नशा बिगाड़े दशा – भाग 2 : महेश की हालत कैसी थी

उस के पिता के पास जमीन नहीं थी, जो छुईखदान में यहांवहां मेहनतमजूरी किया करते थे, पर महेश लफंगई व गुंडई करता था. महेश अपने घर का एकलौता लड़का था. लाड़प्यार में पला था. उस के पीछे एक बहन थी.

महेश अपने सरीखे लुच्चे यारों के साथ कभीकभार दारू पी लेता था और मातापिता के मना करने पर उन्हीं से लड़ पड़ता था कि शराब पीने के लिए रोकोगेटोकोगे, तो मेरा मुंह न देख सकोगे. मैं घर से भाग जाऊंगा.जब महेश ने देखा कि सीमा छुईखदान छोड़ कर राजनांदगांव रहने लगी है, तब उस ने राजनांदगांव में एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में जैसेतैसे अपने लिए काम ढूंढ़ा और किराए का एक कमरा ले कर आउटर में रहने लगा.

अब वे 2 प्रेमी अकसर मिलने लगे. कभी पार्क में, तो कभी रत्नागिरी पहाड़ी में. कभी रेलवे स्टेशन में, तो कभी बसस्टैंड में. कभी ओवरब्रिज के नीचे, तो कभी रानी सागर के किनारे. कभी सिनेमाघर में, तो कभी बाजार में. मिलन के दरमियान वे मीठीमीठी बातें किया करते थे और जिंदगीभर साथ निभाने का वादा करते थे.

 

जब सीमा को लगा कि इस से उस की पढ़ाईलिखाई पर बुरा असर पड़ रहा है और वह सब की निगाह में आने लगी है, तब उस ने महेश से मिलनाजुलना कम कर दिया और किसी न किसी बहाने उसे टरकाने लगी.यह बात महेश को नागवार गुजरने के साथसाथ झटका देने वाली थी. वह सीमा की मजबूरी को न समझ कर उस पर शक करने लगा कि वह जरूर किसी दूसरे लड़के के चक्कर में पड़ गई है और उस से पीछा छुड़ा रही है.

यहां तक कि महेश शक के मारे सीमा की रैकी करने लगा. एक दिन उस के शक्की दिमाग में शक का बीज पड़ ही गया. उस ने देखा कि सीमा वाकई किसी दूसरे लड़के की मोटरसाइकिल पर बैठ कर कहीं जा रही है.

महेश ने रात को शराब के नशे में फोन पर सीमा को धमकी दी, ‘‘मुझे धोखा देने का अंजाम बुरा होगा सीमा.’’

सीमा सफाई देती रही, ‘‘वह लड़का मेरे भाई का दोस्त है, जो मुझे अपने घरपरिवार के लोगों से मिलाने के लिए ले गया था.’’

यहां बात आईगई हो गई, पर उस के दिमाग में शक का जो कीड़ा पड़ गया था, वह रहरह कर कुलबुलाने लगा.

एक दिन उस ने सीमा को परखने के लिए वीरान रत्नागिरी पहाड़ी पर बुलाया और वहां गम कम करने के लिए पहली बार छक कर दारू पी.

लेकिन अफसोस, सीमा वहां नहीं पहुंची. उस का जरूरी पेपर और लैब टैस्ट जो था. इस से महेश आपे से बाहर हो गया. चीखनेचिल्लाने लगा. अपना माथा पीटने लगा.

अब महेश का शक यकीन में बदल चुका था. जब नशा उतरा, तब समझ में आया कि यहां नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा? लिहाजा, खुद को संभालते हुए उस ने सीमा को फोन लगाया.

इस पर सीमा ने सफाई दी, ‘‘लैब टैस्ट जरूरी था. यह मेरे कैरियर का सवाल है. मिलनामिलाना तो बाद में भी होता रहेगा.’’

बात को यहीं खत्म करते हुए सीमा ने अगले दिन रत्नागिरी पहाड़ी पर शाम को 4 बजे मिलने का वादा किया और फोन झटपट रख दिया.

सीमा के ऐसे बेगानेपन से महेश के दिल को फिर गहरी ठेस लगी. अब उस का शंकालु कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने जीभर कर शराब पी और उस से निबटने की योजनाएं बनाने लगा.

अगले दिन महेश सुनसान पहाड़ी पर समय से पहले पहुंच गया और आदतन अपना गला तर कर लिया. वह पूरी बोतल इस कदर गटक गया कि अपना आपा खो बैठा.

सीमा को वक्त पर पहुंचने में देर हो गई. जब वहां पहुंची, तब महेश नशे में धुत्त हो चुका था. उस की आंखें लाल हो गई थीं, जिस में उस की नाराजगी साफ झलक रही थी.

महेश सीमा को सजीधजी देख कर शक के मारे आगबबूला हो उठा कि यह किसी और से मिल कर आ रही है और उस के साथ गेमबाजी कर रही है. वह उसे भलाबुरा कहने लगा, गालियां देने लगा, उस के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगा. यहां तक कि वह नशे में उस को देख लेने की धमकियां देने लगा. इस से उन दोनों में तीखी नोकझोंक व हाथापाई हो गई.

तभी सीमा ने महेश के चंगुल से निकलते हुए उसे झटका और पूरी ताकत से धकेल दिया. वह मदहोशी में पटकनी खाते हुए पथरीली जमीन पर औंधे मुंह गिर पड़ा. सीमा रोतीबिलखती वहां से जाने लगी.

सीमा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. महेश ने घायल शेर की तरह जमीन पर गिरेगिरे ही एक वजनी पत्थर उठाया, पलटा, बैठा और गुस्से से सीमा के सिर पर ‘तेरी तो…’ कहते हुए जोर से दे मारा.

अचानक लगी तेज चोट से सीमा ने ‘ओह मां’ कहते हुए अपना सिर पकड़ लिया. वह लड़खड़ाई और एक पत्थर पर गिर कर बेहोश हो गई.महेश बदहवास वहीं बैठ गया. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. कुछ देर वह वहीं मायूस बैठा रहा और सीमा की मौत का मातम मनाता रहा.महेश ने सीमा को अस्पताल ले जाने के बजाय 2 बड़े पत्थरों की आड़ में लिटाया और वहां से चलता बना.महेश ने सीमा के मोबाइल फोन से उस के घर वालों और पुलिस को मैसेज भेज दिया कि वह अपनी मरजी से किसी के साथ जा रही है. उसे ढूंढ़ने की कोशिश न की जाए.

दूसरे दिन महेश रत्नागिरी पहाड़ी पर उस जगह पर पहुंचा, जहां हादसा हुआ था. उस के होश फाख्ता हो गए, क्योंकि सीमा वहां नहीं थी. क्या उसे जंगली जानवर उठा कर ले गए या शहरी कुत्ते खा गए? अगर ऐसा होता, तो उस के कुछ निशान तो जरूर मिलते. वह होश में आ कर कहीं चली तो नहीं गई?

इस के बाद महेश डरासहमा सा रहने लगा. उस का किसी काम में मन नहीं लग रहा था. उधर सीमा के घर वाले जब मोबाइल फोन पर सीमा से संपर्क करने लगे, तो उस का फोन बंद बताने लगा.

उन्होंने घटना के दूसरे दिन छुईखदान थाने में एफआईआर दर्ज कराई कि उन की बेटी लापता हो गई है. इस के लिए महेश जिम्मेदार हो सकता है, क्योंकि सीमा और उस को राजनांदगांव में कई जगह देखा गया था.

मनोहर कहानियां: मैनेजर निकली किडनैपिंग की मास्टरमाइंड

नसीम अंसारी कोचर

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शालीमार बाग के रहने वाले विकास अग्रवाल के बैंक्वेट हाल के बिजनैस में रंगत आ गई थी. बीते साल अच्छी तरह से बीते दशहरादीपावली के बाद शादियों का मौसम आ चुका था. वह खुश थे कि 2021 के लौकडाउन की कई बंदिशें हटाई जा चुकी थीं. जिस से शादियों के लिए बैंक्वेट हाल की बुकिंग तेजी से होने लगी थी.

दिसंबर 2021 की बात है. विकास अग्रवाल 17-18 दिसंबर की शादी की बुकिंग के लिए तैयारियों में लगे थे. काम बहुत था. सब कुछ शादी करवाने वाली पार्टियों के और्डर और फरमाइशों के मुताबिक करना था. बैंड वाले, कैटरिंग वाले, डीजे वाले, फोेटोवीडियो शूट वाले, घोड़ी वाले से ले कर सजावट तक में किसी भी तरह की चूक नहीं रहने देना चाहते थे.

सजावट पर तो उन का विशेष ध्यान था. वे चाहते थे कि लाइटों के अलावा सजावट में ताजे फूलों को ज्यादा से ज्यादा लगाएं. इन सब के लिए अग्रवाल ने अलगअलग डिपार्टमेंट बना रखे थे. मैनेजर ऋचा सब्बरवाल को सभी डिपार्टमेंट को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. साथ ही वह डेकोरेशन का काम भी देखती थी. डेकोरेशन में कोई कमी होने पर एक पार्टी ने पैसा काट लेने की बात कही थी. इसलिए अग्रवाल अपने साथ 18 साल के बेटे किंशुक का भी सहयोग लेने लगे थे. मार्केटिंग के लिए उसे भी अपने स्टाफ के साथ भेजते थे.

विकास अग्रवाल चाहते थे कि 12वीं में पढ़ने वाला उन का बेटा धीरेधीरे उन के बिजनैस के बारे में सीखसमझ ले. यही कारण था कि मार्केटिंग वगैरह के लिए उसे भी अपने स्टाफ के साथ भेजते थे.

विकास ने 17 दिसंबर 2021 की सुबहसुबह फूल खरीद लाने के लिए मैनेजर ऋचा और ड्राइवर जितेंद्र के साथ किंशुक को भी दिल्ली-यूपी बोर्डर से सटे गाजीपुर फूलमंडी भेज दिया था.

वे सुबह 6 बजे के करीब फूलमंडी पहुंच गए थे. गाजीपुर फूलमंडी पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आती है. उन्होंने मंडी जा कर अच्छेखासे फूल खरीद लिए थे. जितेंद्र, ऋचा और किंशुक अपनेअपने हाथों में फूलों का एकएक गट्ठर ले कर सड़क के किनारे पार्क गाड़ी के पास आ गए. ड्राइवर ने गाड़ी की डिक्की खोली और सभी ने उन में फूलों के गट्ठर रख दिए.

तब तक किंशुक गाड़ी की अगली सीट पर जा कर बैठने लगा. ऋचा मना करती हुई उस से बोली, ‘‘अरे वहां नहीं, पीछे की सीट पर बैठो न सेठ की तरह. तुम हमारे मालिक के बेटे हो, तो तुम भी तो सेठ हुए न.’’

और फिर ऋचा मुसकराने लगी. किंशुक भी आज्ञाकारी की तरह पीछे की सीट जा बैठा और ऋचा ड्राइवर सीट के बगल में बैठ गई. कुछ समय में जितेंद्र भी रजनीगंधा के फूलों का बंडल ले आया. उसे डिक्की में संभाल कर रख दिया और ड्राइवर की सीट पर बैठ गया.

तभी काले रंग की जैकेट, कैप और मास्क पहने हुए एक व्यक्ति किंशुक का गेट खोलते हुए घुस आया और उसे दूसरी तरफ धकेल दिया. उस ने फुरती से सामने बैठे ड्राइवर पर पिस्तौल तान दी. बोला, ‘‘चुपचाप मैं जैसे कहता हूं करो. जहां कहता हूं चलो.’’

तब तक जितेंद्र गाड़ी स्टार्ट कर चुका था. ऋचा अचानक हुई इस हलचल से पीछे देखने के लिए मुड़़ी. गाड़ी में जबरन आ घुसा व्यक्ति पिस्तौल की नोंक उस की तरफ घुमाते हुए बोला, ‘‘कोई आवाज नहीं. कोई फोन नहीं. तू चुपचाप बैठी रह और आगे देख, पीछे नहीं मुड़ना, वरना…’’

ऋचा डर कर आगे देखने लगी और जितेंद्र ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

‘‘अरे उधर नहीं, अशोक विहार चलो.’’ कहते हुए अज्ञात व्यक्ति ने पिस्तौल जितेंद्र की कनपटी पर तान दी. दूसरे हाथ से उस ने किंशुक के सिर को साथ लाए गमछे से लपेट लिया और अपनी गोद में नीचे झुका दिया. उसे भी डांटते हुए बोला, ‘‘चुपचाप से बैठा रह नहीं तो तुम्हें भी नहीं छोडूंगा.’’

‘‘मुंह खोल दो सांस नहीं ले पा रहा हूं. मैं चुपचाप बैठूंगा. शोर नहीं मचाऊंगा.’’ किंशुक मिमियाता हुआ बोला.

‘‘चलो ठीक है गमछा हटा लेता हूं.’’ किंशुक के चेहरे से भले ही गमछा हटा दिया गया हो, लेकिन उस की गरदन में लिपटा रहा और उसे वह अज्ञात व्यक्ति मजबूती से पकड़े रहा.

यह सब जितेंद्र अपने सामने लगे शीशे में देख कर समझ गया कि किंशुक का किडनैप हो चुका है और वे सभी किडनैपर की गिरफ्त में हैं. पिस्तौल देख कर तीनों घबरा गए. फिर जितेंद्र ने वैसा ही किया, जैसा वह किडनैपर कहता गया. उस के इशारे पर दाएंबाएं गाड़ी को मोड़ता रहा. अशोक विहार के रास्ते पर किडनैपर ने किंशुक के मोबाइल फोन से उस के पिता विकास अग्रवाल को वाट्सऐप काल किया. उन से कहा कि उस ने उन के बेटे का किडनैप कर लिया है. एक करोड़ रुपए की फिरौती मिलने के बाद ही उसे छोड़ेगा.

