साल 1972 के बैच के आईपीएस एसआर दारापुरी पुलिस की सर्विस से साल 2003 में आईजी के पद से रिटायर हुए थे. वे अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की इंदिरानगर कालोनी में रहते हैं.

पुलिस से रिटायर होने के बाद एसआर दारापुरी ने सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक पार्टी के जरीए जनता की सेवा का काम करना शुरू किया.

उन की पहचान दलित चिंतक के रूप  में भी है.

76 साल के एसआर दारापुरी आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता  हैं. नागरिकता कानून के विरोध प्रदर्शन में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.

14 दिन जेल में रहने के बाद वे जेल से छूट कर वापस आए और कहा, ‘‘सरकार के दमन का हमारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ है. हम ने नागरिकता कानून का पहले भी विरोध किया था, आज भी कर रहे हैं और आने वाले कल में भी करेंगे. हम ने पहले भी हिंसा नहीं की, आज भी नहीं कर रहे और आगे भी नहीं करेंगे. शांतिपूर्ण तरीके से हम अपना विरोध दर्ज कराते रहेंगे.’’

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गैरकानूनी थी हिरासत

एसआर दारापुरी अपनी गिरफ्तारी पर जानकारी देते हुए कहते हैं, ‘‘5 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के खिलाफ हजरतगंज पर बनी डाक्टर अंबेडकर की प्रतिमा के नीचे धरना दिया गया था. वहां बहुत सारे सामाजिक संगठनों के लोग थे. वहां पर 19 दिसंबर, 2019 को नागरिकता कानून के विरोध की घोषणा हुई थी.

‘‘बाद में हमारे इस अभियान में दूसरे कई राजनीतिक लोग भी जुड़ गए थे.

19 दिसंबर, 2019 को विरोध प्रदर्शन को देखते हुए मुझे अपने घर में पुलिस ने नजरबंद कर दिया था.

‘‘19 दिसंबर की सुबह 7 बजे जब मैं अपने घर से टहलने के लिए सामने बने पार्क में गया तो गाजीपुर थाने के पुलिस के 2 सिपाही वहां बैठे मिले. इस की मुझे पहले से कोई जानकारी नहीं थी. जब मैं वापस आया और सिपाहियों से पूछा तो बोले कि हमें थाने से यहां ड्यूटी पर भेजा गया है.

‘‘तकरीबन 2 घंटे के बाद सीओ गाजीपुर और एसओ गाजीपुर यहां जीप से आए. उस समय मुझे यह बताया कि घर से बाहर नहीं जाना है. तब मैं ने घर से अपने हाउस अरैस्ट होने और नागरिकता कानून के विरोध का फोटो अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया.

‘‘शाम के तकरीबन 5 बजे मुझे नागरिकता कानून के विरोध और हिंसा की खबरें मिलीं तो मैं ने अपने कुछ साथियों से पीस कमेटी बना कर काम करने के लिए कहा, जिस में यह तय हुआ कि शनिवार को हम लोग प्रशासन से मिल कर इस काम को अंजाम देंगे.

‘‘20 दिसंबर की सुबह 11 बजे पुलिस मेरे घर आई. सीओ और एसओ गाजीपुर ने मुझे थाने चलने के लिए कहा. मैं ने उन से पूछा कि क्या मुझे गिरफ्तार किया जा रहा है? तो वे बोले कि नहीं, आप को थाने चलना है.

‘‘मैं अपने साधारण कपड़ों में ही पुलिस की जीप में बैठ कर थाने चला आया. मुझे लगा कि शाम तक वापस छोड़ देंगे. मैं दिनभर गाजीपुर थाने में बैठा रहा. शाम के तकरीबन 6 बजे मुझे हजरतगंज थाने चलने के लिए बोला गया.

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‘‘मैं पुलिस के साथ हजरतगंज थाने आ गया. वहां मैं ने फिर अपनी गिरफ्तारी की बात पूछी तो इंस्पैक्टर हजरतगंज ने कहा कि 39 पहले हो चुके हैं, आप 40वें हैं. उम्र में बड़ा होने या पहले पुलिस में रहने के चलते मुझे बैठने के लिए कुरसी दे दी गई थी, पर खाने के लिए कुछ नहीं दिया गया.

‘‘रात को तकरीबन 11 बजे मुझे रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिए रिवर बैंक कालोनी ले जाया गया. वहां मजिस्ट्रेट के सामने मैं ने पूरी बात बताई. पुलिस ने मुझ पर हिंसा की साजिश रचने की धारा 120 बी का मुकदमा कायम किया था. पुलिस तथ्यों और अपनी बात से मजिस्ट्रेट को सहमत नहीं कर पाई. ऐसे में मजिस्ट्रेट ने रिमांड नहीं दी.’’

