हैवानियत की हद : भाग 3

लेखक- विजय माथुर/कैलाश चंदेल 

अगले ही पल सीमा की कार श्रीराम गुप्ता अस्पताल की तरफ दौड़ रही थी. डा. सीमा सास को कार में बैठी छोड़ कर हौस्पिटल के अंदर चली गई. जब वह बाहर निकली तो उस के हाथ में एक बोतल थी. इस के बाद कार अब सूर्या सिटी की तरफ दौड़ने लगी.

आगे जो हुआ, वह कहानी में बता चुके हैं.

थाना चिकसाना में डा. सीमा और डा. सुदीप की मां सुरेखा के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद आईजी लक्ष्मण गौड़ के निर्देश पर एसपी हैदर अली ने जांच की जिम्मेदारी एएसपी मूल सिंह राणा को सौंप दी. 9 नवंबर को डा. सीमा और सुरेखा गुप्ता एएसपी मूल सिंह राणा के सामने बैठी थीं. सीमा की आंखें रोतेरोते सूज गई थीं. सिसकियां अभी भी जारी थीं.

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आंसुओं से भीगा रूमाल लिए बैठी सीमा के चेहरे पर ऐसे भाव थे, मानो अंदर से फूट पड़ने को व्याकुल रुलाई को पूरी ताकत से दबाने की कोशिश में हो. सुरेखा गुप्ता को देख लग रहा था जैसे 2 दिनों में और बूढ़ी हो गई. उस की आंखें बुझीबुझी सी थीं. एएसपी राणा ने सीमा के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए कहा, ‘‘छिपाने से कुछ हासिल नहीं होगा. बेहतर है सब कुछ अपने आप ही बता दें. पहले 7 नवंबर का ब्यौरा बताइए.’’

अब तक अपने आप पर काबू पा चुकी सीमा ने बताना शुरू किया, ‘‘अपनी सास सुरेखा के साथ जिस समय मैं पहली बार सूर्या सिटी स्थित दीपा के मकान पर पहुंची, उस समय दोपहर का डेढ़ बजा था. लेकिन दीपा वहां नहीं मिली. उस समय मकान पर ताला लगा हुआ था.

मकान के आगे लगी प्लेट में एस-2 विला लिखा हुआ था. मकान के कोने पर आयशा सैलून एंड स्पा सेंटर का बोर्ड लगा हुआ था. मैं इस कदर आवेश में थी कि लौटने के बजाए मुझे आसपास कहीं रुक कर दीपा का इंतजार करना बेहतर लगा.

‘‘प्रतीक्षा के लिए हम ने पेड़ों से घिरे पार्क को चुना. वहां से हम दीपा की आवाजाही पर नजर रख सकते थे. इस बीच करीब 2 बजे हम ने डा. सुदीप को दीपा के घर में जाते और फौरन वापस लौटते देखा.

सुदीप की वहां आवाजाही ने मेरे शक को पुख्ता कर दिया. लेकिन वहां पहुंचने के अपने मकसद को ध्यान में रखते हुए तात्कालिक तौर पर गुस्से पर काबू रखना जरूरी था.

‘‘करीब ढाई बजे के लगभग हम ने शौर्य को स्कूल बस से उतरते देखा. बच्चे ने भी घर पर ताला लगा देखा होगा, वह घर से निकल कर पड़ोस के मकान में चला गया.

‘‘हमारी आंखें दीपा के मकान पर गड़ी हुई थीं. लगभग 5 बजे हम ने दीपा को एक टैक्सी से उतरते और घर के भीतर दाखिल होते हुए देखा. हम ने करीब 10 मिनट इंतजार किया. इस के बाद हम ने अपनी गाड़ी दीपा के मकान के पास खड़ी कर दी.’’

अपराध की लकीरें छप गईं हाथों पर

सीमा पुलिस स्टेशन के चार्ज रूम में गुरुवार, 7 नवंबर, 2019 का अपना हालहवाल दोहरा रही थी. पुलिस सीसीटीवी कैमरे खंगालने तथा चौकीदार से पूछताछ कर तथ्यों की पुष्टि कर चुकी थी.

राणा ने कहा, ‘‘अच्छा, मुझे उस दिन डा. सुदीप गुप्ता से हुई बातचीत के बारे में बताओ. और हां, यह सोच कर बताना कि बातचीत की मोबाइल रिकौर्डिंग हमारे पास मौजूद है.’’

सीमा क्षणभर चुप रही. फिर उस ने बताना शुरू किया. ‘‘घटना से पहले मैं ने सुदीप को बता दिया था कि तुम लाख समझाने के बावजूद दीपा से किनारा नहीं कर रहे हो. इसलिए अब मैं मम्मी को साथ ले कर उस के घर जा रही हूं. एक औरत ही औरत को समझा सकती है. किसी का सिंदूर पोंछ कर अपनी मांग सजाने का क्या नतीजा हो सकता है, उसे पता चलेगा.

‘‘सुदीप मेरे मिजाज से वाकिफ था. इसलिए बारबार कहता रहा, ‘देखो जल्दबाजी से काम मत लेना. मुझे उसे समझाने का एक और मौका दो.’ लेकिन मैं ने यह कहते हुए उस की बात अनसुनी कर दी कि मैं ने तुम्हें एक नहीं दस मौके दिए.

‘‘सुदीप की कोई बात सुनने के बजाए मैं ने फोन काट दिया. सुदीप शायद मेरा इरादा भांप गया था. इसलिए वह अनहोनी की आशंका से बुरी तरह घबरा गया. मैं ने दीपा के मकान की निगरानी करते वक्त करीब 3 बार सुदीप को उस के घर पहुंचते और लौटते देखा.

‘‘सुदीप को आखिरी फोन मैं ने मकान को आग लगाने के बाद किया कि आजा और बचा सके तो बचा ले अपने दिल की रानी को. मैं ने उसे आग के हवाले कर दिया है. मैं केवल सुदीप की चीख सुन पाई और फोन बंद कर दिया.’’

सीमा ने कहना जारी रखा, ‘‘सुदीप दीपा पर जान निछावर करता था. उस की आशनाई इस कदर बढ़ गई थी कि सुबह मेरे सामने रिश्ते तोड़ने की कसम खाता था और शाम को फिर उस की गोद में चला जाता था. कई बार शहर से बाहर जाने के बहाने वह दीपा के साथ होटलों में रात गुजारने लगा था. दीपा गुर्जर के पीछे वह इतना पागल हो गया था कि आयशा स्पा सेंटर की साजसज्जा पर लाखों  रुपए फूंक दिए थे.

‘‘स्पा सेंटर में थाइलैंड की झालर, करीब 5 लाख के फरनीचर के अलावा उस ने करीब 20 लाख खर्च कर दिए थे. मैं ने अपने सूत्रों से पता लगाया तो जान कर हैरान रह गई कि दीपा सुदीप को अपना पति बताते हुए कहती थी कि स्पा सेंटर उस के पति सुदीप ने ही खुलवाया है.’’

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अपनी फूटती रुलाई रोकने की कोशिश करते हुए सीमा ने कहा, ‘‘उस ने दीपा के बेटे को अडौप्ट कर लिया था. नया घर, नई बीवी और बेटा…और मैं? मेरा क्या?’’

मैं ने सुदीप को बहुत समझाया कि ऐसी औरतें किसी की सगी नहीं होतीं. दीपा उसे बहका रही है. उसे तुम्हारे पैसों और शरीर सुख की चाहत है. जब पैसा मिलना बंद हो जाएगा, तुम्हारे लिए दरवाजे भी बंद हो जाएंगे. लेकिन मेरी कोई समझाइश काम नहीं आई.

सीमा ने कहना जारी रखा, ‘‘हमें स्पा सेंटर की बाबत सब कुछ मालूम हो चुका था. पहली नवंबर को जब सुदीप देर रात तक नहीं लौटा तो हमें मालूम नहीं था कि वो दीपा की पार्टी में था. लेकिन जब मैं ने अपनी सास से फोन करवाया तो वह साफ झूठ बोल गया कि वह किसी परिचित की पार्टी में है. मुझे उसी दिन शक हो गया था लेकिन कलह की वजह से चुप्पी साध गई.

‘‘पार्टी में शहर के कई लोग आए होंगे, लोगों ने सुदीप और दीपा की जुगलबंदी को किस नजर से देखा होगा, कितनी बदनामी की बात थी. बस उसी दिन मैं ने तय कर लिया था कि उस पेड़ को ही काट दूंगी, जिस पर सुदीप झूल रहा है.

‘‘फिर पैसा तो मेरे घर का ही फूंका जा रहा था. बैंक एकाउंट से लाखों निकाले जा रहे थे और मैं उसे रोक तक नहीं पा रही थी. सूर्या सिटी का लाखों का मकान भी तो सुदीप ने ही उसे खरीद कर दिया था.’’

डा. सुदीप के सच पर संदेह

डा. सुदीप से पूछताछ में पुलिस को बेशक बहुत कुछ मिला, लेकिन वह सच बोल रहा था, इस की कोई गारंटी नहीं थी. पुलिस जांच में आए कुछ तथ्य महत्त्वपूर्ण थे. मसलन, रोजरोज के दबाव के चलते डा. सुदीप ने कुछ समय पहले दोसा शहर के महवा कस्बे के एक होटल में दीपा से शादी कर ली थी.  इस शादी में दीपा की बहन राधा भी मौजूद थी. कुछ दिनों से सुदीप और दीपा के रिश्तों में भी खटास आने लगी थी.

