कैसेकैसे भरोसे : विधवा सुगनी

दिनभर तहसील के चक्कर काटतेकाटते सुगनी की नसनस बोल गई थी. वह मजबूत कदकाठी की थी. उसे हैरानी होती थी कि दुबलापतला दुलाल चश्मे के शीशे पोंछतापोंछता दिनभर तहसील के चक्कर काट कर भी थकता नहीं, बल्कि तरोताजा नजर आता.

वैसे, यह ताजापन कुछ गांव वालों के काम कराने के एवज में दुलाल की जेब में आए नोटों की गरमी का नतीजा होता था. मगर सुगनी को तब और हैरानी होती, जब वह देखती कि गांव में कलक्टर जैसा रोब जमाने वाला लेखपाल बरामदे में टाट बिछा कर बस्ता खोले दुलाल से हंसहंस कर बातें करता. उस का कानूनगो कुरसी पर बैठा हुक्म मारता और जमीन पर बैठा लेखपाल उस की डांट पर ‘जी साहब’ कहता.

सुगनी को लगता कि यह कितना निरीह इनसान है. पर बाद में दुलाल ने उसे बताया था कि लेखपाल का लिखा राजपाल भी नहीं काट पाता.समय की मार खाई सुगनी को बाद में यह बात माननी पड़ी थी.

सालभर पहले पति की मौत के बाद सुगनी को पट्टे के खेत का कब्जा पाने के लिए चूल्हेचौके से निकल कर तहसीलकचहरी करनी पड़ी, वरना 22 साल की उम्र ऐसी नहीं होती कि देखनेसुनने में भली लगने वाली औरत को छलछंदों की इस दुनिया से रूबरू होने का शौक चर्राए.

अकेली गरीब विधवा समझ कर लोगों ने सुगनी पर लालच का चारा डालना चाहा, पर शिकारी से चौकस चिडि़या की तरह उसे जाल के ऊपर से उड़ जाना आता था.

सुगनी धौंकल सिंह के कहने में रहती तो खुश रहती, मगर उस ने तो बंशी के बाग के पास अकेले में हाथ पकड़ने वाले धौंकल सिंह के मुंह पर थप्पड़ मारते हुए कहा था, ‘जाओ ठाकुर, खैर मनाओ. आज इतने पर ही छोड़ दिया आगे से ऐसा कुछ सोचा भी तो सारी मर्दानगी काट कर फेंक दूंगी.’

सुगनी के हाथ में लहराती दरांती देख कर धौंकल सिंह की घिग्घी बंध गई थी. उस की ऊपरनीचे होती तोंद थरथरा रही थी कि सुगनी कहीं उसी पर न फट पड़े.

वे चले भी जाते और मामला ठंडा भी पड़ जाता, लेकिन पीछे से आते भरोसे ने इस बात को पूरे गांव में फैला दिया और बात चर्चा में आ गई.

बस, इसी की रंजिश में ठाकुर ने अपने चक के पड़ोस की सुगनी के पट्टे की जमीन पर ट्रैक्टर चलवा कर उसे अपने खेत में मिला लिया.

खेत जुतने वाले दिन सही माने में सुगनी को लगा कि वह विधवा हो गई है. पूरे गांव में एक से एक मूंछ वाला आदमी, मगर एक गरीब विधवा के लिए धौंकल सिंह से दुश्मनी कौन मोल ले?

सुगनी का मर्द मौजूद होता, तो क्या ऐसा हो पाता?

खैर, जो हुआ सो हुआ. जो सुगनी के वश में है, करेगी और ठाकुर के जूते को गरदन झांका कर नहीं पहनेगी.

दूसरे दिन वह तहसील गई. जिस लेखपाल ने पट्टा दिया है, अभी मर नहीं गया है. वही फिर नापेगा. आखिर इंसाफ भी कोई चीज है.

पति के साथ बिताए 3 साल के समय के सुनहरे सपनों की दुनिया में भटकी सुगनी जान ही न सकी, कब बबुराडीह की पुलिया आ गई, जहां से तांगा मिलता है.

सुगनी तांगे की ओर न जा कर पुलिया के एक ओर ठिठक गई. तांगे पर बैठे दुलाल ने आंखें मिचमिचा कर कहा, ‘‘भाभी, जल्दी आ जाओ, तांगा चलने  वाला है.’’

सुगनी ने तांगे की ओर नजर डाली. सवारी के नाम पर दुलाल ही बैठा था.

तांगा चलने के साथ ही बातचीत चली. जब दुलाल को सुगनी के इरादे का पता चला, तो उस के मन में बताशे फूटने लगे. पर वह अंदरूनी खुशी छिपा कर बोला, ‘‘भाभी, है तो काम खतरे का, पर मैं तुम्हारी मदद करूंगा.

‘‘मेरी यही तो मजबूरी है, गरीब पर होते जुल्म देख नहीं पाता हूं. बाकी, भाभी क्या कहूं, मुल्क ही भ्रष्ट हो गया है. अहलकार ठाकुर के पैसे के गुलाम जरूर हैं, पर तुम्हारा देवर भी कम नहीं है. ऊपर शिकायत करने की एक धौंस से इन के होश फाख्ता कर देता हूं, पर फिर भी जमाने की हवा देख कर कुछ न कुछ खर्च करना ही पड़ता है.

‘‘ऊपर तक खाते हैं, ये भी क्या करें? हां, यह जरूरी है. औरों के 10 का काम तुम्हारे एक रुपए से चलेगा, नहीं तो मैं गरदन पर सवार हो जाऊंगा और काम करवा कर ही चैन लूंगा.’’

सुगनी को लगा, डूबते को सहारा मिल गया है.

सुगनी बोली, ‘‘मैं इन चक्करों से अनजान हूं. तुम मदद कर दोगे, तो मेरी शान रह जाएगी. बात जमीन की नहीं है, यह तुम्हारे भैया की इज्जत की बात है.

‘‘मेरे पास हजार 5 सौ रुपए हैं, जहां कहोगे, खर्च कर दूंगी. अब तुम्हीं चाहे तारो, चाहे बारो.’’

दुलाल ने कहा, ‘‘अब जब तुम से कह दिया है, तो सम?ो कि इज्जत दांव पर लगा दी है. अव्वल तो तुम्हारा पैसा खर्च नहीं होने दूंगा और खर्च हुआ भी, तो इतना तो बहुत है.’’

उस दिन जब दुलाल सुगनी की बात लेखपाल से कराने गया, तो कैंटीन की चकाचकी और दुलाल की जानपहचान से सुगनी हैरत में आ गई. नाश्ते की मेज पर बैठे दुलाल की दुआसलाम वाले ?ाका?ाक कपड़ों वाले 2 बाबू जैसे लोग तो उस के साथ ही बैठ गए.

दुलाल के साथ सब ने नाश्ता किया, चाय पी और पैसे देने के लिए जब दुलाल ने सौ का नोट निकाला, तो वह उसे परोपकार के लिए निछावर होने वाला लगा.

उस ने सोचा, ‘आज तो उसी के काम के सिलसिले में चायनाश्ता हुआ है, खर्चा दुलाल क्यों ?ोले? यह तो सरासर गलत है. फिर जिन्हें दुलाल ‘बाबूबाबू’ कह रहा है, यह भी तहसील के कारिंदे होंगे और क्या पता, किस घाट पर इन पंडों की जरूरत पड़ जाए. पैसे उसे ही देने चाहिए.’

सौ के नोट में बाकी बचे रुपए पानपुडि़या की भेंट चढ़ने के बाद सुगनी को अपना पेट खालीखाली लगने लगा था. मगर पेट की टूटन के बावजूद वह खुश थी. लेखपाल ने भरोसा दिया था कि आज उसे जरूरी काम से तहसीलदार के पास ही रहना है, कल मामले पर नजर डाल दी जाएगी.

दूसरे दिन कानूनगो की मीटिंग थी. काम नहीं चला, मगर 10-20 रुपए खर्च हो ही गए.

तीसरे दिन छुट्टी थी. चौथे दिन बस्ता खुला, तो बोहनी के नाम पर कुछ देना ही था. 20 का नोट हालांकि हैसियत से कम था, पर दुलाल के रसूख के चलते लेखपाल ने उसे माथे से लगा कर कहा, ‘‘अब सब से थोड़े ही कहसुन कर मिलता है.’’

पता चला, खेत तो सुगनी के मर्द के नाम है, मगर नक्शा मालखाने में है. वहां पड़ते तो 2 सौ हैं, मगर सौ रुपए में काम चल जाएगा.

सुगनी को जमीन हिलती सी नजर आई, मगर उस ने कलेजा कड़ा कर के नोट दुलाल के जरीए लेखपाल के हवाले किया.

शाम को लौटते समय वह दुलाल से बोली, ‘‘तुम्हें कब तक काम हो जाने की उम्मीद है?’’

‘‘जल्दी से जल्दी. सरकारी काम में कभीकभार देर हो भी जाती है, पर तुम्हारे मामले में ऐसा नहीं हो पाएगा. मैं जो हूं, इन अहलकारों के सीने पर सवार होने के लिए,’’ दुलाल ने सीना ठोंक कर कहा.

अगले दिन तहसील में हड़ताल थी. संगठन से गद्दारी कोई अच्छी बात है? हां, घर पर यह काम हो सकता है. वहां 5 सौ रुपए ले कर पैमाइश की दरख्वास्त लिखवा दी गई, जिसे पास कराना दुलाल का काम था.

रुपए खर्च होते, तो काम भी होता. मगर दुलाल ने सुगनी को 2-4 दिन की मुहलत देने को कह कर और काम निबटाए. सुगनी के पूछने पर बताया, वह काम उन्हीं रुपयों में लेखपाल के जिम्मे कर दिया था, कल देखेंगे.

अब सुगनी न रह सकी. उसे दुलाल पर भरोसा था, लेकिन लेखपाल उसे हीलाहवाला करता दिखा. नतीजतन, वह अगले दिन तहसील गई. रास्ते में उस ने देखा कि दुलाल की नजर में उस के लिए सराहना के भाव हैं.

वह कुछ कहना चाहता है, पर संकोच उसे चुप किए है. वह मन ही मन भीग गई. दुलाल के घर में भी कोई दीया जलाने वाला नहीं है. कहीं यही भाव उस के मन में भी तो नहीं है.

दुलाल का चेहरा देख कर उसे लगा, उस का सोचना कतई गलत भी नहीं है. पर सुगनी ने अपने चेहरे पर कोमलता को जगह नहीं दी. उस के चेहरे पर सख्ती ही उस की ताकत है. पर मन में कहीं न कहीं बदलाव हो रहा था. अपनेपन में यह दुख कब तक टिक पाएगा?