नहीं दिया कंबल

‘‘रात तकरीबन 12 बजे मुझे वापस हजरतगंज थाने लाया गया. उस समय तक मुझे सर्दी लगने लगी थी. मैं साधारण कपड़ों में था. मैं ने कंबल मांगा, तो पुलिस ने नहीं दिया.

‘‘मैं ने किसी तरह से घर पर फोन कर बेटे को कंबल लाने के लिए कहा, तो वह डरा हुआ था. उस को यह जानकारी मिल रही थी कि जो भी ऐसे लोगों से मिलने जा रहा है, उस को पकड़ा जा रहा है. इस डर के बाद भी वह किसी तरह से कंबल ले कर घर से थाने आया.

‘‘इस दौरान मुझे खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया गया था. मेरे पास पानी की बोतल थी, वही पी कर प्यास बुझा रहा था. पुलिस ने मनगढं़त लिखापढ़ी की और बताया कि रिमांड मजिस्ट्रेट मिले नहीं थे. फिर मेरी गिरफ्तारी को घर से न दिखा कर महानगर के किसी पार्क से होना दिखाया.

‘‘21 दिसंबर की शाम मुझे जेल भेजा गया. जेल में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने मुझे पेश किया गया. जेल में जाने के समय रात के 9 बज गए थे. मैं रात को भूखा ही सो गया. 22 दिसंबर की सुबह मुझे जेल में नाश्ता मिला.

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‘‘तकरीबन 37 घंटे मुझे पुलिस ने बिना किसी तरह के खाने के रखा. मेरा 161 का बयान नहीं कराया गया.

‘‘जेल में मुझे तमाम ऐसे लोग मिले, जिन को लखनऊ में दंगा फैलाने के आरोप में पकड़ा गया था. ऐसे लोगों को शारीरिक प्रताड़ना की भी जानकारी मिली.

‘‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दंगा करने वालों से बदला लेने के बयान के बाद पुलिस बेहद क्रूर हो गई. हिंसा में पकड़े गए लोगों को हजरतगंज थाने से अलग ले जा कर मारा गया.

‘‘एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि इन को इतना मारो कि पीठ डेढ़ इंच से कम सूजी नहीं होनी चाहिए. जेल में दिखे कई लोगों के चेहरे ऐसे सूजे थे कि वे पहचान में नहीं आ रहे थे.’’

निचली अदालत से जमानत खारिज होने के बाद एसआर दारापुरी को सैशन कोर्ट से जमानत मिली.

एसआर दारापुरी जितने दिनों जेल में थे, उन की बीमार पत्नी घर पर थीं. इस बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी उन से मिलने उन के घर भी गई थीं.

इन की मिलीभगत

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘हमारा नागरिकता कानून का विरोध शांतिपूर्ण था. इस को दबाने के लिए हिंसा फैलाई गई. सदफ जफर नामक महिला फेसबुक पर लाइव करते पुलिस से कह रही थीं कि इन लोगों को पकड़ो. पुलिस ने उन को नहीं पकड़ा. थाने में लाने के बाद भी कुछ लोगों को छोड़ दिया गया.

‘‘जिन के बारे में सुना गया कि वे लोग भाजपा समर्थन के चलते छोड़ दिए गए. ऐसे में साफ है कि पुलिस की मिलीभगत से भाजपा और आरएसएस के लोगों ने यह काम कराया.’’

एसआर दारापुरी लखनऊ पुलिस को खुलेआम चुनौती देते हुए कहते हैं, ‘‘अगर पुलिस ने सही लोगों को पकड़ा है तो 19 दिसंबर के दंगे के सारे वीडियो फुटेज सार्वजनिक करे. यह दिखाए कि जिन लोगों को पकड़ा है, ये वही लोग हैं जो दंगा फैलाने में शामिल थे. पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए.

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‘‘यही नहीं, लखनऊ की हिंसा में मारा गया वकील नामक आदमी पुलिस की गोली से ही मरा है. अगर ऐसा नहीं है तो पुलिस वीडियो के जरीए यह क्यों नहीं दिखाती कि वह किस की गोली से मरा है. मरने वाले का परिवार पुलिस के दबाव में है.’’

एसआर दारापुरी कहते हैं, ‘‘यह सरकार का एक दमनकारी कदम है, जो मानवाधिकार, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है. यह तानाशाही सरकार है. यह तो खुला दमन है. योगी राज में पुलिस पूरी तरह से क्रूर और हत्यारी हो चुकी है. इस सरकार के दौरान पुलिस के ऐनकाउंटर में 95 फीसदी मामले झूठे हैं. पुलिस जब घटना के दिन वाले वीडियो जारी करेगी, तो सच खुद सामने आ जाएगा.’’

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