मोह का जाल – भाग 1 : क्यों लड़खड़ाने लगा तनु के पैर

‘‘तनु बेटा, जा कर तैयार हो जा. वे लोग आते ही होंगे,’’ मां ने प्यारभरी आवाज में मनुहार करते हुए कहा. ‘‘मां, मैं कितनी बार कह चुकी हूं कि मैं विवाह नहीं करूंगी. मुझे पसंद नहीं है यह देखने व दिखाने की औपचारिकता. मां, मान भी लो कि यह रिश्ता हो गया, तो क्या मैं सुखी वैवाहिक जीवन बिता पाऊंगी? जब भी उन्हें पता चलेगा कि मैं एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त हूं तो क्या वे मुझे…’’ मैं आवेश में कांपती आवाज में बोली.

‘‘बेटा, तू ने मन में भ्रम पाल लिया है कि तुझे गंभीर बीमारी है. प्रदूषण के कारण आज हर 10 में से एक व्यक्ति इस बीमारी से पीडि़त है. दमा रोग आज असाध्य नहीं है. उचित खानपान, रहनसहन व उचित दवाइयों के प्रयोग से रोग पर काबू पाया जा सकता है. अनेक कुशल व सफल व्यक्ति भी इस रोग से ग्रस्त पाए गए हैं. ज्यादा तनाव, क्रोध इस रोग की तीव्रता को बढ़ा देते हैं. हमारे खानदान में तो यह रोग किसी को नहीं है, फिर तू क्यों हीनभावना से ग्रस्त है?’’ मां ने समझाते हुए कहा.

‘‘तुम इस बीमारी के विषय में उन लोगों को बता क्यों नहीं देतीं,’’ मैं ने सहज होने का प्रयत्न करते हुए कहा.

‘‘तू नहीं जानती है, बेटी, तेरे डैडी ने 1-2 जगह इस बात का जिक्र किया था, किंतु बीमारी का सुन कर लड़के वालों ने कोई न कोई बहाना बना कर चलती बात को बीच में ही रोक दिया,’’ असहाय मुद्रा में मां बोलीं.

‘‘लेकिन मां, यह तो धोखा होगा उन के साथ.’’

‘‘बेटा, जीवन में कभीकभी कुछ समझौते करने पड़ते हैं, जिन्हें करने का हम प्रयास कर रहे हैं.’’ लंबी सांस से ले कर मां फिर बोलीं, ‘‘इतनी बड़ी जिंदगी किस के सहारे काटेगी? जब तक हम लोग हैं तब तक तो ठीक है, भाई कब तक सहारा देेंगे? अपने लिए नहीं तो मेरे और अपने डैडी की खातिर हमारे साथ सहयोग कर बेटा. जा, जा कर तैयार हो जा,’’ मां ने डबडबाई आंखों से कहा.

कुछ कहने के लिए मैं ने मुंह खोला किंतु मां की आंखों में आंसू देख कर होंठों से निकलते शब्द होंठों पर ही चिपक गए. अनिच्छा से मैं तैयार हुई. मन कह रहा था कि किसी को धोखा देना अपराध है. मन की बात मन में ही रह गई. भाई रंजन ने आ कर बताया कि वे लोग आ गए हैं. मां और डैडी स्वागत के लिए दौड़े. 2 घंटे कैसे बीते, पता ही नहीं चला. मनुज अत्यंत आकर्षक, हंसमुख व मिलनसार लगा. लग ही नहीं रहा था कि हम पहली बार मिल रहे हैं. पहली बार मन में किसी को जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करने की इच्छा जाग्रत हुई.

वे लोग चले गए, किंतु मेरे मन में उथलपुथल मच गई. क्या वे मुझे स्वीकार करेंगे? यदि स्वीकार कर भी लिया तो कच्ची डोर से बंधा बंधन कब तक ठहर पाएगा?

2 दिनों बाद फोन पर रिश्ते को स्वीकार करने की सूचना मिली तो बिना त्योहार के ही घर में त्योहार जैसी खुशियां छा गईं. डैडी बोले, ‘‘मैं जानता था रिश्ता यहीं तय होगा. कितना भला व सुशील लड़का है मनुज.’’

किंतु मैं खुश नहीं थी. जनमजनम के इस रिश्ते में पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है, सो, पता प्राप्त कर चुपके से एक पत्र मनुज के नाम लिख कर डाल दिया. धड़कते दिल से उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी.

एक हफ्ता बीता, 2 हफ्ते बीते, यहां तक तीसरा भी बीत गया. उस के पत्र का कोई उत्तर नहीं आया. मनुज का विशाल व्यक्तित्व खोखला लगने लगा था. स्वप्न धराशायी होने लगे थे कि एक दिन कालेज से लौटी तो दरवाजे की कुंडी में 3-4 पत्रों के साथ एक गुलाबी लिफाफा था. उस का भविष्य इसी लिफाफे में कैद था. जीवन में खुशियां आने वाली हैं या अंधेरा, एक छोटा सा कागज का टुकड़ा निर्णय कर देगा. पत्र खोल कर पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी.

‘प्यारी तनु,मां आज किटी पार्टी में गई थीं. सो, बैग से चाबी निकाल कर ताला खोला. कड़कड़ाती ठंड में भी माथे पर पसीने  कीबूंदें झलक आई थीं. स्वयं को संयत करते हुए पत्र खोला. लिखा था :

तुम्हें जीवनसाथी के रूप में प्राप्त  कर मेरा जीवन धन्य हो जाएगा. तुम बिलकुल वैसी ही हो जैसी मैं ने कल्पना की थी.’

मन में अचानक अनेक प्रकार के फूल खिल उठे, सावन के बिना ही जीवन में बहार आ गई. चारों ओर सतरंगी रंग छितर कर तनमन को रंगीन बनाने लगे. मैं ने भी उन के पत्र का उत्तर दे दिया था.

2 महीने के अंदर ही वैदिक मंत्रों के मध्य अग्नि को साक्षी मान कर मेरा मनुज से विवाह हो गया. दुखसुख में जीवनभर साथ निभाने के कसमेवादों के साथ जीवन के अंतहीन पथ पर चल पड़ी. विदाई के समय मां का रोरो कर बुरा हाल था. चलते समय मनुज से बोली थीं, ‘‘बेटा, नाजुक सी छुईमुई कली है मेरी बेटी, कोई गलती हो जाए तो छोटा समझ कर माफ कर देना.’’

मेरी आंखें रो रही थीं किंतु मन नवीन आकांक्षाओं के साथ नए पथ पर छलांग मारने को आतुर था. कानपुर से फैजाबाद आते समय मनुज ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया था तथा धीरेधीरे सहला रहे थे, और मैं चाह कर भी नजरों से नजरें मिलाने में असमर्थ थी. कैसा है यह बंधन… अनजान सफर में अनजान राही के साथ अचानक तनमन का एकाकार हो जाना, प्रेम और अपनत्व नहीं, तो और क्या है.

ससुराल में खूब स्वागत हुआ. सास सौतेली थीं, किंतु उन का स्वभाव अत्यंत मोहक व मृदु लगा. कुछ ने कहा कि कमाऊ बेटा है इसीलिए उस की बहू का इतना सत्कार कर रही हैं. यह सुन कर सौम्य स्वभाव, मृदुभाषिणी सास के चेहरे पर दुख की लकीरें अवश्य आईं, किंतु क्षण भर पश्चात ही निर्विकार मूर्ति के सदृश प्रत्येक आएगए व्यक्ति की देखभाल में जुट जातीं.

ननद स्नेहा भी दिनभर भाभीभाभी कहते हुए आगेपीछे ही घूमती. कभी नाश्ते के लिए आग्रह करती तो कभी खाने के लिए. प्रत्येक आनेजाने वाले से भी परिचय करवाती. मनुज भी किसी न किसी काम के बहाने कमरे में ही ज्यादा वक्त गुजारते. मित्र कहते, ‘‘वह तो गया काम से. अभी से यह हाल है तो आगे क्या होगा?’’ मन चाहने लगा था, काश, वक्त ठहर जाए, और इसी तरह हंसीखुशी से सदा मेरा आंचल भरा रहे.

पूरे हफ्ते घूमनाफिरना लगा रहा. 2 दिनों बाद ऊटी जाने का कार्यक्रम था. देर रात्रि मनुज के अभिन्न मित्र के घर से हम खाना खा कर आए. पता नहीं ठंड लग गई या खानेपीने की अनियमितता के कारण सुबह उठी तो सांस बेहद फूलने लगी.

‘‘क्या बात है? तुम्हारी सांस कैसे फूलने लगी? क्या पहले भी ऐसा होता था?’’ मुझे तकलीफ में देख कर हैरानपरेशान मनुज ने पूछा.

‘‘मैं ने अपनी बीमारी के बारे में आप को पत्र लिखा था,’’ प्रश्न का समाधान करते हुए मैं ने कहा.

‘‘पत्र, कौन सा पत्र? तुम्हारे पत्र में बीमारी के बारे में तो जिक्र ही नहीं था.’’ लगा, पृथ्वी घूम रही है. क्या इन को मेरा पत्र नहीं मिला? मैं तो इन का पत्र प्राप्त कर यही समझती रही कि मेरी कमी के साथ ही इन्होंने मुझे स्वीकारा है. तनाव व चिंता के कारण घबराहट होने लगी थी. पर्स खोल कर दवा ली, लेकिन जानती थी रोग की तीव्रता 2-3 दिन के बाद ही कम होगी. दवा के रूप में प्रयुक्त होने वाला इनहेलर शरम व झिझक के कारण नहीं लाई थी. यदि किसी ने देख लिया और पूछ बैठा तो क्या उत्तर दूंगी.

बीमारी को ले कर इन्होंने घर सिर पर उठा लिया. इन का रौद्ररूप देख कर मैं दहल गई थी. आखिर गलती हमारी ओर से हुई थी. बीमारी को छिपाना ही भयंकर सिद्ध हुआ था. मेरा लिखा पत्र डाक एवं तार विभाग की गड़बड़ी के कारण इन तक नहीं पहुंच पाया था.

‘‘बेटा, आजकल के समय में कोई भी रोग असाध्य नहीं है. हम बहू का इलाज करवाएंगे. तुम क्यों चिंता करते हो?’’ मनुज को समझाते हुए सासससुर बोले.

विश्वासघात- भाग 1: आखिर क्यों वह विशाल से डरती थी?

लेखक- सुधा आदेश

‘‘आंटी, आप पिक्चर चलेंगी?’’ अंदर आते हुए शेफाली ने पूछा.

‘‘पिक्चर…’’

‘‘हां आंटी, नावल्टी में ‘परिणीता’ लगी है.’’

‘‘न बेटा, तुम दोनों ही देख आओ. तुम दोनों के साथ मैं बूढ़ी कहां जाऊंगी,’’ कहते हुए अचानक नमिता की आंखों में वह दिन तिर आया जब विशाल के मना करने के बावजूद बहू ईशा और बेटे विभव को पिक्चर जाते देख वह भी उन के साथ पिक्चर जाने की जिद कर बैठी थीं.

उन की पेशकश सुन कर बहू तो कुछ नहीं बोली पर बेटा बोला, ‘मां, तुम कहां जाओगी, हमारे साथ मेरे एक दोस्त की फैमिली भी जा रही है…वहां से हम सब खाना खा कर लौटेंगे.’

विभव के मना करने पर वह तिलमिला उठी थीं पर विशाल के डर से कुछ कह नहीं पाईं क्योंकि उन्हें व्यर्थ की तकरार बिलकुल भी पसंद नहीं थी. बच्चों के जाने के बाद अपने मन का क्रोध विशाल पर उगला तो वह शांत स्वर में बोले, ‘नमिता, गलती तुम्हारी है, अब बच्चे बडे़ हो गए हैं, उन की अपनी जिंदगी है फिर तुम क्यों बेवजह छोटे बच्चों की तरह उन की जिंदगी में हमेशा दखलंदाजी करती रहती हो. तुम्हें पिक्चर देखनी ही है तो हम दोनों किसी और दिन जा कर देख आएंगे.’

विशाल की बात सुन कर वह चुप हो गई थीं…पर दोस्त के लिए बेटे द्वारा नकारे जाने का दंश बारबार चुभ कर उन्हें पीड़ा पहुंचा रहा था. फिर लगा कि विशाल सच ही कह रहे हैं…कल तक उंगली पकड़ कर चलने वाले बच्चे अब सचमुच बडे़ हो गए हैं और उस में बच्चों जैसी जिद पता नहीं क्यों आती जा रही है. उस की सास अकसर कहा करती थीं कि बच्चेबूढे़ एक समान होते हैं लेकिन तब वह इस उक्ति का मजाक बनाया करती थी पर अब वह स्वयं भी जानेअनजाने उन्हीं की तरह बरताव करने लगी है.

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यह वही विभव था जिसे बचपन में अगर कुछ खरीदना होता या पिक्चर जाना होता तो खुद पापा से कहने के बजाय उन से सिफारिश करवाता था. सच, समय के साथ सब कितना बदलता जाता है…अब तो उसे उन का साथ भी अच्छा नहीं लगता है क्योंकि अब वह उस की नजरों में ओल्ड फैशन हो गई हैं, जिसे आज के जमाने के तौरतरीके नहीं आते, जबकि वह अपने समय में पार्टियों की जान हुआ करती थीं. लोग उन की जिंदादिली के कायल थे.

‘‘आंटी किस सोच में डूब गईं… प्लीज, चलिए न, ‘परिणीता’ शरतचंद्र के उपन्यास पर आधारित अच्छी मूवी है…आप को अवश्य पसंद आएगी,’’ आग्रह करते हुए शेफाली ने कहा.

शेफाली की आवाज सुन कर नमिता अतीत से वर्तमान में लौट आईं. शरतचंद्र उन के प्रिय लेखक थे. उन्होंने अशोक कुमार और मीना कुमारी की पुरानी ‘परिणीता’ भी देखी थी, उपन्यास भी पढ़ा था फिर भी शेफाली के आग्रह पर पुन: उस पिक्चर को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाईं तथा उस का आग्रह स्वीकार कर लिया. उन की सहमति पा कर शेफाली उन्हें तैयार होने का निर्देश देती हुई स्वयं भी तैयार होने चली गई.

विशाल अपने एक नजदीकी मित्र के बेटे के विवाह में गए थे. जाना तो वह भी चाहती थी पर उसी समय यहां पर उन की सहेली की बेटी का विवाह पड़ गया अत: विशाल ने कहा कि मैं वहां हो कर आता हूं, तुम यहां सम्मिलित हो जाओ. कम से कम किसी को शिकायत का मौका तो न मिले. वैसे भी उन्होंने हमारे सभी बच्चों के विवाह में आ कर हमारा मान बढ़ाया था, इसीलिए दोनों जगह जाना जरूरी था.

विशाल के न होने के कारण वह अकेली बोर होतीं या व्यर्थ के धारावाहिकों में दिमाग खपातीं, पर अब इस उम्र में समय काटने के लिए इनसान करे भी तो क्या करे…न चाहते हुए टेलीविजन देखना एक मजबूरी सी बन गई है या कहिए मनोरंजन का एक सस्ता और सुलभ साधन यही रह गया है. ऐसी मनोस्थिति में जी रही नमिता के लिए शेफाली का आग्रह सुकून दे गया तथा थोडे़ इनकार के बाद स्वीकर कर ही लिया.

वैसे भी उन की जिंदगी ठहर सी गई थी. 4 बच्चों के रहते वे एकाकी जिंदगी जी रहे हैं…एक बेटा शैलेष और बेटी निशा विदेश में हैं तथा 2 बच्चे विभव और कविता यहां मुंबई और दिल्ली में हैं. 2 बार वे विदेश जा कर शैलेष और निशा के पास रह भी आए थे लेकिन वहां की भागदौड़ वाली जिंदगी उन्हें रास नहीं आई थी. विदेश की बात तो छोडि़ए, अब तो मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों का भी यही हाल है. वहां भी पूरे दिन अकेले रहना पड़ता था. आजकल तो जब तक पतिपत्नी दोनों न कमाएं तब तक किसी का काम ही नहीं चलता…भले ही बच्चों को आया के भरोसे या क्रेच में छोड़ना पडे़.

एक उन का समय था जब बच्चों के लिए मांबाप अपना पूरा जीवन ही अर्पित कर देते थे…पर आजकल तो युवाओं के लिए अपना कैरियर ही मुख्य है…मातापिता की बात तो छोडि़ए कभीकभी तो उन्हें लगता है आज की पीढ़ी को अपने बच्चों की परवा भी नहीं है…पैसों से वे उन्हें सारी दुनिया खरीद कर तो देना चाहते हैं पर उन के पास बैठ कर, प्यार के दो मीठे बोल के लिए समय नहीं है.

