अनकहा प्यार- भाग 1: क्या सबीना और अमित एक-दूसरे के हो पाए?

वे फिर मिलेंगे. उन्हें भरोसा नहीं था. पहले तो पहचानने में एकदो मिनट लगे उन्हें एकदूसरे को. वे पार्क में मिले. सबीना का जबजब अपने पति से झगड़ा होता, तो वह एकांत में आ कर बैठ जाती. ऐसा एकांत जहां भीड़ थी. सुरक्षा थी. लेकिन फिर भी वह अकेली थी. उस की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. रंग गोरा, लेकिन चेहरा अपनी रंगत खो चुका था. आधे से ज्यादा बाल सफेद हो चुके थे. जो मेहंदी के रंग में डूब कर लाल थे. आंखें बुझबुझ सी थीं.

वह अपने में खोईर् थी. अपने जीवन से तंग आ चुकी थी. मन करता था कि  कहीं भाग जाए. डूब मरे किसी नदी में. लेकिन बेटे का खयाल आते ही वह अपने झलसे और उलझे विचारों को झटक देती. क्याक्या नहीं हुआ उस के साथ. पहले पति ने तलाक दे कर दूसरा विवाह किया. उस के पास अपना जीवन चलाने का कोई साधन नहीं था. उस पर बेटे सलीम की जिम्मेदारी.

पति हर माह कुछ रुपए भेज देता था. लेकिन इतने कम रुपयों में घर चलाए या बेटे की परवरिश अच्छी तरह करे. मातापिता स्वयं वृद्ध, लाचार और गरीब थे. एक भाई था जो बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा चलाता था. अपना परिवार पालता था. साथ में मातापिता भी थे. वह उन से किस तरह सहयोग की अपेक्षा कर सकती थी.

उस ने एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. वह अंगरेजी में एमए के साथ बीएड भी थी. सो, उसे आसानी से नौकरी मिल गई. सरकारी नौकरी की उस की उम्र निकल चुकी थी. वह सोचती, आमिर यदि बच्चा होने के पहले या शादी के कुछ वर्ष बाद तलाक दे देता, तो वह सरकारी नौकरी तो तलाश सकती थी. उस समय उस की उम्र सरकारी नौकरी के लायक थी. शादी के कुछ समय बाद जब उस ने आमिर के सामने नौकरी करने की बात कही, तो वह भड़क उठा था कि हमारे खानदान में औरतें नौकरी नहीं करतीं.

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उम्र गुजरती रही. आमिर दुबई में इंजीनियर था. अच्छा वेतन मिलता था. किसी चीज की कमी नहीं थी. साल में एकदो बार आता और सालभर की खुशियां हफ्तेभर में दे कर चला जाता. एक दिन आमिर ने दुबई से ही फोन कर के उसे यह कहते हुए तलाक दे दिया कि यहां काम करने वाली एक अमेरिकन लड़की से मुझे प्यार हो गया है. मैं तुम्हें हर महीने हर्जाखर्चा भेजता रहूंगा. मुझे अपनी गलती का एहसास तो है, लेकिन मैं दिल के हाथों मजबूर हूं. एक बार वापस आया तो तलाक की शेष शर्तें मौलवी के सामने पूरी कर दीं और चला गया. इस बीच एक बेटा हो चुका था.

आमिर को कुछ बेटे के प्रेम ने खींचा और कुछ अमेरिकन पत्नी की प्रताड़ना ने सबीना की याद दिलाई. और वह माफी मांगते हुए दुबई से वापस आ गए. लेकिन सबीना से फिर से विवाह के लिए उसे हलाला से हो कर गुजरना था. सबीना इस के लिए तैयार नहीं हुई. आमिर ने मौलवी से फिर निकाह के विकल्प पूछे जिस से सबीना राजी हो सके. मौलवी ने कहा कि 3 लाख रुपए खर्च करने होंगे. निकाह का मात्र दिखावा होगा. तुम्हारी पत्नी को उस का शौहर हाथ भी नहीं लगाएगा. कुछ समय बाद तलाक दे देगा.

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‘ऐसा संभव है,’ आमिर ने पूछा.

‘पैसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं,’ मौलाना ने कहा.

‘कुछ लोग करते हैं यह बिजनैस अपनी गरीबी के कारण. लेकिन यह बात राज ही रहनी चाहिए.’

‘मैं तैयार हूं,’ आमिर ने कहा और सबीना को सारी बात समझई. सबीना न चाहते हुए भी तैयार हो गई. सबीना को अपनी इच्छा के विरुद्ध निकाह करना पड़ा. कुछ समय गुजारना पड़ा पत्नी बन कर एक अधेड़ व्यक्ति के साथ. फिर तलाक ले कर सबीना से आमिर ने फिर निकाह कर लिया.

Manohar Kahaniya: जुर्म की दुनिया की लेडी डॉन- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

शक्लसूरत से भले ही वह बहुत ज्यादा खूबसूरत नहीं है लेकिन वह है बहुत आकर्षक. कंधे तक झूलते बाल उस के सांवले लंबे चेहरे पर खूब फबते हैं.

उस की नाजुक कलाइयों में शायद ही कभी किसी ने चूडि़यां देखी हों, लेकिन एके 47 को वह खिलौना गन की तरह चलाती थी. नाम है उस का अनुराधा सिंह चौधरी. वह अकसर लोगों को पैंटशर्ट या टीशर्ट जींस जैसे वेस्टर्न लुक में नजर आई. साड़ी सरीखा कोई परंपरागत भारतीय परिधान पहने भी उसे किसी ने शायद नहीं देखा.

लंबी, दुबलीपतली, छरहरी 36 वर्षीय इस महिला के चेहरे से दुनिया भर की मासूमियत टपकती थी. लेकिन वह थी कितनी खूंखार, इस का अंदाजा उस के गुनाहों की लिस्ट देख कर लगाया जा सकता है.

राजस्थान के सीकर के गांव अलफसर के एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्मी अनुराधा का घर का नाम मिंटू रखा गया था. जब वह बहुत छोटी थी तभी उस की मां चल बसी. पिता रामदेव की कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह दिल्ली आ गए. मिंटू जैसेजैसे बड़ी और समझदार होती गई, उसे यह एहसास होता गया कि जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो पढ़ाईलिखाई बहुत जरूरी है. लिहाजा उस ने दिल लगा कर पढ़ाई की और वक्त रहते बीसीए और फिर एमबीए की भी डिग्री ले ली.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह स्थाई रूप से सीकर वापस आई तो वही हुआ जो इस उम्र में लड़कियों के साथ होना आम बात है. अनुराधा को फैलिक्स दीपक मिंज नाम के युवक से प्यार हो गया और उस ने घर और समाज वालों के विरोध और ऐतराज की कोई परवाह नहीं की और दीपक से लवमैरिज कर ली.

यहां तक अनुराधा ने कुछ गलत नहीं किया था. दीपक के साथ वह खुश थी और आने वाली जिंदगी के सपने आम लड़कियों की तरह देखने लगी थी.

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दीपक सीकर में ही शेयर ट्रेडिंग का कारोबार करता था. अब पढ़ीलिखी अनुराधा भी उस के काम में हाथ बंटाने लगी, लेकिन शेयर मार्किट में खुद के लाखों और अपने क्लाइंट्स के करोड़ों रुपए इन दोनों ने तगड़े मुनाफे की उम्मीद में लगवा दिए थे, जो नातुजर्बेकारी और जोश के चलते एक झटके में डूब गए.

लेनदारों के बढ़ते दबाव से निबटने के लिए अनुराधा ने जुर्म का रास्ता चुना, जिस ने उस की जिंदगी बदल डाली. अनुराधा की मुलाकात राजस्थान के हिस्ट्रीशीटर बलबीर बानूड़ा से हुई, जिस ने उस की मुलाकात आनंदपाल सिंह से करवा दी.

दोनों ने एकदूसरे को देखापरखा और देखते ही देखते अनुराधा की सारी परेशानियां दूर हो गईं.

आनंदपाल सिंह की दहशत राजस्थान में किसी सबूत या पहचान की मोहताज कभी नहीं रही. जिस के रसूख से सियासी गलियारे भी कांपते थे.

आनंद ने अनुराधा को जुर्म की दुनिया के गुर और उसूल सिखाए. अनुराधा ने देखा और महसूस किया कि आनंद अपने रुतबे और दहशत को कैश नहीं करा पाता और थोड़े से में ही संतुष्ट हो जाता है तो उस ने आनंद को बदलना शुरू कर दिया. देखते ही देखते आनंद का हुलिया, आदतें, रहनसहन सब बदल गया.

उधर जैसे ही दीपक को पत्नी के एक जरायमपेशा गिरोह में शामिल होने की बात पता चली तो उस ने उस से नाता तोड़ लिया.

अनुराधा अब न केवल बिनब्याही पत्नी की हैसियत से बल्कि तेजतर्रार आला दिमाग की मालकिन होने की वजह से भी आनंद के गिरोह में नंबर 2 की हैसियत रखने लगी थी, जिस ने जरूरत से कम समय में हथियार चलाना सीख लिया था. गैंग और अपराध की दुनिया से जुड़े लोग उसे मैडम मिंज भी कहने लगे थे.

अनुराधा ने सीखे अपराध के गुर

अब अनुराधा ही किए जाने वाले अपराधों की प्लानिंग करने लगी थी. आनंद एक बात अनुराधा को और अच्छे से सिखा चुका था कि अपराध की दुनिया उस कार सरीखी होती है, जिस में रिवर्स गियर नहीं होता.

अनुराधा जल्द ही पेशेवर मुजरिम बन गई थी और उस का नाम भी चलने लगा था. वह जहां से गुजरती थी वहां लोगों के सर अदब से झुकें न झुकें, खौफ से जरूर झुक जाते थे. अब वह धड़ल्ले से वारदातों को अंजाम देने लगी थी.

वह चर्चा और सुर्खियों में साल 2013 में तब आई थी, जब उस पर रंगदारी का पहला मामला दर्ज हुआ था. जिस पर पुलिस ने उस पर पहली दफा 10 हजार रुपए का ईनाम भी रखा था.

राजस्थान में बवंडर उस वक्त खड़ा हुआ, जब एक चर्चित हत्याकांड के गवाह का अपहरण हो गया. दरअसल, 27 जून, 2006 को जीवनराम गोदारा नाम के शख्स की हत्या आनंद ने दिनदहाड़े कर दी थी, जिस से पूरा राज्य हिल उठा था.

