
मोहाली के सेक्टर-70 की कोठी नंबर 2607 में रहने वाले रंजीत सिंह भंगू पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड से एक अच्छे पद से रिटायर हुए थे. उन की सब से बड़ी बेटी अमेरिका में, दूसरी न्यूजीलैंड में और तीसरी खरड़ के सन्नी एन्क्लेव में अपनेअपने परिवारों के साथ खुशहाल जीवन बिता रही थीं.
भंगू साहब का 20 वर्षीय एकलौता बेटा सिमरन सिंह गतवर्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने अपनी बड़ी बहन के पास अमेरिका गया था. पढ़ाई के साथसाथ वह दक्षिण सेकरामेंटो स्थित चैवगन गैस स्टेशन पर पार्टटाइम नौकरी भी करता था. गैस स्टेशन परिसर में जनरल मर्चेंडाइज की एक छोटी सी दुकान थी. कभीकभी सिमरन की ड्यूटी इस दुकान पर भी लग जाती थी.
26 जुलाई, 2017 की रात को भी सिमरन दुकान की ड्यूटी पर था. कुछ स्थानीय लड़कों ने दुकान पर आ कर सिमरन से थोड़ाबहुत सामान खरीदा. फिर वे दुकान से थोड़ी दूरी पर खुले में खड़े हो कर शराब पीने लगे. गैस स्टेशन के एक भारतीय कर्मी ने उन के पास जा कर उन्हें वहां शराब पीने से मना किया तो वे लड़के खफा हो कर उसे ही धमकाने लगे. बात बढ़ती देख कर वह कर्मचारी कुछ इस अंदाज से भीतर चला गया, जैसे उन्हें सबक सिखाने के लिए किसी को बुलाने जा रहा हो.
इत्तफाक से तभी सिमरन को किसी काम से दुकान के बाहर उसी ओर जाना पड़ गया. उन लड़कों ने आव देखा न ताव गोलियां चला कर सिमरन को मौत के घाट उतार दिया. उन्होंने 11 गोलियां दागी थीं, जिन में से 7 गोलियां सिमरन की छाती में लगी थीं.
इसी साल 7 अगस्त को जब समूचा हिंदुस्तान भाईबहन के पवित्र रिश्ते वाला त्यौहार रक्षाबंधन मना रहा था, सिमरन की बड़ी बहन हरजिंदर कौर अपने एकलौते भाई का शव ले कर अमेरिका से मोहाली स्थित अपने मायके पहुंची.
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अमेरिका की सेकरामेंटो पुलिस ने इस केस में फिलहाल एक संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया था, जबकि आगे की छानबीन जारी थी.
बात थोड़ी पुरानी है. पंजाब स्थित फगवाड़ा के एक सिपाही की आतंकवादियों से मुठभेड़ में मौत हो गई थी. तब इस के एवज में अनुकंपा के आधार पर पंजाब पुलिस ने उस के छोटे भाई नीरज को नौकरी औफर की थी. नौकरी जौइन करने के बाद नीरज प्रशिक्षण के लिए पुलिस ट्रेनिंग सैंटर में गया तो किसी ने उस से कह दिया कि वह तो फिल्मी हीरो लगता है, कहां पुलिस की रफटफ नौकरी में चला आया.
नीरज शुरुआती दौर में ही पुलिस की नौकरी को अलविदा कह घर आ गया. फिल्मों में काम हासिल करने के लिए उस ने प्रयास भी किए, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.
इस पर उस के एक पारिवारिक मित्र ने सलाह दी कि पहले विदेश जा कर वह खूब पैसा कमाए और फिर खुद अपनी फिल्म बनाए. नीरज को यह सलाह जंच गई.
जोड़तोड़ कर के नीरज को बेल्जियम जाने में सफलता मिल गई. जहां 2 साल रह कर उस ने कई तरह के काम किए. इस के बाद वह रोम चला गया. वहां इटली के एक होटल में उसे अच्छी नौकरी मिल गई. बड़ी बात यह थी कि होटल मालिक भी पंजाबी था. एक पंजाबी की सरपरस्ती में काम पा कर नीरज बहुत खुश था.
नीरज के परिवार के सभी पुरुष सदस्य अच्छी तरह स्थापित थे. घर में किसी को किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने नीरज से कह रखा था कि वह अपनी कमाई में से जितना भी बचा सकता है, वहीं अपने पास जमा करता रहे. नीरज के पारिवारिक सूत्रों के अनुसर उस ने कुछ ही समय में अपने पास काफी नकद पैसा और सोना जमा कर लिया था.
लेकिन एक दिन होटल मालिक का फोन आया कि नीरज का किसी से मामूली झगड़ा हो गया था. इसी से नाराज हो कर उस व्यक्ति ने नीरज की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी है.
कपूरथला के गांव नडाला के 600 से अधिक लोग किसी न किसी बाहरी देश में बसे हुए हैं. यहां का एक लड़का सुरजीत सिंह खेतीबाड़ी के अपने पुश्तैनी धंधे में मस्त था. उस की एक बुआ अमेरिका के कैलिफोर्निया में बस गई थी, जहां उस का जनरल स्टोर था. एक बार वह भारत आई तो सुरजीत को भी अपने साथ अमेरिका ले गई. वहां वह बुआ के जनरल स्टोर के काम में उन का हाथ बंटाने लगा. सुरजीत को वहां अपना भविष्य उज्ज्वल दिखाई देने लगा था.
स्टोर का काम अच्छी तरह सीख कर उस ने अपना अलग स्टोर खोलने की योजना बनाई. सुरजीत के इस काम में उस की बुआ भी मदद करने के लिए राजी थी.
मगर यह सपना उस वक्त धरा का धरा रह गया, जब एक दोपहर एक शख्स स्टोर पर बीयर लेने आया. सुरजीत स्टोर में अकेला था. उस की बुआ कुछ ही देर पहले घर चली गई थी. उस व्यक्ति ने 5 केन बीयर ली. बीयर देने के साथ ही सुरजीत ने बिल भी उस के सामने रख दिया. वह व्यक्ति बेरुखी से ‘इस का हिसाब मेरे खाते में डाल देना’ कहते हुए बीयर उठा कर स्टोर से बाहर निकल गया.
सुरजीत उस के पीछे भागा. बाहर जीप में 4 अन्य लोग बैठे थे. उस व्यक्ति ने उन के पास पहुंचते ही बीयर के केन उन के हवाले कर के अपनी भाषा में कुछ कहा. फलस्वरूप जीप में बैठे एक नौजवान ने रिवाल्वर निकाल कर सुरजीत पर फायर कर दिया. गोली लगते ही वह वहीं ढेर हो गया.
यह समाचार जब नडाला पहुंचा तो हाहाकार मच गया. दरअसल, चंद रोज पहले ही इसी गांव के एक अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा ही दर्दनाक हादसा हो चुका था.
नडाला निवासी जसवंत सिंह सोढी गांव के सरपंच तो थे ही, जालंधर की प्रसिद्ध दोआबा फैक्ट्री के चेयरमैन भी थे. उन के 8 लड़के थे, जिन में से 3 विदेश में जा बसे थे. इन तीनों सोढी भाइयों ने अमेरिका के शहर फिनिक्श में पैट्रोल व गैस का अपना अच्छाखासा बिजनैस जमा लिया था. स्थानीय लोगों के साथ उन का अच्छा रसूख भी बन गया था. तीनों भाइयों इंदरपाल सिंह, बलवंत सिंह और सुखपाल सिंह का जीवन खूब मजे से गुजर रहा था.
उस दिन बलबीर सिंह सोढी ने अपने केश क्या धोए, लगा जैसे उन्होंने अपनी मौत को बुलावा दे दिया. केश धोने के बाद उन्होंने बालदाढ़ी खुली छोड़ कर सिर पर सफेद रंग का पटका बांध लिया था. इत्तफाक से उस दिन उन्होंने कुर्तापाजामा भी सफेद ही पहन रखा था. वह कदकाठी और हुलिए से पूरी तरह अफगानी लग रहे थे.
यह उन दिनों की बात है, जब न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सैंटर और रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन पर हुए दुस्साहिक हमलों के बाद अमेरिकी लोग अफगानियों से नफरत करने लगे थे. ऐसे में बलबीर सिंह सोढी को अफगानी समझ कर किसी कट्टरपंथी ने उन्हें तब निशाना बना दिया, जब वह अपने घर की छत पर खड़े थे. गोली उन के बदन को चीर गई थी.
जालंधर नकोदर मार्ग पर बसे गांव नीमियां मल्लियां निवासी रेशम सिंह का लड़का अमरीक सिंह कुछ सालों पहले रोजगार की तलाश में मनीला गया था. वहां उस के 2 भाई पहले से ही रहते थे. वे सामान खरीदनेबेचने का धंधा करते थे. अमरीक ने भी यही कारोबार शुरू कर दिया. उस का भी काम ठीक से चल निकला. लेकिन एक दिन उस की लाश वीराने में पड़ी मिली. पता चला कि उस के किसी देनदार ने उस की गोली मार कर हत्या कर दी थी.
सुनील विरमानी अपनी पत्नी के अलावा बेटी मनी और बेटे मानव के साथ लुधियाना के मौडल टाउन एरिया में रहते थे. मानव को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा गया. उस ने अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित न्यू इंग्लैंड इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी से 95 प्रतिशत अंकों के साथ विजुअल प्रोसेसिंग इन कंप्यूटर की डिग्री हासिल की.
इस के बाद वह छुट्टियां बिताने मिसीसिपी चला गया, जहां सुनील विरमानी के एक मित्र रहते थे. वहां उन का अपना जनरल स्टोर था. एक दिन दोपहर में मानव को स्टोर पर बैठा कर वह किसी काम से घर चले गए. तभी कुछ लुटेरे आए और उन्होंने मानव को कत्ल कर के स्टोर का कैश बौक्स लूट लिया.
जालंधर के गांव हरिपुर का युवक कमल वीर सिंह भी जीवन में कुछ बनने की तमन्ना ले कर कनाडा गया था. वहां उसे एक शराबखाने में नौकरी मिली. एक रात शराब ठीक से सर्व न करने के मुद्दे पर उस का एक अंगरेज ग्राहक से झगड़ा हो गया. तूतू, मैंमैं से बात आगे बढ़ी और हाथापाई तक पहुंच गई. स्थिति यह बनी कि उस ग्राहक ने कमलवीर सिंह की हत्या कर दी.
कपूरथला के गांव टिब्बा का नौजवान जसवंत सिंह अच्छे रोजगार के लिए जापान गया था. वहां उसे एक निजी कंपनी में कार मैकेनिक की नौकरी मिल गई. अपनी इस नौकरी से वह बहुत खुश था और सुनहरे भविष्य के प्रति आशावान भी. जापान के जिस नगर सिगमाहारा में जसवंत रहता था, वहां एक रात कुछ भारतीय और पाकिस्तानी युवकों की किसी बात पर कहासुनी हो गई.
जसवंत ने बीचबचाव कर के उन लड़कों का आपस में राजीनामा करवा दिया. एक पाकिस्तानी युवक इस सब से चिढ़ गया. उस ने अपने मन में रंजिश रखी, जिस के फलस्वरूप 2 दिन बाद वह अपने कुछ साथियों को ले कर जसवंत के घर आ गया. उन्होने लोहे की रौडों से घर का दरवाजा तोड़ कर जसवंत को मौत के घाट उतार दिया.
इस तरह की तमाम कहानियां हैं. दरअसल, युवा ज्यादा से ज्यादा धन कमाने और अपने भविष्य को सिक्योर करने के लिए विदेश चले जाते हैं, लेकिन कई बार ऐसा कुछ हो जाता है, जिस की कीमत उन्हें प्राण दे कर चुकानी पड़ती है.