सुबहसुबह एक करोड़ फिरौती की बात सुन कर विकास अग्रवाल के होश उड़ गए. वह फोन पर किडनैपर से मिन्नतें करने लगे, ‘‘मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं. मैं कहां से दूं पैसे… प्लीज मेरे बेटे को कुछ मत करना…’’

किडनैपर ने बात पूरी होने से पहले ही फोन कट कर दिया और भुनभुनाने लगा, ‘‘हरामजादा, कहता है पैसे नहीं हैं. शादियों के 20-20 लाख की बुकिंग करता है, कहां गए पैसे? …चल रे, गाड़ी घुमा इसे गाजियाबाद ले चलते हैं. वहीं ठिकाने लगा देंगे.’’

‘‘ऐसा मत करना, मेरे मालिक बहुत अच्छे हैं. मुझे पता है उन्होंने बड़ी मुश्किल से काम शुरू किया है.’’ जितेंद्र बोला.

उस की बात खत्म होते ही किंशुक के मोबाइल पर विकास अग्रवाल की काल आ गई. किडनैपर काल में पापा लिखा देख कर समझ गया विकास का ही फोन है. उस ने तुरंत फोन काट दिया और किंशुक से बोला, ‘‘पापा को बोल वाट्सऐप से काल करें.’’

किंशुक ने वैसा ही किया, जैसा किडनैपर ने कहा.  कुछ सेकेंड में ही वाट्सऐप पर काल आ गई. किडनैपर ने झट अपने हाथ में फोन ले लिया. उधर से विकास के गिड़गिड़ाने की आवाज आने लगी, ‘‘देखो, मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं. मेरे बेटे को कुछ मत करना. 50 लाख तक का इंतजाम कर सकता हूं मैं.’’

‘‘ज्यादा चालाकी मत दिखाओ. जल्दी करो, वरना मैं इसे ले कर गाजियाबाद जा रहा हूं. फिर इस का जो होगा समझ लेना.’’

‘‘नहींनहीं, मैं आधे घंटे में 50 लाख का इंतजाम कर लूंगा,’’ विकास ने कहा.

‘‘चलो तुम्हारी बात मान लेता हूं, लेकिन आधा घंटा नहीं. केवल 20 मिनट. पैसे 2 अलगअलग थैलियों में आधाआधा रख कर अशोक विहार में पार्क के गेट से पहले कूड़ेदान के पास मिलना.’’ यह कहते हुए किडनैपर ने फोन कट कर दिया. जितेंद्र ने पीछे मुड़ना चाहा, तो किडनैपर फिर पिस्तौल उस की कनपटी पर सटाते हुए बोला, ‘‘तू अशोक विहार ही चल. तिकोना पार्क की बाउंड्री के पास.’’

फिरौती में दे दिए 50 लाख रुपए

उधर विकास अग्रवाल जल्दी ही रुपए ले कर बताई गई जगह पर पहुंच गए. कुछ मिनट में ही जितेंद्र की गाड़ी वहां पहुंच गई. किडनैपर ने विकास से पैसे की थैलियां ले लीं और किंशुक, जितेंद्र और ऋचा को गाड़ी से उतरने को कहा.

विकास को जितेंद्र की जगह ड्राइविंग सीट पर बैठने को कह कर खुद उस की बगल वाली सीट पर बैठ गया. पिस्तौल अब भी उस के हाथ में थी, जो विकास की ओर तनी थी. उस ने विकास को गाड़ी चलाने को कहा.

विकास उस के इशारे पर अपनी कार को आधे घंटे तक सड़कों पर दौड़ाते रहे. अंत में किडनैपर ने पश्चिम विहार की मुख्य सड़क पर रेडिसन होटल के पास गाड़ी रोकने को कहा. गाड़ी रुकते ही किडनैपर उतर गया. विकास को गाड़ी ले जाने के लिए कहा.

किडनैपर के उतरते ही विकास की जान में जान आई. किंशुक के मुक्त होने पर वह पहले ही निश्चिंत हो चुके थे. उन्होंने तुरंत शालीमार बाग की ओर गाड़ी घुमा ली और तेजी से अपने घर की ओर निकल गए.

विकास दिन में करीब 11 बजे घर आ गए. घर पर किंशुक को खाने की टेबल पर देख कर खुश हो गए. गले लगे और सिर्फ इतना पूछा, ‘‘तू ठीक है न? उस ने तुम्हारे साथ मारपीट तो नहीं की न?’’

किंशुक बोला, ‘‘नहीं पापा.’’

विकास अग्रवाल के दिमाग में खलबली मची हुई थी. वह पूरा वाकया जानना चाहते थे. बेटे के मुंह से सुनना चाहते थे.

किंशुक ने फूल खरीदने से ले कर किडनैपिंग और घर तक पहुंचने की सिलसिलेवार ढंग से कहानी सुना दी. उसी क्रम में उस ने बताया कि ऋचा रास्ते से ही औफिस चली गई और वह ड्राइवर के साथ घर आया.

विकास को यह बात बड़ी अजीब लगी कि इतनी बड़ी घटना हो जाने के बावजूद वह उन का घर लौटने तक इंतजार करना तो दूर घर तक आई भी नहीं. हालांकि इस पर ज्यादा सोचने के बजाय इस उधेड़बुन में लग गए कि इस घटना की सूचना पुलिस को दी जानी चाहिए या नहीं?

थोड़ी देर में वह तैयार हो कर वैंक्वेट हाल का काम देखने के लिए अपने औफिस आ गए. वहां ऋचा उस रोज की बुकिंग के लिए सजावट के काम में लगी हुई थी.

उन्होंने उसे और जितेंद्र को औफिस में बुलवाया. उन से भी किडनैपिंग की घटना के बारे में पूरा किस्सा सुना. साथ ही पूछा कि क्या वे लोग किडनैपर को पहचान लेंगे?

इस पर उन्होंने कहा कि वह अपना चेहरा पूरी तरह से ढंके हुए था और गाड़ी में आगे बैठे होने के कारण उस की कदकाठी या चालढाल पर ध्यान ही नहीं दिया.

औफिस के केबिन से ऋचा के जाने के बाद जितेंद्र से विकास ने पूछा, ‘‘जितेंद्र, ऋचा इतनी निराश और उखड़ी हुई क्यों लग रही है?’’

‘‘सर जी, वह इस घटना के बाद निराश इसलिए हो गई, क्योंकि उसे लगता है कि अब तो उस की सैलरी किसी भी कीमत पर नहीं बढ़ सकती. यह बात आप के आने से पहले बोल रही थी.’’ जितेंद्र बोला.

‘‘अब तू ही बता न मैं क्या करूं? अभी काम थोड़ा चलना शुरू हुआ ही था कि एक और आफत आ गई. मैं ने कैसेकैसे कर उतने रुपए जुटाए, मैं ही जानता हूं. सोचता हूं पुलिस में इस की शिकायत करवा दूं. शायद किडनैपर पकड़ा जाए और पैसे मिल जाएं. क्यों तुम क्या कहते हो?’’ विकास ने सलाह ली.

‘‘अपने लोगों से भी इस पर सलाह ले लीजिए. मैं क्या बोलूं? मैं ठहरा छोटा आदमी.’’ ऐसा बोल कर ड्राइवर चला गया.

उस के जाने के बाद विकास अग्रवाल ने एक कप कौफी मंगवाई. कौफी की घूंट लेते हुए इसी सोच में डूबे रहे पुलिस को शिकायत करें या नहीं. मन में 2 बातें आजा रही थीं. अगर करते हैं, तो थाने कोर्ट का चक्कर लग जाएगा. काफी काम पसरा हुआ है. अगर नहीं करते हैं, तो किडनैपर उसे डरा हुआ समझेगा और हो सकता है वह दोबारा ऐसा कर दे.

इसी उहापोह में उन्होंने अपने कुछ खास कारोबारी मित्रों और पत्नी तक से सलाह ली. अधिकतर का कहना था कि पुलिस में शिकायत की जानी चाहिए. कइयों ने दावे के साथ कहा कि ऐसा करने पर पुलिस अगर चाहे तो फिरौती का पैसा वापस भी मिल सकता है.

अंतत: विकास अग्रवाल ने अगले रोज 18 दिसंबर, 2021 को पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया थाने में अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को पूरी घटना का जिक्र करते हुए गुजारिश की कि अपहर्त्ता के खिलाफ काररवाई कर उन से वसूला गया पैसा वापस दिलाया जाए.

थानाप्रभारी ने जितेंद्र और किंशुक के अलावा ऋचा को भी गवाही के लिए बुलाया. लेकिन ऋचा नहीं आ पाई. उस ने जितेंद्र को सुबह के समय ही फोन पर कह दिया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह औफिस नहीं आ पाएगी.

थानाप्रभारी ने इस की सूचना डीसीपी प्रियंका कश्यप को दे दी. अपहरण और फिरौती दे कर छूटे किशोर की घटना पुलिस को काफी अलग तरह की लगी. इसलिए डीसीपी प्रियंका कश्यप ने किडनैपर की तलाश के लिए एसीपी (मधु विहार) नीरव पटेल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार, एसआई नरेंद्र, एएसआई खलील, हैडकांस्टेबल भूपेंद्र, संदीप, कांस्टेबल नितिन राठी, आदि शामिल किए गए.

पुलिस टीम ने खंगाली 200 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज

विकास अग्रवाल ने जांच टीम को घटनाक्रम की पूरी कहानी बताई. उन्होंने बताया कि वह दिल्ली के शालीमार बाग में परिवार के साथ रहते हैं. उन के 2 बच्चे हैं. 18 वर्षीय बेटा किंशुक और उस से छोटी एक बेटी है.

घटना के दिन किंशुक बैंक्वेट हाल की सजावट के लिए गाजीपुर फूलमंडी से अपने ड्राइवर और बैंक्वेट हाल की मैनेजर कम डेकोरेटर के साथ फूल खरीदने गया था. वहीं उस का किडनैप हो गया था.

मधु विहार क्षेत्र के एसीपी नीरव पटेल ने जांच टीम को 2 मुख्य काम सौंपें. पहला, उन सड़कों और दुकानों आदि पर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली जाए, जिन पर एक दिन पहले विकास अग्रवाल की कार करीब 4 घंटे घूमती रही और दूसरा सभी के फोन काल रिकौर्ड्स की जांच की जाए.

इस सिलसिले में पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन 70 किलोमीटर की सड़कों पर जगहजगह लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच का काम आसान नहीं था, मगर उन की टीम इस काम को अंजाम देने में जुट गई थी. 4 दिनों तक रातदिन एक कर करीब 200 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई.

उन में विकास की कार कई सड़कों पर दौड़ती दिखाई दी. फिर वह जगह सामने आई, जहां किडनैपर कार से नीचे उतरा था. कुछ मिनट बाद वह एक आटो में बैठ गया था.

पुलिस टीम उन सभी रास्तों के सीसीटीवी फुटेज खंगालती है जिन रास्तों पर किडनैपर को ले कर जाता वह आटो दिखाई दिया. बीच में एक किलोमीटर के रास्ते में आटो कहीं नजर नहीं आया.

ऐसा होने पर पुलिस को लगा कि उन की सारी मेहनत बेकार हो गई. फिर भी टीम ने हिम्मत नहीं हारी. एक बार फिर से सीसीटीवी देखे गए. कड़ी मेहनत के बाद अचानक एक रास्ते पर फिर वह आटो दिखाई दे गया. किडनैपर उसी आटो से एक पैट्रोल पंप के पास उतर गया था. टीम ने लगातार उस के मूवमेंट पर नजर बना रखी थी.

स्कूटी सवार से मिली सफलता

अगली फुटेज में एक स्कूटी सवार उस के पास आता दिखा. किडनैपर जल्दी से उस स्कूटी पर बैठ कर चल दिया. स्कूटी त्रिनगर के ओंकार नगर की ओर जाती नजर आई. सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस ने स्कूटी और लड़के की पहचान कर ली गई.

इस तरह मिले महत्त्वपूर्ण सुरागों के सहारे पुलिस पहले उस स्कूटी वाले लड़के तक पहुंची. उस के बाद पुलिस के हाथ वह किडनैपर भी लग गया, जिस ने किंशुक का अपहरण कर 50 लाख रुपए की फिरौती वसूली थी.

पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की. किडनैपर ने अपना नाम  गुरमीत सिंह बताया. उस की गिरफ्तारी के बाद किडनैपिंग की चौंका देने वाली कहानी सामने आई, जिस के बारे में विकास अग्रवाल कभी सोच भी नहीं सकते थे.

उन्हें आश्चर्य हुआ कि पूरी तरह से उन के खिलाफ रची गई साजिश के तहत अपहरण  किया गया था. उस का मास्टरमाइंड और कोई नहीं, बल्कि उन की मैनेजर 33 वर्षीया ऋचा सब्बरवाल थी.

घटना के अगले दिन से ही ऋचा तबीयत खराब होने का बहाना बना कर काम पर भी नहीं आ रही थी. पुलिस ने उस के मानसरोवर गार्डन निवास से उसे गिरफ्तार कर लिया. उस से गुरमीत का सामना करवाया गया. फिर पूछताछ की गई.

वह अपने पति निकुल सब्बरवाल और 2 बच्चों के साथ दिल्ली के मानसरोवर गार्डन क्षेत्र में रह रही है. उस ने बताया कि किडनैपिंग का काम उस ने मजबूरी में किया. लौकडाउन में उस के पति को कारोबार में भारी घाटा हुआ था. कारोबार ठप हो गया था. उस के लिए अपनी थोड़ी सी तनख्वाह से घर चलाना मुश्किल हो गया था.

2 बच्चों की पढ़ाई का बोझ भी उस पर था. उस के पति ने कई जगह से पैसा उधार ले रखा था. परिवार पर मोटा कर्ज भी चढ़ गया था. बैंक्वेट हाल में उसे 25 हजार रुपए महीने मिलते थे. इस से घर का खर्च ही पूरा नहीं हो पा रहा था. कर्ज की भरपाई करना तो बहुत दूर की बात थी.

