Crime Story: अपनी शर्तों पर – जब खूनी खेल में बदली नव्या-परख की कहानी

Crime Story: नव्या लाइब्रेरी में बैठी नोट्स लिख रही थी तभी कब परख उस के पास आ कर बैठ गया उसे पता ही नहीं चला. ‘‘मुझ से इतनी बेरुखी क्यों नव्या, मैं सह नहीं पाऊंगा. वैसे कान खोल कर सुन लो, तुम मेरी नहीं हो सकीं तो और किसी की नहीं होने दूंगा. कितने दिनों से मैं तुम से मिलने का प्रयत्न कर रहा हूं पर तुम कन्नी काट कर निकल जाती हो,’’ वह बोला.

‘‘मेरा पीछा छोड़ दो परख, हमारी राहें और लक्ष्य अलग हैं,’’ नव्या ने उत्तर दिया. दोनों को बातें करता देख कर लाइब्रेरियन ने उन्हें बाहर जाने का इशारा करते हुए द्वार पर लगी चुप रहने का इशारा करने वाली तसवीर दिखाई.

‘‘देखो नव्या, मैं आज तुम्हें अंतिम चेतावनी देता हूं. तुम मुझे दूसरों की तरह समझने की भूल मत करना, नहीं तो बहुत पछताओगी. उपभोग करो और फेंक दो की नीति मेरे साथ नहीं चलेगी. पिछले 2 वर्षों में मैं ने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया? पानी की तरह पैसा बहाया मैं ने और इस चक्कर में मेरी पढ़ाई चौपट हो गई सो अलग,’’ परख ने धमकी ही दे डाली.

‘‘क्यों किया यह सब? मैं ने तो कभी नहीं कहा था कि अपनी पढ़ाई पर ध्यान मत दो. घूमनेफिरने का शौक तुम्हें भी कम नहीं है. मैं तो बस मित्रता के नाते तुम्हारा साथ दे रही थी.’’ ‘‘किस मित्रता की बात कर रही हो तुम? एक युवक और युवती के बीच मित्रता नहीं केवल प्यार होता है,’’ परख की आंखों से चिनगारियां निकल रही थीं. लाइब्रेरी से बाहर निकल कर दोनों कुछ देर वादविवाद करते हुए साथ चले. फिर नव्या ने परख से आगे निकलने का प्रयत्न करते हुए तेजी से कदम बढ़ाए. वह सचमुच डर गई थी. तभी परख ने जेब से छोटा सा चाकू निकाला और दीवानों की तरह नव्या पर वार करने लगा. नव्या बदहवास सी चीख रही थी. चीखपुकार सुन कर वहां भीड़ जमा हो गई. कुछ विद्यार्थियों ने कठिनाई से परख को नियंत्रित किया. फिर वे आननफानन नव्या को अस्पताल ले गए. कालेज में यह समाचार आग की तरह फैल गया. सब अपने ढंग से इस घटना की विवेचना कर रहे थे.

नव्या मित्रोंसंबंधियों से घिरी इस सदमे से निकलने का प्रयत्न कर रही थी. हालांकि उस के जख्म अधिक गहरे नहीं थे, पर उसे अस्पताल में भरती कर लिया गया था. नव्या की फ्रैंड निधि ने उस के स्थानीय अभिभावक मौसी और मौसा को फोन कर के सारी घटना की जानकारी दे दी, तो नव्या की मौसी नीला और उस के पति अरुण तुरंत आ पहुंचे. नव्या नीला के गले लग कर फूटफूट कर रोई व आंसुओं के बीच बारबार यह कहती रही, ‘‘मौसी, मुझे यहां से ले चलो. यह खूंख्वार लोगों की बस्ती है. परख मुझे जान से मार डालेगा.’’ नीला नव्या को सांत्वना दे कर धीरज बंधाती रही. पर नव्या हिचकियां ले कर रो रही थी. उसे सपने में भी आशा नहीं थी कि परख उस से ऐसा व्यवहार करेगा. अगले दिन ही नीला उसे अपने घर ले गई. सूचना मिलते ही नव्या के मातापिता आ पहुंचे. सारा घटनाक्रम सुन कर वे स्तब्ध रह गए.

‘‘नव्या, हम ने तो बड़े विश्वास से तुम को यहां पढ़ने के लिए भेजा था. पर तुम्हारे तो यहां पहुंचते ही पंख निकल आए. और नीला, तुम ने ही कहा था न कि छात्रावास में, वह भी देश की राजधानी में रह कर इस की प्रतिभा निखर आएगी पर हुआ इस का उलटा ही. पूरे परिवार की कितनी बदनामी हुई है यह सब जान कर. अब कौन इस से विवाह करेगा?’’ नव्या के पिता गिरिजा बाबू का दर्द उन की आंखों में छलक आया.

‘‘अब तो हम नव्या को अपने साथ ले जाएंगे. कोई और रास्ता तो बचा ही नहीं है,’’ नव्या की मां लीला ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘दीदी, जीजाजी, सच कहूं तो जैसे ही मुझे परख से संबंध के बारे में पता चला मैं ने नव्या को घर बुला कर समझाया था. इस ने वादा भी किया था कि यह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी. पर इसी बीच यह घटना घट गई,’’ नीला ने स्पष्ट किया. ‘‘मैं ने तो उस दिन भी कहा था कि सारी सूचना आप लोगों को दे दें पर नव्या अपनी सहेली निधि को साथ ले कर आई और अपनी मौसी को समझा ही लिया कि वह आप दोनों को सूचित न करे,’’ तभी अरुण ने पूरे प्रकरण पर अपनी चुप्पी तोड़ी.

‘‘मैं ने भी कहां सोचा था कि बात इतनी बढ़ जाएगी. मैं ने तो नव्या को कई बार चेताया भी था कि इस तरह किसी के साथ अकेले घूमनाफिरना ठीक नहीं है पर नव्या ने अनसुना कर दिया,’’ निधि ने अपना बचाव किया. ‘‘ठीक है, मैं ही बुरी हूं और सब तो दूध के धुले हैं,’’ नव्या निधि की बात सुन कर चिहुंक उठी. ‘‘आप लोग व्यर्थ ही चिंतित हो जाओगी इसीलिए आप लोगों को सूचित नहीं किया था. मुझे लगा कि हम इस स्थिति को संभाल लेंगे. निधि ने भी नव्या की ओर से आश्वस्त किया था. पर कौन जानता था कि ऐसा हादसा हो जाएगा,’’ नीला समझाते हुए रोंआसी हो उठी.

अभी यह विचारविमर्श चल ही रहा था कि अरुण ने परख के मातापिता के आने की सूचना दी. ‘‘अब क्या लेने आए हैं? हमारी बेटी की तो जान पर बन आई. इन का यहां आने का साहस कैसे हुआ?’’ लीला बहुत क्रोध में थीं. अरुण और नीला ने उन्हें शांत करने का प्रयत्न किया. ‘‘हम तो उस अप्रिय घटना के प्रति अपना खेद प्रकट करने आए हैं. परख भी बहुत शर्मिंदा है. आप लोगों से माफी मांगनी चाहता है,’’ परख के पिता धीरज आते ही बोले.

‘‘क्या कहने आप के बेटे की शर्मिंदगी के. यहां तो जीवन का संकट उत्पन्न हो गया. बदनामी हुई सो अलग.’’ ‘‘मैं यही विनती ले कर आया हूं कि यदि हम मिलबैठ कर समझौता कर लें तो कोर्टकचहरी तक जाने की नौबत नहीं आएगी,’’ धीरज ने किसी प्रकार अपनी बात पूरी की.

‘‘चाहते क्या हैं आप?’’ अरुण ने प्रश्न किया.

‘‘यही कि नव्या परख के पक्ष में अपना बयान बदल दे. हम तो इलाज का पूरा खर्च उठाने को तैयार हैं,’’ धीरज ने एकएक शब्द पर जोर दे कर कहा.

‘‘ऐसा हो ही नहीं सकता. यह हमारी बेटी के सम्मान का प्रश्न है,’’ गिरिजा बाबू बहुत क्रोध में थे.

‘‘आप की बेटी हमारी भी बेटी जैसी है. मानता हूं इस में हमारा स्वार्थ है पर यह बात उछलेगी तो दोनों परिवारों की बदनामी होगी, बल्कि मेरे पास तो एक और सुझाव भी है. गलत मत समझिए. मैं तो मात्र सुझाव दे रहा हूं. मानना न मानना आप के हाथ में है,’’ परख के पिता शांत और संयत स्वर में बोले.

‘‘क्या सुझाव है आप का?’’

‘‘हम दोनों का विवाह तय कर देते हैं. सब के मुंह अपनेआप बंद हो जाएंगे.’’ ‘‘यह दबाव डालने का नया तरीका है क्या? बेटा हमला करता है और उस का पिता विवाह का प्रस्ताव ले कर आ जाता है. कान खोल कर सुन लीजिए, जान दे दूंगी पर इस दबाव में नहीं आऊंगी,’’ घायल अवस्था में भी नव्या उठ कर चली आई और पूरी शक्ति से चीख कर फूटफूट कर रोने लगी. नव्या को इस तरह बिलखता देख कर सभी स्तब्ध रह गए. किसी को कुछ नहीं सूझा तो बगलें झांकने लगे और परख के पिता हड़बड़ा कर उठ खड़े हुए.

‘‘आप लोग बच्ची को संभालिए हम फिर मिलेंगे,’’ परख के पिता अपनी पत्नी के साथ तेजी से बाहर निकल गए. ‘‘देखा आप ने? अभी भी ये लोग मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे. मेरा दोष क्या है? यही न कि लड़की होते हुए भी मैं ने घर से दूर आ कर पढ़ने का साहस किया. पर ये होते कौन हैं मेरे लिए ऐसी बातें कहने वाले?’’ नव्या का प्रलाप जारी था. गिरिजा बाबू अभी भी क्रोध में थे. जो कुछ हुआ उस के लिए वे नव्या को ही दोषी मान रहे थे और कोई कड़वी सी बात कहनी चाहते थे पर नव्या की दशा देख कर चुप रह गए. परख और उस के मातापिता अगले दिन फिर आ धमके. परख भी उन के साथ था. उस के लिए उन्होंने जमानत का प्रबंध कर लिया था.

‘‘ये लोग तो बड़े बेशर्म हैं. फिर चले आए,’’ गिरिजा बाबू उन्हें देखते ही भड़क उठे.

‘‘जीजाजी, यह समय क्रोध में आने का नहीं है. बातचीत करने में कोई हानि नहीं है.हमें तो केवल यह देखना है कि इस मुसीबत से बाहर कैसे निकला जाए,’’ नीला ने उन्हें शांत करना चाहा. ‘‘इतना निरीह तो मैं ने स्वयं को कभी अनुभव नहीं किया. सब नव्या के कारण. सोचा था परिवार का नाम ऊंचा करेगी पर इस ने तो हमें कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रखा,’’ गिरिजा बाबू परेशान हो उठे. ‘‘ऐसा नहीं कहते. वह बेचारी तो स्वयं संकट में है. चलिए बैठक में चलिए. वे लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं. इस मसले को बातचीत से ही सुलझाने का यत्न करिए,’’ नीला और लीला समवेत स्वर में बोलीं.

अरुण गिरिजा बाबू को ले कर बैठक में आ बैठे. परख ने दोनों का अभिवादन किया.

‘‘यही है परख,’’ अरुण ने गिरिजा बाबू से परिचय कराया.

‘‘ओह तो यही है सारी मुसीबत की जड़,’’ गिरिजा बाबू का स्वर बहुत तीखा था. ‘‘देखिए, ऐसी बातें आप को शोभा नहीं देतीं. इस तरह तो आप कड़वाहट को और बढ़ा रहे हैं. हम तो संयम से काम ले रहे हैं पर आप उसे हमारी कमजोरी समझने की भूल कदापि मत करिए,’’ धीरज ने भी उतने ही तीखे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘अच्छा, नहीं तो क्या करेंगे आप? हमें भी चाकू से मारेंगे? सच तो यह है कि आप की जगह यहां नहीं जेल में है.’’