वैसे परदे के पीछे मुद्दा यह भी है कि विदेश जा कर धन कमाने का सपना देखने वाले नौजवान कोई यूं ही विदेश नहीं पहुंच जाते. इस के लिए जो धन खर्च किया जाता है, अधिकांश लड़कों के परिवारों द्वारा वह धन जुटाना आसान नहीं होता. कहीं घर के गहने बिकते हैं तो कहीं उन के भविष्य के लिए महंगे ब्याज पर जमीन गिरवी रखी जाती है. लेकिन भविष्य संवारने की कथित होड़ में भारतीयों के विदेश जाने की दौड़ खत्म नहीं होती, भले ही उन के साथ कितना भी दुर्व्यवहार हो, मौत उन्हें अपनी आगोश में समेट ले.
पंजाब के लहरागागा कस्बे के रहने वाले पंजाबी सिंगर मनमीत अली शेर ने ख्याति तो खूब अर्जित की, लेकिन ज्यादा कमाई नहीं हो रही थी. करीब 10 साल पहले उस ने भी आस्ट्रेलिया का रुख किया था. अपनी लेखनी और गायकी को जिंदा रखने के लिए उस ने विदेशी धरती पर बहुत मेहनत से हर तरह के काम किए. वहां एक ओर तो वह पंजाबी समुदाय के लिए जानामाना गायक था, वहीं दूसरी ओर व्यवसाय के नाम पर क्वींसलैंड की राजधानी ब्रिसबेन में सिटी कौंसिल बस का ड्राइवर था.
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वह 28 अक्तूबर, 2016 को रात थी. मनमीत अली शेर ने ब्रिसबेन के मारूका कस्बे में एक बस स्टौप से सवारियां लेने के लिए बस रोकी. कुछेक सवारियां बस में चढ़ीं भी. तभी एक सवारी ने तेजी से ड्राइवर कक्ष की ओर बढ़ते हुए मनमीत पर कुछ फेंका, जिस से वहां आग भड़क उठी.
उस वक्त बस में 16 सवारियां थीं, जिन्हें पीछे आ रहे एक टैक्सी ड्राइवर की मुस्तैदी से बस का इमरजेंसी द्वार खोल कर सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. लेकिन मनमीत अली शेर की मौके पर ही मौत हो गई. इस से चारों तरफ शोक एवं भय की लहर दौड़ गई. उस समय एक समाचार में बताया गया था कि पिछले 6 महीनों में बस ड्राइवरों पर 350 हमले हो चुके थे.
ब्रिसबेन पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए इस हमले के आरोप में एक 48 वर्षीय व्यक्ति को गिरफ्तार किया. मनमीत अली शेर की प्रसिद्धि इतनी ज्यादा थी कि अगले दिन उसे श्रद्धांजलि देने के लिए ब्रिसबेन में झंडे झुके रहने का ऐलान कर दिया गया था.
पंजाब के सांसद व पंजाबी एक्टर भगवंत मान ने इस मामले को उठाते हुए विदेशों में बसने वाले पंजाबियों की जानमाल की रक्षा को सुनिश्चित बनाने की केंद्र सरकार से मांग की थी. कुमार विश्वास ने भी इस संबंध में ट्वीट किया था.
पुलिस ने इस केस के संबंध में जिस आरोपी को पकड़ा था. उस का नाम का ऐंथनी मारक एडवर्ड डौनोहयू था. उस ने न तो पहले पुलिस के आगे मुंह खोला था, न ही अब अदालत के सामने खोला. अदालत के बाहर मौजूद पत्रकारों से आरोपी के वकील ऐडम मैगिल ने कहा कि इस की मानसिक हालत ठीक नहीं है और यह जुर्म एकदम समझ से परे है.
बाद में यह बात भी सामने आई कि कुछ दिनों पहले तक ऐंथनी मारक एडवर्ड का क्वींसलैंड के मैंटल अस्पताल में इलाज चल रहा था. अब फिर से उसे इसी तरह के इलाज की आवश्यकता है.
यह मामला अभी बीच में ही था कि लंदन में रहने वाली 30 वर्षीया भारतीय महिला प्रदीप कुमार अपने घर से गायब हो गई. 2 हफ्ते बाद उस का शव हीथ्रो एयरपोर्ट के पास से बरामद हुआ. ऐसे ही बहादुर सिंह पिछले 40 वर्षों से अमेरिका में रह रहे थे. 8 नंवबर, 2016 को जब वह अपने नौकर के साथ अपने स्टोर पर मौजूद थे तो काले रंग के कुछ लोगों ने आ कर उन की दुकान लूट कर उन्हें व उन के नौकर को गोली मार दी. दोनों की मौके पर ही मौत हो गई.
15 नवंबर को भारतीय मूल के 17 वर्षीय गुरनूर सिंह नाहल को कैलिफोर्निया में उस वक्त गोली मार दी गई, जब वह कहीं से अपने घर लौट रहा था. 23 नवंबर को भारतीय प्रवासी भगवंत सिंह अपनी पत्नी जसविंदर कौर के साथ मनीला के शहर रगाई में अपनी कार से कहीं जा रहे थे कि रास्ते में बाइक सवार अंगरेज लड़कों ने गोलियां बरसा कर पतिपत्नी दोनों की हत्या कर दी. इसी तरह लंदन के साउथहाल में गुरिंदर सिंह, कनाडा के शहर रेगिना में इकबाल सिंह व कुछ अन्य भारतीयों की हत्याएं हुईं.
25 दिसंबर, 2016 को न्यूजीलैंड के शहर औकलैंड में 24 वर्षीय हरदीप सिंह देओल की एक युवती ने चाकुओं के वार से उस वक्त हत्या कर दी, जब वह एक पार्क में सैर करने गया था.
पुलिस के अनुसार युवती को गिरफ्तार कर लिया गया. वह नशे की इस कदर आदी थी कि पिनक में आ कर कुछ भी कर बैठती थी. 30 दिसंबर, 2016 को अफगानिस्तान के अशांत शहर कुंदूज में सिख समुदाय के एक प्रमुख को मार डाला गया. पिछले 3 महीनों में यह एक ही तरह की दूसरी घटना थी.
सन 2017 की शुरुआत होते ही 2 जनवरी को मनीला के शहर सनजागो सिटी में गुरमीत सिंह, 6 जनवरी को अमेरिका के शिकागो के नजदीक पड़ने वाले शहर मिलवाकी में पैट्रोल स्टेशन पर नौकरी करने वाले हरजिंदर सिंह खटड़ा, 7 जनवरी को साइप्रस में सरबजीत सिंह, 12 जनवरी को रियाद में अमृतपाल सिंह, 21 जनवरी को अमेरिका में इंजीनियर श्रीनिवास और 25 जनवरी को कैलिफोर्निया के वुडलैंड क्षेत्र में एक अन्य भारतीय की हत्याएं कर दी गईं.
इन में कुछ मामलों में सीधेसीधे हेट क्राइम का मुद्दा सामने आया है. कई केसों में प्रवासी भारतीयों पर हमला करते वक्त हमलावरों द्वारा सीधेसीधे कहा गया था- ‘गैट आउट औफ माई कंट्री’ यानी दफा हो जाओ मेरे देश से.
इन अपराधों की चर्चा विश्वस्तर पर हो रही थी, लेकिन काररवाई के नाम पर किसी भी मामले में कुछ खास नहीं हो पाया.
इस बीच डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए थे. 22 फरवरी, 2017 को उन्होंने अपने बयान में कहा कि अमेरिका में इस वक्त 1.10 करोड़ अप्रवासी अवैध रूप से रह रहे हैं, जिन में 3 लाख भारतवंशी हैं. इन के खिलाफ काररवाई करने में कड़ा रुख अपना कर इन्हें वापस उन के देश भेज दिया जाएगा. उन्होंने अपनी नई आव्रजन नीति जारी करने की भी घोषणा की. इस का नतीजा यह हुआ कि 24 फरवरी को यूएस में घुसते ही न केवल 5 भारतीयों को, बल्कि उन की मदद करने वाले 1 कनाडाई नागरिक को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
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इसी दिन एक दर्दनाक खबर यह भी सामने आई कि 26 वर्षीय संदीप सिंह बब्बू को अमेरिका के स्ट्रीमवुड इलाके में उस समय एक वाहन ने कुचल कर मौत के घाट उतार दिया, जब वह अपनी गाड़ी पार्क कर के सड़क क्रौस कर रहा था. मूलरूप से लुधियाना के नगर समराला का रहने वाला यह युवक अपने 3 भाइयों व 3 बहनों में सब से छोटा था. अच्छाखासा कर्ज ले कर उसे बड़ी कठिनाई से विदेश भेजा गया था. वहां उसे एक कंपनी का ट्रक चलाने की नौकरी मिली थी.
ऊपर जिस इंजीनियर श्रीनिवास की हत्या का जिक्र है, उस का मामला विश्वस्तर पर उछला था. श्रीनिवास की पत्नी सुनयना दुमाला ने ह्यूस्टन में मीडिया के माध्यम से जो कहा, वह काबिलेगौर है.
‘हम ने कनसास को अपना घर माना, ओलेथा में हमें अपने सपनों का शहर मिला, हम दोनों का पहला घर. श्रीनिवास ने इसी जनवरी में खुद अपने हाथों से इस का पूरा लिविंग एरिया पेंट किया था. वह काफी जुनूनी थे. एविएशन उन का जुनून था. वह इस इंडस्ट्री में सफल व्यक्ति बनना चाहते थे.
‘श्रीनिवास अमेरिका के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे. निस्संदेह वह ऐसी मौत के लायक नहीं थे. जिंदा रहते तो 9 मार्च, 2017 को अपना 33वां जन्मदिन मनाते. समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं. अमेरिका में होने वाली फायरिंग की खबरें हम अकसर पढ़ते थे.
‘हमेशा चिंता होती थी कि यहां पर हम कितने सुरक्षित हैं. क्या हमारा अमेरिका में रहना सही है? लेकिन वह हमेशा दिलासा देते थे कि अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही होता है. हमेशा अच्छे रहो, अच्छा सोचो तो आप के साथ भी सब अच्छा होगा.
‘उस रात काम की थकान उतारने के लिए वह बार में अपने दोस्त के साथ बीयर पी रहे थे. इसी बीच एक हमलावर आ कर उन्हें भलाबुरा कहने लगा. उस ने खुल कर नस्लीय नफरत दिखाई. श्रीनिवास ने उस के इस तरह के व्यवहार पर ध्यान नहीं दिया. बार के लोगों ने उसे हल्ला करने से रोका और पकड़ कर बाहर निकाल दिया. मेरे पति को भी उसी वक्त वहां से चले आना चाहिए था. लेकिन उन्होंने सोचा होगा कि मैं क्यों जाऊं? मैं ने तो कुछ गलत नहीं किया है.
‘मैं उन्हें जानती हूं. कह सकती हूं कि वह सिर्फ इसलिए बैठे रहे कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया था. लेकिन थोड़ी ही देर में वह व्यक्ति लौट कर आया और उस ने मेरे पति श्रीनिवास की जान ले ली. मेरा ट्रंप सरकार से सवाल है कि नफरत की बुनियाद पर हो रही इस तरह की हत्याओं को आखिर कब रोका जाएगा और कैसे?’
श्रीनिवास का मामला अभी विश्वस्तर पर पूरी तरह से गर्म था कि 4 मार्च को साउथ कैरोलिना के लैंसेस्टर शहर में हरनिश पटेल नाम के भारतीय को गोली से उड़ा दिया गया. हमलों के छिटपुट अपराधों के चलते 24 मार्च को अमेरिका में न्यूजर्सी के बर्लिंग्टन स्थित अपने आवास पर 38 वर्षीया शशिकला अपने 7 साल के बेटे अनीश के साथ मृत पाई गईं. उन की हत्या गला रेत कर की गई थी. अमेरिकी पुलिस इस मामले की जांच घृणा अपराध के नजरिए से कर रही थी, साथ ही पुलिस ने शशिकला के पति हनुमंत राव को भी संदेह के दायरे में रखा हुआ था. मगर सुलझने के बजाय यह रहस्य अभी गहराता जा रहा था.
25 मार्च, 2017 को घटी एक घटना में भले ही किसी की जान न गई हो, लेकिन नस्लभेदी अपराध पूरी तरह उभर कर सामने आ गया था.
