Hindi Story: इज्जत की खातिर – क्यों एक बाप ने की बेटी की हत्या

Hindi Story: सरपंच होने के नाते इंद्राज की सारे गांव में तूती बोलती थी. उन के पास से गुजरते समय लोग सहम जाते थे. किसी की जोरू भागी हो, कोई इश्क या नाजायज संबंध का मामला हो या खेती का मामला हो, सब का फैसला इंद्राज ही करते थे. आसपास के 4 गांवों के मामले इंद्राज ही निबटाते थे.

‘‘मातादीन, नीम के नीचे चारपाई बिछाओ. हम अभी आते हैं,’’ इंद्राज ने आवाज लगाई.

‘‘जी मालिक, अभी बिछाते हैं,’’ हमेशा इंद्राज के आदेशों के इंतजार में रहने वाले नौकर ने जवाब दिया.

इंद्राज एक गिलास छाछ पी कर घर से निकलते हुए बेदो देवी को आदेश देते हुए बोले, ‘‘आज पुनिया गांव से बुलावा आया है. बाहर लोग बैठे हैं. एक दिन की भी फुरसत नहीं मिलती. तुम जरा सुमन का खयाल रखना. वह कहीं आएजाए नहीं,’’ इतना कह कर इंद्राज बाहर निकल कर चारपाई पर बैठ गए.

‘‘क्या है रे छज्जू, क्या बात हो गई?’’ इंद्राज ने चारपाई के पास खड़े लोगों में से एक से पूछा, जो फरियाद ले कर आया था.

‘‘हुजूर, कालू अहीर का लड़का हमारी लड़की को जबरन उठा ले गया था और उस ने एक रात उसे अपने पास रखा भी,’’ छज्जू ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘तो यह बात है…’’ अपने सिर को हिलाते हुए सरपंच ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम सब गांव पहुंचो. वहां के पंच से कह देना कि हम वहां पर पंचायत करने आ रहे हैं.

‘‘और हां, कालू से कह देना कि गांव छोड़ कर कहीं बाहर न जाए.’’

‘‘बाबूजी, पास के गांव में मेला लगा है. सुषमा और सुमरन के साथ क्या मैं भी मेला देखने चली जाऊं?’’ जब पुनिया गांव के लोग चले गए, तो सुमन इंद्राज से इजाजत लेने आई.

‘‘हमारी बेटी मेले में जा कर इठलाएबलखाए, यह हमें मंजूर नहीं,’’ इंद्राज ने अपनी कटीली रोबदार मूंछों पर हाथ फेरते हुए कहा. बेचारी सुमन अपना सा मुंह ले कर लौट गई.

सुमन के जिद करने पर उस की मां बेदो देवी ने उसे अपने पिता से इजाजत लेने को कहा. वह अपनी तरफ से बेटी को भेज नहीं सकती थी, क्योंकि वह इंद्राज के सनकी दिमाग को अच्छी तरह जानती थी.

मातादीन मोटरसाइकिल को चमका रहा था. इंद्राज के आवाज लगाने पर वह मोटरसाइकिल ले कर उन के सामने खड़ा हो गया.

इंद्राज ने मोटरसाइकिल पर अपने पीछे 2 लठैतों को भी बैठा लिया और तेजी से पुनिया गांव की ओर चल पड़ा.

मोटरसाइकिल पंचों के पास जा कर ठहरी. सभी पंच पहले से ही सरपंच इंद्राज की राह देख रहे थे.

‘नमस्ते सरपंचजी,’ सभी पंचों ने कहा.

‘‘नमस्ते,’’ इंद्राज से उन लोगों ने हाथ मिलाया और बेहद इज्जत के साथ उन्हें बीच वाले आसन पर अपने साथ बैठाया.

‘‘कालू और छज्जू हाजिर हों,’’ गांव के एक हरकारे ने जोरदार आवाज लगाई. कालू और छज्जू हाथ जोड़े सामने आ कर खड़े हो गए.

पंचों ने उन से बैठने को कहा, तो वे दोनों सहमी बिल्ली की तरह बैठ गए.

पंचों का फैसला सुनने के लिए एक तरफ औरतें और दूसरी ओर मर्द खड़ेहो गए.

‘‘हां, तो अपनीअपनी शिकायत पेश करो…’’ इंद्राज ने हांक लगाई, ‘‘छज्जू की बात तो हम सुन चुके हैं, अब कालू की बारी है.’’

‘‘जी हुजूर, छज्जू की बेटी सुमतिया अपनी मरजी से गोलू के साथ भागी थी,’’ कालू ने गिड़गिड़ाते हुए उन से कहा.

‘‘सुमतिया को तुरंत हाजिर करो,’’ दाताराम पंच ने कहा.

सुमतिया और गोलू भी वहां पहले से मौजूद थे. सुमतिया सलवारसूट में थी. पंच की पुकार पर वह सामने आ कर खड़ी हो गई.

‘‘क्यों, तू अपनी मरजी से भागी थी?’’ इंद्राज ने कड़क आवाज में पूछा.

लेकिन सुमतिया शर्म की वजह से कुछ बोल नहीं पा रही थी. वह सिर झुका कर खड़ी रही.

पंचों के दोबारा पूछने पर सुमतिया ने ‘हां’ में जवाब दिया.

‘‘गोलू ने तुम्हारे साथ कुछ गलत तो नहीं किया?’’ इस सवाल पर सुमतिया झेंप गई और कोई जवाब नहीं दे पाई.

पंचों ने सजा देने के लिए आपस में सलाह करनी शुरू कर दी. आखिर में सरपंच ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘चूंकि दोनों की बिरादरी एक है, इसलिए इन दोनों की शादी कर देनी चाहिए.’’

इस के बाद सरपंच ने छज्जू से कहा, ‘‘सुमतिया अपनी मरजी से भागी थी. गोलू उसे जबरन नहीं ले गया था. लेकिन तुम ने पंचों से झूठ बोला. तुम को तो वैसे भी अपनी बेटी एक दिन ब्याहनी ही थी, इसलिए सजा के तौर पर तुम कालू को 2 बीघा जमीन, 2 बैल और 4 तोले सोना दोगे.’’

सजा सुन कर छज्जू को पसीना आ गया. वह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘हुजूर, यह तो बहुत ज्यादा है. मैं इतना कहां से दे पाऊंगा?’’

‘‘लड़की को काबू में नहीं रख सकता, चला है बात करने…’’ इंद्राज ने जोर से झाड़ लगाई, ‘‘अगर नहीं दे सकते, तो जमीन गिरवी रख कर मुझ से कर्ज ले लेना.’’

कर्ज के नाम से छज्जू के पैरों तले जमीन हिलने लगी. उसे पता था कि एक बार का कर्ज पीढि़यों तक नहीं चुकता. उस के दादा ने एक बार कर्ज लिया था, तो वह अभी तक चला आ रहा था, पर पंचों का फैसला उसे मानना ही पड़ा.

कुछ महीने की मुहलत लेने के बाद एक दिन छज्जू खेत के कागजात ले कर इंद्राज के पास पहुंचा.

इंद्राज उस से अंगूठा लगवाने वाले ही थे कि अचानक वहां परेशान सा मातादीन आ गया.

‘‘देखिए माईबाप, सुमन बिटिया को क्या हो गया?’’ मातादीन हांफते हुए कहने लगा, ‘‘बिटिया उलटी पर उलटी किए जा रही है. जल्दी से डाक्टर को बुला लाऊं क्या?’’इंद्राज ने सुना तो फौरन घर के अंदर की ओर भागे.

‘‘क्या हुआ सुमन को?’’ इंद्राज ने अपनी बीवी बेदो देवी से सख्त लहजे में पूछा.

‘‘होना क्या है? किसी का पाप पेट में पाल रही है,’’ बेदो देवी सुमन को पीटते हुए बोली.

‘‘कुछ बताया इस ने किस का है?’’ इंद्राज की अकड़ अब कुछ हद तक ढीली हो गई.

‘‘मुरेना, चरण अहीर का लड़का. वही सरपंच, जिस से पिछले साल आप की ठन गई थी,’’ बेदो देवी ने याद दिलाते हुए कहा, ‘‘इस कलमुंही ने तो हमारी इज्जत को रौंद कर रख दिया. हम कहीं के नहीं रहे.’’

‘‘धीरे बोलो बेदो, आसपास और भी कान हैं. अब रात को ही इस का कुछ इंतजाम करते हैं.’’

‘‘हमारे खानदान की तो इस ने नाक कटा दी. इज्जत और न मिट्टी में मिला दिया. 4 गांवों के सरपंच को अब अपने घर का फैसला करना मुश्किल होगा,’’ बेदो देवी बड़बड़ाई.

रात होते ही लड़की के नाना को बुला लिया गया. वह भी अग्रोहा गांव के सरपंच थे. तीनों ने आपस में सलाह कर सुमन को सल्फास पीने पर मजबूर कर दिया. अपनी इज्जत बचाने का उन्हें और कोई रास्ता नजर नहीं आया.

सुबह तक सुमन जिंदगी और मौत के बीच छटपटाती रही. खुदकुशी का बहाना बना कर वे लोग उसे शहर के सरकारी अस्पताल ले गए. उस की हालत से लग रहा था कि वह रास्ते में ही मर जाएगी. मगर अस्पताल पहुंचने तक वह जिंदा रही.

डाक्टर ने उसे तुरंत भरती कर लिया, लेकिन डाक्टर ने पुलिस को फोन कर दिया. डाक्टर की नजर में वह पुलिस केस था.

पुलिस आई, तो सुमन के बयान पर तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया. दूसरे दिन अखबारों में बड़ेबड़े अक्षरों में छपा, ‘इज्जत की खातिर जवान बेटी को मौत की नींद सुला दिया गया.’

Hindi Story: काशी वाले पंडाजी – बेटियों ने बचाया परिवार

Hindi Story: रबी की फसल तैयार होने के बाद काशी वाले पंडाजी का इलाके में आना हुआ. लेकिन इस बार पंडाजी के साथ एक पहलवान चेला भी था, जिस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास थी. पर देखने में वह 21-22 साल का ही लगता था. हाथ में कई अंगूठियां, छोटेछोटे काले बाल, प्रैस की हुई खादी की धोती और पैर में कोल्हापुरी चप्पल उस पर खूब फबती थी. पंडाजी बांस की बनी एक छोटी डोलची ले कर चलते थे. डोलची के हैंडिल के सहारे 2 छोटीछोटी गोल रंगीन शीशियां बंधी रहती थीं.

पंडाजी बड़ी सावधानी से शीशी खोलते और बहुत ही थोड़ा जल निकाल कर यजमान के बरतन में डालते. इस के बाद पहलवान चेला शुरू हो जाता, ‘‘यह प्रयाग का गंगाजल है. पंडाजी ने नवरात्र के समय मंदिर में इसे कठिन साधना के साथ मंत्रों से पढ़ा है. ‘‘इस गंगाजल में शुद्ध जल मिला कर घर के चारों तरफ छिड़क दें. इस के बाद सारा उपद्रव शांत हो जाएगा. बालबच्चे खुश रहेंगे और यजमान का कल्याण होगा.’’

उस पहलवान चेले की बात खत्म होते ही लाल और पीले धागे वाले 2 तावीज वह पंडाजी की ओर बढ़ा देता और कुछ क्षण बाद तावीजों को ले कर यजमान के हाथों में रखते हुए कहता, ‘‘पंडाजी बता रहे हैं कि लाल धागे वाला तावीज यजमान बाएं हाथ में मंगलवार को पहनें और पीले धागे वाला तावीज बुधवार को यजमान दाहिने हाथ में पहनें. इस के बाद सब तरह की बाधा दूर हो जाएगी और हर काम में तरक्की होगी.’’

यजमान दोनों हथेलियों पर 2 रंगों वाले तावीजों को इस तरह देखने लगता, मानो वह तावीज नहीं, कुबेर के खजाने की कुंजी और दवा हो. चेला दक्षिणा उठा कर गिनता. अगर वह 51 रुपए होती, तो चुपचाप पंडाजी की दाहिनी जेब से पर्स निकाल कर उस में रख देता और अगर पैसा इस से कम होता, तो कहता, ‘‘यह तो नवरात्र का खर्च भी नहीं है. लौट कर भी तो अनुष्ठान करना होगा.’’

तब यजमान कुछ रुपए निकाल कर चेले को बढ़ा देता. चेला नोटों की गिनती किए बिना पर्स के हवाले कर देता. पंडाजी यजमानों द्वारा दी गई दक्षिणा के हिसाब से ही अपना कीमती समय देते थे. पर वे माई के घर पर घंटों आसन जमाते. माई बहुत दिनों तक परदेश में रही थीं और उन की तीनों कुंआरी बेटियां भी देखने में खूबसूरत थीं.

पंडाजी के गांव में पधारते ही माई के दरवाजे पर उन के आसन का इंतजाम हो गया था. तीनों बेटियां भी अच्छी तरह सजसंवर कर तैयार हो चुकी थीं. पंडाजी के पहुंचते ही माई ने उन की आवभगत की. पंडाजी आसन पर बैठने ही वाले थे कि एक लड़की ने आ कर उन के पैर छुए. उन्होंने पूछा, ‘‘हां, क्या नाम है?’’

‘‘जी… संजू.’’ ‘‘कुंभ राशि. कन्या के लक्षण तो अति विलक्षण हैं. यह तो पिछले जन्म में राजकन्या थी. कुछ चूक हो जाने के चलते इसे इस कुल में आना पड़ा, तभी तो यह इतनी सुंदर और चंचला है.’’

सुंदर और चंचला शब्द सुनते ही संजू के गाल और भी लाल हो उठे और वह रोमांचित हो कर पंडाजी के और करीब होने लगी. तभी दूसरी लड़की रंजू ने कहा, ‘‘पंडाजी, इस को घरवर कैसा मिलेगा? इस की शादी कब तक होगी? हम तो इसी चिंता में परेशान रहते हैं. इस साल ही इस के हाथ पीले होने का कोई जतन बताइए न.’’

रंजू की बातें सुन कर पंडाजी चेले की ओर देखने लगे. संजू के यौवन में भटकता चेला अचकचा कर पंडाजी की ओर देखता हुआ कुछ पल चुप रहने के बाद बोला, ‘‘बीते सावन में इस के हाथ से जो सांप मर गया, वह कुलदेवता था. कुलदेवता इस पर बहुत गुस्सा हैं. इस के लिए मंत्र और तंत्र दोनों की साधनाएं करनी होंगी. ‘‘अच्छा है कि आज मंगलवार है. आज रात यह अनुष्ठान हो जाए, तो सब बिगड़ा काम बन सकता है.’’

चेले का यह सुझाव माई को डूबते को तिनके का सहारा जैसा लगा. सभी समस्याओं का समाधान निकल आने से माई की जान में जान आई. ठीक 5 बजे अनुष्ठान शुरू करने की बात कह कर पंडाजी चेले के साथ कैथीटोला गांव की ओर चल पड़े.

रात 9 बजे से माई के आंगन में अनुष्ठान का काम पंडाजी और चेले ने शुरू किया. हर तरह से सजीसंवरी तीनों बहनें भी आ कर लाइन से बैठ गईं. कुछ देर तक मंत्र पढ़ने के बाद आग जला कर उन्होंने माई के साथसाथ संजू, रंजू और मंजू को भभूत मिला प्रसाद खाने को दिया. इस के बाद चेले ने वहां मौजूद पासपड़ोस के लोगों को बाहर जाने का इशारा किया.

इशारा पाते ही सभी वहां से चले गए. फिर उस के बाद रात में क्या हुआ, गांव वालों को इस का क्या पता… अगली सुबह माई के घर में हाहाकार मचा हुआ था. माई और उस की छोटी बेटी मंजू छाती पीटपीट कर चिल्ला रही थीं, ‘‘कोई हमारी संजू… रंजू को वापस ला दो. वह पंडा पुरोहित नहीं, ठग था.

‘‘हम दोनों को बेहोश कर के पंडा और चेला मेरी दोनों बेटियों को उठा कर कहां ले गए… कुछ मालूम नहीं. हमारी बेटियों को वापस ला दो. उन्हें बचा लो.’’

गांव वालों को माजरा समझते देर नहीं लगी. राजमणि काका ने तुरंत रेलवे स्टेशन और बसस्टैंड के लिए कुछ लोगों को भेजा, लेकिन वे सभी खाली हाथ निराश लौट आए. तब पुलिस में मामले को ले जाया गया. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात.

