एक और बेटे की मां- भाग 3: रूपा अपने बेटे से क्यों दूर रहना चाहती थी?

बच्चों के कमरे में एक फोल्ंिडग बिछा, उस पर बिस्तर लगा व उसे सुला कर वह किचन में आ गई. ढेर सारे काम पड़े थे. उन्हें निबटाते रात के 11 बज गए थे. अचानक उस बेसुध सो रहे बच्चे किशोर के पास का मोबाइल घनघनाया, तो उस ने दौड़ कर फोन उठाया. उधर अस्पताल से ही फोन था. कोई रुचिका नामक नर्स उस से पूछ रही थी, ‘‘मिस्टर राकेश ने किन्हीं मिस्टर नीरज का नाम बताया है. वे घर पर हैं?’’

‘‘वे मेरे पति हैं. मगर मेरे पति क्या कर लेंगे?’’

‘‘मिस्टर राकेश बोले हैं कि वे कल उन के कार्यालय में जा कर उन के एक साथी से मिल लें और रुपए ले आएं.’’

‘‘मैं कहीं नहीं जाने वाला,’’ नीरज भड़क कर बोले, ‘‘जानपहचान है नहीं और मैं कहांकहां भटकता फिरूंगा. बच्चे का मुंह क्या देख लिया, सभी हमारे पीछे पड़ गए. इस समय हाल यह है कि लौकडाउन है और बाहर पुलिस डंडे बरसा रही है. और इस समय कोई स्वस्थ आदमी भी अस्पताल जाएगा, तो वह कोरोनाग्रस्त हो जाए.’’

वह एकदम उल झन में पड़ गई. कैसी विषम स्थिति थी. और उन की बात भी सही थी. ‘‘अब जो होगा, कल ही सोचेंगे,’’ कहते हुए उस ने बत्ती बु झा दी.

सुबह किशोर जल्द ही जग गया था. उस ने किशोर से पूछा, ‘‘तुम अपने पापा के औफिस में उन के किन्हीं दोस्त को जानते हो?’’

‘‘हां, वह विनोद अंकल हैं न, उन का फोन नंबर भी है. एकदो बार उन का फोन भी आया था. मगर अभी किसलिए पूछ रही हैं?’’

‘‘ऐसा है किशोर बेटे, तुम्हारी मम्मी के इलाज और औपरेशन के लिए अस्पताल में ज्यादा पैसों की जरूरत आ पड़ी है. और तुम्हारे पापा ने इस के लिए उन के औफिस में बात करने को कहा है.’’

‘‘हां, हां, वे डायरैक्टर हैं न, वे जरूर पैसा दे देंगे,’’ इतना कह कर वह मोबाइल में उन का नंबर ढूंढ़ने लगा. फिर खोज कर बोला, ‘‘यह रहा उन का मोबाइल नंबर,’’ किशोर से फोन ले उस ने उन्हें फोन कर धीमे स्वर में सारी जानकारी दे दी.

‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. वैसे, मैं एक आदमी द्वारा आप के पास रुपए भिजवाता हूं.’’

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‘‘मगर, हम रुपयों का क्या करेंगे?’’ वह बोली, ‘‘अब तो बस मिट्टी को राख में बदलना है. आप ही उस का इंतजाम कर दें. मिस्टर राकेश अस्पताल में भरती हैं. और उन का बेटा अभी बहुत छोटा  है, मासूम है. उसे भेजना तो दूर, यह खबर बता भी नहीं सकती. अभी तो बात यह है कि डैड बौडी को श्मशान पर कैसे ले जाया जाएगा. संक्रामक रोग होने के कारण मेरे पति ने कहीं जाने से साफ मना कर दिया है.’’

‘‘बिलकुल ठीक किया. मैं भी नहीं जाने वाला. कौन बैठेबिठाए मुसीबत मोल लेगा. मैं देखता हूं, शायद कोई स्वयंसेवी संस्था यह काम संपन्न करा दे.’’

लगभग 12 बजे दिन में एक आदमी शोभा के घर आया और उन्हें 10,000 रुपए देते हुए बोला, ‘‘विनोद साहब ने भिजवाए हैं. शायद बच्चे की परवरिश में इस की आप को जरूरत पड़ सकती है. राकेश साहब कब घर लौटें, पता नहीं. उन्होंने एक एजेंसी के माध्यम से डैड बौडी की अंत्येष्टि करा दी है.’’

‘‘लेकिन, हम पैसे ले कर क्या करेंगे? हमारे पास इतना पैसा है कि एक बच्चे को खिलापिला सकें.’’

‘‘रख लीजिए मैडम. समयसंयोग कोई नहीं जानता,’’ वह बोला, ‘‘कब पैसे की जरूरत आ पड़े, कौन जानता है. फिर उन के पास है, तभी तो दे रहे हैं.’’

‘‘ओह, बेचारा बच्चा अपनी मां का अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया. यह प्रकृति का कैसा खेल है.’’

‘‘अच्छा है मैडम, कोरोना संक्रमित से जितनी दूर रहा जाए, उतना ही अच्छा. जाने वाला तो चला गया, मगर जो हैं, वे तो बचे रहें.’’

किशोर दोनों बच्चों के साथ हिलमिल गया था. मुन्ना उस के साथ कभी मोबाइल देखता, तो कभी लूडो या कैरम खेलता. 3 साल की श्वेता उस के पीछेपीछे डोलती फिरती थी. और किशोर भी उस का खयाल रखता था.

उसे कभीकभी किशोर पर तरस आता कि देखतेदेखते उस की दुनिया उजड़ गई. बिन मां के बच्चे की हालत क्या होती है, यह वह अनेक जगह देख चुकी है.

रात 10 बजे जब वह सभी को खिलापिला कर निश्ंिचत हो सोने की तैयारी कर रही थी कि अस्पताल से फिर फोन आया, तो पूरे उत्साह के साथ मोबाइल उठा कर किशोर बोला, ‘‘हां भाई, बोलो. मेरी मम्मी कैसी हैं? कब आ रही हैं वे?’’

‘‘घर में कोई बड़ा है, तो उस को फोन दो,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘उन से जरूरी बात करनी है.’’

किशोर अनमने भाव से फोन ले कर नीरज के पास गया और बोला, ‘‘अंकल, आप का फोन है.’’

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वे बोले, ‘‘राकेशजी कैसे हैं?’’

‘‘ही इज नो मोर. उन की आधे घंटे पहले डैथ हो चुकी है. मु झे आप को इन्फौर्मेशन देने को कहा गया, सो फोन कर रही हूं.’’

आगे की बात नीरज से सुनी नहीं गई और फोन रख दिया. फोन रख कर वे किचन की ओर बढ़ गए. वह किचन से हाथ पोंछते हुए बाहर निकल ही रही थी कि उस ने मुंह लटकाए नीरज को देखा, तो घबरा गई.

‘‘क्या हुआ, जो घबराए हुए हो?’’ हाथ पोंछते हुए उस ने पूछा, ‘‘फिर कोई बात…?’’

‘‘बैडरूम में चलो, वहीं बताता हूं,’’ कहते हुए वे बैडरूम में चले गए. वह उन के पीछे बैडरूम में आई, तो वे बोले, ‘‘बहुत बुरी खबर है. मिस्टर राकेश की भी डैथ हो गई.’’

‘‘क्या?’’ वह अवाक हो कर बोली, ‘‘उस नन्हे बच्चे पर यह कैसी विपदा आ पड़ी है. अब हम क्या करें?’’

‘‘करना क्या है, ऐसी घड़ी में कोई कुछ चाह कर भी नहीं कर सकता,’’ इतना कह कर वे विनोदजी को फोन लगाने लगे.

‘‘हां, कहिए, क्या हाल है,’’ विनोदजी बोले, ‘‘बच्चा परेशान तो नहीं कर रहा?’’

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‘‘बच्चे को तो हम बाद में देखेंगे ही, बल्कि देख ही रहे हैं,’’ वे उदास स्वर में बोले, ‘‘अभीअभी अस्पताल से खबर आई है कि मिस्टर राकेश भी चल बसे.’’

‘‘ओ माय गौड, यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अब जो हो रहा है, वह हम भुगत ही रहे हैं. उन की डैडबौडी की आप एजेंसी के माध्यम से अंत्येष्टि करा ही देंगे. सवाल यह है कि इस बच्चे का क्या होगा?’’

‘‘यह बहुत बड़ा सवाल है, सर. फिलहाल तो वह बच्चा आप के घर में सुरक्षित माहौल में रह रहा है, यह बहुत बड़ी बात है.’’

‘‘सवाल यह है कि कब तक ऐसा चलेगा? बच्चा जब जानेगा कि उस के मांबाप इस दुनिया में नहीं हैं, तो उस की कैसी प्रतिक्रिया होगी? अभी तो हमारे पास वह बच्चों के साथ है, तो अपना दुख भूले बैठा है. मैं उसे रख भी लूं, तो वह रहने को तैयार होगा… मेरी पत्नी को  उसे अपने साथ रखने में परेशानी नहीं होगी, बल्कि मैं उस के मनोभावों को सम झते हुए ही यह निर्णय ले पा रहा हूं.

‘‘मान लीजिए कि मेरे साथ ही कुछ ऐसी घटना घटी होती, तो मैं क्या करता. मेरे बच्चे कहां जाते. ऊपर वाले ने मु झे इस लायक सम झा कि मैं एक बच्चे की परवरिश करूं, तो यही सही. यह मेरे लिए चुनौती समान है. और यह चुनौती मु झ को स्वीकार है.’’

‘‘धन्यवाद मिस्टर नीरजजी, आप ने मेरे मन का बो झ हलका कर दिया. लौकडाउन खत्म होने दीजिए, तो मैं आप के पास आऊंगा और बच्चे को राजी करना मेरी जिम्मेदारी होगी.

‘‘मैं उसे बताऊंगा कि अब उस के मातापिता नहीं रहे. और आप लोग उस के अभिभावक हैं. उस की परवरिश और पढ़ाईलिखाई के खर्चों की चिंता नहीं करेंगे. यह हम सभी की जिम्मेदारी होगी, ताकि किसी पर बो झ न पड़े और वह बच्चा एक जिम्मेदार नागरिक बने.’’