लेबनान में रहने वाली सिख लड़की राजप्रीत हीर उस दिन सबवे टे्रन से अपने एक दोस्त की बर्थडे पार्टी में मैनहट्टन जा रही थी. उसे देखते ही एक अमेरिकी चिल्लाने लगा, ‘क्या तुम जानती हो कि मरीन लुक क्या होता है? क्या तुम जानती हो कि वो लोग कैसे दिखते हैं? उन्होंने इस देश के लोगों के लिए क्या किया है? यह सब तुम्हारे जैसे लोगों के चलते होता है. लेबनान लौट जाओ, तुम इस देश की नहीं हो.’ इस के बाद उस व्यक्ति ने खूब अपशब्द बोले.
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राजप्रीत हीर ने बाद में इस घटना का वीडियो सोशल साइट पर डालते हुए इसे नाम दिया- ‘दिस वीक इन हेट.’ उल्लेखनीय है कि इस वीडियो में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका में बढ़ते नस्लभेदी अपराधों के बारे में बताया गया है.
26 मार्च को एक भारतीय जौय पर नौर्थ होबार्ट स्थित मैकडोनाल्ड रेस्त्रां में 5 लोगों के ग्रुप ने नस्लीय टिप्पणियां करते हुए उन से मारपीट की. इन में एक लड़की भी थी, जिस ने उन्हें ब्लैक इंडियंस कहते हुए बुरी तरह जलील किया.
7 अप्रैल को 26 वर्षीय भारतीय विक्रम जरथाल की अमेरिका के शहर वाशिंगटन में उस वक्त गोली मार कर हत्या कर दी गई, जब वह एक पैट्रोल स्टेशन के स्टोर में अपनी ड््यूटी दे रहा था.
25 वर्षीय प्रदीप सिंह आस्ट्रेलिया में रहते हुए न केवल हौस्पिटैलिटी की पढ़ाई कर रहा था, बल्कि गुजारे के लिए पार्टटाइम टैक्सी भी चलाता था. 22 मई की रात में उस ने मैकडोनाल्ड्स ड्राइव थू्रले जाने के लिए एक लड़के व लड़की को पिक किया. महिला सवारी को उल्टी आने लगी तो प्रदीप ने उन लोगों से उतर जाने को कहा. इस पर उन्होंने भड़कते हुए न केवल प्रदीप की जम कर पिटाई की, बल्कि उसे यह कह कर धमकाया भी कि तुम भारतीयों के साथ इधर ऐसा ही किया जाना चाहिए.
इस के बाद भी विदेशों में रह रहे भारतीयों के जलील होने अथवा मारे जाने के समाचार लगातार आ रहे हैं, जिन में ताजा मामला 26 जुलाई, 2017 को मोहाली निवासी सिमरन सिंह भंगू के अमेरिका में मारे जाने का है.
एनआरआई सभा, पंजाब के एक वरिष्ठ सदस्य के बताए अनुसार, यह निहायत ही गंभीर मसला बनता जा रहा है. इस के मद्देनजर वे लोग विदेशों में बसे भारतीयों की सुरक्षा के लिए इस तरह का तालमेल बैठाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं कि भारतीयों को किसी भी देश में विदेशियों के मुकाबले पिछड़ा हुआ अथवा कमजोर न समझा जाए.
इस वक्त 50 लाख से अधिक भारतीय अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, जर्मनी, बैल्जियम, स्कौटलैंड, फिलीपींस व यूरोप के अन्य कई देशों में बसे हुए हैं. इन लोगों की सुरक्षा का पूरा जिम्मा उस देश की सरकार व सुरक्षा एजेंसियों पर है, जिन्होंने उन्हें नागरिकता दी है.
3 दर्जन से अधिक देशों की यात्रा कर चुके चंडीगढ़ के समाजसेवी आलमजीत सिंह मान के बताए अनुसार, सवाल केवल पनाह देने या सुरक्षा प्रदान करने का नहीं है, भारतीयों का भी यह फर्ज बनता है कि वे जब दूसरों पर आश्रित हो कर रह रहे हैं तो उन्हें अपनी सीमाएं निर्धारित कर के चलना चाहिए.
विदेशों में भारतीयों के मारे जाने के ज्यादातर मामले लड़ाईझगड़े अथवा लूटपाट के वक्त विरोध करने के रहे हैं. हम लोग अपनी मानसिकता नहीं बदल पाते, स्वयं पर काबू नहीं रख पाते. वहां की सरकार कहती है कि अगर कोई लूटने आ जाए तो हाथ खड़े कर दो. नुकसान की भरपाई सरकार की ओर से होगी. हम लोगों के लिए इस तरह की बातें पचा पाना कठिन है.’
पंजाब के डायरेक्टर जनरल औफ पुलिस (डीजीपी) पद से रिटायर्ड चंद्रशेखर घई का इस विषय पर कहना है, ‘पश्चिमी देशों की सोच और वहां की संस्कृति हम लोगों से पूरी तरह भिन्न है. जहां भारतीय उन के बाहरी तौरतरीकों को बेझिझक अपना लेते हैं, वहीं हमारे लोग उन के भीतर की सोच और जीवन के प्रति उन के नजरिए को आत्मसात करना तो दूर, उस सब का विश्लेषण करते हुए गहराई में जाने तक का प्रयास नहीं करते.
‘यहां से जो लोग विदेश जाते हैं, उन में से ज्यादातर पहले से खुशहाल नहीं होते, बल्कि अपने को खुशहाल बनाने के लिए वहां जाते हैं. फिर भारत के अनुपात में उन्हें जब अपनी मेहनत का प्रतिफल कहीं ज्यादा मिलने लगता है तो घर में पैसे की नदियां बहती दिखाई देने लगती हैं. लिहाजा अपनी सोच न बदल कर खुद को उन लोगों के सिर पर बैठने की कोशिश करते हैं. तब आधार बनता है झगड़े का.
‘आप तमाम रिकौर्ड निकाल कर देख लें, भारतीयों के विदेशों में होने वाले कत्ल के मामलों में 95 प्रतिशत मामले इसी तरह के झगड़ों के हैं, 4 प्रतिशत लूटपाट के वक्त अकेले विरोध कर बैठने के और केवल एक प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जिन में हत्या का कारण व्यक्तिगत रहा. अब रेशियल अटैक की भी शुरुआत हो गई है, इस मुद्दे पर सभी देशों के रहनुमाओं को बात कर के इस स्थिति पर काबू पाना चाहिए.’
एक वरिष्ठ राजनेता ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा, ‘दरअसल, विदेशियों के सामने उन के देश में हम लोग आज भी गुलाम हैं. अव्वल तो हमें अपना देश छोड़ कर विदेश जाना ही नहीं चाहिए. अगर गए हो तो भई गुलाम बन कर ही रहना होगा. यह सोचने वाली बात है कि दूसरे देश में गुलामी की जिंदगी बेहतर है या अपने देश में अपनों के बीच आजादी की जिंदगी.’
सीमा ने बेटे को बाप से मिलने से रोकने की कोशिश की, लेकिन मानव बाप को छोड़ने को तैयार नहीं था. क्योंकि राजेश उस की वह हर इच्छा पूरी करते थे, जो उस उम्र के बच्चे चाहते हैं. मानव के हाईस्कूल पास करते ही राजेश ने उसे बुलेट मोटरसाइकिल खरीद दी थी. उस के इंटर पास करते ही राजेश ने उस के लिए फोर्ड फिगो कार खरीद दी थी.
मानव देता था बाप से ज्यादा अहमियत मां को
मानव एलएलबी कर के बड़ा वकील बनना चाहता था, इसलिए वह किसी अच्छे और बड़े कालेज से एलएलबी की पढ़ाई करना चाहता था. उस ने कई बार यह बात राजेश से कही भी. लेकिन राजेश उसे अब कहीं दूर नहीं भेजना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उस का दाखिला रुद्रपुर के किच्छा रोड स्थित चाणक्य कालेज में करा दिया.
राजेश मानव को बहुत प्यार करते थे. लेकिन वह मां को और उस के द्वारा सिखाई बातों को ज्यादा अहमियत देता था. यही वजह थी कि राजेश के इतना प्यार करने के बावजूद उस के अंदर भरी नफरत कम नहीं हुई. एलएलबी की पढ़ाई के दौरान उस की मुलाकात अशहर उर्फ आशू से हुई.
सितारगंज का रहने वाला आशू राजनीति में सक्रिय था. वह युवा कांग्रेस से जुड़ा था, जिस की वजह से उस के कई नेताओं से अच्छे संबंध थे. आशू की वजह से मानव भी कांग्रेस से जुड़ गया और मानव सेवा दल औफ इंडिया का गठन किया.
इसी संगठन के बैनर तले उस ने कई बार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सम्मान किया. राजनीति में आने के बाद मानव के हौसले बुलंदियों को छूने लगे थे. उस ने आशू को अपने घरपरिवार के बारे में सब बता दिया था. आशू कई बार हल्द्वानी स्थित मानव के घर भी गया था. इस से सीमा भी उसे पहचानने लगी थी.
अकसर साथ रहने की वजह से आशू को भी पता चल गया था कि मानव अपने पिता से बहुत नफरत करता है. वह उस की मां के साथ न रह कर रुद्रपुर में अलग रहते हैं. इस के बावजूद वह उस का सारा खर्चा उठाते हैं. उसे इस बात की हैरानी भी हो रही थी कि इतना सब कुछ करने के बाद भी मानव पिता से इतनी नफरत क्यों करता है.
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आशू ने जब इस की वजह जानने की कोशिश की तो मानव ने बताया कि उस के पिता के पास बेशुमार दौलत है, जिसे वह किसी लड़की के नाम करना चाहते हैं, जबकि उन की संपत्ति का असली हकदार वह है. इसलिए पिता की संपत्ति पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता है. अगर जरूरत पड़ी तो वह उन की हत्या भी कर सकता है.
पिता की संपत्ति मिलते ही वह काफी अमीर हो जाएगा. अगर इस काम में वह उस की मदद करता है तो पिता की संपत्ति मिलते ही वह उसे एक कार दिला देगा. कार के लालच में आशू उस का हर तरह से साथ देने को तैयार हो गया.
मानव ने योजना में शामिल किया दोस्त को
मानव ने आशू से कहा था कि उसे इस मामले में कुछ करना नहीं है, सिर्फ उस के साथ रहना है. जो भी करेगा, वह खुद करेगा. इस के बाद मानव पिता को कैसे ठिकाने लगाए कि पकड़ा न जाए? इस के लिए वह आपराधिक धारावाहिक देखने लगा.
काफी सोचविचार कर और पूरी योजना बना कर 29 अगस्त, 2016 की सुबह मानव आशू के साथ आरटीओ औफिस पहुंचा. वहीं उस ने पिता को भी बुला लिया. वहां थोड़ा काम था, जिसे निपटा कर वह पिता को कार में बैठा कर चल पड़ा. राजेश और मानव पिछली सीट पर बैठे थे, जबकि आशू कार चला रहा था.
मानव किसी ऐसे स्थान की तलाश में था, जहां वह आसानी से अपना काम कर सके और किसी को पता न चल सके. संयोग से उस दिन बरसात हो रही थी, जिस से सड़कें खाली पड़ी थीं. आरटीओ औफिस से निकल कर रामपुर रोड पर बीकानेर स्वीट के सामने मौका मिलते ही मानव ने अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर पिता की कनपटी से सटा कर 2 गोलियां दाग दीं.
गोलियां लगते ही राजेश तड़प कर हमेशा के लिए शांत हो गए. इस के बाद मानव ने उन्हें उठा कर इस तरह बैठा दिया, जैसे वह गहरी नींद में सो रहे हों. इस तरह मानव ने अपने पिता राजेश मान की हत्या कर दी. अब वह अपनी योजना के अनुसार, खटीमा की ओर चल पड़ा. क्योंकि अब उसे पिता की लाश को ठिकाने लगाना था. वह लाश को शारदा नहर में फेंकना चाहता था.