बच्चों के पास मन नहीं लगा तो वे लौट कर अपने घर चले आए. विशाल ने इस घर को बनवाने के लिए जब लोन लिया था तब नमिता ने यह कह कर विरोध किया था कि क्यों पैसा बरबाद कर रहे हो, बुढ़ापे में अकेले थोडे़ ही रहेंगे, 4 बच्चे हैं, वे भी हमें अकेले थोडे़ ही रहने देंगे पर पिछले 4 साल इधरउधर भटक कर आखिर उन्होंने अकेले रहने का फैसला कर ही लिया. कभी बेमन से बनवाया गया घर अचानक बहुत अच्छा लगने लगा था.

अकेलेपन की विभीषिका से बचने के लिए अभी 3 महीने पहले ही उन्होंने घर का एक हिस्सा किराए पर दे दिया था…शशांक और शेफाली अच्छे सुसंस्कृत लगे, उन का एक छोटा बच्चा था…इस शहर में नएनए आये थे, शशांक एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. उन्हें घर की जरूरत थी और विशाल और नमिता को अच्छे पड़ोसी की, अत: रख लिया.

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अभी उन्हें आए हुए हफ्ता भर भी नहीं हुआ था कि एक दिन शेफाली आ कर उन से कहने लगी कि ‘आंटी, अगर आप को कोई तकलीफ न हो तो बब्बू को आप के पास छोड़ जाऊं, कुछ जरूरी काम से जाना है, जल्दी ही आ जाएंगे.’

उस का आग्रह देख कर पता नहीं क्यों वह मना नहीं कर पाईं…उस बच्चे के साथ 2 घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. इस बीच न तो वह रोया न ही उस ने विशेष परेशान किया. नमिता ने उस के सामने अपने पोते के छोडे़ हुए खिलौने डाल दिए थे, उन से ही बस खेलता रहा. उस के साथ खेलते और बातें करते हुए उन्हेें अपने पोते विक्की की याद आ गई. वह भी लगभग इसी उम्र का था…उस बच्चे में वह अपने पोते को ढूंढ़ने लगीं.

उस दिन के बाद तो नित्य का क्रम बन गया, जिस दिन वह नहीं आता, नमिता आवाज दे कर उसे बुला लेतीं…बच्चा उन्हें दादी कहता तो उन का मन भावविभोर हो उठता था.

धीरेधीरे शेफाली भी उन के साथ सहज होने लगी थी. कभी कोई अच्छी सब्जी बनाती तो आग्रहपूर्वक दे जाती. उन्हें अपने पैरों में दवा या तेल मलते देखती तो खुद लगा देती, कभीकभी उन के सिर की मालिश भी कर दिया करती थी…कभीकभी तो उन्हें लगता, इतना स्नेह तो उन्हें अपने बहूबेटों से भी नहीं मिला, कभी वे उन के नजदीक आए भी तो सिर्फ इतना जानने के लिए कि उन के पास कितना पैसा है तथा कितना उन्हें हिस्सा मिलेगा.

शशांक भी आफिस जाते समय उन का हालचाल पूछ कर जाता…बिजली, पानी और टेलीफोन का बिल वही जमा करा दिया करता था. यहां तक कि बाजार जाते हुए भी अकसर उन से पूछने आता कि उन्हें कुछ मंगाना तो नहीं है.

उन के रहने से उन की काफी समस्याएं हल हो गई थीं. कभीकभी नमिता को लगता कि अपने बच्चों का सुख तो उन्हें मिला नहीं चलो, दूसरे की औलाद जो सुख दे रही है उसी से झोली भर लो.

विशाल ने उन्हें कई बार चेताया कि किसी पर इतना विश्वास करना ठीक नहीं है पर वह उन को यह कह कर चुप करा देतीं कि आदमी की पहचान उसे भी है. ये संभ्रांत और सुशील हैं. अच्छे परिवार से हैं, अच्छे संस्कार मिले हैं वरना आज के समय में कोई किसी का इतना ध्यान नहीं रखता.

‘‘आंटीजी, आप तैयार हो गईं…ये आटो ले आए हैं,’’ शेफाली की आवाज आई.

सहारा – पार्ट 3

‘अर्चना डियर, तुम बेकार में भावुक हो रही हो. बीती बातों पर खाक डालो. मुझे तुम्हारी पीड़ा का एहसास है. दूसरी तरफ मेरे बूढ़े मांबाप के प्रति भी मेरा कुछ कर्तव्य है. वे मुझ से एक ही चीज मांग रहे थे, इस घर को एक वारिस, इस वंश को एक कुलदीपक.’

‘तो कर लो दूसरी शादी, ले आओ दूसरी पत्नी, पर इतना बताए देती हूं कि मैं इस घर में एक भी पल नहीं रुकूंगी,’ अर्चना भभक कर बोली.

‘अर्चना…’

‘मैं इतनी महान नहीं हूं कि तुम्हारी बांहों में दूसरी स्त्री को देख कर चुप रह जाऊं. मैं सौतिया डाह से जल मरूंगी. नहीं रजनीश, मैं तुम्हें किसी के साथ बांटने के लिए हरगिज तैयार नहीं.’

‘अर्चना, इतना तैश में न आओ. जरा ठंडे दिमाग से सोचो. यह दूसरा ब्याह महज एक समझौता होगा. यह सब बिना विवाह किए भी हो सकता है पर…’

‘नहीं, मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी. हर बात में तुम्हारी नहीं चलेगी. आज तक मैं तुम्हारे इशारों पर नाचती रही. तुम ने अबार्शन को कहा, सो मैं ने करा दिया. तुम ने यह बात अपने मातापिता से गुप्त रखी, मैं राजी हुई. तुम क्या जानो कि तुम्हारी वजह से मुझे कितने ताने सहने पड़ रहे हैं. बांझ…आदि विशेषणों से मुझे नवाजा जाता है. तुम्हारी मां ने तो एक दिन यह भी कह दिया कि सवेरेसवेरे बांझ का मुंह देखो तो पूरा दिन बुरा गुजरता है. नहीं रजनीश, मैं ने बहुत सहा, अब नहीं सहूंगी.’

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‘अर्चना, मुझे समझने की कोशिश करो.’

‘समझ लिया, जितना समझना था. तुम लोगों की कूटनीति में मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जैसे गायगोरू के सूखने पर उस की उपयोगिता नहीं रहती उसी तरह मुझे बांझ करार दे कर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका जा रहा है. लेकिन मुझे भी तुम से एक सवाल करना है…’

‘क्या?’ रजनीश बीच में ही बोल पड़ा.

‘समझ लो तुम मेें कोई कमी होती और मैं भी यही कदम उठाती तो?’

‘अर्चना, यह कैसा बेहूदा सवाल है?’

‘देखा…कैसे तिलमिला गए. मेरी बात कैसी कड़वी लगी.’

रजनीश मुंह फेर कर सोने का उपक्रम करने लगा. उस रात दोनों के दिल में जो दरार पड़ी वह दिनोंदिन चौड़ी होती गई.

रजनीश ने दरवाजे की घंटी बजाई तो एक सजीले युवक ने द्वार खोला.

‘‘अर्चनाजी हैं?’’ रजनीश ने पूछा.

‘‘जी हां, हैं, आप…आइए, बैठिए, मैं उन्हें बुलाता हूं.’’

अर्चना ने कमरे में प्रवेश किया. उस के हाथ में ट्रे थी.

‘‘आओ रजनीश. मैं तुम्हारे लिए काफी बना रही थी. तुम्हें काफी बहुत प्रिय है न,’’ कह कर वह उसे प्याला थमा कर बोली, ‘‘और सुनाओ, क्या हाल हैं तुम्हारे? अम्मां व पिताजी कैसे हैं?’’

‘‘उन्हें गुजरे तो एक अरसा हो गया.’’

‘‘अरे,’’ अर्चना ने खेदपूर्वक कहा, ‘‘मुझे पता ही न चला.’’

‘‘हां, तलाक के बाद तुम ने बिलकुल नाता तोड़ लिया. खैर, तुम तो जानती ही हो कि मैं ने मोहिनी से शादी कर ली. और यह नियति की विडंबना देखो, हम आज भी निसंतान हैं.’’

‘‘ओह,’’ अर्चना के मुंह से निकला.

‘‘हां, अम्मां को तो इस बात से इतना सदमा पहुंचा कि उन्होंने खाट पकड़ ली. उन के निधन के बाद पिताजी भी चल बसे. लगता है हमें तुम्हारी हाय लग गई.’’

‘‘छि:, ऐसा न कहो रजनीश, जो होना होता है वह हो कर ही रहता है. और शादी आजकल जन्म भर का बंधन कहां होती है? जब तक निभती है निभाते हैं, बाद में अलग हो जाते हैं.’’

‘‘लेकिन हम दोनों एकदूसरे के कितने करीब थे. एक मन दो प्राण थे. कितना साहचर्य, सामंजस्य था हम में. कभी सपने में भी न सोचा था कि हम एकदूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे. और आज मैं मोहिनी से बंध कर एक नीरस, बेमानी ज्ंिदगी बिता रहा हूं. हम दोनों में कोई तालमेल नहीं. अगर जीवनसाथी मनमुताबिक न हो तो जिंदगी जहर हो जाती है.

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‘‘खैर छोड़ो, मैं भी कहां का रोना ले बैठा. तुम अपनी सुनाओ. यह बताओ, वह युवक कौन था जिस ने दरवाजा खोला?’’

यह सुन कर अर्चना मुसकरा कर बोली, ‘‘वह मेरा बेटा है.’’

‘‘ओह, तो तुम ने भी दूसरी शादी कर ली.’’

‘‘नहीं, मैं ने शादी नहीं की, मैं ने तो केवल उसे गोद लिया है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, रजनीश, यह वही बच्चा दीपू है, अनाथाश्रम वाला. तुम से तलाक ले कर मैं दिल्ली गई जहां मेरा परिवार रहता था. एक नौकरी कर ली ताकि उन पर बोझ न बनूं, पर तुम तो जानते हो कि एक अकेली औरत को यह समाज किस निगाह से देखता है.

‘‘पुरुषों की भूखी नजरें मुझ पर गड़ी रहतीं. स्त्रियों की शंकित नजरें मेरा पीछा करतीं. कई मर्दों ने करीब आने की कोशिश की. कई ने मुझे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, पर मैं उन सब से बचती रही. 1-2 ने विवाह का प्रलोभन भी दिया, पर जहां मन न मिले वहां केवल सहारे की खातिर पुरुष की अंकशायिनी बनना मुझे मंजूर न था.

‘‘इस शहर में आ कर अपना अकेलापन मुझे सालने लगा. नियति की बात देखो, अनाथाश्रम में दीपू मानो मेरी ही प्रतीक्षा कर रहा था. इस ने मेरे हृदय के रिक्त स्थान को भर दिया. इस के लालनपालन में लग कर जीवन को एक गति मिली, एक ध्येय मिला. 15 साल हम ने एकदूसरे के सहारे काट दिए. इस आशा में हूं कि यह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यदि नहीं भी बना तो कोई गम नहीं, कोई गिला नहीं,’’ कहती हुई अर्चना हलके से मुसकरा दी.

Manohar Kahaniya: पति पर पहरा

सौजन्य- मनोहर कहानियां

कोई भी महिला इस बात को हरगिज बरदाश्त नहीं कर सकती कि उस के पति के किसी और महिला से संबंध हों. दिल्ली की रीना गुलिया को जब पता चला कि उस के पति नवीन गुलिया का किसी लड़की से चक्कर चल रहा है, तब वह उस पर वीडियो कालिंग कर के नजर रखने लगी.

रीना गुलिया को पिछले 5 महीने से लगने लगा था कि उस के ग्लैमर और खूबसूरती में कमी आ गई है.

वह एक बच्चे की मां थी और पति नवीन गुलिया केबल कारोबारी. पति पहले की तरह अब उस की तारीफ नहीं करता था और न ही उस को कहीं घुमानेफिराने ले कर जाने की बातें ही करता था.

कनाट प्लेस में कैंडल डिनर और टूरिस्ट प्लेस के लिए डेटिंग तो बीते जमाने की बातें हो चुकी थीं. हर बात पर उसे झिड़की सुनने को मिलती थी. वह उस के प्यार में आई नीरसता और व्यवहार के रूखेपन से चिंतित होने लगी थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस में इस तरह का बदलाव क्यों और कैसे आ गया है.

नवीन के स्वभाव में आए अचानक फर्क से रीना का चिंतित होना स्वाभाविक था. पहले तो उस ने सोचा कि शायद ऐसा लंबे समय से लौकडाउन के बाद कारोबार में बिजी होने की वजह से होगा, किंतु एक दिन नवीन को चार्मिंग फेस के साथ फोन पर बातें करते सुना. फोन पर लंबी बातचीत करने पर रीना को बेहद आश्चर्य हुआ.

रीना ने अपने सिक्स्थ सेंस से इतना तो अंदाजा लगा ही लिया था कि नवीन की जरूर किसी लड़की से बातें हो रही होंगी. उस के बारे में सीधेसीधे पूछने के बजाय उस ने उस पर निगरानी शुरू कर दी.

रीना का शक सही निकला. जल्द ही उसे पता चल गया कि नवीन किसी भारती नाम की लड़की से बातें करता है. फिर क्या था, रीना का पति को अंकुश में रखने का सिलसिला शुरू हो गया.

एक दिन जब पति घर से बाहर गया हुआ था तो रीना ने शाम के समय उसे वीडियो काल कर के पूछा, ‘‘नवीन तुम कहां हो?’’

‘‘गजब का सवाल करती हो. वीडियो काल किया है तो अंदाजा लगा लो. वैसे दिखाता हूं… देखो मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन का मेनगेट दिखा?’’ कहते हुए नवीन ने मोबाइल कैमरे को मेट्रो स्टेशन की तरफ घुमा दिया.

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‘‘अरे…अरे, तुम तो नाराज हो गए. दरअसल, मुझे कालकाजी मंदिर जाना था, इसलिए मैं पूछ रही थी,’’ रीना बोली.

‘‘इस बारे में सुबह ही बताना था. मैं बस पर्किंग से गाड़ी ले कर मार्केट होता हुआ पहुंच रहा हूं. वैसे भी इस समय वहां जाएंगे तो काफी जाम में फंस जाएंगे,’’ नवीन बोला.

‘‘चलो कोई बात नहीं, अगले शुक्रवार को चलते हैं.’’ रीना बोली और फोन कट

कर दिया.

नवीन बड़बड़ाने लगा, ‘‘…पता नहीं इसे आजकल क्या हो गया है. बातबात पर वीडियो काल करती रहती है. मेरी भी कोई प्राइवेसी है या नहीं?’’

नवीन थोड़े समय में ही घर आ गया था. साथ में 3 बर्गर भी लाया था. उस का 7 वर्षीय बेटा बोल पड़ा, ‘‘पिज्जा नहीं लाए? उस के साथ कोका कोला भी मिलता है.’’

नवीन का चल रहा था भारती से चक्कर

नवीन कुछ बोलने को ही था कि उस का फोन आ गया. उस ने झट से काल रिसीव किए बगैर काट दिया. क्योंकि फोन भारती का ही था. अपने हिस्से का एक बर्गर लिया और वह छत पर चला गया.

छत पर पहुंच कर नवीन ने भारती को फोन मिलाया, ‘‘हां, हैलो, बताओ मेरी जान. कैसे फोन किया? तुम्हें मैं ने कहा है कि मुझे काल मत किया करो, मैसेज भेज दो. मैं खुद ही काल कर लूंगा.’’

‘‘अरे नवीन, मैं ने तुम्हें एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था. मैं संडे को देहरादून जा रही हूं. साथ चलोगे क्या?’’ भारती बोली.

‘‘संडे को यानी परसों. देखता हूं… तुम्हारे लिए तो समय निकालना ही पड़ेगा. रीना से कोई नया झूठ भी बोलना पड़ेगा,’’ नवीन

ने कहा.

‘‘झूठ नहीं, बहाना बनाना पड़ेगा.’’ कहती हुई भारती हंस पड़ी. नवीन भी हंस पड़ा और बर्गर की एक बाइट ले कर चबाने लगा.

