जिंदगी का गणित: भाग 2

‘‘अभी आई,’’ कह कर वह बच्चे को पालने में लिटा फिर वहां आ गई. परंतु अब राहुल बाहर जाने को उद्यत था. उसे बाहर फाटक तक छोड़ने गई तो उस ने पलट कर रमा को हाथ जोड़ कर नमस्कार किया और हौले से मुसकरा कर हिचकते हुए कहा, ‘‘यह तो अशिष्टता ही होगी कि पहली मुलाकात में ही मैं आप से इतनी छूट ले लूं, लेकिन कहना भी जरूरी है…’’

रमा एकाएक घबरा गई, ‘बाप रे, यह क्या हो गया. क्या कहने जा रहा है राहुल, कहीं मेरे मन की कमजोरी इस ने भांप तो नहीं ली?’

रमा अपने भीतर की कंपकंपी दबाने के लिए चुप ही रही. राहुल ही बोला, ‘‘असल में मैं अपने एक दोस्त के साथ रहता हूं. अब उस की पत्नी उस के पास आ कर रहना चाहती है और वह परेशान है. अगर आप की सिफारिश से मुझे कोई बरसाती या कमरा कहीं आसपास मिल जाए तो बहुत एहसान मानूंगा. आप तो जानती हैं, एक छड़े व्यक्ति को कोई आसानी से…’’ वह हंसने लगा तो रमा की जान में जान आई. वह तो डर ही गई थी कि पता नहीं राहुल एकदम क्या छूट उस से ले बैठे.

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‘‘शाम को अपने पति से इस सिलसिले में भी बात करूंगी. इसी इमारत में ऊपर एक छोटा सा कमरा है. मकान मालिक इन्हें बहुत मानता है. हो सकता है, वह देने को राजी हो जाए. परंतु खाना वगैरह…?’’

‘‘वह बाद की समस्या है. उसे बाद में हल कर लेंगे,’’ कह कर वह बाहर निकल गया. गहरे ऊहापोह और असमंजस के बाद आखिर रमा ने अपने पति विनोद से फिर नौकरी करने की बात कही. विनोद देर तक सोचता रहा. असल परेशानी बच्चे को ले कर थी.

‘‘अपनी मां को मैं मना लूंगी. कुछ समय वे साथ रह लेंगी,’’ रमा ने सुझाव रखा.

‘‘देख लो, अगर मां राजी हो जाएं तो मुझे एतराज नहीं है,’’ वह बोला, ‘‘उमेशजी हमारे जानेपरखे व्यक्ति हैं. उन की कंपनी में नौकरी करने से कोई परेशानी और चिंता नहीं रहेगी. फिर तुम्हारी पसंद का काम है. शायद कुछ नया करने को मिल जाए.’’

राहुल के लिए ऊपर का कमरा दिलवाने की बात जानबूझ कर रमा ने उस वक्त नहीं कही. पता नहीं, विनोद इस बात को किस रूप में ले. दूसरे दिन वह बच्चे के साथ मां के पास चली गई और मां को मना कर साथ ले आई. विनोद भी तनावमुक्त हो गया.

रमा ने फिर से नौकरी आरंभ कर दी. पुराने कर्मचारी उस की वापसी से प्रसन्न ही हुए, पर राहुल तो बेहद उत्साहित हो उठा, ‘‘आप ने मेरी बात रख ली, मेरा मान रखा, इस के लिए किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं?’’

रमा सोचने लगी, ‘यह आदमी है या मिसरी की डली, कितनी गजब की चाशनी है इस के शब्दों में. कितने भी तीखे डंक वाली मधुमक्खी क्यों न हो, इस डली पर मंडराने ही लगे.’ एक दिन उमेशजी ने कहा था, ‘कंपनी में बहुत से लोग आएगए, पर राहुल जैसा होनहार व्यक्ति पहले नहीं आया.’

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‘लेकिन राहुल आप की डांटफटकार से बहुत परेशान रहता है. उसे हर वक्त डर रहता है कि कहीं आप उसे कंपनी से निकाल न दें,’ रमा मुसकराई थी.

‘तुम्हें पता ही है, अगर ऐसा न करें तो ये नौजवान लड़के हमारे लिए अपनी जान क्यों लड़ाएंगे?’ उमेशजी हंसने लगे थे.

‘‘राहुल, एक सूचना दूं तुम्हें?’’ एक दिन अचानक रमा राहुल की आंखों में झांकती हुई मुसकराने लगी तो राहुल जैसे निहाल ही हो गया था.

‘‘अगर आप ने ये शब्द मुसकराते हुए न कहे होते तो मेरी जान ही निकल जाती. मैं समझ लेता, साहब ने मुझे कंपनी से निकाल देने का फैसला कर लिया है और मेरी नौकरी खत्म हो गई है.’’

‘‘आप उमेशजी से इतने आतंकित क्यों रहते हैं? वे तो बहुत कुशल मैनेजर हैं. व्यक्ति की कीमत जानते हैं. आदमी की गहरी परख है उन्हें और वे आप को बहुत पसंद करते हैं.’’

‘‘क्यों सुबहसुबह मेरा मजाक बना रही हैं,’’ वह हंसा, ‘‘उमेशजी और मुझे पसंद करें? कहीं कैक्टस में भी हरे पत्ते आते हैं. उस में तो चारों तरफ सिर्फ तीखे कांटे ही होते हैं, चुभने के लिए.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है,’’ वह बोली, ‘‘वे तुम्हें बहुत पसंद करते हैं.’’

‘‘उन्हें छोडि़ए, रमाजी, अपने को तो अगर आप भी थोड़ा सा पसंद करें तो जिंदगी में बहुतकुछ जैसे पा जाऊं,’’ उस ने पूछा, ‘‘क्या सूचना थी?’’

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‘‘हमारे ऊपर वाला वह छोटा कमरा आप को मिलना तय हो गया है. 500 रुपए किराया होगा, मंजूर…?’’ रमा ने कहा तो राहुल ने अति उत्साह में आ कर उस का हाथ ही पकड़ लिया, ‘‘बहुतबहुत…’’ कहताकहता वह रुक गया.

उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो तुरंत हाथ छोड़ दिया, ‘‘क्षमा करें, रमाजी, मैं सचमुच कमरे को ले कर इतना परेशान था कि आप अंदाजा नहीं लगा सकतीं. कंपनी के काम के बाद मैं अपना सारा समय कमरा खोजने में लगा देता था. आप ने…आप समझ नहीं सकतीं, मेरी कितनी बड़ी मदद की है. इस के लिए किन शब्दों में…’’

‘‘कल से आ जाना,’’ रमा ने झेंपते हुए कहा.

किसीकिसी आदमी की छुअन में इतनी बिजली होती है कि सारा शरीर, शरीर का रोमरोम झनझना उठता है. रगरग में न जाने क्या बहने लगता है कि अपनेआप को समेट पाना असंभव हो जाता है. पति की छुअन में भी पहले रमा को ऐसा ही प्रतीत होता था, परंतु धीरेधीरे सबकुछ बासी पड़ गया था, बल्कि अब तो पति की हर छुअन उसे एक जबरदस्ती, एक अत्याचार प्रतीत होती थी. हर रात उसे लगता था कि वह एक बलात्कार से गुजर रही है. वह जैसे विनोद को पति होने के कारण झेलती थी. उस का मन उस के साथ अब नहीं रहता था. यह क्या हो गया है, वह खुद समझ नहीं पा रही थी.

मां से अपने मन की यह गुत्थी कही थी तो वे हंसने लगीं, ‘पहले बच्चे के बाद ऐसा होने लगता है. कोई खास बात नहीं. औरत बंट जाती है, अपने आदमी में और अपने बच्चे में. शुरू में वह बच्चे से अधिक जुड़ जाती है, इसलिए पति से कटने लगती है. कुछ समय बाद सब ठीक हो जाएगा.’

‘पर यह राहुल…? इस की छुअन…?’ रमा अपने कक्ष में बैठी देर तक झनझनाहट महसूस करती रही.

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राहुल ऊपर के कमरे में क्या आया, रमा को लगा, जैसे उस के आसपास पूरा वसंत ही महकने लगा है. वह खुशबूभरे झोंके की तरह हर वक्त उस के बदन से जैसे अनदेखे लिपटता रहता.

वह सोई विनोद के संग होती और उसे लगता रहता, राहुल उस के संग है और न जाने उसे क्या हो जाता कि विनोद पर ही वह अतिरिक्त प्यार उड़ेल बैठती.

नींद से विनोद जाग कर उसे बांहों में भर लेता, ‘‘क्या बात है मेरी जान, आज बहुत प्यार उमड़ रहा है…’’

वह विनोद को कुछ कहने न देती. उसे बेतहाशा चूमती चली जाती, पागलों की तरह, जैसे वह उस का पति न हो, राहुल हो और वह उस में समा जाना चाहती हो.

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जिंदगी का गणित: भाग 3

अब वह मन ही मन राहुल से बोलती, बतियाती रहती, जैसे वह हर वक्त उस के भीतरबाहर रह रहा हो. उस के रोमरोम में बसा हुआ हो. वह अब जो भी रसोई में पकाती, उसे लगता राहुल के लिए पका रही है, वह खाती या विनोद को खिलाती तो उसे लगता रहता, राहुल को खिला रही है. वह अपने सामने बैठे पति को अपलक ताकती रहती, जैसे उस के पीछे राहुल को निहार रही हो.

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वह स्नानघर में वस्त्र उतार कर नहा रही होती तो उसे लगता रहता, राहुल उस के पोरपोर को अपनी नरम उंगलियों से छू और सहला रहा है और वह पानी की तरह ही बहने लगती.

राहुल के लिए ऊपर छत पर कोई स्नानघर नहीं था. नीचे सीढि़यां उतर कर इमारत के कर्मचारियों के लिए एक साझा स्नानघर था, जिस में उसे नहाने की अनुमति थी. वह किसी महकते साबुन से नहा कर जब सीढि़यां चढ़ता हुआ उस के फ्लैट के सामने से गुजरता तो अनायास ही वह जंगले में आ कर खड़ी हो जाती. देर तक उस के साबुन की सुगंध हवा के साथ वह अपने भीतर फेफड़ों में महसूस करती रहती. आदमी में भी कितनी महक होती है. आदमी की आदम महक और वह उस महक की दीवानी…उस में मदहोश, गाफिल.

वह जानबूझ कर विनोद के सामने कभी गलती से भी राहुल का जिक्र न करती थी. कमरे में आ जाने के बावजूद कभी उस ने विनोद के सामने उस से बात करने का प्रयास नहीं किया था. न उसे कभी चाय या खाने पर ही बुलाया था.

परंतु क्या सचमुच ऐसा था, इतना सहज और सरल? या संख्याएं और गणितीय रेखाएं आपस में उलझ गई थीं, गड्डमड्ड हो गई थीं?

उस ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि वह विनोद के अलावा भी किसी अन्य पुरुष की कामना करेगी कि उस के भीतर कोई दूसरा भी कभी इस तरह रचबस जाएगा कि वह पूरी तरह अपनेआप पर से काबू खो बैठेगी.

