन सी जगह है, लेकिन शहर के बाहर कोई बाग है. उसी बाग में इन्होंने हमें बंधक बना रखा है. अच्छा, वे लोग हमारी तरफ ही आ रहे हैं, आप जल्दी पैसों का इंतजाम कर लो. मैं बाद में फोन करूंगी.’’ कह कर पुर्निषा ने फोन काट दिया.

युग की मम्मी ‘हैलो…हैलो’ करती रह गईं, पर दूसरी ओर से फोन कट चुका था. युग का अपहरण और 50 लाख रुपए की फिरौती की बात बगल में खड़े रितेश भंडारी ने भी सुन ली थी. वह भी घबरा गए. उन्होंने हकलाते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम इतनी परेशान क्यों हो? क्या कह रही थी गुड्डी, युग कहां है?’’

‘‘गुड्डी और युग का अपहरण हो गया है और अपहर्त्ता 50 लाख रुपए फिरौती मांग रहे हैं. पुलिस को सूचना देने पर उन्होंने जान से मारने की धमकी दी है,’’ कहते हुए उन की पत्नी की आंखों में आंसू छलक आए.

पत्नी के मुंह से यह सब सुन कर रितेश भंडारी कांप उठे. अपहर्त्ता फिरौती में जो 50 लाख रुपए मांग रहे थे, वह उन के पास नहीं थे. यह कोई मामूली रकम भी नहीं थी, जिस का इंतजाम वह जल्द कहीं से कर लेते. अपहर्त्ताओं ने पुलिस को खबर न करने की चेतावनी दी थी. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करें.

बेटे के अपहरण से व्याकुल उन की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. कुछ ही देर में आसपड़ोस में यह खबर फैल गई. लोगों का उन के घर आना शुरू हो गया. कुछ लोगों ने रितेश को सलाह दी कि वह इस की सूचना पुलिस को जरूर दें.

सभी लोगों के कहने पर रितेश पत्नी और कुछ रिश्तेदारों के साथ करीब पौने 3 बजे चौपासनी हाउसिंग बोर्ड थाने पहुंचे और थानाप्रभारी जब्बर सिंह चारण को अपने बेटे और भांजी के अपहरण की जानकारी दे दी. उन्होंने यह भी बताया कि फिरौती का फोन पुर्निषा के ही मोबाइल से आया था.

रितेश भंडारी की बात सुन कर थानाप्रभारी को मामला कुछ संदिग्ध लगा. उन्हें उन की भांजी पुर्निषा पर ही शक हो रहा था. उन्हें कारवाई तो करनी ही थी, इसलिए उन्होंने अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा कर इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी.

अधिकारियों के निर्देश पर जब्बर सिंह ने शहर के सभी प्रमुख मार्गों की नाकेबंदी करा दी. इस के बाद जोधपुर के डीसीपी (पश्चिम) समीर कुमार सिंह, एडिशनल डीसीपी विपिन शर्मा, एसीपी (प्रतापनगर) स्वाति शर्मा, एसीपी (केंद्रीय) पूजा यादव, एसीपी (पश्चिम) विक्रम सिंह थाना चौपासनी हाउसिंग बोर्ड पहुंच गए.

सभी ने पीडि़त परिवार से बात की. ऐसे मामले में पुलिस की यही कोशिश रहती है कि जिस का अपहरण हुआ है, उसे सुरक्षित तरीके से जल्द से जल्द बरामद किया जाए. इसलिए डीसीपी ने अपहर्त्ताओं तक जल्द पहुंचने के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसीपी (प्रतापनगर) स्वाति शर्मा, एसीपी (पश्चिम) विक्रम सिंह, एसीपी (केंद्रीय) पूजा यादव, थानाप्रभारी जब्बर सिंह चारण, थानाप्रभारी (शास्त्रीनगर) अमित सिहाग, तकनीकी विशेषज्ञ भागीरथ सिंघड़, स्वरूपराम, हरीराम, नरेंद्र सिंह, शकील खां, जबर सिंह व बजरंगलाल को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन एडिशनल डीसीपी विपिन शर्मा को सौंपा गया.

पुर्निषा ने जब रितेश भंडारी को फोन किया था, बातचीत में चिडि़यों के चहचहाने की आवाजें आ रही थीं. रितेश ने यह बात पुलिस को भी बताई. इस पर पुलिस को लगा कि फोन किसी पार्क से किया गया था. 3-3 पुलिसकर्मियों को ग्रुप में बांट कर अपहर्त्ताओं की तलाश शुरू कर दी गई.

टीमों ने मंडोर उद्यान, नेहरू पार्क, पब्लिक पार्क व अन्य सुनसान जगहों पर खोजबीन की. रितेश भंडारी और उन की पत्नी भी पुलिस के साथ थीं. पुलिस ने रितेश के मोबाइल से पुर्निषा के मोबाइल पर फोन करवाया. फोन किसी युवक ने उठाया.

फोन उठाने वाले युवक ने कहा कि रुपए ले कर जल्द आ जाओ, वरना हम इन दोनों को मार देंगे. रितेश ने युग से बात कराने को कहा तो उस ने युग से उन की बात करा दी. युग ने कहा कि वह दीदी के साथ है और टौफी बिस्कुट खा रहा है. बेटे से बात कर के रितेश को तसल्ली हुई कि वह सकुशल है.

एक पुलिस टीम जब नेहरू उद्यान पहुंची तो वहां एक कोने में बैठी पुर्निषा और युग को रितेश ने पहचानते हुए कहा, ‘‘वो रहे युग और पुर्निषा.’’

पुलिस ने नजर दौड़ाई तो पुर्निषा और युग के पास झाड़ी की ओट में 2 युवक बैठे दिखाई दिए. पुलिस ने अनुमान लगाया कि वही अपहर्त्ता होंगे. भनक लगने पर अपहर्त्ता युग और पुर्निषा को नुकसान पहुंचा सकते थे, इसलिए पुलिस ने चालाकी दिखाते हुए फुरती से उन दोनों युवकों को दबोच कर पुर्निषा और युग को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया.

सूचना पा कर अन्य पुलिस टीमें भी नेहरू उद्यान पहुंच गई थीं. पुलिस गिरफ्त में आते ही दोनों युवक कांपने लगे. यही हाल पुर्निषा का भी था. उन की निशानदेही पर पुलिस ने स्विफ्ट कार व पुर्निषा की एक्टिवा स्कूटी बरामद कर ली.

थाने ला कर जब दोनों युवकों से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम मयंक मेहता व मयंक सिंदल बताए. उन्होंने बताया कि युग के अपहरण की मास्टरमाइंड पुर्निषा थी.

यह सुन कर रितेश और उन की पत्नी हैरान रह गई कि यह कैसे हो सकता है, भला वह अपने भाई का अपहरण क्यों करेगी? पर पुलिस पूछताछ में जब पुर्निषा ने मयंक की बात की पुष्टि कर दी तो रितेश और उन की पत्नी की आंखें खुली की खुली रह गईं. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि जिस भांजी को वह इतना ज्यादा प्यार करते थे, वही उन का अहित कर सकती है.

अपहर्त्ताओं के गिरफ्तार होने की जानकारी डीसीपी (पश्चिम) समीर कुमार सिंह को मिली तो वह भी थाने पहुंच गए. उन के सामने अभियुक्तों से पूछताछ की गई तो युग के अपहरण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

जोधपुर शहर की मानसरोवर कालोनी में रितेश भंडारी पत्नी शिवानी, एक बेटी व बेटा युग के साथ रहते थे. उन का सरदारपुरा, जोधपुर में फाइनैंस का कारोबार था, जिस से उन्हें बहुत अच्छी आमदनी होती थी. कभीकभी अपनी कमाई का लाखों रुपए वह अपनी सगी बहन रेखा पालेचा के पास रखते थे. वह सरदारपुरा में ही रहती थी. पुर्निषा रेखा की बेटी थी. वह मांबाप की लाडली थी. उस पर मांबाप आंख मूंद कर भरोसा करते थे. पुर्निषा पढ़ाई में होशियार थी. वह एमकौम कर रही थी. पढ़ाई के साथ वह एक निजी स्कूल में पढ़ाती भी थी.

पुर्निषा की एक साल पहले मयंक मेहता से दोस्ती हुई. थोड़े दिनों बाद यह दोस्ती प्यार में बदल गई. मयंक जोधपुर की चौपासनी हाउसिंग बोर्ड में रहता था. उस का एक दोस्त मयंक सिंदल था, वह भी वहीं रहता था. ये दोनों जोधपुर के जीत कालेज में कंप्यूटर साइंस के छात्र थे.

पुर्निषा व मयंक मेहता का प्रेमप्रसंग चल रहा था. दोनों घर वालों से छिपछिप कर मिलते थे. मोबाइल पर भी घंटों बातें किया करते थे. दोनों के सपने बहुत ऊंचे थे, मगर आर्थिक तंगी के कारण इन के शौक पूरे नहीं हो रहे थे. टीवी चैनल के क्राइम शो देख कर पुर्निषा के दिमाग में हलचल मच गई. उस ने एक दिन बातोंबातों में अपने प्रेमी मयंक मेहता से कहा कि अगर वह उस के मामा रितेश के बेटे युग का अपहरण कर ले तो कम से कम 50 लाख रुपए की फिरौती मिल सकती है.

पुर्निषा ने बताया था कि उस के मामा के पास हर समय लाखों रुपए रहते हैं. बस फिर क्या था, दोनों ने रुपयों का लालच दे कर मयंक सिंदल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. पुर्निषा ने कहा था कि फिरौती के 50 लाख रुपए मिलने पर उस में से उसे 15 लाख रुपए दिए जाएंगे.

मयंक सिंदल झांसे में आ गया और उन की योजना में शामिल हो गया. पूरी योजना बनाने के बाद रविवार 16 अक्तूबर की दोपहर को पुर्निषा अपनी मम्मी के साथ मामा रितेश के घर जा पहुंची. युग को चौकलेट दिलाने के बहाने वह स्कूटी से घर से बाहर ले आई और अपने साथी मयंक मेहता और मयंक सिंदल को अपनी स्कूटी देते हुए कहा कि इसे कहीं सुनसान जगह खड़ी कर युग को ले कर नेहरू उद्यान आ जाओ.

पुर्निषा टौफी, बिस्कुट, कुरकुरे ले कर युग के साथ मयंक मेहता की स्विफ्ट कार में बैठ गई तो मयंक मेहता कार ले कर सीधे नेहरू उद्यान पहुंच गया. मयंक सिंदल इन से पहले वहां पहुंचा हुआ था. पार्क से ही पुर्निषा ने मामा रितेश को फोन कर के अपने और युग के अपहरण होने की बात कह कर 50 लाख रुपए फिरौती दे कर अपहर्त्ताओं से जल्द से जल्द युग और उसे छुड़ाने की बात कही. इस के बाद रितेश भंडारी अपनी पत्नी के साथ थाने पहुंचे और पुलिस को सूचना दी.

पुलिस ने मात्र ढाई घंटे में अपहर्त्ताओं को दबोच कर युग को सकुशल बरामद कर लिया था. पुर्निषा, मयंक मेहता व मयंक सिंदल के वे मोबाइल फोन भी पुलिस ने बरामद कर लिए थे, जिन से रितेश को फिरौती के लिए फोन किया गया था. आर्थिक तंगी के चलते पुर्निषा व मयंक मेहता ने अपहरण कर के फिरौती मांगने जैसा अमानवीय कृत्य किया था, जबकि तीनों ही गरीब परिवारों से नहीं थे, इन की महत्त्वाकांक्षा उन्हें ले डूबी थी.

