अक्षरा सिंह ने इस गाने में बताया ‘BOYFRIEND बदलने का नया तरीका’ देखें Viral Video

भोजपुरी दिलों की धड़कन अक्षरा सिंह लगता है अब उन लड़कों को सबक सीखा कर ही दम लेंगी, जो लड़कियों के इमोशन के साथ खिलवाड़ करते हैं. तभी अक्षरा ने अपना नया हिंदी रैप सांग ‘BOYFRIEND बदलने का नया तरीका’ लेकर आयीं है, जो उन्होंने अपने ही यूट्यूब चैनल से रिलीज किया है. अक्षरा का यह गाना रिलीज के साथ ही वायरल होने लगा और महज कुछ ही घंटों में इस गाने को 1 लाख (100234) व्यूज मिले हैं.

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अक्षरा सिंह अपने इस रैप सांग में थोड़ा गुस्से में नजर आ रही हैं और लड़कियों से खासकर कह रही हैं कि अब वे भी अपने पसन्द से किसी को बॉयफ्रेंड बनाये और उसे बदले भी. ‘BOYFRIEND बदलने का नया तरीका’ क्या होगा, यह अक्षरा के इस गाने में साफ नजर आ रहा है. अक्षरा का यह गाना वायरल तो हो ही रहा है, साथ ही लड़कियों के बीच खूब पसंद भी किया जा रहा है. ये गाने को मिले रहे कमेंट से पता चलता है. वहीं, अक्षरा ने इस गाने को लेकर साफ कहा कि जब लड़के लड़कियों को छोड़ने में हिचकते नहीं, तो लड़कियां भी क्यों पीछे रहे. शायद इसलिए अक्षरा ने BOYFRIEND को लेकर उलझन में रहने वाली लड़कियों को नया तरीका सुझाया है और अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर लिखा है – लो जी आ गया नया तरीका.

बहरहाल अक्षरा के ‘BOYFRIEND बदलने का नया तरीका’ का असर लड़कियों पर क्या होता है, वो तो देखने की बात होगी. लेकिन इतना तय है कि जिस तरह से अक्षरा के गानों को लोग पसन्द कर रहे हैं, वो इस बात की ओर इशारा करता है कि यह गाना भी चार्टबस्टर होने वाला है. आपको बता दें कि हिंदी रैप सांग ‘BOYFRIEND बदलने का नया तरीका’ को अक्षरा ने खुद गया है. लिरिक्स सूरज सिंह (आरा) का है. म्यूजिक आशीष वर्मा का है. वीडियो डायरेक्टर पंकज सोनी हैं.

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भोजपुरी एक्ट्रेस आम्रपाली दुबे इन सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन फैंस के साथ अपनी फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती है. तो अब एक्ट्रेस ने खेसारी लाल यादव के साथ कई फोटोज शेयर की हैं.

दरअसल इन फोटोज को शेयर करते हुए आम्रपाली दुबे ने सोशल मीडिया पर बताया है कि एक्ट्रेस ने खेसारी के साथ अपकमिंग फिल्म ‘आशिकी’ (Aashiqui) की शूटिंग शुरू कर दी है.

 

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आम्रपाली दुबे ने फोटोज शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि फोटो थोड़ी ब्लर है, लेकिन इंटेनशंस  क्लीयर हैं. एक ग्रेट स्क्रिप्ट ‘आशिकी’ पर बेहतरीन कलाकार खेसारी लाल यादव के साथ काम कर रही हूं.

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आप इन  फोटो में देख सकते हैं आम्रपाली दुबे पिंक कलर की साड़ी में बेहद खूबसूरत नजर आ रही हैं तो वहीं खेसारी लाल यादव का देसी अंदाज भी फैंस को खूब पसंद आ रहा है.

खेसारी लाल यादव और आम्रपाली दुबे की इस फिल्म का निर्देशन प्रदीप शर्मा कर रहे हैं. बता दें कि खेसारी लाल यादव इस फिल्म से पहले प्रदीप के साथ ‘लिट्टी चोखा’ में भी दिखाई देंगे. फैंस भी आम्रपाली दुबे और खेसारी लाल यादव का ऑनस्क्रीन रोमांस देखने के लिए लिए बेताब हैं.

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Imlie और आदित्य के रिश्ते की खुलेगी पोल तो क्या करेगी मालिनी

स्टार प्लस के सीरियल ‘इमली’ में इन दिनों  हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. कहानी में नया ट्विस्ट आने वाला है, जिससे कई बड़े खुलासे होने वाले है. तो आइए बताते हैं सीरियल के नए ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में.

सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक में त्रिपाठी परिवार होली मनाने की तैयारी कर रहे हैं तो उधर आदित्य इमली को घर लाने के लिए हॉस्टल गया है. तो दूसरी तरफ मालिनी शादी के बाद पहली होली आदित्य के साथ खेलने के लिए एक्साइटेड है.

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मालिनी चाहती है कि इस खास मौके पर वो आदित्य से ही सिंदूर लगवाए लेकिन आदित्य  तो इमली के पास चला जाता है. ऐसे में घर में आदित्य के ना होने पर दुखी हो जाती है.

तो वहीं आदित्य इमली के हॉस्टल जाकर उससे कहता है घर चलो, इमली बार-बार मना करती है लेकिन वह इमली की कोई बात नहीं सुनता, उससे अपने दिल की बात कहता है फिर वो दोनों वहां जमकर होली खेलते हैं.

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आदित्य, इमली को लेकर घर जाता है, घरवाले इमली को देखकर बहुत खुश होते हैं. उधर मालिनी के मन में शक होता है पर वह भी इमली को गले लगाती है. सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या घरवालों के सामने इमली और आदित्य के रिश्ते की पोल खुलती है या नहीं.

‘अनुपमा’ एक्ट्रेस Rupali Ganguly का कोरोना रिपोर्ट आया पॉजिटिव, खुद को किया क्वारंटाइन

छोटे पर्दे का मशहूर सीरियल ‘अनुपमा’ की लीड एक्ट्रेस रूपाली गांगुली यानी अनुपमा कोरोना की शिकार हो चुकी हैं. जी हां, इसकी जानकारी रूपाली गांगुली ने खुद सोशल मीडिया पर दी है. उन्होंने ये बताया है कि उनका कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आया है.

दरअसल ‘अनुपमा’ एक्ट्रेस ने इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो शेयर की है. उन्होंने इस फोटो शेयर करते हुए कैप्शन में फनी अंदाज में कैप्शन लिखा है.

 

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उन्होंने ये लिखा कि मां कोरोना देवी तुम हो कि नहीं, यह क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, जब हुआ, तब हुआ, छोड़ो यह ना पूछो. इस तरह की पॉजिटिव मैं नहीं होना चाहती.

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इसके आगे रूपाली गांगुली ने सभी से रिक्वेस्ट की हैं कि वह सुरक्षित रहें. उन्होंने शो के मेकर्स और अपने फैमिली से माफी मांगी हैं.

 

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रूपाली ने ये भी लिखा है कि  आप सभी को परेशान करने के लिए माफी चाहती हूं. सभी प्रकार की सावधानियां बरतने के बावजूद पता नहीं, कहां से, कैसे हो गया.  मैंने अपने आपको क्वारंटाइन कर लिया है. मैं मेरे परिवार और अन्य लोगों से अलग हो गई हूं.

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खबर ये भी आ रही है कि शो के एक और सदस्य आशीष मेहरोत्रा यानी तोशु भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. हाल ही में पारस कलनावत भी कोरोना के शिकार हुए थे.

Serial Story- बुलबुला: भाग 2

‘‘आप समस्या का समाधान ढूंढ़ने के बजाय उसे और ज्यादा न उलझाइए, पापा.’’

‘‘हम ने अपनी बात कह दी है. न जेवर बिकेंगे, न फ्लैट.’’

‘‘फिर मेरा कर्ज कैसे उतरेगा, सीमा?’’ परेशान राकेश की आंखों में अपनी पत्नी से ये सवाल पूछते हुए डर के भाव साफ पढ़े जा सकते थे.

‘‘मुझे नहीं पता,’’ सीमा ने फर्श को ताकते हुए रूखे से स्वर में जवाब दे दिया.

‘‘ऐसा मत कहो, प्लीज. मेरी कमाई से ही तो जेवर और फ्लैट खरीदा गया है. आज बुरे वक्त में उन्हें बेचने की जरूरत आ पड़ी है, तो…’’

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‘‘आप भूल रहे हैं कि मैं भी नौकरी करती हूं. आज हर महीने मुझे भी 20 हजार की पगार मिलती है. जो भी हमारे पास है उस को हासिल करने में मेरा भी योगदान रहा है और वह सब मैं दोनों बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के काम में ही लाऊंगी.’’

‘‘अगर मैं कर्ज नहीं चुका पाया तो मुझे जेल जाना पड़ेगा. इतना भारी अपमान मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा, सीमा.’’

‘‘तब आप उस अपमान से बचने का रास्ता ढूंढ़ो. आप की समस्या को हल करने की काबिलीयत और समझ मुझ में नहीं है. न ही ऐसा करना मेरी जिम्मेदारी है,’’ बेहद गंभीर नजर आ रही सीमा अपना फैसला सुना कर झटके से उठी और मकान के अंदर चली गई.

