उत्तर प्रदेश सरकार 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के हो चुके सरकारी अधिकारियों का मूल्यांकन कर के अयोग्यों को रिटायर करने पर विचार कर रही है. यह तो पक्का है कि 50 वर्ष की उम्र तक ज्यादातर सरकारी कर्मचारियों के दिल पक चुके होते हैं क्योंकि उन्हें तबादलों, नएनए विभागों, नएनए बौसों, बदलते राजनीतिक समीकरणों से जूझना होता है. उन के हाथ में असीमित अधिकार होते हैं पर आजकल मीडिया व अदालतों की स्कू्रटिनी भी जम कर हो रही है.
जनता भी अब निडर होने लगी है और हर फैसले पर चूंचूं करने लगती है. 50 वर्ष की उम्र के बाद अधिकतर सरकारी अफसर समय काटने का मूड बना लेते हैं. उन की जो कमाई होनी होती है, हो चुकी होती है. इस उम्र तक वे ऐसे पद पर पहुंच जाते हैं जहां ऊपर की कमाई सीधे नहीं, छनछन कर पहुंचती है हिस्से के रूप में.
हां, इस स्तर पर भी उन के अधिकार बहुत होते हैं. कमेटियों और मीटिंगों में कहनेकरवाने के उन के अवसर बढ़ जाते हैं, रोबदाब भी खूब रहता है. सवाल है कि क्या उत्तर प्रदेश की भगवा सरकार अपने इस विचार को फैसले में बदल कर लागू करवा पाएगी? भाजपा असल में ऊंची जातियों के सरकारी अफसरों, छोटे व्यापारियों (जो खुद ब्राह्मण बनने की कोशिश कर रहे हैं), मंदिरों के महंतों, संतों और पूजापाठी बुजुर्गों के बल पर सत्ता में आई है.
अगर उस ने बड़े पैमाने पर 50 वर्ष से ऊपर वालों को हटाया तो तूफान मच जाएगा और अफसरशाही खुला नहीं, तो चुपचाप विद्रोह कर देगी, ताकि ऐसा कोई फैसला कारगर ही न हो सके. हां, यदि इस कदम का उद्देश्य आरक्षित अफसरों को हटाना हो, तो बात दूसरी है. उन अफसरों की फाइलों में उन के बारे में बहुत सी नोटिंग्स होती हैं.
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