पुलिस ने पूछताछ कर के 17 अक्तूबर, 2016 को पुर्निषा, मयंक मेहता और मयंक सिंदल को जोधपुर के कोर्ट नंबर-8 में न्यायाधीश वैदेही सिंह के समक्ष पेश किया, जहां से तीनों आरोपियों को केंद्रीय कारागार जोधपुर भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इन की जमानतें नहीं हुई थीं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

औन डिमांड गाड़ियां चुराने वाला हाईटेक गैंग

पहली अप्रैल, 2017 की बात है. दिल्ली पुलिस के दक्षिणीपूर्वी जिले के इंचार्ज राजेंद्र कुमार अपने औफिस में सबइंसपेक्टर प्रवेश कसाना और अजय कटेवा से एक केस के बारे में विचारविमर्श कर रहे थे, तभी एक पुराना मुखबिर उन के पास आ पहुंचा. वह उन का विश्वसनीय मुखबिर था. वह जब भी आता था, कोई न कोई नई जानकारी लाता था. इसलिए उसे देखते ही इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘कहिए, क्या नई खबर है?’’

‘‘सर, खबर इतनी दमदार है कि आप भी खुश हो जाएंगे.’’ उस ने कहा.

इतना सुनते ही इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार और दोनों सबइंसपेक्टर उस के चेहरे की तरफ देखने लगे. इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘अब पहेलियां मत बुझाओ, जो भी हो सीधे बता दो.’’

‘‘ठीक है सर, बताता हूं.’’ कह कर उस ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, सूचना ऐसे कार चोर गैंग की है, जो केवल औन डिमांड कारों को चुराता है. इस के अलावा इस गैंग की एक खास बात यह है कि वह कंप्यूटर, लेटेस्ट सौफ्टवेयर व अन्य हाईटेक उपकरणों से मिनटों में ही कार को ले उड़ता है. गैंग के सदस्य आज शाम 4-5 बजे के बीच सफेद रंग की वेरना कार से न्यू फ्रैंड्स कालोनी में आएंगे. उन का इरादा एस्कार्ट्स अस्पताल के आसपास से किसी कार पर हाथ साफ करना है.’’

उस ने उन की वेरना कार का नंबर भी बता दिया. सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने एसीपी औपरेशन के.पी. सिंह और डीसीपी रोमिल बानिया को फोन से यह खबर दे दी. पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में लग्जरी कारों की चोरी की वारदातें बढ़ती जा रही थीं. दक्षिणपूर्वी दिल्ली में ही कई लग्जरी कारें चोरी हो चुकी थीं, लेकिन उन का खुलासा नहीं हो पा रहा था.

29 मार्च, 2017 को ही न्यू फ्रैंड्स कालोनी से योगेश कुमार आनंद की फार्च्युनर कार नंबर डीएल3सीबी डी-5094 चोरी हो गई थी, जिस की उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करा रखी थी. इस के अलावा जिले में इस से पहले भी कई गाडि़यां चोरी हो चुकी थीं.

पुलिस को चोरों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. डीसीपी रोमिल बानिया ने एसीपी (औपरेशन) के.पी. सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार, एसआई प्रवेश कसाना, अजय कटेवा, एएसआई हरेंद्र सिंह, फूल सिंह, दलीप सिंह, हैडकांस्टेबल विनोद कुमार, नरेश कुमार, अनिल, कांस्टेबल विशाल, विनीत, राहुल, दिनेश आदि को शामिल किया गया. डीसीपी ने टीम को निर्देश दिया कि वह मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच कर जरूरी काररवाई करे.

निर्धारित समय से पहले ही पुलिस टीम न्यू फ्रैंड्स कालोनी पहुंच गई. टीम ने मीराबाई पौलिटेक्निक के पास बैरिकेड्स लगा कर रिंगरोड की तरफ से आने वाली कारों की जांच शुरू कर दी. पुलिस की नजर तो वेरना कार पर थी. उधर से जो भी वेरना कार आती हुई दिखती, पुलिस उस कार के कागजात बड़ी ही गंभीरता से चैक करती. यह काम करतेकरते पुलिस को करीब एक घंटा बीत गया, पर मुखबिर द्वारा बताए गए नंबर की वेरना कार नहीं आई.

ऐसे में पुलिस को यह आशंका होने लगी कि कहीं उन कार चोरों को पुलिस चैकिंग की भनक तो नहीं लग गई. जिस के बाद उन्होंने अपनी योजना बदल दी हो. इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने इस संबंध में एसीपी से बात की तो उन्होंने कहा कि वह शाम 6 बजे तक अपनी काररवाई जारी रखें. लिहाजा वाहनों की चैकिंग की काररवाई जारी रही.

शाम करीब सवा 5 बजे सफेद रंग की वेरना कार नंबर डीएल8सी एए-9035 आती दिखी. यह वही नंबर था, जो मुखबिर ने बताया था. जैसे ही वह कार नजदीक आई, पुलिस ने उसे रोक लिया. उस कार में पिछली सीट पर 2 युवक बैठे थे, जबकि आगे की सीट पर ड्राइवर के बराबर में एक युवक था. पुलिस ने उन से कार के पेपर दिखाने को कहा तो वे इधरउधर की बातें करने लगे.

पुलिस ने कार का चैसिस व इंजन नंबर नोट कर के जिपनेट पर चैक किया तो वह कार चोरी की निकली. पता चला कि वह 12 मार्च, 2017 को दिल्ली के नौर्थ रोहिणी से चुराई गई थी, जिस की चोरी की रिपोर्ट दर्ज थी. पुलिस ने कार को अपने कब्जे में ले कर उन चारों युवकों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ में उन्होंने अपने नाम क्रमश: शोएब खान (32 साल) निवासी अनूपशहर रोड अलीगढ़, आमिर उर्फ अमन (27 साल) निवासी गांव किलोली, बुलंदशहर, सफर उर्फ सफरुद्दीन (28 साल) निवासी नंदनगरी दिल्ली और सगीर (32 साल) गांव इसलामपुर, जिला बदायूं, उत्तर प्रदेश बताए.

स्पैशल स्टाफ औफिस ले जा कर जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने इस वेरना कार के अलावा हाल ही में कई कारें और चुराई थीं, जो दिल्ली की अलगअलग जगहों की पार्किंग में खड़ी हैं. पुलिस टीम सब से पहले उन्हें ओखला के बटला हाउस ले गई. वहां शोएब की निशानदेही पर पब्लिक पार्किंग से सफेद रंग की होंडा सिटी कार, एक आई20 कार बरामद की. उस ने बताया कि होंडा सिटी कार 12 जून, 2016 को दिल्ली के रानीबाग से और आई20 कार इसी साल दिल्ली के गाजीपुर से चुराई गई थी.

एसआई प्रवेश कसाना अभियुक्त सगीर को ओखला के अबुल फजल एनक्लेव ले गए. उस की निशानदेही पर वहां की पार्किंग से सफेद रंग की 3 स्विफ्ट डिजायर कारें और एक हलके नीले रंग की सैंट्रो कार बरामद की गई. उस ने बताया कि स्विफ्ट डिजायर कारें उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर दिल्ली के पश्चिम विहार, जहांगीरपुरी और विजय विहार, रोहिणी से तथा सैंट्रो कार ग्रेटर कैलाश से चुराई थी.

पुलिस ने सभी कारें अपने कब्जे में ले लीं. पुलिस को लगा कि ये अभियुक्त अभी भी कुछ छिपा रहे हैं. इसलिए इन से फिर सख्ती की गई. इस का नतीजा यह निकला कि उन की निशानदेही पर पुलिस ने दिल्ली की अलग अलग पार्किंग से 2 हुंडई क्रेटा, एक स्विफ्ट डिजायर, एक फार्च्युनर और एक मारुति ईको कार और बरामद कर ली. फार्च्युनर कार उन्होंने 29 मार्च, 2017 को न्यू फ्रैंड्स कालोनी क्षेत्र से, मारुति ईको अमर कालोनी से और हुंडई क्रेटा दिल्ली के रूपनगर से और नोएडा से चुराई थीं. पुलिस ने ये कारें भी कब्जे में ले लीं.

इन से पूछताछ में जो बात पता चली, वह यह थी कि यह कोई आम कार चोर नहीं थे, बल्कि हाईप्रोफाइल थे. कार चुराने में सहयोग करने वाले महंगे उपकरणों से लैस यह गैंग खाली समय में यूट्यूब पर कार चुराने वाले वीडियो देखता था. ऐसा भी नहीं था कि जिस कार को चुराने का मौका मिलता था, उसे ले जाते थे, बल्कि हकीकत यह थी कि जिन लोगों को यह चुराई हुई कारें बेचते थे, वहां से इन के पास डिमांड आती थी. जिस कंपनी की कार की इन के पास डिमांड आती थी, उसी कार को यह चुराने की कोशिश करते थे.

आसपास की रैकी करने के बाद ये अपने लैपटौप में मौजूद सौफ्टवेयर से सब से पहले यह पता लगाते थे कि उस कार में कौनकौन से सेफ्टी डिवाइस लगे हैं. अपने पास मौजूद उपकरण से वे यह भी पता लगा लेते थे कि उस कार में जीपीएस सिस्टम है या नहीं. जिस कार में जीपीएस लगा होता था, वे उसे चुराने से बचते थे.

कुछ कारों में सेंसर अलार्म लगा होता है, जो गाड़ी के टच करने पर बज जाता है. अपने पास मौजूद कंप्यूटर सौफ्टवेयर से वे इस का पता लगा लेते थे. फिर किसी तरह उस का बोनट खोल कर अलार्म सिस्टम के तार काट देते थे.

टारगेट की गई कार का लौक वे मास्टर की से खोलने की कोशिश करते थे. यदि लौक नहीं खुलता तो स्कैनर की सहायता लेते थे. इस तरह चंद मिनटों में वे कार ले कर उड़नछू हो जाते थे. चुराई हुई कारों को वे कुछ दिनों तक कहीं फ्री पार्किंग में खड़ी करते, फिर आगे सप्लाई कर देते थे.

गैंग के सदस्य आमिर और सफर अच्छे मोटर मैकेनिक थे. इस के बावजूद भी वे कार चोर कैसे बन गए और किस तरह वे गैंग बना कर चोरी की वारदातों को अंजाम देने लगे, इस की कहानी बड़ी दिलचस्प है.

आमिर उर्फ अमन उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के गांव किलोली के रहने वाले नसरुद्दीन का बेटा था. 9 भाईबहनों में वह दूसरे नंबर का था. पिता की कोशिश के बाद भी वह 7वीं जमात से आगे नहीं पढ़ सका. तब पिता ने उसे एक मोटरसाइकिल मैकेनिक के पास लगा दिया. वहां करीब 5 साल काम सीखने के बाद आमिर एक अच्छा मैकेनिक बन गया. उस ने कुछ दिनों तक नोएडा की एक कंपनी में नौकरी की. पर नौकरी में उस का मन नहीं लगा.

तब उस ने नोएडा में एक वर्कशौप खोल ली. उस का काम चलने लगा. इसी दौरान आमिर की मुलाकात सफर उर्फ सफरुद्दीन से हुई, जो बदायूं के इसलामपुर गांव का रहने वाला था. इस के भी 7 भाई थे. 12वीं पास करने के बाद इस ने अपने पिता के साथ चूडि़यां बेचनी शुरू कर दीं. बाद में इस ने मोटरसाइकिल मैकेनिक का काम सीख लिया.

सफर की मुलाकात राजू नाम के एक युवक से हुई, जो वाहन चोर था. राजू ने लालच दिया तो वह उस के साथ काम करने को तैयार हो गया. राजू ने उसे सगीर अहमद से मिलवाया. सगीर उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं का रहने वाला था. सगीर ने उसे अपने अन्य दोस्तों से मिलवाया. तभी उन सब की मुलाकात आमिर से हुई.

