छत्तीसगढ़ : सुपर सीएम भूपेश चले अमेरिका!

छत्तीसगढ़ के सुपर सीएम बन चुके भूपेश बघेल अपनी प्रथम विदेश यात्रा पर “अमेरिका” के लिए निकल पड़े हैं. भूपेश बघेल 11 फरवरी  अर्थात आज से अमेरिका के दौरे पर रहेंगे. इस दौरान  मुख्यमंत्री सैनफ्रांसिस्को, बोस्टन और न्यूयौर्क में कुछ  कार्यक्रमों में शामिल होंगे. 15 से 16 फरवरी को हार्वर्ड में आयोजित ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ के विशेष चर्चा में शिरकत करेंगे , जहां ‘लोकतांत्रिक भारत में जाति और राजनीति’ विषय पर व्याख्यान भी देंगे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा इन दिनों छत्तीसगढ़ में चर्चा में है जहां सरकार यह बता रही है कि यह यात्रा अमेरिका के उद्योगपतियों को निवेश के लिए मील का पत्थर बनेगी  वहीं भाजपा नेताओं सहित  पहले  के सुपर  मुख्यमंत्री  रहे अजीत जोगी ने गहरे तंज किए हैं.अजीत जोगी ने यात्रा के एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ छत्तीसगढ़ में पेंड्रा जिला के उद्घाटन मौके पर तंज का बाण चलाते हुए कहा – भूपेश बघेल अमेरिका जा रहे हैं,आज पेंड्रा जिला का उद्घाटन है उनसे आग्रह है कि “पेंड्रा जिला” को भी अमेरिका जैसा बना दें! अजीत जोगी आजकल भूपेश बघेल पर संकेतिक हमले कर रहे हैं. उनके इस तंज में छिपा हुआ है कि मुख्यमंत्री जी अमेरिका तो जा रहे हैं पेंड्रा और छत्तीसगढ़ क्या अमेरिका जैसा बन पाएगा!

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और यह सभी जानते हैं कि छत्तीसगढ़ ना कभी लंदन बन सकता है, अमेरिका या जापान अथवा चीन मगर राजनेता देशों का दौरा करके चाहते हैं हमारा राज्य भी विकसित हो जाए. यह कैसे होगा कब होगा यह जनता को सोचना होगा.अजीत जोगी के मेहमान स्वरूप उपस्थिति और तंज के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शालीनता से कहा कि पेंड्रा जिला को “अमेरिका” बनाने के लिए सभी का सहयोग चाहिए. जाहिर है मुख्यमंत्री ने सच को स्वीकार किया और यह संकेत दिया कि सत्ता के साथ-साथ विपक्ष के ताल पर ही छत्तीसगढ़ का “विकास” हो सकता है.

दरियादिल  मुख्यमंत्री भूपेश!

आपको बताते चलें कि छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल को लगभग सवा साल  हो गए हैं और यह आपकी पहली विदेश यात्रा है. जब इस अमेरिका यात्रा का समाचार सुर्खियों में आया तो विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर चरणदास महंत ने  बिना झिझक मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वह भी अमेरिका चलना चाहेंगे. मुख्यमंत्री ने दरियादिली दिखाते हुए अपने साथ अपने अग्रज राजनेता और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास को भी ले लिया है.इस तरह छत्तीसगढ़ के 2 बड़े राजनीतिज्ञ अमेरिका के राजकीय दौरे पर निकल पड़े हैं . ऐसे में याद आता है डॉ रमन सिंह के विदेश भ्रमण के अनेक दौरे, जो उन्होंने मुख्यमंत्री मंत्री रहते हुए किए थे और जनता ने इन दोनों का इस्तकबाल किया था.

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  10 दिवसीय अमेरिका प्रवास पर हार्वर्ड में आयोजित ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ में शामिल होने के साथ ही उद्योग से जुड़े विभिन्न प्रतिनिधियों से चर्चा कर उन्हें छत्तीसगढ़ में निवेश के लिए आकर्षित करेंगे, मुख्यमंत्री अमेरिका में रहने वाले छत्तीसगढ़ियों से भी मुलाक़ात करेंगे. इसके अलावा बोस्टन के गवर्नर और नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी से मुलाक़ात का भी कार्यक्रम है.

भूपेश बघेल का ‘दिल’

बता दें ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ मूल रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत पर ध्यान केंद्रित करने वाले सबसे बड़े छात्र-सम्मेलन में से एक है. यह हार्वर्ड बिजनेस स्कूल और हार्वर्ड केनेडी स्कूल में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के स्नातक छात्रों द्वारा आयोजित किया जाता है. इनकी 17वीं वर्षगांठ पर 15 और 16 फरवरी को भूपेश बघेल व डाक्टर  चरणदास महंत  कार्यक्रम में शामिल होंगे. यहां उल्लेखनीय है कि जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  अमेरिका जाने ही वाले थे जब पत्रकारों ने उन्हें घेरा और अमेरिका यात्रा पर बातचीत की तब भूपेश बघेल ने कहा वे भले ही 10 दिनों के लिए अमेरिका जा रहे हैं मगर उनका “दिल” तो छत्तीसगढ़ में ही रहेगा.

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सीमेंट : भूपेश, विपक्ष और अफवाहें

छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सीमेंट के मसले पर इन दिनों विपक्ष भाजपा और आम जनता के निशाने पर है. कांग्रेस की सरकार आने के बाद अब धीरे-धीरे ही सही माफियाओं के मुंह खुलने लगे हैं. जिनमें सबसे आगे है- सीमेंट के बड़े कारोबारी और फैक्ट्रियां.  यह चर्चा सरगम है कि फैक्ट्रियों को खुली छूट दे दी गई है, की दाम आप बढ़ा लो! सत्ता और सीमेंट किंग आपस में एक हो चुके हैं. परिणाम स्वरूप सीमेंट के भाव बेतहाशा बढ़ते चले गए. लगभग प्रति बैग 20 रुपये  का अतिरिक्त भार अब उठाना होगा.

प्रदेश में इस मसले पर एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है सीमेंट के साथ-साथ रेत माफिया भी करोड़ों रुपए का खेल कर रहा है. वहीं यह भी खबर आ रही है कि स्टील के दाम भी बढ़ने जा रहे हैं. यह सब भूपेश बघेल की सरकार के समय हो रहा है जिन्होंने लंबे समय तक विपक्ष की राजनीति करते हुए इन्हीं मसलों पर डॉक्टर रमन सरकार को घेरा था.

