तानों के डर से मांबाप अपने बच्चों को घर से निकाल देते हैं: नाज जोशी

कुछ लोग अपने अधूरेपन को ले कर जिंदगीभर खुद को कोसते रहते हैं, जबकि कुछ उस अधूरेपन से बाहर निकल कर एक नई दुनिया और नई सोच बना लेने के साथसाथ अपने प्रति लोगों के नजरिए को भी बदलने की ताकत रखते हैं. पर ऐसा करने के लिए उन्हें तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन वे इस से घबराते नहीं हैं, बल्कि समाज, परिवार और धर्म के आगे एक मिसाल खड़ी कर देते हैं.

ऐसी ही कई चुनौतियों से गुजर कर 3 बार मिस वर्ल्ड डाइवर्सिटी विजेता बनी नाज जोशी भारत की पहली ट्रांससैक्सुअल इंटरनैशनल ब्यूटी क्वीन, ट्रांस राइट्स ऐक्टिविस्ट, मोटीवेशनल स्पीकर और एक ड्रैस डिजाइनर हैं.

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दिल्ली की रहने वाली नाज जोशी ‘क्वीन यूनिवर्स 2021 सीजन 3′ के लिए बैंकौक जाने वाली हैं, जिस में दुनियाभर की सभी उम्र और बौडी शेप की महिलाएं भाग लेंगी. इस प्रतियोगिता में खूबसूरती को ज्यादा अहमियत न देने के साथसाथ प्रतियोगी के अपने परिवार और समाज के प्रति योगदान को भी अहमियत दी जाएगी.

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हंसमुख और बेबाक नाज जोशी से उन की जिंदगी के बारे में लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप को ब्यूटी क्वीन बनने की प्रेरणा कहां से मिली?

जब मैं ने सुष्मिता सेन और ऐश्वर्या राय को ताज पहनते देखा, तो मुझे भी ताज पहनने का शौक हुआ. मजे की बात यह है कि मैं ने कभी ट्रांसजैंडर के साथ कौंपीटिशन नहीं किया है, बल्कि मैं ने नौर्मल लड़कियों के साथ प्रतियोगिता की है और आज तक 7 इंटरनैशनल क्राउन जीत चुकी हूं.

इस से मुझे बहुत प्रेरणा मिली, कौंफिडैंस मिला और सामाजिक काम करने की इच्छा पैदा हुई. मैं ट्रांसजैंडर समाज की सेहत, उन की समस्याओं के हल और पढ़ाईलिखाई को ले कर काम करना चाहती हूं. अभी मेरा मकसद नई लड़कियों को ऐक्टिंग के क्षेत्र में सही राह दिखाना भी है, क्योंकि ऐक्टिंग की दुनिया में कास्टिंग काउच बहुत ज्यादा है और लड़कियां उन की शिकार बनती हैं.

ऐसी कई घटनाएं देखने को मिलती हैं, जहां लोग खुद को कास्टिंग डायरैक्टर कहते हैं, लेकिन लड़कियों के उन से मिलने पर वे उन के खाने या ड्रिंक में कुछ मिला देते हैं और उन का शोषण करते हैं. इस के अलावा मैं किसी लड़की के ब्यूटी कांटैस्ट जीतने के बाद उसे इंडस्ट्री में जाने की पूरी गाइडैंस देती हूं.

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आप ट्रांसजैंडर कैसे बनीं? इस मुकाम तक पहुंचने के लिए आप के सामने किस तरह की चुनौतियां आई थीं?

मैं एक मुसलिम मां और पंजाबी पिता के घर में जन्मी हूं. जब मैं 7 साल की थी तो मेरे परिवार ने मुझे मुंबई किसी दूर के रिश्तेदार के यहां भेज दिया था, ताकि उन्हें किसी तरह के ताने न सुनने पड़े.

मैं ने मुंबई में बहुत जिस्मानी जुल्म सहा है. जहां मैं काम करती थी, वहां भी लोगों ने बहुत सताया, इसलिए मैं आज लड़कियों को प्रोटैक्शन देती हूं.

अपना सैक्स बदलने के लिए मुझे सर्जरी से गुजरना पड़ा. मेरे हिसाब से अगर हमारे देश की लड़कियां मजबूत नहीं होंगी, तो ट्रांसजैंडर का मजबूत होना मुमकिन नहीं. दरअसल, ट्रांसजैंडर पहले इनसान हैं और बाद में उन का जैंडर आता है.

मैं ट्रांसजैंडर के हकों के लिए समयसमय पर वर्कशौप करती हूं, जिन में उन की सेहत से जुड़ी जानकारियां, सेफ सैक्स वगैरह होता है, जिस से उन की जिंदगी खतरे में न पड़े.

इस के अलावा मैं दुनिया की पहली ऐसी महिला हूं, जो लड़कियों के लिए इंटरनैशनल शो करने बैंकौक जा रही हूं, जिस में सभी वर्ग और उम्र की महिलाएं भाग ले सकेंगी.

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आप ट्रांसजैंडर समाज के साथ लोगों के गलत बरताव की क्या वजह मानती हैं और इस के लिए किसे जिम्मेदार ठहराती हैं?

इस की जिम्मेदारी मांबाप की है, क्योंकि वे ऐसे बच्चे को ताने के डर से स्वीकार नहीं करते हैं और घर में छिपा कर या कहीं बाहर भेज देते हैं. अगर ऐसे बच्चों को स्कूल में ताने सुनने पड़ते हैं, तो उस का समाधान मांबाप स्कूल में जा कर बातचीत द्वारा निकाल सकते हैं. उत्तरपूर्वी भारत की एक ट्रांसजैंडर लड़की अब डाक्टर बन चुकी है. उसे इसलिए ज्यादा समस्या नहीं आई, क्योंकि वहां पर और थाईलैंड जैसी जगहों पर लड़के भी लड़कियों जैसे ही दिखते हैं, इसलिए सब से घुलनामिलना आसान होता है.

इस के अलावा आज 100 से भी ज्यादा ट्रांसजैंडर लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं, जिन में कलाकार, समाजसेवी और मोटिवेशनल स्पीकर शामिल हैं.

दरअसल, मातापिता अगर ट्रांसजैंडर बच्चे के साथ ‘पिलर’ बन कर खड़े होते हैं, तो वे भी बहुतकुछ कर सकते हैं. किन्नर 2 तरह के होते हैं, कुछ जन्म से तो कुछ बाद में अपना सैक्स चेंज कराते हैं. यह कोई बीमारी नहीं होती. मांबाप के स्वीकारने से सड़कों पर किन्नरों का भीख मांगना, अनजान लोगों से सड़क पर सैक्स करना कम होगा. मातापिता केवल बच्चे को अपना लें, बस यही काफी होगा.

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आप के इस सफर में मांबाप का रोल कैसा रहा है?

मेरे परिवार में मां से ज्यादा पिता और बहन का सहयोग रहा है. भाई और मां भी केयरिंग हैं. जब मुझे कोरोना हुआ था, तो उन्होंने मेरा बहुत ध्यान रखा था.

सैक्स चेंज की भावना आप के मन में कैसे आई और इस के बाद क्याक्या एहतियात बरतने की जरूरत होती है?

बचपन में 3 साल की उम्र से ही ऐसी भावना रही है, क्योंकि स्कूल में मुझे डौल बनाया गया था और मुझे आसपास की लड़कियों के साथ उठनाबैठना अच्छा लगता था. इस के अलावा बचपन में मुझे किसी ने गाना गाने को कहा और मैं ने ‘लैला ओ लैला…’ गाया.

दरअसल, मुझे ग्लैमर और ऐक्टिंग छोटी उम्र से पसंद था, जिस में जीनत अमान, परवीन बौबी, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित वगैरह हीरोइनों को फिल्मों में देखना अच्छा लगता था. जब बड़ी हुई तो लगा कि मैं भी इन की तरह परदे पर चूड़ियां पहन कर डांस करूं. घर पर भी मैं ऐसा ही गाना चला कर डांस किया करती थी.

बड़ी होने पर फिल्म हीरोइन साधना के मशहूर ‘साधना कट’ बाल रखे, जिस पर मांबाप ने एतराज किया और लड़कों की तरह चलनेफिरने की हिदायत दी. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं, क्योंकि मैं अंदर से लड़की थी.

फिर पिता ने मुंबई भेजा. वहां मैं ने काम के साथ पढ़ाई की और दिल्ली आ गई. इस के बाद सैक्स चेंज कराया और सब ठीक हो गया.

सैक्स चेंज के दौरान 2 साल तक हार्मोन लेना पड़ा, क्योंकि हार्मोन पूरे शरीर को बदल देता है. इस का असर किडनी, लिवर वगैरह पर पड़ता है. हर महीने शरीर और हार्मोन का टैस्ट कराना पड़ता है. कई बार सैक्स चेंज के दौरान मौत भी हो जाती है, इसलिए डाक्टर की सलाह के मुताबिक ही सैक्स चेंज के लिए जाएं और उन के हिसाब से दवाएं लें.

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आप कितनी फैशनेबल हैं? आप की आगे की क्या योजनाएं हैं?

मैं एक ड्रैस डिजाइनर हूं और अपनी ड्रैस खुद डिजाइन करती हूं. मैं सलवारकमीज पहनती हूं और शो के हिसाब से गाउन या शौर्ट ड्रैस पहनती हूं.

मुझे बहुत दुख होता है, जब मैं सुनती हूं कि किसी लड़की का उस की ड्रैस की वजह से रेप हुआ है. कोई भी ड्रैस एक पहनावा है और उसे कोई भी लड़की अपने हिसाब से पहन सकती है. गलत सोच वाले मर्दों और लड़कों को बचपन से लड़कियों की इज्जत करना सीखने की जरूरत है.

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मैं ने अपनी प्रतियोगिता में मार्शल आर्ट्स का भी एक कोर्स रखने के बारे में सोचा है, ताकि वे अपना बचाव खुद कर सकें. आगे मैं एक एनजीओ खोल कर उस में भी मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग और लड़कियों को ग्रूमिंग कर आत्मनिर्भर बनाने की इच्छा रखती हूं.

आप लोगों को क्या मैसेज देना चाहती हैं?

मेरा सभी परिवारों, समाज और महिलाओं से कहना चाहती हूं कि ट्रांसजैंडर को अपनाएं, उन्हें पढ़ाएं. वे भी सब के साथ मिल कर अच्छा काम कर सकती हैं. अभी ‘मेक इन इंडिया’ के स्लोगन से भी ज्यादा ‘एमपावर इंडिया’ का स्लोगन होना चाहिए, क्योंकि महिलाओं के पढ़ने और आत्मनिर्भर होने से पूरा देश आगे बढ़ेगा.

साथी जब नशे में धुत्त हो तो ड्राइव का जोखिम भूलकर भी ना ले

पिछले साल कोरोना महामारी के चक्कर में दुनिया दूसरे हादसों से इतनी कट गई थी कि सुर्खियों में आई बड़ीबड़ी और दिल दुखाने वाली खबरों को उस ने मानो नजरअंदाज कर दिया था.

नवंबर का महीना था. उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद में ईस्टर्न पैरिफेरल ऐक्सप्रैसवे पर एक रात बहुत बड़ा हादसा हुआ था. हिमाचल प्रदेश से उत्तर प्रदेश के बरेली जा रही तेज रफ्तार डबल डैकर बस कंट्रोल खो कर हाईवे पर पलट गई, जिस में सवार 28 मुसाफिर घायल हो गए.

उस बस में तकरीबन 200 सवारियां थीं और दीवाली पर घर जा रही थीं. बस तेज रफ्तार चल रही थी. मुसाफिरों ने कई बार ड्राइवर को धीरे चलाने के लिए कहा, लेकिन ड्राइवर शराब पी कर गाड़ी चला रहा था. इतने में बस रोड की साइड में टकरा कर पलट गई.

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एक और मामले पर नजर डालते हैं. नवंबर का ही महीना था और साल 2020. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टाटीबंध चौक के करीब आधी रात को एक तेज रफ्तार कार कंट्रोल खो बैठी और सड़क किनारे लगी लोहे की एक सेफ्टी वाल से टकरा गई. इस हादसे में एक नौजवान की मौके पर मौत हो गई.

पुलिस के मुताबिक कार में बैठे तीनों नौजवानों शुभम पांडेय, वैभव तिवारी और नीतीश यादव ने शराब पी रखी थी. वे रायपुर से भिलाई लौट रहे थे. कार वैभव तिवारी चला रहा था.

