2017 में चमकेंगे फिल्मी सितारों की आंख के तारे

फिल्म स्टारों की औलादों के लिए पिछला साल बहुत ही बुरा रहा. अब साल 2017 में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई लोगों के बच्चे बौलीवुड में दस्तक देने आ रहे हैं. इन में से ये खास हैं:

मुस्तफा

मशहूर फिल्म डायरैक्टर जोड़ी अब्बासमस्तान में से अब्बास बर्मावाला के बेटे मुस्तफा साल 2017 में फिल्म ‘मशीन’ से बौलीवुड में अपने कदम रखने जा रहे हैं.

मार्च, 2017 में बड़े परदे पर आने वाली अब्बासमस्तान की डायरैक्ट की गई फिल्म ‘मशीन’ में कियारा आडवाणी और मुस्तफा की जोड़ी है. इस फिल्म को हरीश पटेल, प्रणय, अब्बासमस्तान और धवल जयंतीलाल गाड़ा बना रहे हैं.

सारा अली खान

अमृता सिंह व सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान का बौलीवुड में आना पिछले 2 सालों से लगातार किसी न किसी वजह से टलता जा रहा है. इस के लिए कुछ लोग सारा अली खान की मां अमृता सिंह को कुसूरवार ठहराते हैं. पर अमृता सिंह का दावा है कि इस साल उन की बेटी ऐक्टिंग के मैदान में तीर मार लेगी. अब फिल्म कौन सी होगी, यह राज की बात है. वैसे, अब तक जिन फिल्मों के साथ सारा अली खान के जुड़ने की खबरें आईं, बाद में उन सब से सारा अली खान अलग हो गई. पर अब चर्चा है कि सारा अली खान की पहली फिल्म शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान के साथ होगी.

अदार जैन

 राजकपूर की बेटी के बेटे और रणबीर कपूर व करीना कपूर के फुफेरे भाई अदार जैन अपनी बौलीवुड की पारी ‘यशराज फिल्म्स’ द्वारा बनाई गई व हबीब फैजल के डायरैक्शन की अनाम फिल्म करने जा रहे हैं. इस में उन की हीरोइन दिल्ली की नई लड़की अन्या सिंह हैं.

मजेदार बात यह है कि उड़ी हमले की वजह से पाकिस्तानी कलाकारों के खिलाफ बने माहौल का फायदा अदार जैन को मिला है, वरना पहले इस फिल्म में पाकिस्तानी कलाकार अली जफर के भाई दान्याल जफर काम करने वाले थे.

अहान शेट्टी

सुनील शेट्टी की बेटी अथिया शेट्टी को सलमान खान ने सितंबर, 2015 में आई फिल्म ‘हीरो’ से बौलीवुड में उतारा था. मगर फिल्म की नाकामी के साथ ही उन का कैरियर डांवांडोल हो गया.

इस साल सुनील शेट्टी के बेटे व अथिया शेट्टी के भाई अहान शेट्टी बौलीवुड में कदम रखने जा रहे हैं. अहान शेट्टी को हीरो ले कर मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर साजिद नाडियाडवाला फिल्म बनाने जा रहे हैं. यह फिल्म जुलाई, 2017 में शुरू होगी.

आर्यन खान

इस साल शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान भी ऐक्टिंग के क्षेत्र में कदम रखने जा रहे हैं. उन्हें शाहरुख खान व गौरी खान के खास दोस्त व फिल्मकार करण जौहर ही बौलीवुड में लौंच करने वाले हैं. इस फिल्म में आर्यन खान की हीरोइन होंगी अमृता सिंह व सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान.

शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान लौस एंजेल्स से अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस आ चुके हैं. शाहरुख खान की पीआर कंपनी ने आर्यन खान की इमेज को सुधारने का काम शुरू करते हुए सब से पहले आर्यन खान का ‘इंस्टाग्राम’ का अकाउंट बंद कराया, जिस में इमेज खराब करने वाले पार्टी फोटो थे.

जाह्नवी कपूर

श्रीदेवी व बोनी कपूर की बेटी और अर्जुन कपूर की सौतेली बहन जाह्नवी कपूर भी इस साल बौलीवुड में कदम रखने जा रही हैं. श्रीदेवी व बोनी कपूर खुद ही यह फिल्म बना रहे हैं. वैसे, जाह्नवी कपूर अपने प्रेमी शिखर पहाडि़या के चलते ज्यादा चर्चा में रही हैं.

रवीना तौरानी

‘टिप्स’ कंपनी के मालिक रमेश तौरानी ने कुछ साल पहले अपने बेटे गिरीश कुमार को बौलीवुड में हीरो बनाने के लिए ‘रमैया वस्तावैया’ और ‘लवशुदा’ जैसी नाकाम फिल्में बनाईं. अब रमेश तौरानी अपनी बेटी रवीना तौरानी को हीरोइन के रूप में पेश करने के लिए अपनी 15 साल पुरानी फिल्म ‘इश्कविश्क’ का सीक्वल बना रहे हैं.

बिहार : 4 हजार करोड़ लीलती नदियां

नेपाल में भारी बारिश होने और पहाड़ी चट्टानों के खिसकने से हर साल बिहार में भारी तबाही मचती रही है. 2 अगस्त, 2016 को काठमांडू से सौ किलोमीटर उत्तरपूर्व भट्टकोसी जिले के पास जमीन खिसकने से सुनकोसी नदी में रुकावट आने से बहुत बड़ी झील बन गई थी, जिस में सौ फुट की ऊंचाई तक पानी जमा हो गया था.

नेपाली सेना रुकावट को ब्लास्ट के जरीए हटाने लगी, तो नेपाल से सटे बिहार के 8 जिलों में बाढ़ से भारी तबाही का मंजर पैदा हो गया. सुपौल, सहरसा, अररिया, मधेपुरा, पूर्णिया, खगडि़या, मधुबनी और भागलपुर जिले के कई इलाके बाढ़ में डूब गए.

झील की रुकावट को हटाने से 25 लाख क्यूसैक पानी पूरी रफ्तार से कोसी नदी में पहुंचने लगा था, जिस से 3 अगस्त, 2016 को कोसी नदी का जलस्तर 10 मीटर तक बढ़ गया था.

गौरतलब है कि नेपाल में भारी बारिश होने से साल 2008 में 18 अगस्त को बिहारनेपाल सीमा पर कुसहा बांध के टूटने से कोसी नदी में आई भयंकर बाढ़ ने काफी तबाही मचाई थी. बाढ़ की वजह से बिहार के 5 जिलों के 247 गांव पूरी तरह से गायब हो गए थे, 3 सौ लोगों की मौत हुई थी और 30 लाख लोग रातोंरात बेघर हो गए थे.

नेपाल की नदियों से हर साल बिहार में मचने वाली तबाही को कम करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 सितंबर, 2016 को नई दिल्ली में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ से मिल कर सप्तकोसी नदी और सनकोसी नदी पर बांध बनाने के लिए बातचीत की थी.