इन सब ने मिल कर दिल्ली से एक कार चुराई. कार चुरा कर ये दिल्ली से गाजियाबाद लौट रहे थे, तभी गाजियाबाद पुलिस ने उन से गाड़ी के कागज मांगे. इन के पास कागज थे नहीं, सो उन्होंने सच्चाई बता दी. तब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर डासना जेल भेज दिया. उस समय उनके साथ सुलेमान, सगीर भी थे.

डासना जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद सफर मोटर मैकेनिक का काम करने लगा. उसी दौरान सफर की मुलाकात नांगलोई के चरनप्रीत से हुई. चरनप्रीत एक कार चोर था. सफर ने चरनप्रीत के साथ कारों की चोरी शुरू कर दी. सन 2015 में वह दिल्ली क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़ गया. उस के गिरफ्तार होने पर चोरी की 15 वारदातों का खुलासा हुआ.

जेल में ही उस की मुलाकात सगीर उर्फ सत्ता से हुई, जो उत्तर प्रदेश के जिला संभल का रहने वाला था. सगीर चोरी की कारें खरीद कर उन्हें पूर्वोत्तर के राज्यों में सप्लाई करता था. एक मामले में वह दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद सगीर, सफर उर्फ सफरुद्दीन, आमिर ने अपना अलग गैंग बनाया. गैंग में उन्होंने अलीगढ़ के शोएब को भी मिला लिया. फिर चारों ने दिल्ली और एनसीआर से कारों की चोरी शुरू कर दी. चुराई गई कारें वह संभल, दीपा सराय के रहने वाले सगीर उर्फ सत्ता को बेच देते थे. सत्ता चोरी की कारें सस्ते दाम पर खरीद कर उन्हें असम, गुवाहाटी, दार्जिलिंग आदि जगहों पर भेज देता था. कुछ कारें वह मेरठ के असरार, परवेज और गुलफाम को भी बेचता था, जो कारों को काट कर कबाड़ में बेच देते थे.

शोएब, सफर, आमिर और सगीर की जब मोटी कमाई होने लगी तो उन्होंने भी बनठन कर रहना शुरू कर दिया. सत्ता के पास जैसे ही लग्जरी कारों की डिमांड आती, वह इन लोगों से लग्जरी कारों की मांग करता.

लग्जरी कारों की सुरक्षा लोग तरहतरह के लौकिंग सिस्टम लगवा लेते हैं. वे लौकिंग सिस्टम कैसे खोले जाएं, इस के लिए इन लोगों ने यूट्यूब पर वीडियो देखनी शुरू कर दी.

बदलते समय के साथ इन्होंने खुद को भी मोडिफाइ कर लिया. लैपटौप ले कर इन्होंने उस में ऐसे सौफ्टवेयर लोड कराए, जिन की सहायता से कार के अंदर से लौकिंग सिस्टम की जानकारी मिल सके. लौकिंग प्रणाली जानने के लिए इन्होंने एक स्कैनर भी खरीद रखा था. महंगे उपकरण खरीदने के बाद इन्हें कार चुराना आसान हो गया. उन की सहायता से ये मिनटों में ही कार को उड़ा लेते थे.

पुलिस ने बताया कि औन डिमांड कार चुराने वाला यह गिरोह पिछले 2 सालों से राजधानी और आसपास से करीब 500 कारें चुरा चुका है.

गिरोह के सदस्य शोएब का काम टारगेट निश्चित करना था. जो कार चुरानी होती थी, शोएब अपने मोबाइल से उस के फोटो खींच कर अपने साथियों को वाट्सऐप करता था. रैकी करने के बाद उस कार को चुरा कर दिल्ली में ही कहीं पार्किंग में खड़ी कर देते थे. फिर कुछ दिनों बाद उसे संभल में सत्ता के पास पहुंचा देते. फिर सत्ता उन्हें पूर्वोत्तर के राज्यों में या मेरठ में गुलफाम, परवेज, असरार के पास पहुंचा देता था. 29 मार्च, 2017 को दिल्ली के न्यू फ्रैंड्स कालोनी इलाके से योगेश कुमार आनंद की जो फार्च्युनर कार चोरी हुई थी, वह भी इसी गैंग ने चुराई थी.

पुलिस ने इन चारों कार चोरों की निशानदेही पर संभल से सत्ता और मेरठ से परवेज, असरार व गुलफाम के ठिकानों पर दबिशें दीं, लेकिन वे सभी फरार मिले. इन रिसीवरों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को बड़ी कामयाबी मिल सकती थी.

बहरहाल, पुलिस ने सगीर, सफर, आमिर और शोएब को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. इन के कब्जे से पुलिस ने चोरी में प्रयोग होने वाले कई उपकरण भी बरामद किए हैं. मामले की तफ्तीश सबइंसपेक्टर प्रवेश कसाना कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

फंसे ऐश करने में: क्या प्रकाश और सुरेंद्र की लालसा हो पाई पूरी

सुरेंद्र पहले ऐसा नहीं था. वह अपने परिवार में मस्त रहता था, पर काम करते उस के दोस्त प्रकाश ने उस की सोच बदल दी. वे दोनों सैंट्रल रेलवे मुंबई के तकनीकी विभाग में थे और बहुमंजिला इमारत में अपने फ्लैट में रहते थे.

सुरेंद्र का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था, जबकि प्रकाश का पहली मंजिल पर. सुरेंद्र तकरीबन 54 साल का था और प्रकाश भी उसी का हमउम्र था. दोनों के पत्नी व बच्चे उन के साथ ही रहते थे.एक बार उन दोनों के परिवार वाले त्योहार में शामिल होने के लिए किसी रिश्तेदारी में चले गए.

शाम को दफ्तर से लौटने पर दोनों बैठ कर जाम चढ़ाते, फिर घूमने निकल जाते. खापी कर दोनों देर रात को लौटते.  बच्चे बड़े हो गए थे. उन की पढ़ाई और कैरियर बनाने की चिंता सताने लगती. बड़ी होती बेटियों की शादी की चिंता से छुटकारा पाने के लिए दोनों बोतल खोल कर बैठ जाते. ह्विस्की के रंगीन नशे में आसपास घूमती खूबसूरत लड़कियों को पाने की लालसा उन की बातचीत का मुद्दा बनने लगीं.

बुढ़ाती पत्नियां पुरानी लगने लगीं. वे दोनों किसी जवान लड़की के आगोश में खोने के सपने देखने लगे. प्रकाश ने मौजमस्ती के लिए सुरेंद्र को राजी किया और एक कालगर्ल को ले आया. शराब और शबाब के मेल से दोनों रातें रंगीन करते रहे. बीवीबच्चों के लौट आने पर ही यह सिलसिला बंद हुआ.

दिसंबर का महीना था. मौसम खुशगवार था. प्रकाश अपने परिवार के साथ कहीं बाहर गया था. सुरेंद्र के परिवार वाले भी मुंबई में ही एक रिश्तेदारी में गए थे और उन सब का रात को वहीं रुकने का प्रोग्राम था.दफ्तर से लौटते समय रास्ते में सुरेंद्र को जूली मिल गई.

जूली को वह और प्रकाश 2-3 बार अपने फ्लैट पर ला चुके थे.जूली 35 साल के आसपास की अच्छी कदकाठी की खूबसूरत औरत थी, जो चोरीछिपे कालगर्ल का धंधा कर के चार पैसे कमा लेती थी. लटके?ाटके दिखा कर वह अपने कुछ चुने हुए ग्राहकों को संतुष्ट करने की कला बखूबी जानती थी, इसलिए उस की मांग बनी हुई थी.5 सौ रुपए और 2 बीयर की बोतलों पर सौदा पक्का हुआ.

बृहस्पतिवार का दिन था.रात को तकरीबन 9 बजे अपने वादे के मुताबिक जूली आ गई और दोनों खानेपीने और रासरंग में मस्त हो गए.रात को 2 बजे सुरेंद्र के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. पत्नी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं दरवाजे पर खड़ीखड़ी कालबेल बजा रही हूं और तुम घोड़े बेच कर सो रहे हो क्या? जल्दी से दरवाजा खोलो.’यह सुन कर सुरेंद्र के बदन में डर की एक ठंडी लहर घूम गई.

पत्नी और बेटी ने अगर जूली को देख लिया तो…? पत्नी तो हंगामा खड़ा कर देगी. बेटी को तो वह मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. अड़ोसपड़ोस में जो बदनामी होगी, सो अलग.सुरेंद्र ने जूली को तुरंत पीछे बालकनी से नीचे कूद जाने को कहा.‘‘कैसे?’’ जूली घबरा कर बोली.सुरेंद्र ने डबलबैड की बैडशीट उठा कर बालकनी की रेलिंग से बांध कर लटका दी, पर वह छोटी पड़ रही थी.

उस ने पत्नी की एक साड़ी निकाल कर बैडशीट के निचले सिरे से बांध कर साड़ी लटका दी. अब उस का सिरा नीचे जमीन तक पहुंच रहा था.‘‘इसी चादर और साड़ी की रस्सी को पकड़ कर तुम लटक जाओ और धीरेधीरे उतर जाओ,’’ सुरेंद्र ने जूली को सम?ाते हुए कहा.जूली ने वैसा ही किया.

रस्सी से लटक कर वह नीचे की ओर जाने लगी.यह देख कर सुरेंद्र ने राहत की सांस ली. बालकनी का दरवाजा बंद कर के उस ने कमरे का दरवाजा खोल दिया. पत्नी और बेटी ?ाल्लाती हुईं अंदर आ गईं. थोड़ी ही देर में वे तीनों सो गए.रात के 3 बजे दरवाजे पर जोरजोर से  खटखटाने की आवाज सुन कर ?ां?ालाते हुए सुरेंद्र ने दरवाजा खोला, तो देखा सामने पुलिस खड़ी थी.

डंडा हिलाते हुए इंस्पैक्टर ने बालकनी का दरवाजा खोला और वहां से नीचे ?ांकने लगा. सुरेंद्र की पत्नी और बेटी डर के मारे इंस्पैक्टर को हैरानी से देखने लगीं.‘‘गार्ड ने बताया कि आप का नाम सुरेंद्र है और आप इसी फ्लैट में रहते हैं?’’ इंस्पैक्टर ने सवालिया नजरों से घूरते हुए पूछा. ‘‘जी हां…’’ सुरेंद्र सकपकाते हुए बोला, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आधी रात को अचानक… आखिर बात क्या है?’’‘‘बात बहुत ही गंभीर है मिस्टर सुरेंद्र. हम आप को इसी समय हिरासत में ले रहे हैं.

’’‘लेकिन क्यों?’ सुरेंद्र की पत्नी और बेटी दोनों एकसाथ चिल्लाईं.बालकनी की रेलिंग से बंधी चादर व साड़ी को दिखाते हुए इंस्पैक्टर बोला, ‘‘नीचे एक औरत की लाश पाई गई है. वह इसी रस्सी के सहारे इस फ्लैट से भाग रही थी, मगर साड़ी उस का वजन न सह सकी और गांठ खुल गई, जिस से वह फर्श पर जा गिरी और सिर फट जाने से तुरंत मर गई.’’‘‘वह चोरी कर के भाग रही होगी,’’

पत्नी ने कहा.‘‘नहीं, उसे आप के पति ने आप के आने पर भगाया. वह चोर नहीं कालगर्ल थी. ‘‘मु?ो इस बिल्डिंग के गार्ड ने बताया कि आप रात को 2 बजे बाहर से आई हो. 2 बज कर, 15 मिनट पर गार्ड को किसी के गिरने व चीखने की आवाज सुनाई पड़ी. उस ने जा कर देखा और पुलिस को सूचित किया.’’रात के साढ़े 3 बजे सुरेंद्र को पुलिस गिरफ्तार कर के थाने ले गई और सुबह 10 बजे कोर्ट में पेश कर के रिमांड की मांग की. कोर्ट ने गैरइरादतन हत्या का आरोपी मानते हुए सुरेंद्र को 3 दिन की रिमांड पर पुलिस कस्टडी में दे दिया.