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‘‘राहुल, तुम मेरा भला चाहते हो या बुरा…?’’ एक दिन उस की चार्टर्ड बस नहीं आई थी तो उसे राहुल के साथ ही सामान्य बस से दफ्तर जाना पड़ रहा था. वे दोनों उस समय बस स्टौप पर खड़े थे.

‘‘तुम ने कैसे सोच लिया कि मैं कभी तुम्हारा बुरा भी चाह सकता हूं? अपने मन से ही पूछ लेतीं. मेरे बजाय तुम्हारा मन ही सच बता देता,’’ राहुल सीधे उस की आंखों में झांक रहा था.

‘‘तुम मेरी खातिर ऊपर का कमरा ही नहीं, बल्कि यह नौकरी भी छोड़ कर कहीं चले जाओ. सच राहुल, मैं अब…’’

‘‘अगर तुम मेरे बिना रह सकती हो तो कहो, मैं दुनिया ही छोड़ दूं. मैं तुम्हारे बिना जीवित रहने की अब कल्पना नहीं करना चाहता,’’ उस ने कहा तो रमा की पलकों पर नमी तिर आई.

‘‘किसी भी दिन मेरा पागलपन विनोद पर उजागर हो जाएगा. और उस दिन की कल्पनामात्र से ही मैं कांप उठती हूं.’’

‘‘सच बताना, मेरे बिना अब जी सकती हो तुम?’’चुप रह गई रमा.

बस आई तो राहुल उस में चढ़ गया. उस ने हाथ पकड़ कर रमा को भी चढ़ाना चाहा तो वह बोली, ‘‘तुम जाओ, मैं आज औफिस नहीं जाऊंगी,’’ कह कर वापस घर आ गई.

मां ने उस की हालत देखी तो पहले तो कुछ नहीं कहा, पर जब वह अपने शयनकक्ष में बिस्तर पर तकिए में मुंह गड़ाए सिसकती रही तो न जाने कब मां उस के पलंग पर आ बैठीं, ‘‘अपनेआप को संभालो, बेटी. यह सब ठीक नहीं है. मैं समझ रही हूं, तू कहां और क्यों परेशान है. मैं आज ही राहुल से चुपचाप कह दूंगी कि वह यहां से नौकरी छोड़ कर चला जाए. इस तरह कमजोर पड़ना अच्छा नहीं होता, बेटी. तेरा अपना घरपरिवार है. संभाल अपनेआप को.’’

रमा न जाने क्यों देर तक एक नन्ही बच्ची की तरह मां की गोद में समाई फफकती रही, जैसे कोई उस का बहुत प्रिय खिलौना उस से छीनने की कोशिश कर रहा हो.

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जिंदगी का गणित: भाग 1

जिंदगी का गणित सीधा और सरल नहीं होता. वह बहुत उलझा हुआ और विचित्र होता है. रमा को लगा था, सबकुछ ठीकठाक हो गया है. जिंदगी के गणितीय नतीजे सहज निकल आएंगे. उस ने चाहा था कि वह कम से कम शादी से पहले बीए पास कर ले. वह कर लिया. फिर उस ने चाहा कि अपने पैरों पर खड़े होने के लिए कोई हुनर सीख ले. उस ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया और उस में महारत भी हासिल कर ली.

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फिर उस ने चाहा, किसी मनमोहक व्यक्तित्व वाले युवक से उस की शादी हो जाए, वह उसे खूब प्यार करे और वह भी उस में डूबडूब जाए. दोनों जीवनभर मस्ती मारें और मजा करें. यह भी हुआ. विनोद से उस के रिश्ते की बात चली और उन लोगों ने उसे देख कर पसंद कर लिया. वह भी विनोद को पा कर प्रसन्न और संतुष्ट हो गई पर…

शादी हुए 2 साल गुजरे थे. 7-8 माह का एक सुंदर सा बच्चा भी हो गया था. वह सबकुछ छोड़छाड़ कर और भूलभाल कर अपनी इस जिंदगी को भरपूर जी रही थी. दिनरात उसी में खोई रहती थी. वह पहले एक रेडीमेड वस्त्रों की निर्यातक कंपनी में काम करती थी. जब उस की शादी हुई, उस वक्त इस धंधे में काफी गिरावट चल रही थी. इसलिए उस नौकरी को छोड़ते हुए उसे कतई दुख नहीं हुआ. कंपनी ने भी राहत की सांस ली.

परंतु जैसे ही इधर फिर कारोबार चमका और विदेशों में भारतीय वस्त्रों की मांग होने लगी, इस व्यापार में पहले से मौजूद कंपनियों ने अपने हाथ आजमाने शुरू कर दिए.

राहुल इसी सिलसिले में कंपनी मैनेजर द्वारा बताए पते पर रमा के पास आया था, ‘‘उमेशजी आप के डिजाइनों के प्रशंसक हैं. वे चाहते हैं, आप फिर से नौकरी शुरू कर लें. वेतन के बारे में आप जो उपयुक्त समझें, निसंकोच कहें. मैं साहब को बता दूंगा…

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‘‘मैडम, हम चाहते हैं कि आप इनकार न करें, इसलिए कि हमारा भविष्य भी कंपनी के भविष्य से जुड़ा हुआ है. अगर कंपनी उन्नति करेगी तो हम भी आगे बढ़ेंगे, वरना हम भी बेकारों की भीड़ के साथ सड़क पर आ जाएंगे. आप अच्छी तरह जानती हैं, चार पैसे कंपनी कमाएगी तभी एक पैसा हमें वेतन के रूप में देगी.’’

व्यापारिक संस्थानों में आदमी कितना मतलबी और कामकाजी हो जाता है, राहुल रमा को इसी का जीताजागता प्रतिनिधि लगा था. एकदम मतलब की और कामकाजी बात सीधे और साफ शब्दों में कहने वाला. रमा ने उस की तरफ गौर से देखा, आकर्षक व्यक्तित्व और लंबी कदकाठी का भरापूरा नौजवान. वह कई पलों तक उसे अपलक ताकती रह गई.

‘‘उमेशजी को मेरी ओर से धन्यवाद कहिएगा. उन के शब्दों की मैं बहुत कद्र करती हूं. उन का कहा टालना नहीं चाहती पर पहले मैं अपने फैसले स्वयं करती थी, अब पति की सहमति जरूरी है. वे शाम को आएंगे. उन से बात कर के कल उमेशजी को फोन करूंगी. असल में हमारा बच्चा बहुत छोटा है और हमारे घर में उस की देखभाल के लिए कोई है नहीं.’’

चाय पीते हुए रमा ने बताया तो राहुल कुछ मायूस ही हुआ. उस की यह मायूसी रमा से छिपी न रही.

‘‘कंपनी में सभी आप के डिजाइनों की तारीफ अब तक करते हैं. अरसे तक बेकार रहने के बाद  इस कंपनी ने मुझे नौकरी पर रखा है. अगर कामयाबी नहीं मिली तो आप जानती हैं, कंपनी मुझे निकाल सकती है.’’

जाने क्यों रमा के भीतर उस युवक के प्रति एक सहानुभूति सी उभर आई. उसे लगा, वह भीतर से पिघलने लगी है. किसीकिसी आदमी में कितना अपनापन झलकता है. अपनेआप को संभाल कर रमा ने एक व्यक्तिगत सा सवाल कर दिया, ‘‘इस से पहले आप कहां थे?’’

‘‘कहीं नहीं, सड़क पर था,’’ वह झेंपते हुए मुसकराया, ‘‘बंबई में अपने बड़े भाई के पास रह कर यह कोर्स किया. वहीं नौकरी कर सकता था परंतु भाभी का स्वभाव बहुत तीखा था. फिर हमारे पास सिर्फ एक कमरा था. मैं रसोई में सोता था और कोई जगह ही नहीं थी.

‘‘भैया तो कुछ नहीं कहते थे, पर भाभी बिगड़ती रहती थीं. शायद सही भी था. यही दिन थे उन के खेलनेखाने के और उस में मैं बाधक था. वे चाहती थीं कि मैं कहीं और जा कर नौकरी करूं, जिस से उन के साथ रहना न हो. मजबूरन दिल्ली आया. 3-4 महीने से यहां हूं. हमेशा तनाव में रहता हूं.’’

‘‘लेकिन आप तो बहुत स्मार्ट युवक हैं, अच्छा व्यवसाय कर सकते हैं.’’

‘‘आप भी मेरा मजाक बनाने लगेंगी, यह उम्मीद नहीं थी. कंपनी की अन्य लड़कियां भी यही कह कर मेरा मजाक उड़ाती हैं. मुझे सफलता की जगह असफलता ही हाथ लगती है. पिछले महीने भी मैं ज्यादा व्यवसाय नहीं कर पाया था. तब उमेशजी ने बहुत डांट पिलाई थी. इतनी डांट तो मैं ने अपने मांबाप और अध्यापकों से भी नहीं खाई. नौकरी में कितना जलील होना पड़ता है, यह मैं अब जान रहा हूं.’’

मुसकरा दी रमा, ‘‘हौसला रखिए, ऐसा होता रहता है. ऊपर से जो हर वक्त मुसकराते दिखाई देते हैं, भीतर से वे उतने खुश नहीं होते. बाहर से जो बहुत संतुष्ट नजर आते हैं, भीतर से वे उतने ही परेशान और असंतुष्ट होते हैं. यह जीवन का कठोर सत्य है.’’

चलतेचलते राहुल ने नमस्कार करते हुए जब कृतज्ञ नजरों से रमा की ओर देखा तो वह सहसा आरक्त हो उठी. बेधड़क आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात कह सकने की सामर्थ्य रखने वाली रमा को न जाने क्या हो गया कि वह छुईमुई की तरह सकुचा गई और उस की पलकें झुक गईं.

‘‘आप मेरी धृष्टता को क्षमा करें, जरूर आप का बच्चा आप की ही तरह बेहद सुंदर होगा. क्या मैं एक नजर उसे देख सकता हूं?’’ दरवाजे पर ठिठके राहुल के पांव वह देख रही थी और आवाज की थरथराहट अपने कानों में अनुभव कर रही थी.

रमा तुरंत शयनकक्ष में चली गई और पालने में सो रहे अपने बच्चे को उठा लाई.

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‘‘अरे, कितना सुंदर और प्यारा बच्चा है,’’ लपक कर वह बाहर फुलवारी में खिले एक गुलाब के फूल को तोड़ लाया और रमा के आंचल में सोए बच्चे पर हौले से रख दिया. फिर उस ने झुक कर उस के नरम गालों को चूम लिया तो बच्चा हलके से कुनमुनाया. जेब से 50 रुपए का नोट उस बच्चे की नन्ही मुट्ठी में वह देने लगा तो रमा बिगड़ी, ‘‘यह क्या कर रहे हैं आप?’’

‘‘यह हमारे और इस बच्चे के बीच का अनुबंध है. आप को बीच में बोलने का हक नहीं है, रमाजी,’’ कह कर वह मुसकराया.