दरअसल, दीपा अपने बेटे शौर्य को पिता के तौर पर डा. सुदीप का नाम दिलवाने की जिद कर रही थी. जबकि डा. सुदीप इस के लिए तैयार नहीं थे. चिकसाना थानाप्रभारी श्रवण पाठक का कहना था कि इस मामले में डा. सुदीप के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. इस की वजह दीपा की जिद को ले कर दोनों के बीच बढ़ती तकरार हो सकती है.

सुदीप उसे टालने के लिए बारबार कहता था कि अभी जल्दबाजी मत करो. थोड़ा इंतजार करो. डा. सुदीप का कहना था कि पता नहीं भावुकता के कौन से पल थे, जब मैं उस से प्यार कर बैठा. लेकिन उस का प्यार मेरे गले की फांस बन गया था. दीपा मुझ से शादी कर चुकी थी, अब बेटे को मेरा नाम देने पर अड़ी हुई थी.

मैं जितना दलदल से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था, उतना ही फंसता जा रहा था. मेरी पत्नी और मां, दोनों को कैंसर था. मैं ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि सीमा को कुछ भी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो हमारे लिए रास्ता खुल जाएगा. उस के बाद हम दोनों को साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन दीपा थी कि मेरी कोई बात मानने को तैयार नहीं थी.

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बहरहाल, पुलिस की जांच अभी इसी दिशा में चल रही है. चिकसाना थाने में इस मामले की रिपोर्ट सीमा की बहन राधा ने दर्ज कराई थी. सुदीप, सीमा और सुरेखा तीनों न्यायिक हिरासत में हैं.

पुलिस सूत्रों तथा जानकार सूत्रों पर आधारित

हैवानियत की हद : भाग 2

लेखक- विजय माथुर/कैलाश चंदेल 

अगले दिन डा. सुदीप गुप्ता ने रिसैप्शन पर एक अजनबी और मोहक चेहरे को देखा तो थोड़ा आश्चर्य हुआ. दीपा ने जब एक अनजान व्यक्ति को अपनी तरफ अपलक निहारते हुए देखा तो हड़बड़ा गई. लेकिन यह सोच कर कि शायद कोई क्लायंट होगा, उस ने चेहरे पर सुलभ मुसकान लाते हुए पूछा, ‘‘यस सर, व्हाट कैन आई डू फौर यू?’’

‘‘यू कैन डू एवरीथिंक फौर मी…’’ कहते हुए डा. सुदीप ने हंस कर जवाब दिया, ‘‘आई एम डा. सुदीप गुप्ता…आई थिंक माई इंट्रोडक्शन इज सफिशिएंट फौर यू?’’

‘‘सौरी सर, मुझे मालूम नहीं था.’’ कहते हुए दीपा संकोच से सिकुड़ती हुई हड़बड़ा कर रह गई.

‘‘कोई बात नहीं,’’ डा. सुदीप ने लापरवाही दर्शाते हुए कहा, ‘‘होता है ऐसा…’’

डा. सुदीप की आंखों की चमक बता रही थी कि दीपा की खूबसूरती उन के दिल में उतर गई थी.

रात को जब डाक्टर दंपति घर लौट रहे थे, तब सीमा ने खबरिया लहजे में डा. सुदीप को बताया, ‘‘मैं ने एक रिसैप्शनिस्ट रख ली है.’’

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कार ड्राइव करते हुए सुदीप ने पत्नी से बड़े सहज भाव से कहा, ‘‘तुम ने जो किया, अच्छा ही किया होगा.’’

असल में दीपा से मिलने के बाद डा. सुदीप उतना सहज नहीं थे, जितना प्रदर्शित कर रहे थे. श्री राम अस्पताल की बागडोर पूरी तरह डा. सीमा के हाथ में थी. सरकारी नौकरी में होने के नाते डा. सुदीप सिर्फ शाम को दोढाई घंटे क्लिनिक में बैठते थे. उन की सिटिंग में नियमितता कतई नहीं थी.

लेकिन दीपा को देखने के बाद डा. सुदीप को एक मकसद मिल गया था. दीपा को देखने के बाद गंभीर रहने वाले डा. सुदीप के चेहरे पर मुसकान तैरने लगी थी. उन की हौस्पिटल सिटिंग भी बढ़ गई थी.

सीमा इस परिवर्तन को भांप नहीं पाई. उस की नजर में तो यह अच्छा ही था. इस से  उसे पति का ज्यादा सान्निध्य मिलने लगा. पति के साथ रात को घर वापसी के मौके भी बढ़ गए थे. दूसरी ओर दीपा के लिए भी ऐसे मौके बढ़ गए थे, जब डा. सुदीप किसी न किसी बहाने उसे अपने चैंबर में बुलाते थे.

भूले से दीपा के जहन में यह खयाल भी आया कि डा. सुदीप उस के करीब आने की कोशिश कर रहे हैं तो उसे भी आगे बढ़ना चाहिए. इसी सोच के साथ दीपा और डाक्टर के बीच हायहैलो के साथ छोटीमोटी बातें होने लगीं.

एक दिन लुकाछिपी का यह परदा भी हट गया. दरअसल, अस्वस्थता के कारण डा. सीमा कुछ दिनों से अस्पताल नहीं आ रही थी. इस से दीपा की जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं. साथ ही डा. सुदीप को भी अस्पताल में ज्यादा वक्त देना पड़ रहा था. दीपा को हर मामले में मशविरे के लिए डा. सुदीप के पास जाना पड़ता था.

डा. सुदीप को मन भाई दीपा

मिलने के मौके बढ़े तो अनायास दोनों बेतकल्लुफ होते गए. चायकौफी भी साथ होने लगी. नतीजतन अनायास ही कुछ स्थितियां बनीं कि डा. सुदीप दीपा के घरपरिवार के बारे में पूछ बैठे.

दीपा की यह सब से बड़ी दुखती रग थी, उस ने पति से अलगाव और बेटे का पालनपोषण करने से ले कर एकाकीपन का सारा संताप आंसुओं के साथ डा. सुदीप के सामने बहा दिया. अपनेपन का अहसास हुआ तो दीपा के दिल का दर्द फूट पड़ा, ‘‘दिन तो जैसेतैसे हौस्पिटल में गुजर जाता है, लेकिन शाम को जब लौटती हूं तो रात और अकेलेपन की चिंता मन को मथने लगती है. मैं बिलकुल टूट गई हूं.’’

इसी बीच एक दिन डा. सुदीप और दीपा के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं. इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. डा. सुदीप का गाहेबगाहे अस्पताल आना और दीपा का रिसैप्शन छोड़ कर घंटों सुदीप के चैंबर में बैठे रहना, हौस्पिटल स्टाफ में खुसरफुसर की वजह बनने लगा.

इस प्रेम कहानी की भनक डा. सीमा को लगी तो एक बार तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ. इधरउधर की बातें सुनने की बजाए उसे आंखों देखी पर ज्यादा भरोसा था.

आखिर उसे यह मौका भी मिल गया. संयोग से डा. सीमा को एक रसूखदार पेशेंट के लिए विजिट पर जाना पड़ा. सुदीप की अस्पताल में मौजूदगी के कारण डा. सीमा को कहीं जाने में कोई दिक्कत भी नहीं थी. पत्नी की लंबी गैरहाजिरी में प्यार का लुत्फ उठाने के लिए डा. सुदीप को यह बढि़या मौका मिल गया.

उस ने सोचा कि सीमा जिस विजिट पर गई है, 2 घंटे से पहले वापस नहीं आएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. डा. सीमा विजिट कर के एक घंटे में ही लौट आई. सीमा ने दीपा को रिसैप्शन से गायब देखा तो उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाए बिना नहीं रहा.

बिना एक पल गंवाए डा. सीमा पति के चैंबर में जा धमकी. चैंबर का नजारा शर्मसार कर देने वाला था. पति को डा. सीमा क्या कहती? लेकिन जो कर सकती थी, उस ने वही किया. सीमा ने दीपा को नौकरी से निकालने की धमकी दे कर कहा कि वह डा. सुदीप से दूर रहे.

इस अपमानजनक घटना के बाद इस प्रेम कहानी का पटाक्षेप हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. डा. सुदीप और दीपा लुकाछिपी से इस प्रेम कहानी को चलाते रहे. डा. सीमा को कभीकभार उड़ती खबरें मिलीं भी तो सुदीप ने यह कह कर आश्वस्त कर दिया कि ऐसा कुछ नहीं है. जो हुआ, वह एक मामूली हवा का झोंका था, जिस में मैं ही बहक गया था.

फिर भी डा. सीमा ने पति को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘अच्छा है, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए. नहीं लौटे तो तुम्हें और उसे ऐसा सबक सिखाऊंगी कि तुम्हारे फरिश्ते भी पनाह मांगेंगे.’’

पत्नी की गंभीर चेतावनी से पलभर को डा. सुदीप हड़बड़ाया जरूर, लेकिन जल्दी ही सहज होते हुए बोला, ‘‘अब तुम खामख्वाह बात का बतंगड़ बनाने पर तुली हो, जबकि ऐसी कोई बात नहीं है.’’

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पत्नी से वादा करने के बावजूद डा. सुदीप उस की आंखों में धूल झोंकता रहा. सुदीप और दीपा के नाजायज रिश्तों की खिचड़ी पूरे उफान पर थी, इसे सामने तो आना ही था. यह मौका भी अपने आप दबेपांव चल कर आया.

