बेरहम अस्पतालों का खौफनाक सच

भारतीय समाज में बच्चे का जन्म त्योहार की तरह मनाया जाता है. लेकिन क्या आप को पता है कि लेबररूम में जब नई जिंदगी जन्म ले रही होती है तो कई बार उस का स्वागत गालियों से होता है.

महिला एवं बाल विकास के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था ‘लाडो’ आंखों देखे ये वाकिए जब जनता के सामने लाई तो हर कोई दंग रह गया.

‘लाडो’ संस्था के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने रातरातभर जाग कर इकट्ठी की वह घटिया भाषा व गलत बरताव… जो हमारी औरतें लेबररूम में सुनने को मजबूर होती हैं. जिस समय उन्हें अपनेपन की सब से ज्यादा जरूरत होती है, तब वे गालियां सुन रही होती हैं… जैसे मां बनना जिंदगी की सब से बड़ी गलती हो.

‘लाडो’ संस्था की टीम ने 28 दिन तक 13 जिलों के 98 लेबररूमों की पड़ताल की थी. टीम ने देखा कि लेबररूमों में जबजब बच्चा जनने वाली मांओं की चीख निकलती थी, तबतब उन्हें नर्सों, डाक्टरों की गालियां सुनने को मिलती थीं. इतना ही नहीं, औरतों की चीख को दबाने के लिए नर्सें उन के बाल खींचती थीं व चांटे तक मारती थीं.

तय है कि जब किसी औरत को बच्चा जनने का दर्द उठता है, तो उस के पैर सीधे अस्पताल की ओर ही उठते हैं और वहां डाक्टरों के हाथों में ही सबकुछ होता है.

भारत में ज्यादातर 2 तरह के अस्पताल हैं, एक सरकारी व दूसरे गैरसरकारी. सरकारी अस्पतालों में कदम रखते ही दिल में चुभन करने वाली बातों का सामना करना होता है, जैसे ‘सीधी खड़ी रह’, ‘लाइन में लग जा’, ‘नाटक मत कर’ वगैरह.

फिर बारी आती है चैकअप की. मुंह पर कपड़ा बांधे जो औरत आती है, वह डाक्टर है भी या नहीं, यह पता करना बहुत मुश्किल होता है. वह चैकअप के दौरान जिन शब्दों का इस्तेमाल करती है, वे कानों में गरम सीसे की तरह पिघलते हैं.

फिर नंबर आता है बच्चा जनने का. यहां भी डाक्टर अपनी ही सहूलियत का ध्यान रखते हैं. बात सिजेरियन की ही नहीं, बल्कि सामान्य डिलीवरी केस में भी कोशिश यही होती है कि बच्चा दिन में ही पैदा हो, ताकि रात को उन की नींद में कोई खलल न पड़े.

जयपुर में एक जनाना अस्पताल की हैड विमला शर्मा की मानें तो अगर बच्चा जनने के दौरान किसी औरत के साथ कठोर बरताव होता है तो वह खुल कर दर्द सहन नहीं कर पाती है और ज्यादातर केस इसी वजह से बिगड़ते हैं. फिर भी आम लोगों का डाक्टरों पर यकीन पूरी तरह से कायम है, लेकिन डाक्टरों के पास इतना समय नहीं होता कि वे औरत में बच्चा जनने के कुदरती दर्द का इंतजार कर सकें. वे अपनी सहूलियत के मुताबिक दर्द देने वाली दवाओं का इस्तेमाल करने की कोशिश में लग जाते हैं.

अगर बच्चा जनने के मामले में डाक्टर से ले कर पूरे स्टाफ तक का रवैया मरीज के प्रति सही नहीं होता है, तो डाक्टर की इतनी जरूरत क्यों? फिर एक सवाल यह भी उठता है कि क्या हमारी पुरानी व्यवस्था ही सही थी?

डाक्टर विमला शर्मा कहती हैं, ‘‘बच्चे को जनने वाली मां अपने मन से बच्चा जनने का डर बाहर निकाले. एक जान को अपने भीतर पालने वाली औरत में बहुत ताकत होती है. जरूरत है तो बस उसे पहचानने की. बच्चे को नौर्मल तरीके से पैदा करने में मां को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है. बस, उसे खुद को दिमागी तौर पर तैयार करना होता है.’’

पटरियों पर बलात्कार

31 अक्तूबर, 2017 की शाम भोपाल में खासी चहलपहल थी. ट्रैफिक भी रोजाना से कहीं ज्यादा था. क्योंकि अगले दिन मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस समारोह लाल परेड ग्राउंड में मनाया जाना था. सरकारी वाहन लाल परेड ग्राउंड की तरफ दौड़े जा रहे थे.

सुरक्षा व्यवस्था के चलते यातायात मार्गों में भी बदलाव किया गया था, जिस की वजह से एमपी नगर से ले कर नागपुर जाने वाले रास्ते होशंगाबाद रोड पर ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही था. इसी रोड पर स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर तो बारबार जाम लगने जैसे हालात बन रहे थे.

एमपी नगर में कोचिंग सेंटर और हौस्टल्स बहुतायत से हैं, जहां तकरीबन 85 हजार छात्रछात्राएं कोचिंग कर रहे हैं. इन में लड़कियों की संख्या आधी से भी अधिक है. आसपास के जिलों के अलावा देश भर के विभिन्न राज्यों के छात्र यहां नजर आ जाते हैं.

शाम होते ही एमपी नगर इलाका छात्रों की आवाजाही से गुलजार हो उठता है. कालेज और कोचिंग आतेजाते छात्र दीनदुनिया की बातों के अलावा धीगड़मस्ती करते भी नजर आते हैं. अनामिका भी यहीं के एक कोचिंग सेंटर से पीएससी की कोचिंग कर रही थी. अनामिका ने 12वीं पास कर एक कालेज में बीएससी में दाखिला ले लिया था.

उस का मकसद एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना था, इसलिए उस ने कालेज की पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी. सर्दियां शुरू होते ही अंधेरा जल्दी होने लगा था. इसलिए 7 बजे जब कोचिंग क्लास छूटी तो अनामिका ने जल्द हबीबगंज रेलवे स्टेशन पहुंचने के लिए रेलवे की पटरियों वाला रास्ता चुना.

रेलवे लाइनें पार कर शार्टकट रास्ते से जाती थी स्टेशन

अनामिका विदिशा से रोजाना ट्रेन द्वारा अपडाउन करती थी. उस के पिता भोपाल में ही रेलवे फोर्स में एएसआई हैं और उन्हें हबीबगंज में ही स्टाफ क्वार्टर मिला हुआ है पर वह वहां जरूरत पड़ने पर ही रुकती थी. उस की मां भी पुलिस में हवलदार हैं.

कोचिंग से छूट कर अनामिका हबीबगंज स्टेशन पहुंच कर विदिशा जाने वाली किसी भी ट्रेन में बैठ जाती थी. फिर घंटे सवा घंटे में ही वह घर पहुंच जाती थी, जहां उस की मां और दोनों बड़ी बहनें उस का इंतजार कर रही होती थीं.

रोजाना की तरह 31 अक्तूबर को भी वह शार्टकट के रास्ते से हबीबगंज स्टेशन की तरफ जा रही थी. एमपी नगर से ले कर हबीबगंज तक रेल पटरी वाला रास्ता आमतौर पर सुनसान रहता है. केवल पैदल चल कर पटरी पार करने वाले लोग ही वहां नजर आते हैं. बीते कुछ सालों से रेलवे पटरियों के इर्दगिर्द कुछ झुग्गीबस्तियां भी बस गई हैं, जिन मेें मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं. यह शार्टकट अनामिका को सुविधाजनक लगता था, क्योंकि वह उधर से 10-12 मिनट में ही रेलवे स्टेशन पहुंच जाती थी.

अनामिका एक बहादुर लड़की थी. मम्मीपापा दोनों के पुलिस में होने के कारण तो वह और भी बेखौफ रहती थी. शाम के वक्त झुग्गीझोपडि़यों और झाडि़यों वाले रास्ते से किसी लड़की का यूं अकेले जाना हालांकि खतरे वाली बात थी, लेकिन अनामिका को गुंडेबदमाशों से डर नहीं लगता था.

उस वक्त उस के जेहन में यही बात चल रही थी कि विदिशा जाने के लिए कौनकौन सी ट्रेनें मिल सकती हैं. वैसे शाम 6 बजे के बाद विदिशा जाने के लिए 6 ट्रेनें हबीबगंज से मिल जाती हैं, इसलिए नियमित यात्रियों को आसानी हो जाती है. नियमित यात्रियों की भी हर मुमकिन कोशिश यही रहती है कि जल्दी प्लेटफार्म तक पहुंच जाएं. शायद देरी से चल रही कोई ट्रेन खड़ी मिल जाए और ऐसा अकसर होता भी था कि प्लेटफार्म तक पहुंचतेपहुंचते किसी ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट सुनाई दे जाता था.

एमपी नगर से कोई एक किलोमीटर पैदल चलने के बाद ही रेलवे के केबिन और दूसरी इमारतें नजर आने लगती हैं तो आनेजाने वालों को उन्हें देख कर बड़ी राहत मिलती है कि लो अब तो पहुंचने ही वाले हैं.

बदमाश ने फिल्मी स्टाइल में रोका रास्ता

यही उस दिन अनामिका के साथ हुआ. पटरियों के बीच चलते स्टेशन की लाइटें दिखने लगीं तो उसे लगा कि वक्त पर प्लेटफार्म पहुंच ही जाएगी. जब दूर से आरपीएफ थाना दिखने लगा तो अनामिका के पांव और तेजी से उठने लगे.

लेकिन एकाएक ही वह अचकचा गई. उस ने देखा कि गुंडे से दिखने वाले एक आदमी ने फिल्मी स्टाइल में उस का रास्ता रोक लिया है. अनामिका यही सोच रही थी कि क्या करे, तभी उस बदमाश ने उस का हाथ पकड़ लिया. आसपास कोई नहीं था और थीं भी तो सिर्फ झाडि़यां, जो उस की कोई मदद नहीं कर सकती थीं. अनामिका के दिमाग में खतरे की घंटी बजी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी.

प्रकृति ने स्त्री जाति को ही यह खूबी दी है कि वह पुरुष के स्पर्श मात्र से उस की मंशा भांप जाती है. अनामिका ने खतरा भांपते हुए उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश तेज कर दी. अनामिका ने उस पर लात चलाई, तभी झाडि़यों से दूसरा गुंडा बाहर निकल आया. तुरंत ही अनामिका को समझ आ गया कि यह इसी का ही साथी है.

मदद के लिए चिल्लाने का कोई फायदा नहीं हुआ

अभी तक तीनों रेल की पटरियों के नजदीक थे, जहां कभी भी कोई ट्रेन आ सकती थी. बाहर आए दूसरे गुंडे ने भी अनामिका को पकड़ लिया और दोनों उसे घसीट कर नजदीक बनी पुलिया की तरफ ले जाने लगे. अनामिका ने पूरी ताकत और हिम्मत लगा कर उन से छूटने की कोशिश की पर 2 हट्टेकट्टे मर्दों के चंगुल से छूट पाना अब नाममुकिन सा था. अनामिका का विरोध उन्हें बजाए डराने के उकसा रहा था, इसलिए वे घसीटते हुए उसे पुलिया के नीचे ले गए.

उन्होंने अनामिका को लगभग 100 फुट तक घसीटा लेकिन इस दौरान भी अनामिका हाथपैर चलाती रही और मदद के लिए चिल्लाई भी लेकिन न तो उस का विरोध काम आया और न ही उस की आवाज किसी ने सुनी.

आखिरकार अनामिका हार गई. दोनों गुंडों ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बीच वह इन दोनों के सामने रोईगिड़गिड़ाई भी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी हाथ घड़ी, मोबाइल फोन और कान के बुंदे तक उन के हवाले कर दिए पर इन गुंडों का दिल नहीं पसीजा. ज्यादती के पहले ही खींचातानी में अनामिका के कपड़े तक फट चुके थे.

उन दोनों की बातचीत से उसे इतना जरूर पता चल गया कि इन बदमाशों में से एक का नाम अमर और दूसरे का गोलू है. जब इन दोनों ने अपनी कुत्सित मंशाएं पूरी कर लीं तो अनामिका को लगा कि वे उसे छोड़ देंगे. इस बाबत उस ने उन दरिंदों से गुहार भी लगाई थी.

राक्षसों की दयानतदारी भी कितनी भारी पड़ती है, इस का अहसास अनामिका को कुछ देर बाद हुआ. लगभग एक घंटे तक ज्यादती करने के बाद अमर और गोलू ने तय किया कि अनामिका को यूं निर्वस्त्र छोड़ा जाना ठीक नहीं, इसलिए उस के लिए कपड़ों का इंतजाम किया जाए. नशे में डूबे इन हैवानों की यह दया अनामिका पर और भारी पड़ी.

गोलू ने अमर को अनामिका की निगरानी करने के लिए कहा और खुद अनामिका के लिए कपड़े लेने गोविंदपुरा की झुग्गियों की तरफ चला गया. वहां उस के 2 दोस्त राजेश और रमेश रहते थे. गोलू ने उन से एक जोड़ी लेडीज कपड़े मांगे तो इन दोनों ने इस की वजह पूछी. इस पर गोलू ने सारा वाकया उन्हें बता दिया.

गोलू की बात सुन कर राजेश और रमेश की हैवानियत भी जाग उठी. वे दोनों कपड़े ले कर गोलू के साथ उसी पुलिया के नीचे पहुंच गए, जहां अनामिका निर्वस्त्र पड़ी थी.

अनामिका अब लाश सरीखी बन चुकी थी. उन चारों में से कोई जा कर स्टेशन के बाहर से चाय और गांजा ले आया. इन्होंने छक कर चाय गांजे की पार्टी की और बेहोशी और होश के बीच झूल रही अनामिका के साथ अमर और गोलू ने एक बार फिर ज्यादती की. फूल सी अनामिका इस ज्यादती को झेल नहीं पाई और बेहोश हो गई.

जब वासना का भूत उतरा तो इन चारों ने अनामिका को जान से मार डालने का मशविरा किया, जिसे इन में से ही किसी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि रहने दो, लड़की किसी को कुछ नहीं बता पाएगी, क्योंकि यह तो हमें जानती तक नहीं है. बेहोश पड़ी अनामिका इन चारों की नजर में मर चुकी थी, इसलिए चारों अपने साथ लाए कपड़े उस के पास फेंक कर फरार हो गए और अनामिका से लूटे सामान का आपस में बंटवारा कर लिया.

थोड़ी देर बाद अनामिका को होश आया तो वह कुछ देर इन के होने न होने की टोह लेती रही. उसे जब इस बात की तसल्ली हो गई कि बदमाश वहां नहीं हैं तो उस ने जैसेतैसे उन के लाए कपडे़ पहने और बड़ी मुश्किल से महज 100 फीट दूर स्थित जीआरपी थाने पहुंची.

पुलिस ने नहीं किया सहयोग

थाने का स्टाफ उसे पहचानता था. मौजूदा पुलिसकर्मियों से उस ने कहा कि पापा से बात करा दो तो एक ने उस के पिता को नंबर लगा कर फोन उसे दे दिया. फोन पर सारी बात तो उस ने पिता को नहीं बताई, सिर्फ इतना कहा कि आप तुरंत यहां थाने आ जाइए.

बेटी की आवाज से ही पिता समझ गए कि कुछ गड़बड़ है इसलिए 15 मिनट में ही वे थाने पहुंच गए. पिता को देख कर अनामिका कुछ देर पहले की घटना और तकलीफ भूल उन से ऐसे चिपट गई मानो अब कोई उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

बेटी की नाजुक हालत देख पिता उसे घर ले आए और फोन पर पत्नी को भी तुरंत भोपाल पहुंचने को कहा तो वह भी भोपाल के लिए रवाना हो गईं. देर रात मां वहां पहुंची तो कुछकुछ सामान्य हो चली अनामिका ने उन्हें अपने साथ हुई ज्यादती की बात बताई. जाहिर है, सुन कर मांबाप का कलेजा दहल उठा.

बेटी की एकएक बात से उन्हें लग रहा था कि जैसे कोई धारदार चाकू से उन के कलेजे को टुकड़ेटुकडे़ कर निकाल रहा है. चूंकि रात बहुत हो गई थी और भोपाल में मध्य प्रदेश स्थापना दिवस की तैयारियां चल रही थीं, इसलिए उन्होंने तय किया कि सुबह होते ही सब से पहला काम पुलिस में रिपोर्ट लिखाने का करेंगे, जिस से अपराधी पकड़े जाएं.

इधर से उधर टरकाती रही पुलिस

अनामिका के मातापिता अगली सुबह ही कोई साढ़े 10 बजे एमपी नगर थाने पहुंचे. खुद को बेइज्जत महसूस कर रही अनामिका को उम्मीद थी कि थाने पहुंच कर फटाफट आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो जाएगी. एमपी नगर थाने में इन तीनों ने मौजूद सबइंसपेक्टर आर.एन. टेकाम को आपबीती सुनाई.

तकरीबन आधे घंटे तक इस सबइंसपेक्टर ने अनामिका से उस के साथ हुई ज्यादती के बारे में पूछताछ की लेकिन रिपोर्ट लिखने के बजाय वह इन तीनों को घटनास्थल पर ले गया. घटनास्थल का मुआयना करने के बाद टेकाम ने उन पर यह कहते हुए गाज गिरा दी कि यह जगह तो हबीबगंज थाने में आती है, इसलिए आप वहां जा कर रिपोर्ट लिखाइए.

यह दरअसल में एक मानसिक और प्रशासनिक बलात्कार की शुरुआत थी. लेकिन दिलचस्प इत्तफाक की बात यह थी कि ये तीनों जब एमपी नगर से हबीबगंज थाने की तरफ जा रहे थे, तब हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर सामने की तरफ से गुजरते अनामिका की नजर गोलू पर पड़ गई. रोमांचित हो कर अनामिका ने पिता को बताया कि जिन 4 लोगों ने बीती रात उस के साथ दुष्कर्म किया था, उन में से एक यह सामने खड़ा है. इतना सुनते ही उस के मातापिता ने वक्त न गंवाते हुए गोलू को धर दबोचा.

गोलू का इतनी आसानी और बगैर स्थानीय पुलिस की मदद से पकड़ा जाना एक अप्रत्याशित बात थी. अब उन्हें उम्मीद हो गई कि अब तो बाकी इस के तीनों साथी भी जल्द पकडे़ जाएंगे. गोलू को दबोच कर ये तीनों हबीबगंज थाने पहुंचे. हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव को एक बार फिर अनामिका को पूरा हादसा बताना पड़ा.

रवींद्र यादव ने गोलू से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपने साथियों के नामपते भी बता दिए. उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए आला अफसरों को भी वारदात के बारे में बता दिया. टीआई उन तीनों को ले कर फिर घटनास्थल पहुंचे. हबीबगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई पर अच्छी बात यह थी कि मुजरिमों के बारे में काफी कुछ पता चल गया था. आला अफसरों के सामने भी अनामिका को दुखद आपबीती बारबार दोहरानी पड़ी.

रवींद्र यादव ने हबीबगंज जीआरपी को भी फोन किया था, लेकिन वहां से कोई पुलिस वाला नहीं आया. सूरज सिर पर था लेकिन अनामिका और उस के मातापिता की उम्मीदों का सूरज पुलिस की काररवाई देख ढलने लगा था. बारबार फोन करने पर जीआरपी का एक एएसआई घटनास्थल पर पहुंचा लेकिन उस का आना भी एक रस्मअदाई साबित हुआ. जैसे वह आया था, सब कुछ सुन कर वैसे ही वापस भी लौट गया.

इस के कुछ देर बाद हबीबगंज जीआरपी के टीआई मोहित सक्सेना घटनास्थल पर पहुंचे. उन के और रवींद्र यादव के बीच घंटे भर बहस इसी बात पर होती रही कि घटनास्थल किस थाना क्षेत्र में आता है. इस दौरान अनामिका और उस के मांबाप भूखेप्यासे उन की बहस को सुनते रहे कि थाना क्षेत्र तय हो तो एफआईआर दर्ज हो और काररवाई आगे बढ़े. आखिरी फैसला यह हुआ कि अनामिका गैंगरेप का मामला हबीबगंज जीआरपी थाने में दर्ज होगा.

अब तक रात के 8 बज चुके थे. अनामिका के पिता को बेटी की चिंता सताए जा रही थी, जो थकान के चलते सामान्य ढंग से बातचीत भी नहीं कर पा रही थी. तमाम पुलिस वालों के सामने अनामिका को अपने साथ घटी घटना दोहरानी पड़ी. यह सब बताबता कर वह इस तरह अपमानित हो रही थी, जैसे उस ने अपराध खुद किया हो.

मीडिया में बात आने के बाद पुलिस हुई सक्रिय

24 घंटे थाने दर थाने भटकने के बाद तीनों का भरोसा पुलिस और इंसाफ से उठने लगा था. मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस बगैर किसी अड़चन के मन चुका था, जिस में पुलिस का भारीभरकम अमला तैनात था.

2 नवंबर, 2017 को जब अनामिका के साथ हुए अत्याचारों की भनक मीडिया को लगी तो अगले दिन के अखबार इस जघन्य, वीभत्स और शर्मनाक बलात्कार कांड से रंगे हुए थे, जिन में पुलिस की लापरवाही, मनमानी और हीलाहवाली पर खूब कीचड़ उछाली गई थी.