नीरज की बातों से शोभा को परम शांति मिल रही थी. उसे लग रहा था कि उस का तनाव घटता जा रहा है और, वह एक और बेटे की मां बन गई है.

मेरा पति सिर्फ मेरा है- भाग 3: अनुषा ने अपने पति को टीना के चंगुल से कैसे निकाला?

रोती हुई अनुषा बाथरूम में जा कर मुंह धोने लगी तो सास ने दबी आवाज में कहा, ‘‘मैं समझती हूं तुम्हारा दर्द. देखो मैं एक बाबा को जानती हूं. बहुत पहुंचे हुए हैं. वे भभूत दे देंगे या कोई उपाय बता देंगे. सब ठीक हो जाएगा. तुम चलो कल मेरे साथ.’’

अनुषा को बाबाओं और पंडितों पर कोई विश्वास नहीं था. मगर सास समझाबुझा कर जबरन उसे बाबा के पास ले गई. शहर से दूर वीराने में उस बाबा का आश्रम काफी लंबाचौड़ा था. आंगन में भक्तों की भीड़ लगी थी. बाबा की आंखें अनुषा को नशीली लग रही थीं. उस पर बारबार बाबा का भक्तों पर झाड़ू फिराना फिर अजीब सी आवाजें निकालना… अनुषा को बहुत कोफ्त हो रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि टीना को उस की जिंदगी से दूर करने में भला बाबा की क्या भूमिका हो सकती है? इस के लिए तो उसे ही कुछ सोचना होगा. वह चुपचाप बैठ कर आगे का प्लान दिमाग में बनाने लगी.

कुछ समय में उस का नंबर आ गया. बाबा ने वासनाभरी नजरों से उस की तरफ देखा और फिर उस के हाथों को पकड़ कर पास बैठने का इशारा किया. अनुषा को यह छुअन बहुत घिनौनी लगी. वह मुंह बना कर बैठी रही. सास ने समस्या बताई. बाबा ने झाड़ू से उस की समस्या झाड़ देने का उपक्रम किया.

फिर बाबा ने उपाय बताते हुए कहा, ‘‘बच्ची, तुम्हें 18 दिन केवल एक वक्त खा कर रहना होगा और वह भी नमकीन नहीं बल्कि केवल मीठा. इस के साथ ही 18 दिन का गुप्त अनुष्ठान भी चलेगा. काली बाड़ी के पास वाले मंदिर में रोजाना 11 बजे मैं एक पूजा करवाऊंगा. इस में करीब क्व90 हजार का खर्च आएगा.’’

‘‘जी बाबाजी जैसा आप कहें,’’ सास ने हाथ जोड़ कर कहा.

अनुषा उस वक्त तो चुप रही, मगर घर आते ही बिफर पड़ी, ‘‘मांजी, मुझे ऐसे उलजलूल उपायों पर विश्वास नहीं. मैं कुछ नहीं करने वाली. अब मैं अपने कमरे में जा रही हूं ताकि कोई बेहतर उपाय ढूंढ़ सकूं.’’

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अनुषा का गुस्सा देख कर सास चुप रह गई. इधर अनुषा देर रात तक सोचती रही. वह इतनी जल्दी अपनी परिस्थितियों से हार मानने को तैयार नहीं थी. काफी सोचविचार करने पर उसे रास्ता नजर आ ही गया.

अनुषा ने पहले टीना के बारे में अच्छी तरह खोजखबर ली ताकि उस की कमजोर नस पकड़ सके. सारी जानकारी एकत्र की. जल्द ही उसे पता लग गया कि टीना का पति रैडीमेड कपड़ों का व्यापारी है और पास की मार्केट में उस की काफी बड़ी शौप भी है. बस फिर क्या था अनुषा ने अपनी योजना के हिसाब से चलना शुरू कर दिया.

सब से पहले एक ड्रैस खरीदने के बहाने वह उस दुकान में गई. दुकान का मालिक यानी टीना का पति विराज करीब 40 साल का एक सीधासाधा सा आदमी था. सिर पर बाल काफी कम थे. वैसे पर्सनैलिटी अच्छी थी. अनुषा ने बातों ही बातों में बता दिया कि वह भी विराज के शहर की है. फिर क्या था विराज उस पर अधिक ध्यान देने लगा.

अनुषा ने एक महंगा सूट खरीदा और घर चली आई. 2-3 दिन बाद वह फिर उसी दुकान में पहुंची और कुछ कपड़े लिए. विराज ने उस के लिए स्पैशल चाय मंगवाई तो अनुषा भी बैठ कर उस से ढेर सारी बातें करने लगी. धीरेधीरे उस ने यह भी बता दिया कि उस का पति भुवन टीना के औफिस में काम करता है. विराज टीना और भुवन के रिश्ते के बारे में पहले से जानता था. इसलिए अनुषा से और भी ज्यादा जुड़ाव महसूस करने लगा.

अनुषा अब अकसर विराज की शौप पर जाने लगी और उस से देर तक बातें

करती. जल्द ही विराज से उस की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि विराज ने उसे घर आने को भी आमंत्रित कर दिया.

अगले ही दिन अनुषा टीना की गैरमौजूदगी में विराज और टीना के घर पहुंच गई. विराज ने उस की काफी आवभगत की और दोनों ने दोस्त की तरह साथ समय व्यतीत किया. चलते समय अनुषा ने जानबूझ कर टीना के बैड पर कोने में अपना हेयर पिन रख दिया. रात में जब टीना ने वह हेयर पिन देखा तो बौखला गई और विराज से सवाल करने लगी. विराज ने किसी तरह बात को टाल दिया.

मगर 2 दिन बाद ही अनुषा फिर विराज के घर पहुंच गई. इस बार वह बाथरूम में अपना दुपट्टा लटका आई थी.

टीना ने जब लेडीज दुपट्टा बाथरूम में देखा तो आपे से बाहर हो गई और विराज पर उंगली उठाने लगी, ‘‘वह दुपट्टा किस का है विराज, बताओ किस के साथ रंगरलियां मना रहे थे तुम?’’

‘‘पागल मत बनो टीना. मैं तुम्हारी तरह किसी के साथ रंगरलियां नहीं मनाता,’’ विराज का गुस्सा भी फूट पड़ा.

‘‘तुम्हारी तरह? क्या कहना चाहते हो तुम? भूलो मत मेरे पिता के पैसों पर पल रहे हो. मुझे धोखा देने की बात सोचना भी मत.’’

‘‘देखा टीना मैं मानता हूं एक महिला से मेरी दोस्ती हुई है. अनुषा नाम है उस का. मगर वह घर पर सिर्फ चाय पीने आई थी. यकीन मानो हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम रंगरलियां मनाना कह सको.’’

अब टीना थोड़ी सावधान हो गई थी. उसे महसूस होने लगा था कि बदला लेने के लिए अनुषा उस के पति पर डोरे डाल रही है. टीना ने अब भुवन के घर आनाजाना कम कर दिया मगर उस के साथ वक्त बिताना नहीं छोड़ा.

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इधर अनुषा फिर से विराज के घर पहुंची. इस बार वह विराज के लिए खूबसूरत सा गिफ्ट ले कर आई थी. यह एक खूबसूरत कविताओं का संग्रह था. विराज को कविताओं का बहुत शौक था. 2-3 घंटे दोनों कविताओं पर चर्चा करते रहे. इस बीच योजनानुसार अनुषा ने अपनी इस्तेमाल की हुई एक सैनिटरी नैपकिन टीना के बाथरूम की डस्टबिन में डाल दी. फिर विराज से इजाजत ले कर घर लौट आई.

अनुषा को अंदेशा हो गया था कि आज रात या कल सुबह टीना कोई न कोई ड्रामा जरूर करेगी. हुआ भी यही. सुबहसुबह टीना अनुषा के घर आ धमकी.

वह बाहर से ही चिल्लाती आ रही थी, ‘‘मेरे पति पर डोरे डाले तो अच्छा नहीं होगा अनुषा. मेरा पति सिर्फ मेरा है.’’

हंसती हुई अनुषा किचन से बाहर निकली और बोल पड़ी, ‘‘मान लो मैं तुम्हारे पति पर डोरे डाल रही हूं… बताओ क्या करोगी तुम? मेरे पति पर डोरे डालोगी? वह तो तुम पहले ही कर चुकी हो. आगे बताओ और क्या करोगी?’’

अनुषा का सवाल सुन कर वह बिफर पड़ी. चीखती हुई बोली, ‘‘खबरदार अनुषा जो पति की तरफ आंख उठा कर भी मत देखा. वरना तुम्हारे पति को नौकरी से निकाल दूंगी.’’

‘‘तो निकाल दो न टीना. मैं भी यही चाहती हूं कि वह तुम्हारे चंगुल से आजाद हो जाए. हंसी आती है तुम पर… मेरे पति के साथ गलत रिश्ता रखने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं. मगर तुम्हारे पति की ओर कोई देख भी ले तो तुम्हें समस्या हो जाती है. कैसी औरत हो तुम जो औरत का दर्द ही नहीं समझ सकती? दर्द तुम नहीं सह सकती वह दूसरों को क्यों देती हो?’’

दूर खड़ा भुवन दोनों की बातें सुन रहा था. उस की आंखें खुल गई थीं. मन ही मन अनुषा

की तारीफ कर रहा था कि कितनी सचाई से उस ने गलत के खिलाफ आवाज उठाई थी.

अब तक टीना भी सब के आगे अपना मजाक बनता देख संभल चुकी थी. अनुषा की बातों का असर हुआ था या फिर खुद पर जब बीती तो उस जलन के एहसास ने टीना को सोचने पर विवश कर दिया. उस के पास कोई जवाब नहीं था.

घर लौटते समय वह फैसला कर चुकी

थी कि आज के बाद भुवन पर अपना कोई हक नहीं रखेगी.

