क्या यही प्यार है

सुबह का आगाज होते ही ग्वालियर के निंबाजी की तंग गलियों में 20 जुलाई, 2022 को पुलिस सायरन की आवाज सुन कर लोग चौंक

गए. वे अपनेअपने घरों से निकल आए. देखते ही देखते घनी आबादी वाले इलाके में स्थित भंवर सिंह के घर के बाहर लोगों की भीड़ जुट गई. वहां कई पुलिसकर्मी भी मौजूद थे. भंवर सिंह की कुंवारी बेटी किरण की हत्या के बारे में सुन कर लोग सन्न रह गए थे. इस का उन्हें जरा भी विश्वास ही नहीं हो रहा था.

इस तरह की वारदात उन के इलाके में हुई, यह जान कर लोग आक्रोशित भी हो गए. हालांकि वे अपने गुस्से को दबाए हुए आपस में तरहतरह की बातें कर उस बारे में विस्तार से जानने की कोशिश कर रहे थे.

इस वारदात की सूचना पौ फटते ही जनकगंज थाने के एसएचओ आलोक परिहार को घर वालों ने ही दी थी. बिना देरी किए वह पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे. पुलिस ने घटनास्थल और लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. पाया कि मृतका किरण की हत्या हरे रंग के गमछे से गला घोट कर की गई थी.

गला घोटे जाने का निशान गले पर साफ नजर आ रहा था. किरण की लाश बैठक में फर्श पर पड़ी थी और उस के गले में गमछे का फंदा भी कसा था. किरण की उम्र करीब 20-21 साल के आसपास थी. वहीं टेबल पर प्लेट में नमकीन, बिसकुट और चाय रखी थी.

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे से मृतका के मधुर संबंध रहे होंगे. तभी उस की आवभगत हुई होगी. किरण का घर जिस गली में था, वह काफी संकरी थी. सभी के घर एकदूसरे से जुड़े हुए थे. यदि किरण मदद के लिए शोर मचाती तो घर में मौजूद उस की बड़ी बहन की बेटी सोनिया और पासपड़ोस में रहने वाले लोग अवश्य उस की मदद के लिए दौड़ पड़ते.

एसएचओ आलोक परिहार ने इस हत्या की गुत्थी सुलझाने के सिलसिले में कई बिंदुओं पर गौर किया. जैसे, घर का सारा कीमती सामान सुरक्षित था. अलमारियों में ताले जस के तस लगे थे. घर में लूटपाट का कहीं कोई निशान नजर नहीं आ रहा था.

इस से यह बात स्पष्ट था कि हत्या लूटपाट के लिए कतई नहीं की गई थी. इन्हीं वजहों से पुलिस का ध्यान करीबी लोगों पर गया. पुलिस ने मृतक के पड़ोसी के घर पर लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज की जांच शुरू की.

सीसीटीवी फुटेज में एक युवक मुंह पर गमछा बांधे भंवर सिंह के घर में दाखिल होता दिखाई दिया. वही जब 15 मिनट बाद घर से वापस बाहर निकला, तब उस के मुंह पर गमछा नहीं बंधा था. उस का चेहरा स्पष्ट दिखाई दिया. एसएचओ परिहार ने इसे भंवर सिंह को दिखा कर उस युवक के बारे में पूछा. भंवर सिंह ने उसे पहचान लिया और उस का नाम मुकुल बताया.

लाश के गले से लिपटा गमछा वही था, जो मुकुल ले कर घर में घुसा था. इस के अलावा कोई और सबूत नहीं मिला. फोरैंसिक एक्सपर्ट ने भी घटनास्थल और लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. प्रारंभिक जांच पूरी करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

उस वक्त एसएचओ ने किरण के परिजनों को दहाड़ मार कर रोते पाया. उन में एक बूढ़ी महिला और दूसरी लड़की की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. बूढ़ी महिला किरण की नानी और मृतका की हमउम्र युवती उस की मौसी की बेटी सोनिया थी. एसएचओ ने उन्हें ढांढस बंधाया और उन से किरण के जानने वालों के बारे में पूछा.

किरण की मौत के बारे में सब से पहले घर में मौजूद सोनिया सिहोते को पता चला था. उस ने पुलिस को बताया कि घटना के दिन वह और उस की मौसी किरण सिंघानिया अपने नाना के घर पर थी. रोज की तरह सुबह होने से पहले नानानानी 4 बजे अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. वे नगरनिगम में काम करते हैं.

उसी दौरान सुबह साढ़े 5 बजे के करीब किसी ने डोरबैल बजाई थी. घंटी बजने की आवाज सुन जब उस ने खिड़की का एक पल्ला खोल कर बाहर झांका तो विकास मौसा के छोटे भाई मुकुल धौलपुरिया को घर के दरवाजे पर खड़ा पाया.

इस बारे में उस ने मौसी किरण को बताया. मौसी ने उन्हें भीतर बुला कर ड्राइंगरूम में बैठाने के लिए कहा. उस के बाद वह मुकुल मौसा के लिए चाय नाश्ता लेने किचन में चली गई. मौसी चायनाश्ता टेबल पर रख कर मुकुल मौसा से बातचीत करने लगी और वह किचन में साफसफाई करने चली गई गई.

थोड़ी देर बाद किचन की साफसफाई कर वह घर के बाहर आई. उस ने देखा कि मुकुल बाहर से ड्राइंगरूम की कुंडी लगा कर झूला चौक की तरफ तेज कदमों से चले जा रहे हैं.

फिर उस ने ड्राइंगरूम की कुंडी खोली. वहां का दृश्य देख कर वह डर गई. कमरे में उस की किरण मौसी जमीन पर बेहोश पड़ी थी. उस ने मौसी को पुकारा, हिलायाडुलाया. लेकिन उस ने कोई हरकत नहीं की.

उस ने देखा कि किरण मौसी के गले में वही हरे रंग का गमछा कसा हुआ था, जो उस ने सुबह के वक्त मुकुल के गले में लिपटा देखा था. सोनिया ने बताया कि तुरंत किरण मौसी को आटोरिक्शा से अस्पताल ले गई. डाक्टर ने नब्ज देखते ही उसे मृत बता दिया.

फिर तो वह और घबरा गई. उस ने तुरंत पुलिस को काल कर दी. सोनिया ने मौसी के मर जाने की सूचना नानानानी को भी फोन कर दे दी और उन्हें जल्द घर आने को कहा.

खबर सुन कर नानानानी उलटे पैर वापस घर आ गए. नानी किरण की हालत देख कर रोनेचिल्लाने लगी. नाना की आंखों में भी आंसू आ गए. उन के रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर पासपड़ोस के कुछ लोग वहां आ गए.

किरण के बारे में छोटी से छोटी जानकारी जुटा कर एसएचओ आलोक परिहार थाने लौट आए. उन्होंने मृतका की बड़ी बहन की बेटी सोनिया की तहरीर पर अज्ञात हत्यारे के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

इस मामले की जांच एसएचओ परिहार ने अपने हाथों में ले ली. भंवर सिंह और सोनिया से मिली जानकारी के आधार पर घटनास्थल की स्थिति से इतना तो स्पष्ट हो चुका था कि किरण की हत्या में किसी जानने वाले का ही हाथ है.

सोनिया से मिली जानकारी के मुताबिक मुकुल ही मामले का मुख्य दोषी था. परिहार ने देर किए बगैर उसे दबोच लिया. वह आसानी से मिल गया. फिर उसे सबूत के तौर सीसीटीवी फुटेज और बरामद गमछे को दिखा कर सख्ती से पूछताछ की गई.

उस ने जल्द ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया. और फिर इस हत्याकांड की

जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी.

किरण जवानी की दहलीज पर खड़ी थी और मुकुल भी जवान हो चुका था. दोनों रिश्तेदार थे. उन के रिश्ते अगर काफी दूर के नहीं थे तो पास के भी नहीं थे. मुकुल किरण की बड़ी बहन का देवर था. इस कारण उस का बड़े भैया के साथ उन की सुसराल आनाजाना लगा रहता था.

इस लिहाज से किरण और मुकुल के बीच मजाक का रिश्ता था. किरण बड़े भाई की साली थी. इस लिहाज से वह उस की भी साली थी. दोनों हमउम्र थे. एक तरफ किरण की चढ़ती जवानी थी, दूसरी तरफ मुकुल का बांकपन और मदमस्ती की छेड़छाड़ वाली आदतें थीं.

फिर भी किरण ने न तो मुकुल को नजर भर कर देखा था और न ही मुकुल ने किरण को, जबकि उन के बीते सालों की जानपहचान थी.

बात बीते साल की है. एक दिन मुकुल जब भैया की ससुराल आया था, तब किरण घर में अकेली थी. किरण उसे अपने ड्राइंगरूम में बिठा कर खुद रसोई में चली गई. किंतु उस रोज मुकुल की नजर रसोई में जाती किरण की मदमस्त चाल पर पड़ी.

उस से रहा नहीं गया और बोल पड़ा, ‘‘हाय सैक्सी, तू चीज बड़ी है मस्तमस्त…’’

गाने की यह लाइन किरण के कानों तक पहुंची. वह पीछे मुड़ कर मुसकराई और फिर तेज कदमों से कमर मटकाती हुई चली गई. उस रोज मुकुल उसे देखता ही रह गया.

थोड़ी देर में किरण चाय और प्लेट में नमकीन बिसकुट ले कर आ गई. मुकुल के सामने के स्टूल पर रख कर फिर वापस जाने लगी. तभी मुकुल ने उस का हाथ पकड़ लिया और अपनी ओर खींचते हुए बैठने को कहा. लेकिन किरण पानी लाने के बहाने हाथ छुड़ा कर दोबारा किचन में चली गई.

उस रोज पहली बार मुकुल ने किरण की देह पर गहरी नजर डाली थी और उसे घर में अकेला पा कर छेड़ने के मूड में था. इस का असर किरण के मन पर भी हुआ, लेकिन उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस ने शर्म और रिश्ते की मानमर्यादा को बनाए रखा.