शुक्रवार 2 नवंबर को डा. सीमा को उस की सहेली नीरजा सप्रे (कल्पित नाम) की फोन काल ने हड़बड़ा कर रख दिया. नीरजा ने डा. सीमा को बधाई देते हुए सवाल भी कर डाला कि तुम्हें स्पा सेंटर खोलने की क्या सूझी. सीमा की समझ में नहीं आ रहा था कि नीरजा कौन से स्पा सेंटर की बात कर रही है. माजरा जानने के लिए उस ने संयम बरतते हुए कहा, ‘‘हां, वो तो है लेकिन तुम कहना क्या चाहती हो, कैसे पता चला तुम्हें?’’

नीरजा ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘क्यों पहेलियां बुझा रही हो सीमा, साफसाफ लिखा तो है इनविटेशन कार्ड में. कार्ड तुम्हारे हसबैंड डा. सुदीप गुप्ता के नाम से था. सूर्या सिटी में कल आयशा सैलून एंड स्पा सेंटर का उद्घाटन था.’’

फिर एक पल रुकते हुए नीरजा ने कहा, ‘‘यह शौर्य कौन है? कार्ड में स्पा सेंटर के अलावा शौर्य की बर्थडे पार्टी भी थी…क्या तुम ने कोई बच्चा अडौप्ट किया है?’’

नीरजा के फोन ने सीमा के कानों में अंदेशों की हजार घंटियां बजा दीं. उसे पूरी तरह यकीन हो गया कि सुदीप ने दीपा का साथ नहीं छोड़ा, जरूर उस ने कोई नया गुल खिलाया है.

गुस्से से उबलती हुई डा. सीमा ने भरसक अपने आप पर काबू रखने के साथ यह कहते हुए फोन काट दिया कि जब मिलेगी तो बताऊंगी.

सुरेखा गुप्ता को भी हैरानी हुई. सीमा ने बताया कि आप के लिए नई खबर है मम्मी.

‘‘कैसी खबर?’’ सुरेखा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘लगता है सुदीप और दीपा की प्रेम कहानी बदस्तूर चल रही है. सुदीप ने सूर्या सिटी में उस के लिए फ्लैट ले दिया है. साथ ही उस के लिए स्पा सेंटर भी खुलवा दिया है.’’ डा. सीमा ने बताया.

‘‘खुलवा दिया है, क्या मतलब?’’ सास ने हैरानी से पूछा.

‘‘सुदीप अब भी दीपा गुर्जर से चिपका हुआ है. कल पहली नवंबर को उस का स्पा सेंटर खुलवा चुका है आप का बेटा, अपनी प्रेमिका के लिए.’’ सीमा ने आगबबूला होते हुए कहा, ‘‘इतना ही नहीं, उस के बेटे को भी एडौप्ट कर लिया है. कल ही उस की बर्थडे पार्टी थी.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’ सुरेखा ने विस्मय से पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला, किस ने बताया?’’

‘‘अपने तो बताने से रहे, गैरों ने ही बताया. शहर में इनविटेशन कार्ड बांटे और हमें भनक तक नहीं लगी. कार्ड में इनवाइट करने वाले की जगह आप के बेटे का ही नाम था डा. सुदीप गुप्ता.’’ डा. सीमा ने हाथ नचाते हुए कहा.

सुरेखा गुप्ता सिर थाम कर बैठ गईं, ‘‘समझ में नहीं आ रहा, शहर में अपनी किरकिरी क्यों करवा रहा है संदीप.’’

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‘‘कोई किरकिरी नहीं होगी मम्मीजी, मैं आज हमेशा के लिए उस का टंटा खत्म कर दूंगी. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’’ इस के साथ ही सीमा गुप्ता ने सास का हाथ थामा और घसीटते हुए बाहर खड़ी कार की तरफ बढ़ गई.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

हैवानियत की हद : भाग 1

लेखक- विजय माथुर/कैलाश चंदेल 

गुरुवार 7 नवंबर, 2019. थी. दोपहर ढल रही थी. शहरों की पौश कालोनियों में आमतौर पर मामूली आवाजाही को छोड़ दें तो ज्यादातर सन्नाटा ही रहता है. भरतपुर शहर के जयपुर-आगरा हाइवे पर स्थित सूर्या सिटी कालोनी की स्थिति भी ऐसी ही थी. कालोनी में खामोशी तो नहीं थी, लेकिन कोई खास हलचल भी नहीं थी.

ढलती शाम में क्रीम कलर की एक कार दरख्तों से घिरी एक दोमंजिला कोठी के सामने आ कर रुकी. कार से 2 महिलाएं उतरीं. उन में से एक करीब 28-29 साल की खूबसूरत, आकर्षक युवती थी. जो नजर का चश्मा लगाए हुए थी. इस युवती का नाम डा. सीमा गुप्ता था. सीमा शहर की प्रख्यात स्त्री रोग विशेषज्ञ थी. दूसरी अधकटे सफेद बालों वाली बुजुर्ग महिला थी, जो डा. सीमा की सास सुरेखा गुप्ता थी. दोनों के चेहरे बुरी तरह तमतमाए हुए थे.

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सीमा कंधे पर बैग लटकाए हुए थी. उस के हाथ में सौफ्ट ड्रिंक की बोतल थी. दोनों महिलाओं ने पलभर के लिए इमारत की दीवार पर लगे स्पा सेंटर के बोर्ड को देख कर धीमे स्वर में बात की. फिर तेजी से कोठी के खुले गेट को लांघते हुए अंदर दाखिल हुईं.

घरों में ऐहतियाती तौर पर मेन गेट बंद ही रहते हैं, जो डोरबैल बजाने पर ही खुलते हैं. लेकिन जिस तरह दोनों महिलाएं धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हुईं, उस से लगता था कि इत्तफाकन मेन गेट खुला रहा होगा. दोनों महिलाओं के भीतर दाखिल होने के चंद मिनटों बाद अंदर शोरशराबा सुनाई देने लगा.

मकान स्पा सेंटर चलाने वाली दीपा गुर्जर का था. इस मकान में वह अपने 6 वर्षीय बेटे शौर्य के साथ रह रही थी. दोनों महिलाओं के अंदर जाने के थोड़ी देर बाद  अंदर आवाजें तेज हो गईं. लग रहा था जैसे किसी बात को ले कर दोनों पक्षों की जुबानी तकरार ने हाथापाई का रूप ले लिया हो और नौबत मारपीट पर आ गई हो.

झगड़े की आवाजें आसपास के मकानों तक सुनाई दे रही थीं. उठापटक की आवाजें तेज हुईं तो आसपास के लोग भी माजरा जानने के लिए घरों से बाहर निकल कर कोठी के बाहर जमा होने लगे. कुछ ही देर में घर के भीतर से बच्चे की चीखपुकार सुनाई देने लगी. लग रहा था जैसे बालक शौर्य के साथ भी मारपीट की जा रही हो.

इस से पहले कि लोग बीचबचाव के लिए घर में दाखिल होने की कोशिश करते, सीमा और सुरेखा चीखते हुए बाहर निकलीं. बला की फुरती से मेनगेट की कुंडी बाहर से बंद करते हुए सीमा जोर से चिल्लाई, ‘‘अब भुगत अपनी करनी का अंजाम.’’

कोठी के बाहर जमा हुए लोग डा. सीमा से कुछ जानने की कोशिश करते या उस की धमकी का मतलब समझ पाते, अचानक मकान के भीतर से शोले भड़कते दिखाई दिए. इस के साथ ही दीपा की चीखपुकार और बच्चे की दर्दनाक चीखों ने लोगों को दहला दिया. लग रहा था डा. सीमा के पास कोई ज्वलनशील पदार्थ था, जिसे भीतर फेंकने और आग लगाने के बाद वह बाहर निकली थी.

डा. सीमा की हैवानियत

मकान से आग की लपटें उठीं तो लोगों को सीमा की धमकी का मतलब समझने में देर नहीं लगी. उस ने जो किया, उस के नतीजे के रूप में हैवानियत का खौफनाक मंजर सामने नजर आ रहा था. एक तरफ मासूम बच्चे की हौलनाक चीखें लोगों के कलेजे को दहला रही थीं, दूसरी तरफ सीमा और उस की सास पैशाचिक अट्टहास करते हुए भीड़ को चुनौती दे रही थीं, ‘हम ने लगाई है आग…किसी में दम है तो बचा लो इन्हें.’

लोग धिक्कारते हुए उन पर टूटते तब तक उन का ध्यान दीपा के भाई अनुज ने भटका दिया. रोताबिलखता अनुज धधकते घर में घुसने की कोशिश कर रहा था.

भीड़ में मौजूद किसी शख्स ने फायर ब्रिगेड को सूचना दे दी थी. नतीजतन घंटियों के शोर के साथ धड़धड़ाती हुई दमकल की 3 गाडि़यां वहां पहुंच गईं. लेकिन जब तक फायर ब्रिगेड के दस्ते ने आग पर काबू पाया, तब तक सब राख हो चुका था.

इस घटना की सूचना मिलने पर आईजी (जोन) लक्ष्मण गौड़, एसपी हैदर अली जैदी, एएसपी मूल सिंह राणा और सीओ हवासिंह घूमरिया पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लेकिन आग से घिरे मकान को देख कर कुछ भी करना संभव नहीं था.