‘यह आदमी कोई जादूगर है. कंपनी की अन्य लड़कियों को तो इस ने दीवाना बना रखा होगा,’ रमा पलभर में न जाने क्याक्या सोच गई.

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Satyakatha: जान का दुश्मन बना मजे का इश्क

सौजन्य- सत्यकथा

Writer- सचिन तुलसा त्रिपाठी

6जुलाई, 2021 की बात है. मध्य प्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर स्थित अमदरा थाने में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि नैशनल हाईवे-30 पर रैगवां गांव के नजदीक एक जीप और कार में जबरदस्त भिड़ंत हुई है. सूचना देने वाले ने खुद को कार चालक बताते हुए कहा कि कि दुर्घटनास्थल पर एक बच्चा काफी रो रहा है.

यह सूचना मिलने के बाद अमदरा पुलिस कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गई.

घटनास्थल सिंहवासिनी मंदिर के पास था. वहां 2 साल का एक बच्चा बहुत रो रहा था, जबकि दुर्घटना के कोई चिह्न वहां नजर नहीं आ रहे थे. वहां कुछ दूरी पर एक जीप जरूर खड़ी मिली, तब पुलिस बच्चे को थाने ले आई. थाने में भी वह बहुत रो रहा था. उसे खानेपीने की चीजें दे कर किसी तरह चुप कराया.

अब यह प्रश्न उठ रहा था कि आखिर ये बच्चा किस का हो सकता है? कौन है जो उसे वहां छोड़ कर चला गया? उस के परिजन कौन हो सकते हैं? दुर्घटना की झूठी खबर किस ने और क्यों दी? इत्यादि…

इस बात की तफ्तीश चल ही रही थी कि एक बार फिर थाने में किसी का फोन आया. उन के द्वारा दी गईसूचना सन्न कर देने वाली थी. सूचना मिली कि नैशनल हाइवे-30 पर रैगवां गांव की झाडि़यों के पास एक महिला की लाश पड़ी है.

देर न करते हुए थानाप्रभारी हरीश दुबे अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. थोड़ी देर में ही मैहर की एसडीपीओ हिमाली सोनी भी पहुंच गईं. अमदरा पुलिस साथ में उस बच्चे को भी ले गई थी.

बच्चा महिला की लाश को देखते ही मम्मी…मम्मी… कह कर रोने लगा. यह देख पुलिस भी भौचक्की रह गई. बच्चे को चुप करवा कर पुलिस ने बच्चे से पूछा कि मम्मी को किस ने मारा है?

2 साल के उस बच्चे ने तुरंत जवाब दिया ‘‘पापा ने.’’

2 साल के बच्चे के इन 2 शब्दों से इतना तो स्पष्ट हो ही गया था कि करीब 30-32 साल की महिला की वह लाश उस बच्चे की मां की है. पास ही एमपी 21सीए 3195 नंबर की एक जीप भी खड़ी थी.

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पुलिस उस जीप की छानबीन करते हुए लाश के साथ उस के किसी कनेक्शन का अंदेशा भी जता रही थी. पुलिस ने बारीकी से जीप की जांच की. जीप में बच्चे के जूते, बिखरी चूडि़यां मिलीं. उस के बाद पुलिस को जीप, बच्चा और औरत की लाश के साथ कनेक्शन का मामला समझ में आ गया था.

थानाप्रभारी को 6 जुलाई, 2021 की सुबह 10 बजे की सूचना के अनुसार सिंहवासिनी मंदिर के पास बच्चा मिला था. उसी दिन दोपहर 2 बजे महिला की लाश मिली थी. इस पर सतना के एसपी धर्मवीर सिंह ने मैहर की एसडीपीओ हिमाली सोनी और अमदरा थाना टीआई हरीश दुबे के नेतृत्व में 3 टीमें गठित कर दीं.

इन टीमों में एसआई लक्ष्मी बागरी, अजीत सिंह, एएसआई दीपेश कुमार, अशोक मिश्रा, दशरथ सिंह, अजय त्रिपाठी, हैडकांस्टेबल अशोक सिंह, कांस्टेबल जितेंद्र पटेल, गजराज सिंह, नितिन कनौजिया, अखिलेश्वर सिंह, दिनेश रावत, महिला कांस्टेबल पूजा चौहान आदि को शामिल किया गया.

तीनों टीमें अलगअलग दिशाओं में आरोपियों की तलाश में जुट गई थीं. अमदरा थाने की टीम टीआई हरीश दुबे के नेतृत्व में उस जीप के मालिक के पास पहुंच गई जो मृतका के पास सड़क पर खड़ी मिली थी. वह जीप राधेश्याम नाम के व्यक्ति की थी. वह कटनी जिले में रीठी का निवासी था.

पूछताछ के दौरान राधेश्याम ने बताया वह जीप उस ने अखिलेश यादव नाम के व्यक्ति को किराए पर दी थी. पुलिस टीम तुरंत अखिलेश के घर जा धमकी थी. वह घर पर नहीं था. 2 अन्य टीमें रैपुरा और जबलपुर में भी उस की खोज कर रही थीं.

इसी सिलसिले में अखिलेश यादव के भाई से भी पूछताछ की गई. उसे विश्वास में ले कर अखिलेश की लोकेशन पर नजर रखी गई. इस तरह से घटना की जानकारी के 24 घंटे के अंदर ही अखिलेश और उस के साथी पुलिस के हाथ लग गए, जिन के संबंध महिला की हत्या से थे.

गहन छानबीन से पुलिस को पता चला कि बरामद लाश आदिवासी महिला मेमबाई (32 वर्ष) की थी. मेमबाई कटनी जिले के गांव रीठी की रहने वाली थी. पुलिस को आरोपी तक पहुंचने में ज्यादा मुश्किल इसलिए भी नहीं आई, क्योंकि कई सुराग जीप में ही मिल गए थे.

पुलिस को मेमबाई और अखिलेश के मधुर संबंधों के बारे में जो कुछ और जानकारी मिली, वह काफी चौंकाने वाली थी.

इस हत्याकांड में भले ही किसी तरह की धनसंपदा के लालच की बू नहीं आ रही थी, लेकिन शादीशुदा औरत से प्यार में अंधे व्यक्ति द्वारा मजबूरी और बौखलाहट में उठाया गया कदम जरूर कहा जा सकता है. उस की विस्तृत कहानी इस प्रकार निकली—

अखिलेश जवानी की दहलीज पर था. एक भावी जीवनसाथी के सपनों में खोया हुआ अपनी जीवनसंगिनी को ले कर कल्पनाएं करता रहता था.

2 साल पहले की बात है. अखिलेश की जिंदगी मजे में कट रही थी. उस का कामधंधा भी गति पर था. वह पेशे से ड्राइवर था.

अखिलेश रीठी गांव के सिंघइया टोला में रहता था, जबकि मेमबाई के पति गोविंद प्रसाद आदिवासी का मकान गांव रीठी में बना हुआ था.

अखिलेश एक अस्पताल की एंबुलैंस चलाता था. उस का अकसर उसी रास्ते से गुजरना होता था, जहां मेमबाई अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी. इसी आनेजाने में एक दिन उस की निगाह अदिवासी युवती मेमबाई पर पड़ गई, जिस की खूबसूरती उस के मांसल देह से टपकती थी. उसे देखते ही अखिलेश उस का दीवाना बन बैठा था.

मेमबाई अभी जवानी के शबाब में थी. बातें भी बड़ी मजेदार करती थी. अखिलेश से उस की अचानक मुलाकात हो गई. पहली ही नजर में उसे देखा तो देखता ही रह गया था, और जब उस से बातें करने की शुरुआत की तो ऐसे लगा जैसे उस की बातें सुनता ही रहे.

फिर दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. बात बढ़ी, परवान चढ़ी और आंखों के रास्ते दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए.

अखिलेश को जब मालूम हुआ कि मेमबाई 3 बच्चों की मां है, तब उसे थोड़ा झटका लगा. लेकिन तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी. कारण वह उसे अपना दिल दे चुका था. उस के मन मिजाज में अपनी इच्छाओं और तमन्नाओं का बीजारोपण कर चुका था. उस ने मन को दृढ़ता से समझा लिया था कि ‘शादीशुदा है तो क्या हुआ, प्यार तो उसी से करेगा… वह उस का पहला प्यार जो है.’

यह ठीक वैसी ही बात थी, जैसे कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है. अखिलेश को मेमबाई अक्की कह कर बुलाती थी. वह उस से उम्र में छोटा था. बहुत जल्द ही वह मेमबाई के प्यार में काफी हद तक अंधा हो गया. उस की वह सब तमाम जरूरतें पूरी करने लगा था, जो मेमबाई को अपने मजदूर पति गोविंद आदिवासी से नसीब नहीं हो पाती थीं.

उन के जिस्मानी संबंध भी बन गए. उन के प्रेम संबंध में एक बार यौनसंबंध की दखल हो गई तो फिर उन का यह सिलसिला बन गया. अखिलेश को इस में आनंद आने लगा. इस में कोई खलल नहीं आने पाए, इस के लिए वह मेमबाई और उस के परिवार पर पैसे खर्च करने लगा. उन की हर जरूरतों के लिए तैयार रहने लगा.

जब गोविंद अपने काम के लिए घर से बाहर होता, तब अखिलेश उस के घर के अंदर घुस जाता. उस के दिलोदिमाग पर अखिलेश का बांकपन छा गया था. वैसे गोविंद जान चुका था कि अखिलेश के उस की पत्नी से अवैध संबंध हैं, फिर भी वह चुप रहता था. इस की वजह यह थी कि अखिलेश उस की आर्थिक मदद भी करता था.

कभीकभी गोविंद की मेमबाई से कहासुनी हो जाती तो वह उलटे पति पर ही हावी हो जाती थी. वह मुंह बनाती हुई पति को कोसती, ‘‘मैं तो केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हूं न, तुम से मुझे न सुख मिल रहा है और न सुकून.’’

पत्नी के ताने सुनसुन कर उस के कान पक गए थे, लेकिन वह पलट कर कभी जवाब नहीं देता था. कई बार उस के तंज का जवाब देने के लिए पत्नी से केवल इतना कहता, ‘‘जा, चली जा, जहां सुख मिले और चैन.’’

फिर एक दिन मेमबाई फटेहाल जिंदगी को लात मारती हुई अपने आशिक अखिलेश के साथ चली आई. साथ में अपने अबोध बेटे राज को भी ले आई.

2 बेटियों को वह पति गोविंद के भरोसे छोड़ आई. पति से बेवफाई कर मेमबाई अपने दिलदार अखिलेश के साथ कटनी के भट्टा मोहल्ला में एक किराए के मकान में रहने लगी. वहीं उस ने अपनी गृहस्थी बसा ली.

अखिलेश की कमाई से मेमबाई के कई सपने पूरे हुए. अपने बेटे राज के लिए भी ख्वाब बुनने लगी. अखिलेश भी माशूका के हाथों में अपनी महीने भर की कमाई रख देता था. इस का पता जब अखिलेश के मातापिता को चला, तब वे उस से काफी खफा हो गए और विरोध करने लगे.