‘‘तुम कुछ खा रह हो न! वह भी अकेलेअकेले?’’ भारती मुंह चलाने की आवाज सुन कर बोली.

‘‘…एक मिनट होल्ड करना, रीना की काल आ रही है.’’ कहते हुए नवीन ने भारती का फोन होल्ड पर कर दिया.

‘‘एक मिनट चैन से नहीं रहते देती है…’’ बड़बड़ाते हुए नवीन ने पत्नी की काल रिसीव की, ‘‘हां, बोलो… क्या चाय बन गई है. मैं अभी आ रहा हूं नीचे.’’ और फिर नवीन ने भारती के काल को दोबारा औन कर उस से सौरी बोला. इसी के साथ देहरादून चलने का वादा भी किया.

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‘‘किस का फोन था, जो तुम उस के लिए छत पर चले गए?’’ रीना सेंटर टेबल पर चाय रखती हुई बोली.

‘‘औफिस के किसी आदमी का फोन था, मुझे संडे को देहरादून जाना पड़ेगा.’’ नवीन ने झूठ बोला.

‘‘देहरादूनऽऽ, रास्ते में तो हरिद्वार, ऋषिकेश आएगा न? मैं भी चलूं क्या?’’ रीना चहकते हुए बोली.

‘‘नहींनहीं, मुझे अकेले जाना होगा, फैमिली के साथ नहीं.’’ नवीन ने उसे डपटते हुए कहा.

इतना कहना था कि रीना बिफरती हुई कहने लगी, ‘‘मुझे कहीं नहीं ले जाते हो, खुद घूमते रहते हो. मैं यहां घर में पड़ीपड़ी सड़ती रहती हूं. खुद तो मौजमस्ती करते हो. मैं सब जानती हूं कि तुम मुझे क्यों नहीं ले जाना चाहते…’’

पत्नी के सवालों से चिढ़ जाता था नवीन

नवीन और रीना के बीच की यह नोंकझोंक आए दिन की हो गई थी. नवीन बातबात पर रीना से उलझ जाता था, उस के कई उलझाने वाले शिकायती सवालों के संतुष्ट करने लायक जवाब नहीं दे पाता था.

वह जब भी अपना बचाव करने लगता, तब तूतूमैंमैं की नौबत आ जाती थी. ढाई-3 महीने से तो रीना कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गई थी. बातबात पर सवाल करने लगी थी. उसे हमेशा लगता था कि नवीन उस से बहुत सारी बातें छिपा रहा है. हालांकि वह अब कंफर्म हो चुकी थी कि नवीन के किसी भारती नाम की लड़की के साथ संबंध हैं.

वह नवीन को उस का नाम ले कर ताने भी मारने लगी थी. नवीन उस की बातों से जितना परेशान रहता था, उस से कहीं अधिक उस के बाहर रहने पर वीडियो कालिंग से तंग आ गया था. इस तरह दोनों की ही जिंदगी भारी तनाव में गुजर रही थी.

बात 18 नवंबर, 2021 की है. मालवीय नगर निवासी नवीन गुलिया शाम के करीब 5 बजे अपनी रक्तरंजित पत्नी रीना गुलिया को ले कर शेख सराय स्थित पीएसआरआई अस्पताल पहुंचा था. डाक्टर को मरीज की हालत देखते ही अपराध का मामला लगा और उन्होंने तत्काल मालवीय नगर थाने में इस की सूचना दे दी थी.

सूचना के बाद अस्पताल पहुंची पुलिस टीम को पता चला कि नवीन की 33 वर्षीय पत्नी रीना गुलिया बेहद जख्मी है. उस की किसी ने चाकुओं से गोद कर सुनियोजित ढंग से हत्या करने की कोशिश की है.

उपचार के सिलसिले में डाक्टर को शरीर पर चाकू के अनेक निशान मिले थे. उन्हें गिनना शुरू किया तब वह भी दंग रह गए. शरीर पर कुल 17 वार थे. ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने ताबड़तोड़ चाकू से गोद डाला है. डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.

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पूछताछ में नवीन ने घटना के दिन के बारे में बताया कि वह दोपहर करीब ढाई बजे

अपने बेटे के साथ डिफेंस कालोनी में एक डाक्टर के पास गया था. उस वक्त रीना घर पर अकेली थी.

डाक्टर से मिलने के बाद उस ने अपने बेटे के लिए खरीदारी की. फिर वह बेटे को शिव मंदिर बांध रोड के पास नाई की दुकान पर छोड़ कर कालकाजी स्थित अपने औफिस चला गया था.

वहां पर उस ने नाई को ही फोन कर के कह दिया कि वह औफिस में व्यस्त है इसलिए बेटे के बाल काटने के बाद उसे घर भिजवा दे.

वह नाई नवीन का परिचित था, इसलिए उस ने अपने एक कर्मचारी के साथ बेटे को घर भिजवा दिया. घर पहुंचने पर रीना घर में खून से लथपथ पड़ी मिली. कर्मचारी ने यह बात नाई को बता दी.

तब नाई ने शाम करीब पौने 5 बजे नवीन के मोबाइल पर फोन कर बताया कि उन की पत्नी खून से लथपथ पड़ी है और उसे चाकू लगे हैं. यह सुन कर नवीन तुरंत अपने घर पहुंचा और रीना को पीएसआरआई अस्पताल ले गया.

नवीन के बयान पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302, 449, 201,120बी और 34 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि रीना को 16-17 बार चाकू मारा गया है. मामले को सुलझाने के लिए एसीपी अरुण चौहान की देखरेख और एसएचओ कुमारकांत मिश्रा के नेतृत्व में हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए विशेष तरीके से जांचपड़ताल और पूछताछ की जाने लगी.

नवीन से की गई प्रारंभिक पूछताछ से पुलिस संतुष्ट नहीं हुई थी, इसलिए पुलिस ने नवीन से दोबारा पूछताछ की.

इस वारदात की सूचना डीसीपी बेनितो मोरिया जयकर को भी दे दी गई. तब डीसीपी ने इस वारदात की जांच के लिए थानाप्रभारी कुमारकांत मिश्रा के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई गई थी. टीम में इंसपेक्टर पंकज कुमार, एसआई संदीप कुमार आदि को शामिल किया गया.

घर पर मिले खून के निशान

घटनास्थल पर पहुंची पुलिस टीम के साथ नवीन भी था. वह पत्नी की मौत पर विलाप करने लगा था. वहीं उस का बेटा भी ‘मम्मीमम्मी’ रट लगा कर रोए जा रहा था. पुलिस ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए उस दिन की पूरी गतिविधियों की जानकारी ली. इस से पहले ड्राइंगरूम समेत पूरे मकान का मुआयना किया.

घर में फर्श पर खून के बड़ेबड़े धब्बे दिखाई दिए. उन्हें देख कर कोई भी सहज अंदाजा लगा सकता था कि हत्या की पूरी वारदात ड्राइंगरूम में ही हुई होगी.

हत्यारे ने उसे वहां से दूसरे कमरे में या कहीं और भागने तक का मौका ही नहीं दिया होगा. बाकी कमरों में सब कुछ व्यवस्थित था. लूटपाट जैसी कोई बात कहीं से भी नजर नहीं आ रही थी, सिवाय कुछ सामान बिखरने के.

पुलिस टीम ने जांच के दौरान सीसीटीवी फुटेज की जांच के अलावा पड़ोसियों से भी पूछताछ की. जांच के दौरान सीसीटीवी की एक फुटेज मिली, जिस में 2 संदिग्ध व्यक्ति रीना के घर में जाते हुए दिखाई पड़े. कुछ देर बाद घर से 3 लोग बाहर आते दिखाई पड़े.

इस के अलावा, सीसीटीवी फुटेज की जांच करने पर स्कूटी सवार तीनों संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान पंपोश एनक्लेव, कालकाजी निवासी के तौर पर हुई.

जांच के दौरान पुलिस को रीना के पति नवीन पर भी शक और गहरा हो गया. फिर नवीन के मोबाइल नंबर की जांच की गई. उस से पता चला कि वह एक नंबर पर लगातार बातचीत कर रहा है. वह नंबर गोविंदपुरी में रहने वाली एक महिला का निकला.

नवीन के मोबाइल फोन को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. उस के नंबर की काल डिटेल्स निकाली गई. वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक को खंगाला गया. उस से पता चला कि वह भारती नाम की महिला से काफी लंबी बातें करता था.

भारती के बारे में पूछने पर नवीन ने स्वीकार कर लिया कि 2 साल पहले इंस्टाग्राम पर उस की भारती से दोस्ती हुई थी. वह गोविंदपुरी की रहने वाली है.

दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. वे दोनों किसी तरह समय निकाल कर हर रोज एक बार मिल भी लिया करते थे. उन का आपसी प्रेम धीरेधीरे परवान चढ़ चुका था. 2-3 बार दोनों साथसाथ शहर से बाहर भी जा चुके थे.

इस की गवाही इंस्टाग्राम और वाट्सऐप पर उन की पोस्ट की गई तसवीरें दे रही थीं. कुछ को तो उन्होंने यादगार के तौर पर रखा हुआ था, जबकि कुछ को डिलीट करने की कोशिश की गई थी.

पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि रीना की हत्या की जड़ निश्चित तौर पर भारती और नवीन का प्रेम संबंध हो सकता है.

सख्ती से की गई पूछताछ में टूट गया नवीन

उस के बाद पुलिस नवीन से और भी सख्ती से पूछताछ करने लगी. साथ ही पुलिस ने तर्क दिया कि प्रेम संबंध की खातिर उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है, तो क्या अब प्रेमिका को भी खोना चाहता है? उस पर बच्चे के पालनपोषण की भी जिम्मेदारी है. अगर उस ने सब कुछ सचसच बता दिया तो उस के गुनाह को कम किया जा सकता है.

यह बात नवीन को पसंद आ गई और वह पुलिस को सब कुछ बताने के लिए राजी हो गया. नवीन ने बताया कि उस के भारती से प्रेम संबंध के बारे पता चलने पर रीना बेहद परेशान रहने लगी थी.

उस ने खुल कर विरोध नहीं जताया, लेकिन उस के लोकेशन के बारे जानने की कोशिश करने लगी. इसलिए वह हमेशा वीडियो काल से ही बात करती थी.

इस बात से उसे परेशानी होती थी. उसे लगने लगा था कि उस की अपनी प्राइवेसी छिन गई है. इसी कारण उस की कई बार रीना से बहस और लड़ाईझगड़े भी होने लगे थे. वह रीना की लोकेशन जानने की आदत से तंग आ गया था. एक दिन ऊब कर उस ने पत्नी की हत्या की योजना बना ली.

नवीन ने मालवीय नगर के ही रहने वाले राहुल नाम के बदमाश को 5 लाख रुपए में पत्नी की हत्या की सुपारी दे दी. राहुल ने अपने 2 दोस्तों चंदू और सोनू को योजना में शामिल कर लिया.

घटना के दिन हत्यारों को घर का पता दे कर नवीन खुद अपने औफिस चला गया. इसे उस ने बड़े ही सुनियोजित तरीके से किया. पहले उन्हें अपने घर की फोटो वाट्सऐप पर भेज दी थी. साथ ही घर की लोकेशन भी भेजी थी. इसी के जरिए सुपारी किलर उस के फ्लैट पर पहुंचा था.

घटना के दिन 18 नवंबर, 2021 को जब रीना बाथरूम में थी, तब नवीन अपने बेटे को होम्योपैथी डाक्टर के यहां दिखाने के बहाने से उसे ले कर डिफेंस कालोनी जाने के लिए घर से निकला था. उस से पहले उस ने फ्लैट का दरवाजा बाहर से लौक कर दिया था.

तीनों बदमाशों ने चाकू से गोद दिया रीना को

इस की जानकारी नवीन ने राहुल नाम के बदमाश को वाट्सऐप से दे दी थी. डिफेंस कालोनी जाने के रास्ते में ही राहुल उसे मिल गया था, जिसे नवीन ने चाबी दे दी.

राहुल चाबी ले कर उस के घर पहुंचा और दरवाजे का ताला खोल कर बैडरूम में छिप गया था. अपने बैडरूम में रीना को इन बातों का जरा भी आभास नहीं हुआ.

राहुल ने बाहर का दरवाजा खुला छोड़ दिया था. थोड़ी देर में स्कूटी से राहुल के साथी चंदू और सोनू आ गए. जब वे फ्लैट में दाखिल हुए तब तक रीना ड्रांइरूम में आ गई थी. वह तीनों को वहां पा कर हक्कीबक्की रह गई. सिर्फ इतना ही पूछ पाई, ‘‘तुम लोग नए स्टाफ हो?’’

बदमाशों ने उस से आगे रीना को कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया और ताबड़तोड़ चाकुओं से उसे बुरी तरह से जख्मी कर दिया. कुछ हमले उस की गरदन पर हुए. उस की सांसें थमने के बाद तीनों स्कूटी पर बैठ कर वहां से फरार हो गए.

इसी दौरान नवीन बेटे को सैलून पर छोड़ कर अपने औफिस चला गया. वहां से नाई ने अपने एक स्टाफ हरि को सैलून से नवीन के बेटे को घर पहुंचाने को भेज दिया.

हरि घर पहुंचा, तब उस ने पाया कि घर का दरवाजा खुला था और ड्राइंगरूम में फर्श पर रीना की लाश पड़ी थी. बाद में जब नवीन घर पहुंचा तो वह पत्नी को इलाज के लिए अस्पताल ले गया.

इस हत्याकांड का खुलासा हो चुका था. नवीन की निशानदेही पर 3 हत्यारोपियों की गिरफ्तारी भी हो गई. नवीन को भी हिरासत में ले लिया गया. हत्या में इस्तेमाल चाकू व वारदात में इस्तेमाल स्कूटी बरामद कर ली. राहुल के पास से सुपारी के दिए गए 50 हजार रुपए भी बरामद कर लिए.

गिरफ्तार आरोपियों मालवीय नगर निवासी नवीन कुमार गुलिया, सोनू और राहुल को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

Manohar Kahaniya: गलतफहमी में प्यार बना शोला

सौजन्य- मनोहर कहानियां

विज्ञान और तकनीक के जमाने में बांझ औरत की कोख से बच्चे का पैदा होना कोई अजूबा नहीं रहा. लेकिन 70 साल की औरत द्वारा बच्चे को जन्म देना विज्ञान जगत के लिए भी किसी अचंभे से कम नहीं होगा. ऐसी अचरज भरी एक घटना गुजरात की है, जहां झुर्रियों से भरी चेहरे वाली औरत ने मां बन कर दुनिया की सब से अधिक उम्र में बच्चा जन्म देने वाली औरत का दरजा भी हासिल कर लिया.

जीवुबेन ने पड़ोस में रहने वाली मीराबेन को कराहते हुए आवाज लगाई. उन की आवाज सुनते ही

मीराबेन भागती हुई उन के पास आ कर बोली, ‘‘हां दादी, कोई बात है… कुछ चाहिए क्या?’’

‘‘अरे हां, बहुत दर्द हो रहा बेटा, दर्द वाली दवाई दे दो, वहां ताखे पर रखी होगी,’’ बिछावन पर लेटी जीवुबेन  बोली.

‘‘लेकिन दादी, आप को दर्द की ज्यादा दवा लेने से डाक्टर ने मना किया है. थोड़ा बरदाश्त कर लिया करो… देखो तो तुम्हारा बेटा भी मेरी बात सुन रहा है… कैसा मुसकरा रहा है…’’ मीरा समझाती हुई बोली.

‘‘अभी तक मैं तुम्हारी ही तो बात मानती आई हूं और आगे भी मान… ना… ओह! आह!!’’ जीवुबेन बोलतेबोलते कराह उठी.

‘‘ये दर्द उस दर्द के सामने कुछ भी नहीं है दादी, जो तुम 40 से अधिक सालों से बरदाश्त किए हुए थीं,’’ मीरा बोली.

‘‘तुम तो मेरी भी अम्मादादी बन रही हो. वैसे कह सही रही हो… बेऔलाद होने का दर्द कहीं अधिक बड़ा और तकलीफ देने वाला था. मगर क्या करूं, बरदाश्त नहीं हो रहा है…’’ कहती हुई जीवु करवट बदलने की कोशिश करने लगीं.

मीरा ने उन्हें सहारा दे कर उन का मुंह बगल में लेटे बच्चे की ओर कर दिया.

‘‘लो, अब बेटे को देखती रहो. सारा दर्द छूमंतर हो जाएगा.’’ कहती हुई मीरा भी सिरहाने बैठ बगल में लेटे नवजात शिशु को पुचकारने लगी.