नीतीश कुमार ने कहा था कि इन दोनों नदियों का ठीक से जलप्रबंधन जरूरी है. उन पर बांध और पनबिजली बनने से भारत और नेपाल दोनों को फायदा होगा.

याद रहे कि बिहार की कई बड़ी नदियां नेपाल से निकलती हैं और उस की बाढ़ से बिहार को भारी तबाही झेलनी पड़ती है. हर साल जून से ले कर अगस्त महीने के बीच नेपाली नदियां बिहार में कहर बरपाती रही हैं, जिस से सालाना 4 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान होता है. बाढ़ की चपेट में 5 सौ से ज्यादा इनसानी और 2 हजार से ज्यादा जानवरों की जानें जाती हैं. इस के साथ ही साथ 2 लाख से ज्यादा घरों को बाढ़ बहा ले जाती है और 6 लाख हैक्टेयर में लगी फसलों को बरबाद कर डालती है.

उत्तरी बिहार की 75 फीसदी से ज्यादा आबादी बाढ़ के खतरों के बीच जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर है, वहीं राज्य की जमीन का 70 फीसदी से ज्यादा इलाका बाढ़ से प्रभावित होता है.

नेपाल की नदियों में आने वाली बाढ़ से बिहार के किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, कटिहार, खगडि़या, भागलपुर, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर जिलों को हर साल भारी नुकसान उठाना पड़ता है.

पर्यावरण मामलों के जानकार प्रोफैसर आरके सिन्हा बताते हैं कि भूकंप, बाढ़ और जमीन खिसकना हिमालय का पुराना स्वभाव रहा है. इन खतरों के प्रति लापरवाह रह कर इनसान हिमालय का दोहन व शोषण ही करता रहा है.

पर्यावरण को बचाने की गुहार लगाने वाली संस्थाएं पिछले कई सालों से चिल्ला रही हैं कि भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान वगैरह देश हिमालय क्षेत्रों में कई बांध बना रहे हैं, जिस से अगले कुछ सालों में हिमालय क्षेत्रों में तकरीबन 4 सौ विशाल जलाशय बन जाएंगे.

इन जलाशयों के बनने से सब से ज्यादा 292 बांध भारत बना रहा है. इस के अलावा चीन सौ, नेपाल 13, पाकिस्तान 9 और भूटान 2 बांध बनाने की योजना पर काम कर रहा है. इस से पर्यावरण को तो नुकसान हो ही रहा है, साथ में इनसानी जानमाल पर खतरा भी बढ़ रहा है.

गौरतलब है कि कोसी को ‘बिहार का शोक’ कहा जाना किसी भी माने में गलत नहीं है. केवल कोसी की बाढ़ से ही बिहार का 21 हजार वर्ग किलोमीटर उपजाऊ खेत तबाह हो जाता है.

18 अगस्त, 2008 को नेपाल में बने कुसहा बांध को तोड़ कर बिहार के एक बड़े हिस्से में काफी ज्यादा तबाही मचा दी थी. उस बाढ़ ने 30 लाख लोगों के घर, परिवार, मवेशी और फसल को बरबाद कर डाला था. कोसी नदी नेपाल में सप्तकोसी नदी के नाम से जानी जाती है.

कोसी समेत कई नदियां जो बिहार में तबाही मचाती रही हैं, उन का उद्गम और जलग्रहण क्षेत्र नेपाल है. कोसी के अलावा नेपाल की नदियां नारायणी (गंडक), करनाली (घाघरा), मेंची, बागमती, कमला बलान भी बारिश के मौके पर बिहार में तबाही मचाती रहती हैं. अगर बिहार में बारिश नहीं हो और नेपाल में भारी बारिश हो जाए, तो ये सारी नदियां बिहार के कई इलाकों में बाढ़ की तबाही मचा देती हैं.

नेपाल की नदियों में भूस्खलन हो जाए, नदी की धारा बदल जाए या रास्ता रुक जाए, तो उस से भी बिहार को परेशानी झेलनी पड़ती है.

राज्य आपदा प्रबंधन महकमे के मुताबिक, साल 1980 से ले कर साल 2012 के बीच हर साल तकरीबन 10 लाख हैक्टेयर खेती वाली जमीन बाढ़ के पानी में डूबती रही है. इस वजह से 6 लाख हैक्टेयर में लगी खरीफ की फसल पूरी तरह चौपट हो जाती है. बाढ़ से 17 लाख मवेशी भी प्रभावित होते हैं.

सहरसा जिले का किसान रामदेव महतो कहता है कि बाढ़ में घर के ढहने के बाद एक कच्चा घर बनाने में 20-25 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं. गरीब किसानों की मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा तो घर बनाने में ही खर्च हो जाता है.

साल 2015-16 में सरकार को बाढ़ राहत बांटने में 360 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े थे. बाढ़ तकरीबन 25 सौ करोड़ रुपए की फसलें लील जाती है. इस के अलावा घरों, मवेशियों और सरकारी इमारतों को भी बाढ़ हर साल 3 सौ करोड़ रुपए की चपत लगा देती है.

शोर मचाने वाले ही ज्यादा एडल्ट फिल्में देखते हैं : सनी लियोनी

साल 2011 से बौलीवुड में कदम रखने वाली सनी लियोनी ने अपनी एक खास जगह बना ली है. उन्हें आज हर तरह की फिल्में और टीवी शो में काम करने का मौका मिल रहा है. आज उन का नाम हर फिल्मकार, डायरैक्टर जानता है. इस कामयाबी के पीछे उन का सैक्सी लुक है, जिस की मांग आजकल के फिल्मकारों को होती है. कनाडा के ओन्टारिओ में जनमी सनी लियोनी का असली नाम करनजीत कौर वोहरा है. उन के पिता चंडीगढ़ के पंजाबी सिख हैं और मां हिमाचल प्रदेश के सिरमौर की हैं. बचपन से ही सनी चुस्त थीं. हमेशा लड़कों के साथ हौकी खेलती थीं. उन्हें आइस स्कैटिंग करना पसंद था. जब करनजीत कौर 13 साल की थीं, तब उन के माता पिता अमेरिका के कैलीफोर्निया में जा कर बस गए थे. वहीं उन की पढ़ाई हुई. पहले उन की इच्छा थी कि वे नर्स बनें. डाक्टर के काम से भी ज्यादा वे नर्स के काम को अहम मानती थीं. इस के लिए उन्होंने नर्स का कोर्स भी किया.