‘‘कोई चाकूवाकू नहीं मारा. छोटा सा पैंसिल छीलने का ब्लेड था जिस से जरा सी खरोंच लगी है. आप लोगों ने बात का बतंगड़ बना दिया,’’ परख बड़े ठसके से बोला मानो उस ने नव्या पर कोई बड़ा उपकार किया हो.

‘‘देखा तुम ने अरुण? कितना बेशर्म है यह व्यक्ति. इसे अपनी करनी पर तनिक भी पश्चाताप नहीं है. ऊपर से हमें ही रोब दिखा रहा है,’’ गिरिजा बाबू आगबबूला हो उठे.

‘‘लो भला, मैं क्यों पश्चाताप करूं? मैं कहता हूं बुलाइए न अपनी बेटी को. अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा,’’ परख बोला.

‘‘लो आ गई मैं. कहो क्या कहना है? मुझे कितनी चोट लगी है इस का हिसाबकिताब हो चुका है. उस के लिए तुम्हारे प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है. बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी. अब जब कोर्टकचहरी के चक्कर लगाओगे तो सारी चतुराई धरी की धरी रह जाएगी.’’ ‘‘मैं ने तो कभी अपनी चतुराई का दावा नहीं किया. चतुर तो तुम हो. मुझे कितनी होशियारी से 2 साल मूर्ख बनाती रहीं. बड़े होटलों, रिजोर्ट में खानापीना, सिनेमा देखना और कपड़े धुलवाने से ले कर प्रोजैक्ट बनवाने तक का काम बड़ी होशियारी से करवाया.’’

‘‘तो क्या हुआ? तुम तो मेरे सच्चे मित्र होने का दावा करते थे. अब बिल चुकाने का रोना रोने लगे. भारतीय संस्कृति में ऐसा ही होता है. बिल सदा युवक ही चुकाते हैं, युवतियां नहीं.’’ ‘‘तुम्हारे मुंह से भारतीय संस्कृति की दुहाई सुन कर हंसी आती है. हमारी संस्कृति में तो लड़कियों को युवकों के साथ सैरसपाटा करनेकी अनुमति ही नहीं है. पर तुम तो भारतीय संस्कृति का उपयोग अपनी सुविधा के लिएकरने में विश्वास करती हो. युवक भी अपनापैसा उन्हीं पर खर्च करते हैं जिन से उन की मित्रता हो, हर ऐरेगैरे पर नहीं. वैसे भी तुम्हारे जैसी लड़की क्या जाने प्रेम, मित्रता जैसे शब्दों के अर्थ. तुम तो न जाने मेरे जैसे कितने युवकों को मूर्ख बना रही थीं. पर मैं उन लोगों में से नहीं हूं कि इस अपमान को चुप रह कर सह लूं,’’ परख भी क्रोध से बोला.

‘‘इसीलिए मुझे जान से मारने का इरादा था तुम्हारा? तो ठीक है अब ये सब बातें तुम अदालत में कहना,’’ नव्या ने धमकी दी.

‘‘देख लिया न आप ने? यह है आज की पीढ़ी. इन्हें हम ने यहां पढ़ने के लिए भेजा था. ये दोनों यहां मस्ती कर रहे थे. बड़ों के सामने भी कितनी बेशर्मी से बातें कर रहे हैं,’’ अब परख की मां रीता ने अपना मत प्रकट किया. ‘‘आप को बुरा लगा हो तो क्षमा कीजिए आंटी. पर मैं भी इक्कीसवीं सदी की लड़की हूं. अपने साथ हुए अत्याचार का बदला लेना मुझे भी आता है.’’ ‘‘अत्याचार तो मुझ पर हुआ है, मुझे कौन न्याय दिलाएगा? 2 वर्षों तक अपना पैसा और समय मैं ने इस लड़की पर लुटाया. अब यह कहती है कि हमारी राहें अलग हैं. इस के चक्कर में मेरी तो पढ़ाई भी चौपट हो गई,’’ परख के मन का दर्द उस के शब्दों में छलक आया.

‘‘अब समझ में आया कि एक युवक और युवती के बीच सच्ची मित्रता हो ही नहीं सकती. मैं जिसे अपना सच्चा मित्र समझती थी वह तो कुछ और ही समझ बैठा था,’’ नव्या अपनी ही बात पर अड़ी थी. ‘‘जब बड़े विचारविमर्श कर रहे हों तो छोटों का बीच में बोलना शोभा नहीं देता. अब केवल हम बोलेंगे और तुम दोनों केवल सुनोगे. दोष तुम दोनों का ही है. तुम्हारा इसलिए परख कि तुम अपनी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर प्रेम की पींगें बढ़ाने लगे और नव्या तुम्हें नईनई आजादी क्या मिली तुम तो सैरसपाटे में उलझ गईं. या तो तुम परख के इरादे को भांप नहीं पाईं या फिर जान कर भी अनजान बनने का नाटक करती रहीं. तुम तो सारी बातें अपनी मौसी से भी तब तक छिपाती रहीं जब तक तुम्हारी मौसी ने बलात सब कुछ उगलवा नहीं लिया,’’ अरुण के स्वर की कड़वाहट स्पष्ट थी.

‘‘इन सब बातों का अब कोई अर्थ नहीं है. परख की ओर से मैं आप को नव्या बेटी की सुरक्षा का विश्वास दिलाता हूं और चाहता हूं कि आप इस अध्याय को यहीं समाप्त कर दें,’’ धीरज ने आग्रह किया. ‘‘परख ने जो किया वह क्षमा के योग्य नहीं है. अत: इस बात को समाप्त करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. हम अपनी बेटी के सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं,’’ गिरिजा बाबू क्रोधित स्वर में बोले. धीरज गिरिजा बाबू और अरुण को कक्ष के एक कोने में ले गए. वहां कुछ देर के वादप्रतिवाद के बाद वे सहमत हो गए कि इस बात को समाप्त करने में ही दोनों परिवारों की भलाई है. नव्या ने सुना तो भड़क उठी, ‘‘कोई और परिवार होता तो परख को जीवन भर चक्की पिसवाता पर हमारे परिवार में मेरी औकात ही क्या है, लड़की हूं न,’’ नव्या ने रोने का उपक्रम किया.

‘‘अब रहने भी दो मुंह मत खुलवाओ. कोई दूसरा परिवार तुम से कैसा व्यवहार करता इस बारे में हम कुछ न कहें इसी में सब की भलाई है,’’ नीला ने अपनी नाराजगी दिखाई.

‘‘ठीक है, यदि सभी अपनी जिद पर अड़े हैं तो मेरी भी सुन लें. मैं कहीं नहीं जा रही. यहीं रह कर पढ़ाई करूंगी,’’ नव्या बड़ी शान से बोली. ‘‘अवश्य, तुम यहां रह कर पढ़ोगी अवश्य, पर अकेले नहीं. अपनी मां के साथ रहोगी उन की छत्रछाया में. अपनी मां के नियंत्रण में रहोगी हमारी शर्तों पर,’’ गिरिजा बाबू तीखे स्वर में बोलते हुए बाहर निकल गए, जिस से थोड़ी सी ताजा हवा में सांस ले सकें. बगीचे में पड़ी बैंच पर बैठ कर व दोनों हाथों में मुंह छिपा कर देर तक सिसकते रहे.

4 महीने के बाद उन्होंने सुना कि परख और नव्या फिर दोस्तों के बीच मिल रहे हैं. उन के दोस्तों ने उन के बीच सुलह करा दी. 6 महीने बाद दोनों ने फिर अपने मातापिता को बुलाया और इस बार दोनों ने शर्माते हुए कहा, ‘‘हम शादी करना चाहते हैं.’’ गिरिजा बाबू और अरुण दोनों एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे और यह समझ में नहीं आ रहा था उन्हें कि क्या कहें, क्या न कहें.

Crime Story: जिस्म के सौदागर

Crime Story, लेखक- अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

इंटर में पढ़ने वाली प्रिया तो खूबसूरत थी ही, उस की 35 साल की मां चंपा भी कम हसीन नहीं थी. प्रिया का एक 8 साल का छोटा भाई भी था. पिता रामेश्वर के पास खेतीबारी तो कोई खास नहीं थी, पर प्राइवेट नौकरी की वजह से घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.

रामेश्वर अपनी तनख्वाह में से ही घरखर्च के लिए पैसे भेजा करता था और बैंक में भी जमा कराता था. वह जानता था कि अगर आज पैसे नहीं बचाएगा, तो कल प्रिया की शादी कैसे होगी? उस की शादी में भी तो 5-7 लाख रुपए लग ही जाएंगे.

रामेश्वर के बाहर रहने की वजह से चंपा को बच्चों के साथ अकेले ही घर संभालना होता था, मतलब हाटबाजार के लिए भी चंपा को ही जाना पड़ता था, जबकि उस का गांव राज्य के कद्दावर मंत्री का गांव था, इसलिए वहां बिजली, सड़क जैसी सुविधाएं शहरों से कम नहीं थीं.

किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए चंपा भी हमेशा शहरी औरत की तरह ही दिखती थी. उस के बच्चे भी गांव के अच्छे घरानों के बच्चों से कम नहीं दिखते थे.

चंपा के खूबसूरत होने और पति से दूर रहने की वजह से गांव के कई जिस्म के सौदागर उस पर गिद्ध की नजरें लगाए रहते थे. बगल के ही एक नौजवान राकेश के चंपा के यहां आनेजाने से दूसरे मर्द जलतेभुनते रहते थे. उन्हें लगता था कि रामेश्वर की गैरहाजिरी में राकेश जरूर चंपा का नाजायज फायदा उठाता होगा और इस वजह से वह उन के जाल में नहीं फंस रही है. चंपा भी उन लोगों की नीयत को अच्छी तरह समझने लगी थी, इसलिए वह हमेशा सावधान रहती थी.

पिछले कोरोना काल में जब कंपनी बंद हो गई, तो एकाध महीना तो रामेश्वर गुजरात में जैसेतैसे रहा था, पर जैसे ही सुविधाओं की कमी होने लगी, वैसे ही वह अपने गांव आ गया था.

रामेश्वर घर तो जरूर आ गया था, पर आते ही कोरोना का शिकार हो गया था और अस्पताल ले जाने में ही उस की मौत हो गई थी.

अब तो चंपा पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था, पर करती भी तो क्या? तनाव में ही किसी तरह जिंदगी बसर करती जा रही थी. उसे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताती जा रही थी. इस वजह से वह दिल से जुड़ी बीमारी का शिकार हो गई थी, जबकि डाक्टरों ने बताया भी था कि अगर वह बेवजह की चिंता करना छोड़ दे, तो उसे काफी राहत मिल सकती है.

इधर गांव के मनचले नौजवानों को लगने लगा था कि अब चंपा घर की समस्याओं से जूझती चली जाएगी. कटी हुई घास आखिर कितने दिनों तक काम आएगी, इसलिए चंपा अब उन के बुने जाल में आसानी से फंस सकती है.

तब तक प्रिया भी जवानी की दहलीज पर पहुंच चुकी थी. वह भी अपनी मां की तरह ही हसीन दिखती थी. अब लंपट लोगों की नजरें कभी मां से गिरतीं, तो बेटी पर अटक जातीं और बेटी से गिरतीं, तो मां पर अटक जातीं, पर उन की दाल गल नहीं पाती थी, जिस की वजह से उन्हें काफी खीज भी होती थी, फिर भी वे मौके की तलाश में रहते थे.

अगले साल जब फिर कोरोना की दूसरी लहर आई, तो चंपा उस से बच नहीं सकी, क्योंकि जब दोनों बच्चों को बुखार आया, तो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था, जिस की वजह से चंपा को बारबार कभी डाक्टर, तो कभी मैडिकल स्टोर की दौड़ लगानी पड़ रही थी. उसे बस यही लग रहा था कि किसी तरह उस के बच्चे ठीक हो जाएं.