2 दिन पहले ही जीवुबेन का सीजेरियन औपरेशन हुआ था. घर में 45 साल बाद किलकारी गूंजी थी. उन का औपरेशन परिवार के सभी सदस्यों से ले कर डाक्टर तक के लिए खास था, कारण उन की उम्र 70 साल की थी.

इस औपरेशन की सफलता से सभी खुश थे. जच्चाबच्चा दोनों सुरक्षित और स्वस्थ थे. केवल औपरेशन के जख्म हरे होने के कारण जीवुबेन को थोड़ी तकलीफ थी. सब के लिए किसी अचंभे से कम नहीं था उन का औपेरशन.

डाक्टर ने बताया था कि अधिक उम्र में औपरेशन होने से उन का जख्म भरने में समय लग सकता है. डाक्टर ने दूसरी एंटीबायोटिक दवाओं के साथसाथ दर्द की दवा भी दी थी, लेकिन दर्द की दवा ज्यादा खाने से मना करते हुए हिदायत भी दी थी. कहा था कि असनीय या तेज दर्द हो तभी वह दवा खाएं, वरना उस का असर सीधे किडनी पर पड़ेगा.

थोड़ी देर बैठने के बाद मीरा वहां से जाने को उठी, तभी जीवु के पति मालधारी आ गए. मीरा सिर पर दुपट्टा संभालती हुई बोली, ‘‘नमस्ते दादाजी.’’

‘‘कैसी है रे तू?’’ मालधारी मीरा से बोले.

‘‘अच्छी हूं, दादाजी. आप अब तो खुश हैं न?’’ मीरा बोली.

‘‘तू खुश रहने की बात बोल रही है, मैं तो इतना खुश हूं कि तुझे बता नहीं सकता… और बेटा तूने जो औलाद की मुराद पूरी करवाई है वह कभी नहीं भूलने वाला उपकार है.’’ बोलतेबोलते मालधारी भावुक हो गए.

‘‘उपकार किस बात का दादाजी, सब ऊपर वाले की मरजी से हुआ है.’’ मीरा बोली.

‘‘कुछ भी कह लो, लेकिन मेरे घर आई औलाद की खुशी बेटा तेरी ही बदौलत मिली है. जो मैं 75 साल की उम्र में बाप बन गया हूं… और देखो जीवु मुझ से कुछ ही साल तो छोटी है…‘‘ मालधारी ने कहा.

‘‘बस दादाजी, बस. मेरी तारीफ और मत करो…’’ मीरा बोली.

‘‘अरे, मैं तेरी तारीफ नहीं कर रहा हूं बल्कि मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि तू ठहरी निपट अनपढ़ औरत, फिर भी इतनी गहरी बात की जानकारी तुझे मिली कैसे? मैं तो वही सोचसोच कर अचरज में हूं.’’ मालधारी काफी दिनों तक मन में दबी जिज्ञासा को और नहीं रोक पाए.

‘‘अच्छा तो यह बात है. चलो, मैं आज बता ही देती हूं दादादी… मैं जब 2 साल पहले सूरत में काम करने गई थी, तब मुझे एक नर्सिंगहोम में काम मिला था. वहां केवल बच्चा जन्म देने वाली औरतों को ही रखा जाता था. मुझे उन की देखभाल करने की नौकरी मिली थी. वहां और भी कई नर्सें और दाई काम करती थीं. भरती औरतों को समय पर दवाइयां खिलानी होती थी, खानेपीने की देखभाल करनी थी और उन्हें घुमानेफिराने के लिए ले जाना होता था…’’

‘‘तुम भी तो वहां गए थे.’’ बीच में जीवु बोली.

‘‘लगता है, अब दर्द कम हो गया है,’’ मीरा मुसकराती हुई बोली.

‘‘हां, तुम्हारी कहानी सुन कर दर्द चला गया,’’ जीवु गहरी सांस लेती हुई बोली.

‘‘…लेकिन तुम्हें टेस्टट्यूब के बारे में किस ने बताया?’’ मालधारी ने पूछा.

‘‘अरे तुम क्या समझोगे, मैं बताती हूं न सब कि कितने तरह की जांच हुई मेरी. वैसे तुम को भी तो डाक्टर ने बताया ही होगा. तुम्हारी भी तो डाक्टर ने जांच की थी,’’ जीवु बोली.

‘‘मेरी जांच का तो कुछ पता ही नहीं चला. डाक्टर ने सिर्फ बोला कि देखता हूं… अभी कुछ कह नहीं सकता.’’ मालधारी बोले.

‘‘मैं जब मीरा के पास 2 साल पहले गई थी, तब मीरा मुझे एक दिन जहां काम करती थी अपने साथ ले गई थी. वहीं भरती औरतों से मालूम हुआ कि उस के पेट में पलने वाला बच्चा उन का है, जो खुद मांबाप नहीं बन सकते थे. उसे पालने के बदले में पैसे मिले हैं.’’ जीवु बोली.

‘‘उस से क्या हुआ?’’ मालधारी ने पूछा.

‘‘हुआ यह कि जब एक दफा उन को देखने डाक्टर आए तब उन से मीरा ने पूछ लिया कि डाक्टर साहब मेरी दादी ‘मां’ नहीं बन सकती? डाक्टर साहब मुझे देख कर मुसकराए.’’ जीवु बोली.

‘‘..और दादाजी?’’ डाक्टर साहब के मुसकराने का अर्थ मैं समझ गई थी. अगले रोज ही उन के चैंबर में दादी को ले कर चली गई थी. दादी से उन्होंने बहुत देर तक बात की. अब रहने भी दो न दादाजी, वह सब पुरानी बातें हो गईं.’’ मीरा बोली.

‘‘अरे नहीं मीरा, कैसे रहने दूं उन बातों को, जिस से मेरी इस उम्र में औलाद की मुराद पूरी हुई. इस उम्र में कोई बाप बनता है भला! …और इस उम्र में कोई आज तक किसी औरत ने बच्चे को जन्म दिया है क्या? मैं तो अब उस बारे में सब को बताना चाहता हूं… क्या कहते हैं उसे आईवीएफ. उस इलाज के बारे में उन्हें समझाना चाहता हूं, जो बच्चा जन्म के लिए औरत को ही दोषी ठहराते हैं.’’

दरअसल, गुजरात के कच्छ इलाके में रापर तालुका स्थित एक छोटे से गांव मोरा की रहने वाली जीवुबेन रबारी ने सितंबर, 2021 में शादी के 45 साल बाद आईवीएफ तकनीक की बदौलत एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया था.

उस के पति मालधारी को पिता बनने का सौभाग्य तब मिला, जब वह 75 साल के हो गए. इस कारण दोनों मीडिया में चर्चा का विषय बन गए.

बच्चे के जन्म के बाद परिवार और रिश्तेदारों में खुशी की लहर दौड़ गई. बच्चा सीजेरियन से हुआ था. उन को यह उपलब्धि आईवीएफ तकनीक के विशेषज्ञ डा. नरेश भानुशाली की देखरेख से मिली, जो सभी के लिए अचंभे से भरी हुई थी. जिस ने भी सुना, सभी जीवुबेन और मालधारी से मिलने को बेचैन हो गए.

जीवुबेन ने जब इस बारे में डा. नरेश भानुशाली से संपर्क किया था, तब उन्होंने अधिक उम्र में मां बनने की मुश्किलों को ले कर सचेत किया था. डा. भानुशाली ने एक तरह से दंपति को शुरू में तो साफतौर पर पर कहा था कि उम्र अधिक होने के कारण बच्चे को जन्म देना मुश्किल होगा, लेकिन वृद्ध दंपति ने डाक्टर पर विश्वास जताते हुए अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का हवाला दिया था. यही वजह रही कि प्रजनन का असंभव और कठिन काम संभव बन गया. यह घटना चिकित्सा जगत के लिए भी किसी चमत्कार से

कम नहीं थी. ऐसा कर जीवुबेन और मालधारी ने दुनिया भर में एक मिसाल पेश कर दी.

इसे ले कर ही मीडिया ने जीवुबेन द्वारा दुनिया में सब से अधिक उम्र में मां बनने का दावा किया.

जीवुबेन विवाह के कई सालों तक गर्भवती नहीं हो पाई थीं. उन के द्वारा की गई तमाम कोशिशें बेकार गई थीं. कई डाक्टरी इलाज भी चले थे और पतिपत्नी देवीदेवताओं के पूजापाठ से ले कर धार्मिक स्थलों की कठिन से कठिन यात्राएं तक कर चुके थे. फिर भी असफलता ही हाथ लगी थी.

नतीजा यह था कि उन्हें संतान नहीं होने का दंश सताता रहता था. उन्हें जरा सी भी उम्मीद की किरण दिखती थी, वे उस ओर दौड़ पड़ते थे. उस के उपायों और प्रयासों को आजमाने में कोई भी लापरवाही नहीं बरतते थे. एक बार उन्होंने बच्चा गोद लेने की भी सोची थी, जो उन्हें सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर अच्छा नहीं लगा.

इसी तरह से समय गुजरता गया. एक दिन उन की एक रिश्तेदार मीराबेन के माध्यम से आईवीएफ तकनीक के जरिए से नई उम्मीद जागी थी. इस बारे में उन्हें पहली बार जानकारी मिली थी.

जीवुबेन और मालधारी ने टेस्टट्यूब बच्चा और किराए की कोख के बारे में सुन तो रखा था, लेकिन उस बारे में बहुत अधिक नहीं जानते थे. मीरा की बदौलत वे डा. नरेश भानुशाली के संपर्क में आए. वह आईवीएफ तकनीक से गर्भधारण करवाने और बच्चा प्रसव के स्त्रीरोग विशेषज्ञ थे.

जीवु ने जब डा. भानुशाली को अपनी इच्छा जताई, तब वह भी सोच में पड़ गए. पहली बार में ही उन्होंने कहा कि उन की उम्र काफी अधिक हो गई है. ऐसा कहते हुए उन्होंने एक तरह से सीधेसीधे मना ही कर दिया था. समझाया था कि ज्यादा से ज्यादा 50-55 साल की माहिलाएं मेनोपाज के कारण आईवीएफ अर्थात इन विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक की मदद से गर्भधारण कर सकती हैं, लेकिन उन की उम्र 70 साल के करीब हो चुकी है. इस उम्र में इस की संभावना नहीं के बराबर रहती है.

डाक्टर द्वारा इनकार करने के बावजूद दंपति ने एक बार जांच करने का जोर दिया. दंपति के कहने पर डाक्टर ने चुनौतीपूर्ण काम के लिए तैयारी शुरू की. मालधारी जांच में स्वस्थ पाए गए. उन के स्पर्म की भी जांच हुई.

महत्त्वपूर्ण जांच जीवुबेन की होनी थी, कारण बच्चा उन्हें जन्म देना था, या फिर उन्हें किसी किराए की कोख का इंतजाम करना था. दंपति चाहते थे कि बच्चे का जन्म भी जीवुबेन की कोख से ही हो, ताकि उन के पीछे बच्चे को किसी तरह की सामाजिक या पारिवारिक उपेक्षा का दंश नहीं झेलना पड़े.

डाक्टर ने जीवुबेन की डाक्टरी जांच शुरू की. उन्होंने पाया कि शरीर के भीतरी अंग सही तरह से काम कर रहे हैं. उन में कोई कमी नहीं है सिर्फ उम्र के अनुसार उन की कोख काफी सिकुड़ चुकी है.

पहले उसे दुरुस्त करने के लिए दवाई खिलाई गईं. उसी के साथ मासिक चक्र को नियमित करने के लिए भी दवाइयां दी गईं. कुछ समय में ही उन का सिकुड़ा हुआ गर्भाशय चौड़ा हो गया. उस के बाद उन के अंडों को निषेचित कर प्रजनन की जगह बना दी गई, फिर उस में उन के पति के अलग से निकाल कर रखे गए स्पर्म को डाला गया.

इस तरह से पूरी हुई गर्भधारण की प्रक्रिया के नतीजे अच्छे आने पर डाक्टर आश्वस्त हो गए.

गर्भावस्था के 8 महीने बाद डाक्टरों से जीवुबेन का सी-सेक्शन किया, जिस से उन को पहली संतान की प्राप्ति हुई.

इस सफलता पर डा. भानुशाली ने हर्ष जताते हुए बताया कि इस में जितना योगदान उन का है, उतना ही जीवुबेन का भी है, उन की हिम्मत और नीयत काम कर गई और एकदो नहीं, पूरे 45 साल के इंतजार के बाद 70 साल की उम्र में उन की सूनी गोद भर गई.

बाझ औरत भी बन सकती है आईवीएफ तकनीक से मां

संतानहीनों के लिए वरदान साबित हुआ आईवीएफ तकनीक का चिकित्सा जगत में पूरा वैज्ञानिक नाम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन कहा जाता है. इस तकनीक की मदद से पुरुष के शुक्राणु यानी स्पर्म और महिला के अंडाणु को लैब में मिला कर उसे ऐसी महिला के गर्भाशय में डाला जाता है, जो मां बनना चाहती है.

इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए गहन चिकित्सीय सलाह की जरूरत होती है तथा इस का फायदा 5 तरह की शिकायत वालों मिल सकता है. जैसे— किसी महिला की फैलोपियन ट्यूब में ब्लौकेज हो जाना. पुरुष बांझपन यानी स्पर्म की संख्या में कमी का आना. किसी जेनेटिक बीमारी से ग्रसित होना. इनफर्टिलिटी का सही कारण का पता नहीं चलना या फिर महिला को हारमोंस विकार की समस्या से पीसीओएस की समस्या की शिकायत रहना.

इस तकनीक की सफलता भी 5 चरणों में पूरी होती है. जैसे पहले चरण में औरत के कोख को दुरुस्त किया जाता है. यह काम दवाइयों के अलावा माइनर औपरेशन से कर लिया जाता है.

दूसरे चरण में अंडे की पर्याप्त मात्रा को गर्भाशय में डाला जाता है. उस के बाद तीसरे चरण की प्रक्रिया में अंडे के साथ स्पर्म को लैब में अलग से मिला कर फर्टिलाइज करवाया जाता है. उस के बाद बच्चे की चाह रखने वाली महिला के गर्भ में डाल दिया जाता है.

कई बार इसे किसी दूसरी महिला के गर्भ में डाल कर गर्भधारण की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है. कुछ समय बाद अंतिम चरण के अनुसार महिला के गर्भावस्था की जांच की होती है.

आखिरी मंगलवार: भाग -2

 वेणी शंकर पटेल ‘ब्रज’

धर्मराज ने सपना की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘5 मंगलवार नियमित रूप से दरबार में हाजिरी लगाओ. मन की हर मुराद पूरी होगी.’’ धर्मराज ने उन्हें प्रसाद दिया और इस के बाद दूसरे भक्तों की परेशानियां सुनने लगे. अपनी सूनी गोद भरने की आस में सपना और सुभाष अब हर मंगलवार को दरबार में हाजिरी लगाने लगे. चौथे मंगलवार को धर्मराज स्वामी ने उन्हें बताया, ‘‘संतान की प्राप्ति के लिए आखिरी मंगलवार को विशेष पूजा करनी पड़ेगी. इस से तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी.’’

दरबार में रहने वाली आरती नाम की सेवादार ने सपना को बताया कि 5वें मंगलवार को रात के एकांत में स्वामीजी तांत्रिक साधना करेंगे, उस दौरान तुम्हें पूरी तरह निर्वस्त्र रहना होगा. तांत्रिक की इस साधना को कोई भी दूसरा इनसान देख नहीं सकेगा. आरती की बताई बातों से सुभाष को  तो पूरी तरह से यकीन हो गया था कि यह धर्मराज धर्म की आड़ में औरतों की मजबूरियों का फायदा उठा कर जरूर उन की आबरू से खेल रहा है. सपना को भी समझ आ रहा था कि अगले मंगलवार को यह ढोंगी बाबा उस की इज्जत से खेलने का सपना देख रहा है, मगर वह औलाद की चाह में इस तरह पागल हो गई थी कि धर्मराज के आगे कुछ भी करने को तैयार थी. वह किसी भी तरह एक बच्चा पैदा कर के समाज के मुंह पर तमाचा मारना चाहती थी.