तहसील में दुलाल और लेखपाल मिले, तो लेखपाल के चेहरे पर रूखापन था. आज वह किसी मोटे आसामी की जुगाड़ में था. दुलाल ने उस के कान में कुछ कहा, तो वह झाझला उठा.

दुलाल ने चिरौरी की, तो बड़ी मुश्किल से पास के खोखे तक जाने को तैयार हुआ.

सुगनी को बड़ा दुख हुआ कि उस के चलते बेचारा दुलाल खिड़की खा रहा है और काम बिगड़ने के डर से बोल भी नहीं रहा है.

खोखे पर पान खाने के बाद गुमटी के पीछे बतियाते इन दोनों को देख कर सुगनी का मन हुआ, वह भी सुने कि दुलाल उस के लिए क्याक्या चिरौरी करता है. सामने जाना ठीक नहीं रहेगा, यह सोच कर वह खोखे के दूसरी ओर खड़ी हो गई.

सुगनी की मौजूदगी से बेखबर लेखपाल कह रहा था, ‘‘यह हम से नहीं होगा. माल मारो तुम और बदनामी हम उठाएं. या तो उस के रुपए लौटा दो या मुझे दे दो, तो काम हो जाएगा, वरना आइंदा मुफ्तखोरी करने मेरे पास न आना.’’

सुगनी दिनभर की दौड़ की हारीथकी थी, किंतु इतनी टूटन उसे तब तक नहीं आई थी. जिस पर भरोसा किया, जिस के लिए जाने क्याक्या सोचा, वह ऐसा निकलेगा, कौन जानता था. वह वहीं बैठ गई. लेखपाल अपने काम में लगा रहा.

इधरउधर घूम कर दुलाल ने सुगनी से कहा, ‘‘ठीक है भाभी, बात हो गई है. तुम फिक्र न करो. मैं गरदन दबा कर काम करा लूंगा. मेरे पास अकेले में गिड़गिड़ाने लगा, तब मैं ने 2 दिन की मुहलत और दे दी है.’’

शांत बैठी सुगनी का निराश चेहरा एकबारगी सुर्ख हो गया. वह बोली, ‘‘तुम ने समय रहते अपनी असलियत खोल दी. मैं तो तुम्हारे ऊपर इतना भरोसा किए थी कि अपने मर्द की खिलाई कसम पूरी करने वाली थी.

‘‘मरतेमरते उस ने कहा था, ‘सुगनी, जिंदगी में तुम्हें कोई सुख न दे सका, मगर असहाय किए जा रहा हूं. तुम्हारी हालत देख कर मेरा मरना बिगड़ रहा है. वचन दो कि कोई भरोसे लायक आदमी मिले, तो घर बसा लोगी?’’’

सुगनी बोलतेबोलते रुक गई. इतनी खूबसूरत सुगनी के मन में क्या था, दुलाल जान ही न सका था. उस ने कागज के चंद टुकड़ों के लिए सुगनी के भरोसे को ठेस पहुंचा कर अपने घर में खुद आगे लगा ली थी. वह सुगनी की ओर दयनीय नजर से देखने लगा.

सुगनी ने उसे देख कर कहा, ‘‘और तुम मुझे वही भरोसे के आदमी लगे थे.’’

‘‘क्या यह सच है?’’ दुलाल सुगनी के सामने हाथ फैला कर जमीन पर बैठ गया.

‘‘नहीं, अब नहीं है, कुछ देर पहले तक था.

‘‘अब मैं अपनी जंग खुद लड़ूंगी और अपने मर्द के भरोसे को टूटने नहीं दूंगी,’’ कह कर सुगनी एक ओर चल दी.

दुलाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह किधर जाए.

जब बौयफ्रैंड करे चीटिंग तो अपनाएं ये उपाय

रीयल लाइफ में ऐसे कई कपल हैं, जो रिलेशनशिप में होते हुए भी एकदूसरे को चीट करते हैं और जब उन की सचाई सामने आती है तो पार्टनर को बहलानेफुसलाने लगते हैं.कई बार तो ऐसा होता है कि पार्टनर की सचाई सामने आने पर समझ नहीं पाते कि क्या करें, क्या नहीं.

अगर आप का बौयफ्रैंड भी आप को चीट कर रहा है या धोखा दे रहा है तो इन बातों पर ध्यान दें :

  • सुसाइड करने की कोशिश न करें : अगर आप का बौयफ्रैंड किसी और के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा है तो इस का यह मतलब नहीं है कि आप की लाइफ खत्म हो गई है, इस के बाद आप की लाइफ का क्या होगा, यह सोच कर आप उलटीसीधी हरकतें न करें बल्कि खुद को आगे बढ़ाने की कोशिश करें.
  • सोशल साइट्स पर न निकालें भड़ास: जब पार्टनर से लड़ाई होती है या पार्टनर चीट करते हैं तो अकसर युवतियां फेसबुक पर डाल देती हैं, अजीबअजीब से इलजाम लगा कर भड़ास निकालती हैं. अगर आप भी ऐसा करने की सोच रही हैं तो एक बात अच्छे से समझ लें, ऐसा करने से आप के पार्टनर के साथसाथ आप की भी बदनामी होगी इसलिए बेहतर है कि सोशल साइट्स के बजाय आपस में झगड़े को सुलझाएं.
  • मारपीट कर हंगामा न करें : पार्टनर को जब हम किसी दूसरे के साथ देखते हैं तो झगड़ने लगते हैं, जोरजोर से चिल्लाने लगते हैं, उस लड़की को गाली देने लगते हैं, पागलों की तरह बिहेव करने लगते हैं. लेकिन ऐसा करने के बजाय आप वहां से चुपचाप चली जाएं. अपने बौयफ्रैंड को अपनी गलती का एहसास होने दें, क्योंकि मारपीट, लड़ाईझगड़े से कोई चीज सुधरती नहीं है बल्कि बिगड़ती जाती है.
  • बदला लेने के बजाय दूरी बनाएं : अगर आप ने अपने बौयफ्रैंड को किसी के साथ पकड़ा है, तो दोनों से बदला लेने की कोशिश न करें, न ही उन के सामने चिल्लाचिल्ला कर पूछें कि आखिर क्यों किया मेरे साथ ऐसा? ऐसा कर के आप खुद को कमजोर दिखाती हैं.
  • अपनी प्रौब्लम अपने तक रखें : पार्टनर का झूठ सामने आने पर गुस्से में उस के पेरैंट्स व दोस्तों को इस बारे में बताने की गलती न करें. उस ने आप के साथ जो भी किया हो, पर उस प्रौब्लम को खुद हैंडल करने की कोशिश करें.
  • प्यार में अंधी न हो जाएं : आप प्यार करती हैं इस का यह मतलब नहीं है कि आप प्यार में एकदम अंधी हो जाएं, गलतियों को अनदेखा कर दें. ऐसा भी हो सकता है कि इस से पहले भी वह आप की पीठ पीछे इस तरह की हरकत कर चुका हो, लेकिन आप को पता न चला हो. खुद को कमजोर न दिखाएं.

जब बौयफ्रैंड की धोखाधड़ी का पता चलता है तब कुछ युवतियां तो बोल्डली हैंडल कर लेती हैं, लेकिन कुछ इमोशनली टूट जाती हैं और उन्हें रोते देख बौयफ्रैंड उन की कमजोरी का फायदा उठाते हैं. इसलिए खुद को कमजोर दिखाने के बजाय कौन्फिडैंट बनें.

बेहयाई का सागर : अवैध संबंधों ने ली जान

रविवार को छुट्टी होने की वजह से फैक्ट्रियों में काम करने वाले अधिकांश कामगार अपने घरों की साफ सफाई और कपड़े आदि धोने का काम करते हैं. 25 साल का सागर और उस का छोटा भाई सरवन भी घर की साफसफाई में लगे थे. दोनों भाई एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. शाम 5 बजे के करीब सारा काम निपटा कर सरवन कमरे में लेट कर आराम करने लगा तो सागर छत पर हवा खाने चला गया.

7 बजे सागर आया और नीचे सरवन से खाना बनाने को कहा. छोटेमोटे काम करा कर वह फिर छत पर चला गया. सरवन खाना बना रहा था. दोनों भाई लुधियाना के फतेहगढ़ मोहल्ले में पाली की बिल्डिंग में तीसरी मंजिल पर किराए का कमरा ले कर रहते थे.

इस बिल्डिंग में 30 कमरे थे, जिसे मकान मालिक ने प्रवासी कामगारों को किराए पर दे रखे थे. पास ही मकान मालिक की राशन की दुकान थी. सभी किराएदार उसी की दुकान से सामान खरीदते थे. इस तरह उस की अतिरिक्त आमदनी हो जाया करती थी. साढ़े 7 बजे के करीब पड़ोस में रहने वाले संजय ने आ कर सरवन को बताया कि सागर खून से लथपथ ऊपर के जीने में पड़ा है.

संजय का इतना कहना था कि सरवन खाना छोड़ कर छत की ओर भागा. ऊपर जा कर उस ने देखा सागर के शरीर पर कई घाव थे, जिन से खून बह रहा था. हैरानी की बात यह थी कि छत पर दूसरा कोई नहीं था. वह सोच में पड़ गया कि सागर को इस तरह किस ने घायल किया.

लेकिन यह वक्त ऐसी बातें सोचने का नहीं था. संजय व और अन्य लोगों की मदद से सरवन अपने घायल भाई को पास के राम चैरिटेबल अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इस बीच किसी ने पुलिस को इस मामले की सूचना भी दे दी. यह 9 अप्रैल, 2017 की घटना है.

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सूचना मिलते ही थाना डिवीजन-4 के थानाप्रभारी मोहनलाल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने वहां रहने वाले किराएदारों से पूछताछ शुरू कर दी. दूसरी ओर अस्पताल द्वारा भी पुलिस को सूचित कर दिया गया था. 2 पुलिसकर्मियों को घटनास्थल पर छोड़ कर थानाप्रभारी राम चैरिटेबल अस्पताल पहुंच गए.

उन्होंने सागर की लाश का मुआयना किया तो पता चला कि किसी नुकीले और धारदार हथियार से उस पर कई वार किए गए थे. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी.