कुछ दिन के बाद बच्चे तो ठीक हो गए, पर चंपा की तबीयत बिगड़ गई. कुछ दिनों तक तो वह घर पर ही दवा खाती रही, पर बुखार में कोई सुधार नहीं हुआ.

एक दिन चंपा को देखने गांव का ही मृत्युंजय नामक नौजवान आया और पड़ोस के लोगों को जमा कर के बोला, “एक गांव का होने के नाते हम लोगों का भी तो कुछ फर्ज बनता है. आखिर गांवघर का आदमी होता किसलिए है? इन्हें ले चलिए. पटना के एक अच्छे अस्पताल में मेरी जानपहचान के कई लोग हैं. वहां का चार्ज तो बहुत ज्यादा है, पर मैं चलूंगा तो काफी कम पैसों में इलाज हो जाएगा.”

ऐसे हालात में चंपा की भी मजबूरी हो गई. भला जान किस को लिए प्यारी नहीं होती. वह मृत्युंजय के साथ चल दी, तो प्रिया भी साथ हो ली. मृत्युंजय मन ही मन काफी खुश हुआ.

मृत्युंजय ने चंपा को अस्पताल में भरती करवा दिया और वहीं रहने भी लगा, जबकि प्रिया को कहा गया कि यहां मरीज की देखभाल अस्पताल वाले ही करते हैं, इसलिए आप को वार्ड से बाहर ही रहना पड़ेगा. हां, चौबीस घंटे में एक बार थोड़ी देर के लिए मिल सकती हो.

प्रिया अस्पताल के बाहर रह रही थी, पर रोज सुबह अपनी मां से मिलने जाती थी. चंपा की हालत में थोड़ा सुधार भी होता जा रहा था. प्रिया को लगा 2-3 दिनों के अंदर ही उस की मां को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी, पर अगले दिन जब प्रिया उस से मिलने गई, तो देखा कि मां के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे.

मां ने बताया, “मेरे साथ 5 लोगों ने बारीबारी से जबरदस्ती की है.”

प्रिया ने अपनी मां के बयान का वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. अस्पताल वाले सफाई देते रहे कि चंपा की दिमागी हालत अच्छी नहीं थी, इसलिए उस के हाथपैर बांध दिए थे.

चंपा ने प्रिया से कहा, “बेटी, मुझे इस अस्पताल से बाहर निकालो वरना ये भेड़िए मुझे नोंच खाएंगे. यहां तो जिस्म के सौदागर भरे पड़े हैं.”

प्रिया ने अपनी मां को दूसरे अस्पताल में ले जाने के लिए कहा, तो अस्पताल वालों ने जो बिल बनाया, उसे देख कर प्रिया के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

प्रिया ने मृत्युंजय को फोन लगाया, तो वह बोला, ‘मैं घर वापस आ गया हूं. मेरे जीजाजी की तबीयत खराब है. मैं दिल्ली जा रहा हूं…’ और उस ने फोन काट दिया.

प्रिया को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. सुबहसुबह अस्पताल से फोन आया कि चंपा की हालत ज्यादा बिगड़ गई थी, इसलिए उसे बचाया नहीं जा सका.

प्रिया की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. वह किसी तरह अपनी मां के बिस्तर के पास पहुंची. मां सचमुच मर चुकी थी. जब वह जोरजोर से रोने लगी, तो अस्पताल वालों ने उसे रोने से मना कर दिया.

वैसे तो अस्पताल में मरे मरीजों को उन के परिवार वालों को सुपुर्द कर दिया जाता था, पर चंपा की लाश को पहले से ही बाहर खड़ी एंबुलैंस में डाला गया और उस में प्रिया को बिठाया गया. पीछेपीछे पुलिस की गाड़ी थी.

चंपा की लाश को श्मशान घाट पहुंचाया गया और झटपट दाह संस्कार करवा दिया गया, ताकि प्रिया के पास कोई सुबूत न रहे.

हुस्न के जाल में फंसा कर युवती ने ऐंठ लिए लाखों रूपए

Lovecrime मध्य प्रदेश की बहुचर्चित हनी ट्रैप का मामला अभी शांत भी नहीं पङा कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक बड़े कारोबारी को अपने हुस्न के जाल में फांस कर लाखों रूपए की ठगी करने वाली एक युवती को पुलिस ने गिरफ्तार कर सनसनी फैला दी है.

पुलिस ने युवती के पास से लाखों रूपए कैश और एक महंगी लग्जरी कार बरामद की है.

ऐशोआराम की जिंदगी जीने की चाहत रखने वाली इस युवती ने रायपुर के एक बड़े हार्डवेयर कारोबारी से पहले तो फेसबुक पर दोस्ती की और बाद में शारीरिक संबंध बना कर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया.

खतरनाक इरादे

पुलिस के अनुसार ललिता (बदला हुआ नाम) ने छत्तीसगढ़ के बड़े हार्डवेयर कारोबारी, जो शादीशुदा था को अपने जाल फंसाने के लिए फेसबुक पर दोस्ती की, मोबाइल नंबर दिए और व्हाट्सऐप पर चैटिंग शुरू कर दी। युवती ने खुद को मैडिकल स्टूडैंट बताया और गाढ़ी दोस्ती कर ली जबकि युवती डैंटल कालेज की ड्रौप आउट स्टूडैंट थी.

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मैडिकल की पढाई छोङ जल्दी ही अमीर बनने और ऐशोआराम की जिंदगी जीने के लिए उस ने अपने बेपनाह खूबसूरती और हुस्न का जाल बिछाना शुरू कर दिया.

फिल्म देख कर इरादा बदला

मैडिकल की पढाई के दौरान युवती ने जब फिल्म ‘हेट स्टोरी’ देखी तो तभी उस ने अपने इरादों को खतरनाक बना लिया था.

उस ने कारोबारी आदमी से दोस्ती कर शारीरिक संबंध बनाए और हिडेन कैमरे से एमएमएस बना कर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया और और धीरेधीरे 1 करोङ 35 लाख से अधिक रूपए ऐंठ लिए.

कारोबारी पैसे देने के लिए जब भी मना करता आरोपी युवती पुलिस में जाने की धमकी देती. युवती के इस अपराध में उस के 3 और दोस्त भी साथ देते थे.

बरबाद हो गया कारोबारी

अचानक से इतने बङी रकम देने के बाद कारोबारी की हालत पतली हो गई और धंधा चौपट होने लगा. वह युवती के सामने कई बार गिङगिङाया, छोङ देने के लिए  हाथपैर जोङे पर इतना पैसा लेने के बावजूद भी युवती ने अपना इरादा बदला नहीं, उलटे 50 लाख रूपए की और मांग कर डाली.

तंग आ कर कारोबारी ने रायपुर के पंडारी थाने में पुलिस को सब सचसच बता दिया और खुद को बरबाद होने से बचाने की गुहार लगाई.

पुलिस ने बिछाया जाल

बदहाली में डूबे कारोबारी से युवती ने 50 लाख रूपए मांगे तो वह देने को तैयार हो गया। इस पेमेंट को देने के लिए उस ने युवती को रेलवे क्रासिंग पर बुलाया, जहां पहले से ही सादी वरदी में पुलिस वाले तैयार थे.

युवती के आते ही पुलिस ने रंगेहाथ पैसे लेते उसे धर दबोचा और न्यायालय में पेश किया, जहां न्यायालय ने उसे पुलिस रिमांड पर भेज दिया है.

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पुलिस अब युवती के इस अपराध में साथ देने वाले उन 3 कथित बौयफ्रैंड को भी ढूंढ़ रही है.

बुरी बला है अधिक लालच

सुनियोजित अपराध में कामयाब होने और लाखों रूपए ऐंठने के बाद युवती महंगी चीजों को खरीदने और महंगे होटलों में रहने का आदी हो गई थी.

वह पेशेवर अपराधी की तरह कारोबारी से पेश आने लगी थी. मगर एक बङी गलती उसे पुलिस के हत्थे चढ़ने से बचा न सकी. गलती थी हद से अधिक लालच और महिला शरीर का गलत इस्तेमाल.

वह जानती थी कि वह एक औरत है और भारतीय कानून और समाज पहले एक औरत की सुनते हैं. इसी का फायदा उठा कर उस ने उस कारोबारी से करोङ से अधिक रूपए वसूल लिए पर कहते हैं न कि ‘लालच बुरी बला है’ और इसी लालच की वजह से अब वह जेल की सलाखों के पीछे न जाने कब तक रहेगी.

आप भी सतर्क रहें

फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया पर ठगी के मामले बढते जा रहे हैं और इस में सब से अधिक हनी ट्रैप से सतर्क रहने की जरूरत है.

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इसलिए बेहतर तो यही है कि सोशल मीडिया पर न तो अधिक भरोसा करें और न ही किसी अनजान महिला/पुरूष से दोस्ती ही.

एक लाइक या एक क्लिक कब आप की जिंदगी को बदल कर आप को बदनाम और बदहाली की कगार पर ला खङा करेगा कुछ कहा नहीं जा सकता. एक छोटी सी गलती आप का भरापूरा परिवार और हंसतीखेलती जिंदगी को तबाह न कर पाए इस के लिए पहले से ही सावधान रहें, सतर्क रहें.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

शारीरिक सुख की खातिर पत्नी ने लगा दी पति की जान की कीमत

बिहार के पानापुर, सारण जिले में एक चिकित्सक का शव 4 महीने पहले संदिग्ध परिस्थितियों में मिला तो इस छोटे से शहर में तब सनसनी फैल गई थी. मौत पर जितनी मुंह उतनी ही बातें होने लगी थीं. मगर 4 महीने बाद जब पुलिसिया तफ्तीश से परदा हटा तो जान कर लोग दंग रह गए. आरोप है कि उस की हत्या खुद उस की बीवी ने ही करवाई थी वह भी सुपारी दे कर.

बेवफा बीवी और साजिश

चिकित्सक के जानकार बताते हैं कि वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता था. बीवी खूबसूरत थी और गदराए हुस्न की मलिका भी. पर वह जितनी खूबसूरत थी उस से कहीं अधिक उस पर शारीरिक भूख हावी था. इस भूख को शांत करने के लिए उसे साथ मिला एक गैर मर्द का और महिला को वह प्रेमी इतना पसंद आने लगा कि उस के साथ ही जीने-मरने की खसम खाने लगी और अपने रास्ते पर अड़ंगा बन रहे अपने ही पति के साथ रच दी उस ने एक खौफनाक साजिश.

इश्क छिपता नहीं जमाने से

उधर चिकित्सक अपनी जिंदगी से संतुष्ट अपने काम में व्यस्त रहता तो इधर बीवी अपने जिस्म सुख के लिए प्रेमी के साथ अलग ही दुनिया में खोई रहती. लेकिन कहते हैं इश्क को लाख छिपा लो एक न एक दिन सब को पता चल ही जाता है, सो चिकित्सक पति ने भी बीवी की इस रासलीला को जान लिया. पहले तो उसे यकीन नहीं हुआ पर लोकलाज की चिंता देख कर उस ने अपनी बीवी को समझाने की भरपूर कोशिश की. पर बीवी पर तो इश्क का भूत सवार था. एक दिन चिकित्सक से उस की जबरदस्त कहासुनी और मारपीट भी हो गई. तब उस ने अपनी बीवी को सुधर जाने की नसीहत भी दी.

बीवी प्रिया (बदला नाम) को यह नागवार गुजरा. वह दुनिया छोङने को तैयार थी पर अपने प्रेमी को नहीं. तब पति को रास्ते से हटाने के लिए उस ने अपने प्रेमी सचिन के साथ मिल कर भयानाक साजिश रची. आरोप है कि प्रेमी सचिन ने अपने 2 अन्य साथियों के साथ मिल कर चिकित्सक शिवकुमार सिंह की हत्या अपनी तथाकथित प्रेमिका के साथ मिल कर दी.