माई के पास कलेजे पर पत्थर रख कर संजू और रंजू को भूलने के अलावा कोई चारा नहीं था. इधर उन दोनों बहनों ने समझदारी से काम लिया. पंडा और चेले की गलत मंसा भांपते हुए चालाकी से संजू ने पंडाजी से और रंजू ने चेले से ब्याह कर मौजमस्ती से जिंदगी बिताने का प्रस्ताव रखा.

पंडा और चेला इस प्रस्ताव को सुन कर बहुत खुश हुए. रंजू ने कहा, ‘‘लेकिन, इस के लिए जरूरी है कि हमारे घरपरिवार, गांव के लोग आगे आएं. कोई कानूनी दांवपेंच नहीं लगाएं और हमें पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना पड़े, सो हम लोग बिना समय गंवाए कोर्ट मैरिज कर लें.’’ संजू और रंजू के रूपजाल में फंसे पंडा और चेला कोर्ट मैरिज के कागजात के साथ अदालत में जज के सामने हाजिर हुए.

जब जज ने संजू और रंजू से उन की रजामंदी के बारे में पूछा, तो संजू कहने लगी, ‘‘जज साहब, ये दोनों हमारे गांव में पंडापुजारी बन कर आए थे. भोलेभाले गांव वालों के सामने तंत्रमंत्र का मायाजाल फैला कर इन ढोंगियों ने उन्हें खूब लूटा. ‘‘हम तीनों बहनों पर तो ये लट्टू बने थे. माई को घरपरिवार पर देवी का प्रकोप बता कर तांत्रिक अनुष्ठान कराने के लिए इन दोनों ने इसलिए मजबूर किया, ताकि उस की आड़ में हमें भोग सकें.

‘‘इन की खराब नीयत को भांप कर हम दोनों बहनों ने आपस में विचार किया और इन दोनों को कानून के हवाले करने के लिए यह नाटक खेला है, ताकि कानून इन ढोंगियों को ऐसी सजा दे, ताकि फिर कभी इस तरह की घटना न होने पाए.’’ संजू और रंजू के बयान को दर्ज करते हुए अदालत ने पंडा और चेले को जेल भेजने का आदेश दिया.

संजू और रंजू ने जब गांव वालों को यह दास्तान सुनाई, तो सभी कहने लगे, ‘सचमुच, तुम्हारी दोनों बेटियां बड़ी बहादुर हैं माई. इन दोनों ने वह कर दिखाया है, जो बहुत कम लोग ही कर पाते हैं. पूरे गांव को इन पर नाज है.’ माई की आंखों में भी खुशी और संतोष के आंसू छलछला रहे थे.

Hindi Kahani: गहरी चाल – क्या थी सुनयना की चाल

Hindi Kahani: सुनयना दोनों हाथों में पोटली लिए खेत में काम कर रहे पति और देवर को खाना देने जा रही थी. उसे जब भी समय मिलता, तो वह पति और देवर के साथ खेत के काम में जुट जाती थी.

अपनी धुन में वह पगडंडी पर तेज कदमों से चली जा रही थी, तभी सामने से आ रहे सरपंच के लड़के अवधू और मुनीम गंगादीन पर उस की नजर पड़ी. वह ठिठक कर पगडंडी से उतर कर खेत में खड़ी हो गई और उन दोनों को जाने का रास्ता दे दिया.

अवधू और मुनीम गंगादीन की नजर सुनयना की इस हरकत और उस के गदराए जिस्म के उतारचढ़ावों पर पड़ी. वे दोनों उसे गिद्ध की तरह ताकते हुए आगे बढ़ गए.

कुछ दूर जाने के बाद अवधू ने गंगादीन से पूछा, ‘‘क्यों मुनीमजी, यह ‘सोनचिरैया’ किस के घर की है?’’

‘‘यह तो सुखिया की बहू है. जा रही होगी खेत पर अपने पति को खाना पहुंचाने. सुखिया अभी 2 महीने पहले ही तो मरा था. 3 साल पहले उस ने सरपंचजी से 8 हजार रुपए उधार लिए थे. अब तक तो ब्याज जोड़ कर 17 हजार रुपए हो गए होंगे,’’ अवधू की आदतों से परिचित मुनीम गंगादीन ने मसकेबाजी करते हुए कहा.

‘लाखों का हीरा, फिर भी इतना कर्ज. आखिर हीरे की परख तो जौहरी ही कर सकता है न,’ अवधू ने कुछ सोचते हुए पूछा, ‘‘और मुनीमजी, कैसी है तुम्हारी वसूली?’’

‘‘तकाजा चालू है बेटा. जब तक सरपंचजी तीर्थयात्रा से वापस नहीं आते, तब तक इस हीरे से थोड़ीबहुत वसूली आप को ही करा देते हैं.’’

‘‘मुनीमजी, जब हमें फायदा होगा, तभी तो आप की तरक्की होगी.’’

दूसरे दिन मुनीम गंगादीन सुबहसुबह ही सुनयना के घर जा पहुंचा. उस समय सुखिया के दोनों लड़के श्यामू और हरिया दालान में बैठे चाय पी रहे थे.

गंगादीन को सामने देख श्यामू ने चाय छोड़ कर दालान में रखे तख्त पर चादर बिछाते हुए कहा, ‘‘रामराम मुनीमजी… बैठो. मैं चाय ले कर आता हूं.’’

‘‘चाय तो लूंगा ही, लेकिन बेटा श्यामू, धीरेधीरे आजकल पर टालते हुए 8 हजार के 17 हजार रुपए हो गए. तू ने महीनेभर की मुहलत मांगी थी, वह भी पूरी हो गई. मूल तो मूल, तू तो ब्याज तक नहीं देता.’’

‘‘मुनीमजी, आप तो घर की हालत देख ही रहे हैं. कुछ ही दिनों पहले हरिया का घर बसाया है और अभीअभी पिताजी भी गुजरे हैं,’’ श्यामू की आंखों में आंसू भर आए.

‘‘मैं तो समझ रहा हूं, लेकिन जब वह समझे, जिस की पूंजी फंसी है, तब न. वैसे, तू ने महीनेभर की मुहलत लेने के बाद भी फूटी कौड़ी तक नहीं लौटाई,’’ मुनीम गंगादीन ने कहा.

तब तक सुनयना गंगादीन के लिए चाय ले कर आ गई. गंगादीन उस की नाजुक उंगलियों को छूता हुआ चाय ले कर सुड़कने लगा और हरिया चुपचाप बुत बना सामने खड़ा रहा.

‘‘देख हरिया, मुझ से जितना बन सका, उतनी मुहलत दिलाता गया. अब मुझ से कुछ मत कहना. वैसे भी सरपंचजी तुझ से कितना नाराज हुए थे. मुझे एक रास्ता और नजर आ रहा है, अगर तू कहे तो…’’ कह कर गंगादीन रुक गया.

‘कौन सा रास्ता?’ श्यामू व हरिया ने एकसाथ पूछा.

‘‘तुम्हें तो मालूम ही है कि इन दिनों सरपंचजी तीर्थयात्रा करने चले गए हैं. आजकल उन का कामकाज उन का बेटा अवधू ही देखता है.

‘‘वह बहुत ही सज्जन और सुलझे विचारों वाला है. तुम उस से मिल लो. मैं सिफारिश कर दूंगा.

‘‘वैसे, तेरे वहां जाने से अच्छा है कि तू अपनी बीवी को भेज दे. औरतों का असर उन पर जल्दी पड़ता है. किसी बात की चिंता न करना. मैं वहां रहूंगा ही. आखिर इस घर से भी मेरा पुराना नाता है,’’ मुनीम गंगादीन ने चाय पीतेपीते श्यामू व हरिया को भरोसे में लेते हुए कहा.

सुनयना ने दरवाजे की ओट से मुनीम की सारी बातें सुन ली थीं. श्यामू सुनयना को अवधू की कोठी पर अकेली नहीं भेजना चाहता था. पर सुनयना सोच रही थी कि कैसे भी हो, वह अपने परिवार के सिर से सरपंच का कर्ज उतार फेंके.

दूसरे दिन सुनयना सरपंच की कोठी के दरवाजे पर जा पहुंची. उसे देख कर मुनीफ गंगादीन ने कहा, ‘‘बेटी, अंदर आ जाओ.’’

सुनयना वहां जाते समय मन ही मन डर रही थी, लेकिन बेटी जैसे शब्द को सुन कर उस का डर जाता रहा. वह अंदर चली गई.

‘‘मालिक, यह है सुखिया की बहू. 3 साल पहले इस के ससुर ने हम से 8 हजार रुपए कर्ज लिए थे, जो अब ब्याज समेत 17 हजार रुपए हो गए हैं. बेचारी कुछ और मुहलत चाहती है,’’ मुनीम गंगादीन ने सुनयना की ओर इशारा करते हुए अवधू से कहा.

‘‘जब 3 साल में कुछ भी नहीं चुका पाया, तो और कितना समय दिया जाए? नहींनहीं, अब और कोई मुहलत नहीं मिलेगी,’’ अवधू अपनी कुरसी से उठते हुए बोला.

‘‘देख, ऐसा कर. ये कान के बुंदे बेच कर कुछ पैसा चुका दे,’’ अवधू सुनयना के गालों और कानों को छूते हुए बोला.

‘‘और हां, तेरा यह मंगलसूत्र भी तो सोने का है,’’ अवधू उस के उभारों को छूता हुआ मंगलसूत्र को हाथ में पकड़ कर बोला.

सुनयना इस छुअन से अंदर तक सहम गई, फिर भी हिम्मत बटोर कर उस ने कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो छोटे ठाकुर?’’

‘‘तुम्हारे गहनों का वजन देख रहा हूं. तुम्हारे इन गहनों से शायद मेरे ब्याज का एक हिस्सा भी न पूरा हो,’’ कह कर अवधू ने सुनयना की दोनों बाजुओं को पकड़ कर हिला दिया.

‘‘अगर पूरा कर्ज उतारना है, तो कुछ और गहने ले कर थोड़ी देर के लिए मेरी कोठी पर चली आना…’’ अवधू ने बड़ी बेशर्मी से कहा, ‘‘हां, फैसला जल्दी से कर लेना कि तुझे कर्ज उतारना है या नहीं. कहीं ऐसा न हो कि तेरे ससुर के हाथों लिखा कर्ज का कागज कोर्ट में पहुंच जाए.

‘‘फिर भेजना अपने पति को जेल. खेतघर सब नीलाम करा कर सरकार मेरी रकम मुझे वापस कर देगी और तू सड़क पर आ जाएगी.’’

सुनयना इसी उधेड़बुन में डूबी पगडंडियों पर चली जा रही थी. अगर वह छोटे ठाकुर की बात मानती है, तो पति के साथ विश्वासघात होगा. अगर वह उस की बात नहीं मानती, तो पूरे परिवार को दरदर की ठोकरें मिलेंगी.

कुछ दिनों बाद मुनीम गंगादीन फिर सुनयना के घर जा पहुंचा और बोला, ‘‘बेटी सुनयना, कर लिया फैसला? क्या अपने गहने दे कर ठाकुर का कर्ज चुकाएगी?’’

‘‘हां, मैं ने फैसला कर लिया है. बोल देना छोटे ठाकुर को कि मैं जल्दी ही अपने कुछ और गहने ले कर आ जाऊंगी कर्जा उतारने. उस से यह भी कह देना कि पहले कर्ज का कागज लूंगी, फिर गहने दूंगी.’’

‘‘ठीक है, वैसे भी छोटे ठाकुर सौदे में बेईमानी नहीं करते. पहले अपना कागज ले लेना, फिर…’’

वहीं खड़े सुनयना के पति और देवर यही सोच रहे थे कि शायद सुनयना ने अपने सोने और चांदी के गहनों के बदले पूरा कर्ज चुकता करने के लिए छोटे ठाकुर को राजी कर लिया है. उन्हें इस बात का जरा भी गुमान न हुआ कि सोनेचांदी के गहनों की आड़ में वह अपनी इज्जत को दांव पर लगा कर के परिवार को कर्ज से छुटकारा दिलाने जा रही है.

‘‘और देख गंगादीन, अब मुझे बेटीबेटी न कहा कर. तुझे बेटी और बाप का रिश्ता नहीं मालूम है. बाप अपनी बेटी को सोनेचांदी के गहनों से लादता है, उस के गहने को उतरवाता नहीं है,’’ सुनयना की आवाज में गुस्सा था.

दूसरे दिन सुनयना एक रूमाल में कुछ गहने बांध कर अवधू की कोठी पर पहुंच गई.

‘‘आज अंदर कमरे में तेरा कागज निकाल कर इंतजार कर रहे हैं छोटे ठाकुर,’’ सुनयना को देखते ही मुनीम गंगादीन बोला.

सुनयना झटपट कमरे में जा पहुंची और बोली, ‘‘देख लो छोटे ठाकुर, ये हैं मेरे गहने. लेकिन पहले कर्ज का कागज मुझे दे दो.’’

‘‘ठीक है, यह लो अपना कागज,’’ अवधू ने कहा.

सुनयना ने उस कागज पर सरसरी निगाह डाली और उसे अपने ब्लाउज के अंदर रख लिया.

‘‘ये गहने तो लोगों की आंखों में परदा डालने के लिए हैं. तेरे पास तो ऐसा गहना है, जिसे तू जब चाहे मुझे दे कर और जितनी चाहे रकम ले ले,’’ अवधू कुटिल मुसकान लाते हुए बोला.

‘‘यह क्या कह रहे हो छोटे ठाकुर?’’ सुनयना की आवाज में शेरनी जैसी दहाड़ थी.

अवधू को इस की जरा भी उम्मीद नहीं थी. सुनयना बिजली की रफ्तार से अहाते में चली गई. तब तक गांव की कुछ औरतें और आदमी भी कोठी के सामने आ कर खड़े हो गए थे. वहां से अहाते के भीतर का नजारा साफ दिखाई दे रहा था.

लोगों को देख कर नौकरों की भी हिम्मत जाती रही कि वे सुनयना को भीतर कर के दरवाजा बंद कर लें. अवधू और गंगादीन भी समझ रहे थे कि अब वे दिन नहीं रहे, जब बड़ी जाति वाले नीची जाति वालों से खुलेआम जबरदस्ती कर लेते थे.

सुनयना बाहर आ कर बोली, ‘‘छोटे ठाकुर और गंगादीन, देख लो पूरे गहने हैं पोटली में. उतर गया न मेरे परिवार का सारा कर्ज. सब के सामने कह दो.’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ अवधू ने घायल सांप की तरह फुंफकार कर कहा.

सभी लोगों के जाने के बाद अवधू और गंगादीन ने जब पोटली खोल कर देखी, तो वे हारे हुए जुआरी की तरह बैठ गए. उस में सुनयना के गहनों के साथसाथ गंगादीन की बेटी के भी कुछ गहने थे, जो सुनयना की अच्छी सहेलियों में से एक थी.

‘अब मैं अपनी बेटी के सामने कौन सा मुंह ले कर जाऊंगा. क्या सुनयना उस से मेरी सब करतूतें बता कर ये गहने ले आई है?’ सोच कर गंगादीन का सिर घूम रहा था.

अवधू और गंगादीन दोनों समझ गए कि सुनयना एक माहिर खिलाड़ी की तरह बहुत अच्छा खेल खिला कर गई है.

Hindi Story: वही खुशबू – आखिर क्या थी उस की सच्चाई

Hindi Story: बहुत दिनों से सुनती आईर् थी कि भैरों सिंह अस्पताल के चक्कर बहुत लगाते हैं. किसी को भी कोई तकलीफ हो, किसी स्वयंसेवक की तरह उसे अस्पताल दिखाने ले जाते. एक्सरे करवाना हो या सोनोग्राफी, तारीख लेने से ले कर पूरा काम करवा कर देना जैसे उन की जिम्मेदारी बन जाती. मैं उन्हें बहुत सेवाभावी समझती थी. उन के लिए मन में श्रद्धा का भाव उपजता, क्योंकि हमें तो अकसर किसी की मिजाजपुरसी के लिए औपचारिक रूप से अस्पताल जाना भी भारी पड़ता है.

लोग यह भी कहते कि भैरों सिंह को पीने का शौक है. उन की बैठक डाक्टरों और कंपाउंडरों के साथ ही जमती है. इसीलिए अपना प्रोग्राम फिट करने के लिए अस्पताल के इर्दगिर्द भटकते रहते हैं. अस्पताल के जिक्र के साथ भैरों सिंह का नाम न आए, हमारे दफ्तर में यह नामुमकिन था.