अस्पताल से फारिग होने के बाद थाना प्रभारी सरवन को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. अब तक सूचना पा कर एसीपी सचिन गुप्ता व क्राइम टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई थी. घटनास्थल का गौर से निरीक्षण किया गया. बिल्डिंग के बाहर मुख्य दरवाजे के पास गली में खून सने जूतों के हलके से निशान दिखाई दिए थे.

छत और जीने में भी काफी मात्रा में खून फैला था. बिल्डिंग के बाहर गली में करीब 2 दरजन साइकिलें खड़ी थीं, जो वहां रहने वाले किराएदारों की थीं. काफी तलाश करने पर भी वहां से कोई खास सुराग नहीं मिल सका.

लुधियाना में ऐसे कामगार मजदूरों के मामलों में अकसर 2 बातें सामने आती हैं. ऐसी हत्याएं या तो रुपएपैसे के लेनदेन में होती हैं या फिर अवैध संबंधों की वजह से. सब से पहले थानाप्रभारी मोहनलाल ने रुपयों के लेनदेन वाली थ्यौरी पर काम शुरू किया. पता चला कि मृतक सीधासादा इंसान था. उस का किसी से कोई लेनदेन या दुश्मनी नहीं थी.

इस के बाद थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई जसविंदर सिंह को करने के निर्देश दिए. उन्होंने मामले की जांच शुरू की तो उन्हें पता चला कि मृतक के कई रिश्तेदारों के लड़के यहां रह कर काम करते हैं, जिन में एक अशोक मंडल है, जो मृतक के ताऊ का बेटा है.

अशोक मंडल टिब्बा रोड की किसी सिलाई फैक्ट्री में काम करता था और उस का मृतक के घर काफी आनाजाना था. इसी के साथ यह भी पता चला कि अशोक का किसी बात को ले कर मृतक से 2-3 बार झगड़ा भी हुआ था.

एएसआई जसविंदर सिंह ने हवलदार अमरीक सिंह को अशोक मंडल के बारे में जानकारी जुटाने का काम सौंप दिया. थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठ कर जसविंदर सिंह से इसी केस के बारे में चर्चा कर रहे थे, तभी उन्हें चाबी का ध्यान आया.

दरअसल घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान बिल्डिंग के बाहर खड़ी साइकिलों के पास उन्हें एक चाबी मिली. वह चाबी वहां खड़ी किसी साइकिल के ताले की थी.

थानाप्रभारी ने उस समय उसे फालतू की चीज समझ कर उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब न जाने क्यों उन्हें वह चाबी कुछ महत्त्वपूर्ण लगने लगी. वह एएसआई जसविंदर सिंह और कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर उसी समय पाली की बिल्डिंग पहुंचे. साइकिलें अब भी वहीं खड़ी थीं.

उन्होंने बिल्डिंग में रहने वाले सभी किराएदारों को बुलवा कर कहा कि अपनीअपनी साइकिलों के ताले खोल कर इन्हें एक तरफ हटा लो.

सभी किराएदार अपनीअपनी साइकिलों का ताला खोल कर उन्हें हटाने लगे. सभी ने अपनी साइकिलें हटा लीं, फिर भी एक साइकिल वहां खड़ी रह गई.

‘‘यह किस की साइकिल है ’’ एएसआई जसविंदर सिंह ने पूछा. सभी ने अपनी गरदन इंकार में हिलाते हुए एक स्वर में कहा, ‘‘साहब, यह हमारी साइकिल नहीं है.’’

इस के बाद थानाप्रभारी मोहनलाल ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर जसविंदर को देते हुए कहा, ‘‘जरा देखो तो यह चाबी इस साइकिल के ताले में लगती है या नहीं ’’

जसविंदर सिंह ने वह चाबी उस साइकिल के ताले में लगाई तो ताला झट से खुल गया. यह देख कर मोहनलाल की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने उस साइकिल के बारे में सब से पूछा. पर उस के बारे में कोई कुछ नहीं बता सका.

इसी पूछताछ के दौरान पुलिस की नजर सामने की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी. पुलिस कैमरे की फुटेज निकलवा कर चैक की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को करीब पौने 7 बजे एक युवक वहां साइकिल खड़ी कर के पाली की बिल्डिंग में गया था. इस के लगभग 25 मिनट बाद वही युवक घबराया हुआ तेजी से बिल्डिंग के बाहर आया और साइकिलों से टकरा कर नीचे गिर पड़ा. फिर झट से उठ कर अपनी साइकिल लिए बगैर ही चला गया.

पुलिस ने वह फुटेज मृतक के भाई सरवन को दिखाई तो सरवन ने उस युवक को पहचानते हुए कहा, ‘‘यह तो मेरे ताऊ का बेटा अशोक मंडल है.’’

‘‘अशोक मंडल कल शाम तुम्हारे कमरे पर आया था क्या ’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, जब से भैया (मृतक) से इन का झगड़ा हुआ है, तब से यह हमारे कमरे पर नहीं आते हैं और न ही हम दोनों भाई इन के कमरे पर जाते थे.’’ सरवन ने कहा.

इस के बाद जसविंदर ने मुखबिरों द्वारा अशोक मंडल के बारे में पता कराया तो उन का संदेह विश्वास में बदल गया. उन्होंने सिपाही को भेज कर अशोक मंडल को थाने बुलवा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो हर अपराधी की तरह उस ने भी खुद को बेगुनाह बताया. उस ने कहा कि घटना वाले दिन वह शहर में ही नहीं था. लेकिन थानाप्रभारी मोहनलाल ने उसे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दिखाई तो वह बगलें झांकने लगा.

आखिर उस ने सागर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का बयान ले कर पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पुलिस रिमांड के दौरान अशोक मंडल से पूछताछ में सागर की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अवैध संबंधों पर रचीबसी थी—

अशोक मंडल मूलरूप से बिहार के अररिया का रहने वाला था. कई सालों पहले वह काम की तलाश में लुधियाना आया. जल्दी से लुधियाना में उस का काम जम गया था. वह एक्सपोर्ट की फैक्ट्रियों में ठेके ले कर सिलाई का काम करवाता था. उसे कारीगरों की जरूरत पड़ी तो गांव से अपने बेरोजगार चचेरे भाइयों व अन्य को ले आया. सभी सिलाई का काम जानते थे, इसलिए सभी को उस ने काम पर लगा दिया.

अन्य लोगों को रहने के लिए अशोक ने अलगअलग कमरे किराए पर ले कर दे दिए थे, लेकिन सागर को उस ने अपने कमरे पर ही रखा. अशोक शादीशुदा था. कुछ महीने बाद जब रोटीपानी की दिक्कत हुई तो अशोक गांव से अपनी पत्नी राधा को लुधियाना ले आया.

राधा एक बच्चे की मां थी. उस के आने से खाना बनाने की दिक्कत खत्म हो गई. सभी भाई डट कर काम में लग गए थे. इस बीच सागर ने अपने छोटे भाई सरवन को भी लुधियाना बुला लिया था.

देवरभाभी होने के नाते सागर और राधा के बीच हंसीमजाक होती रहती थी, जिस का अशोक ने कभी बुरा नहीं माना. पर देवरभाभी का हंसीमजाक कब सीमाएं लांघ गया, इस की भनक अशोक को नहीं लग सकी, दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे.

सागर कभी बीमारी के बहाने तो कभी किसी और बहाने से घर पर रुकने लगा. चूंकि अशोक ठेकेदार था, इसलिए उसे अपने सभी कारीगरों और फैक्ट्रियों को संभालना होता था. इस की वजह से वह कभीकभी रात को भी कमरे पर नहीं आ पाता था. ऐसे में देवरभाभी की मौज थी.

लेकिन इस तरह के काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. अशोक ने एक दिन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर इज्जत की खातिर वह खामोश रहा. सागर और राधा ने भी उस से माफी मांग ली. अशोक ने उन्हें आगे से मर्यादा में रहने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अशोक ने पत्नी और चचेरे भाई पर विश्वास कर लिया कि अब वे इस गलती को नहीं दोहराएंगे. पर यह उस की भूल थी. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उस ने दोनों को फिर से रंगेहाथों पकड़ लिया. इस बार भी सागर और राधा ने उस से माफी मांग ली. अशोक ने भी यह सोच कर माफ कर दिया कि गांव तक इस बात के चर्चे होंगे तो उस के परिवार की बदनामी होगी.

लेकिन जब तीसरी बार उस ने दोनों को एकदूजे की बांहों में देखा तो उस के सब्र का बांध टूट गया. इस बार अशोक ने पहले तो दोनों की जम कर पिटाई की, उस के बाद उस ने सागर को घर से निकाल दिया. अगले दिन उस ने पत्नी को गांव पहुंचा दिया. यह अक्तूबर, 2016 की बात है.

अशोक से अलग होने के बाद सागर ने अपने छोटे भाई सरवन के साथ पाली की बिल्डिंग में किराए पर कमरा ले लिया. वह गांधीनगर स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. बाद में उस ने उसी फैक्ट्री में सिलाई का ठेका ले लिया. वहीं पर उस का छोटा भाई सरवन भी काम करने लगा.

सागर को घर से निकाल कर और पत्नी को गांव पहुंचा कर अशोक ने सोचा कि बात खत्म हो गई, पर बात अभी भी वहीं की वहीं थी. शरीर से भले ही देवरभाभी एकदूसरे से दूर हो गए थे, पर मोबाइल से वे संपर्क में थे.

अशोक को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. समझदारी से काम लेते हुए उस ने सागर को समझाया पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अब तक गांव में भी उन के संबंधों की खबर फैल गई थी. लोग चटखारे लेले कर उन के संबंधों की बातें करते थे. गांव में अशोक के घर वालों की बदनामी हो रही थी. इस से अशोक बहुत परेशान था. वह सागर को एक बार फिर समझाना चाहता था.

9 अप्रैल, 2017 की शाम को फोन कर के उस ने सागर से पूछा कि वह कहां है  सागर ने उसे बताया कि वह छत पर है. अशोक अपने कमरे से साइकिल ले कर सागर को समझाने के लिए निकल पड़ा. नीचे स्टैंड पर साइकिल खड़ी कर उस में ताला लगा कर वह सीधे छत पर पहुंचा.

इत्तफाक से उस समय सागर फोन से अशोक की बीवी से ही बातें कर रहा था. उस की पीठ अशोक की तरफ थी. सागर राधा से अश्लील बातें करने में इतना लीन था कि उसे अशोक के आने का पता ही नहीं चला.