खतरनाक मंसूबे

आरोपी सचिन ने पुलिस को दिए बयान में जो बताया वह काफी खतरनाक है. सचिन ने बताया,”चिकित्सक की बीवी और वह एकदूसरे से प्रेम करते हैं. इस की भनक चिकित्सक को लग गई तो एक दिन उस ने हमारे साथ मारपीट भी की और मुझे भी मारा. हम प्रतिशोध की आग में धधक उठे थे.

“तब हम 1 महीने से उस की हत्या करने की प्लानिंग कर रहे थे. घटना के दिन वह खुद ही चिकित्सक को अपनी बाइक पर बैठा कर पानापुर बाजार स्थित क्लीनिक पर ले जा रहा था. प्लान के अनुसार उसे रसौली गांव में ठिकाने लगाना था.

अश्लील हरकतें करने वाला बाबा!

धर्म के नाम पर हमारे देश में धन के साथ-साथ तन की भी लूट मची हुई है. इसके अनेक उदाहरण के अब किसी सबूत के मोहताज नहीं हैं. लोग धार्मिक जगहों पर बाबाओं के पास श्रद्धा के वशीभूत पहुंच जाते हैं और कई दफे अपनी जिंदगी बर्बाद करते चले जाते हैं. एक तरफ यह सच्चाई, तथ्य बारंबार सामने आता रहा है दूसरी तरफ यह भी सच है कि ऐसे ढोंगी बाबाओं की कमी नहीं है और यह बदस्तूर जारी है.

जनवरी के पहले पखवाड़े मे छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर से महज सत्तर किलोमीटर दूरी पर स्थित बलौदाबाजार जिले के कसडोल थाना क्षेत्र में एक ‘बाबा’ पर उसी के आश्रम में रहने वाली कई युवतियों ने अश्लील हरकतें का आरोप लगाया है. और पुलिस ने उसे अपनी गिरफ्त में लिया है. बाबा के नाम पर अश्लीलता का चोला धारण करने वाले बाबा का नाम रजनीश है जिसके छत्तीसगढ़ में कुछ आश्रम भी चल रहे हैं. यह लंबे समय से आश्रम के आड़ में यही कुत्सित काम कर रहा था. पुलिस के पास इस कथित बाबा की अनेक शिकायते दर्ज थी और अंततः वही हुआ जो होना था बाबा के पाखंड का घड़ा फूट गया और तो और युवतियों ने पुलिस अधीक्षक के समक्ष शिकायत दर्ज कराई.

रात को आश्रय मे दबोचा

जब लगातार बाबा के खिलाफ शिकायत मिलने लगी तब पुलिस ने विगत 13 जनवरी की देर रात “सत्संग शिविर” में दबिश देकर बाबा को गिरफ्तारी किया और पूछताछ की गई. पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस कथित आरोपी बाबा का नाम रजनीश है और यह उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले का मूल निवासी है. कई वर्ष पूर्व यह छत्तीसगढ़ आ पहुंचा और लोगों को भ्रमित कर अपने जाल में फंसा में फंसा कइ आश्रम खोल लिए है. आश्रम में युवतियों को प्राथमिकता दी जाती थी अब खुलकर जो तथ्य सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बाबा रजनीश ओशो रजनीश से कुछ ज्यादा ही प्रभावित थे और उन्हीं की पगडंडी पर चलते चलते दिशा भटक गए. इस बाबा की खासियत यह बताई जा रही है कि यह ग्रामीण अंचल में अपना संजाल फैला रहा था और ग्रामीण युवतियों पर डोरे डालाता था जिसका मूल कारण यह था कि ग्रामीण अंचल की जनता जल्दी से थाना पुलिस नहीं करती और बाबा का धंधा चलता रहता.

तीन आश्रम खोल लिए…

बाबा रजनीश ने देखते ही देखते छत्तीसगढ़ में तीन जगह जांजगीर जिला के धनपुरी, देवरी और बलौदा बाजार जिले के झबड़ी गांव में अपने आश्रम खोल लिए. बाबा का आश्रम संचालित है.कसडोल थाना क्षेत्र के ग्राम  झबड़ी स्थित उसी के आश्रम में रहने वाली युवतियों के साथ ईश्वर दर्शन कराने के नाम पर अश्लीलता करता था. जिसकी शिकायत कई बार पीड़िताओं ने करनी चाही, लेकिन बाबा उन्हें डरा धमका देता था. अंततः बाबा की हरकतों से तंग आकर पीड़ितलडकियों ने 24 दिसंबर 2019 को कसडोल थाने में शिकायत दर्ज कराई . साथ ही जिले के पुलिस अधीक्षक के पास भी शिकायत की गई. जिसके बाद पुलिस मामले को गंभीरता से लेने को मजबूर हो गई और बीती रात कसडोल ब्लाक के खैरा गांव. में चल रहे बाबा के सत्संग शिविर में अनुविभागीय दंडाधिकारी टीसी अग्रवाल और  अनुविभागीय अधिकारी( पुलिस) राजेश जोशी ने अपने टीम के साथ दबिश दी. वहां से गिरफ्तार कर आरोपी बाबा राजनीश को थाने ले आया गया . बाबा की इस गिरफ्तारी के तारतम्य में एसडीएम टी .सी. अग्रवाल ने हमारे संवाददाता को बताया कि तीन युवतियो ने बाबा के खिलाफ शिकायत के बाद कारवाई हुई है.

नामर्द: तहजीब का इल्जाम क्या सह पाया मुश्ताक

तहजीब के अब्बा इशरार ने अपनी लड़की को दिए जाने वाले दहेज को गर्व से देखा. फिर अपने साढ़ू तथा नए बने समधी से पूछा, ‘‘अल्ताफ मियां, कुछ कमी हो तो बताओ?’’

‘‘भाई साहब, आप ने लड़की दी, मानो सबकुछ दे दिया,’’ तहजीब के मौसा व नए रिश्ते से बने ससुर अल्ताफ ने कहा, ‘‘बस, जरा विदाई की तैयारी जल्दी कर दें.’’

शीघ्र ही बरात दुलहन के साथ विदा हो गई. तहजीब का मौसेरा भाई मुश्ताक अपनी मौसेरी बहन के साथ शादी करने के पक्ष में नहीं था. उस का विचार था कि यह व्यवस्था उस समय के लिए कदाचित ठीक रही होगी जब लड़कियों की कमी रही होगी. परंतु आज की स्थिति में इतने निकट का संबंध उचित नहीं. किंतु उस की बात नक्कारखाने में तूती के समान दब कर रह गई थी. उस की मां अफसाना ने सपाट शब्दों में कहा था, ‘‘मैं ने खुद अपनी बहन से उस की लड़की को मांगा है. अगर वह इस घर में दुलहन बन कर नहीं आई तो मैं सिर पटकपटक कर अपनी जान दे दूंगी.’’

विवश हो कर मुश्ताक को चुप रह जाना पड़ा था. तहजीब जब अपनी ससुराल से वापस आई तो वह बहुत बुझीबुझी सी थी. वह मुसकराने का प्रयास करती भी तो मुसकराहट उस के होंठों पर नाच ही न पाती थी. वह खोखली हंसी हंस कर रह जाती थी. तहजीब पर ससुराल में जुल्म होने का प्रश्न न था. दोनों परिवार के लोग शिक्षित थे. अन्य भी कोई ऐसा स्पष्ट कारण नहीं था जिस में उस उदासी का कारण समझ में आता.

‘‘तुम तहजीब का दिल टटोलो,’’ एक दिन इशरार ने अपनी पत्नी रुखसाना से कहा, ‘‘उसे जरूर कोई न कोई तकलीफ है.’’

‘‘पराए घर जाने में शुरू में तकलीफ तो होती ही है, इस में पूछने की क्या बात है?’’ रुखसाना बोली, ‘‘धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी.’’ ‘‘जी हां, जब आप पहली बार इस घर से गई थीं तब शायद ऐसा ही मुंह फूला हुआ था, खिली हुई कली के समान गई थीं. तहजीब बेचारी मुरझाए हुए फूल के समान वापस आई है,’’ इशरार ने शरारत के साथ कहा.

‘‘हटो जी, आप तो चुहलबाजी करते हैं,’’ रुखसाना के गालों पर सुर्खी दौड़ गई, ‘‘मैं तहजीब से बात करती हूं.’’

रुखसाना ने बेटी को कुरेदा तो वह उत्तर देने की अपेक्षा आंखों में आंसू भर लाई. ‘‘तुझे वहां क्या तकलीफ है? मैं आपा को आड़े हाथों लूंगी. उन्हीं के मांगने पर मैं ने तुझे उन की झोली में डाला है. मैं ने उन से पहले ही कह दिया था कि मेरी बिटिया नाजों से पली है. किसी ने उस के काम में नुक्ताचीनी निकाली तो ठीक नहीं होगा.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है, अम्मीजान, मुझ से किसी ने कुछ कहा नहीं है,’’ तहजीब ने धीमे से कहा.

‘‘फिर?’’

कुछ कहने की अपेक्षा तहजीब फिर आंसू बहाने लगी. नकविया तहजीब की सहेली थी. वह एक संपन्न घराने की थी. जिस समय तहजीब की शादी हुई थी उस समय वह लंदन में डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी. उसे शादी में बुलाया गया था परंतु यात्रा की किसी कठिनाई के कारण वह समय पर नहीं आ सकी थी. उस का आना कुछ दिन बाद हो पाया था. भेंट होने पर रुखसाना ने उस से कहा, ‘‘बेटी, तहजीब ससुराल से आने के बाद से बहुत उदास है. कुछ पूछने पर बस रोने लगती है. जरा उस के दिल को किसी तरह टटोलो.’’

‘‘आप फिक्र न करें, अम्मीजान, मैं सबकुछ मालूम कर लूंगी,’’ नकविया ने कहा और फिर वह तहजीब के कमरे में घुस गई.

‘‘अरे यार, तेरा चेहरा इतना उदासउदास सा क्यों है?’’ उस ने तहजीब से पूछा.

‘‘बस यों ही.’’

‘‘यह तो कोई बात न हुई. साफसाफ बता कि क्या बात है? कहीं दूल्हा भाई किसी दूसरी से तो फंसे हुए नहीं हैं.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. वे कहीं फंसने लायक ही नहीं हैं,’’ तहजीब बहुत धीमे से बोली, ‘‘वे तो पूरी तरह ठंडे हैं.’’

‘‘क्या?’’ नकविया ने चौंक कर कहा, ‘‘तू यह क्या कह रही है?’’

‘‘हां, यही तो रोना है, तेरे दूल्हा भाई पूरी तरह ठंडे हैं, वे नामर्द हैं.’’ नकविया सोच में डूब गई, ‘भला वह पुरुष नामर्द कैसे हो सकता है जो कालेज के दिनों में घंटों एक लड़की के इंतजार में खड़ा रहता था और कालेज आतेजाते उस लड़की के तांगे का पीछा किया करता था.’

‘‘नहीं, वह नामर्द नहीं हो सकता,’’ नकविया के मुख से अचानक निकल गया.

‘‘तू दावे के साथ कैसे कह सकती है? भुगता तो मैं ने उसे है. एकदो नहीं, पूरी 5 रातें.’’

‘‘अरे यार, मैं डाक्टर हूं. मैं जानती हूं कि ऐसे 99 प्रतिशत मामले मनोवैज्ञानिक होते हैं. लाखों में कोई एकाध आदमी ही कुदरती तौर पर नामर्द होता है.’’

‘‘तो शायद तेरे दूल्हा भाई उन एकाध में से ही हैं,’’ तहजीब मुसकराई.

‘‘अच्छा, क्या तू उन्हें मेरे पास भेज सकती है? मैं जरा उन का मुआयना करना चाहती हूं.’’