पिछले वर्ष मेरे पति बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा. तब मैं ने भैरों सिंह को उन की भरपूर सेवा करते देखा तो उन की इंसानियत से बहुत प्रभावित हो गई. ऐसा लगा लोग यों ही अच्छेखासे इंसान के लिए कुछ भी कह देते हैं. कोई भी बीमार हो, वह परिचित हो या नहीं, घंटों उस के पास बैठे रहना, दवाइयों व खून आदि की व्यवस्था करना उन का रोज का काम था. मानो उन्होंने मरीजों की सेवा का प्रण लिया हो.

उन्हीं दिनों बातोंबातों में पता चला कि उन की पत्नी भी बहुत बीमार रहती थी. उसे आर्थ्राइटिस था. उस का चलनाफिरना भी दूभर था. जब वह मेरे पति की सेवा में 4-5 घंटे का समय दे देते तो मैं उन्हें यह कहने पर मजबूर हो जाती, ‘आप घर जाइए, भाभीजी को आप की जरूरत होगी.’ पर वे कहते, ‘पहले आप घर हो आइए, चाहें तो थोड़ा आराम कर आएं, मैं यहां बैठा हूं.’

यों मेरा उन से इतनी आत्मीयता का संबंध कभी नहीं रहा. बाद में बहुत समय तक मन में यह कुतूहल बना रहा कि भैरों सिंह के इस आत्मीयतापूर्ण व्यवहार का कारण क्या रहा होगा? धीरेधीरे मैं ने उन में दिलचस्पी लेनी शुरू की. वे भी किसी न किसी बहाने गपशप करने आ जाते.

एक दिन बातचीत के दौरान वे काफी संकोच से बोले, ‘‘चूंकिआप लिखती हैं, सो मेरी कहानी भी लिखें.’’मैं उन की इस मासूम गुजारिश पर हैरान थी. कहानी ऐसे हीलिख दी जाती है क्या? कहानी लायक कोई बात भी तो हो. परंतु यह सब मैं उन से न कह सकी. मैं ने इतना ही कहा, ‘‘आप अपनी कहानी सुनाइए, फिर लिख दूंगी.’’

बहुत सकुचाते और लजाई सी मुसकान पर गंभीरता का अंकुश लगाते हुए उन्होंने बताया, ‘‘सलोनी नाम था उस का, हमारी दोस्ती अस्पताल में हुई थी.’’

मुझे मन ही मन हंसी आई कि प्यार भी किया तो अस्पताल में. भैरों सिंह ने गंभीरता से अपनी बात जारी रखी, ‘‘एक बार मेरा एक्सिडैंट हो गया था. दोस्तों ने मुझे अस्पताल में भरती करा दिया. मेरा जबड़ा, पैर और कूल्हे की हड्डियां सेट करनी थीं. लगभग 2 महीने मुझे अस्पताल में रहना पड़ा. सलोनी उसी वार्ड में नर्स थी, उस ने मेरी बहुत सेवा की. अपनी ड्यूटी के अलावा भी वह मेरा ध्यान रखती थी.

‘‘बस, उन्हीं दिनों हम में दोस्ती का बीज पनपा, जो धीरेधीरे प्यार में तबदील हो गया. मेरे सिरहाने रखे स्टील के कपबोर्ड में दवाइयां आदि रख कर ऊपर वह हमेशा फूल ला कर रख देती थी. सफेद फूल, सफेद परिधान में सलोनी की उजली मुसकान ने मुझ पर बहुत प्रभाव डाला. मैं ने महसूस किया कि सेवा और स्नेह भी मरीज के लिए बहुत जरूरी हैं. सलोनी मानो स्नेह का झरना थी. मैं उस का मुरीद बन गया.

‘‘अस्पताल से जब मुझे छुट्टी मिल गई, तब भी मैं ने उस की ड्यूटी के समय वहां जाना जारी रखा. लोगों को मेरे आने में एतराज न हो, इसीलिए मैं कुछ काम भी करता रहता. वह भी मेरे कमरे में आ जाती. मुझे खेलने का शौक था. मैं औफिस से आ कर शौर्ट्स, टीशर्ट या ब्लेजर पहन कर खेलने चला जाता और वह ड्यूटी के बाद सीधे मेरे कमरे में आ जाती. मेरी अनुपस्थिति में मेरा कमरा व्यवस्थित कर के कौफी पीने के लिए मेरा इंतजार करते हुए मिलती.

‘‘जब उस की नाइट ड्यूटी होती तो वह कुछ जल्दी आ जाती. हम एकसाथ कौफी पीते. मैं उसे अस्पताल छोड़ने जाता और वहां कईकई घंटे मरीजों की देखरेख में उस की मदद करता. सब के सो जाने पर हम धीरेधीरे बातें करते रहते. किसी मरीज को तकलीफ होती तो उस की तीमारदारी में जुट जाते.

‘‘कभी जब मैं उस से ड्यूटी छोड़ कर बाहर जाने की जिद करता तो वह मना कर देती. सलोनी अपनी ड्यूटी की बहुत पाबंद थी. उस की इस आदत पर मैं नाराज भी होता, कभी लड़ भी बैठता, तब भी वह मरीजों की अनदेखी नहीं करती थी. उस समय ये मरीज मुझे दुश्मन लगते और अस्पताल रकीब. पर यह मेरी मजबूरी थी क्योंकि मुझे सलोनी से प्यार था.’’

‘‘उस से शादी नहीं हुई? पूरी कहानी जानने की गरज से मैं ने पूछा.’’

भैरों सिंह का दमकता मुख कुछ फीका पड़ गया. वे बोले, ‘‘हम दोनों तो चाहते थे, उस के घर वाले भी राजी थे.’’

‘‘फिर बाधा क्या थी?’’ मैं ने पूछा तो भैरों सिंह ने बताया, ‘‘मैं अपने मांबाप का एकलौता बेटा हूं. मेरी 4 बहनें हैं. हम राजपूत हैं, जबकि सलोनी ईसाई थी. मैं ने अपनी मां से जिद की तो उन्होंने कहा कि तुम जो चाहे कर सकते हो, परंतु फिर तुम्हारी बहनों की शादी नहीं होगी. बिरादरी में कोई हमारे साथ रिश्ता करने को तैयार नहीं होगा.

‘‘मेरे कर्तव्य और प्यार में कशमकश शुरू हो गई. मैं किसी की भी अनदेखी करने की स्थिति में नहीं था. इस में भी सलोनी ने ही मेरी मदद की. उस ने मुझे मां, बहनों और परिवार के प्रति अपना फर्ज पूरा करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया.

‘‘मां ने मेरी शादी अपनी ही जाति में तय कर दी. बड़ी धूमधाम से शादी हुई. सलोनी भी आई थी. वह मेरी दुलहन को उपहार दे कर चली गई. उस के बाद मैं ने उसे कभी नहीं देखा. विवाह की औपचारिकताओं से निबट कर जब मैं अस्पताल गया तो सुना, वह नौकरी छोड़ कर कहीं और चली गई है. बाद में पता चला कि  वह दूसरे शहर के किसी अस्पताल में नौकरी करती है और वहीं उस ने शादी भी कर ली है.’’

‘‘आप ने उस से मिलने की कोशिश नहीं की?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ भैरों सिंह ने जवाब दिया, ‘‘पहले तो मैं पगला सा गया. मुझे ऐसा लगता था, न मैं घर के प्रति वफादार रह पाऊंगा और न ही इस समाज के प्रति, जिस ने जातपांत की ये दीवारें खड़ी कर रखी हैं. परंतु शांत हो कर सोचने पर मैं ने इस में भी सलोनी की समझदारी और ईमानदारी की झलक पाई. ऐसे में कौन सा मुंह ले कर उस से मिलने जाता. फिर अगर वह अपनी जिंदगी में खुश है और चाहती है कि मैं भी अपने वैवाहिक जीवन के प्रति एकनिष्ठ रहूं तो मैं उस के त्याग और वफा को धूमिल क्यों करूं? अब यदि वह अपनी जिंदगी और गृहस्थी में सुखी है तो मैं उस की जिंदगी में जहर क्यों घोलूं?’’

‘‘अब अस्पताल में इतना क्यों रहते हैं? और यह कहानी क्यों लिखवा रहे हैं?’’ मैं ने उत्सुकता दिखाई.

भैरों सिंह ने गहरी सांस ली और धीमी आवाज में कहा, ‘‘मैं ने आप को बताया था न कि मैं उस का अधिक से अधिक साथ पाने के लिए उस की ड्यूटी के दौरान उस की मदद करता था, पर दिल में उस की कर्मनिष्ठा और सेवाभाव से चिढ़ता था. अब मुझे वह सब याद आता है तो उस की निष्ठा पर श्रद्धा होती है, खुद के प्रति अपराधबोध होता है. अब मैं मरीजों की सेवा, प्यार की खुशबू मान कर करता हूं और मुझे अपने अपराधबोध से भी नजात मिलती है.’’

भैरों सिंह की आवाज और धीमी हो गई. वह फुसफुसाते हुए से बोले, ‘‘अब मैं सिर्फ एक बात आप को बता रहा हूं या कहिए कि राज की बात बता रहा हूं. इस अस्पताल के समूचे वातावरण में मुझे अब भी वही खुशबू महसूस होती है, सलोनी के प्यार की खुशबू. रही बात कहानी लिखने की, तो मेरे पास उस तक अपनी बात पहुंचाने का कोई जरिया भी तो नहीं है. अगर वह इसे पढ़ेगी तो समझ जाएगी कि मैं उसे कितना याद करता हूं. उस की भावनाओं की कितनी इज्जत करता हूं. यही प्यार अब मेरी जिंदगी है.’’

Hindi Story: हवा का झोंका

Hindi Story: ‘‘सौमित्र, मजे हैं यार तेरे…’’

‘‘क्यों निनाद, ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘प्यारे से 2 बच्चे, अब खुद का घर भी हो गया और कार भी है. कस्तूरी जैसी समझदार बीवी है. और क्या चाहिए जिंदगी में यार…’’

गाड़ी औफिस की ओर जा रही थी. सौमित्र गाड़ी चला रहा था, तभी उन्हें अपने औफिस की ही 2 लड़कियां बस स्टौप पर खड़ी दिखीं.

‘‘निनाद, इन्हें औफिस तक छोड़ें?’’

सौमित्र ने निनाद को आगे बोलने का मौका ही नहीं दिया और सीधे जा कर उन लड़कियों के पास गाड़ी रोक दी.

‘‘शाल्मली मैडम, छोड़ दूं क्या दोनों को औफिस तक?’’

‘‘हां… हां, बिलकुल छोड़ दो,’’ दूसरी लड़की मनवा ने जल्दी से कहा और दरवाजा खोल कर गाड़ी में जा बैठी. इस के बाद शाल्मली भी बैठ गई.

‘‘आप दोनों रोज इसी बस स्टौप से बस लेती हो न?’’ सौमित्र ने पूछा.

‘‘हां,’’ मनवा ने जवाब दिया.

‘‘हम भी रोज इसी रास्ते से गुजरते हैं. आप को भी छोड़ दिया करेंगे. क्यों निनाद?’’

‘‘हां… हां, क्या हर्ज है. शाम को भी रुकना, हम साथ ही वापस जाएंगे. बस, 20-25 मिनट का रास्ता है.’’

सौमित्र को सांवले रंग की शाल्मली उस की गाड़ी में चाहिए थी. उस का मकसद कामयाब हो रहा था.

सौमित्र हैंडसम था. औफिस में उस की पोस्ट भी अच्छी थी. औफिस की सब लड़कियां उस के आगेपीछे मंडराती रहती थीं.

शाल्मली को भी वह अच्छा लगने लगा था. वह हरदम सब को हंसाता था. पार्टी करता था. नएनए रंग की शर्ट और जींस पहनता था. उस के गोरे चेहरे पर काला चश्मा जंचता था.

धीरेधीरे सौमित्र शाल्मली से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह बोला, ‘‘काफी छोटी उम्र में नौकरी कर रही हो तुम. सौरी, मैं बहुत जल्दी आप को तुम कह रहा हूं. तुम्हें अपनी कालेज की पढ़ाई जारी रखनी चाहिए थी.’’

‘‘मेरे पिताजी अफसर बीमार रहते हैं, इसलिए पढ़ाई बीच में रोक देनी पड़ी. घर में पैसों की तंगी है.’’

‘‘एक बात कहूं… तुम्हारा रंग सांवला है, फिर भी तुम मेरी नजर में बहुत ज्यादा खूबसूरत हो. इस औफिस में तुम्हारे जितनी अक्लमंद लड़की कोई नहीं है.’’

‘‘शुक्रिया सर.’’

‘‘शुक्रिया किसलिए. चलो, बाहर चल कर कौफी पीते हैं. थोड़ा आराम से बात कर सकेंगे,’’ सौमित्र बोला.

‘‘नहीं सर, यह थोड़ा ज्यादा ही हो जाएगा.’’

‘‘क्या ज्यादा होगा? मैं कह रहा हूं न, चलो चुपचाप.’’

शाल्मली भी चुपचाप चली गई.

इस के बाद औफिस में उन दोनों के बारे में बातें होने लगीं कि ‘सौमित्र शाल्मली के आगेपीछे घूमता है’, ‘दोनों की आज मैचिंग…’ ऐसी बातें औफिस में चलती थीं.

शाल्मली सब जानती थी, मगर उस के लिए सौमित्र यानी सुख की बौछार थी, इसलिए बदनाम होते हुए भी वह बेधड़क उस के साथ घूमती थी.

शाल्मली और सौमित्र के संबंधों को अब 6 महीने बीत चुके थे. सौमित्र अकसर शाल्मली को खुश रखने की कोशिश करता था. उस के और उस के परिवार वालों के लिए अकसर नई चीजें लाता था.

एक दिन सौमित्र शाल्मली को एक होटल पर ले गया. दोपहर के 12 बजे थे. शाल्मली को लगा कि वह हमेशा की तरह कहीं से खाना खाने ले कर आया है, इसलिए वह बेफिक्र थी.

सौमित्र द्वारा बुक किए कमरे पर वे दोनों आए.

‘‘क्या खाओगी मेरी शामू?’’

‘‘कुछ भी मंगा लो, हमेशा आप ही और्डर देते हो.’’

‘‘शाल्मली, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं हमेशा तुम्हें देखता रहता हूं. बस, तुम एक बार मेरी बांहों में आ जाओ.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो सौमित्र, हम केवल अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘कुछ भी मत कहो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, इसलिए तो अकसर तुम्हारे साथ घूमता हूं.’’

‘‘सौमित्र, एक मिनट… आप को कुछ गलतफहमी हो रही है. आप शादीशुदा हैं. मेरे मन में आप के बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘कुछ भी नहीं है, तो फिर मेरे साथ क्यों हंसतीबोलती हो?’’

‘‘क्या हमारे बीच साफसुथरी दोस्ती नहीं हो सकती? मेरी समस्याएं आप समझते हो. पारिवारिक दिक्कतों को नजरअंदाज कर जिंदगी में मजा करना आप ने मुझे सिखाया है.

शुक्रिया सर. लेकिन शायद आप मुझे कुछ अलग ही समझने लगे हैं. मुझ से बड़ी गलती हो गई,’’ इतना कह कर शाल्मली

कमरे से बाहर जाने लगी, तभी सौमित्र ने दरवाजा बंद कर उस का रास्ता रोका.

‘‘रुको शाल्मली, क्यों इतना इतरा रही हो? सांवली तो हो तुम. तुम से कई ज्यादा खूबसूरत लड़कियां पटा सकता हूं मैं.’’

‘‘सर, मेरा तो रंग काला है, पर आप का तो मन काला है. आप शादीशुदा हैं. आप के 2 बच्चे हैं, फिर भी आप मुझ जैसी कुंआरी लड़की से शरीर सुख की चाहत कर रहे हो? चलती हूं मैं. काश, मैं आप के साथ 6 महीने औफिस के बाहर न घूमती तो यह दिन न आता. मैं आप से माफी मांगती हूं.

‘‘सर, आप मन से बहुत अच्छे हो, तो क्यों एक पल के मोह की खातिर खुद के चरित्र पर कलंक लगा रहे हो? आप की बीवी जिंदगीभर आप के साथ रहेंगी. कम से कम उस के बारे में तो सोचिए. मैं भी कल किसी के साथ ब्याह रचाऊंगी. जाने दीजिए मुझे.’’