इस के लिए एक दिन पहले यानी 28 अगस्त, 2016 को ही मानव आशू को साथ ले कर पूरा रास्ता देख आया था. बरसात की वजह से नहर भी सूनी पड़ी थी. इस का लाभ उठाते हुए घटनास्थल से करीब 80 किलोमीटर दूर जा कर मानव ने कार से पिता की लाश निकाली और साथ लाई चादर में कुछ पत्थरों के साथ बांध कर नहर में फेंक दी.
मानव ने कैसे छिपाए हत्या के तथ्य
कार में खून लगा था, जिसे उस ने लौटते समय चलती कार में बरसात का फायदा उठाते हुए साफ कर दिया. कार तो साफ हो गई, लेकिन उसे इस बात का डर सता रहा था कि उस के रिवौल्वर की गोली से कार के शीशे में 2 छेद हो गए थे. लौटते समय उस ने रास्ता बदल दिया था. वह सितारगंज से चोरगलिया होते हुए हल्द्वानी पहुंचा.
हल्द्वानी पहुंच कर प्रेम टाकीज के पास उस ने कार की 2 बार सफाई कराई. सफाई के दौरान कार मैकेनिक ने कार में लगे खून के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि रास्ते में एक राहगीर का एक्सीडेंट हो गया था, जिसे उस ने इसी कार से अस्पताल पहुंचाया था. कार में यह उसी का खून लगा है.
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कार धुलवा कर उस ने उस के कवर भी बदलवा दिए. गाड़ी साफ करवा कर वह आशू के साथ घर पहुंचा और मां को बताया कि उस ने पिता को ठिकाने लगा दिया है. बेटे की बात सुन कर सीमा ने बेटे को कुछ कहने के बजाय उस की पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘बेटे, तुम ने बहुत अच्छा किया. तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है. आगे मैं सब संभाल लूंगी. नाक में दम कर के रख दिया था उस इंसान ने.’’
सीमा ने राजेश की हत्या का सबूत मिटाने के लिए उन का मोबाइल फोन घर में ही जला दिया. मानव के खून सने कपड़े पास में बह रहे नाले में फेंकवा दिए. कार में गोली चलने से शीशे में जो छेद हो गए थे, मानव ने उसे भी बदलवा दिया. उस ने आशू को चुप रहने के लिए तो कहा ही था, साथ ही चेताया भी था कि अगर उस ने यह राज किसी पर खोला तो वह उस का भी वही हाल करेगा, जो अपने पिता का किया है.
पुलिस पूछताछ में सीमा ने बताया था कि राजेश मान ने न उसे कभी पत्नी का दर्जा दिया और न ही मानव को कभी अपना बेटा माना. जबकि वह करोड़ों का मालिक था. इस के बावजूद उसे और बेटे को तंगहाली का जीवन जीना पड़ रहा था. जिन पैसों पर उसे और उस के बेटे को मौज करनी चाहिए थी, उस पर कोई और मौज कर रहा था. अपना हक पाने के लिए उस ने और बेटे ने जो किया, वह गलत नहीं है.
अपराध स्वीकार करने के बाद दर्ज हुआ हत्या का मुकदमा
आशू और सीमा के बयान के आधार पर पुलिस ने राजेश मान की गुमशुदगी हत्या में तब्दील कर दी. मानव, आशू और सीमा के खिलाफ भादंवि की धारा 304, 302, 120बी, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. फिर पुलिस ने आशू और सीमा को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
पुलिस टीम ने राजेश मान की लाश बरामद करने के लिए आशू की निशानदेही पर उस स्थान पर गोताखोरों से तलाश कराई थी, जहां उस ने लाश फेंकी थी. लेकिन पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा था. लगता भी कहां से, राजेश की हत्या हुए पूरा एक साल बीत चुका था. अब पुलिस को मानव को गिरफ्तार करना था. वह उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. वह अपनी कार हीरानगर की पार्किंग में खड़ी कर के फरार था.
पुलिस ने उस की कार बरामद कर ली थी. मानव को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने उस का मोबाइल सर्विलांस पर लगवा दिया. उसी की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस का पीछा करती रही. मानव हल्द्वानी से मेरठ अपने मामा के यहां गया और अपना मोबाइल वहीं छोड़ कर हल्द्वानी आ गया.
पुलिस जिस तरह मानव के पीछे पड़ी थी, उस का बचना आसान नहीं था. लेकिन वह पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर इधरउधर भागता रहा. वह अकसर पुलिस को चकमा दे कर निकल जाता था.
पुलिस पूरे एक महीने उस के पीछे लगी रही. उस के बचने की वजह यह थी कि सीमा ने गली में सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए थे, जिस से पुलिस के आने का उसे पता चल जाता था.
कैसे आया मानव चौधरी पुलिस की गिरफ्त में
पुलिस उस की तलाश में मेरठ में भटकती रही. पुलिस को कहीं से पता चला कि मानव दुबई जा सकता है. पुलिस ने उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करवा दिया. पुलिस ने उस के खिलाफ कुर्की का आदेश जारी कराया. लेकिन जब पुलिस उस के घर कुर्की करने पहुंची तो नानी ने कहा कि यह मकान उन का है, इसलिए वे इस की कुर्की नहीं कर सकते.
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पुलिस निराश हो कर लौट आई. आखिर पुलिस ने 27 अगस्त, 2017 को मानव को गिरफ्तार कर ही लिया. पुलिस उसे थाना किच्छा ले आई, जहां उस से विस्तार से पूछताछ की गई. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.
उस का कहना था कि अकसर उस की मम्मी कहा करती थीं कि उस के पिता की वजह से उन की जिंदगी बरबाद हुई है. घर से बेघर हो कर वह मां के यहां रहती हैं. उन की प्रौपर्टी पर उस का हक है, जबकि वह उसे बेदखल कर के अपनी सारी प्रौपर्टी किराएदार की बेटी को देना चाहते हैं.
इसी बात से उसे गुस्सा आ गया था और उस ने कसम खा ली थी कि वह अपनी प्रौपर्टी किसी भी कीमत पर अपने हाथ से नहीं जाने देगा. मानव पिता की कमजोरी जानता ही था, उसी का लाभ उठाते हुए उस ने पिता से कह कर अपनी जरूरत की सारी चीजें जुटा ली थीं.
राजेश ने ही उसे वह लाइसैंसी रिवौल्वर खरीदवाई थी, जिस से उस ने उन की हत्या की थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने मानव की कार की फोरैंसिक जांच कराई. इस तरह राजेश मान की हत्या को सुलझाने में पुलिस को एक साल लग गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने मानव को भी अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. लेकिन पुलिस अभी उसे एक बार रिमांड पर ले कर राजेश की लाश तलाशने पर विचार कर रही है.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
हरियाणा की रहने वाली सुनीता गोदारा भाई के बारे में पता करने के लिए उत्तराखंड के रुद्रपुर का चक्कर लगालगा कर बुरी तरह से थक चुकी थीं. वह जिस तरह आती थीं, उसी तरह खाली हाथ लौट जाती थीं. उन्हें सिर्फ पुलिस से आश्वासन मिलता था. उसी आश्वासन में उन्हें संतोष करना पड़ता था. लेकिन जब 5 महीने पहले जिले में नए एसएसपी डा. सदानंद दाते आए तो सुनीता गोदारा बड़ी उम्मीद ले कर उन से मिलीं और अपने भाई के बारे में पता लगवाने का आग्रह किया.
29 अगस्त, 2016 को रुद्रपुर जाते समय सुनीता गोदारा के भाई राजेश मान गायब हो गए थे. उन पत्नी सीमा चौधरी और बेटे मानव ने उन के बारे में पता करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन का कहीं कुछ पता नहीं चला था. इस के बाद 1 सितंबर, 2016 को सीमा चौधरी ने रुद्रपुर स्थित रम्पुरा चौकी में तहरीर दे कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.
पति की गुमशुदगी सीमा चौधरी ने रम्पुरा चौकी में दर्ज कराई थी. यह चौकी थाना किच्छा के अंतर्गत आती थी, इसलिए इस मामले की जांच थाना किच्छा पुलिस ने शुरू की. सीमा चौधरी ने एकाध बार थाने जा कर इस मामले में क्या हुआ, पता किया. लेकिन पुलिस से उचित सहयोग न मिलने की वजह से वह शांत हो कर बैठ गई थीं.
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लेकिन हरियाणा की रहने वाली राजेश मान की बहन को जब भाई के लापता होने के बारे में पता चला तो वह कभी मीडिया वालों से मिल कर तो कभी पुलिस अधिकारियों से मिल कर भाई के बारे में पता लगाने की गुहार लगाती रहीं.
उन्होंने पुलिस को बताया था कि उन की भाभी और भाई के बीच संबंध ठीक नहीं थे. दोनों काफी समय से अलग रह रहे थे. इसलिए भाई के लापता होने पर सीमा पर कोई असर नहीं पड़ा है.
सुनीता के दबाव की वजह से पुलिस ने कई बार राजेश मान की पत्नी सीमा चौधरी और बेटे मानव चौधरी को थाने बुला कर पूछताछ की थी. बेटे का कहना था कि उसी के पिता लापता हैं और पुलिस उसे ही बारबार थाने बुला कर परेशान कर रही है.
इस के बाद थाना किच्छा पुलिस ने इस मामले में रुचि लेनी बंद कर दी. इस की एक वजह यह भी थी कि सीमा चौधरी और उस के बेटे से पूछताछ में उसे कुछ हासिल नहीं हुआ था. दूसरे वे इस मामले में कोई रुचि भी नहीं ले रहे थे. राजेश की बहन सुनीता जरूर हाथ धो कर पीछे पड़ी थीं, लेकिन अब पुलिस उन्हें भाव नहीं दे रही थी.
एसएसपी ने दिए दोबारा जांच के आदेश
लेकिन जब सुनीता गोदारा नए एसएसपी डा. सदानंद दाते से मिलीं और उन्हें अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने आश्वासन देने के बजाय तुरंत एएसपी (क्राइम) कमलेश उपाध्याय और एएसपी देवेंद्र पिंचा को शीघ्र काररवाई के आदेश दिए.
इस के बाद दोनों अधिकारियों ने थाना किच्छा के थानाप्रभारी योगेश उपाध्याय और एसओजी प्रभारी विद्यादत्त जोशी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में एसएसआई सुशील कुमार, एसआई लाखन सिंह, देवेंद्र गौरव, सीमा ठाकुर, मनोज कोठारी, सुबोध शर्मा, हैडकांस्टेबल (एसओजी) प्रकाश भगत और महेंद्र डंडबाल को शामिल किया.
इस पुलिस टीम ने लापता राजेश मान के बेटे से पूछताछ करनी चाहा तो उस का कुछ पता नहीं चला. इस के बाद पुलिस ने शक के आधार पर उस के दोस्त अशहर उर्फ आशू से पूछताछ करनी चाही तो वह भी घर से गायब मिला.
इस से पुलिस यह सोचने पर मजबूर हो गई कि दोनों घर से गायब क्यों हैं? वैसे पुलिस दोनों से पहले भी लंबी पूछताछ कर चुकी थी, लेकिन तब दोनों ने पुलिस को कोई खास जानकारी नहीं दी थी. पुलिस ने राजेश की पत्नी सीमा चौधरी से भी गहन पूछताछ की थी, तब उस ने खुद को इस मामले से अंजान बताते हुए पीछा छुड़ा लिया था.
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शक हुआ तो पुलिस टीम मानव और आशू के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. ऐसे में पुलिस टीम को पता चला कि आशू पाकिस्तान भागने की फिराक में है. यह जान कर पुलिस सकते में आ गई. क्योंकि पुलिस के लिए वह एक ऐसा सूत्र था, जो इस मामले की तह तक जाने में उस की मदद कर सकता था. आखिर पुलिस ने आशू की तलाश के लिए मुखबिर लगा दिए. इस का नतीजा यह निकला कि थाना सितारगंज के गांव पंडीखेड़ा से उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
पत्नी को लिया गया हिरासत में
पुलिस की गिरफ्त में आते ही आशू के चेहरे की रंगत बदल गई. इधरउधर भागतेभागते वह पहले ही बुरी तरह से थक चुका था. इसलिए इस बार हिरासत में आते ही उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया.