किरण ने मुकुल से आने का कारण पूछा. बड़ी बहन का समाचार लिया और मुकुल के साथ ड्राइंगरूम में समय गुजारते हुए औपचारिक बातें कीं.

कुछ दिनों बाद ही मुकुल फिर किरण से मिला. इस बार उस की मुलाकात घर पर नहीं, भीड़भाड़ वाले बाजार में हुई. छूटते ही उस ने किरण की तारीफ में कहा, ‘‘आज तो तुम इस ड्रेस में और भी सैक्सी लग रही हो.’’

किरण केवल मुसकरा कर रह गई. सिर झुकाते हुए बोली, ‘‘बाजार में ऐसी बातें करना ठीक नहीं है.’’

‘‘तो चलें किसी एकांत जगह में?’’ मुकुल तपाक से बोला.

‘‘…अरे नहींनहीं. मुझे जल्द घर जाना है. अपना कुछ सामान खरीदने बाजार आई थी.’’ किरण बोली.

‘‘ऐसा करो, तुम अपना मोबाइल नंबर बताओ,’’ मुकुल ने कहा.

‘‘लिखो 97…’’

‘‘अरे! 9 नंबर ही हुए.’’ मुकुल बोला.

‘‘अंत में 7 नहीं डाला क्या?’’ किरण बोली.

‘‘अच्छाअच्छा… लो, 7 डाल दिया. अब काल करता हूं. मेरे नंबर को सेव कर लेना. रात को काल करूंगा.’’ मुकुल लगातार बोलता चला गया.

किरण के मोबाइल पर मुकुल की मिस्ड काल आ गई. किरण देखते हुए बोली, ‘‘हां, आ गया नंबर. तुम्हारे नंबर के अंत में भी 37 है…’’

‘‘अब तुम्हीं बताओ हमारेतुम्हारे बीच कितनी समानता है,’’ मुकुल के इस तर्क पर किरण ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. चुपचाप वहां से चली गई.

किरण अपने परिवार, संस्कार और समाज के रीतिरिवाज में बंधी थी. उम्र 22 की हो चुकी थी. दिलदिमाग में उस के कई रंगीन सपने थे. उन में मनपसंद जीवनसाथी का भी था. लेकिन वह किस रूप में मिलने वाला था पता नहीं था.

दूसरी तरफ जब से मुकुल ने किरण की कमसिन जवानी को भरी नजर से देखा था, उसे पाने के लिए बेचैन हो गया था. उस का मन उस से हटता ही नहीं था. वह बड़े भाई की साली थी. उस से मिलनाजुलना आसानी से हो जाता था. किरण की खूबसूरती ने मुकुल का मन कुछ इस तरह मोह लिया था कि वह उसे पाने के लिए लालायित हो उठा था. एक दिन हसरत भरी नजरों से देखने पर किरण ने मुकुल का ध्यान तोड़ते हुए कहा, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुकुल, क्या कोई खास बात है?’’

मुकुल को लगा, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. वह झेंपते हुए बोला, ‘‘न..नहीं. यूं ही… कुछ भी तो नहीं…’’

‘‘कुछ बात तो जरूर है,’’ इस बार किरण ने उसे छेड़ा था.

‘‘बात तो है जरूर,’’ मुकुल बोला.

‘‘जरा मैं भी तो सुनूं,’’ किरण दोबारा मजाकिया अंदाज में बोली.

‘‘आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो. बहुत सजीधजी हो. कहीं जाने वाली हो क्या?’’ मुकुल बोला.

‘‘कुछ दिन पहले मैं सैक्सी दिखती थी, आज सिर्फ सुंदर दिख रही हूं?’’ किरण बिंदास हो कर चहकती हुई बोल पड़ी.

‘‘ऐसी बात नहीं है, तुम बहुत सैक्सी हो. दिन पर दिन और सैक्सी होती जा रही हो.’’

‘‘सो तो हूं ही.’’ किरण थोड़ा शरमाई.

वैसे किरण दूसरी लड़कियों की तरह झिझकती नहीं थी. जिस से खुल जाती थी, तो बस पूछिए मत, उस से दिल खोल कर बातें करती थी. पिछले कुछ हफ्तों से किरण मुकुल के साथ काफी खुल गई थी.

उस ने बताया कि वह अपनी सहेली के बर्थडे में जा रही है. और फिर इठलाती हुई वहां से चली गई. मुकुल उसे तब तक टकटकी लगाए निहारता रहा, जब तक कि वह उस की नजरों से ओझल नहीं हो गई.

उस दिन मुकुल ने पहली बार किरण को इस तरह खुल कर बातें करते हुए देखा था.  किरण आंखों के रास्ते उस के दिल में उतर गई थी. किरण की बातें और अदाओं ने मुकुल के दिल में हचलच मचा रखी थी.

मुकुल घर पहुंचते ही सीधा अपनी भाभी के पास गया. भाभी यानी किरण की बड़ी बहन से अपने दिल की बात कह डाली. मुकुल ने बड़ी हिम्मत कर अपनी भाभी से किरण के साथ शादी की बात चलाई. उस ने कहा कि वह किरण को बहुत चाहता है. किरण भी उस से प्यार करती है. यह सुनते ही किरण की बड़ी बहन मुकुल पर बरस पड़ी.

तिलमिलाती हुई नाराजगी के साथ डांट लगाई, ‘‘कमाताधमाता एक धेला नहीं है और सपने देख रहा है मेरी छोटी बहन से शादी करने के. पहले कमाने की सोच, उस के बाद शादी करने की बात मुझ से करना. …और किरण को तो तुम भूल ही जाओ…’’

मुकुल बेरोजगार था. वह भाभी की बातों पर चुप रहा. उस समय उन से किरण को ले कर बहस करना सही नहीं समझा. दूसरी तरफ किरण के दिलोदिमाग में मुकुल रच बस गया था.

प्यार के अंकुर फूट चुके थे. प्यार की खुशबू उसे भी बेचैन किए जा रही थी, लेकिन वह भी परिवार की मर्यादाओं से बंधी हुई थी. दोनों मन ही मन एकदूसरे को चाहने लगे थे.

मुकुल की भाभी ने किरण को भी जबरदस्त डांट पिलाई. उसे डांटते हुए कहा कि बेरोजगार और दिन भर आवारागर्दी करते घूमने वाले मुकुल से शादी कर वह अपना जीवन क्यों बरबाद करना चाह रही है.

साथ ही उस ने किरण को हिदायत भी दी कि आइंदा मुकुल का नाम तक जुबां पर नहीं लाए. उस से दूर रहे. यहां तक कि उस के घर से बाहर जाने और मुकुल से मिलने तक पर नाना से कह कर पाबंदी लगवा दी.

किरण की बड़ी बहन नहीं चाहती थी कि उस की छोटी बहन की शादी उस के देवर से हो. किरण मन मसोस कर रह गई. किरण को तो परिजनों की पाबंदी से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, उस ने अपने दिल को तसल्ली दे दी कि उसे परिवार वालों की पसंद के लड़के के साथ ही शादी करना पड़ेगी. किंतु मुकुल किरण को पाने के बेचैन रहने लगा.

किरण से मिलने की पाबंदी लगने के बाद मुकुल उस के घर चोरीछिपे जाने लगा. वह किरण के पास तभी जाता था, जब वह घर में अकेली होती. इस बारे में वे पहले मोबाइल से बातें कर लेते थे. इस के लिए सुबह 4 बजे का समय सब से सही था.

मुकुल 20 जुलाई, 2022 की सुबह किरण के घर तब गया था, जब उस के नाना और घर के दूसरे सदस्य नहीं हों. किंतु उसे इस का पता नहीं था, उस दिन उस की भतीजी सोनिया वहां आई हुई थी.

किरण मुकुल को ड्राइंग रूम में बैठा कर साथसाथ चाय पीने लगी. इसी दौरान मुकुल ने किरण से सैक्स करने की इच्छा जताई. किंतु किरण ने इंकार कर दिया. फिर मुकुल छेड़छाड़ करने लगा. उस के अंगों को छूने छेड़ने लगा. किरण उस का विरोध जताने लगी.

जबकि मुकुल के दिमाग पर सैक्स का फितूर सवार था. वह उस से हर हाल में सैक्स करना चाहता था. इसी क्रम में मुकुल ने उस से कहा कि वह एक न एक दिन तो उस से शादी करेगा ही.

इस पर जैसे ही किरण ने कहा, ‘‘कतई नहीं.’’

मुकुल सैक्स की जद में पागल जैसा हो गया. उस ने अपने गले का गमछा किरण के गले में डाल दिया. दोनों हाथों से गमछे को कसता रहा और उस से शादी करने की बात कुबूल करवाने की जिद करता रहा.

उस वक्त वह इस बात से एकदम अनजान था कि किरण की गला दबने से मौत हो चुकी है. वह अपना होशोहवास खो बैठा था.

किरण की सांस बंद होने पर वह घबरा गया और उसी घबराहट में गमछा लिए बगैर ही वहां से फरार हो गया. जाने से पहले उस ने ड्राइंगरूम के दरवाजे की बाहर से कुंडी लगा दी. मुकुल एक पल गंवाए बगैर वहां से निकल भागा. जबकि पुलिस उसी रोज मुकुल का नाम आते ही उसे पकड़ने का अपना जाल बिछा चुकी थी. पूरे शहर और वहां से बाहर जाने वाले रास्ते, रेलवे स्टेशन एवं बस अड्डे पर मुखबिरों को लगा दिया गया था.

एसएचओ आलोक परिहार को मुखबिर से मिली सूचना के बाद मुकुल मुरैना रेलवे स्टेशन पर खड़ा मिल गया था. वहां वह ट्रेन के आने का इंतजार कर रहा था. पुलिस ने उसे तत्काल हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई. उस के द्वारा किरण की हत्या करने का जुर्म कुबूल करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर दिया. वहां से उसे जेल भेज दिया गया.