सौमित्र दरवाजे से दूर हट गया. शाल्मली रोतेरोते होटल से बाहर निकल गई.

दूसरे दिन वे दोनों औफिस में मिले.

‘‘सौमित्र, मुझे आप से कुछ कहना है. आप एक हवा का झोंका बन कर मेरी जिंदगी में आए. आप ने मुझ पर प्यार की बौछार की. मगर इस के बाद फिर किसी लड़की की जिंदगी में प्यार की बौछार मत करना, क्योंकि औरतें काफी भावुक होती हैं. किसी पराए मर्द द्वारा जब उन की बेइज्जती होती है, तो वह पल उन के बरदाश्त के बाहर होता है.

‘‘मैं आप को अच्छी लगती हूं. मुझे भी आप का साथ अच्छा लगता है, पर इस के लिए हम नैतिकता के नियम मिट्टी में नहीं मिला सकते.’’

‘‘शाल्मली, मुझे माफ कर दो. मैं अब नए नजरिए से तुम से दोस्ती की शुरुआत करना चाहता हूं.’’

‘‘सौरी सर, अब मैं सारी जिंदगी किसी भी मर्द के साथ दोस्ती नहीं करना चाहती. मैं अपनी गलती सुधारना चाहती हूं. इन 6 महीने में आप ने मुझे जो मानसिक सहारा दिया, उस के लिए मैं आप की सारी उम्र कर्जदार रहूंगी.’’

Hindi Kahani: रज्जो – क्या था सुरेंद्र और माधवी का प्लान

Hindi Kahani: रज्जो रसोईघर का काम निबटा कर निकली, तो रात के 10 बज रहे थे. वह अपने कमरे में जाने से पहले सुरेंद्र के कमरे में पहुंची. वह उस समय बिस्तर पर आंखें बंद किए लेटा था.

‘‘साहबजी, मैं कमरे पर सोने जा रही हूं. कुछ लाना है तो बताइए?’’ रज्जो ने सुरेंद्र की ओर देखते हुए पूछा.

सुरेंद्र ने आंखें खोलीं और अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘रज्जो, आज सिर में बहुत दर्द हो रहा है.’’

‘‘मैं आप के माथे पर बाम लगा कर दबा देती हूं,’’ रज्जो ने कहा और अलमारी में रखी बाम की शीशी ले आई. वह सुरेंद्र के माथे पर बाम लगा कर सिर दबाने लगी.

कुछ देर बाद रज्जो ने पूछा, ‘‘अब कुछ आराम पड़ा?’’

‘‘बहुत आराम हुआ है रज्जो, तेरे हाथों में तो जादू है,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने अपना सिर रज्जो की गोद में रख दिया.

रज्जो सिर दबाने लगी. वह महसूस कर रही थी कि एक हाथ उस की कमर पर रेंग रहा है. उस ने सुरेंद्र की ओर देखा. सुरेंद्र बोला, ‘‘रज्जो, यहां रहते हुए तू किसी बात की चिंता मत करना. तुझे किसी चीज की कमी नहीं रहेगी. जब कभी जितने रुपए की जरूरत पड़े, तो बता देना.’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘आज तेरी मैडम लखनऊ गई हैं. वहां जरूरी मीटिंग है. 4 दिन बाद वापस आएंगी,’’ कह कर सुरेंद्र ने उसे अपनी ओर खींच लिया.

रज्जो समझ गई कि सुरेंद्र की क्या इच्छा है. वह बोली, ‘‘नहीं साहबजी, ऐसा न करो. मुझे तो मां काका ने आप की सेवा करने के लिए भेजा है.’’

‘‘रज्जो, यह भी तो सेवा ही है. पता नहीं, आज क्यों मैं अपनेआप पर काबू नहीं रख पा रहा हूं?’’ सुरेंद्र ने रज्जो की ओर देखते हुए कहा.

‘‘साहबजी, अगर मैडम को पता चल गया तो?’’ रज्जो घबरा कर बोली.

‘‘उस की चिंता मत करो. वह कुछ नहीं कहेगी.’’

रज्जो मना नहीं कर सकी और न चाहते हुए भी सुरेंद्र की बांहों समा गई.

कुछ देर बाद जब रज्जो अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटी, तो उस की आंखों से नींद भाग चुकी थी. उस की आंखों के सामने मांकाका, 2 छोटी बहनों व भाई के चेहरे नाचने लगे.

यहां से 3 सौ किलोमीटर दूर रज्जो का गांव चमनपुर है. काका राजमिस्त्री का काम करता है. महीने में 10-15 दिन मजदूरी पर जाता है, क्योंकि रोजाना काम नहीं मिलता.

रज्जो तो 5 साल पहले 10वीं जमात पास कर के स्कूल छोड़ चुकी थी. उस की 2 छोटी बहनें व भाई पढ़ रहे थे. मां ने उस का नाम रजनी रखा था, पर पता नहीं, कब वह रजनी से रज्जो बन गई.

एक दिन गांव की प्रधान गोमती देवी ने मां को बुला कर कहा था, ‘मुझे पता चला है कि तेरी बेटी रज्जो तेरी तरह बहुत बढि़या खाना बनाती है. तू उसे सुबह से शाम तक के लिए मेरे घर भेज दे.’

‘ठीक है प्रधानजी, मैं रज्जो को भेज दूंगी,’ मां ने कहा था.

2 दिन बाद रज्जो ने गोमती प्रधान के घर की रसोई संभाल ली थी. एक दिन एक बड़ी सी कार गोमती प्रधान के घर के सामने रुकी. कार से सुरेंद्र व उस की पत्नी माधवी मैडम उतरे. कार पर लाल बत्ती लगी थी. गोमती प्रधान की दूर की रिश्तेदारी में माधवी मैडम बहन लगती थीं.

दोपहर का खाना खा कर सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को बुला कर कहा, ‘तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो. हमें तुम जैसी लड़की की जरूरत है. क्या तुम हमारे साथ चलोगी? जैसे तुम यहां खाना बनाती हो, वैसा ही तुम्हें वहां भी रसोई में काम करना है.’

रज्जो चुप रही.

गोमती प्रधान बोल उठी थीं. ‘यह क्या कहेगी? इस के मांकाका को कहना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद ही रज्जो के मांकाका वहां आ गए थे.

गोमती प्रधान बोलीं, ‘रामदीन, यह मेरी बहन है. सरकार में एक मंत्री की तरह हैं. इस को रज्जो के हाथ का बना खाना बहुत पसंद आया, तो ये लोग इसे अपने घर ले जाना चाहते हैं रसोई के काम के लिए.’

‘रामदीन, बेटी रज्जो को भेज कर बिलकुल चिंता न करना. हम इसे पूरा लाड़प्यार देंगे. रुपएपैसे हर महीने या जब तुम चाहोगे भेज देंगे,’ माधवी मैडम ने कहा था.

‘साहबजी, आप जैसे बड़े आदमी के यहां पहुंच कर तो इस की किस्मत ही खुल जाएगी. यह आप की सेवा खूब मन लगा कर करेगी. यह कभी शिकायत का मौका नहीं देगी,’ काका ने कहा था.

सुरेंद्र ने जेब से कुछ नोट निकाले और काका को देते हुए कहा, ‘लो, फिलहाल ये पैसे रख लो. हम लोग हर तरह  से तुम्हारी मदद करेंगे. यहां से लखनऊ तक कोई भी सरकारी या गैरसरकारी काम हो, पूरा करा देंगे. अपनी सरकार है, तो फिर चिंता किस बात की.’

रज्जो उसी दिन सुरेंद्र व माधवी के साथ इस कसबे में आ गई थी.

सुरेंद्र की बहुत बड़ी कोठी थी, जिस में कई कमरे थे. एक कमरा उसे भी दे दिया गया था. माधवी मैडम ने उस को कई सूट खरीद कर दिए थे. उसे एक मोबाइल फोन भी दिया था, ताकि वह अपने घरपरिवार से बात कर सके.

रज्जो को पता चला था कि सुरेंद्र की काफी जमीनजायदाद है. एक ही बेटा है, जो बेंगलुरु में पढ़ाई कर रहा है. माधवी मैडम बहुत बिजी रहती हैं. कभी पार्टी मीटिंग में, तो कभी इधरउधर दूसरे शहरों में और कभी लखनऊ में. इन्हीं विचारों में डूबतेतैरते रज्जो को नींद आ गई थी.

अगले दिन सुरेंद्र ने रज्जो को कमरे में बुला कर कुछ गोलियां देते हुए कहा, ‘‘रज्जो, ये गोलियां तुझे खानी हैं. रात जो हुआ है, उस से तेरी सेहत को नुकसान नहीं होगा.’’ ‘‘जी…’’ रज्जो ने वे गोलियां देखीं. वह जान गई कि ये तो पेट गिराने वाली गोलियां हैं.

‘‘और हां रज्जो, कल अपने घर ये रुपए मनीऔर्डर से भेज देना,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने 5 हजार रुपए रज्जो को दिए.

‘‘इतने रुपए साहबजी…?’’ रज्जो ने रुपए लेते हुए कहा.

‘‘अरे रज्जो, ये रुपए तो कुछ भी नहीं हैं. तू हम लोगों की सेवा कर रही है न, इसलिए मैं तेरी मदद करना चाहता हूं.’’

रज्जो सिर झुका कर चुप रही.

सुरेंद्र ने ज्जो का चेहरा हाथ से ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘तुझे कभी अपने गांव जाना हो, तो बता देना. ड्राइवर और गाड़ी भेज दूंगा.’’

सुन कर रज्जो बहुत खुश हुई.

‘‘रज्जो, तू मुझे इतनी अच्छी लगती है कि अगर मैडम की जगह मैं मंत्री होता, तो तुझे अपना पीए बना लेता,’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘रहने दो साहबजी, मुझे ऐेसे सपने न दिखाओ, जो मैं रोटी बनाना ही भूल जाऊं.’’

‘‘रज्जो, तू नहीं जानती कि मैं तेरे लिए क्या करना चाहता हूं,’’ सुरेंद्र ने कहा.

खुशी के चलते रज्जो की आंखों की चमक बढ़ गई.

4 दिन बाद माधवी मैडम घर लौटीं. इस बीच हर रात को सुरेंद्र रज्जो को अपने कमरे में बुला लेता और रज्जो भी पहुंच जाती, उसे खुश करने के लिए.

अगले दिन रज्जो एक कमरे के बराबर से निकल रही थी, तो सुरेंद्र व माधवी की बातचीत की आवाज आ रही थी. वह रुक कर सुनने लगी.

‘‘कैसी लगी रज्जो?’’ माधवी ने पूछा.

‘‘ठीक है, बढि़या खाना बनाती है,’’ सुरेंद्र का जवाब था.

‘‘मैं रसोई की नहीं, बैडरूम की बात कर रही हूं. मैं जानती हूं कि रज्जो ने इन रातों में कोई नाराजगी का मौका नहीं दिया होगा.’’

‘‘तुम्हें क्या रज्जो ने कुछ बताया है?’’

‘‘उस ने कुछ नहीं बताया. मैं उस के चेहरे व आंखों से सच जान चुकी हूं.

‘‘खैर, मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम कहा करते थे कि मैं बाहर चली जाती हूं, तो अकेले रात नहीं कटती, इसलिए ही तो रज्जो को इतनी दूर से यहां लाई हूं, ताकि जल्दी से वापस घर न जा सके.’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो माधवी…’’ सुरेंद्र ने कहा, ‘‘लखनऊ में तुम्हारे नेताजी के क्या हाल हैं? वह तो बस तुम्हारा पक्का आशिक है, इसलिए ही तो उस ने तुम्हें लाल बत्ती दिला दी है.’’

‘‘इस लाल बत्ती के चलते हम लोगों का कितना रोब है. पुलिस या प्रशासन में भला किस अफसर की इतनी हिम्मत है, जो हमारे किसी भी ठीक या गलत काम को मना कर दे.’’

‘‘नेताजी का बस चले तो वह तुम्हें लखनऊ में ही हमेशा के लिए बुला लें.’’

‘‘अगले हफ्ते नेताजी जनपद में आ रहे हैं. रात को हमारे यहां खाना होगा. मैं ने सोचा है कि नेताजी की सेवा में रात को रज्जो को उन के पास भेज दूंगी.

‘‘जब नेताजी हमारा इतना खयाल रखते हैं, तो हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नेताजी को खुश रखें. अगले महीने रज्जो को लखनऊ ले जाऊंगी, वहां 2-3 दूसरे नेता हैं, उन को भी खुश करना है,’’ माधवी ने कहा.

सुनते ही रज्जो के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. वह चुपचाप रसोई में जा पहुंची. उस ने तो साहब को ही खुश करना चाहा था, पर ये लोग तो उसे नेताओं के पास भेजने की सोच बैठे हैं. वह ऐसा नहीं करेगी. 1-2 दिन बाद ही वह अपने गांव चली जाएगी.

तभी मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. वह बोली, ‘‘हैलो…’’

‘‘हां रज्जो बेटी, कैसी है तू?’’ उधर से काका की आवाज सुनाई दी.

काका की आवाज सुन कर रज्जो का दिल भर आया. उस के मुंह से आवाज नहीं निकली और वह सुबकने लगी.

‘‘क्या हुआ बेटी? बता न? लगता है कि तू वहां बहुत दुखी है. पहले तो तू साहब व मैडम की बहुत तारीफ किया करती थी. फिर क्या हो गया, जो तू रो रही है?’’

‘‘काका, मैं गांव आना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है रज्जो, मेरा 2 दिन का काम और है. उस के बाद मैं तुझे लेने आ जाऊंगा. मैं जानता हूं कि मैडम व साहब बहुत अच्छे लोग हैं. तुझे भेजने को मना नहीं करेंगे. तू हमारी चिंता न करना. यहां सब ठीक है. तेरी मां, भाईबहनें सब मजे में हैं,’’ काका ने कहा.

रज्जो चुप रही. अगले दिन सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को कमरे में बुलाया. सुरेंद्र ने कहा, ‘‘रज्जो, 4-5 दिन बाद लखनऊ से बहुत बड़े नेताजी आ रहे हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे यहां खाना खाएंगे और रात को आराम भी यहीं करेंगे.’’

‘‘जी…’’ रज्जो के मुंह से निकला.

‘‘रात को तुम्हें नेताजी की सेवा करनी है. उन को खुश करना है. देखना रज्जो, अगर नेताजी खुश हो गए तो…’’ माधवी की बात बीच में ही अधूरी रह गई.

रज्जो एकदम बोल उठी, ‘‘नहीं मैडमजी, यह मुझ से नहीं होगा. यह गलत काम मैं नहीं करूंगी.’’

‘‘और मेरे पीठ पीछे साहबजी के साथ रात को जो करती रही, क्या वह गलत काम नहीं था?’’

रज्जो सिर झुकाए बैठी रही, उस से कोई जवाब नहीं बन पा रहा था.

‘‘रज्जो, तू हमारी बात मान जा. तू मना मत कर,’’ सुरेंद्र बोला.

‘‘साहबजी, ये नेताजी आएंगे, इन को खुश करना है. फिर कुछ नेताओं को खुश करने के लिए मुझे मैडमजी लखनऊ ले कर जाएंगी. मैं ने आप लोगों की बातें सुन ली हैं. मैं अब यह गलत काम नहीं करूंगी. मैं अपने घर जाना चाहती हूं. 2 दिन बाद मेरे काका आ रहे हैं,’ रज्जो ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा.

‘‘अगर हम तुझे गांव न जाने दें तो…?’’ माधवी ने कहा.

‘‘तो मैं थाने जा कर पुलिस को और अखबार के दफ्तर में जा कर बता दूंगी कि आप लोग मुझ से जबरदस्ती गलत काम कराना चाहते हैं,’’ रज्जो ने कड़े शब्दों में कहा.

रज्जो के बदले तेवर देख कर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘ठीक है रज्जो, हम तुझ से कोई काम जबरदस्ती नहीं कराएंगे. तू अपने काका के साथ गांव जा सकती है,’’ यह कह कर सुरेंद्र ने माधवी की ओर देखा. उसी रात सुरेंद्र ने रज्जो की गला दबा कर हत्या कर दी और ड्राइवर से कह कर रज्जो की लाश को नदी में फिंकवा दिया. दिन निकलने पर इंस्पैक्टर को फोन कर के कोठी पर बुला लिया.

