family story in hindi

family story in hindi
सिमरन और रंजना पूरे 3 साल बाद मिल रही थीं. बीयू से एमबीए फाइनैंस करने के बाद गुरुग्राम में अपना कैरियर सैटल करने में वे दोनों इतना बिजी रहीं कि मिलने की फुरसत ही नहीं मिली.
अब जा कर वे सैटल हुई थीं. सिमरन टैक्नोसौल्यूशन कंपनी में मैनेजर थी, जबकि रंजना मल्टी ब्रांड रिटेल चेन की मार्केटिंग मैनेजर थी.
सिमरन के बियर के गिलास को रंजना ने मना किया, तो सिमरन ने हैरानी से उसे घूरते हुए कहा, ‘‘क्या बकवास है यार… एटीट्यूड मत दिखा… गोयल सर की बर्थडे पार्टी में मैं भी थी. पता है कि तू कितनी बड़ी वाली पियक्कड़ है.’’
रंजना ने हंसते हुए गिलास थाम लिया और बोली, ‘‘वैसे भी बियर थोड़ी न शराब होती है… और सुना सिमरन, शादी, पति, बच्चे का क्या सीन चल रहा है?’’
सिमरन हंसते हुए बोली, ‘‘लिवइन रिलेशनशिप में हूं यार अपने असिस्टैंट के साथ. उम्र में 2 साल छोटा है मुझ से, डाटा ऐनालिस्ट है.’’
‘‘उम्र में 2 साल छोटा और असिस्टैंट,’’ रंजना ने यह कहते हुए सिमरन को बिग चियर्स किया.
रंजना आगे बोली, ‘‘वाह क्या बात है. तुम्हारे शौक ही निराले हैं. यूनिवर्सिटी में भी तुम्हारा जूनियर में ही इंटरैस्ट रहता था. बीकौम औनर्स का अनिकेत याद है, जिस के साथ तुम घूमने चली गई थीं और रात देर होने पर मैटर्न ने जम कर तुम्हारी बैंड बजाई थी?’’
सिमरन ने कहा, ‘‘याद है. वे भी क्या दिन थे यार… टैलीविजन बड़ा हो या छोटा, उन का रिमोट सेम साइज का होता है.’’
इस बात पर उन दोनों ने ठहाके मारते हुए एकदूसरे को ताली दी.
सिमरन ने बात को आगे बढ़ाया, ‘‘डिसाइड नहीं कर पा रही कि लिवइन रिलेशनशिप के साथ शादी करनी चाहिए या नहीं?’’
रंजना ने ड्रिंक को बीच में रोकते हुए कहा, ‘‘सेम प्रौब्लम मेरे साथ भी है. मैं एक पेंटर के साथ कोर्ट में शादी की अर्जी दाखिल कर चुकी हूं. हम साथ में रहते हैं, लेकिन अब अपने परिवार से उसे मिलाने से पहले एक बार उस के कमिटमैंट को टैस्ट करना चाहती हूं.’’
सिमरन बोली, ‘‘वाह, क्या बात है. क्यों न हम एकदूसरे के होने वाले पतियों को टैस्ट करें…’’
रंजना ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘मतलब…?’’
सिमरन बोली, ‘‘हम एकदूसरे के पतियों पर लाइन मारते हैं. अगर वे फिसल गए तो हम शादी से मना कर देंगे.’’
इस पर रंजना बोली, ‘‘और अगर हमें एकदूसरे के प्रेमियों से सच्चा वाला प्यार हो गया तो…?’’
सिमरन ने कहा, ‘‘बेवकूफी भरी बातें मत करो. हम कारपोरेट हैं, हमारी कोई बात सच्ची नहीं होती. सब बिजनैस है. फायदे का सौदा जहां हो. वैसे भी सच्चा प्यार सिर्फ किस्सेकहानियों में पाया जाता है. हमारे पैसों पर ऐश करने के लिए, हमारे लग्जरी जिस्म के साथ संबंध बनाने के लिए कोई भी हमें धोखा दे सकता है.’’
रंजना बोली, ‘‘बात तो तेरी सही है. गलत आदमी से शादी हो गई, तो जिंदगी बरबाद समझो अपनी.’’
सिमरन ने कहा, ‘‘ओके डन. करते हैं ऐसा. अगर वे फिसल गए तो हमें मजा मिलेगा और नहीं फिसले तो हमें जीजाजी मिलेंगे.’’
इस बात पर वे दोनों एक बार फिर ठहाके मार कर हंस दीं.
दूसरे दिन तय योजना के मुताबिक रंजना सिमरन के औफिस में बहुत ही टाइट जींस और ढीली शर्ट पहन कर आई थी.
रंजना के बड़ेबड़े नाखून पर नेल्स आर्ट को देख कर सिमरन ने आंख मारते हुए कहा, ‘‘वाहवाह, लगता है अब तुम्हें मास्टरबेट करने की जरूरत नहीं पड़ती है.’’
सिमरन और रंजना बीयू के समता होस्टल में रूममेट रही थीं और एकदूसरे के शौक अच्छी तरह से जानती थीं.
सिमरन ने घंटी बजा कर अपने लिवइन पार्टनर विशाल को अंदर बुलाया और आदेश दिया कि आप मैडम के साथ चले जाइए और इन को रिटेल स्टोर के डैटा को फिल्टर करने में मदद कीजिए.
रंजना अपनी केटीएम मोटरसाइकिल से आई थी. पार्किंग में पहुंच कर उस ने विशाल से मोटरसाइकिल चलाने को कहा.
डीपीजी कालेज रोड पर बनी सिमरन की कंपनी से होंडा चौक, फिर सुभाष चौक होते हुए आर्चीव ड्राइव पर रंजना का फ्लैट 12 किलोमीटर दूर था. केटीएम मोटरसाइकिल को बनाया ही इसलिए गया है कि राइड के दौरान भी प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे से अच्छी तरह चिपके रहें.
रंजना कुछ ज्यादा ही खुला बरताव कर रही थी. उस ने अपनी जांघों को विशाल की जांघों से सटा रखा था. उस ने विशाल की पीठ से अपने उभारों को तकरीबन आधा दबा रखा था.
विशाल मोटरसाइकिल को 40 से ज्यादा स्पीड में नहीं चला रहा था, फिर भी रंजना ने तेज भगाने और डर लगने का बहाना बना कर अपने दोनों हाथों से क्रौस बना कर विशाल को आगे की ओर से जकड़ लिया था और अपनी हथेलियों से विशाल के चौड़े सीने को सहला रही थी.
ड्राइव के दौरान ही रंजना ने विशाल की जांघों के बीच अपने काम की तकरीबन हर एक चीज के आकारप्रकार का अंदाजा ले लिया. पैर की पिंडलियों से ले कर कंधों तक रंजना विशाल से इस कदर चिपकी हुई थी कि उन के बीच से हवा भी नहीं गुजर सकती थी.
पूरे रास्ते रंजना को बहुत मजा आया. इस तरीके का करंट उस ने संजय के साथ चिपकते हुए आज तक महसूस नहीं किया था.
महिंद्रा ल्यूमिनेयर के पार्किंग की मंद रोशनी में रंजना ने ध्यान से विशाल को देखा. लिफ्ट में विशाल ने शरमा कर आंखें नीची कर ली थीं, लेकिन रंजना उसे ही ताड़ रही थी. रंजना को सिमरन की किस्मत से जलन हो रही थी.
फ्लैट में पहुंचते ही रंजना विशाल को लिविंग रूम में बैठा कर बाथरूम चली गई. वापस आई तो जींस की जगह तौलिया लपेटे थी. विशाल कंप्यूटर टेबल पर रखा संजय और रंजना का फोटो देख रहा था.
विशाल ने पूछा, ‘‘ये आप के पति हैं?’’
रंजना बोली, ‘‘उन की चिंता छोड़ दो, तुम उन से नहीं मुझ से मिलने आए हो,’’ यह कह कर रंजना ने अपनी कमर पर लिपटे तौलिए को उतार कर फोटो को उस से ढक दिया.
रंजना के गोल, गोरे और चिकने कूल्हे और मांसल जांघें दिखाई देने लगीं, शर्ट के बीच से उस की गुलाबी डोटेड पैंटी भी साफ दिखाई दे रही थी.
रामकुमार खुशीखुशी घर के अंदर गए. लगता था, जैसे वहां खुशी की लहर दौड़ गई थी. कुछ ही देर में वे अपनी पत्नी के साथ उमा का फोटो ले कर आ गए. उमा तो लाजवश कमरे में नहीं आई. उस की मां ने एक डब्बे में कुछ मिठाई गौतम के लिए रख दी. पतिपत्नी अत्यंत स्नेह भरी नजरों से गौतम को देख रहे थे.
अपने कमरे में पहुंचते ही गौतम ने न्यूयार्क के उस विश्वविद्यालय को प्रवेशपत्र और आर्थिक सहायता के लिए फार्म भेजने के लिए लिखा. दिल्ली जाने से पहले वह एक बार और उमा के घर गया. कुछ समय के लिए उन लोगों ने गौतम और उमा को कमरे में अकेला छोड़ दिया था, परंतु दोनों ही शरमाते रहे.