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इधर सीमेंट की कीमतों में हो चुके  इजाफे से  सियासत गरमाते जा रही है. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर राज्य सरकार पर उद्योगपतियों से सांठगांठ का खुला  आरोप लगा दिया  है. कौशिक ने कहा कि महीनेभर के भीतर दो बार सीमेंट के दाम बढ़ना कई सवाल खड़ा करता है. उद्योगपतियों और सरकार की मिलीभगत से छत्तीसगढ़ की जनता के जेब मे “डाका” डाला जा रहा है.कौशिक ने कहा कि सरकार जिस प्रकार से गुपचुप तरीके से उनके साथ बैठकें कर रही है, उस समय आरोप लगाया था कि सीमेंट के दामों में वृध्दि होगी. लेकिन उनके प्रवक्ता ने कहा था कि धरमलाल कौशिक के पास कोई काम नहीं है. मैं जिस बात को बोलता हूं प्रमाणिकता के साथ बोलता हूं, आज वो बात सच साबित हो गई कि ये लोग सीमेंट के रेट को कैसे बढ़ा रहे हैं. सरकार ने उद्योगपतियों के सामने घुटने टेक दिए हैं, इसका क्या कारण है वो मैं नहीं जानता लेकिन इनकी मिलीभगत से ये संभव नहीं है.

एक करोड़ का डाका!!

धरमलाल कौशिक ने जो आरोप लगाए हैं वह सोचने को विवश करते हैं और सच्चाई के निकट प्रतीत होते हैं  उन्होंने कहा,  छत्तीसगढ़ में सीमेंट के जो उपभोक्ता हैं खासकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो काम चल रहा है, अब उसका रेट बढ़ेगा. छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से 1 करोड़ प्रतिदिन के हिसाब से डाका डाला जा रहा है.

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महीने के हिसाब से छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से निकाला जा रहा है ये अत्यंत दुर्भाग्य जनक घटना है.  भूपेश सरकार को इस पर रोक लगानी होगी मै उद्योगपतियों से भी आग्रह करूंगा कि रेट कम करें. छत्तीसगढ़ की फिजा में सीमेंट रेट  स्टील चर्चा का सबब बने हुए हैं गली चौराहे और नुक्कड़ पर सीमेंट की बेतहाशा दाम बढ़ने पर चर्चा हो गई है सीधे-सीधे इसका असर कांग्रेश की भूपेश सरकार की छवि पर पड़ रहा है.

सीमेंट के दाम पर घमासान

छत्तीसगढ़ में सीमेंट के बढ़ते  दाम  सियासी मुद्दा बन जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय काल 2003 में यहां सीमेंट की कीमत  प्रति बैग सौ स्र्पये से  भी कम थी.राजनीति  घुसी तो 2004 में दाम सीधे 120 स्र्पये प्रति बैग हो गया. 2005 के शुरूआत में डॉ रमन सिंह के आशीर्वाद से सीमेंट के दाम 155  रुपए और 2006 में यह दाम सीधे 200 के पार पहुंच गया.

जब- जब दाम बढ़े तब-तब इसका विरोध भी होता  है .आगे सन 2008 में दाम सीधे 250 से 300 पहुंच गये.अजीत जोगी  और जनता ने इस वृद्धि का  तीव्र विरोध  किया.भाजपा  सरकार पर सीमेंट कंपनियों से मिलीभगत सरंक्षण  का आरोप लगा. आगे  आर्थिक मंदी के कारण सीमेंट के दाम गिर कर  250 तक पहुंच गये. दिसंबर 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के समय दाम 225 से 230 रुपये ही था.

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भूपेश बघेल: धान खरीदी का दर्द!

छत्तीसगढ़ में  किसान के लिए धान बेचना एक दर्द, यातना बन गया है, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए धान खरीदी सरदर्द बन चुकी है. सरकार का एक ऐसा कदम, जिसके लिए कहा जा सकता है कि “ना उगलते बने न निगलते बने”. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, यहां  धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर, सरकार बोनस के साथ किया करती थी.

एक उत्सव के रूप में, गांव गांव में किसान खुशहाल दिखाई देते थे.धान मंडियों में किसानों का मेला लगा रहता था. रमन सिंह के समयकाल में  2100 रुपए कुंटल में सरकार धान खरीदी किया करती थी. मगर किसानों को खुश करने के लिए भूपेश बघेल ने एक बड़ा दांव चला कि कांग्रेस सरकार आती है तो 2500 रुपये  क्विंटल धान का दिया जाएगा. और 2018 के विधानसभा चुनाव में इसी मुद्दे पर भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया. अब स्थितियां बदल रही है भूपेश सरकार के पास किसानों के लिए  25 सौ रुपये  तो है नहीं, हां! आश्वासन का एक बड़ा पिटारा जरूर है.

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इस रिपोर्ट में हम धान खरीदी को लेकर के ग्राउंड की सच्चाई को आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे. हमारे संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के 4 जिलों रायपुर, बेमेतरा,  जांजगीर, कोरबा  के किसानों से बातचीत की जिस का सारांश प्रस्तुत है-

भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने 

धान खरीदी मामले को लेकर भाजपा कांग्रेस  आमने-सामने है. भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के बयान को लेकर बीजेपी ने बड़ा आरोप लगाया है. प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा कि मंत्री अमरजीत भगत का ये कहना कि खरीदी की तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी!कांग्रेस सरकार की किसान विरोधी मानसिकता को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि “पंचायत चुनाव” निपटते कांग्रेस का नकाब उतर गया है. कांग्रेस ने अब अपना असल चेहरा दिखा दिया है. कांग्रेस का यही चरित्र है. बीजेपी लगातार कांग्रेस की मंशा को लेकर सवाल उठाती रही है.

उसेंडी ने कहा कि किसानों को धान ख़रीदी के नाम पर “ख़ून के आँसू” रुलाने वाली सरकार ने धान ख़रीदी की मियाद नहीं बढ़ाने का एलान करके अपने अकर्मण्यता का  परिचय दिया है. भूपेश सरकार द्वारा पहले धान ख़रीदी एक माह विलंब से शुरू की गई और किसानों का पूरा धान 25सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर पर ख़रीदने से बचने के लिए नित-नए नियमों के तुगलकी फ़रमानों का छल-प्रपंच रचा गया, धान की लिमिट तय करके किसानों को चिंता में डाला, धान का रक़बा घटाने तक का  कृत्य तक किया, ख़रीदी केंद्रों से धान का समय पर उठाव नहीं करके धान ख़रीदी में दिक़्क़तें पैदा कीं और इस तरह पिछले वर्ष के मुक़ाबले इस साल लाखों मीटरिक टन धान कम ख़रीदा गया.

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भाजपा के एक बड़े नेता शिवरतन शर्मा ने ने कहा कि खाद्य मंत्री का यह एलान किसानों के साथ दग़ाबाज़ी का प्रदेश सरकार द्वारा लिखा गया काला अध्याय है और कांग्रेस को इस दग़ाबाज़ी की समय पर भारी क़ीमत  चुकानी  पड़ेगी.