‘‘कहिए हुजूर, कैसे याद किया?’’ इंस्पैक्टर ने आते ही कहा.

‘‘हमारी नौकरानी रजनी उर्फ रज्जो घर से एक लाख रुपए व कुछ जेवरात चुरा कर भाग गई है.’’

‘‘सरकार, भाग कर जाएगी कहां वह? हम जल्द ही उसे पकड़ लेंगे,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और कुछ देर बाद चला गया.

दोपहर बाद रज्जो का काका रामदीन आया. सुरेंद्र ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरे ओ रामदीन, तेरी रज्जो तो बहुत गलत लड़की निकली. उस ने हम लोगों से धोखा किया है. वह हमारे एक लाख रुपए व जेवरात ले कर कल रात कहीं भाग गई है.’’

‘‘नहीं हुजूर, ऐसा नहीं हो सकता. मेरी रज्जो ऐसा नहीं कर सकती,’’ घबरा कर रामदीन बोला.

‘‘ऐसा ही हुआ है. वह यहां से चोरी कर के भाग गई है. जब वह गांव में अपने घर पहुंचे तो बता देना. थाने  मेंरिपोर्ट लिखा दी है. पुलिस तेरे घर भी पहुंचेगी.

‘‘अगर तू ने रज्जो के बारे में न बताया, तो पुलिस तुम सब को उठा कर जेल भेज देगी.

‘‘और सुन, तू चुपचाप यहां से भाग जा. अगर पुलिस को पता चल गया कि तू यहां आया है, तो पकड़ लिया जाएगा.’’

यह सुन कर रामदीन की आंखों में आंसू आ गए. रज्जो के लिए उस के दिल में नफरत बढ़ने लगी. वह रोता हुआ बोला, ‘‘रज्जो, यह तू ने अच्छा नहीं  किया. हम ने तो तुझे यहां सेवा करने के लिए भेजा था और तू चोर बन गई.’’

रामदीन रोतेरोते थके कदमों से कोठी से बाहर निकल गया.

Hindi Story: हमसफर – क्या रेहान अपनी पत्नी की जान बचा पाया?

Hindi Story: रेहान ने तेल टैंकर की साइड वाली सीढ़ी से झुकते हुए अपने 2 साल के मासूम बेटे रेहम को गट्ठर की तरह खींच कर टैंकर की छत पर रख दिया, जिसे उस की बीवी रुखसार ने उठा रखा था. फिर रुखसार को बाजुओं में उठा कर सीढ़ी तक पहुंचाया, जो 7 महीने के पेट से थी.

रुखसार ने सीढ़ी के डंडे को कस कर पकड़ा और ऊपर चढ़ने लगी कि अचानक उस का पैर फिसल गया. गनीमत यह रही कि उस के दोनों हाथ सीढ़ी के डंडों पर मजबूती से जमे हुए थे और रेहान वहां से हटा नहीं था, वरना वह सीधे जमीन पर आ गिरती. फिर भी पेट पर कुछ चोट आ ही गई.

लौकडाउन में जब से कुछ ढील मिली थी, तब से मजदूरों का पलायन जोरों पर था. रेहान और उस के बीवीबच्चे दिल्ली के सीलमपुर इलाके में सिलाई का काम करते थे. कोरोना महामारी के चलते पिछले 2 महीने से काम बंद था. एक महीना अपनी कमाई से गुजरबसर हुआ, तो दूसरे महीने का खर्च फैक्टरी मालिक ने उठाया. उस के बाद फैक्टरी मालिक ने भी हाथ खड़े कर दिए.

रमजान का महीना चल रहा था और ईद का त्योहार सिर पर था, इसलिए घर जाना जरूरी भी था. कोई रास्ता न देख कर उन्होंने अपना बोरियाबिस्तर समेटा और गांव के लिए निकल पड़े. रास्ते में 4-5 मजदूर और साथ हो लिए.

वे सब सीलमपुर इलाके से पैदल चल कर नोएडा पहुंचे. वहां से आगे जाने के लिए कोई सवारी नहीं थी. मजदूरों ने एक तेल टैंकर के ड्राइवर से गुजारिश की, तो वह ले जाने को तैयार हुआ.

ड्राइवर ने बताया कि वह बरेली तक जा रहा है, वहां तक उन्हें छोड़ देगा. फिर कुल 8 मजदूर टैंकर की छत पर बैठे और खड़ी धूप से नजरें मिलाते हुए अपनी मंजिल की तरफ चल पड़े.

मुरादाबाद के एक चौराहे पर सत्तू पीने के लिए ड्राइवर ने टैंकर रोका. रेहान, उस की बीवी रुखसार और बच्चे रेहम को छोड़ कर बाकी सभी मजदूर सत्तू पीने के लिए उतर गए. वे दोनों मियांबीवी मन मसोस कर टैंकर की छत पर ही बैठे रहे.

तभी वहां मनोज की साइकिल रुकते देख रुखसार का चेहरा खिल उठा. उस ने चहकते हुए कहा, ‘‘अरे, वह देखो मनोज भैया.’’

रेहान ने मनोज को देख कर बस की छत से हांक लगाते हुए कहा, ‘‘ओ मनोज भाई. अरे, कहां रह गए थे. 2 दिन से अभी यहीं लटके हैं…’’

मनोज भी वहीं काम करता था, जहां रेहान करता था. लौकडाउन लगते ही मनोज के सेठ ने उस का हिसाब कर दिया, जिस में मनोज को 5,000 रुपए मिले. उन रुपए में से 3,500 रुपए की उस ने साइकिल खरीदी और इन लोगों से 2 दिन पहले ही अपने घर के लिए 1,100 किलोमीटर के लंबे सफर पर निकल पड़ा था.

मनोज ने गमछे से मुंह पोंछते हुए रेहान के सवाल का मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘हां भाई. यह कोई हवाईजहाज थोड़ी है, साइकिल है साइकिल, जिसे खून जला कर चलाना पड़ता है. उतरो नीचे, सत्तू पीया जाए.’’

रेहान बोला, ‘‘न भाई, रहने दो, तुम पीयो, हम लोग ऐसे ही ठीक हैं.’’

मनोज रेहान की मजबूरी समझता था. उस ने कहा, ‘‘अरे, क्या खाक ठीक है. उतरो नीचे.’’

रेहान बोला, ‘‘पर, रेहम और रुखसार…’’

‘‘उन के लिए ऊपर ही पहुंचा देते हैं. पहले तुम तो नीचे उतरो.’’

रेहान टैंकर की छत से नीचे उतर आया.

मनोज ने सत्तू वाले से 4 गिलास सत्तू बनाने के लिए कहा.

रेहान बोला, ‘‘अरे, रेहम पूरा गिलास थोड़ी ही पी पाएगा. 3 गिलास ही रहने दो. वह अपनी अम्मी में से पी लेगा.’’

सत्तू वाले ने 2 गिलास उन लोगों की  तरफ बढ़ाए.

मनोज बोला, ‘‘चलो, ऊपर रुखसार को बढ़ाओ. रेहम के गिलास में से जो बचेगा, वह उस की अम्मी पी लेगी. बेचारी, एक तो बच्चे को दूध पिलाती है, ऊपर से पेट में बच्चा भी पल रहा है. कायदे से तो अकेले उस के लिए  ही 3 गिलास चाहिए, लेकिन क्या  किया जाए…

बहरहाल, सत्तू पीने के बाद मनोज बोला, ‘‘इस हालत में रुखसार को ले जाना और वह भी टैंकर की छत पर बैठा कर, बिलकुल ठीक नहीं.’’

रेहान बोला, ‘‘क्या करें भाई, दिल्ली में भी तो मरना ही था. खानेपीने के लाले पड़ रहे थे. अगर ईद का त्योहार न होता, तो कुछ दिन और रुक कर देखते. अब निकल गए हैं, आगे जो रब की मरजी.’’

अभी इन दोनों में बातचीत चल ही रही थी कि पुलिस वाले वहां आ धमके. 10-12 मजदूरों को इकट्ठा देखते ही उन की पुलिसिया ट्रेनिंग उफान मारने लगी और वे लगे ताबड़तोड़ लाठियां भांजने.

फिर क्या था, सब से पहले मनोज साइकिल पर सवार हो कर भाग खड़ा हुआ, फिर टैंकर के ड्राइवरखलासी भी भागे और छत पर बैठने वाले मुसाफिर भी.

आगेआगे मनोज की साइकिल और पीछे से घबराया हुआ टैंकर का ड्राइवर. उसे कुछ सुझाई नहीं दिया. मनोज रोड के दाएं से बाएं की तरफ मुड़ा ही था कि टैंकर उस पर चढ़ बैठा.

टैंकर की छत से रुखसार और रेहान ने मनोज को सड़क पर गिर कर तड़पते हुए देख लिया और चिल्लाने लगे. लेकिन ड्राइवर कहां रुकने वाला था. वह अपनी जान बचा कर भागता चला गया.

ये दोनों शौहरबीवी भी कहां मानने वाले थे, वे तब तक चिल्लाते रहे, जब तक ड्राइवर ने टैंकर रोक कर उन्हें उतार नहीं दिया.

फिर यह कुछ कहसुन पाते, इस के पहले ही टैंकर नौ दो ग्यारह हो गया.

रेहान और रुखसार अपने बच्चे और सामान से भरे 2 बैग समेत हादसे की जगह की तरफ दौड़ने लगे. तभी एक पुलिस की गाड़ी उन के पास आ कर रुकी और माजरा पूछा. फिर उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाया और हादसे की तरफ चल पड़े.

जब तक वे लोग वहां पहुंचे, तब तक मनोज मर चुका था. रुखसार रोने लगी. उस की चीखें सुन कर अगलबगल में खड़े लोग भी आंखें पोंछने लगे. ऐसा लग रहा था कि मरने वाला मनोज उस का सगा भाई है.

फिर शुरू हुई लाश को ठिकाने लगाने की लंबी प्रक्रिया. अनजान जगह और अनजान लोग. साथ में मासूम बच्चा और भूखप्यास की जबरदस्त शिद्दत. लाश को कोई हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं.

फिर भी दोनों शौहरबीवी ने हार नहीं मानी और पुलिस वालों, आनेजाने वालों और गांव वालों से चंदा और मदद ले कर मनोज का अंतिम संस्कार कर दोस्ती और इनसानियत का हक अदा किया.

अब इन के पैसे और हिम्मत दोनों ही जवाब दे चुके थे. इस बीच रुखसार अपने पेट में उठ रहे मीठेमीठे दर्द को दबाती रही. अब वहां से घर जाने की समस्या और भी गंभीर लगने लगी. चंद पैसे पास बचे थे, उन से बेटे के लिए दूध और बिसकुट खरीदा और रोते हुए रेहम को चुप कराया.

रात हो चुकी थी. गांव वालों ने कोरोना के डर से उन्हें पनाह देने से इनकार कर दिया. कहां जाएं? किस से मदद मांगें? आखिर थकहार कर वे बेचारे एक पेड़ के नीचे सो गए.

अगली सुबह एक और मुसीबत साथ ले कर आई. रुखसार दर्द से कराहने लगी. सलवार खून से सन गई. पैरों में खड़े होने की ताकत नहीं रही. उसे लगने लगा कि पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान हो चुका है.

रुखसार की बोली लड़खड़ाने लगी. रेहान समझ रहा था कि रुखसार कहना कुछ चाह रही है और जबान से कुछ और निकल रहा है.

बड़ी मुश्किल से किसी तरह सरकारी अस्पताल पहुंचे. वहां डाक्टरों ने बाहरी के नाम पर उन्हें टरकाना चाहा, लेकिन रेहान उन के पैरों पर गिर कर रहम की भीख मांगने लगा. डाक्टरों ने सैकड़ों तरह के सवालजवाब और जांचपड़ताल के बाद रुखसार को कोरोना पौजिटिव ठहराया.

रुखसार की हालत बिगड़ती जा रही थी. डाक्टरों ने 4 यूनिट खून का इंतजाम करने के लिए कहा. रेहान समझ गया कि कुदरत की यही आखिरी आजमाइश है, जिस में वे खरा नहीं उतर सकता. उस ने डाक्टरों से कहा कि वे उस के बदन से खून का एकएक कतरा निचोड़ लें और उस की रुखसार को बचा लें. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

रुखसार ने दाएं हाथ में शौहर का हाथ थामा और बाएं हाथ में रेहम का. वह रेहम की मासूम सूरत को एकटक निहारने लगी. ऐसा लग रहा था कि वह अपने लख्ते जिगर को जीभर कर निगाहों में बसा लेना चाहती थी.

उधर रेहान अपनी हमसफर को जीभर के देख लेना चाहता था जो बीच सफर में ही उस का साथ छोड़ कर जा रही थी. रेहम अभी भी अपनी मां के जिस्म में दूध तलाश कर रहा था.

रेहान रुखसार की पथराई आंखों की तपिश बरदाश्त नहीं कर सका और गश खा कर वहीं गिर पड़ा. लेकिन इन सब बातों से बेखबर रेहम अपनी मां का दूध हुमड़हुमड़ कर खींच रहा था.

Hindi Story : बदल गया जीने का नजरिया

Hindi Story: सुरेश भी अकसर बिना किसी बात के उस से चिड़चिड़ा कर बोल पड़ता था. कभीकभार तो मीना के ऊपर उस का इतना गुस्सा फूटता कि अगर चाय का कप हाथ में होता तो उसे दीवार पर दे मारता. ऐसे ही कभी खाने की थाली उठा कर फेंक देता. इस तरह गुस्से में जो सामान हाथ लगता, वह उसे उठा कर फेंकना शुरू कर देता. इस से आएदिन घर में कोई न कोई नुकसान तो होता ही, साथ ही घर का माहौल भी खराब होता.

ऐसे में मीना को सब से ज्यादा फिक्र अपने 2 मासूम बच्चों की होती. वह अकसर सोचती कि इन सब बातों का इन मासूमों पर क्या असर होगा? यही सब सोच कर वह अंदर ही अंदर घुटते हुए चुपचाप सबकुछ सहन करती रहती.

मीना अपनेआप पर हमेशा कंट्रोल रखती कि घर में झगड़ा न बढ़े, पर ऐसा कम ही हो पाता था. आजकल सुरेश भी औफिस से ज्यादा लेट आने लगा था.

जब भी मीना लेट आने की वजह पूछती तो उस का वही रटारटाया जवाब मिलता, ‘‘औफिस में बहुत काम था, इसलिए आने में देरी हो गई.’’

एक दिन मीना की सहेली सोनिया उस से मिलने आई. तब मीना का मूड बहुत खराब था. सोनिया के सामने वह झूठमूठ की मुसकराहट ले आई थी, इस के बावजूद सोनिया ने मीना के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफसाफ पढ़ ली थीं.

मीना ने सोनिया को कुछ भी नहीं बताया और अपनेआप को उस के सामने सामान्य बनाए रखने की कोशिश करती रही थी. कभी उस का मन कहता कि वह सोनिया को अपनी समस्या बता दे, लेकिन फिर उस का मन कहता कि घर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए. हो सकता है, सोनिया उस की समस्या सुन कर खिल्ली उड़ाए या फिर इधरउधर कहती फिरे.

अगले दिन जब मीना बस से कहीं जा रही थी कि तभी उस की नजर उस बस में चिपके एक इश्तिहार पर अटक गई. उस इश्तिहार में किसी बाबा द्वारा हर समस्या जैसे सौतन से छुटकारा, गृहक्लेश, व्यापार में घाटे से उबरने का उपाय, कोई ऊपरी चक्कर, प्रेमविवाह, किसी को वश में करने का हल गारंटी के साथ दिया गया था.

बाबा का इश्तिहार पढ़ते ही मीना के मन में अपने गृहक्लेश से छुटकारा पाने की उम्मीद जाग गई थी. उस ने जल्दी से अपना मोबाइल फोन निकाला और बाबा के उस इश्तिहार में दिया गया एक नंबर सेव कर लिया.

घर पहुंचते ही मीना ने बाबा को फोन किया और फिर उस ने अपनी सारी समस्याएं उन के सामने उड़ेल कर रख दीं.

दूसरी तरफ से बाबा की जगह उन का कोई चेला बात कर रहा था. उस ने कहा कि आप दरबार में आ जाइए, सब ठीक हो जाएगा. उस ने यह भी कहा कि बाबा के दरबार से कोई भी निराश नहीं लौटता है. उस ने उसी समय मीना को एक अपौइंटमैंट नंबर भी दे दिया था. मीना अब बिलकुल भी देर नहीं करना चाहती थी. वह सुरेश को पहले जैसा खुश देखना चाहती थी.