राकेश अपने दोनों बच्चों से 5-10 मिनट बातें कर के लुटापिटा सा अपने ससुर के घर से बाहर निकल आया.

बाहर से खाना खाए बिना वह घर पहुंच गया. उस का मन बहुत दुखी और परेशान था. आंतरिक तनाव को कम करने के लिए उस ने शराब पीनी शुरू कर दी.

इस वक्त उसे अपना आर्थिक संकट नहीं बल्कि सीमा की बेरुखी और परायापन बहुत ज्यादा कष्ट पहुंचा रहे थे.

मैं ने कौन सा सुख सीमा को नहीं दिया? उस की खुशी की खातिर मैं ने अपने घर वालों से संबंध तोड़ दिए थे. आज इसी सीमा ने मुझे डूबने को अकेला छोड़ दिया. जेवरों और फ्लैट की खातिर उस ने पति का साथ न देने का फैसला कितनी आसानी से कर लिया. हमारा रिश्ता कितना कमजोर निकला. मुझे नफरत है उस से. ऐसे विचारों से उलझा राकेश एक के बाद एक शराब के गिलास खाली किए जा रहा था.

अचानक मोबाइल की घंटी बजी तो उसे उठा कर नंबर देखने लगा. गांव से उस की मां आरती का फोन था जो गांव में अपने सब से छोटे बेटे के पास रहती थीं.

नशे से थरथराती आवाज में राकेश ने अपनी मां से बातें कीं. मां की आवाज सुन कर राकेश अचानक ही बेहद भावुक हो उठा था.

‘‘तुम सब का क्या हालचाल है?’’ मां ने यह सवाल पूछ कर अपने बड़े बेटे के दिल पर लगे जख्म को और हरा कर दिया.

‘‘तेरा यह नालायक बेटा बहुत दुखी और अकेला महसूस कर रहा है, मां. आज तो मुझे अपनी जिंदगी ही सब से बड़ा बोझ लग रही है,’’ अचानक ही राकेश की आंखों में आंसू छलक आए तो वह खुद ही हैरान हो उठा था.

‘‘ऐसी गलत बात मुंह से मत निकाल, बेटा. बहू कहां है?’’

‘‘मर गई तुम्हारी बहू, मां.’’

‘‘चुप कर. मेरी बात करा उस से.’’

‘‘वह मुझे अकेला छोड़ कर अपने बाप के घर चली गई है, मां. दोनों बच्चे भी साथ ले गई…यह अकेला घर मुझे काट खाने को आ रहा है, मां.’’

‘‘अपने घर क्यों गई है वह? तुम में झगड़ा हुआ है क्या?’’

‘‘मां, वह अपने स्वार्थ के खातिर मुझे छोड़ गई. मेरा बिजनेस डूब रहा है, तो वह अब क्यों रहेगी मेरे पास? पहले जैसे मेरी गरीब मां और छोटे भाई उसे बोझ लगते थे, वैसे ही अब मैं उसे बोझ लगने लगा हूं. मां…वह मुझे अकेला छोड़ कर भाग गई है.’’

‘‘तू परेशान मत हो, मैं कल आ कर उसे समझाऊंगी तो फौरन वापस घर लौट आएगी.’’

‘‘मैं अब उस की शक्ल भी नहीं देखना चाहता हूं, मां. उसे अपने पति से नहीं, सिर्फ दौलत से प्यार है. उस ने मेरी सुखशांति को नजरअंदाज कर जेवर और फ्लैट चुना. समाज में तड़कभड़क वाली जिंदगी जीने की शौकीन उस औरत को मैं इस घर में कदम नहीं रखने दूंगा.’’

‘‘अपना गुस्सा थूक दे, राकेश. अपने बच्चों की खुशियों की खातिर तुम दोनों को साथ रहना ही होगा.’’

‘‘मां, तू उस औरत की तरफदारी क्यों कर रही है जिसे तू फटी आंख कभी नहीं भाई? जिस ने तेरा मेरे घर में घुसना बंद करा दिया, तू उस की चिंता क्यों कर रही है?’’

‘‘बच्चे नादानी करें तो क्या बड़े भी नासमझी दिखा कर उन का अहित सोचने लगें, बेटा?’’

‘‘मां, मुझे अपनी अतीत की गलतियां सोचसोच कर इस वक्त रोना आ रहा है. मैं सीमा के स्वार्थी स्वभाव को कभी पहचान नहीं पाया. उस के कहे में आ कर मुझे अपनी मां और छोटे भाइयों से दूर नहीं होना चाहिए था.’’