लोग अब बलात्कारियों से ज्यादा पुलिस को कोसने लगे थे. जब आम लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा तो स्थापना दिवस की खुमारी उतार चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आला पुलिस अफसरों की बैठक ली.

मीटिंग में सक्रियता और संवेदनशीलता दिखाते मुख्यमंत्री ने डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला और डीआईजी संतोष कुमार सिंह की जम कर खिंचाई की और टीआई जीआरपी हबीबगंज मोहित सक्सेना, एमपी नगर थाने के टीआई संजय सिंह बैंस और हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव के अलावा जीआरपी के एक सबइंसपेक्टर भवानी प्रसाद उइके को तत्काल सस्पेंड कर दिया.

कानूनी प्रावधान तो यह है कि छेड़खानी और दुष्कर्म के मामलों में पुलिस को एफआईआर लिखना अनिवार्य है. आईपीसी की धारा 166 (क) साफसाफ कहती है कि धारा 376, 354, 326 और 509 के तहत हुए अपराधों की एफआईआर दर्ज न करने पर दोषी पुलिस वालों को 6 महीने से ले कर 2 साल तक की सजा दी जा सकती है. किसी भी सूरत में कोई भी पुलिस वाला इन धाराओं के अपराध की एफआईआर लिखने से मना नहीं कर सकता. चाहे घटनास्थल उस की सीमा में आता है या नहीं.

गोलू की निशानदेही पर पुलिस ने 3 नवंबर को अमर और राजेश उर्फ चेतराम को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन चौथा अपराधी रमेश मेहरा पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका. बाद में पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस गिरफ्तारी पर भी पुलिस की हड़बड़ी और गैरजिम्मेदाराना बरताव उजागर हुआ.

छानबीन में यह बात सामने आई कि गिरफ्तार किए गए अभियुक्त बेहद शातिर और नशेड़ी हैं. वे हबीबगंज इलाके के आसपास की झुग्गियों में ही रहते थे. ये लोग पन्नियां बीनने का काम करते थे. लेकिन असल में इन का काम रेलवे का सामान लोहा आदि चोरी कर कबाडि़यों को बेचने का था.

जांच में पता चला कि आरोपियों में सब से खतरनाक गोलू उर्फ बिहारी है. गोलू ने अपनी नाबालिगी में ही हत्या की एक वारदात को अंजाम दिया था. उस ने एक पुलिसकर्मी के बेटे की हत्या की थी.

इतना ही नहीं एक औरत से उस के नाजायज संबंध हो गए थे, जिस से उस के एक बच्चा भी हुआ था. गोलूकितना बेरहम है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी माशूका से हुए बेटे को वह उस के पैदा होने के 4 दिन बाद ही रेल की पटरी पर रख आया था, जिस से ट्रेन से कट कर उस की मौत हो गई थी.

दूसरा आरोपी अमर उस का साढ़ू है. अमर भी शातिर अपराधी है कुछ दिन पहले ही वह अरेरा कालोनी में रहने वाले एक रिटायर्ड पुलिस अफसर के यहां चोरी करने के आरोप में पकड़ा गया था. पूछताछ में आरोपियों ने अपने नशे में होने की बात स्वीकारी और यह भी बताया कि अनामिका आती दिखी तो उन्होंने लूटपाट के इरादे से पकड़ा था लेकिन फिर उन की नीयत बदल गई.

मुख्यमंत्री के निर्देश पर एसआईटी को दिया केस

अनामिका बलात्कार मामले का शोर देश भर में मचा. इस से पुलिस प्रशासन की जम कर थूथू हुई. शहर में लगभग 50 जगहों पर विभिन्न सामाजिक संगठनों और राजनैतिक दलों ने धरनेप्रदर्शन किए. विरोध बढ़ता देख मुख्यमंत्री ने जांच के लिए एसआईटी टीम गठित करने के निर्देश दे डाले. कांग्रेसी सांसदों ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ ने भी सरकार और लचर कानूनव्यवस्था की जम कर खिंचाई की. बचाव की मुद्रा में आए राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने एक बचकाना बयान यह दे डाला कि क्या कांग्रेस शासित प्रदेशों में ऐसा नहीं होता.

भोपाल में जो हुआ, वह वाकई मानव कल्पना से परे था. जनाक्रोश और दबाव में पुलिस ने एक और भारी चूक यह कर डाली कि जल्दबाजी में नाम की गफलत में एक ड्राइवर राजेश राजपूत को गिरफ्तार कर डाला. बेगुनाह राजेश से जुर्म कबूलवाने के लिए उसे थाने में अमानवीय यातनाएं दी गईं.

बकौल राजेश, ‘मुझे गिरफ्तार कर गुनाह स्वीकारने के लिए जम कर लगातार मारा गया. प्लास्टिक के डंडों से बेहोश होने तक मारा जाता रहा. इस दौरान एक महिला पुलिस अधिकारी ने उस से कहा था कि तू गुनाह कबूल कर जेल चला जा और वहां बेफिक्री से कुछ दिन काट ले क्योंकि रिपोर्ट दर्ज कराने वाली मांबेटी फरजी हैं.’

राजेश के मुताबिक उस का मोबाइल फोन पुलिस ने छीन लिया. उसे पत्नी से बात भी नहीं करने दी गई थी. हकीकत में राजेश राजपूत हादसे के वक्त और उस दिन भोपाल में था ही नहीं. वह शिवसेना के एक नेता के साथ इंदौर गया था.

उस की पत्नी दुर्गा को जब किसी से पता चला कि उस के पति को पुलिस ने गैंगरेप मामले में गिरफ्तार कर रखा है तो वह घबरा गई. दुर्गा जब थाने पहुंची तो पति की एक झलक दिखा कर उसे दुत्कार कर भगा दिया गया. इस के बाद वह अपने पति की बेगुनाही के सबूत ले कर वह यहांवहां भटकती रही, तब कहीं जा कर उसे 3 नवंबर को छोड़ा गया.

थाने से छूटे राजेश ने बताया कि वह हबीबगंज स्टेशन के बाहर भाजपा कार्यालय के पीछे की बस्ती में रहता है. जिनजिन पुलिस अधिकारियों ने उस के साथ ज्यादती की है, वह उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगा.

अनामिका की हालत पुलिसिया पूछताछ और मैडिकल जांच में बेहद खराब हो चली थी लेकिन अच्छी बात यह थी कि इस बहादुर लड़की ने हिम्मत नहीं हारी. मीडिया के सपोर्ट और संगठनों के धरनेप्रदर्शनों ने उस के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया. अब वह आईपीएस अधिकारी बन कर सिस्टम को सुधारना चाहती है. उस के मातापिता भी उसे हिम्मत बंधाते रहे और हरदम उस के साथ रहे, जिस से भावनात्मक रूप से वह टूटने व बिखरने से बच गई.

बवाल शांत करने के उद्देश्य से सरकार ने भोपाल के आईजी योगेश चौधरी और रेलवे पुलिस की डीएसपी अनीता मालवीय को भी पुलिस हैडक्वार्टर भेज दिया. अनीता मालवीय इस बलात्कार कांड पर ठहाके लगाती नजर आई थीं, जिस पर उन की खूब हंसी उड़ी थी.

डाक्टरों ने डाक्टरी जांच में की बहुत बड़ी गलती हर कोई जानता है कि ऐसी सजाओं से लापरवाह और दोषी पुलिस कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ता. आज नहीं तो कल वे फिर मैदानी ड्यूटी पर होंगे और अपने खिलाफ लिए गए एक्शन का बदला और भी बेरहमी से अपराधियों के अलावा आम लोगों से लेंगे.

सरकारी अमले किस मुस्तैदी से काम करते हैं, इस की एक बानगी फिर सामने आई. अनामिका की मैडिकल जांच सुलतानिया जनाना अस्पताल में हुई थी. प्रारंभिक रिपोर्ट में एक जूनियर डाक्टर ने लिखा था कि संबंध ‘विद कंसर्न’ यानी सहमति से बने थे. इस रिपोर्ट में एक हास्यास्पद बात एक्यूज्ड की जगह विक्टिम शब्द का प्रयोग किया था. इस पर भी काफी छीछालेदर हुई. तब सीनियर डाक्टर्स ने गलती स्वीकारते हुए इसे लिपिकीय त्रुटि बताया, मानो कुछ हुआ ही न हो.

रेलवे की नई एसपी रुचिवर्धन मिश्रा ने इसे मानवीय त्रुटि बताया तो भोपाल के कमिश्नर अजातशत्रु श्रीवास्तव ने लापरवाही बरतने वाली डाक्टरों खुशबू गजभिए और संयोगिता को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. ये दोनों डाक्टर इस के पहले ही अपनी गलती स्वीकार चुकी थीं. उन की यह कोई महानता नहीं थी बल्कि मजबूरी हो गई थी. बाद में रिपोर्ट सुधार ली गई.

अगर वक्त रहते इस गलती की तरफ ध्यान नहीं जाता तो इस का फायदा केस के आरोपियों को मिलता. वजह बलात्कार के मामलों में मैडिकल रिपोर्ट काफी अहम होती है. तरस और हैरानी की बात यह है कि जिस लड़की के साथ 6 दफा बलात्कार हुआ,उस की रिपोर्ट में सहमति से संबंध बनाना लिख दिया गया.

शायद इस की आदत डाक्टरों को पड़ गई है या फिर इस की कोई और वजह हो सकती है, जिस की जांच किया जाना जरूरी है. अनामिका बलात्कार कांड में एक भाजपा नेता का नाम भी संदिग्ध रूप से आया था, जो बारबार पुलिस थाने में आरोपियों के बचाव के लिए फोन कर रहा था.

पुलिस ने चारों दुर्दांत वहशी दरिंदों गोलू चिढार उर्फ बिहारी, अमर, राजेश उर्फ चेतराम और रमेश मेहरा से पूछताछ कर उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

अनामिका चाहती है कि इन दरिंदों को चौराहे पर फांसी दी जाए पर बदकिस्मती से देश का कानून ऐसा है, यहां पीडि़ता की भावनाओं की कोई कीमत नहीं होती. भोपाल बार एसोसिएशन ने यह एक अच्छा संकल्प लिया है कि कोई भी वकील इन अभियुक्तों की पैरवी नहीं करेगा.

गुस्साए आम लोग भी कानून में बदलाव चाहते हैं. उन का यह कहना है कि सुनवाई में देर होने से अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं और ऐसे अपराधों को शह मिलती है.

हालांकि खुद को आहत बता रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शीघ्र नया विधेयक ला कर कानून बनाने की बात कर चुके हैं और मामले की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में कराने की बात कर चुके हैं, पर सच यह है कि अब कोई उन पर भरोसा नहीं करता. खासतौर से इस मामले में पुलिस की भूमिका को ले कर तो वे खुद कटघरे में हैं.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनामिका परिवर्तित नाम है.

संदीप के सपने

बिहार के जिला सीवान के थाना नगर के मोहल्ला सीतारामनगर बैलहट्टा के वार्ड नंबर 32 में  कपड़ा और सोनेचांदी के गहनों के व्यवसाई राजकुमार गुप्ता परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी स्मिता और 11 साल का एकलौता बेटा विष्णुराज उर्फ राहुल था. एकलौता होने की वजह से राजकुमार बेटे को बड़े जतन से पाल रहे थे. उन के पास किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए उन्होंने बेटे का दाखिला शहर के सब से महंगे और प्रसिद्ध स्कूल डौन बोस्को में करा दिया था. वह इस समय 6वीं में पढ़ रहा था.

बेटा पढ़ने में कमजोर न रहे, इस के लिए राजकुमार ने मोहल्ले के संदीप कुमार को ट्यूशन पढ़ाने के लिए लगा रखा था. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, इसलिए राजकुमार हर तरह से खुश थे. लेकिन किस की खुशी को कब ग्रहण लग जाए, कौन जानता है. ऐसा ही कुछ 9 अगस्त, 2017 की शाम राजकुमार गुप्ता के साथ हुआ.

राजकुमार गुप्ता की पत्नी स्मिता रक्षाबंधन पर 7 अगस्त को मायके चली गई थीं. मां के न रहने पर राहुल की देखरेख उस की चाची लक्ष्मी के जिम्मे थी. क्योंकि वह भी उसी मकान में पहली मंजिल पर पति रमाकांत गुप्ता के साथ रहती थीं. दोनों भाई रहते भले अलगअलग थे, लेकिन संबंध सगे भाइयों में जिस तरह के होने चाहिए, वैसे ही थे, इसलिए पत्नी के मायके चले जाने पर भी राजकुमार बेटे की तरफ से निश्चिंत थे.

9 अगस्त की शाम 7 बजे ट्यूशन पढ़ कर राहुल चाची से दुकान पर जाने की बात कह कर घर से निकल गया. वह घर से निकला ही था कि राजकुमार ने फोन कर के लक्ष्मी से पूछा, ‘‘लक्ष्मी, जरा नीचे देख कर बताओ कि राहुल ट्यूशन पढ़ रहा है या पढ़ चुका?’’

‘‘ठीक है भाई साहब, देख कर बताती हूं.’’ जवाब में लक्ष्मी ने कहा.

राजकुमार ने फोन काट दिया कि लक्ष्मी देख कर बताएगी. लेकिन उस समय लक्ष्मी की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वह आलस्यवश नीचे नहीं गई. शायद इसी वजह से घर से जाते समय राहुल ने उसे दुकान पर जाने के बारे में जो बताया था, उस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया था.

थोड़ी देर बाद लक्ष्मी को थोड़ा आराम महसूस हुआ तो वह नीचे आई. राहुल को घर में न पा कर उस ने सोचा कि राहुल दुकान पर चला गया होगा. दूसरी ओर लक्ष्मी से बात होने के बाद राजकुमार दुकानदारी में व्यस्त हो गए थे. करीब 9 बजे दुकान बंद कर के वह घर पहुंचे तो राहुल उन्हें घर में कहीं दिखाई नहीं दिया. उन्होंने लक्ष्मी से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘भाईसाहब, वह तो 7 बजे से ही घर में नहीं है. वह तो दुकान पर चला गया था.’’

‘‘राहुल 7 बजे से घर में नहीं है?’’ हैरानी से राजकुमार ने कहा, ‘‘पर वह तो दुकान पर भी नहीं आया.’’

राजकुमार को लगा, राहुल दुकान पर जाने के बजाय किसी दोस्त के घर खेलने चला गया होगा. घर से बाहर आ कर वह आसपड़ोस में राहुल के बारे में पूछने लगे. लेकिन राहुल किसी के यहां नहीं गया था. राजकुमार परेशान हो उठे कि इस तरह राहुल बिना बताए कहां चला गया? उस की इस हरकत पर उन्हें गुस्सा भी आ रहा था और चिंता भी हो रही थी, क्योंकि एकलौते बेटे की बात थी.

जब राहुल आसपास कहीं नहीं मिला तो राजकुमार ट्यूशन पढ़ाने वाले संदीप कुमार के यहां गए. उन्होंने उस से राहुल के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘शाम 7 बजे तक मैं राहुल को पढ़ाता रहा. उस के बाद मैं अपने घर आ गया. उस समय तक तो राहुल घर पर ही था. उस के बाद ही कहीं गया होगा.’’

हारे हुए जुआरी की तरह राजकुमार घर वापस आ गए. अब तक उन का भाई रमाकांत भी घर आ गया था. उन्होंने भाई से राहुल के गायब होने की बात बताई तो वह भी हैरान रह गया, क्योंकि अब तक रात के साढ़े 10 बज चुके थे. ऐसे में वे राहुल को ढूंढने कहां जाते? राजकुमार की समझ में कुछ नहीं आया तो उन्होंने पत्नी को फोन कर के बेटे के गायब होने के बारे में बता दिया. बेटे के गायब होने का पता चलते ही स्मिता रोने लगी.

कुछ व्यवसाई मित्रों को राजकुमार ने बेटे के गायब होने की बात बताई तो सब ने उन्हें हिम्मत बंधाते हुए राहुल की गुमशुदगी दर्ज कराने की सलाह दी. सवेरा होते ही कुछ व्यवसाइयों के साथ राजकुमार थाना नगर पहुंचे और थानाप्रभारी सुबोध कुमार को पूरी बात बताई तो उन्होंने तुरंत गुमशुदगी दर्ज कर के आश्वासन दिया कि वह अभी काररवाई करते हैं.

अब तक स्मिता भी घर आ गई थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. सब उसे समझा रहे थे. राजकुमार ने भी पत्नी को चुप कराने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में वह खुद ही रोने लगे. राहुल के गायब होने की जानकारी पा कर तमाम रिश्तेदार और जानपहचान वाले राजकुमार के घर आ गए थे.

किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि राहुल अचानक कहां चला गया? सब इसी बात पर विचार कर रहे थे कि 10 बजे के करीब राजकुमार गुप्ता के मोबाइल पर एक फोन आया. चूंकि वह नया नंबर था, इसलिए राजकुमार ने फोन रिसीव कर के पूछा, ‘‘कौन?’’

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो.’’ दूसरी ओर से रौबदार आवाज में लगभग धमकाने वाले अंदाज में कहा गया, ‘‘तुम्हारा बेटा राहुल मेरे कब्जे में है. उस की जान की सलामती चाहते हो तो 30 लाख रुपयों का इंतजाम कर लो. रुपए कब और कहां पहुंचाने हैं, यह तुम्हें बाद में बता दिया जाएगा. और हां, एक बात कान खोल कर सुन लो, अगर तुम इस मामले में पुलिस को बीच में ले आए तो बेटे की लाश ही मिलेगी.’’

‘‘अरे आप कौन और कहां से बोल रहे हैं?’’ राजकुमार ने पूछा. लेकिन उन के इन सवालों का जवाब देने के बजाय फोन करने वाले ने फोन काट दिया.

राजकुमार ने पलट कर फोन किया तो फोन बंद हो चुका था. उन्होंने यह बात पत्नी और भाई को बताई तो बेटे के अपहरण की बात सुन कर पत्नी और जोरजोर से रोने लगी. सलाहमशविरा के बाद तय हुआ कि इस बात की सूचना पुलिस को दे दी जाए, क्योंकि अपहर्त्ताओं का क्या भरोसा, वे रुपए ले कर भी बच्चे को सकुशल वापस न करें.

राजकुमार तुरंत भाई और कुछ व्यवसाई मित्रों के साथ थाना नगर पहुंच गए और थानाप्रभारी सुबोध कुमार को अपहर्त्ताओं द्वारा किए गए फोन के बारे में बताया तो उन्होंने अपहर्त्ताओं के उस नंबर को उसी समय सर्विलांस पर लगवा दिया. इसी के साथ उन्होंने राहुल की गुमशुदगी को अपहरण की धारा 364 के तहत दर्ज करा कर इस घटना की सूचना जिले के सभी थानों और पुलिस अधिकारियों को दे दी.

इस के बाद पुलिस राहुल की खोज में जुट गई. घटना की सूचना एसपी सौरभ कुमार शाह को भी मिल गई थी. वह खुद इस पर नजर रखने लगे. राहुल को सहीसलामत मुक्त कराने के लिए उन्होंने एएसपी कार्तिकेय शर्मा को इस मामले में लगा दिया. इस के बाद पुलिस की 2 टीमें गठित की गईं. एक टीम का नेतृत्व एसआईटी प्रभारी मनोज कुमार कर रहे थे तो दूसरी टीम थानाप्रभारी सुबोध कुमार के नेतृत्व में काम कर रही थी. उन की मदद के लिए जिले के कई थानों के थानाप्रभारी भी लगाए गए थे.

उसी दिन शाम को एक बार फिर अपहर्त्ताओं ने राजकुमार को फोन कर के फिरौती की रकम मांगी, पर राजकुमार ने फिरौती देने से मना कर दिया. पुलिस ने उस फोन की लोकेशन पता की, जिस से फिरौती मांगी गई थी. पता चला कि वह गोपालगंज के मीरगंज के मटिहानी से किया गया था. पुलिस वहां पहुंची, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा.

दरअसल, पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही अपहर्त्ता निकल गए थे. इस से पुलिस को लगा कि राहुल के अपहरण में कोई करीबी शामिल है, जो अपहर्त्ताओं को पुलिसिया काररवाई की जानकारी दे रहा है.

अगले दिन यानी 11 अगस्त को सुबहसुबह थाना मुफस्सिल पुलिस ने अमलौरी-सरसर के बीच बसस्टौप के नजदीक सड़क के किनारे सीमेंट की बोरी में बंधी एक बच्चे की लाश बरामद की. शक्लसूरत और पहनावे से बच्चा बड़े घर का लग रहा था. कहीं से इस बात की भनक राजकुमार को लगी तो वह भाई के साथ वहां पहुंच गए.

लाश देखते ही दोनों भाई बिलखबिलख कर रोने लगे. लाश राजकुमार के एकलौते बेटे राहुल की थी. राहुल की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया. जब इस बात की जानकारी व्यापारियों को हुई तो सारे व्यापारी इकट्ठा हो कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

लोगों के आक्रोश को देखते हुए एसपी सौरभ कुमार शाह ने तुरंत पुलिस फोर्स की व्यवस्था की और शहर की नाकेबंदी करा दी. इस के बावजूद गुस्साई भीड़ ने पुलिस के वज्र वाहन को आग लगा दी. सभी राहुल की लाश को रख कर हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे.