वे नहीं चाहते थे कि उन का बेटा किसी शादीशुदा महिला के साथ रहे. उन्होंने अपने घर अपनी मनपसंद बहू के सपने देखे थे.

मांबाप के विरोध के आगे अखिलेश की एक नहीं चली. उसे आखिरकार उन की पसंद की लड़की से ही ब्याह करना पड़ा. उस का रूपा यादव से ब्याह हो गया. अब अखिलेश के सामने 2 महिलाओं के बीच पिसने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.

वह प्रेमिका और पत्नी के बीच के संबंधों को ले कर चिंतित रहने लगा. मेमबाई ने भी महसूस किया कि उस के बुने सपने बिखरने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला है.

इस पर अखिलेश और मेमबाई के बीच कहासुनी भी होने लगी. अखिलेश परिस्थितियों को संभालने के लिए अपनी कमाई का आधाआधा दोनों को देने लगा.

मेमबाई तो मान गई, लेकिन ब्याहता रूपा यादव से उस की बातबात पर तल्खी बनी रही. कई बार उस की छोटीछोटी बातों की नाराजगी या शिकायतों का गुस्सा फूट पड़ता था.

यही नहीं मेमबाई पुरानी बातों को ले कर अखिलेश को ताने देने लगी थी, ‘‘काहे लाए थे, जब दूसरी शादी करनी थी. पहले तो हमारा रूप बहुत भाता था, अब घर में सुंदरी ले आए हो तो हम बंदरिया लग रहे हैं.’’

अखिलेश इन तानों पर प्रतिक्रिया देता, ‘‘जो मिलता है उस में आधाआधा इसलिए ही तो कर दिए हैं. इतने में ही काम चलाना होगा. हम तुम्हें घर से भगा तो नहीं रहे.’’

इस तरह से दोनों के बीच रोजाना झगड़े होने लगे थे. दिनप्रतिदिन अखिलेश टूटने लगा था. अब अखिलेश के परिवार वाले भी उस पर दवाब बनाने लगे थे. उस की पत्नी का भी पारा चढ़ने लगा था. वह भी जब तब अखिलेश को ताने मारने लगी थी.

अखिलेश ने भी मन ही मन ठान लिया कि अब मेमबाई को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा. एक दिन अखिलेश ने एक योजना बनाई. 3 दोस्तों को बुलाया. उन के साथ उस ने मैहर की मां शारदा के दर्शन करने का प्लान बनाया. प्लान में सोहन लोधी, अजय यादव और एक नाबालिग बालक को शामिल कर लिया.

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प्लान की रूपरेखा तैयार करने के बाद वह घर में नाराज बैठी मेमबाई से बोला, ‘‘चलो, एक दिन मैहर शारदा मां के दर्शन कर आते हैं. वैसे भी इस समय बहुत लोग जा रहे हैं.’’

यह सुन कर मेमबाई के चेहरे पर मुसकान आ गई. खुशी से बोली, ‘‘मैं भी सोच रही थी, लेकिन तुम जितना खर्च दे रहे हो उस से पेट भरना तक मुश्किल है.’’

अखिलेश ने कहा, ‘‘मंदिरवंदिर चल कर पहले मन को पवित्र कर के आना चाहिए. इस से मन को शांति मिलती.’’

मेमबाई ने कहा, ‘‘ठीक है फिर कल ही चलो.’’

अखिलेश तो जैसे तैयार ही बैठा था बोला, ‘‘तैयार हो जाना और राज को भी ले लेना.’’

मेमबाई तो खुश थी, जो उस के चेहरे और हावभाव से झलक रहा था. अखिलेश भी प्लान के मुताबिक

सही उठ रहे कदम से मन ही मन खुश हो रहा था.

अगले ही दिन यानी 5 जुलाई, 2021 को अखिलेश ने पहले से ही 3195 रुपए किराए में राधेश्याम की जीप बुक कर ली. उस पर अपने दोस्तों को बैठा लिया. दोनों साथी मेमबाई के साथ बीच वाली सीट पर बैठ गए और एक साथी पीछे.

उन दोस्तों में से एक को मेमबाई अच्छी तरह पहचानती थी, इसलिए उस ने जरा भी सवालजवाब नहीं किया. अखिलेश जीप खुद चला रहा था.

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वे सभी निर्धारित समय के अनुसार मैहर पहुंच गए, लेकिन वे मंदिर में दर्शन के लिए नहीं गए. इस पर मेमबाई को शक हुआ. इस से पहले कि वह कुछ पूछती, अखिलेश ने जीप को यूटर्न दे कर घुमा ली. तब तक अंधेरा होचुका था.

उसी समय जीप की पिछली सीट पर बैठे अखिलेश के एक साथी ने अपने लोअर का नाड़ा निकाला और मेमबाई के गले में फंसा दिया. यह देख बगल में बैठे अन्य साथियों ने मेमबाई के हाथपैर कस कर जकड़ लिए. मेमबाई छटपटा कर रह गई.

संयोग से नाड़ा टूट गया. तभी फुरती के साथ अखिलेश ने जीप रोकी और रस्सी निकालते हुए बीच वाली सीट की तरफ भागा.

तब तक जीप का गेट खोल कर मेमबाई बाहर निकलने की कोशिश करने लगी, लेकिन जीप से उतरने से पहले ही अखिलेश उस के गले में रस्सी बांध चुका था. वह जीप के अंदर ही छटपटा कर रह गई.

अंत में वह हार गई. अखिलेश और उस के साथियों ने गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. लाश को राष्ट्रीय राजमार्ग 30 में आने वाले गांव रैगवां की झाडि़यों के बीच फेंक कर वे फरार हो गए.

इस पूरे मामले की तहकीकात के बाद अमदरा पुलिस ने सभी आरोपियों अखिलेश यादव (25 वर्ष) उर्फ अक्की निवासी ग्राम सिंघइया टोला, जिला कटनी, सोहन लोधी (19 वर्ष) व अजय यादव (18 वर्ष) निवासी ग्राम लोधी जिला पन्ना (मध्य प्रदेश) के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर उन्हें निचली अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

आशंका: भाग 2

‘‘फिर तो देर होने का सवाल ही नहीं उठता सर,’’ विभोर ने आश्वासन दिया. उस के बाद वह काम में जुट गया.

रणबीर इस प्रोजैक्ट में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहा था, अकसर साइट पर भी आता रहता था. एक सुबह जब विभोर साइट पर जा रहा था तो उस ने देखा कि ढलान शुरू होने से कुछ पहले उस के कई सहकर्मियों की गाडि़यां और मोटरसाइकिलें, स्कूटर सड़क के किनारे खड़े हैं और कुछ लोग उस की गाड़ी को रोकने को हाथ हिला रहे हैं.

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‘‘रणबीर साहब की गाड़ी भी खड़ी है साहब,’’ ड्राइवर ने गाड़ी रोकते हुए कहा.

विभोर चौंक पड़ा कि क्या वे इतनी सुबह यहां मीटिंग कर रहे हैं?

‘‘सर, बड़े साहब की गाड़ी में उन की लाश पड़ी है,’’ उसे गाड़ी से उतरते देख कर एक आदमी लपक कर आया और बोला.

विभोर भागता हुआ गाड़ी के पास पहुंचा. रणबीर ड्राइवर की सीट पर बैठा था, उस की दाहिनी कनपटी पर गोली लगी थी और दाहिने हाथ में रिवौल्वर था. सीटबैल्ट बंधी होने के कारण लाश गिरी नहीं थी. रणबीर जौगर्स सूट और शूज में थे यानी वे सुबह को सैर के लिए तैयार हुए थे. ‘वे तो घर के पास के पार्क में ही सैर करते थे. फिर गाड़ी में यहां कैसे आ गए?’ विभोर सोच ही रहा था कि तभी पुलिस की गाड़ी आ गई.

इंस्पैक्टर देव को देख कर विभोर को तसल्ली हुई. उस के बारे में मशहूर था कि कितना भी पेचीदा केस क्यों न हो वह सप्ताह भर में सुलझा लेता है.

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‘‘लाश पहले किस ने देखी?’’ देव ने पूछा.

‘‘मैं ने इंस्पैक्टर,’’ एक व्यक्ति सामने आया, ‘‘मैं प्रोजैक्ट मैनेजर विभास हूं. मैं जब साइट पर जाने के लिए यहां से गुजर रहा था तो साहब की गाड़ी खड़ी देख कर रुक गया. गाड़ी के पास जा कर मैं ने अधखुले शीशे से झांका तो साहब को खून में लथपथ पाया. मैं ने तुरंत साहब के घर और पुलिस को फोन कर दिया.’’

कुछ देर बाद रणबीर की पत्नी गरिमा, बेटी मालविका, बेटा कबीर, छोटा भाई सतबीर और उस की पत्नी चेतना आ गए. देव ने शोकविह्वल परिवार को संयत होने के लिए थोड़ा समय देना बेहतर समझा. कुछ देर के बाद गरिमा ने विभोर से पूछा कि क्या साइट पर कुछ गड़बड़ है, क्योंकि आज रणबीर रोज की तरह सुबह सैर पर निकले थे, पर चंद मिनट बाद ही लौट आए और चौकीदार से गाड़ी की चाबी मंगवा कर गाड़ी ले कर चले गए.

‘‘हमें तो किसी ने फोन नहीं किया,’’ विभास और विभोर ने एकसाथ कहा, ‘‘और साइट के चौकीदार को तो हम ने साहब का नंबर दिया भी नहीं है.’’

‘‘क्या मालूम भैया ने खुद दे दिया हो,’’ सतबीर बोला, ‘‘वह इस प्रोजैक्ट में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहे थे.’’

‘‘अगर किसी ने फोन किया था तो इस का पता मोबाइल से चल जाएगा,’’ देव ने कहा, ‘‘यह बताइए यह रिवौल्वर क्या रणबीर साहब का अपना है?’’

गरिमा और बच्चों ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘मैं इस रिवौल्वर को पहचानता हूं इंस्पैक्टर,’’ सतबीर बोला, ‘‘यह हमारा पुश्तैनी रिवौल्वर है.’’

‘‘लेकिन यह रिवौल्वर था कहां सतबीर?’’ गरिमा ने पूछा.

सतबीर ने कंधे उचकाए, ‘‘मालूम नहीं भाभी. दादाजी के निधन के कुछ समय बाद मैं पढ़ने के लिए बाहर चला गया था. जब लौट कर आया तो पापा पुरानी हवेली बेच कर हम दोनों भाइयों के लिए नई कोठियां बनवा चुके थे. पुराने सामान का खासकर इस रिवौल्वर का क्या हुआ, मुझे खयाल ही नहीं आया.’’

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‘‘चाचा जब बड़े दादाजी गुजरे तब दयानंद काका थे क्या?’’ कबीर ने पूछा.

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘क्योंकि दयानंद काका को जरूर मालूम होगा कि यह रिवौल्वर किस के पास था,’’ कबीर बोला.

‘‘यह दयानंद काका कौन हैं और कहां मिलेंगे?’’ देव ने उतावली से पूछा.

‘‘घर के पुराने नौकर हैं और हमारे साथ ही रहते हैं,’’ गरिमा बोली.