जीवनराम का भाई इंद्रचंद्र गोदारा इस हत्याकांड का गवाह था, जिस की गवाही आनंद को लंबा नपवा देती. अपने आशिक को बचाने के लिए अनुराधा ने साल 2014 में इंद्रचंद्र को अगवा कर लिया और पुणे ले गई. जहां एक फ्लैट में उसे बंधक बना कर रखा गया था.

एक दिन मौका पा कर इंद्रचंद्र ने एक परची खिड़की से नीचे फेंक दी, जिस पर लिखा था, ‘मैं किडनैप हो गया हूं और मुझे यहां पर मदद की जरूरत है.’

परची जिस ने भी पढ़ी, उस ने औरों को बताया तो फ्लैट के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई और फ्लैट को घेर लिया. तब अनुराधा और उस के गुर्गे बमुश्किल वहां से भागने में कामयाब हो पाए थे.

जैसेतैसे बचतेबचाते वह राजस्थान वापस आ गई और आनंद के जेल में होने के चलते खुद उस का गैंग चलाने लगी. इस दौरान उस ने कारोबारियों को अगवा कर फिरौती से खूब पैसा कमाया.

लेकिन उसे झटका तब लगा जब पुलिस ने साल 2017 में एनकाउंटर में नाटकीय तरीके से आनंद पाल सिंह को मार गिराया. जिस के बाद डरीसहमी अनुराधा फरार हो गई. जान बचाने के खौफ और गैंग के टूट जाने से अनुराधा इधरउधर भागती रही.

इसी फरारी के दौरान सहारा ढूंढती अनुराधा लारेंस बिश्नोई गैंग में शामिल हो गई. मकसद था, जैसे भी हो पुलिस से बचना.

हालांकि जुर्म की दुनिया में भी उस के खासे चर्चे और किस्से फैल चुके थे. इस नए गिरोह से उस की पटरी ज्यादा नहीं बैठी और जल्द ही वह काला जठेड़ी उर्फ संदीप के संपर्क में आई.

आनंद की मौत से आया खालीपन उसे काला जठेड़ी से भरता नजर आया तो इस की वजहें भी थीं. अनुराधा बगैर किसी एंट्रेंस एग्जाम के जठेड़ी गैंग में न केवल शामिल हो गई, बल्कि देखते ही देखते इस गैंग में भी उस ने वही जगह और रुतबा हासिल कर लिए, जो उसे आनंद के गैंग में हासिल था. दोनों ने हरिद्वार के एक मंदिर में विधिविधान से शादी भी कर ली.

किशोरावस्था से ही जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके काला पर हत्या, अपहरण लूटपाट, जमीनों पर जायजनाजायज कब्जे और फिरौती वगैरह के कोई 3 दरजन मामले दर्ज हो चुके थे. अनुराधा की आपराधिक जन्मपत्री से पूरे 36 गुण उस से मिले थे.

काला भी उस के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ था और उस के आला खुराफाती दिमाग का कायल हो गया था. काला की दहशत अपने इलाकों में ठीक वैसी ही थी, जैसी राजस्थान में आनंद की थी.

दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, कारोबारी भी जिस्मानी भी और जज्बाती भी. काला के गिरोह के मेंबर भी अनुराधा के एके 47 चलाने की स्टाइल से इतने इंप्रैस थे कि उन्होंने उसे रिवौल्वर रानी का खिताब दे दिया था.

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फिर जैसे ही सागर धनखड़ हत्याकांड में नामी पहलवान सुशील कुमार का नाम आया तो दिल्ली गरमा उठी, क्योंकि इस वारदात में गैंगस्टर नीरज बवाना और काला जठेड़ी का नाम भी आया. जेल में बंद सुशील पहलवान ने उस से अपनी जान को खतरा जताया था.

काला जठेड़ी की तलाश में जुटी स्पैशल सेल

अब पुलिस की स्पैशल सैल ने काला की तलाश को मुहिम की शक्ल दे दी तो वह अनुराधा के साथ भागता रहा. काला की तलाश में पुलिस की स्पैशल सैल जुटी तो अनुराधा फिर चिंतित हो उठी.

क्योंकि अगर आनंद की तरह काला भी किसी एनकाउंटर में मारा जाता तो वह फिर बेसहारा हो जाती. दूसरे गिरफ्तारी की तलवार अब उस के सिर पर भी लटकने लगी थी.

पुलिस को अंदेशा इन दोनों के नेपाल में होने का था, जबकि हकीकत में दोनों भारत भ्रमण करते आंध्र प्रदेश के अलावा पंजाब और मुंबई भी गए थे और बिहार के पूर्णिया में भी रुके थे. मध्य प्रदेश के इंदौर और देवास में भी इन्होंने फरारी काटी थी. हर जगह इन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया और लिखाया था.

काला को घिरता देख अनुराधा ने 70-80 के दशक के मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के एक किरदार विमल का सहारा लिया, जिस ने पुलिस से बचने के लिए सरदार का हुलिया अपना लिया था.

 

अपनी नई पत्नी के कहने पर काला जठेड़ी विमल की तर्ज पर सरदार बन गया. उस ने अपना नया नाम पुनीत भल्ला और अनुराधा का नाम पूजा भल्ला रखा. सोशल मीडिया पर भी दोनों ने नए नामों से आईडी बना ली थी.

अनुराधा ने जठेड़ी गैंग के गुर्गों को यह हिदायत भी दी थी कि अगर उन में से कोई कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाए तो काला के बारे में यही बताए कि वह इन दिनों नेपाल में है और वहीं से गैंग चला रहा है. इस हिदायत का मकसद पुलिस को भटकाए और उलझाए रखना था.

आनंदपाल के गिरोह में रहते अनुराधा कई बार नेपाल भी गई थी और वहां के अड्डों से भी वाकिफ थी, इसलिए वह काला को भी 2 बार नेपाल ले गई थी. मकसद था विदेश भागने की संभावनाएं टटोलना और जमा पैसों की ट्रोल को रोकना.

अनुराधा के खुराफाती दिमाग का आनंद भी कायल था और अब काला भी हो गया था, जिसे अनुराधा ने सख्त हिदायत यह दे रखी थी कि वह भारत में फोन पर किसी से बात न करे जोकि आजकल पुलिस को मुजरिम तक पहुंचने का सब से आसान और सहूलियत भरा जरिया और रास्ता होता है.

अब काला को जिस से भी बात करनी होती थी तो वह विदेश में बैठे अपने किसी गुर्गें की मदद से करता था. काला और अनुराधा तक पहुंचने के लिए पुलिस की स्पैशल सेल ने लारेंस बिश्नोई को मोहरा बनाया जो जेल में बंद था.

पुलिस ने अपने मुखबिरों के जरिए बिश्नोई तक एक फोन पहुंचाया, जिस से वह अपने गुर्गों से बात करता रहा और पुलिस खामोशी से तमाशा देखती रही.

एक बार वही हुआ जो पुलिस चाहती थी कि बिश्नोई ने काला से भी बात कर डाली. उस का फोन सर्विलांस पर तो था ही जिस से उस के सहारनपुर के अमानत ढाबे पर होने की लोकेशन मिली.

पुलिस तुरंत हरकत में आई और आसानी से काला और अनुराधा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों हतप्रभ थे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे चूहेदानी में फंस चुके हैं.

बिलाशक पुलिस की स्पैशल सेल ने दिमाग से काम लिया, जिसे उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल बिश्नोई काला से जरूर बात करेगा और ऐसा हुआ भी.

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Satyakatha- दिल्ली: शूटआउट इन रोहिणी कोर्ट- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

इसी तरह से फायरिंग करते हुए करीब 9 मिनट के बाद पुलिस ने कोर्टरूम में मौजूद 2 में से एक हमलावर को ढेर कर दिया. अब सिर्फ एक ही हमलावर बचा रह गया था, जिस पर काबू पाना मुश्किल साबित हो रहा था.

वह शारीरिक रूप से काफी तगड़ा और फुरतीला भी था. उस ने किसी तरह से खुद को पुलिस की गोलियों से बचाया हुआ था.

करीब 12 मिनट के बाद भी वह हार मानने को तैयार नहीं था. लेकिन उस पर भी किसी तरह से काबू पा लिया गया, जब एक पुलिसकर्मी की गोली उस के शरीर पर लगी और वह भी ढेर हो कर गिर पड़ा.

कोर्टरूम में यह शूटआउट करीब 12 मिनट तक चलता रहा. इन 12 मिनट के शूटआउट के दौरान हर कोई यही प्रार्थना कर रहा था कि वह किसी तरह से सुरक्षित बच जाए. 12 मिनट के बाद जब दोनों हमलावर पुलिस की गोली से ढेर हो गए तो कोर्टरूम में अचानक से शांति फैल गई.

कोर्टरूम में शांति इसलिए भी फैली क्योंकि अंदर मौजूद सभी लोगों के कान गोलियों की तड़तड़ाहट से सुन्न पड़ गए थे. शूटआउट खत्म होने के बावजूद कमरे में मौजूद लोग अपनी आंखों और कानों को बंद कर के बचाव की मुद्रा में किसी भी चीज का सहारा लेते हुए जमीन पर लेटे हुए थे.

कोर्टरूम नंबर 207 में सुनवाई के लिए आए जितेंद्र गोगी और उस पर हमला करने वाले दोनों हमलावरों की लाशें पड़ी थीं. चारों और गोलियों के खाली खोखे बिखरे पड़े थे. इस पूरे 12 मिनट के शूटआउट के दौरान कमरे में मौजूद कई लोगों को मामूली खरोंचें भी आईं.

शूटआउट की समाप्ति के बाद दोपहर के 1.36 बजे गोगी की डैडबौडी को दिल्ली पुलिस पास के अस्पताल ले कर पहुंची, जिसे देख डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया.

इस के अलावा दोनों हमलावरों में एक की पहचान सोनीपत हरियाणा निवासी जगदीप उर्फ ‘जग्गा’ के रूप में की गई और दूसरा, उत्तर प्रदेश के मेरठ का रहने वाला राहुल त्यागी उर्फ ‘फफूंदी’ था. दोनों हमलावर गैंगस्टर सुनील मान उर्फ टिल्लू के गुर्गे थे.

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इस शूटआउट से यही बात सामने आई कि ये दोनों गुर्गे कुख्यात गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी को मारने आए थे.