मैनेजर ऋचा ने रची पूरी साजिश

उस ने अपने मालिक विकास अग्रवाल से सैलरी बढ़ाने और प्रमोशन करने को कहा था. उन्होंने सैलरी बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया था. इस कारण ही ऋचा ने अपने एक 36 वर्षीय दोस्त गुरमीत सिंह और उस के दोस्त 35 वर्षीय कमल बंसल के साथ मिल कर विकास अग्रवाल के बेटे किंशुक के अपहरण की साजिश रच डाली.

बैंक्वेट हाल की सजावट के लिए फूलमंडी गाजीपुर से फूल लेने किंशुक को भी जाना था. ऋचा को यह मौका सब से अच्छा लगा. उस ने गुरमीत और कमल से बात की.

दोनों ऋचा की साजिश में शामिल हो गए. ऋचा ने इस साजिश में अपनी 56 वर्षीय मां अनीता सब्बरवाल को भी शामिल कर लिया, लेकिन पति निकुल सब्बरवाल को इस साजिश की भनक तक नहीं लगने दी.

17 दिसंबर की सुबह किंशुक ऋचा और जितेंद्र के साथ गाजीपुर मंडी पहुंचे थे. फूल आदि खरीदने के बाद जब तीनों बाहर निकले और अपनी कार में बैठे. तभी कार के पिछले दरवाजे को खोल कर गुरमीत सिंह अंदर घुस आया था.

इस तरह अपहरण की घटना को अंजाम देने के बाद पैसे ले कर आराम से चला गया. पहले आटो, फिर स्कूटी से फरार होने में सफल हो गया. पुलिस ने उस से फिरौती की 50 लाख की रकम में से 40 लाख रुपए बरामद भी कर लिए. बाकी के 10 लाख रुपए ऋचा ने अपन कर्ज आदि चुकाने में लगा दिए थे.

नीरव पटेल ने बताया कि पूरी साजिश ऋचा व गुरमीत सिंह की रची हुई थी. इस में ऋचा के पति की कोई भूमिका नहीं थी. बाद में ऋचा की मां अनीता को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

स्कूटी चालक कमल बंसल को भी पुलिस ने ओंकार नगर से ही गिरफ्तार किया. इन लोगों के पास से कुल 40 लाख रुपए की बरामदगी हुई. इस में सब से मजे की बात यह  रही कि किडनैपर ने जिस पिस्तौल की नोक पर पूरे कांड को अंजाम दिया था वह एक टौय गन यानी नकली थी.

दिल्ली पुलिस ने सभी अपराधियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए (अपहरण व फिरौती के लिए अपहरण) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.

Holi Special: अधूरी चाह- भाग 2

उस का घर शालिनी की लेन में नहीं था, बस थोड़ा लेन से कट मार कर था, इसलिए सामने से नजर नहीं आता था. 4 साल से वह शालिनी पर नजर रखे हुए था, उस की हर हरकत को नोटिस करता. उस ने शालिनी के बारे में सब जानकारी निकाल ली थी.

दरअसल, इस समय बच्चे बड़े हो रहे थे और खर्चे बढ़ने की वजह से शालिनी और संजय ने फैसला लिया कि शालिनी को कोई नौकरी करनी चाहिए, वैसे भी बच्चों की जिम्मेदारी अब थोड़ा कम है, बच्चे खुद को संभाल सकते हैं, तो शालिनी का काफी समय फ्री रहता है.

अजय श्रीवास्तव ने इसी मौके का फायदा उठाया. पहले उस ने शालिनी से जानपहचान बढ़ाई, फिर शालिनी को अपने औफिस में जौब का औफर दिया. शालिनी को भी यही चाहिए था. उस ने नौकरी जौइन कर ली.

अजय ने अपनेआप को बहुत अमीर शो किया हुआ था. शालिनी उस की गाड़ी और कपड़ों को देखती तो रश्क करती कि काश, उस के पास भी ऐसी गाड़ी हो. न जाने अजय श्रीवास्तव में शालिनी को कैसा खिंचाव महसूस हुआ कि वह उस की तरफ खिंचती चली गई.

अजय श्रीवास्तव के मातापिता की मौत हो चुकी थी, एक बहन है, उस की शादी हो गई है और अजय अभी तक कुंआरा है. वह शादी नहीं करना चाहता, क्योंकि जिस दिन शालिनी ने वहां शिफ्ट किया था, उसी दिन अजय के दिल में वह बस गई थी. 4 साल से वह राह तक रहा था कि कब और कैसे शालिनी को अपना बनाए.

आज अजय का जन्मदिन है. उस ने शालिनी को अपने घर पर बुलाया है. बस केवल शालिनी और अजय जन्मदिन मना रहे हैं, लेकिन शालिनी को उस के घर की भव्यता देख कर अच्छा लग रहा है.

अजय ने पूछा, ‘‘शालिनी, तुम्हें कैसा लगा मेरा छोटा सा आशियाना?’’

शालिनी बोली, ‘‘अजयजी, यह छोटा है? अरे, यह तो महल है महल… काश, मैं इस महल की रानी होती.’’

‘‘अरे, तो आप खुद को इस महल की रानी ही सम?ा न…’’

शालिनी शरारत से बोली, ‘‘ओहो, अच्छाजी, तो राजा कौन है?’’

‘‘डियर, तुम चाहो तो हम तैयार हैं…’’ और शालिनी को जैसे ही अजय अपनी ओर खींचना चाहता है, शालिनी खुद को उस की बांहों में सौंप देती है.

2 जवां दिल तेजी से धड़कने लगे, रगों में खून गर्मजोशी दिखाने लगा, अजय की चाहत उस की बांहों में खुद को समेटे हुए है और शालिनी की अधूरी चाह ने भी अंगड़ाई ली है. वह भी खुद को रोक नहीं पा रही, बेकाबू हो रही थी अजय में समा जाने को. दोनों के होंठ थरथराए और उल?ा गए एकदूसरे से. एक बहाव आया और दोनों को बहा कर ले गया.

आज अजय की मुराद पूरी हो गई. शालिनी को भी बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत खुश है आज वह. घर आ कर भी चहकती रहती है.

अगले दिन जैसे ही वह नौकरी के लिए घर से निकलती है, अजय का फोन आता है, ‘शालिनी डियर, ऐसा करो तुम घर पर आ जाओ. मैं अभी घर पर हूं, बाद में साथ में औफिस चलते हैं…’

‘‘ओके, मैं आ रही हूं.’’

शालिनी अजय के घर गई तो देखा कल का सबकुछ फैला हुआ था. केक भी वहीं पड़ा था. खानेपीने का सामान जो बचा था, सब ऐसा पड़ा था.

शालिनी ने पूछा, ‘‘आज बाई नहीं आई क्या अभी तक?’’

‘‘नहीं, आज मैं ने उसे आने को मना किया, कहीं हमारे बीच में जो कल हुआ, उस के बारे में किसी चीज से उसे कोई शक न हो, इसलिए…’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सब अभी साफसफाई कर लेते हैं और फिर औफिस चलेंगे,’’ इतना कह कर शालिनी सब साफ करने की कोशिश करती है, लेकिन अजय उस का हाथ पकड़ लेता है, ‘‘डार्लिंग रहने दो यह सब, इन में कल के प्यार की खुशबू है…’’ और दोनों एकदूसरे की तरफ देखते हैं. उन के चेहरों पर एक शरारती मुसकराहट है.

पूरा दिन दोनों घर पर रह कर ही समय बिताते हैं. ऐसा अब रोज होने लगा. शालिनी घर से औफिस की कह कर अजय के घर चली जाती और दोनों पूरा दिन घर पर मौजमस्ती करते. किसी को कानोंकान खबर नहीं थी, क्योंकि अजय ने बाई को काम से निकाल दिया था. उस के घर का सारा काम अब शालिनी करती थी.

खैर, इस तरह से कई महीने बीत गए. अजय श्रीवास्तव की कुछ पुश्तैनी जायदाद थी, जिस की घर बैठे ही आमदनी आती थी और काम चल रहा था, लेकिन ऐसा कब तक चलता आखिर बिजनैस हो या प्रोपर्टी हो, कभी तो देखभाल की जरूरत होती ही है.

अब अजय औफिस जाने लगा और शालिनी को घर पर छोड़ कर बाहर से ताला लगा कर जाता. शालिनी ही घर का सारा काम करती और सारा दिन उस के घर पर रहती.

अजय का जब जी चाहता तो घर आ जाता और फिर शाम या रात के समय ही शालिनी घर जाती. जब वह लेट हो जाती, तो काम के ज्यादा होने का बहाना करती. काम के ज्यादा होने के चलते फिर उसे घर पर आराम के लिए कहा जाता और रात का खाना संजय खुद ही मैनेज करता.

इस तरह से न तो अजय ने किसी और लड़की से शादी की, न शालिनी को ही छोड़ा. न जाने क्या था… शालिनी भी रोज इसी तरह से अजय के घर पर ही सारा दिन रहती.

जब कभी अजय के घर कोई रिश्तेदार या मेहमान आता, तो उस दिन वह शालिनी को नहीं बुलाता था और शालिनी तबीयत खराब होने का बहाना कर घर पर रहती और कहती कि औफिस से छुट्टी ले ली है, लेकिन यहां बाजी पलटती है.

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नशा बिगाड़े दशा – भाग 1 : महेश की हालत कैसी थी

आज आधी रात को नशे में टुन्न हो कर महेश किराए के कमरे में पहुंचा ही था कि झमाझम बारिश होने लगी. हवा सांयसांय ऐसे चलने लगी, मानो खिड़कीदरवाजा तोड़ डालेगी.

गरज व चमक इस कदर बढ़ गई, जैसे गाज अभी के अभी और यहीं गिर पड़ेगी. ऐसे में सीमा के साथ हुए हादसे से उस के जेहन में खौफ समा गया. उस के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहाने लगीं.

जैसे ही महेश ने दरवाजे का ताला खोलने के लिए चाबी निकाली, वैसे ही वह चकरा गया और वह बड़बड़ाया, ‘‘अरे, ताला कहां गया? मैं ने तो ताला लगाया था, तभी तो चाबी मेरी जेब में है…’’ वह दिमाग पर जोर दे कर गुत्थी सुलझा ही रहा था कि हवा का एक तेज झोंका आया, जो उसे धकियाते हुए कमरे के अंदर ले गया.

महेश तुरंत पलटा और किवाड़ बंद करने की कोशिश की, पर हवा समेत पानी की बौछार इतनी तेज थी कि वह उसे बमुश्किल बंद कर पाया.

‘ओह, मेरे मन में इतना भरम कैसे समा गया है कि मैं ने किवाड़ पर ताला लगाया था या नहीं, भूल गया हूं?’’ महेश ने हांफतेहांफते अपनेआप से कुढ़ कर सवाल किया

महेश अक्खड़ और पियक्कड़ था. रंगरूप का कालाकलूटा बैगन लूटा. तन की तरह उस का मन भी काला. ऊपर से शराब पीपी कर खुद को ब्लड प्रैशर का मरीज बना लिया.

सीमा की मौत से उपजी फिक्र में अमनचैन व भूखप्यास उड़ जाने से महेश मरियल सा दिखने लगा था मानो उस का खून किसी ने चूस लिया हो.

भी हवापानी से नशा हिरन हो गया, तो उसे फिर दारू की तलब हुई. उस ने टेबल से देशी दारू का पौआ उठाया और दो घूंट हलक के नीचे उतारीं.

सीमा की मौत के बाद महेश एक महीने से सो नहीं सका था, इसीलिए आज की रात सोना चाह रहा था. पर, वह बिस्तर में गया ही था कि बिजली गुल हो गई. हवा का तेजी से सरसराना और बिजली का चले जाना, एकसाथ ऐसे हुआ कि महेश के जेहन में सुरसुरी दौड़ गई. वह सन्न रह गया. उस के रोंगटे खड़े हो गए.

बिजली जब गई, तब ट्रांसफार्मर में जोरदार धमाका हुआ मानो किसी ने उसे बम से उड़ा दिया हो. महेश बिस्तर से उठा. खिड़की से बाहर झांका. बाहर अंधेरा दिखा. कमरे में भी अंधियारा इस कदर छा गया कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था.बाहर आकाशीय बिजली का चमकना बदस्तूर जारी था. महेश ने अंधेरे में तकिए के पास अपना मोबाइल फोन टटोला, जो उसे नहीं मिला. तभी उसे याद आया कि मोबाइल फोन तो शायद टेबल पर रखा है.‘वाह रे भुलक्कड़…’ महेश मन ही मन बोला और उसे टटोलटटोल कर ढूंढ़ने लगा. मोबाइल मिला, तो वह उस की टौर्च औन कर ही रहा था कि उसे घुप्प अंधेरे में एहसास हुआ कि कोई लड़की ‘हूं…’ कहते हुए जबरदस्ती उस की गरदन पर सवार हो रही है.

अनदेखी लड़की का वजन इतना भारी था कि महेश उसे झटका दे कर दूर करने की कोशिश में खुद ही लड़खड़ा कर गिर पड़ा.

‘‘बाप रे…’’ कहते हुए महेश थरथर कांप उठा, ‘‘यह कौन बला है, जो मेरे ऊपर चढ़ाई कर रही है?’’

महेश डर के मारे बाएं हाथ में मोबाइल फोन ले कर तेजी से बैडरूम से बाहर निकलने की कोशिश कर ही रहा था कि चौखट से मोबाइल फोन टकराया और छिटक कर दूर जा गिरा.

फोन लेने के लिए महेश झुक ही रहा था कि दाएं हाथ की कुहनी दरवाजे के कुंदे से इस कदर टकराई कि वह पीड़ा से कहर उठा, ‘‘हाय मां, मर गया मैं…’’

महेश ने जैसेतैसे मोबाइल फोन उठाया और मोमबत्ती व माचिस के लिए किचन की ओर खिसक रहा था कि बाथरूम से खौफनाक आवाजें सुनाई दीं, ‘हों… हं… हों…हं… हों…हं… मैं तुझे खा जाऊंगी. तेरा जीना हराम कर दूंगी.’