होमियोपैथी : मीठी गोलियों के नाम पर गोरखधंधा

सैंट्रल कौंसिल औफ होमियोपैथी (सीसीएच) के चेयरमैन रामजी सिंह होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने की डीलिंग तो खुद करता था, पर वह ‘नजराना’ अपने कुछ खास चेलों के जरीए ही लेता था.

रामजी सिंह की गिनती पटना और दिल्ली के अच्छे होमियोपैथी डाक्टरों में होती है. सीसीएच का अध्यक्ष बनने से पहले वह बिहार हौमियोपैथ चिकित्सा बोर्ड का सदस्य भी रह चुका था.

सीसीएच होमियोपैथी चिकित्सा शिक्षा की नियामक संस्था है और पिछले 5 सालों से रामजी सिंह उस का चेयरमैन बना हुआ था.

पटना के कदमकुआं महल्ले में ही रामजी सिंह का प्राइवेट क्लिनिक चलता है और उस ने रामकृष्णा नगर में जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज भी खोल रखा है.

पिछले दिनों राजकोट के एक प्राइवेट होमियोपैथी कालेज मैनेजमैंट से 20 लाख रुपए घूस लेने के चक्कर में वह सीबीआई के चंगुल में फंस गया.

सीबीआई के सूत्रों के मुताबिक, चेयरमैन के बदले उस के किसी खास आदमी ने रकम वसूल की. उस के बाद हवाला के जरीए 20 लाख रुपए रामजी सिंह के पास पहुंचा दिए गए थे.

दरअसल, राजकोट की एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने होमियोपैथी कालेज की मान्यता के लिए सीसीएच में आवेदन दिया था. कालेज के पक्ष में निरीक्षण रिपोर्ट देने के लिए कालेज का वाइस प्रैसिडैंट लगातार रामजी सिंह और उस के एजेंट के संपर्क में था.

कालेज की जांच के लिए रामजी सिंह ने 3 लोगों की कमेटी बनाई थी. जबलपुर होमियोपैथी कालेज के प्रोफैसर राहुल श्रीवास्तव, कोलकाता के नैशनल इंस्टीट्यूट औफ होमियोपैथी के प्रोफैसर अशोक कोनार और रोहतक होमियोपैथी कालेज के प्रोफैसर अश्विनी आर्य को इस कमेटी का मैंबर बनाया गया था.

कमेटी ने कालेज का मुआयना कर लिया था और दिल्ली में ही ‘नजराने’ की रकम के भुगतान की बात तय हो चुकी थी. उस के बाद ही सीबीआई ने रामजी सिंह के दिल्ली के दफ्तर में ही जाल बिछा कर उसे और उस के एजेंट को दबोच लिया था.

कभी किराए के एक छोटे से कमरे में क्लिनिक की शुरुआत करने वाले रामजी सिंह की हैसियत को पिछले 20 सालों के दौरान मानो पंख लग गए थे.

साल 2001 में उस ने पटना के न्यू बाईपास से सटे रामकृष्णा नगर में जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज खोला था. कालेज को भी उस ने गैरकानूनी कमाई का जरीया बना रखा था.

छात्रों का शोषण करने में रामजी सिंह कोई कोरकसर नहीं छोड़ता था. छात्रों के क्लास से गैरहाजिर रहने पर जुर्माने के तौर पर वह सालाना लाखों रुपए वसूल लेता था.

एक दिन गैरहाजिर रहने पर छात्र से 2 सौ रुपए फाइन लिया जाता था. दूसरे राज्यों के छात्र सालभर में 2 सौ से ज्यादा दिन गैरहाजिर रहते थे. हर साल मई महीने में इम्तिहान का फार्म भरने के समय गैरहाजिर रहने का फाइन वसूला जाता था.

इस से यह साफ हो जाता है कि कालेज को छात्रों की पढ़ाईलिखाई या कैरियर से कोई मतलब नहीं रहता था. सारी कोशिश केवल जेब गरम करने की ही रहती थी.

कालेज के कई छात्रों ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि एडमिशन के समय डोनेशन के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती थी. दूसरे राज्यों के काफी छात्र उस के झांसे में आसानी से फंस जाते थे.

रामजी सिंह सीसीएच का अध्यक्ष भी था, इसलिए छात्र और उस के परिवार वाले उस की बातों पर आसानी से भरोसा कर लेते थे. छात्रों को यह लालच भी दिया जाता था कि कोर्स पूरा होने के बाद नौकरी भी लगवा दी जाएगी.

गौरतलब है कि जीडी मैमोरियल होमियोपैथी कालेज में बिहार से ज्यादा जम्मूकश्मीर और उत्तर प्रदेश के छात्र हैं.

सीबीआई ने होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने के एवज में रिश्वतखोरी का भंडाफोड़ किया है. इसी के तहत रामजी सिंह और बिचौलिए हरिशंकर झा को दबोचा गया है.

रामजी सिंह ने घूस लेने के लिए हरिशंकर झा को दलाल बना रखा था. मान्यता के लिए आवेदन करने वाले कालेजों से हरिशंकर झा ही डीलिंग करता था और रिश्वत की रकम तय करता था.

घूस की रकम तय हो जाने के बाद रामजी सिंह अपने खास डाक्टरों की टीम को कालेज की जांच करने के लिए भेजता था. रामजी सिंह की मरजी के मुताबिक ही टीम रिपोर्ट बनाती थी और उस के बाद कालेज को आसानी से मान्यता दे दी जाती थी.

गुजरात के राजकोट के एक प्राइवेट होमियोपैथी कालेज को मान्यता देने के लिए रामजी सिंह ने अपने खास लोगों की टीम बनाई थी और टीम ने उस के मनमुताबिक रिपोर्ट दे दी थी.

उस के बाद कालेज प्रबंधन से 20 लाख रुपए की रिश्वत की रकम ली जा रही थी. उसी समय सीबीआई ने रामजी सिंह के दलाल हरिशंकर झा को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया था.

हरिशंकर झा के बयान के आधार पर रामजी सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बाद सीबीआई ने दिल्ली, गुड़गांव, रोहतक, राजकोट, गांधीनगर, पटना, जबलपुर और कोलकाता में रामजी सिंह के ठिकानों पर छापे मारे और कई दस्तावेज बरामद किए.

पटना के कंकड़बाग इलाके में द्वारका कालेज के सामने अशोक नगर के रोड नंबर-4 पर रामजी सिंह का आलीशान बंगला है.

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रहने वाले रामजी सिंह ने अपने सीसीएच के अध्यक्ष के तौर पर पिछले 5 सालों में देशभर में सैकड़ों होमियोपैथी कालेजों को मान्यता देने के बदले करोड़ों रुपए की दौलत बटोरी है.

पटना के रामकृष्णा नगर में उस ने 5 मकान और तकरीबन 6 एकड़ जमीन खरीद रखी है. बलिया में भी उस ने करोड़ों रुपए की जमीन खरीद रखी है.

बिहार के मुजफ्फरपुर के रायबहादुर टुनकी साह होमियोपैथी कालेज से डिगरी लेने के बाद रामजी सिंह ने साल 1990 में होमियोपथी इलाज की प्रैक्टिस शुरू की थी. जब प्रैक्टिस नहीं चली, तो उस ने पटना के पटेल नगर इलाके में रहने वाले मशहूर होमियोपैथी डाक्टर बी. भट्टाचार्य के असिस्टैंट के तौर पर काम करना शुरू किया.

रामजी सिंह के एक भाई की दिल्ली में होमियोपैथी दवाओं की कंपनी है. उस कंपनी की बनी दवाएं बिहार में खूब बिकती हैं.

केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने सीसीएच द्वारा मान्यता दिए गए होमियोपैथी कालेजों में नामांकन पर रोक लगा रखी है. मंत्रालय का मानना है कि सीसीएच ने कई ऐसे होमियोपैथी कालेजों को मान्यता दे दी है, जो मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं.

दिल्ली के महीपालपुर इलाके में हरिशंकर झा के 2 होटल हैं. एक का नाम ‘मोनार्क’ और दूसरे होटल का नाम ‘हनुमंत पैलेस’ है. रामजी सिंह जब दिल्ली जाता था, तो वह होटल ‘हनुमंत पैलेस’ में ही डेरा जमाता था.

सीबीआई इस बात की भी जांच कर रही है कि हरिशंकर झा के होटलों में भी तो होमियोपैथी घोटाले के रुपए नहीं लगे हुए हैं?

इस से पता चलता है कि होमियोपैथी की मीठीमीठी गोलियों की आड़ में रामजी सिंह होमियोपैथी को कड़वा और काला बनाने की जुगत में लगा हुआ था.

सस्ते मोबाइल फोन की खातिर ली महंगी जान

उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के गौर थाना इलाके का केसरई गांव. वहां के एक बाशिंदे रमेश यादव ने 30 अक्तूबर, 2016 की सुबह के तकरीबन 11 बजे थानाध्यक्ष अरविंद प्रताप सिंह को यह सूचना दी कि उस का भाई राजेश कुमार यादव हंसवर गांव में सफाई मुलाजिम था. किसी ने आज सुबह ड्यूटी जाते समय हर्दिया के प्राइमरी स्कूल के पास खड़ंजे पर उस की हत्या कर लाश वहीं फेक दी है.

हत्या की सूचना पा कर इंस्पैक्टर अरविंद प्रताप सिंह ने इस वारदात की सूचना अपने से बड़े अफसरों को दी और खुद अपने दलबल के साथ मौका ए वारदात की ओर चल दिए. वहां एक नौजवान की लाश पड़ी हुई थी और उस के सिर से काफी खून बह कर जमीन पर पड़ा हुआ था. लाश को देखने से ही लग रहा था कि मारे गए उस नौजवान के सिर पर किसी भारी चीज से वार कर उस की हत्या की है.

पुलिस ने लोगों और परिवार वालों से किसी पर हत्या का शक होने की बात पूछी, लेकिन सभी ने इनकार कर दिया. पुलिस को वहां ऐसा कोई सुबूत भी नहीं मिला, जिस से हत्या करने वाले या हत्या की वजह का पता किया जा सके.

इसी बीच परिवार के लोगों ने पुलिस को बताया कि राजेश के पास एक मोबाइल फोन भी था, जो लाश के पास बरामद नहीं हुआ. पुलिस ने परिवार वालों की सूचना के आधार पर राजेश कुमार की हत्या का मुकदमा दर्ज कर व लाश का पंचनामा कर 1 नवंबर, 2016 को ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस को राजेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट दूसरे दिन ही मिल गई थी, जिस में मौत की वजह सिर पर चोट लगना ही बताया गया था.

अभी तक पुलिस को राजेश की हत्या करने का कोई भी मकसद नजर नहीं आ रहा था, फिर भी पुलिस गायब मोबाइल फोन को आधार बना कर छानबीन करती रही.

इस दौरान गायब मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया गया था. पुलिसिया छानबीन में शक की सूई एक शख्स पर जा कर टिक गई, क्योंकि किसी ने पुलिस को यह सूचना दी थी कि राजेश का मोबाइल फोन कप्तानगंज थाना क्षेत्र के हर्दिया गांव के रवीश कुमार मिश्र के पास है.

पुलिस सतर्क हो गई. रवीश कुमार मिश्र को पकड़ने के लिए उस के गांव में दबिश दी गई और उसे मोबाइल समेत गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस की पूछताछ में रवीश पहले तो इधरउधर की बातों में उलझाता रहा, पर बाद में जब कड़ाई की गई, तो उस ने राजेश कुमार की हत्या करने की जो मामूली वजह बताई, वह उस की सनक का ही नतीजा निकला.