कोर्स के दौरान वहां उन के साथ पढ़ रही किसी दोस्त के कहने पर मौडलिंग के लिए वे एक फोटोग्राफर से मिलीं. पोज दिया और एक मैगजीन के कवर पर आईं. यहीं से उन के पोर्न स्टार बनने की नींव पड़ गई. सनी लियोनी ने 21 साल की उम्र में पोर्न इंडस्ट्री में कदम रखा था. मैगजीन के कवर पेज पर उन की फोटो आने के बाद सनी के पास औफरों की भरमार लग गई थी. अमेरिका के सब से बड़े पोर्न प्रोडक्शन हाउस के साथ सनी लियोनी को 3 साल का एग्रीमेंट मिला. साथ ही, उन्हें पोर्न फिल्म इंडस्ट्री में भी ऐंट्री मिली. शुरूशुरू मे सनी लियोनी केवल समलैंगिक पोर्न फिल्में ही किया करती थीं, जिन में वे सिर्फ लड़कियों के साथ काम करती थीं. बाद में उन की पौपुलैरिटी को देख कर उन्हें मर्दों के साथ भी फिल्म करने के औफर मिलने लगे. सनी लियोनी भारत में ‘बिग बौस’ शो के जरीए आईं, जहां वे 49 दिन रहीं. वहीं पर महेश भट्ट ने उन्हें फिल्म ‘जिस्म 2’ का औफर दिया, जिसे उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया. यहीं से उन के बौलीवुड का सफर शुरू हुआ. इस के बाद ‘रागिनी एमएमएस 2’, ‘एक पहेली लीला’, ‘मस्तीजादे’, ‘वन नाइट स्टैंड’ जैसी कई फिल्मों में उन्होंने काम किया. उन्हें हिंदी बोलना और समझना अच्छी तरह आता है. वे नौजवानों की पसंदीदा हीरोइन हैं. इसलिए टैलीविजन शो ‘स्प्लिट्सविला 9’ शो होस्ट किया है. उन से मिल कर बात करना रोचक था. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश:

इस शो से जुड़ने की वजह? आप का सैक्सी लुक कितना सब को अपनी ओर खींचता है?

दरअसल, मुझे इस शो की थीम काफी पसंद आई और मैं अपने सैक्सी लुक पर कभी भी ज्यादा ध्यान नहीं देती. यह सही है कि सैक्सी लुक की वजह से ही मैं इस शो का हिस्सा बनी हूं. इस शो के सभी लड़के और लड़कियां गुड लुकिंग हैं. लड़के तो सारे सिक्स पैक ऐब्स वाले हैं. सब की अच्छी बौडी है. लड़कियां भी खूबसूरत हैं.

प्यार में जिस्मानी खिंचाव का होना कितना जरूरी होता है?

सब से पहले तो आप अपने साथी की पर्सनैलिटी को देखते हैं. उस की कदकाठी, चेहरा, बाल वगैरह सबकुछ. उस के बाद उस से प्यार होता है. अगर वही सही नहीं, तो खिंचाव कैसा और प्यार कैसा?

आप ने हिंदी कैसे सीखी, जबकि आप विदेश में पलीबढ़ी हैं?

मैं ने हिंदी सीखने के लिए एक टीचर रखा था. मेरे लिए हर कोई ट्यूटर है. मेरे स्टाफ से ले कर टीम के सारे लोग, जिन से मैं कुछ न कुछ हमेशा सीखती रहती हूं.

विदेश और भारत की फिल्म इंडस्ट्री में आप क्या फर्क पाती हैं?

दोनों में बहुत फर्क है. यहां मुझे ज्यादातर काम मेरे फिगर पर मिल रहा है, जबकि अमेरिका में मेरी पहचान अलग थी. मैं ने कभी सोचा नहीं था कि मुझे यहां इतना काम मिलेगा. मेरे लिए यहां काम करना अपने सपने को पूरा होने वाली बात साबित हुई है.

अब तक का सफर कैसा रहा?

5 साल के इस सफर में बहुत सारे उतारचढ़ाव आए. कुछ खराब आए, जिस से मैं ने बाहर निकलना सीखा और यह भी सीखा कि आगे कैसे बढ़ना है. लोगों ने मेरी पिछली जिंदगी के बारे में पूछा, पर मैं क्या कर सकती थी. मैं ने उस का जवाब दिया. मुझे जो काम मिला, मैं ने किया. उस समय मुझे वह ठीक लगा. अब नहीं लगता, इसलिए कुछ अलग करने की कोशिश चल रही है.

जब आप की एक अलग पहचान बन जाती है, तो आप की जिंदगी खुली किताब होती है. आप कुछ छिपा नहीं सकते.

यहां की संस्कृति से आप कैसे तालमेल बिठाती हैं?

मैं पंजाबी हूं. मुझे यहां के संस्कार पता हैं. यहां का खाना मैं बहुत पसंद करती हूं. काम के समय मैं कुछ भी खा लेती हूं. पर हर शुक्रवार और शनिवार को पिज्जा नाइट या इटालियन फूड का दिन होता है, जबकि ‘रविवार’ को सब्जी, दाल, रोटी, चावल सब खाती हूं.

अब तक का सब से अच्छा कौंप्लिमैंट क्या था?

जब फिल्म ‘बेईमान लव’ रिलीज हुई, इस में मैं ने वह भूमिका निभाई थी, जो पहले कभी नहीं की थी. लोगों ने मेरे काम को देखा और उन्हें लगा कि मैं भी कुछ ऐक्टिंग कर सकती हूं. इस से पहले भी कौंप्लिमैंट्स मिले थे, पर वे मेरी एडल्ट फिल्मों के लिए मिले थे. कोई भी ऐक्टिंग आसान नहीं होती.

एडल्ट फिल्मों से फैमिली फिल्मों में आने की अपनी इमेज को आप कैसे देखती हैं?

मैं ने कभी अपनी इमेज को बदलना नहीं चाहा. मुझे अपनी जिंदगी से प्यार है. मैं जो भी हूं, उस में खुश हूं. अभी मेरी सारी फिल्में सीरियस परफोर्मैंस वाली हैं, एडल्ट नहीं. अगर दर्शकों को वे फिल्में पसंद आएंगी, तो मैं और ज्यादा वैसी फिल्में करूंगी.

‘एडल्ट’ फिल्मों में धर्म का दखल कितना होता है? फिर चाहे वे फिल्में विदेशी हों या हमारे यहां की?

हर जगह सैंसरशिप है. यहां पर करोड़ों लोग हैं, इसलिए आवाज तेज होती है. अमेरिका में भी सैंसरशिप है. जो फिल्म ‘एडल्ट’ के लिए है, वह ‘एडल्ट’ फिल्म ही है. अगर ‘ए सर्टिफिकेट’ है, तो भारत हो या विदेश, बच्चों को नहीं देखनी चाहिए. विदेश में भी लोग हंगामा करते हैं और मैं इसे सही मानती हूं. अगर आप की उम्र 18 साल है, तो आप ‘एडल्ट’ फिल्म जरूर देखें, क्योंकि लाइफ की नैचुरल चीजों को भी जानना जरूरी है. लेकिन ये फिल्में समाज को गलत रास्ते पर ले जा रही हैं, इसे मैं नहीं मानती, क्योंकि शोर मचाने वाले लोग ही ऐसी फिल्में ज्यादा देखते हैं.

क्या आप की बौलीवुड में कोई दोस्त है?

मैं अभी कुछ ऐसे लोगों से मिली हूं, जिन से मैं पहले कभी नहीं मिली थी. उन में प्रियंका चोपड़ा खास हैं.