महेश घबरा गया. उस का दिमाग सुन्न हो गया. उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. उसे चोर की दाढ़ी में तिनके की तरह महसूस हुआ कि यह कोई और नहीं, बल्कि सीमा की आत्मा है, जो उसे तंग कर रही है. अब उस की खैर नहीं. वह उसे बेमौत मार डालेगी.

रात इतनी गहरी हो गई थी कि पड़ोसियों को जगाया नहीं जा सकता था. अगर महेश उन्हें जगाता भी है, तो उसी की पोलपट्टी खुलने का डर है.

दूर खंडहरनुमा मकान से आवारा कुत्तों व बिल्लियों के रोने की तीखी आवाजें आ रही थीं. महेश ने सुन रखा था कि कुत्ते व बिल्ली का यों रोना, वह भी आधी रात को, किसी अनहोनी आफत से कम नहीं होता है

तभी वही डरावनी आवाज किचन से घरघराई, ‘मैं तुझे कच्चा चबा जाऊंगी.’

‘‘बाप रे बाप, वही भयावह आवाज…’’ बड़बड़ाते हुए महेश का रोमरोम थर्रा उठा. उस ने अपना सिर धुन लिया और बोला, ‘‘मुझे मदहोशी में सीमा को जान से नहीं मारना चाहिए था. आखिर वह मेरे बचपन की गर्लफ्रैंड थी. जवानी में भी मुझ पर जान छिड़क रही थी. अचानक मैं हैवान कैसे बन गया?

‘‘भले ही मैं उस पर शक कर रहा था, लेकिन शक का यह बादल धीरेधीरे छंट भी सकता था. कमबख्त नशे ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा…’’

मरता क्या न करता, महेश ने कांपते हाथों से मोबाइल फोन की टौर्च को औन किया. माचिस व मोमबत्ती ढूंढ़ी. जैसेतैसे उसे जलाया, पर पलभर बाद तेज हवा से वह बुझ गई.महेश को लगा कि मोमबत्ती बुझी नहीं, बल्कि उसे तेज झोंकों से बुझा दिया गया है. ऐसा काम कोई और

नहीं, बल्कि सीमा की रूह ही कर सकती है. लगता है, वह उसे छोडे़गी नहीं और तड़पातड़पा कर मार डालेगी.

महेश बेहाल सा कुरसी पर धम्म से बैठ गया. आज की रात भी उस की नींद उड़ चुकी थी. उस के दिलोदिमाग में सीमा के साथ घटी घटना आईने की तरह उभरने लगी.

महेश व सीमा छुईखदान से थे. वे बालपन से साथसाथ पढ़े थे. जवानी में सीमा इकहरे बदन की हुस्न की मलिका बन गई थी. उसे देखदेख कर आवारा लड़के आहें भरा करते थे, पर वह महेश को छोड़ कर किसी दूसरे को चारा नहीं डालती थी.

सीमा अपने घर की बड़ी बेटी थी. भाई उस से छोटा था. उस के पिता छुईखदान में दारोगा थे. सीमा को नर्स बनने की दिली इच्छा थी. वह नर्सिंग प्रवेश परीक्षा दे कर उस में चुन ली गई थी. वजह, वह पढ़ाईलिखाई में होशियार थी और अपना मकसद हासिल करने की खातिर मेहनत करना जानती थी.

राजनांदगांव के नर्सिंग स्कूल में सीमा को एडमिशन मिल जाने से वहां किराए का कमरा ले कर चिखली में रहने लगी. सीमा का नर्सिंग में दाखिला हो जाने से महेश काफी परेशान रहने लगा. वजह, वह बस 9वीं पास था और 10वीं में फेल हो गया था, जबकि सीमा हायर सैकंडरी पास हो चुकी थी.जोबन की धनी, सुधा जैसी संगिनी हाथ से निकल न जाए, यही सोचसोच कर महेश का दिमाग बौराने लगा था.

बरसों की साध: भाग 3

जब इस बात की जानकारी प्रशांत को हुई तो वह खुशी से फूला नहीं समाया. विदाई से पहले ईश्वर की बहन को दुलहन के स्वागत के लिए बुला लिया गया था. जिस दिन दुलहन को आना था, सुबह से ही घर में तैयारियां चल रही थीं.

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प्रशांत के पिता सुबह 11 बजे वाली टे्रन से दुलहन को ले कर आने वाले थे. रेलवे स्टेशन प्रशांत के घर से 6-7 किलोमीटर दूर था. उन दिनों बैलगाड़ी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं होता था. इसलिए प्रशांत बहन के साथ 2 बैलगाडि़यां ले कर समय से स्टेशन पर पहुंच गया था.

ट्रेन के आतेआते सूरज सिर पर आ गया था. ट्रेन आई तो पहले प्रशांत के पिता सामान के साथ उतरे. उन के पीछे रेशमी साड़ी में लिपटी, पूरा मुंह ढापे मजबूत कदकाठी वाली ईश्वर की पत्नी यानी प्रशांत की भाभी छम्म से उतरीं. दुलहन के उतरते ही बहन ने उस की बांह थाम ली.

दुलहन के साथ जो सामान था, देवनाथ के साथ आए लोगों ने उठा लिया. बैलगाड़ी स्टेशन के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी थी. एक बैलगाड़ी पर सामान रख दिया गया. दूसरी बैलगाड़ी पर दुलहन को बैठाया गया. बैलगाड़ी पर धूप से बचने के लिए चादर तान दी गई थी.

दुलहन को बैलगाड़ी पर बैठा कर बहन ने प्रशांत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह आप का एकलौता देवर और मैं आप की एकलौती ननद.’’

मेहंदी लगे चूडि़यों से भरे गोरेगोरे हाथ ऊपर उठे और कोमल अंगुलियों ने घूंघट का किनारा थाम लिया. पट खुला तो प्रशांत का छोटा सा हृदय आह्लादित हो उठा. क्योंकि उस की भाभी सौंदर्य का भंडार थी.

कजरारी आंखों वाला उस का चंदन के रंग जैसा गोलमटोल मुखड़ा असली सोने जैसा लग रहा था. उस ने दशहरे के मेले में होने वाली रामलीला में उस तरह की औरतें देखी थीं. उस की भाभी तो उन औरतों से भी ज्यादा सुंदर थी.

प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.

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इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.

उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’

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इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’

सलाह लेना जरूरी : क्या पत्नी का मान रख पाया रोहित?

लेखिका- शिखा गुप्ता

घंटी बजी तो मैं खीज उठी. आज सुबह से कई बार घंटी बज चुकी थी, कभी दरवाजे की तो कभी टेलीफोन की. इस चक्कर में काम निबटातेनिबटाते 12 बज गए. सोचा था टीवी के आगे बैठ कर इतमीनान से नाश्ता करूंगी. बाद में मूड हुआ तो जी भर कर सोऊंगी या फिर रोहिणी को बुला कर उस के साथ गप्पें मारूंगी, मगर लगता है आज आराम नहीं कर पाऊंगी.

दरवाजा खोला तो रोहिणी को देख मेरी बांछें खिल गईं. रोहिणी मेरी ओर ध्यान दिए बगैर अंदर सोफे पर जा पसरी.

‘‘कुछ परेशान लग रही हो, भाई साहब से झगड़ा हो गया है क्या?’’ उस का उतरा चेहरा देख मैं ने उसे छेड़ा.

‘‘देखा, मैं भी तो यही कहती हूं, मगर इन्हें मेरी परवाह ही कब रही है. मुफ्त की नौकरानी है घर चलाने को और क्या चाहिए? मैं जीऊं या मरूं, उन्हें क्या?’’ रोहिणी की बात का सिरपैर मुझे समझ नहीं आया. कुरेदने पर उसी ने खुलासा किया, ‘‘2 साल की पहचान है, मगर तुम ने देखते ही समझ लिया कि मैं परेशान हूं. एक हमारे पति महोदय हैं, 10 साल से रातदिन का साथ है, फिर भी मेरे मन की बात उन की समझ में नहीं आती.’’

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‘‘तो तुम ही बता दो न,’’ मेरे इतना कहते ही रोहिणी ने तुनक कर कहा, ‘‘हर बार मैं ही क्यों बोलूं, उन्हें भी तो कुछ समझना चाहिए. आखिर मैं भी तो उन के मन की बात बिना कहे जान जाती हूं.’’

रोहिणी की फुफकार ने मुझे पैतरा बदलने पर मजबूर कर दिया, ‘‘बात तो सही है, लेकिन इन सब का इलाज क्या है? तुम कहोेगी नहीं, बिना कहे वे समझेंगे नहीं तो फिर समस्या कैसे सुलझेगी?’’

‘‘जब मैं ही नहीं रहूंगी तो समस्या अपनेआप सुलझ जाएगी,’’ वह अब रोने का मूड बनाती नजर आ रही थी.

‘‘तुम कहां जा रही हो?’’ मैं ने उसे टटोलने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘डूब मरूंगी कहीं किसी नदीनाले में. मर जाऊंगी, तभी मेरी अहमियत समझेंगे,’’ उस की आंखों से मोटेमोटे आंसुओं की बरसात होने लगी.

‘‘यह तो कोई समाधान नहीं है और फिर लाश न मिली तो भाई साहब यह भी सोच सकते हैं कि तू किसी के साथ भाग गई. मैं बदनाम महिला की सहेली नहीं कहलाना चाहती.’’

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‘‘सोचने दो, जो चाहें सोचें,’’ कहने को तो वह कह गई, मगर फिर संभल कर बोली, ‘‘बात तो सही है. ऐसे तो बड़ी बदनामी हो जाएगी. फांसी लगा लेती हूं. कितने ही लोग फांसी लगा कर मरते हैं.’’

‘‘पर एक मुश्किल है,’’ मैं ने उस का ध्यान खींचा, ‘‘फांसी लगाने पर जीभ और आंखें बाहर निकल आती हैं और चेहरा बड़ा भयानक हो जाता है, सोच लो.’’

बिना मेकअप किए तो रोहिणी काम वाली के सामने भी नहीं आती. ऐसे में चेहरा भयानक हो जाने की कल्पना ने उस के हाथपांव ढीले कर दिए. बोली, ‘‘फांसी के लिए गांठ बनानी तो मुझे आती ही नहीं, कुछ और सोचना पड़ेगा,’’ फिर अचानक चहक कर बोली, ‘‘तेरे पास चूहे मारने वाली दवा है न. सुना है आत्महत्या के लिए बड़ी कारगर दवा है. वही ठीक रहेगी.’’

‘‘वैसे तो तेरी मदद करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं, पर सोच ले. उसे खा कर चूहे कैसे पानी के लिए तड़पते हैं. तू पानी के बिना तो रह लेगी न?’’ उस की सेहत इस बात की गवाह थी कि भूखप्यास को झेल पाना उस के बूते की बात नहीं.

सब छत एक समान – अंकुर के जन्मदिन पर क्या हुआ

रोहिणी ने कातर दृष्टि से मुझे देखा, मानो पूछ रही हो, ‘‘तो अब क्या करूं?’’

‘‘छत से कूदना या फिर नींद की ढेर सारी गोलियां खा कर सोए रहना भी विकल्प हो सकते हैं,’’ मुश्किल वक्त में मैं रोहिणी की मदद करने से पीछे नहीं हट सकती थी.

‘‘ऊफ, छत से कूद कर हड्डियां तो तुड़वाई जा सकती हैं, पर मरने की कोई गारंटी नहीं और गोली खाते ही मुझे उलटी हो जाती है,’’ रोहिणी हताश हो गई.

हर तरकीब किसी न किसी मुद्दे पर आ कर फेल होती जा रही थी. आत्महत्या करना इतना मुश्किल होता है, यह तो कभी सोचा ही न था. दोपहर के भोजन पर हम ने नए सिरे से आत्महत्या की संभावनाओं पर विचार करना शुरू किया तो हताशा में रोहिणी की आंखें फिर बरस पड़ीं. मैं ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा, परेशान मत हो.’’

रोहिणी ने छक कर खाना खाया. बाद में 2 गुलाबजामुन और आइसक्रीम भी ली वरना उस बेचारी को तो भूख भी नहीं थी. मेरी जिद ने ही उसे खाने पर मेरा साथ देने को मजबूर किया था.

चाय के दूसरे दौर तक पहुंचतेपहुंचते मुझे विश्वास हो गया कि आत्महत्या के प्रचलित तरीकों से रोहिणी का भला नहीं होने वाला. समस्या से निबटने के लिए नवीन दृष्टिकोण की जरूरत थी. बातोंबातों में मैं ने रोहिणी के मन की बात जानने की कोशिश की, जिस को कहेसुने बिना ही उस के पति को समझना चाहिए था.

बहुत टालमटोल के बाद झिझकते हुए उस ने जो बताया उस का सार यह था कि 2 दिन बाद उसे भाई के साले की बेटी की शादी में जाना था और उस के पास लेटैस्ट डिजाइन की कोई साड़ी नहीं थी. इसलिए 4 माह बाद आने वाले अपने जन्मदिन का गिफ्ट उसे ऐडवांस में चाहिए था ताकि शादी में पति की हैसियत के अनुरूप बनसंवर कर जा सके और मायके में बड़े यत्न से बनाई गई पति की इज्जत की साख बचा सके.

मुझे उस के पति पर क्रोध आने लगा. वैसे तो बड़े पत्नीभक्त बने फिरते हैं, पर पत्नी के मन की बात भी नहीं समझ सकते. अरे, शादीब्याह पर तो सभी नए कपड़े पहनते हैं. रोहिणी तो फिर भी अनावश्यक खर्च बचाने के लिए अपने गिफ्ट से ही काम चलाने को तैयार है. लोग तनख्वाह का ऐडवांस मांगते झिझकते हैं, यहां तो गिफ्ट के ऐडवांस का सवाल है. भला एक सभ्य, सुसंस्कृत महिला मुंह खोल कर कैसे कहेगी? पति को ही समझना चाहिए न.