टाटीबंध चौक के पास पीछे बैठे नीतीश यादव ने नशे के झोंके में कहा, ‘अब कार मैं चलाऊंगा…’ और यह कह कर वह चलती गाड़ी में ही पीछे की सीट से ड्राइविंग सीट की ओर आगे आने की कोशिश करने लगा. इस से कार बेकाबू हो गई. सेफ्टी वाल का एक टुकड़ा विंड स्क्रीन तोड़ता हुआ कार के अंदर आ गया. इस हादसे में नीतीश यादव की मौके पर ही मौत हो गई.

हमारे देश में शराब पी कर गाड़ी चलाने से होने वाले हादसों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है, इस के बावजूद लोग नहीं मानते हैं. इस तरह के हादसों के शिकार हर उम्र के लोग होते हैं, मतलब यह कि बालिग, पढ़ेलिखे और समझदार लोग भी शराब पी कर गाड़ी चलाते हैं और मौत के खतरनाक सफर पर निकल पड़ते हैं.

ऐसे ही आंकड़ों की बात करें तो पता चलता है कि हर साल 14,000 से ज्यादा सड़क हादसे केवल इसलिए हो जाते हैं कि गाड़ी चलाने वाले ने शराब पी रखी होती है. उत्तर प्रदेश में साल 2017 में 3336, साल 2018 में 3595 और साल 2019 में 4496 हादसे शराब पीने के चलते हुए थे. इसी तरह ओडिशा में साल 2017 में 1533, साल 2018 में 1220 और साल 2019 में 1068 हादसे दर्ज किए गए थे.

यह तो महज 2 राज्यों का ब्योरा है, जबकि देशभर के दूसरे राज्यों में भी शराब के नशे में की गई भिड़ंत खबरों की सुर्खियां बनती रहती हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी 90 फीसदी सड़क हादसे चालक के नशे में रहने की वजह से होते हैं. दुख और हैरत की बात है कि इन में मरने वाले ज्यादातर लोगों की उम्र 18 से 35 साल तक होती है.

यही वजह है कि ड्रंक एंड ड्राइव यानी शराब पी कर गाड़ी चलाने को ले कर साल 2017 में दिल्ली की जिला और सत्र अदालत के जज गिरीश कठपालिया ने तो अपने एक फैसले में यह तक कह दिया था कि शराब पी कर गाड़ी चलाना एक निर्धारित अपराध नहीं है, लेकिन एक गंभीर समाजिक खतरा है. शराब पी कर गाड़ी चलाने वाला इनसान न केवल अपनी जिंदगी को जोखिम में डालता है, बल्कि सड़क पर चलने वाले दूसरे की जिंदगी से भी खेलता है.

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जज ने आगे कहा कि ऐसे हादसों का शिकार सड़क का इस्तेमाल करने वाले लोग और साथ ही शराब पी कर गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर का परिवार बेकुसूर होता है. सड़कों पर चलने वाले ऐसे चालक किसी ‘आत्मघाती हमलावर’ से कम नहीं हैं.

ऐसी ही किसी अनहोनी को रोकने के मद्देनजर केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने जुलाई, 2019 में ‘मोटर व्हीकल(संशोधन) बिल, 2019’ को लोकसभा में पेश किया था. इस संशोधित मोटर ह्वीकल ऐक्ट में सड़क यातायात उल्लंघन को ले कर नियमों को कड़ा किया गया है. संशोधित बिल में यह भी प्रस्ताव रखा गया है कि शराब पी कर गाड़ी चलाने पर 10,000 रुपए जुर्माना की सजा होगी.

लेकिन लोग कहां मानते हैं. सब से ज्यादा दिक्कत उन महिलाओं के साथ होती है, जिन के पति या पुरुष साथी अमूमन शराब पी कर गाड़ी चलाते हैं और बगल में बैठने से उन की जान भी सांसत में रहती है. कभीकभार उन्हें ऐसा करना रोमांचक लग सकता, पर उन्हें जज साहब की चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए कि शराब पी कर गाड़ी चलाने वाले लोग ‘आत्मघाती हमलावर’ होते हैं.

क्या है इलाज?

यह समस्या उन महिलाओं के सामने ज्यादा पेश आती है, जो खुद ड्राइविंग नहीं जानती हैं और पुरुष साथी के नशे में होने के बावजूद वे उन के साथ बैठने के लिए मजबूर होती हैं. ऐसे हादसों में ड्राइवर की मौत होने या उसे गंभीर चोट आने का खतरा सब से ज्यादा होता है. चूंकि ज्यादातर मामलों में वह पुरुष उस महिला का पति होता है, लिहाजा हादसा होने के बाद सब से बड़ा घाटा महिला का ही होता है.

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अगर वह महिला गाड़ी चला सकती है तो ड्राइविंग कर के ऐसे हादसों को कम कर सकती हैं, पर अगर ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता है तो उसे अपने पुरुष साथी के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए और इन बातों पर अमल करना चाहिए :

  • हो सके तो पुरुष साथी को शराब पी कर गाड़ी चलाने से मना करें.
  • अगर ऐसा मुमकिन नहीं है तो अपनी गाड़ी को छोड़ कर किसी कैब या प्राइवेट टैक्सी से घर जाने में भलाई है.
  • पुरुष साथी को मजे के लिए शराब पीने के लिए बिलकुल न उकसाएं. यह अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा है.
  • अगर आप ने खुद शराब पी हुई है और पुरुष साथी भी नशे में है तो उसे तेज रफ्तार गाड़ी चलाने के लिए कतई न कहें.
  • यह बात याद रखें कि शराब पी कर गाड़ी चलाना खुद को खतरे में तो डालता ही है, सामने वाले की जान भी आफत में डाल देता है, इसलिए अपने पुरुष साथी को कंट्रोल में रखें, क्योंकि ऐसे हादसों में मरने वाले के परिवार वाले ज्यादा और उम्रभर तक भुगतते हैं.

ठगी का नया हथियार बना, टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’

औनलाइन ठग समयसमय पर ठगी के नएनए तरीके इस्तेमाल करते हैं. ऐसे धोखेबाज अब तक एटीएम कार्ड का क्लोन तैयार कर के या एटीएम बूथ पर किसी शख्स का पिन नंबर धोखे से पूछ कर, बैंक का मुलाजिम बन कर फोन पर बैंक डिटेल पूछ कर आम जनता को चूना लगा चुके हैं. इस के अलावा मोबाइल फोन पर अलगअलग साइट खोलते समय फर्जी लिंक मोबाइल फोन की स्क्रीन पर खुलते हैं, जिन में तरहतरह के लालच दिए जाते हैं. अनजाने में लोग उस लिंक पर क्लिक कर देते हैं तो उन के मोबाइल फोन की डिटेल ठगों के पास पहुंच जाती है. मोबाइल नंबर अगर बैंक से अटैच हो तो उस की भी डिटेल भी मिल जाती है, जिस से ठग आसानी से चूना लगा देते हैं.

औनलाइन ठगों ने अब ठगी का नया हथियार ‘कौन बनेगा करोड़पति’ यानी केबीसी को बनाया है. केबीसी में लकी ह्वाट्सएप नंबर के जरीए 25 लाख रुपए की लौटरी लगने की बात कह कर ये तथाकथित ठग ह्वाट्सएप मैसेज भेज रहे हैं. ऐसे मैसेज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमिताभ बच्चन जैसी हस्तियों का फोटो इस्तेमाल किया जा रहा है. इस के साथ ही ह्वाट्सएप नंबर भेज कर उस पर काल करने का झांसा दिया जा रहा है.

भले ही हम विज्ञान और तकनीक के जमाने में जी रहे हैं, पर अभी भी हम बिना मेहनत के भाग्य भरोसे बैठ कर जल्द ही खूब पैसा कमाना चाहते हैं. लोगों की यही सोच उन्हें ठगों के जाल में फंसा देती है. लाटरी और इनाम के लालच में पड़ कर लोग अपने एटीम कार्ड का नंबर और ओटीपी अनजान लोगों को बता देते हैं और अपनी मेहनत से कमाई जमापूंजी गंवा देते हैं.

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टैलीविजन चैनलों पर दिखाए जाने वाले शो को देख कर करोड़पति बनने का सपना संजोए बैठे लोग बिना जांचपड़ताल किए फोन काल करने वाले ठगों के झांसे में आ जाते हैं और अपना सबकुछ लुटा देते हैं.

मध्य प्रदेश के जबलपुर के चरगवां थाना क्षेत्र में सोशल मीडिया के जरीए ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के नाम पर ठगी करने का एक ऐसा ही मामला सामने आया है. चरगवां थाना क्षेत्र के कुलोन गांव के एक आदमी से ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में 25 लाख रुपए जीतने का झांसा दे कर हजारों रुपए की ठगी की गई.

साल 2020 के दिसंबर महीने की बात है. कुलोन गांव के गुलाब पटेल के मोबाइल फोन पर ह्वाट्सएप पर एक काल आई. गुलाब पटेल ने जैसे ही काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘मैं ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से मृत्युंजय बोल रहा है. आप का चयन केबीसी के लिए हुआ है…’

यह सुन कर गुलाब पटेल की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि वह टैलीविजन पर प्रसारित होने वाले केबीसी का दीवाना था.

इस के बाद काल करने वाले आदमी ने गुलाब पटेल से कहा, ‘आप से कुछ सवाल पूछने हैं. अगर आप ने सवालों के सही जवाब दिए तो आप 25 लाख की रकम जीत सकते हैं.’

गुलाब पटेल से छोटेछोटे आसान सवाल पूछे गए, जिन के जवाब उस ने आसानी से दे दिए. सवाल के सही जवाब देने पर काल करने वाले ने 25 लाख रुपए की रकम जीतने के बारे में बताया.

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25 लाख की रकम गुलाब पटेल के खाते में जमा करने की बात कह कर उस के आधारकार्ड और बैंक खाते का अकाउंट नंबर भी ले लिया गया.

इस के बाद गुलाब पटेल से कहा गया कि यह रकम आने के लिए आप को 50,000 रुपए देने हैं, पर जब उस ने अपने पास 50,000 रुपए की रकम न होने की बात कही तो उसे 25 लाख रुपए के एक चैक का फोटो ह्वाट्सएप पर भेज दिया गया.

25 लाख रुपए की रकम का चैक देख कर गुलाब पटेल को यकीन हो गया कि उसे केबीसी की तरफ से पूछे गए सवालों के सही जवाब देने के बदले यह इनाम मिला है, लिहाजा उस ने अपने एक दोस्त की मदद से मृत्युंजय नाम के एक आदमी के खाते में रकम टांसफर करा दी, पर कुछ दिनों तक इंतजार करने के बाद जब गुलाब पटेल के बैंक अकाउंट में 25 लाख की रकम नहीं आई तो उस ने उसी नंबर पर काल किया, पर वह नंबर बंद आ रहा था.

इस से गुलाब पटेल को यह समझ आ गया कि केबीसी के नाम पर उस के साथ ठगी की गई है. उस ने चरगवां पुलिस थाने में जा कर अपने साथ हुई धोखाधड़ी की रिपोर्ट लिखाई.

यों होता है ठगी का खेल

मशहूर क्विज शो केबीसी यानी ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के शुरू होते ही सोशल मीडिया पर ठगों का गिरोह एक बार फिर से सक्रिय हो गया है. वैसे तो यह शो मेनस्ट्रीम टैलीविजन पर आता है, लेकिन इस का औनलाइन सैगमैंट भी है. पुलिस के मुताबिक, ठगों के चंगुल में लोग इसलिए फंस जाते हैं, क्योंकि वे अपने भाग्य पर आंख मीच कर यकीन करते हैं.​ थोड़े पैसे खर्च कर, ज्यादा कमाई के लालच में वे ठगों की बातों में आ कर ठगी के शिकार हो जाते हैं.

असली धोखाधड़ी तब शुरू होती है जब धोखेबाजों द्वारा अपने शिकार को इस बात का यकीन दिला दिया जाता है कि उस ने केबीसी प्रतियोगिता जीत ली है. इस के बाद शिकार को 8,000 से 10,000 रुपए तक जमा करने के लिए कहा जाता है. यह पैसा टैक्स मनी या प्रोसैसिंग फीस के नाम पर वसूला जाता है. फोन करने वाले ठग बताते हैं कि इतने पैसे जमा करने के बाद ही 25 लाख रुपए दिए जाएंगे.