भाजपा के समय काल में संसदीय सचिव रहे लखन देवांगन कहते हैं  पंचायत चुनावों के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धान ख़रीदी की समय-सीमा बढ़ाने की बात कही थी, तो अब मुख्यमंत्री को यह सफाई देनी ही होगी कि उनके वादे के बावजूद उनकी सरकार के मंत्री किस आधार पर समय-सीमा नहीं बढ़ाने की बात कह रहे हैं?

छत्तीसगढ़ में भाजपा के बड़े नेता चाहे वे डॉ रमन सिंह हों अथवा विक्रम उसेंडी सभी एक सुर में भूपेश बघेल सरकार को धान खरीदी के मसले पर घेर चुके हैं. मगर कहते हैं ना सत्ता कठोर होती है वह हाथी की मदमस्त चाल से अपनी ही धुन में चलती है वही सत्य छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है.

किसानों के चेहरे मुरझाए क्यों हैं?

छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के दरमियान किसान और आम आदमी जहां प्रसन्न दिखाई देता था वहीं आजकल किसान और गांव के आम आदमी दुखी, पीड़ित दिखाई देते हैं. किसान को पटवारी के यहां, राजस्व निरीक्षक के यहां, तहसीलदार के यहां कई कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. खाद्य अधिकारियों की नकेल कसी हुई है. एसडीएम और कलेक्टर की निगाह एक एक किसान पर लगी हुई है. कहीं कोई किसान पीछे दरवाजे से सरकार को इधर उधर का धान न थमा दे.

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किसानों की ऐसी निगरानी की जा रही है, मानो किसान कोई अपराधी हो. एक किसान ने बताया कि स्थिति इतनी बदतर है कि हमारे बच्चों के लिए चॉकलेट खरीदने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं! एक अन्य  किसान के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में धान बिक नहीं पाया तो चुनाव में हम कुछ भी खर्च  नहीं कर पाए. इन्हीं विसंगतियों के बीच धान खरीदी का उपक्रम जारी है. जो मात्र अब 10 दिन बच गया है. मगर बीते दो महीने किसानों के लिए एक त्रासदी, पीड़ा और दर्द छोड़ कर गया है जो शायद किसान कभी नहीं भूल पाएगा.

इस दरमियान छत्तीसगढ़ सरकार की धान खरीदी नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ की अनेक जिलों में किसानों ने चक्का जाम किया आंदोलन किया मगर सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी .  शायद भूपेश बघेल सरकार यह कहना चाहती है कि हे किसान! अगर पच्चीस सौ रुपये कुंटल में धान बचोगे तो सरकार के नियम कायदे रूपी प्रताड़ना से तो गुज़रना ही होगा. अंतिम  मे यह कि भूपेश बघेल स्वयं को किसान कहते हैं उनसे यही गुजारिश है कि एक  दिन भेष बदलकर किसी अनजान गांव, अनजान किसानों के बीच पहुंच जाएं और उनसे बात कर ले तो सारा सच उनके सामने खुली किताब की तरह होगा.

दीपिका की “छपाक”… भूपेश बघेल वाया भाजपा-कांग्रेस!

दिल्ली स्थित जेएनयू हिंसा के पश्चात छात्रों के बीच पहुंची दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक का बहिष्कार करने के लिए भाजपा समर्थकों ने सोशल मीडिया में अभियान चल रहा है. जिसके प्रतिउत्तर में मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के द्वारा फिल्म ‘छपाक’ को टैक्स मुक्त करने के बाद, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में फिल्म को टैक्स फ्री करने की घोषणा कर दी है.

देश प्रदेश में दीपिका पादुकोण को लेकर एक तमाशा चल रहा है. दीपिका पादुकोण जब जेएनयू में प्रकट होती है तो देश की मीडिया उनकी सिंपैथी दिखाकर, यह बताने का प्रयास करती है कि दीपका कितनी संवेदनशील है. दूसरी तरफ केंद्र सरकार और उनके नुमाइंदे मानो दीपका पर पिल पड़े ऐसी स्थिति में जवाबी तलवारबाजी तो होनी ही थी और खूब हो रही है.

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छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कमलनाथ के पद चिन्हों पर चलते हुए छपाक फिल्म को टैक्स मुक्त कर दिया है. संपूर्ण घटनाक्रम को देखकर कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं जिनका प्रतिउत्तर आम जनमानस के पास नहीं होता. क्योंकि वह संपूर्ण घटनाक्रम की पीछे की राजनीति को, आज चल रही विचारधारा की लड़ाई को नहीं समझ पाती. छत्तीसगढ़ में दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक के बरअक्स इस मसले को हम समझने का प्रयास करते हैं-

क्या यह ढर्रा देशहित हित में है!

मेघना गुलजार निर्देशित और दीपिका पादुकोण अभिनीत ऐसिड अटैक सर्वाइवर पर बनी फिल्म “छपाक “10 जनवरी को देश भर के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई . इधर फिल्म के रिलीज होने के पूर्व दीपिका पादुकोण दिल्ली के जेएनयू पहुंच गई, उनका समर्थन में खड़ा होना एक प्रश्न चिन्ह बना दिया गया. जहां एक और केंद्रीय सरकार के मंत्री दीपिका से नाराज दिखे, वहीं कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल खुलकर दीपिका के पक्ष में खड़े हो गए हैं. अब यह अवाम को सोचना है कि क्या आप आक्रमणकारियों के के पक्ष में खड़े होंगे या आक्रमणकारियों के विरोध में.

देश में इन दिनों बन रही लघु मानसिकता तो यही कहती है कि आप चाहे कोई भी हो. आम आदमी या सेलिब्रिटी अगर आप केंद्र सरकार के मंशा के खिलाफ खड़े हैं तो आप को देश में रहने का अधिकार नहीं! आप देशद्रोही हैं. यह ढर्रा देश को किस दिशा में ले जाएगा यह फिल्म छपाक के इस विवाद के बरअक्स उठे विवाद से, आगे की मंजिलें बताएगी. यहां मजेदार बात यह है कि छत्तीसगढ़ में अब यह भाजपा मांग उठाने लगी है कि अजय देवगन की फिल्म “तानाजी” को भी टैक्स मुक्त किया जाए…

अब सीधी सी बात है कि कांग्रेस सरकार भला भाजपा की सोच पर अपनी मोहर क्यों लगाएगी. मगर आपको यह समझना होगा कि तानाजी का मतलब सीधे सीधे हिंदू वोट बैंक भी है. कुल जमा फिल्मों को लेकर घात प्रतिघात का दौर, भाजपा और कॉन्ग्रेस यह मध्य जारी है.

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भूपेश बघेल से यही उम्मीद थी!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर फिल्म को टैक्स फ्री किये जाने की जानकारी सार्वजनिक की. उन्होंने ट्वीट कर कहा, “समाज में महिलाओं के ऊपर तेजाब से हमले करने जैसे जघन्य अपराध को दर्शाती हैं . हमारे समाज को जागरूक करती हिंदी फिल्म “छपाक” को सरकार ने छत्तीसगढ़ प्रदेश में टैक्स फ्री करने का निर्णय लिया है. आप सब भी सपरिवार जाएं.”