एएसपी कार्तिकेय शर्मा और एसडीएम श्यामबिहारी मीणा ने गुस्साए लोगों को आश्वासन दिया कि हत्यारों को 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार किया जाएगा, तब लोग थोड़ा शांत हुए. इस के बाद लाश का अंतिम संस्कार करा दिया गया. उसी दिन शाम को लोगों ने कैंडिल मार्च भी निकाला.

सुबह राहुल के अपहरण की खबर फोटो के साथ अखबारों में छपी तो एक आदमी ने वह खबर पढ़ी और फोटो देखा तो हैरान रह गया. क्योंकि उस ने अस्पताल रोड पर राहुल को एक बोलेरो में 3 लोगों को बैठाते देखा था. राहुल को बैठा कर वे पश्चिम की ओर गए थे. उस आदमी से रहा नहीं गया और वह थाना मुफस्सिल पहुंच गया.

थानाप्रभारी विनय प्रताप सिंह से उस ने एसपी के सामने अपनी बात कहने को कहा तो वह उसे एसपी सौरभ कुमार शाह के पास ले गए. उस ने जो देखा था, सौरभ कुमार शाह को बता दिया. अपहर्त्ताओं ने फिरौती के लिए जो फोन किए थे, वे गोपालगंज के मीरगंज के मटिहानी से किए गए थे.

पुलिस ने योजना बना कर दोबारा मटिहानी में सर्च अभियान चलाया तो 2 लोग मनोज और दिनेश पकड़ में आ गए. ये दोनों सगे भाई थे. सीवान ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे राहुल के अपहरण में शामिल थे और उन्हीं के साथी मिट्ठू ने फिरौती के लिए फोन किए थे.

फोन के लिए जिस नंबर से फोन किए गए थे, उन्होंने उस नंबर का सिम थाना हथुआ के मनी छापर गांव के रहने वाले विकास कुमार प्रसाद से खरीदा था. इस पूरे मामले का मास्टरमाइंड सीवान का भरत था. पुलिस ने उसी दिन सिम बेचने वाले विकास कुमार और मास्टरमाइंड भरत को गिरफ्तार कर लिया.

भरत ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि इस पूरे मामले का असली खिलाड़ी बच्चे को ट्यूशन पढ़ाने वाला संदीप कुमार था. उसी के कहने पर बच्चे का अपहरण किया गया था. इस के बाद उसी दिन पुलिस ने संदीप कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में संदीप ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस तरह 48 घंटे में 1 महिला सहित सारे 11 अभियुक्त गिरफ्तार कर लिए गए थे, जबकि 3 लोग फरार हो गए थे. गिरफ्तार अभियक्तों से पूछताछ में राहुल के अपहरण से ले कर हत्या तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

22 साल का संदीप कुमार जिला सीवान के थाना नगर के नया बाजार के रहने वाले विमलेश कुमार का बेटा था. 5 भाईबहनों में वह चौथे नंबर पर था. विमलेश की कौस्मेटिक की दुकान थी. उसी की कमाई से घर चलता था.

संदीप से बड़े 4 भाई थोड़ीबहुत कमाई करने लगे थे. संदीप बीए फाइनल ईयर में पढ़ रहा था, साथ ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना खर्च निकाल रहा था. लेकिन उस की इच्छाएं काफी प्रबल थीं. वह जिस स्थिति में था, उस स्थिति में नहीं, बल्कि शान की जिंदगी जीना चाहता था. वह राजकुमार गुप्ता के बेटे राहुल को भी ट्यूशन पढ़ाता था.

संदीप राहुल को उस के घर पढ़ाने जाता था. उस के घर की शानोशौकत देख कर ही वह समझ गया था कि ये पैसे वाले लोग हैं. यही सोच कर धीरेधीरे उस के मन में लालच आने लगा. उसे लगा कि राहुल बड़े मालदार बाप का एकलौता बेटा है. अगर इस का अपहरण कर लिया जाए तो बेटे को छुड़ाने के लिए वह 25-50 लाख रुपए आसानी से दे देंगे.

इस के बाद संदीप राहुल के अपहरण की योजना बनाने लगा. यह काम वह अकेला तो कर नहीं सकता था. सहयोग के लिए उस ने श्रद्धानंद बाजार स्थित अस्पताल रोड चौराहे पर लिट्टी और चाय की दुकान चलाने वाले अपने एक परिचित भरत से बात की. बात लाखों की थी, इसलिए वह भी उस की योजना में शामिल हो गया.

भरत ने मीरगंज के रहने वाले अपने एक साथी आजाद अली को लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया. इस तरह अब 3 लोग हो गए थे. इस के बाद तीनों मौके की तलाश में जुट गए.

7 अगस्त को भरत की दुकान पर संदीप और आजाद अली राहुल के अपहरण की योजना को अंतिम रूप देने पहुंचे. तीनों ने 9 अगस्त की शाम को राहुल के अपहरण की योजना बना डाली. इस की वजह यह थी कि 7 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार था. राहुल की मां स्मिता मायके चली गई थीं. यह संदीप को पता था.

पूरी योजना बना कर आजाद अली ने गोपालगंज के थाना मीरगंज के गांव मटिहानी के रहने वाले दिलीप सिंह को फोन कर के उन की बोलेरो जीप 9 अगस्त के लिए बुक कर ली. आजाद अली दिलीप सिंह की जानपहचान वाला था, इसलिए उस ने गाड़ी भेजने के लिए कह दिया था.

9 अगस्त की शाम 6 बजे संदीप राहुल को ट्यूशन पढ़ाने उस के घर गया. घर में राहुल के अलावा कोई नहीं था. संदीप राहुल से इधरउधर की बातें करने लगा, क्योंकि उस के मन में तो उथलपुथल मची थी. पढ़ाने में उस का मन नहीं लग रहा था. शाम 7 बजे संदीप के जाने का समय हुआ तो उस ने कहा, ‘‘राहुल, तुम्हें अपनी दुकान पर चलना हो तो चलो, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, क्योंकि मैं उधर ही जा रहा हूं.’’

राहुल को दुकान पर जाना ही था, वह कौपीकिताब रख कर संदीप के साथ चल पड़ा. घर से निकलते ही संदीप ने आजाद अली और भरत को तैयार रहने के लिए कह दिया. उसी बीच राजकुमार ने अपने भाई की पत्नी लक्ष्मी को फोन कर के राहुल के बारे में पूछा तो उस समय तो नहीं, लेकिन थोड़ी देर बाद घर में राहुल को न देख कर उसे लगा कि वह दुकान पर चला गया होगा.

अस्पताल रोड चौराहे पर दिलीप सिंह और आजाद अली बोलेरो जीप लिए संदीप का इंतजार कर रहे थे. भरत भी रास्ते में मिल गया था. संदीप ने राहुल को तो बोलेरो पर बैठा दिया, लेकिन खुद नहीं बैठा. वह उन के साथ गया भी नहीं. राहुल को जब ये लोग बोलेरो में बैठा रहे थे, तभी उस आदमी ने देख लिया था.

भरत और आजाद अली राहुल को ले कर गोपालगंज के जिगना के रहने वाले राजकिशोर सिंह के घर पहुंचे. दोनों ने उन से राहुल को अपने यहां रखने को कहा तो उन्होंने 5 लाख रुपए मांगे. दोनों 5 लाख रुपए देने को राजी हो गए तो राहुल को उन के यहां रख दिया गया. तब तक राहुल सो गया था. लेकिन सवेरा होते ही वह रोने लगा तो राजकिशोर सिंह ने उसे ले जाने को कहा.

इस के बाद दोनों राहुल को बसंतपुर के लालबाबू के यहां ले गए. पैसों के लालच में लालबाबू का दोस्त मिट्ठू भी अपहर्त्ताओं के साथ मिल गया.

10 अगस्त की सुबह संदीप ने फिरौती के लिए राजकुमार को फोन करने के लिए भरत को फोन किया. संदीप के कहने पर भरत ने मिट्ठू से राजकुमार को फोन करवा कर 30 लाख रुपए की फिरौती मांगी. लेकिन राजकुमार ने फिरौती देने से साफ मना कर दिया. संदीप और उस के साथियों ने जो सोच कर राहुल का अपहरण किया था, वह बेकार गया. उन की मंशा पर पानी फिर गया.

संदीप बुरी तरह डर गया था. क्योंकि राहुल ने उसे ही नहीं, भरत और आजाद अली को भी पहचान लिया था. ऐसे में उसे जिंदा छोड़ दिया जाता तो सब पकड़े जाते. पकड़े जाने के डर से संदीप की रूह कांप उठी. बस उस ने तय कर लिया कि अब राहुल को जिंदा नहीं छोड़ना है.

उस ने आजाद अली को फोन कर के राहुल को खत्म करने के लिए कह दिया. भरत राहुल को लालबाबू के हवाले कर के सीवान लौट आया था. इसलिए अब जो करना था, आजाद अली, लालबाबू और इन के एक साथी दीपू को करना था. रात में आजाद अली ने दिलीप सिंह से एक मारुति वैन मंगवाई.

लालबाबू और दीपू ने रस्सी और सीमेंट की बोरी का इंतजाम किया. इस के बाद राहुल के गले में रस्सी लपेट कर कस दिया गया, जिस से तड़प कर वह मर गया. हत्या करने के बाद तीनों राहुल की लाश को सीमेंट की बोरी में भर कर मारुति वैन से ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. अब तक सवेरा हो चुका था.

लाश को ला कर उन्होंने सीवान के थाना मुफस्सिल के अंतर्गत अमलोरी-सरसर के बीच स्थित बसस्टौप के पास सड़क किनारे चलती वैन से फेंक दिया. उन लोगों को बोरी फेंकते कुछ लोगों ने देखा तो शोर भी मचाया, लेकिन वे भाग गए. इस के बाद उन्हीं लोगों ने इस की सूचना थाना मुफस्सिल पुलिस को दी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने इस मामले में धारा 365, 302, 201 और 34 शामिल कर दी थीं.

कथा लिखे जाने तक कुल 14 लोग पकड़े जा चुके थे. आजाद अली और वैन चालक अभी तक पकड़े नहीं गए थे. लालबाबू ने सीवान की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था. पुलिस उसे रिमांड पर लेने की तैयारी कर रही थी. पकड़े गए सारे अभियुक्त जेल भेजे जा चुके थे.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पतिपत्नी : प्रेमी और पुत्र के बीच उलझी तलाकशुदा

सीमा का जब अपने पति के साथ तलाक हुआ तो उस के बेटे सोनू की उम्र 14 साल की थी. तलाक होने के 2 महीने बाद ही सोनू के पिता ने दूसरी शादी कर ली. अब सोनू न चाहते हुए भी अपने पिता और सौतेली मां के साथ रहने को मजबूर है. वजह, उस का स्कूल वहां से पास है. तलाक होने के बाद सोनू की मां सीमा जहां रहती हैं वहां वह अकसर जाता रहता है पर इन दिनों उस की मां उसे पहले की तरह समय नहीं दे पातीं. मां या तो अपने काम में व्यस्त रहती हैं या फिर अपने एक परिचित रोहित के साथ बातें करती रहती हैं. सोनू खुद को अब बहुत अकेला पाता है.

रोहित को सोनू की मनोस्थिति समझते देर न लगी. उस ने सोनू से दोस्ती करनी शुरू कर दी. बहुत जल्द सोनू व रोहित आपस में हिलमिल गए. अब सोनू अकेलापन महसूस नहीं करता है बल्कि रोहित के साथ वीकेंड पर घूमने जाता है और खूब मस्ती करता है. रोहित जब भी सोनू से मिलता है, उस के लिए कुछ न कुछ उपहार ले कर आता है. सोनू को भी रोहित और अपने उपहार का इंतजार रहता है. सीमा जब यह सब देखती है तो उस की सारी चिंता काफूर हो जाती है.

इधर पिछले कुछ दिनों से रोहित को सबकुछ बहुत बदलाबदला सा नजर आ रहा है. अचानक सोनू ने उस से उपहार लेना बंद कर दिया और पहले की तरह अब न तो वह रोेहित से खुल कर मिलता है और न ही उस के साथ वीकेंड पर घूमने जाता है. सीमा भी अब उस से खुद को दूरदूर रखने लगी है. रोहित इस बदलाव को महसूस तो कर रहा है पर न तो वह इस का कारण समझ पा रहा है, न यह कि क्या करे कि सबकुछ फिर से पहले की तरह ठीक हो जाए.

सीमा भी जानती है कि रोहित की उपेक्षा कर वह ठीक नहीं कर रही है लेकिन वह यह समझ पाने में असमर्थ है कि इस परेशानी का हल वह कैसे निकाले? कुछ साल पहले जब पति ने उस का साथ छोड़ा था तो वह बिलकुल अकेली हो गई थी. ऐसे में रोहित ने उसे संभाला था. धीरेधीरे रोहित का साथ उसे भी अच्छा लगने लगा था.

उस दिन सीमा की मौसी आईं तो उस के घर में रोहित की दखलंदाजी देख उन्हें ठीक न लगा. उन्होंने सीमा को समझाया, ‘‘बेटी, अभी तेरी उम्र ढली नहीं है इसलिए रोहित तेरे इर्दगिर्द चक्कर लगा रहा है. सोनू को भी बहुत प्यार कर रहा है लेकिन जैसे ही तुम दोनों ने शादी की और तुम्हारी औलाद हुई कि वह सोनू से चिढ़ने लगेगा और घर में एक बार फिर कलह होने लगेगी. अभी तो सोनू अपने पापा के साथ है लेकिन स्कूल पूरा करते ही वह तुम्हारे साथ आ  कर रहना चाहेगा और रोहित की परेशानियां तुम्हें भी परेशान करने लगेंगी. इसलिए कोई भी कदम उठाने से पहले कई बार विचार कर लेना.’’

मौसी ने सीमा को समझाया तो उस के मन में कई सवाल एक साथ खड़े हो गए. वह तय नहीं कर पा रही है कि उसे क्या करना चाहिए? सच है, रोहित आज उसे और सोनू को बहुत प्यार करता है लेकिन अपने बच्चे होने पर भी क्या यह प्यार कायम रहेगा? रोहित की अपनी कोई औलाद नहीं है. ऐसे में वह अपने बच्चे की जिद भी जरूर करेगा तब फिर क्या होगा? यह सब सोच कर ही सीमा परेशान हो उठती. इन सब का कोई हल उसे नहीं सूझ रहा था. बस, मन की इसी उलझन ने उसे रोहित से दूर रहने को मजबूर कर दिया. लेकिन क्या सीमा का यह फैसला सही है?

वजह चाहे कोई भी हो लेकिन आज तलाक शादी का पर्याय बन चुका है. शादी, जिसे एक समय में जन्मजन्मांतर का बंधन माना जाता था, आज अपनी पहचान बदल चुका है. आज समझौता और समर्पण की जगह ईर्ष्या व अहं ने ले ली है. ऐसे में कानूनी रूप से तलाक लेने के सिवा उन्हें दूसरा रास्ता नजर ही नहीं आता.

तलाक के बाद जिंदगी रुक तो नहीं जाती. इस को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है कि नए जीवनसाथी की तलाश की जाए.

कई बार दूसरी शादी भी सफल नहीं हो पाती जैसा कि सुनैना के साथ हुआ. प्रेमी की बेवफाई उसे किसी भी लड़के से शादी को तैयार नहीं होने दे रही थी. कई रिश्ते आते और वह उन में कोई न कोई कमी निकाल कर ठुकरा देती. अच्छा रिश्ता और पुरानी जानपहचान के बाद भी जब सुनैना ने एक जगह का रिश्ता ठुकरा दिया तो उस की छोटी बहन ने वहां शादी के लिए हामी भर दी. यह बात सुनैना को चुभी लेकिन वह सबकुछ भूलने की कोशिश करती रही.

इसी दौरान एक दिन पूर्व प्रेमी से सुनैना की मुलाकात हुई तो पता चला कि उस के प्रेमी ने अपनी पत्नी से तलाक ले लिया है और वह अब सुनैना से शादी कर पुरानी गलती को सुधारना चाहता है. पुरानी बातें भूल सुनैना ने भी शादी के लिए हां कर दी, लेकिन एक बच्चे के बाद दोनों में तलाक हो गया. अब सुनैना के बूढ़े मांबाप उस के लिए तलाकशुदा लड़के की तलाश करने लगे क्योंकि पहाड़ सा यह जीवन अकेले तो नहीं काटा जा सकता न.

तलाक होने के 8 माह बाद एक दिन बाजार में उस का पूर्व प्रेमी पति मिल गया. उस ने सुनैना को समझाया, ‘‘क्या हुआ जो हमारा तलाक हो गया, आखिर हम एकदूसरे से प्यार करते थे और कुछ मनमुटाव के कारण हम ने अलग होने का फैसला लिया था. अब तुम जिस से भी शादी करोगी उस के साथ भी तो तुम्हें कई तरह के समझौते करने होंगे तो दूसरों के बजाय क्यों न हम अपनों के लिए ही समझौता कर लें और फिर से एक हो जाएं?’’

सुनैना को पति की बात जंच गई और उस ने फिर से अपने पति के साथ रहने का फैसला ले लिया. आखिर समझौते तो जीवन में करने ही पड़ते हैं तो क्यों न उसे सब के भले को ध्यान में रख कर किया जाए. सुनैना ने तो समझदारी से सही फैसला ले लिया लेकिन क्या सीमा की समझ में बात आई? दरअसल, सीमा अपने बच्चे सोनू के भविष्य को ले कर कुछ ज्यादा ही चिंतित हो रही थी और अपने बारे में तो वह कुछ सोच ही नहीं पा रही थी.

सीमा समझ नहीं पा रही थी कि 2-3 साल बाद जब उस का बेटा सोनू बड़ा हो जाएगा और आगे की पढ़ाई के लिए उस से दूर चला जाएगा तब वह खुद को इस के लिए कैसे तैयार करेगी?

बेशक मौसी की यह बात सच है कि आज वह उम्र की ढलान पर नहीं है इसलिए रोहित उस का साथ देने को तैयार है लेकिन उम्र के जिस मुकाम पर वह है वहां से आगे ढलान ही तो शुरू होती है. ऐसे में बेटे को उस की जितनी जरूरत है, उस के लिए सीमा को अपने भविष्य के साथ समझौता नहीं करना चाहिए. इस तरह सीमा को रोहित के साथ जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ने देना चाहिए और समझदारी इसी में है कि वह रोहित, जो कि इतना सुलझा हुआ व समझदार युवक है, से शादी कर फिर से अपना घर बसा ले. यही उस के लिए बेहतर होगा, यद्यपि इस दौरान उसे कुछ परेशानियां आ सकती हैं लेकिन रोहित का साथ मिलने पर वे मिल कर उस का समाधान भी ढूंढ़ सकते हैं.

रोहित जवान होते सोनू को समझने की कोशिश कर सकता है. फिर यदि सीमा खुद बेटे को अपनी परेशानियां बताए तो वह उसे जरूर समझेगा. हां, बेटे को अपने पक्ष में कर के यह कदम उठाए तो बेहतर होगा. ठीक इसी तरह, यदि रोहित से भी वह साफसाफ हर बात कर ले और अपनी परेशानियों को उसे भी बता दे तो जीवन में कभी परेशानी आने की नौबत ही नहीं रह जाएगी.

कहा जा सकता है कि छोटीछोटी पर महत्त्वपूर्ण बातों का खयाल रखें तो सीमा व सुनैना जैसी कई महिलाएं अपने जीवन को एक नई दिशा देने में सक्षम हो सकेंगी. तलाक के बाद भी वे समझदारी से सही निर्णय लें और जीवन को सहज रूप से आगे बढ़ने दें, इसी में सब की खुशहाली है.

औरतों का शिकारी महंत प्रीतम सिंह

जालंधर देहात के थाना भोगपुर के अंतर्गत आने वाले गांव बढ़चूही में नाथ समुदाय के बाबा बालकनाथ का प्रसिद्ध डेरा है, जिस की बड़ी मान्यता है. जालंधर और उस के आसपास क्षेत्र के तो क्या, दूरदूर से लोग अपनी श्रद्धा के वशीभूत डेरे पर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आते रहते थे. दरअसल, सालों पहले महंत प्रीतम सिंह ने सरपंच और गांव वालों की मदद से इस डेरे की नींव रखी थी. बाद में देखतेदेखते इस डेरे की मान्यता दूरदूर तक फैल गई.

डेरे पर हर तरह की समस्याओं से ग्रस्त लोग समाधान के लिए आते थे. हां, निस्संतान औरतों का संतान प्राप्ति के लिए डेरे पर आनाजाना कुछ अधिक ही था. कहा जाता है कि संतान की चाह रखने वाली जरूरतमंद औरतों की मुराद यहां आ कर पूरी हो जाती थी. इस डेरे का संचालन करने वाले महंत प्रीतम सिंह के बारे में कहा जाता है कि कई साल पहले वह झारखंड से यहां आए थे.

महंत प्रीतम सिंह थाना तेरापाहा के अंतर्गत आने वाले गांव चंपवाला, जिला कुरी, झारखंड के मूल निवासी थे. लोगों का मानना था कि उन पर बाबा बालकनाथजी की कृपा थी. डेरे की सेवा का काम बाबा प्रीतम सिंह का भांजा राम करता था.