‘‘भिजवा दूंगी, जरा क्या, पूरा मुआयना कर लेना. तेरी डाक्टरी कुछ नहीं करने की.’’

‘‘तू जरा भेज तो सही,’’ नकविया ने इतना कहा और उठ खड़ी हुई. तहजीब की मां ने जब नकविया से तहजीब की उदासी का कारण जाना तो वह सनसनाती हुई अपनी बहन के घर जा पहुंची. उस ने उन को आड़े हाथों लिया, ‘‘आपा, तुम्हें अपने लड़के के बारे में सबकुछ पता होना चाहिए था. ऐसी कोई कमी थी तो उस की शादी करने की क्या जरूरत थी? मेरी लड़की की जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने.’’

‘‘छोटी, तू कहना क्या चाहती है?’’ मुश्ताक की मां अफसाना ने कुछ न समझते हुए कहा.

‘‘अरे, जब लड़का हिजड़ा है तो शादी क्यों रचा डाली? कम से कम दूसरे की लड़की का तो खयाल किया होता,’’ रुखसाना हाथ नचा कर बोली.

‘‘छोटी, जरा मुंह संभाल कर बात कर. मेरी ससुराल में ऐसे मर्द पैदा हुए हैं जिन्होंने 3-3 औरतों को एकसाथ खुश रखा है. यहां शेर पैदा होते हैं, गीदड़ नहीं.’’ बातों की लड़ाई हाथापाई में बदल गई. अल्ताफ ने बड़ी मुश्किल से दोनों को अलग किया.

रुखसाना बड़बड़ाती हुई चली गई. इस प्रकरण को ले कर दोनों परिवारों के मध्य बहुत कटुता उत्पन्न हो गई. एक दिन अल्ताफ और इशरार भी परस्पर भिड़ गए, ‘‘मैं तुम्हें अदालत में खींचूंगा. तुम पर दावा करूंगा. दहेज के साथसाथ और सारे खर्चे न वसूले तो नाम पलट कर रख देना,’’ इशरार ने गुस्से से कहा तो अल्ताफ भी पीछे न रहा. दोनों में हाथापाई की नौबत आ गई. कुछ लोग बीच में पड़ गए और उन्हें अलगअलग किया. दोनों तब वकीलों के पास दौड़े. तहजीब मुश्ताक के पास यह संदेश भेजने में सफल हो पाई कि उसे उस की सहेली नकविया याद कर रही है. एक दिन मुश्ताक नकविया के घर जा पहुंचा.

‘‘आइए, आइए,’’ नकविया ने मुश्ताक का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘मेरे कालेज जाने से पहले और लौट कर आने से पहले तो मुस्तैदी से रास्ते में साइकिल लिए तांगे का पीछा करने को तैयार खड़े मिलते थे, और अब बुलाने के इतने दिन बाद आए हो.’’

नकविया ने मुसकरा कर यह बात कही तो मुश्ताक झेंप गया. फिर दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. ‘‘तहजीब के साथ क्या किस्सा हो गया? मैं उस की सहेली होने के साथसाथ तुम्हारे लिए भी अनजान नहीं हूं. मुझे सबकुछ साफसाफ बताओ जिस से 2 घरों के बीच खिंची तलवारों को म्यानों में पहुंचाया जा सके?’’

‘‘मैं बचपन से तहजीब को अपनी बहन मानता रहा हूं. वह भी मुझे ‘भाईजान’ कहती रही है. उस के साथ जिस्मानी ताल्लुक रखना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम है. तुम ही बताओ, इस में मेरा क्या कुसूर है?’’ नकविया मुश्ताक को कोई उत्तर नहीं दे सकी. तब उस ने बात का पहलू बदल लिया, वह दूसरी बातें करने लगी. जब मुश्ताक जाने लगा तो उस ने वादा किया कि वह रोज कुछ देर के लिए आएगा जब तक कि वह इंगलैंड नहीं चली जाती.

फिर नकविया तथा मुश्ताक दोनों एकदूसरे के निकट आते चले गए. एक दिन नकविया ने तहजीब को बताया, ‘‘सुन, तेरा पति तो पूरा मर्द है. उस में कोई कमी नहीं है. उस के दिल में तेरे लिए जो भावना है, उसे मिटाना बड़ा मुश्किल काम है,’’ फिर नकविया ने सबकुछ बता दिया. तहजीब बहुत देर तक कुछ सोचती रही. फिर बोली, ‘‘उन का सोचना ठीक लगता है. सचमुच, इतने नजदीकी रिश्तों में शादी नहीं होनी चाहिए. अब कुछ करना ही होगा.’’ फिर तहजीब और मुश्ताक परस्पर मिले और उन के बीच एक आम सहमति हो गई. कुछ दिन बाद मुश्ताक ने तहजीब को तलाक के साथ मेहर का पैसा तथा सारा दहेज भी वापस भेज दिया.

‘‘मैं दावा करूंगा. क्या समझता है अल्ताफ अपनेआप को. जब लड़का हिजड़ा था तो क्यों शादी का नाटक रचा,’’ तहजीब के अब्बा गुस्से से बोले.

‘‘नहीं अब्बा, नहीं. अब हमें कुछ नहीं करना है. मुश्ताक में कोई कमी नहीं थी. दरअसल, मैं ही उस से पिंड छुड़ाना चाहती थी,’’ तहजीब ने बात समाप्त करने के उद्देश्य से इलजाम अपने ऊपर ले लिया.

‘‘लेकिन क्यों?’’ उस की मां ने हस्तक्षेप करते हुए पूछा.

‘‘मुझे वे पसंद नहीं थे.’’

‘‘अरे बेहया,’’ मां चिल्लाईं, ‘‘तू ने झूठ बोल कर पुरानी रिश्तेदारी को भी खत्म कर दिया,’’ उन्होंने तहजीब के सिर के बालों को पकड़ कर झंझोड़ डाला. फिर उस के सिर को जोर से दीवार पर दे मारा. कुछ दिनों बाद नकविया लंदन वापस चली गई. लगभग 5 माह बाद नकविया फिर भारत आई. वह अपने साथ 1 व्यक्ति को भी लाई थी. उस को ले कर वह तहजीब के घर गई. तहजीब के मांबाप से उस व्यक्ति का परिचय कराते हुए नकविया ने कहा, ‘‘ये मेरे साथ लंदन में डाक्टरी पढ़ते हैं. लखनऊ में इन का घर है. आप चाहें तो लखनऊ जा कर और जानकारी ले सकते हैं. तहजीब के लिए मैं बात कर रही हूं.’’ लड़का समझ में आ जाने पर अन्य बातें भी देखभाल ली गईं, फिर शादी भी पक्की हो गई.

‘‘बेटी, तुम शादी कहां करोगी, हिंदुस्तान में या इंगलैंड में?’’ एक दिन तहजीब की मां ने नकविया से पूछा.

‘‘अम्मीजान, मैं अपने ही देश में शादी करूंगी. बस, जरा मेरी पढ़ाई पूरी हो जाए.’’

‘‘कोई लड़का देख रखा है क्या?’’

‘‘हां, लड़का तो देख लिया है. यहीं है, अपने शहर का.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘आप का पहले वाला दामाद मुश्ताक,’’ नकविया ने मुसकरा कर कहा.

‘‘हाय, वह… वह नामर्द. तुम्हें उस से शादी करने की क्या सूझी?’’

‘‘अम्मीजान, वह नामर्द नहीं है,’’ नकविया ने तब उन्हें सारा किस्सा कह सुनाया. ‘‘हम ही गलती पर थे. हमें इतनी नजदीकी रिश्तेदारी में बच्चों की शादी नहीं करनी चाहिए. सच है, जहां भाईबहन की भावना हो वहां औरतमर्द का संबंध क्यों बनाया जाए,’’ तहजीब की मां ने अपनी गलती मानते हुए कहा.

थोथी सोच : शेखर ने कैसे दिया शालिनी को जवाब

सामने से तेज रफ्तार से आती हुई जीप ने उस मोटरसाइकिल सवार को जोरदार टक्कर मार दी. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि उस की आवाज ने हर किसी के रोंगटे खड़े कर दिए. कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही जीप वाला वहां से जीप ले कर भाग निकला.

सड़क पर 23-24 साल का नौजवान घायल पड़ा था. उस के चारों तरफ लोगों की भीड़ जमा हो गई. उन में से ज्यादातर दर्शक थे और बाकी बचे हमदर्दी जाहिर करने वाले थे. मददगार कोई नहीं था.

उस नौजवान का सिर फूट गया था और उस के सिर से खून बह रहा था. तभी भीड़ में से 39-40 साल की एक औरत आगे आई और तुरंत उस नौजवान का सिर अपनी गोद में रख कर चोट की जगह दबाने लगी ताकि खून बहने की रफ्तार कुछ कम हो. पर दबाने का ज्यादा असर नहीं होता देख कर उस ने फौरन अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर चोट वाली जगह पर कस कर बांध दिया. अब खून बहना कुछ कम हो गया था.

उस औरत ने खड़े हुए लोगों से पानी मांगा और घूंटघूंट कर के उस नौजवान को पिलाने की कोशिश करने लगी. तब तक भीड़ में से किसी ने एंबुलैंस को फोन कर दिया.

एंबुलैंस आ चुकी थी. चूंकि उस घायल नौजवान के साथ जाने को कोई तैयार नहीं था इसलिए उस औरत को ही एंबुलैंस के साथ जाना पड़ा.

उस नौजवान की हालत गंभीर थी पर जल्दी प्राथमिक उपचार मिलने के चलते डाक्टरों को काफी आसानी हो गई और हालात पर जल्दी ही काबू पा लिया गया.

नौजवान को फौरन खून की जरूरत थी. मदद करने वाली उस औरत का ब्लड ग्रुप मैच हो गया और औरत ने रक्तदान कर के उस नौजवान की जान बचाने में मदद की.

जिस समय हादसा हुआ था उस नौजवान का मोबाइल फोन जेब से निकल कर सड़क पर जा गिरा था, जो भीड़ में से एक आदमी उठा कर ले गया, इसलिए उस नौजवान के परिवार के बारे में जानकारी उस के होश में आने पर ही मिलना मुमकिन हुई थी.

वह औरत अपनी जिम्मेदारी समझ कर उस नौजवान के होश में आने तक रुकी रही. तकरीबन 5 घंटे बाद उसे होश आया. वह पास ही के शहर का रहने वाला था और यहां पर नौकरी करता था. उस के घर वालों को सूचित करने के बाद वह औरत अपने घर चली गई.

दूसरे दिन जब वह औरत उस नौजवान का हालचाल पूछने अस्पताल गई तब पता चला कि वह नौजवान अपने मातापिता की एकलौती औलाद है. उस के मातापिता बारबार उस औरत का शुक्रिया अदा कर रहे थे. वे कह रहे थे कि आज इस का दूसरा जन्म हुआ है और आप ही इस की मां हैं.

कुछ महीने बाद ही उस नौजवान की शादी थी. उस औरत का नाम शालिनी था. शादी के कुछ दिनों बाद ही एक हादसे में शालिनी के पति की मौत हो गई थी. वह पति की जगह पर सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी कर रही थी. नौजवान का नाम शेखर था.

अब दोनों परिवारों में प्रगाढ़ संबंध हो गए थे. शेखर शालिनी को मां के समान इज्जत देता था. वह दिन भी आ गया जिस दिन शेखर की शादी होनी थी. शेखर का परिवार शालिनी को ससम्मान शादी के कार्यक्रमों में शामिल कर रहा था. सभी लोग लड़की वालों के यहां पहुंच

गए जहां पर लड़की की गोदभराई की रस्म के साथ कार्यक्रमों की शुरुआत होनी थी.

परंपरा के मुताबिक, लड़की की गोद लड़के की मां भरते हुए अपने घर का हिस्सा बनने के लिए कहती है. शेखर की इच्छा थी कि यह रस्म शालिनी के हाथों पूरी हो, क्योंकि उस की नजर में उसे नई जिंदगी देने वाली शालिनी ही थी. शेखर के घर वालों को इस पर कोई एतराज भी नहीं था.