गौतम जब दिल्ली से वापस आया तो रामकुमार ने उसे विभाग में पहुंचते ही अपने कमरे में बुलाया. गौतम ने उन्हें बताया कि मातापिता दोनों ही राजी थे, इस रिश्ते के लिए. परंतु छोटी बहन की शादी से पहले इस बारे में कुछ भी जिक्र नहीं करना चाहते थे.
गौतम के मातापिता की रजामंदी के बाद तो गौतम का उमा के घर आनाजाना और भी बढ़ गया. उस ने जब एक दिन उमा से सिनेमा चलने के लिए कहा तो वह टाल गई. इन्हीं दिनों न्यूयार्क से फार्म आ गया, जो उस ने तुरंत भर कर भेज दिया. रामकुमार ने अपने दोस्त को न्यूयार्क पत्र लिखा और गौतम की अत्यधिक तारीफ और सिफारिश की.
3 महीने प्रतीक्षा करने के पश्चात वह पत्र न्यूयार्क से आया, जिस की गौतम कल्पना किया करता था. उस को पीएच.डी. में प्रवेश और समुचित आर्थिक सहायता मिल गई थी. वह रामकुमार का आभारी था. उन की सिफारिश के बिना उस को यह आर्थिक सहायता कभी न मिल पाती.
गौतम की छोटी बहन का रिश्ता बनारस में हो गया था. शादी 5 महीने बाद तय हुई. गौतम ने उमा को समझाया कि बस 1 साल की ही तो बात है. अगले साल वह शादी करने भारत आएगा और उस को दुलहन बना कर ले जाएगा.
कुछ ही महीने में गौतम न्यूयार्क आ गया. यहां उसे वह विश्वविद्यालय ज्यादा अच्छा न लगा. इधरउधर दौड़धूप कर के उसे न्यूयार्क में ही दूसरे विश्वविद्यालय में प्रवेश व आर्थिक सहायता मिल गई.
उमा के 2-3 पत्र आए थे, पर गौतम व्यस्तता के कारण उत्तर भी न दे पाया. जब पिताजी का पत्र आया तो उमा का चेहरा उस की आंखों के सामने नाचने लगा. पिताजी ने लिखा था कि रामकुमार दिल्ली किसी काम से आए थे तो उन से भी मिलने आ गए. पिताजी को समझ में नहीं आया कि उन की कौन सी बेटी की शादी बनारस में तय हुई थी.
उन्होंने लिखा था कि अपनी शादी का जिक्र करने के लिए उसे इतना शरमाने की क्या आवश्यकता थी.
गौतम ने पिताजी को लिख भेजा कि मैं उमा से शादी करने का कभी इच्छुक नहीं था. आप रामकुमार को साफसाफ लिख दें कि यह रिश्ता आप को बिलकुल भी मंजूर नहीं है. उन के यहां के किसी को भी अमेरिका में मुझ से पत्रव्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं.
गौतम के पिताजी ने वही किया जो उन के पुत्र ने लिखा था. वे अपने बेटे की चाल समझ गए थे. वे बेचारे करते भी क्या.
उन का बेटा उन के हाथ से निकल चुका था. गौतम के पास उमा की तरफ से 2-3 पत्र और आए. एक पत्र रामकुमार का भी आया. उन पत्रों को बिना पढ़े ही उस ने फाड़ कर फेंक दिया था.
पीएच.डी. करने के बाद गौतम शादी करवाने भारत गया और एक बहुत ही सुंदर लड़की को पत्नी के रूप में पा कर अपना जीवन सफल समझने लगा. उस के बाद उस ने शायद ही कभी रामकुमार और उमा के बारे में सोचा हो. उमा का तो शायद खयाल कभी आया भी हो, पर उस की याद को अतीत के गहरे गर्त में ही दफना देना उस ने उचित समझा था.
उस दिन रवि ने गौतम की पुरानी स्मृतियों को झकझोर दिया था. प्रोफेसर गौतम सारी रात उमा के बारे में सोचते रहे कि उस बेचारी ने उन का क्या बिगाड़ा था. रामकुमार के एहसान का उस ने कैसे बदला चुकाया था. इन्हीं सब बातों में उलझे, प्रोफेसर को नींद ने आ घेरा.
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ठक…ठक की आवाज के साथ विभाग की सचिव सिसिल 9 बजे प्रोफेसर के कमरे में ही आई तो उन की निंद्रा टूटी और वे अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गए. प्रोफेसर ने उस को रवि के फ्लैट का फोन नंबर पता करने को कहा.
कुछ ही मिनटों बाद सिसिल ने उन्हें रवि का फोन नंबर ला कर दिया. प्रोफेसर ने रवि को फोन मिलाया. सवेरेसवेरे प्रोफेसर का फोन पा कर रवि चौंक गया, ‘‘मैं तुम्हें इसलिए फोन कर रहा हूं कि तुम यहां पर पीएच.डी. के लिए आर्थिक सहायता की चिंता मत करो. मैं इस विश्वविद्यालय में ही भरसक कोशिश कर के तुम्हें सहायता दिलवा दूंगा.’’
रवि को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. वह धीरे से बोला, ‘‘धन्यवाद… बहुतबहुत धन्यवाद.’’
‘‘बरसों पहले तुम्हारे नानाजी ने मुझ पर बहुत उपकार किया था. उस का बदला तो मैं इस जीवन में कभी नहीं चुका पाऊंगा पर उस उपकार का बोझ भी इस संसार से नहीं ले जा पाऊंगा. तुम्हारी कुछ मदद कर के मेरा कुछ बोझ हलका हो जाएगा,’’ कहने के बाद प्रोफेसर गौतम ने फोन बंद कर दिया.
रवि कुछ देर तक रिसीवर थामे रहा. फिर पेन और कागज निकाल कर अपनी मां को पत्र लिखने लगा.
आदरणीय माताजी,
आप से कभी सुना था कि इस संसार में महापुरुष भी होते हैं परंतु मुझे विश्वास नहीं होता था.
लेकिन अब मुझे यकीन हो गया है कि दूसरों की निस्वार्थ सहायता करने वाले महापुरुष अब भी इस दुनिया में मौजूद हैं. मेरे लिए प्रोफेसर गौतम एक ऐसे ही महापुरुष की तरह हैं. उन्होंने मुझे आर्थिक सहायता दिलवाने का पूरापूरा विश्वास दिलाया है.
प्रोफेसर गौतम बरसों पहले कानपुर में नानाजी के विभाग में ही काम करते थे. उन दिनों कभी शायद आप की भी उन से मुलाकात हुई होगी…
आपका,
रवि
एक दिन रमेश की मां ने शांता को किसी बात पर मारने की कोशिश की थी, तो बहादुरी कर उसी पर चढ़ बैठी. शांता ने रमेश से शिकायत की, तो रमेश ने भी उसे मारना चाहा. शांता ने डंडा उठा कर उसे ही पीट डाला.
शांता ने गुस्से में आ कर कपड़ों पर मिट्टी का तेल छिड़क कर कमरे में आग लगा दी. मामला पुलिस में गया. उस दिन दारोगा गांव में आए. उन्हें घटना का पता चला, तो उन्होंने शांता को बुला कर सब बातें पूछ लीं.
शांता ने कई झूठी बातें गढ़ दीं. यह भी कह दिया कि रमेश और उस की मां उस से धंधा कराते हैं. उस की बातें सुन कर उन्होंने रमेश और उस की मां पर मुकदमा चलाने की धमकी दी, पर कुछ लेदे कर मामला शांत हो गया.
उस दिन से शांता को किसी ने मारापीटा तो नहीं, पर उस के साथ अपनेपन का बरताव भी किसी ने नहीं किया. उस का मन घर की जेल से ऊबने लगा.
कुछ दिनों के बाद उस ने पड़ोस के एक लड़के, जो रमेश की मां के मायके का था, को रात में एक बहाने से कमरे में बुलाया और फिर जबरन उसे कपड़े उतार कर सोने को कहा.
शांता ने कहा कि वह सैक्स नहीं करेगा, तो उस पर रेप का चार्ज लगा देगी. शांता की उस से पट गई और वह राजी हो गया कि वह उसे इस घर से अपने साथ ले चलेगा.
4-5 रात के बाद शांता ने रमेश के घर का सारा कपड़ागहना एक गठरी में बांधा और वह उस लड़के के साथ उस की बाइक पर चली गई. वे लोग गांव से बाहर निकल कर थोड़ी दूर ही जा पाए थे कि सामने से कोई आता हुआ दिखाई दिया. वे दोनों एक पुरानी कोठरी में छिप गए, जो एक बाबा की मढ़ई थी. बाबा के कोविड से मरने के चलते वह बेकार पड़ी थी.
थोड़ी देर में दिन निकल आया और लोगों के आनेजाने की आहट आने लगी. शांता और उस के साथी ने कोठरी के किवाड़ बंद कर लिए और दिनभर वहीं रह कर रात को वहां से चलने का निश्चय किया.