26 जून, 2016 की शाम को राम और उस का दोस्त चैंपियन शाम के समय डेरे की साफसफाई में लगे थे. उस वक्त बाबा अपने निजी कक्ष में ध्यान में बैठे थे. तभी 2 युवक डेरे का मुख्यद्वार खोल कर भीतर आए और बिना किसी से पूछे ऊपर बाबा के निजी कक्ष की ओर चले गए.

राम और उस के दोस्त चैंपियन ने उन्हें बाबाजी के कक्ष की ओर जाते देखा था, पर उन्होंने इस ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया था, क्योंकि डेराप्रेमी श्रद्धालु अकसर बाबा से मिलने आते रहते थे. दोनों युवकों को ऊपर गए अभी मुश्किल से 5 मिनट ही गुजरे थे कि गोली चलने की आवाज के साथ चीख भी सुनाई दी. राम और चैंपियन ने चौंक कर देखा, गोली चलने की आवाज और चीख बाबा के कक्ष की ओर से आई थी.

वे अवाक खड़े अभी सोच ही रहे थे कि क्या मामला है, तभी दोनों युवक अपने हाथ में पिस्तौल लिए बाबा के कक्ष से निकले और मुख्यद्वार की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी हुआ कि कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं मिला था.

राम और चैंपियन दौड़ कर बाबा के कक्ष की ओर लपके. दोनों ऊपर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर उन के पैरों तले से जमीन निकल गई. बाबाजी के सिर से खून का फव्वारा छूट रहा था और वह बैड पर औंधे पड़े थे.

डेरे में गोली चलने की आवाज कुछ गांव वालों ने भी सुनी थी, वे भी हकीकत जानने के लिए डेरे में दौड़े चले आए थे. राम और चैंपियन ने देखा तो बाबा की नब्ज चल रही थी. राम ने तुरंत गांव के प्रधान महिंदर सिंह को सूचना देने के साथ थाना भागपुर पुलिस को भी घटना के बारे में बता दिया. यह 26 जून, 2016 की घटना है.

सूचना मिलते ही जालंधर देहात के एसएसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर, डीएसपी और थाना भागपुर के प्रभारी एसआई प्रीतम सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. बाबा को तुरंत वहां के नजदीकी निजी अस्पताल पहुंचाया गया.

इस काम से फारिग होने के बाद थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ने गांव वालों और राम के बयान दर्ज किए. राम के बयान पर महंत प्रीतम सिंह की हत्या के मकसद से जानलेवा हमला करने का मुकदमा भादंसं की धारा 307 के तहत दर्ज कर के हमलावरों की तलाश शुरू कर दी गई.

उधर अस्पताल में डाक्टरों के तमाम प्रयासों के बाद भी बाबा को बचाया नहीं जा सका. उन की मौत के बाद थानाप्रभारी ने लाश को कब्जे में ले कर पंचनामा तैयार किया और लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. बाबा प्रीतम सिंह की हत्या दिनदहाड़े सिर में गोली मारकर की गई थी और हत्यारे फरार हो गए थे.

कुछ ही देर में बाबा की हत्या की खबर पूरे क्षेत्र में फैल गई. देखतेदेखते हजारों श्रद्धालु बाबा के डेरे और अस्पताल के पास जमा हो गए और आक्रोश में पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए हत्यारों को जल्दी गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. बेकाबू होती भीड़ ने दिल्ली जम्मू नेशनल हाईवे को जाम कर दिया, साथ ही उन्होंने सरकारी वाहनों की तोड़फोड़ भी शुरू कर दी, जिस पर पुलिस ने बड़ी मुश्किल से काबू पाया.

शुरुआती जांच में थानाप्रभारी प्रीतम सिंह ने बाबा के कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे के बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. उन कैमरों से प्रीतम सिंह को बड़ी उम्मीद थी कि कैमरों से हमलावरों का सुराग लग सकता है. पर जब मुआयना किया गया तो कैमरे वहां से गायब पाए गए.

हमलावर बाबा पर गोली चलाने के बाद सीसीटीवी कैमरे भी उखाड़ कर साथ ले गए थे. आगे की जांच में पता चला कि बाबा प्रीतम सिंह एक अच्छे इंसान थे, समाज और मानव कल्याण ही उन का मूल उद्देश्य था. ऐसे नेक इंसान को गोली मार कर हत्या करने का क्या मकसद हो सकता है, यह समझ से परे था.

प्रीतम सिंह ने गांव वालों से पूछताछ की और बाबा के भांजे राम और उस के दोस्त चैंपियन के बयान भी फिर से दर्ज किए पर कोई खास बात पता नहीं चल सकी. दिनरात की मशक्कत और मुखबिरों का सहारा लेने के बाद भी वह बाबा प्रीतम सिंह के हत्यारों तक नहीं पहुंच सके. इसी बीच उन का तबादला हो गया.

प्रीतम सिंह के तबादले के बाद नए थानाप्रभारी ने भी अपने कार्यकाल में बाबा के हत्यारों को ढूंढने का काफी प्रयास किया, पर वह भी सफल नहीं हो पाए. इस के बाद यह केस पूरे एक साल तक जिले के सीआईए स्टाफ और क्राइम ब्रांच के पास भटकता रहा. इतना अरसा गुजर जाने के बाद स्थानीय लोग भी इस घटना को भूलने लगे थे.

बाबा के श्रद्धालु भले ही बाबाजी की गोली मार कर हत्या कर देने की बात को भूलने लगे थे, पर जालंधर देहात के एसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बाबा प्रीतम सिंह के हत्यारों को कभी नजरअंदाज नहीं किया था. उन्होंने अपने कुछ खास पुलिस अफसरों को इस काम पर लगाया हुआ था.

बाबा प्रीतम सिंह की हत्या की वजह पता चल जाती तो हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था. पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती यह जानने की थी कि आखिर बाबा की हत्या किस मकसद से की गई थी. उन की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी थी कि हत्यारों को उन की हत्या करनी पड़ी. निस्संदेह इस के पीछे कोई बहुत बड़ा कारण रहा होगा.

एसपी भुल्लर ने अपनी टीम को सब से पहले यही बात पता करने के लिए लगाया. जल्द ही उन्हें पता चला कि बाबा प्रीतम सिंह एक अय्याश आदमी था. निस्संतान औरतों को संतान देने का आशीर्वाद देने और उन का इलाज करने के बहाने वह उन का शारीरिक शोषण किया करता था.

यह बात पता चलने पर पुलिस ने जब इसी थ्यौरी पर जांच कार्य आगे बढ़ाया तो एक नाम निकल कर सामने आया, गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी निवासी कमराय, भुलत्थ. दरअसल, गोपी की कोई रिश्तेदार थी, जिस के साथ बाबा ने रिद्धिसिद्धि का आशीर्वाद देने का झांसा दे कर उस का शारीरिक शोषण किया था.

गोपी को जब बाबा की इन काली करतूतों का पता चला तो उस ने बाबा प्रीतम को सबक सिखाने और अपनी रिश्तेदार का बदला लेने के लिए उस की हत्या करने की योजना बनाई थी.

इस योजना में गोपी ने अपने एक साथी ओंकार सिंह उर्फ कारा निवासी रहीमपुर, करतारपुर को रुपयों का लालच दे कर तैयार किया था. गोपी के कहने पर ही ओंकार सिंह ने अपने एक दोस्त राजविंदर सिंह उर्फ राजा निवासी रामगढ़, भुलत्थ को पैसों का लालच दे कर साथ मिला लिया था.

अब तक की जांच में पुलिस को बाबा की हत्या करने का कारण और हत्यारों का पता लग चुका था, पर लाख कोशिश करने के बाद भी पुलिस अभी तक यह पता लगाने में सफल नहीं हुई थी कि बाबा को गोली मार कर फरार होने के बाद ये तीनों लोग कहां भूमिगत हो गए थे.

बहरहाल, 10 सितंबर, 2017 को जालंधर देहात पुलिस को सूचना मिली कि भोगपुर के गांव बढ़चुई में करीब सवा साल पहले डेरा संचालक बाबा प्रीतम की हत्या करने वालों में से एक ओंकार सिंह उर्फ कारा विदेश जाने की फिराक में है. यह भी पता चला कि ओंकार सिंह जालंधर के एक ट्रैवल एजेंट के पास अपना पासपोर्ट और टिकट लेने के लिए आने वाला है.

एसपी द्वारा बनाई गई पुलिस टीम को जांच के दौरान ओंकार सिंह के खिलाफ पुख्ता सबूत और प्रमाण मिले थे. पुलिस ने ट्रैवेल एजेंट के औफिस के बाहर अपना जाल बिछा कर ओंकार सिंह उर्फ कारा को गिरफ्तार कर लिया. मौके पर ही उस के पास से मोटरसाइकिल व तेजधार के हथियार बरामद हुए.

गिरफ्तारी के बाद ओंकार सिंह को सीआईए स्टाफ ला कर पूछताछ की गई तो बिना किसी हीलहुज्जत के उस ने बाबा प्रीतम सिंह की हत्या करने का अपराध स्वीकार करते हुए खुलासा किया कि डेरा संचालक की हत्या उस ने अपने साथी राजविंदर सिंह उर्फ राजा के साथ मिल कर की थी.

उस ने यह भी बताया कि उन दोनों को बाबा की हत्या करने के लिए गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी ने 3 लाख रुपए की सुपारी दी थी. यह भी पता चला कि बाबा की हत्या करने की सुपारी देने वाला गोपी और बाबा की हत्या करने में ओंकार सिंह का साथ देने वाला राजविंदर सिंह उर्फ राजा दोनों ही विदेश जा चुके हैं.

उसी दिन ओंकार को अदालत में पेश कर के आगामी पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया गया. एसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर द्वारा उस से की गई विस्तृत पूछताछ में बाबा प्रीतम सिंह की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अंधविश्वास का मायाजाल फैला कर भोलेभाले लोगों की आस्था से खेलने वाले एक अय्याश बाबा की कहानी थी, जोकि हमारे सभ्य समाज के लिए एक भयानक कलंक के समान है.

देखा जाए तो बाबा प्रीतम सिंह शुरू से ही अय्याश किस्म का आदमी था. किसी कारण वश अपने किसी अपराध को छिपाने के लिए वह बिहार छोड़ कर फरार हो गया था और दिल्ली, यूपी के अलगअलग शहरों की खाक छानते हुए पंजाब पहुंचा था.

यहां पर कुछ समय किसी बाबा की सोहबत में रहने के बाद वह भी अपने आप को सिद्ध समझने लगा और बढ़चूही गांव के भोलेभाले लोगों को अपने विश्वास में ले कर उस ने गांव में ही डेरा बना लिया. उस डेरे का संचालक बन कर वह लोगों की आस्था और भावनाओं से खिलवाड़ करने लगा.

बाबा प्रीतम सिंह ने अपने बारे में प्रचारित कर रखा था कि उस के पास बाबा बालकनाथ की सिद्धी और कृपा है. अपने आशीर्वाद से वह बांझ औरतों को भी संतान सुख दे सकता है. उस की इन बातों से प्रभावित हो कर सैकड़ों निस्संतान स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए उस के डेरे पर आने लगीं, जिस में से अधिकांश के साथ बाबा ने आंतरिक संबंध बनाए थे.

अधिकांश गांववासियों का कहना था कि बाबा प्रीतम सिंह डेरे में महिलाओं के साथ गलत काम करता था. गोपी की कोई रिश्तेदार लड़की भी अपनी किसी समस्या के समाधान के लिए बाबा प्रीतम सिंह के मायाजाल में फंस गई थी, जिस का बाबा ने जी भर कर आर्थिक और शारीरिक शोषण किया था.

वह युवती बाबा के चंगुल में इतनी बुरी तरह फंसी थी कि अपने साथ हुए धोखे के बारे में किसी से खुल कर बात भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि बाबा ऐसी युवतियों को बदनाम कर देने की बात कह कर ब्लैकमेल भी किया करता था. फलस्वरूप वह युवती भी खामोशी से बाबा के शोषण का शिकार होती रही. उस ने यह बात किसी को नहीं बताई कि संतान होने का आशीर्वाद देने के नाम पर बाबा युवा औरतों के साथ क्याक्या खेल खेलता है.

लेकिन एक दिन किसी तरह यह बात गोपी को पता चल गई. सच्चाई जान कर उस का खून खौल उठा. आस्था के नाम पर भोलेभाले लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करने और उन का शोषण करने वाले बाबा प्रीतम सिंह को सबक सिखाने के लिए गोपी ने उस की हत्या करने की योजना बना ली. बाबा के काले कारनामे उस ने अपने दोस्त ओंकार को बताए तो रुपयों के बदले वह इस काम में उस की मदद करने को तैयार हो गया.

बाबा के डेरे पर हर समय लोगों का आनाजाना लगा रहता था, कोई न कोई सेवादार या कोई और 24 घंटे डेरे पर मौजूद रहता था. ऐसे में बाबा की हत्या करना किसी अकेले के वश की बात नहीं थी, सो ओंकार ने इस काम के लिए अपने दोस्त राजविंदर उर्फ राजा को पैसों का लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

ओंकार और राजविंदर ने गोपी की बात मान ली और बाबा की हत्या का सौदा 3 लाख में कर लिया. ओंकार व राजविंदर 26 जून, 2016 को दोपहर बाद करीब साढ़े 4 बजे डेरे में गए और बाबा की गोली मार कर हत्या कर दी. उस समय भी बाबा अपने कक्ष में किसी युवती के साथ था.

बाबा की हत्या के बाद दोनों ने वहां लगे सीसीटीवी कैमरे उखाड़ लिए थे. बाबा की हत्या के बाद उन्होंने वहां से लाए सीसीटीवी कैमरे और डीवीआर गोपी को दे दिए थे. संभवत: गोपी ने सीसीटीवी चैक करने के बाद ओंकार व राजविंदर को 3 लाख रुपए दे दिए. दोनों ने मौके पर ही डेढ़-डेढ़ लाख रुपए बांट लिए थे. इसी दौरान गोपी ने सीसीटीवी कैमरे और डीवीआर जला कर बाबा की हत्या करने के सारे सबूत नष्ट कर दिए थे.

इस वारदात के बाद अगले ही दिन 27 जून, 2016 को ओंकार व राजविंदर दोनों गोपी से मिले. गोपी ने उन्हें सलाह दी कि वे दोनों विदेश भाग जाएं. वैसे भी गोपी और राजा विदेश जाने वाले थे, उन का पासपोर्ट और वीजा भी तैयार था.

राजा इसी साल अप्रैल-मई में जर्मनी चला गया था और गुरप्रीत उर्फ गोपी वारदात के कुछ महीने बाद दुबई चला गया. इस के बाद दोनों वापस नहीं आए थे. फिलहाल थाना भोगपुर, जालंधर पुलिस दोनों आरोपियों की एलओसी जारी कर गिरफ्तारी के लिए कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के उन्हें भारत लाने की कोशिश में है, ताकि उन पर बाबा प्रीतम सिंह की हत्या का मुकदमा चलाया जा सके.

बाबा प्रीतम सिंह की हत्या के अलावा भी ओंकार व राजविंदर के खिलाफ भुलत्थ व करतारपुर इलाके में लूट व हत्या के केस दर्ज हैं. पत्रकार वार्ता में एसएसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बताया कि ओंकार सिंह के खिलाफ सितंबर, 2008 में थाना करतारपुर में हत्या का केस दर्ज हुआ था.

ओंकार सिंह ने अपने साथियों के साथ मिल कर मलकीत सन्नी की हत्या कर के उस की लाश जमीन में दबा दी थी. इस केस में ओंकार को 20 साल की सजा हुई थी. 6 साल सजा काटने पर सन 2014 में वह जमानत पर आया था, जबकि राजविंदर भुलत्थ में पैट्रोल पंप की लूट तथा करतारपुर में फाइनैंसर पर फायरिंग कर लूट आदि की वारदातों में नामजद है.

ओंकार सिंह उर्फ कारा से पूछताछ करने और पूरी पुलिस काररवाई के बाद उसे अदालत पर पेश कर के जिला जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

काले सोने का कालाधंधा

राजस्थान का बाड़मेर जिला रेतीले धोरों के लिए प्रसिद्ध है. करीब दोढाई दशक पहले कुछ कंपनियों

ने बाड़मेर सहित आसपास के कुछ अन्य जिलों में खोज की तो यहां के रेतीले धोरों के पीछे कच्चे तेल एवं गैस का अथाह भंडार मिला. इस के बाद केंद्र सरकार ने अलगअलग बेसिन बना कर राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों को तेल एवं प्राकृतिक गैस के दोहन की जिम्मेदारी सौंप दी.

करीब 2 दशक से राजस्थान के करीब 21 ब्लौकों में तेल एवं प्राकृतिक गैस की खोज एवं दोहन का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है. जानीमानी कंपनी केयर्न इंडिया की ओर से बाड़मेर के 10 ब्लौकों में पैट्रोलियम की खोज के लिए 700 से अधिक कुआें की खुदाई की गई.

इन में मंगला, मंगला ईओआर, सरस्वती, रागेश्वरी, रागेश्वरी दक्षिण, रागदीप, भाग्यम, एनआई, एनई एवं ऐश्वर्या ब्लौक शामिल हैं. केयर्न इंडिया ने जो कुएं खोदे, उन में से 380 कुओं में खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस के दोहन का काम चल रहा है. बाकी 58 कुएं ड्राई हो कर फेल हो गए, जबकि 270 कुओं में खोज का काम चल रहा है.

अगस्त, 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बाड़मेर में केयर्न इंडिया के एक आयलफील्ड का उद्घाटन किया था. केयर्न इंडिया के पास देश का सब से बड़ा खजाना बाड़मेर के मंगला ब्लौक में है. मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल (एमपीटी) में पिछले कई सालों से क्रूड आयल की बड़े पैमाने पर चोरी हो रही थी.

क्रूड आयल को काला सोना भी कहा जाता है. काले सोने के खजाने में चोरी की छोटीमोटी घटनाएं यदाकदा सामने आती रहती थीं. पुलिस इस पर काररवाई भी करती रहती थी. आरोपियों की गिरफ्तारी होती और अधिकांश मामलों में क्रूड आयल की बरामदगी हो जाती.

इसी साल 14 जुलाई को बाड़मेर जिले की थाना नगाणा पुलिस ने किसी की शिकायत पर तेल का एक टैंकर पकड़ा. वह टैंकर नरेंद्र रोडलाइंस का था. उस टैंकर की जांच की गई तो उस के 3 चैंबरों में प्रोड्यूस्ड वाटर (अशोधित पानी) और 2 चैंबरों में क्रूड आयल भरा था.

आगे की जांच में पता चला कि टैंकर चालक ने क्रूड आयल के साथ अशोधित पानी भर कर केवल उसी के कागजात तैयार कराए थे. यह टैंकर मंगला टर्मिनल में खाली होना था, लेकिन वह वहां से बाहर आ गया था. पुलिस ने इस मामले में टैंकर चालक सताराम और हेल्पर धर्माराम को गिरफ्तार कर लिया.

इस मामले में केयर्न इंडिया के लीगल अफसर गणपत सिंह चौहान की रिपोर्ट पर थाना नगाणा पुलिस ने 14 जुलाई को मामला दर्ज कर लिया. इस के बाद थानाप्रभारी केसर कंवर ने मामले की जांच शुरू की.

बाड़मेर के एसपी गगनदीप सिंगला को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने क्रूड आयल के चोरी के मामले को गंभीरता से लिया. उन्हें लगा कि यह मामला छोटामोटा नहीं, बल्कि इस में किसी माफिया का हाथ हो सकता है. मामले की जांच के लिए कई सीनियर अधिकारियों की टीम गठित की गई. टीम ने गिरफ्तार किए गए सताराम और धर्माराम से पूछताछ की. उन दोनों से की गई पूछताछ के बाद क्रूड आयल चोरी के मामले की जड़ें बहुत गहराई तक फैली मिलीं.

इस में केयर्न इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के अलावा राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के नेता भी संलिप्त पाए गए. पुलिस ने तेजी से काररवाई करते हुए 30 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया. उन्होंने बताया कि बाड़मेर से चोरी हुआ क्रूड आयल गुजरात और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों तक पहुंचता था.

एसपी गगनदीप सिंगला ने 21 जुलाई को प्रेस कौंन्फ्रैंस में बताया कि केयर्न इंडिया के उत्पादन केंद्रों से रोजाना 15 से 20 हजार लीटर क्रूड आयल की चोरी हो रही थी. मौजूदा रेट के हिसाब से रोजाना करीब 3 लाख रुपए का क्रूड आयल चोरी हो रहा था. इस तरह साल भर में करीब 11-12 करोड़ रुपए के क्रूड आयल की चोरी हो रही थी और यह सिलसिला कई सालों से चला आ रहा था.

लोगों का मानना है कि पुलिस ने 14 जुलाई को 2 लोगों की गिरफ्तारी के बाद पूरे मामले के खुलासे में जितना समय लगाया, वह संदेह के दायरे में हैं. इसी वजह से लोगों को लग रहा है कि पुलिस बडे़ लोगों को बचा सकती है. क्षेत्रीय विधायक एवं सांसद ने भी इस मामले में सवाल उठाए हैं. मामला जयपुर और दिल्ली तक पहुंच गया है.

इस के बाद राज्य सरकार ने इस मामले की जांच राजस्थान पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप (एसओजी) को सौंप दी है. एसओजी ने जांच भी शुरू कर दी है.