गरम लोहा: बबीता ने क्यों ली पति व बच्चों के साथ कहीं न जाने की प्रतिज्ञा?

पति ना हो ऐसा

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की वाटिका विहार कालोनी के रहने वाले राजेश और पुनीता की शादी के 2 दशक बीत चुके थे. वह इतना लंबा समय खट्टेमीठे अनुभवों के साथ गुजारते आए थे. राजेश की जब शादी हुई थी, तब उस की उम्र केवल 16 साल की थी. वह 16 साल की पुनीता को विदिशा से साल 2002 में ब्याह कर लाया था. दोनों ने कच्ची उम्र में दांपत्य जीवन की शुरुआत की.

राजेश आजीविका के लिए सूर्यवंशी गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया स्थित एक फैक्ट्री में काम पर लग गया. जबकि पुनीता घरपरिवार को संभालने में लगी रही. किंतु हां, परिवार को कैसे खुश रखा जाए, घर की जरूरतें कैसे पूरी हों, परिवार के दूसरे सदस्यों के साथसाथ सामाजिक मानमर्यादा का किस तरह निर्वाह किया जाए? आदि बातों का वे काफी खयाल रखते थे.

एक तरह से उन्होंने अपना एक संतुलित परिवार बना लिया. वे 2 बच्चों के मातापिता बन गए. उन का बड़ा बेटा 14 साल का और छोटा 10 साल का हो चुका था. दोनों एक पब्लिक स्कूल में पढ़ते थे.

पुनीता एक कुशल गृहिणी की तरह घरपरिवार को संभाले हुए थी, लेकिन कुछ समय से घर के बढ़ते खर्च, बच्चों की अच्छी पढ़ाईलिखाई को ले कर परेशान रहने लगी थी. उसे मकान बनवाने की भी चिंता थी, लेकिन पति की आमदनी बहुत ही सीमित थी. इस के लिए उस ने अपने भाई मंगलेश से 2 लाख रुपए की मदद भी ली थी.

फिर भी सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. कोरोना काल में उन की माली हालत बिगड़ गई थी और राजेश चाह कर भी अपने साले का कर्ज नहीं उतार पा रहा था. इसे ले कर आए दिन राजेश की पुनीता से तूतूमैंमैं होने लगी थी.

बात शुरू होती थी घर के खर्च से, जो मकान बनवाने और भाई से लिए कर्ज तक जा पहुंचती थी. जब भी पुनीता उसे भाई के कर्ज के पैसे देने की बात करती थी, तब राजेश गुस्सा हो जाता था. उलटे उस पर तरहतरह के आरोप लगाने लगता था.

एक दिन तो हद हो गई. राजेश ने अपने साले मंगलेश को फोन कर बताया कि उस की बहन के रंगढंग तब से ठीक नहीं हैं, जब से वह पास के अस्पताल में काम करने लगी है.

‘‘हैलो मंगलेश, सुन रहा है न तू?’’ राजेश तेज आवाज में मोबाइल को मुंह के पास ले जा कर बोल रहा था.

‘‘हांहां बोलो जीजा, तुम्हारी आवाज साफ आ रही है. बोलो न, क्या बता रहे थे… दीदी को क्या हो गया है?’’ मंगलेश बोला.

‘‘अरे मंगलेश, उसे कुछ हुआ नहीं है. उस के चालचलन बदल गए हैं. बेहया हो गई है. जब से वह अस्पताल में काम करने जाने लगी है, तब से उस के रंगढंग बहुत बदल गए हैं. जरा उसे समझा दियो, वरना बहुत बुरा हो जाएगा.’’ राजेश एक तरह से धमकी भरे अंदाज में बोला और फोन कट कर दिया.

मंगलेश अपने जीजा की बातों को आधाअधूरा ही समझ पाया था. फिर भी उस ने अपनी बहन पुनीता  से एक बार बात करना सही समझ कर उसे काल कर दी, ‘‘हैलो दीदी! कैसी है तू?’’

‘‘मैं ठीक हूं, तू कैसा है? घर में सब कुशल से है न?’’ पुनीता मायके का हालसमाचार लेने लगी.

‘‘अरे दीदी, जीजा का फोन आया था. बोल रहे थे तुम्हें क्या हो गया है? कोई परेशानी है क्या?’’ मंगलेश बोला.

‘‘अरे नहीं रे भाई! तू उन की बातों पर ध्यान मत दे. यह हमारे उन के बीच की बात है.’’ पुनीता ने भाई को समझाया.

‘‘बच्चे कैसे हैं? उन की पढ़ाई ठीक से चल रही है न! स्कूल तो खुल गए होंगे? उन से मिले बहुत दिन हो गए. राखी के दिन उन्हें भी ले कर आ जाना,’’ मंगलेश बोला.

उस रोज बात आईगई हो गई. न तो पुनीता ने अपने पति के साथ आए दिन होने वाली तकरार के बारे में कुछ बताया और न ही मंगलेश ने बहन की निजी जिंदगी में गहराई तक झांकने की कोशिश की.

लेकिन यह क्या? अगले दिन ही राजेश ने मंगलेश को फिर फोन कर वही बात दुहराई. कहने लगा अपनी बहन को संभाल ले वरना अनर्थ हो जाएगा. उस ने सीधेसीधे आरोप लगा दिया कि उस का अस्पताल के ही एक युवक के साथ टांका भिड़ गया है. उस के साथ घूमनेफिरने लगी है. जिस से पासपड़ोस में उस की बदनामी हो रही है. उसे बच्चों को ले कर चिंता हो रही है.

एक तरह से राजेश ने उस रोज अपनी पत्नी पुनीता पर बदचलन होने और एक युवक के साथ अवैध संबंध रखने का आरोप लगा दिया था.

बहन के बारे में यह सुन कर मंगलेश ने उस रोज फोन पर ही बहन को काफी डांट लगाई. उस ने यहां तक कह डाला कि वह अपने परिवार पर ध्यान दे, बच्चों का भविष्य बनाए. गलत रास्ता नहीं अपनाए. दोबारा जीजा की शिकायत आई, तब समझ लेना कि उस के मायके का दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो गया है.

राजेश द्वारा पुनीता को ले कर शिकायतों का सिलसिला लगातार चलता रहा. जब भी मंगलेश के फोन आते तो वह बातचीत का सिलसिला ही पुनीता की शिकायतों से करता. उस पर बदचलनी का आरोप लगाता.

दूसरी तरफ साला मंगलेश हर बार उसे भरोसा देता कि एक दिन उस के पास आ कर वह उसे समझाएगा. लेकिन उस के लिए वह दिन नहीं आया. उसे अपनी बहन को उस बारे में आमनेसामने बैठ कर बातें करने का मौका ही नहीं मिला.

मंगलेश 14 सितंबर, 2022 की सुबह 7 बजे के करीब अपने काम पर जाने के लिए तैयार हो रहा था. तभी राजेश का फोन आया. मोबाइल चार्जिंग में लगा हुआ था. वह झुंझला गया. नहीं चाहते हुए भी मोबाइल हाथ में ले लिया.

काल देख कर चौंक गया. फोन राजेश का नहीं, बल्कि उस की बहन पुनीता का था. कुछ पल के लिए सोचने लगा कि सबेरेसबेरे पुनीता ने क्यों फोन किया होगा? इस से पहले तो उस ने कभी फोन नहीं किया. जब भी उस से बात की, तब उसी ने बहन को फोन किया था. जरूर कोई खास बात होगी. मंगलेश फोन रिसीव करते हुए बोला, ‘‘हैलो, हां पुनीता, बोलो क्या बात हो गई, इतनी सुबह फोन किया?’’

‘‘अ…अ अरे, मैं बोल रहा हूं, त…त…तेरा जीजा राजेश.’’ आवाज में थरथराहट थी.

मंगलेश किसी अनहोनी से आशंकित हो गया. घबरा कर पूछ बैठा, ‘‘क्या बात है जीजा, तुम परेशान लग रहे हो और मरी आवाज में क्यों बोल रहे हो? सब कुछ ठीक तो है न?’’

‘‘अरे नहीं रे मेरे भाई! कुछ भी ठीक नहीं है. तुम्हारी बहन की उस के प्रेमी ने घर आ कर हत्या कर दी है,’’ राजेश एक सांस में बोल गया.

‘‘हत्या कर दी है? पूनम की हत्या कर दी है? किस ने? कैसे?’’ मंगलेश चौंकते हुए कई सवाल कर बैठा.

‘‘अरे तू फोन पर ही सब कुछ पूछता रहेगा या फिर जल्दी से आएगा भी. हम ने पुलिस को भी फोन कर दिया है. पुलिस आती ही होगी…’’

‘‘चल, मैं भी आता हूं,’’ कहते हुए मंगलेश ने तुरंत फोन कट किया और राजेश के यहां जाने के लिए झटपट तैयार हो गया. जेब में कुछ पैसे भी रख लिए.

उस से कुछ समय पहले ही राजेश ने 100 नंबर पर पुलिस को हत्या की सूचना दे दी थी. कहा था कि उस की पत्नी के दोस्त आनंद ने बांके से हमला कर उस की पत्नी की हत्या कर दी है. यह सूचना पा कर कुछ समय में ही भोपाल के छोला मंदिर थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई थी.

पुलिस ने जांच शुरू की और राजेश के बयान लिए. राजेश ने पुलिस को बताया कि वह अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने गया हुआ था. पत्नी घर में अकेली थी. जब वह वापस लौटा तो पत्नी के हाथपैर बंधे हुए थे और उस का गला कटा हुआ था.

मौके पर पहुंची पुलिस ने जांच शुरू की. राजेश पुलिस को गुमराह करता रहा. शक के आधार पर पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जुर्म कुबूल कर लिया. आरोपी की पड़ोसन यासमीन ने पुलिस को बताया कि उसे सुबह करीब पौने 8 बजे राजेश के घर से झगड़े की आवाज आ रही थी. राजेश के घर पहुंची तो वह पुनीता को चारपाई पर पटक कर उस पर चाकू से वार कर रहा था.