‘‘उन से रिवौल्वर के बारे में पूछना बहुत जरूरी है, क्योंकि आत्महत्या दिखाने की कोशिश में हत्यारे ने गोली चला कर रिवौल्वर मृतक के हाथ में पकड़ाया है,’’ देव बोला.

‘‘दयानंद काका आ गए,’’ तभी औटो से एक वृद्ध को उतरते देख कर मालविका ने कहा.

‘‘साहब, काकाजी की जिद्द पर हमें इन्हें यहां लाना पड़ा,’’ दयानंद के साथ आए एक युवक ने कहा.

‘‘अच्छा किया,’’ सतबीर ने कहा और सहारा दे कर बिलखते दयानंद को गाड़ी के पास ले गया.

‘‘इस रिवौल्वर को पहचानते हो काका?’’ देव ने कुछ देर के बाद पूछा.

दयानंद ने आंसू पोंछ कर गौर से रिवौल्वर को देखा. फिर बोला, ‘‘हां, यह तो साहब का पुश्तैनी रिवौल्वर है. यह यहां कैसे आया?’’

‘‘यह रिवौल्वर किस के पास था?’’ सतबीर ने पूछा.

‘‘किसी के भी नहीं. बड़े बाबूजी के कमरे की अलमारी में जहां उन का और मांजी का सामान रखा है, उसी में रखा रहता था.’’

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ कबीर ने पूछा.

‘‘हमीं से तो रणबीर भैया उस कमरे की साफसफाई करवाते थे. इस इतवार को भी करवाई थी.’’

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‘‘तब मैं कहां थी?’’ गरिमा ने पछा.

‘‘होंगी यहीं कहीं,’’ दयानंद ने अवहेलना से कहा.

‘‘भैया कब क्या करते थे, इस की कभी खबर रखी आप ने?’’

‘‘पहले मेरे सवाल का जवाब दो काका,’’ देव ने बात संभाली, ‘‘उस रोज क्या उन्होंने यह रिवौल्वर अलमारी से निकाला था?’’

‘‘जी हां, हमेशा ही सब चीजें निकालते थे, फिर उन्हें बड़े प्यार से पोंछ कर वापस रख देते थे.’’

‘‘इतवार को भी रिवौल्वर वापस रखा था?’’

‘‘मालूम नहीं, हम तो अपना काम खत्म कर के भैया को वहीं छोड़ कर आ गए थे.’’

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मनोहर कहानियां: प्रेमी की खातिर

 नसीम अंसारी कोचर 

18सितंबर, 2021 की रात को बिहार के शहर मुजफ्फरपुर के टाउन थाना क्षेत्र के बालूघाट इलाके में स्थित एक मकान की तीसरी मंजिल के कमरे में अचानक तेज धमाका हुआ. धमाके की आवाज के साथ बंद कमरे के खिड़कीदरवाजे की झिर्रियों से काला धुआं निकलने लगा.

पहले लोगों को लगा कि मकान के भीतर कोई बम फटा है. कुछ लोगों ने अंदाजा लगाया कि शायद गैस सिलिंडर फटा है. कुछ ही देर में वहां भारी भीड़ जुट गई, मगर मकान के भीतर जाने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी. मकान से निकलने वाला बदबूदार धुआं हवा में फैलता जा रहा था.

इसी दौरान भीड़ में मौजूद किसी व्यक्ति ने इस की सूचना फोन द्वारा पुलिस को दे दी. इस सूचना पर थोड़ी देर में पुलिस की गाड़ी और फायर ब्रिगेड वहां पहुंच गई. पुलिस और फायर ब्रिगेड कर्मचारी जब दरवाजा तोड़ कर भीतर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. वहां एक ड्रम गिरा पड़ा था. आसपास मांस के लोथड़े बिखरे हुए थे. ड्रम से बदबूदार धुआं बाहर निकल रहा था. लग रहा था जैसे कि ड्रम में कोई कैमिकल हो.

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फायर ब्रिगेड ने खिड़की और अन्य सामान में लगी आग बुझाई. धुआं छंटा तो ड्रम के भीतर मानव शरीर के टुकड़े मिले. पुलिस ने सभी टुकड़े इकट्ठे किए तो उन की संख्या 8 थी. वे टुकड़े किसी पुरुष के थे, जिन्हें शायद ड्रम के भीतर भरे कैमिकल में गलाने के लिए डाला गया था. कमरे में और कोई नहीं था.

पुलिस के सामने बड़ा सवाल उस लाश की पहचान का था. आखिर वह कौन था? उसे क्यों मारा गया? किस ने मारा? मार कर उस की लाश गलाने के लिए ड्रम में कैमिकल के भीतर किस ने डुबोई? कातिल एक था या कई थे? ऐसे अनेक सवाल पुलिस के सामने थे.

पुलिस ने लाश की पहचान के लिए बाहर खड़े लोगों को बुलाया. मगर कोई भी उस लाश को नहीं पहचान पाया. तभी भीड़ से एक आदमी निकल कर लाश के काफी करीब पहुंच गया. वह झुक कर लाश को गौर से देखने लगा और फिर उस ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया.

उस ने कहा कि उस का नाम दिनेश साहनी है और यह लाश उस के भाई राकेश साहनी की है, जो शराब का अवैध धंधा करता था और जिस के खिलाफ पुलिस ने वारंट निकाल रखा था.

गौरतलब है कि बिहार में शराबबंदी लागू है. राकेश लंबे समय से पुलिस से छिपछिप कर यहांवहां रह रहा था. मगर वह मारा जा चुका है, इस बात से उस के घरवाले बेखबर थे.

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लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने मकान मालिक सुनील कुमार शर्मा को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. दरअसल, किताब कारोबारी सुनील कुमार शर्मा के इस मकान में कई कमरे थे, जिसे उस ने अलगअलग लोगों को किराए पर दे रखे थे.

जिस कमरे से लाश मिली, वह सुनील ने सुभाष नाम के व्यक्ति को किराए पर दिया हुआ था. लेकिन इधर काफी दिनों से सुभाष और उस का परिवार यहां दिख नहीं रहा था. आसपास के लोग सोच रहे थे कि शायद वह सपरिवार गांव गया हुआ है.

दिनेश साहनी की तहरीर पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी. पुलिस का पहला लक्ष्य था सुभाष की तलाश करना. राकेश नाम के जिस व्यक्ति की लाश टुकड़ों में पुलिस को मिली थी, वह शराब का अवैध धंधा करता था और सुभाष भी उस के धंधे में बराबर का शरीक था.

मकान मालिक से हुई पूछताछ

मकान मालिक सुनील कुमार शर्मा ने पुलिस को बताया कि जब उस ने सुभाष को यह कमरा किराए पर दिया था, तब उस ने बताया था कि वह मुजफ्फरपुर के कर्पूरी नगर का रहने वाला है. वहां उस के घर में बाढ़ का पानी घुस गया है, इस वजह से वह कुछ दिन इस मकान में किराए पर रहना चाहता है.

सुनील ने अपने बयान में कहा, ‘‘मैं ने उस को कमरा इसलिए किराए पर दे दिया क्योंकि उस ने किराए में कोई रियायत नहीं मांगी, उलटा बाकी किराएदारों द्वारा दिए जा रहे किराए से एक हजार रुपए ज्यादा दिए और एडवांस किराया औनलाइन ही अकाउंट में जमा करवा दिया.

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‘‘फिर वह अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ यहां रहने लगा. कुछ दिन बाद उस की साली और साढ़ू भी यहां आ कर उस के साथ रहने लगे. मगर 3 दिन से कमरे पर ताला लटका था तो लगा कि वह अपने पुराने मकान में गए होंगे.’’

उधर राकेश के बारे में पुलिस को पता चला कि 5 साल पहले उस ने राधा से शादी की थी. उस के 3 बच्चे हैं. वह सुभाष के साथ मिल कर अवैध शराब का धंधा चलाता था और फिलहाल पुलिस से जान बचा कर भागा हुआ था. उस की पत्नी राधा भी उसी दिन से गायब है जिस दिन से राकेश गायब है.

पुलिस को यह भी पता चला कि जबजब राकेश पुलिस से बचने के लिए फरार होता था, उस की पत्नी बच्चों को ले कर सुभाष के इसी मकान में आ जाती थी और सुभाष ही उन का खयाल रखता था.

कुछ लोगों ने यह भी बताया कि सुभाष और राधा के बीच अफेयर चल रहा था. आसपास के कुछ लोग तो यही समझते थे कि राधा सुभाष की पत्नी है. ऐसा समझने वालों में मकान मालिक सुनील शर्मा भी था.

पुलिस को सुभाष और राधा के ऊपर शक पक्का हो गया और वह तेजी से उन की तलाश में जुट गई. शहर भर के होटलों, बस अड््डों और रेलवे स्टेशन पर उन की खोज शुरू हो गई. आखिरकार पुलिस की तेजी काम आई और पुलिस ने सुभाष और राधा को शहर के स्टेशन रोड से गिरफ्तार कर लिया. दोनों दिल्ली भागने की फिराक में थे और ट्रेन पकड़ने के लिए निकले थे.

पुलिस ने उन की निशानदेही पर अहियापुर थाने के संगम घाट के पास से खून से सने कपड़े व बिस्तर भी बरामद किया. कपड़े  सुभाष, राधा और अन्य आरोपियों के थे.

जिन लोगों को पुलिस और अन्य लोग सुभाष की साली और साढ़ू समझ रहे थे, दरअसल वे राकेश की साली यानी राधा की बहन कृष्णा देवी और उस का पति विकास कुमार था, जो सुभाष और राधा के साथ राकेश साहनी की हत्या में शामिल थे.

सुभाष के बताने पर पुलिस ने दोनों को पकड़ने के लिए सीतामढ़ी व शिवहर में छापेमारी की, मगर सुभाष और राधा की गिरफ्तारी की खबर पा कर दोनों वहां से फरार हो चुके थे.

राधा निकली मास्टरमाइंड

पुलिस ने सुभाष और राधा को थाने ला कर जब सख्ती से पूछताछ की तो राकेश की हत्या की रोंगटे खड़े कर देने वाली एक भयानक कहानी सामने आई.

दरअसल, अवैध शराब के धंधेबाज राकेश कुमार की हत्या की साजिश 2 माह से रची जा रही थी. इस साजिश में उस का दोस्त सुभाष, राकेश की पत्नी और सुभाष की प्रेमिका राधा, राधा की बहन कृष्णा और उस का पति विकास शामिल था.

राकेश की हत्या कर शव के डिस्पोजल की तैयारी भी पूरी कर ली थी. शव को गलाने के लिए कैमिकल का इंतजाम किया गया था. शव से उठने वाली दुर्गंध को बाहर फैलने से रोका जा सके, इस के लिए अगरबत्ती का इंतजाम भी किया गया था.

राकेश की हत्या के पीछे कारण था सुभाष और राधा का नाजायज रिश्ता. दरअसल, शराब के धंधे के चलते राकेश के पीछे अकसर पुलिस पड़ी रहती थी. इस के चलते राकेश कईकई दिनों तक अंडरग्राउंड हो जाता था. उस के पीछे उस की पत्नी राधा और बच्चों की देखभाल सुभाष ही करता था.