अशोक गया तो था सागर को समझाने, पर अपनी पत्नी से फोन पर अश्लील बातें करते सुन उस का खून खौल उठा. वह चुपचाप नीचे आया और बाजार से सब्जी काटने वाला चाकू खरीद कर सागर के पास पहुंच गया. कुछ करने से पहले वह एक बार सागर से बात कर लेना चाहता था.

उस ने सागर को समझाने की कोशिश की तो वह उस की बीवी के बारे में उलटासीधा बोलने लगा. फिर तो अशोक की बरदाश्त करने की क्षमता खत्म हो गई. उस ने सारे रिश्तेनाते भुला कर अपने साथ लाए चाकू से सागर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. वार इतने घातक थे कि सागर लहूलुहान हो कर जीने पर गिर पड़ा.

सागर के गिरते ही अशोक घबरा गया, क्योंकि वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं. उसी घबराहट में वह अपनी साइकिल उठाए बिना ही भाग गया.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अशोक से वह चाकू बरामद कर लिया था, जिस से उस ने सागर की हत्या की थी. रिमांड अवधि खत्म होने पर अशोक को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मैं निचली जाति की लड़की से प्यार करता हूं, लेकिन घरवाले शादी के लिए नहीं मान रहे है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं उत्तराखंड का रहने वाला हूं. मेरी उम्र  28 साल है. डाकखाने में मेरी सरकारी नौकरी है. वहीं पर एक लड़की भी काम करती है, जो  23 साल की है. वह मुझे पसंद करती है, पर हमारी जाति अलगअलग है. वह निचली जाति की है.  एक बार मैं ने अपने घर वालों को उस के बारे में बताया, तो उन्होंने मुझे साफ मना कर दिया कि दूसरी जाति की लड़की से शादी नहीं करेंगे. घर वालों के इस दकियानूसी रवैए की वजह से मुझे तनाव रहने लगा है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप जैसे लाखों नौजवान हिम्मत न कर पाने की वजह से अपनी मनपसंद जगह पर शादी नहीं कर पाते हैं. आप बालिग हैं और खुद कमाते हैं. लड़की भी नौकरी में है, फिर किस बात का डर. घर वालों की भावनाओं का खयाल कुदरती बात है, लेकिन उन्हें भी आप के जज्बातों की कद्र करनी चाहिए.  जातपांत की सोच बहुत दकियानूसी और पिछड़ेपन की निशानी है. आप बेफिक्र हो कर उस लड़की से शादी कर लें. घर वाले धीरेधीरे उसे स्वीकार कर लेंगे.

सवाल

मैं एक 38 साल की औरत हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. मेरा पति शराबी है और मुझ से मारपीट करता है. उसे लगता है कि मैं किसी दूसरे के साथ नाजायज रिश्ते में हूं, पर ऐसा कुछ नहीं है. मैं ने कई बार अपने पति को समझाने की कोशिश की, पर सब बेकार गया. मैं कैसे अपने पति को लाइन पर लाऊं?

जवाब

शक का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं था, इसलिए यह उम्मीद छोड़ दें कि शराबी पति लाइन पर आएगा, लेकिन उसे भरोसा दिलाने की कोशिशें जारी रखें. बेबुनियाद शक एक तरह की दिमागी बीमारी या नुक्स है, जिस में आदमी को पता रहता है कि वह गलत कर रहा है, लेकिन वह अपने दिमाग के हाथों मजबूर रहता है. आप ज्यादा से ज्यादा समय पति के साथ गुजारें. उस के सामने किसी गैरमर्द की बातें या तारीफ न करें और कोशिश करती रहें कि आप दोनों के बीच का प्यार कम न हो. हालांकि यह मुश्किल काम है, लेकिन इस के सिवा और कोई रास्ता भी नहीं है.

सच्ची सलाह के लिए कैसी भी परेशानी टैक्स्ट या वौइस मैसेज से भेजें.  मोबाइल नंबर : 08826099608

पति परदेस में तो फिर डर काहे का

जिला अलीगढ़ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर थाना गोंडा क्षेत्र में एक गांव है वींजरी. इस गांव में एक किसान परिवार है अतर सिंह का. उस के परिवार में उस की पत्नी कस्तूरी के अलावा 5 बेटे हैं. इन में सब से छोटा है जयकिंदर. अतर सिंह के तीसरे नंबर के बेटे को छोड़ कर सभी बेटों की शादियां हो चुकी हैं. इस के बावजूद पूरा परिवार आज भी एक ही मकान में संगठित रूप से रहता है. अतर सिंह का सब से छोटा बेटा जयकिंदर आंध्र प्रदेश में रेलवे में नौकरी करता है. डेढ़ साल पहले उस की शादी पुरा स्टेशन, हाथरस निवासी फौजी रमेशचंद्र की बेटी प्रेमलता उर्फ मोना के साथ तय हो गई थी. मोना के पिता के सामने अतर सिंह की कुछ भी हैसियत नहीं थी. यह रिश्ता जयकिंदर की रेलवे में नौकरी लग जाने की वजह से हुआ था.

अतर सिंह ने समझदारी से काम लेते हुए जयकिंदर की शादी से पहले अपने मकान के ऊपरी हिस्से पर एक हालनुमा बड़ा सा कमरा, बरामदा और रसोई बनवा दी थी, ताकि दहेज में मिलने वाला सामान ढंग से रखा जा सके. साथ ही उस में जयकिंदर अपनी पत्नी के साथ रह भी सके. मई 2015 में जयकिंदर और मोना की शादी हुई तो मोना के पिता ने दिल खोल कर दहेज दिया, जिस में घर गृहस्थी का सभी जरूरी सामान था.

मोना जब मायके से विदा हो कर ससुराल आई तो अपने जेठजेठानियों की हालत देख कर परेशान हो उठी. उन की माली हालत ठीक नहीं थी. उस की समझ में नहीं आया कि उस के पिता ने क्या देख कर उस की शादी यहां की. मोना ने अपनी मां को फोन कर के वस्तुस्थिति से अवगत कराया. मां पहले से ही हकीकत जानती थी. इसलिए उस ने मोना को समझाते हुए कहा, ‘‘तुझे उन सब से क्या लेनादेना. छत पर तेरे लिए अलग मकान बना दिया गया है. तेरा पति भी सरकारी नौकरी में है. तू मौज कर.’’

मोना मां की बात मान गई. उस ने अपने दहेज का सारा सामान ऊपर वाले कमरे में रखवा कर अपना कमरा सजा दिया. उस कमरे को देख कर कोई भी कह सकता था कि वह बड़े बाप की बेटी है. उस के हालनुमा कमरे में टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन और गैस वगैरह सब कुछ था. सोफा सेट और डबलबैड भी. शादी के बाद करीब 15 दिन बाद जयकिंदर मोना को अपने घर वालों के भरोसे छोड़ कर नौकरी पर चला गया.

पति के जाने के बाद मोना ने ऊपर वाले कमरे में न केवल अकेले रहना शुरू कर दिया, बल्कि पति के परिवार से भी कोई नाता नहीं रखा. अलबत्ता कभीकभार उस की जेठानी के बच्चे ऊपर खेलने आ जाते तो वह उन से जरूर बोलबतिया लेती थी. वरना उस की अपनी दुनिया खुद तक ही सिमटी थी.

उस की जिंदगी में अगर किसी का दखल था तो वह थी दिव्या. जयकिंदर के बड़े भाई की बेटी दिव्या रात को अपनी चाची मोना के पास सोती थी ताकि रात में उसे डर न लगे. इस के लिए जयकिंदर ही कह कर गया था. देखतेदेखते जयकिंदर और मोना की शादी को एकडेढ़ साल बीत गया. जयकिंदर 10-5 दिन के लिए छुट्टी पर आता और लौट जाता. उस के जाने के बाद मोना को अकेले ही रहना पड़ता था.

मोना को घर की जगह बाजार की चीजें खाने का शौक था. इसी के मद्देनजर उस के पति जयकिंदर ने एकदो बार नौकरी पर जाने से पहले उसे समझा दिया था कि जब उसे किसी चीज की जरूरत हो तो सोनू को बुला कर बाजार से से मंगा लिया करे. सोनू जयकिंदर के पड़ोसी का बेटा था जो किशोरावस्था को पार कर चुका था. वह सालों से जयकिंदर का करीबी दोस्त था. सोनू बिलकुल बराबर वाले मकान में रहता था. मोना को वह भाभी कह कर पुकारता था. मोना ने शादी में सोनू की भूमिका देखी थी. वह तभी समझ गई थी कि वह उस के पति का खास ही होगा.

जयकिंदर के जाने के बाद सोनू जब चाहे मोना के पास चला आता था, नीचे घर की महिलाएं या पुरुष नजर आते तो वह छज्जे से कूद कर आ जाता. दोनों आपस में खूब हंसीमजाक करते थे. मोना तेजतर्रार थी और थोड़ी मुंहफट भी. कई बार वह सोनू से द्विअर्थी शब्दों में भी मजाक कर लेती थी.

एक दिन सोनू जब बाजार से वापस लौटा तो मोना छत पर खड़ी थी. उस ने सोनू को देखते ही आवाज दे कर ऊपर बुला कर पूछा, ‘‘आज सुबह से ही गायब हो? कहां थे?’’

‘‘भाभी, बनियान लेने बाजार गया था.’’ सोनू ने हाथ में थामी बनियान की थैली दिखाते हुए बताया. यह सुन कर मोना बोली, ‘‘अगर गए ही थे तो भाभी से भी पूछ कर जाते कि कुछ मंगाना तो नहीं है.’’

‘‘कल फिर जाऊंगा, बता देना क्या मंगाना है?’’ सोनू ने कहा तो मोना ने पूछा, ‘‘और क्या लाए हो?’’

‘‘बताया तो बनियान लाया हूं.’’ सोनू ने कहा तो मोना बोली, ‘‘मुझे भी बनियान मंगानी है, ला दोगे न?’’

‘‘तुम्हारी बनियान मैं कैसे ला सकता हूं? मुझे नंबर थोड़े ही पता है.’’ सोनू बोला.

‘‘साइज देख कर भी नहीं ला सकते?’’

‘‘बेकार की बातें मत करो, साइज देख कर अंदाजा होता है क्या?’’

‘‘तुम बिलकुल गंवार हो. अंदर आओ साइज दिखाती हूं.’’ कहती हुई मोना कमरे में चली गई. सोनू भी उस के पीछेपीछे कमरे में चला गया.

कमरे में पहुंचते ही मोना ने साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और सीना फुलाते हुए बोली, ‘‘लो नाप लो साइज. खुद पता चल जाएगा.’’