आखिर यह गोगी है कौन और किस तरह यह अपराध की दुनिया में आ कर इतना बड़ा अपराधी बना, यह जानने के लिए हमें गोगी की जन्मकुंडली खंगालनी होगी.

जितेंद्र मान उर्फ ‘गोगी’ का जन्म साल 1991 में दिल्ली के अलीपुर गांव में हुआ था. गोगी वौलीबाल का अच्छा खिलाड़ी था. उस ने अपने स्कूल के दिनों में वौलीबाल में पदक भी जीते थे. वह वौलीबाल में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व करता था.

इस से पहले कि वह खेल को अपना कैरियर बना पाता, 17 साल की उम्र में एक दुर्घटना में उस का दाहिना कंधा घायल हो गया था, जिस के कारण वह फिर कभी नहीं खेल सका.

गोगी के बड़े भाई रविंदर टैंपो चलाते थे और टैंपो किराए पर देते थे, जबकि उन के पिता मेहर सिंह एक निजी ठेकेदार थे और अलीपुर में प्रमुख जमींदार जाट समुदाय से थे. गोगी के पिता को कैंसर हो गया था.

गोगी पढ़नेलिखने में ठीकठाक था. स्कूल की पढ़ाई के बाद उस का दाखिला दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वामी श्रद्धानंद कालेज में हो गया था. कालेज में पढ़ाई के दौरान गोगी के कई दोस्त बने. उन में से एक सुनील उर्फ ‘टिल्लू ताजपुरिया’ भी था. समय के साथसाथ जितेंद्र गोगी और टिल्लू की दोस्ती गहरी होती गई.

कालेज में हर साल होने वाले छात्रसंघ के चुनावों ने गोगी की पूरी जिंदगी ही बदल दी. चुनाव के दौरान उस ने अपने प्रतिद्वंद्वी समूह के साथ लड़ाई की और अपने सहयोगियों रवि भारद्वाज उर्फ बंटी, अरुण उर्फ कमांडो, दीपक उर्फ मोनू, कुणाल मान और सुनील मान के साथ संदीप और रविंदर पर गोलियां चला कर हमला किया था.

इस मामले में एफआईआर भी हुई थी. उस का सहयोगी रवि भारद्वाज उर्फ बंटी एक जमाने में गैंगस्टर भी रहा था, जिस की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस ने एक लाख रुपए का ईनाम भी घोषित किया था, जिसे स्पैशल सेल ने वर्ष 2014 में गिरफ्तार किया था.

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गोगी का दोस्त अरुण उर्फ कमांडो भी श्रद्धानंद कालेज में पढ़ता था और छात्रसंघ के चुनाव में अलीपुर के एक छात्र नेता का समर्थन कर रहा था. प्रत्याशी गोगी के गांव का ही रहने वाला था.

दूसरी ओर, एक छात्र एक गैंगस्टर का चचेरा भाई टिल्लू, जोकि गोगी का पक्का दोस्त था, के विपक्षी पार्टी से एक उम्मीदवार था.

छात्र संघ के चुनाव के दिनों में सुनील उर्फ टिल्लू के गुट के सदस्यों ने कुछ कारणों से अरुण उर्फ कमांडो को पीट दिया. जिस की वजह से गोगी गुट के प्रत्याशी ने उस चुनाव से नाम वापस ले लिया और टिल्लू के समूह के प्रत्याशी ने वह चुनाव जीत लिया.

लेकिन उस घटना ने दोनों के बीच रंजिश को जन्म दे दिया और यहीं से गोगी और टिल्लू दोनों के बीच दुश्मनी हो गई.

दोनों के बीच दुश्मनी का पौधा इतना गहरा हो गया था, जिसे उखाड़ फेंकना नामुमकिन था. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गोगी का मिशन टिल्लू का पूर्ण विनाश था.

पिछले 5 सालों में दोनों पक्षों के कम से कम 12 लोगों की जान जा चुकी है. यही नहीं, यह बात भी फैली कि गोगी तब तक नहीं रुकेगा जब तक वह टिल्लू को नहीं मार देता.

न्यायिक हिरासत के दौरान गोगी का एक सहयोगी सुनील मान उर्फ टिल्लू के करीब आया. जेल से छूटने के बाद गोगी और सुनील मान दबदबे के मुद्दे पर एकदूसरे के प्रतिद्वंदी बन गए.

वहीं दूसरी ओर गोगी की दूर की बहन का अफेयर दीपक उर्फ राजू से था. दीपक उस की दूर की बहन के साथ डेट करता था और इस बात को खुल कर स्वीकार करता था.

दीपक टिल्लू का करीबी दोस्त था. इस के बाद दीपक की हरकतों और अफवाहों के चलते गोगी और उस के साथियों ने दीपक की हत्या को अंजाम दिया. उस मामले में 4 आरोपी योगेश उर्फ टुंडा, कुलदीप उर्फ फज्जा, दिनेश और रोहित को गिरफ्तार किया गया और आरोपी जरनैल को स्पैशल सेल द्वारा गिरफ्तार किया गया.

इस के बाद गोगी को दीपक की हत्या के आरोप में मार्च 2016 को पानीपत पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, लेकिन जुलाई 2016 को वह बहादुरगढ़ क्षेत्र में न्यायिक हिरासत से फरार हो गया. दीपक की हत्या के प्रतिशोध में टिल्लू गिरोह के सदस्यों ने अरुण उर्फ कमांडो की हत्या को अंजाम दिया, जो गैंगस्टर गोगी का सहयोगी था.

इस मामले में सोनू को गिरफ्तार किया गया और वर्तमान में वह न्यायिक हिरासत में है. इस के बाद दोनों गैंग के बीच कई बार वारदात को अंजाम दिया गया और दोनों के बीच की दुश्मनी बढ़ती ही चली गई.

रोहिणी कोर्ट में मारा गया जितेंद्र गोगी कितना बड़ा अपराधी था, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली पुलिस की गिरफ्तारी से पहले दिल्ली में उस पर 4 लाख रुपए का ईनाम था. इस के अलावा हरियाणा की पुलिस ने भी उस पर 2 लाख रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था.

अगले भाग में पढ़ें- गैंगस्टरों ने इस हत्याकांड को अंजाम देने से पहले क्या किया

Satyakatha: फौजी की सनक का कहर- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

कुछ समय बाद बाथरूम से आने पर उन्होंने थाने में हलचल पाई. मालूम हुआ कि कोई आदमी अपने हाथ में रक्तरंजित गंडासा ले कर आया है और बुदबुदा रहा है, ‘मैं ने सब को मार दिया, सब खत्म कर दिया. अच्छा किया, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’

उसे 3 कांस्टेबल घेरे हुए थे. पूछ रहे थे कि उस ने क्या किया है, किसे मारा है, गंडासा कहां से लाया है, उस पर खून कैसे लगा है? इन सवालों के जवाब देने के बजाय एक ही रट लगाए हुए था, ‘मैं ने सब को मार दिया..’

थानाप्रभारी ने सभी कांस्टेबलों को हटा कर और उसे अपने सामने की कुरसी पर बिठाया. तब तक उन की चाय आ चुकी थी. उन्होंने अपनी चाय उसे पीने के लिए दे दी, लेकिन उस ने चाय लेने से इनकार कर दी. हाथ में कस कर पकड़ा हुआ गंडासा थानाप्रभारी के सामने टेबल पर रख दिया. उस पर काफी मात्रा में खून लगा हुआ था.

थाना प्रभारी ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम? यह गंडासा तुम्हें कहां से मिला?’’

‘‘साहबजी, मैं पूर्व फौजी राव राय सिंह हूं. मैं इसी थानाक्षेत्र के राजेंद्र पार्क में रहता हूं.’’ व्यक्ति बोला.

‘‘और यह गंडासा… इस पर खून कैसा?’’ थानाप्रभारी ने जिज्ञासा जताई.

‘‘यह मेरा ही गंडासा है. मैं ने इस से 5 को मार डाला है.’’ वह बोला. उस के चेहरे पर निश्चिंतता के भाव थे.

‘‘मार डाला? तुम ने मारा 5 को? किसे मारा? क्यों मारा? पूरी बात बताओ.’’ थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले.

‘‘साहबजी, बताता हूं, सब कुछ बताता हूं. मैं ने अपने घर में ही सब को मारा है. सभी की लाशें वहीं पड़ी हैं. जाइए, पहले उन का दाह संस्कार करवाइए. मुझे जो सजा देनी है, बाद में दे दीजिएगा.’’ यह कहतेकहते उस ने अपना सिर झुका लिया.

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संभवत: उस की आंखें नम हो गई थीं. वह भावुक हो गया था. सिर झुकाए बोला, ‘‘उन को मारता नहीं तो और क्या करता साहब? वे थे ही इसी लायक. मरने वालों में एक मेरी बहू भी है. मैं ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन नहीं मानी तब ऐसा कर दिया.’’

राय सिंह की बातें ध्यान से सुनने के बाद थानाप्रभारी ने उसे तुरंत हिरासत में ले लिया. फिर अपने उच्चाधिकारियों को इस सनसनीखेज हत्याकांड की सूचना देने के बाद टीम के साथ राजेंद्र पार्क की ओर निकल पड़े.

इस के बाद गुरुग्राम थाने की पुलिस दलबल के साथ साढ़े 7 बजे राजेंद्र पार्क स्थित राय सिंह के मकान में पहुंच गई, जैसे उन्हें पहले से सब कुछ मालूम हो. जैसेजैसे राय सिंह ने बताया था, उसी के मुताबिक लाशों की बरामदगी हुई. संयोग से छोटी बच्ची की सांस चल रही थी, जिसे अस्पताल में भरती करवा दिया गया.

पुलिस लाशों का पंचनामा कर पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद आगे की काररवाई के लिए कागजी काम निपटाने में जुट गई थी.

थानाप्रभारी जघन्य हत्याकांड में लिप्त हत्यारे की तलाश को ले कर चिंता में थे. उन्होंने राजेंद्र पार्क मोहल्ले में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज मंगवाने के आदेश दे दिए थे.

थानाप्रभारी ने थाने पहुंच कर राय सिंह से दोबारा पूछताछ की. उस ने दावे के साथ हत्याकांड के बारे में पूरी बातें बताईं. उस के बाद जो कहानी सामने आई, उस के पीछे अवैध रिश्ते का होना सामने आया.

राय सिंह ने बताया कि सुनीता उन की एकलौती बहू थी, लेकिन वह अकसर अपने मायके चली जाती थी. मायके में लंबे समय तक गुजारती थी.