Satyakatha- ऊधमसिंह नगर में: धंधा पुराना लेकिन तरीके नए- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

सदियों पहले उस दौर की बात है, जब देश में राजेरजवाड़ों का अपना साम्राज्य हुआ करता था. समूचे इलाके में उन की तूती बोलती थी. उन के मनोरंजन के 2 ही मुख्य साधन हुआ करते थे. एक, जंगली जानवरों का शिकार करना और दूसरा, सुंदर स्त्री की लुभावनी अदाओं के नाचगाने का आनंद उठाने के अलावा यौनाचार में लिप्त हो जाना.

ऐसा ही कुछ आज के उत्तराखंड स्थित ऊधमसिंह नगर के काशीपुर में था. तब काशीपुर के कई मोहल्ले तो इस के लिए दूरदूर तक विख्यात थे. उस मोहल्ले की मुख्य सड़क के दोनों ओर वेश्याएं रहती थीं.

देह व्यापार में लिप्त ऐसी औरतें अब वैश्या कहलाना पसंद नहीं करतीं, उन्हें सैक्स वर्कर कहा जाता है. यहां पर कई छोटेबड़े नगरों के लोग अपनी कामपिपासा शांत करने आते थे. बाद में ऐसी औरतों की संख्या बढ़ने पर उन के धंधे को जबरन बंद करवाना पड़ा.

सामाजिक दबाव और प्रशासन की सख्ती के आगे इन वेश्याओं को नगर छोड़ कर जाने पर मजबूर होना पड़ा था. उस के बाद उन्होंने मेरठ शहर के लिए पलायन कर लिया था. उन्हीं में कुछ वेश्याएं ऐसी भी थीं, जिन्होंने नगर के आसपास रह कर गुप्तरूप से चोरीछिपे धंधे में लिप्त रहीं. वही सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है.

पुलिस समयसमय पर उन के ठिकानों पर छापामारी करती रहती है. उन्हें हिरासत में ले कर नारी सुधार गृह या जेल भेज दिया जाता है.

बात 30 जुलाई की है. पुलिस को जानकारी मिली थी कि काशीपुर के ढकिया गुलाबो मोहल्ले का एक दोमंजिला मकान काफी समय से देह व्यापार का ठिकाना बना हुआ है. इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए सीओ अक्षय प्रह्लाद कोंडे के निर्देश पर एक पुलिस टीम गठित की गई.

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टीम में महिला इंसपेक्टर धना देवी, कोतवाली एसएसआई देवेंद्र गौरव, टांडा चौकी इंचार्ज जितेंद्र कुमार, कांस्टेबल भूपेंद्र जीना, देवानंद, कांस्टेबल गिरीश कांडपाल, दीपक, मुकेश कुमार शामिल थे.

पुलिस टीम ने काफी सावधानी से छापेमारी को अंजाम दिया. सभी पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में थे. छापेमारी में उन्हें बताए गए ठिकाने से 4 महिलाएं और 2 पुरुषों को धर दबोचने में सफलता मिली.

वे मकान के अलगअलग कमरों में आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए थे. देह व्यापार मामले में आरोपी को रंगेहाथों पकड़ना जरूरी होता है. वरना वे संदेह के आधार पर आसानी से छूट जाते हैं. इस छापेमारी में देहव्यापार की सरगना फरार हो गई. पकड़े गए आरोपियों को पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

वैसे काशीपुर में इस तरह की छापेमारी पहली बार नहीं हुई थी. पहले भी कई बार इलाके में देह व्यापार के ठिकानों पर छापेमारी हो चुकी थी. देह के गंदे धंधे में लगे लोग हमेशा अड्डा बदलते रहते हैं.

देह व्यापार के धंधे में आधुनिकता और बदलाव कई रूपों में सामने आया है, जिस का एक मामला हल्द्वानी पुलिस के सामने 3 अगस्त को आया. पुलिस को सूचना मिली कि हाइडिल गेट स्थित स्पा सेंटर में काफी समय से देह व्यापार का खुला खेल चल रहा है.

इस सूचना के आधार पर हल्द्वानी सीओ शांतनु पराशर ने एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की टीम को साथ ले कर स्पा सेंटर पर छापा मारा. छापेमारी के दौरान एक युवक को युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा गया.

स्पा सेंटर में पुलिस की रेड पड़ते ही हलचल मच गई. सेंटर की संचालिका दिल्ली निवासी सुमन और स्वाति वर्मा फरार हो गईं. जबकि सेंटर के मैनेजर पश्चिम बंगाल के वरुणपारा वारूईपुरा, निवासी नादिया पकड़े गए.

छापेमारी के दौरान स्पा सेंटर से देह व्यापार से संबंधित कई आपत्तिजनक वस्तुएं भी बरामद हुईं. यहां तक कि उस के बेसमेंट से 9 लड़कियां निकाली गईं.

उन में 2 उत्तर प्रदेश, एक मध्य प्रदेश, एक मणिपुर, 2 पश्चिम बंगाल और 3 हरियाणा की थीं. पकड़ा गया युवक आशीष उनियाल काठगोदाम का रहने वाला निकला. वह एक निजी कंपनी में काम करता था.

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स्पा सेंटर में सुनियोजित तरीके से देह व्यापार का धंधा चलाया जा रहा था. धंधेबाजों ने बड़े पैमाने पर मसाज की आड़ में यौनाचार के सारे इंतजाम कर रखे थे.

वहां से पकड़ी गई सभी युवतियों के रहने की व्यवस्था सेंटर के बेसमेंट में की गई थी. उन के खानेपीने की पूरी सुविधाएं वहीं की गई थीं.

ग्राहक को स्पा सेंटर आने से पहले ही वाट्सऐप पर युवती की फोटो दिखा कर उस का सौदा कर लिया जाता था. ग्राहक को युवतियों के टाइम के हिसाब से अपौइंटमेंट तय किया जाता था.

स्पा सेंटर आते ही ग्राहक को रिसैप्शन पर बाकायदा बिल चुकाना होता था, जो स्पा से संबंधित होते थे. उस के बाद उसे कमरे में बने केबिन में जाने की इजाजत मिलती थी.

अपने फिक्स टाइम पर ग्राहक स्पा सेंटर पहुंच जाता था. उन्हें स्पीकर पर आवाज लगाई जाती थी. उस के साथ फिक्स युवती को इस की सूचना पहले होती थी और कुछ समय में ही अपने ग्राहक के पास चली जाती थी. एक युवती को एक दिन में 3 सर्विस देनी होती थी.

अगले भाग में पढ़ें- क्या  देह व्यापार का धंधा बंद हुआ?

इंतजार- भाग 3: क्यों सोमा ने अकेलापन का सहारा लिया?

महेंद्र पढ़ालिखा तो था ही, वह अब पूरे एरिया का इंस्पैक्टर बन गया था.

प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत एक घर के लिए सोमा का नाम निकल आया था. उस के लिए

एक लाख रुपए जमा करने थे. नाम उस का निकला था पैसे भी उसी के नाम पर जमा होने थे. लेकिन महेंद्र ने निसंकोच पलभर में पैसे उस के नाम पर दे दिए. अब उस का अपना मकान हो गया था.

मकान मिलते ही वे दोनों बस्ती से दूर इस कालोनी में आ कर रहने लगे थे.

सोमा को अपने जीवन में सूनापन लगता. जब उस से सब अपने पति या बच्चों की बात करतीं, तो उस के दिल में कसक सी उठती थी कि काश, उस का भी पति होता, परिवार और बच्चे हों. लेकिन महेंद्र ने उस से दूरी बना कर रखी थी. उस ने लालची निगाहों से कभी उस की ओर देखा भी नहीं था.

जबकि सोमा के सजनेसंवरने के शौक को देखते हुए महेंद्र बालों की क्लिप, नेलपौलिश, लिपस्टिक आदि लाता रहता था. कभी सूट तो कभी साड़ी भी ले आता था. एक दिन लाल साड़ी ले कर आया था, बोला, ‘सोमा, यह साड़ी पहन, तेरे पर लाल साड़ी खूब फबेगी.’

‘साड़ी तो तू सच में बड़ी सुंदर लाया है. लेकिन इसे भला पहनूंगी कहां, बता?’

‘हम दोनों इतवार को पिक्चर देखने चलेंगे, तब पहनना.’ वह शरमा गई थी.

दोनों के बीच पतिपत्नी का रिश्ता नहीं था, लेकिन दोनों साथसाथ एक ही घर में रहते थे.

वह कमरे में सोती तो महेंद्र बाहर बरामदे में. उस के अपने घर की खबर मिलते ही सूरज जाने कहां से प्रकट हो गया और पूरी कालोनी में महेंद्र की रखैल कह कर गालीगलौज करते हुए पति का हक जमाने लगा.

महेंद्र को बोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी थी. सोमा अकेले ही सूरज का सामना करने के लिए काफी थी. उस की गालियों के सामने उस की एक नहीं चली थी और हार कर वह लौट गया था.

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कई बार रात के अंधेरे में वह करवटें बदलती रह जाती थी. समाज की ऊलजलूल बातें और लालची मर्दों की कामुक निगाहें, मानो वह कोई ऐसी मिठाई है, जिस का जो चाहे रसास्वादन कर सकता है.

महेंद्र के साथ रहने से वह अपने को सुरक्षित महसूस करती थी. बैंक में अकाउंट हो या कोई भी फौर्म, पति के नाम के कौलम को देखते ही उस के गले में कुछ अटकने लगता था.

वह महेंद्र की पहल का मन ही मन इंतजार करती रहती थी.

महेंद्र अपनी बात का पक्का निकला था, उस ने भी सोमा का मान रखा था.

दोनों साथ रहते, खाना खाते, घूमने जाते लेकिन आपस में एक दूरी बनी  हुई थी.

‘सोमा, कल काम की छुट्टी कर लेना.’

‘क्यों?’

‘कल आर्य कन्या स्कूल में आधार कार्ड के लिए फोटो खिंचवाने चलना है. फोटो खींची जाएगी, अच्छे से तैयार हो कर चलना.’

वह मुसकरा उठी थी.

अगले दिन उस ने महेंद्र की लाई हुई साड़ी पहनी, कानों में ?ामके पहने थे. उस ने माथे पर बिंदिया लगाई. फिर आज उस के हाथ मांग में सिंदूर सजाने को मचल रहे थे.