कहानी पिल्ले की

रवीश कुमार मिश्र ने राजेश कुमार की हत्या की जो वजह बताई, वह उस की सनक के चलते हुई थी. उस ने पुलिस को बताया कि उस का कप्तानगंज थाना क्षेत्र में दुधौरा तिलकपुर में ननिहाल है और वह अपने मामा के पास एक पालूत पिल्ले को एक हफ्ते के लिए छोड़ कर आया था.

एक हफ्ते बाद जब वह मामा के पास पिल्ला लेने पहुंचा, तो पिल्ले को न देख उस ने अपने मामा से पूछा.

मामा ने बताया कि उस के पिल्ले ने बहुत परेशान कर रखा था, इसलिए गांव में ही एक आदमी को उस की देखभाल के लिए छोड़ दिया.

इस बात से रवीश आगबबूला हो गया और वह मामा के पास न रुक कर सीधे उस आदमी के पास पहुंच गया और बिना गलती के ही उस के साथ हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई के दौरान उस का मोबाइल फोन कहीं गुम हो गया.

जब रवीश पिल्ले को ले कर अपने गांव हर्दिया आया, तो उस की बहन ने उस से अपना मोबाइल फोन मांगा.

रवीश ने मोबाइल खोजा, पर नहीं मिला. उस ने अपनी बहन से बहाना किया कि उस का मोबाइल किसी को फोन करने के लिए दिया है.  इस के बाद उस ने मोबाइल बहुत खोजा, लेकिन वह नहीं मिला.

रवीश ने घर आ कर बताया कि मोबाइल गायब हो गया है, तो उस की बहन रोने लगी. घर वाले रवीश को ताना मारने लगे.

रवीश परेशान हो कर घर से बाहर निकल गया. इसी उधेड़बुन में वह गांव से बाहर जाने वाले खड़ंजे की सड़क पर जा ही रहा था कि उसे एक आदमी मोबाइल पर बात करते हुए आता दिखाई दिया. उस को लगा कि उस आदमी का मोबाइल छीन कर वह अपनी बहन को दे सकता है. इस के बाद उस ने राजेश कुमार के पास जा कर उस का मोबाइल छीनने की कोशिश की.

अचानक हुई इस छीनाझपटी से राजेश कुछ नहीं समझ पाया और दोनों में हाथापाई होने लगी. तभी रवीश कुमार के हाथ में एक डंडा आ गया और उस ने डंडे से राजेश के सिर पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

राजेश वहीं गिर कर तड़पने लगा और जल्द ही उस की मौत हो गई. रवीश ने मोबाइल उठाया और जिस डंडे से राजेश की हत्या की थी, उसे पास के ही एक गन्ने के खेत के बीच में जा कर गाड़ दिया.

रवीश जब घर आया और उस ने वह मोबाइल फोन अपनी बहन को देने की कोशिश की, तो उस की बहन ने लेने से इनकार कर दिया. लिहाजा, उस ने वह मोबाइल अपने पास ही रख लिया.

स्टेशन उड़ाने की धमकी

रवीश कुमार की सनक का एक मामला 30 जुलाई, 2015 को भी सामने आया था, जब उस ने अपने घर में पड़े एक झोले पर पंजाब के भटिंडा के एक दुकानदार का मोबाइल नंबर देखा, तो उस ने उस दुकानदार को फोन कर भटिंडा रेलवे स्टेशन को बम से उड़ाने की धमकी दे डाली.

यह धमकी सुन कर उस दुकानदार ने पंजाब पुलिस को सूचना दी, तो पंजाब पुलिस सक्रिय हो गई.

जिस मोबाइल नंबर से उस दुकानदार को रेलवे स्टेशन उड़ाने की धमकी दी थी, उस का सर्विलांस के जरीए रवीश की लोकेशन ढूंढ़ ली.

इस के बाद पंजाब पुलिस ने इस की सूचना बस्ती पुलिस को दी, जिस के बाद वहां की पुलिस भी सक्रिय हो गई और आननफानन रवीश कुमार मिश्र को गिरफ्तार कर धारा 505 के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया.

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को

फोन की घंटी बजी तो अख्तर खान ने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर जानापहचाना था, इसलिए उस ने तुरंत फोन रिसीव किया. तब दूसरी ओर से पूछा गया कि कौन, अख्तर खान बोल रहे हैं तो अख्तर खान ने कहा, ‘‘हां…हां गुड्डी, मैं अख्तर खान ही बोल रहा हूं. कहो, क्या आदेश है?’’

‘‘अरे खान साहब, आदेश कोई नहीं है. एक अच्छी सी बात है. एक बड़ा ही प्यारा सा माल आया है. आप शौकीन आदमी हैं, इसलिए उसे सब से पहले आप के सामने ही पेश करना चाहती हूं. आप पहले आदमी होंगे, जिस के साथ वह हमबिस्तर होगी.’’ गुड्डी ने मनुहार सा करते हुए कहा.

‘‘अरे गुड्डी, पहले माल तो दिखाओ. माल देखने के बाद ही आने, न आने के बारे में सोचूंगा.’’ अख्तर खान ने कहा.

गुड्डी ने तुरंत वाट्सऐप पर एक लड़की का फोटो भेज दिया. फोटो देख कर अख्तर खान की आंखें चमक उठीं. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘मैडम, इस का रेट क्या होगा?’’

‘‘पूरे 10 हजार लगेंगे.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी, 10 हजार में तो किसी बिकाऊ हीरोइन को खरीदा जा सकता है. यह मुंबई से लाई गई कोई हीरोइन थोड़े ही है?’’ अख्तर खान ने कहा.

‘‘अख्तर साहब, यह हीरोइन भले नहीं है, पर हीरोइन से कम भी नहीं है. इसे दिल्ली से लाया गया है. एक बार चखोगे, तो गुलाम बन जाओगे. उस के बाद इस लड़की को ही नहीं, गुड्डी को भी नहीं भूल पाओगे. खान साहब, रेट की बात छोड़ो, अगर लड़की पसंद है तो आ जाओ. फाइनल डील तो मैडम मंजू ही करेंगी.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी मैं इस समय रावतसर ही हूं. तुम कह रही हो तो आधे घंटे में पहुंच रहा हूं. सीधे मैडम मंजू के घर ही पहुंचूंगा.’’

आधे घंटे बाद अख्तर खान हनुमानगढ़ जंक्शन के मोहल्ला सुरेशिया स्थित मंजू मैडम के घर पर था. चायनाश्ते के बाद अख्तर खान को बैडरूम में सजीधजी बैठी लड़की दिखाई गई तो उस की आंखें चमक उठीं. उस ने कुरते की जेब में हाथ डाला और 7 हजार रुपए निकाल कर मंजू के हाथों पर रख दिए. बिना किसी हीलहुज्जत के रुपए मुट्ठी में दबा कर मंजू बैडरूम से बाहर निकल गई. यह मार्च, 2017 के पहले सप्ताह की बात है.

तहसील रावतसर के गांव कल्लासर के रहने वाले सुमेरदीन का बेटा अख्तर खान रंगीनमिजाज युवक था. देहव्यापार का कारोबार करने वाली मंजू अग्रवाल और उस की सहायिका गुड्डी मेघवाल से उस की कई सालों पुरानी जानपहचान थी. अख्तर खान की खेती की जमीन में ‘जिप्सम’ के रूप में प्रचुर मात्रा में खनिज पाया गया है, जिस की वजह से इलाके में उस की गिनती धनी लोगों में होती है.

मंजू के बैडरूम में उस कमसिन लड़की के साथ घंटे, डेढ़ घंटे गुजार कर अख्तर खान संतुष्ट हो कर अपने घर लौट गया. जातेजाते उस ने मंजू और गुड्डी के प्रति आभार भी व्यक्त किया था. इस के बाद मंजू और गुड्डी द्वारा बुलाए गए कई ग्राहकों को उस लड़की ने संतुष्ट किया था.

रात हो गई थी. थक कर चूर हो चुकी उस लड़की ने लगभग रोते हुए कहा, ‘‘आंटी, अब और नहीं सह पाऊंगी शरीर का पोरपोर दर्द कर रहा है.’’

‘‘बस बेटा, आखिरी ग्राहक बचा है. वह एक बड़ा अफसर है. उस के लिए तुझे एक होटल में जाना होगा. जगतार तुझे वहां ले जाएगा. बस आधे घंटे की बात है.’’ मंजू ने सख्त लहजे में प्यार से कहा.

लड़की में मना करने की हिम्मत नहीं थी. इसलिए आधे घंटे में फ्रेश हो कर वह तैयार हो गई. जगतार उसे मोटरसाइकिल से संगम होटल ले गया. लड़की को बताए गए कमरे में पहुंचा कर वह स्वागत कक्ष में आ कर बैठ गया. आधे घंटे बाद लड़की रिशेप्शन पर आई तो जगतार उसे ले कर मंजू के घर आ गया.

2 दिन पहले ही मंजू के घर जबरदस्ती लाई गई यह लड़की बीते एक सप्ताह के हर लम्हे को याद कर के आंसुओं के सागर में गोते लगा रही थी. वहीं उस से देहव्यापार कराने वाली मंजू अग्रवाल पहले ही दिन की कमाई से निहाल हो उठी थी. एक ही दिन में उस की 22 हजार रुपए की कमाई हो चुकी थी.

लड़की, जिसे निर्भया कह सकते हैं, उसे दिल्ली से ला कर मंजू के हाथों बेचा गया था. वह मंजू के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हुई थी. 2 दिन पहले ही मंजू ने उसे दिल्ली के दलाल सुनील बागड़ी के माध्यम से गोलू और निशा से एक लाख रुपए में खरीदा था.

लेकिन मंजू ने अभी उन्हें 30 हजार रुपए ही दिए थे. बाकी के 70 हजार 15 दिनों बाद देने थे, अब तक की कमाई को देख कर मंजू को यही लगा कि उस ने जो पैसे इस लड़की पर लगाए हैं, वे 5-7 दिनों में ही निकल आएंगे. उस के बाद तो उस के घर रुपयों की बरसात होगी.

घर में निर्भया के कदम पड़ते ही मंजू के दिन फिर गए थे. उस के घर ग्राहकों की लाइन लग गई थी. एक बार जो निर्भया के साथ मौज कर लेता था, उस का दीवाना बन जाता था. उसे बाहर ले जाने के लिए मंजू ग्राहकों से मुंह मांगी रकम लेती थी. निर्भया कहीं मुंह ना खोल दे या भाग न जाए, इस के लिए 2-3 लड़के हमेशा उस पर नजर रखते थे. अगर वह ग्राहक के पास जाने से मना करती तो उसे डरायाधमकाया जाता.

मासूम और नाबालिग निर्भया शरीर के साथसाथ मानसिक रूप से भी मंजू ही नहीं, उस के गुर्गों की दासी बन चुकी थी. उस की शारीरिक कसावट और रूपलावण्य में गजब का आकर्षण था. उसे होटल में ले जाने वाला आदमी ग्राहक से पहले खुद उस के साथ मौज करता था. कमाई के चक्कर में मंजू ने उसे मशीन बना दिया था.

मंजू ने तमाम लड़कियों को अपने घर में रख कर धंधा करवाया था, लेकिन बरकत तो निर्भया के आने पर ही हुई थी. सुरेशिया इलाके में मंजू के 2 मकान थे. गुड्डी उस के पड़ोस में ही रहती थी. पहले वह मंजू के यहां देहधंधा करती थी. उम्र ज्यादा हो गई तो वह मंजू के लिए दलाली करने लगी थी. मंजू अपने ग्राहकों की हर सुखसुविधा का खयाल रखती थी.