पूरा माहौल खुशियों में डूबा हुआ था. लड़की सभी मेहमानों के बीच आ कर बैठ गई. ढोलक की थापों के बीच शादी की रस्में शुरू हो गईं. शेखर के पिता ने शालिनी से आगे बढ़ कर कहा कि वह गोदभराई शुरू करे.

वैसे, शालिनी इस के लिए तैयार नहीं थी और खुद वहां जाने से मना कर रही थी. पर जब शेखर ने शालिनी के पैर छू कर बारबार कहा तो वह मना नहीं कर पाई.

मंगल गीत और हंसीठठोली के बीच शालिनी गोदभराई का सामान ले कर जैसे ही लड़की के पास पहुंची, तभी एक आवाज आई, ‘‘रुकिए. आप गोद नहीं भर सकतीं,’’ यह लड़की की दादी की आवाज थी.

शालिनी को इसी बात का डर था. वह ठिठकी और रोंआसी हो कर वापस अपनी जगह पर जाने के लिए पलटी.

तभी शेखर बीच में आ गया और बोला, ‘‘दादीजी, शालिनी मम्मीजी सुलक्षणा की गोद क्यों नहीं भर सकतीं?’’

‘‘क्योंकि ब्याह एक मांगलिक काम है और किसी भी मांगलिक काम की शुरुआत किसी ऐसी औरत से नहीं कराई जा सकती जिस के पास मंगल चिह्न न हो,’’ दादी शेखर को समझाते हुए बोलीं.

‘‘आप भी कैसी दकियानूसी बातें करती हैं दादी. आप यह कैसे कह सकती हैं कि मंगल चिह्न पहनने वाली कोई औरत मंगल भावनाओं के साथ ही इस रीति को पूरा करेगी?’’

‘‘पर बेटा, यह एक परंपरा है और परंपरा यह कहती है कि मंगल काम सुहागन औरतों के हाथों से करवाया जाए तो भविष्य में बुरा होने का डर कम रहता है,’’ दादी कुछ बुझी हुई आवाज में बोलीं, क्योंकि वे खुद भी विधवा थीं.

‘‘क्या आप भी ऐसा ही मानती हैं?’’

‘‘हां, यह तो परंपरा है और परंपराओं से अलग जाने का तो सवाल ही नहीं उठता,’’ दादी बोलीं.

‘‘इस के हिसाब से तो किसी लड़की को विधवा ही नहीं होना चाहिए क्योंकि हर लड़की की शादी की शुरुआत सुहागन औरत के हाथों से होती है?’’ शेखर ने सवाल किया.

‘‘शेखर, बहस मत करो. कार्यक्रम चालू होने दो,’’ शालिनी शेखर को रोकते हुए बोली.

‘‘नहीं मम्मीजी, मैं यह नाइंसाफी नहीं होने दूंगा. अगर विधवा औरत इतनी ही अशुभ होती तो मुझे उस समय ही मर जाना चािहए था जब मैं ऐक्सिडैंट के बाद सड़क पर तड़प रहा था और आप ने अपने कपड़ों की परवाह किए बिना ही साड़ी का पल्लू फाड़ कर मेरा खून रोकने के लिए पट्टी बनाई थी या आप के रक्तदान से आप का खून मेरे शरीर में गया.

‘‘भविष्य में होने वाली किसी अनहोनी को रोकने के लिए वर्तमान का अनादर करना तो ठीक नहीं होगा न…’’ फिर दादी की तरफ मुखातिब हो कर वह बोला, ‘‘कितने हैरानी की बात है कि जबतक कन्या कुंआरी रहती है वह देवी रहती है, वही देवी शादी के बाद मंगलकारी हो जाती है, पर विधवा होते ही वह मंगलकारी देवी अचानक मनहूस कैसे हो जाती है? सब से ज्यादा हैरानी इस बात की है कि आप एक औरत हो कर ऐसी बातें कर रही हैं.’’

दादी की कुछ और भी दलीलें होने लगी थीं. तभी दुलहन बनी सुलक्षणा ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘दादीजी, मैं शेखर की बातों से पूरी तरह सहमत हूं और चाहती हूं कि मेरी गोदभराई की रस्म शालिनी मम्मीजी के हाथों से ही हो.’’

इस के बाद विवाह के सारे कार्यक्रम अच्छे से पूरे हो गए.

आज शेखर व सुलक्षणा की शादी को 10 साल हो चुके हैं. वे दोनों आज भी सब से पहले आशीर्वाद लेने के लिए शालिनी के पास जा रहे हैं.

 

पति-पत्नी के रिश्ते को किया बदनाम

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी.

करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था.

कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई.

12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई.

थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है. इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे.

इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी.

कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए.

फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए. उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली.

थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी.

थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी.

इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था.

फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई.

जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए.

इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी-

दक्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र  की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई.

पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं

प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता.

एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा.

मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी.

खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे.

कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा.

कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा.

कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी.

कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा.

पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

इलाज का बहाना, दैहिक शोषण जारी

शहर हो या गांव चिकित्सा के नाम पर झाड़-फूंक ओझा गिरी और कभी चिकित्सा,  कभी ज्योतिष के नाम पर महिलाओं का दैहिक शोषण करने वाले नर पिशाच कम नहीं है. यह एक ऐसा पेशा बन चुका है जिसकी आड़ में अक्सर महिलाऔ के साथ यौन शोषण होता रहता है. ऐसी ही घटनाएं छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा और जिला चांपा जांजगीर में घटित हुई है.

चांपा जांजगीर जिला के बम्हनीडीह थाना क्षेत्र के ग्राम पीपरदा में बद्री पटेल 30 वर्ष से अधिक समय से आसपास के लोगों का इलाज करता आ रहा था. इलाज के नाम पर झाड़-फूंक करना और मनोवैज्ञानिक ढंग से अशिक्षित गरीब आवाम को मूर्ख बनाना  पैसे ऐठना उसका काम था. इसके साथ ही इलाज के दरमियान मानसिक रूप से टूट चुके लोगों की आस्था और विश्वास का लाभ उठा वह महिलाओं, लड़कियों के साथ यौन शोषण करने लगा.

मामले पर से पर्दा 18 जून 2019 को उठा,जब चांपा जांजगीर जिला के नगरदा थाना की एक युवती इलाज के लिए बद्री पटेल के पिपरदा स्थित आवास पर पहुंची. युवती प्रभा ( काल्पनिक नाम ) अपने परिजनों के साथ पहुंची तो तो बद्री पटेल के घर पर इलाज कराने वालों की भीड़ जुटी हुई थी आस -पास के अनेक लोग जो की अधिकांश ग्रामीण अंचल के ही थे और जो चिकित्सकों बड़े -बड़े डॉक्टरों की फीस अदा करने में लाचार से यहां आए हुए थे.

प्रभा और उसके परिवार वालों ने सुना था बद्री पटेल लंबे समय से इलाज करता चला आ रहा है और उसके पास ऐसी दैविय शक्ति है कि झाड़-फूंक कर जो भी चीज देता है उसका सेवन करने से रोगी स्वस्थ हो जाता है. प्रभा को डौक्टरों ने किडनी प्रॉब्लम बताया था जो बहुत खर्च मांगता था और उसका मध्यवर्गीय परिवार किडनी के इलाज का लाखों रुपए खर्च करने बखत नहीं रखता था. सो बडी बड़ी आशा विश्वास लेकर बद्री पटेल के आवास पहुंचा था.

पूर्व मैं आ चुके मरीजों का यथा इलाज करके बद्री पटेल ने प्रभा की ओर रुख किया और पूछा – तुम्हें कैसा लग रहा है?

प्रभा  जैसा जवाब डौक्टरों को देती थी वैसा ही बताया बहुत कमजोरी हो गई है…

परिजनों ने भी बद्री पटेल को बताया डॉक्टर बता रहे हैं किडनी प्रौब्लम है… हम लोग बड़ा नाम सुनकर आपके पास आए हैं.

बद्री पटेल ने प्रभा की आंखें, नब्ज देखने के बाद घोषणा की-चिंता की कोई बात नहीं… मे इस लड़की को ठीक कर दूंगा.

उसके परिजनों ने यह सुना तो उनके चेहरे खिल उठे. बद्री पटेल बोला-मुझे इसके लिए साधना करनी होगी कुछ समय लड़की के साथ कमरे में एकांत में रहना होगा. यह ठीक हो जाएगी.

बद्री पटेल से प्रभावित परिजनों ने तत्काल स्वीकृति दे दी. वहीं पास के कमरे में प्रभा को ले गया और कमरा बंद कर दिया और उसके बाद उसने अपना असली चेहरा दिखाना प्रारंभ कर दिया. प्रभा को इलाज के नाम पर बहला फुसलाया और ठीक करने का आश्वासन देते हुए उसके कपड़े उतारने लगा.थोड़ी ही देर में वह समझ गई कि बुड्ढे की नीयत ठीक नहीं है तो उसने प्रतिकार किया. यह देख बद्री बोला तुम्हें इलाज कराना है कि नहीं…. प्रभा सहम गई इधर बद्री पटेल ने फिर प्रभा के कपड़े उतारने प्रारंभ कर दिए प्रभा ने विरोध किया तो उसका मुंह दबा दिया टीवी शुरू कर दिया ताकि शोर बाहर ना पहुंचे. प्रभा के लाख मना करने के बाद भी बद्री पटेल ने प्रभा का बलात्कार किया और आश्वस्त करता हुआ बोला,- देखो… लड़की यह इलाज की शुरुआत है जो हुआ किसी को नहीं बताना….

मगर जैसे ही प्रभा परिजनों के बीच पहुंची उसने साथ आई अपनी भाभी से सारी घटना रोते हुए बता दी. बद्री पटेल के हाथ पांव फूल गए इधर परिजनों ने उसे बहुत गालियां दी और थाना पहुंच थाना प्रभारी राजेश श्रीवास्तव से पूरी घटना को विस्तार पूर्वक बताया. पुलिस ने बद्री पटेल को तत्काल हिरासत में ले लिया और प्रभा की चिकित्सालीय जांच कराई गई. बम्हनीडीह थाना प्रभारी राजेश श्रीवास्तव ने हमारे संवाददाता को बताया- बुजुर्ग बद्री लंबे अरसे से झाड़ फूंक और इलाज कर रहा था. उसकी कुछ शिकायतें और भी मिली थी मगर सबूतों के अभाव में कभी एक्शन नहीं लिया गया. लड़की किडनी प्रॉब्लम से जूझ रही है उसके परिजनों ने साहस का परिचय देते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई और पुलिस ने इलाज के नाम पर यौन शोषण करने वाले शख्स बद्री पटेल को जेल के सीखचों के पीछे भेज दिया है.

ऐसी ही घटना कोरबा जिला के कटघोरा थाना अंतर्गत ग्राम घरीपाखना में घटित हुई जहां एक झाड़ फूंक करने वाले बाबा बजरंगी दास ने झाड़-फूंक के नाम पर 6 वर्षों तक महिला के साथ अनाचार किया और जब महिला की नौकरी छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिला में लग गई तो उसकी नजर महिला की 16 वर्षीय लड़की पर गई जो कोरबा के हौस्टल में रहते हुए पढ़ाई कर रही थी. बजरंगी दास ने परिचय का लाभ उठाते हुए रमा  (काल्पनिक नाम)को अपने घर घुमाने के नाम पर ले गया और उसे डरा धमकाकर शारीरिक शोषण किया. महिला के घर लौटने पर रमा ने मां को सारी आपबीती बताई पीड़ित महिला बेटी को लेकर थाना कटघोरा पहुंची तो जांच के नाम पर उसे लौटा दिया अंततः महिला ने पुलिस अधीक्षक जिलाधीश से मिलकर संपूर्ण घटनाक्रम से अवगत कराया तब जाकर मामला दर्ज हुआ और बजरंगी को पुलिस ने गिरफ्त में ले लिया.