‘‘मुझ से साइज मत नपवाओ भाभी, वरना बहुत पछताओगी.’’

‘‘पछता तो अब भी रही हूं, तुम्हारे भैया से शादी कर के.’’ मोना ने अंगड़ाई लेते हुए साड़ी का पल्लू सिर पर डालते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ सोनू ने पूछा तो मोना बोली, ‘‘महीने दो महीने बाद घर आते हैं, वह भी 2 दिन रह कर भाग जाते हैं. और मैं ऐसी बदनसीब हूं कि देवर भी साइज नापने से डरता है. कोई और होता तो साइज नापता और…’’ मोना की आंखों में नशा सा उतर आया था. अभी तक सोनू मोना की बातों को केवल मजाक में ले रहा था. उस में उसी हिसाब से कह दिया, ‘‘जब भैया नौकरी से आएं तो उन्हीं को दिखा कर साइज पूछना.’’

‘‘अगर पति बुद्धू हो तो भाभी का काम समझदार देवर को कर देना चाहिए.’’ मोना ने सोनू का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘क्याक्या काम कराओगी देवर से?’’ सोनू ने शरारत से पूछा.

‘‘जो देवर करना चाहे, भाभी मना नहीं करेगी. बस तुम्हारे अंदर हिम्मत होनी चाहिए.’’ मोना हंसी.

‘‘कल बात करेंगे.’’ कहते हुए सोनू वहां से चला गया.

दूसरे दिन सोनू मां की दवाई लेने बाजार जाने के लिए निकला तो मोना के घर जा पहुंचा. उस वक्त मोना खाना बना कर खाली हुई थी. सोनू को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘बाजार जा रहे हो क्या?’’

‘‘मम्मी की दवाई लेने जा रहा हूं. तुम्हें कुछ मंगाना हो तो बोलो?’’ सोनू ने पूछा. मोना बोली, ‘‘बाजार में मिल जाए तो मेरी भी दवाई ले आना.’’ मोना ने चेहरे पर बनावटी उदासी लाते हुए कहा.

‘‘पर्ची दे दो, तलाश कर लूंगा.’’

‘‘मुंह जुबानी बोल देना कि ‘प्रेमरोग’ है, जो भी दवा मिले, ले आना.’’

‘‘भाभी, तुम्हें ये रोग कब से हो गया?’’ सोनू ने हंसते हुए पूछा.

‘‘ये बीमारी तुम्हारी ही वजह से लगी है.’’ मोना की आंखों में खुला निमंत्रण था.

‘‘फिर तो तुम्हें दवा भी मुझे ही देनी होगी.’’

‘‘एक खुराक अभी दे दो, आराम मिला तो और ले लूंगी.’’ कहते हुए मोना ने अपनी दोनों बांहें उठा कर उस की ओर फैला दीं.

सोनू कोई बच्चा तो था नहीं, न बिलकुल गंवार था, जो मोना के दिल की मंशा न समझ पाता. बिना देर लगाए आगे बढ़ कर उस ने मोना को बांहों में भर लिया. थोड़ी देर में देवरभाभी का रिश्ता ही बदल गया.

सोनू जब वहां से बाजार के लिए निकला तो बहुत खुश था. मन में कई महीनों की पाली उस की मुराद पूरी हो गई थी.

दरअसल, जब से मोना ने उसे इशारोंइशारों में रिझाना शुरू किया था, तभी से वह उसे पाने की कल्पना करने लगा था. उस ने आगे कदम नहीं बढ़ाया था तो केवल करीबी रिश्तों की वजह से. लेकिन आज मोना ने खुद ही सारे बंधन तोड़ डाले थे. धीरेधीरे मोना और सोनू का प्यार परवान चढ़ने लगा. मोना को सासससुर, जेठजेठानी किसी का डर नहीं था. वह परिवार से अलग और अकेली रहती थी. पति परदेश में नौकरी करता था, बालबच्चा कोई था नहीं. बच्चों के नाम पर सब से बड़े जेठ की 14 वर्षीय बेटी दिव्या ही थी जो रात को मोना के साथ सोती थी. वह भी इसलिए क्योंकि जाते वक्त मोना का पति बडे़ भैया से कह कर गया था मोना अकेली है, दिव्या को रात में सोने के लिए मोना के पास भेज दिया करें.

तभी से दिव्या रात में मोना के पास सोती थी. सुबह को चाय पी कर दिव्या अपने घर आ जाती थी और स्कूल जाने की तैयारी करने लगती थी. उस के स्कूल जाने के बाद मोना 4-5 घंटे के लिए फ्री हो जाती थी. इस बीच वह शरारती देवर सोनू को बुला लेती थी. स्कूल से आने के बाद दिव्या कभी चाची के घर आ जाती तो कभी अपने घर रह कर काम में मां का हाथ बंटाती. कभीकभी वह अपनी सहेलियों को ले कर मोना के घर आ जाती और उसे भी अपने साथ खिलाती. मोना पूरी तरह सोनू के प्यार में डूब चुकी थी. वह चाहती थी कि दिन ही नहीं बल्कि पूरी रात सोनू के साथ गुजारे.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरे ने चारों ओर पंख पसारने शुरू कर दिए थे. दिव्या को उस की मां मंजू ने कहा, ‘‘जब चाची के पास जाए तो किताबें साथ ले जाना, वहीं पढ़ लेना.’’ दिव्या ने ऐसा ही किया.

दिव्या चाची के घर पहुंची तो दरवाजे के किवाड़ भिड़े हुए थे. वह धक्का मार कर अंदर चली गई. अंदर जब चाची दिखाई नहीं दी तो वह कमरे में चली गई. कमरे में अंदर का दृश्य देख कर वह सन्न रह गई. वहां बेड पर सोनू और मोना निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे पड़े थे. दिव्या इतनी भी अनजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. वह सब कुछ समझ कर बोली, ‘‘चाची, यह क्या गंदा काम कर रही हो?’’

दिव्या की आवाज सुनते ही सोनू पलंग से अपने कपड़े उठा कर बाहर भाग गया. मोना भी उठ कर साड़ी पहनने लगी. फिर मोना ने दिव्या को बांहों में भरते हुए पूछा, ‘‘दिव्या, तुम ने जो भी देखा, किसी से कहोगी तो नहीं?’’

‘‘जब चाचा घर वापस आएंगे तो उन्हें सब बता दूंगी.’’

‘‘तुम तो मेरी सहेली हो. नहीं तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी.’’ मोना ने दिव्या को बहलाना चाहा, लेकिन दिव्या ने खुद को मोना से अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम गंदी हो, मेरी सहेली कैसे हो सकती हो?’’

‘‘मैं कान पकड़ती हूं, अब ऐसा गंदा काम नहीं करूंगी.’’ मोना ने कान पकड़ते हुए नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘कसम खाओ.’’ दिव्या बोली.

‘‘मैं अपनी सहेली की कसम खा कर कहती हूं बस.’’

‘‘चलो खेलते हैं.’’ इस सब को भूल कर दिव्या के बाल मन ने कहा तो मोना ने दिव्या को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया, ‘‘कितनी प्यारी हो तुम.’’

26 दिसंबर, 2016 की अलसुबह गांव के कुछ लोगों ने गांव के ही गजेंद्र के खेत में 14 वर्षीय दिव्या की गर्दन कटी लाश पड़ी देखी तो गांव भर में शोर मच गया. आननफानन में यह खबर दिव्या के पिता ओमप्रकाश तक भी पहुंच गई. उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के सभी लोग रोतेबिलखते, जिन में मोना भी थी घटनास्थल पर जा पहुंचे. बेटी की लाश देख कर दिव्या की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया. किसी ने इस घटना की सूचना थाना गोंडा पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही गोंडा थानाप्रभारी सुभाष यादव पुलिस टीम के साथ गांव पींजरी के लिए रवाना हो गए. तब तक घटनास्थल पर गांव के सैकड़ों लोग एकत्र हो चुके थे. थानाप्रभारी ने भीड़ को अलग हटा कर लाश देखी. तत्पश्चात उन्होंने इस हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी और प्रारंभिक काररवाई में लग गए.

थोड़ी देर में एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और क्षेत्राधिकारी पंकज श्रीवास्तव भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश के मुआयने से पता चला कि दिव्या की हत्या उस खेत में नहीं की गई थी, क्योंकि लाश को वहां तक घसीट कर लाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. मृत दिव्या के शरीर पर चाकुओं के कई घाव मौजूद थे.

जब जांच की गई तो जहां लाश पड़ी थी, वहां से 300 मीटर दूर पुलिस को डालचंद के खेत में हत्या करने के प्रमाण मिल गए. ढालचंद के खेत में लाल चूडि़यों के टुकड़े, कान का एक टौप्स, एक जोड़ी लेडीज चप्पल के साथ खून के निशान भी मिले.

जांच चल ही रही थी कि डौग एक्वायड के अलावा फोरेंसिक विभाग के प्रभारी के.के. मौर्य भी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल से बरामद कान के टौप्स और चप्पलें मृतका दिव्या की ही थीं. जबकि लाल चूडि़यों के टुकड़े उस के नहीं थे. इस से यह बात साफ हो गई कि दिव्या की हत्या में कोई औरत भी शामिल थी. डौग टीम में आई स्निफर डौग गुड्डी लाश और हत्यास्थल को सूंघने के बाद सीधी दिव्या के घर तक जा पहुंची. इस से अंदेशा हुआ कि दिव्या की हत्या में घर का कोई व्यक्ति शामिल रहा होगा.

पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पंचनामा भर कर दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अलीगढ़ भिजवा दिया गया. पूछताछ में दिव्या के परिवार से किसी की दुश्मनी की बात सामने नहीं आई. अब सवाल यह था कि दिव्या की हत्या किसने और किस मकसद के तहत की थी.

हत्या का यह मुकदमा उसी दिन थाना गोंडा में अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज हो गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी शाम दिव्या का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

दूसरे दिन थानाप्रभारी ने महिला सिपाहियों के साथ पींजरी गांव जा कर व्यापक तरीके से पूछताछ की. दिव्या की तीनों चाचियों से भी पूछताछ की गई. सुभाष यादव अपने स्तर पर पहले दिन ही दिव्या की हत्या की वजह के तथ्य जुटा चुके थे. बस मजबूत साक्ष्य हासिल कर के हत्यारों को पकड़ना बाकी था.