उस ने अपने मकान के एक कमरे को फाइव स्टार होटल के कमरे की तरह सजा रखा था. वह ग्राहकों के लिए शबाब के साथसाथ शराब भी उपलब्ध कराती थी. बीते एक महीने में मंजू ने निर्भया से अपनी रकम तो वसूल कर ही ली थी, अच्छाखासा फायदा भी कमा लिया था.

निर्भया के चहेतों ने उस से शादी करने के लिए मंजू के सामने मुंहमांगी रकम देने की भी बात कही थी. मंजू तैयार भी थी, पर निर्भया का आईडी प्रूफ नहीं था, इसलिए वह शादी नहीं करवा पा रही थी. मंजू यह भी जानती थी कि एक तो निर्भया नाबालिग है, इस के अलावा वह दलित समुदाय से भी है. लेकिन अंधाधुंध कमाई के चक्कर में उस की आंखों पर परदा पड़ा हुआ था.

सालों पहले मंजू खुद भी देहधंधा करती थी, वह थी भी काफी आकर्षक. लेकिन उस के चहेतों में निर्भया के दीवानों जैसी दीवानगी नहीं थी. विचारों के भंवर में फंसी मंजू अपने 30-35 साल पुराने अतीत में खो गई थी.

तहसील टिब्बी के एक गांव में जन्मी मंजू के युवा होते ही घर वालों ने सूरतगढ़ निवासी इंद्रचंद अग्रवाल से उस की शादी कर दी थी. स्वच्छंद और आजाद खयालों वाली मंजू को ससुराल की परदा प्रथा और रोकटोक कतई पसंद नहीं आई. 7 सालों में मंजू ने 3 बेटों को जन्म दिया.

 

बच्चे पैदा होने के बाद मंजू की सुंदरता कम होने के बजाए और बढ़ गई थी. आखिर एक दिन ससुराल की बंदिशों से ऊब कर मंजू ने अपने दांपत्य को अलविदा कह दिया. तीनों बेटे कभी मां के पास तो कभी दादादादी के पास रह कर दिन काट रहे थे. मंजू की ज्यादातर रातें अपने आशिकों के साथ गुजर रही थीं.

मंजू का एक आशिक था बबलू. उस की दबंगई से प्रभावित हो कर मंजू उस के साथ लिवइन रिलेशन में हनुमानगढ़ के हाऊसिंग बोर्ड में रहने लगी थी. बबलू मारपीट, कब्जे करना, देहव्यापार कराना, लूटपाट और हत्या के प्रयास जैसे अपराध कर के डौन बन गया था.

मंजू भी हाऊसिंग बोर्ड इलाके में मजबूर युवतियों  से धंधा करवाने लगी तो पड़ोसियों ने उस का पुरजोर विरोध किया. इस के बाद मंजू सुरेशिया में शिफ्ट हो गई.

कहा जाता है कि सन 2006 में नारी सुख का एक तलबगार मंजू के घर पहुंचा. मंजू और उस के गुंडों ने उस दिन उस ग्राहक के लगभग 30 हजार रुपए छीन लिए थे. उस आदमी ने अपने खास दोस्त को आपबीती बताई तो वह एक नामी बदमाश को ले कर मंजू के घर  पहुंच गया.

बदमाश ने 2 दिनों में पूरी रकम लौटाने को कहा और न लौटाने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी. अगले दिन मंजू अपनी बहू को ले कर हनुमानगढ़ के तत्कालीन एसपी के पास पहुंची और सोनू की ओर से उस आदमी और उस के साथी बदमाश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराने का आदेश करा दिया.

लेकिन दोनों लड़के इलाके के विशिष्ट लोगों को साथ जा कर सारी सच्चाई एसपी को बताई तो मंजू का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.

मंजू के 2 बेटे युवा होने से पहले ही चल बसे थे. बड़े बेटे सुरेश की शादी सोनू से हुई थी. मंजू ने अपनी बहू सोनू को भी धंधे में उतार दिया था. सन 2001 में बबलू डौन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. उस के बाद मंजू ने उस की जगह ले ली. जल्दी ही वह लेडीडौन के रूप में कुख्यात हो गई.

कारण कोई भी रहा हो, मंजू ने पुलिस वालों, छुटभैये राजनेताओं से संबंध बना लिए थे. उस बीच मंजू के खिलाफ पीटा एक्ट, ब्लैकमेलिंग, देहव्यापार, कब्जा करने आदि के मुकदमे दर्ज हुए. पर उसे सजा एक में भी नहीं हुई.

उन दिनों मंजू के सैक्स रैकेट की तूती बोलती थी. उस के यहां राजस्थान की ही नहीं, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार आदि से दलालों के माध्यम से देहव्यापार के लिए लड़कियां मंगाई जाती थीं.

‘‘मैडम, कमरे में कोई ग्राहक आप का इंतजार कर रहा है.’’ गुड्डी के कहने पर मंजू की तंद्रा टूटी. मंजू कमरे में बैठे ग्राहक के पास पहुंची. चायपानी के बाद ग्राहक ने कहा, ‘‘मैडम, आप के यहां दिल्ली से कोई माल आया है, उस के बड़े चर्चे सुने हैं. मैं उस के साथ कुछ समय बिताना चाहता हूं.’’

‘‘हां, हां क्यों नहीं, उस का रेट 10 हजार रुपए हैं.’’ मंजू ने कहा.

‘‘मैं उस के साथ पूरी रात बिताऊं तो…?’’ ग्राहक ने कहा.

‘‘जरूर बिताइए, पर रात के डबल पैसे 20 हजार रुपए लगेंगे.’’ मंजू ने कहा.

ग्राहक ने 15 हजार रुपए मंजू की हथेली पर रख दिए और निर्भया के साथ विशिष्ट कमरे में घुस गया. निर्भया के लिए वह रात बहुत ही पीड़ादायक साबित हुई. उस ग्राहक ने एक ही रात में निर्भया को जैसे रौंद डाला. हवस में पागल उस आदमी ने निर्भया को जगहजगह काट खाया था. उस के साथ कुकर्म भी किया था. उस की हैवानियत से निर्भया के संवेदनशील अंगों में रक्तस्राव शुरू हो गया था.

वह गिड़गिड़ाती रही, पर शराब के नशे में मस्त ग्राहक को उस पर दया नहीं आई. निर्भया अस्तव्यस्त हालत में बैड पर पसरी पड़ी रही. उस की पीड़ा से मंजू को कोई सरोकार नहीं था. अगली रात को उस का सौदा एक ग्राहक से पुन: कर दिया गया. वह ग्राहक भी शराब पी कर निर्भया के कमरे में पहुंचा तो उस से कपड़े उतारने को कहा.

निर्भया ने कपड़े उतारे तो उस की हालत देख कर वह पीछे हट गया. बाहर आ कर उस ने मंजू से कहा, ‘‘तू ने मेरे साथ धोखा किया है. मेरे पैसे लौटा दे अन्यथा काट कर फेंक दूंगा.’’

हकीकत जान कर मंजू के बेटे मुकेश ने कहा, ‘‘मम्मी, इन के पैसे लौटा दो.’’

‘‘अरे भई इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो? अगर वह पसंद नहीं है तो सोनू के साथ टाइम पास कर लो.’’ मंजू ने बहू की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘और अगर पैसा ही चाहिए तो सुबह आ कर ले लेना.’’

शराबी ग्राहक बड़बड़ाता हुआ चला गया. यह 27 मार्च, 2017 की बात है.

अगले दिन रात वाला ग्राहक किसी भी समय पैसे लेने आ सकता था. मंजू नहीं चाहती थी कि घर में बखेड़ा हो. इसलिए उसे लगा कि निर्भया को कहीं दूसरी जगह पहुंचा देना चाहिए. उस के पड़ोस में सरदारी बुआ (बदला हुआ नाम) रहती थीं. उसे उन का घर सुरक्षित लगा, इसलिए वह निर्भया को साथ ले कर उन के घर जा पहुंची.

सरदारी बुआ से उस ने कहा, ‘‘बुआ, यह मेरी भांजी है. मेरी कोलकाता वाली बहन की बेटी. आज इस की मम्मी आ रही है. मैं उन्हें लेने रेलवे स्टेशन जा रही हूं. घर में अकेली बोर हो जाएगी, इसलिए आप मेरे लौटने तक इसे अपने यहां रख लो.’’

इतना कह कर मंजू चली गई. उस के जाने के बाद निर्भया लड़खड़ाते हुए सरदारी बुआ के पास पहुंची तो उसे इस तरह से चलते देख सरदारी बुआ ने उस के सिर पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘क्या बात है बिटिया, तेरी तबीयत ठीक नहीं क्या? तेरे पैरों में चोट लगी है क्या?’’

ममत्व भरे स्पर्श से निर्भया बिलख पड़ी. सरदारी बुआ के सीने पर सिर रख कर उस ने कहा, ‘‘आंटी, जख्म पैरों में ही नहीं, पूरे बदन पर हैं. हृदय घावों से छलनी हो चुका है. मंजू मेरी मौसी नहीं, इस ने मुझे खरीदा है. आंटी मुझे बचा लो.’’

सरदारी बुआ ने दुनिया देखी थी. निर्भया ने जितना कहा था, उतने में ही वह पूरा माजरा समझ गई. उस बच्ची की पीड़ा को उन्होंने गंभीरता से लिया. उन का मन निर्भया को बचाने के लिए तड़प उठा. उन्होंने तुरंत बाल संरक्षण कमेटी के जिलाध्यक्ष एडवोकेट जोट्टा सिंह को फोन कर के अपने घर बुला लिया. नाबालिग बच्ची से जुड़ा मामला था, इसलिए वह अकेले नहीं आए थे, उन के साथ उन के साथी भी आए थे.

नाबालिग निर्भया की हालत देख कर जोट्टा सिंह द्रवित हो उठे. उस की हालत काफी गंभीर थी. उसे तत्काल मैडिकल सहायता की जरूरत थी. मामला संगीन था, इसलिए पुलिस को भी सूचना देना जरूरी था. उन्होंने तुरंत एसपी भुवन भूषण यादव को मामले की जानकारी दे दी.

एसपी के निर्देश पर महिला थाने की थानाप्रभारी सहयोगियों के साथ सरदारी बुआ के घर पहुंच गईं. अब तक मंजू परिवार के साथ फरार हो चुकी थी. बाल संरक्षण कमेटी के संरक्षण में निर्भया को हनुमानगढ़ के जिला चिकित्सालय में भरती कराया गया.

शुरुआती पूछताछ में पुलिस को पता चला कि निर्भया दिल्ली के अमन विहार की रहने वाली थी. हनुमानगढ़ पुलिस ने दिल्ली के थाना अमन विहार पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि निर्भया के पिता कुंदन (बदला हुआ नाम) ने फरवरी महीने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

सूचना पा कर थाना अमन विहार पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ दर्ज मुकदमे में गोलू, मंजू, निशा, सुनील बागड़ी आदि को नामजद कर लिया. इस के बाद दिल्ली पुलिस की सबइंसपेक्टर मनीषा शर्मा पुलिस टीम के साथ हनुमानगढ़ पहुंची और निर्भया का बयान ले कर लौट गई.

पुलिस टीम के साथ आए निर्भया के पिता ने बेटी की हालत देखी तो गश खा कर गिर गए. मामला मीडिया द्वारा जगजाहिर हुआ तो शहर में भूचाल सा आ गया. निर्भया को न्याय दिलाने के लिए हनुमानगढ़ में भी मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए. श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कैंडल मार्च निकाला गया.

हनुमानगढ़ पुलिस दिल्ली में मुकदमा दर्ज होने की बात कह कर मुकदमा दर्ज करने से कतरा रही थी. लेकिन लोग मैदान में उतर आए. लोगों का कहना था कि यहां के आरोपियों से दिल्ली पुलिस को कोई सरोकार नहीं रहेगा. निर्भया का बुरा करने वालों को किए की सजा दिलाने के लिए यहां भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए.