आप का सपना क्या है?

मैं अच्छा काम कर के सब का दिल जीतूं. मेरे दोस्त और मेरा परिवार सेहतमंद और सुरक्षित रहें. मेरी संजय लीला भंसाली के साथ काम करने की इच्छा है.

आगे की योजनाएं क्या हैं?

मेरी इच्छा है कि कुछ अच्छी फिल्में करूं. बच्चे की मां बनूं, क्योंकि मैं कुछ अलग अनुभव करना चाहती हूं.

क्या कोई कुछ मलाल रह गया है?

निजी तौर पर तो ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं ने जो भी किया, अपनी मरजी से किया. मुझे लगा कि उस समय वही सही समय था. मुझे किसी ने यह नहीं कहा कि आप को यही करना है. मेरी जिंदगी बहुत अच्छी है और मैं इस से खुश हूं.

अभी आप को शाहरुख खान के साथ फिल्म ‘रईस’ में एक गाना करने का मौका मिला है. क्या इसे आप अपने कैरियर का अच्छा समय मानती हैं?

बिलकुल अच्छा समय मानती हूं, क्योंकि मैं न तो फिल्म इंडस्ट्री से थी और न ही कोई मेरा यहां है. ऐसे में जब मुझे शाहरुख खान का फोन आया, तो मैं चौंक गई और पूछा कि क्या वे सही में सनी लियोनी यानी मुझ को ही फोन लगा रहे हैं? मुझे यह जान कर अच्छा लगा कि मुझे उन के साथ काम करने का मौका मिला. अभी तो मैं अरबाज खान के साथ भी एक फिल्म कर रही हूं.

तीन तलाक पर देशभर में मचा बवाल

शादी के कानूनों पर लंबीचौड़ी बहस चल रही है. हिंदू आदमी औरतों के मन में अचानक मुसलिम औरतों पर मेहरबानी होने लगी है और वे ‘तलाक तलाक तलाक’ को बेहूदा, औरतों के खिलाफ मान कर देशभर में हल्ला मचा रहे हैं. ज्यादा हल्ला सोशल मीडिया में मोबाइलों पर हो रहा है और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस तिहरे तलाक पर कहा है कि यह गलत है, क्योंकि यह औरतों के खिलाफ है. यह सही हो सकता है कि सिर्फ ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर छुटकारा पाना गलत हो और अगर इसलाम धर्म इसे कानून मानता है, तो गलत है, पर सवाल है कि उसे भलाबुरा कहने वाले औरतों के हमदर्द हैं क्या और क्या वे वाकई मुसलिम औरतों के दुख को समझ रहे हैं? इस समय तो लगता है कि इस बहाने एक धर्म की कट्टरता की पोल खोलने का बहाना मिला है, और सरकार का साथ मिला है, इसलिए जितनी चाहे बातें बना लो.

असल में तो किसी भी धर्म का आदमीऔरत की निजी पसंदनापसंद में दखल देना गलत है. औरतें क्या कब पहनें, कैसे चलें, किन रीतिरिवाजों को मानें, यह सब धर्म तय करने वाला कौन होता है? धर्म के खेवनहार तो कहते हैं कि धर्म स्वयं ऊपर वाले ने दिया है, तो उसे आदमीऔरत में फर्क करने की जरूरत ही क्या? बीवी बनेगी तो धर्म के अनुसार, छूटेगी तो धर्म के हिसाब से. क्यों?

अग्नि देवता के समक्ष कन्यादान हो, चर्च में जीसस के सामने आई डू हो या काजी के सामने कबूल है, आखिर इस में धर्म और दुनिया बनाने वाला कहां से टपक पड़ा? शादी का फैसला तो आदमीऔरत खुद करें, मुहर ऊपर वाले का एजेंट लगाए. क्यों? झगड़ा आदमीऔरत करें, पर अलग होना है तो ऊपर वाले के इशारे पर लिखी किताब से होगा. ऐसा क्यों? ईसाई धर्म के तो 2 बड़े टुकड़ों के पीछे एक राजा का अपनी बीवी को न छोड़ देना ही था. धर्म के ठेकेदार अड़ गए कि शादी तो ऊपर वाले ने कराई है और टूट नहीं सकती. हिंदू धर्म में भी ऐसा ही है. ईसाई और हिंदू हमेशा एक ही औरत के साथ रहे हैं, इस का सुबूत तो कहीं नहीं मिलेगा. इसलाम में मर्दों को खास छूट है, पर इस पर थोड़ी जलन हो सकती है, यह गलत भी हो सकता है, पर जब तक लोग धर्म और शादी को जोड़ेंगे, तो गलत होगा ही.

शादी में तो धर्म होना ही नहीं चाहिए. अब तो संसदों में बनाए गए कानूनों के हिसाब से शादियां हों, तलाक हों, तलाक के बाद बच्चों की देखभाल का हिसाब हो. पैसे का बंटवारा हो. हाय मुसलिम औरतें कहने से काम नहीं चलेगा, धर्मों की मारी सारी औरतों की हाय को सुनिए. पर धर्मों के दुकानदार इस शादी के प्रोडक्ट को मुफ्त में सौंपने को तैयार कभी न होंगे. शादियों में धर्म के दखल से पंडे, मुल्ला, पादरी बहुत पैसा बनाते हैं. तिहरे तलाक की बात हो या कन्यादान बंद कराने की, वे कभी मानेंगे नहीं. अपनी मुफ्त की रोजीरोटी क्यों छोड़ें?

संसद : आमदनी अठन्नी, खर्चा 600 करोड़

लोकहित के मुद्दों पर जन-प्रतिनिधियों की मुखरता और सक्रियता सशक्त लोकतंत्र का परिचायक है. लेकिन, 16 नवंबर से शुरू हुए शीतकालीन सत्र में जो गतिरोध का दौर चल रहा है, उस पर न केवल वरिष्ठ राजनेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है, बल्कि राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी कहना पड़ा है कि सदस्यों का व्यवहार निराशाजनक है और संसद में जारी गतिरोध को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है. हंगामे से संसदीय गतिविधियों के बाधित होते रहने का सिलसिला पुराना है.

बोफोर्स मसले पर 1980 के दशक में विपक्ष ने 45 दिनों तक दोनों सदनों का बहिष्कार किया था. बड़ा बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस सरकार को विपक्ष की मांग के अनुरूप संयुक्त संसदीय समिति का गठन करना पड़ा था. इसके बाद नरसिंहा राव सरकार के समय भी तत्कालीन दूरसंचार मंत्री सुखराम को हटाने को लेकर संसद दो हफ्ते तक नहीं चली थी. तहलका टेप मामले में वाजपेयी सरकार के भी सामने ऐसी चुनौती आयी थी. पर, अब तो ऐसा होना एक परिपाटी का रूप ले चुका है. नोटबंदी के फैसले को लेकर विपक्ष का बड़ा हिस्सा संसद के भीतर और बाहर आक्रोशित है और अधिनियम 184 के तहत बहस कराने की मांग कर रहा है.