इस से पहले बाड़मेर पुलिस की करीब 2 सप्ताह तक चली जांच और गिरफ्तार आरोपियों से की गई पूछताछ मे ंजो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

केयर्न इंडिया के मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल के तहत गुढ़ामलानी, भाड़खां, बायतू सहित कई क्षेत्रों में तेल कुएं हैं. तेल के इन कुओं से क्रूड आयल के साथ अशोधित पानी भी निकलता है. क्रूड आयल को रिफायनरी में अलगअलग तापमान पर शोधित किया जाता है तो उस में से पैट्रोल, डीजल, नेप्था कैमिकल, लुब्रिकेटिंग आयल, तारकोल आदि बनाए जाते हैं.

कुओं से निकलने वाले अशोधित पानी में कई तरह के अपशिष्ट पदार्थ होते हैं. इस पानी को मशीनों से साफ कर के दूसरे कामों में उपयोग लायक बनाया जाता है. यह पानी जमीन के साथसाथ इंसानों और पशुओं के लिए भी हानिकारक होता है. इसलिए इस पानी को कहीं फेंका या बहाया नहीं जाता.

कुओं से निकलने वाला क्रूड आयल और अशोधित पानी टैंकरों द्वारा उत्पादन केंद्र से कंपनी के ही कई किलोमीटर क्षेत्र में फैले अलगअलग प्लांटों तक ले जाया जाता है. ये प्लांट मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल में लगे हैं.

क्रूड आयल और अशोधित पानी को उत्पादन केंद्र से मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनपल तक पहुंचाने का ठेका कंपनी ने विभिन्न कंपनियों को दे रखा है. ठेके पर लगे इन टैंकरों पर नजर रखने के लिए कंपनी ने जीपीएस लगा रखे हैं.

जांच में पता चला कि केयर्न इंडिया ने तेल उत्पादन केंद्रों पर तैनात कर्मचारियों की मिलीभगत से टैंकरों के मालिक, चालक व हेल्पर टैंकरों में अशोधित पानी के बजाय क्रूड आयल भरवा कर लाते थे और टैंकरों के ढक्कन के सील तोड़ कर आसपास की फैक्ट्रियों में बने भूमिगत टैंकों में खाली कर देते थे.

इस के बाद खाली टैंकरों में सादा पानी भर कर ये टैंकर मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल पहुंचते और वहां टैंकर का पानी खाली कर देते. केयर्न के तेल उत्पादन केंद्र एवं अनलोडिंग पौइंट पर तैनात कर्मचारियों को इस गोरधंधे का पता था.

पर टैंकर मालिक इन कर्मचारियों को अवैध रूप से मोटी रकम देते थे, इसलिए वे चुप रहते थे. जैसेजैसे जांच आगे बढ़ती गई, अधिकारी हैरान होते गए कि लोगों ने किस तरह चोरी के नएनए रास्ते निकाल लिए थे. जांच में सामने आया कि तेल उत्पादन केंद्र से जो टैंकर मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल के लिए जाते थे, वे केवल निश्चित स्थानों पर ही रोके जा सकते थे.

इस की मौनिटरिंग जीपीएस द्वारा की जाती थी. पर गोरखधंधे में लगे टैंकर मालिकों और फैक्ट्री मालिकों ने जीपीएस की मौनिटरिंग में लगे कर्मचारियों से मिल कर इस का भी तोड़ निकाल लिया था. उन्होंने अपनी गाडि़यों, स्कौपियो, स्विफ्ट डिजायर व दुपहिया वाहनों में जीपीएस की पिन का इंस्टालेशन करवा लिया था.

इस के बाद ये लोग टैंकर को रास्ते में धोरीमन्ना और मांगता नामक स्थान के बीच कुछ मिनट के लिए रोक लेते और वहीं पर टैंकर में लगे जीपीएस को पिन से निकाल कर स्कौर्पियो, स्विफ्ट डिजायर या बाइक से जोड़ देते.

इस के बाद टैंकर चालक वहां से तेज गति से टैंकर चला कर उस फैक्ट्री के भूमिगत टैंकों में क्रूड आयल को डाल आते थे, जहां उन की सेटिंग थी. वहीं टैंकर में पानी भर लिया जाता था.

इस के बाद टैंकरों पर जीपीएस को दोबारा इंस्टाल कर दिया जाता था. इस तरह जीपीएस को टैंकर से हटा कर अपनी कार पर लगाने में करीब 40 मिनट का समय मिल जाता था. इस 40 मिनट में ही रोजाना लाखों रुपए के क्रूड आयल को दूसरी फैक्ट्रियों में पहुंचा दिया जाता था.

जिन फैक्ट्रियों में क्रूड आयल पहुंचाया जाता था, वे बख्तरबंद किले से कम नहीं हैं. वहां बाहर से किसी को कुछ नजर नहीं आता. फैक्ट्री में बाहर से हर आनेजाने वाले पर कड़ी निगरानी रहती थी. फैक्ट्री के गेट किसी अपरिचित के लिए नहीं खुलते थे. क्रूड आयल से भरे टैंकर के प्रवेश करते ही फैक्ट्री का गेट बंद कर दिया जाता था.

टैंकर को तत्काल खाली करने और उस में पानी भरने के लिए इलैक्ट्रिक फाइटर का उपयोग किया जाता था. इस में केवल 30 मिनट ही लगते थे.

टैंकर से क्रूड आयल खाली करने के बाद भूमिगत टैंकों पर सैकड़ों पुराने टायरों का ढेर लगा दिया जाता था, ताकि किसी को पता न चल सके कि वहां भूमिगत टैंक बने हुए हैं.

मुकदमों में सौ से अधिक लोग नामजद किए गए हैं. गिरफ्तार किए गए लोगों में एक फैक्ट्री मालिक गौतम सिंह राजपुरोहित के अलावा ओमप्रकाश, आदूराम, उकाराम, पर्बत सिंह, हुकमाराम एवं सब से पहले 14 जुलाई को पकड़े गए सताराम व धर्माराम शामिल हैं.

अभियुक्तों से की गई पूछताछ में पता चला कि केयर्न इंडिया के तेल उत्पादन केंद्रों से टैंकरों में अशोधित पानी के नाम पर चोरीछिपे भर कर लाए जाने वाले क्रूड आयल को बाड़मेर- अहमदाबाद एनएच-15 पर खेत सिंह के प्याऊ के पास स्थित फैक्ट्री में अपलोड किया जाता था. इस फैक्ट्री के मालिक महाबार के रहने वाले गौतम सिंह एवं भूर सिंह राजपुरोहित हैं.

पुलिस ने इस फैक्ट्री पर दबिश दे कर पुराने टायरों के नीचे अंडरग्राउंड बनाए गए टैंकरों से करीब 3500 लीटर क्रूड आयल बरामद किया. इस कू्रड आयल का रासायनिक परीक्षण केयर्न इंडिया की प्रयोगशाला में कराया गया. इस से पता चला कि यह क्रूड आयल केयर्न इंडिया के आयल फील्ड का ही था. इस संबंध में सदर थाने में भादंवि की धारा 420, 120बी व 3/7 आवयश्यक वस्तु अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया.

जांच में पता चला कि भूर सिंह राजपुरोहित ने इस फैक्ट्री का राजस्थान के वाणिज्यिक कर विभाग में दिसंबर, 2012 में ग्रीनटेक एंटरप्राइजेज के नाम से रजिस्टे्रशन कराया था. इस फर्म ने 5 साल में केवल एक बार रिटर्न भरा. बाकी सालों में कोई माल खरीदा या बेचा नहीं गया. इस फैक्ट्री के एक संचालक का गुजरात में पालनपुर के पास तारकोल प्लांट भी बताया जाता है. वहां से होलसेल सप्लाई के लिए तारकोल बाड़मेर भी आता था.

पुलिस को इस के अलावा एक अन्य फैक्ट्री के बारे में पता चला. यह फैक्ट्री गादान रोड पर थी. पुलिस को यहां भी कंकरीट और टायरों के नीचे 8 भूमिगत टैंक मिले. इन टैंकों में 43 हजार लीटर क्रूड आयल मिला. पुलिस ने इस की जांच कराई तो यह केयर्न इंडिया की साइट सरस्वती-1, सरस्वती-2 एवं आरजीटी से उत्पादित क्रूड आयल निकला.

इसी फैक्ट्री से 150 लीटर अवैध केरोसिन और विशेष रासायनिक पाउडर के 60 कट्टे भी बरामद हुए. इस का उपयोग क्रूड आयल से डीजल बनाने में किया जाता है. पुलिस ने इस संबंध में सदर थाने में भादंवि की धारा 420, 120बी व 3/7 आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया.

जांच में पता चला कि फैक्ट्री मालिक गौतम सिंह राजपुरोहित व भूर सिंह राजपुरोहित टैंकर मालिकों से साढ़े 7 रुपए प्रति लीटर की दर से क्रूड आयल खरीदते थे. इसी क्रूड आयल को ये औसतन 25 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से आगे बेच देते थे. इस तरह वे साढ़े 17 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से मुनाफा कमाते थे.

टैंकर मालिक जो क्रूड आयल साढ़े 7 रुपए प्रति लीटर बेचते थे, उस में से साढ़े 3 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से तेल उत्पादन केंद्र पर तैनात केयर्न इंडिया कंपनी के कर्मचारियों को दिया जाता था. इस साढ़े 3 रुपए प्रति लीटर में से एक रुपया प्रति लीटर सर्वेयर को मिलता था और बाकी रकम हेल्पर एवं अन्य कर्मचारियों में बांट दी जाती थी. टैंकर मालिक एमपीटी पर तैनात जीपीएस के कर्मचारियों व सर्वेयर को भी कुछ हिस्सा देते थे.

पुलिस जांच में सामने आया है कि केयर्न इंडिया के आयल फील्ड के दक्षिणी इलाके में नरेंद्र रोडलाइंस एवं श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी के 44 टैंकर लगे हुए थे. प्रारंभिक जांच में इन में से 39 टैंकरों के जरिए क्रूड आयल की चोरी होने की बात सामने आई है. इस के बाद पुलिस ने जीपीएस के कार्डिनेट के माध्यम से 33 टैंकर जब्त कर लिए.

चोरी के क्रूड आयल को निजी फैक्ट्री मालिक टैंकरों में भर कर गुजरात, कोलकाता व अन्य जगहों पर भेजते थे. 22 जुलाई को पुलिस ने जालौर जिले में कू्रड आयल की चोरी के मामले में 3 फैक्ट्रियों पर दबिश दी. इन फैक्ट्रियों में 20 हजार लीटर क्रूड आयल बरामद हुआ. इन फैक्ट्रियों में बाड़मेर से केयर्न इंडिया का चोरी का क्रूड आयल भेजा जाता था.

बाड़मेर एवं जालौर पुलिस ने संयुक्त काररवाई कर जालौर जिले के सांचोर क्षेत्र में बीढ़ाणी स्थित एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में दबिश दे कर टैंकर में भरा 20 हजार लीटर क्रूड आयल जब्त किया. वहीं जालौर के ही सिवाड़ा में कुलदीप ट्रांसपोर्ट कंपनी के बख्तरबंद बाड़े में भूमिगत टैंक में क्रूड आयल मिला. यहां भी क्रूड से डीजल बनाने वाला सफेद रंग का रासायनिक पदार्थ मिला.

उसी दिन बाड़मेर पुलिस ने सदर थाने में दर्ज मामले में 2 लोगों पांचाराम विश्नोई व धौलाराम विश्नोई को गिरफ्तार किया. इन के टैंकर भी केयर्न इंडिया में लगे हुए थे. पुलिस ने इन से 2200 लीटर क्रूड आयल जब्त किया. इन्होंने पूछताछ में पुलिस को बताया कि वे टैंकरों में से आधा क्रूड आयल निकाल कर उस के स्थान पर पानी भर देते थे.

23 जुलाई, 2017 को पुलिस ने बाड़मेर जिले में ही भाड़खा की एक फैक्ट्री अपने कब्जे में ले ली. मामले में नए खुलासे होते रहे तो जिला कलेक्टर के निर्देश पर प्रशासनिक अधिकारियों ने भी जांच शुरू कर दी. वहीं पैट्रोलियम मंत्रालय के स्तर पर भी जांच शुरू कर दी गई.

पुलिस ने 24 जुलाई को केयर्न इंडिया के अधिकारियों को पत्र लिख कर कई तरह के रिकौर्ड मांगे. इतना ही नहीं, पुलिस ने 25 जुलाई को केयर्न इंडिया के प्रोडक्शन हैड मनोज अग्रवाल एवं औपरेशन हैड वाई.के. सिंह से पूछताछ की. दूसरी ओर केयर्न इंडिया ने काररवाई करते हुए 2 कंपनियों श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी व नरेंद्र रोडलाइंस के परिवहन ठेके निरस्त कर दिए. कुछ कंपनियों को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया.

कंपनी के कई स्थाई कर्मचारियों को बर्खास्त करने की काररवाई शुरू कर दी गई. पुलिस ने 26 जुलाई को इस मामले में कांग्रेस के बाड़मेर जिला आईटी सेल के सह कोऔर्डिनेटर मनोज गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया.

वह श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी में मैनेजर का काम करता था. पुलिस का कहना है कि मनोज गुर्जर चोरी का क्रूड आयल खरीदने वाली फैक्ट्री के मालिक गौतम सिंह राजपुरोहित से प्रति टैंकर 10 हजार रुपए की वसूली करता था.

केयर्न इंडिया में किराए के टैंकर उपलब्ध कराने का ठेका श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी एवं नरेंद्र रोडलाइंस ने ले रखा था. श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी बाड़मेर के सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी के चचेरे भाई लालचंद की है. हालांकि बाड़मेर के सांसद कर्नल सोनाराम कहते हैं कि लालचंद रिश्ते में उन के भाई जरूर हैं, लेकिन पिछले 8 सालों से उन दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई है. क्योंकि लालचंद ने सोनाराम की पत्नी व बेटे के खिलाफ मुकदमे दर्ज करवा रखे हैं. श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी के माध्यम से बाड़मेर रिफायनरी के लिए भूमि अवाप्ति से प्रभावित किसानों एवं कई अन्य ठेकेदारों के टैंकर किराए पर लगे हुए हैं.

कहा जाता है कि श्रीमोहनगढ़ कंस्ट्रक्शन कंपनी में एक भाजपा नेता के रिश्तेदार के टैंकर लगाने की बात पर ठेकेदार से विवाद हो गया था. इस विवाद ने तूल पकड़ लिया. इस के बाद नगाणा थाना पुलिस ने उस नेता की शिकायत पर 14 जुलाई को क्रूड आयल चोरी के मामले में एक टैंकर को पकड़ लिया. इसी शिकायत के बाद क्रूड आयल चोरी के गोरखधंधे का खुलासा हुआ.

इस पूरे मामले में मजेदार बात यह है कि केयर्न इंडिया में दोनों कंपनियों की ओर से जो टैंकर अनुबंध पर लगे थे, उन टैंकरों के मालिक को ठेकेदार हर महीने 50 हजार रुपए किराया देता था. तेल कुओं से कू्रड आयल चोरी कर एमपीटी से बाहर निजी फैक्ट्री तक पहुंचाने पर टैंकर मालिक को हर महीने डेढ़ से दो लाख रुपए तक कमीशन मिल जाता था. कई बार क्रूड आयल की मात्रा अधिक होने पर कमीशन की राशि भी बढ़ जाती थी.

यह बात भी सामने आई है कि क्रूड आयल की चोरी मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल की सीधी पाइप लाइन से नहीं होती थी. पाइप लाइन के जरिए क्रूड आयल सीधे एमपीटी पहुंचता है. इस की मात्रा व सप्लाई का डेटा औनलाइन रहता है. इसलिए वे वैलपैड से क्रूड आयल चुराते थे, क्योंकि वैलपैड का रिकौर्ड आफलाइन रहता है.

एक बात और पता चली है कि वैलपैड से क्रूड आयल टैंकर में भर कर एमपीटी में खाली करने का रूट करीब 60 किलोमीटर लंबा है. ऐसे में जीपीएस सिस्टम से दूरी 60 किलोमीटर दिखानी होती थी. गुढ़ामलानी क्षेत्र के वैलपैड से क्रूड आयल के टैंकर एनएच-15 से होते हुए मंगला प्रोसेसिंग टर्मिनल पहुंचते थे.

इस के लिए गोरखधंधे में लिप्त लोगों ने खेत सिंह की प्याऊ के पास निजी फैक्ट्री लगा रखी थी. वहीं भाड़खा क्षेत्र में आने वाले वैलपैड से चलने वाले टैंकरों का क्रूड खाली करने के लिए भीमड़ा के पास दूसरी फैक्ट्री लगाई गई, ताकि रूट के बीच में ही टैंकर खाली हो जाए और किसी बाहरी व्यक्ति को पता न चले.

तेल एवं प्राकृतिक गैस राष्ट्रीय संपत्ति है. इन के दोहन से सरकार को भी अरबों रुपए का राजस्व मिलता है. राजस्थान विधानसभा में पेश की गई एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सन 2015 में बाड़मेर जिले में प्रतिदिन एक लाख 74 हजार बैरल खनिज तेल का उत्पादन किया जा रहा था. इस से राज्य सरकार को सन 2014-15 के दौरान रायल्टी के रूप में औसतन 400 करोड़ रुपए प्रति माह एवं भारत सरकार को पैट्रोलियम सैस एवं एनसीसीडी के रूप में औसतन 416 करोड़ रुपए प्रति माह का राजस्व मिल रहा था.

बाड़मेर विधायक मेवाराम जैन ने इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. राजनीतिक दबाव के कारण केयर्न इंडिया के बड़े अफसरों व नेताओं के रिश्तेदारों के खिलाफ काररवाई नहीं की जा रही है. जैन ने बायतू विधायक कैलाश चौधरी की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं.

जैन का आरोप है कि बायतू विधायक जिस गाड़ी में घूमते हैं, वह रेवंतराम की है और उसी के टैंकर लगाने को ले कर विवाद हुआ था. इस के बाद बायतू विधायक की शिकायत पर ही क्रूड आयल से भरा टैंकर पकड़ा गया था और पूरे मामले का भंडाफोड़ हुआ था. विधायक श्री जैन का कहना है कि काल डिटेल्स की जांच कराई गई तो मामले में कई अहम खुलासे होंगे.

बाड़मेर विधायक जैन ने अप्रैल, 2015 में राजस्थान विधानसभा में केयर्न इंडिया की साइटों से क्रूड आयल चोरी का मामला उठाया था. इस पर सरकार ने जवाब दिया था कि एक अक्तूबर, 2014 से 28 फरवरी, 2015 तक बाड़मेर जिले के 4 थानों में 4 अलगअलग मुकदमे दर्ज किए गए हैं. इन में 49 हजार लीटर क्रूड आयल बरामद हुआ था. इन मामलों में 10 लोग मुलजिम थे.

दूसरी ओर बायतू विधायक कैलाश जैन की ओर से लगाए आरोपों को मिथ्या व निराधार बताते हुए कहा कि कांग्रेस के लोग इस में लिप्त हैं, इसलिए वे इस तरह के अनर्गल आरोप लगा रहे हैं. विधायक चौधरी ने इस मामले में दिल्ली जा कर केंद्रीय पैट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान से मुलाकात की और पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की.

बहरहाल, काले सोने की चोरी के इस गोरखधंधे में एक ओर जहां राजनीति चल रही है, वहीं एसओजी ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है. एसओजी इस मामले में कई बड़े लोगों पर हाथ डाल सकती है. लेकिन सरकार को क्रूड आयल की चोरी से अब तक जो करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हुई है, उस की भरपाई कभी नहीं होगी. दूसरी ओर इस गोरखधंधे के उजागर होने से केयर्न इंडिया जैसी नामी कंपनियों की सुरक्षा की पोल खुल गई है.

– कहानी पुलिस सूत्रों व अन्य दस्तावेजों पर आधारित

बच्चे की चाहत में

रोजाना की तरह 25 सितंबर, 2017 की सुबह भी मानव और शिवम की मां रजनी ने दोनों को तैयार कर के स्कूल भेजा था. स्कूल साढ़े 8 बजे शुरू होता था, इसलिए दोनों भाई 8 बज कर 10 मिनट पर घर से निकले थे. स्कूल से आ कर दोनों बच्चे खाना खाते थे और थोड़ी देर खेल कर सो जाते थे.

रजनी का पति अशोक अपना लंच बौक्स साथ ले जाता था. वह भवनों की मरम्मत के छोटेमोटे ठेके लिया करता था. सुबह का निकला अशोक दिन ढले ही घर लौटता था.

बच्चों के जाने के बाद रजनी ने घर के काम निपटाए, फिर बच्चों के लिए दोपहर का खाना तैयार किया. दोपहर को जब उन के आने का समय हो गया तो वह दरवाजे पर खड़ी हो कर उन का इंतजार करने लगी. जब बच्चे अपने आने के समय से भी आधा घंटा बाद तक नहीं आए तो रजनी को चिंता हुई.

परेशान हाल रजनी घर में ताला लगा कर बच्चों के स्कूल जा पहुंची. वहां मालूम पड़ा कि उस रोज मानव और शिवम स्कूल आए ही नहीं थे. यह सुन कर रजनी ठगी सी रह गई.