जब सीमा के पति डा. सुदीप गुप्ता को इस वारदात की खबर मिली, तब वह आरबीएम अस्पताल में थे. डा. सुदीप आंधीतूफान की रफ्तार से मौके पर पहुंचे तो इस तरह पगलाए हुए थे कि धधकती आग में कूदने पर उतारू हो गए. लेकिन पुलिस की मजबूत गिरफ्त ने उन्हें कामयाब नहीं होने दिया. अंतत: बिलखते हुए डा. सुदीप गुप्ता वहीं पसर गए और घुटनों में मुंह छिपा कर फूटफूट कर रोने लगे. डा. सीमा गुप्ता और उस की सास सुरेखा गुप्ता को पुलिस ने मौकाएवारदात पर ही गिरफ्तार कर लिया. साथ ही डा. गुप्ता को भी हिरासत में ले लिया.

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रोंगटे खड़े कर देने वाली इस खौफनाक घटना ने पूरे शहर को दहला दिया था. मांबेटे को जिंदा जलाने की खबर पूरे शहर में फैल गई. जिस ने भी सुना, देखने के लिए दौड़ा चला आया. बहरहाल, तमाम कोशिशों के बावजूद आग पूरी तरह नहीं बुझ पाई.

मकान के अधिकांश हिस्सों में प्लास्टिक का फरनीचर लगा होने के कारण दूसरे दिन भी आग पूरी तरह नहीं बुझी. अगले दिन जब पुलिस जांच के लिए पहुंची तब भी मकान का एक हिस्सा जल रहा था. पुलिस ने एक बार फिर फायर ब्रिगेड बुला कर आग को ठंडा कराने की कोशिश की.

छानबीन और मौके से सबूत जुटाने के लिए पुलिस की क्राइम टीम के साथ फोरैंसिक टीम भी पहुंच गई थी. फोरैंसिक टीम की जांच में चौंकाने वाले रहस्य उजागर हुए. जांच में पता चला कि मौत से पहले मां और बेटे ने करीब आधे घंटे तक पूरी जद्दोजहद के साथ जिंदगी के लिए जंग लड़ी थी. आग की बढ़ती लपटों को देख कर दीपा ने संभवत: बेटे शौर्य को वाश बेसिन में बिठा कर शावर चला दिया था और खुद उस के पाइप को हटा कर नीचे बैठ गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में प्रथमदृष्टया मौत का कारण आग के साथ दम घुटना माना गया. फोरैंसिक टीम ने डा. सीमा और सुरेखा गुप्ता के हाथों की जांच की तो उन के हाथों पर स्पिरिट के अंश पाए गए. पुलिस द्वारा खंगाले गए सीसीटीवी फुटेज और कालोनी के चौकीदार से की गई पूछताछ में पता चला कि सीमा और सुरेखा ने इस से पहले 2 चक्कर लगाए थे. लेकिन दीपा के घर पर नहीं मिलने से दोनों वापस लौट गई थीं.

सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से पता चला कि लगभग ढाई बजे डा. सुदीप भी दीपा के घर पहुंचे थे और लौट आए थे. जबकि सीमा और उस की सास को आखिरी बार करीब 5 बजे दीपा के मकान में दाखिल होते देखा गया था. सीसीटीवी फुटेज के हिसाब से दोनों के बीच करीब एक घंटा विवाद हुआ था.

सासबहू को 6 बजे दीपा के मकान से बाहर निकलते देखा गया. डा. सीमा ने जिस गेट की बाहर से कुंडी लगाई थी, वह दूसरे दिन भी जस का तस मिला. दरवाजा एक चौखट जलने से खुला था. पुलिस ने यहीं से मृत दीपा और शौर्य के शव निकाले. दोनों के शव रसोईघर में पाए गए. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने दोनों शव परिजनों को सौंप दिए.

डा. सुदीप और डा. सीमा का अपना अस्पताल था

भरतपुर शहर के काली बगीची में रहने वाले डा. सुदीप गुप्ता राजकीय आरबीएम अस्पताल में सीनियर फिजिशियन के पद पर तैनात थे. उन के परिवार में पत्नी डा. सीमा के अलावा उन की मां सुरेखा गुप्ता थीं. इसी इलाके में डा. गुप्ता का श्री राम गुप्ता अस्पताल के नाम से निजी क्लिनिक भी था.

उन की पत्नी सीमा इसी क्लिनिक में डाक्टर थी. सब कुछ मजे में चल रहा था, लेकिन डा. गुप्ता के सुखी दांपत्य के तिनके उड़ने की शुरुआत करीब 3 साल पहले तब हुई, जब दीपा गुर्जर नाम की युवती को श्री राम अस्पताल में बतौर रिसैप्शनिस्ट रखा गया.

दीपा गुर्जर सुंदर और स्मार्ट युवती थी. उस ने कंप्यूटर कोर्स कर रखा था. उस की बातचीत के व्यावसायिक लहजे ने डा. सीमा को सब से ज्यादा प्रभावित किया. डा. सीमा अस्पताल प्रबंधन की खुद मुख्तार थी. इसलिए किसी को नौकरी पर रखने या न रखने के मामले में वह पति डा. सुदीप गुप्ता से सलाहमशविरा करना जरूरी नहीं समझती थी.

जीवनयापन के लिए आर्थिक संकट से गुजर रही दीपा के प्रति डा. सीमा के मन में सौफ्ट कौर्नर बन गया था. दीपा न केवल विवाहित थी, बल्कि 3 वर्षीय बेटे की मां भी थी. दीपा के बताए अनुसार, उस का पति से अलगाव चल रहा था और बात तलाक तक पहुंच गई थी. ऐसे में नौकरी उस की तात्कालिक जरूरत थी.

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डा. सीमा का मानना था कि अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए दीपा ज्यादा मुस्तैदी से काम करेगी. साथ ही डा. सीमा की एक सोच यह भी थी कि रिसैप्शन पर सुंदर स्त्रियां लुभावने व्यावसायिक पैकेज की तरह साबित होती हैं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब

अपनों के खून से रंगे हाथ

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में लगभग तीन साल पूर्व घटित हत्या के एक मामले का खुलासा जुलाई 2020 में हुआ. अर्थात् 3 वर्ष बाद ही सही मामले का खुलासा हुआ है. इस मामले में चौंकाने वाली बात यह कि रायपुर पुलिस ने मृतक के बेटे को गिरफ्तार किया है. मामला राजधानी रायपुर के डीडी नगर थाना क्षेत्र का है.

अक्सर देखा गया गया है कि जो हत्या होती है, अपराध होते हैं. उनमें आसपास के लोगों का ही हाथ होता है. यहां अपने ही निकटतम जनों के खून से सने हाथों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि जहां वह अपनों के बीच प्रेम, सद्भावना और विश्वास पाता है. आस्था और प्रेम प्राप्त करता है वहीं जब रिश्तो के धागे टूटने लगते हैं तो बात हत्या और अन्य तरह के अपराधों तक पहुंच जाती है. आज हत्या के इस पहलू पर हम इस विशेष लेख में आपसे रूबरू हो रहे हैं.

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आइए! देखते हैं अपनों ही के हाथों से कैसे-कैसे अपराध घटित हो जाते हैं-

पहली घटना- यगढ़ जिला के खरसिया  थाना अंतर्गत एक लोमहर्षक हत्या हुई एक पुत्र ने मां की हत्या कर दी. कारण यह था कि मां ने उसे शराब पीने के लिए पैसा देने से अंततः इंकार कर दिया था. कलयुगी पुत्र ने मां की हत्या कर दी.

दूसरी  घटना- छत्तीसगढ़ के  जिला मुंगेली में एक भाई ने अपने ही बड़े भाई की हत्या कर दी. मामला जमीन जायदाद के मसले को लेकर घटित हुआ था.

तीसरी घटना- कोरबा जिला के पसान थाना अंतर्गत एक गांव में बुजुर्ग शख्स ने अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि वह उसके कहे मुताबिक भोजन नहीं बना रही थी.

ऐसे ही अनेक घटनाएं हमारे आसपास आए दिन घटित होती रहती है. इन्हें देखकर हम अनदेखा कर देते हैं जबकि सच्चाई यह है कि यह समाज का एक ऐसा पहलू है जिसका निरंतर समाजशास्त्रीय अध्ययन चलता रहता है. यह समाज की एक बड़ी विकृति है, जिसे दुरुस्त करना भी समाज का ही दायित्व है.

पिता की  हत्या,  राज दफन

दरअसल 11 जनवरी 2017 को राजधानी रायपुर के ग्राम सरोना में सीताराम ध्रुव सर में चोट लगने की वजह से गंभीर रूप से घायल हो गया था.  स्वाभाविक रूप से उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया वहीं 24 जनवरी 2017 को इलाज के दरमियान सीताराम की मौत हो गई थी. इस मामले में डीडी नगर पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू की थी. सीताराम ग्राम खपरापोल, जिला महासमुंद का रहवासी था.

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सीताराम के सर पर मिले चोट के निशान और शुरुआती पूछताछ में हत्या की आशंका मानते हुए पुलिस जाँच कर रही थी. इस दौरान साढ़े तीन साल में पुलिस मृतक के परिजनों से कई बार पूछताछ करती  रही  थी. लेकिन कामयाबी अब जाकर जुलाई 2020 में  मिली. पुलिस जांच के दरमियान सूक्ष्म रूप से  मृतक के बेटे पंकज ध्रुव की गतिविधियों पर लगातार नजर बनाए हुए थी. पुलिस को जब यह पूरी तरह से यकीन हो गया कि सीताराम का हत्यारा उसका बेटा पंकज ही है, तो पुलिस अधिकारियों ने कड़ाई से पूछताछ की. और जैसा कि होता है, अंततः पूछताछ में पंकज टूट गया उसने अपने पिता की हत्या करना कबूल कर लिया.