दूसरी ओर, सरकार का अड़ियल रवैया भी इस गतिरोध के लिए कम जिम्मेवार नहीं है. दोनों पक्षों की व्यापक असहमति का नतीजा है कि उपभोक्ता संरक्षण, मानसिक स्वास्थ्य, मातृत्व लाभ, नागरिकता और जीएसटी से संबंधित जनहित से जुड़े कई महत्वपूर्ण मामले लंबित हैं. विमुद्रीकरण के मुद्दे पर अड़े विपक्ष और सरकार के सामने जम्मू-कश्मीर के हालात, पूर्व सैनिकों का पेंशन, आतंकी हमले जैसे भी मामले हैं. लेकिन, दोनों सदनों के हंगामे में ये मुद्दे फिलहाल गुम हैं. संसद के संचालन में अनुमानतः प्रतिवर्ष 600 करोड़ रुपये खर्च होते हैं.

सदन के भीतर जो काम आज कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल कर रहे हैं, वही काम विपक्ष के रूप में भाजपा भी कर चुकी है. विमुद्रीकरण जैसे मामलों पर विपक्ष को नारेबाजी करने और सदन के बहिष्कार करने के बजाय सरकार को अपने निर्णय की समीक्षा के लिए बाध्य करना चाहिए. गतिरोध को समाप्त करने में असफल संसदीय कार्यमंत्री और लोकसभाध्यक्ष के साथ विपक्षी दलों को राष्ट्रपति और देश के वरिष्ठतम राजनेताओं में एक आडवाणी की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए और कार्यवाही को सुचारु बनाने के भरसक प्रयास करने चाहिए. स्वस्थ लोकतंत्र के लिए संसद का बाधित होना दुर्भाग्यपूर्ण है, इससे संसदीय तंत्र का औचित्य पूर्ण नहीं होता.

काला धन खत्म करने की कवायद

नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रूप्ये का नोट बैन क्या किया, रातोंरात देश में साम्यवाद आ गया है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सारे धनी-गरीब, ईमानदार-बेईमान, मंत्री-संत्री सब लाइन में खड़े हो गए हैं.

प्रधानमंत्री की घोषणा के कम से कम अगले ही दिन सत्तापक्ष के समर्थकों ने कुछ इसी तरह का प्रचार किया. कहा भारतीय समाज में क्या अद्भुत समानता आ गयी है. अमीर-गरीब की खाई पट गयी. सब एक ही कतार में लग गए हैं.

लेकिन एक फर्क भी देखा गया. वह यह कि कुछ को जगराता कर कम से कम दो दिनों तक लगातार कतार में खड़ा होने के बाद कुछ ही पैसे हाथ लगे तो कोई रात-रात भर जग कर अपने लाखों-करोड़ों को ठिकाना लगाने की सोच में लगा रहा. हालांकि दोनों ही जीवन संग्राम के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. लेकिन एक जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए जग रहा था तो दूसरा सहूलियत बरकरार रखने की जुगत में जगा था.

प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद रोज कमाने-खानेवाले गाहेबगाहे यही पूछते रहे कि अच्छा, मोदीजी ने नोट रद्द करके वाकई अच्छा किया? क्या वाकई देश में साम्यवाद आ गया है? दलालतंत्र खत्म हो पाएगा? क्या इससे महंगाई कम होगी? देश से काला धन पूरी तरह खत्म हो जाएगा? यह और बात है कि इन सवालों का जवाब तो अभी तक धुरंधर राजनीतिज्ञों या अर्थशास्त्र के जानकारों के पास भी नहीं है.

बहरहाल, 15 दिन बीत चुके हैं और इसके बाद भी स्थिति कुछ खास नहीं बदली. हर रोज सुबह लोग पौकेट में हाथ डाल कर देख लेते हैं कि कितना पैसा जेब में है. जो बचा है, उससे कितने दिनों का गुजारा हो सकेगा! दो हजार का नोट लिये हुए बहुत सारे लोग बाजार में दर-दर की ठोकर खा रहे हैं. अभी जिस दिन नरेंद्र मोदी ने नोट बैन की घोषणा की, दूसरे दिन मुहल्ले के सब्जीवाले से लेकर किराना, लौंड्री, दूधवाले, मछली वाले ने अभयदान देते हुए कहा था, चिंता की कोई बात नहीं. पैसे कहां भागे जा रहे हैं. लेकिन दो-चार दिन जाते-न-जाते स्थिति इतनी भ्रामक बन कर सामने आयी कि इनलोगों ने भी एकदम से मुंह फेर लिया. उधार तो क्या, छुट्टे तक के लाले पड़ गए.

डेबिट, क्रेडिट, ई-वालेट, ई-पॉकेट, पेटीएम अभी तक हमारे देश में सबके बस की बात नहीं रही है. जाहिर है उथल-पुथल मचना ही था. लगभग युद्ध जैसे हालात बन गए – कभी सामना मुहल्ले का मोदी यानि किराना या परचूनवाला से होता तो कभी प्रधानमंत्री मोदी के चाटुकारों से छायायुद्ध में भिड़ना होता.

पुराने नोट खपाने की जुगत

प्रधानमंत्री के घोषणा के बाद पूरे देश में जो वस्तुस्थिति बनी वह कुछ इस तरह की थी. जिनके पास भी अतिरिक्त मात्रा में पुराने नोट थे वे सबके सब उन्हें खपाने या ठिकाने लगाने की जुगत में लग गए. इसी क्रम में कोलकाता के बड़ा बाजार से लेकर बहू बाजार ही नहीं; देश भर के झवेरी बाजार में कारोबार सारी रात चला. ज्वेलरी दूकानों में पुराने नोट के बदले सोने-हीरे जेवर, बिस्किट, बार की खरीद-फरोख्त होती रही. हालांकि भारत के हर छोटे-बड़े शहरों का हाल एक-सा ही रहा. काले पैसे के लेन-देन में सोना आसमान छू बैठा. यही नहीं, विदेशी मुद्रा का बाजार भी रुक्काके जरिए गरमा गया. रुक्का यानि कागज के टुकड़े में सांकेतिक भाषा में एक नंबर लिख कर मोटे कमीशन के बल पर रुपए की तस्करी परवान चढ़ी. जानकार बताते हैं कि यह मामला दरअसल, सोये पड़े कंपनी के आयकर फाइल में रकम डाल कर उस रकम को दूसरे रास्ते से निकाल लेना है. कारोबारी दुनिया में यह तिकड़म पुराना है. अब इसका इस्तेमाल नोट बदलने के लिए हो रहा है.

और तो और, पुराने नोट में अग्रिम वेतन चुकाने के भी मामले सामने आए हैं. लोहे की आलमारी बनाने वाले एक निजी कारखाने का मालिक के यहां काम करनेवाला संजय पात्र का वेतन महीना खत्म होने से पहले ही हवा हो जाया करता था. लेकिन कारखाने के मालिक ने नौ तारीख को अपने सभी कर्मचारियों को अग्रिम वेतन देकर पुराना नोट खपाया. वह भी तीन-तीन महीने का अग्रिम वेतन भी दे दिया गया.