सुबह घर से स्कूल के लिए निकले बच्चे, वहां नहीं पहुंचे तो कहां चले गए. निस्संदेह यह चिंता की बात थी. उस का पति काम पर गया हुआ था, उस का फोन भी नहीं लग रहा था. रजनी अपने कुछ परिचितों के साथ बच्चों की तलाश के लिए निकली भी. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी बच्चों का कहीं कोई पता नहीं चला. आखिर थकहार कर उस ने थाने में उन के गुम होने की रिपोर्ट लिखा दी.

रजनी की शिकायत पर रोपड़ के थाना सिटी में बच्चों की गुमशुदगी की डीडीआर दर्ज कर ली गई. पुलिस ने बच्चों की तलाश को कोशिश भी की.

सफलता न मिलने पर अगले दिन इस मामले में भादंवि की धारा 363 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया गया. साथ ही यह सूचना दूसरे थानों को भी दे दी गई. पुलिस ने बच्चों के फोटो और विवरण सहित इश्तिहार छपवा कर रोपड़ व आसपास के इलाके की दीवारों पर चिपकवा दिए.

जिले के एसएसपी कैप्टन राजबचन सिंह संधू ने इस मामले को गंभीरता से ले कर इस की जांच डीएसपी (एच) मनवीर सिंह बाजवा को सौंप दी. उन्होंने 2 दिन तक गहनता से जांच की. लेकिन सफलता नहीं मिली. अंतत: एसएसपी ने यह केस रोपड़ पुलिस की सीआईए ब्रांच के हवाले कर दिया.

सीआईए के इंचार्ज अतुल सोनी ने केस की फाइल हाथ में आते ही उस की स्टडी कर के एक अलग स्ट्रेट्जी बनाई. इस के तहत उन्होंने बच्चों की मां रजनी से विस्तृत बातचीत कर उस की जिंदगी का एकएक पन्ना खंगालने का प्रयास किया.

35 वर्षीय रजनी ने अपनी जिंदगी में इतने ज्यादा उतार चढ़ाव देखे थे जिन की कल्पना करना भी मुश्किल था. 16 साल की उम्र में उस की शादी बलवंत नामक शख्स से हो गई थी, जिस से उसे एक लड़की जिया पैदा हुई. लेकिन कुछ दिन बाद ही उस के पति की मौत हो गई. इस के बाद उस की शादी रमेश से कर दी गई. शादी के कुछ समय बाद रमेश की भी मृत्यु हो गई.

रजनी की तीसरी शादी बलदेव नाम के आदमी से हुई. बलदेव से उसे 2 लड़के हुए मानव और शिवम. बाद में बलदेव से रजनी का तलाक हो गया. थोड़े दिन बाद रजनी मनोज के संपर्क में आई, जो उसे उस के बच्चों सहित अपने साथ तो रखे रहा, लेकिन यह लिव इन रिलेशन की तरह था. मनोज ने उस के साथ वैवाहिक बंधन में बंधने से साफ इनकार कर दिया था.

रजनी की चौथी शादी अशोक कुमार उर्फ पिंटू से हुई. वह इस के लिए हर लिहाज से बेहतर साबित हुआ. उस ने रजनी की बेटी जिया की शादी करवाने में पूरा सहयोग दिया. साथ ही उस ने मानव और शिवम को पढ़ानेलिखाने का जिम्मा भी उठाया. वह अकसर रजनी से कहा करता था कि उसे दिनरात कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े, वह उस के बच्चों को जिंदगी में कोई कमी नहीं आने देगा. यही नहीं वह उन्हें पढ़ालिखा कर समाज में सलीके से जीने लायक भी बनाएगा.

मानव और शिवम से अशोक प्यार भी करता था. 24 मार्च, 2017 को मानव 9 वर्ष का हुआ तो उस ने खूब अच्छी तरह से उस का जन्मदिन मनाया. इसी तरह 20 जुलाई को 6 साल का होने पर उस ने शिवम का भी खूब अच्छे से जन्मदिन मनाया.

अपने बच्चों को सौतेले बाप का भरपूर प्यार मिलते देख रजनी बहुत खुश थी. वैसे भी वह सोचा करती थी कि इन 2 लड़कों के भविष्य पर ही ध्यान केंद्रित करेगी और आगे एक भी बच्चे के बारे में नहीं सोचेगी. यही वजह थी कि पति से संबंध बनाने में वह काफी सावधानी बरतती थी. सावधानी के लिए वह नलबंदी करवाने की इच्छुक थी.

इस संबंध में जब उस ने अशोक से बात की, तो वह भड़क उठा, ‘‘बच्चे चाहे 6 और हो जाएं, लेकिन मैं तुम्हें यह सब नहीं करने दूंगा. मुझे अपने खुद के बच्चे भी तो चाहिए.’’

‘‘तो मानव और शिवम किस के बच्चे हैं, ये भी तो तुम्हारे ही हैं.’’ रजनी ने भी थोड़ा खफा होते हुए कह दिया.

‘‘देखो, मेरी भावना को समझने की कोशिश करो. मानव और शिवम को मैं बाप का प्यार दे रहा हूं तो इस का यह मतलब नहीं है कि वह मेरे बच्चे हो गए.’’ अशोक ने कहा.

‘‘क्यों, ऐसे तो कल को तुम मुझ से भी कह दोगे कि तुम मुझे पति का प्यार दे रहे हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी पत्नी हो गई.’’ रजनी भी उसी अंदाज में बोली.

‘‘देखो, फालतू बहकीबहकी बातें मत करो. मैं ने तुम से प्यार किया है और बाकायदा शादी कर के तुम्हें पत्नी बनाया है.’’

‘‘जब मुझे हमेशा के लिए अपनी बना लिया तो मेरे बच्चे भी तुम्हारे हो गए. उन्हें अपनाने में अब कैसी हिचक?’’

‘‘रजनी, मैं ने तुम्हारे बच्चों को अपनाया हुआ है और उन का भविष्य बनाने में पीछे हटने वाला भी नहीं हूं. लेकिन इन के साथसाथ मुझे अपना खुद का बच्चा भी तो चाहिए. भले ही एक हो. उस के बाद तुम क्या, मैं ही अपनी नसबंदी करवा लूंगा. इस के लिए तुम्हें मुझे सहयोग देना ही पड़ेगा.’’ अशोक ने आखिर की 2 बातों पर जोर देते हुए कहा.

इस सब के लिए रजनी तैयार नहीं हुई.

उस का कहना था कि आज की महंगाई के दौर में 2 बच्चों का खर्च उठाना ही मुश्किल है. फिर लड़की की शादी पर उठाया गया कर्ज भी अभी पूरी तरह नहीं उतरा है. ऐेसे में 1 और बच्चा आ जाने से उन्हें कई किस्म की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. लिहाजा वह किसी भी कीमत पर अशोक से सहमत नहीं हुई.

‘‘इस बात को ले कर हम दोनों में थोड़ी बहुत तकरार जरूर रहने लगी थी, लेकिन मैं अशोक को अच्छी तरह जानती हूं. वह मुझे नुकसान पहुंचाने जैसा कभी कुछ नहीं करेगा.’’ रजनी ने अपने बयान में इंसपेक्टर अतुल सोनी को बताया.

अतुल सोनी ने यह बात एसएसपी संधू को बताई. इस पर उन्होंने इस मामले की गहराई में जाने का प्रयास करते हुए इंसपेक्टर सोनी को दिशानिर्देश दिया, ‘मेरा शक अशोक पर ही जा रहा है. तुम जरा इस के बारे में पता लगाने की कोशिश करो, मुखबिरों का भी सहारा लो.’

सोनी ने ऐसा ही किया. पता चला कि 25 सितंबर की शाम जब अशोक काम से लौटा था तो दोनों बच्चों के गुम हो जाने की बात सुन कर वह भी पत्नी और अन्य लोगों के साथ बच्चों की तलाश करने निकला था. यहां तक कि रिपोर्ट लिखवाने वह थाने भी आया था.

लेकिन इस के अगले दिन एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद वह यह कहते हुए घर से चला गया था कि बच्चों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए वह एक तांत्रिक के पास जा रहा है.

उसी दिन थाना सिटी में एक अज्ञात फोन भी आया. फोन करने वाले ने बताया कि रजनी के बच्चों को उस के पूर्व प्रेमी मनोज ने अपहृत कर के मौत के घाट उतार दिया है. मनोज को थाना ला कर उस से इस संबंध में व्यापक पूछताछ की गई. लेकिन पूछताछ में वह निर्दोष पाया गया.

इंसपेक्टर अतुल सोनी ने एक पुलिस पार्टी अशोक के गांव बवैते जिला ऊना, हिमाचल प्रदेश भेज दी थी. यह पार्टी उस की तलाश में पूछताछ करते हुए एक तांत्रिक के यहां जा पहुंची. तांत्रिक ने पुलिस को बताया कि अशोक उस का जानकार है और वह उस के पास आया भी था.

उस ने पूछा था कि किसी ने उस की बीवी के पहले के 2 लड़कों का अपहरण कर के उन्हें मार डाला है. इस आरोप में कहीं वह तो नहीं फंस जाएगा? उस की इस बात से तांत्रिक इतना डर गया था कि उस ने अशोक को किसी तरह टरकाते हुए अपने यहां से भगा दिया था.

लेकिन घर वापस लौटने के बजाए अशोक भूमिगत हो गया था.

पुलिस ने उस की तलाश में छापेमारी करने के साथसाथ कई मुखबिर भी उस की खबर लाने के लिए लगा दिए थे. इन प्रयासों में पुलिस को सफलता भी मिली. 28 सितंबर को अशोक पुराना रोपड़ से पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस से पहला प्रश्न यही पूछा गया कि 25 सितंबर की सुबह वह कहां था?

उस ने बताया कि उस रोज वह सुबह साढ़े 8 बजे सनसिटी सोसाइटी जा कर अपने काम से लग गया था. उस के इस बयान की सत्यता की जांच करने के लिए जब सनसिटी के अधिकारियों से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस रोज वह साढ़े 8 बजे नहीं, बल्कि दिन के साढ़े 10 बजे सनसिटी पहुंचा था. इस से पहले वह हमेशा सुबह के साढ़े 8 बजे वहां पहुंच जाता था. 25 सितंबर को वह पहली बार 2 घंटे देरी से आया था.

अशोक संदेह के दायरे में आ गया था. उसे सीआईए केंद्र के इंटेरोगेशन सैल में ले जा कर उस से अभी थोड़ी ही पूछताछ हुई थी कि उस ने दोनों हाथ जोड़ कर अपना गुनाह स्वीकार कर लिया. फिर बताया कि उस ने ही रजनी के दोनों बच्चों को मार कर उन के शव पानी में फेंक दिए थे, जिन्हें वह बरामद करवा सकता है.

पुलिस ने अशोक को विधिवत गिरफ्तार कर के हवालात में बंद कर दिया

अगले रोज उसे इलाका मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के 4 दिनों के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. रिमांड की इस अवधि में सीआईए इंसपेक्टर अतुल सोनी के अलावा एसएसपी राजबचन सिंह सिंधू ने भी उस से व्यापक पूछताछ की. इस पूछताछ में अशोक ने जो कुछ बताया, उस से इस मामले की दर्दनाक दास्तान कुछ इस तरह सामने आई.

अशोक कुमार उर्फ पिंटू गांव बवैते में रहने वाले रामकिशन का बेटा था. गुजारे लायक पढ़लिख लेने के बाद एक रोज पिता से झगड़ा कर के वह रोपड़ चला आया.

उस वक्त उस की उम्र महज 13 वर्ष थी. 4 दिनों तक वह रोपड़ के रेलवे स्टेशन पर ही रुका रहा. फिर रोपड़ में किसी के यहां घरेलू नौकर बन गया. करीब 6-7 साल इसी तरह निकल गए. जिन के घर वह नौकरी करता था, उन का ठेकेदारी का काम था. नौकरी छोड़ कर अशोक भी स्वतंत्र रूप से यही काम करने लगा.

आगे के 5 सालों में उस ने ठेकेदारी का अपना अच्छा काम जमा लिया. रहने को उस ने बेला चौक एरिया में मकान ले लिया.

करीब 2 साल पहले की बात है. एक रोज अचानक उस की मुलाकात रजनी से हुई. उस ने एक दुकान पर कुछ सामान वगैरह खरीदा था, जिस की बिल अदायगी के लिए उस के पास पैसे कम पड़ रहे थे.

वह दुकानदार से बकाया पैसा अगले दिन दे जाने की बात कह रही थी. दूसरी ओर दुकानदार इस के लिए मना करते हुए उसे समझा रहा था कि वह फिलहाल उतना ही सामान ले जाए. जितने उस के पास पैसे हैं. वह थोड़ा रुखाई से भी पेश आ रहा था.

अशोक भी उसी दुकान पर कुछ खरीद रहा था. रजनी को देखते ही वह उस की ओर आकर्षित हो गया. उस ने उस के द्वारा खरीदे गए सामान का पूरा बिल चुकता कर दिया.

इस के बाद दोनों अकसर मिलने लगे. देखतेदेखते दोनों में प्यार हो गया. धीरेधीरे जिस्मानी ताल्लुक भी बन गए, जिस में रजनी ने पूरी तरह ऐहतियात बरती. एक रोज उस ने अशोक को अपनी पिछली जिंदगी के बारे में विस्तार से बता दिया. रजनी की दास्तान सुन कर अशोक को झटका लगा. उस की जिंदगी में पहले ही 4-4 मर्द आ चुके थे और वह 3 बच्चों की मां भी थी.

मगर अब तक वह उस के मोहपाश में बंध चुका था. उसे वह खूबसूरत भी लगती थी. आखिर उस ने मंदिर में रजनी से विवाह रचा लिया. उस के बच्चों का जिम्मा भी उस ने अपने ऊपर ले लिया.

विवाह के बाद अशोक को शारीरिक सुख देने में रजनी ने कोई कसर नहीं छोडी. मगर उसे गर्भ न ठहरे, इस की सावधानी भी वह रखे हुए थी. कुछ अरसा अशोक उस के दैहिक आकर्षण में इस कदर पागल रहा कि उस ने इस सब की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मगर साल भर बीतते ही उस के मन में अपने खुद के बच्चे की इच्छा जागृत होने लगी.

रजनी और कोई बच्चा नहीं चाहती थी. वह सोचती थी कि महंगाई के इस दौर में ज्यादा बच्चें की परवरिश करना मुश्किल हो जाता है. वह अपनी जगह एकदम सही थी. लेकिन अशोक भावुकता में बह कर इस जिद पर अड़ गया कि रजनी से वह अपना खुद का बच्चा भी हासिल कर के रहेगा.

इस मुद्दे पर दोनों में झगड़ा रहने लगा. पहले रजनी रात में बच्चों का सुला कर अशोक के पास चली आया करती थी. मगर अब वह ज्यादातर बच्चों के साथ, उन के बीच में सोने लगी. बहरहाल वक्त आगे सरकता गया. इस दौरान अशोक के मन में यह बात घर करने लगी कि रजनी को केवल अपने बच्चों से प्यार है.

जब तक उस के बच्चे जिंदा हैं, वह मन से उस की नहीं हो सकती. लिहाजा उस ने दोनों बच्चों को मारने की योजना बना ली.

इस योजना के तहत 25 सितंबर, 2017 की सुबह वह घर से पैदल निकला और सिविल हास्पीटल के पिछली तरफ रहने वाले अपने दोस्त सद्दाम हुसैन की स्प्लेंडर मोटरसाइकिल ले कर मानव और शिवम के स्कूल की ओर जाने वाले रास्ते पर रुक गया. थोड़ी देर में उसे दोनों बच्चे पैदल आते दिखाई दे गए.

अशोक ने उन्हें यह कह कर मोटरसाइकिल पर बिठा लिया कि आज वह उन्हें मछलियां दिखाने नदी पर ले जाएगा और बोटिंग भी करवाएगा, इसलिए स्कूल से छुट्टी.

बच्चे खुश हो गए. अशोक इन्हें मोटरसाइकिल पर बिठा कर रोपड़ के साथ लगते सतलुज नदी के एक किनारे पर ले गया. नदी के उत्तर दिशा की तरफ बने बांध के पास ले जा कर उस ने दोनों बच्चों को पानी में फेंक दिया. बाद में उस ने उस जगह से करीब 100 कदम की दूरी पर जंगल में बच्चों के स्कूल बैग छिपा दिए.

पूछताछ के दौरान अशोक की निशानदेही पर पुलिस ने दोनों बच्चों के शवों के अलावा उन के स्कूल बैग भी बरामद कर लिए. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर पुलिस ने अशोक को फिर से अदालत पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भिजवा दिया. फिलहाल, वह पटियाला की केंद्रीय जेल में बंद था.?

   — कथा पुलिस सूत्रो पर आधारित

32 सालों बाद पकड़ा गया आफताब उर्फ नाटे

अपराध के सारे दरवाजों की चाबियां भले ही अपराधियों के पास हों, लेकिन मुख्य चाबी पुलिस के पास होती है, जिस से पुलिस उन तक पहुंच ही जाती है. कुछ ऐसा ही 32 सालों से फरार चल रहे हत्या के शातिर अपराधी मौलाना करीम उर्फ आफताब उर्फ नाटे के साथ भी हुआ. इस अपराधी ने कानून के रखवालों को न जाने किसकिस घाट का पानी पिलाया था.

लेकिन क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने फिल्मी स्टाइल में उसे कानून के शिकंजे में जकड़ ही लिया. दरअसल, हाईकोर्ट में दायर एक याचिका के आधार पर हाईकोर्ट ने पिछले महीने इलाहाबाद कोतवाली पुलिस को दायराशाह अजमल के रहने वाले हत्या के मामले में सजायाफ्ता फरार आरोपी आफताब उर्फ नाटे को अदालत में पेश करने के आदेश दिए थे.

नाटे को पकड़ने के लिए कोतवाली पुलिस ने काफी प्रयास किए थे, लेकिन उस तक पहुंच नहीं सकी. पुलिस ने नाटे के घर वालों से उस के बारे में पूछा तो पता चला कि पत्नी और बेटे पर भी तेजाब फेंक कर उस ने उन की हत्या करने की कोशिश की थी. इस घटना का भी मुकदमा दर्ज था. इस के बाद से वह घर से भागा तो लौट कर नहीं आया.

सीजेएम और जिला अदालत से भी उस की गिरफ्तारी के आदेश जारी हुए थे. पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पाई तो उसे वांटेड और भगोड़ा घोषित कर दिया गया था. 60 साल से अधिक उम्र होने की वजह से पुलिस को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि नाटे पकड़ा भी जा सकता है. इस के बावजूद पुलिस ने उस का पीछा नहीं छोड़ा था.

पुलिस को लगता था कि वह किसी अन्य शहर में नाम बदल कर रह रहा होगा. इतनी अधिक उम्र होने और 32 साल बीत जाने के बाद उस की शक्लसूरत भी बदल गई होगी, जिस से उसे पहचानना भी आसान नहीं होगा.

हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया था, पुलिस ने उस के बारे में अपना पक्ष रखा था, लेकिन अदालत ने सुनवाई के लिए 20 अगस्त, 2017 की तारीख दे दी थी. हाईकोर्ट हर हाल में आफताब उर्फ नाटे अदालत में पेश कराना चाहता था, जबकि पुलिस इस मामले से पीछा छुड़ाने के लिए अपना पक्ष रखने के लिए मजबूती से तैयारी कर रही थी.

हाईकोर्ट के आदेश पर ही एडीजी एस.वी. सावंत ने 27 जुलाई, 2017 को एसपी सिद्धार्थ शंकर मीणा को 12 हजार के ईनामी फरार चल रहे हत्यारोपी आफताब उर्फ नाटे को गिरफ्तार करने के आदेश दिए तो सिद्धार्थ शंकर मीणा थोड़ा चिंता में पड़ गए कि 32 साल से फरार चल रहे शातिर अपराधी नाटे को कैसे गिरफ्तार किया जाए?

वह सजायाफ्ता मुजरिम था और उसे आजीवन कारावास की सजा हो चुकी थी. जमानत पर बाहर आने के बाद सन 1985 से कानून की आंखों में धूल झोंक कर वह फरार चल रहा था. पुलिस ने उस के बारे में बहुत पता किया था, लेकिन उस के बारे में पता नहीं कर पाई थी.

एडीजी के आदेश के बाद सिद्धार्थ शंकर मीणा ने नाटे की गिरफ्तारी के लिए एक टीम गठित की, जिस में क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह, इंटेलीजेंस विंग के प्रभारी नागेश सिंह, एसआई बृजेश कुमार सिंह, ओमशंकर शुक्ल, स्वाट टीम प्रभारी शत्रुघ्न मिश्र, सिपाही हशमत अली, अजय कुमार, संजय कुमार सिंह, शशिप्रकाश, बालगोविंद, रिजवान, आशीष मिश्र, रविंद्र सिंह और सुनील यादव को शामिल किया.

इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह अपनी अनोखी कार्यशैली के लिए विभाग में मशहूर हैं, इसीलिए एसपी साहब ने उन्हें टीम में शामिल किया था. उन्होंने उन्हीं के कंधों पर सजायाफ्ता फरार चल रहे शातिर अपराधी आफताब उर्फ नाटे को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की जिम्मेदारी डाल दी थी.

26 एनकाउंटर कर चुके और तमिल फिल्म में अभिनय कर चुके इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने अपने हिसाब से नाटे के बारे में पता लगाना शुरू किया. उन्होंने अपने कुछ विश्वस्त साथियों की मदद से उस की तलाश तेजी से शुरू कर दी. उन की मेहनत रंग लाई और उन्हें पता चला कि नाटे बड़े ही गुपचुप तरीके से अपने घर वालों के संपर्क में है.