हां, नहीं, हां, नहीं, सोचते हुए उस ने अपनी मांग में सिंदूर सजा लिया था. हाथों में खनकती हुई लाल चूडि़यां, आज वह नवविवाहिता की तरह सज कर तैयार हुई थी. आईने में अपना अक्स देख वह खुद शरमा गई थी.

महेंद्र उस को देख कर अपनी पलकें ?ापकाना ही भूल गया था. वह बोला, ‘क्या सूरज की याद आ गई तुम्हें?

वह इतरा कर बोली, ‘चलो, फोटो निकलवाने चलना है कि नहीं?’

सोमा को इतना सजाधजा देख महेंद्र उस का मंतव्य नहीं सम?ा पा रहा था.

वह चुपचाप उस के साथ चल दिया था. वहां फौर्म भरते समय जब क्लर्क ने पति का नाम पूछा तो एक क्षण को  वह शरमाई, फिर मुसकराती हुई  तिरछी निगाहों से महेंद्र को देखते  हुए उस का हाथ पकड़ कर बोली  थी, ‘महेंद्र’.

महेंद्र के कानों में मानो घंटियां बज उठी थीं. इन्हीं शब्दों का तो वह कब से इंतजार कर रहा था. वह अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहा था कि सोमा ने उसे आज अपना पति कहा है.

रात में वह रोज की तरह अपने कमरे में जा कर लेट गया था. आज खुशी से उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. लेकिन वह आज भी अपनी खुशी का इंतजार कर रहा था.

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आज नवविवाहिता के वेश में सजधज कर अपनी मधुयामिनी के लिए सोमा आ कर अपने प्रेमी की बांहों में सिमट गई थी.

अब उस के मन में समाज का कोई भय नहीं था कि महेंद्र जाट है और वह वाल्मीकि. अब वे केवल पतिपत्नी हैं. वह मुसकरा उठी थी.

महेंद्र की आवाज से वह वर्तमान में लौटी थी, ‘‘सोमा, दरवाजा तो खोलो, मैं कब से इंतजार कर रहा हूं.’’

अपने हिस्से की जिंदगी- भाग 3: क्यों कनु मोबाइल फोन से चिढ़ती थी?

Writer- Er. Asha Sharma

कनु अपने साधारण मोबाइल में नैट यूज नहीं करती है, इसीलिए न तो व्हाट्सऐप पर वह दिखाई देती है और न ही किसी और सोशल साइट पर उस का कोई अकाउंट है. उस की कोई पर्सनल मेल आईडी भी नहीं है. हां एक औफिसियल मेल आईडी जरूरी है जिस की जानकारी सिर्फ उस के स्टाफ मैंबर्स को ही है और उसे वह अपने लैपटौप पर ही इस्तेमाल करती है. बहुत मना करने पर भी निमेश उस पर अकसर पर्सनल मैसेज डाल देता है, मगर पढ़ने के बाद भी कनु उसे कोई जवाब नहीं देती.

अगले दिन जैसे ही कनु कौल सैंटर पहुंची, निमेश तुरंत उस के पास आया और बोला, ‘‘कनु तुम से कोई जरूरी बात करनी है.’’

‘‘फ्री हो कर करती हूं,’’ कह कनु ने उसे टाल दिया. पूरा दिन निमेश उस के फ्री होने का इंतजार करता रहा, मगर कनु उसे नजरअंदाज करती रही और शाम को चुपचाप वहां से निकल गई. अभी उसे घर पहुंचे 1 घंटा ही हुआ था कि निमेश भी पीछेपीछे आ गया. क्या करती कनु. घर आए मेहमान को अंदर तो बुलाना ही था. मगर उस एक कमरे के घर में उसे बैठाने की जगह भी नहीं थी.

‘चलो अच्छा ही हुआ… आज हकीकत अपनी आंखों से देख लेगा तो इस के इश्क का बुखार उतर जाएगा…’ सोचती हुई कनु उसे भीतर ले गई. कमरे में 3 चारपाइयां लगी थीं. एक पर सोनू और एक पर दादी सो रहे थे.

तीसरी शायद कनु की थी. निमेश खाली चारपाई पर चुपचाप बैठ गया. कनु चाय बना कर ले आई. दादी को सहारा दे कर तकिए के सहारे बैठा कर उस ने एक कप दादी को थमाया और एक निमेश की तरफ बढ़ा दिया. निमेश चुपचाप चाय पीता रहा. सोच कर तो बहुत आया था कि कनु से यह कहूंगा, वह कहूंगा, मगर यहां आ कर तो उस की जबान तालू से ही चिपक गई थी. एक भी शब्द नहीं निकला उस के मुंह से. चाय पी कर निमेश ने ‘चलता हूं’ कह कर उस से बिदा ली.

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1 सप्ताह हो गया कनु को निमेश कहीं नजर नहीं आया. मन ही मन सोचा कि निकल गई न इश्क की हवा… फिर सोचा कि इस में बेचारे निमेश की क्या गलती है… कुदरत ने मेरी जिंदगी में प्यार वाला कौलम ही खाली रखा है. निमेश ठीक ही तो कर रहा है… अब कोई जानबूझ कर जिंदा मक्खी कैसे निगल सकता है… सपने देखने की उम्र में कोई जिम्मेदारियों के लबादे भला क्यों ओढ़ेगा?

शाम को अचानक पापा को घर आया देख कर कनु को बहुत आश्चर्य हुआ. ‘2 साल से सोनू बिस्तर पर है, मगर पापा ने कभी आ कर देखा तक नहीं कि वह किस हाल में है… यहां तक कि उन की अपनी मां के चोटिल होने तक की खबर सुन कर भी उन्होंने उन की कोई खैरखबर नहीं ली… आज जरूर कुछ सीरियस बात है जो पापा को यहां खींच लाई है… क्या बात हो सकती है…’ कनु का दिल तेजी से धड़कने लगा.

‘‘कनु, मुझे माफ कर दे बेटी. मैं सिर्फ अपनी खुशियां ही तलाश करता रहा, तेरी खुशियों के बारे में जरा भी नहीं सोचा… धिक्कार है मुझ जैसे बाप पर… मुझे तो अपनेआप को पिता कहते हुए भी शर्म आ रही है… भला हो निमेश का जिस ने मेरी आंखें खोल दी वरना पता नहीं और कितने गुनाहों का भागी बनता मैं…’’ पापा ने कनु के  हाथ अपने हाथ में लेते हुए भर्राए गले से कहा.

‘‘अच्छा तो ये सब निमेश का कियाधरा है… उसे कोई अधिकार नहीं है इस तरह उस के घरेलू मामले में दखल देने का…’’ पापा के मुंह से निमेश का नाम सुनते ही कनु का पारा चढ़ गया. उस ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, ‘‘पापा, आप हमारी फिक्र न करें… हम सब ठीक हैं… सोनू और दादी की देखभाल मैं कर सकती हूं… बोझ नहीं हैं वे दोनों मेरे लिए…’’ बरसों से मन के भीतर दबी कड़वाहट धीरेधीरे पिघल कर बाहर आ रही थी.

‘‘मैं अपने किए पर पहले ही बहुत पछता रहा हूं, मुझे और शर्मिंदा मत करो कनु. मां और सोनू तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी जिम्मेदारी है…’’ पापा ने ग्लानि से कहा.

तभी कनु ने निमेश को आते हुए देखा तो नाराजगी से अपना मुंह फेर लिया. कनु के पापा ने भी उसे देख लिया था. बोले, ‘‘सोनू और मां को तो मैं अपने साथ ले जाऊंगा, मगर एक और बड़ी जिम्मेदारी है मुझ पर पिता होने की… उस से अगर मुक्ति मिल जाती तो मैं गंगा नहा लेता.’’ कनु ने प्रश्नवाचक नजरों से उन की तरफ देखा.

‘‘कनु, निमेश बहुत ही अच्छा जीवनसाथी होगा… तुम्हें बहुत खुश रखेगा…. तुम्हें राजी करने के लिए इस ने क्याक्या पापड़ नहीं बेले… तुम बस हां कर दो… इसे इस के प्यार का प्रतिदान दे दो,’’ पापा ने निमेश की वकालत करते हुए कनु से मनुहार की.

‘‘अगर आप सोनू और दादी को अपने साथ ले जाएंगे तो क्या आप की पत्नी को एतराज नहीं होगा?’’ कनु ने अपनी कड़वाहट जाहिर की.

‘‘कौन पत्नी… कैसी पत्नी? वह औरत तो 2 साल पहले ही मुझे यह कह कर छोड़ गई थी कि जो अपनी मां और बच्चों का नहीं हुआ वह मेरा कैसे हो सकता है… वैसे सही ही कहा था उस ने… मुझे आईना दिखा दिया था उस ने… मगर मुझ में ही हिम्मत नहीं बची थी तुम्हारा सामना करने की… क्या मुंह ले कर आता तुम्हारे पास… मैं एहसानमंद हूं निमेश का जिस ने मुझे हिम्मत बंधाई और अपनी जिम्मेदारी निभाने का हौसला दिया…’’ कनु के पापा की आंखों से आंसू बह चले.

कनु ने प्यार से निमेश की तरफ देखा तो वह शरारत से मुसकरा रहा था. बोला, ‘‘कनु, मैं बेशक छोटी सी नौकरी करता हूं, ज्यादा पैसा नहीं हैं मेरे पास… मगर मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें कोई कमी नहीं रहने दूंगा… तुम्हारे हिस्से की जिंदगी अब खुशियों से भरपूर होगी.’’

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‘‘मैं सोनू और मां के लिए ऐंबुलैंस मंगवाता हूं. तुम तब तक अपना जरूरी सामान पैक कर लो,’’ कनु के पापा ने उसे लाड़ से कहा. फिर निमेश की तरफ मुड़ कर बोले, ‘‘तुम इस रविवार अपने घर वालों को हमारे यहां ले कर आओ… रिश्ते की बात घर के बड़ों के बीच हो तो ही अच्छा लगता है.’’