बात जनवरी, 2021 की है. एक दिन जब सुनीता लंबे समय के बाद अपने मायके से ससुराल लौटी तो दिनभर घर का काम करने के बाद शाम को अपनी अनामिका से मिलने चली गई. वह दूसरी मंजिल पर रहती थी, जबकि सुनीता पहली मंजिल पर और राय सिंह अपनी पत्नी के साथ ग्राउंड फ्लोर पर रहता था.

सुनीता जिस समय अनामिका से मिलने उस के कमरे में गई थी, उस समय राय सिंह पानी की टंकी की सफाई करने के लिए अपनी छत पर गया हुआ था.

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अनामिका को कमरे में न पा कर सुनीता वापस लौटने लगी, तभी किचन से कृष्णकांत ने अनामिका से पूछा, ‘‘आ गईं आप? कैसे हैं आप के मायके वाले?’’

‘‘अच्छा, तो आप किचन में हैं. खाना पका रहे हो क्या? अनामिका कहां गई है?’’

‘‘जी, वह दिल्ली में अपने रिश्तेदार के घर पर गई है. एकदो दिनों में आ जाएगी. बच्चे भी जाने की जिद कर रहे थे. बच्चे भी उसी के साथ हैं.’’ कृष्णकांत बोलतेबोलते कमरे में आ गए.

‘‘तभी कहूं कि घर में इतना सन्नाटा क्यों है? मैं तो आज ही आई हूं. आप कैसे हैं?’’ सुनीता बोली.

‘‘अरे आप खड़ी क्यों हैं, बैठिए. गजब का संयोग है, चाय बनाते समय पानी अधिक पड़ गया और आप अचानक…’’ कृष्णकांत बोलने लगे. उन की अधूरी बात को सुनीता ने पूरा किया.

‘‘…मैं अचानक आ गई हूं तब तो आप की चाय पी कर ही जाऊंगी.’’ कहती हुई वह हंसने लगी. उस समय सीढि़यों से उतरते हुए राय सिंह ने सुनीता की हंसी की आवाज सुन ली.

उसे पता था कि कृष्णकांत की बीवीबच्चे दिल्ली गए हुए हैं. उन्हें तुरंत झटका लगा कि सुनीता जरूर कृष्णकांत के साथ हंसीठिठोली कर रही है. कुछ समय के लिए वह वहीं रुक गए. वहां से कृष्णकांत का कमरा दिखता था. दरवाजे पर परदा लगा हुआ था, लेकिन उस के किनारे से अंदर की थोड़ी झलक दिख रही थी.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की. कमरे में पलंग पर पैर लटकाए सुनीता बैठी दिखी. उस समय कमरे में और कोई नहीं था. जल्द ही कृष्णकांत हाथ में 2 कप चाय लिए हुए आ गए. एक कप उस ने सुनीता को पकड़ाई फिर उस के सामने स्टूल पर बैठ गए.

परदे के किनारे से केवल सुनीता ही नजर आ रही थी. उस का खिला हुआ चेहरा साफ नजर आ रहा था. हाथ में चाय पकड़े हुए थी. पता नहीं क्या बात हुई सुनीता चाय का प्याला लिए हुए किचन में चली गई. पीछेपीछे कृष्णकांत भी चले गए.

राय सिंह समझ गया कि दोनों भीतर के दूसरे कमरे में चले गए होंगे. वे मन ही मन अपनी बहू की इस हरकत को देखते हुए खून का घूंट पी कर रह गया. उसी समय नीचे राय सिंह की पत्नी चिल्लाई, ‘‘पानी का मोटर चला दूं क्या?’’

इस आवाज से राय सिंह का ध्यान टूटा. वह कुछ सीढि़यां ऊपर चढ़ कर बोला, ‘‘हां, चला दो.’’

कुछ देर बाद राय सिंह दोबारा सीढि़यों से उतर रहा था, तब उस ने सुनीता को कृष्णकांत के कमरे से निकलते हुए देखा. वह बदहवासी की हालत में भागती हुई निकली थी. राय सिंह से टकरातेटकराते बची और दनदनाती हुई पहली मंजिल के अपने कमरे में चली गई.

अगले भाग में पढ़ें- किसने सुनीता को मारा?

नश्तर- भाग 1: पति के प्यार के लिए वो जिंदगी भर क्यों तरसी थी?

पैरों की एडि़यां तड़कने लगी हैं, चेहरे की झुर्रियां भी जबतब कसमसाने लगी हैं. कितनी भी कोल्ड क्रीम घिसें, थोड़ी देर में ही जैसे त्वचा तड़कने लगती है. बूढ़े लोगों को देखना और बात है, लेकिन बुढ़ापे को अपने शरीर में महसूस करना और बात. सारी इंद्रियों की शक्ति धीरेधीरे जाने कहां लुप्त होने लगती है. बस, एक ही चीज खत्म नहीं होती, और वह है अंदर की चेतना.

कभीकभी उन्हें झुंझलाहट भी होती है कि सारी शक्ति की तरह यह चेतना भी क्षीण क्यों नहीं हो जाती. यदि ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो. सुबह उठ कर खाओपीओ, हलकेफुलके काम करो और सो जाओ, अवकाशप्राप्त जिंदगी में और है ही क्या, लेकिन ऐसा होता कहां है.

उन की चेतना के आंचल में ढेरों नश्तर घुसे हुए हैं. वे चाहती हैं कि उन्हें नोच कर बाहर फेंक दें. वे तो जमीन में उगे कैक्टस की मानिंद हैं, ऊपर से कितना भी काटो, फिर उग आएंगे. एक नश्तर तो उन की चेतना में पिरोए दिल की झिल्ली में जैसे बारबार दंश मारता रहता है.

अर्चना दीदी उन से 5 वर्ष छोटी हैं. वे गौरवर्णा, चिकनी त्वचा वाली गोलमटोल महिला हैं. अकसर ऐसी स्त्रियों के गाल उन्नत होते हैं और आंखें छोटीछोटी व कटीली. वे इन का इस्तेमाल करना भी खूब जानती हैं. कहने को तो वे विजयजी की दूर के रिश्ते की बहन हैं, लेकिन जब भी घर में कदम रखेंगी, आंखें नचा कर, तरहतरह के मुंह बना कर इस तरह बात करेंगी कि विजयजी हंसतेहंसते लोटपोट हो जाते हैं.

अपनी ही बात पर मोहित हो वे विजयजी के गले में बांहें डाल देंगी, ‘क्यों भैया, मैं ने ठीक कहा न?’

‘तुम गलत ही कब कहती हो,’ विजयजी उन की ब्लाउज व साड़ी के बीच की खुली कमर को अपनी बांहों में घेर कर उन्हें अपने पास खींच लेंगे.

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वे यह नाटक कुछ महीनों से देखती चली आ रही हैं. कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती. घर के किसी कोने में आंसू बहाती रहती हैं या कुढ़ती रहती हैं. इस गले लगाने या लिपटने से आगे भी उन दोनों के बीच कुछ और है, वे टोह नहीं ले पाई हैं. वैसे भी वे हर समय पति के पीछे थोड़े ही लगी रहती हैं.

कभीकभी उन्हें अपनेआप पर बेहद खीझ होती है कि क्यों उन्होंने खुद को दब्बू बना रखा है? शादी से पहले जब वे सोफे पर कूद कर ‘धम’ से बैठती तो मां बड़बड़ाया करती थीं, ‘क्या लड़कों जैसी उछलतीकूदती रहती है, जरा लड़कियों जैसी नजाकत से रहा कर.’

तीज से एक दिन पहले मां एक कटोरी में मेहंदी घोल कर बैठ जातीं. तब वे बहाना बनातीं, ‘मां, कल विज्ञान का टैस्ट है.’

‘तू हर साल बहाना करती है. लड़कियों को पता नहीं क्याक्या शौक होते हैं. नेलपौलिश लगाएंगी, लिपस्टिक लगाएंगी, चूडि़यां पहनेंगी. लेकिन एक तू…नंगे डंडे जैसे हाथ लिए घूमती रहती है. चल, आज तो मेहंदी का शगुन कर ले.’

बेहद खीझते हुए वे मां के सामने बैठ जातीं. मां मेहंदी में नीबू, चीनी, चाय का पानी और न जाने क्याक्या मिला कर उसे तैयार करतीं, पर मेहंदी लगवाते हुए वे शोर मचातीं, ‘मां, जल्दी करो, दुखता है.’

मां तो जैसे तीजत्योहारों पर तानाशाह बन जाती थीं, ‘चुपचाप बैठी रह. कल नहाने से पहले तुझे हरे रंग की चूडि़यां पहननी हैं.’

‘ठीक है, पहन लूंगी, लेकिन यह किस ने कानून बनाया है कि मेहंदी लगा कर उसे धो डालो. मुझे तो मेहंदी का हरा रंग ही लुभावना लगता है.’

‘तू बड़बड़ मत कर, मेहंदी बिगड़ जाएगी.’

मां के तानाशाही लाड़दुलार में जैसे उन का मन भीगभीग जाता था. वे हथियार डाल देती थीं. दूसरे दिन मेहंदी लगे हाथों में हरे रंग की चूडि़यों के साथ हरे रंग की साड़ी जैसेतैसे पिन लगा कर पहन लेतीं, मां निहाल हो उठतीं, ‘कैसी राजकुमारी सी लग रही है, जिस के घर जाएगी, वह धन्य हो जाएगा.’

अपनी शादी की दूसरी रात वे ऐसे ही तो नख से शिख तक तैयार हुई थीं. ननद व जेठानी उन्हें सजा कर स्वयं ठगी सी रह गई थीं.

लेकिन जिन के लिए सज कर वे बैठी थीं, उन्होंने बिना उन का चेहरा देखे रुखाई से कहा था, ‘जा कर कपड़े बदल लीजिए, भारी साड़ी में गरमी लग रही होगी.’

वे अपमान का घूंट पी दूसरे कमरे में जा कर सूती जरी की किनारी वाली साड़ी पहन कर आ गई थीं. उस निर्मोही ने फिर भी उन की तरफ नहीं देखा था. बत्ती बंद करते हुए कहा था, ‘शादी की भागदौड़ में आप भी थक गई होंगी, मैं भी थक गया हूं. मुझे जोरों की नींद आ रही है,’ 2 मिनट में ही करवट बदल कर गहरी नींद में सो गए थे.