जब दूसरे दिन मीना बाबा के पास पहुंची और अपनी सारी समस्याएं उन्हें बताईं, तब बाबा ने बुदबुदाते हुए कहा, ‘‘आप के पति पर किसी ने कुछ करवा दिया है.’’

मीना हैरान होते हुए बाबा से पूछ बैठी, ‘‘पर, किस ने क्या करवा दिया है? हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है… बाबाजी, ठीकठीक बताइए… क्या बात है?’’

इस पर बाबा दोबारा बोले, ‘‘आप के पति का किसी पराई औरत के साथ चक्कर है और उस औरत ने ही शर्तिया आप के पति पर कुछ करवाया है. आप के पति को उस से छुटकारा पाना होगा.’’

बाबा की बातों से मीना के मन में अचानक सुरेश की चिड़चिड़ाहट की वजह समझ आ गई.

मीना बोली, ‘‘बाबाजी, आप ही कोई उपाय बताएं… ठीक तो हो जाएंगे न

मेरे पति?’’

मीना की उलझन के जवाब में बाबा ने कहा, ‘‘ठीक तो हो जाएंगे, लेकिन इस के लिए पूजा करानी होगी और उस के बाद मैं एक तावीज बना कर दूंगा. वह तावीज रात को पानी में भिगो कर रखना होगा और अगली सुबह मरीज को बिना बताए चाय में वह पानी मिला कर

मरीज को पिलाना होगा. यह सब तकरीबन 2 महीने तक करना होगा.

‘‘मैं एक भभूत भी दूंगा जिसे उस औरत को खिलाना होगा, जिस ने आप के पति को अपने वश में कर रखा है.’’

बाबा की बातों से मीना का दिल बैठ गया था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेश उस के साथ बेवफाई कर सकता है.

इसी बीच बाबा ने एक कागज पर उर्दू में कुछ लिख कर उस का तावीज बना कर भभूत के साथ मीना को दिया और कहा, ‘‘मरीज को बिना बताए ही तावीज का पानी उसे पिलाना है और यह भभूत उस औरत को खिलानी है. अगर उस औरत को एक बार भी भभूत खिला दी गई तो वह हमेशा के लिए तेरे पति को छोड़ कर चली जाएगी.’’

मीना ये सब बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी. वह सुरेश को फिर से पहले की तरह वापस पाना चाहती थी. उसे बाबा पर पूरा भरोसा था कि वे उस के पति को एकदम ठीक कर देंगे.

उस रात मीना बिस्तर पर करवटें बदलती रही. उस की नींद छूमंतर

हो चुकी थी. उस को बारबार यही खयाल आता, ‘कहीं उस औरत के चक्कर में सुरेश ने मुझे छोड़ दिया तो मैं क्या करूंगी? कैसे रह पाऊंगी उस के बगैर?’

यह सब सोचसोच कर उस का दिल बैठा जा रहा था. फिर वह अपनेआप को मन ही मन मजबूत करती और सोचती कि वह भी हार नहीं मानने वाली.

इस के बाद मीना यह सोचने लग गई कि तावीज का पानी तो वह सुरेश को पिला देगी, पर उस औरत को ढूंढ़ कर उसे भभूत कैसे खिलाएगी? वह तो उस औरत को जानती तक नहीं है. यह काम उसे बहुत मुश्किल लग रहा था.

सुबह उठते ही मीना ने सब से पहले सुरेश के लिए चाय बनाई और उस में तावीज वाला पानी डाल दिया.

इस के बाद मीना सोफे पर पसर गई. बैठेबैठे वह फिर सोचने लगी कि उस औरत को कैसे ढूंढ़े, जबकि उस ने तो आज तक ऐसी किसी औरत की कल्पना तक नहीं की है?

मीना ने आज जानबूझ कर सुरेश का लंच बौक्स उस के बैग में नहीं रखा था, जिस से लंच बौक्स देने का बहाना बना कर वह उस के औफिस जा सके और उस की जासूसी कर सके.

सुरेश के औफिस जाने के बाद मीना भी उस के औफिस के लिए निकल पड़ी.

औफिस में जा कर मीना सब से पहले चपरासी से मिली और घुमाफिरा कर सुरेश के बारे में पूछने लगी.

चपरासी ने बताया, ‘‘सुरेश सर तो बहुत भले इनसान हैं. वे और उन की सैक्रेटरी रीता पूरे समय काम में लगे रहते हैं.’’

जब मीना ने चपरासी से सुरेश से मिलवाने को कहा, तब उस ने मीना को अंदर जाने से रोकते हुए कहा, ‘‘अभी सर और रीता मैडम कुछ जरूरी काम कर रहे हैं. आप कुछ देर बाद मिलने जाइएगा.’’

मीना को दाल में काला नजर आने लगा. अब तो उस का पूरा शक सैक्रेटरी रीता पर ही जाने लगा. उसे रीता पर गुस्सा भी आ रहा था लेकिन अपने गुस्से पर काबू करते हुए वह कुछ देर के लिए रुक गई.

कुछ देर बाद जब सैक्रेटरी रीता बाहर निकली तब मीना उसे बेमन से ‘हाय’ करते हुए सुरेश के केबिन में घुस गई.

वापसी में जब मीना दोबारा रीता से मिली तो उस ने कुछ दिनों बाद अपने छोटे बेटे के जन्मदिन पर रीता को भी न्योता दे डाला.

जब रीता उस के घर आई तो मीना ने उस के खाने में भभूत मिला दी. इस काम को कामयाबी से अंजाम दे कर मीना बहुत खुश थी.

अगली शाम को जब सुरेश दफ्तर

से लौटा तो एकदम शांत था, वह रोज की तरह आते ही न चीखाचिल्लाया

और न ही मीना से कोई चुभने वाली बात की. मीना बहुत खुश थी कि बाबा के तावीज ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है. उस रात सुरेश ने मीना से बहुत सी प्यार भरी बातें की थीं और उसे अपनी बांहों में भी भर लिया था.

मीना मन ही मन बाबा का शुक्रिया अदा करने लगी. वह यही सोच रही थी कि अब कुछ दिन बाद सुरेश को उस कुलटा औरत से छुटकारा मिल जाएगा और उन की जिंदगी फिर से खुशहाल हो जाएगी.

सुरेश के स्वभाव में दिनोंदिन और भी बदलाव आता चला गया. अब उस ने बच्चों के साथ खेलना और समय देना भी शुरू कर दिया था. मीना यह सब देख कर मन ही मन बहुत खुश होती. उसे बाबा द्वारा बताए गए उपाय किसी चमत्कार से कम नहीं लगे थे.

अब मीना बाबा के पास जा कर उन का शुक्रिया अदा करना चाहती थी. कुछ दिनों बाद ही वह बाबा के लिए मिठाई और फल ले कर उन के आश्रम पहुंच गई.

जब बाबा को इस बात का पता चला तो वे बहुत खुश हुए और उन्होंने मीना से कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारे पति को अभी कुछ और दिनों तक तावीज का पानी पिलाना पड़ेगा, वरना कुछ दिन में इस का असर खत्म हो जाएगा और वह फिर से पहले जैसा हो जाएगा.’’

मीना यह बात सुन कर अंदर तक सहम गई. उस ने बाबा के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘बाबा, आप जो कहेंगे, मैं वहीं करूंगी और जब तक कहेंगे तब तक करती रहूंगी, चाहे मुझे इस के लिए कितने ही रुपए क्यों न खर्च करने पड़ें.’’

इस पर बाबा ने उसे भरोसा देते हुए कहा, ‘‘चिंता मत कर, सब ठीक हो जाएगा. मेरे यहां से कभी कोई निराश हो कर नहीं गया है.’’

बाबा की बातें सुन कर मीना ने राहत की सांस ली. बाबा कागज के एक पुरजे पर उर्दू में कुछ मंत्र लिख कर तावीज बनाने में लगे थे कि तभी मीना के पति सुरेश का औफिस से फोन आ गया, ‘क्या कर रही हो? जरा गोलू से बात कराना.’

मीना थोड़ा हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कुछ नहीं.’’मीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह सुरेश से क्या कहे कि वह कहां है और इस समय वह उस की गोलू से बात नहीं करा सकती. इसी बीच उस की नजर दीवार पर टंगे जीवन अस्पताल के कलैंडर पर पड़ी तो उस ने झट से कह दिया, ‘‘मैं अस्पताल में हूं. गोलू को घर छोड़ कर आई हूं.’’

सुरेश ने घबरा कर पूछा, ‘‘कौन से अस्पताल में?’’

मीना फिर हड़बड़ा कर कलैंडर में देखते हुए बोली, ‘‘जीवन अस्पताल.’’

मीना का इतना कहना था कि सुरेश का फोन कट गया.

थोड़ी देर बाद मीना बाबा के यहां से वापस लौट रही थी कि रास्ते में जीवन अस्पताल के सामने सुरेश को अपना स्कूटर लिए खड़ा देख वह बहुत ज्यादा घबरा गई.

उसे देख कर सुरेश एक ही सांस में कह गया, ‘‘तुम यहां कैसे? क्या हुआ मीना तुम्हें? सब ठीक तो है न?’’

सुरेश के मुंह से इतना सुन कर और अपने लिए इतनी फिक्र देख कर मीना भावुक हो उठी. उस वक्त उसे सुरेश की आंखों में अपने लिए अपार प्यार व फिक्र नजर आ रही थी.

इस के बाद तो मीना से झूठ नहीं बोला गया और उस ने सारी बातें ज्यों की त्यों सुरेश को बता दीं.

मीना की सारी बातें सुनते ही सुरेश ने हंसते हुए उस के गाल पर एक

हलकी सी चपत लगाई और फिर गले लगा लिया.

सुरेश मीना के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘तुम ने ऐसा कैसे समझ लिया. भला इतनी प्यारी पत्नी से कोई कैसे बेवफाई कर सकता है. लेकिन, तुम मुझे इतना ज्यादा प्यार करती हो कि मुझे पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हो, यह जान कर आज मुझे सचमुच बहुत अच्छा लग रहा है.

‘‘पर, तुम तो पढ़ीलिखी और इतनी समझदार हो कर भी इन बाबाओं के चक्कर में कैसे पड़ गईं, जबकि पहले तो तुम खुद बाबाओं के नाम से चिढ़ती थीं? अब तुम्हें क्या हो गया है?’’

सुरेश की बातों के जवाब में मीना एक लंबी सांस लेते हुए बोली, ‘‘लेकिन, कुछ भी हो… बाबा की वजह से

आप मुझे वापस मिले हो. अब मुझे पहले वाले सुरेश मिल गए हैं. अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए.’’

सुरेश ने प्यार से मीना का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘अच्छा चलो… घर चल कर बाकी बातें करते हैं.’’

घर पहुंच कर सुरेश ने मीना की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हें पता है न कि बाबाजी ने कोई चमत्कार नहीं किया. मैं बदला हूं सिर्फ और सिर्फ अपने दोस्त के साथ हुए एक हादसे के चलते. तुम बेकार ही यह समझ रही हो कि यह बाबा का चमत्कार है.’’

सुरेश की बातों पर मीना हैरान हो कर उसे घूरते हुए बोली, ‘‘हादसा… कैसा हादसा?’’

सुरेश ने उसे उदास मन से बताया, ‘‘मेरे एक दोस्त की पत्नी ने खुदकुशी कर ली थी और बच्चों को भी खाने में जहर दे दिया था.

‘‘जब मैं ने अपने दोस्त से पूछा कि यह सब कैसे हो गया तो उस ने बताया कि वह आजकल बहुत बिजी रहने

लगा था और काम के बोझ के चलते चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात पर अपनी पत्नी पर गुस्सा होता रहता था और अकसर मारपीट पर भी उतर आता था.

‘‘पहले तो उस की पत्नी कभी उस से उलझ भी जाती थी, लेकिन कुछ दिन बाद उस ने उस से बात करना ही बंद कर दिया था और वह गुमसुम रहने लगी थी.

‘‘यह सब बताते हुए मेरा दोस्त फूटफूट कर रोने लगा था. उस ने अपने ही हाथों अपना परिवार स्वाहा कर दिया था.’’

सुरेश ने एक लंबी सांस लेते हुए आगे कहा, ‘‘अपने दोस्त की इस घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया था. उसी समय मैं ने सोच लिया था कि अब मैं भी अपने इस तरह के बरताव को बदल

कर ही दम लूंगा. इस तरह मेरा जीने का नजरिया ही बदल गया.’’

सुरेश की बातें सुन कर मीना बोली, ‘‘आप ने तो अपने जीने का नजरिया खुद बदला और मैं समझती रही कि यह सब बाबा का चमत्कार है और इस सब के चलते मैं हजारों रुपए भी लुटा बैठी.’’

मीना के इस भोलेपन पर सुरेश ने हंसते हुए उसे अपनी बांहों में कस कर भर लिया.

Hindi Story: यह कैसा प्यार – प्यार में नाकामी का परिणाम

Hindi Story: ‘‘अब आप का बेटा खतरे से बाहर है,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘4-5 घंटे और आब्जर्वेशन में रखने के बाद उसे वार्ड में शिफ्ट कर देंगे. हां, ये कुछ दवाइयां हैं… एक्स्ट्रा आ गई हैं…इन्हें आप वापस कर सकते हैं.’’

24 घंटे के बाद डाक्टर की यह बात सुन कर मन को राहत सी मिली, वरना आई.सी.यू. के सामने चहलकदमी करते हुए किसी अनहोनी की आशंका से मैं और पत्नी दोनों ही परेशान थे. मैं ने दवाइयां उठाईं और अस्पताल के ही मेडिकल स्टोर में उन्हें वापस करने के लिए चल पड़ा.

दवाइयां वापस कर मैं जैसे ही मेडिकल स्टोर से बाहर निकला, एक अपरिचित सज्जन अपने एक साथी के साथ मिल गए और मुझे देखते ही बोले, ‘‘अब आप के बेटे की तबीयत कैसी है?’’

‘‘अब ठीक है, खतरे से बाहर है,’’ मैं ने कहा.

‘‘चलिए, यह तो बहुत अच्छी खबर है, वरना कल आप लोगों की परेशानी देखते नहीं बन रही थी. जवान बेटे की ऐसी दशा तो किसी दुश्मन की भी न हो.’’

यह सुन कर उन के दोस्त बोले, ‘‘क्या हुआ था बेटे को?’’

मैं ने इस विषय को टालने के लिए उस अपरिचित से ही प्रश्न कर दिया, ‘‘आप का यहां कौन भरती है?’’

‘‘बेटी है, आज सुबह ही उसे बेटा पैदा हुआ है.’’

‘‘बधाई हो,’’ कह कर मैं चल पड़ा.

अभी मैं कुछ ही कदम आगे चला था कि देखा मेडिकल स्टोर वाले ने मुझे 400 रुपए अधिक दे दिए हैं. उस ने शायद जल्दी में 500 के नोट को 100 का नोट समझ लिया था.

मैं उस के रुपए वापस लौटाने के लिए मुड़ा और पुन: मेडिकल स्टोर पर आ गया. वहां वे दोनों मेरी मौजूदगी से अनजान मेरे बेटे के बारे में बातें कर रहे थे.

‘‘क्या हुआ था उन के बेटे को?’’

‘‘अरे, नींद की गोलियां खा ली थीं. कुछ प्यारव्यार का चक्कर था. कल बिलकुल मरणासन्न हालत में उसे अस्पताल लाया गया था.’’

‘‘भैया, इस में तो मांबाप की गलती रहती है. नए जमाने के बच्चे हैं…जहां कहें शादी कर दो, अब मैं ने तो अपने सभी बच्चों की उन की इच्छा के अनुसार शादियां कर दीं. जिद करता तो इन्हीं की तरह भुगतता.’’

शायद उन की चर्चा कुछ और देर तक चलती पर उन दोनों में से किसी एक को मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया और वे चुप हो गए. मैं ने भी ज्यादा मिले पैसे मेडिकल स्टोर वाले को लौटाए और वहां से चल पड़ा पर मन अजीब सा कसैला हो गया. संतान के पीछे मांबाप को जो न सुनना पडे़ कम है. ये लोग मांबाप की गलती बता रहे हैं, हमें रूढि़वादी बता रहे हैं, पर इन्हें क्या पता कि मैं ने खुद अंतर्जातीय विवाह किया था.