पंकज ने आंसू बहाते हुए बताया कि वह पिता  से बहुत सारे रुपए चाहता था मगर पिता उसे नालायक समझकर टालते रहते थे. उसने सोचा क्यों नहीं पिता को मारकर सारी संपत्ति का मालिक बन जाए.

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब : भाग 3

कुछ दिन बाद फातिमा वापस घर चली गई. हालांकि घर इतनी दूर भी नहीं था कि आनाजाना न हो सके. इस घटना के बाद फातिमा अकसर किसी बहाने से बहन के घर आनेजाने लगी. इसी बीच डेढ़ साल बाद समरीन गर्भवती हुई तो फातिमा एक बार फिर बहन की तीमारदारी के लिए महीने भर उस के घर आ कर रही. इस दौरान फिर से दोनों के बीच नाजायज रिश्तों  का अध्याय लिखा जाने लिखा.

साली को घरवाली बनाने की थी योजना

समरीन ने छोटे बेटे तैमूर को जन्म  दिया. लेकिन तब तक आसिफ और फातिमा के बीच नाजायज रिश्ते की भनक न तो समरीन को लगी थी न ही फातिमा के परिवार वालों को. लेकिन फातिमा के शरीर की गंध पाने के बाद आसिफ को अपनी पत्नी समरीन से लगाव कम होने लगा था.

अचानक आसिफ के मन में फातिमा को अपना बनाने की लालसा तेज होने लगी. उस ने सोचा कि अगर समरीन मर जाए तो वह अपने बच्चों की देखभाल के लिए ससुराल वालों को मौसी को उन की मां बनाने के लिए तैयार कर सकता है. लेकिल सवाल था कि हट्टीकट्टी और जवान समरीन मरेगी कैसे.

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आसिफ के मन में उसी समय यह खयाल आया कि क्यों न समरीन को किसी ऐसे तरीके से मार दिया जाए कि उस की मौत सब को स्वाभाविक लगे. बस ये खयाल मन में आते ही उस के दिमाग में साजिश के कीडे़ रेंगने लगे. आसिफ का एक दोस्त था रविंद्र जो गोविंद टाउन, बेहटा हाजीपुर में रहता था और वहीं पर जनकल्याण क्लीनिक चलाता था.

वैसे तो रविंद्र झोलाछाप डाक्टर था, लेकिन आसिफ के साथ खानेपीने के कारण उस की दोस्ती हो गई थी. आसिफ अपने बच्चोें को उसी से दवा वगैरह दिलवाता था. उस ने अपने मन की बात एक दिन रविंद्र को बताई. उस ने कहा कि इलाज के बहाने वह समरीन को ऐसा इंजेक्शन लगा दे कि उस की मौत हो जाए.

रविंद्र इस काम के लिए राजी तो हो गया लेकिन उस ने इस काम के लिए पैसे मांगे. आसिफ ने कह दिया कि वह काम कर दे, इस के बदले वह उसे मोटी रकम देगा. लिहाजा डा. रविंद्र ने उसे एक ऐसी दवा दे दी जिस को खाने के बाद समरीन पर रिएक्शन होना था. लेकिन संयोग से उस दवा को खाने के बाद जो थोड़ाबहुत असर हुआ, उसे समरीन ने घरेलू उपचार कर के ठीक कर लिया.

पहली साजिश फेल हो गई तो डा. रविंद्र ने कहा, ‘‘चलो तुम्हें एक और डाक्टर संदीप से मिलाता हूं, जो  लोनी मे श्री साईं क्लीनिक चलाते हैं.’’

रविंद्र ने संदीप से आसिफ की मुलाकात कराई और उस का मकसद बताया. आसिफ का काम करने के लिए संदीप ने पैसे की मांग की तो आसिफ ने दोनों को 30 हजार रुपए दे दिए.

डा. संदीप ने एक दिन बुखार के इलाज के बहाने आसिफ के साथ उस के घर जा कर समरीन को एक जहरीला इंजेक्शन भी दिया, लेकिन कई दिन इंतजार के बाद भी समरीन की मौत नहीं हुई तो आसिफ निराश हो गया.

इस दौरान संदीप और रविंद्र आसिफ से मिले पैसे से मौजमस्ती करने के लिए मंसूरी चले गए. जब वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि इंजेक्शन से भी समरीन की मृत्यु नहीं हुई है. इसलिए आसिफ उन से पैसे वापस मांगने लगा.

तब संदीप ने कहा कि वह एक आदमी के जरिए इस काम को सफाई से करवा सकता है लेकिन इस काम में थोड़ी ज्यादा रकम लगेगी. आसिफ इस के लिए भी तैयार हो गया.

लेकिन इस दौरान आसिफ की साली फातिमा का उस के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया समरीन ने देखा की फातिमा उसे छोड़ कर अपने जीजा के आसपास कुछ ज्यादा मंडराती है, तो उसे शक हुआ. उस ने दोनों के ऊपर निगाहें रखनी शुरू कर दीं. शक यकीन में तब बदल गया, जब एक दिन फातिमा चाय देने के बहाने नीचे वर्कशाप में आसिफ के पास पहुंची और आसिफ ने लपक कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.

संयोग से शक की पुष्टि के लिए समरीन पीछे से आ गई और सबकुछ अपनी आंखों से देख लिया. उस दिन खूब हंगामा हुआ. उस दिन समरीन ने छोटी बहन को खूब डांटा और आसिफ से उस की जम कर लड़ाई हुई.

समरीन ने अपने मातापिता को तो बहन के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन परिवार वालों पर जोर देना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द  फातिमा के लिए अच्छा सा लड़का देख कर उस का निकाह कर दें. परिवार वालों ने उस के लिए लड़का देख लिया और 7 मार्च, 2020 निकाह की तारीख तय कर दी.

इस बीच फातिमा के निकाह को ले कर समरीन और आसिफ में अकसर झगड़ा होने लगा. आसिफ समरीन से कहता था कि 2 बहनें एक साथ एक ही पति की बेगम बन कर भी तो रह सकती हैं. पता नहीं जिस से फातिमा की शादी हो वो लोग कैसे हों, उसे सुख दे सकें या नहीं. बस इसी बात पर दोनों में झगड़ा इस कदर बढ़ता कि मारपीट तक हो जाती.

दोनों के बीच मारपीट की बात समरीन के मातापिता तक पहुंची, लेकिन समरीन ने उन्हें कभी हकीकत का पता नहीं लगने दिया. जब आसिफ ने देखा कि समरीन उस के और फातिमा के रास्ते का कांटा बन चुकी है तो उस ने आखिरकार उस की हत्या के लिए आखिरी साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. आसिफ ने डा. संदीप से कहा कि अब वह जल्द  से जल्द समरीन की हत्या वाला काम करवा दे.

बदमाश सुनील शर्मा से किया संपर्क

इस के बाद संदीप आसिफ को अपने साले के साले के साले सुनील शर्मा निवासी भीमपुर, थाना बहजोई, जिला मुरादाबाद के पास ले गया, जो इन दिनों लोनी की पुश्ता कालोनी में रहता था. आसिफ को जब पता चला कि सुनील शर्मा आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है और पहले उत्तराखंड जेल में भी रह चुका है तो उसे यकीन हो गया कि यह आदमी उस का काम कर देगा.

आसिफ ने सुनील से 2 लाख रुपए मे समरीन की हत्या का सौदा पक्का कर लिया, जिस में से लगभग 90 हजार रुपए आसिफ ने सुनील को 2-3 बार में दे दिए. लेकिन जैसेजैसे फातिमा की शादी नजदीक आ रही थी, वैसेवैसे आसिफ को समरीन की हत्या की जल्दी होने लगी थी.

9 जनवरी, 2020 को आसिफ ने सुनील से बेहटा हाजीपुर में उत्तरांचल सोसाइटी के पास मुलाकात की और बताया कि 11-12 जनवरी की रात को उसे यह काम पूरा करना है. उस ने सुनील को पूरा प्लान भी समझा दिया. इस काम में सुनील ने अपने 2 अपराधी दोस्तों को भी शामिल कर लिया था.

प्लान के मुताबिक 11 जनवरी, 2020 की रात सुनील अपने दोनों साथियों के साथ मेवाती चौक पर आसिफ के घर के बाहर पहुंचा. योजना के मुताबिक आसिफ दरवाजा खोल कर काम कर रहा था. उस ने नीचे वाले कमरे में सुनील व उस के दोनों साथियों को बैठा दिया और खुद सोने के लिए ऊपर चला गया.

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आधे घंटे में खाना खाने के बाद उस ने अपने साले और बेटे, जो मोबाइल पर गेम खेल रहे थे, से मोबाइल ले कर बंद कर दिए और जल्दी से सोने को कहा, ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके. उस ने जीने की तरफ आने वाले गेट की कुंडी नहीं लगाई थी ताकि सुनील व उस के साथी आसानी से दरवाजा खोल कर ऊपर आ सकें.