दिव्या की सब से छोटी चाची मोना से जब चूडि़यों के बारे में सवाल किया गया तो उस ने बताया कि वह चूड़ी नहीं पहनती, लेकिन जब तलाशी ली गई तो उस के बेड के पीछे से लाल चूडि़यां बरामद हो गईं, जो घटनास्थल पर मिले चूडि़यों के टुकड़ों से पूरी तरह मेल खा रही थीं. सुभाष यादव का इशारा पाते ही महिला पुलिस ने मोना को पकड़ कर जीप में बैठा लिया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में थानाप्रभारी सुभाष यादव को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. मोना ने हत्या का पूरा सच खुद ही बयां कर दिया. सच सामने आते ही बिना देर किए गांव जा कर मोना के प्रेमी सोनू को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सोनू के अलावा नगला मोनी के रहने वाले मनीष को भी धर दबोचा गया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ के बाद हवालात में डाल दिया गया. दिव्या हत्याकांड के खुलासे की सूचना एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और सीओ इगलास पंकज श्रीवास्तव को दे दी गई.

दोनों अधिकारियों ने थाना गोंडा पहुंच कर थानाप्रभारी सुभाष यादव को शाबासी देने के साथ अभियुक्तों से खुद भी पूछताछ की.

पूछताछ में मोना के साथ उस के प्रेमी सोनू व उस के दोस्त ने जो कुछ बताया वह कुछ इस तरह था-

दिव्या ने सोनू को मोना के साथ शारीरिक संबंध बनाते देख लिया था. उस ने चाचा के घर लौटने पर उसे सब कुछ सचसच बता देने की बात भी कही थी. उस समय बात खत्म जरूर हो गई थी. फिर भी डर यही था कि बाल बुद्धि की दिव्या ने अगर यह बात जयकिंदर को बता दी तो उस का क्या हश्र होगा, इसी से चिंतित मोना व सोनू ने योजना बनाई कि जयकिंदर के आने से पहले दिव्या की हत्या कर दी जाए.

दिव्या हर रोज मोना के साथ ही सोती थी और अलसुबह चाची के साथ दौड़ लगाने जाती थी. कभीकभी वह दौड़ने के लिए वहीं रुक जाती थीं. जब कि मोना अकेली लौट आती थी. दिव्या को दौड़ का शौक था, ये बात घर के सभी लोग जानते थे. इसी लिए हत्या में मोना का हाथ होने की संभावना नहीं मानी जाएगी, यह सोच कर मोना ने सोनू के साथ योजना बना डाली, जिस में सोनू ने दूसरे गांव के रहने वाले अपने दोस्त मनीष को भी शामिल कर लिया.

26 दिसंबर को सोनू व मनीष पहले ही वहां पहुंच गए. मोना दिव्या को ले कर जब डालचंद के खेत के पास पहुंची तो घात में बैठे सोनू और मनीष ने दिव्या को दबोच कर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. दिव्या ने बचने के लिए मोना का हाथ पकड़ा, जिस से उस के हाथ से 2 चूडि़यां टूट कर वहां गिर गईं. हत्यारे उसे खींच कर खेत में ले गए, जहां गर्दन काट कर उस की हत्या कर डाली. इसी छीनाझपटी में दिव्या के कान का एक टौप्स भी गिर गया था और चप्पलें भी पैरों से निकल गई थीं.

दिव्या की हत्या के बाद ये लोग लाश को खींचते हुए लगभग 300 मीटर दूर गजेंद्र के खेत में ले गए. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए.

हत्यारा कितना भी चतुर हो फिर भी कोई न कोई सुबूत छोड़ ही जाता है. जो पुलिस के लिए जांच की अहम कड़ी बन जाता है. ऐसा ही साक्ष्य मोना की चूडि़यां बनीं, जिस ने पूरे केस का परदाफाश कर दिया.

गणतंत्र दिवस स्पेशल: एक 26 जनवरी ऐसी भी

हर रविवार की तरह आज भी मयंक देर तक सोता रहा. दोपहर के तकरीबन 12 बजे आंख खुली तो उस ने अपना मोबाइल फोन टटोलना शुरू किया. मोबाइल फोन का लौक ओपन कर के ह्वाट्सएप चैक किया. देखा कि आज कुछ ज्यादा ही लोगों ने स्टेट्स अपडेट कर रखा है.

देखने से पता चला कि आज 26 जनवरी है, जिस की वजह से सब ने देशभक्ति से जुड़े स्टेटस डाले. तब उसे याद आई कि आज तो उस की पत्नी स्नेहा ने सोसाइटी में एक रंगारंग कार्यक्रम भी रखा है.

हर रविवार को उठने से पहले ही बिस्तर पर चाय मिल जाया करती थी, आज स्नेहा लेट कैसे हो गई? कुछ देर इंतजार करने के बाद उस ने आवाज लगाई, ‘‘स्नेहा, मेरी चाय कहां है?’’

पर कोई जवाब न मिलने से मयंक खीज गया. बैडरूम से निकल कर बाहर जा कर देखा तो कोई था ही नहीं. न बच्चे और न ही स्नेहा. मयंक और ज्यादा गुस्सा होते हुए तेज कदमों से वापस कमरे में गया और फोन उठाया.

जैसे ही उस ने स्नेहा को फोन लगाया, उस की नजर स्टडी टेबल पर बहुत ही बेहतरीन तरीके से सजाए हुए एक लिफाफे पर पड़ी, जिस पर बहुत ही खूबसूरत तरीके से लिखा हुआ था, ‘एक त्योहार ऐसा भी’.

मयंक ने बिना समय गंवाए वह लिफाफा खोला और पढ़ना शुरू किया:

‘डियर हसबैंड,

‘आज मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं. मैं यह घर छोड़ कर जा रही हूं. हमेशा के लिए नहीं, लेकिन 2 महीने के लिए जरूर. कल रात तुम ने मुझ पर हाथ उठाया था. मुझे उस का कोई गम नहीं है, क्योंकि यह कोई पहली दफा नहीं हुआ था जो तुम ने मुझ पर हाथ उठाया, पर कल रात तुम ने बिना मुझे समझे यह दर्द दिया.

‘आप यह भी मत सोचो कि मैं आप से नाराज हूं, इसलिए जा रही हूं. मैं आप से नाराज नहीं हूं. बस मैं जा रही हूं लौट आने के लिए, क्योंकि जब हम बीमार होते हैं तो न चाहते हुए भी कड़वी दवा लेते हैं, क्योंकि हम अच्छे से जानते हैं कि कड़वी दवा ही हमें ठीक कर सकती है. शायद कुछ दिन की ये दूरियां हमारी जिंदगी में हमेशा के लिए नजदीकियां ला दें.

‘कल से जब आप औफिस जाएंगे, तो शायद आप को आप का सामान देने वाला कोई नहीं होगा. बाथरूम में तौलिया भी खुद ले जाना पड़ेगा. शायद आप की जुराब भी जगह पर न मिले, गाड़ी की चाबी भी खुद ही ढूंढ़नी पड़े, शाम को घर आते ही आप की नाइट डै्रस भी जगह पर न हो कर बाथरूम में ही उलटी टंगी मिले. बैड पर एक भी सिलवट पसंद न करने वाले को वैसा ही बैड मिलेगा, जैसा कि वह छोड़ कर गया था.

‘एक आवाज पर चायपानी हाथ में न मिले, खाना खाते वक्त कोई नहीं होगा जो रिमोट ढूंढ़ कर आप को दे दे, रात को नींद खुलने पर प्यास लगने पर पानी का जग भरा हुआ न मिले, सुबह मोबाइल फोन भी डिस्चार्ज मिले, क्योंकि कोई नहीं होगा, जो तुम्हारा मोबाइल फोन चार्ज कर दे.

‘मैं आप को यह नहीं जता रही हूं कि आप मेरे बिना यह काम नहीं कर पाएंगे. बेशक, आप सब हैंडल कर लेंगे, बस यही कि यह सब करते वक्त आप को अहसास होगा कि कोई था जो मेरे बिना कहे सब समझाया करता था कि मुझे कब किस चीज की जरूरत है. क्या मुझे भी उसे पूरा नहीं तो थोड़ा तो समझने की जरूरत है.

‘पिछले 8 सालों से मैं हर रोज तुम्हें और अपने बच्चों को हर तरह की खुशियां देने में ही लगी हूं. मैं तुम से शिकायत नहीं कर रही हूं. बस एक गुजारिश है कि मैं तुम्हारे लिए ही आई हूं, तो क्या तुम मुझे थोड़ा भी नहीं सम झ सकते.

‘मांबाबा के गुजर जाने के बाद जब भैयाभाभी ने मेरी तुम से शादी की थी, तब से तुम ही मेरे लिए सबकुछ हो. तुम्हारे औफिस में बिजी रहने के चलते इस अनजान शहर मैं हर सामान लेने के लिए भटकती हूं.

‘‘मैं तुम्हें कोई दोष नहीं दे रही हूं, बस यही कहना चाहती हूं कि तुम मुझे समझ जाओ, क्योंकि तुम ही हो जो मुझे समझ सकते हो. मेरे लिए भी यहां से जाना इतना आसान नहीं था, पर मैं यहां से जा रही हूं. अपना खयाल रखना.

‘तुम्हारी संगिनी.’

यह चिट्ठी पढ़ने के बाद मयंक के चेहरे का तो जैसे रंग ही उड़ गया. उस ने फौरन मोबाइल पर स्नेहा का नंबर डायल किया और आवाज आई, ‘जिस नंबर से आप संपर्क करना चाहते हैं, वह या तो अभी बंद है या नैटवर्क क्षेत्र से बाहर है. लगातार डायल करने पर भी यही जवाब मिला.

अलमारी चैक की तो स्नेहा का पर्स भी नहीं था. स्कूटी भी घर में ही थी. घर से बाहर निकल कर पड़ोसी मिश्राजी से पूछा कि स्नेहा कुछ बोल कर गई है क्या?

मिश्राजी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं मयंक बेटा, कुछ बोल कर तो नहीं गई, पर जाते वक्त मैं ने उसे देखा था. दोनों बच्चों के साथ और एक बैग ले कर गई है.’’

मयंक के तो हाथपैरों ने जैसे जवाब ही दे दिया. उसे हर वह बात याद आ रही थी, जब उस ने स्नेहा पर अपना गुस्सा निकाला. उसे अपशब्द बोले.

बालों में हाथ फेरता हुआ मयंक वहीं बरामदे में बैठ गया. न जाने कौनकौन सी बातें उस के जेहन में आ रही थीं. वक्त का तो जैसे उसे पता ही नहीं चला. बेमन से उठ कर रूम में आया तो देखा कि गैलरी का गेट खुला होने के चलते रूम पर जैसे मच्छरों ने ही कब्जा कर लिया हो. मच्छर भागने की मशीन चालू करने गया तो देखा रिफिल खत्म हो चुकी है और कमरे में तो मच्छरों की पार्टी शुरू हो गई थी.