इधर शांता के भाग जाने की बात सारे गांव में फैल गई. लोगों ने आसपास बहुत ढूंढ़ा, पर उस का कहीं कोई पता नहीं चला. लोगों की सलाह पर रमेश और उस के पिता ने शांता के भाग जाने और चोरी की रिपोर्ट थाने में लिखा दी.
दारोगाजी ने उन्हें खूब आड़े हाथों लिया, ‘‘खुद ही औरतों को खरीद कर लाते हैं, सताते हैं और भाग जाने पर रिपोर्ट लिखाने आते हैं. औरतों को घर से भगाओ तुम और उन्हें ढूंढ़ने का काम पुलिस करे.’’
रमेश और उस के पिता चुपचाप सब सुनते रहे. फिर हाथ जोड़ कर उन्होंने दारोगाजी से कहा, ‘‘अगर आप शांताको पकड़वा दें, तो हम आप को 10,000 रुपए भेंट देंगे.’’
सब को विश्वास हो गया था कि शांता अकेली नहीं गई है. वह उसी लड़के के साथ भागी है, जो रमेश की मां के मायके से आया था.
शांता और उस का साथी दिनभर कोठरी में मौज करते रहे. लड़का एक दिन खाना लाने गया, तो एक आदमी
ने उसे कोठरी में घुसते हुए देख लिया. वह सम?ा गया कि वह कौन हो सकता है. उस ने यह बात रमेश के घर जा कर कह दी.
रमेश के पिता ने बहुत से आदमियों को ले कर कोठरी घेर ली. भीतर से सांकल बंद थी. अंदर से शांता ने कहा, ‘‘हम इस तरह किवाड़ नहीं खोलेंगे. जब तक पुलिस नहीं आ जाती, तब तक किवाड़ नहीं खुलेंगे. शिकायत तो मैं बनाऊंगी कि तुम ने इस लड़के को मेरे साथ पैसे ले कर भेजा. तुम लोग मुझ से धंधा करवा रहे हो. सुबूत के तौर पर मेरे पास कंडोमों के पैकेट पड़े हैं. मैं तो अपना मैडिकल कराऊंगी.’’
मजबूर हो कर सब लोग सवेरे तक वहां बैठे रहे. पुलिस को खबर हो गई, तो दारोगाजी आ गए. तब शांता ने किवाड़ खोल कर कहा कि वह सब को जेल भेजेगी और उस घर में नहीं जाएगी.
दारोगा ने एक लाख रुपए ले कर मामला सुलटाया और रमेश को कहा कि इस लड़की को घर में ही रख और अपने मातापिता से अलग रह. अगर इसे सताया जाएगा, तो यह भाग जाएगी या केस कर देगी.
दारोगाजी ने रमेश के पिता से कहा, इसलिए शांता को सम?ाबु?ा कर घर भेज दिया गया.
अब रमेश अपने मातापिता से अलग शांता के साथ रहता है. अब वह ध्यान रखता है कि शांता को कोई परेशान न हो. अब वह ‘पैर काटने वाली जूती बदलने’ की बात भूल गया है. शायद अब वह पैर की जूती की कीमत सम?ा गया है. पहले वाली जूती उसे मुफ्त मिल गई थी, इसलिए उस ने उतार फेंकी थी. यह जूती बहुत कीमती है. यह चाहे जितना काटे, पैर से उतारी नहीं जा सकती.
शांता अब रमेश के होने या न होने पर चाहे जिसे बिस्तर पर सोने के लिए बुला लेती है. रमेश कुछ कहता है, तो वह कहती है, ‘‘मुझे तो मर्दों का स्वाद है. सतीसावित्री को तो तुम ने बिना तलाक दिए घर से निकाल रखा है. मैं ने तो यहां बीवी की नौकरी की है. तुम चाहे जो करो, मैं यहीं रहूंगी. यहीं खाऊंगी. यहीं मर्दों को लाऊंगी. हां,
तुम ने मुझे रखा है, तो तुम्हारा खयाल रखूंगी. बोलो, आज रात को खीर खाओगे या हलवा?’’
नीलम ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘आ जाओ, मैं तो सुबह से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’
वक्त फिर अपनी गति से आगे बढ़ने लगा. इस में हलचल तो उस समय मची जब रात में लगभग 9 बजे नीलम की मां ने लकी की मां यानी समधिन को फोन कर जमाई के कटला आने के बारे में पूछा. यह सुन कर लकी की मां चौंक गई क्योंकि बेटा तो शाम को ही घर से निकल गया था. और उसे अब तक कटला पहुंच जाना चाहिए था.
लेकिन बेटा अब तक कटला नहीं पहुचा था तो उन का दिल घबराने लगा. क्योंकि इस दौरान खुद नीलम ने भी अपनी सास से बात की और बताया कि लकी का फोन बंद आ रहा है, इसलिए उस से बात नहीं हो पा रही है.
यह सब बात जान कर घबराई मां ने अपने सब रिश्तेदारों को इस बात की सूचना दी, जिस से रात में ही लकी की खोजबीन शुरू हो गई. सुबह तक कोई सफलता नहीं मिलने पर परिजनों ने मेघनगर के टीआई संजय रावत से मिल कर उन्हें लकी के गायब होने की जानकारी देते हुए गुमशुदगी दर्ज करा दी.
इस बीच 5 जून, 2022 की दोपहर मेघनगर टीआई टी.एस. डाबर को थाने की सीमा में पिपलौदा बड़ागांव के जंगल में लकी पांचाल की सिर कुचली लाश मिलने की सूचना मिली. खबर लकी के घर वालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया.
लकी के सिर पर गहरी चोट के निशान होने के अलावा उस के गले पर गहरा काला निशान भी था. जिस से पहली ही नजर में मामला हत्या का नजर आया. सूचना पा कर एसडीपीओ बबीता बामनिया और एसपी (झाबुआ) अरविंद तिवारी भी मौके पर पहुंच गए.
अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हत्या का मामला सामने आने पर मेघनगर थाने में हत्या का मामला दर्ज हो गया. मामला दर्ज होते ही एसपी अरविंद तिवारी ने एसडीपीओ बबीता बामनिया के नेतृत्व में एक टीम गठित की. टीम में टीआई (मेघनगर) टी.एस. डाबर, टीआई (थांदला), टीआई (कोतवाली) संजय रावत एवं टीआई (पेटलावद) को शामिल किया गया.
चूंकि पुलिस को पहले ही यह जानकारी मिल चुकी थी कि मृतक 4 जून की शाम को बाइक से गुजरात स्थित अपने ससुराल कटला जाने के लिए निकला था. मगर उस का शव जहां मिला था, वह रास्ता उस रास्ते से काफी दूर था.
मौके से मृतक की बाइक और मोबाइल भी गायब था. इसलिए पुलिस समझ गई कि लकी की हत्या में एक से अधिक हत्यारे शामिल हो सकते हैं.
पुलिस लकी के दोस्तों और दुश्मनों के अलावा पे्रम त्रिकोण की संभावना पर भी काम कर रही थी. दरअसल, लकी की शादी को केवल 4-5 महीने ही हुए थे. इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता था कि लकी की हत्या के पीछे स्वयं उस का या उस की पत्नी नीलम का पे्रम त्रिकोण हो.
इस रास्ते पर चल कर पुलिस को लकी के पे्रम प्रसंग की कोई जानकारी नहीं मिली, अलबत्ता उस की पत्नी नीलम के बारे में जरूर यह बात सामने आई कि शादी के पहले नीलम का गहरा पे्रम प्रसंग कटला में रहने वाले रोहित राजपूत के साथ था.
इस जानकारी के बाद रोहित की खोजखबर ली गई तो पता चला कि 2 जून, 2022 को रोहित की मां का देहांत हो जाने के कारण वह घर पर ही था.
पुलिस ने उस से पूछताछ की, जिस में उस ने नीलम से पे्रम प्रसंग के बजाए दोस्ती होने की बात स्वीकार की. लेकिन उस का कहना था कि नीलम की शादी हो जाने के बाद वह दोस्ती भी लगभग खत्म हो चुकी थी.
पुलिस ने नीलम और उस के प्रेमी रोहित राजपूत के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन किया.
इस जांच में पता चला कि लकी के मोबाइल पर उस रोज एक ऐसे नंबर से फोन आया था, जिस से उस दिन से पहले उस की कभी बात नहीं हुई थी. जिस जगह पर लकी का शव मिला था, वहां 4 और मोबाइल नंबरों की लोकशन लकी के मोबाइल के साथ मिल रही थी. ये चारों नंबर गुजरात के थे.
पुलिस को मालूम हुआ कि घटना वाले दिन खुद नीलम ने ही फोन कर के उसे कटला बुलाया था.
लेकिन लकी की काल डिटेल्स में घटना वाले दिन नीलम के मोबाइल नंबर पर उस से एक बार भी बात होने की जानकारी नहीं थी. इस का मतलब साफ था कि उस रोज नीलम अपना नंबर छिपा कर किसी और नंबर से बात कर रही थी.
इस नए मोबाइल नंबर की डिटेल्स निकालने के बाद पता चला कि इस नंबर से लकी के अलावा एक और नंबर पर बात की गई थी. और जिस नंबर पर बात की गई थी, वह नंबर उन मोबाइल नंबरों के संपर्क में था, जिन की लोकेशन घटनास्थल की मिल रही थी.