विजयजी के साथ उन की शादी के शुरुआती 8 दिन ऐसे ही बीते थे. वे अनब्याही दुलहन की तरह मायके लौट आई थीं. घर में जरा भी एकांत मिलता तो अपनेआप झरझर आंसू बहने लगते. वे नहीं चाह रही थीं कि कोई उन के आंसू देखे, लेकिन मां की छठी इंद्रिय ने बेटी के मन की थाह को सूंघ ही लिया. एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया था, ‘तू अकेले में क्यों रोती है?’

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पहले तो वे सकुचाईं कि किस तरह कहें कि उन की देह को पति ने स्पर्श तक नहीं किया. फिर संकोच छोड़ कर सारी बात उन्हें बता दी.

‘यदि ऐसा था तो शर्म को त्याग कर उन से इस का कारण पूछना था.’

‘मैं ऐसी बात कैसे पूछ सकती थी?’

‘पतिपत्नी के संबंधों में संकोच कैसा? वैसे हम लोगों ने पैसा तो भरपूर दिया था, लेकिन हो सकता है कि कुछ लेनदेन के बारे में उन की नाराजगी हो?’

‘यदि वे ऐसे लालची हैं तो मैं वहां नहीं रहूंगी.’

‘बेटी, पहले तू पूछ कर तो देख.’

मां के प्रोत्साहन के कारण दूसरी बार ससुराल आ कर वे खुद को आश्वस्त महसूस कर रही थीं. जैसे ही विजयजी ने रात को बत्ती बुझानी चाही, उन्होंने उन का हाथ पकड़ लिया, ‘जरा, आज हम लोग बातचीत कर लें.’

विजयजी ने झुंझला कर हाथ छुड़ाया, ‘क्या बात करनी है? शादी हो गई, तुम इस घर की मालकिन बन गईं और क्या चाहिए?’

‘यदि मैं आप का मन नहीं जीत पाई तो मेरा इस घर में आना बेकार है.’

‘तुम औरतों को चाहिए क्या, कपड़ा और खाना. इन चीजों की तुम्हें जिंदगीभर कमी नहीं होगी,’ फिर उन्होंने स्विच की तरफ हाथ बढ़ाना चाहा. पर उन्होंने उन का हाथ दृढ़ता से पकड़ लिया, ‘नहीं, आज मुझे इतना अधिकार दीजिए कि मैं आप से चंद बातें कर सकूं.’

वे बेमन पलंग पर तकिए के सहारे टिक कर बैठ गए, ‘अब कहो? मैं कहां नाराज हूं,’ वह उन्हें आग्नेय नेत्रों से देख कर बोले.

‘आप की आंखें तो कुछ और ही कह रही हैं,’ वे जैसे हर प्रहार के लिए कलेजा कड़ा कर के बैठी थीं.

‘मेरे चाचा से पूछो कि मेरी नाराजगी का कारण क्या है?’

‘मैं ने सुना तो था कि आप के पिताजी सीधेसादे हैं, शादी की हर बात तय करने के लिए आप के चाचा को आगे कर देते हैं.’

‘हां, उन्हीं चाचा ने रुपयों के लालच में मुझे तुम्हारे पिता के हाथों बेच दिया.’

उन का चेहरा भी तमतमा आया था, ‘मेरे पिता दूल्हा खरीदने नहीं निकले थे. उन्होंने तो अपनी जाति की प्रथा के हिसाब से रुपया दिया था. फिर मेरे पिता व्यापार करते हैं, उन के लिए 2 लाख रुपए अपनी मरजी से देना बड़ी बात नहीं थी.’

‘2 लाख? लेकिन चाचा ने तो हमें डेढ़ लाख रुपए ही दिए थे.’

‘नहीं, सच में मेरे पिता ने 2 लाख रुपए दिए थे.’

‘तो क्या मेरे चाचा झूठ बोलेंगे?’

‘इस बात का फैसला तो बाद में होगा. अब समसया यह है तो हम लोगों को सहज जीवन व्यतीत करना चाहिए.’

‘मैं तुम्हारे लिए बिका हूं, यह बात मुझे सहज नहीं होने दे रही.’

‘मैं आप को सहज कर दूंगी,’ कह कर उन्होंने स्वयं बिजली के बटन पर हाथ रख दिया. ऐसे में उन के कंगन बज उठे थे.

उन दिनों वे मन ही मन कितनी आहत होती थीं. पति तो नवविवाहिता पत्नी का दीवाना हो जाता है, लेकिन उन के हाथ में कुछ उलटा ही रचा था, जैसे कि उन्हें मेहंदी का भी उलटा रंग ही पसंद आता था. वे जबरदस्ती उन्हें अपने आकर्षण में बांध रही थीं. बस, ऐसे ही एक बेटे व बेटी की मां बन गई थीं.

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कभी उन्होंने सुना था कि यदि दूल्हे व दुलहन के मन में ब्याह के मंडप के नीचे कोई गांठ हो तो वह जिंदगीभर नहीं खुलती. क्या यह बात सच है? उसी मंडप में चाचाजी ने 50 हजार रुपए अपनी जेब में खिसका लिए थे. यह बात पंडित की बहुत खुशामद करने के बाद पता लगी थी.

उन्होंने लाख कोशिश कर के देख ली थी, पर पति के दिल को वे पूरी तरह जीत नहीं पाई थीं. इसीलिए पास के स्कूल में उन्होंने नौकरी कर ली थी. बच्चों के लिए एक आया रख ली थी. दोपहर के खाने के लिए विजयजी घर पर आते थे, आया उन्हें खाना खिला देती व घर की देखभाल भी कर लेती थी.

Manohar Kahaniya: जब उतरा प्यार का नशा- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

भारती ने अपनी मां को फोन मिलाया. 20 सेकेंड तक रिंग बजती रही. उस की मां ने फोन रिसीव नहीं किया. ऐसा पहली बार हुआ, जब उस की मां ममता कास्ते ने फोन नहीं उठाया हो. वह चिंतित हो गई. ममता अपनी 2 बेटियों रूपाली (20 साल) और दिव्या (16 साल) के साथ मध्य प्रदेश के देवास जिले के नेमावर में अकेली रहती थी.

ममता के पति अपने बेटे संतोष और बड़ी बेटी भारती के साथ पीथमपुर में रहते थे. यह सब काम की तलाश में नेमावर से यहां आए थे. तीनों ही अलगअलग जगहों पर काम कर रहे थे. भारती वहीं एक फैक्ट्री में काम करती थी. अपनी मां और 2 बहनों के अलग रहने के कारण भारती दिन में एकदो बार उन का हालचाल पूछ लिया करती थी. हालांकि भारती की मौसी की एक 16 वर्षीय बेटी पूजा और 14 वर्षीय बेटा पवन भी ममता के साथ नेमावर में रहते थे.

उस रोज 13 मई, 2021 को भी भारती ने हमेशा की तरह मां से हालचाल जानने के लिए फोन किया था. लेकिन मां के फोन नहीं उठाए जाने पर भारती ने परिवार के दूसरे लोगों को भी फोन किया, उन के फोन बंद मिलने पर भारती और भी परेशान हो गई.

कारण, न तो मां उस का फोन उठा रही थी और न ही परिवार के दूसरे लोगों से बात हो पा रही थी. भारती के सामने ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई थी. घबराहट में उस का मन विचलित होने लगा था. मन में कई तरह के विचार उठने लगे थे. अनहोनी की आशंकाओं से उस का दिमाग झनझना उठा था.

आखिर भारती अपने मन को कब तक समझाती. एकदो नहीं, बल्कि 5 दिन गुजर चुके थे. भारती को उस की मां या परिवार के किसी भी सदस्य से बात नहीं हो पाई थी. वह 13 मई से लगातार अपनी मां से संपर्क करने की कोशिश करती रही.

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कोई सूचना नहीं मिलने पर वह अपने भाई संतोष के साथ 17 मई को नेमावर जाने के लिए पीथमपुर से रवाना हो गई. वह इसी आशा में थी कि नेमावर में सब कुछ ठीक होगा, लेकिन वहां पहुंच कर देखा तो पाया कि उस के मकान पर ताला लगा हुआ था.

परिवार के 5 लोग थे लापता

यह देख कर दोनों भाईबहन की परेशानियां और भी बढ़ गईं. भारती ने आसपास रहने वालों से पूछताछ की. किसी ने भी कोई जानकारी नहीं दी. घर पर ताला लगा देख घबराई भारती तुरंत नेमावर स्थित पुलिस थाने गई. टीआई अविनाश सिंह सेंगर को उस ने पूरी कहानी सुना दी.

एक ही परिवार के 5 लोग लापता थे, इसलिए मामले की गंभीरता को देखते हुए सेंगर ने तत्काल भारती की रिपोर्ट पर ममता, रूपाली, दिव्या, पवन और पूजा की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

टीआई ने इस की जानकारी एसपी डा. शिवदयाल एवं एएसपी सूर्यकांत शर्मा को भी दे दी. मामला आदिवासी समाज का था. इस कारण इसे गंभीरता से लिया जाने लगा.

लापता सभी 5 सदस्यों में से सिर्फ रूपाली का मोबाइल ही चालू था, जिस की लोकेशन लगातार बदल रही थी. रूपाली अपने मोबाइल से भारती को लगातार मैसेज कर खुद की सलामती की जानकारी दे रही थी, लेकिन उसे खोजने की कोशिश नहीं करने की भी हिदायत मिल रही थी.

ताज्जुब की बात यह थी कि वह मैसेज द्वारा बात तो कर रही थी लेकिन भारती अथवा परिवार के किसी भी सदस्य का फोन नहीं उठा रही थी.

लापता सदस्यों में 2 रूपाली की मौसी के बच्चे थे. इस की जानकारी भारती की मौसी को मिली तो वह भी भागीभागी नेमावर आ गईं. उन्होंने रूपाली पर अपने बच्चों के अपहरण का आरोप लगाना शुरू कर दिया. उन का कहना था कि रूपाली की हरकतें ठीक नहीं थीं. उसी ने हमारे बच्चों का अपहरण किया है.

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मामले को उलझता देख एसपी ने उज्जैन जोन के आईजी योगेश देशमुख से संपर्क किया. देशमुख नेमावर पहुंच कर एसपी देवास को आवश्यक निर्देश दिए. उस के मुताबिक एसपी ने मामले की जिम्मेदारी एएसपी सूर्यकांत शर्मा को सौंप कर 5 टीमों को फील्ड में उतार दिया.