शिकार से प्रोसैसिंग फीस को बैंक ड्राफ्ट के रूप में जमा करने को कहा जाता है. ऐसे फोन 0092 से शुरू होने वाले फर्जी नंबरों से किए जाते हैं. कई बार ठग खुद को केबीसी टीम का सदस्य बताते हैं. वे अपने शिकार को अपने झांसे में ले कर आसान सवाल पूछते हैं, उस के बाद ठग लेते हैं.

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इस के अलावा कई बार वे अपने शिकार को फोन कर के बताते हैं कि आप का मोबाइल नंबर लकी ड्रा में सिलैक्ट हो गया है. फोन रिसीव करने के बाद लोग बताते हैं कि उन्होंने तो केबीसी में हिस्सा ही नहीं किया था. उस के बाद सामने से कहा जाता है कि हो सकता है कि आप के परिवार के किसी और सदस्य ने आप के नंबर से फोन कर के हिस्सा लिया हो. इस के बाद लोग उन के झांसे में आ जाते हैं.

केबीसी एक ऐसा शो है जिसे जितनी बड़ी तादाद में टैलीविजन पर देखा जाता है, उस से ज्यादा तादाद में लोग ‘सोनी लिव एप’ के जरीए औनलाइन गेम में हिस्सा लेते हैं.

लोग ‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो को सोनी लिव मोबाइल ऐप फीचर पर गेम खेलते हैं तो उसी दौरान ठग भी सक्रिय रहते हैं. वे लोगों को इस बात का यकीन दिला कर अपनी ठगी का शिकार बनाते हैं कि वे केबीसी औनलाइन में विजेता बने हैं.

विदेशों तक जुड़े हैं तार

उत्तराखंड के देहारादून में सेना में हवलदार को साइबर ठगों ने ह्वाट्सएप पर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में 25 लाख रुपए की लौटरी जीतने का संदेश भेजा. यह रकम हासिल करने के लिए रजिस्ट्रेशन, बैंक फीस और इनकम टैक्स वगैरह के नाम पर ठगों ने अलगअलग बैंक खातों में धोखाधड़ी कर तकरीबन 7 लाख रुपए जमा कराए.

इस मामले की शिकायत मिलने पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया और जब उत्तराखंड की एसटीएफ और साइबर क्राइम पुलिस टीम ने जांच की तो ठगों द्वारा इस्तेमाल किए गए मोबाइल नंबरों और बैंक खातों को भी खंगाला गया. पता चला कि जिन मोबाइल नंबरों से ह्वाट्सएप काल की गई थी, वे कर्नाटक और बिहार सर्किल के थे और पाकिस्तान के आईपी एड्रैस का इस्तेमाल किया गया था. इसी तरह ठगों ने तमिलनाडु, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों के पंजाब नैशनल बैंक, बैंक औफ इंडिया, भारतीय स्टेट बैंक के कुल 14 बैंक खातों का इस्तेमाल करते हुए धोखाधड़ी से 7 लाख रुपए जमा कराए थे.

इन बैंक खातों की स्टेटमैंट चैक करने पर पता चला कि तिरुवेनवेली, तमिलनाडु के पंजाब नैशनल बैंक के खाते में अप्रैल से अगस्त, 2020 के दौरान तकरीबन 4 लाख रुपए, मदुरै, तमिलनाडु के भारतीय स्टेट बैंक के खाते में 3 महीने में तकरीबन एक लाख रुपए, कानपुर, उत्तर प्रदेश के पंजाब नैशनल बैंक के खाते में 3 महीने में तकरीबन 10 लाख रुपए, इलाहाबाद के भारतीय स्टेट बैंक के खाते में जनवरी से मार्च तक 11.60 लाख रुपए से ज्यादा, जौनपुर, उत्तर प्रदेश के भारतीय स्टेट बैंक के खाते में 2 लाख रुपए, गोपालगंज, बिहार के भारतीय स्टेट बैंक के खाते में 12.30 लाख रुपए से ज्यादा और एक दूसरे खाते में 12 लाख रुपए से ज्यादा, सिलीगुड़ी, असम के भारतीय स्टेट बैंक के खाते में 3.40 लाख रुपए से ज्यादा का लेनदेन पाया गया. इस तरह इन बैंक खातों में 3 महीने में ही एक करोड़ से ज्यादा की रकम का लेनदेन होना पाया गया.

इंस्पैक्टर पंकज पोखरियाल की अगुआई में एक पुलिस टीम दिल्ली, कर्नाटक और तमिलनाडु भी भेजी गई, जिस ने वल्लिन्यागम और पी. जौनसन को तिरुवेनवेली से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन दोनों ने बताया कि वे एक जानीमानी कंपनी के डीलर हैं और उन का संपर्क श्रीलंका और दुबई में उस कंपनी के बड़े डीलरों से भी हैं. ये डीलर ही लौटरी जीतने का लालच दे कर धोखाधड़ी करते हैं और रकम जमा करने के लिए साइबर अपराधी व अपने देशभर में फैले दूसरे साइबर ठगों के बैंक अकाउंट डीलरों को मुहैया कराते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि मुहैया कराए गए बैंक खातों में जब धोखाधड़ी की रकम आती है तो वे उस में से 3 फीसदी से 5 फीसदी तक कमीशन काट कर बाकी रकम श्रीलंका और दुबई के कंपनी डीलरों की आईडी पर रिचार्ज के जरीए भेज देते हैं. इस तरह ये लोग 5-6 साल से काम कर रहे थे और इस दौरान तकरीबन 10 करोड़ से 12 करोड़ रुपए की ठगी करने का अंदाजा है.

ये सावधानियां बरतें 

औनलाइन ठगी से बचने के लिए जिन मामलों में कार्ड की जरूरत नहीं पड़ती और बैंकिंग के लिए आईडी, पासवर्ड वगैरह की जरूरत होती है, उन मामलों में धोखाधड़ी करने वाले लोग कार्ड डिटेल वगैरह लुभावने प्रस्ताव दे कर फोन, ईमेल से जानकारी हासिल कर लेते हैं या उन्हें लिंक भेज कर अपनी मनचाही वैबसाइट पर लेनदेन के लिए ले जाते हैं. ग्राहकों को ऐसे मैसेज खोले बिना तत्काल डिलीट करना चाहिए.

अपनी सुरक्षा के लिए आप किसी भी हालत में अपना आईडी पासवर्ड को किसी को भी न दें, बैंक के किसी अफसर या मुलाजिम को भी नहीं.

आजकल पेमेंट को आसान बनाने के लिए कई कंपनियां काम कर रही हैं. पेमेंट सेवा देने वाली कई कंपनियां अपने एप में घुसने के लिए फिंगरप्रिंट के जरीए ग्राहक को पहचानने की सुविधा देती हैं.
यह एक सुरक्षित उपाय है. लेकिन यह पासवर्ड आप के औनलाइन खाते में डकैती डालने का एक आसान रास्ता है.

बैंक और पेमेंट सुविधा देने वाली कंपनियां ग्राहकों को मोबाइल नोटिफिकेशन, एसएमएस वगैरह से लगातार पासवर्ड बदलने को आगाह करती रहती हैं, लेकिन यह पाया गया है कि ज्यादातर ग्राहक महीनों अपने पासवर्ड नहीं बदलते हैं.

औनलाइन बैंकिंग में हो रही धोखाधड़ी को ले कर भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंक ग्राहकों के हितों की सुरक्षा के लिए साल 2017 में 6 जुलाई को दिशानिर्देश जारी किया है. इसे कोई भी भारतीय रिजर्व बैंक की वैबसाइट पर जा कर पढ़ सकता है.

अपने औनलाइन बैंकिंग ट्रांजैक्शन को सुरक्षित बनाने के मकसद से ग्राहक को अपने खाते में हुए किसी भी लेनदेन या पासवर्ड हासिल करने के लिए एसएमएस या ईमेल पाने के लिए मोबाइल नंबर ईमेल पता खाते में अनिवार्य रूप से दर्ज करवाना चाहिए.

जिस मोबाइल फोन में आप के बैंक की डिटेल अटैच है, मुमकिन हो तो उस में पैसा कम ही रखें.

फोन पर कोई भी बैंक किसी खाते की डिटेल नहीं मांगता है. अगर कोई फोन कर के ऐसी डिटेल मांगे तो समझो आप के साथ ठगी होने वाली है.

किसी को भी अपने बैंक संबंधी ओटीपी, डिटेल, सीवीवी नंबर वगैरह की जानकारी न दें.

मोबाइल फोन पर अपने बैंक की प्रक्रिया करते समय जब पासवर्ड भरें तो उसे किसी के सामने न भरें.

मोबाइल पर कोई भी साइट खोलते समय अगर कोई लिंक ब्लिंकिंग करे तो उस पर कभी भी क्लिक न करें.

औस्ट्रेलिया कभी नहीं भूलेगा भारतीय टीम का ‘चैंपियन जज्बा’

7 से 11 जनवरी 2021 के बीच सिडनी में खेले गये इस टेस्ट मैच में सब कुछ था. रोमांच, हार-जीत की नजदीकियां, खिलाड़ियों का गुस्सा, दर्शकों की खीझ और इन सबमें सबसे ऊपर था, भारतीय खिलाड़ियों का लड़ने, मरने का जज्बा. भारत ने पहले औस्ट्रेलिया को 338 रनों में आउट कर दिया, इसके बाद 70 रनों की एक बेहतर ओपनिंग से शुरु हुई भारतीय पारी पहले ही विकेट के गिरने के साथ ही धीरे-धीरे बिखरती गई और 244 रनों पर आल आउट हो गई.

इस तरह औस्ट्रेलिया को 94 रनों की लीड मिली और उसने दूसरी पारी में 312 रन और बनाकर भारतीय टीम को 407 रनों का लक्ष्य दिया. चौथी पारी में 400 रन हाल के सालों में कोई भी टीम नहीं बना पायी, बनाना तो दूर कोई टीम इसे बनाने की कोशिश करते हुए भी नहीं दिखी.

यही से शुरु होती है भारतीय टीम के जज्बे की कहानी. पहली पारी की तरह ही दूसरी पारी में भी भारत की ओपनिंग जोड़ी ने ठीकठाक किया. अगर पहली पारी में ओपनिंग जोड़ी ने 70 रन बनाये थे, इस दूसरी पारी में भी पहला विकेट 71 रनों पर शुभमन गिल का गिरा. हालांकि शुभमन गिल दोनो पारियों में अच्छी लय के साथ शुरुआत की, लेकिन दोनों बार ही वे अपनी पारी को बढ़ा नहीं सके. पहली पारी में जरूर शुभमन ने 50 रन बनाए, मगर दूसरी पारी में 31 रन बनाकर ही वो आउट हो गये. लेकिन शुभमन भले आउट हो गये थे, लेकिन रोहित शर्मा लय में लग रहे थे.

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हालांकि 52 रन बनाकर वह भी आउट हो गये. इस तरह चैथे दिन शाम को ही भारत अपने दोनों सलामी बल्लेबाज गंवा चुके थे, अब सारा दारोमदार कप्तान अजिंक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा के कंधों पर था.

हर भारतीय यह दुआ कर रहा था कि पांचवें दिन चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे कम से कम लंच तक तो खेलें ही तभी मैच बचाने की सोची जा सकती है. लेकिन पिछले दिन के रनों में महज 10 रन ही जुड़े थे कि कप्तान अजिंक्य रहाणे आउट हो गये. उस समय भारत के खाते में कुल 102 रन थे और करीब करीब पूरे दिन का खेल बचा हुआ था, लग रहा था भारत का मैच बचाना तो दूर, हार भी इज्जत के साथ नसीब नहीं होगी. क्योंकि पिछली पारी में बल्ले और गेंद से जज्बा दिखाने वाले रविंद्र जडेजा और ऋषभ पंत दोनो ही घायल हो गये थे.

ऋषभ पंत ने तो कीपिंग भी नहीं की थी, उनकी जगह रिद्धिमान शाहा ने कीपिंग की थी और जडेजा भी मैदान से बाहर थे. पंत की एल्बो भयानक रूप से सूजी हुई थी और रविंद्र जडेजा को फ्रेंक्चर हुआ था.
लेकिन बात जज्बे की थी, मैच को बचाने की थी, तो पंत और अजिंक्य रहाणे के बाद मैदान पर उतरे और न सिर्फ उतरे क्या शानदार ताबड़तोड़ बल्लेबाजी की.