इस से पुलिस समझ गई कि लकी की हत्या में नीलम व उस के पे्रमी रोहित राजपूत का ही हाथ है. इसलिए पुलिस ने एक बार फिर रोहित और नीलम को थाने बुला कर उन के साथ सख्ती से पूछताछ की तो लकी की हत्या का पूरा सच 10 दिन बाद सामने आ गया.
कटला, गुजरात के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी नीलम रूप और सौंदर्य के मामले में बहुत ही रईस थी. किशोर उम्र मेें कालोनी के नवयुवकों के दिलों में जगह बनाने वाली नीलम जिस भी गली से गुजरती थी वह गली महकने लगती थी. इसलिए गलीमोहल्ले के कई युवक उस से दोस्ती की इच्छा ले कर उस के घर के आसपास चक्कर लगाते फिरते थे. युवकों की यह दीवानगी उसे अच्छी लगने लगी.
नीलम की नजरों मे उस का सब से बड़ा दीवाना उस के साथ पढ़ने वाला रोहित था, जो स्कूल में हमेशा उस के आगेपीछे बने रहने की कोशिश करता रहता था.
इसलिए उस ने सब को मन ही मन तौला तो दीवानगी के मामले में रोहित का पलड़ा भारी पड़ा. इसलिए धीरेधीरे उस का मन रोहित की तरफ झुकने लगा.
एक दिन रोहित ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. किशोर उम्र के प्रेम का अपना एक नशा होता है, इसलिए रोहित और नीलम के दिल एकदूसरे से मिलने के लिए मचलने लगे. कभी स्कूल के सुनसान कोने में तो कभी किसी मंदिर की परिक्रमा में उन की मुलकातें होने लगीं.
बताते हैं कि नीलम की रोहित के साथ पहली बार एकांत में मुलाकात नीलम की एक सहेली के घर में उस वक्त हुई थी, जब उस सहेली के परिवार के दूसरे सभी लोग कटला से बाहर किसी रिश्तेदार के यहां आयोजित सामाजिक समारोह में भाग लेने गए थे.
न्यू साउथ वेल्स, सिडनी के उस फोस्टर होम के विजिटिंग रूम में बैठी रम्या बेताबी से इंतजार कर रही थी उस पते का जहां उस की अपनी जिंदगी से मुलाकात होने वाली थी. खिड़की से वह बाहर का नजारा देख रही थी. कुछ छोटे बच्चे लौन में खेल रहे थे. थोड़े बड़े 2-3 बच्चे झूला झूल रहे थे. वह खिड़की के कांच पर हाथ फिराती हुई उन्हें छूने की असफल कोशिश करने लगी. मृगमरीचिका से बच्चे उस की पहुंच से दूर अपनेआप में मगन थे. कमरे के अंदर एक बड़ा सा पोस्टर लगा था, हंसतेखिलखिलाते, छोटेबड़े हर उम्र और रंग के बच्चों का.
रम्या अब उस पोस्टर को ध्यान से देखने लगी, कहीं कोई इन में अपना मिल जाए. ‘ज्यों सागर तीर कोई प्यासा, भरी दुनिया में अकेला, खाने को छप्पन भोग पर रुचिकर कोई नहीं.’ रम्या की गति कुछ ऐसी ही हो रखी थी. तड़पतीतरसती जैसे जल बिन मछली. उस ने सोफे पर सिर टिका अपने भटकते मन को कुछ आराम देना चाहा, लेकिन मन थमने की जगह और तेजी से भागने लगा, भविष्य की ओर नहीं, अतीत की ओर. स्याह अतीत के काले पन्ने फड़फड़ाने लगे, बिना अंधड़, बिना पलटे जाने कितने पृष्ठ पलट गए.
जिस अतीत से वह भागती रही, आज वही अपने दानवी पंजे उस के मानस पर गड़ा और आंखें तरेर कर गुर्राने लगा. बात तब की है जब रम्या 14-15 वर्ष की रही होगी. उस के डैडी को 2-3 वर्षों में ही इतने बड़ेबड़े ठेके मिल गए कि वे लोग रातोंरात करोड़पति बन गए. पैसा आ जाने से सभ्यता और संस्कार नहीं आ जाते. ऐसा ही हाल उन लोगों का भी था. पैसों की गरमी से उन में ऐंठन खूब थी. आएदिन घर में बड़ीबड़ी पार्टियां होती थीं. बड़ेबड़े अफसर और नेताओं को खुश करने के लिए घर में शराब की नदियां बहती थीं. एक स्वामीजी हर पार्टी में मौजूद रहते थे. रम्या के डैडी और मौम उन के आने से बिछबिछ जाते. वे बड़ेबड़े औद्योगिक घरानों में बड़ी पैठ रखते थे.
उन घरानों से काम या ठेके पाने के लिए स्वामीजी की अहम भूमिका होती थी. पार्टी वाले दिन रम्या और उस की दीदी को नीचे आने की इजाजत नहीं होती थी. अपनी केयरटेकर सुफला के साथ दोनों बहनें छत वाले अपने कमरे में ही रहतीं और छिपछिप कर पार्टी का नजारा लेतीं. कुछ महीने से दीदी भी गायब रहने लगीं. वे रातरातभर घर नहीं आती थीं. जब सुबह लौटतीं तो उन की आंखें लाल और उनींदी रहतीं. फिर वे दिनभर सोती ही रहतीं. यों तो मौम और डैड भी रात की पार्टी के बाद देर से उठते, सो, उन्हें दीदी के बारे में पता ही नहीं था कि वे रातभर घर में नहीं होती हैं.
उस दिन सुबह से ही घर में चहलपहल थी. मौम किसी को फोन पर बता रही थीं कि एक बहुत बड़े ठेके के लिए उस के पापा प्रयासरत हैं. आज वे स्वामीजी भी आने वाले हैं, यदि स्वामीजी चाहें तो उक्त उद्योगपति यह ठेका उस के पापा को ही देंगे. रम्या उस दिन बहुत परेशान थी, उस के स्कूल टैस्ट में नंबर बहुत कम आए थे और उस का मन कर रहा था कि वह मौम को बताए कि उसे एक ट्यूटर की जरूरत है. वह चुपके से सुफला की नजर बचा कर मौम के कमरे की तरफ चली गई. अधखुले दरवाजे की ओट से उस ने जो देखा, उस के पांवतले जमीन खिसक गई. मौम और स्वामीजी की अंतरंगता को अपनी खुली आंखों से देख उसे वितृष्णा सी हो गई. वह भागती हुई छत वाले कमरे की तरफ जाने लगी.
अब वह इतनी छोटी भी नहीं थी, जो उस ने देखा था वह बारबार उस की आंखों के सामने नाच रहा था. इसी सोच में वह दीदी से टकरा गई. ‘दीदी, मैं ने अभी जो देखा…मौम को छिछि…मैं बोल नहीं सकती,’ रम्या घबरातीअटकती हुई दीदी से बोलने लगी. दीदी ने मुसकराते हुए उसे देखा और कहा, ‘चल, आज तुझे भी एक पार्टी में ले चलती हूं.’ ‘कैसी पार्टी, कौन सी पार्टी?’ रम्या ने पूछा. ‘रेव पार्टी,’ दीदी ने आंखें बड़ीबड़ी कर उस से कहा. ‘यह शहर से दूर बंद अंधेरे कमरों में तेज म्यूजिक के बीच होने वाली मस्ती है, चल कोई बढि़या सा हौट ड्रैस पहन ले,’ दीदी ने कहा तो रम्या सब भूल झट तैयार होने लगी. ‘बेबी आप लोग किधर जा रही हैं, साहब, मेमसाहब को पता चला तो मुझे ही डांटेंगे?’ सुफला ने बीच में कहा. ‘चल सुफला, आज की रात तू भी ऐश कर ले,’ दीदी ने उसे 100 रुपए का एक नोट पकड़ा दिया.
उस दिन रम्या पहली बार किसी ऐसी पार्टी में गई. दीदी व दूसरे लड़केलड़कियों को बेतकल्लुफ हो तेज संगीत और लेजर लाइट में नाचते, झूमते, पीते, खाते, सूंघते, सुई लगाते देखा. थोड़ी देर वह आंख फाड़े देखती रही. फिर धीरेधीरे शोर मध्यम लगने लगा, अंधेरा भाने लगा, तेजी से झूमना और जिसतिस की बांहों में गुम होते जाना सुकूनदायक हो गया. दूसरे दिन जब आंख खुली तो देखा कि वह अपने बिस्तर पर है. घड़ी दोपहर का वक्त बता रही थी यानी आज सारा दिन गुजर गया. वह स्कूल नहीं जा पाई. रात की घटनाएं हलकीहलकी अभी भी जेहन में मौजूद थीं. उसे अब घिन्न सी आने लगी.