इस के साथ ही टीआई (नेमावर) अविनाश सिंह सेंगर के अलावा आधा दरजन से अधिक पुलिसकर्मी जांच मे जुट गए.

मामले को सुलझाने की पहली जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए नेमावर पुलिस लापता सदस्यों के परिवार की कुंडली बनाने में जुट गई. इस के लिए मुखबिरों की मदद ली गई.

पुलिस ने रूपाली के मोबाइल फोन की भी डिटेल्स निकाली, जिस से रूपाली के फोन पर कई युवकों से बात होने की जानकारी मिली. उन में एक नेमावर का रहने वाला युवक सुरेंद्र सिंह पुत्र लक्ष्मण सिंह भी था. जबकि बाकी के युवक हरदा और उस के आसपास के इलाके के थे.

सुरेंद्र रूपाली के भाई संतोष का पुराना दोस्त था, जो पड़ोस में ही रहता था. वह संतोष के साथ रूपाली और परिवार के बाकी लोगों की खोजखबर लेने के लिए हमेशा उस के साथ थाने भी आता था. पूछताछ में उस ने बताया कि संतोष उस का दोस्त है. संतोष के पीथमपुर जाने के बाद उस के परिवार का हालचाल जानने के लिए आताजाता था. उस की रूपाली के अलावा परिवार के अन्य लोगों से भी बातचीत होती रहती थी.

पुलिस को मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

रूपाली की काल डिटेल्स में कई लोगों के साथ बातचीत की भी जानकारी मिली. उन में सुरेंद्र के अलावा दूसरे लोग हरदा इलाके के रहने वाले थे. उन के साथ रूपाली की जानपहचान संदिग्ध लगने के संदर्भ में पुलिस इंसपेक्टर शिवमुराद यादव  को एक चौंकाने वाली जानकारी मालूम हुई.

वह यह कि रूपाली ने घर वालों की बिना जानकारी के हरदा में एक किराए का कमरा ले रखा था. वह अकसर उसी कमरे में ठहरती थी. वहीं सुरेंद्र भी नेमावर से हरदा जा कर उस से मिलता था. सुरेंद्र के अलावा दूसरे युवक भी रूपाली के पास आतेजाते देखे गए थे.

पुलिस को रूपाली के बारे में सब से महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी पता चली कि उस ने पड़ोसियों से सुरेंद्र का परिचय अपने पति के रूप में करवाया था.

इन जानकारियों के आधार पर रूपाली परिवार के लापता सदस्यों के सिलसिले में इकलौता सूत्र बन गई थी. एक तरफ जहां रूपाली की संदिग्ध गतिविधियां सामने आ चुकी थीं, वहीं उस के मोबाइल से बदले हुए लोकेशनों के साथ मैसेज भेजे जा रहे थे.

सिर्फ मैसेज आने की स्थिति में पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि रूपाली का मोबाइल कोई और इस्तेमाल कर रहा है. इस मामले में रूपाली की भूमिका महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद पुलिस उस तक नहीं पहुंच पा रही थी.

समय बीतता जा रहा था. पुलिस को केस के बारे में कोई ठोस जानकारी हाथ नहीं लग पा रही थी. सुरेंद्र से भी कई बार पूछताछ की जा चुकी थी, लेकिन उस से भी कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई थी. हां, उस ने इतना जरूर बताया था कि वह रूपाली से प्यार करता था.

पुलिस ने जब जांच का दायरा बढ़ाया तब मालूम हुआ कि 13 मई, 2021 को ममता रूपाली और दिव्या के अलावा पूजा और पवन भी शाम तक नेमावर में ही देखे गए थे. उसी दिन रूपाली और सुरेंद्र को भी गहराती शाम नर्मदा में तैरती नाव में एकदूसरे के साथ देखा गया था.

पुलिस को सुरेंद्र भी संदिग्ध लगा. दूसरे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सुरेंद्र हरदा में किराए के कमरे पर रूपाली के पास जाता था. यह बात उस ने पूछताछ में नहीं बताई थी. वहां के पड़ोसियों के अनुसार वह रूपाली का कथित पति भी था.

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सुरेंद्र और रूपाली के बीच के संबंधों का पता लगने पर पुलिस ने जांच का रुख बदल दिया. जल्द ही मालूम हो गया कि उन के बीच काफी गहरा संबंध था. ऐसे में निश्चित तौर पर रूपाली ने नेमावर से अचानक कहीं जाने से पहले इस की जानकारी सुरेंद्र को दी होगी.

पुलिस ने इस का अंदाजा लगाते हुए संदेह के आधार पर 2 बातों पर गौर किया. पहला, रूपाली के गायब हो जाने पर सुरेंद्र ने कभी उस के मोबाइल पर फोन क्यों नहीं किया? दूसरा,  रूपाली के नंबर से उस के मोबाइल पर कोई काल या मैसेज क्यों नहीं आया?

पुलिस की नजर में इस का मतलब साफ था कि मामले में कोई सुरेंद्र को दूर रखने की कोशिश कर रहा था या फिर सुरेंद्र एक साजिश के तहत पुलिस के सामने आ कर अपना और रूपाली का बचाव कर रहा था.

इस शक को ध्यान में रख कर नेमावर पुलिस सुरेंद्र को मामले का सब से बड़ा संदिग्ध मानते हुए उस पर नजर रखने लगी. उस के बारे में जानकारियां जुटाई जाने लगीं.

अगले भाग में पढ़ें- सुरेंद्र के साथ लिवइन में रहने लगी रूपाली

Satyakatha- मनीष गुप्ता केस: जब रक्षक बन गए भक्षक- भाग 3

सौजन्य: सत्यकथा

Writer- शाहनवाज

वारदात की रात जब मनीष की सांसें थम गई थीं और पुलिसकर्मियों को एहसास हो गया था कि उन की मौत हो गई है, तब आरोपी शव ठिकाने लगाने के प्रयास में जुटे थे. आखिर में जब उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझा, तब वे बीआरडी मैडिकल कालेज पहुंचे थे. इसलिए उन को निजी अस्पताल से मैडिकल कालेज पहुंचने में करीब 2 घंटे का समय लगा. एसआईटी ने इस तथ्य को अपनी जांच में भी शामिल किया है.

एसआईटी की जांच में यह तथ्य पाया गया कि बेजान मनीष को सब से पहले आरोपी पुलिस वाले जीप से ले कर पास के मानसी अस्पताल ले कर पहुंचे थे. वहां डाक्टर ने बताया कि मनीष की नब्ज नहीं मिल रही है, तत्काल इन को ले कर बीआरडी मैडिकल ले जाओ. अस्पताल प्रशासन ने मनीष को वहां से रेफर कर दिया था.

एसआईटी की जांच में सामने आया कि जब यहां से पुलिसकर्मी मनीष को ले कर रवाना हुए तो उन को यकीन हो गया था कि मनीष की मौत हो चुकी है. वे तकरीबन 2 घंटे बाद बीआरडी मैडिकल कालेज पहुंचे थे. जहां डाक्टरों ने मनीष को मृत घोषित कर दिया.

लाश ठिकाने लगाना चाहते थे पुलिस वाले

एसआईटी ने जब यह पता करना शुरू किया कि जिस दूरी को 10 मिनट में कवर करना था, उस में पुलिसकर्मियों को 2 घंटे क्यों लगे. तब सीसीटीवी फुटेज व अन्य तथ्यों से स्पष्ट हुआ कि आरोपी पुलिसकर्मी पहले थाने गए थे और उन्होंने गाड़ी भी बदली थी. इस पूरे समय में वे घूमते रहे थे. कुछ जगहों पर वे रुके भी थे.

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इस दौरान मनीष के शव को ठिकाने लगाने के प्रयास में जुटे थे. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. अंत तक जब समझ नहीं सके कि शव का क्या जाए तो वे सीधे मैडिकल कालेज पहुंचे.

सूत्रों के मुताबिक एसआईटी की जांच में सामने आया कि जब गाड़ी में बेजान मनीष को ले कर पुलिसकर्मी घूम रहे थे तो एक पुलिसकर्मी ने इंसपेक्टर जगत नारायण सिंह से कहा कि शव को कहीं ऐसे ही फेंक देते हैं. बाद में लावारिस में बरामद होगा. आगे की जांच होती रहेगी.

इस पर जगत नारायण ने कहा कि ऐसा करने से और फंस जाओगे. होटल से जब मनीष को ले कर चले थे तब उस के दोस्त व होटल प्रशासन मौजूद था. मानसी अस्पताल प्रशासन भी इस का गवाह है.

बाकी तमाम फुटेज में भी हम लोग कैद हुए हैं. लिहाजा मैडिकल कालेज चलने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है.

मामले के मुख्य आरोपी जगत नारायण सिंह और अक्षय मिश्रा की गिरफ्तारी के ठीक 2 दिनों बाद 12 अक्तूबर के दिन 2 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. एसआई राहुल दुबे और सिपाही प्रशांत कुमार को मंगलवार की दोपहर गोरखपुर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

दोनों कोर्ट में हाजिर होने की फिराक में गोरखपुर आए थे. पुलिस ने आजाद चौक इलाके से दोनों को गिरफ्तार कर एसआईटी कानपुर के सुपुर्द कर दिया था. दोनों पर कानपुर पुलिस की ओर से एकएक लाख रुपए का ईनाम घोषित कर दिया गया था.

जानकारी के मुताबिक कारोबारी मनीष गुप्ता की हत्या में नामजद आरोपी राहुल दुबे और सिपाही प्रशांत कोर्ट में हाजिर होने के लिए गोरखपुर आए थे. इस की भनक गोरखपुर पुलिस को लग गई थी. लिहाजा एसएसपी डा. विपिन ताडा ने घेराबंदी कराई और अलगअलग टीमें लगा दीं.

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इसी बीच कैंट इंसपेक्टर सुधीर कुमार सिंह को मुखबिर से सूचना मिली कि आरोपी एसआई और सिपाही आजाद चौक चौकी के पास मौजूद हैं. दोनों वाहन पकड़ कर कचहरी जाने की फिराक में थे. सूचना मिलने के साथ ही कैंट इंसपेक्टर सुधीर सिंह, रामगढ़ताल इंसपेक्टर सुशील कुमार शुक्ला व फलमंडी चौकी इंचार्ज शेष कुमार शुक्ला पहुंच गए और दोनों आरोपियों को पकड़ लिया.