बड़ाबाजार में साड़ी की दूकान में कार्यरत विनय बिहारी गुप्ता के भी भाग खुल गए. लगभग 20 सालों से विनय बिहारी इस दूकान में काम कर रहे हैं. कभी ऐसा सौभाग्य नहीं हुआ. विनय बिहारी का एक बैंक एकाउंट तो है, लेकिन कभी-कभार ही बचत के पैसे एकाउंट में जमा होते. पगार नगदी मिलती रही है. महीने का अंत ज्यादातर पैसों की किल्लत से होता है. ऐसे में बचत किस चिडि़या का नाम है – विनय बिहारी को पता नहीं. लेकिन दूकान मालिक ने मार्च तक का पगार और साथ में 40 हजार का नकदी बोनस की घंटी गले में बांध दी. इतनी बड़ी रकम देख कर विनय बिहारी खुद को रोक न पाए. जहां नकदी का अकाल है वहां पैसों की बरसात को नजरअंदाज भला कैसे कर पाते. वे कहते हैं इतनी नकदी देख कर ख्याल यही आया कि अभी तो रख लेते हैं, बाद की बाद में देख लेंगे.

ऐसा नहीं है कि संजय पात्र या विनय बिहारी गुप्ता इस मेहरबानी के पीछे छिपी असलियत से वाकिफ नहीं हैं. वे जानते हैं कि पुराने नोटों की खपत इसी तरह की जा रही है. संजय पात्र के कारखाने के मालिक ने साफ लफ्जों में बता भी दिया कि अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो कारखाना ठप्प हो जाएगा. संजय को समझ है कि अगर वह मना कर देता है तो क्या पता आनेवाले दिनों में रोजगार का संकट पैदा हो जाए!

चाटर्ड एकाउंटेंट पिंकी दवे का कहना है कि अगर इस तरह से वेतन, बोनस या अन्य मद में अग्रिम के तौर पर पुराने नोट खपाए जा रहे हैं तो निसंदेह कारोबारियों ने अपनी तिजोरी में 500/ 1000 के नोटों की नकदी मौजूदगी को कम करने के मकसद से यह जुगत लगाया है. यह काला धन को सफेद करने की यह भी प्रक्रिया है. इन मदों में दिए गए पैसों का हिसाब आयकर विभाग की नाराजगी का कारण नहीं बनेगा. निजी दूकानदार या कारखाने की बात तो जाने दें. नकदी संकट के समय केंद्र सरकार ने भी ग्रुप सी और ग्रुप डी के कर्मचारियों को नवंबर महीने के वेतन से अग्रिम दस हजार नकदी ले लेने की छूट दे दी. खबर है कि अन्य कई राज्यों के सरकारी कर्मचारियों ने भी ऐसी ही सहूलिहत की मांग की. बहरहाल, काले धन को सफेद बनाने के इस तरीके को इन दिनों अपनाया जा रहा है.  

हां, इतना जरूर है कि आयकर सवाल कर ही सकता है कि पेशगी के तौर पर कर्मचारियों को पैसे आखिर क्यूं दिए गए? जवाब में बीमारी, पढ़ाई और ब्याह जैसे कर्मचारियों की निजी जरूरत का बहाना बनाया जा सकता है. लेकिन बहुत बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आड़ ली गयी तो इसे साबित करना कठिन हो सकता है. वैसे अपने हिसाब-किताब को साफ-सुथरा करने के लिए कारोबारियों के पास अभी मार्च 2017 तक का समय है.

वहीं इस पूरे प्रकरण के बारे में कोलकाता के एक छुटभइए नेता का कहना है कि जो पैसे बनाना जानते हैं, वे पैसे बचा लेना भी बखूबी जानते हैं. बेकार टेंशन पालने की जरूरत ही क्या है! जाहिर है बेटी बचाओ नारे के बीच कहना ही पड़ेगा कि बेटी बचे या न बचे, करोड़ों-अरबों बनाने की चाह आसानी से तो नहीं मरती.

धन: काला और सफेद

इस पूरे प्रकरण में बांग्ला कथाकार शीर्षेंदु मुखर्जी की सोच जरा हट कर है. इनका कहना है कि असल में, देखा जाए तो रुपए-पैसे का न तो कोई चरित्र होता है और न ही रंग. जिसके हाथों में है, वही उसका मालिक बन जाता है. इसी‍ तरह इसका कोई रंग भी नहीं होता. किसी के हाथ में हो तो काला तो किसीके हाथ में सफेद! एक रुपया को ही ले लें. यह एक रुपया दिन भर में  कितने हाथों में घूमता है. इस एक रुपया में क्या कुछ खरीदने और बेचने की क्षमता रखता है. देख लिया जाए. एक बच्चा दूकान में जाकर एक रुपया की टॉफी खरीदता है. दूकानदार इस एक रुपया से चाय पीता है. चायवाला इसी एक रुपया से बीड़ी खरीद कर पीता है. इस तरह यह एक रुपया पूरे दिन जाने कितनों के हाथों घूमता है और दिन भर में कम से कम 30-40 रुपए की खरीदारी-बिक्री कर लेता है. अगले दिन भी कम से कम और भी 30-40 रुपए की खरीदारी-बिक्री हो जाती होगी. लेकिन बावजूद इसके एक पूरा दिन खत्म हो जाने के बाद भी उसकी कीमत एक रुपया ही रहती है. यानि कह सकते हैं यह एक रुपया रमता जोगी है. किसी से, कहीं भी जुड़ता नहीं है. पर होता है बंधनमुक्त. घुमक्कड़ और यायावर ही बन रहता है. इस पर काई कभी नहीं जमती. यह रुपया सफेद होता है.

आगे वे कहते हैं कि कभी-कभार कुछ रुपया किसीके चक्कर में पड़ कर गायब भी हो जाता है. या किसी छोटी-बड़ी तिजोरी में धुनी रमा कर बैठ जाता है. जब निकलता है, तब चोरी-छिपे निकलता है. अंधेरे में, चोर दरवाजे से, नकाबपोश बनकर. कभी निवेश के लिए तो कभी खरीद-बिक्री के लिए. जाहिर है तब यह शक के दायरे में आ जाता है. यह काले पैसे के रूप में जाना जाता है. लेकिन 8 नवंबर की रात आठ बजे ऐसे धन के अज्ञातवास पर चोट पड़ी. वैसे इनका अज्ञातवास खत्म हुआ या नहीं – यह पुख्ता तौर पर अभी कहा नहीं जा सकता.

बहरहाल, साफ है अब तक इसी काले और सफेद – दोनों के अस्तित्व के बल पर ही बाजार का लेन-देन चल रहा था. कुछ का तो मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था में काले धन का अवदान कुछ कम नहीं. इसीलिए समानांतर रूप से एक को काला और दूसरे को सफेद करार देना बहुत कठिन है. माना तो यह भी जाता है कि जिनके पास काला धन है वे और कुछ नहीं तो उन्हें नष्ट कर दें; यह बात सरकार के हक में जाती है और ऐसा इसलिए कि सरकार को उस रकम का बोझ वहन नहीं करना पड़ेगा.