आसिफ हत्या में खुद भी रहा शामिल

प्लान के मुताबिक रात 1 से 3 बजे के बीच में सुनील अपने दोनों साथियों के साथ उस कमरे में आया, जहां आासिफ व उस की बीवी सो रहे थे. आसिफ ने उन तीनों के साथ मिल कर पहले अपनी पत्नी समरीन की गला घोंट कर हत्या करवा दी. फिर अपने हाथपैर बंधवा कर ऊपरी मंजिल पर ले जाने के लिए कहा. ताकि ऊपर सो रहे साले व लड़के को लगे कि वास्तव में बदमाशों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया है.

हत्या हो जाने के बाद आसिफ ने बदमाशों से कहा कि 23 हजार रुपए और लगभग 70 से 75 हजार रुपए का हार अलमारी में रखा है, जिसे तुम अपने शेष एक लाख रुपए के रूप में ले लो.

वारदात के दौरान उस ने अपने हाथ थोड़ा ढीले बंधवाए ताकि उन के जाने के कुछ देर बाद वह हाथ खोल कर शोर मचा सके.

किसी को शक न हो इसलिए उस ने ही बदमाशों को ऊपर के कमरे में सब को बंद कर के कुंडी बाहर से बंद करने और जाते समय मकान के मुख्यद्वार को बाहर से बंद करने का आइडिया दिया था.

आसिफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी शाम झोलाछाप डाक्टर रविंद्र और संदीप को भी समरीन की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

आसिफ ने जो प्लान तैयार किया था, उस में उस ने एक गलती कर दी थी. उसेये ध्यान ही नहीं रहा कि जब पूरे घर में घुसने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो बिना जबरदस्ती किए बदमाश घर के अंदर दाखिल कैसे हो गए. इस बात का वह क्या जवाब देगा. बस यहीं से पुलिस को उस पर शक होना शुरू हो गया.

गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी आसिफ और उस के दोनों सहयोगियों रविंद्र और संदीप को आवश्यक पूछताछ के बाद जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

बाकी 3 फरार आरोपियों में से सुनील शर्मा को पुलिस ने 17 जनवरी, 2020 को लोनी क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सुनील ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस के दोनों साथियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीमें लगातार छापेमारी कर रही हैं.

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मात्र 72 घंटे में ब्लाइंड मर्डर व डकैती केस को सुलझाने के लिए एसएसपी गाजियाबाद कलानिधि नैथानी ने विवेचक और लोनी बौर्डर थाने की पुलिस टीम को 20 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की है.

कथा पुलिस जांच व अभियुक्तों से हुई पूछताछ पर आधारित. फातिमा परिवर्तित नाम है.

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब : भाग 2

आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था.

आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.

आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे.

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आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई.

विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.

दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था.

बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.

बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे.

पीड़ितों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.

13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा.

आसिफ से की पूछताछ

अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.

हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है.

उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.

पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था.

चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों.

आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था.

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अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.

टूट गया आसिफ

आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’

राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.

‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’

आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’

एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.

वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.

न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.

फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था.

वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी.

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चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब : भाग 1

दिल्ली की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में लोनी बौर्डर थाना एकदम दिल्ली की सीमा से सटा है. यूपी और दिल्ली की सीमा से सटा होने के कारण लोनी बौर्डर थाने की पुलिस अपराधियों पर नजर रखने के लिए 24 घंटे सतर्क रहती है. आमतौर पर इस थाने के इंचार्ज भी रातरात भर जाग कर क्षेत्र में गश्त करते रहते हैं.

11 और 12 जनवरी, 2020 की रात को लोनी बौर्डर थाने के एसएचओ इंसपेक्टर शैलेंद्र प्रताप सिंह अदालत में एक जरूरी एविडेंस के लिए शहर से बाहर गए हुए थे. थाने के एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह थानाप्रभारी की जिम्मेदारी उठा रहे थे.

रात के करीब 4 बजे का वक्त था जब राजेंद्र पाल सिंह सरकारी जीप में अपने हमराहियों के साथ पूरे क्षेत्र में गश्त कर के थाने की तरफ लौट रहे थे कि उन्हें पुलिस नियंत्रण कक्ष से वायरलैस पर सूचना मिली कि 3-4 बदमाशों ने बेहटा हाजीपुर में मेवाती चौक पर रहने वाले कारोबारी आसिफ अली सिद्दीकी के घर में घुस कर डाका डाला है और लूटपाट का विरोध करने पर व्यापारी की पत्नी समरीन का गला दबा दिया है.

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वायरलैस से मिली सूचना इतनी ही थी, लेकिन इतनी गंभीर थी कि राजेंद्र पाल सिंह ने थाने न जा कर घटनास्थल पर पहुंचने को प्राथमिकता दी. वहां से मेवाती चौक की दूरी करीब 4 किलोमीटर थी, वहां तक पहुंचने में उन्हें महज 10 मिनट का वक्त लगा.

मेवाती चौक पर आसिफ अली सिद्दीकी का घर मुख्य सड़क पर ही था. वहां आसपड़ोस के काफी लोगों की भीड़ घर के बाहर जमा थी. घर में रोनेपीटने की आवाजें आ रही थीं.

वहां पहुंचने पर पता चला कि आसिफ अली सिद्दीकी कुछ लोगों के साथ अपनी पत्नी समरीन को जीटीबी अस्पताल ले गया है, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया है. वारदात के बारे में ज्यादा जानकारी तो कोई नहीं दे सका, लेकिन यह जरूर पता चल गया कि पुलिस नियंत्रण कक्ष को वारदात की सूचना पड़ोस में रहने वाले रईसुद्दीन ने दी थी.

रईसुद्दीन ने एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बताया कि रात करीब पौने 4 बजे आसिफ ने अपनी छत पर चढ़ कर ‘‘बचाओ… बचाओ.. डकैत.. डकैत’’ कह कर चिल्लाना शुरू किया था. जिस के बाद आसपड़ोस में रहने वाले वहां एकत्र हो गए थे. पड़ोसियों ने आसिफ के घर के मुख्यद्वार के बाहर से लगी कुंडी खोली थी, जिसे बदमाश भागते समय बाहर से लगा गए थे.

चूंकि समरीन की हत्या आपराधिक वारदात के दौरान हुई थी, इसलिए उस का पोस्टमार्टम कराने की काररवाई पुलिस को ही करनी थी. इसलिए राजेंद्र पाल सिंह ने अपने सहयोगी एसआई विपिन कुमार को स्टाफ के साथ जीटीबी अस्पताल रवाना कर दिया. विपिन कुमार ने जीटीबी अस्पताल पहुंच कर इमरजेंसी में मौजूद डाक्टरों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि समरीन को जब लाया गया था, उस से पहले ही उस की मृत्यु हो चुकी थी.

विपिन कुमार ने डाक्टरों से बातचीत कर उन के बयान दर्ज किए और शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लिखापढ़ी की औपचारिकताओं को पूरी करने में सुबह के करीब 6 बज चुके थे. आसिफ का रोरो कर बुरा हाल था. विपिन कुमार ने आसिफ को ढांढस बंधाया और उसे अपने साथ ले कर उस के घर मेवाती चौक पहुंच गए.

इस दौरान एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह ने घटना की सूचना से लोनी के सीओ राजकुमार पांडे, एसपी (देहात) नीरज जादौन और एसएसपी कलानिधि नैथानी को अवगत करा दिया था. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एक दिन पहले ही गाजियाबाद में एसएसपी का पद संभाला था. उन के आते ही जिले में गंभीर अपराध की ये पहली घटना थी.

सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी कुछ ही देर बाद घटनास्थल पर पहुंच गए. सीओ राजकुमार पांडे ने डौग स्क्वायड की टीम के साथ फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और क्राइम टीम को भी मौके पर बुला लिया था. इन सभी टीमों ने घटनास्थल पर पहुंच कर अपना अपना काम शुरू कर दिया.

यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसआई विपिन कुमार आसिफ को ले कर उस के घर पहुंच गए. इस के बाद आसिफ से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. उस ने अपने साथ हुई घटना का ब्यौरा देना शुरू कर दिया.

आसिफ ने सुनाया वाकया

आसिफ ने बताया कि शनिवार रात को वह मकान की पहली मंजिल पर अपनी पत्नी समरीन (32) व 2 बच्चों के साथ सो रहा था. रात करीब एक बजे कमरे में आहट हुई. वह उठा तो सामने मुंह पर कपड़ा बांधे 2 बदमाश खड़े थे. जब तक वह कुछ समझ पाता, बदमाशों ने उस पर तमंचा तान दिया और शोर मचाने पर गोली मारने की धमकी दी.

इस बीच एक बदमाश ने साथ में सो रहे डेढ़ वर्षीय बेटे तैमूर और पत्नी की गरदन पर छुरा रख दिया. इस के बाद बदमाशों ने उस के और पत्नी के हाथ बांध दिए. बदमाशों ने उन से मारपीट करते हुए पूछा कि 5 लाख रुपए कहां हैं.

‘‘कैसे रुपए, कौन से रुपए…’’ उस ने बदमाशों से पूछा.

उस ने बदमाशों को बता दिया कि वह छोटा सा कारोबार करता है, उस के घर में इतनी बड़ी रकम कहां से आएगी. जब आसिफ ने रुपए न होने की बात कही तो एक बदमाश ने धमकी दी कि तुम्हारी गरदन काट देंगे.