लोगों के गुस्से को देखते हुए हनुमानगढ़ पुलिस बेबस हो गई. तीसरे दिन महिला पुलिस थाने में मंजू, गोलू, निशा, मुकेश, सोनू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 370, 372, 373, 376 (डी), 377, 3/4 पौक्सो एक्ट व हरिजन उत्पीड़न अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद डीएसपी वीरेंद्र जाखड़ को मामले की जांच सौंप दी गई.

जानकारी मिलने पर 30 मार्च, 2017 को राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्षा मनन चतुर्वेदी हनुमानगढ़ आईं और स्वास्थ्य केंद्र जा कर उपचाराधीन निर्भया से मिलीं. बच्ची की हालत देख कर वह रो पड़ीं. इस मामले में एक भी गिरफ्तारी न होने से उन्होंने पुलिस को आड़े हाथों लिया और शीघ्र गिरफ्तारी के आदेश दिए. 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्भया को अपनी पढ़ाई जारी रखने और वरिष्ठ अधिकारी बनने के लिए प्रेरित करते हुए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया. कुछ संस्थाओं ने ही नहीं, जन साधारण ने भी निर्भया की आर्थिक मदद की.

आखिर कौन थी निर्भया, वह कैसे चकलाघर संचालिका मंजू अग्रवाल के पास पहुंची? पुलिस जांच में पता चला कि सुरेशिया में ही किराएदार के रूप में मंजू के पड़ोस में सुनील बागड़ी रहता था. इस के पहले वह पश्चिमी दिल्ली के अमन विहार में रहता था. सुनील मंजू का राजदार था और एक दो बार उस के लिए बाहर से लड़की ला चुका था.

एक दिन सुनील मंजू के पास बैठा था तो उस ने कहा, ‘‘अरे सुनील बाबू, आजकल मेरा धंधा बड़ा मंदा है. कोई बढि़या सी लड़की की व्यवस्था कर देते तो धंधा चमक उठता. ऐसे माल के लिए मैं लाख, डेढ़ लाख रुपए खर्च करने को तैयार हूं.’’

‘‘मैडम, यह कौन सा मुश्किल काम है. मैं आज ही अपने साथी से कहे देता हूं.’’ सुनील ने कहा.

दिल्ली में सुनील के पड़ोस में ही गोलू और निशा रहते थे. निशा का पति ट्रक चलाता था, जबकि गोलू टैंपो चलाता था. निशा और उस के पति में किसी बात को ले कर खटपट हो गई तो निशा पति से अलग हो कर गोलू के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी. सुनील ने मंजू की मंशा गोलू और निशा को बताई तो लाखों मिलने की उम्मीद में उन के मुंह में पानी आ गया.

निशा के पड़ोस में ही रहती थी निर्भया. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी और दसवीं कक्षा में पढ़ रही थी. पिता मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी खींच रहे थे. आकर्षक कदकाठी और मनमोहक नयननक्श वाली निर्भया गोलू और निशा की निगाह में चढ़ गई. दोनों ने उसे मंजू के अड्डे पर पहुंचाने का मन बना लिया.

बस फिर क्या था. निशा और गोलू निर्भया पर डोरे डालने लगे. निशा को गोलू ने अपनी भाभी बताया था. जानपहचान बढ़ी तो निशा और गोलू निर्भया को गिफ्ट के साथ नकदी भी देने लगे. निशा ने निर्भया से कहा था कि वह गोलू से उस की शादी करा कर उसे अपनी देवरानी बनाना चाहती है.

फिसलन भरी राह पर आखिर एक दिन निर्भया फिसल ही गई और निशा तथा गोलू के साथ भाग गई. उसे ले जा कर पहले गोलू ने उस से शादी की. फिर 4-5 दिनों बाद वे उसे ले कर हनुमानगढ़ पहुंचे और सुनील बगड़ी के माध्यम से मंजू को सौंप दिया गया. निर्भया के गायब होने पर कुंदन ने थाना अमन विहार में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

 

हनुमानगढ़ पुलिस जब मुख्य अपराधियों को 3-4 दिनों तक गिरफ्तार नहीं कर सकी तो लोग नाराजगी व्यक्त करने गले. मीडिया भी पुलिस की भद्द पीट रही थी. साइबर क्राइम एक्सपर्ट हैडकांस्टेबल गुरसेवक सिंह ने मंजू के परिवार की लोकेशन पता कर रहे थे, पर शातिर मंजू पुलिस के पहुंचने से पहले ही उड़नछू हो जाती थी.

आखिर पांचवें दिन मंजू की आंख मिचौली खत्म हो गई. वह अपने बेटे मुकेश और बहू सोनू के साथ हरियाणा के ऐलनाबाद में पुलिस के हत्थे चढ़ गई. अदालत में पेश किए जाने पर अदालत ने तीनों को विस्तृत पूछताछ के लिए 10 दिनों  की पुलिस रिमांड पर सौंप दिया था.

मंजू से पूछताछ के बाद स्थानीय पुलिस ने पहले ग्राहक अख्तर खान सहित, 15 सौ रुपए में कमरा उपलब्ध कराने वाले संगम होटल के मैनेजर कृष्णलाल घूडि़या, दलाल गुड्डी मेघवाल और निर्भया का बुरा करने वाले विजय (रावतसर), नवीन खां, मंजूर खां (मोधूनगर) पूर्णचंद सिंधी (हनुमानगढ़) बिजली मैकेनिक जगदीश काला उर्फ अमरजीत आदि 15 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

अब दिल्ली पुलिस मंजू सोनू, मुकेश आदि को प्रोटक्शन वारंट पर अपनी सुपुर्दगी में लेने की कोशिश कर रही है. दिल्ली के दोनों आरोपी गोलू और निशा तिहाड़ जेल पहुंच गए हैं. हनुमानगढ़ पुलिस के लिए वे दोनों भी वांटेड हैं.

स्वास्थ्य लाभ के बाद निर्भया दिल्ली लौट गई थी. जिंदगी बरबाद करने वाले आरोपियों को फांसी की सजा की मांग करने वाली निर्भया की पुकार अब अदालत के फैसले पर निर्भर करेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सत्यकथा: देवरानी निकली जेठानी से बड़ी सेक्स खिलाड़ी

इंसपेक्टर भीमसिंह पटेल को पुलिस विभाग की सेवा करते लंबा समय बीत चुका था, लेकिन 20 फरवरी, 2022 को उन के साथ यह पहली बार हुआ था कि नए थाने का चार्ज संभालते ही उन्हें हत्या जैसी गंभीर वारदात से दोचार होना पड़ा. हुआ यह कि जिस दिन इंसपेक्टर भीमसिंह पटेल ने उज्जैन जिले के तराना थाने का चार्ज संभाला ही था कि इलाके के गांव कनादी जिवासी जितेंद्र सिंह ने खुद थाने आ कर उन्हें बताया कि कल रात से लापता हुई उस की 27 वर्षीय पत्नी भागवंता बाई की लाश आज सुबह गांव के बाहर पड़ी मिली है. उस ने टीआई पटेल को यह भी बताया कि भागवंता बाई का सिर बुरी तरह कुचला है इस से लगता है कि किसी ने उस की क्रूरता से हत्या की है.

थाने की जिम्मेदारी मिलते ही सामने आई इस गंभीर वारदात की सूचना उन्होंने तत्काल एसडीपीओ राजाराम आवाश्या और एसपी (उज्जैन) सत्येंद्र कुमार शुक्ला को दे कर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. गांव में भागवंता बाई के घर के पिछवाड़े कुछ ही दूरी पर उस का सिर कुचला शव पड़ा था. शव के पास ही भारी वजन वाले कई खून सने पत्थर पड़े थे. इस से उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि हत्यारे गिनती में 2 से भी ज्यादा रहे होंगे. इसी बीच एसपी सत्येंद्र शुक्ला के निर्देश पर एएसपी आकाश भूरिया के अलावा एफएसएल की टीम के साथ डौग स्क्वायड ने भी गांव में पहुंच कर अपना काम शुरू कर दिया.
इस बीच प्रारंभिक पूछताछ में मृतका भागवंता बाई के पति जितेंद्र ने बताया कि वह रोज की तरह कल मैसोदा कोल्ड स्टोरेज में हम्माली का काम खत्म कर रात लगभग 12 बजे घर लौटा तो पत्नी भागवंता बाई की गैरमौजूदगी में बच्चों को रोता पाया.

पूछने पर उन्होंने मां के काफी देर से घर पर न होने की बात बताई. उस ने रात में ही अपने एक भाई को ले कर उसे तलाश किया, जिस में पूरी रात खोजने के बाद उस का शव घर के पीछे जंगल में पड़ा मिला. प्रारंभिक पूछताछ में यह साफ हो जाने पर कि भागवंता बाई खुद ही बच्चों से थोड़ी देर में वापस आने को कह कर घर से निकली थी, इस से टीआई को मामले में पहला शक अवैध संबंध को ले कर था.
उन का सोचना था कि मृतका अपने किसी प्रेमी से मिलने एकांत में गई होगी, जहां दोनों के बीच बात बिगड़ने पर भागवंता बाई की हत्या कर दी.

खोजी कुत्ता भी घटनास्थल को सूंघने के बाद गांव में रहने वाले पाटीदार समाज के एक संपन्न किसान के घर में घुस गया. इस का पाटीदार समाज के लोगों ने विरोध किया और वे सड़क पर उतर आए.
इस के बाद गांव में भीम आर्मी के झंडे तले भी कुछ लोग जमा हो गए. जिन्होंने घटना के विरोध में आरोपी की गिरफ्तारी की मांग करते हुए आगरामुंबई मार्ग पर जाम लगा दिया. जिसे संभालने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के साथसाथ पुलिस को भी काफी मशक्कत करनी पड़ी. लेकिन इन सब के बीच टीआई पटेल हत्या के इस मामले में अपने दिमागी घोड़े दौड़ाते रहे. उन्होंने मृतका भागवंता बाई के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा ली और भागवंता बाई की कुंडली खंगालने के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया.
भागवंता बाई के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स हाथ में आते ही थानाप्रभारी के सामने हत्या की कहानी लगभग साफ हो गई.

दरअसल, उस रोज भागवंता बाई के मोबाइल पर गांव के एक संपन्न किसान किशन पाटीदार ने कई बार फोन किया था. शाम को सूरज डूबने के बाद एक घंटे में किशन ने भागवंता बाई को 22 बार फोन लगाया था. इस के अलावा काल डिटेल्स से यह भी साफ हो गया था कि भागवंता बाई और किशन पाटीदार के बीच में रोज दिन में कईकई बार लंबीलंबी बातें होती थीं. इतना ही नहीं, आधी रात में भी कभी किशन भागवंता बाई को फोन करता था तो कभी भागवंता बाई किशन को.

जवान और बेहद ही खूबसूरत भागवंता बाई किशन के खेत पर पिछले कई सालों से मजदूरी करती थी. ऐसे में मालिक अपनी जवान और सुंदर महिला मजदूर को आधी रात में किसलिए फोन करता है, यह समझना पुलिस के लिए मुश्किल नहीं था. इसलिए थानाप्रभारी ने किशन पाटीदार के मोबाइल की भी काल डिटेल्स निकलवाने के साथ ही उसे पूछताछ के लिए बुला लिया.

किशन के मोबाइल की काल डिटेल्स से एक नई बात यह सामने आ गई कि किशन केवल भागवंता बाई को ही आधी रात में फोन नहीं करता था बल्कि भागवंता बाई की देवरानी मधु के संग भी उस की देर रात में लंबी बातें होती थीं. मधु अपनी जेठानी भागवंता बाई से उम्र में छोटी मगर खूबसूरती में बड़ी थी.
मधु भी भागवंता बाई की तरह किशन के खेत पर मजदूरी करती थी. इसलिए किशन के संबंध जेठानी भागवंता बाई और देवरानी मधु दोनों से होने का शक होने पर पुलिस ने मधु के मोबाइल फोन की भी काल डिटेल्स निकलवा ली.

काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाली शाम को मधु ने जेठानी भागवंता बाई के अलावा किशन से भी कई बार फोन पर बात की थी. इन दोनों के अलावा उस की गुडारिया गुर्जर निवासी देवकरण फुलेरिया और शाजापुर निवासी लालू से भी फोन पर लगातार बातें हो रही थीं. ये दोनों रिश्ते में मधु के बहनोई थे. वहीं उसी रात किशन पाटीदार देवरानीजेठानी मधु और भागवंता बाई के अलावा अपने दोस्त ईश्वर बोड़ाना से लगातार फोन पर बात कर रहा था. सब से बड़ी बात तो यह थी कि रात में 8 बजे के बाद जब भागवंता बाई घर से बाहर निकली थी, तब ये पांचों फोन नंबर एक साथ उसी स्थान पर मौजूद थे, जहां सुबह भागवंता बाई की लाश मिली थी.

इसलिए कहानी साफ हो जाने पर जांच के संबंध में पूरी जानकारी एसडीपीओ राजाराम आवाश्या और एसपी सत्येंद्र शुक्ला को दे कर टीआई भीम सिंह पटेल ने किशन पाटीदार से गहन पूछताछ शुरू कर दी.
थोड़ी सी नानुकुर के बाद पूरी कहानी साफ हो जाने पर टीआई भीम सिंह पटेल की टीम में शामिल एसआई बाबूलाल चौधरी, एएसआई लोकेंद्र सिंह, हैडकांस्टेबल मांगीलाल, रामेश्वर, राहुल कुशवाहा, राजपाल सिंह, महेश, मानसिंह, कांस्टेबल राम सोनी, आदित्य प्रकाश, निधि, रीना और कल्पना की टीम ने तुरंत घेराबंदी कर किशन द्वारा बताए गए बाकी के 4 आरोपियों मृतका भागवंता बाई की देवरानी मधु, मधु के 2 जीजा देवकरण और लालू तथा किशन के दोस्त ईश्वर को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने आरोपियों के पास से हत्या में प्रयुक्त बाइक और मृतका का मोबाइल फोन, जिसे आरोपियों ने एक खेत में फेंक दिया था, बरामद कर लिया. उन से पूछताछ के बाद इस हत्याकांड की कहानी इस प्रकार सामने आई— पति जितेंद्र की हम्माली की नौकरी से इतनी आय नहीं थी कि 2 बच्चों वाले भागवंता बाई के परिवार का पेट आराम से भर सके. इसलिए कोई 5 साल पहले भागवंता बाई काम की तलाश में घर से बाहर निकली.

भागवंता बाई की सुदरता गांव में चर्चा का विषय पहले ही बन चुकी थी, इसलिए भागवंता बाई को काम देने वालों की कमी नहीं थी. जल्द ही भागवंता बाई गांव के संपन्न किसान किशन पाटीदार के खेत पर काम करने लगी. किशन ने भी भागवंता बाई की सुंदरता के चर्चे सुने थे, इसलिए उसे खेत पर काम देने के अलावा भी वह उस का विशेष ध्यान रखने लगा. भागवंता बाई मर्दों की फितरत को तब से जानती थी जब वह 15-16 साल की थी. इसलिए अपने मालिक किशन पाटीदार के मन में क्या चल रहा है, यह समझने में उसे देर नहीं लगी.

किशन भी जानता था कि गर्म खाने से हाथ और जीभ दोनों जल सकते हैं. इसलिए उस ने भागवंता बाई को हासिल करने में जल्दबाजी दिखाने के बजाए गंभीरता से काम लिया. इस कड़ी में पहले तो उस ने भागवंता बाई का वेतन बढ़ाया, फिर वेतन के अलावा भी उस की मदद करने के दौरान उस के रूप की तारीफ करने लगा. ऐसा करते हुए जब उस ने देखा कि भागवंता बाई अब काम पर पहले की अपेक्षा ज्यादा सजधज कर आने लगी है तो एक रोज पैसा देते समय उस का हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लिया.

भागवंता बाई पहले ही किशन की मेहरबानियां देख कर उस के सामने समर्पण का मन बना चुकी थी. इसलिए किशन की हरकत का विरोध करने के बजाए उस ने खुद अपने शरीर का सारा वजन उस के ऊपर लाद दिया.संयोग से उस समय खेत पर दूरदूर तक कोई नहीं था, इसलिए भागवंता बाई किशन के कहने पर चुपचाप खेत पर बनी टपरी में चली गई, जहां पीछे से आए किशन की इच्छा पूरी कर भागवंता बाई ने उस के सारे अहसान पहली मुलाकात में ही चुका दिए.

दिलफेंक किशन पाटीदार की तो मानो लौटरी लग गई थी. जिस भागवंता बाई को पूरा गांव हसरत भरी नजरों से देखता था, वह अपना सब कुछ किशन पर लुटाने लगी थी. भागवंता बाई के पास रूप की दौलत थी सो वह उसे किशन पर लुटा रही थी. जबकि किशन की जेब की दौलत थी सो वह इसे भागवंता बाई पर लुटाने लगा. जल्द ही भागवंता बाई का रहनसहन चमकदमक से भर गया.

भागवंता बाई संयुक्त परिवार में रहती थी. उस का बदला रूप देख कर देवरानी मधु का माथा ठनका. वह जानती थी कि जेठ की तो इतनी कमाई है नहीं, जो भागवंता बाई आए दिन नई साड़ी पहन कर इठलाती हुई कान में नया मोबाइल फोन लगाए घूमती रहे. वह जल्द ही समझ गई कि उस की जेठानी यह पैसा कहां से ला रही है.भागवंता बाई सुंदर थी तो मधु भी कम नहीं थी. फिर मधु तो भागवंता बाई की तुलना में ज्यादा जवान भी थी. इसलिए उस ने भी किशन के खेत पर नौकरी करने का फैसला कर लिया. एक रोज किशन के पास जा कर उस ने किशन से काम देने की फरियाद की.

जवान औरतों को नौकरी के लिए किशन कभी मना नहीं करता था. इसलिए मधु को देखते ही उस ने उसे दूसरे दिन से काम पर आने को कह दिया. भागवंता बाई मधु को पसंद नहीं करती थी. इसलिए यह बात भागवंता बाई को पता चली तो उस ने किशन से सुधा को नौकरी पर न रखने के लिए कहा. लेकिन किशन ने कुछ दिन बाद उसे काम से निकाल देने की कह कर बात टाल दी. मधु भी किशन के खेत पर काम करने जाने लगी. उस का मकसद तो कुछ और ही था, इसलिए वह भागवंता बाई और किशन पर नजर भी रखती थी. जब एक रोज किशन भागवंता बाई को ले कर खेत में बनी टपरी में घुसा तो पीछे से जा कर मधु ने जेठानी को किशन के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया. यह बात मधु घर में न कह दे, इसलिए भागवंता बाई के कहने पर किशन ने जेब से 2 हजार रुपए निकाल कर मधु को दे दिए.

मधु पैसे ले कर चुपचाप मुसकराते हुए चली गई तो दूसरे ही दिन किशन ने मधु को अकेले में टपरी में बुला कर उस के साथ भी संबंध बना लिए. अब किशन एक दिन मधु के साथ तो दूसरे दिन उस की जेठानी भागवंता बाई के साथ खेत पर दोपहर बिताने लगा. इस के बाद
भागवंता बाई और मधु दोनों ही एकदूसरे से चिढ़ने लगीं.

दरअसल, भागवंता बाई को लगता था कि मधु के कारण किशन अब उस के ऊपर कम पैसा खर्च करने लगा है.दूसरी तरफ मधु को लगता कि अगर भागवंता बाई न होती तो किशन पूरा पैसा उसे अकेले देता.
इसलिए किशन को एकदूसरे से अधिक खुश करने की भागवंता बाई और मधु में होड़ रहने लगी. इस के लिए भागवंता बाई ने तो मोबाइल पर देखदेख कर प्यार करने के विदेशी तरीके तक सीख लिए.
लेकिन भागवंता बाई की उम्र बढ़ रही थी, जबकि मधु अधिक जवान थी. दूसरे भागवंता बाई के साथ कई सालों से संबंध में रहने के कारण किशन का उस से मन भी भरने लगा था. प्रेमी किशन के मन की बात मधु समझ चुकी थी. इसलिए प्रेमी पर पूरा अधिकार जमाने के लिए उस ने भागवंता बाई को उस से दूर करने के लिए कई प्रयास किए.

मगर भागवंता बाई भी सोने का अंडा देने वाली मुर्गी किशन को नहीं खोना चाहती थी. जब कोई रास्ता समझ नहीं आया तो मधु ने किशन को भागवंता बाई की हत्या करने के लिए राजी कर लिया. फिर योजना बना कर 19 फरवरी, 2022 के दिन अपने बहनोइयों देवकरण और लालू को गांव बुला लिया.
वहीं दूसरी तरफ किशन भी अपने दोस्त ईश्वर को ले कर पहले से तय सुनसान इलाके में जा कर बैठ गया, जहां योजना के अनुसार मधु धोखे में रख कर भागवंता बाई को ले कर आने वाली थी.

उस रोज गांव में तेजाजी महाराज का एक कार्यक्रम होने के चलते गांव के सभी लोग उस में व्यस्त थे, जिस का फायदा उठा कर मधु ने रात लगभग 9 बजे अपना पेट खराब होने की बात कह कर भागवंता बाई से घर के पीछे झाडि़यों में साथ चलने को कहा.

गांव की ऐसी औरतों के लिए, जिन के घरों में शौचालय नहीं है, पेट खराब होना भी बहुत बड़ी समस्या है. इसलिए रात के समय में ऐसे मौकों पर सभी महिलाएं एकदूसरे की मदद करने गांव के बाहर साथ चली जाती हैं.मधु की योजना से बेखबर भागवंता बाई भी उस के साथ हो गई. मधु काफी शातिर थी. वह जानबूझ कर भागवंता बाई को ले कर ऐसे स्थान पर जा कर बैठी, जहां पास ही एक किसान ने भारी पत्थरों से अपने खेत की मेड़ बना रखी थी.

मधु का पेट सचमुच खराब तो था नहीं, इसलिए वह कुछ ही पल में पानी फेंक कर उठी और बिजली की फुरती से उस ने मेड़ से एक भारी पत्थर उठा कर पास में कुछ ही दूरी पर बैठी अपनी जेठानी भागवंता बाई के सिर पर दे मारा.इस के बाद उस ने प्रेमी किशन के साथ बैठ कर शराब पी रहे अपने दोनों बहनोइयों लालू और देवकरण को आवाज दे दी. मधु की आवाज पर किशन पाटीदार अपने साथ लालू, देवकरण और दोस्त ईश्वर को ले कर वहां आ गया, जिस के बाद पांचों ने मिल कर भागवंता बाई के सिर पर पत्थर मारमार कर उस की हत्या कर दी.

भागवंता बाई की मौत हो जाने की तसल्ली होने के बाद देवकरण, लालू और ईश्वर वहां से चले गए जबकि किशन अय्याशी करने के लिए मधु को ले कर पास के एक खेत में चला गया. यहां दोनों ने अय्याशी करने के बाद खड़ी फसल में भागवंता बाई का मोबाइल फेंक कर अपनेअपने घर चले गए.
आरोपियों का सोचना था कि पूरे गांव वालों के धार्मिक कार्यक्रम में व्यस्त होने के चलते वे कभी नहीं पकड़े जाएंगे. लेकिन पुलिस ने 24 घंटे में ही मामले का खुलासा कर पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

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