शीर्षेंदु कहते हैं कि मोदीजी ने अच्छा किया या बुरा – पता नहीं. हां, इतना जरूर कहना चाहूंगा कि जरा तैयारी के साथ मोदीजी आते तो अच्छा होता. हालांकि इसे कोई बहुत बड़ी गलती तो नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन जनता को बड़ी तकलीफ हुई. उस जनता को जिसके एक बड़े हिस्से के पास झक्क सफेद पैसे हैं, इतने सफेद कि लगता है वे पैसे एनिमिया के शिकार हों. लेकिन जिनके पास काला धन है, उनके वे पैसे जाने कब छद्मवेश में जमीन, सोने के बिस्किट या शेयरों में निवेश किए जा चुके हैं. ऐसे में लगता है इस पूरे प्रकरण में आम जनता को नाहक परेशानी हुई.

पानी ही फिर गया
एक चालू किस्म की शायरी है, जरा उस पर गौर फरमाइएं –
मेरे जनाजे के पीछे सारा जमाना निकला
,पर वह न निकली जिसके लिए जनाजा निकला.

जी हां, इन दिनों देश में स्थिति कुछ ऐसी ही बनी हुई है. जुगत और दलालतंत्र ने देश से काला धन के नाश की मोदी की मंशा (!) पर पानी फेर दिया. देश में मौजूद कालाधन खत्म करने के लिए मोदीजी ने पुराने 500/1000 रु. के नोटों पर बैन लगाया था. लेकिन मजेदार बात यह है कि घोषणा के अगले ही दिन दलालतंत्र पूरे देश भर में सक्रिय हो गया. 8 नवंबर की रात को प्रधानमंत्री की घोषणा से घबराए लोग सड़क पर निकल आए. हरेक एटीएम के सामने भीड़ लग गयी. वहीं बाजार-मुहल्ले के अवसरवादी तत्व मोटा कमीशन की शर्त पर दलाल, मनी ऑपरेटर, मनी मैनेजर में तब्दील हो गए. फोन की घंटियां बजनी शुरू हो गयी – कितना है? इतना. काम हो जाएगा? हो जाएगा. पर कमीशन लगेगा. कितना कमीशन? 10-30 लाख की रकम पर 20-35 प्रतिशत कमीशन.

इन कुछ दिनों में कोलकाता में एशिया के बड़े थोक बाजार बड़ाबाजार में दूकानदार कहने को तो मक्खी मार रहे हैं, लेकिन पिछले दरवाजे से कट मनीका कारोबार अच्छा चल रहा है. इस काम में कारोबारी से लेकर ठेकेदार, प्रमोटर, मजदूर ठेकेदार और बिल्डर लग गए. इनके रेट कार्ड तक रातोंरात तैयार हो गए. रेट कार्ड के हिसाब से दस लाख से कम की रकम पर 20 प्रतिशत, 10-19 लाख की रकम पर 25 प्रतिशत, 20-29 लाख पर 30 प्रतिशत और 30 लाख से अधिक की रकम पर 35 प्रतिशत का कट मनी यानि कमीशन. दलालतंत्र 30 लाख से अधिक रकम पर हाथ लगाने से पीछे हट रहा है. इतना ही नहीं, बताया जाता है तय टाइम फ्रेम के तहत काम निपटाया जा रहा है और उसी हिसाब से भी कमीशन लिया व दिया जा रहा है. साथ कुछ और शर्ते भी हैं.

दरअसल, ऊपरी तौर पर देखा जाए तो कारोबार में सब कुछ कानूनी नजर आता है, लेकिन पर्दे के पीछे दूसरों से लिया गया 500/ 1000 का नोटोंवाली रकम दबे पांव कारोबार में शामिल होता है. इस भरोसे के साथ कि पुराने नोट देनेवाले को अगले महीने वह रकम नए नोटों के रूप में वापस मिल जाएगी. लेकिन 25-30 प्रतिशत की कट मनीके बाद. इस तरीके से 10-20 लाख आराम से बदले जा सकते हैं. पर 30 लाख की रकम में थोड़ी परेशानी पेश आएगी. लेकिन सक्रिय दलालतंत्र इतना भी मैनेजकर ले सकता है. पर इससे ज्यादा के लिए दलालतंत्र बमुश्किल ही तैयार हो रहा है.

आइए देखे, तरीका क्या है. इन दिनों काले धन को सफेद करने में करंट एकाउंट का इस्तेमाल हो रहा है. यहां यह जान लें कि ऐसे मामले में चालू खाता कई मर्ज का इलाज हो सकता है. शर्त केवल एक है और वह यह कि चालू खाता चालू हो. यानि सक्रिय हो. चालू खाते के माध्यम से लेनदेन होता रहा हो. अब जो दस्तावेज तैयार करना होगा वह बैक डेटमें होने चाहिए. जाहिर है आजकल बैंकों में चालू खाता बहुत सक्रिय हो गया है.

कोलकाता के एक डेवलपर का कहना है कि बैक डेटेडदस्तावेजों में दिखाया जा रहा है कि निर्माण का काम जल्द से जल्द पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा मजदूर काम कर लगाए गए. इन मजदूरों को मेहनताना और पेशगी का भुगतान दिखा कर यह काम आसानी से हो रहा है. ज्यादातर मंझोले व बड़े कारोबारियों का लेनदेन चालू खाते से होता है. और लगभग हर रोज कुछ न कुछ लेनदेन होता ही है. इसी चालू खाते के जरिए दूसरों से लिये गए पुराने नोटों की बड़ी रकम बैंकिंग सिस्टम में पहुंच जाती है. लेकिन दस्तावेजों को बैक डेटदिखाना होगा. इसके बाद नियमानुसार नोट बदल कर कट मनीलेकर बाकी रकम असली मालिक के हाथों लेकर पहुंच जाती है.  

कोलकाता के एक कर-सलाहकार ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि उपरोक्त तरीके से 5-10 लाख रुपए का काला धन हंसते-खेलते सफेद किया जा सकता है. ऐसे और भी कई तरीके हैं. कारोबारी यह भी दिखा सकता है कि उसके किसी क्लाइंट ने उससे कर्ज ले रखा था और अब वह रकम उसने वापस लौटाया है. कर्ज चुकता किए जाने से वह रकम आयी है. या फिर उधार में लिये गए माल के भुगतान के रूप में दिखाया जा सकता है. लेकिन इन मामलों में भी बैकडेटेडदस्तावेज दिखाने होंगे.