बहुत ढूंढ़ने के बाद फास्ट कार्ड मिला, उसे जलाया और लेट गया. पर फास्ट कार्ड की बदबू उसे और भी गुस्सा दिला रही थी. कुछ अजीब सा मुंह बनाने के बाद उसे अहसास हुआ कि कुछ अच्छी महक आ रही है. उस ने तेज कदमों के साथ नीचे जा कर देखा तो स्नेहा किचन में काम कर रही थी. उसे कुछ भी समझ नहीं आया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि खुश होवे या गुस्सा करे.

मयंक ने स्नेहा का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘तुम तो चली गई थी न, फिर वापस क्यों आई?’’

स्नेहा बोली, ‘‘कहां चली गई थी? मुझे कुछ सम झ नहीं आ रहा है. क्या बोल रहे हो? कहां चली गई थी?’’

मयंक चिढ़ते हुए बोला, ‘‘अच्छा तो दिनभर से कहां थी? बैग ले कर गई थी न, और वह चिट्ठी जो मेरे लिए छोड़ कर गई थी.’’

स्नेहा फिर बोली, ‘‘मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि तुम क्या बोल रहे हो और कौन सी चिट्ठी की बात कर रहे हो?’’

मयंक और गुस्से में आ कर बोला, ‘‘स्नेहा, अब मुझे गुस्सा मत दिलाओ. सचसच बताओ.’’

स्नेहा थोड़ा सा चिढ़ते हुए बोली, ‘‘क्या बताऊं?’’

मयंक ने बिना देर लगाए जेब से चिट्ठी निकाल कर स्नेहा को पकड़ाई और कहा, ‘‘यह चिट्ठी.’’

चिट्ठी हाथ में लेते ही स्नेहा की तो मानो हंसी ही नहीं रुक रही थी. मयंक आंखें फाड़फाड़ कर देख रहा था. कुछ देर तक स्नेहा को हंसते हुए देखकर मयंक ने कहा, ‘‘स्नेहा, जवाब दो मुझे.’’

स्नेहा कुछ मजाकिया अंदाज में बोली, ‘‘मैनेजर साहब, यह चिट्ठी आप के लिए नहीं है. यह तो आज 26 जनवरी पर हमारी महिला मंडली ने सुबह झंडा फहराने और उस के बाद उसे सैलिब्रेट करने और उस में मेहंदी या बैस्ट डै्रस प्रतियोगिता की जगह एक कहानी प्रतियोगिता रखी है, जिस में सब को एक कहानी लिखनी है.

‘‘जो चिट्ठी तुम ने पकड़ रखी है, वह मेरी लिखी हुई कहानी है. सुबह से सब 26 जनवरी को सैलिब्रेट करने की तैयारी के लिए इकट्ठा हुए थे, तो मैं वहां गई थी. और वैसे भी आज छुट्टी थी, तो बच्चे ख्वाहमख्वाह तुम्हें परेशान करते, तो मैं इन्हें भी अपने साथ ले गई.

‘‘पास में ही जाना था तो स्कूटी भी नहीं ले गई. अब प्रतियोगिता टाइम हुआ है तो तैयार होने और यह लिफाफा लेने आई हूं.

‘‘वैसे, तुम्हें क्या हो गया है? ऐसे क्यों बरताव कर रहे हो? चाय नहीं मिली इसलिए क्या? तुम सोए थे तो मैं ने तुम्हें जगाया नहीं… सौरी.’’

कुछ सोचने के बाद मयंक बोला, ‘‘तुम्हारा फोन क्यों स्विच औफ आ रहा था?’’

स्नेहा खीजते हुए बोली, ‘‘यह है न तुम्हारी औलाद, गेम खेलखेल कर बैटरी ही खत्म कर देती है.’’

मयंक मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओके, कोई बात नहीं. तुम तैयार हो जाओ, मैं तुम्हें छोड़ आऊंगा और बच्चों को भी मैं संभाल लूंगा. वैसे भी आज तो तुम्हें थोड़ा ज्यादा ही सजना होगा.’’

स्नेहा तैयार हो कर जब सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी, तो मयंक ने कुछ आशिकाना अंदाज में कहा, ‘‘नजर न लग जाए मेरी जान को. बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’

स्नेहा हलकी सी मुसकराहट के साथ बोली, ‘‘वैसे, मैं ने कुछ कहा ही नहीं, उस से पहले ही बोल दिए जनाब.’’

पूरे रास्ते मयंक मंदमंद मुसकराता रहा. स्नेहा के पूछने पर भी कुछ नहीं बोला.

जैसे ही स्नेहा कार्यक्रम वाली जगह पर पहुंची, तो मयंक ने पीछे से आवाज लगाई और उस का हाथ पकड़ कर माथे को चूम कर कहा, ‘‘आज तुम यह प्रतियोगिता जीतो या न जीतो, पर आज तुम ने मुझे जरूर जीत लिया है. तुम ने अपने नाम की तरह मुझे बहुत स्नेह दिया है. मैं भी आज तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें कभी कोई दुख नहीं दूंगा. हमेशा तुम्हें खुश रखूंगा.’’

स्नेहा की आंखों से आंसू आ रहे थे. वह कुछ भी बोल नहीं पाई. बस उस का मन यही कह रहा था. एक 26 जनवरी ऐसी थी, जिस ने मुझे समझने वाला मेरा हमसफर लौटा दिया.

26 जनवरी स्पेशल: छुट्टी-बार्डर पर खड़े एक सैनिक की कहानी

दूर दूर तक जहां तक नजर जा सकती थी, पहाड़ों पर बर्फ की सफेद चादर बिछी हुई थी. प्रेमी जोड़ों के लिए यह एक शानदार जगह हो सकती थी, पर सरहद पर इन पहाड़ियों की शांति के पीछे जानलेवा अशांति छिपी हुई थी. पिछले कई महीनों से कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब तोपों के धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने यहां की शांति भंग न की हो.

‘‘साहबजी, आप कौफी पीजिए. ठंड दूर हो जाएगी,’’ हवलदार बलवंत सिंह ने गरम कौफी का बड़ा सा मग मेजर जतिन खन्ना की ओर बढ़ाते हुए कहा.

‘‘ओए बलवंत, लड़ तो हम दिनरात रहे हैं, मगर क्यों  यह तो शायद ऊपर वाला ही जाने. अब तू कहता है, तो ठंड से भी लड़ लेते हैं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने हंसते हुए मग थाम लिया.

कौफी का एक लंबा घूंट भरते हुए वे बोले, ‘‘वाह, मजा आ गया. अगर ऐसी कौफी हर घंटे मिल जाया करे, तो वक्त बिताना मुश्किल न होगा.’’

‘‘साहबजी, आप की मुश्किल तो हल हो जाएगी, लेकिन मेरी मुश्किल कब हल होगी ’’ बलवंत सिंह ने भी कौफी का लंबा घूंट भरते हुए कहा.

‘‘कैसी मुश्किल ’’ मेजर जतिन खन्ना ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘साहबजी, अगले हफ्ते मेरी बीवी का आपरेशन है. मेरी छुट्टियों का क्या हुआ ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘सरहद पर इतना तनाव चल रहा है.  हम लोगों के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. ऐसे में छुट्टी मिलना थोड़ा मुश्किल है, पर मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने समझाया.

‘‘लेकिन सर, क्या देशभक्ति का सारा ठेका हम फौजियों ने ही ले रखा है ’’ कहते हुए बलवंत सिंह ने मेजर जतिन खन्ना के चेहरे की ओर देखा.

‘‘क्या मतलब… ’’ मेजर जतिन खन्ना ने पूछा.

‘‘यहां जान हथेली पर ले कर डटे रहें हम, वहां देश में हमारी कोई कद्र नहीं. सालभर गांव न जाओ, तो दबंग फसल काट ले जाते हैं. रिश्तेदार जमीन हथिया लेते हैं. ट्रेन में टीटी भी पैसे लिए बिना हमें सीट नहीं देता. पुलिस वाले भी मौका पड़ने पर फौजियों से वसूली करने से नहीं चूकते,’’ बलवंत सिंह के सीने का दर्द बाहर उभर आया.

‘‘सारे जुल्म सह कर भी हम देश पर अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हैं, मगर कम से कम हमें इनसान तो समझा जाए.

‘‘घर में कोई त्योहार हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. कोई रिश्तेदार मरने वाला हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. जमीनजायदाद का मुकदमा हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. अब बीवी का आपरेशन है, तो भी छुट्टी नहीं मिलेगी. लानत है ऐसी नौकरी

पर, जहां कोई इज्जत न हो.’’

‘‘ओए बलवंत, आज क्या हो गया है तुझे  कैसी बहकीबहकी बातें कर रहा है  अरे, हम फौजियों की पूरी देश इज्जत करता है. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘हां, इज्जत मिलती है, लेकिन मर जाने के बाद. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है, मगर शहीद हो जाने के बाद. जिंदा रहते हमें बस और ट्रेन में जगह नहीं मिलेगी, हमारे बच्चे एकएक पैसे को तरसेंगे, मगर मरते ही हमारी लाश को हवाईजहाज पर लाद कर ले जाया जाएगा. परिवार के दुख को लाखों रुपए की सौगात से खरीद लिया जाएगा. जिस के घर में कभी कोई झांकने भी न आया हो, उसे सलामी देने हुक्मरानों की लाइन लग जाएगी.

‘‘हमारी जिंदगी से तो हमारी मौत लाख गुना अच्छी है. जी करता है कि उसे आज ही गले लगा लूं, कम से कम परिवार वालों को तो सुख मिल सकेगा,’’ कहते हुए बलवंत सिंह का चेहरा तमतमा उठा.

‘‘ओए बलवंत…’’

‘‘ओए मेजर…’’ इतना कह कर बलवंत सिंह चीते की फुरती से मेजर जतिन खन्ना के ऊपर झपट पड़ा और उन्हें दबोचे हुए चट्टान के नीचे आ गिरा. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, बलवंत सिंह के कंधे पर टंगी स्टेनगन आग उगलने लगी.

गोलियों की ‘तड़…तड़…तड़…’ की आवाज के साथ तेज चीखें गूंजीं और चंद पलों बाद सबकुछ शांत हो गया.