यहां सवाल यह भी उठता है कि नकाबपोश गुंडों द्वारा जेएनयू में छात्रों के ऊपर लाठी और रॉड से हमला किया गया था. इस हमले में छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष सहित कई छात्रों को गंभीर चोटें आई थी. जेएनयू छात्रों ने इस हमले के पीछे एबीवीपी को जिम्मेदार बताया था. हमले से जुड़े कई वीडियो भी सामने आए.
छात्रों के ऊपर हुए हमले के बाद दीपिका पादुकोण जेएनयू पहुंची थीं, जहां वे हिंसा के खिलाफ छात्रों के बीच खड़ी थी. दीपिका के सामने आने के बाद कई बॉलीवुड सितारों ने भी हमले की निंदा की थी. उधर दीपिका के इस कदम के बाद सोशल मीडिया में उनकी फिल्म छपाक को बॉयकॉट करने का अभियान चलाया जा रहा है. जो अपने उफान पर है. देश भक्ति का मतलब ही आजकल, देश में भाजपा और केंद्र सरकार के समर्थन में खड़े होना है.

क्या देशभक्ति ऐसी होती है कि आप किसी फिल्म को न देखें और उसका बाय काट करें. मगर यही हो रहा है फिल्म छपाक को लेकर दो ध्रुव बन गए हैं ऐसे में कमलनाथ सरकार के फिल्म को टैक्स फ्री करने के बाद भूपेश बघेल बघेल को तो ऐसा करना ही था और उन्होंने किया प्रश्न यह खड़ा हो जाता है क्या दीपिका पादुकोण जेएनयू नहीं जाती तो हमारे प्रदेश और देश की सरकार जो कांग्रेस नीत से जुड़ी हैं फिल्म को टैक्स मुक्त करती? शायद कभी नहीं. इधर दीपिका पादुकोण को घेरते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने उन्हें कांग्रेसी मानसिकता का बताते हुए नया मोर्चा खोल दिया है.

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 भूपेश बघेल सरकार से नाराज किसान!

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की कांग्रेस  सरकार से धान खरीदी के वादाखिलाफी को लेकर किसानों का आक्रोश अपने चरम पर है. हालात इतने विषम है कि धान खरीदी के मसले पर भूपेश सरकार पूर्णता विफल हो चुकी है. और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित उनका मंत्रिमंडल गांधीजी के बंदरों की तरह आंख बंद करके  मौन बैठा है.

यह बंदर कुछ कहना नहीं चाहते और ज्यादा ही पूछो तो धान के मसले पर सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं.मगर जमीनी हकीकत कुछ और है हमारे संवाददाता ने जांजगीर, बिलासपुर, बेमेतरा और रायपुर के कुछ धान मंडियों का निरीक्षण किया और पाया कि किसानों में 25 सौ रुपए क्विंटल धान खरीदी एलान के बाद जैसी विसंगतियां पैदा की गई हैं भूपेश सरकार के खिलाफ किसानों में भयंकर आक्रोश दिखाई दे रहा है.

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दरअसल, इस मसले पर भूपेश और कांग्रेस दोनों बुरी तरह घिरते चले जा रहे हैं.किसानों से वादे तो कर दिया गए मगर जब निभाने का वक्त आया है तो पैसे नहीं होने के कारण छत्तीसगढ़ की आर्थिक हालात बदतर होने के कारण सरकार के पसीने निकल रहे हैं. भूपेश सरकार का अप्रत्यक्ष रूप से धान के मसले पर “डंडा” चलने लगा है.

गौरतलब है कि डॉ. रमन सिंह सरकार एक-एक दाना धान खरीदने की बात करती थी और खरीदने का प्रयास भी करती थी किसानों के साथ सद व्यवहार के साथ सम्मान के साथ धान खरीदी होती थी मगर अब ऐसा नहीं है. पटवारी के पास चक्कर लगाओ, और तहसील में चक्कर लगाओ, धान समितियों में चक्कर लगाओ. इन सब से किसान बेहद परेशान और  आक्रोश में है.

चीफ सेक्रेटरी उतरे मैदान में

धान खरीदी की हालात इतने बदतर और पतले हैं कि छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव आरपी मंडल को धान खरीदी की शुरुआत के साथ ही धान समितियों पर ग्राउंड पर पहुंचना पड़ा.धान खरीदी केंद्रों का औचक निरीक्षण करने गरियाबंद जिले के झाखरपारा खरीदी केंद्र पहुंचे चीफ सेक्रेटरी आर पी मंडल अव्यवस्थाओं को देखकर कलेक्टर समेत तमाम अधिकारियों पर जमकर फट पड़े. उन्होंने गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए सख्त लहजे में पूछा कि क्या धान खरीदी का क ख ग नहीं जानते हो? मंडल ने खरीदी केंद्र में लापरवाही देखकर चेतावनी भरे अंदाज में दो टूक कहा कि यह बहुत बुरी बात है, यदि धान खरीदी की प्रक्रिया में चूक हुई, तो यह अच्छा नहीं होगा.

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दरअसल चीफ सेक्रेटरी आर पी मंडल, फूड सेक्रेटरी डाक्टर कमलप्रीत सिंह और मार्कफेड की एम डी शम्मी आबिदी के साथ धान खरीदी की समीक्षा करने प्रदेश व्यापी दौरे कर रहे हैं. धान खरीदी में आ रही गड़बड़ियों की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने व्यक्तिगत तौर पर चीफ सेक्रेटरी को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वह प्रदेश का दौरा कर मैदानी हालात से रूबरू हों.

आर पी मंडल ने जिला खाद्य अधिकारी एच आर डडसेना को यह तक कह दिया कि क्या इस गलती के लिए मैं अभी सस्पेंड कर दूं? चीफ सेक्रेटरी ने तमाम खामियों को तुरंत दुरूस्त करने के निर्देश दिए. इस दौरान उन्होंने धान बेचने आए किसानों से भी चर्चा की. चीफ सेक्रेटरी ने किसानों को आश्वस्त किया है कि 15 फरवरी तक होने वाली धान खरीदी में पंजीकृत किसानों से प्रति एकड़ 15 क्विंटल धान लिया जाएगा. पहले व्यवस्था दुरूस्त किया जाएगा, इसके बाद लिमिट बढ़ा दिया जाएगा. कुल जमा यह की किसानों के साथ भूपेश सरकार ने जो अति हो रही है उसे किसान बेहद दुखी एवं नाराज हैं वही मुख्य सचिव आरपी मंडल छत्तीसगढ़ की जड़ों से जुड़े हैं मगर आर्थिक हालात बदतर होने के कारण वह भी स्थिति को संभालते संभालते किसानों के दुख दर्द को दूर नहीं कर पा रहे.

किसान कर रहे चक्का जाम!