उनकी बल्लेबाजी को देखकर तो यही लग रहा था कि अगर अगले 15 ओवर तक वह और टिक जाएंगे तो हर हाल में भारत मैच जीत जायेगा. लेकिन सांसें रोक देने वाले इस मैच की भविष्यवाणी इतनी आसान नहीं थी. 118 गेंदों पर 97 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेलने वाले पंत शतक से महज 3 रन पहले आउट हो गये. उनकी इस धुआंधार पारी में 12 चौक्के और 3 छक्के शामिल थे. जिस गेंद में वे बाउंड्री पर पकड़े गये, अगर उसमें बच जाते तो न सिर्फ यादगार शतक बनाते बल्कि कहानी ही कुछ और लिख जाते.

लेकिन 250 रनों के स्कोर पर भारत का चैथा विकेट गिर गया, जबकि अभी जीत के लिए 197 रनों की दरकार थी. पुजारा अभी भी डटे हुए थे, लेकिन पुजारा से यह उम्मीद तो की जाती है कि वह टिके रहेंगे, लेकिन मैच विनिंग पारी खेलना हाल फिलहाल के उनके खेल को देखकर आसान नहीं लगता. हालांकि पुजारा ने काफी देर तक रूकने की कोशिश की, लेकिन 22 रनों के बाद आखिरकार 205 गेंदों में 77 रन बनाकर वो भी चलते बने.

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भारत का पांचवा विकेट गिर चुका था और खेल अभी करीब 44 ओवरों का बचा हुआ था. हार निश्चित दिख रही थी. इसलिए भी क्योंकि चेतेश्वर पुजारा के साथ क्रीज में डटे हनुमा विहारी की हैम्सट्रिंग खिंच गई थी, वह लंगड़ाकर चल रहे थे, एक एक रन लेना उनके लिए मुश्किल था और जिस किस्म से पिच अनियमित उछाल ले रही थी, उसे देखते हुए बड़े और लंबे शाॅट खेलना उनके लिए संभव नहीं लग रहा था.

बहरहाल उनका साथ देने रविचंद्रन अश्विन आये. हालांकि कई मौकों पर उन्होंने अच्छी बल्लेबाजी की है, लेकिन हैं तो वह अंततः गेंदबाज ही. इसलिए लग नहीं रहा था कि अब कुछ चमत्कार बचा है. लेकिन मैच जैसे जैसे आगे बढ़ा, चमत्कार अपनी शक्ल लेने लगा. अश्विन न सिर्फ एक मंझे हुए बल्लेबाज की तरह बल्लेबाजी कर रहे थे, बल्कि अपनी तकनीक में वे राहुल द्रविड़ की याद दिला रहे थे तो हनुमा विहारी अपने जज्बे में वीवीएस लक्ष्मण जैसे बन गये थे और धीरे धीरे उन्होंने वह करके दिखा दिया, जो लक्ष्मण और द्रविड़ ने इसी औस्ट्रेलिया टीम के विरूद्ध  कोलकाता के उस ऐतिहासिक मैच में किया था, जिसमें फाॅलोआन के बाद भी न केवल मैच में वापसी करते हुए भारत ने अपना रंग जमाया बल्कि औस्ट्रलिया को चारो खाने चित भी किया.

औस्ट्रलियाई खिलाड़ी न सिर्फ विकेट के लिए तरस गये बल्कि वे भारतीयों के इस जज्बे से बुरी तरह से खीझ भी गये. यहां तक स्मिथ जैसा विश्व का बेहतरीन बल्लेबाज आसन्न ड्रा को देखते हुए ऐसी हरकतें करने पर उतर आया, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी. लेकिन हनुमा विहारी और अश्विन इन तमाम बेचैनियों से बेफिक्र अपने मिशन में लगे रहे और मैच को ड्रा कराके ही छोड़ा. दोनों बल्लेबाजों ने 256 गेंदे खेलीं और 62 रन बनाए. हनुमा विहारी ने कुल 161 गेंदे खेलीं और अश्विन ने 128 गेंदे खेलीं. विहारी ने एक पार्टनरशिप पुजारा के साथ भी बनायी थी.

हनुमा विहारी ने चोटिल होने के बावजूद 161 गेंदों में जो 23 रन बनाये, उसके इस बैटिंग जज्बे की तारीफ आईसीसी ने भी की. आईसीसी ने ट्वीट कर सिडनी टेस्ट मैच के पांचवे दिन खेली गई हनुमा विहारी की पारी को सलाम किया. औस्ट्रेलियाई टीम अंत तक आते आते इस कदर निराश हो गई कि अंततः औस्ट्रेलियाई कप्तान टिम पैने ने आखिरी ओवर के पहले ही मैच ड्रा मान लिया. औस्ट्रलिया इस ऐतिहासिक ड्रा को आसानी से नहीं भूल पायेगा.

ताक झांक: एक मनोवैज्ञानिक बीमारी की तथाकथा

ताक झांक करना ऐसा लगता है एक मामूली फितरत है. मगर यह मामूली सी लगने वाली फितरत आगे चलकर समाज में एक ऐसी बीमारी का स्वरूप धारण कर सकती है जिससे जाने कितने लोग तबाह हो जाएं. ताक झांक के कारण अक्सर इतने ही अपराधिक मामले पुलिस और न्यायालय में पहुंचते हैं जिन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि यह एक शगल के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक बीमारी भी है. जिसका किसी सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता.

हाल ही में ब्रिटेन का एक मामला दुनिया के मीडिया में सुर्खियां बटोर गया. नए वर्ष के प्रथम सप्ताह में ही ताक झांक का अपराध करने वाले एक शख्स को न्यायालय ने लंबे समय तक के लिए जेल भेज दिया और गंभीर टिप्पणी की. खास बात यह है कि ब्रिटेन की एक अदालत ने भारतीय मूल के व्यक्ति को दस पांच नहीं बल्कि पुरी 574 से अधिक लड़कियों और महिलाओं के कम्प्यूटर में हैकिंग करने, धमकाने, ताक-झांक करने और साइबर अपराध का दोषी ठहराते हुए 11 साल जेल की सजा सुनाई है.

यह हैकिंग उनका उत्पीड़न करने के इरादे से की गई थी. महिला और युवतियों को अपना शिकार बनाने वाला यह शख्स मनोवैज्ञानिक रूप से एक बीमार व्यक्ति है जिसकी मनोवैज्ञानिक अपने ढंग से जांच भी कर रहे हैं.मगर आज वह जेल की हवा खा रहा है और यह संदेश दे रहा है कि ताक झांक का दुष्परिणाम क्या हो सकता है.

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होटल, दुकानें भी महफुज नहीं

कब कौन हमारे घर में तांक झांक करने लगे इसका तो खुदा ही मालिक है. वहीं यह भी सच है कि सार्वजनिक स्थान होटलें व्यवसायिक प्रतिष्ठान, बैंक और सरकारी दफ्तर भी ताक झांक के माध्यम बनकर सामने आ चुके हैं.

एक कॉफी हाउस के बेयरे महिलाओं के बाथरूम में तांक झांक किया करते थे. इसी तरह एक प्रतिष्ठित कपड़ा व्यवसायी के यहां निजी कक्ष जहां महिलाएं कपड़े बदला करती थी गुप्त कैमरे पाए गए. यही नहीं
एक बैंक के होम लोन डिपार्टमेंट के कार्यालय की बाथरूम में छेद करके ताक-झांक करने वाले चपरासी को यहां काम करने वाली महिला कर्मचारियों ने रंगे हाथों पकड़ लिया. मामला सामने आते ही कर्मचारी और लोग आक्रोशित हो गए.

इस दौरान आरोपी चपरासी को पीटते हुए उसका जुलूस निकाला गया और थाने लेकर आए.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक प्रतिष्ठित बैंक है वहां एक चपरासी रामू नौकरी करता था. पिछले कुछ दिनों से यहां काम करने वाली महिला कर्मचारियों को बाथरूम के दरवाजे में एक छेद दिखाई दे रहा था.

शंका होने पर जब उन्होंने निगरानी रखी तो सच सामने आ गया. उक्त छेद चपरासी रामू ने किया था. वह बाथरूम में अक्सर ताका झांक करता रहता था. एक दिन जैसे ही कर्मचारी ड्यूटी पर आए और सभी महिलाओं ने रामू की हरकतों पर नजर रखी और उसे रंगे हाथों पकड़ लिया.

सजा का है प्रवधान

तांक झांक को विधि के अनुरूप भी गंभीर अपराध माना गया है और इसके लिए सजा का प्रावधान किया गया है. छत्तीसगढ़ के न्यायधानी बिलासपुर में एक किशोरी के घर में दरवाजे से तांक-झांक करने वाले युवक को अदालत ने एक साल कारावास की सजा सुनाई है. करबला थाना क्षेत्र निवासी किशोरी को आरोपी ट्यूशन जाने के दौरान अक्सर परेशान करता रहता था. पीड़िता के चुप्पी साधने की वजह से आरोपी राजेश की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि रात में उसके घर में घुस गया.

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परिजनों के पहुंचने पर फरार हो गया.पुलिस ने आरोपी के खिलाफ दफा 354 (घ) तथा पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध पंजीबद्ध कर प्रकरण को विचारण के लिए न्यायालय के समक्ष पेश किया था. दरअसल रात को किशोरी अपने घर में थी, इसी दौरान मोहल्ले का राजेश घर में घुस गया. कमरे में मौजूद किशोरी को दरवाजे की आड़ से देखने लगा. किशोरी की मां ने घर पहुंचकर उसे आवाज लगाई तो आरोपी भाग गया. इस पर किशोरी ने आरोपी के लंबे समय से परेशान करने की जानकारी दी.

साथ ही परिजनों को बताया कि स्कूल जाते समय उसका पीछा करता है. लोक लाज के भय से उसने किसी को जानकारी नहीं दी.पीड़िता की शिकायत पर अपराध पंजीबद्ध हुआ पुलिस ने ट्रायल के लिए प्रकरण न्यायालय के समक्ष पेश किया. विचारण बाद न्यायाधीश ने राजेश को किशोरी को बुरी नीयत से देखने का दोषी पाया.आरोपी को पॉक्सो एक्ट की धारा 12 के तहत 1 वर्ष के कारावास और अर्थदंड दिया गया.

बढ़ रहा है कौंट्रैक्ट सैक्स का चलन!

वहां पुलिस का दखल कम होता है, पहचान का खतरा कम होता है, साथ ही साथ किसी भी दूसरे काम के साथ इस को किया जा सकता है.

लाइजिनिंग के धंधे में लगे लोग अपने काम कराने के लिए अब ऐसे गिफ्ट भी देने लगे हैं. यह काम पूरी सावधानी के साथ हो रहा है. ऐस्कोर्ट सर्विस की आड़ में भी ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ को बढ़ावा दिया जा रहा है.

उत्तर प्रदेश में लखनऊ के इंदिरानगर थाना क्षेत्र में लौकडाउन के दौरान सूचना मिली कि पाल गैस्ट हाउस में रोज लड़केलड़कियां आते हैं. कई बार वे लोग रातभर रहते हैं और कई बार 3 से 4 घंटे में ही चले जाते हैं. हर बार नएनए लोग वहां आते हैं.

पुलिस ने गैस्ट हाउस की निगरानी शुरू की. एक दिन पुलिस ने छापा मारा और 4 लड़कियों और 6 लड़कों को पकड़ा. हालांकि पुलिस को उन के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला कि वे किसी तरह के गलत काम में शामिल थे. इस के बाद पुलिस ने थाने ले जा कर निजी मुचलके पर सभी को छोड़ दिया. लड़केलड़कियों ने खुद को दोस्त बताया था. सभी बालिग थे और अपनी मरजी से वहां आए थे.

‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ के जरीए भले ही सैक्स कारोबार को पुलिस की नजरों से दूर रखने के पुख्ता इंतजाम किए जाते हों, पर पुलिस भी कोई न कोई सुराग लगा ही लेती है.

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कानपुर पुलिस ने कुछ दिन पहले ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ का धंधा करने वालों के खिलाफ स्टिंग आपरेशन किया. इन लड़कियों की बुकिंग से ले कर मोबाइल फोन तक की पूरी डीलिंग को रिकौर्ड किया गया.

इस के बाद कानपुर पुलिस ने चकेरी, नौबस्ता और किदवई नगर थाना क्षेत्र के कई महल्लों में छापा मारा. वहां तुर्की की रहने वाली एक लड़की के साथ 20 लोगों को पकड़ा.

पुलिस के मुताबिक, यह धंधा इंटरनैट और मोबाइल फोन पर लड़कियों की बुकिंग के जरीए चलता था. इस रैकेट में कामकाजी औरतें, छात्राएं और विदेशी लड़कियां शामिल थीं. एक लड़की एक रात के लिए कम से कम 25,000 रुपए में बुक होती थी.

