जनार्दन जिस समय अपनी कोठी पर पहुंचे, शाम के 6 बज रहे थे. उन्होंने बिना आवाज दिए बड़ी
सहजता से दरवाजा बंद किया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था, ताकि लीना जाग न जाए. डाक्टर ने कहा था कि उसे पूरी तरह आराम की जरूरत है. आराम मिलने पर जल्दी स्वस्थ हो जाएगी. लेकिन अंदर पहुंच कर उन्होंने देखा कि लीना जाग रही थी. वह अंदर वाले कमरे में खिड़की के पास ईजीचेयर पर बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी.‘‘आज थोड़ी देर हो गई.’’ कह कर जनार्दन ने पत्नी के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से पूछा, ‘‘अब तबीयत कैसी है?’’लीना कोई जवाब देती, इस से पहले ही फोन की घंटी बजने लगी. जनार्दन ने रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘जी, जनार्दन पांडेय...’’दूसरी ओर से घुटी हुई गंभीर अस्पष्ट आवाज आई, ‘‘पांडेय... स्टेट बैंक के मैनेजर...?’’‘‘जी आप कौन?’’ जनार्दन पांडे ने पूछा.‘‘यह जानने की जरूरत नहीं है मि. पांडेय. मैं जो कह रहा हूं, ध्यान से सुनो, बीच में बोलने की जरूरत नहीं है.’’ फोन करने वाले ने उसी तरह घुटी आवाज में धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी बेटी मेरे कब्जे में है. इसलिए मैं जैसा कहूंगा, तुम्हें वैसा ही करना होगा. थोड़ी देर बाद मैं फिर फोन करूंगा, तब बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है.’’
दूसरी ओर से फोन कट गया. जनार्दन थोड़ी देर तक रिसीवर लिए फोन को एकटक ताकते रहे. एकाएक उन की मुखाकृति निस्तेज हो गई. पीछे से लीना ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

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जनार्दन ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘कोई खास बात नहीं थी.’’
जनार्दन पत्नी से सच्चाई नहीं बता सकते थे. क्योंकि उस की तबीयत वैसे ही ठीक नहीं थी. यह सदमा सीधे दिमाग पर असर करता. इस से मामला और बिगड़ जाता. जनार्दन रिसीवर रख कर पूरे घर में घूम आए, सैवी कहीं दिखाई नहीं दी. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘सैवी घर में नहीं है, लगता है पार्क में खेलने गई है?’’
‘‘हां, आप के आने से थोड़ी देर पहले ही निकली है,’’ लीना खड़ी होती हुई बोली, ‘‘मैं ने तो चाय पी ली है, आप के लिए बनाऊं?’’

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