पूछताछ में उस ने बताया, ‘‘मानव मान ने ही अपने पिता की हत्या की थी और उन की हत्या कराने में उस की मां सीमा चौधरी की भी अहम भूमिका थी.’’
इस के बाद पुलिस ने राजेश मान की पत्नी सीमा चौधरी को हल्द्वानी से हिरासत में ले लिया. हिरासत के दौरान की गई पूछताछ में सीमा चौधरी और आशू ने राजेश मान की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह आज के समय में हैरान करने वाली तो नहीं थी, पर सीधेसादे छलकपट से दूर रहने वाले लोगों को यह सोचने पर मजबूर जरूर करेगी कि आज के समय में भला किसी पर विश्वास किया भी जा सकता है या नहीं? पुलिस पूछताछ में राजेश मान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—
राजेश मान और सीमा चौधरी की शादी लगभग 25 साल पहले हुई थी. कालेज में पढ़ने के दौरान दोनों की मुलाकात हुई थी. यह मुलाकात दोस्ती में बदली तो फिर लवमैरिज तक जा पहुंची. सीमा चौधरी हल्द्वानी के रामपुर रोड की रहने वाली थी, जबकि राजेश मान किच्छा स्थित हरियाणा फार्म निवासी जयपाल सिंह का बेटा था.
सीमा चौधरी की सिर्फ एक ही बहन थी, जबकि भाई कोई नहीं था. शादी हो जाने के बाद बहन ससुराल चली गई तो शादी के बाद भी सीमा ज्यादातर हल्द्वानी में ही मांबाप के पास रहने लगी. राजेश से शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब ठीक चला, लेकिन उस के बाद दोनों के बीच तनाव ने जन्म ले लिया.
इस की वजह यह थी कि सीमा शहर की रहने वाली थी, जहां हर तरह की सुखसुविधाएं उपलब्ध थीं. लेकिन शादी के बाद उसे राजेश के साथ फार्महाउस पर रहना पड़ रहा था, जहां लगता था कि वह दुनिया से कट गई है. उस ने वहां दिल लगाने की बहुत कोशिश की, पर वहां उस का दिल बिलकुल नहीं लगा.
शहर में रहने को ले कर हुआ पतिपत्नी में तनाव
जब किसी भी तरह सीमा का दिल फार्महाउस पर नहीं लगा तो वह राजेश से कहने लगी कि यहां की कुछ जमीन बेच कर शहर में मकान बनवा लेते हैं और वहीं रहते हैं. लेकिन राजेश ने जमीन बेचने से साफ मना कर दिया. इसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच आए दिन तकरार होने लगी, जो दिनोंदिन बढ़ती ही गई. इस का नतीजा यह निकला कि सीमा मायके जा कर रहने लगी.
मायके में रहते हुए ही सीमा ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम मानव रखा गया. सीमा रहती भले मायके में थी, लेकिन उस का खर्च राजेश ही उठाते थे. बेटे के पैदा होने के बाद बेटे का और उस का खर्च वही उठाते रहे.
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बेटा होने के बाद राजेश मान को उम्मीद थी कि सीमा आ कर फार्महाउस पर रहने लगेगी, लेकिन उस की इस उम्मीद पर उस वक्त पानी फिर गया, जब सीमा ने साफ कह दिया कि वह बेटे को जंगल में पाल कर जंगली नहीं बनाएगी. इस के बाद सीमा और राजेश के संबंध लगभग खत्म से हो गए. राजेश ने सीमा को खर्च देना भी बंद कर दिया. सीमा हल्द्वानी में मां के साथ रहते हुए बेटे को पालने लगी तो राजेश मान प्रौपर्टी का व्यवसाय शुरू कर के उसी में व्यस्त हो गया.
जब तक मानव बच्चा था, उसे पापा के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन जब वह स्कूल जाने लगा तो उसे पापा की कमी खलने लगी. क्योंकि तमाम बच्चों के पापा उन्हें स्कूल छोड़ने और लेने आते थे. यह देख कर मानव ने सीमा से अपने पापा के बारे में पूछा. बेटे द्वारा बाप के बारे में पूछने पर सीमा अंदर तक हिल उठी. उस की समझ में नहीं आया कि वह बेटे को क्या बताए.
सीमा मानव॒को टालती रही, लेकिन किसी भी बच्चे को कब तक टाला जा सकता है. अगर उस के दिल में कोई चीज बैठ जाए तो जब तक वह उस के बारे में पता नहीं कर लेता, उसे भूलता नहीं. सीमा को लगा कि एक न एक दिन सच्चाई सामने आ ही जाएगी, इसलिए उस ने सब कुछ मानव को साफसाफ बता दिया.
उसी बीच राजेश मान प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ भाजपा से जुड़ गए और नेतागिरी करने लगे. प्रौपर्टी डीलिंग से उन्होंने अच्छीखासी कमाई की और शहर के नजदीक कई प्लौट तो खरीदे ही, रुद्रपुर के रामपुर रोड स्थित शांति विहार कालोनी में एक शानदार मकान भी बनवा लिया. अब वह ज्यादातर उसी मकान में रहने लगे. इतनी प्रौपर्टी और पैसा होने के बावजूद वह तनहा जीवन जी रहे थे.
राजेश को आने लगी बेटे की याद
इस के बाद भी उन्होंने सीमा को समझा कर साथ रहने को कहा, लेकिन सीमा ने उन के साथ रहने से साफ मना कर दिया. राजेश का उतना बड़ा मकान खाली ही पड़ा रहता था, कोई देखरेख करने वाला भी नहीं था, इसलिए उन्होंने एक किराएदार रख लिया.
किराएदार ललिता तिवारी की एक छोटी सी बेटी थी, जो अकसर राजेश के पास आ जाती थी. इस से राजेश का अकेलापन लगभग खत्म हो गया. धीरेधीरे राजेश उसे अपने ही बच्चे की तरह प्यार ही नहीं करने लगे, बल्कि उस की हर जरूरत भी पूरी करने लगे.
बच्ची के पास आनेजाने से राजेश को बेटे की याद सताने लगी. वह बेटे का पीछा करने लगे. मानव जिस स्कूल में पढ़ता था, वहां जा कर उस से मिलने लगे. लेकिन उन्होंने बेटे से साफ कह दिया था कि वह मम्मी को कभी नहीं बताएगा कि वह उस से मिलते हैं. राजेश बेटे की हर इच्छा पूरी करने लगे थे. कई बार वह उसे शांति विहार स्थित अपने घर भी ले आए.
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राजेश जहां मानव पर अपना प्यार लुटाते हुए उस के दिल को जीतने की कोशिश कर रहे थे, वहीं सीमा हमेशा उसे बाप के खिलाफ भड़काते हुए उस के मन में नफरत घोलने की कोशिश करती रहती थी. कहीं से सीमा को पता चल गया था कि राजेश चोरीछिपे बेटे से मिलते हैं.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
शीला का अंगअंग दुख रहा था. ऐसा लग रहा था कि वह उठ ही नहीं पाएगी. बेरहमों ने कीमत से कई गुना ज्यादा वसूल लिया था उस से. वह तो एक के साथ आई थी, पर उस ने अपने एक और साथी को बुला लिया था. फिर वे दोनों टूट पड़े थे उस पर जानवरों की तरह. वह दर्द से कराहती रही, पर उन लोगों ने तभी छोड़ा, जब उन की हसरत पूरी हो गई.
शीला ने दूसरे आदमी को मना भी किया था, पर नोट फेंक कर उसे मजबूर कर दिया गया था. ये कमबख्त नोट भी कितना मजबूर कर देते हैं.
जहां शीला लाश की तरह पड़ी थी, वह एक खंडहरनुमा घर था, जो शहर से अलग था. वह किसी तरह उठी, उस ने अपनी साड़ी को ठीक किया और ग्राहकों के फेंके सौसौ रुपए के नोटों को ब्लाउज में खोंस कर खंडहर से बाहर निकल आई. वह सुनसान इलाका था. दूर पगडंडी के रास्ते कुछ लोग जा रहे थे.
शीला से चला नहीं जा रहा था. अब समस्या थी कि घर जाए तो कैसे? वह ग्राहक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर आई थी. उसे बूढ़ी सास की चिंता थी कि बेचारी उस का इंतजार कर रही होगी. वह जाएगी, तब खाना बनेगा. तब दोनों खाएंगी.
शीला भी क्या करती. शौक से तो नहीं आई थी इस धंधे में. उस के पति ने उसे तनहा छोड़ कर किसी और से शादी कर ली थी. काश, उस की शादी नवीन के साथ हुई होती. नवीन कितना अच्छा लड़का था. वह उस से बहुत प्यार करता था. वह यादों के गलियारों में भटकते हुए धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी.
शीला अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. गरीबी की वजह से उसे 10वीं जमात के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उस के पिता नहीं थे. उस की मां बसस्टैंड पर ठेला लगा कर फल बेचा करती थी.
घर संभालना, सब्जी बाजार से सब्जी लाना और किराने की दुकान से राशन लाना शीला की जिम्मेदारी थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती थी. साइकिल पकड़ती और निकल पड़ती. लोग उसे लड़की नहीं, लड़का कहते थे.
एक दिन शीला सब्जी बाजार से सब्जी खरीद कर साइकिल से आ रही थी कि मोड़ के पास अचानक एक मोटरसाइकिल से टकरा कर गिर गई. मोटरसाइकिल वाला एक खूबसूरत नौजवान था. उस के बाल घुंघराले थे. उस ने आंखों पर धूप का रंगीन चश्मा पहन रखा था. उस ने तुरंत अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और शीला को उठाने लगा और बोला, ‘माफ करना, मेरी वजह से आप गिर गईं.’ ‘माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. मैं ने ही अचानक साइकिल मोड़ दी थी,’ शीला बोली.
‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. आप को कहीं चोट तो नहीं आई?’
‘नहीं, मैं ठीक हूं,’ शीला उठ कर साइकिल उठाने को हुई, पर उस नौजवान ने खुद साइकिल उठा कर खड़ी कर दी.
वह नौजवान अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो गया और स्टार्ट कर के बोला, ‘‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’
‘शीला… और आप का?’
‘नवीन… अच्छा चलता हूं.’
इस घटना के 4 दिन बाद फिर दोनों की सब्जी बाजार में मुलाकात हो गई.
‘अरे, शीलाजी आप…’ नवीन चहका, ‘सब्जी ले रही हो?’
‘हां, मैं तो हर दूसरेतीसरे दिन सब्जी खरीदने आती हूं. आप भी आते हैं…?’
‘नहीं, सच कहूं, तो मैं यह सोच कर आया था कि शायद आप से फिर मुलाकात हो जाए…’ कह कर नवीन मुसकराने लगा, ‘अगर आप बुरा न मानें, तो क्या मेरे साथ चाय पी सकती हैं?’
‘चाय तो पीऊंगी… लेकिन यहां नहीं. कभी मेरे घर आइए, वहीं पीएंगे,’ कह कर शीला ने उसे घर का पता दे दिया.शीला आज सुबह से नवीन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि नवीन जरूर आएगा. वह घर पर अकेली थी. उस की मां ठेला ले कर जा चुकी थी, तभी मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज आई. वह दौड़ कर बाहर आ गई. नवीन को देख कर उस का मन खिल उठा, ‘आइए… आइए न…’
नवीन ने शीला के झोंपड़ी जैसे कच्चे मकान को गौर से देखा और फिर भीतर दाखिल हो गया. शीला ने बैठने के लिए लकड़ी की एक पुरानी कुरसी आगे बढ़ा दी और चाय बनाने के लिए चूल्हा फूंकने लगी.
‘रहने दो… क्यों तकलीफ करती हो. चाय तो आप के साथ कुछ पल बिताने का बहाना है. आइए, पास बैठिए कुछ बातें करते हैं.’
दोनों बातों में खो गए. नवीन के पिता सरकारी नौकरी में थे. घर में मां, दादी और बहन से भरापूरा परिवार था. वह एक दलित नौजवान था और शीला पिछड़े तबके से ताल्लुक रखती थी. पर जिन्हें प्यार हो जाता है, वे जातिधर्म नहीं देखते.