‘‘अगर मैं बातोंबातों में भाई साहब को तेरे मन की बात समझा दूं तो कैसा रहे?’’ अचानक आए इस खयाल से मैं उत्साहित हो उठी. असल में अपनी प्यारी सहेली को उस के पति की लापरवाही के कारण खो देने का डर मुझे भी सता रहा था.

एक पल के लिए खिल कर उस का चेहरा फिर मुरझा गया और बोली, ‘‘उन्हें फिर भी न समझ आई तो?’’

मैं अभी ‘तो’ का जवाब ढूंढ़ ही रही थी कि टेलीफोन घनघना उठा. फोन पर रोहिणी के पति की घबराई हुई आवाज ने मुझे चौंका दिया.

‘‘रोहिणी मेरे पास बैठी है. हां, हां, वह एकदम ठीक है,’’ मैं ने उन की घबराहट दूर करने की कोशिश की.

‘‘मैं तुरंत आ रहा हूं,’’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया. कुछ पल भी न बीते थे कि दरवाजे की घंटी बज उठी.

दरवाजा खोला तो रोहिणी के पति सामने खड़े थे. रोहित भी आते दिखाई दे गए. इसलिए मैं चाय का पानी चढ़ाने रसोई में चली गई और रोहित हाथमुंह धो कर रोहिणी के पति से बतियाने लगे.

रोहिणी की समस्या के निदान हेतु मैं बातों का रुख सही दिशा में कैसे मोड़ूं, इसी पसोपेश में थी कि रोहिणी ने पति के ब्रीफकेस में से एक पैकेट निकाल कर खोला. कुंदन और जरी के खूबसूरत काम वाली शिफोन की साड़ी को उस ने बड़े प्यार से उठा कर अपने ऊपर लगाया और पूछा, ‘‘कैसी लग रही है? ठीक तो है न?’’

‘‘इस पर तो किसी का भी मन मचल जाए. बहुत ही खूबसूरत है,’’ मेरी निगाहें साड़ी पर ही चिपक गई थीं.

‘‘पूरे ढाई हजार की है. कल शोकेस में लगी देखी थी. इन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली, तभी मुझे बिना बताए खरीद लाए,’’ रोहिणी की चहचहाट में गर्व की झलक साफ थी.

एक यह है, पति को रातदिन उंगलियों पर नचाती है, फिर भी मुंह खोलने से पहले ही पति मनचाही वस्तु दिलवा देते हैं. एक मैं हूं, रातदिन खटती हूं, फिर भी कोई पूछने वाला नहीं. एक तनख्वाह क्या ला कर दे देते हैं, सोचते हैं सारी जिम्मेदारी पूरी हो गई. साड़ी तो क्या कभी एक रूमाल तक ला कर नहीं दिया. तंग आ गई हूं मैं इन की लापरवाहियों से. किसी दिन नदीनाले में कूद कर जान दे दूंगी, तभी अक्ल आएगी, मेरे मन का घड़ा फूट कर आंखों के रास्ते बाहर आने को बेताब हो उठा. लगता है अब अपनी आत्महत्या के लिए रोहिणी से दोबारा सलाहमशवरा करना होगा.

मर्यादा : आखिर क्या हुआ निशा के साथ

लेखिका- VInita Rahurikar

देर रात गए घर के सारे कामों से फुरसत मिलने पर जब रोहिणी अपने कमरे में जाने लगी तभी उसे याद आया कि वह छत से सूखे हुए कपड़े लाना तो भूल ही गई है. बारिश का मौसम था. आसमान साफ था तो उस ने कपड़ों के अलावा घर भर की चादरें भी धो कर छत पर सुखाने डाल दी थीं. थकान की वजह से एक बार तो मन हुआ कि सुबह ले आऊंगी, लेकिन फिर ध्यान आया कि अगर रात में कहीं बारिश हो गई तो सारी मेहनत बेकार चली जाएगी. फिर रोहिणी छत पर चली गई.

वह कपड़े उठा ही रही थी कि छत के कोने से उसे किसी के बात करने की धीमीधीमी आवाज सुनाई दी. रोहिणी आवाज की दिशा में बढ़ी. दायीं ओर के कमरे के सामने वाली छत पर मुंडेर से सट कर खड़ा हुआ कोई फोन पर धीमी आवाज में बातें कर रहा था. बीचबीच में हंसने की आवाज भी आ रही थी. बातें करने वाले की रोहिणी की ओर पीठ थी इसलिए उसे रोहिणी के आने का आभास नहीं हुआ, मगर रोहिणी समझ गई कि यह कौन है.

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रोहिणी 3-4 महीनों से निशा के रंगढंग देख रही थी. वह हर समय मोबाइल से चिपकी या तो बातें करती रहती या मैसेज भेजती रहती. कालेज से आ कर वह कमरे में घुस कर बातें करती रहती और रात का खाना खाने के बाद जैसे ही मोबाइल की रिंग बजती वह छत पर भाग जाती और फिर घंटे भर बाद वापस आती.

रोहिणी के पूछने पर बहाना बना देती कि सहेली का फोन था या पढ़ाई के बारे में बातें कर रही थी. लेकिन रोहिणी इतनी नादान नहीं है कि वह सच न समझ पाए. वह अच्छी तरह जानती थी कि निशा फोन पर लड़कों से बातें करती है. वह भी एक लड़के से नहीं कई लड़कों से.

‘‘निशा इतनी रात गए यहां अंधेरे में क्या कर रही हो? चलो नीचे चलो,’’ रोहिणी की कठोर आवाज सुन कर निशा ने चौंक कर पीछे देखा.

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‘‘चल यार, मैं तुझे बाद में काल करती हूं बाय,’’ कह कर निशा ने फोन काट दिया और बिना रोहिणी की ओर देखे नीचे जाने लगी.

‘‘तुम तो एकडेढ़ घंटा पहले छत पर आई थीं निशा, तब से यहीं हो? किस से बातें कर रही थीं इतनी देर तक?’’ रोहिणी ने डपट कर पूछा.

निशा बिफर कर बोली, ‘‘अब आप को क्या अपने हर फोन काल की जानकारी देनी पड़ेगी चाची? आप क्यों हर समय मेरी पहरेदारी करती रहती हैं? किस ने कहा है आप से? मेरा दोस्त है उस से बातें कर रही थी.’’

‘‘निशा, बड़ों से बातें करने की भी तमीज नहीं रही अब तुम्हें. मैं तुम्हारे भले के लिए ही तुम्हें टोकती हूं,’’ रोहिणी गुस्से से बोली.

‘‘मेरा भलाबुरा सोचने के लिए मेरी मां हैं. सच तो यह है कि आप मुझ से जलती हैं. आप की बेटी मेरे जितनी सुंदर नहीं है. उस का मेरे जैसा बड़ा सर्कल नहीं है, दोस्त नहीं हैं. इसीलिए मेरे फोन काल से आप को जलन होती है,’’ निशा कठोर स्वर में बोल कर बुदबुदाती हुई नीचे चली गई.

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कपड़ों को हाथ में लिए हुए रोहिणी स्तब्ध सी खड़ी रह गई. उस की गोद में पली लड़की उसे ही उलटासीधा सुना गई.

रोहिणी की बेटी ऋचा निशा से कई गुना सुंदर है, लेकिन हर समय सादगी से रहती है और पढ़ाई में लगी रहती है.

रोहिणी बचपन से ही उसे समझती आई है और ऋचा ने बचपन से ले कर आज तक उस की बताई बात का पालन किया है. वह अपने आसपास फालतू भीड़ इकट्ठा करने में विश्वास नहीं करती. तभी तो हर साल स्कूल और कालेज में टौप करती आई है.

लेकिन निशा संस्कार और गुणों पर ध्यान न दे कर हर समय दोस्तों व सहेलियों से घिरे रहना पसंद करती है. तारीफ पाने के लिए लेटैस्ट फैशन के कपड़े, मेकअप बस यही उस का प्रिय शगल है और इसी में वह अपनी सफलता समझती है. तभी तो ऋचा से 2 साल बड़ी होने के बावजूद भी उसी की क्लास में है.

नीचे जा कर रोहिणी ने ऋचा के कमरे में झांक कर देखा. ऋचा पढ़ रही थी, क्योंकि वह पी.एस.सी. की तैयारी कर रही थी. रोहिणी ने अंदर जा कर उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और अपने कमरे में आ गई.

‘जिंदगी में हर बात का एक नियत समय होता है. समय निकल जाने के बाद सिवा पछतावे के कुछ हासिल नहीं होता. इसलिए जीवन में अपने लक्ष्य और प्राथमिकताएं तय कर लेना और उन्हीं के अनुसार प्रयत्न करना,’ यही समझाया था रोहिणी ने ऋचा को हमेशा. और उसे खुशी थी कि उस की बेटी ने जीवन का ध्येय चुनने में समझदारी दिखाई है. पूरी उम्मीद है कि ऋचा अपने लक्ष्य प्राप्ति में अवश्य सफल होगी.

अगले दिन ऋचा और निशा के कालेज जाने के बाद रोहिणी ने अपनी जेठानी से बोली कि निशा आजकल रोज घंटों फोन पर अलगअलग लड़कों से बातें करती है. आप जरा उसे समझाइए. लेकिन बदले में जेठानी का जवाब सुन कर वह अवाक रह गई.

‘‘करने दे रे, यही तो दिन हैं उस के हंसनेखेलने के. बाद में तो उसे हमारी तरह शादी की चक्की में ही पिसना है. बस बातें ही तो कर रही है न और वैसे भी सभी लड़के एक से एक अमीर खानदान से हैं.’’

रोहिणी को समझते देर नहीं लगी कि जेठानी की मनशा क्या है. वैसे भी उन्होंने निशा को ऐसे ढांचे में ही ढाला है कि अमीर खानदान में शादी कर के ऐश से रहना ही उस का एकमात्र ध्येय है. अमीर परिवार के इतने लड़कों में से वह एक मुरगा तो फांस ही लेगी.

रोहिणी को जेठानी की बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन उस ने समझ लिया कि उन से और निशा से कुछ भी कहनासुनना बेकार है. वह ऋचा को उन दोनों से भरसक दूर रखने का प्रयत्न करती. वह नहीं चाहती थी कि ऋचा का ध्यान इन बातों पर जाए.

कई महीनों तक रोहिणी ऋचा की पढ़ाई को ले कर व्यस्त रही. उस ने निशा को टोकना छोड़ दिया और अपना सारा ध्यान ऋचा पर केंद्रित कर लिया. आखिर बेटी के भविष्य का सवाल है. रोहिणी अच्छी तरह समझती थी कि बेटी को अच्छे संस्कार दे कर बड़ा करना और बुरी सोहबत से बचा कर रखना एक मां का फर्ज होता है.

एक दिन रोहिणी ने निशा के हाथ में बहुत महंगा मोबाइल देखा तो उस का माथा ठनका. निशा और उस की मां की आपसी बातचीत से पता चला कि कुछ दिन पहले किसी हिमेश नामक लड़के से निशा की दोस्ती हुई है और उसी ने निशा को यह मोबाइल उपहार में दिया है.

जेठानी रोहिणी की ओर कटाक्ष कर के कहने लगीं कि लड़का आई.ए.एस. है. खानदान भी बहुत ऊंचा और अमीर है. निशा की तो लौटरी खुल गई. अब तो यह सरकारी अफसर की पत्नी बनेगी.

रोहिणी को इस बात पर बड़ी चिंता हुई. कुछ ही दिनों की दोस्ती पर कोई किसी पर इतना पैसा खर्च कर सकता है, यह बात उस के गले नहीं उतर रही थी.

उस ने अपने पति नीरज से बात की तो नीरज ने कहा, ‘‘मैं भी धीरज भैया को कह चुका हूं, लेकिन तुम तो जानती हो, वे भाभी और बेटी के सामने खामोश रहते हैं. तुम जबरन तनाव मत पालो. ऋचा पर ध्यान दो.

जब उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की चिंता नहीं है तो हम क्यों करें? समझाना हमारा काम था हम ने कर दिया.’’

रोहिणी को नीरज की बात ठीक लगी. उस ने तो निशा को भी अपनी बेटी समान ही समझा, पर अब जब मांबेटी दोनों अपने आगे किसी को कुछ समझती ही नहीं तो वह भी क्या करे.

अगले कुछ महीनों में तो निशा अकसर हिमेश के साथ घूमने जाने लगी. कई बार रात में पार्टियां अटैंड कर के देर से घर आती. उस के कपड़ों से महंगे विदेशी परफ्यूम की खुशबू आती.

कपड़े दिन पर दिन कीमती होते जा रहे थे. रोहिणी ने कभी ऋचा और निशा में भेद नहीं किया था, इसलिए उस के भविष्य के बारे में सोच कर उस के मन में भय की लहर दौड़ जाती. पर वह मन मसोस कर मर्यादा का अंशअंश टूटना देखती रहती. घर में 2 विपरीत धाराएं बह रही थीं.

ऋचा सारे समय अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती और निशा सारे समय हिमेश के साथ अपने सुनहरे भविष्य के सपनों में खोई रहती. उस के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे. उस के सुंदर दिखने के उपायों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी. वह ऋचा और रोहिणी को ऐसी हेय दृष्टि से देखती थी मानो हिमेश का सारा पैसा और पद उसी का हो.

ऋचा के बी.ए. फाइनल और पी.एस.सी. प्रिलिम्स के इम्तिहान हो गए, लेकिन आखिरी पेपर दे कर आने के तुरंत बाद ही वह अन्य परीक्षा की तैयारियों में जुट गई. उस की दृढ़ता और विश्वास देख कर रोहिणी और नीरज भी आश्वस्त थे कि वह पी.एस.सी. की परीक्षा में जरूर सफल हो जाएगी.

और वह दिन भी आ गया जब रोहिणी और नीरज के चेहरे खिल गए. उन के संस्कार जीत गए. ऋचा की मेहनत सफल हो गई. वह प्रिलिम्स परीक्षा पास कर गई और साथ ही बी.ए. में पूरे विश्वविद्यालय में अव्वल रही.