लेकिन जब उन्होंने घर वालों से पूछताछ की तो सब साफ मुकर गए कि उस के बारे में उन्हें किसी भी प्रकार की जानकारी है. उन का कहना था कि उन का उस से किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं है, क्योंकि वह उन पर तेजाब फेंक कर भागा था. वह जब से गया है, लौट कर नहीं आया है.

घर वाले भले ही आफताब उर्फ नाटे से संबंध होने से मना कर रहे थे, लेकिन अनिरुद्ध सिंह को उन की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था. उन्होंने नाटे की पत्नी सलमा बेगम का मोबाइल नंबर पता करा कर उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. आखिर उन्हें पता चल गया कि 11 अगस्त, 2017 को आफताब उर्फ नाटे इलाहाबाद से लगे कौशांबी में एक प्रोग्राम में आ रहा है.

फिर क्या था, बड़ी ही गोपनीयता से वह कौशांबी पहुंच गए और उस जगह को चारों ओर से घरे लिया, जहां नाटे को कार्यक्रम करना था. लेकिन नाटे उन्हें चकमा दे कर निकल गया.

लेकिन अनिरुद्ध सिंह हार मानने वालों में नहीं थे. उन्होंने नाटे के घर वालों के फोन नंबर सर्विलांस पर लगवा ही रखे थे.

इस से उन्हें नाटे के एक पुराने साथी नवाब के बारे में पता चला. नवाब उन्हें काम का आदमी लगा. वह उस के सहारे नाटे तक पहुंच सकते थे, क्योंकि नवाब उस के हर काम का राजदार था. उस के साथ किए गए गुनाहों में भी वह साझीदार था.

अनिरुद्ध सिंह ने नवाब को पकड़ा. पहले तो वह नाटक कहता रहा कि वह नाटे को नहीं जानता, लेकिन जब उन्होंने नाटे के साथ मिल कर किए गए उस के गुनाहों का पिटारा खोला तो उस के पास सच्चाई उगल देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. उस ने नाटे के बारे में सब कुछ बता दिया.

फरार चल रहा आफताब उर्फ नाटे कोतवाली इलाके में किराए पर कमरा ले कर अकेला ही रहता था. उसे लोग मौलाना करीम के नाम से जानते थे. उस ने दर्जन भर शागिर्द बना रखे थे, जो उस के लिए ग्राहक ढूंढ कर लाते थे. उसे लोग भूतप्रेत के डाक्टर के रूप में जानते थे. वह गंडाताबीज देने, भूतप्रेत भगाने के नाम पर लोगों को ठगता था.

जबकि यह कोई नहीं जानता था कि यह वही आफताब उर्फ नाटे है, जिस ने 32 साल पहले इसी थाने के नखासकोना के रहने वाले मोहम्मद अजमत की गोली मार कर हत्या की थी. इस अपराध में उसे आजीवन कारावास की सजा हुई थी. हाईकोर्ट में अपील करने के बाद उसे जमानत मिली तो वह फरार हो गया था.

इस बार अनिरुद्ध सिंह शातिर अपराधी आफताब उर्फ नाटे को भागने का कोई मौका नहीं देना चाहते थे. उन्होंने सिपाही हशमत अली, अजय कुमार, संजय कुमार सिंह, शशिप्रकाश, बालगोविंद, रिजवान, आशीष मिश्र, रविंद्र सिंह और सुनील यादव की एक टीम बना कर नाटे की गिरफ्तारी की पूरी योजना बना डाली.

योजना के अनुसार, अनिरुद्ध सिंह को मरीज बन कर मौलाना करीम उर्फ आफताब उर्फ नाटे के पास जाना था. उन के वहां पहुंचते ही टीम के सिपाहियों ने आम कपड़ों में उस के कमरे को चारों ओर से घेर लेना था, ताकि वह किसी भी तरह भाग न सके.

योजना के अनुसार, 24 अगस्त की सुबह अनिरुद्ध सिंह मरीज बन कर मौलाना करीम उर्फ आफताब उर्फ नाटे के कमरे पर पहुंचे. उन के साथ आम कपड़ों में इंटेलीजेंस विंग के प्रभारी नागेश सिंह भी आए थे. अनिरुद्ध सिंह पागलों जैसी हरकत कर रहे थे, ताकि नाटे को उन पर शक न हो. पहले तो वह उन की झाड़फूंक के लिए तैयार ही नहीं हुआ, लेकिन काफी सिफारिश के बाद किसी तरह तैयार हो गया.

दूसरी ओर उन के साथ आए सिपाहियों ने कमरे को चारों ओर से घेर लिया था. उसी बीच उन्होंने साथ लाए नवाब से कन्फर्म कर लिया कि यही आफताब उर्फ नाटे है. अनिरुद्ध सिंह पागलों की ऐक्टिंग करते हुए आफताब से बातें करने लगे तो वह उन के चेहरे पर मोरपंख फेरते हुए मंत्र पढ़ कर फूंक मारने लगा.

इस के बाद काले कपड़े में लिपटा एक ताबीज उन के हाथों पर रखा. तभी उन के हावभाव से शातिर दिमाग आफताब उर्फ नाटे को लगा कि मामला कुछ गड़बड़ है. उस ने अनिरुद्ध से गाड़ी में बैठने को कहा तो उन्होंने गाड़ी में बैठने से मना कर दिया. इस से नाटे को लगा कि यह तो पुलिस वाला है.

अब नाटे किसी तरह वहां से निकलने की कोशिश करने लगा. वह निकल पाता, उस के पहले ही अनिरुद्ध सिंह ने उसे पकड़ कर कहा, ‘‘मियां, अब तुम्हारा खेल खत्म हो चुका है. आफताब उर्फ नाटै उर्फ मौलाना करीम, तुम ने पुलिस को बहुत छकाया है, अब तुम जेल में चल कर वहीं अपनी यह नौटंकी करना.’’

‘‘साहब, आप को कोई गलतफहमी हुई है. मैं आफताब नहीं, मौलाना करीम हूं. सालों से भूतप्रेत से परेशान लोगों की सेवा कर रहा हूं. पता नहीं, आप किस आफताब को ढूंढ रहे हैं.’’ मौलाना करीम ने कहा.

लेकिन अनिरुद्ध सिंह ने आफताब की बात पर ध्यान दिए बगैर साथ आए पुलिस वालों को इशारा किया तो उन्होंने नवाब को ला कर उस के सामने खड़ा कर दिया.

नवाब को देखते ही मौलाना करीम का पसीना छूट गया. नवाब की ओर इशारा करते हुए अनिरुद्ध सिंह ने कहा, ‘‘अब क्या कहोगे मौलाना करीम, इसे तो पहचानते ही हो, यह तुम्हारा साथी नवाब ही है न?’’

मरता क्या न करता. बचने का कोई रास्ता न देख मौलाना करीम ने असलियत स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘हां, मैं ही आफताब उर्फ नाटे हूं, जो जमानत मिलने के बाद 32 सालों से फरार चल रहा है. आखिर आप ने मुझे पकड़ ही लिया.’’

32 सालों से फरार चल रहे शातिर अपराधी आफताब उर्फ नाटे उर्फ मौलाना करीम के पकड़े जाने से पुलिस विभाग खुश हो उठा था, क्योंकि एक तरह से उस की इज्जत बच गई थी. विस्तार से पूछताछ के बाद आफताब उर्फ नाटे को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 32 सालों की फरारी के दौरान आफताब उर्फ नाटे कहां और किस तरह रहा, इस बीच जुर्म की उस ने जो कहानियां रचीं, वह कुछ इस तरह सामने आईं—

करीब 62 साल का आफताब उर्फ नाटे उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद की कोतवाली के मोहल्ला दायराशाह अजमल का रहने वाला था. उन दिनों उस का भरापूरा परिवार था. तब उस की उम्र 30 साल रही होगी. वह इधरउधर काम कर के परिवार को पाल रहा था. आफताब से बड़ा एक भाई था, जिस की पहले ही हत्या हो गई थी. उस की पत्नी और बच्चे भी उसी के साथ रहते थे.

आफताब उर्फ नाटे जिस मोहल्ले में रहता था, उसी मोहल्ले में उस के घर से थोड़ी दूरी पर उस की बहन का भी परिवार रहता था. उस की भी जिम्मेदारी उसी पर थी. वह जब भी घर से निकलता, बहन का हालचाल लेने उस के घर जरूर जाता. उस की एक भांजी थी आयशा, जिसे वह बहुत मानता था.

आयशा बहुत खूबसूरत थी. लड़के उस पर जान छिड़कते थे. उन्हीं में एक नखासकोना का रहने वाला मोहम्मद अजमत भी था. वह आयशा से प्यार करता था. आयशा भी उसे चाहती थी. उन के प्यार की चर्चा भी मोहल्ले में होने लगी थी. जब यह खबर आफताब तक पहुंची तो उसे बहुत गुस्सा आया.

उस ने यह बात आयशा से पूछी तो उस ने डर की वजह से सच्चाई बताने के बजाय अजमत पर दोष मढ़ते हुए कहा कि वह जब भी घर से निकलती है, वह उसे छेड़ता है. आयशा की इस बात ने आग में घी का काम किया. जवान भांजी की इज्जत को ले कर आफताब गुस्से में पागल हो उठा.

आफताब ने आव देखा न ताव, कहीं से पिस्टल की व्यवस्था की और अजमत के घर पहुंच गया. उस ने अजमत को आवाज दी तो वह बाहर आ गया. आफताब को वह पहचानता था. वह कुछ कहता, उस के पहले ही उसे मौका दिए बगैर आफताब उर्फ नाटे ने उस पर गोली चला दी. गोली सीने में लगी, जिस से अजमत की तुरंत मौत हो गई. आफताब तुरंत भाग निकला.

दिनदहाड़े हुई इस हत्या से मोहल्ले में सनसनी फैल गई. पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी और आफताब के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी. वह ज्यादा दिनों तक पुलिस से बच नहीं पाया. उस ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया.

पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. उस पर मुकदमा चला. अदालत ने उसे दोषी मानते हुए सन 1983 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई. उस ने इस सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, जहां से 2 सालों बाद सन 1985 में उसे जमानत मिल गई.

जेल से बाहर आते ही वह फरार हो गया. फरार होने के बाद शातिर आफताब उर्फ नाटे नाम बदल कर मौलाना करीम बन गया. फरारी के दौरान वह मुंबई, सूरत, अजमेर और फर्रुखाबाद जैसे शहरों की मसजिदों और दरगाहों में छिपता रहा.

वह दरगाहों पर आने वाले श्रद्धालुओं से खुद को तांत्रिक बताता था. ऐसा कह कर वह भूतप्रेत भगाने और गंडाताबीज बना कर देने के नाम  पर पैसे ऐंठता था.

कातिल से मौलाना बना पाखंडी करीम सब से ज्यादा ठगी का शिकार उन मुसलिम महिलाओं को बनाता था, जो पति द्वारा छोड़ी हुई होती थीं. उन्हें भावनाओं के भंवरजाल में फांस कर तंत्रमंत्र के नाम पर उन से मोटी रकम वसूलता था. ग्राहकों को फंसाने के लिए उस ने शागिर्द बना रखे थे. होने वाली कमाई से वह उन्हें भी हिस्सा देता था.

मजे की बात यह थी कि जिनजिन शहरों में वह रहा, उस ने वहांवहां शागिर्द बना लिए थे. यही शागिर्द उस के सिद्ध मौलाना होने का प्रचार कर पीडि़त महिलाओं को उस तक ले आते थे. यही नहीं, झांसा दे कर उस ने तलाक पीडि़त 39 मुसलिम महिलाओं का हलाला के नाम पर यौनशोषण भी किया था.

कई लोग हलाला के नाम पर महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाते हुए उन के साथ एक रात गुजारते हैं. इसी का फायदा आफताब उर्फ नाटे उर्फ मौलाना करीम ने भी उठाया था. इस तरह उस ने लोगों को धोखा तो दिया ही, साथ ही लाखों रुपए भी ऐंठे. इस के लिए उस ने अपना एक नेटवर्क तैयार कर रखा था.

इस से भी मजेदार बात यह थी कि शहर से भागते समय उस ने किसी वजह से अपनी पत्नी और बेटे पर भी तेजाब फेंक दिया था. संयोग से उन पर तेजाब ठीक से नहीं पड़ा था. लेकिन बाद में उस ने शागिर्दों को घर भेज कर अपने किए की माफी मांग ली थी और खर्चे के लिए पैसे भी भिजवाने लगा था. पत्नी ने उसे माफ कर के अपना लिया था. यह बात सिर्फ आफताब, उस के शागिर्द और पत्नी जानती थी.

बात आफताब उर्फ नाटे की फरारी के 4 सालों बाद की है. फरार होने के बाद आफताब सीधे मुंबई गया. वहां कुछ दिनों रह कर वह सूरत चला गया. वहां की दरगाहों पर कई सालों तक रह कर वह सन 1989 में इलाहाबाद आ गया. वह घर जा नहीं सकता था, क्योंकि पुलिस उसे कभी भी गिरफ्तार कर सकती थी, इसलिए घर जाने के बजाय वह इलाहाबाद के कुख्यात अपराधी चांदबाबा से जा मिला.

चांदबाबा गुंडा तो था ही, उस का चूड़ी और रंगों का बड़ा कारोबार था. यह कारोबार तो मात्र दिखावा था, असली धंधा तो गुंडई थी. आफताब चांदबाबा के साथ जुड़ गया, क्योंकि उसे पता था कि जब तक उस के सिर पर चांदबाबा का हाथ रहेगा, उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

चांदबाबा ने अपराध और कारोबार से अकूत संपत्ति अर्जित की थी. जुर्म की सीढि़यों के सहारे वह सत्ता के गलियारों में पहुंचने का ख्वाब देखने लगा था. सन 1989 में इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा से माफिया डौन अतीक अहमद ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो चांदबाबा उन्हें चुनौती देते हुए उन के सामने उतर आया.

चुनाव में अतीक अहमद जीते. इस चुनाव के कुछ महीने बाद चांदबाबा की गोली मार कर हत्या कर दी गई. आफताब उर्फ नाटे चांदबाबा के चूड़ी और रंगों के कारोबार में हिस्सेदार था. उस ने भी चांदबाबा के चुनाव में अहम भूमिका निभाई थी. चांदबाबा की हत्या के बाद आफताब को लगा कि अब इलाहाबाद में रहना ठीक नहीं है, इसलिए वह भाग निकला.

हाईकोर्ट ने अभियुक्त आफताब उर्फ नाटे को कोर्ट में पेश करने के लिए आईजी इलाहाबाद को कई बार नोटिस भेजी. आईजी ने उसे पकड़वाने के लिए 12 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित किया, लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका. पुलिस जब भी आफताब के घर वालों से पूछताछ करती, वे कह देते कि उन्हें उस के बारे में कोई जानकारी नहीं है, उस से उन का कोई संबंध नहीं है.

इस बार हाईकोर्ट ने आफताब को कोर्ट में पेश करने की 20 अगस्त, 2017 की तारीख तय कर दी. हाईकोर्ट का नोटिस मिलने के बाद पुलिस को लगा कि अब इज्जत का सवाल बन गया है. इज्जत बचाने के लिए पुलिस उस की तलाश में जीजान से जुट गई. उसी का नतीजा था कि आखिर 32 सालों बाद पुलिस ने आफताब उर्फ नाटे को पकड़ ही लिया.

—कथा में परवीन बदला नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दो भाइयों की करतूत

दुनिया में इंसान को सब कुछ मिल जाता है, लेकिन एक ही मां से पैदा हुए भाईबहन कभी नहीं मिलते. भाईबहन का प्यार दुनिया के लिए एक मिसाल है. भाई अपनी बहन को इतना प्यार करता है कि उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है. बहन भी शादी के बाद ससुराल चली जाती है तो हमेशा अपने भाई की खुशी की कामना करती रहती है.

लेकिन आज की इस रंग बदलती दुनिया में मुंबई के रहने वाले 2 भाइयों रविंद्र वेर्लेकर और मोहनदास वेर्लेकर ने अपनी सगी बहन सुनीता वेर्लेकर को 20 सालों तक एक अंधेरी कोठरी में कैद कर के रखा. बिना किसी कसूर के उस ने उस कोठरी में जो जिंदगी गुजारी, उसे जान कर हर किसी का मन द्रवित हो उठेगा.

11 जुलाई, 2017 की बात है. हमेशा की तरह उस दिन भी सवीना मार्टिंस अपनी संस्था के औफिस में समय से पहुंच गई थीं. वह अपने कंप्यूटर पर आए ईमेल मैसेज चैक करने लगीं. मैसेज को पढ़तेपढ़ते उन की नजर एक निवेदन पर आ कर रुक गई. वह निवेदन बहुत ही गंभीर और अत्यंत मार्मिक था. किसी अजनबी व्यक्ति द्वारा भेजे गए उस मैसेज को पढ़ कर सवीना मार्टिंस सन्न रह गईं. उन्हें उस संदेश पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसे भी लोग हैं, जो इंसान और इंसानियत के नाम पर कलंक है.

सवीना मार्टिंस गोवा के पणजी शहर की एक जानीमानी समाजसेवी संस्था की अध्यक्ष हैं. उन की संस्था नारी उत्पीड़न रोकने का काम करती है. औनलाइन भेजे गए उस मार्मिक संदेश में उस व्यक्ति ने लिखा था कि ‘पणजी बांदोली गांव सुपर मार्केट के आगे एक बंगले के पीछे बनी कोठरी में सुनीता वेर्लेकर नामक महिला कई सालों से कैद है. मेरी आप से विनती है कि आप उस की मदद कर के उसे उस कैद से मुक्त कराएं.’

सवीना मार्टिंस ने उस ईमेल मैसेज का प्रिंटआउट निकाल कर अपने पास रख लिया. अपने सहयोगियों के साथ बांदोली गांव जा कर उस मैसेज की सच्चाई का पता लगाया. इस के बाद उन्होंने पणजी महिला पुलिस थाने जा कर वहां की महिला थानाप्रभारी रीमा नाइक से मुलाकात कर उन्हें पूरी बात बता कर ईमेल मैसेज का प्रिंट उन के सामने रख दिया. सवीना ने सुनीता वेर्लेकर को बंदी बना कर रखने वाले उस के दोनों भाइयों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा कर उसे कैद से मुक्त कराने की मांग की.

थानाप्रभारी रीमा नाइक ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इस की जानकारी अपने सीनियर अधिकारियों को दे दी. अधिकारियों का निर्देश मिलते ही वह पुलिस टीम के साथ तुरंत घटनास्थल की तरफ रवाना हो गईं. जिस समय पुलिस टीम बताए गए पते पर पहुंची, उस से पहले ही समाजसेवी संस्था के सदस्य, डाक्टर, प्रैस वाले और एंबुलैंस वहां पहुंच चुकी थी.

पुलिस टीम और संस्था के सदस्यों को पहले तो सुनीता वेर्लेकर के दोनों भाइयों और भाभियों ने गुमराह करने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि सुनीता कई साल पहले पागल हो कर कहीं चली गई थी. पर पुलिस और संस्था के सदस्यों को उन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने उन के मकान की तलाशी ली तो एक मकान में ताला बंद मिला.

उस मकान से तेज बदबू आ रही थी. थानाप्रभारी को शक हुआ कि ये लोग झूठ बोल रहे हैं. उन्होंने उस मकान का ताला खोलने को कहा तो वे आनाकानी करने लगे. पुलिस ने उन्हें डांटा तो उन्होंने मकान का ताला खोल दिया.

मकान का गेट खुलते ही अंदर से दुर्गंध का ऐसा झोंका आया, जिस से वहां लोगों का खड़े रहना दूभर हो गया. सभी को अपनीअपनी नाक पर रूमाल रखना पड़ा. मकान के एक कमरे में पुलिसकर्मियों ने झांक कर देखा तो उस में एक महिला बैठी मिली. उस से बाहर आने को कहा गया तो वह चारपाई से उठ कर एक कोने में चली गई. वह सुनीता वेर्लेकर थी.

संस्था के सदस्य और पुलिस नाक पर रूमाल रख कर कमरे के अंदर गई. अंदर का दृश्य देख कर सभी स्तब्ध रह गए. कमरे के एक कोने में डरीसहमी सुनीता वेर्लेकर दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपाए बैठी थी. उस के बदन पर कपड़े भी नाममात्र के थे. यही वजह थी कि शरम की वजह से वह बाहर आने को तैयार नहीं थी. संस्था के सदस्यों ने उसे कपड़े ला कर दिए तो वह उन्हें पहन कर कोठरी से बाहर आई.

पिछले 20 सालों से एक कमरे में कैद सुनीता वेर्लेकर ने बाहर आ कर उजाला देखा तो वह अपने आप को संभाल नहीं पाई. खुशी से उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. वह बेहोश जैसी हो गई. संस्था के सदस्यों ने उसे संभाला और पीने का पानी दिया.

घटनास्थल पर मौजूद डाक्टरों ने सुनीता का सरसरी तौर पर निरीक्षण किया और उसे एंबुलैंस में लिटा दिया. डाक्टर उसे पहले गोवा के आयुर्वेदिक मैडिकल अस्पताल ले गए.