इस बात की खबर जब शीला की मां को हुई, तो उस ने आसमान सिर पर उठा लिया. दोनों के बीच जाति की दीवार खड़ी हो गई. शीला का घर से निकलना बंद कर दिया गया. शीला के मामाजी को बुला लिया गया और शीला की शादी बीड़ी कारखाने के मुनीम श्यामलाल से कर दी गई.
शीला की शादी होने की खबर जब नवीन को हुई, तो वह तड़प कर रह गया. उसे अफसोस इस बात का रहा कि वे दोनों भाग कर शादी नहीं कर पाए. सुहागरात को न चाहते हुए भी शीला को पति का इंतजार करना पड़ रहा था. उस का छोटा परिवार था. पति और उस की दादी मां. मांबाप किसी हादसे का शिकार हो कर गुजर गए थे.
श्यामलाल आया, तो शराब की बदबू से शीला को घुटन होने लगी, पर श्यामलाल को कोई फर्क नहीं पड़ना था, न पड़ा. आते ही उस ने शीला को ऐसे दबोच लिया मानो वह शेर हो और शीला बकरी. शीला सिसकने लगी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे आज उस की सुहागरात नहीं, बल्कि वह एक वहशी दरिंदे की हवस का शिकार हो गई हो.
सुबह दादी की अनुभवी आंखों ने ताड़ लिया कि शीला के साथ क्या हुआ है. उस ने शीला को हिम्मत दी कि सब ठीक हो जाएगा. श्यामलाल आदत से लाचार है, पर दिल का बुरा नहीं है. शीला को दादी मां की बातों से थोड़ी राहत मिली.
एक दिन शाम को श्यामलाल काम से लौटा, तो हमेशा की तरह शराब के नशे में धुत्त था. उस ने आते ही शीला को मारनापीटना शुरू कर दिया, ‘बेहया, तू ने मुझे धोखा दिया है. शादी से पहले तेरा किसी के साथ नाजायज संबंध था.’
‘नहीं…नहीं…’ शीला रोने लगी, ‘यह झूठ है.’
‘तो क्या मैं गलत हूं. मुझे सब पता चल गया है,’ कह कर वह शीला पर लातें बरसाने लगा. वह तो शायद आज उसे मार ही डालता, अगर बीच में दादी न आई होतीं, ‘श्याम, तू पागल हो गया है क्या? क्यों बहू को मार रहा है?’
‘दादी, शादी से पहले इस का किसी के साथ नाजायज संबंध था.’
‘चुप कर…’ दादी मां ने कहा, तो श्यामलाल खिसिया कर वहां से चला गया.
‘बहू, यह श्यामलाल क्या कह रहा था कि तुम्हारा किसी के साथ…’
‘नहीं दादी मां, यह सब झूठ है. यह बात सच है कि मैं किसी और से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी. मेरा विश्वास करो दादी, मैं ने कोई गलत काम नहीं किया.’
‘मैं जानती हूं बहू, तुम गलत नहीं हो. समय आने पर श्याम भी समझ जाएगा.’ और एक दिन ऐसी घटना घटी, जिस की कल्पना किसी ने नहीं की थी. श्यामलाल ने दूसरी शादी कर ली थी और अलग जगह रहने लगा था.
श्यामलाल की कमाई से किसी तरह घर चल रहा था. उस के जाने के बाद घर में भुखमरी छा गई. शीला मायके में कभी काम पर नहीं गई थी, ससुराल में किस के साथ जाती, कहां जाती. घर का राशन खत्म हो गया था.
दादी के कहने पर शीला राशन लाने महल्ले की लाला की किराने की दुकान पर पहुंच गई. लाला ने चश्मा लगा कर उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा, फिर उस की ललचाई आंखें शीला के उभारों पर जा टिकीं. ‘मुझे कुछ राशन चाहिए. दादी ने भेजा है,’ शीला को कहने में संकोच हो रहा था.
‘मिल जाएगा, आखिर हम दुकान खोल कर बैठे क्यों हैं? पैसे लाई हो?’
शीला चुप हो गई. ‘मुझे पता था कि तुम उधार मांगोगी. अपना भी परिवार है. पत्नी है, बच्चे हैं. उधारी दूंगा, तो परिवार कैसे पालूंगा? वैसे भी तुम्हारे पति ने पहले का उधार नहीं दिया है. अब और उधार कैसे दूं?’
शीला निराश हो कर जाने लगी.
‘सुनो…’
‘जी, लालाजी.’
‘एक शर्त पर राशन मिल सकता है.’
‘बोलो लालाजी, क्या शर्त है?’
‘अगर तुम मुझे खुश कर दो तो…’
‘लाला…’ शीला बिफरी, ‘पागल हो गए हो क्या? शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए.’
लाला को भी गुस्सा आ गया, ‘निकलो यहां से. पैसे ले कर आते नहीं हैं. उधार में चाहिए. जाओ कहीं और से ले लो…’
शीला को खाली हाथ देख कर दादी ने पूछा, ‘क्यों बहू, लाला ने राशन नहीं दिया क्या?’
‘नहीं दादी…’
‘मुझ से अब भूख और बरदाश्त नहीं हो रही है. बहू, घर में कुछ तो होगा? ले आओ. ऐसा लग रहा है, मैं मर जाऊंगी.’
शीला तड़प उठी. मन ही मन शीला ने एक फैसला लिया और दादी मां से बोली, ‘दादी, मैं एक बार और कोशिश करती हूं. शायद इस बार लाला राशन दे दे.’
‘लाला, तुम्हें मेरा शरीर चाहिए न… अपनी इच्छा पूरी कर ले और मुझे राशन दे दे…’ लाला के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई, ‘यह हुई न बात.’
लाला उसे दुकान के पिछवाड़े में ले गया और अपनी हवस मिटा कर उसे कुछ राशन दे दिया. इस के बाद शीला को जब भी राशन की जरूरत होती, वह लाला के पास पहुंच जाती. एक दिन हमेशा की तरह शीला लाला की दुकान पर पहुंची, पर लाला की जगह उस के बेटे को देख कर ठिठक गई.
‘‘क्या हुआ… अंदर आ जाओ.’’
‘लालाजी नहीं हैं क्या?’
‘पिताजी नहीं हैं तो क्या हुआ. मैं तो हूं न. तुम्हें राशन चाहिए और मुझे उस का दाम.’
‘इस का मतलब?’
‘मुझे सब पता है,’ कह कर शीला को दुकान के पिछवाड़े में जाने का इशारा किया. अब तो आएदिन बापबेटा दोनों शीला के शरीर से खेलने लगे. इस की खबर शीला के महल्ले के एक लड़के को हुई, तो वह उस के पीछे पड़ गया.
शीला बोली, ‘पैसे दे तो तेरी भी इच्छा पूरी कर दूं.’ यहीं से शीला ने अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया था. एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे. इस तरह वह कई लोगों के साथ सो कर दाम वसूल कर चुकी थी. उस की दादी को इस बात की खबर थी, पर वह बूढ़ी जान भी क्या करती.
शीला अब यादों से बाहर निकल आई थी. दर्द सहते, लंगड़ाते हुए वह भीड़भाड़ वाले इलाके तक आ गई थी. उस ने रिकशा रोका और बैठ गई अपने घर की तरफ जाने के लिए.
एक दिन हमेशा की तरह शीला चौक में खड़े हो कर ग्राहक का इंतजार कर रही थी कि तभी उसे किसी ने पुकारा, ‘शीला…’
शीला ग्राहक समझ कर पलटी, लेकिन सामने नवीन को देख कर हैरान रह गई. वह अपनी मोटरसाइकिल पर था. ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’ नवीन ने पूछा.
शीला हड़बड़ा गई, ‘‘मैं… मैं अपनी सहेली का इंतजार कर रही थी.’’
‘‘शीला, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं.’’
‘‘बोलो…’’
‘‘यहां नहीं… चलो, कहीं बैठ कर चाय पीते हैं. वहीं बात करेंगे.’’
शीला नवीन के साथ नजदीक के एक रैस्टोरैंट में चली गई.
‘‘शीला,’’ नवीन ने बात की शुरुआत की, ‘‘मैं ने तुम से शादी करने के लिए अपने मांपापा को मना लिया था, लेकिन तुम्हारे परिवार वालों की नापसंद के चलते हम एक होने से रह गए.’’ ‘‘नवीन, मैं ने भी बहुत कोशिश की थी, लेकिन हम दोनों के बीच जाति की एक मजबूत दीवार खड़ी हो गई.’’
‘‘खैर, अब इन बातों का कोई मतलब नहीं. वैसे, तुम खुश तो हो न? क्या करता है तुम्हारा पति? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’
शीला थोड़ी देर चुप रही, फिर सिसकने लगी, ‘‘नवीन, मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली है,’’ शीला ने अपनी आपबीती सुना दी.
‘‘तुम्हारे साथ तो बहुत बुरा हुआ,’’ नवीन ने कहा.
‘‘तुम अपनी सुनाओ. शादी किस से की? कितने बच्चे हैं?’’ शीला ने पूछा.
‘‘एक भी नहीं. मैं ने अब तक शादी नहीं की.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि मुझे तुम जैसी कोई लड़की नहीं मिली.’’
शीला एक बार फिर तड़प उठी.
‘‘शीला, मेरी जिंदगी में अभी भी जगह खाली है. क्या तुम मेरी पत्नी…’’
‘‘नहीं… नवीन, यह मुमकिन नहीं है. मैं पहली वाली शीला नहीं रही. मैं बहुत गंदी हो गई हूं. मेरा दामन मैला हो चुका है. मैं तुम्हारे लायक नहीं रह गई हूं.’’
‘‘मैं जानता हूं कि तुम गलत राह पर चल रही हो. पर, इस में तुम्हारा क्या कुसूर है? तुम्हें हालात ने इस रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया है. तुम चाहो, तो इस राह को अभी भी छोड़ सकती हो. मुझे कोई जल्दी नहीं है. तुम सोचसमझ कर जवाब देना.’’
इस के बाद नवीन ने चाय के पैसे काउंटर पर जमा कए और बाहर आ गया. शीला भी नवीन के पीछे हो ली.नवीन ने मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा. उम्मीद है कि तुम निराश नहीं करोगी,’’ कह कर नवीन आगे बढ़ गया.
शीला के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि वक्त उसे दलदल से निकलने का एक और मौका देगा. अभी शीला आगे बढ़ी ही थी कि एक नौजवान ने उस के सामने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी, ‘‘चलेगी क्या?’’
‘‘हट पीछे, नहीं तो चप्पल उतार कर मारूंगी…’’ शीला गुस्से से बोली और इठलातीइतराती अपने घर की तरफ बढ़ गई.
इंदौर शहर की रौनक देखते ही बनती है. इंदौर शहर लजीज व्यंजन के लिए महशूर है. विशेषत: रात को सराफा बाजार बंद होने के बाद वहाँ खाने पीने की दुकानें लगती है. खाने के शौकीन लोगों का हुजुम देर रात सराफा बाजार मेंं ऐसे उमडता है जैसे कि दिन निकला हो. वहां का स्वाद, खाने के लजीज व्यंजन, लोगों का जिंदगी को जिंदादिली से जीने की स्वभाव, मालवा की माटी में रचा बसा है. एक बार जो शहर में आया तो वहीं का होकर रह जाता है. मालवा की माटी की सौंधी महक किसी का भी मन मोह लेने में सक्षम है.
रात को शहरों की रौनक देखते ही बनती है, सराफा की गलियों में व्यजंनो की महक हवा में घुली होती है. व्यजंनों का स्वाद व राजवाडा की रौनक रात का भ्रम पैदा करतें है. रात 9 बजे के बाद जैसे यहाँ दिन निकलता है.
पुराने शहर की गलियों में लोग एक दूसरे से बहुत परिचित रहते हैं. उनसे परिवार के सदस्य क्या, पूरे खानदान का ब्यौरा मिल सकता है. शहर के कुछ नामी-गिरामी लोगों में राय साहब का रुतबा बहुत है. राजघराने से संबंधित होने के कारण मुख पर वही तेज सुशोभित रहता है. कहतें है न कि मिल्कियत भले चली जाये लेकिन शानो शौकत व जीने का अंदाज नहीं बदलता. यह इंसान के खून में ही शामिल होता है. यदि पुरखे राजा महाराजा रहे हों, तब राजपुताना अंदाज उनके रहन सहन में झलकता है.