पुलिस ने देह धंधे में शामिल इन सभी को देह व्यापार विरोधी कानून ‘पीटा’ के तहत जेल भेज दिया.

पुलिस ने किदवई नगर थाना क्षेत्र के निराला नगर में रतनदीप अपार्टमैंट्स  से शालिनी गुप्ता को पकड़ा. वहां भी  4 और लड़कियां पकड़ी गईं. नौबस्ता थाना क्षेत्र के किराए के मकान से अंजलि को पकड़ा.

लखनऊ के नवल किशोर मार्ग पर ब्यूटी पार्लर में मसाज का काम होता था. पुलिस ने वहां छापा मार कर  4 लड़कियों, 2 ग्राहकों और मसाज पार्लर चलाने वाले  पतिपत्नी को भी पकड़ लिया.

पुलिस ने बताया कि वहां पर मसाज पार्लर चलाने वाले पतिपत्नी लड़कियों को 25,000 रुपए से 40,000 रुपए के पैकेज यानी ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ के लिए बुलाते थे. ग्राहक से 5,000 रुपए से 15,000 रुपए तक वसूले जाते थे. सही माने में अपनी मरजी के मुताबिक धंधा करने वालों को पुलिस और कानून के डर से रोका नहीं जा सकता.

देह धंधे का नया रूप

दुनिया का सब से पुराना कारोबार देह का धंधा भी अपने रिवाज बदल रहा है. अब इस धंधे में शामिल होने के लिए न गंदीबदबूदार कोठरियों में रहने की जरूरत है और न अपने समाज को छोड़ कर कालगर्ल बनने की. देह के इस धंधे में अब ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ के आधार पर सब किया जा रहा है.

यह कौंट्रैक्ट एक दिन से ले कर एक हफ्ते तक का हो सकता है. देह धंधा करने वाली कौंट्रैक्ट का समय खत्म होते ही इस काम से अलग हो सकती है या फिर नया कौंट्रैक्ट भी कर सकती है.

देह धंधे के इस ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ में न किसी तरह का जोरदबाव है और न ही मजबूरी. नएनए चेहरे और जगह बदलने से पुलिस का डर भी पहले से कम हो गया है. इस नए बदलाव से कीमत भी बढ़ गई है.

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25 साल की प्रिया मुंबई में रहती है. वह यहां पर होटल में काम करती है. यहीं उस की मुलाकात फरदीन से हुई थी. वह उस के साथ ही नौकरी करती थी. कुछ दिनों के बाद वह नौकरी छोड़ कर चली गई. एक साल के बाद होटल में वह गैस्ट बन कर आई थी. प्रिया ने उसे पहचान लिया. दोनों के बीच बातचीत होने लगी. कामकाज और नौकरी की बातचीत में फरदीन ने प्रिया को अपने नए कारोबार के बारे में बताया.

दरअसल, फरदीन देह धंधे से जुड़ गई थी. इस के बाद भी वह इसे देह धंधा नहीं कहती थी. उस ने प्रिया को ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ के बारे में बताया. इस में फरदीन महीने के 5 दिन देती थी. वह दिल्ली के एक होटल में काम करती थी. इन 5 दिनों में वह उतना कमा ले रही थी, जितनी उसे 2 महीने की तनख्वाह मिलती थी.

क्या है ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’

‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ पूरी तरह से अपनी मरजी पर निर्भर करता है. जो लोग इस तरह का कौंट्रैक्ट करते हैं, वे समय निकलने के बाद कभी भी कोई जोरजबरदस्ती कर के लड़की को रोकना नहीं चाहते हैं.

‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ में देह बेचने के बदले तय रकम पहले ही दे दी जाती है. यह रकम लड़की की खूबसूरती, उम्र और बोलचाल पर तय होती है. यह सच है कि कौंट्रैक्ट की रकम देने के बाद कमाने वाले कौंट्रैक्टर अपनी लगाई रकम से ज्यादा कमाना चाहता है. इस के लिए वह लड़की की पूरी तरह से मार्केटिंग करता है. उस की पूरी कोशिश होती है कि लड़की खुश रहे, जिस से उस का ग्राहक पर अच्छा असर पड़े.

दूसरे शब्दों में अगर यह कहें कि देह के इस धंधे ने कारपोरेट शक्ल लेनी शुरू कर दी है, तो कोई गलत बात नहीं होगी.

जानकार लोगों का कहना है कि आमतौर पर 5 दिन से 7 दिन के बीच का कौंट्रैक्ट होता है. वैसे, कम से कम 3 दिन का कौंट्रैक्ट भी हो सकता है.

5 से 7 दिन के ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ में कम से कम लड़की को 30,000 रुपए से 40,000 रुपए तक की कमाई हो जाती है. कौंट्रैक्टर इस से ज्यादा पैसा लड़की से कमा लेता है.

कौंट्रैक्ट की इस मीआद में लड़की अपने कौंट्रैक्टर के पास ही रहती है और उस की बताई जगहों पर जाती है. इस दौरान लड़की को यह हक है कि वह दिन के 8 से 10 घंटे अपने लिए रखती है. इस दौरान वह आराम करती है, खातीपीती है और अपने निजी काम करती है.

‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ का यह धंधा खुले नहीं, इसलिए इस को राज रखने के लिए ‘फैमिली टच’ दिया जाता है. सैक्स का कौंट्रैक्ट करने वाली लड़की कौंट्रैक्टर की पत्नी की सहेली बन कर उस के घर में रहती है. जरूरत पड़ने पर ही वह बाहर जाती है.

आसान हो गया काम

ऐसे ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ में आसपास के लोगों को सचाई का पता नहीं चल पाता. अपने काम को छिपाने के लिए ऐसे लोग घर के आसपास रहने वालों से ज्यादा घुलतेमिलते नहीं हैं. ज्यादा लंबे समय तक वे एक जगह न रह कर समयसमय पर अपना ठिकाना बदलते रहते हैं.

कई छोटेबड़े कौंट्रैक्टर एकदूसरे के संपर्क में रहते हैं. जरूरत पड़ने पर वे एकदूसरे से मदद लेते हैं. कई बार अपनी कौंट्रैक्ट की लड़की को दूसरे कौंट्रैक्ट के पास भी भेजते हैं. इन में इन का अपना अलग कमीशन होता है.

जब कभी पुलिस को इन का पता चलता भी है, तो केवल पहली कड़ी ही खुलती है. आगे की कड़ी का पता कोई भी नहीं बताता है. मुसीबत पड़ने पर यही लोग उसे बचाने का काम करते हैं. पुलिस और कचहरी के मामले निबटाने का काम लोकल कौंट्रैक्टर ही करता है.

इस धंधे में तमाम नियमकानून बने हैं, पर किसी भी तरह की लिखापढ़ी नहीं होती. यहां केवल जबान की ही कीमत होती है.

कानपुर में रहने वाले ऐसे ही एक कौंट्रैक्टर का कहना है, ‘‘इस तरह के काम में आसानी यह है कि हमें कहीं भी किसी को रखने के लिए लंबाचौड़ा इंतजाम नहीं करना पड़ता है. अगर किसी ग्राहक को साउथ इंडियन लड़की चाहिए, तो हम अपने संपर्क के जरीए साउथ इंडियन लड़की का इंतजाम कर देते हैं. इसी तरह से हम विदेशी लड़कियों का भी इंतजाम करते हैं.

‘‘विदेशी लड़कियां घूमने की आड़ में 20-25 दिन के लिए आती हैं. उन में से 5 से 10 दिन वे इस काम के लिए भी निकाल लेती हैं. अभी विदेशी लड़कियों की मांग ज्यादा है. लोगों को लगता है कि विदेशी लड़कियां सैक्स में ज्यादा उपयोगी होती हैं.

‘‘इस के उलट कुछ लोग देशी लड़कियों की मांग करते हैं. वे देशी पर स्मार्ट मौडल सी दिखने वाली लड़कियां चाहते हैं. पहले ऐसे लोग अपने शौक को पूरा करने के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहर या फिर विदेश की यात्रा करते थे, पर अब कौंट्रैक्ट सैक्स के जरीए अपने शहर में ही मुमकिन होने लगा है. ऐसे में अगर कुछ खर्च ज्यादा हो जाए तो भी कोई परेशानी नहीं होती है.’’

‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ के लिए दिल्ली से लखनऊ आई एक लडकी को उस के कौंट्रैक्टर ने एक अच्छे होटल में ठहराया. वहां पहले वह 3-4 घंटे आराम करती है. इस के बाद वह ग्राहक के पास चली जाती है. ग्राहक तक पहुंचाने के लिए गाड़ी ग्राहक की ओर से ही आती है.

होटल वाले को केवल यह पता होता है कि कोई लड़की घूमने के लिए आई है. कई बार लड़की पूरी रात बाहर न गुजार कर देर रात 10-11 बजे तक अपने होटल वापस चली आती है. दिन में इस तरह के काम करना आसान होता है. पुलिस का खतरा कम होता है.

लड़कियां बताती हैं कि कई बार ग्राहक अपने औफिस या किसी दूसरी सुरक्षित जगह को ही इस्तेमाल कर लेता है. इस में भारीभरकम चारपहिया गाडि़यों का भी सहारा लिया जाता है.

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हौलीडे और कौंट्रैक्ट सैक्स

कौंट्रैक्ट सैक्स का बड़ा इस्तेमाल हौलीडे ट्रिप में होता है. बड़े शहरों में रहने वाले लोग अपने हौलीडे ट्रिप में ऐसी ही लड़कियों को शामिल कर लेते हैं. पर्यटन स्थलों पर वे घूमने के साथसाथ सैक्स का भरपूर मजा लेते हैं. इस में किसी तरह का कोई खतरा भी नहीं रहता है. हौलीडे ट्रिप लगाने के बाद ये लोग लौट आते हैं. लड़की भी अपने घर लौट जाती है.

‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ के राज को बनाए रखने के लिए लड़की को पुराने ग्राहक के पास कम से कम भेजा जाता है. एक तरह से पूरा धंधा राज और समझदारी पर टिका रहता है.

अभी तक जो लोग इस तरह की मौजमस्ती के लिए विदेशों का सफर करते थे, उन के लिए अब कम पैसे में ऐसी सुविधाएं मिलने लगी हैं. हवाईजहाज के सफर ने छुट्टियों को और भी रोमांचक बना दिया है. बड़े शहरों में ऐसे काम करना खतरनाक होने लगा तो लोगों ने छोटेछोटे पर्यटन स्थलों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है.

आगरा में शिल्पग्राम के पास बने एक होटल के मालिक बताते हैं, ‘‘ऐक्सप्रैस हाईवे बन जाने के बाद कम समय में लोग शाम को आगरा घूमने के बहाने आ जाते हैं और यहां एक रात होटल में रह कर सुबह वापस दिल्ली पहुंच जाते हैं.’’

मसूरी के क्लार्क टावर के पास बने एक रिसोर्ट के संचालक का कहना है, ‘‘औफ सीजन में यहां के बहुत सारे होटलों का काम ऐसे लोगों से ही चलता है. दिल्ली और आसपास के लोग यहां ऐसी छुट्टियां मनाने के लिए आते हैं.’’

कई बार कुछ विदेशी लड़कियां भी इस रैकेट में शामिल हो जाती हैं. आगरा ही नहीं, बल्कि खजुराहो के कई होटलों में भी इस तरह के काम खुल कर होते हैं. यहां लोग जोड़ों में घूमने के लिए आते हैं, इस के बाद वापस चले जाते हैं.

पर्यटन स्थलों को दूसरे शहरों के मुकाबले महफूज समझा जाता है. लोग एकदूसरे को जानतेपहचानते नहीं, ऐसे में किस के साथ आए हैं, उसे छिपाना आसान हो जाता है. ऐसे में ‘कौंट्रैक्ट सैक्स’ एक आसान उपाय बन कर उभरा है, जो शायद देह धंधे में शामिल लड़कियों को देह धंधे की खामियों से नजात दिलाने में कामयाब हो सकता है. यहां न रैडलाइट एरिया जैसी बंदिशें हैं और न मजबूरियां. ग्राहकों के लिए भी यह सुरक्षित जरीया है. शायद इसी वजह से यह महंगा होने के बाद भी लोकप्रिय हो रहा है.

(पहचान छिपाने के लिए कई लोगों के नाम बदल दिए गए हैं.)