पुलिस ने वारदात के बारे में पड़ोसियों के अलावा मृतका के भाई मंगलेश से भी पूछताछ की. साथ ही घटनास्थल पर बरामद हत्या के सामान में भी बड़ा फर्क नजर आया. भाई ने पुलिस को राजेश से कुछ दिनों से फोन पर हो रही बात के बारे में बताया, जबकि पड़ोसियों ने भी बताया कि राजेश का पत्नी से हमेशा झगड़ा होता रहता था.

मोहल्ले के लोग उन के झगड़े से परेशान रहते थे. कई बार उन्होंने झगड़े का कारण जानने की कोशिश की, लेकिन पतिपत्नी में से किसी ने कोई बड़ा कारण नहीं बताया. यहां तक कि उन के बच्चे भी पिता की मरजी के बगैर किसी से कुछ भी नहीं बोलते थे.

पति ने जिस आनंद नाम के व्यक्ति पर हत्या का आरोप लगाया, उसे पुनीता गुरुभाई मानती थी. उसे राखी बांधती थी. उस ने उस के भाग जाने का भी आरोप लगया. कई बातों से जब पुलिस को शक हुआ और उस के घर की तलाशी ली, तब उन्हें वाशरूम में उस के ही खून से सने कपड़े मिले. वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस पर खून लगा था.

जबकि राजेश ने अपने बयान में कहा था कि हत्या बांके से की गई है. पुलिस को समझते देर नहीं लगी, क्योंकि शव के गले पर उस के रेतने के निशान साफ दिख रहे थे और वहीं से खून अधिक रिस रहा था. जिस चारपाई पर शव पड़ा था, उस के इधरउधर खिसकाने पर भी संदेह पैदा हो गया था.

पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद राजेश को थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की. जल्द ही वह टूट गया और अपनी पत्नी के साथ प्रेम प्रसंग का आरोप लगाते हुए हत्या करने की बात कुबूल कर ली.

असल में पुनीता ने छोला के द्वारकाधाम निवासी आटोरिक्शा चालक आनंद को अपना गुरुभाई बना रखा था. वह अकसर उस के घर जाता था, जो राजेश को यह पसंद नहीं था. इस वजह से दोनों के बीच झगड़ा होता रहता था. इस झगड़े से पुनीता ऊब चुकी थी और उस ने इस की पुलिस में शिकायत भी दर्ज करने के लिए छोला पुलिस से संपर्क किया था.

चूंकि यह एक घरेलू मामला था, इसलिए पुलिस ने उन्हें महिला थाने रेफर कर दिया, जहां परिवार परामर्श केंद्र में उन की काउंसलिंग की जा रही थी. पुलिस ने इस मामले को ले कर राजेश और पुनीता के बीच समझौता करवा दिया था.

एसीपी ऋचा जैन ने दोनों को आपसी मतभेद से दूर रहने की हिदायत दी थी. पुलिस ने पुनीता का ही पक्ष लिया था और राजेश के खिलाफ काररवाई करने की भी चेतावनी दी थी.

राजेश गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र में एक फैक्ट्री में सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम करता है. पुलिस की चेतावनी के बावजूद राजेश पुनीता की शिकायतें अपने साले से करता रहता था. कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता था, जब उस की पुनीता से बकझक नहीं हो जाती थी.

मामले की जांच के दौरान एसीपी जैन ने पाया कि वारदात के एक दिन पहले 13 सितंबर को राजेश जब घर लौटा, तब पड़ोसियों से मालूम हुआ कि उस की पत्नी का भाई उस की गैरहाजिरी में घर पर आया था. वह करीब 4-5 घंटे रुका भी था.

यह सुनते ही राजेश का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस रोज तो वह किसी तरह से अपने गुस्से को काबू में किए रहा, लेकिन अगले रोज सुबह उठते ही उस ने खतरनाक योजना बना डाली.

सुबह वह बेटों को स्कूल छोड़ कर घर लौट आया. इसी बात को ले कर उस की उस से तीखी नोकझोंक हो गई. आते ही राजेश बीते दिन की बात पूछ बैठा. उस ने नाराजगी दिखते हुए गुस्से में कहा, ‘‘हरामजादी! मेरे पीछे गुलछर्रे उड़ाती है और मेरे खिलाफ ही पुलिस में शिकायत भी करती है.’’

इतना कहना था कि पुनीता भी गुस्से में आ गई. उस ने भी गालियां देनी शुरू कर दीं. उस ने पति को भिखारी कहा. भाई का पैसा लौटाने की बात करने लगी.

पुनीता के तेवर देखते हुए वह आगबबूला हो गया और चिकन काटने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भारी चाकू से उस पर हमला कर दिया. उस ने चाकू से उस के चेहरे और गरदन पर वार किया जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

उस के बाद वह नहाया और खून सने कपड़े बाथरूम में छोड़ कर पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी. उस के बाद उस ने पुनीता के मातापिता को भी फोन कर घटना की जानकारी दी.

इस वारदात का अपराध कुबूल करने के बाद पुलिस ने उसे हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

मांबाप के झगड़े के बारे में बच्चें ने पुलिस को बताया कि पापा उन्हें नानामामा से बात नहीं करने देते थे. इस बार रक्षाबंधन पर नाना के घर गए थे तो रुकने भी नहीं दिया था. उसी दिन वापस आ गए थे.

घटना के दिन के बारे में उन्होंने बताया कि वे उस दौरान स्कूल गए थे. उस रोज पापा गार्ड की वरदी में नहीं थे. दोनों को सुबह स्कूल बस में बैठा कर चले गए थे. औफिस भी नहीं गए थे. जबकि पहले वह वहीं से ही औफिस चले जाते थे.

राजेश से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी- भाग 2

अदिति अगले दिन कक्षा में गई और पढ़ाने लगी. आधे से ज्यादा बच्चे उसे न सुन कर अपनी बातों में ही व्यस्त थे. एकदम उसे बहुत तेज गुस्सा आया और उस ने बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया. बाहर खड़े हो कर दोनों बच्चे फील्ड में चले गए और खेलने लगे. छुट्टी की घंटी बजी, तो उस ने बैग उठाया तभी चपरासी आ कर उसे सूचना दे गया कि उन्हें प्रिंसिपल ने बुलाया है.

अदिति भुनभुनाती हुई औफिस की तरफ लपकी. प्रिंसिपल ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘अदिति तुम ने आज 2 बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया… तुम्हें मालूम है वे पूरा दिन फील्ड में खेल रहे थे. एक बच्चे को चोट भी लग गई है. कौन जिम्मेदार है इस का?’’

अदिति बोली, ‘‘मैडम, आप उन बच्चों को नहीं जानतीं कि वे कितने शैतान हैं.’’

प्रिंसिपल ठंडे स्वर में बोलीं, ‘‘अदिति बच्चे शैतान नहीं हैं, आप उन  को संभाल नहीं पाती हैं, यह कोई औफिस नहीं है… आप टीचर हैं, बच्चों की रोल मौडल, ऐसा व्यवहार इस स्कूल में मान्य नहीं है.’’

बस जा चुकी थी और वह बहुत देर तब उबेर की प्रतीक्षा में खड़ी रही. जब 4 बजे उस ने डे केयर में प्रवेश किया तो उस की संचालक ने व्यंग्य किया, ‘‘आजकल टीचर को भी लगता है कंपनी जितना ही काम रहता है.’’

अदिति बिना बोले परी को ले कर अपने घर चल पड़ी. वह जब शाम को उठी तो देखा अंधेरा घिर आया था. उस ने रसोई में देखा जूठे बरतनों का ढेर लगा था और अनुराग फोन पर अपनी मां से गप्पें मार रहा था.

उस ने चाय बनाई और लग गई काम पर. रात 10 बजे जब वह बैडरूम में घुसी तो थक कर चूर हो गई थी. उस ने अनुराग से बोला, ‘‘सुनो एक मेड रखनी होगी… मैं बहुत थक जाती हूं.’’

अनुराग बोला, ‘‘अदिति टीचर ही तो हो… करना क्या होता है तुम्हें, सुबह तो सब कामों में मैं भी तुम्हारी मदद करने की कोशिश करता हूं… पहले जब तुम कंपनी में थी तब बात अलग थी… रात हो जाती थी… अब तो सारा टाइम तुम्हारा है.’’

तभी मोबाइल की घंटी बजी. कल उसे 4 बच्चों को एक कंपीटिशन के लिए ले कर जाना था. अदिति इस से पहले कुछ और पूछती, मोबाइल बंद हो गया. बच्चों को ले कर जब वह प्रतियोगिता स्थल पर पहुंची तो पला चला कि उन्हें अभी 4 घंटे प्रतीक्षा करनी होगी. उन 4 घंटों में अदिति अपने विद्यार्थियों से बात करने लगी और कब 4 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला. उसे महसूस हुआ ये बच्चे जैसे घर पर अपनी हर बात मातापिता से बांटते हैं, वैसे ही स्कूल में अध्यापकों से बांटते हैं. पहली बार उसे लगा टीचर का कार्य बस पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है.

आज फिर घर पहुंचने में देर हो गई क्योंकि सब विद्यार्थियों को घर पहुंचा कर ही वह अपने घर पहुंच सकी. डे केयर पहुंच कर देखा, परी बुखार से तप रही थी. वह बिना खाएपीए उसे डाक्टर के पास ले गई और अनुराग भी वहां ही आ गया. बस आज इतनी गनीमत थी कि अनुराग ने रात का खाना बना दिया.

रात खाने पर अनुराग बोला, ‘‘अदिति तुम 2-3 दिन की छुट्टी ले लो.’’

अदिति ने स्कूल में फोन किया तो पता चला कि कल उसी के विषय की परीक्षा है तो कल तो उसे जरूर आना पड़ेगा, परीक्षा के बाद भले ही चली जाए.