अपने आंसू पोंछते हुए कनु बोली, ‘‘एक शर्त पर मैं आप सब की बात मान सकती हूं… आप सभी को मुझ से वादा करना होगा कि कोई भी अनावश्यक रूप से मोबाइल का उपयोग नहीं करेगा… इसे जरूरत पर ही इस्तेमाल किया जाएगा, शौक के लिए नहीं…’’

‘‘वादा’’ सब ने एकसाथ चिल्ला कर कहा और फिर घर में हंसी की लहर दौड़ गई.

Manohar Kahaniya: बच्चा चोर गैंग- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

विनोद कुमार ने सीसीटीवी कैमरे की ओर हाथ उठाते हुए आगे कहा, ‘‘तुम लोगों के कारनामे का मेरे पास पूरा सबूत है. तुम्हारे घर के आसपास की पूरी वीडियो रिकौर्डिंग है. तुम लोगों ने किसकिस से फोन पर क्या बातें कीं, उस की भी हमारे पास रिकौर्डिंग का आ चुकी है.’’

उस के बाद थानाप्रभारी ने तीनों युवकों के चेहरों से गमछा हटाते हुए कहा, ‘‘… और सब से बड़े सबूत के तौर पर हम ने आज ही इन शातिरों को पकड़ा है, जिसे तुम लोगों ने चोरी का बच्चा बेचा था. गलती यह हुई कि उसे लड़की दे दी, जबकि उस की मांग लड़के की थी. इसी बात को ले कर ही तीनों का तुम से झगड़ा हुआ था.’’

इस खुलासे के बाद बच्चा चोरी की वारदातों के ले कर जो बातें सामने आईं, वह काफी चौंकाने वाली निकलीं—

हफ्तों तक राजा और रेखा पतिपत्नी बन बच्चा चोरी की शिकायत के साथ थाने का चक्कर लगाते रहे. यहां तक कि उन्होंने एसएसपी से मिल कर भी अपना बच्चा चोरी होने की जानकारी दी. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने दोनों को तसल्ली दी और बच्चा बरामदगी का पूरा यकीन दिलाया. उस के 2 दिन बाद क्राइम मीटिंग में भी एसएसपी नैथानी ने बच्चा चोरी के मामले की चर्चा की. पता चला कि 2 बच्चे इसी तर्ज पर और चोरी हुए हैं, जो बहुत ही गरीब बंजारों के हैं.

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बच्चा चोरी के मामले के खुलासे के लिए एक टीम गठित कर दी गई. इस में एसआई धर्मेंद्र कुमार के साथ सर्विलांस टीम और एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट को भी जोड़ दिया गया. इन के कोऔर्डिनेशन व समीक्षा के लिए एसपी (सिटी) कुलदीप गुनावत व सीओ (तृतीय) श्रेताभ पांडेय को जिम्मेदारी सौंपी गई.

सभी आरोपी धर दबोचे

पुलिस ने आसपास के सारे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज खंगाल निकाली. सैकड़ों मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. मुखबिरों का जाल भी बिछा दिया. इस तरह बच्चा चोरी मामले का काफी डेटा पुलिस टीम के पास एकत्रित हो गया.

25 जुलाई, 2021 की देर रात मुखबिर की सटीक सूचना पर थानाप्रभारी विनोद कुमार महुआखेड़ा में मय फोर्स के वोरना तिराहे पर पहुंच गए. श्रेताभ पांडे भी टीम के साथ थे. सूचना के आधार पर 3 सवारों वाली बाइक को विशेष रूप से रोकरोक कर चैकिंग किया जाने लगा. कुछ देर में ही शिकार हाथ लग गया. 3 सवारों वाली एक बाइक को रोका तो उस के चालक ने भागने का प्रयास किया. लेकिन वह पुलिस टीम से घिर चुका था.

नतीजा तीनों भाग नहीं पाए. पुलिस ने उन्हें दबोच लिया. पुलिस ने पूछताछ की तो बच्चा चोर गिरोह का खुलासा हुआ.

पकड़े गए 3 लोगों में एक का नाम दुर्योधन दूसरे का नाम अनिल तीसरे का नाम शुभम बताया गया. दुर्योधन ठाकुरदास का बेटा है. गंगानगर कालोनी गांधी पार्क अलीगढ़ में रहता है. वह अनारपुर थाना मिरहची एटा का है. अनिल मूलत: मध्य प्रदेश में जिला सागर स्थित बजरिया गडरिया का है. शुभम हसायन हाथरस का निवासी है.

तीनों की दोस्ती जब दिल्ली में हुई थी, तब वे एक फैक्ट्री में काम किया करते थे. दुर्योधन की मुलाकात बबली से हुई. बातोंबातों में बबली ने एक दिन कहा कि उन के एक दूर के रिश्तेदार बहुत अमीर हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है, अगर उन्हें कोई बच्चा मिल जाए तो वह मोटी रकम मुझे देंगे. दुर्योधन ने अनिल और शुभम से संपर्क किया और बच्चा चोरी की योजना बनाई. उन्हें यह धंधा काफी लाभकारी लगा. बच्चे के खरीदार एक बच्चे के ही लाखों रुपए देने को तैयार थे. बच्चों की चोरी कर ये अमीर घरानों के लोगों को बेचने लगे. बच्चे गरीब परिवारों के चुराए जाते थे. उन्होंने रेखा और राजा को भी इस काम के लिए तैयार कर लिया था. दोनों बंजारा समुदाय के थे.

अलगअलग क्षेत्र और जिले से 5 बच्चे पुलिस ने बरामद किए. इन बच्चों को बेचने में सहयोग करने और खरीदने वालों की पुलिस ने धरपकड़ शुरू कर दी. इस तरह पुलिस ने 16 लोगों को गिरफ्तार किया. इन में महिलाएं भी थीं. महिलाओं में बबली, नेहा, चांदनी और रेखा इस गिरोह में शामिल थीं.

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सभी से पूछताछ करने के बाद गंगानगर कालोनी निवासी बबली के घर से 2 बच्चे , बाबा कालोनी निवासी आकाश के पास से एक बच्चा, खैर के संजय गोयल से एक बच्चा, दिल्ली गेट जाहिद के घर से एक बच्चा बरामद किया गया. एक बच्चे को मुंबई में बेचने की जानकारी मिली. पुलिस ने मुंबई जा कर छानबीन की, लेकिन बताए गए स्थान पर बच्चा बरामद नहीं हो सका.

पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां जल्दी आना- भाग 2: विनीता अपनी मां को क्यों साथ रखना चाहती थी?

अनंत मांबाबूजी की कमजोर नस थी सो उन के पास और कोई चारा भी तो नहीं था. खैर गाजेबाजे के साथ हम सब यामिनी को हमारे घर की बहू बना कर ले आए थे. सांवली रंगत और बेहद साधारण नैननक्श वाली यामिनी गोरेचिट्टे, लंबे कदकाठी और बेहद सुंदर व्यक्तित्व के स्वामी अनंत के आसपास जरा भी नहीं ठहरती थी पर कहते हैं न कि ‘‘दिल आया गधी पे तो परी क्या चीज है?’’

एक तो बड़ा जैनरेशन गैप दूसरे प्रेम विवाह तीसरे मांबाबूजी की बहू से आवश्यकता

से अधिक अपेक्षा, इन सब के कारण परिवार के समीकरण धीरेधीरे गड़बड़ाने लगे थे. बहू के आते ही जब मांबाबूजी ने ही अपनी जिंदगी से अपनी ही पेटजायी बेटियों को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका था तो बेटेबहू के लिए तो वे स्वत: ही महत्वहीन हो गई थी. कुछ ही समय में बहू ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे.

अनंत और उस की पत्नी यामिनी को परिवार के किसी भी सदस्य से कोई मतलब नहीं था. कुछ समय पूर्व ही यामिनी की डिलीवरी होने वाली थी तब मांबाबूजी गए थे अनंत के पास. नवजात पोते के मोह में बड़ी मुश्किल से एक माह तक रहे थे दोनों तभी अनंत ने मुझ से उन्हें वापस भोपाल आने का उपाय पूछा था. मैं ने भी येनकेन प्रकारेण उन्हें दिल्ली से भोपाल वापस आने के लिए राजी कर लिया था.

अभी उन्हें आए कुछ माह ही हुए थे कि अचानक एक दिन बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा और वे इस दुनिया से ही कूच कर गए पीछे रह गई मां अकेली. लोकलाज निभाते हुए अनंत मां को अपने साथ ले तो गया परंतु वहां के दमघोंटू वातावरण और यामिनी के कटु व्यवहार के कारण वे वापस भोपाल आ गईं और अब तो पुन: दिल्ली जाने से साफ इंकार कर दिया. सोने पे सुहागा यह कि अनंत और यामिनी ने भी मां को अपने साथ ले जाने में कोई रुचि नहीं दिखाई. मनुष्य का जीवन ही ऐसा होता है कि एक समस्या का अंत होता है तो दूसरी उठ खड़ी होती है.

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अचानक एक दिन मां बाथरूम में गिर गईं और अपना हाथ तोड़ बैठीं. अनंत ने इतनी छोटी सी बात के लिए भोपाल आना उचित नहीं समझा बस फोन पर ही हालचाल पूछ कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली. दोनों बड़ी बहनें तो विदेश में होने के कारण यूं भी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त थीं. बची मैं सो अनंत का रुख देख कर मेरे अंदर बेटी का कर्त्तव्य भाव जाग उठा. फ्रैक्चर के बाद जब मां को देखने गई तो उन्हें अकेला एक नौकरानी के भरोसे छोड़ कर आने की मेरी अंतआर्त्मा ने गवाही नहीं दी और मैं मां को अपने साथ मुंबई ले कर आ गई. मैं कुछ और आगे की यादों में विचरण कर पाती तभी मेरे कानों में अमन का स्वर गूंजा.