रम्या को पढ़नेलिखने और कुछ अच्छा बनने का शौक था. बाथरूम में जा कर वह देर तक शौवर में खुद को धोती रही. उसे अपनी भूल का एहसास होने लगा था. ‘क्यों रामी डिअर, कल फुल एंजौयमैंट हुआ न, चल आज भी ले चलती हूं एक नए अड्डे पर,’ दीदी ने मुसकराते हुए पूछा तो रम्या ने साफ इनकार कर दिया. आने वाले दिनों में वह मौमडैड और बहन व आसपास के माहौल सब से कन्नी काट अपनी पढ़ाई व परीक्षा की तैयारी में लगी रही. एक सुफला ही थी जो उसे इस घर से जोड़े हुए थी. बाकी सब से बेहद सामान्य व्यवहार रहा उस का. कुछ दिनों से उसे बेहद थकान महसूस हो रही थी. उसे लगातार हो रही उलटियां और जी मिचलाते रहना कुछ और ही इशारा कर रहा था.
सुफला की अनुभवी नजरों से वे छिप नहीं पाईं, ‘बेबीजी, यह आप ने क्या कर लिया?’ ‘सुफला, क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकती हूं, उस एक रात की भूल ने मुझे इस कगार पर ला दिया है. मुझे कोई ऐसी दवाई ला दो जिस से यह मुसीबत खत्म हो जाए और किसी को पता भी न चले. अगले कुछ महीनों में मेरी परीक्षाएं शुरू होंगी. मुझे आस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय से अपनी आगे की पढ़ाई करनी है. मुझे घर के गंदे माहौल से दूर जाना है,’ कहतेकहते रम्या सुफला की गोद में सिर रख कर रोने लगी. अब सुफला आएदिन कोई दवा, कोई जड़ीबूटी ला कर रम्या को खिलाने लगी. रम्या अपनी पढ़ाई में व्यस्त होती गई और एक जीव उस के अंदर पनपता रहा. इस बीच घर में तेजी से घटनाक्रम घटे.
उस की दीदी को एक रेव पार्टी से पुलिस पकड़ कर ले गई और फिर उसे नशामुक्ति केंद्र में पहुंचा दिया गया. उस दिन मौम अपनी झीनी सी नाइटी पहन सुबह से बेचैन सी घर में घूम रही थीं कि उन की नजर रम्या के उभार पर पड़ी. तेजी से वे उस का हाथ खींचते हुए अपने कमरे में ले गईं. ‘रम्या, यह क्या है? आर यू प्रैग्नैंट? बेबी तुम ने प्रिकौशन नहीं लिया था? तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?’
मौम ने प्रश्नों की झड़ी सी लगा दी थी. रम्या खामोश ही रही तो मौम ने आगे कहा, ‘मेरी एक दोस्त है जो तुम्हें इस मुसीबत से छुटकारा दिला देगी. हम आज ही चलते हैं. उफ, सारी मुसीबतें एकसाथ ही आती हैं,’ मौम बड़बड़ा रही थीं. रम्या ने पास पड़े अखबार में उन स्वामीजी की तसवीर को देखा जिन्हें हथकड़ी लगा ले जाया जा रहा था. अगले कुछ दिन मौम रम्या को ले अपनी दोस्त के क्लिनिक में ही व्यस्त रहीं, लेकिन अबौर्शन का वक्त निकल चुका था और गलत दवाइयों के सेवन से अंदरूनी हिस्से को काफी नुकसान हो चुका था. इस बीच न्यूज चैनल और अखबारों में स्वामीजी और उस की मौम के रिश्ते भी सुर्खियों में आने लगे. रम्या की तो पहले से ही आस्ट्रेलिया जाने की तैयारियां चल रही थीं.
मौम उसे ले अचानक सिडनी चली गईं ताकि कुछ दिन वे मीडिया से बच सकें और रम्या की मुसीबत का हल विदेश में ही हो जाए बिना किसी को बताए. लाख कोशिशों के बावजूद एक नन्हामुन्ना धरती पर आ ही गया. मौम ने उसे सिडनी के एक फोस्टर होम में रख दिया. रम्या फिर भारत नहीं लौटी. अनचाहे मातृत्व से छुटकारा मिलने के बाद वह वहीं अपनी आगे की पढ़ाई करने लगी. 5 वर्षों बाद उस ने वहीं की नागरिकता हासिल कर अपने साथ ही काम करने वाले यूरोपियन मूल के डेरिक से विवाह कर लिया. रम्या अब 28 वर्ष की हो चुकी थी. शादी के 5 वर्ष बीत गए थे.
लेकिन उस के मां बनने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. सिडनी के बड़े अस्पताल के चिकित्सकों ने उसे बताया कि पहले गर्भाधान के दौरान ही उस कीबच्चेदानी में अपूर्णीय क्षति हो गई थी और अब वह गर्भधारण करने लायक नहीं है. यह सुन कर रम्या के पैरोंतले जमीन खिसक गई. डेरिक तो सब जानता ही था, उस ने बिलखती रम्या को संभाला. ‘रम्या, किसी दूसरे के बच्चे को अडौप्ट करने से बेहतर है हम तुम्हारे बच्चे को ही अपना लें,’ डेरिक ने कहा. यह सुन कर रम्या एकबारगी सिहर उठी, अतीत फिर फन काढ़ खड़ा हो गया. ‘लेकिन, वह मेरी भूल है, अनचाहा और नफरत का फूल,’ रम्या ने कहा. जब कोई वस्तु या व्यक्ति दुर्लभ हो जाता है तो उस को हासिल करने की चाह और ज्यादा हो जाती है.
अब तक जिस से उदासीन रही और नफरत करती रही, धीरेधीरे अब उस के लिए छाती में दूध उतरने लगा. फिर एक दिन डेरिक के साथ उस फोस्टर होम की तरफ उस के कदम उठ ही गए. …तभी संचालिका ने रम्या की तंद्रा को भंग किया, ‘‘यह रहा उस बच्चे को अडौप्ट करने वाली लेडी का पता. वे एक सिंगल मदर हैं और मार्टिन प्लेस में रहती हैं. मैं ने उन्हें सूचना दे दी है कि आप उन के बच्चे को जन्म देनेवाली मां हैं और मिलना चाहती हैं.’’ फोस्टर होम की संचालिका ने कार्ड थमाते हुए कहा. जो भाव आज से 13-14 वर्र्ष पहले अनुभव नहीं हुआ था वह रम्या में उस कार्ड को पकड़ते ही जागृत हो उठा.
उसे ऐसा लगा कि उस के बच्चे का पता नहीं, बल्कि वह पता ही खुद बच्चा हो. मातृत्व हिलोरे लेने लगा. डेरिक ने उसे संभाला और अगले कुछ घंटों में वे लोग, नियत समय पर मार्टिन प्लेस, मिस पोर्टर के घर पहुंच चुके थे. 50-55 वर्षीया, थोड़ा घसीटती हुई चलती मिस पोर्टर एक स्नेहिल और मिलनसार महिला लगीं. रम्या के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए उन्होंने लौन में लगी कुरसी पर बैठने का इशारा किया. ‘‘क्या मैं अपने बेटे से मिल सकती हूं्? क्या मैं उसे अपने साथ ले जा सकती हूं?’’ रम्या ने छूटते ही पूछा पर आखिरी वाक्य बोलते हुए खुद ही उस की जबान लड़खड़ाने लगी. डेरिक और रम्या ने देखा, मिस पोर्टर की आंखें अचानक छलछला गईं.
‘‘आप उस की जन्म देनेवाली मां हैं, पहला हक आप का ही है. वह अभी स्कूल से आता ही होगा. वह देखिए, आप का बेटा,’’ गेट की तरफ इशारा करते हुए मिस पोर्टर ने कहा. रम्या अचानक चौंक गई, उसे ऐसा लगा कि उस ने आईना देख लिया. हूबहू उस की ही तरह चेहरा, वही छोटी सी नुकीली नाक, हिरन सी चंचल बड़ी सी आंखें, पतले होंठ, घुंघराले काले बाल और बिलकुल उस की ही रंगत. ‘‘आओ बैठो, मैं ने तुम्हे बताया था न कि तुम्हारी मां आने वाली हैं. ये तुम्हारी मां रम्या हैं,’’ मिस पोर्टर ने प्यार से कहा. 14 वर्षीय उस बच्चे ने गरदन टेढ़ी कर रम्या को ऊपर से नीचे तक देखा और मिस पोर्टर की बगल में बैठ गया, ‘‘मौम, तुम्हारे पैरों का दर्द अब कैसा है, क्या तुम ने दवा खाई?’’
रम्या लालसाभरी नजरों से देख रही थी, जिस के लिए जीवनभर हिकारत और नफरत भाव संजोए रही, आज उसे सामने देख ममता का सागर हिलोरे मारने लगा. ‘‘बेटा, मेरे पास आओ. मैं ने तुम्हें जन्म दिया है. तुम्हें छूना चाहती हूं,’’ दोनों हाथ पसार रम्या ने तड़प के साथ कहा. बच्चे ने मिस पोर्टर की तरफ सवालिया नजरों से देखा. उन्होंने इशारों से उसे जाने को कहा. पर वह उन के पास ही बैठा रहा. ‘‘यदि आप मेरी जन्मदात्री हैं तो इतने वर्षों तक कहां रहीं? आप के होते हुए मैं अनाथ आश्रम में क्यों रहा?’’ बेटे के सवालों के तीर अब रम्या को आगोश में लेने लगे. बेबसी के आंसू उस की पलकों पर टिकने से विद्रोह करने लगे. उस मासूम के जायज सवालों का वह क्या जवाब दे कि तुम नाजायज थे, पर अब उसी को जायज बनाने, बेशर्म हो, आंचल पसारे खड़ी हूं. बेटा आगे बोला, ‘‘आप को मालूम है, मैं 5 वर्ष की उम्र तक फोस्टर होम में रहा.