आखिरी मंगलवार को सपना और सुभाष धर्मराज के दरबार में पहुंच गए. धर्मराज महाराज के हाथों में नारियल देते हुए सपना ने जैसे ही उन के पैर छुए, धर्मराज ने सपना को ललचाई नजरों से देख कर कहा, ‘‘संतान की प्राप्ति के लिए रात में कुछ घंटे एकांत में तंत्र साधना करनी पड़ेगी. शर्त यह है कि इस तांत्रिक अनुष्ठान को कोई देख नहीं सकता.’’

सुभाष और सपना धर्मराज की बात मानने को राजी हो गए. रात के तकरीबन 11 बज चुके थे. मंदिर में बाबा धर्मराज का एक आलीशान कमरा था, जिस में सभी आधुनिक सुखसुविधाएं मौजूद थीं. धर्मराज के सेवादारों ने सुभाष और सपना के लिए कमरे में ही भोजनपानी का इंतजाम कर दिया था और रात के 12 बजते ही धर्मराज की सेवादार आरती सपना को तांत्रिक साधना के लिए धर्मराज के कमरे में ले आई. कमरे के अंदर पहुंची सपना ने देखा कि एक लग्जरी सोफे पर धर्मराज बैठा हुआ मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा था.

सपना के अंदर पहुंचते ही बाबा ने उसे सोफे पर बैठने का इशारा किया. कुछ ही देर में आरती ने गिलास में पानी भर कर धर्मराज को दिया, जिसे उस ने कुछ मंत्र बुदबुदा कर सपना को दे दिया और आरती को बाहर जाने का इशारा किया. फिर वह पूजापाठ की तैयारी का नाटक करने लगा. कुछ ही देर में सपना ने महसूस किया कि उसे नशा छाने लगा है. इस के बाद धर्मराज के अंदर का शैतान जाग गया. उस ने सपना को सोफे से उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया और धीरेधीरे उस के हाथ सपना के जिस्म पर रेंगने लगे.

सपना पर नशे का असर इस कदर हावी था कि वह विरोध नहीं कर पा रही थी. सपना के खिले हुए बदन को देख कर धर्मराज के अंदर की हवस ज्वाला की तरह भड़क उठी. धीरेधीरे उस ने सपना को निर्वस्त्र कर दिया था. धर्मराज के शरीर में उठा हवस का तूफान जब तक शांत नहीं हुआ, तब तक वह सपना के जिस्म के साथ खेलता रहा. सपना की आंखों से जब नशे की खुमारी दूर हुई, तो उस ने अपनेआप को अधनंगी हालत में पाया. बदहवास सी बिस्तर पर पड़े अपने कपड़ों को बदन पर लपेटते हुए वह अपनेआप को ठगा सा महसूस कर रही थी. उस के करीब लेटा हुआ धर्मराज अपनी कुटिल मुसकान के साथ उस से कह रहा था, ‘‘अब तुम्हारी गोद सूनी नहीं रहेगी.’’

उस ने सपना को अपना मोबाइल फोन दिखाते हुए कहा, ‘‘हमारे बीच जोकुछ भी हुआ है, वह मोबाइल के कैमरे में कैद है. अगर तुम्हें संतान सुख हासिल करना है, तो किसी को कुछ नहीं बताओगी…’’ उस ने सपना को आगे भी उस की खिदमत में दरबार आते रहने की हिदायत भी दी. अपना सबकुछ लुटा चुकी सपना रात के तकरीबन 2 बजे धर्मराज के कमरे से बाहर निकल कर सीधे सुभाष के पास पहुंची. मन में औलाद की चाह लिए अपने दर्द को छिपाते हुए सुभाष के पूछने पर उस ने केवल यही बताया कि धर्मराज स्वामी द्वारा की गई तांत्रिक साधना सफल रही है.

एकएक दिन गिन रही सपना को अगले महीने जब समय पर माहवारी  नहीं हुई, तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उसे अपनी इज्जत लुटने के दुख से ज्यादा अपने मां बनने की खुशी थी. अगले हफ्ते जब सपना के प्रैग्नैंसी टैस्ट की रिपोर्ट पौजिटिव आई, तो सुभाष और उस की मां भी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. आसपड़ोस में धर्मराज स्वामी के प्रसाद का गुणगान चल रहा था. इधर सपना का पूरा ध्यान अपने होने वाले बच्चे की सेहत पर था, मगर धर्मराज स्वामी के दरबार से उसे फोन आने लगे थे.

धर्मराज उसे अब उस के साथ बनाए संबंधों का वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर फिर से संबंध बनाने के लिए दरबार बुला रहा था. सपना की कोख में धर्मराज का बच्चा पल रह था, इसलिए उस ने सोचा कि धर्मराज को अभी नाराज न किया जाए, मगर वह दोबारा अपना जिस्म भी उसे नहीं सौंपना चाहती थी. धर्मराज सपना को हर हाल में वापस बुला कर उस के साथ रंगरलियां मनाना चाहता था.

एक दिन धर्मराज ने सपना के मोबाइल पर वही वीडियो भेज कर धमकी दे दी कि अगर वह उस के दरबार में नहीं आई, तो इसे सोशल मीडिया पर वायरल कर देंगे. दिमाग से तेज सपना ने इस वीडियो से घबराने के बजाय इसे अपनी ढाल बना लिया. उस ने फोन कर के धर्मराज को उलटा ही धमका दिया, ‘‘मैं इस वीडियो को वायरल कर के समाज को बता दूंगी कि धर्म की आड़ में तू पाखंड की दुकान चला रहा है.’’

धर्मराज को सपना से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. सपना को दरबार बुलाने की ख्वाहिश रखने वाला धर्मराज अब सपना के फोन से घबराने लगा था. उसे यह डर सताने लगा था कि कहीं सपना उस वीडियो के जरीए उस का भांडा न फोड़ दे, इसलिए धर्मराज उस पर वीडियो को डिलीट करने का दबाव बनाने लगा. धर्मराज के चेले आएदिन उसे धमकाने लगे, तो इस बात को ले कर सपना परेशान रहने लगी, मगर वह आसानी से हार मानने वाली नहीं थी.

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साथी- भाग 1: क्या रजत और छवि अलग हुए?

रजत औफिस से घर पहुंचा, घंटी बजाई तो छवि ने दरवाजा खोल दिया. छवि पर नजर पड़ते ही रजत का मन खिन्नता से भर गया. उस ने एक उड़ती सी नजर छवि पर डाली और सीधे बैडरूम में चला गया. कपड़े बदल कर वह बाथरूम में फ्रैश हो कर निकला तो छवि कमरे में आ गई.

‘‘चलो, चायनाश्ता रख दिया है…’’ छवि कोमल स्वर में बोली. रजत और भी चिढ़ गया. चप्पलें घसीटता हुआ डाइनिंगटेबल की तरफ बढ़ गया. तब तक बच्चे भी आ गए. सब खातेपीते बातें करने लगे. बच्चों के साथ बात करतेकरते उस का मूड कुछ ठीक हो गया.

अभी वे बातें कर ही रहे थे छवि फिर उठ गई और जूठे बरतन समेटने लगी. उस ने छवि पर नजर दौड़ाई. फैला बेडौल शरीर, बढ़ा पेट, कमर में खोंसा साड़ी का पल्ला, बेतरतीब बालों को ठूंस कर बनाया जूड़ा, बेजान होता चेहरा. बच्चों के साथ बातें करतेकरते रजत का ठीक होता मूड फिर उखड़ गया.

छवि बरतन उठा कर किचन में चली गई. उस के प्रैशर कुकर, चकलाबेलन और बरतनों की खनखन ने अपना बेसुरा संगीत शुरू कर दिया था. रजत ने झुंझला कर अखबार उठाया और बाहर बरामदे में चला गया. थोड़ी देर सुबह के पढ़े बासी अखबार को दोबारा पढ़ता रहा. फिर शाम का धुंधलका छाने लगा तो दिखाई देना कम हो गया. उस ने लाइट नहीं जलाई. अंदर जाने का मन नहीं किया. कुरसी पर पीछे सिर टिका कर यादों में खो गया…

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इसी छवि को कभी रजत ने लड़कियों की भीड़ में पसंद किया था. घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर अपनाया था. उस के जेहन में वह दुबलीपतली, बड़ीबड़ी आंखों वाली सलोनी सी छवि तैर गई.

चाचा की बेटी की शादी में लखनऊ गया रजत जब लौटा तो अकेला नहीं आया. छवि का वजूद भी उस के जेहन से लिपटा साथ आ गया. बरातियों से हंसीठिठोली करती दुलहन की सहेलियों के बीच उस की नजर गोरी, लंबी, छरहरी छवि पर अटक गई.

छवि की लंबी वेणी दिल से लिपट गई. छवि के गुलाबी गाल, बड़ीबड़ी आंखों की झील सी गहराई, रसीले होंठों की चमक भुलाए न भूली. जब भी आंखें बंद करता हंसतीमुसकराती छवि उस की आंखों में उतर जाती.

रजत इंजीनियर था. बहुत अच्छी नौकरी में था. उस के पिता रिटायर्ड आर्मी औफिसर थे. बहुत अच्छेअच्छे घरों से शादी के प्रस्ताव उस के पिता के पास उस के लिए आए हुए थे. उन सब पर घर में सलाहमशवरा चल रहा था. वह खुद भी बहुत खूबसूरत था. इंजीनियरिंग कालेज में कई लड़कियां उस पर जान छिड़कती थीं, पर वह किसी की गिरफ्त में नहीं आया. रीतिका से तो उस की बहुत अच्छी दोस्ती थी. वह उसे केवल दोस्त मानता था. रीतिका ने उसे कई तरह से जताया कि वह उस से शादी करना चाहती है, पर साधारण शक्लसूरत की रीतिका उसे शादी के लिए पसंद नहीं आई.

मगर छवि अपना जादू चला चुकी थी. घर में आए सारे विवाह प्रस्तावों को नकार कर जब उस ने मां के सामने अपनी बात रखी तो मां ने चाचा को फोन कर के सारी बात बताई. फिर उन्होंने छवि के बारे में सबकुछ पता लगाया. छवि बीए पास एक सामान्य घर की लड़की थी. दूसरी जाति की भी थी. मातापिता ने रजत को बहुत समझाया कि सुंदरता ही सब कुछ नहीं होती. लड़की किसी भी तरह उस के योग्य नहीं हैं. आजकल के हिसाब से उसे ज्यादा पढ़ीलिखी भी नहीं कहा जा सकता.

‘‘बीए पास तो है… कौन सा मुझे उस से नौकरी करवानी है,’’ रजत बोला.

‘‘बात नौकरी की नहीं है बेटा… घर का रहनसहन, स्कूलिंग ये सब भी माने रखते हैं. इन सब बातों का असर इंसान के विचारों पर पड़ता है… आज समय बहुत बदल गया है. कुछ समय बाद तुझे खुद यह बात महसूस होने लगेगी. बीए तो हमारी कामवाली की बेटी भी कर रही है तो क्या तू उस से शादी कर सकता है?’’

पिता का ऐसा कहना रजत को खल गया. काम करने वाली की बेटी की तुलना छवि से करने से उस का दिल टूट गया. फिर चिढ़ कर बोला, ‘‘बाकी बातें तो सीखने की हैं… सिखाई जा सकती हैं, पर जो चीज कुदरत देती है वह पैदा नहीं की जा सकती… मेरे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी.’’

अपनी दलीलों से रजत ने मातापिता को चुप कर दिया था. आखिर मातापिता मान गए. छवि उस के जीवन में क्या आई, वह उस के रूपसौंदर्य व भोलीभाली बातों में पूरी तरह डूब गया. छवि जितनी सुंदर थी उस का स्वभाव भी उतना ही अच्छा था. सासससुर ने उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया. वे उसे बहुत प्यार करते थे.

प्यार तो रजत भी उसे दीवानों की तरह करता था. औफिस से छूटते ही सीधे घर की दौड़ लगाता. लेकिन घर आ कर देखता छवि किचन में उलझी हुई कभी ससुरजी के लिए सूप बना रही होती है, कभी सास के लिए घुटनों का तेल गरम कर रही होती है, कभी गरम पानी की थैली भर रही होती है, कभी सब्जी काट रही होती है, तो कभी उस के लिए बढि़या नाश्ता बनाने में मसरूफ होती है.

‘‘छोड़ो न छवि ये सब… मुझे ये सब नहीं चाहिए,’’  कह रजत गैस बंद कर देता, ‘‘मांपापा का काम तुम पहले निबटा लिया करो… जब मैं आऊं तो सिर्फ मेरे पास रहा करो,’’ वह उसे अपनी बांहों में कसने की कोशिश करता.

छवि कसमसा जाती, ‘‘क्याकरते हो… मां आ जाएंगी,’’ कह वह जबरन खुद को छुड़ा लेती.

‘‘तो फिर कमरे में चलो,’’ रजत शरारत करते हुए कहता.

‘‘अरे कैसे चल दूं… खाना बनाने में देर हो जाएगी,’’ वह उसे चाय का कप थमा देती, ‘‘देखो, मैं ने आप के लिए ब्रैडरोल बनाए हैं. खा कर बताओ कैसे बने हैं.’’

वह कुढ़ कर कहता, ‘‘हमारी नईनई शादी हुई है छवि… तुम समझती क्यों नहीं,’’ और वह उसे फिर पास खींच कर चूमने का प्रयास करता.

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छवि परे छिटक जाती. अपने मचलते अरमानों को काबू कर रजत पैर पटकता किचन से बाहर निकल जाता. उस का बहुत मन करता कि छवि सबकुछ उस के आने से पहले निबटा कर अच्छी तरह सजधज कर उस का इंतजार करे और उस के आने के बाद उस के पास बैठे, उस के साथ घूमने चले, फिल्म देखने चले, बाहर खाना खाने चले, आइसक्रीम खाने चले.

मगर शायद छवि की जिंदगी में इन सब बातों की प्राथमिकता नहीं थी, उस ने अपनी मां को भी ऐसे ही काम में उलझा देखा था और यही सोचती थी कि काम करने से ही सब खुश होते हैं. यहां तक कि पति भी… पतिपत्नी के बीच इस के अलावा दूसरी बातें भी हैं, जो इस से भी जरूरी हैं, पतिपत्नी के रिश्ते के लिए यह वह नहीं समझती थी.

यहां तक कि अखबार पढ़ना, टीवी पर खबरें सुनना, इन सब बातों से भी उस का कोई मतलब नहीं रहता था. उस के लिए घर और घर का काम, सासससुर की सेवा, पति की देखभाल बस यही सबकुछ था.

रजत का मन करता उस की नईनवेली बीवी उस से कभी रूठे और वह उसे मनाए या उस के नाराज होने पर वह उसे मनाए, मीठी छेड़छाड़ करे. पर धीरेधीरे उसे लगने लगा कि इस माटी की खूबसूरत गुडि़या से ऐसी बातों की उम्मीद करना बेकार है.

समय बीतता रहा. उन के 2 बच्चे भी हो गए. अब तो छवि और भी ज्यादा व्यस्त हो गई. उस के पास पलभर की भी फुरसत नहीं रहती.

वह कई बार कहता, ‘‘छवि, खाना बनाने के लिए कोई रख लो. तुम बस अपनी देखरेख में बनवा लिया करो… काम में इतनी उलझी रहती हो… मेरे लिए तो तुम्हारे पास कभी समय नहीं रहता.’’

‘‘कब समय नहीं रहता आप के लिए,’’ छवि हैरानी से कहती, ‘‘कौन सा काम नहीं करती हूं आप का?’’

‘‘छवि, काम ही तो सबकुछ नहीं होता… तुम समझती क्यों नहीं… हमारी यह उम्र लौट कर नही आएगी… बहुत सी जरूरतें होती हैं तनमन की… इन्हें तुम समझना नहीं चाहती… बिस्तर पर एक मशीन की तरह जरूरत पूरी कर के सो जाना, तो सबकुछ नहीं… इस के अलावा भी बहुत कुछ है जीवन में…’’

छवि रजत की सारी जरूरतों को समझती पर उस के मन को न समझती. वह अच्छी बहू थी, अच्छी मां थी, अच्छी पत्नी थी पर अच्छी साथी नहीं थी. और एक साथी की कमी रजत को हमेशा अकेलेपन, एक अजीब तरह की तृष्णा व भटकन से भर देती.

Manohar Kahaniya: डॉ प्रिया पर हुआ लालच का हमला

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उत्तर प्रदेश के शहर बिजनौर की साकेत कालोनी में अपने मातापिता के साथ रह रही डा. प्रिया शर्मा 29 अक्तूबर की सुबह जल्दीजल्दी घरेलू काम निपटा रही थी. इसी बीच उस की मां ने आवाज दी, ‘‘बेटी प्रिया, मैं ने पूजा कर ली है, तुम भी नहाधो लो. बाथरूम खाली है.’’