‘‘कहां हो भाई खानावाना मिलेगा… 9 बजने जा रहे हैं.’’ मैं ने अपने खुले बालों का जूड़ा बनाया और फटाफट किचन में जा पहुंची. देखा तो मां ने रात के डिनर की पूरी तैयारी कर ही दी थी बस केवल परांठे बनाने शेष थे. मैं ने फुर्ती से गैस जलाई और सब को गरमागरम परांठे खिलाए. सारे काम समाप्त कर के मैं अपने बैडरूम में आ गई. अमन तो लेटते ही खर्राटे लेने लगे थे पर मैं तो अभी अपने विगत से ही बाहर नहीं आ पाई थी. आज भी वह दिन मुझे याद है जब मां को देखने गई मैं वापस मां को अपने साथ ले कर लौटी थी. मुझे एअरपोर्ट पर लेने आए अमन ने मां के आने पर उत्साह नहीं दिखाया था बल्कि घर आ कर तल्ख स्वर में बोले,’’ ये सब क्या है विनू मुझ से बिना पूछे इतना बड़ा निर्णय तुम ने कैसे ले लिया.

‘‘कैसे मतलब… अपनी मां को अपने साथ लाने के लिए मुझे तुम से परमीशन लेनी पड़ेगी.’’ मैं ने भी कुछ व्यंग्यात्मक स्वर में उतर दिया था.

‘‘क्यों अब क्यों नहीं ले गया इन का सगा बेटा इन्हें अपने साथ जिस के लिए इन्होंने बेटी तो क्या दामादों तक को सदैव नजरंदाज किया.’’

‘‘अमन आखिर वे मेरी मां हैं… वह नहीं ले गया तभी तो मैं ले कर आई हूं. मां हैं वो मेरी ऐसे ही तो नहीं छोड़ दूंगी.’’ मेरी बात सुन कर अमन चुप तो हो गए पर कहीं न कहीं अपनी बातों से मुझे जता गए कि मां का यहां लाना उन्हें जंचा नहीं. इस के बाद मेरी असली परीक्षा प्रारंभ हो गई थी. अपने 20 साल के वैवाहिक जीवन में मैं ने अमन का जो रूप आज तक नहीं देखा था वह अब मेरे सामने आ रहा था.

घर आ कर सब से बड़ा यक्षप्रश्न था हमारे 2 बैडरूम के घर में मां को ठहराने का. 10 वर्षीय बेटी अवनि के रूम में मां का सामान रखा तो अवनि एकदम बिदक गई. अपने कमरे में साम्राज्ञी की भांति अब तक एकछत्र राज करती आई अवनि नानी के साथ कमरा शेयर करने को तैयार नहीं थी. बड़ी मुश्किल से मैं ने उसे समझाया तब कहीं मानी पर रात को तो अपना तकिया और चादर ले कर उस ने हमारे बैड पर ही अपने पैर पसार लिए कि ‘‘आज तो मैं आप लोगों के साथ सोउंगी भले ही कल से नानी के साथ सो जाउंगी.’’

पर जैसे ही अमन सोने के लिए कमरे में आए तो अवनि को बैडरूम में देख कर चौंक गए.

‘‘लो अब प्राइवेसी भी नहीं रही.’’

‘‘आज के लिए थोड़ा एडजस्ट कर लो कल से तो अवनि नानी के साथ ही सोएगी.’’ मैं ने दबी आवाज में कहा कि कहीं मां न सुन लें.

‘‘एडजस्ट ही तो करना है, और कर भी क्या सकते हैं.’’ अमन ने कुछ इस अंदाज में कहा मानो जो हो रहा है वह उन्हें लेशमात्र भी पसंद नहीं आ रहा पर उन्हें इग्नोर करने के अलावा मेरे पास कोई चारा भी नहीं था. मां को सुबह जल्दी उठने की आदत रही है सो सुबह 5 बजे उठ कर उन्होंने किचन में बर्तन खड़खड़ाने प्रारंभ कर दिए थे. मैं मुंह के ऊपर से चादर तान कर सब कुछ अनसुना करने का प्रयास करने लगी. अभी मेरी फिर से आंख लगी ही थी कि अमन की आवाज मेरे कानों में पड़ी.

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‘‘विनू ये मम्मी की घंटी की आवाज बंद कराओ मैं सो नहीं पा रहा हूं.’’ मैं ने लपक कर मुंह से चादर हटाई तो मां की मंदिर की घंटी की आवाज मेरे कानों में भी शोर मचाने लगी. सुबह के सर्दी भरे दिनों में भी मैं रजाई में से बाहर आई और किसी तरह मां की घंटी की आवाज को शांत किया. जब से मां आईं मेरे लिए हर दिन एक नई चुनौती ले कर आता. 2 दिन बाद रात को जैसे ही मैं सोने की तैयारी कर रही थी कि अवनि ने पिनपिनाते हुए बैडरूम में प्रवेश किया.

‘‘मम्मी मैं नानी के पास तो नहीं सो सकती, वे इतने खर्राटे लेती हैं कि

मैं सो ही नहीं पाती.’’ और वह रजाई तान कर सो गई. अमन का रात का कुछ प्लान था जो पूरी तरह चौपट हो गया था और वे मुझे घूरते हुए करवट ले कर सो गए थे बस मेरी आंखों में नींद नहीं थी. अगले दिन अमन को जल्दी औफिस जाना था पर जैसे ही वे सुबह उठे तो बाथरूम पर मां का कब्जा था उन्हें सुबह जल्दी नहाने का आदत जो थी. बाथरूम बंद देख कर अमन अपना आपा खो बैठे.

‘‘विनू मैं लेट हो जाऊंगा मम्मी से कहो हमारे औफिस जाने के बाद नहाया करें उन्हें कौन सा औफिस जाना है.’’

‘‘अरे औफिस नहीं जाना है तो क्या हुआ बेटा चाय तो पीनी है न और तुम जानते हो कि मैं बिना नहाए चाय भी नहीं पीती.’’ मां ने बाथरूम से बाहर निकल कर सफाई देते हुए कहा. जिंदगीभर अपनी शर्तों पर जीतीं आईं मां के लिए स्वयं को बदलना बहुत मुश्किल था और अमन मेरे साथ कोऔपरेट करने को तैयार नहीं थे. इस सब के बीच मैं खुद को तो भूल ही गई थी. किसी तरह तैयार हो कर लेटलतीफ बैंक पहुंचती और शाम को बैंक से निकलते समय दिमाग में बस घर की समस्याएं ही घूमतीं. इस से मेरा काम भी प्रभावित होने लगा था. मेरी हालत ज्यादा दिनों तक बैंक मैनेजर से छुपी नहीं रह सकी और एक दिन मैनेजर ने मुझे अपने केबिन में बुला ही भेजा.

‘‘बैठो विनीता क्या बात है पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं तुम कुछ परेशान सी लग रही हो. यदि कोई ऐसी समस्या है जिस में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं तो बताओ. अपने काम में सदैव परफैक्शन को इंपोर्टैंस देने वाली विनीता के काम में अब खामियां आ रही हैं इसीलिए मैं ने तुम्हें बुलाया.’’

‘‘नहीं मैम ऐसी कोई बात नहीं है बस कुछ दिनों से तबियत ठीक नहीं चल रही है. सौरी अब मैं आगे से ध्यान रखूंगी.’’ कह कर मैं मैडम के केबिन से बाहर आ गई. क्या कहूं मैडम से कि बेटियां कितनी भी पढ़ लिख लें, आत्मनिर्भर हो जाएं पर अपने मातापिता को अपने साथ रखने या उन की जिम्मेदारी उठाने के लिए पति का मुंह ही देखना पड़ता है.

Manohar Kahaniya: पत्नी की मौत की सुपारी- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेकिन इतनी मार खाने के बाद भी आरती कहती रही कि यह सब झूठ है. उसे गलतफहमी हुई है. जबकि श्यामशरण ने उस की बात पर विश्वास नहीं किया. अब आए दिन उन दोनों का झगड़ा मोहल्ले वालों के लिए मुफ्त का तमाशा बन गया था.

रोजरोज की पिटाई से आहत हो कर आरती एक दिन अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके ग्वालियर आ गई. कुछ माह बाद श्यामशरण आरती को लेने ग्वालियर आया. लेकिन आरती ने उस के साथ जाने को साफ मना कर दिया.

पति ने फोड़ दिया सिर

धीरेधीरे कई साल बीत गए. लेकिन आरती पति के घर नहीं लौटी. श्यामशरण को बच्चों से मोह था. कभीकभी वह बच्चों से मिलने जाता, लेकिन आरती बच्चों से नहीं मिलने देती.

अनिल शर्मा चाहते थे कि दोनों में सुलह हो जाए और आरती अपने बच्चों के साथ ससुराल चली जाए. वह सोचते थे कि आखिर जवान बेटी कब तक पिता की छाती पर मूंग दलेगी.

अनिल कुमार शर्मा ने इस दिशा में प्रयास शुरू किया तो दिसंबर 2020 में आरती और श्यामशरण आपसी सुलह को राजी हो गए. आरती अपने पिता के साथ ससुराल पहुंची.

वहां दोनों के बीच बात शुरू हुई. आरोपप्रत्यारोप के बीच दोनों की भौंहें टेढ़ी हो गईं. गुस्से में श्यामशरण ने सिलबट्टे से आरती के सिर पर प्रहार कर दिया, जिस से उस का सिर फट गया और खून बहने लगा.

आरती अपने हाथ में खून ले कर गुस्से से बोली, ‘‘मिस्टर शर्मा, तुम्हें इस खून की कीमत चुकानी पड़ेगी. खून का बदला खून से न लिया तो आरती मेरा नाम नहीं.’’

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इस के बाद वह पिता के साथ घर चली गई. उस के फटे सिर में 10 टांके लगाने पड़े थे. लेकिन उस के पिता ने दामाद के खिलाफ रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कराई थी.

आरती अब सोचने लगी थी कि उसे बच्चों के भविष्य के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा. इसी उद्देश्य से वह कानपुर शहर आ गई. फिर एक रिश्तेदार के माध्यम से नौबस्ता थाने के सागरपुरी (गल्लामंडी) में एक मकान किराए पर ले कर रहने लगी.

इस के बाद उस ने इसी मकान में एक आइसक्रीम फैक्ट्री शुरू कर दी. उस की मेहनत और लगन रंग लाई और उस का धंधा अच्छा चलने लगा.