मेरी उम्र के सभी बच्चों को किसी न किसी ने गोद लिया था. पर आप के द्वारा बख्शी इस नस्ल और रंग ने मुझे वहीं सड़ने को मजबूर कर दिया था.’’ ‘‘मैं वहां हफ्ते में एक बार समाजसेवा करने जाती थी. इस के अकेलेपन और नकारे जाने की हालत मुझे साफ नजर आ रही थी. फोस्टर होम की मदद से मैं ने इंडिया के कुछ एनजीओज से संपर्क साधा, जिन्होंने आश्वासन दिया कि शायद वहां इसे कोई गोद ले लेगा. मैं ले कर गई भी. कुछ लोगों से संपर्क भी हुआ. पर फिर मेरा ही दिल इसे वहां छोड़ने को नहीं हुआ, बच्चे ने मेरा दिल जीत लिया. और मैं इसे कलेजे से लगा कर वापस सिडनी आ गई,’’ मिस पोर्टर ने भर्राए हुए गले से बताया. ‘‘इस के जन्म के वक्त आप की मां ने आप के बारे में जो सूचना दी थी, उस आधार पर मुझे पता चला कि आप यहीं आस्ट्रेलिया में ही कहीं हैं.
यह भी एक कारण था कि मैं इसे वापस ले आई और मैं ने अपने कोखजाए की तरह इसे पाला. मन के एक कोने में यह उम्मीद हमेशा पलती रही थी कि आप एक दिन जरूर आएंगी,’’ मिस पोर्टर ने जब यह कहा तो रम्या को लगा कि काश, धरती फट जाती और वह उस में समा जाती. डबडबाई आंखों से उस ने शर्मिंदगी के भार से झुकी पलकों को उठाया. बच्चा अब मिस पोर्टर से लिपट कर बैठा था. मिस पोर्टर स्नेह से उस के घुंघराले बालों को सहला रही थीं. ‘‘आप ले जाइए अपने बेटे को. मैं इसे भेज, ओल्डएज होम चली जाऊंगी,’’ उन्होंने सरलता से मुसकराते हुए कहा. रम्या की आंखों में चमक आ गई, उस ने अपनी बांहें पसार दीं. ‘‘आज इतने सालों बाद मुझ से मिलने और मुझे अपनाने का क्या राज है?
आप यहीं थीं, जानती थीं कि मैं किस अनाथ आश्रम में हूं, फिर भी आप का दिल नहीं पसीजा? आज क्यों अपना मतलबी प्यार दिखाने मुझ से मिलने चली आईर्ं? लाख तकलीफें सह कर, मुसीबतों के पहाड़ टूटने के बावजूद इन्होंने मुझे नहीं छोड़ा और अब मैं इन्हें नहीं छोडूंगा.’’ बेटे के मुंह से यह सुन रम्या को अपनी खुदगर्जी पर शर्म आने लगी. ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’ डेरिक ने रम्या का हाथ थाम उठते हुए पूछा. ‘‘कीन, कीन पोर्टर है मेरा नाम.’’ ‘‘क्या कहा कर्ण. ‘कर्ण,’ हां यही होगा तुम्हारा नाम, वाकई तुम क्यों छोड़ोगे अपने आश्रयदाता को. पर मैं कुंती नहीं, मैं कुंती होती तो मेरे पांडव भी होते. मेरी भूल माफ करने लायक नहीं…’’ खाली गोद लौटती रम्या बुदबुदा रही थी और डेरिक हैरानी से उस की बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रहा था.
रामस्वरूप तल्लीन हो कर किचन में चाय बनाते हुए सोच रहे हैं कि अब जीवन के 75 साल पूरे होने को आए. कितना कुछ जाना, देखा और जिया इतने सालों में, सबकुछ आनंददायी रहा. अच्छेबुरे का क्या है, जीवन में दोनों का होना जरूरी है. इस से आनंद की अनुभूति और गहरी होती है. लेकिन सब से गहरा तो है रूपा का प्यार. यह खयाल आते ही रामस्वरूप के शांत चेहरे पर प्यारी सी मुसकान बिखर गई. उन्होंने बहुत सफाई से ट्रे में चाय के साथ थोड़े बिस्कुट और नमकीन टोस्ट भी रख लिए. हाथ में ट्रे ले कर अपने कमरे की तरफ जाते हुए रेडियो पर बजते गाने के साथसाथ वे गुनगुना भी रहे हैं ‘…हो चांदनी जब तक रात, देता है हर कोई साथ…तुम मगर अंधेरे में न छोड़ना मेरा हाथ …’
कमरे में पहुंचते ही बोले, ‘‘लीजिए, रूपा, आप की चाय तैयार है और याद है न, आज डाक्टर आने वाला है आप की खिदमत में.’
दोनों की उम्र में 5 साल का फर्क है यानी रामस्वरूप से रूपा 5 साल छोटी हैं पर फिर भी पूरी जिंदगी उन्होंने कभी तू कह कर बात नहीं की हमेशा आप कह कर ही बुलाया.
दोस्त कई बार मजाक बनाते कि पत्नी को आप कहने वाला तो यह अलग ही प्राणी है, ज्यादा सिर मत चढ़ाओ वरना बाद में पछताना पड़ेगा. लेकिन रामस्वरूप को कोई फर्क नहीं पड़ा. वे पढ़ेलिखे समझदार इंसान थे और सरकारी नौकरी भी अच्छी पोस्ट वाली थी. रिटायर होने के बाद दोनों पतिपत्नी अपने जीवन का आनंद ले रहे थे.
अचानक एक दिन सुबह बाथरूम में रूपा का पैर फिसल गया और उन के पैर की हड्डी टूट गई. इस उम्र में हड्डी टूटने पर रिकवरी होना मुश्किल हो जाता है. 4 महीनों से रामस्वरूप अपनी रूपा का पूरी तरह खयाल रख रहे हैं.
रूपा ने रामस्वरूप से कहा, ‘‘मुझे बहुत बुरा लगता है आप को मेरी इतनी सेवा करनी पड़ रही है, यों आप रोज सुबह मेरे लिए चायनाश्ता लाते हैं और बैठेबैठे पीने में मुझे शर्म आती है.’’
‘‘यह क्या कह रही हैं आप? इतने सालों तक आप ने मुझे हमेशा बैड टी पिलाई है और मेरा हर काम बड़ी कुशलता और प्यार के साथ किया है. मुझे तो कभी बुरा नहीं लगा कि आप मेरा काम कर रही हैं. फिर मेरा और आप का ओहदा बराबरी का है. मैं पति हूं तो आप पत्नी हैं. हम दोनों का काम हमारा काम है, आप का या मेरा नहीं. चलिए, अब फालतू बातें सोचना बंद कीजिए और चाय पीजिए,’’ रामस्वरूप ने प्यार से उन्हें समझाया.
4 महीनों में इन दोनों की दुनिया एकदूसरे तक सिमट कर रह गई है. रामस्वरूप ने दोस्तों के पास आनाजाना छोड़ दिया और रूपा का आसपड़ोस की सखीसहेलियों के पास बैठनाउठना बंद सा हो गया. अब कोई आ कर मिल जाता है तो ठीक है नहीं तो दोनों अपनी दुनिया में मस्त रहते हैं.
रामस्वरूप का काम सिर्फ रूपा का खयाल रखना है और रूपा भी यही चाहती हैं कि रामस्वरूप उन के पास बैठे रहें.
कामवाली कमला घर की साफसफाई और खाना बना जाती है जिस से घर का काम सही तरीके से हो जाता है. बस, कमला की ज्यादा बोलने की आदत है. हमेशा आसपड़ोस की बातें करने बैठ जाती है रूपा के पास. कभी पड़ोस वाले गुप्ताजी की बुराई तो कभी सामने वाले शुक्लाजी की कंजूसी की बातें और खूब मजाक बनाती है.
रामस्वरूप यदि आसपास ही होते तो कमला को टोक देते थे, ‘‘ये क्या तुम बेसिरपैर की बातें करती रहती हो. अच्छी बातें किया करो. थोड़ा रूपा के पास बैठ कर संगीत वगैरह सुना करो. पूरा जीवन क्या यों ही लोगों के घर के काम करते ही बीतेगा?’’ इस पर कमला जवाब देती, ‘‘अरे साबजी, अब हम को क्या करना है, यही तो हमारी रोजीरोटी है और आप जैसे लोगों के घर में काम करने से ही मुझे तो सुकून मिल जाता है.