केवल मुठ्ठी भर लोगों को मौका दे रहा हुनर हाट

लेखक- शाहनवाज

लौकडाउन और कोविड-19 के कारण, एक लम्बे समय के बाद दिल्ली के पीतमपुरा इलाके में जहां एक तरफ बड़ी बड़ी इमारतें और दूसरी तरफ दूरदर्शन की बड़ी सी गगनचुम्बी रेडियो और टीवी टावर के बीच मौजूद दिल्ली हाट में भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा हुनर हाट का आयोजन कर ही लिया गया. वैसे दिल्ली में यह हुनर हाट साल की शुरुआत (फरवरी)  में और अक्सर या तो इंडिया गेट के राजपथ पर लगा करता था या फिर प्रगति मैदान में.

हुनर हाट भारत के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा आयोजित मास्टर शिल्पकारों के पारंपरिक और उत्तम कौशल को प्रदर्शित करने और बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी मिशन बताया जाता है. हुनर हाट का लक्ष्य कारीगरों, शिल्पकारों और पारंपरिक खान-पान विशेषज्ञों को बाजार में निवेश और रोजगार के अवसर प्रदान करना है.

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लेकिन क्या सच में भारतीय शिल्पकारों और हस्तशिल्पियों के लिए देश भर के विभिन्न शहरों में लगने वाला हुनर हाट इन के लिए फायदे का सौदा होता है? क्या देश के दूर दराज़ वाले ग्रामीण इलाकों के शिल्पकारों और हस्तशिल्पियों को हुनर हाट मौका देता है? जो कलाकार अपने बनाए हुए सामान के साथ दिल्ली, मुंबई, इंदौर जैसे अन्य बड़े शहरों में आते हैं क्या उन के छोटे छोटे सपने इन बड़े बड़े शहरों में आ कर सच होते हैं?

इन्ही जैसे और भी महत्वपूर्ण सवालों का पता लगाने के लिए हमारी टीम ने पीतमपुरा दिल्ली हाट में लगे हुनर हाट में जा कर लोगों से बात की. हुनर हाट का आंखों देखी ब्यौरा और ग्राउंड रिपोर्ट कुछ इस प्रकार है.

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हुनर हाट: एक आदर्शवादी कल्पना

भारत सरकार की उस्ताद योजना (अपग्रेडिंग द स्किल्स एंड ट्रेनिंग इन ट्रेडिशनल आर्ट्स/क्राफ्ट्स फॉर डेवलपमेंट) के तहत हुनर हाट को स्थापित किया गया है. ये योजना राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार के साथ पारंपरिक कला/शिल्प के संबंधों को स्थापित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है. आसान शब्दों में कहें तो सरकार ने भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के हस्तशिल्पियों और पारंपरिक दस्तकारों के हितों की रक्षा के लिए उस्ताद योजना शुरू की है. हुनर हाट इसी योजना के तहत एक अन्य प्रयास है जहां पर हस्तशिल्पी और पारंपरिक दस्तकार अपने द्वारा बनाए हुए उत्पादों को आम लोगों के सामने प्रदर्शनी के तौर पर लगाते हैं और उन्हें बेच कर वें आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहे हैं.

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सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में पारंपरिक कला और समुदाय से संबंधित हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास तथा प्रशिक्षण योजना उस्ताद योजना शुरू की है. इन कलाकारों की कुशलता को सही लोगों तक पहुंचाने के लिए और इन की द्वारा बनाए गए उत्पादों का उचित मूल्य उपलब्ध कराने के लिए उस्ताद योजना को देश के कुछ बड़े संस्थानों के साथ जोड़ा गया है, जिन में राष्‍ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्‍थान (एन.आई.एफ.टी.), राष्‍ट्रीय डिजाइन संस्‍थान (एन.आई.डी.) और भारतीय पैकेजिंग संस्‍थान (आई.आई.पी.) की सहायता ली जा रही है.

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यह सब सुन ने में कितना अच्छा लगता है लेकिन इस की हकीकत ग्राउंड लेवेल पर कुछ और ही है. इस बार हुनर हाट में स्टाल लगाने वाले शिल्पकारों से बातचीत, योजना की कुछ और ही तस्वीर बयान करती है.

हुनर हाट: क्या है हकीक़त?

भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे उस्ताद योजना के तहत हुनर हाट को हर साल देश के बड़े शहरों में आयोजित किया जाता है. वहां जा कर, पूरा दिल्ली हाट घूम कर हम ने देखा की वहां शिल्पकारों और दस्तकारों के करीब 100 या 120 के आस पास ही स्टाल्स लगे हुए हैं. यह देख कर सब से पहला सवाल तो यही उठता है की देश भर में क्या सिर्फ 120 ही दस्तकार हैं?

हर बार की तरह इस बार भी हुनर हाट में देश के बहुसंख्यक राज्यों से शिल्पकार और दस्तकार मौजूद थे. दिल्ली, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, नागालैंड, मणिपुर, झारखण्ड, और भी अन्य राज्य. हां लेकिन इस बार दक्षिण भारत के राज्यों के स्टाल नहीं लगे थे, जो की हर बार लगा करते थे. केरल, तमिलनाडु और कर्णाटक जैसे राज्यों के स्टाल्स इस बार हुनर हाट में नहीं दिखाई दिए.

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इस से पहले हुनर हाट में स्टाल्स की संख्या काफी बड़ी होती थी, लेकिन इस बार बहुत ही कम स्टाल्स देखने को मिले. शायद यही वजह है की अक्सर इंडिया गेट के राजपथ और कई बार प्रगति मैदान में लगने वाला हुनर हाट इस बार पीतमपुरा के छोटे से दिल्ली हाट में लगा. लेकिन इस की वजह कोविड के कारण लगाया जाने वाला लौकडाउन था जिस की वजह से जीवन भर अपनी कला को बेच कर अपना गुजारा करने वाले दूर दराज के शिल्पकारों को अपना परम्परागत काम छोड़ अन्य काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

बातचीत के दौरान हमारी बात मोनिका देवी जी से हुई. मोनिका झारखण्ड से हैं और कपड़ों के सुन्दर फूल बनाती हैं. इस के साथ साथ बैम्बू (बांस) पर भी वो कलाकारी करती हैं. केन एंड बैम्बू प्रोडक्ट्स के नाम से उन की स्टाल है. इस स्टाल का कोई भी शुल्क नहीं भरना होता. यह सरकार की तरफ से निःशुल्क है. उन्होंने बताया की उन के साथ  इस काम के लिए करीब 10 और परिवार जुड़े हुए हैं. परन्तु उन सब की तरफ से मोनिका जी यहां अकेले अपने छोटे बच्चे के संग आईं हैं. वे यहां पर सिर्फ अपना सामान बेचने आईं हैं. लेकिन खाली पड़े हुनर हाट में उन की यह उम्मीद अधूरी ही है.

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उन्होंने बात ही बात में बताया कि इस बार का हुनर हाट उन के जीवन का पहला हाट है, इस के बाद वें कभी इस तरह के आयोजन का हिस्सा नहीं बनेंगी. मोनिका जी ने बताया की एक तो पहले से ही उन की और उन के साथ काम करने वाले परिवारों की हालत बेहद खस्ता है, और लॉकडाउन के बाद गांव में सभी के आर्थिक हालात बहुत ही दयनीय हो चुकी है.

उन्होंने बताया कि दिल्ली में इस हाट में आने के लिए उन के पास किसी बड़े बाबू का कॉल आया था, और उन्हें यह भी बोला था कि दिल्ली में जाने के बाद जितना भी खर्चा होगा, वहां से वापिस आने पर वो सब वापिस मिल जाएगा. लेकिन सवाल तो यह था की दिल्ली जाने के लिए शुरूआती खर्चा तो खुद की जेब से ही देना था. आखिर वो कहां से आता. तो मोनिका जी ने अपने साथ काम करने वाले 10 परिवारों से पैसे उधार लिए, ताकि वो यहां आ कर अपना क्राफ्ट बेच सकें.

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इस हाट की शुरुआत से मोनिका जी ने सिर्फ 1500-2000 रूपए की कमाई की है. आलतू फालतू के खर्चे से बचने के लिए मोनिका जी रात 10 बजे (हाट के बंद होने का समय) के बाद अपने छोटे बच्चे के संग अपने स्टाल में ही रात गुजारती है. खाना खाने के लिए दिल्ली हाट के बाहर रस्ते के कोने की तरफ एक कुलचे वाला रेडी लगाता है, वो अपने बच्चे के संग वही जाती है. क्योंकि हुनर हाट के अन्दर मिलने वाला खाना बेहद महंगा है जो शायद मोनिका जी अफोर्ड नहीं कर सकती हैं. बेहद कठिन परिस्थितियों से गुजर कर मोनिका जी बस किसी तरह से आखरी के कुछ दिन और काट लेना चाहती है.

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ये तो थी मोनिका जी की कहानी. लेकिन हुनर हाट में सब की हालत मोनिका जी जैसी नहीं हैं. हाट में अन्य शिल्पकारों से जब हम ने बात कि तो हम ने पाया की मामला कुछ और ही है. हम ने बात की उत्तर प्रदेश, मोरादाबाद से आने वाले रहमत अली से. ब्रास पेंटिंग एंड वाल हैंगिंग के नाम से इन की स्टाल है. रहमत पीतल पर काम करने वाले शिल्पकार हैं और जब से हुनर हाट की शुरुआत हुई है तब से ही वें अपना स्टाल हर साल और हर बड़े शहर में लगाते हैं.

बातचीत के दौरान रहमत ने बताया की उन की इस शिल्पकारी के पीछे कुल 25-30 परिवार जुड़े हुए है, जो की उन के लिए काम करते हैं. उन्होंने बताया की उन के पिता पहले के जमाने में खुद ही इस शिल्पकारी का काम किया करते थे लेकिन समय के साथ साथ रहमत ने अपने पिता जी का काम खुद संभाल लिया और अपने नीचे बाकि लोगों को जोड़ कर उन से काम करवाने लगे. रहमत ने बताया की उन्हें इस काम से और हुनर हाट के ऐसे आयोजनों से अच्छा ख़ासा मुनाफा हो जाता है. उन्होंने बताया की पिछले साल इंडिया गेट पर लगने वाले हुनर हाट में उन्होंने इतना पैसा कमा लिया था कि लॉकडाउन के इतने कठिन दिनों में उन्हें किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा.

मुजीबुर रहमान, 22 साल के युवा हैं. मणिपुर के इम्फाल में रहते हैं. मणिपुर ट्रेडिशनल ड्रेसेस के नाम से उन की स्टाल है. उन का परिवार कपड़े पर पुरानी ट्रेडिशनल मशीनों के द्वारा मणिपुरी प्रिंट में छपाई करता है. मुजीबुर कई साल पहले ही दिल्ली में पढ़ाई के उद्देश्य से आ चुके थे. अभी वो दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी कॉलेज में पढाई करते हैं और इस के कभी फुल टाइम तो कभी पार्ट टाइम काम कर गुजारा करते हैं.

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उन्होंने बताया की कपड़े पर मणिपुरी प्रिंट करने का ये काम सिर्फ अकेला उन का परिवार ही करता है. वक्त के साथ साथ इस काम से अब उन के परिवार का भरोसा खत्म होता जा रहा है. क्योंकि उन के उत्पादों की मेकिंग कौस्ट ही इतनी जा जाती है की पूरी तरह से बन कर तैयार होने के बाद उस की कीमत थोड़ी और बढ़ जाती है. उन के स्टाल पर सब से कम कीमत की चीज फदी (गमछा) है जिस की कीमत सिर्फ 150 से शुरू है. और सब से ज्यादा कीमत फने (मणिपुर में त्यौहार में पहने जाने वाला वस्त्र) का है जिस की कीमत 4000 रूपए तक है.

हुनर हाट में ज्यादातर स्टाल लगाने वाले लोग मालिक ही है. बेशक से वो अपने आप को शिल्पकार कहते हो, कारीगर कहते हो, लेकिन सच्चाई तो यही है की उन्होंने अपने नीचे कई लोगों को काम पर रखा है. वो असली कारीगर और शिल्पकार इन के लिए काम करते हैं और कलाकार का दर्जा इन लोगों को मिल जाता है जो सिर्फ मालिक है. असली शिल्पकार न तो हमारे सामने आ पाते हैं और न ही उन की मेहनत का सही दाम उन्हें मिल पाता है.

वहां मौजूद कुछ स्टाल्स तो हम ने ऐसे भी देखें जिस में जिस के नाम से स्टाल आल्लोट किया गया है वह वहां मौजूद ही नही है, बल्कि स्टाल पर खड़े हो कर सामान बेचने के लिए 2 मजदूरों को और रखा हुआ है.