‘‘जी मम्मी, बस 2 रोटियां और सेंकनी है. पापा के लिए चाय का पानी चढ़ा दिया है. आ कर देख लेना.’’ प्रिया बोली.

‘‘और हां, देखो आज लाल रंग वाली साड़ी पहन कर ही कालेज जाना. शुक्रवार है, माता रानी का दिन. मैं ने लाल वाली साड़ी निकाल कर तुम्हारे बैड पर रख दी है.’’ प्रिया की मां बोलीं.

‘‘क्या मम्मी, तुम भी अंधविश्वास में पड़ी रहती हो. जमाना कहां से कहां चला गया और तुम लालपीली करती रहती हो.’’

‘‘अरे, तुम नहीं समझती हो बेटी. यह अंधविश्वास नहीं है, मेरा विश्वास है. आज के दिन लाल रंग के कपड़े पहनने से माता रानी की कृपा बनी रहती है और पूरा दिन शुभ रहता है.’’

‘‘कुछ नहीं होता उस से,’’ प्रिया बोली.

‘‘होता है… बहुत कुछ होता है. मातारानी की कृपा बनी रहती है. वैसे भी तुम्हारे लिए यह जरूरी है. मैं तुम्हारे रिश्तों के लिए ही कह रही हूं, ऐसा करने से तुम्हारे पति के साथ बिगड़े संबंध सुधर जाएंगे.’’ प्रिया की मां ने समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम भी न मम्मी, बात को कहां से कहां ले कर चली जाती हो. हर बात को उस के साथ जोड़ देती हो, जो नाकारानिठल्ला है.’’ प्रिया चिढ़ती हुई बोली.

‘‘अरे बेटी, ऐसा नहीं कहते. वह तुम्हारा पति है. आज नहीं तो कल कमाने लगेगा. तब सब ठीक हो जाएगा बेटी.’’

‘‘अच्छा सुनो मां, मैं आज कालेज से जल्दी लौट आऊंगी. तुम और पापा को तैयार रहना है. दीवाली की खरीदारी आज ही कर लेंगे.’’ प्रिया बोली.

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‘‘हां बेटी, धनतेरस की खरीदारी का शुभ मुहुर्त दिन में ही शुरू हो रहा है.’’ मां ने कहा.

‘‘फिर वही दकियानूसी बात. मुहूर्तवुहूर्त क्या होता है?’’ प्रिया हंसती हुई बोली.

मांबेटी के बीच इस तरह की समझनेसमझाने की बातें दिन में एकदो बार अकसर हो ही जाती थीं. प्रिया को कभी मां की नसीहतें मिलतीं तो कभी प्रिया मां की देखभाल करती हुई समय से भोजन करने और दवाई लेने के लिए समझाती.

करीब 35 वर्षीया डा. प्रिया शर्मा न केवल अपने घर में मातापिता की चहेती बनी हुई थी, बल्कि मोहल्ले में भी उस की एक खास पहचान थी. वह उत्तर प्रदेश के बिजनौर शहर में आर.बी.डी. डिग्री कालेज की प्रवक्ता जो थी. उस ने अंगरेजी विषय में पीएच.डी. की थी.

प्रवक्ता की नौकरी यूजीसी की बेहद मुश्किल परीक्षा पास करने के बाद मिली थी. 3 साल पहले ही उस की कमल शर्मा नाम के व्यक्ति से शादी हुई थी, लेकिन महीनों से वह अपने पिता गणेश दत्त शर्मा और माता रुकमणी शर्मा के साथ रह रही थी. इस की एक अलग कहानी है.

घर से निकलते ही मारी गोली

डा. प्रिया शर्मा कालेज जाने के लिए तैयार हो चुकी थी. उस ने लंच रख लिया था. खुद भी नाश्ता कर लिया था. इस से पहले डायनिंग टेबल पर पैरेंट्स के लिए सभी जरूरी चीजें रख दी थीं. उन के लिए अलगअलग प्लेटें, पानी का जग और 2 गिलास रख दिए थे. खाने का सामान भी वहीं रख दिया था. मां के लिए फल भी काट दिए थे.

सब कुछ समय से हो गया था. मांपिता को आवाज लगाती हुई दरवाजे के पास सैंडल पहन वह घर के मुख्य दरवाजे से बाहर निकल गई थी. कुछ समय के लिए घर में एकदम सन्नाटा हो गया था. प्रिया के पिता अपने कमरे से बाहर निकले थे. वह मुख्य गेट बंद करने के लिए अभी चार कदम ही चले थे कि धांय..धांय..की आवाज सुन कर चौंक पड़े.

‘‘अरे, यह तो गोली चलने की आवाज है.’’ आवाज काफी तेज थी.

ऐसा लग रहा था, मानो बहुत पास ही किसी ने गोली चलाई हो. अभी वह कुछ सोच पाते कि इतने में 2 आवाजें एक साथ सुनाई पड़ीं. एक तेज आवाज, ‘‘क्या हुआ बाहर?’’

उन की पत्नी रुकमणी की थी और दूसरी आवाज प्रिया की, ‘‘मम्मी, आह! मर गई मैं…’’ इसी के साथ किसी के गिरने की धम्म की आवाज आई. गणेशदत्त शर्मा भागेभागे दरवाजे के पास पहुंचे. सामने का दृश्य देख कर सन्न रह गए. बेटी प्रिया दरवाजे के एक ओर बन रहे मकान की तरफ औंधे मुंह बेजान गिरी हुई थी.

उस का बैग, मोबाइल फोन और लंच बौक्स का दूसरा थैला वहीं गिरा पड़ा था. उन्होंने तुरंत उसे चेहरे की ओर सीधा किया. देखा, उस के शरीर से खून तेजी से निकल रहा था. किसी ने उसे ही गोली मारी थी.

तब तक उस की मां रुकमणी भी वहां आ चुकी थी. वह प्रिया को खून से लथपथ देखते ही दहाड़ मार कर रोने लगीं. तभी थोड़ी दूर पर बाइक पर सवार 2 लोग तेजी से भागते दिखे. गोली की आवाज सुन कर आसपास के घरों से कई लोग बाहर निकल आए.

देखते ही देखते पूरे मोहल्ले में कोहराम मच गया. प्रिया के बूढ़े मातापिता के घर मातम पसर गया. आज सुबह ही दोनों ने धनतेरस और आने वाली दीवाली की तैयारियों के बारे में बात की थी.

रुकमणी ने उसे कालेज से जल्द लौट आने को कहा था. शर्मा परिवार का दुर्भाग्य देखिए कि बूढ़े मांबाप के घर से धनतेरस के दिन ही घर की लक्ष्मी चली गई.

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हालांकि इस लक्ष्मी को उन्होंने 3 साल पहले ही अपने घर से डोली में बिठा कर विदा किया था, लेकिन अब उसे 4 कंधों पर अर्थी में विदा करने की असहनीय पीड़ा का माहौल बन गया था. वही इस घर की इकलौता सहारा और समस्या समाधान में अकेली मददगार भी थी.

सुबहसुबह अफरातफरी के बने इस माहौल में पड़ोसियों की जुटी भीड़ में से किसी ने पुलिस को सूचना दे दी, तो किसी ने घायल प्रिया को तुरंत अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस बुलवा ली. तब तक इतना तो स्पष्ट हो चुका था कि प्रिया को किसी ने काफी नजदीक से गोली मारी है.

पास के निर्माणाधीन मकान की छत से 2 मजदूरों ने बाइक सवार हमलावरों को भागते हुए भी देखा था. उन्हीं मजदूरों के मुताबिक प्रिया को गोली मारने वाले बाइक पर फर्राटा भरते तेजी से निकल भागे थे.

अस्पताल में कर दिया मृत घोषित

कुछ मिनटों में ही घटनास्थल पर बिजनौर थाने की पुलिस टीम पहुंच गई थी. उसी वक्त स्थानीय अस्पताल से एक एंबुलेंस भी आ चुकी थी. उस के साथ आए डाक्टर ने प्राथमिक जांच में प्रिया को मृत घोषित कर दिया था.

फिर भी वे खानापूर्ति और दस्तावेजी काररवाई के लिए प्रिया के शव को अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगे थे. इसी क्रम में पुलिस हत्याकांड की शिनाख्त में जुट गई थी. पुलिस हत्यारे तक पहुंचने का सुराग तलाशने लगी थी.

जांच अधिकारी ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. आसपास लगे आधा दरजन से अधिक सीसीटीवी कैमरों पर निगाह गई. वे सीधे बिजनौर पुलिस मुख्यालय के कंट्रोल रूम से जुड़े हुए थे. थानाप्रभारी ने तुरंत उन कैमरों की फुटेज इकट्ठा करवाने के निर्देश साथ में मौजूद पुलिसकर्मियों को दिए.

घटनास्थल पर ही 2 मोबाइल फोन मिल गए, जिस में एक तो प्रिया का था, जबकि दूसरा किसी और का. पुलिस ने मृतका प्रिया के पिता गणेशदत्त शर्मा और मां रुकमणी शर्मा से पूछताछ की. उन्होंने उस रोज की घटना से कुछ समय पहले की ही बातें बताईं.

डा. प्रिया का पति आया शक के दायरे में

उन की उस वक्त की स्थिति को देख कर पुलिस ने विशेष पूछताछ करना सही नहीं समझा. फिर भी बातोंबातों में इतना पता चल गया कि उन्होंने एक दिन पहले ही प्रिया के पति कमल शर्मा और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करवाई थी.

डा. प्रिया शर्मा हत्याकांड बिजनौर शहर वासियों के बीच चर्चा का विषय बन गया. लोगों ने असुरक्षित माहौल के लिए सीधेसीधे पुलिस की नाकामी पर सवाल उठाए. लोगों की प्रतिक्रियाओं से बिजनौर पुलिस पर हत्यारों को पकड़ने का भारी दबाव बन गया.

त्यौहार के वक्त शहर में ऐसी सनसनीखेज वारदात से जनता में भय के साथसाथ नाराजगी भी थी. लोगों ने पुलिस प्रशासन द्वारा शहर भर में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों की खस्ताहाली पर भी सवाल उठाए. कारण उन में नब्बे फीसदी कैमरे काम ही नहीं करते थे.

ऐसी ही स्थिति उस कालोनी के सभी 11 कैमरों की भी थी. नतीजतन प्रिया हत्याकांड के घटनास्थल से वारदात के वक्त का एक भी दृश्य कैमरे में रिकौर्ड नहीं हो पाया था. साथ ही पूछताछ के दौरान कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला था.

अब पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने का एक सुराग घटनास्थल से मिला मोबाइल फोन ही थी. मीडिया में इन बातों को ले कर लगातार पुलिस प्रशासन की छीछालेदर हो रही थी. इस दबाव के चलते पुलिस ने अपनी दबिश और चैकिंग तेज कर दी थी.

हालांकि त्यौहार की वजह से पूरे शहर में हर नाकेगली पर पुलिस की चैकिंग पहले से ही चल रही थी. शहर की कोतवाली पुलिस विदुरकुटी चांदपुर रोड पर चैकिंग कर रही थी. वहीं पर पुलिस ने एक बाइक पर सवार 2 लोगों को रुकने का इशारा किया, मगर वे भागने की कोशिश करने लगे. उन में से एक सवार ने पुलिस के ऊपर फायरिंग भी कर दी. पुलिस ने अपनी बाइक उस के पीछे दौड़ा दी और जवाबी फायरिंग की.

पुलिस से हुई मुठभेड़ में एक बाइक सवार गिरफ्तार हो गया, जबकि दूसरा भागने में सफल रहा. पकड़े गए युवक के साथ एक सिपाही मोनू भी जख्मी हो गया था, जिसे जिला अस्पताल में भरती करवा दिया गया.

प्राथमिक उपचार के बाद पूछताछ की गई. उस ने अपना नाम राजू बताते हुए मुरादाबाद के थानांतर्गत मझौला का निवासी बताया. उस का फरार साथी गोलू मुरादाबाद में कांशीराम कालोनी का रहने वाला था.

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राजू से गहन पूछताछ में डा. प्रिया शर्मा हत्या का राज भी खुल गया. राजू ने पुलिस को बताया कि उसे कमल शर्मा ने प्रिया को मारने के लिए साढ़े 5 लाख रुपए की सुपारी दी थी. वह और उस का साथी गोलू शार्पशूटर हैं. उन्होंने ही प्रिया की गोली मार कर हत्या की है.

इसी के साथ पकड़े गए बदमाश राजू ने पुलिस को बताया कि वे 3 लोग चांदपुर जा रहे थे. किसी काम की वजह से अचानक उन के साथ आया छोटू बिजनौर रुक गया था. मुठभेड़ के समय बाइक गोलू चला रहा था, जबकि उस ने पुलिस को डराने के लिए फायरिंग कर दी थी.

हत्याकांड की तसवीर हो गई साफ

संयोग से बाइक फिसल गई थी और नीचे गिर गया था. गोलू ने बाइक संभाली, लेकिन वह उस पर सवार नहीं हो पाया था, कारण तब तक पुलिस की गोली उस के पैर में लगने से जख्मी हो गया था.

चांदपुर जाने के बारे में पूछने पर राजू ने बताया कि उन्हें प्रिया की हत्या के बाद उस के जीजा ब्रजेश कौशिक को मारने की भी सुपारी मिली थी. उसी के लिए दोनों चांदपुर कमल शर्मा के पास जा रहे थे.

अब प्रिया हत्याकांड की तहकीकात कर रही बिजनौर पुलिस के सामने तसवीर साफ हो गई थी. उन्होंने बगैर समय गंवाए डा. प्रिया के पति कमल दत्त शर्मा को उस के खिलाफ पहले से दर्ज की गई रिपोर्ट के आधार पर हिरासत में ले लिया.

राजू के बयान के मुताबिक डा. प्रिया शर्मा के पति कमलदत्त शर्मा ने ही हत्या की साजिश रची थी.

कमल शर्मा से पूछताछ के पहले पुलिस ने प्रिया के पिता और मां से उन की शादी और आपसी संबंधों के बारे में जानकारी हासिल कर ली. जब उन से पूछा गया कि उन्होंने किस कारण कमल शर्मा, उस की मां और बहन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी, तब वे बिफर गए.

वे नाराजगी दिखाते हुए कमल शर्मा और उस के परिवार को कोसने लगे. उन्होंने कहा कि 3 साल पहले कमल शर्मा के घर वालों ने झूठ बोल कर प्रिया से शादी करवाई थी. प्रिया ने उन्हीं दिनों प्रोफेसर की नौकरी जौइन की थी. वे उस की कमल से शादी करवाने के लिए लट्टू हो गए थे.

प्रिया की शादी की उम्र निकल रही थी. इस कारण उन पर प्रिया की जल्द शादी करने का मानसिक दबाव बना हुआ था. इस का असर यह हुआ कि उन लोगों ने शादी में बिचौलिया बने कमल के मामा और मामी की गलत जानकारी पर विशेष ध्यान नहीं दिया.

मामामामी ने कमल की खूब तारीफ करते हुए बताया था कि कमल एक बड़ी मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर है. उस के बाद प्रिया के परिवार वाले उन की बातों में आ गए थे.

शर्मा दंपति ने कमाऊ बेटी होने बावजूद अच्छाखासा दहेज भी दिया और प्रिया की कमल के साथ बड़े ही धूमधाम से शादी की.

शादी के बाद जब प्रिया को पता चला कि उस का पति निठल्ला है, तब उस ने ऐसा महसूस किया मानो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई हो. उस के मातापिता मायूस हो गए. लेकिन वे अब पछताने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकते थे.

निठल्ला निकला डा. प्रिया का पति कमल

सच तो यह था कि कमल ने प्रिया से शादी उस की सैलरी और दहेज के लालच में की थी. उसे प्रिया से कोई लगाव नहीं था. प्रिया को इस शादी से बहुत बड़ा झटका लगा था. वह बुरी तरह टूट गई थी. फिर भी वह किसी तरह 3 साल तक पति, सास और ननद से रिश्ता निभाती रही.

प्रिया के लिए कमल किसी मुसीबत से कम नहीं था. वह लगातार दहेज में और अधिक पैसे की मांग करता रहता था. प्रिया के मातापिता जबतब थोड़ाथोड़ा पैसा दे दिया करते थे, ताकि दामाद शांत रहे और बेटी का घर अच्छी तरह से बस जाए. जबकि कमल का लालच बढ़ता ही जा रहा था.