जब सलाखों के पीछे पहुंचा मृतक

कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा था. कमरे में सिर्फ 3 लोग बैठे थे, एसपी (देहात) डा. ईरज राजा के सामने लोनी सर्किल के सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय और लोनी बौर्डर थाने के थानाप्रभारी सचिन कुमार थे. पिछले 24 घंटे में उस पेचीदा मामले ने 3 अफसरों के दिमाग को हिला कर रख दिया था.

कत्ल की उस वारदात में कई ऐसे पेंच थे, जिस ने सवालों का अंबार खड़ा कर दिया था. उन्हीं उलझी हुई कडि़यों को जोड़ने के लिए तीनों अधिकारी माथापच्ची कर रहे थे. लेकिन अभी तक कोई ऐसा क्लू हाथ नहीं आ रहा था, जिस से कत्ल की इस वारदात का अंतिम सिरा हाथ आ सके.

20 नवंबर को लोनी के ए-105 इंद्रापुरी में रहने वाले मनीष त्यागी ने लोनी बौर्डर थाने में आ कर सूचना दी कि उस के घर के सामने खाली प्लौट में एक लाश पड़ी है.

इस सूचना पर लोनी बौर्डर थानाप्रभारी सचिन कुमार जब अपनी टीम के साथ वहां पहुंचे तो देखा कि वह किसी पुरुष की लाश थी. लाश बुरी तरह से जली हुई थी. खासकर लाश का चेहरा इतनी बुरी तरह तरह जला हुआ था कि उसे देख कर मरने वाले की पहचान कर पाना भी मुमकिन नहीं था.

पुलिस ने सब से पहले आसपास रहने वाले लोगों को बुला कर लाश की पहचान कराने की कोशिश की. लोगों से यह भी पूछा गया कि किसी घर से कोई लापता तो नहीं है.

लोगों ने लाश के कपड़ों व कदकाठी से उस की पहचान करने की कोशिश की, मगर पुलिस को इस काम में कोई सफलता नहीं मिली.

लाश की सूचना मिलने पर लोनी क्षेत्र के सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय और एसपी (देहात) डा. ईरज राजा भी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे.

सभी ने एक खास बात नोट की थी कि हत्यारे ने लाश के चेहरे व ऊपरी भाग को ही जलाने का प्रयास किया था. धड़ से नीचे का हिस्सा व उस पर पहने हुए कपड़े सहीसलामत थे.

लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले पुलिस ने जब उस के पहने हुए कपड़ों की तलाशी ली तो आश्चर्यजनक रूप से उस में से डेढ़ सौ रुपए तथा एक आधार कार्ड बरामद हुआ.

आधार कार्ड मिलने के बाद पुलिस वालों की आंखें चमक उठीं. मृतक की जेब से जो आधार कार्ड मिला था, उस के मुताबिक मृतक 40 वर्षीय सुदेश कुमार पुत्र रामपाल था, जिस के निवास का पता मकान नंबर 331, गली नंबर 4, फेस -4 शिवविहार, करावल नगर, पूर्वी दिल्ली था.

एसपी (देहात) के आदेश पर एसएसआई प्रदीप शर्मा के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम को उत्तरपूर्वी दिल्ली के करावल नगर में उक्त पते पर भेजा.

पुलिस को वहां सुदेश की पत्नी अनुपमा मिली. पुलिस ने जब अनुपमा से उस के पति के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति एक दिन पहले किसी काम से बाहर गए हैं और अब तक लौट कर नहीं आए.

आशंकित अनुपमा ने जब पुलिस से इस पूछताछ का कारण जानना चाहा तो पुलिस को बताना पड़ा कि उन्हें लोनी बौर्डर के इंद्रापुरी इलाके में एक जली हुई लाश मिली है जिस की जेब में वह आधार कार्ड मिला है जिस की वजह से वो उनके घर पहुंची है.

‘‘हांहां, लाश उन्हीं की होगी, क्योंकि वह आधार कार्ड हमेशा अपनी जेब में रखते थे.’’ कहते हुए अनुपमा ठीक उसी तरह दहाड़ें मार कर रोने लगी, आमतौर पर जैसे एक औरत अपने पति की मौत के बाद विलाप करती है.

‘‘देखिए, आप रोना बंद कीजिए क्योंकि मरने वाले की जेब से जो आधार कार्ड मिला है वह आप के पति का है इसलिए पहले आप लाश की पहचान कर दीजिए. …हो सकता है जो शव मिला है वह आप के पति का न हो,’’ कहते हुए दिलासा दे कर एसएसआई प्रदीप शर्मा अनुपमा व उस के बेटे को अपने साथ ले गए.

तब तक थानाप्रभारी सचिन कुमार, एसपी (देहात) डा. ईरज राजा व सीओ उपाध्याय के कहने पर शव का पंचनामा तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. एसएसआई प्रदीप शर्मा अनुपमा व उस के बेटे को ले कर वहीं पहुंच गए.

उन्होंने जब अनुपमा को जली हुई अवस्था में मिला शव दिखाया तो अनुपमा का विलाप और भी बढ़ गया, क्योंकि उस ने शव देखते ही हृदयविदारक ढंग से रोना शुरू कर दिया था.

अब जबकि लाश की पहचान सुदेश कुमार के रूप में हो चुकी थी और उस की पत्नी ने ही पहचान की थी, इसलिए पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए डाक्टरों के सुपुर्द कर दिया. उसी दिन शव का पोस्टमार्टम हो गया और पुलिस ने सुदेश का शव उस की पत्नी अनुपमा के सुपुर्द कर दिया. अनुपमा ने उसी शाम अपने परिजनों व जानपहचान वालों की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

सवाल था कि सुदेश की हत्या क्यों और किस ने की है और शव को इतनी दूर ले जा कर ठिकाने लगाने व उस की पहचान मिटाने का काम किस ने किया है? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए गहन जांचपड़ताल की जरूरत थी.

इसलिए डा. ईरज राजा ने सीओ रजनीश कुमार उपाध्याय के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. टीम में थानाप्रभारी सचिन कुमार, एसएसआई प्रदीप शर्मा, एसआई अमरपाल सिंह, ब्रजकिशोर गौतम, कृष्ण कुमार, हैडकांस्टेबल उदित कुमार, राजीव कुमार, अरविंद कुमार, महिला कांस्टेबल कविता, एसओजी के हैडकांस्टेबल अरुण कुमार, नितिन कुमार, पंकज शर्मा व अनिल सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी थी, इस के लिए सब से पहले पुलिस टीम ने सुदेश कुमार की जन्म कुंडली खंगालनी शुरू की. क्योंकि आमतौर पर जब कातिल गुमनाम हो तो कत्ल का सुराग मरने वाले की जन्म कुंडली में ही छिपा होता है.

पुलिस की टीम ने सुदेश कुमार की पत्नी, उस के बेटे व आसपड़ोस के लोगों से जा कर पूछताछ शुरू की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. दरअसल, जिस सुदेश के कातिल को पुलिस तलाश कर रही थी, उस के बारे में जानकारी मिली कि वो तो खुद एक कातिल है और इस समय पैरोल पर है.

दरअसल अपने घर में ही परचून की दुकान चलाने वाले सुदेश के परिवार में पत्नी अनुपमा के अलावा 2 बच्चे थे. 17 साल का बड़ा बेटा सुनील और 13 साल की एक बेटी वंशिका. लेकिन बेटी इलाके के खराब माहौल के कारण गंदी सोहबत का शिकार हो गई और कम उम्र में ही उस के इलाके के किशोर लड़कों से प्रेम संबध बन गए.

सुदेश व उस की पत्नी ने बेटी को कई बार डांटफटकार कर उसे समझाना चाहा, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. एक दिन ऐसा हुआ कि सुदेश की बेटी इलाके के एक युवक के साथ घर से भाग गई.

इस के कारण इलाके में उन की बहुत बदनामी हुई. काफी भागदौड़ के बाद बेटी घर तो वापस आ गई, लेकिन अपमान का घूंट सुदेश से पिया नहीं गया.

उस ने इस घटना के बाद मार्च 2018 में वंशिका की हत्या कर उस के शव को मंडोला में आवासविकास कालोनी के पास खाली जमीन में फेंक दिया. इस के बाद उस ने करावल नगर थाने में बेटी की गुमशुदगी की भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

बाद में वंशिका का शव बरामद होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद सुदेश को अपनी बेटी की हत्या के आरोप में जेल भेज दिया था. तभी से सुदेश मंडोली जेल में बंद था.

लेकिन 2021 को कोरोना की दूसरी लहर में जब सरकार ने विचाराधीन कैदियों को पैरोल पर छोड़ने का फैसला किया तो 21 मई को सुदेश को भी अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था. उसी वक्त से सुदेश अपने बच्चों के बीच था.

21 नवंबर को सुदेश की पैरोल अवधि खत्म हो गई थी. वह जेल में पेश होने के लिए गया, मगर वहां किसी कानूनी अड़चन के कारण उसे जेल में नहीं लिया गया और उसे 22 दिसंबर, 2021 दूसरी डेट पर जेल में पेश होने के लिए कहा गया.

लेकिन इसी बीच किसी ने बेदर्दी से सुदेश की हत्या कर दी. ऐसा कौन था, जिस से सुदेश की ऐसी दुश्मनी थी कि वह उस की इतनी बेदर्दी के साथ हत्या कर देगा.

यह सब जानने के लिए पुलिस ने सुदेश की पत्नी व उस के जानपहचान वालों से खूब कुरेद कर पूछताछ की, मगर सुदेश की हत्या का कारण व उस के कातिल का कोई सुराग नहीं मिल सका.

पुलिस को न तो किसी से सुदेश की दुश्मनी का सुराग मिल रहा था, न ही किसी से लेनदेन के विवाद की खबर मिल रही थी. लेकिन एक ऐसी बात जरूर थी, जिस के कारण जांच की कवायद से जुड़े एसपी देहात डा. ईरज राजा, सीओ रजनीश उपाध्याय और थानाप्रभारी सचिन कुमार उस पर घंटों से माथापच्ची कर रहे थे.

दरअसल, गहराई से पड़ताल करने के बाद कुछ ऐसे सवाल उभरे थे जिन का पुलिस को जवाब ढूंढना था. पुलिस को लाश की जेब से सुदेश कुमार का आधार कार्ड तो मिल गया था, लेकिन जो एक बात हैरान कर रही थी, वह यह कि लाश बेशक बुरी तरह जली हुई थी, लेकिन जेब में पड़ा आधार कार्ड बिलकुल सहीसलामत था, जिसे देखने से लगता था कि शायद यह कार्ड किसी ने आग बुझने के बाद लाश की जेब में डाल दिया हो.

बस यही बात थी जो पुलिस को लगातार खटक रही थी. क्योंकि अगर किसी ने सुदेश की हत्या करने के बाद उस के चेहरे को इसलिए जलाया था कि उस की पहचान न हो सके तो भला वह कातिल उस की जेब में आधार कार्ड क्यों छोड़ेगा.

दोनों ही बातें एकदम विरोधाभासी लग रही थीं और शक पैदा कर रही थीं. शक का एक दूसरा कारण और भी था. क्योंकि सुदेश की मौत के बाद जब उस के शव का पोस्टमार्टम हो गया तथा उस का अंतिम संस्कार हो गया तो 3 दिन बाद से ही उस की पत्नी लोनी बौर्डर थाने में आ कर पुलिस से सुदेश की मौत का डेथ सर्टिफिकेट देने की मांग करने लगी.

जिस महिला के पति की मौत होती है वह तो महीनों तक अपने गम व सदमे से उबर नहीं पाती, लेकिन दूसरी तरफ अनुपमा हर रोज थाने आ कर पुलिस से अपने पति की मौत का सर्टिफिकेट देने की मांग कर रही थी.