लेकिन इस खुशी के मौके पर घर में एक तनावपूर्ण घटना घट गई. निशा रात में हिमेश के साथ उस की बर्थडे पार्टी में गई. घर में वह यही बात कह कर गई कि हिमेश ने बहुत से फ्रैंड्स को होटल में इन्वाइट किया है. खानापीना होगा और वह 11 बजे तक घर वापस आ जाएगी. लेकिन जब 12 बजे तक निशा घर नहीं आई तो घर में चिंता होने लगी. वह मोबाइल भी रिसीव नहीं कर रही थी. रात के 2 बजे तक उस की सारी सहेलियों के घर पर फोन किया जा चुका था पर उन में से किसी को भी हिमेश ने आमंत्रित नहीं किया था. जिस होटल का नाम निशा ने बताया था नीरज वहां गया तो पता चला कि ऐसी कोई बर्थडे पार्टी वहां थी ही नहीं.

गंभीर दुर्घटना की आशंका से सब का दिल धड़कने लगा. रोहिणी जेठानी को तसल्ली दे रही थी पर उन के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. वे रोहिणी से नजरें नहीं मिला पा रही थीं. सुबह 4 बजे जब वे लोग पुलिस में रिपोर्ट करने की सोच रहे थे कि तभी एक गाड़ी तेजी से आ कर दरवाजे पर रुकी और तेजी से चली गई. कुछ ही पलों बाद निशा अस्तव्यस्त और बुरी हालत में घर आई और फूटफूट कर रोने लगी.

उस की कहानी सुन कर धीरज और उस की पत्नी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. रोहिणी और नीरज अफसोस से भर उठे.

बर्थडे पार्टी का बहाना बना कर हिमेश निशा को एक दोस्त के फार्म हाउस में ले गया. वहां उस के कुछ अधिकारी आए हुए थे. उसने निशा से उन्हें खुश करने को कहा. मना करने पर वह गुस्से से चिल्लाया कि महंगे उपहार मैं ने मुफ्त में नहीं दिए. तुम्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी. उपहार लेते समय तो हाथ बढ़ा कर सब बटोर लिया और अब ढोंग कर रही हो. और फिर पता नहीं उस ने निशा को क्या पिला दिया कि उस के हाथपांव बेदम हो गए और फिर…

कहां तो निशा उस की पत्नी बनने का सपना देख रही थी और हिमेश ने उसे क्या बना दिया. हिमेश ने धमकी दी थी कि किसी को बताया तो…

रोहिणी सोचने लगी अगर मर्यादा का पहला अंश भंग करने से पहले ही निशा सचेत हो जाती तो आज अपनी मर्यादा खो कर न आती.

निशा के कानों में रोहिणी के शब्द गूंज रहे थे, जो उन्होंने एक बार उस से कहे थे कि मर्यादा भंग करते जाने का साहस ही हम में एकबारगी सारी सीमाएं तोड़ डालने का दुस्साहस भर देता है.

वाकई एकएक कदम बिना सोचेसमझे अनजानी राह पर कदम बढ़ाती वह आज गड्ढे में गिर गई थी.

प्रतिदिन: भाग 2

‘‘नहीं, पापा के किसी दोस्त की पत्नी हैं. इन की बेटी ने जिस लड़के से शादी की है वह हमारी जाति का है. इन का दिमाग कुछ ठीक नहीं रहता. इस कारण बेचारे अंकलजी बड़े परेशान रहते हैं. पर तू क्यों जानना चाहती है?’’

‘‘मेरी पड़ोसिन जो हैं,’’ इन का दिमाग ठीक क्यों नहीं रहता? इसी गुत्थी को तो मैं इतने दिनों से सुलझाने की कोशिश कर रही थी, अत: दोबारा पूछा, ‘‘बता न, क्या परेशानी है इन्हें?’’

अपनी बड़ीबड़ी आंखों को और बड़ा कर के दीप्ति बोली, ‘‘अभी…पागल है क्या? पहले मेहमानों को तो निबटा लें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

2-3 घंटे बाद दीप्ति को फुरसत मिली. मौका देख कर मैं ने अधूरी बात का सूत्र पकड़ते हुए फिर पूछा, ‘‘तो क्या परेशानी है उन दंपती को?’’

‘‘अरे, वही जो घरघर की कहानी है,’’ दीप्ति ने बताना शुरू किया, ‘‘हमारे भारतीय समाज को पहले जो बातें मरने या मार डालने को मजबूर करती थीं और जिन बातों के चलते वे बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते थे, उन्हीं बातों को ये अभी तक सीने से लगाए घूम रहे हैं.’’

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‘‘आजकल तो समय बहुत बदल गया है. लोग ऐसी बातों को नजरअंदाज करने लगे हैं,’’ मैं ने अपना ज्ञान बघारा.

‘‘तू ठीक कहती है. नईपुरानी पीढ़ी का आपस में तालमेल हमेशा से कोई उत्साहजनक नहीं रहा. फिर भी हमें जमाने के साथ कुछ तो चलना पड़ेगा वरना तो हम हीनभावना से पीडि़त हो जाएंगे,’’ कह कर दीप्ति सांस लेने के लिए रुकी.

मैं ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘जब हम भारतीय विदेश में आए तो बस, धन कमाने के सपने देखने में लग गए. बच्चे पढ़लिख कर अच्छी डिगरियां लेंगे. अच्छी नौकरियां हासिल करेंगे. अच्छे घरों से उन के रिश्ते आएंगे. हम यह भूल ही गए कि यहां का माहौल हमारे बच्चों पर कितना असर डालेगा.’’

‘‘इसी की तो सजा भुगत रहा है हमारा समाज,’’ दीप्ति बोली, ‘‘इन के 2 बेटे 1 बेटी है. तीनों ऊंचे ओहदों पर लगे हुए हैं. और अपनेअपने परिवार के साथ  आनंद से रह रहे हैं पर उन का इन से कोई संबंध नहीं है. हुआ यों कि इन्होंने अपने बड़े बेटे के लिए अपनी बिरादरी की एक सुशील लड़की देखी थी. बड़ी धूमधाम से रिंग सेरेमनी हुई. मूवी बनी. लड़की वालों ने 200 व्यक्तियों के खानेपीने पर दिल खोल कर खर्च किया. लड़के ने इस शादी के लिए बहुत मना किया था पर मां ने एक न सुनी और धमकी देने लगीं कि अगर मेरी बात न मानी तो मैं अपनी जान दे दूंगी. बेटे को मानना पड़ा.

‘‘बेटे ने कनाडा में नौकरी के लिए आवेदन किया था. नौकरी मिल गई तो वह चुपचाप घर से खिसक गया. वहां जा कर फोन कर दिया, ‘मम्मी, मैं ने कनाडा में ही रहने का निर्णय लिया है और यहीं अपनी पसंद की लड़की से शादी कर के घर बसाऊंगा. आप लड़की वालों को मना कर दें.’

‘‘मांबाप के दिल को तोड़ने वाली यह पहली चोट थी. लड़की वालों को पता चला तो आ कर उन्हें काफी कुछ सुना गए. बिरादरी में तो जैसे इन की नाक ही कट गई. अंकल ने तो बाहर निकलना ही छोड़ दिया लेकिन आंटी उसी ठाटबाट से निकलतीं. आखिर लड़के की मां होने का कुछ तो गरूर उन में होना ही था.

‘‘इधर छोटे बेटे ने भी किसी ईसाई लड़की से शादी कर ली. अब रह गई बेटी. अंकल ने उस से पूछा, ‘बेटी, तुम भी अपनी पसंद बता दो. हम तुम्हारे लिए लड़का देखें या तुम्हें भी अपनी इच्छा से शादी करनी है.’ इस पर वह बोली कि पापा, अभी तो मैं पढ़ रही हूं. पढ़ाई करने के बाद इस बारे में सोचूंगी.

‘‘‘फिर क्या सोचेगी.’ इस के पापा ने कहा, ‘फिर तो नौकरी खोजेगी और अपने पैरों पर खड़ी होने के बारे में सोचेगी. तब तक तुझे भी कोई मनपसंद साथी मिल जाएगा और कहेगी कि उसी से शादी करनी है. आजकल की पीढ़ी देशदेशांतर और जातिपाति को तो कुछ समझती नहीं बल्कि बिरादरी के बाहर शादी करने को एक उपलब्धि समझती है.’ ’’

इसी बीच दीप्ति की मम्मी कब हमारे लिए चाय रख गईं पता ही नहीं चला. मैं ने घड़ी देखी, 5 बज चुके थे.

‘‘अरे, मैं तो मम्मी को 4 बजे आने को कह कर आई हूं…अब खूब डांट पड़ेगी,’’ कहानी अधूरी छोड़ उस से विदा ले कर मैं घर चली आई. कहानी के बाकी हिस्से के लिए मन में उत्सुकता तो थी पर घड़ी की सूई की सी रफ्तार से चलने वाली यहां की जिंदगी का मैं भी एक हिस्सा थी. अगले दिन काम पर ही कहानी के बाकी हिस्से के लिए मैं ने दीप्ति को लंच टाइम में पकड़ा. उस ने वृद्ध दंपती की कहानी का अगला हिस्सा जो सुनाया वह इस प्रकार है:

‘‘मिसेज शर्मा यानी मेरी पड़ोसिन वृद्धा कहीं भी विवाहशादी का धूमधड़ाका या रौनक सुनदेख लें तो बरदाश्त नहीं कर पातीं और पागलों की तरह व्यवहार करने लगती हैं. आसपड़ोस को बीच सड़क पर खड़ी हो कर गालियां देने लगती हैं. यह भी कारण है अंकल का हरदम घर में ही बैठे रहने का,’’ दीप्ति ने बताया, ‘‘एक बार पापा ने अंकल को सुझाया था कि आप रिटायर तो हो ही चुके हैं, क्यों नहीं कुछ दिनों के लिए इंडिया घूम आते या भाभी को ही कुछ दिनों के लिए भेज देते. कुछ हवापानी बदलेगा, अपनों से मिलेंगी तो इन का मन खुश होगा.

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‘‘‘यह भी कर के देख लिया है,’ बडे़ मायूस हो कर शर्मा अंकल बोले थे, ‘चाहता तो था कि इंडिया जा कर बसेरा बनाऊं मगर वहां अब है क्या हमारा. भाईभतीजों ने पिता से यह कह कर सब हड़प लिया कि छोटे भैया को तो आप बाहर भेज कर पहले ही बहुत कुछ दे चुके हैं…वहां हमारा अब जो छोटा सा घर बचा है वह भी रहने लायक नहीं है.

‘‘‘4 साल पहले जब मेरी पत्नी सुमित्रा वहां गई थी तो घर की खस्ता हालत देख कर रो पड़ी थी. उसी घर में विवाह कर आई थी. भरापूरा घर, सासससुर, देवरजेठ, ननदों की गहमागहमी. अब क्या था, सिर्फ खंडहर, कबूतरों का बसेरा.

‘‘‘बड़ी भाभी ने सुमित्रा का खूब स्वागत किया. सुमित्रा को शक तो हुआ था कि यह अकारण ही मुझ पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही हैं. पर सुमित्रा यह जांचने के लिए कि देखती हूं वह कौन सा नया नाटक करने जा रही है, खामोश बनी रही. फिर एक दिन कहा कि दीदी, किसी सफाई वाली को बुला दो. अब आई हूं तो घर की थोड़ी साफसफाई ही करवा जाऊं.’

‘‘‘सफाई भी हो जाएगी पर मैं तो सोचती हूं कि तुम किसी को घर की चाबी दे जाओ तो तुम्हारे पीछे घर को हवाधूप लगती रहेगी,’ भाभी ने अपना विचार रखा था.

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बहू – जब स्वार्थी दीपक को उसकी पत्नी ने हराया

लेखिका- अमिता बत्रा

बहू शब्द सुनते ही मन में सब से पहला विचार यही आता है कि बहू तो सदा पराई होती है. लेकिन मेरी शोभा भाभी से मिल कर हर व्यक्ति यही कहने लगता है कि बहू हो तो ऐसी. शोभा भाभी ने न केवल बहू का, बल्कि बेटे का भी फर्ज निभाया. 15 साल पहले जब उन्होंने दीपक भैया के साथ फेरे ले कर यह वादा किया था कि वे उन के परिवार का ध्यान रखेंगी व उन के सुखदुख में उन का साथ देंगी, तब से वह वचन उन्होंने सदैव निभाया.

जब बाबूजी दीपक भैया के लिए शोभा भाभी को पसंद कर के आए थे तब बूआजी ने कहा था, ‘‘बड़े शहर की लड़की है भैयाजी, बातें भी बड़ीबड़ी करेगी. हमारे छोटे शहर में रह नहीं पाएगी.’’

तब बाबूजी ने मुसकरा कर कहा था, ‘‘दीदी, मुझे लड़की की सादगी भा गई. देखना, वह हमारे परिवार में खुशीखुशी अपनी जगह बना लेगी.’’

बाबूजी की यह बात सच साबित हुई और शोभा भाभी कब हमारे परिवार का हिस्सा बन गईं, पता ही नहीं चला. भाभी हमारे परिवार की जान थीं. उन के बिना त्योहार, विवाह आदि फीके लगते थे. भैया सदैव काम में व्यस्त रहते थे, इसलिए घर के काम के साथसाथ घर के बाहर के काम जैसे बिजली का बिल जमा करना, बाबूजी की दवा आदि लाना सब भाभी ही किया करती थीं.

मां के देहांत के बाद उन्होंने मुझे कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी. इसी बीच राहुल के जन्म ने घर में खुशियों का माहौल बना दिया. सारा दिन बाबूजी उसी के साथ खेलते रहते. मेरे दोनों बच्चे अपनी मामी के इस नन्हे तोहफे से बेहद खुश थे. वे स्कूल से आते ही राहुल से मिलने की जिद करते थे. मैं जब भी अपने पति दिनेश के साथ अपने मायके जाती तो भाभी न दिन देखतीं न रात, बस सेवा में लग जातीं. इतना लाड़ तो मां भी नहीं करती थीं.