धान खऱीदी को लेकर किसानों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है.  छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के लोरमी में किसानों ने धान खरीदी की   नित्य “नई नई नीति” के खिलाफ जोरदार  प्रदर्शन किया . वहीं मंगलवार  को फास्टरपुर थाना क्षेत्र के सबसे बड़े धान खरीदी केंद्र में किसानों का गुस्सा फट पड़ा और सैकड़ों किसान कवर्धा-मुंगेली मुख्यमार्ग पर पिछले दो घण्टे से चक्काजाम कर जमकर प्रदर्शन किया.

किसानों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए भूपेश सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की. किसानों का आरोप है कि सिंगापुर उपार्जन केंद्र में एक दिन में 1900 बोरी से ज्यादा धान की खरीदी एक दिन में नहीं की जा रही है. जबकि इस केंद्र में 1200 किसान पंजीकृत हैं. ऐसे में ढाई माह के भीतर सभी किसानों की धान की खरीदी हो पाना संभव नहीं है. किसानों का यह भी आरोप है कि कई नए किसानों का पंजीयन आवेदन देने के बाद भी नहीं किया गया है और अधिकतर किसानों के पंजीकृत रकबे में भी कटौती की गई है, जिसके चलते वो लोग वास्तविक रकबे के हिसाब से धान नहीं बेच पा रहे हैं.

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किसानों के  नाराजगी और चक्काजाम की ख़बर मिलते ही प्रशासन में हड़कंप मचा गया. मौके पर पहुंचे अधिकारियों के द्वारा लगातार किसानों को समझाइश दी गई लेकिन आक्रोशित किसान अपनी मांगों पर अड़े रहे. किसानों ने अफसरों को दो टूक शब्दों में कहा दिया  कि उनकी मांगो को अनसुना किये जाने पर  समिति केंद्र में धान खरीदी बन्द कर दी जाएगी.

समिति के प्रबंधक भी उखड़ गए!

सरकार धान खरीदी समितियों के प्रबंधक एवं कंप्यूटर ऑपरेटरों के ऊपर भी बिजली गिरा रही है. जांजगीर, कोरबा, रायगढ़ आदि जिलों में तो प्रबंधक और कंप्यूटर ऑपरेटरों के ट्रांसफर कर दिया गया.किसी को यहां बैठा दिया गया,किसी को वहां.सीधे-सीधे इसका मतलब यह है कि भूपेश सरकार और प्रशासन समितियों पर अंकुश रखना चाहता है.मगर इससे यह सवाल पैदा हो गया कि क्या प्रबंधक और कंप्यूटर ऑपरेटर के स्थानांतरण के पीछे का सच क्या है इसके पहले कभी भी ऐसे स्थानातरण किसी ने नहीं किए थे.कलेक्टर और एसपी सीधे धान खरीदी केंद्रों पर निगाह रखे हुए हैं मानो यहां बहुत बड़े अपराध होने की स्थिति बनी हुई हो. निकालने की

धान खरीदी को लेकर सरकार की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है. किसानों की नाराजगी और आक्रोश के बीच समिति प्रबंधकों और कर्मचारियों ने धान खरीदी कार्य से प्रथक करने की मांग की है. उनकी यह नाराजगी सरकार के द्वारा मिल रहे मौखिक आदेशों को लेकर है.

उपपंजीयक सहकारी समिति संस्थाएं को जिला सहकारी कर्मचारी संघ रायगढ़ के अध्यक्ष और सचिव ने पत्र लिख लिखा है. उन्होंने पत्र में सभी 79 सहकारी समिति के प्रबंधकों को धान खऱीदी से अलग करने कहा है. उन्होंने अपनी मांग के पीछे वजह बताई है कि धान खरीदी को लेकर उन्हें लिखित की बजाय मौखिक आदेश दिये जा रहे हैं. जिसकी वजह से धान बेचने आने वाले किसानों और उनके बीच असंतोष की स्थिति बन रही है. पत्र में कहा गया है कि किसान संगठनों द्वारा एकजुट होकर समिति प्रबंधकों के ऊपर दबाव बनाया जा रहा है.

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उन्होंने मांग की है कि धान खरीदी समिति कर्मचारियों को अलग करके उनकी जगह नोडल अधिकारियों और अन्य विभागीय कर्मचारियों को जवाबदेही देते हुए उनसे खरीदी का कार्य करवाया जाए. उन्होंने कहा है कि  उनके द्वारा धान खरीदी का कार्य नहीं किये जाएगा.

लोकवाणी: भूपेश चले रमन के पथ पर!

छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों की डॉक्टर रमन सिंह, भाजपा सरकार के पश्चात कांग्रेस की भूपेश सरकार सत्तासीन हुई है. मगर कुछ फिजूल बेकार के मसले ऐसे हैं जिन पर भूपेश बघेल चाह कर भी  नकार नहीं पा रहे. अगर वह लीक तोड़कर नया काम करते हैं तो पता चलता कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ को नई दिशा दे सकते हैं, उनमें नई ऊर्जा है, कुछ नया करने का ताब है.

इसमें सबसे महत्वपूर्ण है डॉ रमन सिंह का रेडियो और आकाशवाणी से प्रतिमाह छत्तीसगढ़ की आवाम को संदेश देना और बातचीत करना. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी डॉ रमन सिंह की तर्ज पर “लोकवाणी” कार्यक्रम के माध्यम से आवाम से बात करते हैं जो सीधे-सीधे डॉ रमन सिंह की नकल के अलावा कुछ भी नहीं है.

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क्या यह अच्छा नहीं होता कि भूपेश बघेल और तरीका आम जनता से बातचीत करने के लिए  ईजाद करते. क्योंकि लोकवाणी का यह कार्यक्रम पूरी तरह फ्लाप और बेतुका  है. इसकी सच्चाई को जानना हो तो जिस दिन लोकवाणी का कार्यक्रम प्रसारित होता है उसे ग्राउंड पर जाकर, आप अपनी आंखों से देख लें . यह पूरी तरह से एक सरकारी आयोजन बन चुका है शासकीय पैसे पर, जिले के चुनिंदा जगहों पर व्यवस्था करके लोग सुनते हैं. आम आदमी का इससे कोई सरोकार दिखाई नहीं देता.

भूपेश बघेल की ‘लोकवाणी’!

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मासिक रेडियो वार्ता लोकवाणी की पांचवी कड़ी का प्रसारण  आगामी 8 दिसम्बर, रविवार को होगा. व्यवस्था यह बनाई गई है कि लोकवाणी का प्रसारण छत्तीसगढ़ स्थित आकाशवाणी के सभी केन्द्रों, एफ.एम.चैनलों और राज्य के क्षेत्रीय न्यूज चैनलों से सुबह 10.30 से 10.55 बजे तक हो.