शिल्पकारों और दस्तकारो की स्थिति बेहद ख़राब

यदि हम भारत में सब से ज्यादा परेशान हालत में रहने वाले लोगों के बारे में विचार करेंगे तो शिल्पकारों और दस्तकारों का नाम उन में हमेशा से शामिल रहेगा. यह साफ़ कर देना जरुरी है की यहां पर किसी क्राफ्ट कंपनी की बात नहीं हो रही है बल्कि असली शिल्पकारो की हो बात हो रही है, जो खुद अपने हाथों से उत्पादों का निर्माण करता है. अगर आप किसी कंपनी की बात करेंगे तो जरुर आप को उन का मुनाफा होता हुआ नजर आ जाएगा, लेकिन जब व्यक्तिगत शिल्पकारों की बात होगी तो उन की हालत हमेशा से ही ख़राब ही रही है.

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2017 में वस्त्र राज्य मंत्री अजय टम्टा ने एसोचैम के एक इवेंट में कहा कि ‘भारतीय कपड़ा और हस्तशिल्प उद्योग कृषि के बाद सबसे बड़ा रोजगार जनरेटर है’. इस से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पुरे भारत में 7 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं, जिस में बड़ी संख्या में महिलाएं और समाज के कमजोर वर्ग के लोग शामिल हैं. ये उद्योग सामान्य रूप से ग्रामीण समुदायों और विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत हैं.

बेशक से सरकार ने शिल्पकारों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए हुनर हाट जैसी व्यवस्था का आयोजन करवा दिया है, लेकिन क्या सच में हुनरमंद लोग इस व्यवस्था का फायदा वें उठा पा रहे हैं? हुनर हाट में मौजूद कुछ लोगों को यदि छोड़ दिया जाए (मोनिका जी और मुजीबुर रहमान जी) तो बहुसंख्यक लोगों को देख कर ये कही से नहीं लगता है की वें देश की महिला शिल्पकारों तक और कमजोर वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हों. वहां मौजूद ज्यादातर स्टाल वाले मालिक हैं जिन्होंने सिर्फ पैसा लगाने का काम किया है और मालिक तो कोई भी हो सकता है, चाहे किसी को शिल्पकारी आती हो चाहे न आती हो.

सिर्फ यही नहीं हुनर हाट इन्ही कुछ कारणों की वजह से भारत के शहरी इलाकों में रहने वाले मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग का अड्डा बन कर रह गया है. अब जाहिर सी बात है हुनर हाट में मिलने वाले सामान, जिन की कीमत उत्पाद की तुलना में ज्यादा ही होती है, ऐसे में वो सब कौन खरीद ही पाएगा. आम लोग जो की मजदुर वर्ग या फिर निम्न मध्यम वर्ग का होगा वो तो सिर्फ घुमने के उद्देश्य से ही वहां जा पाएगा. न की कोई सामान खरीदने के उद्देश्य से.

ठीक ऐसा ही हाल हमें खान पान की जगह पर भी देखने को मिली. अगर पूरी जगह में सब से सस्ता कुछ खाने के लिए था तो वो बस एक समोसा. जो की सिर्फ एक स्टाल पर मिल रहा था और उस की कीमत भी 30 रूपए थी. कुल्हड़ वाली स्पेशल चाय 60 रूपए की. और नार्मल वाली चाय 50 की. अब भला कोई नार्मल सी चाय के लिए 50 रूपए क्यों देना चाहेगा. और कही पर भी कोई भी ट्रेडिशनल खान पान, या फिर विभिन्न राज्यों के प्रसिद्ध खान पान दिखाई नहीं दिए. सिर्फ बिरयानी, कोरमा, पनीर, नान, चाय, चाऊमीन, स्प्रिंग रोल इत्यादि जो आम जगहों पर भी मिल ही जाया करती है वही सब ही यहां भी मिल रहा था. जिन की कीमत ऐसी की जिन्हें कुछ लोग ही अफ्फोर्ड कर पाए.

इन शोर्ट अगर हुनर हाट की अब बात की जाए तो कही से भी हुनर हाट हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. न तो सरकार के इस आयोजन से समाज के बहुसंख्यक हिस्से को कोई लाभ मिल रहा है और न ही ये समाज में आम लोगों के दिमाग में शिल्पकार की कला को बसा पा रहा है. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले वें लोग जो खुद का और अपने परिवार का पेट भरने के लिए एक तरफ तो खेती करते हैं और दूसरी तरफ कुछ पैसे हाथ में आ सके इसीलिए अपनी कला को लोगों के बीच बेचते हैं, वें अपनी चीजो का दाम कभी भी इतना नहीं रखेंगे की कोई उन्हें खरीद ही न सके. अगर ऐसे लोगों को हुनर हाट अपने पास जगह देता तो शायद समाज के बहुसंख्यक हिस्से को न सिर्फ अपना सामान बेच पाते बल्कि कीमत कम होने पर बहुसंख्यक लोग उन के द्वारा बनाया हुआ सामान खरीद भी पाते.

सोनू सूद को “भगवान” बना दिया! धन्य है भारत देश

चढ़ते सूरज को यहां नमस्कार करने वालों की कमी नहीं, फिर चाहे बाद में वहां गिद्द ही क्यों नहीं मंडलाने लगे. ऐसा ही अजूबा अब फिल्म दुनिया में खलनायक के रूप में मशहूर और स्थापित हो चुके सोनू सूद के मामले में देखने को मिल रहा है.उन्हें भगवान का दर्जा देकर मंदिर बना दिया गया है. और पूजा का ढकोसला चल रहा है. यही नहीं मीडिया भी इसे लताड़ने की जगह महत्व दे रही है. सवाल है क्या हमारे यहां वैसे ही देवताओं की कमी है? या फिर यह कहे कि जितने भी देवता हैं कुछ इसी तरह धीरे-धीरे लोकमान्य होते चले गए हैं! आइए! आज इस महत्वपूर्ण ढोंग और अंधविश्वास के मसले पर विस्तार से चर्चा करते हैं-

कोरोना लॉकडाउन के समय मजदूरों और जरूरतमंदों के लिए सहायक बनकर सामने आए सोनू सूद की अब गरीबों के भगवान बन चुके हैं. तेलंगाना के गांव डुब्बा टांडा के लोगों ने 47 वर्षीय सोनू सूद के नाम पर एक मंदिर बनवाकर उसमें उनकी मूर्ति स्थापित की है. मजे की बात यह है कि श्रीमान सोनू की प्रतिमा सोनू की चिर परिचित पोशाक टी शर्ट पहने हुए है..!

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह जानकारी मिल रही है की गांव के कुछ खब्तीयों ने इस मंदिर का सिद्दीपेट जिले के कुछ अधिकारियों की मदद से बनवाया है.मंदिर का लोकार्पण बीते रविवार को मूर्तिकार और स्थानीय लोगों की मौजूदगी में किया गया. और जैसा की नाटक होता है इस दौरान एक आरती भी गाई गई. ट्रेडिशनल ड्रेस में वहां की महिलाओं ने पारंपरिक गीत भी गाए.

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जिला परिषद के सदस्य गिरी कोंडेल का बयान सामने आया है वे कहते हैं कि सोनू सूद ने कोरोना के दौरान गरीब लोगों के लिए अच्छा काम किया है. वहीं, मंदिर निर्माण के योजनाकार संगठन में शामिल रमेश कुमार का कथन है कि सोनू ने अच्छे कामों के चलते भगवान का दर्जा हासिल कर लिया है. तो अब कुल मिलाकर हमारे देश में कोई भी कभी भी किसी के भी कामों के गुण दोष को देखकर उसे भगवान का दर्जा दे सकता है.

सोनू का काबिले तारीफ कार्य

निसंदेह मार्च में जब कोरोना का प्रसार और लाक डाउन की स्थिति निर्मित हुई जब सारे बड़े-बड़े नामचीन लोग घरों में घुस गए सोनू सूद ने बहादुरी का परिचय दिया मानवता और इंसानियत का परिचय दिया.

कोरोना से पहले सोनू सूद एक औसत एक्टर के तौर पर जाने जाते थे जोकि फिल्मों में खलनायक के भूमिका में दिखाई देते हैं. हालांकि कोरोना के दौरान लॉकडाउन में अपनी उदारता और शालीनता से उन्होंने लोगों के दिलों में एक अलग ही जगह बनाई राजनेताओं जोकि समाज सेवा का चोला पहने जाते हैं की असलियत भी जगजाहिर कर दी. लॉकडाउन में सोनू सूद ने छत्तीसगढ़ , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, असम और केरल के करीब 25 हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाया था.

इतना ही नहीं, सोनू ने इनके खाने-पीने का भी इंतजाम किया था. छत्तीसगढ़ में बस्तर की एक बालिका को घर बनवा करके भी दिया जो की चर्चा में रहा सोनू सूद ने मानवता का जो परिचय दिया है वह निसंदेह कम ही उदाहरण बन का सामने आता है. उन्होंने अपने काम से यह दिखा दिया कि वे एक संवेदनशील व्यक्ति हैं और प्रत्येक उस व्यक्ति की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा हो जाती है जिसके पास धन दौलत होती है. शायद यही कारण है कि उस दरमियान सोनू सूद की मीडिया में भी खूब तारीफ हुई.

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संतोषी माता और नरेंद्र मोदी भी उदाहरण

देश में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि भगवान कैसे बनते हैं? और किस तरह रातों-रात लोग उनके नाम पर मंदिर बना देते हैं.

यही हमारे देश की खासियत है और यही कमी है. अंधविश्वास के फेर पढ़कर लोग किसी को भी महान गुरु, भगवान का दर्जा दे देते हैं और बाद में धोखा खाते हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का भी एक मंदिर सुर्खियों में रहा. इसी तरह 70 के दशक में जब जय संतोषी मां मूवी रिलीज हुई तो गांव गांव में संतोषी मां के मंदिर बन गए. संतोषी मां की भजन और पूजा सामग्री तैयार होकर बिकने लगी.

सफलता के लिए पढ़ना जरूरी

लेखक-   धीरज कुमार

समय बहुत कीमती होता है. जो समय को भांप गया, सफल हो गया. समय विद्यार्थी जीवन में सफल होने का मौका हरेक को देता है.

रिचा साइंस की स्टूडैंट थी. जब उस का एडमिशन अच्छे कालेज मे हुआ तो वह लगभग रोज ही कालेज जाया करती थी. कालेज में उस की ढेर सारी फ्रैंड्स बन गई थीं. वह रोज नई ड्रैस पहन कर कालेज जाती थी. सहेलियों के साथ वह तरहतरह के वीडियोज बनाती थी, फोटोशूट करती थी, दोस्तों के साथ सैल्फी लेती थी और उन्हें एकदूसरे को शेयर करती  थी. कालेज से घर आते हुए जितने भी रैस्टोरैंट व होटल थे, सभी में वह अलगअलग दिन दोस्तों के साथ डिशेज का स्वाद लेती थी.

परीक्षा में अच्छे मार्क्स के लिए ट्यूशन भी पढ़ रही थी. ट्यूशन से आने के बाद कौपीकिताब एक तरफ रख कर आराम करती थी. इतना कुछ करने के बाद उस के पास एनर्जी नहीं बच पाती थी कि वह घर पर नियमित पढ़ाई कर सके. ट्यूशन व कालेज में पढ़ाई गई बातों को दोहराने का उसे समय नहीं मिल पाता था. थोड़ाबहुत खाली समय मिलने पर मोबाइल से गाने सुनती थी. कुछ समय अपने दोस्तों से मोबाइल पर चैटिंग करती थी. लगभग यही उस की प्रतिदिन की दिनचर्या थी.

चिंता का कारण

जैसे ही परीक्षा का समय आया. वह काफी चिंतित हो गई थी. पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी. वह टैंशन में रहने लगी थी. इसीलिए परीक्षा पास नहीं कर पाई. उस की पढ़ाई अधूरी रह गई थी. जब पढ़ने के दिन थे तो दोस्तों के साथ मौजमस्ती करती रही.  यही कारण था कि पढ़ाई में पिछड़ गई थी. सो, स्वाभाविक था कि परीक्षा में  अच्छे अंक नहीं आ पाएंगे. वह फेल हो चुकी थी.

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इस प्रकार वह 2 साल का कीमती समय बरबाद कर चुकी थी. उस की सारी दोस्त अगली कक्षा में जाने के लिए तैयार थीं. उस की कुछ दोस्त अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे की रणनीति बना रही थीं और उस पर काम कर रही थीं. जबकि, रिचा 2 साल व्यर्थ गए समय के बारे में अफसोस कर रही थी. कुछ दिन तो उस के अंदर इतनी हिम्मत नहीं बच पाई थी कि वह फिर से परीक्षा की तैयारी कर सके. लेकिन जब उस के मातापिता और गुरुजनों ने मार्गदर्शन किया तो वह अपनी गलती सुधारने को तैयार हो गई.