गिरफ्तार राहुल दुबे मिर्जापुर के कोतवाली देहात के मिश्र पचेर गांव का रहने वाला है, जबकि प्रशांत कुमार गाजीपुर के सैदपुर थानाक्षेत्र के भटौला गांव का रहने वाला है.

इस कांड के 4 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी थी, जबकि 2 अभी भी फरार चल रहे थे.

उधर उत्तर प्रदेश सरकार ने मृतक की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता को 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता और कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी की नौकरी दे कर उन के दुखों पर मरहम लगाने की कोशिश की है.

इस के अलावा सपा नेता अखिलेश यादव ने भी उन्हें 20 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी.

बहरहार, मीनाक्षी गुप्ता ने 11 अक्तूबर को कानपुर विकास प्राधिकरण में ओएसडी पद पर नौकरी जौइन कर ली. उन का कहना है कि आरोपी पुलिसकर्मियों को फांसी दिलाने तक वह अपना संघर्ष जारी रखेंगी.

प्रेम गली अति सांकरी: भाग 4

Writer- जसविंदर शर्मा 

पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि कैसे पापा की प्रेमिका ने हमारे घर में तूफान ला दिया था. सभी टोनेटोटकों के बावजूद मां उसे घर से बाहर नहीं निकाल पाईं. लेकिन मां द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाने पर उसे घर छोड़ना पड़ा और इस तरह पापा दो परिवारों के मुखिया बन कर रह गए. लेकिन पापा ने हम से पल्ला झाड़ लिया. पढि़ए शेष भाग…

छोटीछोटी बातों पर शादी में दरारें आती हैं. शादी को कायम रखने के लिए उसे किसी भी प्रकार के वैचारिक हमलों से बचाना चाहिए. यह सोच कर शादी नहीं करनी चाहिए कि यह तो करनी ही है क्योंकि सब करते हैं.

पापा ने जो किया था वह एक सम्माननीय और संतुलित व्यक्ति का व्यवहार नहीं था. अपनी वासनात्मक लालसाएं पूरी करने के लिए पापा ने इस घर के 4 जनों को दिनरात घुलते चले जाने को विवश किया था. विवाहेतर संबंध तो ठीक थे मगर उस पर यह अतिरेक और कुचेष्टा कि उन की रखैल मिस्ट्रैस को इस घर में सम्मान मिले और वह हमारे साथ भी रहे. दैहिक जरूरतों के सामने घर जैसी पवित्र जगह को युद्ध की रणभूमि बना डाला था ऐसे में तो कुंठा और दमन ही हाथ आना था.

यह तो बहुत ही मार देने वाला काम था. मां की हिम्मत थी कि पिछले इतने सालों से वे किसी तरह घर को जोड़ कर के रखे हुए थीं. वे पस्त हो जातीं, टूट जातीं या भाग कर मायके चली जातीं तो हम बच्चों का भविष्य खराब हो जाता.

लगभग 1 साल बाद मां को मोटी रकम मिल गई और पापा को तलाक मिल गया. ‘उस ने’ अगले ही महीने पापा से शादी कर ली. मां ने पापा को माफ कर दिया यह समझ कर कि गलती तो उस युवती की है जो एक अधेड़ व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ती.

तब मैं तय नहीं कर पाई कि सच में सारी गलती ‘उस की’ ही थी. क्या मां या पापा कुसूरवार नहीं थे? त्रिकोणीय संबंधों में अगर 1 को बलि का बकरा बनना पड़ता है तो बाकी के 2 लोग भी ज्यादा देर तक ऐसे अनैतिक संबंध को सहजता से नहीं जी पाते.

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जल्दी ही उस मायावी औरत से पापा का मोहभंग हो गया. जब तक उस से पापा की शादी नहीं हुई थी तब तक पापा में उसे सारा आकर्षण दिखता था. गलत पते की चिट्ठी की तरह पापा 1 साल बाद हमारे घर के चक्कर लगाने लगे. भरापूरा घर, जिसे वे एक जवान नई औरत के लिए लात मार कर चले गए थे, अब हम बच्चेबच्चियों को देखने के बहाने फिर आने लगे थे.

पापा हमारे जन्मदिन पर बढि़या तोहफे लाते, हमें कपड़े ले कर देते. हमारे कालेज के बारे में पूछते. मेरे छोटे भाई में उन्हें खास दिलचस्पी रहती. हमें यकीन नहीं होता कि ये हमारे वही पापा हैं जिन्होंने हम से बात तक करनी बंद कर दी थी क्योंकि हम हमेशा मां की तरफदारी करते थे.

मां के मन की स्थिति कोई खास निश्चित नहीं थी कि अब पापा को ले कर वे क्या सोचती थीं. ‘उस ने’ जब पापा को हासिल कर लिया तभी से उन के रिश्ते के अंत का काउंटडाउन शुरू हो गया.

हम दोनों बहनों ने अच्छे संस्थानों से डिगरी ले ली थी और हमें अच्छी जौब मिल गई थी. पापा हम दोनों को ले कर कुछ ज्यादा ही वात्सल्य दिखाने लगे थे. मां के प्रति उन के मन में सोया प्यार जागने लगा था. अपनी मिस्ट्रैस की परवा कम ही करते थे. मां तो कहती कि

अब इस बूढे़ का दिल लगता है, दफ्तर की किसी अन्य स्त्री पर आ गया है

और हमारी आड़ ले कर यह अपनी मिस्ट्रैस से जान छुड़ाना चाहता है.

हो सकता है मां की बातों में कुछ सचाई हो मगर हमें अब सारा मामला समझ में आने लगा था. पापा इतनी ऊंची पोस्ट पर थे, अच्छा कमाते थे, फिर मां की उन से एक दिन भी नहीं बनी. क्या मां का कोई दोष नहीं था? मेरी बड़ी बहन का मानना था कि मां के हर समय शक करते रहने से पापा ऐसे बन गए.

खैर, मां और पापा का कोई समझौता नहीं हो सका. पापा पेंडुलम की तरह इधर से उधर, उधर से इधर आतेजाते रहे. मां ने उन्हें कोई तबज्जुह न दी. मां अब धार्मिक व अंधविश्वासी हो गई थीं. मेरे छोटे भाई ने जब डिगरी हासिल कर ली तो मां का ध्यान पूरा ईश्वर में लग गया. वे हर दुखसुख से ऊपर उठ गई थीं.

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घर के मामलों में उन्होंने रुचि लेनी बंद कर दी थी. हमारी शादी के बारे में भी उन्होंने कभी सीरियसली नहीं सोचा. उन्होंने सबकुछ पापा और वक्त पर छोड़ दिया था. कोई इतना उदासीन कैसे हो सकता है, यह मां को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था.

मां को मालूम था कि पापा अब भी घर में रुचि लेते हैं. मां को एक निश्चित रकम हर महीने मिल जाती. हम बच्चे भी अच्छा कमा रहे थे, कारों में घूमते थे.

जब मेरी बहन ने अपने दोस्त के साथ रहने का फैसला किया तो उस ने मेरी ड्यूटी लगाई कि मैं मां को सारी बातों के बारे में ब्रीफ करूं. उस में हिम्मत नहीं थी यह सब कहने की. पापा को तो हम इतनी अंतरंग बातें कभी न बता सकते थे.

पांच साल बाद- भाग 4: क्या निशांत को स्निग्धा भूल पाई?

पूर्व कथा

पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि जिस समाज से स्निग्धा विद्रोह करना चाहती थी उसी समाज के एक कुलीन ने उस का सतीत्व लूट लिया और मन भरने के बाद उसे छोड़ दिया. उधर, निशांत, जो उस से एकतरफा प्यार करता था, पांच साल बाद उस की जिंदगी में आया. आगे क्या हुआ.

पढि़ए शेष भाग.

वह सारा दिन उन दोनों ने साथसाथ व्यतीत किया. पालिका बाजार, सैंट्रल पार्क, कनाट प्लेस से ले कर पुराने किले से होते हुए वे इंडिया गेट तक गए और रात 8 बजे तक वहीं बैठ कर उन्होंने जीवन के हर पहलू के बारे में बात की. निशांत हवा के साथ उड़ रहा था तो स्निग्धा के मन में अपने विगत को ले कर एक अपराधबोध था. निशांत हर प्रकार की खुशबू अपने दामन में समेटने के लिए आतुर था तो स्निग्धा संकोच के साथ अपने पांव पीछे खींच रही थी.

निशांत के जीवन की खोई हुई खुशियां जैसे दोबारा लौट आई थीं. उस के जीवन में 5 साल बाद वसंत के फूल महके थे. स्निग्धा को उस के घर के बाहर तक छोड़ कर जब वह वापस लौट रहा था तब उस के कानों में स्निग्धा के मीठे स्वर गूंज रहे थे, ‘बाय निशू, गुड नाइट. एक अच्छे दिन के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. आशा है, हम कल फिर मिलेंगे.’

‘हां, कल शाम को मैं तुम्हें फोन करूंगा, ओके.’

स्निग्धा के घर से उस के घर के बीच का रास्ता कितनी जल्दी खत्म हो गया, उसे पता ही न चला. अपने 2 कमरों के किराए के मकान में पहुंच कर उसे लगा, जैसे पूरा घर ताजे फूलों से सजा हुआ हो और उन की मादक सुगंध चारों तरफ फैल कर उस के दिमाग को मदहोश किए दे रही थी. वह एक लंबी सांस ले कर पलंग पर धम से गिर पड़ा.

उसे स्निग्धा के साथ मिलने के संयोग पर विश्वास नहीं हो रहा था.

विश्वास तो स्निग्धा को भी नहीं हो रहा था. वह अपने कमरे की सीढि़यां चढ़ते हुए यही सोच रही थी कि निशांत से मिलने के बाद क्या उस के जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन होने वाला है. क्या यह परिवर्तन सुखद होगा? कमरे में पहुंची तो उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, जैसे वह फूल की तरह हलकी हो गई थी और उसे लग रहा था कि हवा का एक हलका झोंका भी आया तो वह आसमान में उड़ जाएगी. कोई उसे पकड़ नहीं पाएगा.

उस की रूममेट रश्मि ने जब उस का हंसता हुआ चेहरा देखा तो पहला प्रश्न यही किया, ‘लगता है, तुम्हारा खोया हुआ प्यार तुम्हें मिल गया है?’