जिस तरह डॉ रमन सिंह के  समय में  सरकारी अमला  जनसंपर्क,  संवाद  प्रचार प्रसार करता था,  वैसा ही  नकल पुन:भदेस रुप, ढंग से  अभी किया जा रहा है.  कहा जा रहा है “-उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समाज के हर वर्ग की भावनाओं, सवालों, और सुझावों से अवगत होने तथा अपने विचार साझा करने के लिए लोकवाणी रेडियोवार्ता शुरू की है.”

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लोकवाणी में इस बार का विषय ‘आदिवासी विकास: हमारी आस‘ रखा गया है. अच्छा होता लोकवाणी के नाम पर जो पैसा समय बर्बादी हो रही है और हाथ कुछ नहीं आ रहा, उससे अच्छा होता भूपेश बघेल अचानक कहीं पहुंच जाते और आम जन से चुपचाप बात कर निकल जाते!ऐसे मे उन्हें पता चल जाता कि जमीनी हकीकत क्या है. किसान, गरीब, मजदूर और मध्यमवर्ग का आदमी उनसे क्या कहना चाहता है उसे समझ कर  और बेहतरीन तरीके से छत्तीसगढ़ को आगे ले जा सकते हैं.

श्रेष्ठतम सलाहकार कहां है?

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री शपथ लेने के पश्चात जो पहला काम किया था उनमें उनके संघर्ष के समय के सहयोगी  पत्रकार  विनोद वर्मा, रुचिर गर्ग  जैसे बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को “मुख्यमंत्री का सलाहकार” नियुक्त करना था. इस सब के बाद ऐसा महसूस हुआ था कि डॉक्टर रमन सरकार की अपेक्षा भूपेश सरकार जमीन से ज्यादा जुड़ी होगी.

आम आदमी के जीवन संघर्ष, त्रासदी को भूपेश बघेल की सरकार संवेदनशीलता के साथ समझेगी और दूर करेंगी. जिस की सबसे पहली पहल किसानों के कर्ज माफी और 25 सौ रुपए क्विंटल धान खरीदी को लेकर की भी गई. मगर इसके पश्चात और इसके परिदृश्य में देखा जाए तो छत्तीसगढ़ के हालात अच्छे नहीं हैं, इस संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला के कृषि मंडी के कुछ किसानों से बात की, किसानों ने बताया कि” हालात ऐसे हैं कि जबरा मारता है और रोने भी नहीं देता” जैसे हालात छत्तीसगढ़ में किसानों के साथ  बन चुके हैं.

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जो धान पहले पंद्रह सौ 1600 रुपये कुंटल  में गांव में बिक जाता था अब पुलिसिया प्रशासनिक एक्शन के कारण कोई खरीदने को तैयार नहीं है . यह हालात देखकर लगता है कहां है मुख्यमंत्री महोदय के सलाहकार, कहां है अभी एक डेढ़ वर्ष पूर्व  के संघर्षकारी भूपेश बघेल, टी एस सिंह देव और उनकी टीम.

हे राम! देखिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दो नावों की सवारी

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस, भाजपा के पद चिन्हों पर चलने को आतुर दिखाई दे रही है. शायद यही कारण है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कैबिनेट ने भाजपा के राम राम जाप को बड़ी शिद्दत के साथ अंगीकार करने में कोताही नहीं की है. और यह जाहिर करना चाहती है, कि राम तो हमारे हैं और हम राम के हैं. कांग्रेस सरकार को, राम मय दिखाने की सोच के तहत, छत्तीसगढ़  सरकार ने  “राम के वनगमन पथ” को सहेजते हुए इन स्थलों का पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने का ऐलान किया है, जो इसी सोच का सबब है.

21 नवंबर 2019  को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई मंत्रीपरिषद की बैठक में जो  निर्णय लिया गया, वह एक तरह से भाजपा के बताए  पद चिन्हों  पर चलना है.संपूर्ण कवायद पर निगाह डालें तो पहली ही दृष्टि में यह स्पष्ट हो जाता है कि भूपेश बघेल सरकार की सोच कैसी पंगु है. सबसे बड़ी बात यह है कि भगवान राम करोड़ों वर्ष पूर्व हुए थे. यह मान्यताएं हैं की छत्तीसगढ़ जो कभी  “दंडकारण्य” था, यहां से राम ने गमन किया था. दरअसल, यह सिर्फ और सिर्फ किवंदती एवं मान्यताएं हैं. इसका कोई वैज्ञानिक आधार अभी तक जाहिर नहीं हुआ है. ऐसे में क्या यह  सारी कवायद लकीर का फकीर बनना नहीं होगा. इसके अलावा भी अन्य कई पेंच है जिसका सटीक जवाब कांगेस के पास नहीं होगा, देखिए यह खास  रिपोर्ट-

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 राम के संदर्भ में मान्यताएं बनी आधार

आइए, अब जानते हैं, क्या है  मान्यताएं और “श्रीराम का वनगमन पथ” ….कहा जाता है छत्तीसगढ़ का इतिहास प्राचीन है. त्रेतायुगीन छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कौसल एवं दण्डकारण्य के रूप में विख्यात था. दण्डकारण्य में भगवान श्रीराम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है. शोधकर्ताओं की शोध किताबों से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रभु श्रीराम द्वारा अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ में व्यतीत किया गया था.

छत्तीसगढ़ के लोकगीत में माता सीता जी की पहचान कराने की मौलिकता एवं वनस्पतियों के वर्णन मिलते हैं.  श्रीराम द्वारा उत्तर भारत से दक्षिण में प्रवेश करने के बाद छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर चैमासा व्यतीत करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया गया था. अतः छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है. मान्यता है छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के भरतपुर तहसील में नदी से होकर जनकपुर नामक स्थान से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सीतामढ़ी पर चैका नामक स्थल से  श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया.

इस राम वनगमन पथ के विषय पर शोध का कार्य राज्य में स्थित संस्थान छत्तीसगढ़ स्मिता प्रतिष्ठान रायपुर द्वारा किया गया है। स्थानीय साहित्यकार मनु लाल यादव द्वारा रामायण किताब का प्रकाशन किया गया तथा इसी विषय पर छत्तीसगढ़ पर्यटन में राम वनगमन पथ के नाम से पुस्तक का प्रकाशन किया गया है. श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में 10 वर्षों के वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया था तथा इनमें 51 स्थान ऐसे हैं जहां  श्रीराम ने भ्रमण के दौरान कुछ समय व्यतीत किया था.

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अब इस सब को लेकर के सरकार द्वारा योजना बनाई जा रही है कि लोग आ कर प्रभु राम का वन गमन क्षेत्र का भ्रमण करेंगे जो सीधे-सीधे उन क्षेत्रों के प्राकृतिक और नैसर्गिक भाव को सरकार द्वारा  विकृत  करना  ही होगा. अच्छा हो, प्राचीन मान्यता के अनुरूप जैसी स्थिति है, वही बनी रहे, वहां किसी भी तरह की छेड़-छाड़, नव निर्माण भारतीय पुरातत्व अधिनियम के तहत भी अवैध माना जाएगा.