मेरी पत्नी बंगाली है और मैं हिंदू कायस्थ. समाज और नातेरिश्तेदारों ने घोर विरोध किया तो रजिस्ट्रार आफिस में शादी कर के कुछ दिन घर वालों से अलग रहना पड़ा, फिर सबकुछ सामान्य हो गया. बच्चों से भी मैं ने हमेशा यही कहा कि तुम जहां कहोगे वहां मैं तुम्हारी शादी कर दूंगा, फिर भी मुझे रूढि़वादी पिता की संज्ञा दी जा रही है.

मेरा बेटा प्यार में असफल हो कर नींद की गोलियां खा कर आत्म- हत्या करने जा रहा था. आज के बच्चे यह कदम उठाते हुए न तो आगा- पीछा सोचते हैं और न मातापिता का ही उन्हें खयाल रहता है. हर काम में जल्दबाजी, प्यार करने में जल्दबाजी, प्यार में असफल होने पर जान देने की जल्दबाजी.

हमारे कुलदीपक ने 3 बार प्यार किया और हर बार इतनी गंभीरता से कि असफल होने पर तीनों ही बार जान देने की कोशिश की. पहला प्यार इसे तब हुआ था जब यह 11वीं में पढ़ता था. हुआ यों कि इस के गणित के अध्यापक की पत्नी की मृत्यु हो गई. तब उस अध्यापक ने प्रिंसिपल से अनुरोध कर के अपनी बेटी का सुरक्षा की दृष्टि से उसी कालिज में एडमिशन करवा लिया जिस में वह पढ़ाते थे, ताकि बेटी आंखों के सामने बनी रहे.

वह कालिज लड़कों का था. अकेली लड़की होने के नाते वह कालिज में पढ़ने वाले सभी लड़कों का केंद्रबिंदु थी, पर मेरा बेटा उस में कुछ अधिक ही दिलचस्पी लेने लगा.

वह लड़की मेरे बेटे पर आकर्षित थी कि नहीं यह तो वही जाने, पर मेरा बेटा अपने दिल का हाल लिखलिख कर उसे देने लगा और उसी में एक दिन वह पकड़ा भी गया. बात लड़की के पिता तक पहुंची…फिर प्रिंसिपल तक. मुझे बुलाया गया. सोचिए, कैसी शर्मनाक स्थिति रही होगी.

प्रिंसिपल ने चेतावनी देते हुए मुझ से कहा, ‘आप का बेटा पढ़ाई में अच्छा है और मैं नहीं चाहता कि एक होनहार छात्र का भविष्य बरबाद हो, अत: इसे समझा दीजिए कि भविष्य में ऐसी गलती न करे.’

घर आ कर मैं ने बेटे को डांटते हुए कहा, ‘मैं ने तुम्हें कालिज में पढ़ने  के लिए भेजा था कि प्यार करने के लिए? आज तुम ने अपनी हरकतों से मेरा सिर नीचा कर दिया.’

‘प्यार करने से किसी का सिर नीचा नहीं होता,’ बेटे का जवाब था, ‘मैं उस के साथ हर हाल में खुश रह लूंगा और जरूरत पड़ी तो उस के लिए समाज, आप लोगों को, यहां तक कि अपने जीवन का भी त्याग कर सकता हूं.’

मैं ने कहा, ‘बेटा, माना कि तुम उस के लिए सबकुछ कर सकते हो, पर क्या लड़की भी तुम से प्यार करती है?’

‘हां, करती है,’ बेटे का जवाब था.

मैं ने कहा, ‘ठीक है. चलो, उस के घर चलते हैं. अगर वह भी तुम से प्यार करती होगी तो मैं उस के पिता को मना कर तुम दोनों की मंगनी कर दूंगा, पर शर्त यह रहेगी कि तुम दोनों अपनी पढ़ाई पूरी करोगे तभी शादी होगी.’

बेटे की इच्छा रखने के लिए मैं लड़की के घर गया और उस के पिता को समझाने की कोशिश की तो वह बडे़ असहाय से दिखे, पर मान गए कि  अगर बच्चों की यही इच्छा है तो आप जैसा कहते हैं कर लेंगे.

लेकिन जब उन की बेटी को बुला कर यही बात पूछी गई तो वह क्रोध में तमतमा उठी, ‘किस ने कहा कि मैं इस से प्यार करती हूं… अपनी कल्पना से कैसे इस ने यह सोच लिया. आप लोग कृपा कर के मेरे घर से चले जाइए, वैसे ही व्यर्थ में मेरी काफी बदनामी हो चुकी है.’

मैं अपमानित हो कर बेटे को साथ ले कर वहां से चला आया और घर आते ही गुस्से में मैं ने उसे कस कर एक थप्पड़ मारा और बोला, ‘ऐसी औलाद से तो बेऔलाद होना ही भला है.’

रात के करीब 12 बजे होंगे, जब बेटे ने जा कर अपनी मां को जगाया और बोला, ‘मां, मैं मरना नहीं चाहता हूं. मुझे बचा लो.’

उस की मां ने नींद से जग कर देखा तो बेटे ने अपने हाथ की नस काटी हुई थी और उस से तेजी से खून बह रहा था. पत्नी ने रोतेरोते मुझे जगाया. हम लोग तुरंत उसे ले कर नर्सिंग होम गए. वहां पता चला कि हाथ की नस कटी नहीं थी. खैर, मरहम पट्टी कर के उसे घर भेज दिया गया.

पत्नी का सारा गुस्सा मुझ पर फूट पड़ा, ‘जवान बेटे को ऐसे मारते हैं क्या? आज उसे सही में कुछ हो जाता तो हम लोग क्या करते?’

खैर, अब हम दोनों बेटे के साथ साए की तरह बने रहते. मनोचिकित्सक को भी दिखाया. किसी तरह उस ने परीक्षा दी और 12वीं में 62 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. अब समय आया इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की कोचिंग का. प्यार का भूत सिर पर से उतर चुका था. बेटा सामान्य हो गया था. पढ़ाई में मन लगा रहा था. हम लोग भी खुश थे कि इंजीनियरिंग में प्रवेश परीक्षाओं के पेपर ठीकठाक हो गए थे. तभी मेरे सुपुत्र दूसरा प्यार कर बैठे. हुआ यों कि पड़ोस में एक पुलिस के सब- इंस्पेक्टर ट्रांसफर हो कर किराएदार के रूप में रहने को आ गए. उन की 10वीं में पढ़ने वाली बेटी से कब मेरे बेटे के नयन मिल गए हमें पता नहीं चला.

कुल 3 हफ्ते के प्यार में बात यहां तक बढ़ गई कि एक दिन दोनों ने घर से भागने का प्लान बना लिया, क्योंकि लड़की को देखने के लिए दूसरे दिन कुछ लोग आने वाले थे, पर उन का भागने का प्लान असफल रहा और वे पकड़े गए. लड़की के पिता ने बेटी की तो लानत- मलामत की ही दोचार पुलिसिया हाथ मेरे कुलदीपक को भी जड़ दिए और पकड़ कर मेरे पास ले आए.

‘समझा लीजिए अपने बेटे को. अगर अब यह मेरे घर के आसपास भी दिखा तो समझ लीजिए…बिना जुर्म के ही इसे ऐसा अंदर करूंगा कि इस की जिंदगी चौपट हो कर रह जाएगी.’

मैं कुछ बोला तो नहीं पर उसे बड़ी हिकारत की दृष्टि से देखा. वह भी चुपचाप नजरें झुकाए अपने कमरे में चला गया.

रात को बेटी और दामाद अचानक आ गए. उन लोगों ने हमें सरप्राइज देने के लिए कोई सूचना न दी थी. थोड़ी देर तक इधरउधर की बातों के बाद मेरी बेटी बोली, ‘पापा, राहुल कहां है…सो गया क्या?’

राहुल की मां बोली, ‘शायद, अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा होगा. जा कर बुला लाती हूं.’

‘रहने दो मां, मैं ही जा रही हूं उसे बुलाने,’ बेटी ने कहा.

ऊपर जा कर जब उस ने उस के कमरे का दरवाजा धकेला तो वह खुल गया और राहुल अचकचा कर बोला, ‘दीदी, तुम कैसे अंदर आ गईं, सिटकनी तो बंद थी.’

बेटी ने बिना कुछ बोले राहुल के गाल पर कस कर चांटा मारा और राहुल को स्टूल से नीचे उतार कर रोने लगी. दरअसल, राहुल कमरा बंद कर पंखे से लटक कर अपनी जान देने जा रहा था.

‘मुझे मर जाने दो, दीदी. मेरी वजह से पापा को बारबार शर्मिंदगी उठानी पड़ती है.’

‘तुम्हारे मरने से क्या उन का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाएगा. अरे, अपना व्यवहार बदलो और जीवन में कुछ बन कर दिखाओ ताकि उन का सिर वास्तव में गर्व से ऊंचा हो सके.’

प्रवेश परीक्षाएं अच्छी हुई थीं.

इंजीनियरिंग कालिज में राहुल को प्रवेश मिल गया क्योंकि अच्छे नंबरों से उस ने परीक्षाएं पास की थीं. मित्रमंडली का समूह, जिन में लड़केलड़कियां सभी थे, अच्छा था. हम लोग निश्ंिचत हो चले थे. वह खुद भी जबतब अपने प्रेमप्रसंगों की खिल्ली उड़ाता था.

इंजीनियरिंग का तीसरा वर्ष शुरू होते ही उस मित्रमंडली में से एक लड़की से राहुल की अधिक मित्रता हो गई. वे दोनों अब अकसर ग्रुप के बाहर अकेले भी देखे जाते. मैं एकआध बार इन की पढ़ाई को ले कर सशंकित भी हुआ, पर लड़की बहुत प्यारी थी. वह हमेशा पढ़ाई और कैरियर की ही बात करती, साथ ही साथ मेरे बेटे को भी प्रोत्साहित करती और जबतब वे दोनों विदेश साथ जाने की बात करते थे.

विदेश जाने के लिए दोनों ने साथ मेहनत की, साथ परीक्षा दी, पर लड़की क्वालीफाई कर गई और राहुल नहीं कर सका. लड़की को 3 साल की पढ़ाई के लिए विदेश जाने की खबर से राहुल बहुत टूट गया. हालांकि लड़की ने उसे बहुत समझाया कि कोई बात नहीं, अगली बार क्वालीफाई कर लेना.

धीरेधीरे लड़की के विदेश जाने का समय नजदीक आने लगा और राहुल को उसे खोने का भय सताने लगा. वह बारबार उस से विवाह की जिद करने लगा. लड़की ने कहा, ‘देखो, राहुल, हम लोगों में बात हुई थी कि शादी हम पढ़ाई के बाद करेंगे, तो इस प्रकार हड़बड़ा कर शादी करने से क्या फायदा? 3 साल बीतते समय थोड़ी न लगेगा.’

राहुल जब उसे न समझा सका तो हम लोगों से कहने लगा कि विधि के पापा से बोलिए न. शादी नहीं तो उस के जाने के पहले मंगनी ही कर दें.

बच्चों के पीछे तो मातापिता को सबकुछ करना पड़ता है. मैं विधि के घर गया और उस के मातापिता से बात की तो वे बोले, ‘हम लोग तो खुद यही चाहते हैं.’

यह सुन कर विधि बोली, ‘पर मैं तो नहीं चाहती हूं…क्यों आप लोग मंगेतर या पत्नी का ठप्पा लगा कर मुझे भेजना चाहते हैं या आप लोगों को और राहुल को मुझ पर विश्वास नहीं है? और अगर ऐसा है तो मैं कहती हूं कि यह संबंध अभी ही खत्म हो जाने चाहिए, क्योंकि वास्तव में 3 साल की अवधि बहुत होती है. उस के बाद घटनाक्रम किस प्रकार बदले कोई कह नहीं सकता. क्या पता मेरी विदेश में नौकरी ही लग जाए और मैं वापस आ ही न सकूं. इसलिए मैं सब बंधनों से मुक्त रहना चाहती हूं.’

मैं और पत्नी अपना सा मुंह ले कर लौट आए. भारी मन से सारी बातें राहुल को बताईं…साथ में यह भी कहा कि वह ठीक कहती है. तुम लोगों का प्यार सच्चा होगा तो तुम लोग जरूर मिलोगे.

‘मैं सब समझ रहा हूं,’ राहुल बोला, ‘जब से उस के विदेश जाने की खबर आई है वह मुझे अपने से कमतर समझने लगी है. जाने दो, मैं कोई उस के पीछे मरा जाता हूं. बहुत लड़कियां मिलेंगी मुझे.’

परसों रात को विधि का प्लेन गया और परसों ही रात को राहुल ने नींद की गोलियां खा लीं. मैं और राहुल की मां एक शादी में गए हुए थे. कल शाम को लौट कर आए तो बेटे की यह हालत देखी. तुरंत अस्पताल ले कर आए. तभी कानों में शब्द सुनाई पड़े, ‘‘पापा, चाय पी लीजिए.’’

सामने देखा तो बेटी चाय का कप लिए खड़ी थी. मैं ने उस के हाथों से कप ले लिया.

बेटी बोली, ‘‘पापा, क्या सोच रहे हैं. राहुल अब ठीक है. इतना सोचेंगे तो खुद बीमार पड़ जाएंगे.’’

मैं ने चाय की चुस्की ली तो विचारों ने फिर पलटा खाया. यह कोई सिर्फ मेरे बेटे की ही बात नहीं है. आज की युवा पीढ़ी हो ही ऐसी गई है. हर कुछ जल्दी पाने की ललक और न पाने पर हताशा. समाचारपत्र उठा कर देखो तो ऐसी ही खबरों से पटा रहता है. प्यार शब्द भी इन लोगों के लिए एक मजाक बन कर रह गया है. अभी हमारे एक हिंदू परिचित हैं. उन की बेटी ने मुसलमान से शादी कर ली. दोनों ही पक्षों में काफी विरोध हुआ. अंतर्जातीय विवाह तो फिर भी पचने लगे हैं पर अंतर्धर्मीय नहीं. मैं ने अपने परिचित को समझाया.

‘जब बच्चों ने विवाह कर ही लिया है तब आप क्यों फालतू में सोचसोच कर हलकान हो रहे हैं. खुशीखुशी आशीर्वाद दे दीजिए.’

एक साल में उन के यहां बेटा भी पैदा हो गया. पर नाम को ले कर दोनों पतिपत्नी में जो तकरार शुरू हुई तो तलाक पर आ कर खत्म हुई. बात सिर्फ इतनी थी कि पिता बेटे का नाम अमन रखना चाहता था और मां शांतनु. दोनों के मातापिता ने समझाया…दोनों शब्दों का अर्थ एक होता है, चाहे जो नाम रखो, पर वे लोग न समझ पाए और आजकल बच्चा किस के पास रहे इस को ले कर दोनों के बीच मुकदमा चल रहा है.

‘‘नानू, नानू, यह आयुषी है,’’ मेरा 6 वर्षीय नाती एक प्यारी सी गोलमटोल लड़की से मेरा परिचय कराते हुए कहता है.

मैं अपने विचारों की दुनिया से बाहर आ कर थोड़ा सहज हो कर पूछता हूं, ‘‘आप की फ्रेंड है?’’

‘‘नो नानू, गर्लफे्रंड,’’ मेरा नाती कहता है.

मैं कहना चाहता हूं कि गर्लफ्रेंड के माने जानते हो? पर देखता हूं कि गर्लफ्रेंड कह कर परिचय देने पर उस बच्ची के गाल आरक्त हो उठे हैं और मैं खुद ही इस भूलभुलैया में फंस कर चुप रह जाता हूं.

Short Story: रहने दो रिपोर्टर

Short Story, लेखक- नारायणी

अतीत के काले पन्नों को भूल कर विमल और गंगा ने नई गृहस्थी की शुरुआत की. दोनों अपने जीवन से संतुष्ट थे लेकिन रिपोर्टर द्वारा दुनिया वालों के सामने उसी अतीत की जो धूल फिर उड़ी उस ने सबकुछ मटियामेट कर दिया.

वह आज पूरी तरह छुट्टी मनाने के मूड में था. सुबह देर से उठा, फिर धीरेधीरे चाय पीते हुए अखबार पढ़ता रहा था. अखबार पूरी तरह से चाटने के बाद उस का ध्यान घर में छाए सन्नाटे की तरफ गया. आज न पानी गिरने की आवाज, न बरतनों की खटरपटर, न झाड़ूपोंछे की सरसराहट, जबकि घर में कुल 2 छोटेछोटे कमरे हैं. वह एकाएक ही किसी आशंका से पीडि़त हो उठा. गंगा इतनी शांति से क्या कर रही है, वह उसे चौंकाने के विचार से ही नहीं उठा था.