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शहर के बीचों -बीच राय साहब का बंगला है. बाहर बडा सा शाही दरवाजा बंगले की शान है, जिसके भीतर देख पाना मुश्किल है . गेट पर छोटा सा कमरानुमा जगह है जहाँ दरबान का पहरा रहता है. या यह कहे कि दिन भर उसके रहने का आशियाना है. बंगले के एक कोने में शानदार 2-2 गाड़ियां खड़ी है. बंगले के चारों तरफ गुलमोहर, संतरा, चीकू, गुलाब, आम, पपई, अनगिनत फूलों के पौधे बंगले की खूबसूरती में चार चांद लगा रहें हैं . लेकिन इतने बडे घर में रहने वाले सिर्फ दो लोग है . राय साहब और उनकी पत्नी दामिनी. एक बेटा है जिसे लंदन पढ़ाई करने के लिए भेजा है. दोनों की खूबसूरती व सौंदर्य के चर्चे शहर भर में होते रहते हैं. रूप की रानी दामिनी जितनी सौंदर्य की स्वामिनी है , उतनी ही गुणों की खान भी है. बंगले का चप्पा चप्पा दामिनी की कला व सौंदर्य से सुशोभित था. वह दोनों जितने बड़े बंगले के मालिक है उतने ही दिल के बहुत अच्छे इंसान भी है . वह दोनों लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते थे.
अमीर घरों में पार्टी का चलन आम बात है . जहाँ शबाब और कबाब पूरे चरम पर रहता है. कुछ समय पहले एक पार्टी में रात मालिनी को देखकर राय साहब की आंखें फटी रह गई. मालिनी उनके साथ लंदन में पढ़ती थी जिस पर राय साहब दिलों जान से फिदा थे. मालिनी स्वच्छंद विचरण में यकीन रखती थी. कोलेज के दिनों में उसने राय साहब के प्रस्ताव को ठोकर मार दी. बात वही समाप्त हो गई . खानदानी परंपरा के अनुसार राय साहब का विवाह दामिनी से हुआ. अप्रतिम सौंदर्य के स्वामिनी दामिनी का शाही अंदाज उसके व्यक्तित्व में झलकता था.
लेकिन इतने बरसों बाद मालिनी को देखकर राय साहब को अपना पहला अधूरा प्यार याद आ गया. ह्रदय में दबी हुई चिंगारी चुपके से सुलगने लगी. जिस की हवा देने में मालिनी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. अविवाहित मालिनी भी एक कांधे की तलाश में थी जो उसे अपने पुराने आशिक में मिल सकता था.
“और राय कैसे हो ?” … हाथों में जाम लिए, अधरों पर छलकती मुस्कान व नशीली आंखों से भरी शरारती के साथ मालिनी ने साहब के कंधे पर हाथ रखा.
“अच्छा हूं … मालिनी इतनी बरसो बाद यहां कैसे…? मालिनी ने बात काटकर कहा
“काम के सिलसिले में आई थी, आजकल तुम कहां हो? लंबे समय बाद मुलाकत हो रही है . कभी अपने घर बुलाना… !
इससे पहले मालिनी कुछ बोल पाती कि दामिनी ने आकर राय साहब के हाथों में हाथ डाल दिए.
“अब घर चलो, कितनी देर हो गई है, आज आपने बहुत पी रखी है”.
दामिनी के आने पर राय ने मालिनी को दामिनी का परिचय कराया और औपचारिक संवादों के बाद वह दोनों वहां से चले गए.
पर मुलाकाते यहां समाप्त नहीं हुई, यह मुलाकातों की शुरुआत थी. मालिनी यदा कदा बंगले पर आने लगी. अविवाहित मालिनी को राय के जलवे, मिल्कियत व दामिनी की किस्मत से रश्क होने लगा. एक टीस सी उठती थी कि काश उसने राय के प्रस्ताव को उस समय ठुकराया ना होता, तो आज दामिनी की जगह वह होती.
मालिनी के आने जाने से राय के हृदय में दबी हुई चिंगारी सुलग रही थी . जिसे मालिनी ने भी महसूस किया. इस भावना ने दबे पांव उन्हें एक दूसरे की तरफ धकेल दिया जिसका उन्हें एहसास भी नहीं हुआ.
दोनों उम्र के इस पड़ाव में आकर्षण ,नई ताजगी, रोमांस, रूमानियत से जीवन में रंग भर रहे थे . मालिनी अब अक्सर उनके घर आने लगी व उसने दामिनी से भी उतने ही अपनत्व से मित्रता कर ली.
इन बढ़ते हुए कदमों ने मालिनी व राय साहब को एक दूसरे से बहुत करीब ला दिया. प्रेम में घायल पंछी अपनी उड़ान भर रहा था. एक दिन मौका पाकर मालिनी ने राय से कहा-
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“प्रिय कब तक ऐसा चलेगा, यह दूरी अब सही नहीं जाती है ” दोनों तड़प रहे थे लेकिन किस्मत ने जल्दी उन्हें मौका दे दिया .
आज बंगले पर कुछ करीबी दोस्तों के साथ पार्टी थी. इसमें मालिनी ने भी शिरकत की. देर रात तक चली पार्टी का नशा पूरे शबाब था. मालिनी ने चुपके से दामिनी के ड्रिंक में नशे व नींद की गोलियां मिला दी. अधूरी तमन्नाएं व जिंदगी को रंगीन करने की चाहत ने उसे अंधा बना दिया था.
नशे का असर जब शुरू होने लगा, तो वह दामिनी को लेकर उसके कमरे में गई. राय ने यह सब देखा तो पीछे – पीछे आकर पूछा कि – दामिनी को क्या हुआ?
मालिनी ने उसे चुप कराया, कहा-
“पार्टी समाप्त करो फिर बात करते हैं. सब ठीक है ” कहकर उसने राय को सब कुछ बताकर कहा –
” राय तुम चिंता मत करो, नशा ज्यादा हो गया .अब वह सुबह तक नहीं उठेगी. उसे कुछ नही होगा, बस रात की ही बात है. ”
ऐसा कहकर मालिनी उसके गले लग गई. लेकिन दामिनी अचानक नशे की हालत में उठी तो डर कर मालिनी ने उसे धक्का दे दिया, जिससे वह पलंग से टकराकर वही लुढ़क गई. फिर उनसे वह गलती हो गई जो नहीं होनी चाहिए.
पार्टी को वहीं खत्म करके सबने विदा ली. सुबह जब नशे कि खुमारी उतरी तो राय को अपनी गलती का एहसास हुअा. वह तेजी से अपने कमरे की तरफ भागा . लेकिन दामिनी कमरे में नहीं थी. उसने बाथरूम का दरवाजा खोला तो उसकी चीख जोर से निकल गई . दामिनी बाथटब में पानी के अंदर पड़ी हुई थी, उसने उसे बाहर निकालकर पेट से पानी निकालने का प्रयास किया. मुख से साँस का प्रयास किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. शरीर निस्तेज हो चुका था.
राय की चीख सुनकर मालिनी दौड़ी आई.
“क्या हुआ… यह कैसे हो गया ? बात गले में अटक गई. “ वह बडबडाने लगी –
” मैंने ड्रिंक में सिर्फ नशे व नींद की गोलियां मिलाई थी, मैं किसी की जान नहीं लेना चाहती थी….”
राय ने उसे गुस्से में परे धकेला-
” जाओ जल्दी से किसी डॉक्टर को बुलाओ… यह नही होना चाहिये था”.
भय से मालिनी ने उसे शांत करने का प्रयास किया-
” देखो तुम शांत हो जाओ. इसकी साँसे नहीं चल रही है . डाक्टर से क्या कहोगे. पुलिस केस बनेगा . तहकीकात होगी. बात का बतंगड़ बनेगा. शाम को चुपचाप दाह संस्कार करने में ही भलाई है. इन परेशानियों से बचने के लिए हमारा चुप रहना ही हितकर होगा . मैं तुम्हारे साथ हूं . चिंता मत करो . मैं रात को आऊंगी. घर के नौकर छुट्टी पर है. किसी को पता नहीं चलेगा….” मालिनी उसे शांत करने का प्रयास करती रही.
राय, जब मालिनी की बात से सहमत हो गया तो उसने चैन की साँस ली . राय ने बाहर दरबान को आवाज दी
“रामू ,मैडम को घर छोड़ कर आओ और तुम कई दिनों से अपने घर जाना चाहते थे . दो-चार दिन गांव होकर आ जाओ, अभी ज्यादा कुछ काम भी नहीं है”
मालिनी ने जाते जाते इशारा किया घबराओ मत, हम शाम को मिलते हैं.
राय ने किसी तरह दिन काटा और शाम को मालिनी के आने का इंतजार करने लगा. मन को बहलाने के लिए वह टीवी में समाचार सुन रहा था कि एक खबर ने उसे चौंका दिया . देश में महामारी फैलने के कारण कर्फ्यू दिया गया है. किसी को भी घर से बाहर निकलने की मनाही है. उसने कल ध्यान नही दिया था. मसलन आज रात को वह बाहर नही जा सकते है.
उसने जल्दी से मालिनी को फोन किया कि
” तुम अभी घर आ जाओ, हमें दाह संकार करना होगा. लाश को घर में नही रख सकतें है.”
लेकिन मालिनी ने असमर्थता जाहिर करके अाने से इंकार कर दिया कि आज शहर भर में पुलिस ड्यूटी पर है . मैं नहीं आ सकती हूं. कल मिलती हूँ एक दिन की बात है. अब राय अकेला घर में परेशान घूम रहा था.
काल की मार देखो कि वह अगला दिन नहीं आया ही नही. लाक डाउन की मियाद बढाकर एक महीने कर दी गई . मालिनी आ नहीं सकी व इधर राय को आत्मग्लानि होने लगी. भय के बादल मँडरा रहे थे. उसने जल्दी से अपने घर के सब खिड़की दरवाजे सब बंद कर लिए, बाहर गेट पर ताला लगा दिया जिससे कोई अंदर ना आ सके.
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कुछ पल बैठकर उसने खुद को संभाला. विचार किया कि घर में गाड़ी है. उसे निकालकार लाश को गाडी में ले जाकर रात को उसका क्रिया कर्म करवा दूंगा. बंगले से बाहर के लोग अंदर कुछ नहीं देख सकता थे. किंतु बंगले के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जिससे उसे घर से बाहर सड़क पर अाने जाने वालों की सब जानकारी मिल जाती थी. उसमें अपने मोबाइल पर सीसीटीवी फुटेज देखें . चारों तरफ मुस्तैदी से तैनात पुलिस कर्मी नजर अाए. कर्फ्यू का सख्ती से पालन कराया जा रहा है. आने जाने वालों की चेंकिग हो रही थी. ऐसे में बाहर जाना खतरे से खाली नही था.
एक लाश के साथ इतने दिन गुजारना भयावह था . समय ने ऐसा चक्र घुमाया कि जिंदगी ठहर गई. राय की हालत अजीब सी होने लगी. लाश के साथ रहना उसकी मजबूरी थी. बार-बार बेडरूम में जाकर चेक करता कि शरीर सुरक्षित है या नहीं. पूरे बंगले में सिर्फ वह था और दामिनी का मृत शरीर .
लाश को घर में रखना चिंता का विषय था. शरीर के सड़ने से बदबू फैल सकती है. उसने बेडरूम में ऐसी चलाकर दामिनी के शरीर को पलंग पर लिटा दिया व कमरे का दरवाजा बंद कर दिया . कभी वह कमरे के बाहर जाता तो कभी वह खिड़कियों से झांकता वहीं बैठा रहता .
घबराहट धीरे-धीरे कुंठा में परिवर्तित हो रही थी. भय और ग्लानि के भाव मुख पर नजर आ रहे थे. वह खुद को संयत करने का जितना प्रयास करता उतना ही खुद को दामिनी का दोषी मानता. अब इन हालातों में जैसे भी हो दिन काटना मजबूरी है.