सुबह पति का फूला मुंह छोड़ कर वह स्कूल चली गई. परीक्षा समाप्त होते  ही वह विद्यार्थियों की परीक्षा कौपीज ले कर घर की तरफ भागी. घर पहुंच कर देखा तो परी सोई हुई थी और सासूमां आई हुई थीं, शायद अनुराग ने फोन कर के अपनी मां से उस की यशोगाथा गाई होगी.

उसे देखते ही सासूमां बोली, ‘‘बहू लगता है स्कूल की नौकरी तुम्हें अपनी परी से भी ज्यादा प्यारी है. मैं घर छोड़ कर आ गई हूं और देखा मां ही गायब.’’

अदिति किसकिस को सम झाए और क्या सम झाए जब वह खुद ही अभी सब सम झ रही है.

वह कैसे यह सम झाए उस की जिम्मेदारी अब बस परी की तरफ ही नहीं, अपने विद्यालय के हर 1 बच्चे की तरफ है. उस का काम बस स्कूल तक सीमित नहीं है. वह 24 घंटे का काम है जिस की कहीं कोई गणना नहीं होती. बहुत बार ऐसा भी हुआ कि अदिति को लगा कि वह नौकरी छोड़ कर परी की ही देखभाल करे पर हर माह कोई न कोई मोटा खर्च आ ही जाता.

अदिति की नौकरी का तीनचौथाई भाग तो घर के खर्च और डे केयर की फीस में ही खर्च हो जाता और एकचौथाई भाग से वह अपने कुछ शौक पूरे कर लेती. वहीं अनुराग का हाल और भी बेहाल था. उस की तनख्वाह का 80% तो घर और कार की किस्त में ही निकल जाता और बाकी का 20% उन अनदेखे खर्चों के लिए जमा कर लेता जो कभी भी आ जाते थे. उस के सारे शौक तो न जाने कहां खो गए थे.

अदिति जानेअनजाने अनुराग को अपनी बड़ी बहन और बहनोई का उदाहरण देती रहती जो हर वर्ष विदेश भ्रमण करते हैं और उन के पास खाने वाली से ले कर बच्चों की देखभाल के लिए भी आया थी. उन के रिश्तों में प्यार की जगह अब चिड़चिड़ाहट ने ले ली थी. कभीकभी अदिति की भागदौड़ देख कर उस का मन भी भर जाता. ऐसा नहीं है अनुराग अदिति को आराम नहीं देना चाहता था पर क्या करे वह कितनी भी कोशिश कर ले, हर माह महंगाई बढ़ती ही जाती.

गरम लोहा: बबीता ने क्यों ली पति व बच्चों के साथ कहीं न जाने की प्रतिज्ञा?- भाग 3

बच्चे छोटे थे तो ठीक था. जो भी खरीद कर लाती थी खुशीखुशी पहन लेते थे. पर बड़े हो जाने पर पहनते वही हैं जो उन्हें पूरी तरह से पसंद हो. मगर शौपिंग के लिए साथ हरगिज नहीं जाएंगे. कई बार खीज कर कह बैठती कि तुम दोनों की जगह अगर 2 बेटियां होतीं मेरी तो वे मेरे साथ शौपिंग के लिए भी जातीं और घर के कामों में भी मेरा हाथ बंटातीं.

सब से अधिक असमंजस और परेशानी वाली स्थिति मेरे लिए तब बन जाती है जब कहीं जाने पर वहां पहुंच कर दूसरेतीसरे दिन पहनने के लिए कपड़े निकाल कर देती हूं और वे यह कह कर पहनने से इनकार कर देते कि यह तो अब टाइट होने लगा है या इस की तो चेन खराब है. तब मेरे पास अपना सिर पीटने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. कई बार तो इस वजह से नई जगह में मुझे टेलर और कपड़ों की दुकान तक के चक्कर लगाने पड़ गए थे.

मैं ने मन ही मन तय किया कि मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए, जिस से इन्हें मेरी स्थिति का अंदाज लगे और ये अपनी जिम्मेदारियां समझने लगें. मैं ने मन ही मन प्लान बनाया और फिर उस पर अमल करना शुरू कर दिया.

मुझे पता था कि इकलौते साले और इकलौते मामा की शादी के लिए अपूर्व और बच्चे भी बहुत उत्साहित हैं, साथ ही उन्हें मेरे उत्साह का भी अंदाजा है, बस इसी बात को हथियार बना कर मैं अपने प्लान पर अमल करने में जुट गई.

आयूष की शादी 1 महीने के बाद होनी तय हुई थी, इसलिए मुझे तैयारी ज्यादा करनी थी और समय कम था.

मैं ने तय यह किया कि मैं अपूर्व के औफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद बाजार जाऊंगी पर मैं शादी के लिए कोई तैयारी कर रही हूं, इस की भनक तीनों को नहीं लगने दूंगी. खरीदे सारे कपड़े और बाकी सारा सामान मैं लाने के बाद अलमारियों में रख देती. सब के सामने सामान्य रहने का नाटक करती. शादी के प्रति न ही सब के सामने अपनी खुशी और उत्साह को प्रकट करती और न ही शादी की कोई चर्चा उन के सामने करती.

10-15 दिन तो सभी अपनेअपने काम में मशगूल रहे. किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि मैं शादी के मसले पर शांत बैठी हूं. फिर एक दिन डिनर पर अपूर्व ने जब शादी का जिक्र छेड़ा तो मेरी ठंडी प्रतिक्रिया ने सब को चौकन्ना कर दिया. मैं ने कनखियों से देखा कि तीनों की सवालियां नजरें एकदूसरे से टकराईं.

‘‘क्या बात है बबीता आयूष की शादी के नाम पर तुम इतनी चुपचाप बैठी हो… अभी तक तुम ने कोई तैयारी भी शुरू नहीं की… सब कुछ ठीक तो है न?’’

‘‘हां ठीक है,’’ मैं ने जानबूझ कर संक्षिप्त जवाब दिया पर यह जवाब उन के कान खड़े करने के लिए पर्याप्त था.

‘‘कोई परेशानी है?’’ मेरी खामोशी से अपूर्व विचलित नजर आए.

तीर निशाने पर लगता देख मैं अपने प्लान की कामयाबी के प्रति आश्वस्त होते हुए गंभीर मुद्रा बना कर बोली, ‘‘मैं नहीं जा रही शादी में.’’

‘‘क्यों? क्या हो गया?’’ तीनों बुरी तरह चौंके.

‘‘भूल गए मेरी भीष्म प्रतिज्ञा?’’ मैं ने ऋतिक की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘अरे मम्मा, मामा की शादी हो जाने दो, फिर ले लेना प्रतिज्ञा,’’ नटखट ऋतिक अपनी शैतानी से बाज नहीं आ रहा था. पर मैं ने अपनी हंसी पर पूर्ण नियंत्रण रखा था.

‘‘मैं सीरियस हूं. मेरी बात को कौमेडी बनाने की जरूरत नहीं है,’’ कह कर मैं जल्दीजल्दी अपना खाना खत्म कर प्लेट सिंक में रख बैडरूम में चली गई.

‘‘पापा, लगता है मम्मा नाराज हैं हम लोगों से,’’ गौरव की फुसफुसाती आवाज सुनाई दी मुझे.

‘‘तुम लोग चिंता न करो, अगर वह नाराज होगी तो मैं संभाल लूंगा,’’ अपूर्व ने बच्चों से कहा.

दूसरे ही दिन दोपहर में औफिस से अपूर्व का फोन आया. मेरे हैलो बोलते ही कहने लगे, ‘‘बबीता, आज सोच रहा हूं शाम को घर जल्दी आ जाऊं. आयूष की शादी की शौपिंग कर लेते हैं. मेरी भी सारी पैंटशर्ट्स पुरानी हो गई हैं.

2-4 जोड़ी कपड़े नए ही ले लेता हूं और तुम भी अपने लिए नईनई साडि़यां ले लो. आखिर इकलौते भाई की शादी है, पुरानी साडि़यां थोड़े ही जंचेंगी तुम पर.’’

बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी पर काबू रख पाई थी मैं अपूर्व से बात करते समय. सोचने लगी जब तक प्यार से मिन्नतें करती थी कि अपनेअपने कपड़ों की खरीदारी में तो कम से कम मेरा साथ दिया करो तुम सब तब तक किसी के ऊपर मेरी बात का असर नहीं हुआ पर जरा सी टेढ़ी हुई नहीं कि एक झटके में जिम्मेदारी का एहसास हो गया जनाब को.

उधर कालेज से आते ही गौरव ने कहा, ‘‘मम्मा, कल रात मैं ने नैट पर सर्च किया. औनलाइन बड़ी अच्छीअच्छी शर्ट्स मिल रही हैं. सोच रहा हूं मामा की शादी के लिए इस बार औनलाइन ही कपड़े मंगवा लूं. ख्वाहमख्वाह ही तुम्हें हम लोगों के कपड़ों के लिए बाजार के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं.’’

मेरा तीर निशाने पर लगा था. अपूर्व और बच्चे दोनों ही अपनेअपने कपड़ों के इंतजाम में जुट गए तो मुझे भी लगा कि अपना रुख थोड़ा ढीला कर देना चाहिए.

एक दिन जब अपूर्व ने सूटकेस निकाल कर उस में कपड़े डालते हुए कपड़े पैक करने की पहल की तो मुझ से रहा नहीं गया. मैं हंसते हुए बोली, ‘‘अब बस रहने दो. यह सब काम तुम्हारे वश का नहीं है. तुम लोगों ने अपने कपड़े अपनी पसंद के खरीद लिए और यह तय कर लिया कि किस अवसर पर क्या पहनोगे यही मेरे लिए बहुत है. कहीं जाने की तैयारी के लिए इस से अधिक की अपेक्षा नहीं करती मैं तुम लोगों से.’’

‘सच लोहा जब गरम हो तब वार करने पर वस्तु को मनपसंद आकार दिया जा सकता है.