एक दिन बाबूजी का फोन आया और उन्होंने कहा, ‘‘शालिनी, दिनेश को ले कर फौरन चली आ बेटी, शोभा को तेरी जरूरत है.’’

मैं ने तुरंत दिनेश को दुकान से बुलवाया और हम दोनों घर के लिए निकल पड़े. मैं सारा रास्ता परेशान थी कि आखिर बाबूजी ने इस समय हमें क्यों बुलाया और भाभी को मेरी जरूरत है, ऐसा क्यों कहा  मन में सवाल ले कर जैसे ही घर पहुंची तो देखा कि बाहर टैक्सी खड़ी थी और दरवाजे पर 2 बड़े सूटकेस रखे थे. कुछ समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है. अंदर जाते ही देखा कि बाबूजी परेशान बैठे थे और भाभी चुपचाप मूर्ति बन कर खड़ी थीं.

भैया गुस्से में आए और बोले, ‘‘उफ, तो अब अपनी वकालत करने के लिए शोभा ने आप लोगों को बुला लिया.’’

भैया के ये बोल दिल में तीर की तरह लगे. तभी दिनेश बोले, ‘‘क्या हुआ भैया आप सब इतने परेशान क्यों हैं ’’

इतना सुनते ही भाभी फूटफूट कर रोने लगीं.

भैया ने गुस्से में कहा, ‘‘कुछ नहीं दिनेश, मैं ने अपने जीवन में एक महत्त्वपूर्ण फैसला लिया है जिस से बाबूजी सहमत नहीं हैं. मैं विदेश जाना चाहता हूं, वहां बहुत अच्छी नौकरी मिल रही है, रहने को मकान व गाड़ी भी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है भैया,’’ दिनेश ने कहा.

दिनेश कुछ और कह पाते, तभी भैया बोले, ‘‘मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई दिनेश, मैं अब अपना जीवन अपनी पसंद से जीना चाहता हूं, अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ.’’

यह सुनते ही मैं और दिनेश हैरानी से भैया को देखने लगे. भैया ऐसा सोच भी कैसे सकते थे. भैया अपने दफ्तर में काम करने वाली नीला के साथ घर बसाना चाहते थे.

‘‘शोभा मेरी पसंद कभी थी ही नहीं. बाबूजी के डर के कारण मुझे यह विवाह करना पड़ा. परंतु कब तक मैं इन की खुशी के लिए अपनी इच्छाएं दबाता रहूंगा ’’

मैं बाबूजी के पैरों पर गिर कर रोती हुई बोली, ‘‘बाबूजी, आप भैया से कुछ कहते क्यों नहीं  इन से कहिए ऐसा न करें, रोकिए इन्हें बाबूजी, रोक लीजिए.’’

चारों ओर सन्नाटा छा गया, काफी सोच कर बाबूजी ने भैया से कहा, ‘‘दीपक, यह अच्छी बात है कि तुम जीवन में सफलता प्राप्त कर रहे हो पर अपनी सफलता में तुम शोभा को शामिल नहीं कर रहे हो, यह गलत है. मत भूलो कि तुम आज जहां हो वहां पहुंचने में शोभा ने तुम्हारा भरपूर साथ दिया. उस के प्यार और विश्वास का यह इनाम मत दो उसे, वह मर जाएगी,’’ कहते हुए बाबूजी की आंखों में आंसू आ गए.

भैया का जवाब तब भी वही था और वे हम सब को छोड़ कर अपनी अलग दुनिया बसाने चले गए.

बाबूजी सदा यही कहते थे कि वक्त और दुनिया किसी के लिए नहीं रुकती, इस बात का आभास भैया के जाने के बाद हुआ. सगेसंबंधी कुछ दिन तक घर आते रहे दुख व्यक्त करने, फिर उन्होंने भी आना बंद कर दिया.

जैसेजैसे बात फैलती गई वैसेवैसे लोगों का व्यवहार हमारे प्रति बदलता गया. फिर एक दिन बूआजी आईं और जैसे ही भाभी उन के पांव छूने लगीं वैसे ही उन्होंने चिल्ला कर कहा, ‘‘हट बेशर्म, अब आशीर्वाद ले कर क्या करेगी  हमारा बेटा तो तेरी वजह से हमें छोड़ कर चला गया. बूढ़े बाप का सहारा छीन कर चैन नहीं मिला तुझे  अब क्या जान लेगी हमारी  मैं तो कहती हूं भैया इसे इस के मायके भिजवा दो, दीपक वापस चला आएगा.’’

बाबूजी तुरंत बोले, ‘‘बस दीदी, बहुत हुआ. अब मैं एक भी शब्द नहीं सुनूंगा. शोभा इस घर की बहू नहीं, बेटी है. दीपक हमें इस की वजह से नहीं अपने स्वार्थ के लिए छोड़ कर गया है. मैं इसे कहीं नहीं भेजूंगा, यह मेरी बेटी है और मेरे पास ही रहेगी.’’

बूआजी ने फिर कहा, ‘‘कहना बहुत आसान है भैयाजी, पर जवान बहू और छोटे से पोते को कब तक अपने पास रखोगे  आप तो कुछ कमाते भी नहीं, फिर इन्हें कैसे पालोगे  मेरी सलाह मानो इन दोनों को वापस भिजवा दो. क्या पता शोभा में ऐसा क्या दोष है, जो दीपक इसे अपने साथ रखना ही नहीं चाहता.’’

यह सुनते ही बाबूजी को गुस्सा आ गया और उन्होंने बूआजी को अपने घर से चले जाने को कहा. बूआजी तो चली गईं पर उन की कही बात बाबूजी को चैन से बैठने नहीं दे रही थी. उन्होंने भाभी को अपने पास बैठाया और कहा, ‘‘बस शोभा, अब रो कर अपने आने वाले जीवन को नहीं जी सकतीं. तुझे बहादुर बनना पड़ेगा बेटा. अपने लिए, अपने बच्चे के लिए तुझे इस समाज से लड़ना पड़ेगा.

तेरी कोई गलती नहीं है. दीपक के हिस्से तेरी जैसी सुशील लड़की का प्यार नहीं है.

तू चिंता न कर बेटा, मैं हूं न तेरे साथ और हमेशा रहूंगा.’’

वक्त के साथ भाभी ने अपनेआप को संभाल लिया. उन्होंने कालेज में नौकरी कर ली और शाम को घर पर भी बच्चों को पढ़ाने लगीं. समाज की उंगलियां भाभी पर उठती रहीं, पर उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा. राहुल को स्कूल में डालते वक्त थोड़ी परेशानी हुई पर भाभी ने सब कुछ संभालते हुए सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली.

भाभी ने यह साबित कर दिया कि अगर औरत ठान ले तो वह अकेले पूरे समाज से लड़ सकती है. इस बीच भैया की कोई खबर नहीं आई. उन्होंने कभी अपने परिवार की खोजखबर नहीं ली. सालों बीत गए भाभी अकेली परिवार चलाती रहीं, पर भैया की ओर से कोई मदद नहीं आई.

एक दिन भाभी का कालेज से फोन आया, ‘‘दीदी, घर पर ही हो न शाम को

आप से कुछ बातें करनी हैं.’’

‘‘हांहां भाभी, मैं घर पर ही हूं आप आ जाओ.’’

शाम 6 बजे भाभी मेरे घर पहुंचीं. थोड़ी परेशान लग रही थीं. चाय पीने के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है भाभी कुछ परेशान लग रही हो  घर पर सब ठीक है ’’

थोड़ा हिचकते हुए भाभी बोलीं, ‘‘दीदी, आप के भैया का खत आया है.’’

मैं अपने कानों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. बोली, ‘‘इतने सालों बाद याद आई उन को अपने परिवार की या फिर नई बीवी ने बाहर निकाल दिया उन को ’’

‘‘ऐसा न कहो दीदी, आखिर वे आप के भाई हैं.’’

भाभी की बात सुन कर एहसास हुआ कि आज भी भाभी के दिल के किसी कोने में भैया हैं. मैं ने आगे बढ़ कर पूछा, ‘‘भाभी, क्या लिखा है भैया ने ’’

भाभी थोड़ा सोच कर बोलीं, ‘‘दीदी, वे चाहते हैं कि बाबूजी मकान बेच कर उन के साथ चल कर विदेश में रहें.’’

‘‘क्या कहा  बाबूजी मकान बेच दें  भाभी, बाबूजी ऐसा कभी नहीं करेंगे और अगर वे ऐसा करना भी चाहेंगे तो मैं उन्हें कभी ऐसा करने नहीं दूंगी. भाभी, आप जवाब दे दीजिए कि ऐसा कभी नहीं होगा. वह मकान बाबूजी के लिए सब कुछ है, मैं उसे कभी बिकने नहीं दूंगी. वह मकान आप का और राहुल का सहारा है. भैया को एहसास है कि अगर वह मकान नहीं होगा तो आप लोग कहां जाएंगे  आप के बारे में तो नहीं पर राहुल के बारे में तो सोचते. आखिर वह उन का बेटा है.’’

मेरी बातें सुन कर भाभी चुप हो गईं और गंभीरता से कुछ सोचने लगीं. उन्होंने यह बात अभी बाबूजी से छिपा रखी थी. हमें समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें, तभी दिनेश आ गए और हमें परेशान देख कर सारी बात पूछी. बात सुन कर दिनेश ने भाभी से कहा, ‘‘भाभी, आप को यह बात बाबूजी को बता देनी चाहिए. दीपक भैया के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे.’’

यह सुनते ही भाभी डर गईं. फिर हम तीनों तुरंत घर के लिए निकल पड़े. घर जा कर

भाभी ने सारी बात विस्तार से बाबूजी को बता दी. बाबूजी कुछ विचार करने लगे. उन के चेहरे से लग रहा था कि भैया ऐसा करेंगे उन्हें इस बात की उम्मीद थी. उन्होंने दिनेश से पूछा, ‘‘दिनेश, तुम बताओ कि हमें क्या करना चाहिए ’’

दिनेश ने कहा, ‘‘दीपक आप के बेटे हैं तो जाहिर सी बात है कि इस मकान पर उन का अधिकार बनता है. पर यदि आप अपने रहते यह मकान भाभी या राहुल के नाम कर देते हैं तो फिर भैया चाह कर भी कुछ नहीं कर सकेंगे.’’

दिनेश की यह बात सुन कर बाबूजी ने तुरंत फैसला ले लिया कि वे अपना मकान भाभी के नाम कर देंगे. मैं ने बाबूजी के इस फैसले को मंजूरी दे दी और उन्हें विश्वास दिलाया कि वे सही कर रहे हैं.

ठीक 10 दिन बाद भैया घर आ पहुंचे और आ कर अपना हक मांगने लगे. भाभी पर इलजाम लगाने लगे कि उन्होंने बाबूजी के बुढ़ापे का फायदा उठाया है और धोखे से मकान अपने नाम करवा लिया है.

भैया की कड़वी बातें सुन कर बाबूजी को गुस्सा आ गया. वे भैया को थप्पड़ मारते हुए बोले, ‘‘नालायक कोई तो अच्छा काम किया होता. शोभा को छोड़ कर तू ने पहली गलती की और अब इतनी घटिया बात कहते हुए तुझे जरा सी भी लज्जा नहीं आई. उस ने मेरा फायदा नहीं उठाया, बल्कि मुझे सहारा दिया. चाहती तो वह भी मुझे छोड़ कर जा सकती

थी, अपनी अलग दुनिया बसा सकती थी पर उस ने वे जिम्मेदारियां निभाईं जो तेरी थीं.

तुझे अपना बेटा कहते हुए मुझे अफसोस होता है.’’

भाभी तभी बीच में बोलीं, ‘‘दीपक, आप बाबूजी को और दुख मत दीजिए, हम सब की भलाई इसी में है कि आप यहां से चले जाएं.’’

भाभी का आत्मविश्वास देख कर भैया दंग रह गए और चुपचाप लौट गए. भाभी घर की बहू से अब हमारे घर का बेटा बन गई थीं.

मनोहर कहानियां: चांदनी को लगा शक का तीर

शाहनवाज

26दिसंबर, 2021 की सुबह के करीब 6 बज रहे थे, जब कानपुर के नौबस्ता थाना क्षेत्र में राजीव नगर की एक कालोनी के एक घर में दूसरी मंजिल पर रहने वाले हैदर के घर से बच्चों के रोने की आवाजें तेज हो गईं. हालांकि हैदर के घर से बच्चों की रोने की आवाजें बहुत पहले से ही आ रही थीं, लेकिन ठंड के दिनों में इतनी सुबहसुबह वह बिस्तर से उठना नहीं चाहता था. वैसे भी हैदर के घर के झगड़ेझमेलों में मकान का कोई भी दूसरा पड़ोसी पड़ने को तैयार नहीं था.

उन के घर पर लगभग रोजाना झगड़ा होना, मारपीट और बच्चों के चीखनेचिल्लाने व रोनेपीटने की आवाजें आम बात सी हो गई थी. कुछ ही देर में बच्चों के रोने की आवाजें इतनी तेज हो गईं कि अब लोगों की आंखों की नींद टूटने लगी थी. मकान की पहली मंजिल पर रहने वाला मकान मालिक तो उन के आपसी झगड़ों से इतना परेशान हो गया था कि उस ने तय कर लिया कि वो हैदर को घर खाली करने को कह देगा.

मकान मालिक गुस्से और तैश में अपने बिस्तर से निकला, अपने कमरे से निकलते हुए उस ने अपने पैरों में चप्पल डाली और तेजी से भागता हुआ सीढि़यां चढ़ कर दूसरी मंजिल पर हैदर के कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोला, ‘‘हैदर जल्दी बाहर निकल. तुम लोगों का हर दिन का ये ड्रामा अब मैं नहीं सह सकता. जल्दी निकल. तेरा इलाज तो मैं आज करता हूं.’’