उस की आइसक्रीम की बुकिंग शादीविवाह व छोटेमोटे अन्य समारोह के लिए होने लगी. जल्दी ही आरती की पहचान उद्यमी महिला के रूप में हो गई.

पति ने बनाई हत्या की योजना

आरती हंसमुख थी. सामने वाले को प्रभावित करने में वह माहिर थी. सजधज कर भी वह रहती थी. होंठों पर लिपस्टिक और आंखों का कजरा, उस की खूबसूरती में चारचांद लगाते थे.

वह रंगीनमिजाज भी थी, जिस से कई युवक उस के दोस्त बन गए थे. उन के साथ वह होटल, क्लब जाती, शराब पीती और मौजमस्ती करती. अब उसे रोकनेटोकने वाला कोई न था.

इधर श्यामशरण को जब से आरती ने बदला लेने की धमकी दी थी, तब से उस की रातों की नींद हराम हो गई थी. उसे लगने लगा था कि यदि आरती जीवित रही तो वह उस की हत्या करा देगी. लिहाजा श्यामशरण ने पत्नी आरती की हत्या कराने का फैसला ले लिया.

इस के लिए उस ने भरुआ सुमेरपुर कस्बा के ईदगाह कालोनी निवासी कुख्यात अपराधी नईम उर्फ रिंकू उर्फ भोलू से संपर्क साधा और 3 लाख 20 हजार रुपए में आरती की हत्या की सुपारी दी.

नईम ने अपने साथी शाहरुख तथा प्रतापगढ़ के राजा शुक्ला गैंग के शूटर विकास हजारिया तथा राहुल राजपूत को शामिल किया. विकास कबरई (बांदा) का रहने वाला था, जबकि राहुल राजपूत प्रतापगढ़ का.

14 मई, 2021 को ईद वाले दिन नईम उर्फ रिंकू के घर सभी बदमाश इकट्ठे हुए और श्यामशरण शर्मा की मौजूदगी में आरती की हत्या की योजना बनी. श्यामशरण ने शूटरों को आरती का फोटो तथा मोबाइल नंबर दिया.

इस के बाद शाहरुख ने फरजी आईडी पर एक सिम ऐक्टीवेट कराया और उस ने आरती से बात की. उस ने आइसक्रीम की क्वालिटी तथा रेट पूछे.

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उस ने कहा कि 20 मई को उस के यहां शादी है, उस के लिए 2-3 तरह की आइसक्रीम चाहिए. इस पर आरती ने जवाब दिया कि सभी क्वालिटी की आइसक्रीम आप को उचित रेट पर मिल जाएगी.

18 मई, 2021 की शाम 7 बजे नौबस्ता समाधि पुलिया के पास चारों शूटर इकट्ठे हुए. शूटर विकास हजारिया और राहुल राजपूत कार से आए थे. जबकि शाहरुख और नईम मोटरसाइकिल से. चारों ने मिल कर एक बार फिर से विचारविमर्श किया. फिर शाहरुख और नईम करसुई पुल की ओर रवाना हो लिए.

विकास हजारिया ने लगभग साढ़े 7 बजे उसी फरजी सिम से आरती से बात की और करसुई पुल के पास आइसक्रीम का और्डर और एडवांस देने को बुलाया.

आरती ने सोचा कि कोई बड़ी पार्टी है. अत: वह अपनी स्कूटी पर सवार हो कर करसुई पुल के पास पहुंच गई.

अब तक वहां चारों शूटर पहुंच चुके थे. नईम उर्फ भोलू आरती से बातचीत करने लगा. तभी पीछे से शूटर विकास हजारिया तथा राहुल राजपूत ने आरती पर फायर झोंक दिए. दोनों गोलियां पीठ में लगीं. तीसरा फायर शाहरुख ने सामने से किया. गोली आरती के सीने में लगी. आरती वहीं गिर पड़ी और दम तोड़ दिया. हत्या करने के बाद चारों शूटर फरार हो गए.

कुछ देर बाद एक युवक ने थाना बिधनू पुलिस को सूचना दी तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह मौके पर आ गए.

26 मई, 2021 को थाना बिधनू पुलिस ने आरोपी श्यामशरण शर्मा, शाहरुख तथा नईम उर्फ रिंकू उर्फ भोलू को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने तक 2 अन्य आरोपी विकास हजारिया तथा राहुल राजपूत फरार थे. पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही थी.द्य

—कथा पुलिस सूत्रोंं पर आधारित

Manohar Kahaniya: सेक्स चेंज की जिद में परिवार हुआ स्वाहा- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

लेखक- शाहनवाज

उसे लगता था जैसे वह किसी जेल में फंसा है. वह जानता था कि लोग लड़के से लड़के का प्यार करना बरदाश्त नहीं करते, इसलिए उस ने यह सोच रखा था कि वह सैक्स चेंज करवाने के बाद कार्तिक के साथ भारत में नहीं तो किसी दूसरे देश में रह लेगा. क्योंकि भारतीय समाज में समलैंगिकों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता.

7 अगस्त के दिन अभिषेक ने यह तय कर लिया था कि अगर उस के घर वाले उसे पैसे नहीं देंगे तो वह उन्हें जान से मार देगा. उस ने इस के लिए प्लानिंग कर ली थी. जब उसे उस का फोन दोबारा से दिया गया तो वह अपने घर वालों को जान से मारने के लिए तरह तरह के तरीके इंटरनेट पर सर्च करने लगा.

उस ने देखा कि ऐसी चीजें इंटरनेट पर नहीं मिलतीं तो उस ने टीवी पर आने वाले क्राइम शो के एपिसोड गौर से देखने शुरू किए. उस ने कुछ दिनों तक उन शोज को देखा और अंत में उसे आइडिया मिल ही गया कि इस काम को कैसे अंजाम देना है.

पिता की पिस्तौल ही बनी कालदूत

चूंकि प्रदीप मलिक प्रौपर्टी डीलर थे तो इस धंधे में दुश्मनी होना आम बात थी. उन्होंने अपने पास बिना लाइसैंस वाली पिस्तौल रखी थी. 15-16 साल की उम्र में उन्होंने अपने दोनों बच्चों को पिस्तौल चलाने की ट्रेनिंग भी दे दी थी. अभिषेक किसी तरह उस पिस्तौल को ढूंढना चाहता था.

ऐसे ही एक दिन जब प्रदीप मलिक घर पर नहीं थे, मम्मी अपने काम में बिजी थीं और नेहा सो रही थी तब अभिषेक ने स्टोर रूम में उस पिस्तौल को ढूंढ निकाला. उसे उस की गोलियां भी उसी डब्बे में रखी मिल गई जिस में वह पिस्तौल छिपाई गई थी.

इस के बाद अभिषेक ने वह पिस्तौल अपने पास रख ली और सही मौके का इंतजार करने लगा. 25 अगस्त, 2021 को उस ने कार्तिक को मिलने के लिए रोहतक बुला लिया और अपने घर वालों से काम का बहाना कर उस से मिलने चला गया.

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उस दिन कार्तिक से मिल कर अभिषेक ने अपने दिल के सारे अरमान पूरे कर लिए. उस ने उसे बीते कुछ दिनों में उस के साथ क्याक्या हुआ, उस की भनक तक नहीं लगने दी. कार्तिक को तो अंदाजा भी नहीं था कि वह उस के साथ इस रिश्ते में बंधने के लिए कितना बड़ा कदम उठाने जा रहा है.

26 अगस्त, 2021 को जब वह उस से मिल कर अपने घर वापस आया तो रात को उस ने अंतिम फैसला ले लिया कि उसे क्या करना है. वह अगले दिन का इंतजार करने लगा. 27 अगस्त की सुबह करीब साढ़े 11 बजे उस ने सब से पहले अपने कमरे में म्यूजिक सिस्टम को फुल वौल्यूम में किया.

उस के बाद निर्दयी बन चुका अभिषेक सब से पहले नेहा के कमरे में गया. वह गहरी नींद सोई हुई थी. उस ने पिस्तौल अपनी कमर में खोंस रखी थी. उस ने अंदर से नेहा के कमरे का गेट बंद किया, मोटा तकिया लिया और पिस्तौल को पूरी तरह से ढंक लिया ताकि आवाज बाहर न निकल सके. उस के सर के सामने जा कर उस ने उस के भेजे में एक गोली दाग दी.

अभिषेक को लगा था कि शायद गोली चलने की आवाज घर में गूंज गई होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उस के बाद वह नानी के पास गया और उन्हें बोला कि नेहा उन्हें बुला रही है. नानी थोड़ी देर रुकीं और उस के कमरे की ओर चल पड़ीं.

पीछेपीछे वह भी उन के साथ गया. पहली मंजिल पर कमरे में घुसते के साथ ही उस ने नानी को धक्का दे दिया और दोबारा से तकिया ले कर उन के सर पर उसी तरह से गोली चला दी जैसे नेहा पर चलाई थी.

गोली मारने के बाद उसे लगा कि मम्मी उस का नाम ले कर उसे आवाज लगा रही हैं. वह नीचे गया तो मम्मी ने उस से पूछा कि नानी कहां हैं तो अभिषेक ने ऊपर नेहा के कमरे का इशारा कर दिया.

उस की मम्मी भी बिना देरी के नेहा के कमरे की ओर चल पड़ीं. मम्मी को भी उस ने नानी की तरह पीछे से धक्का दिया और तकिए का इस्तेमाल कर उन के सर में एक गोली दाग दी.

उस के बाद सिर्फ पापा ही बचे थे. पापा ग्राउंड फ्लोर पर अपने कमरे में दरवाजा लगा कर अपने फोन में यूट्यूब देख रहे थे. वह उन के कमरे में दाखिल हुआ. उन्होंने उसे अंदर आते हुए देखा लेकिन कुछ नहीं कहा. वह चुपचाप उन के पीछे गया.

टीवी का रिमोट लेने के बहाने उन के पीछे से सर पर 2 गोलियां दाग दीं. उस ने देखा कि 2 गोलियां लगने के बाद भी पापा का शरीर हरकत कर रहा है तो उस ने एक और गोली उन के सर पर दाग दी.