पति के बाहर कहीं छिपते रहने की वजह से राधा की सुभाष के साथ नजदीकियां बढ़ती गईं. सुभाष भी राधा को चाहता था. इस तरह उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए.

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राकेश को जब इस बात का पता चला तो उस ने पत्नी राधा को खूब पीटा. राधा ने उस से माफी मांग ली. सुभाष ने भी उस से माफी मांग ली. राकेश की भी मजबूरी थी. क्योंकि वह बीवीबच्चों की देखभाल के लिए सुभाष पर आश्रित था. लिहाजा उस ने दोनों को माफ कर दिया.

लेकिन यही उस की भूल थी. राकेश जबजब परेशान होता तो वह राधा से लड़ता और राधा भाग कर सुभाष के घर चली जाती थी. फिर राकेश उसे समझाबुझा कर वापस ले आता. यह चक्र काफी समय से चल रहा था.

सुभाष ने राधा को अपने प्रेम जाल में पूरी तरह फांस रखा था और राधा भी अब राकेश की गालीगलौज और मारपीट से तंग आ चुकी थी. राधा पति के बजाय अपने प्रेमी सुभाष के साथ ज्यादा खुशी महसूस करती थी. वह तनमन दोनों से सुभाष की हो चुकी थी.

अब राकेश दिनरात उस की नजर में खटक रहा था. वह उस की कोई भी जलीकटी बात सुनने को तैयार नहीं थी. सुभाष और राधा अब राकेश को अपने बीच कांटा समझने लगे थे.

पति के बाहर रहने पर बहक गई राधा

राकेश की जिंदगी स्थिर नहीं थी. पुलिस उस के पीछे थी और घर में बीवी उसे धोखा दे रही थी. वह काफी तनाव में रहता था और अकसर शराब पी कर राधा को पीट देता था.

राधा अब राकेश से ज्यादा ही परेशान हो चुकी थी. वह उस की मोहब्बत के रास्ते का रोड़ा भी था, लिहाजा राधा और सुभाष ने इस रोड़े को हटाने का मन बना लिया था.

कर्पूरी नगर में जहां सुभाष का घर था, वहां उस के अन्य परिवार वाले भी रहते थे. सभी का एकदूसरे के घर में आनाजाना लगा रहता था. काफी घनी बस्ती होने के कारण वहां हत्याकांड को अंजाम देना संभव नहीं था. इसलिए सुभाष बालूघाट में नया ठिकाना तलाशने लगा.

उसे पता चला कि सुनील शर्मा के मकान की तीसरी मंजिल खाली है. उस ने किसी के माध्यम से सुनील कुमार शर्मा की मां से संपर्क साधा और बाढ़ पीडि़त होने की बात कह कर किराए पर कमरा देने का आग्रह किया.

उस ने मकान में अन्य कमरों के किराएदारों से एक हजार रुपए अधिक किराया देना भी स्वीकार किया और फटाफट एडवांस किराया औनलाइन उस के अकाउंट में जमा करवा दिया.

वह अपने कुछ सामान के साथ सुनील कुमार के मकान में आ गया. थोड़े दिन में राधा भी अपने तीनों बच्चों के साथ उस के पास आ गई. आसपास के लोगों को राधा का परिचय सुभाष ने अपनी पत्नी के रूप में कराया. इस के कुछ रोज बाद ही राधा की बहन कृष्णा और बहनोई विकास भी उन के साथ रहने आ गए.

राकेश को खत्म करने की साजिश इन चारों ने बैठ कर बनाई. राधा की बहन और बहनोई को साजिश में शामिल करना सुभाष की मजबूरी थी. दरअसल, राकेश अच्छी कदकाठी का आदमी था. उस पर काबू पाना एकदो लोगों के बस की बात नहीं थी. इन दोनों को भी लाने का मकसद यह था कि जब राकेश वहां आएगा तो सब मिल कर उस का काम आसानी से तमाम कर देंगे.

हत्या कर कैमिकल के ड्रम में डाले लाश के टुकड़े

सारी तैयारियां हो जाने के बाद राधा ने तीज वाले दिन राकेश को फोन कर के वहां बुलाया. उस वक्त राकेश पुलिस के डर से कहीं छिप कर रह रहा था. उस के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट भी निकला हुआ था.

हालांकि एक माह पहले राकेश की सुभाष से लड़ाई भी हुई थी. तब सुभाष ने उसे धमकाते हुए कहा था, ‘‘राकेश, तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम हम दोनों के बीच में मत आओ.’’

राकेश उस का मंसूबा भांप गया था. इस के बावजूद पत्नी के बुलाने पर आ गया था. उस रात वहां सभी ने शराब पी और मुरगा खाया. राकेश को राधा और सुभाष ने जम कर शराब पिलाई थी. जब वह नशे में धुत हो गया तो उन्होंने उस की निर्मम हत्या कर दी.

शराब के नशे में बेसुध राकेश के सिर पर हथौड़ा मार कर उसे खत्म कर दिया और तेजधार वाले चाकू से उस के शरीर के 8 टुकड़े कर दिए. इस के बाद एक बड़े ड्रम में उस के शव के सभी टुकड़ों को डाल कर गलाने के लिए ऊपर से यूरिया, नमक और तेजाब भर दिया.

हत्या: प्रेम गली अति सांकरी

कमरे से बदबू बाहर न जाए, इसलिए खिड़की और दरवाजे में कपड़े ठूंस दिए गए. रात में कमरे के दरवाजे और आसपास काफी संख्या में अगरबत्ती जलाने के बाद सभी आरोपी वहां से निकल गए.

4 दिन तक यूरिया, सल्फ्यूरिक एसिड और नमक से शव गलने के कारण ड्रम में अमोनियम नाइट्रेट गैस बनने लगी. इस गैस के जलती अगरबत्ती के संपर्क के कारण ही वहां धमाका हुआ और सारे राज का परदाफाश हो गया.

सुभाष व राकेश की शराब के धंधे की चलती थी फ्रैंचाइजी

अखाड़ा घाट रोड, बालूघाट व सिकंदरपुर क्षेत्र में सुभाष व राकेश की जोड़ी ने अवैध शराब के धंधे की फ्रैंचाइजी खोल रखी थी. बड़े धंधेबाजों से शराब ले कर इस क्षेत्र के छोटेछोटे विक्रेताओं को आपूर्ति की जाती थी. इस धंधे की कमाई से राकेश और सुभाष दोनों ने कई स्थानों पर जमीन भी खरीदी थी. अब पुलिस उन संपत्तियों का पता लगा रही है.

2 महीने पहले जब राकेश के ठिकाने से पुलिस ने शराब की बड़ी खेप पकड़ी तभी उस का खेल बिगड़ गया था. पुलिस के भय से राकेश शुरू में इधरउधर छिपता रहा, फिर वह भाग कर दिल्ली चला गया था. इधर उस की पत्नी को मौका मिल गया और वह बच्चों को ले कर सुभाष के पास चली गई थी.

साली और साढ़ू की तलाश में छापेमारी

घटना में शामिल मृतक राकेश की साली कृष्णा और साढ़ू विकास की तलाश में एक टीम समस्तीपुर और सीतामढ़ी में छापेमारी कर रही है. हालांकि, कथा लिखने तक दोनों का सुराग नहीं मिला था. गिरफ्तार आरोपियों से उन दोनों के ठिकाने के बारे में पूछताछ की गई. सुभाष ने बताया, ‘‘विकास और कृष्णा के बारे में कोई जानकारी नहीं है. घटना के बाद से दोनों का उस से संपर्क नहीं हुआ है.’’  हालांकि उस के बयान पर पुलिस संदेह कर रही है.

टाउन डिप्टी एसपी रामनरेश पासवान का कहना है, ‘‘कई बिंदुओं पर आरोपियों से पूछताछ की गई. पुलिस की पूछताछ में आरोपियों ने बताया है कि घटना के बाद सभी एक साथ शहर से भागे थे. पहले वे सब बसस्टैंड पर छिप गए थे. वहीं रात गुजारी थी. फिर दूसरे दिन अलगअलग जगहों के लिए निकले थे. विकास और कृष्णा ने सीतामढ़ी जाने की बात कही थी. वहां से निकलने के बाद सुभाष का उन से संपर्क नहीं हुआ.’’

सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

साक्षी के बाद: भाग 3

फिर साक्षी एक तटस्थ भाव चेहरे पर लिए चली गई थी और पूर्वा अगली सुबह अरुण और सूर्य के साथ आगरा चली गई भाई की शादी में. 5 दिन बाद लौटी तो ये सब. वहां मौजूद लोगों से पता चला कि वह अबौर्शन के लिए अकेली ही अस्पताल पहुंच गई थी. सास को पता चला तो वह भी पीछेपीछे पहुंच गईं और उस की मरजी देखते हुए उसे इजाजत दे दी. फिर अबौर्शन ऐसा हुआ कि बच्ची के साथसाथ वह भी चली गई.

देखते ही देखते साक्षी विदा हो गई सदा के लिए. कई दिन तक हर दिन पूर्वा वहां जाती और कलेजे को पत्थर बना कर वहां बैठी रहती. उस दौरान स्वाति और उस की मां कई दिन पूर्वा के घर ही रहीं. एक दिन पारंपरिक रस्म अदायगी के बाद साक्षी का अध्याय बंद हो गया. सुहानी मौसी के साथ इन दिनों में इतना घुलमिल गई थी कि पल भर भी नहीं रहती थी उस के बिना, इसलिए फैसला यह हुआ कि फिलहाल तो मौसी व नानी के साथ ही जाएगी वह.

एक दौर गुजरा और दूसरा दौर शुरू हुआ उदासी का, साक्षी के संग गुजारे अनगिनत खूबसूरत पलों की यादों का. संदीप भाई भी जबतब इन यादों में हिस्सा बंटाने चले आते और सिर्फ और सिर्फ साक्षी की बातें करते तो पूर्वा तड़प उठती. लगता था संदीप भाई कभी नहीं संभल पाएंगे, लेकिन हर अगले दिन रत्तीरत्ती कर दुख कम होता जा रहा था. यही तो कुदरत का नियम भी है.

‘‘अरे, ऐसे कैसे बैठी हो गरमी में, पूर्वा और इतनी सुबह क्यों उठ गईं तुम?’’ अरुण ने पंखा चलाते हुए कहा तो पूर्वा वर्तमान में लौट आई.

‘‘लोग कितनी जल्दी भुला देते हैं उन्हें, जिन के बिना घड़ी भर भी न जी सकने का दावा करते हैं, है न अरुण?’’ एक सर्द सांस लेते हुए सपाट स्वर में कहा पूर्वा ने.

‘‘किस की बात कर रही हो पूर्वा?’’

‘‘इंदु भाभी का फोन आया था. आप के संदीप ने दूसरी शादी कर ली.’’

सुन कर चौंके नहीं अरुण. बस तटस्थ से खामोश बैठे रहे.