कुछ ही देर में दरवाजा खुला. दरवाजा हैदर ने नहीं बल्कि रोते हुए हैदर की 5 साल की बेटी सायमा ने खोला था. उसे रोता देख मकान मालिक ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और बोला, ‘‘अरे रो क्यों रही है? पापा कहां हैं तेरे? सुबह से तुम ने रोरो कर सब की नींद हराम कर डाली है.’’

सायमा को गोद में उठाते हुए मकान मालिक ने कमरे के दरवाजे का दूसरा पल्ला खोला और अंदर का नजारा देख उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

उस ने देखा कि कमरे में बिखरे सामान के बीचोबीच जमीन पर हैदर की बीवी चांदनी पड़ी है. चांदनी के ठीक बगल में उन का 2 साल का बेटा हसन अपनी मां के गालों पर हाथ लगा कर उसे उठाने की लगातार कोशिश कर रहा है. लेकिन चांदनी कोई जवाब ही नहीं दे रही है.

यह देख कर मकान मालिक के ठंडे पड़े कान एकदम से गरम हो गए. उस के हाथपांव सुन्न पड़ गए. उस के गले से आवाज नहीं निकल रही थी और उस के शरीर की मानों सारी ऊर्जा खत्म सी हो गई.

बड़ी हिम्मत जुटा कर मकान मालिक अपनी गोद में सायमा को उठा कर कमरे में दाखिल हुआ और बिखरे सामान को अपने पैरों से हटा कर कदमों को आगे बढ़ाया. जैसेजैसे वह चांदनी की ओर आगे बढ़ता जा रहा था, वैसेवैसे उस के पैरों की हड्डियां मानों लचीली होती जा रही थीं.

उस ने चांदनी को देखने के बाद मन ही मन यह अंदाजा लगा लिया था कि उसे क्या हुआ होगा, लेकिन वह इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था.

दम तोड़ चुकी थी चांदनी

जब वह जमीन पर पड़ी चांदनी के एकदम नजदीक पहुंचा तो वह झुका और सायमा को अपनी गोद से उतारा. बिना कुछ कहे दोनों हाथों का इस्तेमाल कर उस ने चांदनी की कलाई उठाई और अपने दूसरे हाथ से उस की नब्ज टटोलने लगा. नब्ज मिलने पर उस ने उसे दबाया और उस की धड़कन महसूस करने की कोशिश की.

इस बीच कमरे में दोनों बच्चों की सुगबुगाहट और रोने का शोर पूरा था, लेकिन उसे मानो कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. करीब 2 मिनट तक चांदनी के हाथों की नब्ज टटोलने के बाद उसे महसूस हुआ कि चांदनी की धड़कने थम चुकी हैं. लेकिन उस ने हार नहीं मानी. उस ने अपने कानों को चांदनी की नाक के पास ले जार कर चैक किया. चांदनी की सांस चल रही है या नहीं.

मकान मालिक यह मंजर देख कर इतना डर गया कि उस ने फिर से एक बार चांदनी की नब्ज दबाई. लेकिन उसे असफलता ही हाथ लगी. जब उस के मन ने यह मान लिया कि चांदनी मर चुकी है तो डरेसहमे मकान मालिक ने कमरे में मौजूद 2 साल के हसन को अपनी गोद में उठाया और सायमा का हाथ पकड़ कर उन्हें कमरे से बाहर ले कर निकला और मकान में जोर से शोर मचाया. देखते ही देखते हैदर के कमरे के सामने मकान में रहने वाले सभी किराएदारों का झुंड लग गया. मकान में खड़े रहने की इतनी जगह नहीं थी तो लोगों की मकान के बाहर गली में भीड़ जुटने लगे.

इस बीच मकान मालिक ने फोन कर स्थानीय पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी और सभी पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. हर कोई जिस को यह बात पता लगती जाती कि फलां घर में फलां महिला की मौत हो गई है. वह मकान के आगे खड़ा हो जाता और मामले में होने वाली हलचल को देखने में व्यस्त हो जाता.

हैदर के मकान के आगे जुटी भीड़ की खुसफुसाहट से इलाके में धीमा शोर सा फैल गया. थाना वहां से बहुत दूर नहीं था. कुछ देर के बाद ही स्थानीय पुलिस सूचना मिलते ही वहां पहुंच गई तो मकान के आगे जुटी भीड़ ने पुलिसवालों के लिए रास्ता बनाया.

नौबस्ता थानाप्रभारी अमित कुमार भड़ाना के नेतृत्व में पुलिसकर्मी मकान में उस कमरे में गए, जहां पर हत्या को अंजाम दिया गया था. कमरे में चांदनी की लाश जमीन पर पड़ी थी और घर का हर सामान अपनी जगह पर नहीं था. कमरे का माहौल इतना अस्तव्यस्त था कि घटनास्थल को सही से समझने में पुलिसकर्मियों को काफी समय लग गया.

घटनास्थल से जुटाए सबूत

पुलिस की टीम ने देखा कि कमरे में ऊपर टंगे हुए पंखे की पंखुडियां नीचे की ओर मुड़ी हुई थीं. लाश के पास ही चांदनी का दुपट्टा भी मौजूद था. यह देख कोई भी यह अंदाजा लगा सकता था कि हत्या को अंजाम पीडि़ता को फांसी पर लटका कर दिया गया था. देरी न करते हुए मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने चांदनी की लाश को पास के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के साथ ही घटनास्थल से पुलिस टीम ने फोरैंसिक टीम की मदद ले कर सभी जरूरी सबूतों को इकट्ठा कर लिया.

यह सब करने के बाद अब बारी थी पूछताछ की. थानाप्रभारी ने अपनी टीम की सहायता ले कर मामले को समझने के लिए मकान मालिक समेत सभी किराएदारों से हैदर और चांदनी के बारे में पूछताछ की. इस के साथ ही पुलिस ने चांदनी के रिश्तेदार, जिस में उस का भाई अब्दुल माजिद जो कानपुर के बाबुपुरवा में रहता था, को इस घटना की सूचना दी और जल्द से जल्द राजीव नगर अपनी बहन के घर पर आने को कहा.

पूछताछ के दौरान मकान मालिक और मकान में रहने वाले सभी किराएदारों ने पुलिस को बताया कि हैदर और चांदनी के बीच लगभग हर दिन झगड़े होते रहते थे. हैदर पेशे से पेंटर था और कोविड की वजह से उस के काम पर काफी असर पड़ा था.

इन दिनों उस का काम थोड़ाबहुत बढ़ा था, जिस के बाद ही वह मकान मालिक को किराए के पैसे दे पाया था. जब पुलिस ने उन के बीच झगड़ों की वजह पूछी तो पता चला कि हैदर हर रात को दारू पी कर घर आता था और वह घर के खर्चों के लिए चांदनी को पैसे भी नहीं देता था. इसलिए चांदनी घर के खर्चों के लिए घर पर ही पतंग बनाने का काम किया करती थी और उसी से ही बच्चों की जरूरतें पूरा किया करती थी.

हर किसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने चांदनी और हैदर के बच्चों का रुख किया. हालांकि बच्चे उस समय भी लगातार रो ही रहे थे. पुलिस की टीम ने उन्हें खिलौने और खाने के लिए चौकलेट खरीद कर दिए तो बच्चे कुछ पल के लिए शांत हुए.

सायमा ने पुलिस को बताई कहानी

इसी दौरान थानाप्रभारी ने चांदनी की बेटी सायमा से इस घटना के बारे में पूछा. सायमा फफकते हुए धीमी आवाज में बोली, ‘‘पापा ने मम्मी के गले में दुपट्टा डाला और खींच कर पकड़ा. मम्मी जवाब नहीं दे रही थीं.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी चौकन्ने हो गए और सायमा से इस बारे में थोड़ा और खुल कर बताने के लिए कहा. सायमा थानाप्रभारी को कुछ भी बताने से काफी डर रही थी. थानाप्रभारी उस छोटी बच्ची के डर को साफ महसूस कर रहे थे. इसलिए उन्होंने सायमा के डर को दूर करने के लिए उसे अपने विश्वास में ले कर थोड़ी दूर आए.

वह सायमा से बोले, ‘‘बेटा डरने की जरूरत नहीं है. हम हैं न यहां पर. जो कुछ हुआ उसे बिना डरे बताओ. तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा.’’

रोती हुई सायमा को थानाप्रभारी की बात सुन कर थोड़ा अच्छा महसूस हुआ तो उस ने जवाब दिया, ‘‘पापा ने बोला कि अगर किसी को इस बारे में बताया तो वे हमें भी मम्मी की तरह मार डालेंगे.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी के कान खड़े हो गए. उन्होंने सायमा को फिर से भरोसा दिलाया कि उसे कुछ नहीं होगा, अगर वो सब कुछ सचसच बता देगी तो वह उस की अम्मी के कातिल को सजा दिला पाएंगे.

सायमा को थानाप्रभारी की बातों पर भरोसा हो गया तो उस ने कहा, ‘‘पापा की मम्मी से कल रात को भी लड़ाई हुई थी. पापा दारू पी कर आए थे और मम्मी को पैसे देने के लिए बोल रहे थे. कल रात को भी पापा ने मम्मी को मारा था. उस के हाथ पर चोट आई थी कल रात को. आज सुबह भी उन के बीच झगड़ा हुआ था. पापा काम के लिए सुबह निकलने वाले थे और मम्मी से पैसे मांग रहे थे. मम्मी ने पैसे नहीं दिए तो पापा ने गुस्से में मम्मी के गले में उन का दुपट्टा डाला और कस दिया. उस के बाद मम्मी कुछ नहीं बोलीं.

‘‘जब पापा ने मम्मी के गले में उन का दुपट्टा डाला था तो मैं और मेरा छोटा भाई पापा के सामने हाथ जोड़ कर रो रहे थे कि मम्मी को छोड़ दीजिए पापा. लेकिन पापा ने तब तक मम्मी को नहीं छोड़ा, जब तक मम्मी ने बोलना बंद नहीं किया था.

ऐसा करने के बाद पापा ने मेरा गला पकड़ लिया और जोर से दबा दिया था और मुझ से बोले कि अगर मैं ने किसी को भी इस के बारे में बताया तो वह मुझे भी मम्मी की तरह चुप करा देंगे. अंकल मुझे डर लग रहा है अब. क्या पापा सही में मुझे मम्मी की तरह चुप करवा देंगे?’’

यह सब सुन कर थानाप्रभारी की आंखें खुली रह गईं. 5 साल की बच्ची ने पूरा किस्सा पुलिस को बता दिया था. लेकिन थानाप्रभारी के मन में अभी भी एक अहम सवाल बना हुआ था कि हैदर ने चांदनी की हत्या क्या सिर्फ पैसों की वजह से की होगी?

हैदर को चांदनी पर हो गया था शक

इस सवाल का जवाब उन्हें चांदनी के भाई अब्दुल माजिद से मिला जो सायमा से पूछताछ के दौरान ही अपने कुछ और करीबी रिश्तेदारों के साथ राजीव नगर पहुंचा था. अब्दुल माजिद ने थानाप्रभारी को बताया कि हैदर और चांदनी की शादी 8 साल पहले कानपुर में ही हुई थी. उस समय हैदर पेंटिंग का काम किया करता था और ठीकठाक कमाता था.

लेकिन जब से कोविड की शुरुआत हुई और सब के कामधंधे ठप पड़ गए तो वह भी घर पर बैठ गया. लेकिन लौकडाउन के उन दिनों में भी वह घर से निकलता था और अड़ोसपड़ोस के लफाडि़यों के संग दो पैसे कमाने के मकसद से जुआ खेलने लगा था. लेकिन जुए में वह पैसे कमाने की जगह पैसे गंवाने लगा और धीरेधीरे उस ने अपनी पूरी जमापूंजी जुए में गंवा दी. इन सब के लिए चांदनी उसे बहुत टोका करती थी और जुआ खेलने को ले कर उस से झगड़े करती थी. लेकिन वह नहीं माना.

हार मान कर चांदनी ने घर खर्च चलाने के लिए पतंग बनानी शुरू कर दीं. चांदनी दिन भर घर के काम, बच्चों की देखरेख और पतंग बनाने में व्यस्त रहने लगी और उन के आपस के झगड़े भी कम होने लगे. झगड़े कम होने की वजह से हैदर को सुकून तो मिला, लेकिन उस के मन में चांदनी को ले कर शक पैदा होने लगा कि कहीं उस की बीवी गलत काम कर के पैसे तो नहीं जोड़ रही है.

जैसेजैसे दिन बीतते जाते, हैदर के मन का शक भी बढ़ता ही जाता. कुछ समय बाद जब देश में कोविड से हालात सामान्य हुए और हैदर का पेंटिंग का काम फिर से चालू हुआ तो हैदर भी पूरा दिन घर से बाहर काम में लगाने लगा. हैदर ने शराब पीने की लत भी तभी से ही लगाई थी.

धीरेधीरे उन के बीच फिर से पहले की तरह ही झगड़े होने शुरू हो चुके थे, लेकिन अब झगड़ा पैसों को ले कर नहीं बल्कि चांदनी के चरित्र को ले कर हुआ करता था.

दरअसल, हैदर को चांदनी पर इस बात का शक था कि चांदनी जिस दुकानदार के लिए पतंग बनाने का काम करती है, शायद उसी के साथ ही उस के अवैध संबंध हैं. इस बात पर उन के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा. इसी दौरान हैदर ने अपने शक्की दिमाग में चांदनी के लिए न जाने क्याक्या खयाल पैदा कर लिए और झगड़े मारपीट में बदल गए. चांदनी बच्चों की चिंता कर हैदर की मारपीट को सहन कर लिया करती और अपना काम जारी रखती.

लेकिन 25 दिसंबर, 2021 की रात को उन के बीच फिर से झगड़ा हुआ और अगली सुबह हैदर ने चांदनी को जान से मार दिया.

इस पूरी घटना के बाद पुलिस ने फरार आरोपी हैदर के खिलाफ हत्या की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया है और उस की तलाश जारी है. कथा लिखने तक पुलिस आरोपी हैदर को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.

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