कहने को उसके पास सब कुछ है अच्छी नौकरी, दिल्ली जैसे शहर में अपना घर, एक लाइफ पार्टनर, लेकिन फिर भी वह अकेली है पास बैठे पति से बात करने के बजाय वह सोशल साइट्स पर ऐसा कोई ढूँढती रहती है जिससे अपनी फीलिंग्स शेयर कर सके.

इसे कहते हैं सच्चा प्यार

सम्मान: क्यों आसानी से नही मिलता सम्मान- भाग 1

यों तो इस तरह के पत्र आते रहते थे और मैं उन्हें अनदेखा करता रहता था, लेकिन इन पत्रों पर गौर करना तब से शुरू कर दिया जब से शहर के एक लेखक ने मित्रमंडली में बताया कि उसे अब तक देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से एक हजार सम्मान मिल चुके हैं. मित्र लोग वाहवाह कर उठे. एक दिन मुझ से पूछा, ‘‘तुम्हें कोई सम्मान नहीं मिला आज तक? तुम भी तो काफी समय से लिख रहे हो.’’ उस समय मैं ने स्वयं को अपमानित सा महसूस किया.

मेरे शहर के इस लेखक मित्र के बारे में अकसर अखबार में छपता रहता था कि शहर का गौरव बढ़ाने वाले लेखक को दिल्ली की एक प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था से एक और पुरस्कार. मैं ने अपने लेखक मित्र से पूछा, ‘‘इन पुरस्कारों की क्या योग्यता होती है?’’

उस ने गर्व से कहा, ‘‘मेहनत, लगन और लेखन. इस में कोई भाईभतीजावाद नहीं चलता. जो अच्छा लेखक होता है उसे सम्मान मिलता ही है.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप की आयु तो मुझ से बहुत कम है. आप ने शायद मेरे बाद ही लिखना शुरू किया है. अब तक कितना लिख चुके हो.’’

उन्होंने नाराज हो कर कहा, ‘‘ कितना लिखा है, यह जरूरी नहीं है और आयु का लेखन से लेनादेना नहीं है. मेरी 2 किताबें छप चुकी हैं. मैं ने 20 कविताएं और 10 के आसपास कहानियां लिखी हैं. लेकिन लेखन इतना शानदार है कि साहित्यिक संस्थाएं स्वयं को रोक नहीं पातीं मुझे सम्मान देने से.’’

मैंने कहा, ‘‘मुझे भी बताइए कहां से कैसे सम्मान मिलते हैं? क्या करना पड़ता है? पुस्तकें कैसे छपती हैं?’’

उन्होंने कहा, ‘‘आप बड़े स्वार्थी हैं. साहित्य सेवा का काम है. साहित्य से यह उम्मीद मत रखिए कि आप को कुछ मिले. आप को देना ही देना होता है. 2 पुस्तकें मैं ने स्वयं के खर्च पर छपवाई हैं. और सम्मान मिलते हैं योग्यता पर.’’

खैर, दोस्त ने अपना उत्तर दे दिया. मैं ने फिर वे पत्र निकाले जिन्हें मैं अनदेखा करता रहता था. जो पत्र बचे हुए थे, उन्हें पढ़ना शुरू किया. काफी तो मैं फाड़ चुका था, बेकार समझ कर. ठीक वैसे ही जैसे अकसर मोबाइल पर एसएमएस आते रहते हैं कि आप को 10 करोड़ मिलने वाले हैं कंपनी की ओर से. आप इनकम टैक्स और अन्य खर्च के लिए हमारी बैंक की शाखा में फलां नंबर के अकाउंट में 10 हजार रुपए डिपौजिट करवा दें.

बाद में समाचारपत्रों से खबर मिलती है कि इन्हें ठग लिया गया है. इन की रकम डूब चुकी है. बैंक अकाउंट से सारे रुपए निकाल कर इनाम का लालच देने वाले गायब हो चुके हैं. खाता बंद हो चुका है. पुलिस की विवेचना जारी है. ऐसे ठगों से जनता सावधान रहे.

पहले पत्र में लिखा था कि हमारी अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था ने आप को श्रेष्ठ लेखन का पुरस्कार देने का निर्णय लिया है. यदि आप इच्छुक हों तो कृपया अपना पासपोर्ट साइज कलर फोटो, संपूर्ण परिचयपत्र, साहित्यिक उपलब्धियां और 1,500 रुपए का एमओ या नीचे दिए बैंक खाते में राशि जमा करें. एक फौर्म भी संलग्न था. प्रविष्टि भेजने की अंतिम तारीख निकल चुकी थी. दूसरा पत्र भी इसी तरह था. बस, अंतर राशि की अधिकता और पुरस्कार श्रेष्ठ कविता पर था. साथ में पुस्तक की 2 प्रतियां भेजनी थीं. इस की भी अंतिम तिथि निकल चुकी थी.

सम्मान का लोभ हर लेखक को होता है, थोड़ा सा मुझे भी हुआ. मैं ने पत्र के अंत में दिए नंबरों पर बात करने की सोची. पहले को फोन किया, कहा, ‘‘महोदय, आप की संस्था अच्छा कार्य कर रही है. अंतिम तिथि निकल चुकी है. कुछ प्रश्न भी हैं मन में.’’

उन्होंने उधर से कहा, ‘‘आप भेज दीजिए. अंतिम तिथि की चिंता मत कीजिए. हम आप की प्रविष्टि को एडजस्ट कर लेंगे.’’

मैं ने दूसरा प्रश्न किया, ‘‘जनाब, साहित्यिक उपलब्धियों में क्या लिखूं? लिख तो पिछले 20 साल से रहा हूं लेकिन कोई उपलब्धि नहीं हुई. बस, कहानियां, लेख लिख कर अखबार में भेजता रहता हूं. फिर उसी अखबार, जिस में रचना छपी होती है, को खरीदता भी हूं क्योंकि समाचारपत्र वालों से पूछने पर यही उत्तर मिलता है, ‘हम छाप कर एहसान कर रहे हैं. आप 2 रुपए का अखबार नहीं खरीद सकते. हमारे पास और भी काम हैं.’

‘‘‘हम अखबार की प्रति नहीं भेज सकते. आप चाहें तो अपनी रचनाएं न भेजें. हमें कोई कमी नहीं है रचनाओं की. रोज 10-20 लेखकों की रचनाएं आती हैं और हां, भविष्य में रचनाएं छपवाना चाहें तो पहला नियम है कि अखबार की वार्षिक, आजीवन सदस्यता ग्रहण करें. साथ ही, समाचारपत्र में दिया साहित्य वाला कूपन भी चिपकाएं. आजकल नया नियम बना है लेखकों के लिए. आप लोगों को छाप रहे हैं तो अखबार को कुछ फायदा तो पहुंचे.’’’

उधर से साहित्यिक संस्था वाले ने अखबार वालों को कोसा. उन्हें व्यापारी बताया और खुद को लेखकों को प्रोत्साहन देने वाला सच्चा उपासक. ‘‘आप उपलब्धि में जो चाहे लिख कर भेज दीजिए. जैसे, पिछले कई वर्षों से लगातार लेखन कार्य. चाहे तो अखबार में छपी रचनाओं की फोटोकौपी भेज दीजिए. ज्यादा नहीं, दोचार.’’

मैं ने फिर पूछा, ‘‘श्रीमानजी, ये 1,500 रुपए किस बात के भेजने हैं?’’ उन्होंने समझाया. मैं ने समझने की कोशिश की. ‘‘देखिए सर, सम्मानपत्र छपवाने का खर्चा, संस्था के बैनरपोस्टर लगवाने का खर्चा और आप के लिए चायनाश्ता का इंतजाम भी करना होता है. आप को संस्था का स्मृतिचिह्न भी दिया जाएगा. शौल ओढ़ा कर माला पहनाई जाएगी. आप को जो सुंदर आमंत्रणपत्र भेजा है उस की छपवाई से ले कर डाक व्यय तक. फिर मुख्य अतिथि के रूप में बड़े अधिकारी, नेताओं को बुलाना पड़ता है. उन की खातिरदारी, सेवा में लगने वाला व्यय. बहुत खर्चा होता है साहब. जो हौल हम किराए पर लेते हैं उस का भी खर्चा.’’

इसे कहते हैं सच्चा प्यार: भाग 3

साहस रोजाना आरुषी को कालेज पहुंचाने और लेने जाने लगा. फिर भी वे लड़के आरुषी को परेशान कर ही रहे थे. आरुषी उन के ध्यान में तो थी, पर साहस ने उन के खिलाफ कालेज में शिकायत कर रखी थी, इसलिए वे ज्यादा कुछ कर नहीं पा रहे थे.

उस दिन आरुषी कालेज के गेट नंबर एक की ओर जा रही थी, तभी कैंटीन में काम करने वाला एक लड़का आरुषी को एक चिट्ठी दे गया. जिस में लिखा था कि आरुषी आज तुम गेट नंबर 2 की ओर आना. वहां बसस्टाप पर मैं तुम्हें मिलूंगा-साहस.

आरुषी गेट नंबर 2 के पास बने बसस्टाप पर खड़ी हो कर साहस का इंतजार करने लगी. तभी वे गुंडे मोटरसाइकिल से आ कर आरुषी को घेर कर उस के साथ छेड़छाड़ करने लगे.

गेट नंबर 2 की ओर कोई आताजाता नहीं था, इसलिए वहां सुनसान रहता था. इसीलिए उन गुंडों ने साहस के नाम से फरजी चिट्ठी लिख कर कैंटीन के लड़के को भेज कर आरुषी को धोखे से वहां बुलाया था.

रोज की तरह साहस गेट नंबर एक पर खड़े हो कर आरुषी का इंतजार कर रहा था. पर जब आरुषी को आने में देर होने लगी तो वह कालेज के अंदर जा कर आरुषी को खोजने लगा.