हैरानी हुई पूर्वा को. पूछा, ‘‘आप कुछ कहते क्यों नहीं अरुण? हां, क्यों कहोगे, मर्द हो न, मर्द का ही साथ दोगे. अच्छा चलो, एक बात का ही जवाब दे दो. यही हादसा अगर संदीप भाई के साथ गुजरा होता तो क्या साक्षी दूसरी शादी करती, वह भी इतनी जल्दी?’’

‘‘नहीं करती, बिलकुल नहीं करती, मैं मानता हूं. औरत में वह शक्ति है जिस का रत्ती भर भी हम मर्द नहीं छू सकते. तभी तो मैं दिल से इज्जत करता हूं औरत की और इंदु भाभी या उन जैसी कोई और रिपोर्टर तुम्हें नमकमिर्च लगा कर कल को कुछ बताए, उस से पहले मैं ही बता देता हूं तुम्हें कि मैं भी संदीप के साथ था. कल मैं औफिस के काम से नहीं, संदीप के लिए बाहर गया था.’’

‘‘क्या, इतनी बड़ी बात छिपाई आप ने मुझ से? लड़की कौन है?’’ घायल स्वर में पूछा पूर्वा ने.

‘‘साक्षी की बहन स्वाति.’’

‘‘क्या, ऐसा कैसे कर सकते हैं संदीप भाई और वे साक्षी की मां, कैसा दोहरा चरित्र है उन का? उस वक्त तो सब की नजरों से बचाबचा कर यहां छिपा रही थीं स्वाति को. कहती थीं, बिटिया गरीब हूं तो क्या जमीर बेच दूं? खूब समझ रही हूं मैं इन सब के मन की बात, पर कैसे कर दूं अपनी उस बच्ची को इन के हवाले, जहां से मेरी एक बेटी गई. जीजूजीजू कहते जबान नहीं थकती लड़की की, अब कैसे उसे पति मान पाएगी? और संदीप भाई का क्या यही प्यार था साक्षी के प्रति कि वह चली गई तो उसी की बहन ब्याह लाए? और कोई लड़की नहीं बची थी क्या दुनिया में?’’ अपने स्वभाव के एकदम विपरीत अंगारे उगल रही थी पूर्वा.

अरुण ने आगे बढ़ कर उस के मुंह पर अपनी हथेली रख दी. बोले, ‘‘शांत हो जाओ, पूर्वा. यह सब इतना आसान नहीं था संदीप के लिए और न ही स्वाति के लिए. रही बात साक्षी की मां की, तो यह उन की मरजी नहीं थी, स्वाति का फैसला था. उस का कहना था कि मेरे लिए साक्षी दीदी अब सिर्फ सुहानी में बाकी हैं. उस के सिवा और कोई खून का रिश्ता नहीं बचा मेरे पास. मैं सुहानी के बिना नहीं जी सकती. अगर इस की नई मां आ गई तो सुहानी के साथ नहीं मिलनेजुलने देगी हमें. तब इसे देखने तक को तरस जाऊंगी मैं और शादी तो मुझे कभी न कभी करनी ही है, तो क्यों न जीजू से ही कर लूं. सब समस्याएं हल हो जाएंगी.

‘‘साक्षी की मां ने मुझे अलग ले जा कर कहा था कि मैं अपने ही कहे लफ्जों पर शर्मिंदा हूं अरुणजी, संदीपजी के साथ स्वाति का रिश्ता न जोड़ने की बात एक मां के दिल ने की थी और अब जोड़ने का फैसला एक मां के दिमाग का है. कहां है मेरे पास कुछ भी, जो स्वाति को ब्याह सकूं. होता तो कब की ब्याह चुकी होती. और भी बहुत कुछ था, जो अनकहा हो कर भी बहुत कुछ कह रहा था. तुम ने उन की गरीबी नहीं देखी पूर्वा, मैं ने देखी है. एक छोटे से किराए के कमरे में रहती हैं मांबेटी. एक नर्सरी स्कूल में नौकरी करती हैं आंटी और थोड़ी तनख्वाह में से घर भी चला रही हैं और स्वाति को भी पढ़ा रही हैं.

‘‘अब रही बात संदीपकी, तो उस का कहना था कि अरुण, मम्मीजी मेरा ब्याह किए बिना तो मानेंगी नहीं, इकलौता जो हूं मैं. फिर कोई और लड़की क्यों, स्वाति क्यों नहीं? एक वही तो है, जो मेरा दर्द समझ सकती है, क्योंकि यही दर्द उस का भी है. और एक वही है, जो मेरी सुहानी को सगी मां की तरह पाल सकती है. कोई और आ गई तो सब कुछ तहसनहस हो जाएगा.’’

पूर्वा खामोश बैठी रही बिना एक शब्द बोले, तो अरुण ने तड़प कर कहा, ‘‘यों खामोश न बैठो पूर्वा, कुछ तो कहो.’’

‘‘बसबस, बहुत हो गया. मैं चाय बना कर लाती हूं. चाय पी कर घर के कामों में मेरी मदद करो. आज बाई छुट्टी पर है. साथ ही, यह सोच कर रखो कि स्वाति को शगुन में क्या देना है. यह काम भी सुबहसुबह निबटा आएंगे और स्वाति और संदीप भाई को भी अच्छा लगेगा.’’

एक मीठी मुसकराहट के साथ पूर्वा उठ खड़ी हुई तो राहत भरी मुसकान अरुण के होंठों पर भी बिखर गई.

सौल्वर गैंग : पैसा फेंको, इम्तिहान पास करो

बीरेंद्र बरियार

लाखों रुपए ले कर फर्जी तरीके से इम्तिहान देने वालों की जगह किसी सौल्वर (सवाल हल करने वाला) को बिठा कर इम्तिहान देने वालों के एक गैंग का खुलासा हुआ है. इस गैंग के सरगना के तार बिहार के छपरा और जहानाबाद जिले से जुड़े हुए हैं. सौल्वर गैंग के ज्यादातर लोग मैडिकल और इंजीनियरिंग का इम्तिहान पास कर चुके हैं या उस की तैयारियों में लगे हुए हैं.

सौल्वरों के जरीए नीट (नैशनल ऐलिजिबिलिटी कम ऐंट्रैंस टैस्ट) पास कराने का सौदा करने वाले गैंग का सरगना पीके उर्फ प्रेम कुमार उर्फ प्रमोद कुमार उर्फ नीलेश इस के लिए 30 लाख से 50 लाख रुपए तक वसूलता था.

इसी पैसे से पीके ने पटना में तिमंजिला मकान और दानापुर में 4 प्लौट खरीदे. उस के पास फौर्चुनर, हुंडई लिवो और एक वैगनआर कार बरामद हुई. बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और त्रिपुरा की पुलिस पीके की तलाश में लगी हुई थी. वाराणसी पुलिस ने पीके को पकड़ने वाले को एक लाख रुपए का इनाम देने का ऐलान कर रखा था.

पीके पिछले 6-7 सालों से नीट (यूजी) और पीजी के इम्तिहान में सौल्वरों को बिठा कर कैंडिडेट को पास कराने का गेम खेल रहा था. इस के अलावा वह बिहार और उत्तर प्रदेश में मास्टरों की बहाली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अधीनस्थ सेवा, बिहार पुलिस सेवा वगैरह में भी अपना गोरखधंधा चला रहा था. उसे पिछली 18 नवंबर को छपरा में दबोचा गया.

पीके की बहन प्रिया भी इस गिरोह में शामिल है. प्रिया साल 2019 में पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज से एमबीबीएस की डिगरी ले कर डाक्टर बनी थी. फिलहाल वह छपरा के सारण में नगरा ब्लौक के प्राइमरी हैल्थ सैंटर में पोस्टेड है.

प्रिया की शादी रीतेश कुमार सिंह के साथ साल 2014 में हुई थी, जो बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग में क्लर्क है. वह इस पद पर साल 2004 में बहाल हुआ था. पीके की गिरफ्तारी के बाद उस की बहन प्रिया की एमबीबीएस की डिगरी भी जांच के घेरे में आ गई है.

पीके ने कोरैस्पोंडेंस कोर्स के जरीए पटना यूनिवर्सिटी से बीए का इम्तिहान पास किया था. उस ने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बता रखा था कि वह डाक्टर है.

पीके मूल रूप से छपरा के सारण के एकमासिंटू गांव का रहने वाला है. उस के पिता कमलवंश नारायण सिंह बिहार सरकार के उद्योग विभाग से साल 1990 में रिटायर हो चुके हैं. पीके अपने पिता के साथ ही पटना की पाटलिपुत्र कालोनी के अपने मकान में रहता था.

12 सितंबर को सारनाथ के एक परीक्षा केंद्र पर त्रिपुरा के रहने वाली हिना विश्वास की जगह बीएचयू की बीडीएस की छात्रा जूली कुमारी को इम्तिहान देते हुए पकड़ा गया था. इस मामले में जूली, उस की मां बबीता, भाई ओसामा, विकास कुमार महतो, रवि कुमार गुप्ता और तपन साहा को पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

उस के बाद 22 सितंबर को पटना के रघुनाथ गर्ल्स हाईस्कूल में डिप्लोमा इन ऐलीमैंट्री ऐजूकेशन के इम्तिहान में 4 लड़कियों समेत 9 सौल्वर को पकड़ा गया.

इम्तिहान के दौरान वहां आए इंविजीलेटर को कुछ छात्रों पर शक हुआ. उस ने मजिस्ट्रेट को इस बात की जानकारी दी. जब सभी छात्रों के एडमिट कार्ड की जांच की गई, तो सौल्वर गैंग के लोग पकड़ में आ गए.

सौल्वर गैंग के सदस्य रिंकू कुमारी (मधुबनी), शैलेंद्र कुमार (मधेपुरा), शिवम सौरभ (मधुबनी), बीरेंद्र कुमार (मधुबनी), सुरुचि कुमारी (नालंदा), रंजीत कुमार (निर्मली), विनोद कुमार (सुपौल), गुडि़या कुमार (नालंदा), गुंजन कुमारी (मधेपुरा) को पुलिस ने गिरफ्तार किया.

पाटलिपुत्र थाना क्षेत्र के मंगलदीप अपार्टमैंट्स के पास औनलाइन परीक्षा केंद्र आईडीजेड-5 में इम्तिहान देने के दौरान किसी दूसरे की जगह इम्तिहान दे रहे दीपक कुमार को पकड़ा गया. बाद में उस से मिली जानकारी के आधार पर ओरिजनल उम्मीदवार लकी कुमार को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

लकी कुमार सारण के गरखा गांव का रहने वाला है. दीपक ने पुलिस को बताया कि एक लाख रुपए में सौदा तय हुआ था और एडवांस के तौर पर 10,000 रुपए मिले थे. बाकी रकम कैंडिडेट के पास होने के बाद मिलने वाली थी.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, लकी कुमार ने दीपक को अपने एडमिट कार्ड के साथ इम्तिहान सैंटर में पहुंचा दिया था. इम्तिहान शुरू होने से पहले जब सभी कैंडिडेट की जांच की गई, तो दीपक का चेहरा एडमिट कार्ड में चिपकाए गए फोटो से मेल नहीं खा रहा था. शक होने पर दीपक से पूछताछ की गई. पहले तो उस ने चकमा देने की कोशिश की, पर कुछ ही देर में सबकुछ सचसच उगल दिया.