हद तो तब हो गई जब उस ने प्रिया से अपने पिता का मकान बेच कर पैसा देने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. इस कारण प्रिया और कमल के बीच अनबन होने लगी. बातबात पर घर में तकरार की स्थिति बन गई. इस कारण प्रिया और कमल के बीच मतभेद हो गए. बातबात पर घर में तकरार होने लगी.

प्रिया को न केवल उस का पति, बल्कि सास और ननद की तीखी बातें सुननी पड़ती थीं. कमल के लिए प्रिया केवल सोने का अंडा देने वाली मुरगी जैसी थी. उस के वेतन के पैसे पर वह मौजमस्ती करने लगा था.

प्रिया के पिता गणेशदत्त शर्मा ने बताया कि जनवरी 2021 में कमल के घर वालों ने मांग पूरी नहीं होने पर प्रिया को घर से ही निकाल दिया. उस के बाद से प्रिया अपने मायके आ कर रहने लगी थी. मायके में रहते हुए प्रिया अपने कालेज पढ़ाने जाती थी और सीधा घर लौटती थी.

कहने को तो वह ससुराल से निकाल दी गई थी, लेकिन कमल से उस का पीछा नहीं छूटा था. इस बारे में प्रिया ने कई बार अपनी मां को सारी बातें बताई थीं कि वह किस तरह उसे कालेज आतेजाते रास्ते में ही रोक लिया करता था. बीच रास्ते में ही उस से पैसे की मांग कर बैठता था. एकदो बार तो उस ने तूतड़ाक की बातें कर दी थीं और हाथापाई तक करने लगा था.

प्रिया ने बताया था कि वह काफी सहमीसहमी सी रहने लगी थी. जब कभी वह कमल को दूर से आता देखती तो वह अपना रास्ता बदल लिया करती थी. उसे हमेशा डर सताता रहता था कि पता नहीं कब कमल कोई खतरनाक कदम उठा ले. उस के तेवर हमेशा रूखे और लड़ने वाले ही होते थे.

घटना से 3-4 माह पहले से कमल के तेवर और भी खतरनाक हो गए थे. इसे ले कर उन्होंने पुलिस में शिकायत भी की थी, मगर पुलिस से उन्हें कोई मदद नहीं मिली. उन की शिकायत पर कोई नहीं ध्यान नहीं दिया गया. अगर पुलिस कुछ करती तब आज प्रिया जीवित रहती.

ससुराल से निकाल दिया गया डा. प्रिया को

गणेश दत्त ने बताया कि प्रिया ने कमल के साथ रहते हुए अपना घर संभालने और अपनी शादी को बचाने की हरसंभव कोशिश की थी. उन्होंने 3 सालों के दरम्यान किसी तरह 15 लाख रुपए का इंतजाम कर कमल को दिए भी थे.

यही नहीं, प्रिया अपनी पूरी तनख्वाह पति के खाते में ट्रांसफर कर देती थी. फिर भी उस का उत्पीड़न कम नहीं हुआ था. उस की सास और ननद इस उत्पीड़न में बराबर से शामिल रहती थीं.

आखिर एक दिन लड़ाईझगड़े के बाद कमल ने जब उस को घर से बाहर धकेल दिया, तब तो वह अपने बूढ़े मातापिता के पास चली आई थी. प्रिया के मायके रहने पर भी कमल उसे चैन से रहने नहीं देता था.

उस ने सभी रिश्तेदारों और दोस्तों में गलत बात फैला दी थी कि प्रिया का किसी और से चक्कर चल रहा है, इसलिए वह उसे छोड़ कर अपने मायके में रह रही है.

उस के रवैए से नाराज प्रिया कुछ महीने पहले से वेतन उसे नहीं भेज रही थी. इसलिए वह चाहता था कि प्रिया वापस लौट आए. ताकि वह उसे वेतन के पैसे के लिए दबाव बना सके. लेकिन प्रिया अब उस नरक में लौटने को तैयार नहीं थी.

पत्नी की हत्या के लिए कमल ने दी सुपारी

कमल ने पुलिस पूछताछ में बताया कि इसी बात से नाराज हो कर उस ने हत्या की साजिश रच डाली थी. साजिश के अनुसार उस ने साढ़े 5 लाख रुपए में प्रिया की सुपारी दे डाली थी. इस के लिए विक्रांत नाम के व्यक्ति से संपर्क किया था. उस ने एक अन्य व्यक्ति अंकुर उर्फ छोटू के माध्यम से शार्पशूटर राजू, कपिल और गोलू से संपर्क किया और कुछ पैसा एडवांस दे कर प्रिया को खत्म करने के लिए कहा.

कमल ने घटना के करीब डेढ़ महीना पहले छोटू को साथ ले जा कर प्रिया की पहचान करवा दी थी. फिर उस के घर और उन तमाम रास्तों की पहचान करा दी, जिस से हो कर वह अकसर आतीजाती थी.

कमल की मां और बहन ने भी शूटरों को साथ ले जा कर प्रिया के घर और आसपास के इलाकों की पहचान करवा दी थी. उन्होंने प्रिया को दूर से दिखा दिया था.

उस के बाद तीनों शूटरों ने कई बार खुद प्रिया के कालेज से आनेजाने और घर के आसपास शौपिंग वगैरह जाने के समय का आंकलन किया था.

कमल ने बताया कि उस को मारने के लिए वे मुरादाबाद से करीब 6 बार बिजनौर आए, मगर हर बार प्रिया रास्ता बदल कर बचती रही. मगर 29 अक्तूबर, 2021 के दिन दोनों शूटरों को सातवीं बार मौका मिल गया और उन्होंने प्रिया पर गोलियां बरसा कर उसे मौत की नींद सुला दी.

कमल ने इसी के साथ एक और खुलासा किया कि वह प्रिया की हत्या से पहले चांदपुर निवासी उस के जीजा ब्रजेश कौशिक की भी हत्या करवाना चाहता था. क्योंकि उसे शक था कि प्रिया के प्रेम संबंध उस के जीजा से हैं.

उन्होंने ही कमल और उस के पूरे परिवार एवं मामामामी समेत 8 लोगों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा लिखवाने में गणेश दत्त शर्मा की मदद की थी. इस की पुष्टि पुलिस ने की. इस के लिए उन्होंने अपने साथियों के साथ कई बार कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी.

अंतत: उस ने प्लान बदल दिया था और पहले प्रिया को ठिकाने लगा दिया. कमल ने शूटरों को सुपारी के पैसों के अलावा 12 लाख और देने का वादा किया था. ब्रजेश कौशिक तक पहुंचने से पहले ही शूटर पकड़े गए.

कमल शर्मा के पिता का 18 साल पहले निधन हो चुका था. वह अपनी मां वर्षा दत्त शर्मा और बहन डौली के साथ रहता था. पुलिस ने कमल शर्मा के बाद उस की मां और बहन को भी दहेज हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.

अपना घर: भाग 3

‘‘मैं ने कभी सीमा को उस की पिछली जिंदगी की याद नहीं दिलाई. वह मेरा कितना उपकार मानती है कि मैं ने उसे ऐसे दलदल से बाहर निकाला जिस की उसे सपने में भी उम्मीद नहीं थी.’’

यह सुन कर विजय हैरान रह गया. वह अनिल की ओर एकटक देख रहा था. न जाने कितने लोग सीमा के जिस्म से खेले होंगे? आखिर यह सब कैसे सहन कर गया अनिल? क्या अनिल के सीने में दिल नहीं है? अनिल के सामने कोई मजबूरी नहीं थी, फिर भी उस ने सीमा को अपनाया.

अनिल ने कहा, ‘‘यार, भूल तो सभी से होती है. कभी किसी को माफ भी कर के देखो. भूल की सजा तो कोई भी दे सकता है, पर माफ करने वाला कोईकोई होता है. किसी गिरे हुए को ठोकर तो सभी मार सकते हैं, पर उसे उठाने वाले दो हाथ किसीकिसी के होते हैं.’’

तभी सीमा एक ट्रे में चाय के कप व कुछ खाने का सामान ले कर आई और बोली, ‘‘चाय लीजिए.’’

विजय सकपका गया. वह सीमा से आंखें नहीं मिला पा रहा था. वह खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहा था. उसे लग रहा था कि सचमुच उस ने सुरेखा को घर से निकाल कर बहुत बड़ी भूल की है. शक के जाल में वह बुरी तरह उलझ गया था. आज उस जाल से बाहर निकलने के लिए छटपटाहट होने लगी. उसे खुद से ही नफरत हो रही थी.

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विजय चुपचाप चाय पी रहा था. अनिल ने कहा, ‘‘अब ज्यादा न सोचो. कल ही जा कर तुम भाभीजी को ले आओ. सब से पहले यह शराब उठा कर बाहर फेंक देना. भाभीजी के आने के बाद तुम्हें इस की जरूरत नहीं पड़ेगी.

‘‘शराब तुम्हें खोखला और बरबाद कर देगी. भाभीजी की याद में जलने से जिंदगी दूभर हो जाएगी. जिस का हाथ थामा है, उसे शक के अंधेरे में इस तरह भटकने के लिए न छोड़ो.

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‘‘कुछ त्याग भी कर के देखो यार. वैसे भी इस में भाभीजी की जरा भी गलती नहीं है.’’

विजय को लग रहा था कि अनिल ठीक ही कह रहा है. वह एक भूल तो कर चुका है सुरेखा को घर से निकाल कर, अब तलाक लेने की दूसरी भूल नहीं करेगा. कुछ दिनों में ही उस की और घर की क्या हालत हो गई है. अभी तो जिंदगी का सफर बहुत लंबा है.

‘‘हम 4 दिन बाद लौटेंगे तो भाभीजी से मिल कर जाएंगे,’’ अनिल ने कहा.

विजय ने मोबाइल फोन का स्विच औन किया और दूसरे कमरे में जाता हुआ बोला, ‘‘मैं सुरेखा को फोन कर के आता हूं.’’

अनिल और सीमा ने मुसकुरा कर एकदूसरे की ओर देखा.

विजय ने सुरेखा को फोन मिलाया. उधर से सुरेखा बोली, ‘हैलो.’

‘‘कैसी हो सुरेखा?’’ विजय ने पूछा.

‘मैं ठीक हूं. कब भेज रहे हो तलाक के कागज?’

‘‘सुरेखा, तलाक की बात न करो. मुझे दुख है कि उस दिन मैं ने तुम्हें घर से निकाल दिया था. फिर फोन पर न जाने क्याक्या कहा था. मुझे उस भूल का बहुत पछतावा है.’’

‘पी कर नशे में बोल रहे हो क्या? मुझे पता है कि अब तुम रोज शराब पीने लगे हो.’

‘‘नहीं सुरेखा, अब मैं नशे में नहीं हूं. मैं ने आज नहीं पी है. तुम्हारे बिना यह घर अधूरा है. अब अपना घर संभाल लो. मैं तुम्हें लेने कल आ रहा हूं.’’

उधर से सुरेखा का कोई जवाब

नहीं मिला.

‘‘सुरेखा, तुम चुप क्यों हो?’’

सुरेखा के रोने की आवाज सुनाई दी.

‘‘नहीं, सुरेखा नहीं, अब मैं तुम्हें रोने नहीं दूंगा. मैं कल ही आ कर मम्मीपापा से भी माफी मांग लूंगा. बस, एक रात की बात है. मैं कल शाम तक तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा.’’

‘मैं इंतजार करूंगी,’ उधर से सुरेखा की आवाज सुनाई दी.

विजय ने फोन बंद किया और अनिल व सीमा को यह सूचना देने के लिए मुसकराता हुआ उन के पास आ गया.

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Manohar Kahaniya: छिन गया मासूम का ‘आंचल’

सौजन्य- मनोहर कहानियां

उद्योगपति पवन ग्रोवर ने अपनी बेटी आंचल की शादी बड़े कारोबारी सूर्यांश खरबंदा से की थी. शादी में उन्होंने करीब एक करोड़ रुपए खर्च किए थे. शादी के करीब ढाई साल बाद ऐसा क्या हुआ कि आंचल की लाश पंखे से झूलती हुई मिली?

19नवंबर, 2021 की देर रात करीब साढ़े 11 के आसपास कानपुर के अशोक नगर में मसाला कारोबारी

सूर्यांश खरबंदा के घर के बाहर होने वाले शोरशराबे ने सोसाइटी में रहने वाले अन्य लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. सूर्यांश खरबंदा देशविदेश में विख्यात मसाला कंपनी एमडीएच के डिस्ट्रीब्यूटर हैं. उन के घर के बाहर उस रात इतना ज्यादा शोरशराबा हो रहा था कि सोसाइटी वालों ने अपने घर से बाहर निकल कर सूर्यांश के घर के बाहर जमावड़ा लगा दिया था.

‘‘गेट खोलो, हम आंचल के मायके के लोग हैं. जल्दी गेट खोलो, वरना पुलिस को बुलाएंगे. बाहर निकलो.’’ ऐसा शोर अशोक नगर की उस पौश सोसाइटी में शायद पहली बार मचा था.

आंचल खरबंदा सूर्यांश की पत्नी थी और उस के मातापिता और भाई मकान के बाहर से घर में घुसने के लिए चीखचीख कर गुहार लगा रहे थे.

एक तरफ आंचल के मायके वालों का मकान में जल्दी घुसने का शोर, दूसरी तरफ मकान के भीतर से कुत्तों के भौैंकने का शोर. इस शोर की वजह से कौन क्या कहना चाह रहा था, किसी को कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था.

कुछ देर के संघर्ष के बाद भी जब सूर्यांश के मकान का गेट नहीं खुला तो आंचल की मां रीना ने फोन कर पुलिस को इस बारे में सूचना दे दी.

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इलाके का थाना नजीराबाद अशोक नगर से मात्र 10 मिनट की ही दूरी पर था. जब तक पुलिस आती, तब तक आंचल के मायके वालों ने इंतजार किया, लेकिन घर के भीतर से कुत्तों के भौंकने का शोर लगातार जारी रहा.

इस बीच मोहल्ले में इकट्ठा बाकी लोगों की भीड़ ने आंचल के मायके वालों से मकान में घुसने की वजह पूछी. इस से पहले कि वह कुछ बताते, पुलिस की गाड़ी मोहल्ले में जमी भीड़ को हटाते और सायरन बजाते हुए मकान के सामने आ पहुंची.

पुलिस के गाड़ी से उतरते ही आंचल की मां और पिता दोनों दौड़ कर उन के पास मदद की गुहार लगाते हुए पहुंच गए. आंचल के पिता पवन ग्रोवर रोते हुए थानाप्रभारी से बोले, ‘‘साहब, जल्दी दरवाजा खुलवाइए, इन्होंने अब तक मेरी बेटी को जान से मार दिया होगा. तब से मेरी बेटी फोन नहीं उठा रही है. कुछ समझ नहीं आ रहा है. न तो कोई फोन उठा रहा है और न ही कोई मकान का दरवाजा खोलने को राजी है. ऊपर से कुत्ते खुले छोड़ दिए हैं ताकि हम अंदर न घुस सकें.’’

नजीराबाद थानाप्रभारी ने पिता पवन ग्रोवर की बात सुनी और अपनी टीम को गेट खुलवाने का इशारा किया. पुलिस को दरवाजा खटखटाते हुए देख मकान में उस समय मौजूद सिक्युरिटी गार्ड ने तुरंत दरवाजा खोल दिया.

घुसने नहीं दिया घर में मौजूद पिटबुल कुत्तों ने दरवाजा खुलते ही गेट पर 7 बड़ेबड़े पिटबुल नस्ल के कुत्ते, जोकि कुत्तों में सब से खूंखार नस्ल के होते हैं, भौंकने लगे. उन्हें भौंकता देख पुलिस ने सिक्युरिटी गार्ड को डपटते हुए उन्हें अंदर करने के लिए कहा.

कुत्तों की गरदन पर लगे पट्टे को पकड़ कर दोनों गार्डों ने एकएक कर के उन्हें काबू में किया और उन सभी को मकान के अंदर एक कमरे में ले जा कर बंद कर दिया.

कुत्तों को बंद करने के बाद पुलिस और आंचल के परिवार वाले देर न करते हुए मकान में चारों ओर फैल गए और आंचल को ढूंढने लगे. मकान में उस समय सूर्यांश के परिवार का कोई भी सदस्य मौजूद नहीं था.