500 और 1000 रूप्ये के पुराने नोटों की एक तय रकम दलालों को 10-30 दिनों की मोहलत में सौंपा जा रहा है. ठीक समय पर समय या समय से पहले पुराना चोंगा बदल कर नए नोट की वापसी होगी. पर पूरी रकम नहीं. कमीशन की रकम कटकरने के बाद बाकी रकम लौटा दी जाएगी. यह सब जुबानी कौल पर हो रहा है. वैसे भी बड़ाबाजार का कारोबार जुबानी कौल कर ही चलता है. मोटी रकम अयकर में झोंकनेया दो सौ प्रतिशत जुर्माने का शॉक झेलने के बजाए बगैर भाग-दौड़ की परेशानी मोले, बगैर बैंक अधिकारियों की हुज्जत किए पुराने नोट के बदले नए नोट मिल जाते हैं तो कट मनीको बर्दास्त करना नॉट ए बिग डील‘!    

अब इसका पुख्ता हिसाब कैसे लगेगा कि कहां कितनों ने अपनी-अपनी छिटपुट जुगत और दलालतंत्र के जरिए काले पैसों को सफेद किया. ऐसे में लगता है कि जहां से चले थे, इतनी सारी हुज्जत के बाद फिर से देश वहीं आकर रुक गया.  एक वृत पूरा हुआ. हासिल कुछ खास नहीं हुआ.

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Bollywood : फिल्ममेकर्स कुछ नया और बड़ा करने के लिए धार्मिक फिल्मों का सहारा लेते हैं,

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ये दर्शकों के बीच सब से ज्यादा पसंद भी की जाती हैं. बौलीवुड में ऐसी ही कुछ फिल्में हैं जो काफी विवादों में रहने के बावजूद भी छप्परफाड़ कमाई कर चुकी हैं.

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हिंदी फिल्में असल में मनोरंजन का एक पैकेज हुआ करती हैं, जिस में गाने, डांस, मारधाड़ आदि दृश्य होते हैं. फिल्मों को समाज का आईना भी कहा जाता है, इस वजह से हिंदी फिल्में भी उस बात को ध्यान में रखते हुए ही बनाई जाती हैं, जिस में सब से अधिक धार्मिक फिल्में सब को अधिक पसंद आती है, क्योंकि धर्म हर व्यक्ति की भावनाओं से जुड़ा होता है और इस पर बनी फिल्में दर्शकों को अधिक आकर्षित करती हैं.

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बौलीवुड की ऐसी 5 सफल धार्मिक फिल्में हैं, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. ऐसी फिल्मों पर कई बार सवाल भी उठाए जाते हैं, लेकिन

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फिल्ममेकर इसे बनाने से नहीं चूकते.

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अभिनेता आमिर खान और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘पीके’ भक्ति और आस्था के नाम पर चल रहे गोरखधंधे को ले कर बनाई गई फिल्म है, जिस में धर्म को ले कर आडंबर और लूटपाट की घटनाओं के बीच एक दूर ग्रह से एक अंतरिक्ष यात्री आता है, जिस के भाषा का कोई आचरण नहीं औ

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र न ही उस के शरीर पर वस्त्रों का कोई आवरण है. सच्चे दिल का एक इंसान है, लेकिन उस के बातचीत और सवालों से धरतीवासी चकित हो जाते हैं और मान बैठते हैं कि वह हमेशा पिए रहता है यानि पीके घूम रहा है.

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Baidyanath Sundari Sakhi : महावारी यानी मासिक धर्म एक ऐसी प्रक्रिया है जो हर महिला के जीवन का अहम हिस्सा है. यह केवल भौतिक विकास का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि अपने साथ काई तरह की समस्याएं भी उत्पन्न करता है. आइए, हम इन समस्याओं का विश्लेषण करें और उनके समाधान खोजें.

महावारी की समस्याएँ

   1. समस्याओं का संकोच 

बहुत सी महिलाएँ महावारी के दौरन होने वाले शरीरिक और मानसिक दर्द के बारे में बात करने में संकोच महसूस करती हैं. इसी वजह से उन्हें सहारा नहीं मिलता और समस्याओं को समझने और हल करने में कठिनाई होती है.

    2. शारीरिक दर्द

बहुत सी महिलाएँ महावारी के दौरन पेट दर्द, सर दर्द, और थकान का सामना करती हैं. ये दर्द कभीकभी इतना कठिन होता है कि उनका दिनचर्या प्रभावित होती है.

   3. मानसिक तनव

हार्मोनल परिवर्तन की वजह से महावरी के दौरान महिलाएं मानसिक तनाव और मूड स्विंग का सामना करती हैं. इस्से उनका सामान्य जीवन जीने में कठिनाइयां होती है.

   4. स्वास्थ्य संबंधि समस्याएँ

कुछ महिलाओं को अत्यधिक रक्तस्राव, अनियमित मासिक धर्म, या PCOS जैसा स्वास्थ्य संबंध समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो उनकी जीवन शैली को प्रभावित कर सकती हैं.

समाधान

     1. समस्या का विश्लेषण 

महावरी से जुड़ी समस्याओं पर खुली बातचीत करना जरूरी है. परिवार और दोस्त इसमें मददगार साबित हो सकते हैं. जागरूकता बढ़ाने से समस्या कम होती है.

    2. दर्द प्रबंधन

दर्द के लिए दर्द निवारक दवा का उपयोग किया जा सकता है. कुछ महिलाएं योग और ध्यान के माध्यम से भी दर्द को कम करने का प्रयास करती हैं.

   3. पोषण और व्यायाम 

सही पोषण और नियमित व्यायाम से आप अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं. फल, सब्जियां और hydration का ध्यान रखना जरूरी है.

   4. मानसिक स्वास्थ्य सहायता

अगर आपको मानसिक स्वास्थ्य के दौरान स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है, तो पेशेवर मदद लेना संभव है. Counselling या therapy से आपको समस्याओं का समाधान मिल सकता है.

यदि इसे भी आराम नहीं मिलता, तो आप वैद्य से परामर्श लेकर बैद्यनाथ द्वारा दी गई सुंदरी सखी का उपयोग कर सकते हैं;

बैद्यनाथ सुंदरी सखी आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों से तैयार किया गया एक healthy टॉनिक है, सेहत को हर स्तर पर सुधारने में मदद करता है। इसमें शामिल जड़ीबूटियाँ सिर्फ शारीरिक बल देती हैं, बल्कि मानसिक तनाव को भी कम करती हैं.

बैद्यनाथ सुंदरी सखी में शामिल आयुर्वेदिक जड़ीबूटियाँ

  1. अशोका: महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को सुधारने वाली यह जड़ीबूटी मासिक धर्म की अनियमितताओं में बहुत लाभकारी है.
  2. अश्वगंधा: यह जड़ीबूटी शरीर की थकान और दर्द को दूर कर ऊर्जा प्रदान करती है.
  3. मंजिष्ठा – यह त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है

सुंदरी सखी का उपयोग कैसे करें?

  • वैद्य से परामर्श लेकर रोजाना सुबह और शाम 2 चम्मच सुंदरी सखी को गुनगुने पानी  के साथ लें.
  • इसे नियमित रूप से 3 महीने तक उपयोग करें.
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