एक दिन वह कमरे में दामिनी को देखने गया तो जाने किस भावावेश मेंं उसके मृत शरीर से लिपट गया और पागलों की तरह चिल्लाने लगा.
“दामिनी मुझे माफ कर दो . मेरी गलती की सजा तुम्हें मिल रही है. घर का कोना कोना तुम्हारी महक में रचा बसा है, तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता, प्लीज वापिस आ जाओ… मैने मालिनी पर विश्वास करके गलती की है…मुझे माफ कर दो ….” रोते हुए उसकी आंख लग गई.
थोड़ी देर बाद उसने महसूस किया कि कोई उसके हाथ को सहला रहा है. किसी की गर्म सांसे मुख पर महसूस हो रही है. चिर परिचित महक उसके आगोश में लिपटी हुई है. वह मदमस्त सा उस निश्चल धारा में बहने लगा. तभी अचानक ना जाने कहाँ से उसके पालतू कुत्ते आ गये, जो उनके साथ खेलने लगे.
लेकिन खेलते खेलते अचानक उन्होंने उसके हाथों की उंगलियों को मुंह में दबा लिया. वह उंगलियों को छुड़ाना चाहता है, लेकिन उनकी पकड मजबूत से दर्द का अहसास हो रहा था. पैने नुकीले दांतो के बीच दबी उंगलियां कट सकती हैं. इस डर से जोर से चिल्लाने लगा. भयभीत आंखें खोली तो खुद को बिस्तर पर पाकर स्वप्न का अहसास हुआ.
लेकिन हाथ की मजबूत पकड अभी भी महसूस हो रही थी. तभी उसने देखा कि दामिनी के हाथ में उसका हाथ फंसा हुआ था और वह उसके शरीर से लिपटी हुई थी. डर से चीखें निकल गई. वह पसीने से तरबतर, भय से कांपता हुआ जमीन पर बैठ गया. सांसें उखड़ने लगी, गला सूख रहा था . किसी तरह उठ कर लडखडाते हुए कदमों से वह रसोई की तरफ भागा. जग से पानी लेकर दो-तीन गिलास पानी पीकर खुद को संयत किया.
लाश के साथ घर में रहते हुए उसे 15 20 दिन हो चुके थे. हर एक दिन एक वर्ष के समान लग रहा था . बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल, भयग्रस्त चेहरा उसके सुंदर मुख को डरावना बना रहे थे. घर में जो मिला वह खा लिया. पर अब खाने से ज्यादा पीने शुरू कर दिया .
धीरे-धीरे उसे इन बातों की आदत पडने लगी. पहले वह लाश को देखकर डरता था लेकिन अब वह उससे बातें करने लगा. उसकी मन: स्थिति अजीब सी हो रही थी. दामिनी उसकी कल्पना में फिर से जी उठी. दामिनी की अच्छाई व उसका निस्वार्थ प्रेम अकल्पनीय था. उसकी दुनिया पुन: दामिनी के इर्द-गिर्द सिमटने लगी. कल्पनिक दुनिया में उसने अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए. अब काल्पनिक दामिनी हर जगह उसके साथ थी.
घंटों नशे में धुत्त दामिनी से बातें करना, उसका श्रृंगार करना व उसके पास ही सो जाना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गए.
आत्मग्लानि, अकेलापन और दुख उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त कर रहा था . बिछोह की अग्नि प्रबल हो रही थी . एक दिन वह पागलों जैसी हरकतें करने लगा. दामिनी के सडते हुए शरीर को गंदा समझकर गीले कपडे साफ करने लगा तो शरीर से चमडी निकलने लगी. उसके पास से बदबू आ रही थी. पर पागल दीवाना राय उसका शृंगार कर रहा था. अंत में उसने शादी वाली साडी अलमारी से निकाली अौर शरीर पर डाल कर दुल्हन जैसा सजा दिया. माँग में सिंदूर भरकर अपनी मोहर लगा दी.
उसकी नजर में वह उसकी वही सुंदर दामिनी थी. फिर वह उससे बातें करने लगा .देखो दामिनी कितनी सुंदर लग रही हो. उसने उसके माथे पर अपने प्यार की मोहर लगाई, फिर गले लगकर .
“अब तुम आराम करों, तुम तैयार हो गई हो. मै भी नहाकर आता हूँ. हमें बाहर जाना है. ”
पगला दीवाना मुस्कुराया. वह कई दिनों से सोया नही था. वह सुकुन से सोना चाहता था. आंखों में नींद भरी थी. पर आंखे बंद नहीं हो रही थी. गला सूख रहा था. उसने उठकर पानी पिया . फिर जाने किस नशे में अभिभूत होकर नींद की गोलियां खा ली. उसके बाद वह बाथरूम में गया और टब से टकराकर गिर पडा. नींद मे अस्फुट शब्द फूट रहे थे कि आज उसका व दामिनी आज पुनर्मिलन होगा.
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एक महीने बाद जब कर्फ्यू खत्म हुआ. तो घर के नौकर -चाकर काम पर वापिस लौट अाए. घर का बंद दरवाजा देखा तो फोन लगाया लेकिन किसी ने भी फोन नही उठाया . काफी देर तक घंटी बजाने के बाद किसी ने दरवाजा नही खोला तो उन्होंने पुलिस को बुलाया. बंगले के अंदर करीब जाने पर तेज आती गंध से सभी को कुछ अनहोनी होने की आंशका होने लगी. अंदर जाकर देखा तो दोनो की लाशें पड़ी थी. लाशें सड रही थी. एक लाश पलंग पर सुंदर कपडों में सजी थी, दूसरी वहीं जमीन पर तकिए के साथ पडी थी. उनकी हालत देखकर सबका कलेजा मुँह को आ गया. दोनो का पोस्ट मार्टम कराया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि दोनों की दम घुटने के कारण मौत हुई थी. पुलिस आज तक इस मर्डर मिस्ट्री को सॉल्व करने का प्रयास कर रही है . यह रहस्य कोई समझ नहीं सका कि बंद घर के अंदर दोनो का मर्डर कैसे हुआ.
पैसा और जल्द अमीर बनने की लालसा इंसान को वह सब करने को मजबूर कर देता है कि एकबारगी यकीन ही नहीं होता कि क्या कोई ऐसा भी कर सकता है? यों अपराध करना और वह भी खुलेआम बिहार में आम बात है मगर पिस्तौल के बल पर आएदिन लोगों को शिकार बनाने वाले अपराधी किस्म के लोगों ने पैसे कमाने का नया तरीका ढूंढ़ा तो जान कर लोग सन्न रह गए.
बिहार के पटना में एक ऐसा ही वाकेआ घटित हुआ और पुलिस के हत्थे चढ़े ऐसे अपराधी जिन की तलाश में पुलिस खाक छान रही थी.
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कमरा छोटा अपराध बड़ा
मामला पटना के जक्कनपुर थाने स्थित पोस्टल पार्क, खासमहाल इलाके की है. यहां एक छोटे से कमरे में चल रहे अपराध की सूचना पुलिस को मिली. पुलिस ने सुनियोजित तरीके से छापा मारा तो चारों तरफ बिखरे खून की छींटे देख कर हैरान रह गई. एकबारगी तो पुलिस ने सोचा कि यहां किसी की हत्या की गई है पर जब पुलिस ने तफ्तीश की और घर में सर्च औपरेशन चलाया तो माजरा समझते देर नहीं लगी.
दरअसल, इस छोटे से कमरे में इंसानी खून का काला कारोबार चलाया जा रहा था. पुलिस ने अपराध का भंडाफोड़ किया तो परत दर परत सचाई खुलती गई.
पुलिस ने गिरोह के सरगना संतोष कुमार और एजेंट सोनू को गिरफ्तार कर सख्ती से पूछताछ की. वहां खून से भरे 4 ब्लड बैग भी बरामद किए गए थे. पहले तो इन अपराधियों ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की पर जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो टूट गए और बताया कि पिछले 6 महीने से दोनों यहां रह कर खून की खरीदबिक्री कर रहे थे.
अपराध और अपराधी
जक्कनपुर थाना के इंचार्ज मुकेश कुमार वर्मा ने मीडिया को जानकारी दी और बताया,”पुलिस टीम द्वारा की गई पूछताछ में यह बात सामने आई है कि दोनों के तार कई निजी अस्पतालों से जुड़े हैं. छापे के दौरान कई डोनर्स भी पकड़े गए, जिन्हें पैसे का लालच दे कर खून निकलवाने लाया गया था.”
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अब पुलिस मानव खून की खरीदबिक्री में शामिल दूसरे लोगों की तलाश में अलगअलग जगहों पर छापे मार रही है.
एक बार में 2 यूनिट तक खून निकाल लेते थे
खून की खरीदबिक्री का धंधा करने वाले 1 यूनिट खून निकालने की बात कह कर ब्लड डोनर्स को कमरे तक लाते थे. फिर धोखे से 1 की जगह 2 यूनिट खून निकाल लेते थे और उन्हें भनक तक नहीं लग पाती थी. खून लेने के तुरंत बाद सरगना संतोष डोनर को आयरन की कैप्सूल खिला देता था. फिर कुछ ही दिनों बाद वह डोनर दोबारा खून देने पहुंच जाता था. कई बार तो डोनरों की तबीयत तक बिगड़ जाती थी. ये ऐसे डोनर्स होते थे जिन्हें पैसों की सख्त जरूरत होती थी या फिर वे जो लंबे समय से बेरोजगार थे. कई तो नशाखोर भी थे, जो नशे की लत को पूरा करने के लिए ब्लड डोनेट करते और पैसा मिलने के बाद नशा करने चले जाते.
अस्पतालों में बिना जांच खरीद लिए जाते थे खून
कुछ निजी अस्पतालों के मालिक बिना जांच ही ऐसे लोगों से कम दाम पर खून खरीद लेते थे. उन की साठगांठ संतोष और सोनू के साथ थी. दोनों रोज अस्पतालों में खून की सप्लाई करते थे. सूत्रों के मुताबिक, पुलिस टीम उन अस्पतालकर्मियों की तलाश कर रही है, जो अकसर सोनू और संतोष से मिलने यहां आया करते थे. जिन निजी अस्पतालों में खून की खरीदबिक्री करने वाला गैंग सक्रिय था, पुलिस के अनुसार अब वहां भी काररवाई हो सकती है.
हजारों कमाते थे सिर्फ 1 दिन में
पुलिस के मुताबिक, खून खरीदने वाला संतोष डोनर्स को महज 1 हजार रुपए देता था जबकि 1 यूनिट खून से वह 22 सौ रूपए का मुनाफा कमा लेता था. इस तरह 1 डोनर से वह 44 सौ बना लेता था जबकि डोनर्स को वह बताता तक नहीं था कि उस ने 2 यूनिट ब्लड निकाल लिए हैं.
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वहीं सोनू खून देने वालों को रुपए का लालच दे कर अपने अड्डे तक लाता था. 1 डोनर को लाने के बदले उसे कमीशन के रूप में 11 सौ रुपए मिलते थे.
जिस कमरे में खून की खरीदबिक्री का खेल चल रहा था वह बेहद छोटा था. जाहिर है इस में संक्रमण का खतरा भी हो सकता है. सारे नियमकानून को ताक पर रख कर खून निकाले जाते थे. खास बात यह है कि ब्लड बैग तक का इंतजाम सरगना ने कर रखा था, जबकि ब्लड बैग आम आदमी को देने की मनाही है. उसे लाइसैंसी ब्लड बैंक ही ले सकता है.
पुलिस उगलवा रही है सच
अब पुलिसिया तफ्तीश जारी है. इस गैंग को चिह्नित कर पुलिस आगे की कार्रवाई कर रही है. सह भी पता एसएसपी उपेंद्र शर्मा ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि पुख्ता सुबूत जुटाने के बाद पुलिस आगे की कार्रवाई करेगी और यह पता लगाएगी कि इन अपराधियों के तार कहांकहां जुङे हैं.