पीके के गैंग में उस की प्रेमिका समेत दूसरी 12 लड़कियां भी शामिल थीं. सभी लड़कियां एजेंट का काम करती थीं और मैडिकल और इंजीनियरिंग का इम्तिहान देने वाले छात्रों को अपने जाल में फंसाती थीं. जब कोई छात्र जाल में फंस जाता था, तो उस की काउंसलिंग भी कराई जाती थी.

पुलिस रिकौर्ड के मुताबिक, बिहार के जहानाबाद जिले के अतुल वत्स ने सब से पहले सौल्वर गैंग बनाया था. उस के बाद उस ने काफी कम समय में बिहार समेत हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश तक अपना जाल फैला लिया था.

उस के गैंग में तकरीबन 60 लड़के थे. सभी लड़कों को बाकायदा ट्रेनिंग दी गई थी कि किस तरह से शिकार को फंसाया जाए.

सभी एजेंट लग्जरी गाडि़यों में घूमते थे और महंगे होटलों में ठहरते थे. तमाम सुविधाओं के साथ उन्हें 20,000 से 25,000 रुपए हर महीने तनख्वाह के रूप में दिए जाते थे.

सौल्वर गैंग के लोगों ने पुलिस से बचने के लिए ऐसा पक्का इंतजाम कर रखा था कि उन का मोबाइल फोन सर्विलांस पर ट्रेस न हो सके. गैंग के सभी लोगों को कोडवर्ड में बात करने की हिदायत थी. जैसे ‘टिशू मिलना’ का मतलब होता था, डौक्यूमैंट मिलना. इसी तरह ‘खजूर मिलना’ का मतलब होता था, एडवांस मिलना. ‘डनडन’ कहा गया तो समझिए डील पक्की हो गई.

बीटैक, नीट, बीबीए क्वालिफाई कर चुके स्टूडैंट रातोंरात करोड़पति बनने के चक्कर में सौल्वर गैंग के जाल में फंसते रहे हैं.

गैंग का सरगना अतुल वत्स खुद बीटैक है. इस के अलावा गैंग में शामिल उज्ज्वल कश्यप, रमेश सिंह, प्रशांत कुमार और रोहित कुमार के पास भी बीटैक की डिगरी है.

साल 2006 में अतुल ने एनईईटी में और कंप्यूटर साइंस में दाखिला लिया था. साल 2010 में बीटैक करने के बाद अतुल ने दिल्ली जा कर एमबीए किया.

एमबीए में उसे काफी कम नंबर मिले, जिस से वह बहुत परेशान हुआ था. उस के बाद वह पटना लौट आया और अपने दोस्त दीपक के साथ मिल कर उस ने बोरिंग रोड इलाके में इंजीनियरिंग और मैडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला.

कोचिंग में अतुल फिजिक्स और कार्बनिक रसायन पढ़ाता था. साल 2014 में उस ने यूको बैंक के पीओ का इम्तिहान पास किया, लेकिन एक साल में ही उस का मन ऊब गया और उस ने नौकरी छोड़ दी.

साल 2016 में नीट पेपर सौल्वर गैंग में अतुल का नाम आया था. साल 2017 में वह पहली बार पुलिस के हत्थे चढ़ा था. दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था.

Holi Special: अधूरी चाह- भाग 1

चलिए, आप को संजय चावला से मिलाते हैं… आज से 25 साल पहले का संजय चावला.

संजय के पापा नौकरी करते हैं. एक बड़ा भाई, जिस की अपने ही घर के बाहर किराने की दुकान है. घर के बाहर के हिस्से में 3 दुकानें हैं. पापा ने पहले से ही 3 दुकानें बनाईं, तीनों बेटों के लिए.

छोटा बेटा अभी पढ़ रहा है. बड़े बेटे की शादी हो गई है. अब संजय का नंबर आया है, हजारों लड़कियां उस पर मरती थीं, एक से एक हसीना उस के कदमों में दिल बिछा देती थीं, उस की एक ?ालक पर ही लड़कियां तड़प उठती थीं, उस के साथ न जाने कितने सपनों के तानेबाने बुनतीं, लेकिन उस की भाभी को उस के लिए कोई लड़की नहीं जंचती.

अरे भई, कैसे जंचेगी? कोई संजय जैसी ही मिले तब न. संजय का गोराचिट्टा रंग, तीखे नैननक्श, आंखें ऐसीं जैसे नशा हो इन में, जो देखे बस खो जाए इन नशीली आंखों में. लंबा कद, चौड़ा सीना, होंठों के ऊपर छोटीछोटी बारीक सी मूंछें, चाल में गजब का रोबीलापन और स्वभाव जैसे हंसी बस इन्हीं की गुलाम हो. जी हां साहब, एकदम हंसमुख स्वभाव… ऐसे हैं संजय चावला.

बड़ी मशक्कत के बाद एक कश्मीर की कली भा गई संजय साहब को. क्यों न भाए कश्मीर की जो ब्यूटी है. शालिनी नाम है. नाम से मेल खाता स्वभाव. शालीन सी, बला की खूबसूरती जिसे देखते ही संजय साहब अपना दिल हार बैठे थे. बस, ?ाट से हां बोल दी शादी के लिए.

अरेअरे, कोई शालिनी से तो पूछो कि वह क्या चाहती है, लेकिन नहीं, कोई पूछने की जरूरत नहीं. उस का तो एक ही फैसला है कि जो मम्मीपापा कहेंगे, वही ठीक है.

बस तो चट मंगनी और पट ब्याह वाली बात हो गई. शादी के बाद जिम्मेदारी बढ़ गई. पहले दोनों भाई इसी एक ही किराने की दुकान पर बैठते थे, लेकिन अब संजय को लगा कि खर्चे बढ़े हैं, मगर आमदनी नहीं. तो उस ने भी नौकरी करने के बारे में सोचा. नौकरी भी अच्छी मिल गई. घरपरिवार में सब मिलजुल कर रहते हैं. इस बात को 8 साल बीत गए.

बड़े भाई सुनील के भी 2 बच्चे हैं और संजय के भी 2 बच्चे हैं. छोटे भाई  संदीप की भी शादी हो गई. परिवार भी बढ़े और खर्चे भी. मम्मीपापा भी नहीं रहे. अब तक तो बहुत प्यार था परिवार में, लेकिन कहते हैं न कि प्यार भी पैसा मांगता है, पेट भी पैसा मांगता है, पैसे बिना प्यार बेकार लगता है और प्यार से पेट भी नहीं भरता.

संजय ने कश्मीर में नौकरी तलाश की, तो दिल्ली से अच्छी नौकरी उसे कश्मीर में मिल गई और वह अपनी फैमिली के साथ कश्मीर शिफ्ट हो गया.

एक तो पहले से इतना हैंडसम, उस पर कश्मीर की आबोहवा में संजय और भी कातिल हो गया. जहां से निकलता, न जाने कितने दिलों पर छुरियां चलती थीं, कितने दिल घायल होते थे.

संजय परिवार को ले कर कश्मीर चला तो गया, लेकिन भाइयों से दूर रह नहीं सकता था. अकसर 4-6 महीने बाद जरूर मिलने आता और 10-15 दिन यहीं रहता.

लेकिन जब भी आता, महल्ला तो क्या जिसे भी पता चलता कि संजय आया है, सब लड़कियां, जिन की शादी भी हो चुकी थी, फिर भी संजय की एक ?ालक पाने के लिए किसी न किसी बहाने कोई संजय के घर और कोई उस के भाई की दुकान पर आती, ताकि संजय की एक ?ालक मिल जाए.

यह बात संजय भी अच्छे से जानता था और मन ही मन इतराता था, लेकिन आज संजय को दिल्ली आए 8 महीने हो चुके हैं. शुरू में 2 दिन तो बहुत ही औरतें आईं संजय की ?ालक पाने के बहाने (जी हां औरतें, क्योंकि संजय को कश्मीर गए अब तक 17 साल बीत चुके हैं). इन 17 सालों में ऐसा नहीं कि संजय दिल्ली नहीं आया या कभी वे लड़कियां संजय को देखने के बहाने नहीं आईं, मगर अब तक वे सब औरतें बन चुकी हैं न. दोस्तो, तकरीबन संजय और उन सब की उम्र (जो संजय पर मरती थीं) 45 से 50 साल के बीच है, तो औरतें ही कहेंगे न.

हां, तो अब बस 2 ही दिन औरतें आईं उस की ?ालक पाने को, लेकिन अब नहीं आतीं वे, क्योंकि उन से संजय का उतरा हुआ चेहरा देखा नहीं जाता. वे संजय को इस तरह हारा हुआ बरदाश्त नहीं कर पा रहीं, लेकिन फोन पर संजय से बात कर के उसे ढांढ़स बंधा रही हैं, उसे अपनी परेशानी से बाहर निकलने का रास्ता बताती हैं, उसे नई राह पर चलने की सलाह देती हैं, उसे अपने हक के लिए लड़ना सिखाती हैं, क्योंकि संजय ने कभी परिवार में किसी भी चीज को ले कर मेरातेरा किया ही नहीं, वह सबकुछ छोड़ कर कश्मीर चला गया था. वहां उस की अच्छी नौकरी थी, उस ने यहां से पुश्तैनी जायदाद पर कोई हक कभी जताया ही नहीं था. लेकिन आज उसे हक जताने की जरूरत है. आज हक जताने की मजबूरी है, लेकिन फिर भी भाई के सामने उस की बोलने की हिम्मत नहीं होती, इसलिए सब उसे अपने हक के लिए बोलने को कहते हैं.

संजय का कश्मीर में सबकुछ खत्म हो गया है, इसलिए अब वह भाइयों से पुश्तैनी जायदाद में अपना हिस्सा ले कर नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करना चाहता है.

लेकिन ऐसा क्यों? जानते हैं ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा क्या हुआ संजय के साथ कि उस का खिलता चेहरा मुर?ा गया? ऐसा क्या हुआ, जो उसे भाई से आज इतने सालों बाद अपना हक मांगना पड़ा?

सुनिए, संजय की दर्दभरी दास्तां…

जब संजय ने कश्मीर शिफ्ट किया था, उस की अच्छीभली गृहस्थी चल रही थी, लेकिन कुछ ही समय बाद तकरीबन 4 साल के बाद एक बुरी छाया मंडराई परिवार पर.

जी हां, जब कोई मुसीबत आएगी तो बुरी छाया का मंडराना ही कहेंगे. शालिनी को लगाव हो गया किसी से यानी प्यार हो गया.

अजीब लग रहा है न सुन कर, लेकिन यही सच है. तकरीबन 32-33 साल की शालिनी और इसी उम्र का ही अजय श्रीवास्तव, जो शालिनी के घर से तकरीबन 200-250 मीटर की दूरी पर ही रहता था.

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