‘‘आप दोनों की सेवा कर के मुझे सुख मिल गया है. अब आप बताएं और क्या चाहिए इस जीवन में?’’
रामस्वरूप बोले, ‘‘कमला, बातें बनाने में तो तुम माहिर हो, बातों में कोई नहीं जीत सकता तुम से. जाओ, अब खाना बना लो, काफी बातें हो गई हैं. कहीं आगे के काम करने में तुम्हें देर न हो जाए.’’
पूरा जीवन भागदौड़ में गुजार देने के बाद अब भी दोनों एकदूसरे के लिए जी रहे हैं और हरदम यही सोचते हैं कि कुदरत ने प्यार, पैसा, संपन्नता सब दिया है पर फिर भी बेऔलाद क्यों रखा?
काफी सालों तक इस बात का अफसोस था दोनों को लेकिन 2-4 साल पहले जब पड़ोस के वर्माजी का दर्द देखा तो यह तकलीफ भी कम हो गई क्योंकि अपने इकलौते बेटे को बड़े अरमानों के साथ विदेश पढ़ने भेजा था वर्माजी ने. सोचा था जो सपने उन की जवानी में घर की जिम्मेदारियों की बीच दफन हो गए थे, अपने बेटे की आंखों से देख कर पूरे करेंगे. पर बेटा तो वहीं का हो कर रह गया. वहीं शादी भी कर ली और अपने बूढ़े मांबाप की कोई खबर भी नहीं ली. तब दोनों ने सोचा, ‘इस से तो हम बेऔलाद ही अच्छे, कम से कम यह दुख तो नहीं है कि बेटा हमें छोड़ कर चला गया है.’
आज सुबह की चाय के साथ दोनों अपने जीवन के पुराने दौर में चले गए. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही परंपरागत तरीके से लड़कालड़की देखना और फिर सगाई व शादी कर के किस तरह से दोनों के जीवन की डोर बंधी.
जीवन की शुरुआत में घरपरिवार के प्रति सब की जिम्मेदारी होने के बावजूद रिश्तेनाते, रीतिरिवाज घरपरिवार से दूर हमारी दिलों की अलग दुनिया थी, जिसे हम अपने तरीके से जीते थे और हमारी बातें सिर्फ हमारे लिए होती थीं. अनगिनत खुशनुमा लमहे जो हम ने अपने लिए जीए वे आज भी हमारी जिंदगी की यादगार सौगात हैं और आज भी हम सिर्फ अपने लिए जी रहे हैं.
तभी रामस्वरूप बोले, ‘‘वैसे रूपा, अगर मैं बीमार होता तो आप को मेरी सेवा करने में कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि आप औरत हो और हर काम करने की आप की आदत और क्षमता है लेकिन मुझे भी कोई तकलीफ नहीं है आप की सेवा करने में, बल्कि यही तो वक्त है उन वचनों को पूरा करने का जो अग्नि को साक्षी मान कर फेरे लेते समय लिए थे.
‘‘वैसे रूपा, जिंदगी की धूप से दूर अपने प्यारे छोटे से आशियाने में हर छोटीबड़ी खुशी को जीते हुए इतने साल कब निकल गए, पता ही नहीं चला. ऐसा नहीं है कि जीवन में कभी कोई दुख आया ही नहीं. अगर लोगों की नजरों से सोचें तो बेऔलाद होना सब से बड़ा दुख है पर हम संतुष्ट हैं उन लोगों को देख कर जो औलाद होते हुए भी ओल्डएज होम या वृद्धाश्रमों में रह रहे हैं या दुखी हो कर पलपल अपने बच्चों के आने का इंतजार कर रहे हैं, जो उन्हें छोड़ कर कहीं और बस गए हैं.
‘‘उम्र के इस मोड़ पर आज भी हम एकदूसरे के साथ हैं, यह क्या कम खुशी की बात है. लीजिए, आज मैं ने आप के लिए एक खत लिखा है. 4 दिन बाद हमारी शादी की सालगिरह है पर तब तक मैं इंतजार नहीं कर सका :
हजारों पल खुशियों के दिए,
लाखों पल मुसकराहट के,
दिल की गहराइयों में छिपे
वे लमहे प्यार के,
जिस पल हर छोटीबड़ी
ख्वाहिश पूरी हुई,
हर पल मेरे दिल को
शीशे सी हिफाजत मिली
पर इन सब से बड़ा एक पल,
एक वह लमहा…
जहां मैं और आप नहीं,
हम बन जाते हैं.’’
रूपा उस खत को ले कर अपनी आंखों से लगाती है, तभी डाक्टर आते हैं. आज उन का प्लास्टर खुलने वाला है. दोनों को मन ही मन यह चिंता है कि पता नहीं अब डाक्टर चलनेफिरने की अनुमति देगा या नहीं.
डाक्टर कहता है, ‘‘माताजी, अब आप घर में थोड़ाथोड़ा चलना शुरू कर सकती हैं. मैं आप को कैल्शियम की दवा लिख देता हूं जिस से इस उम्र में हड्डियों में थोड़ी मजबूती बनी रहेगी.
‘‘बहुत अच्छी और आश्चर्य की बात यह है कि इस उम्र में आप ने काफी अच्छी रिकवरी कर ली है. मैं जानता हूं यह रामस्वरूपजी के सकारात्मक विचार और प्यार का कमाल है. आप लोगों का प्यार और साथ हमेशा बना रहे, भावी पीढ़ी को त्याग, पे्रम और समर्पण की सीख देता रहे. अब मैं चलता हूं, कभीकभी मिलने आता रहूंगा.’’
आज दोनों ने जीवन की एक बड़ी परीक्षा पास कर ली थी, अपने अमर प्रेम के बूते पर और सहनशीलता के साथ.
अंशु हर्ष
romantic story in hindi
‘‘हां, गीता और मम्मी बाजार गई हैं, थोड़ी देर में लौट आएंगी.’’ सविता ने सुंदर के सवालों का सपाट जवाब दिया.
फिर पलभर के लिए दोनों के बीच खामोशी छाई रही. उसे सुंदर ने ही तोड़ा, ‘‘सविता, आजकल मैं देख रहा हूं कि तुम मुझ से कटीकटी सी रहती हो और दूसरों पर मेहरबान.’’
‘‘क्या कहा?’’ सविता अचकचा उठी, ‘‘मैं तुम से कटीकटी सी रहती हूं और दूसरों पर मेहरबान? तुम्हारे कहने का मतलब क्या है सुंदर?’’ सविता सुंदर पर भड़क उठी.
‘‘यही कि मैं कई दिनों से देख रहा हूं कि तुम अपना ट्रैक चेंज कर किसी और की बांहों में झूल रही हो.’’
‘‘खबरदार सुंदर! आज तो तुम ने मेरे दामन पर कीचड़ उछाल दी, फिर दोबारा मुझ से ऐसी बातें मत करना वरना मैं यह भूल जाऊंगी कि मैं ने कभी तुम्हें प्यार किया था. इस से पहले कि मेरा गुस्सा मेरे सिर चढ़ कर बोले, तुम यहां से अभी चलते बनो और फिर दोबारा अपनी शक्ल मुझे मत दिखाना.’’ सविता गुस्से से पागल हो गई थी. उस की आंखें एकदम सुर्ख हो गई थीं.
सविता का यह रौद्र रूप देख कर सुंदर डर गया और बिना कुछ बोले उठा और वहां से अपने घर चला गया.
अपमान के अग्निकुंड में जलने लगा सुंदर
प्रेमिका के अपमान के अग्निकुंड में जलते सुंदर ने एक बड़ा और खतरनाक फैसला ले लिया था. उस ने उसी समय तय कर लिया कि सविता को मौत के घाट उतार कर वह अपने अपमान का बदला लेना.
इस के लिए सुंदर ने एक चाल चली. उस ने योजना के अनुसार, अपने किए के लिए उस से माफी मांग ली थी ताकि उस की सविता के घर में घुसपैठ बनी रहे. कोमल हृदय वाली सविता ने उसे माफ कर दिया और फिर से उस का पहले जैसा आनाजाना शुरू हो गया. लेकिन सविता के दिल में गांठ बन गई थी.
सविता यह भुला नहीं पा रही थी कि सुंदर ने कैसे उस के प्यार पर शक किया था कि उस का और मर्दों से भी चक्कर चल रहा है. इसी बात से दोनों के बीच में दूरियां बढ़ती चली गईं.
सविता अपने प्रेमी सुंदर से जितनी दूर होती जा रही थी, सुंदर के तनबदन में ईर्ष्या की आग धधकती जा रही थी. प्रेमिका की जुदाई सुंदर और बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. वह इस किस्से को जल्द से जल्द समाप्त कर देना चाहता था.
योजना के मुताबिक, 19 जुलाई, 2022 की रात साढ़े 10 बजे सुंदर सविता के घर पहुंचा. उस समय सविता, उस की मां लखिमा और बेटी गीता खाना खा कर सोने की तैयारी कर रहे थे.