बरामदे में पैर रखते ही वह सहम सा गया. गंगा वाशबेसिन के पास चुपचाप बैठी हुई थी और सामने रखी बोतल को ध्यान से देख रही थी.

‘‘गंगा, वह तेजाब की बोतल है,’’  उस ने आशंकित स्वर में कहा, ‘‘मैं बाथरूम साफ करने के लिए लाया था. काई जमी हुई है न, रोज तुम रगड़ती रहती हो. देखना, इसे जरा सा डाल कर रगड़ने से एकदम साफ हो जाएगा…किंतु तुम उसे नहीं छूना.’’

‘‘अच्छा,’’ उस ने कहा लेकिन अभी भी जैसे वह सोच में डूबी हुई थी.

‘‘क्या सोच रही हो, गंगा?’’ उस ने कंधा पकड़ कर उसे झकझोर दिया.

‘‘सोच रही हूं कि इस के लगाने से चेहरा बदल जाएगा, तब कोई

मुझे पहचान नहीं पाएगा, पहचान भी

ले तो…लेकिन तुम्हारी भावनाएं क्या होंगी?’’

‘‘मेरी भावनाओं का आदर करती हो तो अब से कभी यह विचार मन में न लाना.’’

‘‘पता नहीं क्यों, भय लगता है.’’

‘‘तुम भयभीत क्यों होती हो? मैं ने सबकुछ जानने के बाद ही तुम से विवाह किया है, हमारा विवाह कानूनसम्मत है, कोई हमें अलग नहीं कर सकता, समझीं.’’

तभी दरवाजे पर आहट हुई. विमल ने द्वार खोला. पड़ोसी जोशीजी की छोटी बेटी लतिका थी. बाहर से ही बोली, ‘‘काकी, आज हमारे घर में हलदी- कुमकुम होना है. मां ने  तुम को बुलाया है.  दिन में 2 से 5 बजे तक जरूर आ जाना. अच्छा, मैं जाती हूं. मुझे बहुत घरों में बोलने जाना है.’’

गंगा ने प्रश्न भरी आंखों से पति की ओर देखा, जैसे पूछ रही हो कि आज जोशीजी के घर क्या है?

‘‘सुहागिन महिलाओं को घर बुलाते हैं. टीका करने के बाद नाश्तापानी, गानाबजाना होता है. मेरे घर तो आज पहली बार इस तरह का बुलावा आया है और पहले आता भी कैसे, सुहागिन तो अभी आई है.’’

गंगा मुसकराई फिर गंभीर हो उठी. विमल ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘सोचा था दिनभर साथसाथ घूमते रहेंगे… जोशीजी को भी आज का ही दिन मिला.’’

‘‘मैं अपनी हाजिरी लगा कर शीघ्र ही आ जाऊंगी.’’

‘‘नहींनहीं, जब सब उठें तभी तुम भी उठना. पहली बार बुलाया है उन्होंने, मेरी चिंता न करो, तुम्हारे वापस आने तक मैं सोता रहूंगा.’’

‘‘कैसा रहा आज,’’ जोशी के घर से वापस आने पर विमल ने गंगा से पूछा.

‘‘बहुत अच्छा. बड़े अच्छे लोग हैं, मैं तो अभी किसी से मिली ही नहीं थी. आसपास की सभी महिलाएं आई थीं और सभी ने मुझ से खूब प्यार से बातें कीं..’’

‘‘अच्छा, सब की बोली समझ में आई?’’

‘‘हां, थोड़ीबहुत तो समझ में आ ही जाती है. वैसे मुझ से तो हिंदी में ही बोल रही थीं.’’

मेलमुलाकात का सिलसिला चल निकला तो बढ़ता ही रहा. विमल खुश था कि गंगा का मन बहल गया है.

अब वह पहले जैसी सहमीसहमी नहीं रहती बल्कि अब तो वह अपनी नईनई गृहस्थी की सुखद कल्पनाओं में खोई रहती है.

एक दिन बेहद खुश हो कर गंगा ने  विमल से कहा, ‘‘सुनो, मैं भी सब को हलदीकुमकुम का बुलावा दे रही हूं. जोशी काकी ने कहा है कि वह सब तैयारी करवा देंगी. मैं ने सामान की सूची बना ली है.’’

‘‘ठीक है, हम कल शाम को बाजार चल कर सब सामान ले आएंगे.’’

बाजार में जाते हुए विमल फूलों की वेणी वाले को देख कर रुक गया. गंगा वेणी लगाने में सकुचाती थी. विमल ने हंस कर कहा, ‘‘अब तुम अपनी सहेलियों की तरह वेणी लगाया करो. हलदीकुमकुम करोगी, वेणी नहीं लगाओगी?’’

तभी विमल को  किसी ने टोकते हुए कहा, ‘‘नमस्ते, साहब. ऐसा लगता है, आप को कहीं देखा है…’’

‘‘मुझे…जी, मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘आप वही विमल साहब हैं न जिन्होंने अपना नाम समाचारपत्र में देने से मना किया था.’’

‘‘जी, जी…मैं आप को नहीं पहचानता,’’ और गंगा का हाथ पकड़ कर सामने से आते रिकशे को रोक कर उस पर बैठते हुए विमल ने कहा, ‘‘चलो गंगा, घर चलते हैं.’’

दूसरे दिन सुबह चाय का प्याला लिए विमल अपनी बालकनी में बैठा धूप की गरमाहट महसूस कर ही रहा था कि द्वार पर आहट हुई.

‘‘नमस्कार, मैं जयंत हूं.. आप जो समाचारपत्र पढ़ रहे हैं, मैं उसी का एक अदना सा रिपोर्टर हूं.’’

विमल का चेहरा बुझ गया. अनमने मन से स्वागत कर उन के लिए चाय मंगाई.

जयंत कहे जा रहा था, ‘‘कहते हैं कि बड़े लोग विनम्र होते हैं, आप तो साक्षात विनम्रता के अवतार लगते हैं. इतने उदार, समाज सुधारक, अभिमान तो नाम को नहीं…’’

विमल ने प्रतिवाद किया, ‘‘ऐसा लगता है आप किसी भ्रम में हैं. मुझे गलत समझ रहे हैं, मैं वह नहीं हूं जो आप समझ रहे हैं.’’

‘‘तभी तो मैं कह रहा हूं कि आप जैसा महान व्यक्ति प्रचार से दूर रहना चाहता है पर आप ने जो कुछ किया उसे जान कर मुझे गर्व का अनुभव हुआ.’’

‘‘मैं ने क्या किया…मैं तो किसी प्रशंसा के लायक नहीं…’’

‘‘आप संकोच न करें, गुप्ताजी ने मुझे सब बता दिया है. अरे, वही गुप्ताजी जो कल आप से मिले थे. आप ने उन्हें नहीं पहचाना हो पर वह तो आप को पहचान गए हैं. आप की पत्नी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की हैं न?’’

विमल मना न कर सका. रसोई के दरवाजे पर खड़ी गंगा का चेहरा उतरा हुआ था.

‘‘देखिए, मेरा कोई स्वार्थ नहीं,’’ रिपोर्टर जयंत ने कहा, ‘‘कोई लांछन का उद्देश्य नहीं, आप की इज्जत जितनी है वह आप को नहीं मिल रही है. मैं तो केवल इसलिए आप को प्रकाश में लाना चाहता हूं कि लोगों को आप से सबक मिले. ऐसा समाज सुधारक छिप कर नहीं बैठता है. इसलिए मैं आप को प्रकाश में लाना चाहता हूं कि लोगों को आप से प्रेरणा मिले. लोग जानेंगे कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं, प्यार आदमी को बदल देता है.

‘‘यह चित्र विवाह के बाद का है न,’’ कमरे में कोने की मेज पर गंगा का चित्र रखा हुआ देख कर उस ने उठा लिया, ‘‘मैं अभी आप को दे जाऊंगा, यह सिगरेट लीजिए न, विदेशी है…मेरा पेशा ही ऐसा है भाई, लोग बहुत आवभगत करते हैं समाचारपत्र में अपना नाम देखने के लिए. मेरा रुतबा ही

इतना है…भाभी, आप का एक चित्र

लेना है, रसोई में काम करते हुए…लोग देखेंगे. वह, कैसी सुघड़ गृहिणी हैं,

कैसी सुंदर गृहस्थी है…हां, तो आप ने जानकी को गंगा नाम दिया. बहुत

ठीक, गंगा तो पवित्र है, गंगा मैली थोड़े होती है.

‘‘अच्छा, धन्यवाद, मैं चलता हूं,’’ वह कागजकलम समेट कर उठ गया. विमल नीचे तक पहुंचा कर आया तो गंगा वैसे ही दीवार से सटी खड़ी थी. मौन,  चिंतित, भयाक्रांत, प्रशंसा के मद से मस्त. विमल को देर हो रही थी, ध्यान नहीं दिया.

शाम को उस ने हलदीकुमकुम के लिए सामान लाने को कहा तो गंगा ने मना कर दिया, ‘‘अभी ठहर कर लाऊंगी.’’

तीसरे दिन समाचारपत्र के तीसरे पेज पर वही चित्र था जो उन के घर की मेज पर रखा था. दूसरा चित्र गंगा का रसोई में काम करते हुए. साथ में संक्षेप से उस की यातना की कहानी के साथ ही विमल की महानता की कहानी छपी थी.

विमल को उठने में देर हो गई थी. समाचारपत्र ऊपरऊपर से देख कर वह काम पर जाने के लिए तैयार होने लगा कि उस से मिलने वाले एकएक कर आने लगे. फ्लैट के सभी लोग आए और उस के उदार नजरिए पर बधाई दी.

‘‘प्रचारप्रसार से इतनी दूर कि आज का समाचार- पत्र तक नहीं देखा, जबकि अपने बारे में आप को छपने की आशा थी.’’

‘‘वाह, आप धन्य हैं. आप दोनों सुखी रहें, हमारी कामना है.’’

गंगा भोजन तैयार न कर सकी और न नाश्ते का डब्बा ही. वह अपने अंदर एक अज्ञात भय महसूस कर रही थी.

विमल तैयार हो कर आया तो बोला, ‘‘मैं वहीं कुछ खा लूंगा. तुम अपना ध्यान रखना.’’

पुरुषों के जाने के बाद महिलाओं की बारी आई. एकएक कर सब गंगा का हाल पूछने पहुंच गईं. सब में यह बताने की होड़ लगी थी कि सब से पहले किस ने समाचारपत्र देखा और कैसे एकदूसरे को जानकारी दी. फिर सभी ने एक स्वर से कहा कि हमें नहीं पता था कि आप का नाम जानकी है. वैसे नाम तो हम लोग भी पतिगृह का दूसरा रखते हैं. आप के गांव में ऐसा नहीं होता क्या?

‘‘जानकी तो पतिव्रता स्त्री का

नाम था,’’ एक के मुंह से निकला तो दूसरी ने कहा, ‘‘बेचारी औरत का क्या दोष.’’

इस तरह सभी ने गंगा से सहानुभूति दिखाई. खाली चौका देख कर कई घरों से खाना आ गया. जबरन कौरकौर खिलाया और आंसू पोंछे. अपने प्रति कोमल भावनाएं देख कर गंगा को लगा कि उस की आशंका निर्मूल थी, वह व्यर्थ ही इतनी भयभीत हो रही थी कि उस का अतीत जान कर कहीं लोग उस से घृणा न करने लगें, फिर भी वह आश्वस्त न हो पाई.

विमल ने सुबह कहा था कि शाम को तैयार रहना, डाक्टर को दिखाना है और बाजार भी जाना है. किंतु शाम को वह कहीं नहीं गई. 3 दिन हो गए वह घर से निकली ही नहीं.

काशी बाई 2 दिन बाद आई तो बाहर से ही बोली, ‘‘बाई, मेरी पगार जितनी बनती है दे दो.’’

गंगा चकित हो उस से काम न करने का कारण पूछने ही वाली थी कि तभी सुना, ‘‘जूठा साफ करते हैं तो क्या, हमारा धरमईमान तो बना है. छि:, ऐसी बाई के घर कौन काम करेगा.’’

कूड़ा फेंकने वाली मीनाबाई ने भी कहा, ‘‘गंदा साफ करते हैं तो क्या हुआ, हमारा भी धरम है, अपने मरद के लिए तो मैं सच्ची हूं.’’

भाजी वाला आया था. गंगा साहस कर के नीचे उतरी ताकि कुछ सब्जीभाजी खरीद ले. गोभी, मटर का भाव पूछते ही वह मुसकराया, ‘‘अजी, आप जो चाहे दे दें…’’

गंगा ने यथार्थ समझ लिया था. अंदर ही अंदर घुटती रही. एक घर से गीतों का बुलावा आया हुआ था. विमल ने कहा, ‘‘दिन में थोड़ी देर को चली जाना और शगुन दे देना.’’

गंगा कहीं जाने को तैयार नहीं थी. विमल समझाता रहा, ‘‘देखो, हमें कमजोर नहीं पड़ना है. हम ने कोई बुरा काम तो किया नहीं है. मजबूरी ने जो करा दिया उस के लिए लज्जित क्यों हों? तुम अवश्य जाओ और सब के बीच में मिलोजुलो अन्यथा लोग हमें गलत समझेंगे, दोषी समझेंगे, उन के घर लड़की का विवाह है. तुम को गीतों में बुलाया है. नहीं जाओगी तो कहीं वे लोग बुरा न मान जाएं कि पास में रह कर नहीं आई.

गंगा दुविधा में थी. जोशी काकी के मुख से सुन ही लिया था और लोग भी ऐसा ही कहें तब…उधर विमल का कहा भी मन में गूंजता रहा तो वह बड़ा साहस जुटा कर वहां गई थी.

गाना चल रहा था. कुछ महिलाएं नृत्य कर रही थीं. हंसीखुशी का वातावरण था, उसे देखते ही नृत्य थम गया, गाना बंद हो गया और सब की नजर उस की ओर थी. उसे याद आया जब पहले वह जोशी काकी के घर गई थी तो वहां भी गाना हो रहा था किंतु उस के जाते ही सब ने उस का स्वागत किया था और उन नजरों में कौतूहल था पहचान का, परिचय का किंतु स्नेह का भाव भी था.

आज पहले तो सब एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराईं, घर की मालकिन ने उसे बैठने का संकेत किया तो पास की महिलाएं इस तरह सरक कर बैठीं जैसे उस के स्पर्श से बच रही हों.

परस्पर फुसफुसाहट हुई, पर उस से न बोलने की चुप्पी  का प्रहार इतना मुखर था कि गंगा अधिक देर वहां बैठ न सकी. शगुन का लिफाफा हाथ में ही रह गया. वह उठी तब भी उस से किसी ने बैठने को न कहा, न जल्दी जाने का कारण पूछा.

कुहराम मचा हुआ था. गंगा ने स्नान घर में मिट्टी का तेल छिड़क कर अपने को जला लिया था. विमल के नाम एक पत्र रखा था जिस में लिखा था :

‘‘औरत पर कलंक लग जाए तो कलंक के साथ ही जीना होता है. आप पुरुष हैं दूसरा विवाह कर लेंगे किंतु मेरे साथ रह कर आप भी कलंकित ही रहेंगे. मैं इस लांछन को सह भी लेती पर मैं मां बनने वाली हूं. बेटा होगा तो वह भी कलंक का टीका ले कर, बेटी होगी तो और भी विडंबना होगी.

‘‘आत्महत्या कर के मैं पाप कर रही हूं पर आप को इन सब से मुक्ति दे रही हूं.

‘‘मुझे क्षमा करना. समाचारपत्र वाले फिर पूछने आएंगे. उन्हें यह पत्र दे देना, शायद मेरा चित्र लेना चाहें तो ले लेंगे.’’

विमल से पढ़ा नहीं जा रहा था. पत्र हाथ से छूट गया, क्या लिखा है…क्या कारण है, कई लोग पत्र पढ़ चुके थे. अब पत्र पकड़ते हुए जिसे देखा, विमल आक्रोश से फट पड़ा.

‘‘तसवीर भी ले लो न, वह भी…’’

रिपोर्टर ने सहम कर देखा…पत्र उस के हाथ से छूट गया.

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