दूसरी ओर आरुषी को अपनी सुंदरता पर बड़ा घमंड है, कह कर वे लड़के आरुषी को डराधमका रहे थे. अंत में जो लड़का आरुषी को काफी समय से प्रपोज कर रहा था, उस ने आरुषी के चेहरे पर एसिड फेंकते हुए कहा, ‘‘अगर तू मेरी नहीं हुई तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’

इस के बाद सभी गुंडे मोटरसाइकिल से भाग गए. आरुषी दर्द और जलन से जोरजोर चीखते हुए जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. पर उन गुंडों के डर और धाक की वजह से कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. साहस को आरुषी की चीख सुनाई दी तो वह गेट नंबर 2 की ओर भागा. आरुषी की हालत देख कर उस के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई.

आरुषी को उस ने अपनी गाड़ी से नजदीक के अस्पताल पहुंचाया, जहां तत्काल उस का इलाज शुरू किया गया. उस की आंखें तो बच गईं, पर उस का नाजुक कोमल चेहरा भयानक हो चुका था. मम्मीपापा की परी अब परी नहीं रही.

जितना हो सका, उतनी सर्जरी कर के आरुषी को घर लाया गया. अपने कमरे में लगे आईने में अपना चेहरा देख कर आरुषी जिंदा लाश बन गई. आईने के सामने घंटों बैठने वाली आरुषी अब आईने के सामने जाने से डरने लगी थी. अब वह सब से दूर भागने लगी थी.

आरुषीकी हालत देख कर साहस भी परेशान रहने लगा था. आरुषी पर एसिड अटैक करने वाले सभी के सभी लड़कों को साहस ने जेल भिजवा दिया था, साथ ही साथ आरुषी को भी संभाल रहा था.

आरव जो आरुषी को चिढ़ाने के लिए चुहिया कहता था, अब उसी तरह आरुषी चूहे की तरह कोने में छिप गई थी. जो लड़की हाथ पर दाल गिरने से मां से लिपट कर रोने लगी थी, अब वही असह्य पीड़ा सहते हुए मां के पास बैठी रोती रहती थी.

आरुषी और साहस की शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी. एक दिन साहस ने आरुषी के पास आ कर कहा, ‘‘आरुषी शादी की तारीख नजदीक आ गई है, चलो आज थोड़ी शौपिग कर आते हैं. अभी तक हम ने शादी की कोई तैयारी नहीं की है.’’

आरुषी जोरजोर से रोने लगी. उस ने साहस से शादी के लिए मना कर दिया और कहा कि वह किसी दूसरी सुंदर लड़की से शादी कर ले. इस के बाद वह साहस से दूर रहने लगी, जो साहस से सहन नहीं हो रहा था.

आरुषी के इस व्यवहार से दुखी हो कर एक दिन साहस ने कहा, ‘‘आरुषी, तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम देखने में कैसी लगती हो. मैं ने तुम्हें पहली बार देखा था, तभी तुम्हारा भोलापन मुझे बहुत भा गया था. उसी समय तुम मेरे दिल में उतर गई थी. तुम अपनी ही कही बात भूल गई?

‘‘तुम ने ही तो कहा था कि अपना जीवनसाथी खूब प्यार करने वाला होना चाहिए. प्रेम करना आसान है, पर किसी का प्रेम पाना बहुत मुश्किल है. आरुषी, मैं सचमुच तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. जितना तुम मुझे करती हो, उस से भी बहुत ज्यादा. इसी तरह का जीवनसाथी चाहती थीं न तुम?’’

‘‘साहस, तब की बात अलग थी. अब मैं तुम्हारे लायक नहीं रही.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘ऐसा क्यों कहती हो आरुषी? अगर यही घटना मेरे साथ घटी होती तो..? तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? अगर शादी के बाद ऐसा होता तो… जवाब दो?’’

‘‘साहस, तुम समझने की कोशिश करो. अब मैं पहले जैसी नहीं रही.’’ आरुषी ने साहस को समझाने की कोशिश की.

आरुषी के इस व्यवहार से नाराज हो कर साहस वहां से चला गया. उस के जाने के लगभग एक घंटे बाद आरुषी के यहां फोन आया. आरुषी सहित घर के सभी लोग तुरंत अस्पताल भागे. अस्पताल पहुंच कर पता चला कि साहस ने लोहे का सरिया गरम कर के अपना चेहरा उतना ही दाग लिया था, जितना आरुषी का जला था. आरुषी ने साहस के पास जा कर उस का हाथ पकड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘साहस, तुम ने यह क्या किया?’’

‘‘अब तो हम दोनों एक जैसे हो गए हैं न? अब मैं तुम्हारे लायक हो गया न? अब तो तुम शादी के लिए मना नहीं करोगी न?’’ साहस ने कहा.

‘‘सौरी साहस, तुम सचमुच मुझे बहुत प्यार करते हो. मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं, तुम से भी ज्यादा. मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगी, कभी नहीं.’’

इस दृश्य को देख कर दोनों ही परिवारों के सभी लोगों की आंखें भर आईं. शायद इसे ही सच्चा प्यार कहते हैं. प्यार सुंदरता का मात्र आकर्षण नहीं होना चाहिए, प्यार तो एक दिल से दूसरे दिल तक पहुंचने का कठिन जरिया है.

सयाना इश्क: क्यों अच्छा लाइफ पार्टनर नही बन सकता संजय- भाग 3

नंदिता ने अंदाजा लगाया संजय से ही बात कर रही होगी, ”नहीं, अब एग्जाम्स के बाद ही मिलेंगे, बहुत मुश्किल है पहली बार में पास होना, बहुत मेहनत करेंगे.‘’

संजय ने क्या कहा, वह तो नंदिता कैसे सुनती, पर कान पीहू की बात की तरफ लगे थे जो कह रही थी, ”नहीं, नहीं, मैं इतना हलके में नहीं ले सकती पढ़ाई. मुझे पहली बार में ही पास होना है. तुम भी सब छोड़ कर पढ़ाई में ध्यान लगाओ.”

नंदिता जानती थी कि उस ने हमेशा पीहू को स्वस्थ माहौल दिया है. वह अपने पेरैंट्स से कुछ भी, कभी भी कह सकती थी. यह बात भी पीहू नंदिता को बताने आ गई, बोली, ”मुझे अभी बहुत गुस्सा आया संजय पर, कह रहा है कि सीए के एग्जाम्स तो कितने भी दे सकते हैं. फेल हो जाएंगें तो दोबारा दे देंगे.” और फिर अपने रूम में जा कर पढ़ने बैठ गई.

नंदिता पीहू की हैल्थ का पूरा ध्यान रखती, देख रही थी, रातदिन पढ़ाई में लग चुकी है पीहू. संजय कभी घर आता तो भी उस से सीए के चैप्टर्स, बुक, पेपर्स की ही बात करती रहती. संजय इन बातों से बोर हो कर जल्दी ही जाने लगा. वह कहीं आइसक्रीम खाने की या ऐसे ही बाहर चलने की ज़िद करता तो कभी पीहू चली भी जाती तो जल्दी ही लौट आती. जैसेजैसे परीक्षा के दिन नजदीक आने लगे. वह बिलकुल किताबों में खोती गई. और सब के जीवन में वह ख़ुशी का दिन आ भी गया जब पीहू ने पहली बार में ही सीए पास कर लिया. संजय बुरी तरह फेल हुआ था. पीहू को उस पर गुस्सा आ रहा था, बोली, “मम्मी, देखा आप ने, अब भी उसे कुछ फर्क नहीं पड़ा, कह रहा है कि अगली बार देखेगा, नहीं तो अपना दूसरा कैरियर सोचेगा.”

नंदिता ने गंभीर बन कर कहा, ”देखो, हम बहुत खुश हैं, तुम ने मेरी बात मान कर पढ़ाई पर ध्यान दिया. अब हमारी बारी है तुम्हारी बात मानने की. बोलो, संजय के पेरैंट्स से मिलने हम कब उस के घर जाएं?”

”अभी रुको, मम्मी, अब तो प्रौपर जौब शुरू हो जाएगा मेरा उसी बिग फोर कंपनी में जहां मैं आर्टिकलशिप कर रही थी. अब औफिस जाने में अलग ही मजा आएगा. ओह्ह, मम्मी, मैं आप दोनों को बड़ी पार्टी देने वाली हूं.”

पीहू नंदिता और विनय से लिपट गई.

अगले कुछ दिन पीहू बहुत व्यस्त रही. अब जौब शुरू हो गया था. अच्छी सैलरी हाथ में आने की जो ख़ुशी थी, उस से चेहरे की चमक अलग ही दिखती. फोन पर ‘माय लव’ की जगह संजय नाम ने ले ली थी. संजय अब पीहू की छुट्टी के दिन ही आता. दोनों साथसाथ मूवी देखने भी जाते, खातेपीते, पर अब नंदिता को वह बेटी का ख़ास बौयफ्रैंड नहीं, एक अच्छा दोस्त ही लग रहा था. पीहू अब उस से शादी की बात कभी न करती. उलटा, ऐसे कहती, ”मम्मी, संजय बिलकुल सीरियस नहीं है अपने कैरियर में. मुझे तो लगता है इन की फेमिली बहुत ही लापरवाह है. कोई भी सैट ही नहीं होता. कोई भी कभी कुछ करता है, कभी कुछ. इन के घर जाओ तो सब अस्तव्यस्त दिखता है. मेरा तो मन ही घबरा जाता है. फौरन ही आने के लिए खड़ी हो जाती हूं.‘’

नंदिता सब सुन कर बहुतकुछ सोचने लगी. सीए के एग्जाम्स 6 महीने बाद फिर आए. संजय ने फिर पढ़ाई में कमी रखी, फिर फेल हुआ. पीहू को संजय पर बहुत गुस्सा आया, बोली, ”बहुत लापरवाह है, इस से नहीं होगा सीए. अब बोल रहा है, फिर 6 महीने में एग्जाम्स तो देगा पर बहुत ज्यादा मेहनत नहीं कर पाएगा.’’

नंदिता ने यों ही हलके से मूड में कहा, ”अब इसे शादी की जल्दी नहीं, पीहू?”