अभिषेक ने क्राइम शो में देखा था कि हत्या करने वाला अकसर घटनास्थल को बिगाड़ देता है ताकि मामला लूट का लगे. उस ने भी वही किया. उस ने पापा के कमरे में सारे सामान को इधरउधर बिखेर दिया.

उस के बाद वह ऊपर गया और नेहा के कमरे में भी ऐसा ही किया. उसी बीच उस ने मां के कानों और गले में पहनी हुई सोने की ज्वैलरी निकाल ली.

फिर दरवाजा बंद किया. वह दरवाजा दोनों तरफ से बंद हो जाता था. इस के बाद जिस होटल में कार्तिक रुका हुआ था वहां चला गया. कमरे में कार्तिक के साथ वह हमबिस्तर हुआ और उस के बाद उस ने खाना मंगवाया. लेकिन अभिषेक को भूख नहीं थी, इसलिए उस ने कुछ भी नहीं खाया.

दोपहर को करीब दोढाई बजे के आसपास वह घर गया. और दरवाजा न खुलने का नाटक कर के उस ने सोनीपत में रहने वाले मामा प्रवीण को फोन मिलाया. उस ने उन्हें बताया कि घर पर कोई भी फोन नहीं उठा रहा और दरवाजा भी बंद है. बाद में दरवाजा तोड़ा गया तो घटना सामने आई.

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कुछ ही देर में पुलिस आई और जब पुलिस ने अभिषेक से पूछताछ की तो विरोधाभासी बयानों से उस की पोल खुल गई. तब अभिषेक ने अपना गुनाह पुलिस के सामने कुबूल कर लिया.

पुलिस की टीम ने आरोपी अभिषेक मलिक से विस्तार से पूछताछ कर अस्पताल में उस की जांच कराई तो मनोचिकित्सक ने अपनी प्राथमिक जांच में पाया कि अभिषेक उर्फ मोनू ने अपने पिता प्रदीप मलिक उर्फ बबलू पहलवान, मां बबली, बहन तमन्ना और नानी रोशनी देवी की हत्या पूरे होशोहवास में रहते हुए की थी.

इस के बाद पुलिस ने हत्यारोपी अभिषेक को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हम तीन- भाग 3: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

अनीता का शरीर कुछ ज्यादा ही भर गया था. मैं जोर से हंसी तो अनीता ने कहा, ‘‘हांहां, ठीक है, मुझे अपनी सेहत से कोई शिकायत नहीं है. यह तो अपने प्यारे पति के प्यार में थोड़ी फूलफल गई हूं.’’ और फिर हम तीनों इस बात पर खूब हंसीं.

मैं ने कहा, ‘‘वैसे हम तीनों के ही पति बहुत अच्छे हैं जो हमें एकदूसरी से मिलने भेज दिया.’’

अनीता ने कहा, ‘‘हां, यह री बातें सुन लें तो हैरान रह जाएं. खासतौर पर सुकन्या के बच्चे तो अपनी मां के इस सो कोल्ड प्यार का किस्सा सुन कर धन्य हो जाएंगे.’’

सुकन्या चिढ़ कर बोली, ‘‘चुप कर, खुद ही आइडिया दिया है और खुद ही मेरा मजाक उड़ा रही है.’’

अगले दिन हम तीनों पहले मार्केट गईं. वहां सुकन्या ने अनिल को देने के लिए गिफ्ट खरीदी. सुकन्या बहुत इमोशनल हो रही थी. अनीता और मैं अपनी हंसी बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थीं.

अनिता ने मेरी कान में कहा, ‘‘यार, यह तो बिलकुल नहीं बदली. पहले भी एक बात पर हफ्तों खुश.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, लेकिन तूने इसे अनिल से मिलने का आइडिया क्यों दिया?’’

अनीता बड़े गर्व से बोली, ‘‘टीचर हूं, बिगड़े बच्चों को सुधारना मुझे आता है और इसे तो मैं अच्छी तरह जानती हूं. अपनी इस खूबसूरत सहेली का सौंदर्य प्रेम भी मुझे पता है और तुझे बता रही हूं मैं ने अनिल को 6 महीने पहले ही एक शादी में देखा था.’’

‘‘अच्छा, कोई बात हुई थी क्या?’’

‘‘नहीं, मौका नहीं लगा था. अच्छा, अब चुप कर. अपनी सहेली की शौपिंग पूरी हो गई शायद. पता नहीं कितने रुपए फूंक कर आ रही है मैडम.’’

सुकन्या पास आई तो हम ने पूछा, ‘‘क्याक्या खरीद लिया?’’

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‘‘कुछ खास नहीं, अनिल के लिए एक ब्रैंडेड शर्ट, एक परफ्यूम, एक बहुत ही सुंदर पैन और उस की पसंद की मिठाई.’’

अनीता ने कहा, ‘‘चलो चलें प्रोफैसर साहब घर आ गए होंगे.’’

शाम के 4 बजे थे. हम तीनों पैदल ही साकेत चल पड़ीं. अनीता ने एक गली में दूर से ही एक घर की तरफ इशारा किया, ‘‘यही है अनिल का घर और वह जो बाहर स्कूटर खड़ा कर रहा है शायद अनिल ही है.’’

हम तीनों के कदम थोड़े तेज हुए.

अनिता ने कहा, ‘‘हां, सुकन्या, अनिल ही तो है.’’

सुकन्या ने ध्यान से देखा. अनिल किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह ऐसे खड़ा था कि हमें उस का साइड पोज दिख रहा था. सुकन्या के कदम ढीले पड़ गए, उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘यह मोटा सा गंजा आदमी अनिल कैसे हो सकता है, लेकिन शक्ल तो मिल रही है.’’

अनीता ने कहा, ‘‘यही है हैंडसम सा तेरा प्रेमी जिस का साथ पाने की इच्छा आज भी तेरा पीछा नहीं छोड़ रही, जिस के सामने अपने पति का अथाह प्यार भी तुझे तुच्छ लगता है.’’

सुकन्या अचानक वापस मुड़ गई. मैं ने कहा, ‘‘क्या हुआ, अनिल से मिलना नहीं है क्या?’’

सुकन्या जल्दी से बोली, ‘‘नहीं, थोड़ा तेज नहीं चल सकती तुम दोनों? जल्दी चलो यहां से.’’

अनीता हंसते हुए बोली, ‘‘चलो, किसी रेस्तरा में चलती हैं.’’

हम ने वहां बैठ कर कौफी और सैंडविच का और्डर दिया. हमारी हंसी नहीं रुक रही थी.  सुकन्या का चेहरा देखने लायक था.

अनीता हंसी. बोली, ‘‘बेचारी सुकन्या,

इतने साल पुराने प्यार की परिणति हुई भी तो किस रूप में.’’

सुकन्या ने हमें डपटा, ‘‘चुप हो जाओ तुम दोनों, मुझे सताना बंद करो, अपनी सारी कल्पनाओं को वहीं उसी गली में दफन कर आई हूं मैं. पहली बार मुझे मेरे पति सुधीर याद आ रहे हैं. बस, अब जल्दी से उन के पास पहुंचना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह क्या बेसब्री है… तुम्हारा प्यार का भूत तो बहुत तेजी से भाग गया.’’

अब हम तीनों की हंसी नहीं रुक रही थी. हम बहुत हंसीं. इतना हंसे पता नहीं कितने साल हो गए थे. मैं ने कहा, ‘‘सुकन्या, और ये जो तुम ने गिफ्ट्स खरीदे इन का क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या? शर्ट सुधीर पहनेंगे, मिठाई घर जा कर हम सब के साथ खाएंगे, परफ्यूम और पैन अपने बेटे को दे दूंगी.’’

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मैं ने कहा, ‘‘हां, अनिल को तो यह शर्ट आती भी नहीं,’’ मुझे और अनीता को तो जैसे हंसी का दौरा पड़ गया था. सुकन्या की शक्ल देख कर हम इतना हंसी कि हमारी आंखों में आंसू आ गए. सच, अगर हमारे बच्चे हमारा यह रूप देखते तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन न आता. यह तो अच्छा था कि इस समय रेस्तरां में 1-2 लोग ही थे और हम बैठी भी एक कोने में थीं. वेटर बेचारा हमारी शक्लें देख रहा था. खैर, खापी कर हम अपनेअपने घर चली गईं.

गिनेचुने दिन थे. जाने का दिल भी पास आ रहा था. अगले दिन हम तीनों ने फिर खरीदारी की. मां के लिए, भैयाभाभी और यश के लिए कुछ कपड़े खरीदे. उन दोनों ने भी इसी तरह का सामान लिया. फिर जब हम तीनों साथ बैठीं तो सुकन्या के दिल में आया कि थोड़े मुझे छेड़ा जाए, अत: मुझ से कहने लगी, ‘‘विनोद कहां है आजकल? कुछ पता है?’’

मैं ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘मेरी इस बात में जरा भी रुचि नहीं है. मुझे माफ करो.’’

अनीता हंसी, ‘‘मीनू, कहो तो उस का कायाकल्प भी देख लिया जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो, अभी एक को देख कर छेड़ा. फिर हम तीनों ने यह तय किया कि अब जब भी संभव होगा, मिलती रहेंगी. एक बार फिर पुराने समय में लौट कर बहुत मजा आया.’’

जाने का दिन आ गया. भीगी आंखों से एकदूसरी से बिदा ली. मां और भाभी ने तो पता नहीं कितनी चीचें बांध दी थीं. सब से पहले मैं ही निकल रही थी. अनीता को एक विवाह में शामिल होने के लिए 2 दिन और रुकना था, सुकन्या को लेने सुधीर आने वाले थे.

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मां और भाभी प्यार भरी शिकायत कर रही थीं कि मैं सहेलियों के साथ ही घूमती रही. मैं बहुत अच्छा समय बिता कर लौट रही थी. मुंबई जा कर स्नेहा को इस रियूनियन का आइडिया देने के लिए गले से लगा कर थैंक्स कहने के लिए मैं बहुत उत्साहित थी. सच, बहुत मजा आया था.

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