‘‘ओए बलवंत मेरे यार, तू ठीक तो है न ’’ मेजर जतिन खन्ना ने अपने को संभालते हुए पूछा.

‘‘हां, साहबजी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ बलवंत सिंह हलका सा हंसा, फिर बोला, ‘‘मगर, ये पाकिस्तानी कभी ठीक नहीं होंगे. इन की समझ में क्यों नहीं आता कि जब तक एक भी हिंदुस्तानी फौजी जिंदा है, तब तक वे हमारी चौकी को हाथ भी नहीं लगा सकते,’’ इतना कह कर बलवंत सिंह ने चट्टान के पीछे से झांका. थोड़ी दूरी पर ही 3 पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें पड़ी थीं. छिपतेछिपाते वे कब यहां आ गए थे, पता ही नहीं चला था. उन में से एक ने अपनी एके 47 से मेजर जतिन खन्ना के सीने को निशाना लगाया ही था कि उस पर बलवंत सिंह की नजर पड़ गई और वह बिजली की रफ्तार से मेजर साहब को ले कर जमीन पर आ गिरा.

‘‘बलवंत, तेरी बांह से खून बह रहा है,’’ गोलियों की आवाज सुन कर खंदक से निकल आए फौजी निहाल सिंह ने कहा. उस के पीछेपीछे उस चौकी की सिक्योरिटी के लिए तैनात कई और जवान दौडे़ चले आए थे.

‘‘कुछ नहीं, मामूली सी खरोंच है. पाकिस्तानियों की गोली जरा सा छूते हुए निकल गई थी,’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘बलवंत, तू ने मेरी खातिर अपनी जान दांव पर लगा दी. बता, तू ने ऐसा क्यों किया ’’ कह कर मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘क्योंकि देशभक्ति का ठेका हम फौजियों ने ले रखा है,’’ कह कर बलवंत सिंह फिर मुसकराया.

‘‘तू कैसा इनसान है. अभी तो तू सौ बुराइयां गिना रहा था और अब देशभक्ति का राग अलाप रहा है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने दर्दभरी आवाज में कहा.

‘‘साहबजी, हम फौजी हैं. लड़ना हमारा काम है. हम लड़ेंगे. अपने ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे, मगर जब देश की बात आएगी, तो सबकुछ भूल कर देश के लिए लड़तेलड़ते जान न्योछावर कर देंगे. कुरबानी देने का पहला हक हमारा है. उसे हम से कोई नहीं छीन सकता,’’ कहतेकहते बलवंत सिंह तड़प कर जोर से उछला.

उस के बाद एक तेज धमाका हुआ और फिर सबकुछ शांत हो गया.

बलवंत सिंह की जब आंखें खुलीं, तो वह अस्पताल में था. मेजर जतिन खन्ना उस के सामने ही थे.

‘‘सरजी, मैं यहां कैसे आ गया ’’ बलवंत सिंह के होंठ हिले.

‘‘अपने ठेके के चलते…’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के सिर पर हाथ फेरा, फिर बोले, ‘‘तू ने कमाल कर दिया. दुश्मन के

3 सैनिक एक तरफ से आए थे, जिन्हें तू ने मार गिराया था. बाकी के सैनिक दूसरी तरफ से आए थे. उन्होंने हमारे ऊपर हथगोला फेंका था, जिसे तू ने उछल कर हवा में ही थाम कर उन की ओर वापस उछाल दिया था. वे सारे के सारे मारे गए और हमारी चौकी बिना किसी नुकसान के बच गई.’’

‘‘तेरे जैसे बहादुरों पर देश को नाज है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बलवंत सिंह का कंधा थपथपाया, फिर बोले, ‘‘तू भी बिलकुल ठीक है. डाक्टर बता रहे थे कि मामूली जख्म है. एकदो दिन में यहां से छुट्टी मिल जाएगी.

‘‘छुट्टी…’’ बलवंत सिंह के होंठ धीरे से हिले.

‘‘हां, वह भी मंजूर हो गई है. यहां से तू सीधे घर जा सकता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बताया, फिर चौंकते हुए बोले, ‘‘एक बात बताना तो मैं भूल ही गया था.’’

‘‘क्या… ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.

‘‘तुझे हैलीकौफ्टर से यहां तक लाया गया था.’’

‘‘पर अब हवाईजहाज से घर नहीं भेजेंगे ’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.

‘‘कभी नहीं…’’ मेजर जतिन खन्ना भी मुसकराए, फिर बोले, ‘‘ब्रिगेडियर साहब ने सरकार से तुझे इनाम देने की सिफारिश की है.’’

‘‘साहबजी, एक बात बोलूं ’’

‘‘बोलो…’’

‘‘इनाम दिलवाइए या न दिलवाइए, मगर सरकार से इतनी सिफारिश जरूर करा दीजिए कि हम फौजियों की जमीनजायदाद के मुकदमों का फैसला करने के लिए अलग से अदालतें बना दी जाएं, जहां फटाफट इंसाफ हो, वरना हजारों किलोमीटर दूर से हम पैरवी नहीं कर पाते.

‘‘सरहद पर हम भले ही न हारें, मगर अपनों से लड़ाई में जरूर हार जाते हैं,’’ बलवंत सिंह ने उम्मीद भरी आवाज में कहा.

मेजर जतिन खन्ना की निगाहें कहीं आसमान में खो गईं. बलवंत सिंह ने जोकुछ भी कहा था, वह सच था, मगर जो वह कह रहा है, क्या वह कभी मुमकिन हो सकेगा.

Bigg Boss 17: काम्या पंजाबी ने किया पोस्ट, इस कंटेस्टेंट को बता डाला विनर

रिएलिटी शो बिग बौस 17 ने हर साल की तरह इस साल भी सबका मनोरंजन किया और अब ये शो अपने फिनाले वीक में चल रहा है. जिसका ग्रैंड फिनाले 28 जनवरी को होने वाला है. वही, सब अपने अपने विनर बता रहे है. ऐसा ही पोस्ट इन दिनों काम्या पंजाबी (Kamya Punjabi) ने किया है जिसमे वो मुनव्वर या अंकिता को विनर ना बता कर किसी ओर को शो का विनर घोषित कर रही है.

 

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जी हां, शो को अपने टॉप पांच कंटेस्टेंट मिल चुके है इसमें अंकिता लोखंडे (Ankita Lokhande), मुनव्वर फारुकी(Munawar Faruqui), अभिषेक कुमार (Abhishek kumar), मन्नारा चोपड़ा (Manara chopra) और अरुण माशेट्टी (Arun mashetty) ने जगह बनाई है. सोशल मीडिया पर फैंस से लेकर सेलेब्स तक अपने फेवरेट कंटेस्टेंट को सपोर्ट कर रहे हैं. ज्यादातर लोगों को मानना है कि अंकिता लोखंडे या मुनव्वर फारुकी में से कोई एक विनर होगा. कई लोग अभिषेक कुमार को भी विनर बता रहे हैं, लेकिन काम्या पंजाबी को कोई और ही इस शो का विनर लगता है. काम्या ने अपने लेटेस्ट पोस्ट में इस सीजन के विनर का नाम लिखकर लोगों को हैरान कर दिया है.

काम्या पंजाबी बिग बौस 17 को काफी करीब से फॉलो कर रही हैं. उन्होंने अंकिता लोखंडे और मुनव्वर फारुकी  के सपोर्ट में कई बार पोस्ट किया है, लेकिन काम्या पंजाबी के लेटेस्ट पोस्ट ने फैंस को हैरान कर दिया है. इस बार एक्ट्रेस ने किसी और कंटेस्टेंट को विनर बता डाला है, जो फैंस के लिए भी शॉकिंग है. काम्या ने X पर अरुण माशेट्टी को विनर बताया है, जिन्हें लोग टॉप पांच में भी देखना नहीं चाह रहे हैं. काम्या ने X पर लिखा, ‘ऐसा कैसे है कि कोई भी अरुण माशेट्टी को अपना कॉम्पटीशन नहीं मान रहा है? ना घर के अंदर और ना घर के बाहर… वैसे किसको राहुल रॉय याद है? सिर्फ बोल रही हूं.’ काम्या पंजाबी के इस पोस्ट पर एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्जी ने कमेंट किया है. एक्ट्रेस ने लिखा है, ‘आज मैं सच में यही सोच रही थी.’ वहीं कुछ फैंस मन्नारा को विनर बता रहे हैं.

साड़ी में लहराती हुई नजर आई भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा, फैंस ने की तारीफ

भोजपुरी की पौपुलर एक्ट्रेस मोनालिसा ने भोजपुरी सिनेमा में ही नहीं हिंदी टीवी में भी अपनी पहचान कायम रखी है. एक्ट्रेस हमेशा अपने पोस्ट को लेकर सुर्खियों में छाई रहती है. उनका अंदाज लोगों को काफी पसंद आता है. हाल ही में उनका एक वीडियो सामने आया है. जो कि इंटरनेट पर जोरो शोरो से वायरल हो रहा है. इस वीडियो को लोग काफी पसंद कर रहे है.

 

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एक्ट्रेस मोनालिसा का अंदाज बेहद कातिलाना है. उनको देखते ही लोगों की धड़कनें तेज हो जाती हैं. मोनालिसा की हर अदा पर लोग फिदा हो जाते हैं. इस बीच भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा का एक वीडियो सामने आया है, इस क्लिप को लोग काफी पसंद कर रहे हैं. मोनालिसा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट को अपडेट करते हुए एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वो किलर डांस करती नजर आ रही हैं.

जी हां, मोनालिसा का ये अंदाज सभी को काफी पसंद आ रहा है. मोनालिसा ने साड़ी में अपने कातिलाना लटके-झटके दिखाए है. इस वीडियो को देखते ही कई लोग घायल हो गए हैं. एक्ट्रेस सात समुंदर पार गाने पर अपनी किलर अदाएं दिखा रही है. भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा के इस क्लिप पर तमाम लोग रिएक्ट कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘आपके जैसा दूसरा डांसर कोई और नहीं.’ दूसरे ने लिखा, ‘आग लगा दिया मैडम’.

 

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बताते चलें भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा बोल्डनेस के मामले में कई एक्ट्रेसेस को टक्कर देती हैं. इस लिस्ट में बौलीवुड की सनी लियोनी का नाम भी शामिल है. मालूम हो कि एक्ट्रेस मोनालिसा का देसी लुक सबसे बेस्ट हैं साड़ी में मोनालिसा किसी अप्सरा से कम नहीं लगती हैं.

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