यह सुन कर उस की पत्नी समरीन की चीख निकल गई. इस से घबराए एक बदमाश ने रजाई से समरीन का मुंह दबा दिया. इस के बाद एक बदमाश ने अलमारियों की चाबी ले कर अंदर रखे एक लाख 30 हजार रुपए कैश व करीब 70 हजार रुपए के गहने निकाल लिए. आसिफ ने यह भी बताया कि ये गहने उस ने अपनी साली की शादी में देने के लिए बनवाए थे, जिस की मार्च में शादी है.

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आसिफ ने बताया कि इस बीच एक बदमाश बाहर गया और जीने पर खड़े अपने साथी से बात करने लगा, जीने पर खड़ा बदमाश अंदर नहीं आना चाह रहा था. घर से बाहर गए बदमाश ने उस से कहा कि 5 लाख रुपए नहीं मिल रहे, इस पर बाहर खड़े बदमाश ने कहा कि 5 लाख रुपए घर में ही हैं. ऊपर वाले कमरे में जा कर देखो.

आसिफ ने बताया कि गहने व कैश निकालने के बाद एक बदमाश आसिफ को गनपौइंट पर मकान की तीसरी मंजिल पर ले गया, जबकि दूसरा बदमाश समरीन का मुंह रजाई से दबाए वहीं खड़ा रहा. तीसरी मंजिल पर उन का साला जुनैद (15 साल), बेटी उजमा (12 साल) और बेटा आतिफ (9 साल) सो रहे थे. वहां पहुंच कर बदमाशों ने जुनैद को उठाया और उस के हाथ पैर बांध दिए. उन्होंने जुनैद से 5 लाख रुपए के बारे में पूछा और मारपीट की.

इस बीच पहली मंजिल पर समरीन का मुंह दबाने वाला बदमाश उस के डेढ़ साल के बेटे तैमूर को ऊपर ले कर आया और उस की गरदन पर छुरा रख कर 5 लाख रुपए मांगे. आसिफ का कहना था कि यह देख वह रोते हुए बदमाशों के पैरों मे गिर पड़ा और उसे छोड़ने के लिए कहा.

इस पर बदमाशों ने बच्चे को छोड़ दिया और उन सभी को कमरे में बंद कर के धमकी दी कि यदि आधे घंटे से पहले कमरे से बाहर निकले तो सभी को मार डालेंगे. इस के बाद वे फरार हो गए. जाने से पहले वे घर के मुख्यद्वार की कुंडी भी बाहर से लगा गए.

बदमाशों के जाने के बाद मचाया शोर

आसिफ के साले का कहना था कि डर की वजह से वे लोग 20 मिनट तक चुप रहे. इस के बाद आसिफ ने किसी तरह हाथ की रस्सी खोली और खिड़की के पास जा कर पड़ोसी राशिद को आवाज लगाई. पड़ोसियों ने पहले मुख्यद्वार की कुंडी खोली फिर मकान के भीतर आ कर कमरे को बाहर से खोला.

वह वहां से पहली मंजिल पर पत्नी को देखने गया तो वह बेहोश मिली. पड़ोसियों की मदद से वह पत्नी को अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

आसिफ के मुंह से पूरी वारदात की कहानी सुनने के बाद एसएसपी ने एसपी (देहात) को इस वारदात का जल्द से जल्द  खुलासा करने की हिदायत दी.

जिस के बाद सीओ राजकुमार पांडे के निर्देश पर लोनी बौर्डर थाने में 12 जनवरी की सुबह धारा 452/394/302/34/120बी/ भादंवि के तहत मुकदमा पंजीकृत करा लिया गया. इस केस की जांच का काम एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को सौंपा गया.

घटना का खुलासा करने के लिए सीओ राजकुमार पांडे ने राजेंद्र पाल सिंह के अधीन एक विशेष टीम का गठन भी कर दिया, जिस में एसआई विपिन कुमार, हैड कांस्टेबल मनोज कुमार, कांस्टेबल विपिन कुमार, मनोज और दीपक को शामिल किया गया.

उसी दोपहर पुलिस ने समरीन के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के परिजनों के सुपुर्द कर दिया. परिजनों ने उसी शाम गमगीन महौल में समरीन के शव को सुपुर्दे खाक कर दिया.

आसिफ अली सिद्दीकी मूलरूप से मेरठ के जानी कलां गांव का रहने वाला है. उस के पिता अफसर अली गांव में खेतीबाड़ी का काम करते हैं. अफसर अली की 6 संतानों में 5 लड़के और एक लड़की है. आसिफ (43) भाइयों में तीसरे नंबर पर है. सभी भाईबहनों की शादी हो चुकी है.

आसिफ अली ने युवावस्था में बैटरी की प्लेट बनाने का काम सीखा था. सन 2006 में उस की शादी जानी कलां के रहने वाले तनसीन की बेटी समरीन से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए, 2 बेटे और एक बेटी. बड़ा बेटा आतिफ (9) साल का है जबकि सब से छोटा तैमूर अभी डेढ़ साल का है. बेटी उजमा तीनों बच्चों में सब से बड़ी है.

तनसीन अली बेटी समरीन की शादी से कई साल पहले गांव छोड़ कर लोनी के बेहटा की उत्तरांचल विहार कालोनी में आ बसे थे. उन्होंने छोटा सा प्लौट खरीद कर अपना घर बना लिया था.

तनसीन फैक्ट्रियों से माल खरीद कर किराने की दुकानों पर सप्लाई करते थे, जिस से उन के परिवार की गुजरबसर ठीकठाक हो रही थी. बेटी समरीन के निकाह में भी उन्होंने अच्छा पैसा खर्च किया था. शादी के बाद समरीन गांव में पति आसिफ के साथ हंसीखुशी जीवन बिता रही थी.

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आसिफ भी खूबसूरत पत्नी को बेइंतहा प्यार करता था. वक्त तेजी से गुजर रहा था. समरीन एक के बाद 2 बच्चों की मां बन गई. पहले उजमा का जन्म हुआ फिर आतिफ पैदा हुआ. 2 बच्चे हो गए तो घर के खर्च भी बढ़ गए, लेकिन कमाई कम थी. इसलिए आसिफ ने गांव छोड़ कर शहर में बसने का फैसला किया.

आसिफ ने लोनी में बढ़ाया अपना धंधा

सन 2014 में सासससुर की सलाह पर आसिफ लोनी के बेहटा आ कर किराए के मकान में रहने लगा. यहीं पर उस ने अपना बैटरी की प्लेट बनाने का कारोबार बढ़ाना शुरू किया. एक साल के भीतर ही उस ने अपने पिता और ससुर की मदद से मेवाती चौक के पास 50 गज का एक प्लौट ले कर उस में तीनमंजिला मकान बना लिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

एक डीएसपी की कलंक कथा

एक डीएसपी की कलंक कथा : भाग 3

जांच एजेंसियां उस की संपत्तियों का पूरा ब्यौरा जुटा रही हैं. इस से जुड़े दस्तावेज भी खंगाल रही हैं. आईबी, रा और मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) देविंदर सिंह से सघन पूछताछ कर आतंकियों के साथ उस के कनेक्शन की तह में जाने का प्रयास कर रही हैं.

माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में आतंकियों के साथ गठजोड़ के उस के कई राज सामने आ सकते हैं. पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश में है कि जब आतंकी नावीद ने प्रवासी मजदूरों की हत्या की थी तो क्या देविंदर को इस की जानकारी थी. चूंकि पुलवामा हमले के आसपास भी देविंदर पुलवामा में तैनात था, ऐसे में जांच एजेंसियां अब इन मामलों में भी उस की भूमिका का पता लगाने में जुट गई हैं.

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देविंदर सिंह की गिरफ्तारी से खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी भी सामने आ रही है. दरअसल, सवाल उठ रहे हैं कि जब नौकरी के शुरुआती दौर से ही देविंदर सिंह आपराधिक और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त पाया गया था तो वह लगातार नौकरी क्यों करता रहा और कैसे वह प्रमोशन पा कर डीएसपी जैसे ओहदे तक पहुंच गया. सब से बड़ी चौंकाने वाली बात तो यह है कि करीब 18 साल पहले संसद पर हमले के आरोपी आतंकी अफजल गुरु ने जब डीएसपी  देविंदर सिंह का नाम लिया था, तो देश की किसी भी जांच एजेंसी ने देविंदर के साथ अफजल गुरु के कनेक्शन की जांच क्यों नहीं की?

दिल्ली में संसद पर 13 दिसंबर 2001 को आतंकी हमला हुआ था. इस हमले को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के खूंखार आतंकियों ने अंजाम दिया था. इस आतंकी हमले में कुल 14 लोगों की जान गई थी. हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी की सजा दी गई थी.

संसद हमले के आरोप में फांसी की सजा पाए अफजल गुरु फांसी दिए जाने से पहले 2013 में अपने वकील सुशील कुमार को एक लंबा पत्र लिखा था, जिस में उस ने देविंदर सिंह पर गंभीर आरोप लगा कर उसे आतंकवादियों का संरक्षक बताया था. खत में अफजल ने लिखा था कि जम्मूकश्मीर पुलिस के स्पैशल टास्क फोर्स के डीएसपी देविंदर सिंह के कहने पर ही उस ने संसद पर हुए हमले के आरोपी आतंकी मोहम्मद की मदद की थी, जो हमले के दौरान मारा गया था.