सुंदर को इतनी रात गए देख कर सविता मन ही मन बुदबुदाई और उसे घर के अंदर बुला लिया. उस ने इतनी रात गए आने की वजह पूछी तो सुंदर अपना आपा खो बैठा. अपने साथ लाए लोहे के रोड से उस के सिर पर जोरदार वार किया कि वह चीखती हुई चौकी पर जा गिरी.
मां की चीख सुन कर गीता उस की तरफ बढ़ी तो उसे देख कर सुंदर डर गया कि वह पुलिस को इस बाबत बता सकती है.
फिर क्या था? सुंदर ने गीता के सिर पर उसी रौड से एक जोरदार प्रहार किया कि वह भी एक ही वार में ढेर हो कर नीचे फर्श पर जा गिरी थी.
उस की दर्दनाक चीख सुन कर सो रही लखिमा मुर्मू की नींद टूट गई. यह देख कर एक बार फिर सुंदर डर गया. 2-2 कत्ल का राज छिपाने के लिए सुंदर ने उसे भी मौत के घाट उतार दिया.
तीनों की हत्या करने के बाद इत्मीनान से उस ने वाशरूम में जा कर खून सनी रौड और अपने हाथपैर धोए. ये सब करतेधरते रात के एक बज गए थे. उस के बाद उस ने कमरे पर बाहर से ताला बंद कर वह फरार हो गया.
हत्यारा लाख चालाक क्यों न हो, कानून की नजर से कभी बच नहीं सकता. आखिरकार, सुंदर का भी वही हुआ, जो हर मुलजिम के साथ होता है.
कथा लिखे जाने तक आरोपी सुंदर जेल में बंद था और हत्या में प्रयुक्त रौड पुलिस ने बरामद कर ली थी. मृतकों की गला रेत कर हत्या करने वाली बात से पुलिस ने इंकार किया था. उस ने भी सिर में गहरी चोट लगने से मौत होना बताया था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
प्रोफेसर ने रेफ्रिजरेटर से संतरे के रस से भरी एक बोतल और एक बीयर की बोतल निकाली. जूस गिलास में भर कर रवि को दे दिया और बीयर खुद पीने लगे. कुछ देर बाद चावल तैयार हो गए. उन्होंने खाना खाया. कौफी बना कर वे बैठक में आ गए. अब काम करने का समय था.
रवि अपना बैग उठा लाया. उस ने 89 पृष्ठों की रिपोर्ट लिखी थी. प्रोफेसर गौतम रिपोर्ट का कुछ भाग तो पहले ही देख चुके थे, उस में रवि ने जो संशोधन किए थे, वे देखे. रवि उन से अनेक प्रश्न करता जा रहा था. प्रोफेसर जो भी उत्तर दे रहे थे, रवि उन को लिखता जा रहा था.
रवि की रिपोर्ट का जब आखिरी पृष्ठ आ पहुंचा तो उस समय शाम के 5 बज चुके थे. आखिरी पृष्ठ पर रवि ने अपनी रिपोर्ट में प्रयोग में लाए संदर्भ लिख रखे थे. प्रोफेसर को लगा कि रवि ने कुछ संदर्भ छोड़ रखे हैं. वे अपने अध्ययनकक्ष में उन संदर्भों को अपनी किताबों में ढूंढ़ने के लिए गए.
प्रोफेसर को गए हुए 15 मिनट से भी अधिक समय हो गया था. रवि ने सोचा शायद वे भूल गए हैं कि रवि घर में आया हुआ है. वह अध्ययनकक्ष में आ गया. वहां किताबें ही किताबें थीं. एक कंप्यूटर भी रखा था. अध्ययनकक्ष की तुलना में प्रोफेसर के विभाग का दफ्तर कहीं छोटा पड़ता था.
प्रोफेसर ने एक निगाह से रवि को देखा, फिर अपनी खोज में लग गए. दीवार पर प्रोफेसर की डिगरियों के प्रमाणपत्र फ्रेम में लगे थे. प्रोफेसर गौतम ने न्यूयार्क से पीएच.डी. की थी. भारत से उन्होंने एम.एससी. (कानपुर से) की थी.
‘‘साहब, आप ने एम.एससी. कानपुर से की थी? मेरे नानाजी वहीं पर विभागाध्यक्ष थे,’’ रवि ने पूछा.
प्रोफेसर 3-4 किताबें ले कर बैठक में आ गए.
‘‘क्या नाम था तुम्हारे नानाजी का?’’
‘‘रामकुमार,’’ रवि ने कहा.
‘‘उन को तो मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. 1 साल मैं ने वहां पढ़ाया भी था.’’
‘‘तब तो शायद आप ने मेरी माताजी को भी देखा होगा,’’ रवि ने पूछा.
‘‘शायद देखा होगा एकाध बार,’’ प्रोफेसर ने बात पलटते हुए कहा, ‘‘देखो, तुम ये पुस्तकें ले जाओ और देखो कि इन में तुम्हारे मतलब का कुछ है कि नहीं.’’
रवि कुछ मिनट और बैठा रहा. 6 बजने को आ रहे थे. लगभग 6 घंटे से वह प्रोफेसर के फ्लैट में बैठा था. पर इस दौरान उस ने लगभग 1 महीने का काम निबटा लिया था. प्रोफेसर का दिल से धन्यवाद कर उस ने विदा ली.
रवि के जाने के बाद प्रोफेसर को बरसों पुरानी भूलीबिसरी बातें याद आने लगीं. वे रवि के नाना को अच्छी तरह जानते थे. उन्हीं के विभाग में एम.एससी. के पश्चात वे व्याख्याता के पद पर काम करने लगे थे. उन्हें दिल्ली में द्वितीय श्रेणी में प्रवेश नहीं मिल पाया था. इसलिए वे कानपुर पढ़ने आ गए थे. उस समय कानपुर में ही उन के चाचाजी रह रहे थे. 1 साल बाद चाचाजी भी कानपुर छोड़ कर चले गए पर उन्हें कानपुर इतना भा गया कि एम.एससी. भी वहीं से कर ली. उन की इच्छा थी कि किसी भी तरह से विदेश उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाएं. एम.एससी. में भी उन का परीक्षा परिणाम बहुत अच्छा नहीं था, जिस के बूते पर उन को आर्थिक सहायता मिल पाती. फिर सोचा, एकदो साल तक भारत में अगर पढ़ाने का अनुभव प्राप्त कर लें तो शायद विदेश में आर्थिक सहायता मिल सकेगी.
उन्हीं दिनों कालेज के एक व्याख्याता को विदेश में पढ़ने के लिए मौका मिला था, जिस के कारण गौतम को अस्थायी रूप से कालेज में ही नौकरी मिल गई. वे पैसे जोड़ने की भी कोशिश कर रहे थे. विदेश जाने के लिए मातापिता की तरफ से कम से कम पैसा मांगने का उन का ध्येय था. विभागाध्यक्ष रामकुमार भी उन से काफी प्रसन्न थे. वे उन के भविष्य को संवारने की पूरी कोशिश कर रहे थे.
एक दिन रामकुमार ने गौतम को अपने घर शाम की चाय पर बुलाया.
रवि की मां उमा से गौतम की मुलाकात उसी दिन शाम को हुई थी. उमा उन दिनों बी.ए. कर रही थी. देखने में बहुत ही साधारण थी. रामकुमार उमा की शादी की चिंता में थे. उमा विभागाध्यक्ष की बेटी थी, इसलिए गौतम अपनी ओर से उस में पूरी दिलचस्पी ले रहा था. वह बेचारी तो चुप थी, पर अपनी ओर से ही गौतम प्रश्न किए जा रहा था.
कुछ समय पश्चात उमा और उस की मां उठ कर चली गईं. रामकुमार ने तब गौतम से अपने मन की इच्छा जाहिर की. वे उमा का हाथ गौतम के हाथ में थमाने की सोच रहे थे. उन्होंने कहा था कि अगर गौतम चाहे तो वे उस के मातापिता से बात करने के लिए दिल्ली जाने को तैयार थे.
सुन कर गौतम ने बस यही कहा, ‘आप के घर नाता जोड़ कर मैं अपने जीवन को धन्य समझूंगा. पिताजी और माताजी की यही जिद है कि जब तक मेरी छोटी बहन के हाथ पीले नहीं कर देंगे, तब तक मेरी शादी की सोचेंगे भी नहीं,’ उस ने बात को टालने के लिए कहा, ‘वैसे मेरी हार्दिक इच्छा है कि विदेश जा कर ऊंची शिक्षा प्राप्त करूं, पर आप तो जानते ही हैं कि मेरे एम.एससी. में इतने अच्छे अंक तो आए नहीं कि आर्थिक सहायता मिल जाए.’
‘तुम ने कहा क्यों नहीं. मेरा एक जिगरी दोस्त न्यूयार्क में प्रोफेसर है. अगर मैं उस को लिख दूं तो वह मेरी बात टालेगा नहीं,’ रामकुमार ने कहा.
‘आप मुझे उमाजी का फोटो दे दीजिए, मातापिता को भेज दूंगा. उन से मुझे अनुमति तो लेनी ही होगी. पर वे कभी भी न नहीं करेंगे,’ गौतम ने कहा.
आगे पढ़ें- अपने कमरे में पहुंचते ही गौतम ने…