”है, अब भी बहुत ज़िद करता है, शादी कर लेते हैं, मैं पढ़ता रहूंगा बाद में.”

विनय ने पूछा, ”तुम क्या सोचती हो?”

”अभी मुझे समय चाहिए. पहले यह देख लूं कि यह अपनी लाइफ को ले कर कितना सीरियस है. बाकी तो बाद की बातें हैं.”

उस रात नंदिता को ख़ुशी के मारे नींद नहीं आ रही थी. पीहू तो बहुत समझदार है, प्यार भी किया है तो एकदम दीवानी बन कर नहीं घूमी, होशोहवास कायम रखे हुए, गलत फैसले के मूड में नहीं है पीहू. नंदिता को पीहू पर रहरह कर प्यार आ रहा था, सोच रही थी कि अच्छा है, आज का इश्क थोड़ा सयाना, प्रैक्टिकल हो गया है, थोड़ा अलर्ट हो गया है, यह जरूरी भी है.

पीहू रात में लेटीलेटी ठंडे दिमाग से सोच रही थी, संजय की बेफिक्री, उस के कूल नैचर पर फ़िदा हो कर ही उस के साथ जीवन में आगे नहीं बढ़ा जा सकता. संजय और उस का पूरा परिवार लापरवाह है. मैं ने पढ़ाई में बहुत मेहनत की है. इस प्यार मोहब्बत में कहीं अपना कोई नुकसान न कर के बैठ जाऊं. संजय अच्छा दोस्त हो सकता है पर लाइफपार्टनर तो बिलकुल भी नहीं.

और ऐसा भी नहीं है कि संजय उस से शादी न करने के मेरे फैसले से मजनू बन कर घूमता रहेगा. उसे लाइफ में बस टाइमपास से मतलब है, यह भी मैं समझ चुकी हूं. ऐसा भी नहीं है कि मैं कोई वादा तोड़ रही हूं और उसे धोखा दे रही हूं. वह खुद ही तो कहता है कि वह लाइफ में किसी भी बात को सीरियसली नहीं लेगा. फिर क्यों बंधा जाए ऐसे इंसान से. अब वह जमाना भी नहीं कि सिर्फ भावनाओं के सहारे भविष्य का कोई फैसला लिया जाए. मैं कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाऊंगी जिस से मुझे कभी बाद में पछताना पड़े. जल्दबाजी में फैसला ले कर रोज न जाने कितनी ही लड़कियां अपना नुकसान कर बैठती हैं. न, न, अब जब भी इश्क होगा, सयाना होगा, कोई बेवकूफी नहीं करेगा.

इसे कहते हैं सच्चा प्यार: भाग 2

साहस को देखते ही आरुषी के मम्मीपापा के मन में बेटी की शादी का विचार आ गया. आखिर आता क्यों न. साहस राजकुमार की तरह सुंदर था. फिर वह डाक्टर भी था. शादी में शामिल होने के लिए साहस के मम्मीपापा भी आए थे.

साहस ने आरुषी के मम्मीपापा से अपने मम्मीपापा को मिलवाया. बातचीत में उन लोगों का काफी पुराना परिचय निकल आया. साहस और आरुषी की शादी की बात चल निकली. 2 दिन बाद साहस अपनी मम्मीपापा के साथ शादी की बात करने आरुषी के घर आ पहुंचा.

उस दिन आरुषी और साहस बहुत खुश थे. सभी ने दोनों को बात करने के लिए घर के बाहर लौन में भेज दिया. लौन में लगे झूले पर बैठते हुए साहस ने पूछा, ‘‘अब तुम्हारा हाथ कैसा है आरुषी?’’

‘‘अब तो काफी ठीक है. आप ने बहुत सही समय पर बर्फ ला कर लगा दी थी, इसलिए ज्यादा तकलीफ नहीं हुई.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘जरा अपना हाथ दिखाओ, देखूं तो कैसा है?’’

खूब शरमाते हुए आरुषी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो बहुत ही आराम से उस का हाथ पकड़ कर साहस देखने लगा. साहस के हाथ पकड़ने से आरुषी कुछ अलग तरह का रोमांच अनुभव कर रही थी, जिसे शायद साहस ने महसूस कर लिया था.

इस के बाद अपना दूसरा हाथ उस के हाथ पर रख कर सहलाने लगा. आरुषी ने अपनी नजरें झुका लीं. पर अपना हाथ साहस के हाथों से छुड़ाने की कोशिश नहीं की.

उसे साहस का स्पर्श अच्छा लग रहा था. इसी छोटी सी मुलाकात में साहस ने आरुषी के दिल की स्थिति समझ ली थी. उस ने पूछा, ‘‘आरुषी तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’

‘‘बस, इस तरह का कि जितना प्यार मैं उस से करूं, वह उस से ज्यादा मुझे प्यार करे.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘मैं समझा नहीं,’’ साहस ने कहा.

‘‘किसी को प्यार करना आसान है. पर किसी का प्यार पाना उतना ही मुश्किल है. आप किसी को प्यार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं. इसलिए मुझे इस तरह का जीवनसाथी चाहिए, जो मुझे बहुत ज्यादा प्यार करे. मैं जैसी हूं, मुझे उसी रूप में अपना सके.

‘‘मेरा रूप देख कर कोई मेरी ओर आकर्षित हो, मैं इसे जरा भी प्यार नहीं समझती. यह सुंदरता जीवन भर साथ थोड़े ही साथ देने वाली है. जो जीवनसाथी मुझे बदले बगैर प्यार कर सके, वही सच्चा प्यार है. मैं सुंदरता में जरा भी विश्वास नहीं करती. चेहरे की सुंदरता के बजाय हृदय सुंदर होना चाहिए.’’ आरुषी ने दिल की बात कह दी.

साहस एकटक आरुषी को ताकता रहा. अभी दोनों के हाथ एकदूसरे के हाथ में ही थे. दोनों में से किसी ने भी हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की थी. अपने दिल की बात कहने के बाद आरुषी ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’

साहस ने छूटते ही कहा, ‘‘तुम्हारे जैसा.’’

‘‘क्या?’’ आरुषी चौंकी.

दोनों एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर एकदूसरे को ताकते रहे. तभी आरुषी और साहस की मम्मी दोनों को बुलाने लौन में आ गईं. दोनों के हाथों में एकदूसरे के हाथ देख कर वे समझ गईं कि इन के जवाब क्या होंगे. दोनों ही एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराईं. इस के बाद आरुषी की मम्मी ने कहा, ‘‘आरुषी बेटा अंदर आओ, नाश्ता करने.’’

आरुषी और साहस ने जल्दी से अपनेअपने हाथ अलग किए और सामान्य होने की कोशिश करने लगे. थोड़ा सामान्य होने के बाद आरुषी बोली, ‘‘हां मम्मी, आप चलें, हम आते हैं.’’

आरुषी झूले से उठ कर घर के अंदर जातेजाते पलट कर साहस की ओर देख कर शरमा गई. दोनों को ही एकदूसरे का जवाब मिल चुका था. दोनों के मातापिता को भी उन के जवाब मिल गए थे. 10 दिन बाद उन की सगाई की तारीख रख दी गई.

दोनों के ही घर यह पहला शुभ प्रसंग था, इसलिए उन की सगाई खूब धूमधाम से हुई. अपने पापा की परी आरुषी उस दिन सचमुच परी सी लग रही थी. बड़ी खुशी और शांति के साथ आरुषी और साहस की सगाई की रस्म संपन्न हो गई थी. सभी बहुत खुश थे.

सगाई हो जाने के बाद आरुषी और साहस अकसर मिलने लगे थे. एक दिन आरुषी एक कैफे में बैठी साहस का इंतजार कर रही थी, तभी उस के कालेज के 4 लड़के उस के अगलबगल बैठ कर उस से छेड़छाड़ करने लगे. तभी साहस आ गया और उन लड़कों की हरकत देख कर गुस्से में बोला, ‘‘तुम लोग यहां क्या कर रहे हो, किसी लड़की से कोई इस तरह की हरकत करता है?’’

उन लड़कों में से एक लड़के ने कहा, ‘‘तू कौन है बे, जो बीच में आ टपका. हम आरुषी को 4 साल से जानते हैं.’’

‘‘मेहरबानी कर के ढंग से बात करो. तुम जिस तरह बात कर रहे हो, यह क्या कोई बात करने का तरीका है?’’ साहस ने कहा, ‘‘आरुषी, तुम इन लोगों को जानती हो?’’

‘‘हां, ये मेरे कालेज के गुंडे हैं. 4 साल से मुझे परेशान कर रहे हैं. मुझे अकेली देख कर यहां भी मुझे परेशान करने आ गए.’’

इस के बाद तो साहस और उन गुंडों के बीच हाथापाई शुरू हो गई. अंत में पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस के आने पर मामला शांत हुआ. जातेजाते वे गुंडे आरुषी को धमका गए. उस दिन पहली बार जिस सुंदरता पर आरुषी को घमंड था, उस पर उसे अफसोस हुआ.

आरुषी बहुत डर गई. साहस ने उसे तसल्ली दी. आरुषी ने कहा, ‘‘साहस इन लड़कों में एक लड़का मुझे बहुत दिनों से प्रपोज कर रहा था. पर मैं ने कभी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. इसलिए अब वह गुंडागर्दी और धमकी पर उतर आया है.’’

‘‘आरुषी इन लोगों से डरने की जरूरत नहीं है. ये लोग तुम्हारा कुछ नहीं कर सकते.’’ साहस ने कहा.

‘‘साहस, ये ऐसेवैसे लड़के नहीं हैं. बहुत ही खतरनाक लोग हैं. सभी के सभी बड़े बाप की बिगड़ी औलादें हैं. हम लोग घर पहुंचेंगे, उस के पहले ही ये थाने से छूट जाएंगे. अब मैं कालेज नहीं जाऊंगी.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘डरने की कोई बात नहीं है आरुषी. मैं तुम्हें कालेज से ले आने और ले जाने रोजाना आऊंगा.’’ साहस ने कहा.

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