पुलिस के लिए उस का व्यवहार बड़ा अटपटा था. पुलिस ने जब उस से कारण पूछा तो वह कहने लगी कि उसे मंडोली जेल में सर्टिफिकेट देना है और उन्हें सुदेश के सरेंडर करने की डेट से पहले यह बताना है कि उस की मौत हो चुकी है.

अनुपमा का यह रवैया भी हैरान कर रहा था. इसलिए एसपी देहात ने इस केस की तफ्तीश को आगे बढ़ाने के लिए टैक्निकल सर्विलांस टीम के साथसाथ मुखबिरों की मदद लेने का फैसला किया. क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि सुदेश की हत्या के पीछे कोई गहरी साजिश हो सकती है.

सीओ उपाध्याय के निर्देश पर पुलिस की एक टीम ने गोपनीय ढंग से सुदेश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज को खंगालने का काम शुरू किया ताकि पता लगाया जा सके कि वारदात से पहले सुदेश कब और किस के साथ घर से गया था और उस ने कौन से कपड़े पहने थे.

संयोग से सुदेश के घर से कुछ ही दूर लगे एक सीसीटीवी कैमरे में ऐसी फुटेज मिल गई, जिस ने पूरे केस की तसवीर ही बदल दी.

सीसीटीवी कैमरे में 19 नवंबर, 2021 की रात को एक संदिग्ध शख्स नजर आया. यह शख्स एक साइकिल पर एक बड़ी सी बोरी ले कर जा रहा था. पुलिस ने सीसीटीवी में दिख रहे इस शख्स की पहचान पता करने की कोशिश की और मुखबिरों को भी यह तसवीर दिखाई. तब आसपास के लोगों ने पुलिस को बताया कि वह शख्स कोई और नहीं बल्कि खुद सुदेश कुमार था.

इस का मतलब था कि सुदेश कुमार मरा नहीं, बल्कि अब भी जिंदा है. तो फिर उस की साइकिल पर जो बोरी लदी थी, उस में वह क्या ले कर जा रहा था?

सीसीटीवी में सब से हैरान करने वाली बात यह दिखी कि आखिरी बार देर रात को करीब 11 बजे अपने घर से निकले सुदेश के शरीर पर वह कपड़े भी नहीं थे जो इंद्रापुरी में जली हालत में मिली लाश के शरीर पर थे, जिसे अनुपमा ने अपने पति की बताया था.

राज बहुत गहरा था. इसीलिए इस की तह में जाने के लिए पुलिस की टीम ने आसपास में रहने वाले कुछ लोगों को अपने विश्वास में ले कर सुदेश के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

पुलिस को 1-2 दिन में ही जानकारी मिली कि सुदेश वाकई मरा नहीं जिंदा है और अकसर देर रात में अपने घर चोरीछिपे आता है ताकि किसी को भनक न लग सके.

इतनी जानकारी मिलने के बाद पुलिस समझ गई कि यह एक बड़ी साजिश है इसीलिए पुलिस ने अब सुदेश की पत्नी के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया.

पुलिस को फोन की सर्विलांस लगाने का फायदा मिला और एक ऐसा संदेश मिला जिस से पता चला कि सुदेश न सिर्फ जिंदा है बल्कि चोरीछिपे अपने परिवार से भी मिलता है.

इसी क्रम में वह 10 दिसंबर, 2021 की रात को अपने घर आया था और आसपास जाल बिछा कर खड़ी पुलिस टीम ने सुदेश को दबोच लिया. पुलिस ने उस की पत्नी अनुपमा को भी हिरासत में ले लिया.

दोनों को थाने ला कर उच्चाधिकारियों के सामने जब पूछताछ शुरू हुई तो एक ऐसे हत्याकांड की ऐसी कहानी सामने आई, जिस में मृतक मान कर पुलिस उस के कातिल को पकड़ने के लिए दिनरात एक कर रही थी लेकिन पता चला वह न सिर्फ जिंदा है बल्कि उस ने खुद को मरा साबित करने के लिए किसी और की हत्या कर उसे अपनी पहचान दे दी थी. और इस काम में उस की पत्नी ने उस की पूरी मदद की थी.

सुदेश व उस की पत्नी से पूछताछ में पता चला कि 22 दिसंबर को इसे वापस जेल जाना था. जब वह जेल में था तो उसे साथी कैदियों ने बताया था कि जिस तरीके के सबूत उस के खिलाफ हैं, उस के मुताबिक उसे सजा मिलनी तय थी और कम से कम उसे उम्रकैद की सजा मिलेगी.

जब 21 नवंबर को उसे जेल में नहीं लिया गया तो उस ने सोचा कि शायद ऊपर वाला भी नहीं चाहता कि वह जेल जाए. इस के बाद से ही उस ने इस बात पर दिमाग लगाना शुरू कर दिया कि कैसे जेल जाने से बचा जाए. कई दिन तक खूब दिमाग लगाया, लेकिन कोई तरकीब नहीं सूझी.

अचानक एक दिन टीवी पर एक फिल्म देख कर आइडिया मिल गया, जिस में जेल से भागे एक कैदी ने किसी आदमी की हत्या कर उसे अपने कपड़े पहना कर उस के चेहरे को जला दिया और पुलिस ने मान लिया कि कैदी मारा गया है.

यह आइडिया आते ही सुदेश ने दिमाग लगाना शुरू कर दिया कि वह खुद को इसी तरह जेल जाने से बचा सकता है. सुदेश ने जब अपनी पत्नी को दिल की बात बताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद अनुपमा को भी यह बात पसंद आ गई. वैसे भी कौन पत्नी नहीं चाहेगी कि उस का पति जेल जाने से बच जाए.

काफी विचारविमर्श के बाद सुदेश व अनुपमा ने इस काम के लिए एक मजदूर का इंतजाम करने के लिए अपनी छत को ठीक कराने का बहाना बनाया. इस के लिए सुदेश 18 नवंबर, 2021 को लेबर चौक गया और अपनी कदकाठी के एक मजदूर, जिस का नाम दोमन रविदास था और वह बिहार के गया जिले के अतरी का रहने वाला था, को ले आया.

18 नवंबर को सुदेश ने पहले दिन अपनी छत की स्लैब डलवाई. मजदूर रविदास के कपडे़ काफी पुराने व फटी हालत में थे लिहाजा सुदेश ने उसे अपना ट्रैकसूट पहनने के लिए दे दिया जिस की जर्सी कौफी कलर की थी और लोअर नीले रंग का था.

अगले दिन भी काम होना था, इसलिए सुदेश ने रविदास को अगले दिन फिर आने के लिए कहा.

19 नवंबर को दोमन रविदास उसी के कपड़े पहन कर फिर काम पर आया. शाम होतेहोते जब काम खत्म हो गया तो शाम को दारू पार्टी के बहाने रोक लिया. दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. इस दौरान सुदेश खुद कम शराब पीता रहा जबकि उस ने रविदास को बड़ेबड़े पैग पिलाने शुरू कर दिए.

रात करीब 9 बजे रविदास को खूब नशा हो गया. इस दौरान सुदेश और उस अनुपमा ने पहले ही तय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. इस दौरान उन्होंने चारपाई के पाये से रविदास के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर हत्या कर दी.

यह बात बेटे सुनील को पता नहीं चले इसलिए उस ने सुनील को अपनी परचून की दुकान पर बैठने के लिए भेज दिया था.

सुदेश ने पहले ही तय कर लिया था कि वे रविदास की हत्या कर उसे सुदेश के रूप में अपनी पहचान देगा. इसीलिए एक दिन पहले उस ने अपना ट्रैकसूट रविदास को पहनने के लिए दिया था. खुद को वह दुनिया की निगाहों में मुर्दा करार दे सके, इस के लिए भी उस ने पूरी प्लानिंग कर ली थी.

सुदेश व अनुपमा को जब इत्मीनान हो गया कि रविदास की मौत हो चुकी है तो कमरे को पानी से साफ कर उस के शव को पहले एक पन्नी में लपेटा. उस के बाद उसे बोरी में भर दिया.

रात को करीब 11 बजे जब इलाके में सन्नाटा पसर गया और उस का बेटा भी सो गया तो सुदेश बोरे में भरे रविदास के शव को साइकिल पर रख कर लोनी बौर्डर थाना क्षेत्र की इंद्रापुरी कालोनी में खाली प्लौट में ले गया.

वहां शव को बोरी से निकाल कर उस के चेहरे और शरीर के ऊपरी हिस्से पर अखबार के कागज व टाट की बोरी रख कर जला दिया ताकि शव की पहचान न हो सके.

शव की पहचान सुदेश के रूप में कराने के लिए उस ने अपना आधार कार्ड रविदास की जेब में रख दिया था. पहले से तय योजना के मुताबिक सुदेश अपने घर गया और पत्नी को आ कर बताया कि जब पुलिस उस से रविदास के शव की शिनाख्त कराए तो वह उस की पहचान कर ले.

सुदेश की पूरी प्लानिंग थी कि वह रविदास को सुदेश साबित कर दे, इसलिए पत्नी के साथ बनी योजना के तहत वह इस के बाद चोरीछिपे देर रात में ही घर आता और इस के अलावा इधरउधर छिप कर अपना वक्त बिताता था.

10 दिसंबर को सुदेश ने अपनी पत्नी को फोन कर के कहा कि वह रात को घर आएगा घर की लाइट जला कर रखना. यदि सब कुछ ठीक हो तो गेट पर सफेद कपड़ा डाल देना. यह बात पुलिस ने सर्विलांस के दौरान सुन ली और पुलिस पहले से आरोपी की तलाश में उस के घर पहुंच गई और लाइट जला कर गेट पर सफेद कपड़ा डाल दिया.

सुदेश के पहुंचते ही पुलिस ने आरोपी व उस की पत्नी को दबोच लिया.

पूछताछ में सुदेश ने बताया कि जेल और सजा से बचने के लिए उस ने खौफनाक घटना को अंजाम दिया था. जेल जाने से बचने के लिए उस ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर यह साजिश रची थी. लेकिन उस ने पहली भूल यह कर दी कि काफी प्रयास के बाद भी अपने ही कदकाठी के मजदूर को नहीं तलाश सका था.

सुदेश और अनुपमा की साजिश यह थी कि इस साजिश के पूरा होने पर वे दिल्ली छोड़ कर चले जाएंगे, लेकिन आखिरकार उस के बिना जले आधार कार्ड, सीसीटीवी कैमरे की तसवीरों और दूसरे सबूतों ने उस की खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया.

इस दौरान पुलिस ने करावल नगर थाने और मंडोली जेल से रिकौर्ड निकलवा कर पता कर लिया था कि सुदेश की हाइट 5 फुट 6 इंच है जबकि इंद्रापुरी इलाके में जो शव मिला था, उस की हाइट 5 फुट 3 इंच थी यानी 3 इंच कम.

इसी के बाद पुलिस ने सुदेश के घर की निगरानी शुरू की. उस की पत्नी के फोन को सर्विलांस पर लगाया और वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

पुलिस ने सुदेश के साथ उस की पत्नी को भी डोमन रविदास की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त चारपाई का पाया व शव को ठिकाने लगाने वाली साइकिल बरामद कर ली.

सुदेश व अनुपमा की गिरफ्तारी के बाद मुकदमे में भादंवि की धारा 201, 419, 420 व 120बी जोड़ कर उन्हें अदालत में पेश कर दिया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

दूसरी तरफ लोनी बौर्डर पुलिस ने मृतक मजूदर डोमन रविदास की करावल नगर थाने में दर्ज गुमशुदगी को अपने यहां ट्रांसफर करवा ली. रविदास के साथियों के साथ जा कर रविदास के बेटे ने थाना करावल नगर दिल्ली में जा कर घटना के 3 दिन बाद गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

—कथा पुलिस की जांच और आरोपियों तथा पीडि़त परिवार से बातचीत पर आधारित

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