प्राथमिक उपचार के बाद वहां के डाक्टरों ने उसे बांदोली के मानसरोवर अस्पताल भेज दिया. सुनीता का परीक्षण किया गया तो वह मानसिक रूप से ठीक पाई गई. उपचार के बाद अस्पताल से उसे छुट्टी दे दी गई.

सुनीता को अस्पताल भेज कर पुलिस और संस्था के सदस्यों ने कमरे का निरीक्षण किया, जिस में सुनीता रहती थी तो पाया कि उस कमरे में सुनीता की जिंदगी बद से बदतर बनी हुई थी. वह उसी कमरे में नित्यक्रिया करती थी, जिस के कारण कोठरी में कीड़ोंमकोड़ों और मच्छरों की भरमार थी.

पता चला कि पिछले 20 सालों से सुनीता वेर्लेकर नहाई नहीं थी. उस के खाने के लिए एक टूटी प्लेट और सोने के लिए एक चारपाई थी. उसे खाना दरवाजा खोल कर देने के बजाय दरवाजे की निकली हुई एक पट्टी के बीच से ऐसे डाला जाता था, जैसे किसी कुत्तेबिल्ली को दिया जाता है.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने और आसपास के लोगों से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने सुनीता के भाई रविंद्र वेर्लेकर, मोहनदास वेर्लेकर, भाभी अनीता वेर्लेकर और अमिता वेर्लेकर को हिरासत में ले लिया. थाने में जब इन सभी से पूछताछ की गई तो सभी ने अपना अपराध स्वीकार कर सुनीता पर किए गए अत्याचारों की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

45 साल की सुनीता शिरोडकर उर्फ वेर्लेकर जितनी ही सुंदर थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी. पिता का नाम रामदेव वेर्लेकर था. सुनीता वेर्लेकर उन की एकलौती बेटी थी, जिसे वह बहुत ही प्यार करते थे. रामदेव वेर्लेकर के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे रविंद्र वेर्लेकर और मोहनदास वेर्लेकर थे. दोनों की शादियां हो चुकी थीं. घर में सब से छोटी होने की वजह से सुनीता दोनों भाभियों अनीता और अमिता की भी लाडली थी.

सुनीता वेर्लेकर ने भी भाइयों की ही तरह पणजी के कालेज से पढ़ाई की. अच्छे नंबरों से बारहवीं पास करने के बाद वह उच्च शिक्षा हासिल कर अपना भविष्य तय करना चाहती थी. लेकिन मातापिता इस पक्ष में नहीं थे. पुरानी सोच वाले मातापिता का मानना था कि बेटियों को अधिक पढ़ाना ठीक नहीं है. उन्होंने उस की पढ़ाई बंद करा दी.

20 साल की उम्र में मातापिता उस के लिए योग्य वर की तलाश में जुट गए. अपनी जानपहचान वालों के माध्यम से शीघ्र ही उन्हें सुनीता के लिए लड़का भी मिल गया. लड़के का नाम था रमेशचंद्र शिरोडकर. मुंबई की एक निजी कंपनी में वह नौकरी करता था. उस के घर की आर्थिक स्थिति भी ठीकठाक थी.

सुनीता के पिता रामदेव वेर्लेकर को यह रिश्ता पसंद आ गया. इस के बाद सामाजिक रीतिरिवाज से दोनों की शादी कर दी गई. यह 25 साल पहले की बात है. शादी के बाद रमेशचंद्र शिरोडकर और सुनीता मुंबई में हंसीखुशी से रहने लगे.

2-3 साल कैसे गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इस के बाद समय जैसे ठहर सा गया था, क्योंकि सुनीता इतने सालों बाद भी मां नहीं बन सकी थी. जिस की वजह से रमेशचंद्र उदास रहने लगा और धीरेधीरे सुनीता से दूर जाने लगा. सुनीता भी इस बात को ले कर काफी दुखी थी. एक दिन ऐसा आया कि रमेशचंद्र की जिंदगी में दूसरी लड़की आ गई.

उस लड़की के आने के बाद रमेशचंद्र काफी बदल गया. अब वह आए दिन सुनीता को प्रताडि़त करने लगा. उस ने सुनीता से साथ मारपीट भी शुरू कर दी. उस के चरित्र पर भी कीचड़ उछालने लगा. उसी लड़की की वजह से एक दिन वह सुनीता को उस के मायके यह कह कर छोड़ आया कि सुनीता का किसी लड़के से चक्कर चल रहा है.

सुनीता को मायके पहुंचा कर रमेशचंद्र ने उस लड़की से विवाह कर नई गृहस्थी बसा ली. इस के बाद वह सुनीता को भूल गया. रमेशचंद्र जिस तरह सुनीता पर घिनौना लांछन लगा कर मायके छोड़ आया था, उस से वेर्लेकर परिवार काफी दुखी था. सुनीता भी पति के इस आरोप और व्यवहार से इस प्रकार आहत थी कि उस का हंसनामुसकराना सब बंद हो गया था.

वह उदास और खोईखोई सी रहने लगी थी. उस की आंखों से अकसर आंसू बहते रहते थे. शादी के कुछ दिनों पहले ही उसे छोड़ कर चली गई थी. एक पिता ही था, जो बेटी के मन की स्थिति को समझता था.

रामदेव बेटी का पूरा खयाल रखते थे. वह उसे समझातेबुझाते रहते थे. पिता भी अपनी लाडली बेटी का दुख अधिक दिनों तक सहन नहीं कर सके और एक दिन बेटी के दर्द को सीने से लगा कर हमेशाहमेशा के लिए यह संसार छोड़ गए. उन्हें हार्टअटैक हुआ था.

पिता की मौत के बाद सुनीता अकेली रह गई. एक तरफ पति की बेवफाई और दूसरी तरफ पिता की मौत ने सुनीता को तोड़ कर रख दिया. अब सुनीता की देखभाल करने वाला कोई नहीं था. दोनों भाई और भाभियां उस की उपेक्षा करने लगीं. इस से सुनीता का स्वभाव चिड़चिड़ा सा हो गया. वह अपने प्रति लापरवाह हो गई. वह अकसर अकेली बैठी बड़बड़ाती रहती. जहां बैठती, वहां घंटोंघंटों बैठी रह जाती. जहां जाती, वहां से जल्दी लौट कर नहीं आती. रातदिन का उस के लिए कोई मायने नहीं रह गया था.

सुनीता के इस व्यवहार से उस के भाइयों और भाभियों ने उस का ध्यान रखने के बजाय उसे पागल करार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर एक दिन बिना किसी कसूर के उस के भाइयों और भाभियों ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया. 10×10 फुट के उस कमरे में हमेशा अंधेरा रहता था. इस के बाद भाईभाभियों ने यह अफवाह फैला दी कि सुनीता पागल हो कर पता नहीं कहां चली गई.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सुनीता उस अंधेरी कोठरी में रह कर अपने भाइयों और भाभियों द्वारा दी गई सजा काट रही थी. भाभियां तो दूसरे घरों से आई थीं, लेकिन भाई तो अपने थे. ताज्जुब की बात यह थी कि उन सगे भाइयों का दिल भी इतना कठोर हो गया था कि उन्हें भी उस पर दया नहीं आई. वे बड़े बेदर्द हो गए थे.

अंधेरी कोठरी में कैद सुनीता पर उस के भाईभाभी जिस प्रकार का जुल्म ढा रहे थे, उस प्रकार का तो अंगरेजी हुकूमत ने भी शायद अपने कैदियों पर नहीं ढाया होगा.

घर का जूठा और बचाखुचा खाना ही उसे कोठरी के अंदर पहुंचाया जाता था. नित्यक्रिया के लिए भी उसे उसी कोठरी के कोने का इस्तेमाल करना पड़ता था. न तो नहाने के लिए पानी मिलता था, न पहनने के लिए कपड़े और न सोने के लिए बिस्तर था. उस कोठरी में इंसान तो क्या, जानवर भी नहीं रह सकता था.

यदि उसे वहां से मुक्त नहीं कराया जाता तो एक दिन उस की लाश ही बाहर आती. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद पुलिस ने सुनीता को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे गोवा के पर्वभरी प्रायदोरिया आश्रम गृह भेज दिया गया.

पुलिस ने पूछताछ के बाद सुनीता वेर्लेकर के बड़े भाई रविंद्र वेर्लेकर, छोटे भाई मोहनदास वेर्लेकर, भाभी अमिता वेर्लेकर, अनीता वेर्लेकर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक चारों की जमानत हो चुकी थी और वे जेल से बाहर आ चुके थे. सुनीता वेर्लेकर गोवा के आश्रम में थी, जहां उस की अच्छी देखरेख हो रही थी.

-कथा में रामदेव और रमेशचंद्र काल्पनिक नाम है

रेलवे में नौकरी के नाम पर ठगी

चाय की दुकान हो या नाई की या फिर पान की दुकान हो, ये सब ऐसे अड्डे होते हैं, जहां आदमी को तरहतरह की जानकारी ही नहीं मिलती, बल्कि उन पर विस्तार से चर्चा भी होती है. इंटरनेट क्रांति से पहले इन्हीं अड्डों पर इलाके में घटने वाली घटनाओं की जानकारी आसानी से मिल जाती थी.

अब भले ही दुनिया बहुत आगे निकल गई है, लेकिन आज भी ये दुकानें सूचनाओं की वाहक बनी हुई हैं. बाल काटते या हजामत करतेकरते नाई, चाय की दुकान पर बैठे लोग और पान खाने वाले किसी न किसी विषय पर बातें करते रहते हैं.

उत्तरपश्चिम दिल्ली के सराय पीपलथला के रहने वाले सरफराज की भी सराय पीपलथला में बाल काटने की दुकान थी. यह जगह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी से सटी हुई है, इस मंडी में हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इस वजह से उस की दुकान अच्छी चलती थी. उस की दुकान पर हर तरह के लोग आते थे. उन्हीं में से उस का एक स्थाई ग्राहक था ओमपाल सिंह.

ओमपाल सिंह रोहिणी के जय अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहता था. उस ने आजादपुर मंडी में कुछ लोगों को हाथ ठेले किराए पर दे रखे थे. उन से किराया वसूलने के लिए वह रोजाना शाम को मंडी आता था. किराया वसूल कर वह सरफराज की दुकान पर कुछ देर बैठ कर उस से बातें करता था.

बातों ही बातों में सरफराज को पता चल गया था कि ओमपाल पहले दिल्ली में ही मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) औफिस में नौकरी करता था, पर अपना काम ठीक से चल जाने के बाद उस ने रेलवे की नौकरी छोड़ दी थी.

एक दिन ओमपाल ने सरफराज को बताया कि डीआरएम औफिस में भले ही वह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था, पर अधिकारियों से उस की अच्छी जानपहचान थी, जिस का फायदा उठा कर उस ने कई लोगों को रेलवे में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी दिलवाई थी. यह जान कर सरफराज को लगा कि ओमपाल तो काफी काम का आदमी है, क्योंकि न इस से फायदा उठाया जाए.

दरअसल, सरफराज का एक छोटा भाई था राशिद, जो 12वीं तक पढ़ा था. पढ़ाई के बाद उस ने सरकारी नौकरी के लिए काफी कोशिश की. जब नौकरी नहीं मिली तो भाई की दुकान पर काम करने लगा था. सरफराज ने सोचा कि अगर ओमपाल सिंह की मदद से भाई की नौकरी रेलवे में लग जाए तो अच्छा रहेगा.

इस बारे में सरफराज ने ओमपाल से बात की तो उस ने बताया कि वह राशिद की नौकरी तो लगवा देगा, पर इस में कुछ खर्चा लगेगा.

सरफराज ने पूछा, ‘‘कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं, बस 60 हजार रुपए. डीआरएम औफिस में जिन साहब के जरिए यह काम होगा, उन्हें पैसे देने पड़ेंगे. और रही बात मेरे मेहनताने की तो जब राशिद की नौकरी लग जाएगी तो अपनी खुशी से मुझे जो दोगे, रख लूंगा.’’ ओमपाल ने कहा.

आज के जमाने में चतुर्थ श्रेणी नौकरी के लिए 60 हजार रुपए सरफराज की नजरों में ज्यादा नहीं थे. वह जानता था कि अब सरकारी नौकरी इतनी आसानी से मिलती कहां है.

सरकारी विभाग में क्लर्क की जगह निकलने पर लाखों की संख्या में लोग आवेदन करते हैं. लोग मोटी रिश्वत देने को भी तैयार रहते हैं सो अलग. इन सब बातों को देखते हुए सरफराज ने ओमपाल से अपने भाई की रेलवे में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी लगवाने के लिए 60 हजार रुपए देने की हामी भर ली.

‘‘सरफराज भाई, राशिद की नौकरी तो लग ही जाएगी. इस के अलावा तुम्हारे किसी रिश्तेदार या दोस्त का कोई ऐसा बच्चा तो नहीं है, जो रेलवे में नौकरी करना चाहता हो, यदि कोई हो तो बात कर लो. राशिद के साथसाथ उस का भी काम हो जाएगा.’’ ओमपाल ने कहा.

‘‘हां, बच्चे तो हैं. इस के बारे में मैं 1-2 दिन में आप को बता दूंगा.’’ सरफराज ने कहा.

सरफराज के बराबर में गंगाराम की भी दुकान थी. वह दिल्ली के ही स्वरूपनगर में रहते थे. वह सरफराज को अपने बेरोजगार बेटे नीरज के बारे में बताते रहते थे. उस की नौकरी को ले कर वह चिंतित थे. सरफराज ने गंगाराम से उन के बेटे की रेलवे में नौकरी लगवाने के लिए बात की.

सरफराज की बात पर गंगाराम को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि सरकारी नौकरी इतनी आसानी से भला कहां मिलती है. सरफराज ने जब उन्हें पूरी बात बताई तो गंगाराम को यकीन हो गया. तब उन्होंने कहा कि वह उन के बेटे नीरज के लिए भी बात कर ले.

इसी तरह सरफराज ने अपने एक और दोस्त अशोक कुमार से बात की, जो शालीमार बाग के बी बी ब्लौक में रहते थे. उन की एक बेटी थी, जो नर्सिंग का कोर्स करने के बाद घर पर बैठी थी. बेटी की रेलवे में स्थाई नौकरी लगवाने के लिए अशोक कुमार ने भी 60 हजार रुपए देने के लिए हामी भर दी.

सरफराज ने ओमपाल सिंह की गंगाराम और अशोक कुमार से मुलाकात भी करा दी. ओमपाल से बात करने के बाद अशोक कुमार व गंगाराम को भी ओमपाल की बातों पर विश्वास हो गया. ओमपाल ने तीनों से पैसों का इंतजाम करने के लिए कह दिया.

तीनों दोस्त इस बात को ले कर खुश थे कि उन के बच्चों की नौकरी लग रही है. इस के बाद 13 जून, 2017 को उन्होंने ओमपाल सिंह को 1 लाख 80 हजार रुपए दे दिए. रुपए लेने के बाद ओमपाल ने उन्हें विश्वास दिलाया कि एकडेढ़ महीने के अंदर उन के बच्चों की नौकरी लग जाएगी.

अशोक, गंगाराम व सरफराज एकएक कर दिन गिनने लगे. विश्वास जमाने के लिए ओमपाल ने फार्म वगैरह भी भरवा लिए थे. जब 2 महीने बाद भी बच्चों की नौकरी नहीं लगी तो ओमपाल सभी को कोई न कोई बहाना बना कर टालने लगा. कुछ दिनों तक वे उस की बातों पर विश्वास करते रहे. बाद में ओमपाल ने सरफराज की दुकान पर आना बंद कर दिया तो सभी को चिंता हुई.

फोन नंबर बंद होने पर सरफराज, गंगाराम और अशोक की चिंता बढ़ गई. इस के बाद एक दिन सरफराज, अशोक और गंगाराम ओमपाल के जय अपार्टमेंट स्थित फ्लैट नंबर 131 पर जा पहुंचे, जहां पता चला कि ओमपाल इस फ्लैट को खाली कर के जा चुका है. यह जान कर तीनों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे समझ गए कि बड़े शातिराना ढंग से ओमपाल ने उन के साथ ठगी की है.

उन के पास ऐसा कोई उपाय नहीं था, जिस से वे ओमपाल को तलाश करते. मजबूरन वे उत्तरपश्चिम जिले के डीसीपी मिलिंद एम. डुंब्रे से मिले और अपने साथ घटी घटना की जानकारी विस्तार से दी. डीसीपी ने इस मामले की जांच औपरेशन सेल के एसीपी रमेश कुमार को करने के निर्देश दिए.

एसीपी रमेश कुमार ने इस मामले को सुलझाने के लिए स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर कुलदीप सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में तेजतर्रार एसआई अखिलेश वाजपेयी, हैडकांस्टेबल राहुल कुमार, दिलबाग सिंह, विकास कुमार, कांस्टेबल उम्मेद सिंह आदि को शामिल किया. टीम ने सब से पहले ओमपाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

पिछले 6 महीने की काल डिटेल्स का अध्ययन करने के बाद एसआई अखिलेश वाजपेयी ने उन फोन नंबरों को चिह्नित किया, जिन पर ओमपाल की बातें हुई थीं. उन में से कुछ फोन नंबर ओमपाल के रिश्तेदारों के थे.

उन पर दबाव बना कर एसआई अखिलेश वाजपेयी को ओमप्रकाश का वह ठिकाना मिल गया, जहां वह रह रहा था. जानकारी मिली कि वह सोनीपत स्थित टीडीआई कोंडली के सी-3 टौवर में रह रहा था.

ठिकाना मिलने के बाद पुलिस टीम ने 14 नवंबर, 2017 को टीडीआई कोंडली स्थित ओमपाल के फ्लैट पर दबिश दी तो वह वहां मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस दिल्ली लौट आई. स्पैशल स्टाफ औफिस में जब उस से सरफराज, गंगाराम और अशोक कुमार से ठगी किए जाने के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया कि उस ने रेलवे में नौकरी लगवाने का झांसा दे कर तीनों से 1 लाख 80 हजार रुपए लिए थे.

सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने यह भी स्वीकार कर लिया कि अब तक वह 20 से ज्यादा लोगों से इसी तरह पैसे ले चुका है. इस से पहले भी ठगी के मामले में वह दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार किया जा चुका है. विस्तार से पूछताछ के बाद इस रेलवे कर्मचारी के ठग बनने की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार है-

उत्तरपूर्वी दिल्ली के मंडोली में रहने वाला ओमपाल सिंह दिल्ली के डीआरएम औफिस में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की यह नौकरी सन 1992 में लगी थी. इस नौकरी से वह अपना घरपरिवार चलाता रहा. जैसेजैसे उस का परिवार बढ़ता जा रहा था, वैसेवैसे खर्च भी बढ़ रहा था, पर आमदनी सीमित थी, जिस से घर चलाने में परेशानी हो रही थी.

ओमपाल सोचता रहता था कि वह ऐसा क्या काम करे, जिस से उस के पास पैसों की कोई कमी न रहे. ओमपाल की साथ काम करने वाले संदीप कुमार से अच्छी दोस्ती थी. वह उस से अपनी परेशानी बताता रहता था. वह भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की भी यही समस्या थी, पर वह अपनी यह परेशानी किसी को नहीं बताता था. दोनों ही शौर्टकट तरीके से मोटी कमाई करने के तरीके पर विचार करने लगे.

दोनों ने रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी लगवाने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठने शुरू कर दिए. तमाम लोगों से उन्होंने लाखों रुपए इकट्ठे कर लिए, पर किसी की नौकरी नहीं लगी. जिन लोगों ने इन्हें पैसे दिए थे, उन्होंने इन से अपने पैसे मांगने शुरू कर दिए. तब दोनों कुछ दिनों के लिए भूमिगत हो गए. लोगों ने दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच थाने में भादंवि की धारा 420, 406 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह बात सन 2011 की है.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद क्राइम ब्रांच ने ओमपाल और उस के दोस्त को भरती घोटाले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस के बाद रेलवे ने दोनों आरोपियों को बर्खास्त कर दिया. जेल से जमानत पर छूटने के बाद ओमपाल ने रोहिणी में जय अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट ले लिया और आजादपुर मंडी में किराए पर हाथ ठेले देने का धंधा शुरू कर दिया.

इस काम से उसे अच्छी कमाई होने लगी. पर उसे तो चस्का मोटी कमाई का लग चुका था. लिहाजा उस ने फिर से लोगों को रेलवे में नौकरी दिलवाने का झांसा दे कर ठगना शुरू कर दिया. सराय पीपलथला के सरफराज, स्वरूपनगर निवासी गंगाराम और शालीमार बाग के अशोक कुमार ने भी उस के झांसे में आ कर उसे 1 लाख 80 हजार रुपए दे दिए.

पूछताछ में ओमपाल ने बताया कि वह करीब 20 लोगों से रेलवे में नौकरी दिलवाने के नाम पर लाखों रुपए ठग चुका है. उस की निशानदेही पर पुलिस ने रेलवे के आवेदन पत्र, सीनियर डीसीएम, उत्तर रेलवे की मुहर और उन के हस्ताक्षरयुक्त पेपर, रेलवे के वाटरमार्क्ड पेपर आदि बरामद किए.

पूछताछ के बाद ओमपाल को 15 नवंबर, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी के समक्ष पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस के बाद उसे पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा संकलन तक अभियुक्त जेल में बंद था. मामले की विवेचना एसआई अखिलेश वाजपेयी कर रहे थे.    -कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

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