पहली मंजिल पर डरीसहमी घर में काम करने वाली 2 नौकरानियां राधिका और किरन किचन में एक किनारे दुबके बैठी हुई थीं. राधिका की गोद में आंचल और सूर्यांश का 2 साल का बेटा अयांश भी था. इतने में आंचल की मां रीना किचन में आई और अयांश को राधिका की गोद से छीनते हुए अपने साथ मकान में दूसरे कमरों में आंचल को ढूंढने के लिए निकल गई.

पुलिस की पूछताछ में दोनों और डर गईं और उन्होंने पुलिस अधिकारियों को आंचल को आखिरी बार उस के कमरे में देखने की बात कही. पूरे मकान में ‘आंचल…आंचल’ का शोर गूंज रहा था.

आंचल के कमरे का गेट खुला था तो पुलिस टीम कमरे में घुस कर आंचल को ढूंढने लगी. लेकिन वह अपने कमरे में मौजूद नहीं थी. इतने में पुलिस की नजर कमरे में अटैच बाथरूम में गई, जिस का दरवाजा बंद था. यह बाथरूम दरअसल अंदर से बंद था. कई बार आवाज लगाने पर और दरवाजा खटखटाने पर जब कोई जवाब नहीं मिला तो बाथरूम से सटे काले रंग के कांच की खिड़की को तोड़ा गया.

कांच टूटते ही अंदर जो कुछ पुलिस और आंचल के घर वालों ने देखा, उसे देख सब के होश उड़ गए थे. बाथरूम में पंखे से चुन्नी के सहारे फांसी पर आंचल की लाश लटक रही थी.

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आंचल को लटकता देख मायके वाले जोरजोर से चीखनेचिल्लाने और रोने लगा, ‘‘मेरी बेटी को मार ही डाला इन्होंने. मेरी बेटी इतने समय से इन के जुल्म सह रही थी. इस की ससुराल वाले खूनी हैं. हम ने इन को दहेज में और पैसे नहीं दिए तो इन्होंने मेरी बेटी का मर्डर कर दिया.’’

थानाप्रभारी ने मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए मायके वालों को सांत्वना दी और अपनी टीम से आंचल की लाश को पंखे से उतारने, संबंधित अधिकारियों और संबंधित विभाग को सूचना देने का इशारा किया.

पलक झपकते ही यह खबर इलाके में आग की तरह फैल गई. सब यह जान कर हैरान थे कि जिस सूर्यांश का नाम पूरे इलाके में नामचीन था, जिन की संपत्ति में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी, जो इलाके में सब से संपन्न परिवारों में से एक था, उन के घर की बहू (आंचल) को दहेज के लिए प्रताडि़त किया जा रहा था.

ससुराल वालों के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट

पुलिस को पहली नजर में यह मामला आत्महत्या का लगा, लेकिन आंचल की लाश को पंखे से उतारने के बाद पिता पवन ने पुलिस को आंचल की आत्महत्या का नहीं, बल्कि उस के ससुरालवालों द्वारा उस की हत्या कर उस की लाश पंखे से लटकाने की बात कही.

पवन और रीना ने घटना को हत्या बता कर आंचल के परिवार वाले जिस में, पति सूर्यांश खरबंदा, सास निशा खरबंदा, फूफा भरत ग्रोवर, बुआ मीनाक्षी ग्रोवर और अनु खुल्लर, बहनोई पुनीत कोटवानी, ननद निकिता कोटवानी और तान्या ग्रोवर पर हत्या और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज करवाया.

थानाप्रभारी ने भी यह महसूस किया कि इतनी बड़ी घटना हो गई लेकिन आंचल के पति और सास का कहीं कोई अतापता ही नहीं था. उन से संपर्क करने के लिए उन्हें फोन किया गया, लेकिन फोन कनेक्ट नहीं हो सका.

आंचल की मौत की खबर उस के मायके के अन्य लोगों व रिश्तेदारों को रातोंरात हो गई और वे लोग शोक व्यक्त करने और मुश्किल हालात में परिवार का सहारा बनने के लिए पहुंचने लगे.

रात बहुत ज्यादा हो गई थी तो पुलिस ने आंचल की डैडबौडी पास के अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. लेकिन पोस्टमार्टम अगले दिन 20 नवंबर को सुबह होना था, इसलिए परिवार के कुछ सदस्य सूर्यांश के घर मौजूद थे तो कुछ अस्पताल के बाहर.

अस्पताल के बाहर पुलिस की पूरी फौज ने अस्पताल को घेरा हुआ था. एडिशनल डीसीपी (क्राइम) मनीष चंद्र सोनकर, एसीपी (नागराबाद) संतोष कुमार सिंह, एसीपी (गोविंद नगर) विकास कुमार पांडेय, एसीपी (बाबरपुरवा) आलोक सिंह समेत पुलिस के कई उच्च अधिकारी भी शामिल थे.

20 नवंबर की दोपहर 2 बजे आंचल का पोस्टमार्टम हुआ तो पुलिस ने अस्पताल के बाहर खड़े आंचल के मायके वालों को शव सौंपना चाहा तो उन्होंने आंचल का शव स्वीकार करने से साफ इंकार कर दिया. घर वालों ने जल्द से जल्द आंचल की हत्या के आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग की. घर वालों ने आंचल के शव के साथ ही सड़क जाम करते हुए आंचल को न्याय दिलाने की मांग करते हुए नारेबाजी की.

मायके वालों ने कर दी सड़क जाम

करीब 3 घंटे की मशक्कत के बाद पुलिस अधिकारियों ने उन्हें समझाया और आरोपियों को जल्द पकड़ने और सजा दिलाने का आश्वासन दिया तो वह शांत हुए. फिर पुलिस ने उन्हें घर भेज दिया गया.

आंचल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस प्रशासन के हाथों में थी, जिस के अनुसार आंचल के शरीर पर किसी तरह के जख्म का निशान मौजूद नहीं था और मरने का कारण फांसी को ही बताया गया.

एक तरफ तो आंचल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मरने की वजह फांसी थी, लेकिन दूसरी ओर आंचल के पति और सास दोनों का नदारद होना पुलिस के दिमाग में घटना का कुछ और ही रूप बयान कर रहे थे.

पुलिस टीम ने वक्त बरबाद न करते हुए सब से पहले आंचल के पति सूर्यांश को तलाश करने की कोशिश की. लेकिन सूर्यांश का फोन बंद होने की वजह से उस का पता लगा पाना पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती बन कर उभर रहा था.

सूर्यांश के फोन की लास्ट लोकेशन और उस से पहले की लोकेशन का जायजा लेने के बाद पुलिस की टीम ने पूरे प्रदेश में अपने मुखबिरों को सूर्यांश का पता लगाने को लगा दिया.

करीब 7 घंटों की लगातार मेहनत के बाद पुलिस टीम को बड़ी कामयाबी हाथ लगी. राजधानी लखनऊ से सूर्यांश और उस की मां निशा खरबंदा को उन के एक रिश्तेदार के घर से खोज निकाला और उन्हें गिरफ्तार कर आगे की काररवाई और पूछताछ के लिए उन्हें कानपुर नजीराबाद थाने लाया गया.

आंचल के पति सूर्यांश और सास निशा से शुरुआती पूछताछ के बाद मामला सुलझने के बजाए और उलझता चला गया. सूर्यांश और निशा ने उल्टा आंचल को ही दोषी करार करते हुए कहा कि आंचल ने ही उस के परिवार का जीना हराम कर रखा था.

सूर्यांश और निशा ने पुलिस के सामने ऐसे वीडियो दिखाए, जिस में आंचल अपने पति और सास को गालियां बकते हुए दिखाई दे रही थी.

वीडियो देख पुलिस के सामने सवाल और दुविधा दोनों ही उठ खड़े हुए थे. ऐसे में सवाल यह था कि आखिर आंचल के परिवार और सूर्यांश के बीच सच कौन बोल रहा था, ऐसे क्या कारण थे जिस की वजह से आंचल को आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ा.

आंचल सूर्यांश की शादी

कानपुर के रानीगंज, काकादेव में रहने वाले प्लास्टिक जेर्किन फैक्ट्री के मालिक पवन ग्रोवर की बेटी आंचल की अशोक नगर निवासी सूर्यांश खरबंदा, जोकि नामचीन मसाला कंपनी एमडीएच के डिस्ट्रीब्यूटर हैं, से फरवरी 2019 में शादी हुई. आंचल शादी से पहले एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया करती थी. पिता की लाडली बेटी और पूरे परिवार की आंख का तारा होने की वजह से आंचल और सूर्यांश की शादी में परिवार वालों ने किसी भी तरह की कोई कमी नहीं होने दी थी. उन्होंने आंचल की शादी में करीब एक करोड़ रुपए खर्च किए थे.

बेटी को सुखी वैवाहिक जीवन देने के लिए पिता ने पैसों की बिलकुल भी परवाह नहीं की थी. बेटी आंचल की शादी क्योंकि किसी आम लड़के के साथ नहीं, बल्कि नामचीन कारोबारी से हुई थी इसलिए पवन ने शादी के बाद अपनी बेटी की चिंता छोड़ ही दी थी.

उन्हें लगा कि उन की बेटी सुरक्षित और सुखी जीवन जी रही है, लेकिन इस की हकीकत तो शादी के एक साल होने के बाद आंचल को पता चली.

आंचल और सूर्यांश की शादी को करीब साल भर हो गया था. इस बीच उन के रिश्तों में कभी भी कोई वादविवाद या टकराव जैसी स्थिति पैदा नहीं हुई थी. दोनों के बीच बेपनाह प्यार था और दोनों ही एकदूसरे को लगभग हर महीने महंगे गिफ्ट्स दिया करते थे.

लेकिन साल भर बाद जब आंचल ने सूर्यांश को अपने मां और उस के पिता होने की खुशखबरी सुनाई तो इस खबर से सूर्यांश खुश नहीं हुआ.

पिछले कुछ समय से सूर्यांश ने आंचल को कानपुर में ही एक ‘पब’ खोलने की बात कही थी. जिसे ले कर सूर्यांश काफी गंभीर था. उस ने आंचल के सामने यह भी कहा था कि उसे पब खोलने के लिए करीब 70 लाख रुपयों की जरूरत है, जोकि उस के पास नहीं है.

इस से पहले कि आंचल कुछ समझ पाती, सूर्यांश ने आंचल से 70 लाख रुपयों की मांग कर डाली. आंचल ने सूर्यांश को शुरुआती दिनों में समझाया कि उस के पिता के पास उसे देने के लिए अभी इस समय कुछ भी पैसे नहीं हैं. लेकिन समय बीतने के साथ सूर्यांश आंचल से पैसों को ले कर उस पर दबाव बनाने लगा.

दोनों के बीच पैसों की बात वादविवाद, फिर छोटेमोटे झगड़े, फिर हाथापाई वाले झगड़े और बड़े झगड़े होने लगे. यह बात अब परिवार में किसी से छिपी हुई नहीं थी. लेकिन आंचल ने यह बात अपने परिवार को तब तक नहीं बताई थी, जब तक उन के बीच कोई बड़ा विवाद या झगड़ा नहीं हो गया.

दरअसल, आंचल अपने पिता और परिवार के हालात जानती थी. वह जानती थी कि उस के पिता ने उस की शादी कितनी मुश्किल से उधार ले कर करवाई थी. वह उन तक सूर्यांश के साथ होने वाले झगड़े नहीं पहुंचने देना चाहती थी.

इसलिए आंचल हर तरीके से खुद सारे दुख झेलती, खुद पर होने वाली सारी प्रताड़नाएं झेलती लेकिन अपने परिवार को इन सभी बातों से अछूता रखा हुआ था.

पैसों को ले कर सूर्यांश के साथ होने वाले झगड़े में अब उस के ससुराल वाले भी शरीक होने लगे थे. आंचल की सास निशा भी पैसों को ले कर उसे ताना मारने लगी थी.

धीरेधीरे उस की ननद निकिता और तान्या भी उस के साथ झगड़ने लगे. यही नहीं, निकिता के पति पुनीत कोटवानी की आंचल पर शुरुआत से गंदी नजर थी.

आंचल की खूबसूरती को देख पुनीत कोटवानी खुद को रोक नहीं पाता था, इसलिए पैसों की बात सुन उस ने घर पर अन्य लोगों को भी आंचल के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया था.

इस पूरे घटनाक्रम में सूर्यांश की बुआ और फूफा भी पीछे नहीं थे. एक समय बाद सूर्यांश और उस के परिवार वालों ने आंचल को इतना ज्यादा परेशान करना शुरू कर दिया था कि हार मान कर आंचल को अपने मायके में अपनी मां और पिता को उस पर होने वाली प्रताड़नाओं के बारे में बताने को मजबूर होना पड़ा.

आत्महत्या के लिए उकसाता था सूर्यांश

पुलिस ने मृतका के मातापिता के बयान दर्ज किए. परिजनों ने स्पष्ट कहा कि ससुराल वालों ने आंचल को दहेज के लिए प्रताडि़त किया. आए दिन खुदकुशी करने के तरीके बता कर उस को उकसाया. आखिर में मार कर लटका दिया. बयानों के साथ मातापिता ने आंचल के मोबाइल समेत तमाम तथ्य भी पुलिस को उपलब्ध कराए.

आंचल की मां रीना ने बताया कि सूर्यांश और उस का परिवार आए दिन आंचल को प्रताडि़त करते थे. दहेज की मांग करते थे. विवाद हुआ तो समझौता कराया गया, जिस से बेटी का परिवार बिखरने से बचा रहे. मगर आरोपी नहीं माने. आखिर में मार ही डाला.

आंचल के पिता पवन और भाई अक्षय ने पुलिस को बताया कि कई बार सूर्यांश फ्लाईओवर पर गाड़ी रोक चुका था. इस दौरान वह आंचल से कहता था कि यहां से कूद जाओ. इसी तरह से घर पर वह पंखे से लटक कर खुदकुशी करने को कहता था. यह भी कहता था कि जब भी लटकना तो बाथरूम वाले पंखे से लटकना, क्योंकि वह सस्ता है.

खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए आरोपी पति सूर्यांश और सास निशा खरबंदा द्वारा मृतका आंचल से विवाद का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने पर आंचल के पिता पवन ग्रोवर ने सवाल उठाए. उन्होंने सवाल किया कि अगर आंचल के ससुराल वाले उस से प्रताडि़त थे तो उन की बेटी क्यों मरी?

इस संबंध में उन्होंने पुलिस कमिश्नर के सामने भी अपना पक्ष रखा. दरअसल, आरोपियों ने थाने में अपनी बेगुनाही के सबूत के रूप में एक वीडियो दिखाया था. इस वीडियो में आंचल अपने पति और सास के साथ अभद्रता करते दिख रही थी.

इस पर सवाल उठाते हुए आंचल के पिता पवन ग्रोवर ने बताया कि वीडियो में उन की बेटी बारबार बोल रही है कि और मार… और मार… इस से साफ है कि वीडियो बनाने से पहले उस के साथ जम कर मारपीट की गई थी.

वीडियो में आंचल अपनी सास के चरित्र पर सवाल उठाते हुए किसी शख्स से उस के संबंध होने की भी बात कर रही थी. इस के बाद मां और बेटा एक शब्द नहीं बोल रहे.

उन्होंने कहा इस से साफ है कि जानबूझ कर ऐसी परिस्थितियां बनाई गईं कि आंचल आक्रोशित हो और मांबेटे इस वीडियो का गलत तरीके से इस्तेमाल कर सकें. उन्होंने वीडियो बनाने के लिए उन की बेटी को उकसाने का आरोप लगाया.

‘‘आरोपी मांबेटा अगर बेटी से प्रताडि़त थे तो कभी थाने में शिकायत क्यों नहीं की? वीडियो में सच्चाई थी तो इस को बेटी के जीते जी कभी वायरल क्यों नहीं किया? अगर बेटी उन के साथ मारपीट और प्रताडि़त करती थी तो वो कैसे मरी? अगर बेटी 2 सालों से मांबेटे के साथ अभद्र व्यवहार

कर रही थी तो पुलिस कंट्रोल रूम पर कितनी बार मदद मांगी?’’ आंचल के पिता पवन ने पुलिस के सामने इसी तरह के सवाल उठाए.

आंचल की मौत को हत्या कहें, आत्महत्या कहें या फिर आत्महत्या के लिए उकसाना कहें, इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए पुलिस की टीम जांच में कथा संकलन तक जुटी हुई थी.

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