 भूपेश बघेल भी जपने लगे राम राम!

शायद कांग्रेस पार्टी ने यह मान लिया है कि जिस तरह भाजपा ने राम राम जप कर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी नैया पार लगाई, अब कांग्रेस को भी ऐसा ही करना होगा. अब विकास  का मुद्दा महत्वहीन हो चुका है,अब तो कुर्सी पाना है, तो बस राम राम जप लो. आगामी समय में छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव एवं पंचायत चुनाव हैं. ऐसे में राम गमन के मसले को बेतरह से उठाना यह इंगित करता है कि भूपेश सरकार भी छत्तीसगढ़ की आवाम को भगवान राम के नाम पर आकर्षित करना चाहती है. और अपना वोट बैंक और भी ज्यादा मजबूत बनाने के लिए प्रयत्नशील है.

यह होगी विकास की योजना 

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा  राम वनगमन पथ को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने की कार्य योजना का आगाज कर दिया गया है.इसका उद्देश्य राज्य में आने वाले पर्यटकों के साथ-साथ प्रदेश के लोगों को भी इन राम वनगमन मार्ग स्थलों से परिचित कराना है. इन स्थलों का भ्रमण करने के दौरान पर्यटकों को सुविधा हो सके, इस लिहाज से योजना तैयारी की जा रही है.

राज्य सरकार द्वारा बजट उपलब्ध कराया जाएगा. साथ ही भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की योजनाओं से भी राशि प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा.इन स्थलों का राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार भी किया जाएगा. पहुंच मार्ग के साथ पर्यटक सुविधा केंद्र, इंटरप्रिटेशन सेंटर, वैदिक विलेज, पगोड़ा, वेटिंग शेड, पेयजल व शौचालय आदि मूलभूत सुविधाएं विकसित की जाएंगी. बताया गया है विकास कार्य शुभारंभ चंद्रपुरी में स्थित माता कौशल्या के मंदिर से किया जाएगा.

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विकास योजना तैयार करने के पूर्व विशेषज्ञों का एक दल सर्वे करेगा. इस तरह भूपेश बघेल ने एक तरह से इस संपूर्ण परियोजना को हरी झंडी दे दी है मगर यह धरातल पर कब कैसे उतरेगा इस पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है क्योंकि सरकारी योजनाएं कागजों पर और अखबारों की सुर्खियों में तो आकर्षित करती हैं मगर हकीकत में उनकी दशा बहुत दयनीय होती है इसका सच जानना हो तो डॉक्टर रमन के कार्यकाल के पर्यटन विकास के ढोल को देखना समझना काफी होगा करोड़ों, अरबों रुपए कि कैसे बंदरबांट बात हो गई और फाइलें बंद पड़ी हैं .

हास्यास्पद पहल- 11 लाख का पुरस्कार!

राम गमन और भगवान राम के नाम पर आप कुछ भी कर ले, सब माफ है. शायद यही सोच भाजपा के बाद अब कांग्रेस भी अपनाती चली जा रही है.

अब वह प्रगतिशील महात्मा  गांधी और जवाहरलाल  नेहरू की कांग्रेस नहीं है. आज की कांग्रेस शायद संघ की हिंदुत्ववादी सोच के पीछे चलने वाली दकियानूसी कांग्रेस बन चुकी है. यही कारण है कि कांग्रेस के पूर्व विधायक और दूधाधारी मठ के प्रमुख महंत राम सुंदर दास ने इसी तारतम्य में यह घोषणा कर दी है कि माता कौशल्या का जन्मदिन की गणना करके जो बताएगा, उसे वह स्वयं अपनी ओर से 11 लाख रुपए का पुरस्कार,सम्मान राशि देंगे.

यही नहीं, भूपेश बघेल के नेतृत्व में कौशल्या माता के मंदिर का जीर्णोद्धार का काम भी शुरू हो गया है. क्योंकि उसके लिए पैसा सरकार नहीं दे सकती, सुप्रीम कोर्ट की बंदिशें है, इसलिए विधायकों ने दो लाख  बीस हजार रुपए मुख्यमंत्री को अपनी ओर से दिया है की मंदिर बनवाया जाए! अर्थात सीधी सी बात है जो काम भाजपा नहीं कर सकी जो काम हिंदुत्ववादी संगठन नहीं कर सके, अब वह अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता करेंगे और यह संदेश देंगे की, हे जनता!आओ हम भी राम भक्त हैं, हमने भी माता कौशल्या का मंदिर बनाया है, हमें भी वोट दो.

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चाहे कुपोषण में बच्चे मरते रहे, आंगनबाड़ियों में स्कूलों में पहुंचने वाला भोजन, खाद्यान्न की लूट चलती रहे, सफाई ना हो, सड़कें न बने, बिजली पैदा ना हो, मगर वोट हमें  ही देना. अगर भूपेश बघेल सरकार और कांग्रेस पार्टी को यह लगता है कि राम नाम जपने से कांग्रेस पार्टी का और प्रदेश का कल्याण हो जाएगा तो राम वन गमन के प्रपंच से अच्छा होगा क्यों न छत्तीसगढ़ का नाम ही बदल दिया जाए और प्राचीन “दंडकारण्य”  रख दिया जाए. इससे कांग्रेस पार्टी की साख और बढ़ जाएगी कि देखो इनमे  भगवान राम के प्रति कितनी श्रद्धा आ गई है!

मोदी को आंख दिखाते, चक्रव्यूह में फंसे भूपेश बघेल!

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सत्तासीन होने के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. विधानसभा चुनाव के परिणाम स्वरुप मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की कमान संभाल ली और इसके साथ ही शुरू हो गया छत्तीसगढ़ सरकार का केंद्र सरकार के साथ आंख मिचौली का खेल. भूपेश बघेल बारंबार एहसास कराते हैं कि वे प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की परवाह नहीं करते.

मौके मिलते ही  उनके सामने  सीना तान कर खड़े हो जाते हैं. और फिर जब हकीकत का एहसास होता है तो हाथ जोड़ मुस्कुराते हुए गुलाब पेश करते हैं . यही सब कुछ इन दिनों धान खरीदी की महत्वाकांक्षी योजना के संदर्भ में भी दिखाई दे रहा है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार यह वादा करके सत्तासीन हुई थी किसानों से 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल धान खरीदी जाएगी.

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इस बिना पर सत्ता पर कांग्रेस भाग्यवश काबिज भी हो गई. मगर इसके चलते छत्तीसगढ़ सरकार की आर्थिक हालत खस्ता हो चुकी है, अब नवंबर में धान खरीदी का आगाज होना था प्रत्येक वर्ष 1 नवंबर अथवा 15 नवंबर से धान खरीदी प्रारंभ हो जाया करती थी. मगर सरकार के संशय के कारण विपरीत स्थितियों के कारण, भूपेश सरकार ने पहली बार धान खरीदी को एक माह आगे बढ़ाते हुए 1 दिसंबर से खरीदी करने का ऐलान किया है. जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की हालत कितनी पतली हो चली है.