उस ने पर्स को मेज पर पटका और रश्मि को गले से लगा कर भींच लिया. रश्मि कसमसा उठी और उसे परे करती हुई बोली, ‘इतना ज्यादा मत इतराओ. अभी एक प्यार की चोट पूरी तरह से भरी नहीं है और फिर से तुम प्यार करने लगी हो. कहां तो समाज की हर चीज से बगावत करने पर तुली हुई थीं, कहां अब एक आम लड़की की तरह बारबार प्यार में इस तरह गिर रही हो, जैसे गीले गुड़ में मक्खी…क्या यही है तुम्हारा आदर्श?’

‘अरे, भाड़ में जाए समाज से विद्रोह. वह मेरी बेवकूफी थी कि मैं नैतिकता को बंधन समझती थी. दरअसल, यही सच्चा जीवनमूल्य है, जो हमें एक नैतिक और मर्यादित बंधन में रख कर समाज और राष्ट्र को आगे बढ़ाने में मदद करता है. निरंकुश आजादी मनुष्य को गैरजिम्मेदार और तानाशाह बना देती है, जबकि सामाजिक मूल्य हमें एक निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करते हैं.’

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‘वाह, तुम तो एक दिन ही में सारे जीवनमूल्यों को पहचान गईं. किस ने ऐसा गुरुमंत्र दिया है जो अपनी बनाई हुई लीक को तोड़ने पर मजबूर हो गई हो? क्या पहले प्यार में धोखा खाने के बाद तुम्हें यह एहसास हुआ है या किसी ने तुम्हें भारतीय दर्शन और संस्कृति का पाठ पढ़ाया है?’

वह पलंग पर बैठती हुई बोली, ‘नहीं रश्मि, बहुतकुछ हम अपने अनुभवों से सीखते हैं और बहुतकुछ हम अपने संपर्क में आने वाले लोगों से. इस से कुछ कटु अनुभव होते हैं और कुछ मृदु. यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि अपने द्वारा किए गए गलत कामों के कटु अनुभवों से हम क्या सीखते हैं और हम किस प्रकार अपने को बदल कर सही मार्ग पर आते हैं.

समाज में हर चीज गलत नहीं होती. हमें अपने विवेक से देखना पड़ता है कि क्या सही है, क्या गलत. सामाजिक कुरीतियां, अंधविश्वास, अति पूजापाठ और धर्मांधता अगर बुरे हैं तो शादीब्याह जैसी संस्थाएं बुरी नहीं हैं. यह परिवार और समाज को एक बंधन में बांध कर राष्ट्र को मजबूत बनाने में मदद करती हैं. मेरी गलती थी कि मैं समाज की हर चीज को बुरा समझने लगी थी. मनमाने ढंग से जीवन जीने का परिणाम क्या हुआ? एक व्यक्ति जिसे मैं अपना समझती थी कि वह जीवनभर मेरा साथ देगा, मेरे सुखदुख बांटेगा, वही मेरा उपभोग कर के एक किनारे हो गया.

‘यही काम अगर मैं शादी कर के करती तो समाज में गर्व से अपना सीना तान कर चल सकती थी. आज मैं अपने मांबाप, परिजनों और संबंधियों के सामने नहीं पड़ सकती, उन को अपना मुंह नहीं दिखा सकती. इतनी नैतिक शक्ति मेरे पास नहीं है,’ और उस के चेहरे पर फिर से पहले जैसी उदासी व्याप्त हो गई.

रश्मि बहुत समझदार लड़की थी. वह उस के पास आ कर उस के सिर पर हाथ रख कर बोली, ‘तुम बहुत साहसी लड़की हो. कभी इस तरह हिम्मत नहीं हारतीं. आज तुम कितना खुश थीं. मुझे अफसोस है कि मैं ने तुम्हारी दुखती रग पर हाथ रख कर तुम्हें ज्यादा दुखी कर दिया. चलो, भूल जाओ अपना अतीत और नए सिरे से अपना जीवन शुरू करो. अब मैं तुम से पिछले जीवन के बारे में कोई बात नहीं करूंगी. बस, तुम खुश रहा करो.’

‘मैं खुश हूं, रश्मि,’ उस ने हंसने का खोखला प्रयास किया और बाथरूम की तरफ जाती हुई बोली, ‘तुम देखना, मैं हमेशा हंसतीमुसकराती रहूंगी.’

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‘ये हुई न कोई बात.’

स्निग्धा ने अपने मन को इतना कठोर बना लिया था कि राघवेंद्र के साथ व्यतीत किए गए जीवन के कड़वे पलों को पूरी तरह भुला दिया था. अगर कभी यादें उसे हरा देतीं तो उस को उबकाई आने लगती.

आज वह एक सच्चे प्यार की तलाश में थी, तन की भूख की अब उस में कोई ललक नहीं थी.

रश्मि एक कौल सैंटर में काम करती थी. लखनऊ की रहने वाली थी. स्निग्धा से उस की मुलाकात इसी गैस्ट हाउस में हुई थी. रश्मि पहले से यहां रह रही थी. बाद में स्निग्धा आ गई तो उन्होंने एकसाथ एक कमरे में रहने का निर्णय लिया. इस से उन पर किराए का बोझ कम हो गया था.

स्निग्धा जब से आई थी, बहुत उदास और गुमसुम सी रहती थी. बहुत पूछने और साथ रहने के कारण स्निग्धा ने उस से अपने जीवन की बहुत सारी बातें बांट ली थीं. रश्मि ने भी उसे अपने बारे में बहुतकुछ बताया था. धीरेधीरे स्निग्धा खुश रहने लगी थी परंतु आज बाहर से आने के बाद वह जितना खुश थी उतना दिल्ली आने के बाद कभी नहीं रही.

Crime- चुग्गा की लालच में फंसते, ये पढ़ें लिखे श्रीमान!

आपने एक कहानी पढ़ी होगी- शिकारी “पंछी” को फसाने के लिए दाने डालता है और फिर जाने कितने पंछी उस चुग्गे के लालच में आकर के दाना चुगने लगते हैं और शिकारी उन्हें अपने जाल में फंसा लेता है.
यह कहानी बचपन में पढ़ने के बाद हम मन ही मन हंसते हैं की पंछी बेचारे कितने अनजान होते हैं. और हम जिंदगी में कभी भी ऐसी कोई भूल नहीं करेंगे. इस कहानी का यही संदेश भी है.

मगर बचपन की कहानी जब हम बड़े हो जाते हैं तो शायद भोले भाले इंसान से  एक लालची, लोधी व्यक्ति के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जो कहीं थोड़ा भी लाभ दिखाई देता है तो उसे पाने के लिए लालायित हो जाता है. और यह भूल जाता है कि कहीं वह किसी शिकारी का शिकार तो नहीं है.

देश दुनिया में हमारे आसपास ऐसे जाने कितनी घटनाएं घटती जाती है.समाचार पत्रों में सुर्खियां बनती हैं लोग पढ़ते हैं और फिर भूल जाते हैं.

आइए आज हम आपको एक आंख खुलने वाली रिपोर्ट से रूबरू कराएं और देखें कि कैसे पढ़े लिखे लोग ठगी के जाल में फंस जाते हैं लाखों रुपए लुटा के होश आता है.

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प्रथम घटना-नोएडा की श्रीमती रमा शर्मा को फोन कॉल आया कि आपको कौन बनेगा करोड़पति में मौका मिलने वाला है और उनसे दो लाख रुपए ठग  लिए गए.

दूसरी घटना-मध्य प्रदेश के कटनी में एक इंजीनियर को सोशल मीडिया के माध्यम से लाखों रुपए की लाभ का लालच देकर कई लाख रुपए ठग लिए गए.

तीसरी घटना – महाराष्ट्र के नागपुर में एक पुलिस आरक्षक को एक कॉल आया किया की आपको जिओ से लाखों रुपए का लाभ  मिलने वाला है और उससे लाखों  रुपए ठग लिए गए.

हम आपको सावधान करते हैं

ऐसे ही जाने कितने छोटे-छोटे और बड़े-बड़े लालच देकर के लोगों को ठगा जा रहा है, लूटा जा रहा है. पुलिस और समाजिक संस्थाएं यथासंभव यह प्रयास करती हैं कि लोगों में जागरूकता आए. प्रयास जारी है मगर इसके साथ ही ठगी का या खेल और भी ज्यादा बढ़ता चला जा रहा है. अतः हम आपको सावधान करते हैं कि आप किसी शिकारी का चुग्गा फेंकने पर कदापि ना फंसे.

क्योंकि देखा जा रहा है कि  आम लोगों के अलावा भी पढ़े लिखे लोग, शासकीय पदों में बैठे हुए लोग भी छोटे से लाभ के चक्कर में फंस कर के ठगे जा रहे हैं. एक ज्वलंत उदाहरण यह है-

कम दाम में “कार” पाने की लालच में एक युवक दिल्ली के ठगों से 14 लाख रुपए की ठगी का शिकार हो गया. मामला भिलाई के सुपेला थाना क्षेत्र का है. पुलिस के मुताबिक आवेदक मोनिष लोही उम्र 22 साल सेक्टर 2 में रहता है. करीब 3 वर्ष पूर्व 20 दिसंबर 2018 को 24 शपिंग हब के स्वामी हितेश कुमार के कर्मचारी धनराज सिंह ने फोन पर बताया कि हमारे कंपनी से कार खरीदी करने के लिए ऑफर है उसने दाना फेंका-  “प्रमोशनल इवेंट चल रहे हैं, आप टाटा कंपनी की कार नेक्सन जीत सकते हैं.”

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पढ़ा लिखा और दुनिया जाहन  की जानने समझने वाला मनीष उनकी बातों से प्रभावित हो गया और कार जीतने के लालच ने उसे कंपनी के कर्मचारी के बताए अनुसार बैंक खाते में धीरे-धीरे करके 14 लाख रुपए वर्ष 2018 एवं 2019 में किस्तों में भुगतान किया. लेकिन टाटा नेक्सन कार की डिलीवरी मनीष को आज तक अप्राप्त है. इस रिपोर्ट के आधार पर पर पुलिस ने देश की राजधानी दिल्ली की एक महिला ठग सहित तीन लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का अपराध दर्ज करके कार्रवाई की है.

आज चल रही इस ठगी के तारतम्य में पुलिस अधिकारी विकास शर्मा के मुताबिक यह बहुत ही चिंता की बात है कि आम लोग तो ठगी का शिकार हो ही रहे हैं पढ़े लिखे शिक्षित लोग भी सोशल मीडिया के आने के बाद बहुत बड़ी तादाद में जालसाजी और ठगी का शिकार हो रहे हैं इसका मूल कारण सिर्फ लालच ही है.

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