अफजल गुरु ने अपने ट्रायल के दौरान हमेशा माना कि वह मोहम्मद के संपर्क में था. एक फोन के जरिए जो मोहम्मद के शरीर के साथ मिला था. अफजल गुरु ने कहा था कि वह फोन भी स्पैशल टास्क फोर्स ने ही दिया था. अपने वकील को लिखे खत में अफजल गुरु ने लिखा था कि जम्मूकश्मीर के डीएसपी देविंदर सिंह ने उस का टौर्चर किया, उस से पैसे वसूले और संसद हमले में शामिल एक आतंकी मोहम्मद से उस की जानपहचान करवाई. अफजल गुरु ने खत में लिखा था कि देविंदर सिंह के कहने पर ही उस ने आतंकियों के लिए दिल्ली में किराए पर घर लिया और कार का इंतजाम करवाया.

लेकिन हैरानी की बात है कि उस वक्त देविंदर सिंह के ऊपर जांच नहीं बिठाई गई. लेकिन अब जबकि देविंदर सिंह आतंकवादियों को पनाह देने के आरोप में गिरफ्तार हुआ है तो खुफिया एजेंसियों के लिए अफजल गुरु का यह खत महत्त्वपूर्ण हो गया है, जो अफजल गुरु ने अपने अपने वकील को लिखा था. इस खत में अफजल गुरु ने देविंदर सिंह को द्रविंदर सिंह के नाम से संबोधित किया था.

हालांकि अफजल गुरु के दावों की पुष्टि नहीं की जा सकती. लेकिन 2013 में भी जब अफजल गुरु ने अपने वकील को खत लिखा था,  तो उस के तथ्यों की जांच क्यों नहीं हुई, ये गंभीर प्रश्न है? उस वक्त पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने अफजल की बात को देविंदर के खिलाफ साजिश मान कर खारिज क्यों कर दिया था? अफजल गुरु ने डीएसपी देविंदर सिंह पर सनसनीखेज आरोप लगाए थे. अगर जांच हो जाती तो शायद आस्तीन में पल रहे एक सांप का फन 16 साल पहले ही कुचल दिया जाता.

अफजल गुरु ने जो खत लिखा था, उस के बारे में जानना बेहद जरूरी है. मीडिया की सुर्खियां बन चुके इस खत में अफजल ने लिखा था, ‘एक दिन मैं अपने स्कूटर से 10 बजे के करीब कहीं जा रहा था. वह स्कूटर मैंने 2 महीने पहले ही खरीदा था. पैहल्लन कैंप के पास एसटीएफ के जवानों ने अपनी बुलेटप्रूफ जिप्सी में मेरी तलाशी ली और थाने ले गए, वहां मुझे टौर्चर किया गया, मुझ पर ठंडा पानी डाला गया, बिजली के करंट लगाए गए, पैट्रोल और मिर्ची से मेरा टौर्चर हुआ. उन लोगों का कहना था कि मैं अपने पास हथियार रखता हूं. लेकिन शाम तक एक इंसपेक्टर ने मुझे कहा कि अगर मैं 10 लाख रुपए डीएसपी साहब को दे देता हूं तो मैं छूट सकता हूं. अगर मैं पैसे नहीं देता हूं तो ये लोग मुझे मार डालेंगे.’

अफजल ने खत में आगे लिखा, ‘उस के बाद ये लोग मुझे ले कर हुमहमा एसटीएफ कैंप गए. वहां डीएसपी देविंदर सिंह ने भी मेरा टौर्चर किया. टौर्चर करने वाले एक इंसपेक्टर शैंटी सिंह ने 3 घंटे तक उसे नंगा रखा और बिजली के करंट लगाता रहा. इलैक्ट्रिक शाक देते वक्त वे लोग मुझे एक टेलीफोन इंस्ट्रूमेंट्स के जरिए पानी पिलाते रहे. आखिरकार मैं उन्हें 10 लाख रुपए देने को राजी हुआ.

‘इन पैसों के लिए मेरे परिवार ने मेरी बीबी के गहने बेच दिए. लेकिन इस के बाद भी सिर्फ 80 हजार की रकम जमा हो पाई. परिवार ने मेरा वो स्कूटर भी बेच दिया, जिसे मैंने 2 महीने पहले ही 24 हजार रुपए में खरीदा था. एक लाख रुपए ले कर उन लोगों ने मुझे छोड़ दिया. लेकिन तब तक मैं टूट चुका था.’

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अफजल के खत के मुताबिक, ‘हुमहमा एसटीएफ कैंप में ही तारिक नाम का एक पीडि़त बंद था, उस ने मुझे सलाह दी कि मैं हमेशा एसटीएफ के साथ सहयोग करता रहूं . अगर मैं ने ऐसा नहीं किया तो ये लोग मुझे आम जिंदगी जीने नहीं देंगे. हमेशा प्रताडि़त करते रहेंगे.’

खत में देविंदर पर कुछ और सनसनीखेज आरोप लगाते हुए अफजल गुरु ने लिखा था, ‘मैं 1990 से ले कर 1996 तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ चुका था. मैं कई कोचिंग संस्थानों में पढ़ाता था और बच्चों को होम ट्यूशन भी देता था. इस बात की जानकारी एक शख्स अल्ताफ हुसैन को हुई. अल्ताफ हुसैन बडगाम के एसएसपी अशफाक हुसैन का रिश्तेदार था. अल्ताफ हुसैन ही हमारे परिवार और डीएसपी देविंदर सिंह के बीच मीडिएटर का काम कर रहा था.

‘एक बार अल्ताफ ने मुझ से अपने बच्चों को ट्यूशन देने के लिए कहा. उस के 2 बच्चों में से एक 12वीं और एक 10वीं में पढ़ रहा था. अल्ताफ ने कहा कि आतंकियों के डर की वजह से वो उन्हें पढ़ने बाहर नहीं भेज सकता. इस दौरान मैं और अल्ताफ काफी करीब आ गए.’

एक दिन अल्ताफ मुझे ले कर डीएसपी देविंदर सिंह के पास गया. उस ने कहा था कि डीएसपी साहब को मुझ से छोटा सा काम है. डीएसपी देविंदर सिंह ने कहा कि मुझे एक आदमी को ले कर दिल्ली जाना होगा. चूंकि मैं दिल्ली से अच्छी तरह वाकिफ था, इसलिए मुझे उस आदमी के लिए किराए के मकान का इंतजाम करना था. मैं उस आदमी को नहीं जानता था. लेकिन उस की बातचीत से लग रहा था कि वो कश्मीरी नहीं है. लेकिन देविंदर सिंह के कहने पर मुझे उसे ले कर दिल्ली आना पड़ा.

‘एक दिन देविंदर सिंह ने मुझ से कहा कि वह एक कार खरीदना चाहता है. मैं उसे ले कर करोल बाग गया. वहां से उस ने कार खरीदी. इस दौरान हम दिल्ली में कई लोगों से मिलते रहे. इस दौरान मेरे और उस शख्स के पास देविंदर सिंह के काल आते रहे. एक दिन उस शख्स ने मुझ से कहा कि अगर मैं कश्मीर लौटना चाहता हूं तो लौट सकता हूं. उस ने मुझे 35 हजार रुपए भी दिए और कहा कि ये उस की तरफ से गिफ्ट है.

‘संसद पर हमले से 6 या 8 दिन पहले मैं ने इंदिरा विहार में अपने परिवार के लिए किराए पर घर लिया था. मैं अपने परिवार के साथ वहीं रहना चाहता था, क्योंकि मैं अपनी मौजूदा जिंदगी से खुश नहीं था. मैं ने अपने घर की चाबी अपने मकान मालकिन को दी और उन्हें कहा कि ईद मनाने के बाद मैं वापस लौट आऊंगा.

‘मैं ने श्रीनगर में तारिक को फोन किया. शाम को उस ने पूछा कि मैं दिल्ली से कब वापस आया. मैं ने कहा कि एक घंटे पहले. अगली सुबह जब मैं सोपोर जाने के लिए निकलने वाला था, श्रीनगर पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस मुझे पकड़ कर परमपोरा पुलिस स्टेशन गई. वहां तारिक भी मौजूद था. उन्होंने मेरे 35 हजार रुपए ले लिए, बुरी तरह से पीटा और वहां से सीधे एसटीएफ हेडक्वार्टर ले गए. वहां से मुझे दिल्ली लाया गया.’

यह उस खत का मजमून है जो अफजल गुरु ने अपने वकील को लिखा था और मीडिया की सुर्खी बनने के बावजूद इस की जांच नहीं हुई. हो सकता है कि जांच एजेंसियों की कोई मजबूरी रही हो लेकिन जम्मूकश्मीर पुलिस इस खत के आधार पर अंदरूनी जांच कर के हकीकत का पता तो लगा ही सकती थी, ताकि आज खाकी की जो बदनामी हुई है, उस से बचा जा सकता था.

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अफजल गुरु के खत की जांच नहीं होने और देविंदर सिंह पर अब तक लगे सभी आरोपों को नजरअंदाज करने से एक बात यह भी साफ है कि राज्य की पुलिस या केंद्रीय स्तर पर कोई ऐसा अधिकारी जरूर था, जो देविंदर सिंह को लगातार बचा रहा था. सवाल यह भी है कि क्या देविंदर सिंह के आका का नाम जांच एजेंसियों के सामने आएगा या एक बार फिर इन तमाम सवालों पर धूल पड़ जाएगी?

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