भूपेश सरकार अब केंद्र सरकार के समक्ष अनुनय विनय  कर रही है कि प्रभु हमारी रक्षा करो…!

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मंत्री आए सामने! दिखे चिंतातुर…

धान खरीदी के मसले पर आयोजित मंत्रिमंडल की उपसमिति की बैठक में 15 नवंबर से प्रस्तावित धान खरीदी के तय समय को बदल दिया गया. अब धान खरीदी का आगाज़  1 दिसंबर से होगी. इस बार 85 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा गया है.

बैठक के बाद खाद्य  मंत्री अमरजीत भगत और वन मंत्री मो. अकबर ने ने कहा कि, कांग्रेस पार्टी ने चुनाव से पहले  वादा किया था, सरकार उस वादे को पूरा करेगी. हम 2500 रुपये कीमत के साथ ही किसानों से धान खरीदेंगे. पीडीएस के लिए 25 लाख मीट्रिक टन चावल लगता है और इसके लिए 38 लाख मीट्रिक टन धान की जरूरत होती है. बाकी शेष जो धान खरीदी का लक्ष्य है उसकी खरीदी को लेकर चर्चा हुई है. केंद्र सरकार से हमने आग्रह किया है.

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हमनें केंद्र सरकार से कहा है कि हम पूरा धान खरीदना चाहते हैं, जिस तरह से पूर्व में 24 लाख मीट्रिक टन उसना चावल जमा करने की अनुमति (पूर्ववर्ती  डाक्टर रमन सिंह सरकार को)  मिली थी, उसी तरह से इस बार भी केंद्र हमें अनुमति प्रदान करे. हमें उम्मीद केंद्र सरकार अनुमति मिल जाएगी. हम अपना वादा पूरा करेंगे. खरीदी को लेकर किसी तरह से दिक्कत नहीं आएगी. छत्तीसगढ़ सरकार  के मंत्रियों ने बड़ी चतुराई से धान खरीदी कि लेट  लतीफी को, मौसम पर डाल दिया और कहा

इस बार बेमौसम बारिश से धान के पैदावारी में देरी हुई है. लिहाजा खरीदी की शुरुआती समय-सीमा को आगे बढ़ा दिया गया है. इस बार 1 दिसंबर से धान खरीदी होगी. ताकि खरीदी केंद्रों तक किसान धान लेकर व्यवस्थित रूप से पहुँच सके. खरीदी की तैयारी करने के निर्देश विभाग को दे दिए गए हैं. खरीदी और संग्रहण केंद्रों में व्यापक तैयारी रखी जाएगी. किसानों को परेशानी न हो इस बात का विशेष ध्यान रखने को कहा गया है.

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मुश्किल मे है भूपेश सरकार!

छत्तीसगढ़  सरकार ने धान खरीदी को लेकर मुश्किलों में घिरने के बाद भी किसानों को बड़ा आश्वासन  दिया है. राज्य सरकार ने कहा है कि किसी भी सूरत में राज्य सरकार किसानों के धान खऱीदने से पीछे नहीं हटेगी. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि हर परिस्थिति में किसानों के धान खरीदी जाएगी.

कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने केंद्र से अनुनय विनय करते हुए जो कहा है वह गौरतलब है -” छत्तीसगढ़ के किसान भी भारत के ही किसान हैं. लिहाज़ा केंद्र सरकार को छत्तीसगढ़ के चावल खरीदने चाहिए.” उन्होंने कहा कि “उम्मीद है कि प्रधानमंत्री छत्तीसगढ़ के किसानों को अपना किसान मानेंगे.” चौबे ने कहा कि -“जब राज्य में भाजपाई सरकार थी तब उन्होंने भी 300 रुपये बोनस दिया था.

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तब केंद्र ने चावल भी खरीदे थे.” उन्होंने कहा-”  बोनस छत्तीसगढ़ की सरकार दे रही है. लिहाज़ा उसे( केंद्र को) चावल खरीदना चाहिए.” सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नवीन परिस्थितियों में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ने

बोनस देने की सूरत में छत्तीसगढ़ से चावल खरीदने से मना कर दिया है. पिछले साल सरकार ने करीब 81 लाख मीट्रिक टन चावल किसानों से खऱीदा था. जिसमें से मिलिंग के बाद 24 लाख मीट्रिक टन चावल केंद्र ने अपने पूल में जमा किया था. इस बार केंद्र सरकार ने किसानों को बोनस देने की सूरत में चावल लेने से मना कर दिया है. जिसे लेकर राज्य सरकार लगातार कोशिश कर रही है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तीन बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख चुके हैं. राज्यपाल अनुसुइया उईके छत्तीसगढ़ के राजभवन में केंद्र सरकार की प्रतिनिधि है,भूपेश  सरकार ने अनुरोध कर के राज्यपाल से भी केंद्र को,भूपेश सरकार के पक्ष में धान खरीदी का पत्र लिखवा कर अपनी पीठ ठोंक ली है.

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ना खाते बन रहा ना उगलते!

हालात छत्तीसगढ़ में निरंतर विषम बनते जा रहे हैं, एक तरफ भूपेश सरकार केंद्र सरकार को आंख दिखाने से नहीं चूकती,  दूसरी तरफ भरपूर मदद भी चाहती है. परिणाम स्वरूप केंद्र की मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ को तवज्जो देना बंद कर दिया है. इन्हीं परिस्थितियों के कारण छत्तीसगढ़ के विकास को मानो  ब्रेक लग गया है. हालात निरंतर शोचनीय होते चले जा रहे हैं. एक डौक्टर रमन का छत्तीसगढ़ था, जहां हर विभाग में विकास तीव्र  गति से दौड़ रहा था.

रुपए पैसों की कभी कमी नहीं हुआ करती थी मगर भूपेश सरकार में जहां सड़कें गड्ढों में बदल गई हैं वही गोठान शुभारंभ और छुट्टी वाला बाबा बनकर भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की गली कूचे में भटक कर रह गए हैं.अब धान खरीदी का ही मसला लें, भूपेश सरकार मानो एक चक्रव्यू में फंस चुकी है. धान खरीदी के मसले पर सत्ता में वापसी के बाद केंद्र सरकार की मदद नहीं मिलने से भूपेश सरकार पसीना पसीना है. केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान और प्रधानमंत्री मोदी तक धान खरीदी के लिए सहयोग की कामना के साथ भूपेश बघेल सरकार सरेंडर है. मगर जिस मिट्टी के बने हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,उससे यह प्रतीत होता है कि वह छत्तीसगढ़ सरकार की कोई मदद करने के मूड में नहीं है.

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