नकारात्मक सोच की उत्पत्ति

रिचा की तरह कम स्टूडैंट्स होते हैं जो असफल होने के बाद सफलता के लिए दोबारा मेहनत कर पाते हैं. कुछ स्टूडैंट्स होते हैं जो असफलता से निराश हो कर बीच में पढ़ाई छोड़ चुके होते हैं. कुछ ऐसे भी स्टूडैंट्स होते हैं जो असफलता से निराश हो कर आत्महत्या तक कर लेते हैं. जबकि, आत्महत्या करना किसी भी समस्या का निदान नहीं है.

समय के सदुपयोग के फायदे

12वीं क्लास में पढ़ने वाली श्रुति दिनरात घर पर पढ़ाई कर रही थी. स्कूल से आने के बाद वह नोट्स का घर पर प्रतिदिन रिवीजन करती थी. दिक्कत होने पर ट्यूशन में डिस्कस करती थी. उसे हर विषय में सैल्फ स्टडी के कारण सभी विषयों के कौन्सैप्ट्स क्लीयर रहते थे.

यही कारण था कि वह परीक्षा में 90 प्लस मार्क्स स्कोर कर पाई थी. वह सभी सब्जैक्ट्स को टाइम मैनेजमैंट के हिसाब से पढ़ती थी.

पढ़ाई के दौरान वह मोबाइल से दूर रहती थी. हां, मोबाइल से अपने कठिन विषयों के वीडियोज, स्पीच आदि जरूर सुनती थी और देखती थी. उस के दोस्तों की संख्या सीमित थी. वह उन्हीं दोस्तों से कनैक्ट रहती थी जिन से पढ़ाईलिखाई में मदद मिल सके. वह हंसते हुए बताती है, ‘‘मैं पढ़ाईलिखाई में रुचि नहीं रखने वाले दोस्तों से जल्द ही किनारा कर लेती हूं. मेरे मोबाइल में उन्हीं फ्रैंड्स के नंबर हैं जो पढ़ाईलिखाई में अच्छी हैं और जो मु?ो भी पढ़नेलिखने में मदद कर पाती हैं. फालतू लोगों के नंबर मैं ब्लौक कर देती हूं.’’

फालतू दोस्तों से नुकसान

एक बात तो स्पष्ट है कि पढ़ाईलिखाई के दौरान फालतू दोस्तों से बातें करना समय बरबाद करना ही है. कुछ पढ़ने वाले स्टूडैंट्स की ये शिकायतें जरूर रहती हैं कि पढ़ाईलिखाई के दौरान दोस्तों का जमावड़ा लक्ष्यप्राप्ति में बाधक होता है. पढ़ाईलिखाई के दौरान दोस्तों की संख्या सीमित होनी चाहिए. कुछ दोस्त पढ़ाईलिखाई के बजाय मौजमस्ती की ओर डायवर्ट करने की कोशिश करते रहते हैं, जिस से पढ़ाई में बाधा पहुंचती है.

अनियमित पढ़ाई से सफलता में देरी

बिहार के औरंगाबाद जिला निवासी सतीश कुमार का कहना है कि वे इंटर लैवल यानी एसएससी परीक्षा की तैयारी कई सालों से कर रहे हैं. लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है. उन का कहना है, ‘‘असफलता का मुख्य कारण है प्रतिदिन टाइम मैनेजमैंट के अनुसार पढ़ाई का अभ्यास नहीं कर पाना. मैं विगत 3 सालों से तैयारी कर रहा हूं. अपनी व्यक्तिगत परेशानियों के कारण पढ़ाईलिखाई नियमित नहीं कर पाता हूं. यही कारण है कि अभी तक मुझे सफलता नहीं मिल पाई है. किसी भी परीक्षा की तैयारी करते समय नियमित पढ़ाई करना जरूरी है. व्यक्तिगत परेशानियों में फंसे रह जाने के कारण पढ़ाईलिखाई बाधित हो जाती है, इसीलिए मुझे अभी तक सफलता नहीं मिली है.’’

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सफलता के लिए टाइम मैनेजमैंट जरूरी

यूपीएससी परीक्षा 2019 के टौपर, हरियाणा के सोनीपत जिले के तेवड़ी गांव के निवासी प्रदीप सिंह का कहना था कि वे सफलता के लिए पूरे सप्ताहभर का टाइम मैनेजमैंट तैयार करते थे. अगर किसी कारण किसी दिन तय की गई पढ़ाई पूरी नहीं कर पाता था तो अगले दिन उस को भी जरूर पूरा करता था. सप्ताह के अंत तक वे बनाए गए टारगेट को पूरा कर लेते थे. तभी उन्हें इतनी बड़ी सफलता मिली. उन्होंने इस सफलता के लिए नियमित पढ़ाई के महत्त्व को स्वीकार किया.

लक्ष्यप्राप्ति के लिए रोज पढ़ें

किसी भी परीक्षा में टाइम मैनेजमैंट का पूरा ध्यान रखना पड़ता है, इसलिए रोज पढ़ना जरूरी होता है. तभी सफलता की उम्मीद की जा सकती है. अगर आप प्रतिदिन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं तो सफलता की उम्मीद नहीं कर सकते. सफलता के लिए खुद के पैमाने पर स्टूडैंट्स खुद को तोल लेते हैं. जिस प्रकार से स्टूडैंट्स की तैयारी होती है, उस  के मुताबिक वे सफलता और असफलता का अनुमान खुद ही लगा लेते हैं.

सैल्फ स्टडी के फायदे

कंपीटिशन में सफलता के लिए लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है. नियमित अभ्यास से ही सफलता की उम्मीद की जा सकती है. कोचिंग क्लास में स्टूडैंट्स की प्रौब्लम्स को सौल्व किया  जाता है.

सो, वह सहायक हो सकता है, परंतु उसे सफलता की गारंटी नहीं कहा जा सकता. लेकिन अगर आप सैल्फ स्टडी लगातार कर रहे हैं, तो सफलता की उम्मीद कर सकते हैं.

नियमित पढ़ाई जरूरी

आप किसी प्रकार की पढ़ाई कर रहे हों- चाहे सामान्य डिग्री हासिल करना चाहते हों, किसी  कंपीटिशन की तैयारी कर रहे हों, कोई भाषा सीख रहे हों, कानून की पढ़ाई कर रहे हों, मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रहे हों, हर पढ़ाई में जरूरी है कि पढ़ाईलिखाई नियमित हो. नियमित पढ़ाई से ही सफलता हासिल होती है.

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पढ़ाईलिखाई में शौर्टकट नहीं

किसी प्रकार के भी कोर्स को पूरा करने के लिए प्रतिदिन पढ़ना जरूरी है. कोर्स की संरचना इस प्रकार से की जाती है कि नियमित पढ़ाई से ही कोर्स पूरा किया जा सकता है. कुछ लोग सफलता के लिए शौर्टकट फार्मूला अपनाने की नाकाम कोशिश करते हैं. जीवन के अन्य क्षेत्रों में शौर्टकट अपनाया जा सकता है किंतु पढ़ाईलिखाई में यह संभव नहीं है. शौर्टकट तरीके से सफलता हासिल नहीं की जा सकती है.

आज के विद्यार्थी प्रतियोगिता के युग में जी रहे हैं. किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता की तैयारी के लिए टफ कंपीटिशन से गुजरना पड़ता है. आज के कौंपिटिटिव एनवायरमैंट में अनियमित पढ़ाई से सफलता मिलना बहुत ही मुश्किल है. विद्यार्थियों को काफी सोचसम?ा कर और रणनीति बना कर तैयारी करने की जरूरत है. विद्यार्थियों को सफलताप्राप्ति के लिए अपना ध्यान लक्ष्य पर केंद्रित करना पड़ता है. इसलिए अच्छी तैयारी के लिए अच्छी किताबें, कोचिंग सैंटर, गुरुजनों एवं मातापिता के मार्गदर्शन के साथसाथ नियमित पढ़ाई जरूरी है.

बलात्कारी वर्दी का “दंश”

हमारे आसपास समाज में ऐसी अनेक घटनाएं घटित होते जाती है. दरअसल, यह कुछ ऐसा ही है जैसे बाड़ ही खेत को खा जाए. आज हम इस रिपोर्ट में इन्हीं तथ्यों पर विचार करते हुए आपको बताएंगे की किस तरह वर्दी,पावर, अपने पद के गुमान में आम लोगों और विशेषकर अबला कही जाने वाली नारी पर अपने अत्याचार के रंग दिखाती है.

प्रथम घटना-

न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर के एक पुलिस महा निरीक्षक जैसे बड़े पद पर बैठे शख्स पर एक महिला ने यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए. मामला सुर्खियों में रहा आज भी महिला आयोग में मामला लंबित है.

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दूसरी घटना-

एक पुलिस अधीक्षक आईपीएस ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कुछ युवतियों से संबंध बना लिए. मामला जब धर्मपत्नी तक पहुंचा तो उसने जहर खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की.

तीसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के बस्तर के कांकेर में एक पुलिस अधिकारी ने एक आदिवासी युवती को बहला-फुसलाकर शादी करूंगा कह अपने जाल में फंसाया. युवती के माता-पिता ने उच्च अधिकारियों तक शिकायत पहुंचाई. अंततः पुलिस अधिकारी हुआ निलंबित.

यह कुछ घटनाएं सिर्फ बानगी मात्र है, जो बताती है कि किस तरह “खाकी वर्दी” पहन कर कुछ लोग पद का दुरुपयोग कर रहे है. और जब बात बढ़ती है तो खाकी वर्दी पर भी गाज गिर पड़ती है. और आगे चलकर यह लोग मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहते वहीं पद और प्रतिष्ठा भी खो देते हैं.

आरक्षकों का कारनामा

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में दो पुलिसकर्मियों ने नाबालिग एक किशोरी से डरा धमका कर दुष्कर्म किया . दोनों पुलिसकर्मी डायल 112 में कांस्टेबल हैं. अपने पद का दुरुपयोग करते हुए किशोरी को दोनों आरोपी डरा धमकाकर बुलाते और बलात्कार करते रहे. किशोरी ने अंततः परिजनों को बताया और परिजनों के संरक्षण में मामला पुलिस के उच्च अधिकारियों तक पहुंचा. शिकायत के बाद मामला जांच में सही पाया गया इसके पश्चात बिलासपुर के सरकंडा थाना पुलिस ने कार्रवाई करते हुए दो माह के लंबे समय के बाद दोनों कांस्टेबल को गिरफ्तार कर कार्रवाई की. पुलिस के उच्च अधिकारी बताते हैं कि जिले के
सीपत क्षेत्र निवासी 14 साल की किशोरी को कुछ माह पहले डायल 112 में तैनात कांस्टेबल देवानंद केंवट और वीरेंद्र राजपूत ने एक संदिग्ध युवक के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था.

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इस पर दोनों पुलिसकर्मियों ने किशोरी का मोबाइल नंबर लिया और अपराधिक मंशा से छोड़ दिया . आरोप है कि इसके बाद ही किशोरी को दोनों सिपाही कौल करने लगे. वह डरा धमकाकर उसे बुलाते और दुष्कर्म करते रहे.परेशान होकर किशोरी ने अक्टूबर 2020 में सरकंडा थाने में रपट दर्ज करा दी. आरोपी कांस्टेबल इसी थाने के पदस्थ बताए जा रहे थे इस मामले की जांच में पुलिस को लंबा समय लग गया. जांच सही मिलने पर दिसंबर माह में पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. यहां यह भी कड़वा सच है कि पुलिस दोनों कांस्टेबल को बचाने के प्रयास में जुटी रही. इसके लिए समझौते का भी दबाव बनाया गया. मगर जब मामला नहीं बना तो पुलिस ने औपचारिकता पूरी की.

इस मामले में यह तथ्य भी सामने आया है कि एक आटो चालक मध्यस्थ था और मौका मिलते ही उसने भी किशोरी के साथ बलात्कार किया था और पकड़ा गया था. बहतराई निवासी पंचराम साहू उर्फ सोनू किशोरी को अपनी ऑटो में पुलिसकर्मियों के पास छोड़ने जाता और लाता था. इस दौरान उसने भी मौका पाकर किशोरी से दुष्कर्म किया था.

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