‘‘तू कहां हम से दूर है. तेरे दोनों भाई तेरी बड़ी इज्जत करते हैं. बहू से छिपा कर तू ने कई बार उन दोनों की रुपएपैसों से सहायता नहीं की है क्या?’’

‘‘आज रुपयापैसा भी नहीं रहा है मेरे पास, मां. सारा बिजनेस चौपट हो गया है. वह स्वार्थी औरत मेरे ही रुपयों से खरीदे जेवर और फ्लैट बेचने को तैयार नहीं है. उस की नजर तो इस मकान पर लगी है, पर मैं ऐसा स्वार्थी नहीं जो अपने छोटे भाइयों का हक मार कर यह मकान हड़प लूं…मुझे मर जाना मंजूर है, पर ऐसा गलत काम मैं कभी नहीं करूंगा, मां.’’

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‘‘तू ने मरने की बात अब मुंह से निकाली तो तू मेरा मरा मुंह देखेगा.’’

‘‘ऐसा मत कह, मां.’’

‘‘तो तू भी गलत मत बोल.’’

‘‘नहीं बोलूंगा, मां.’’

‘‘देख बेटा, अब और शराब मत पीना. तुझे मेरी सौगंध है.’’

‘‘तुझे वचन देता हूं मां, अब और शराब नहीं पीऊंगा.’’

‘‘फ्रिज में कुछ रखा हो तो खा कर सो जा.’’

‘‘अच्छा, मां.’’

‘‘बेकार की बातें बिलकुल मत सोच. मैं कल सुबह तुम से मिलने आऊंगी.’’

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क्वार्टर: धीमा को क्या मिल पाया मकान

कुंजू प्रधान को घर आया देख कर धीमा की खुशी का ठिकाना न रहा. धीमा की पत्नी रज्जो ने फौरन बक्से में से नई चादर निकाल कर चारपाई पर बिछा दी.

कुंजू प्रधान पालथी मार कर चारपाई पर बैठ गया.

‘‘अरे धीमा, मैं तो तुझे एक खुशखबरी देने चला आया…’’ कुंजू प्रधान ने कहा, ‘‘तेरा सरकारी क्वार्टर निकल आया है, लेकिन उस के बदले में बड़े साहब को कुछ रकम देनी होगी.’’

‘‘रकम… कितनी रकम देनी होगी?’’ धीमा ने पूछा.

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‘‘अरे धीमा… बड़े साहब ने तो बहुत पैसा मांगा था, लेकिन मैं ने तुम्हारी गरीबी और अपना खास आदमी बता कर रकम में कटौती करा ली थी,’’ कुंजू प्रधान ने कहा.

‘‘पर कितनी रकम देनी होगी?’’ धीमा ने दोबारा पूछा.

‘‘यही कोई 5 हजार रुपए,’’ कुंजू प्रधान ने बताया.

‘‘5 हजार रुपए…’’ धीमा ने हैरानी से पूछा, ‘‘इतनी बड़ी रकम मैं कहां से लाऊंगा?’’

‘‘अरे भाई धीमा, तू मेरा खास आदमी है. मुझे प्रधान बनाने के लिए तू ने बहुत दौड़धूप की थी. मैं ने किसी दूसरे का नाम कटवा कर तेरा नाम लिस्ट में डलवा दिया था, ताकि तुझे सरकारी क्वार्टर मिल सके. आगे तेरी मरजी. फिर मत कहना कि कुंजू भाई ने क्वार्टर नहीं दिलाया,’’ कुंजू प्रधान ने कहा.

‘‘लेकिन मैं इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगा?’’ धीमा ने अपनी बात रखी.

‘‘यह गाय तेरी है…’’ सामने खड़ी गाय को देखते हुए कुंजू ने कहा, ‘‘क्या यह दूध देती है?’’

‘‘हां, कुंजू भाई, यह मेरी गाय है और दूध भी देती है.’’

‘‘अरे पगले, यह गाय मुझे दे दे. इसे मैं बड़े साहब की कोठी पर भेज दूंगा. बड़े साहब गायभैंस पालने के बहुत शौकीन हैं. तेरा काम भी हो जाएगा.’’

कुंजू प्रधान की बात सुन कर धीमा ने रज्जो की तरफ देखा, मानो पूछ रहा हो कि क्या गाय दे दूं?

रज्जो ने हलका सा सिर हिला कर रजामंदी दे दी.

रज्जो की रजामंदी का इशारा पाते ही कुंजू प्रधान के साथ आए उस के एक चमचे ने फौरन गाय खोल ली.

रास्ते में उस चमचे ने कुंजू प्रधान से पूछा, ‘‘यह गाय बड़े साहब की कोठी पर कौन पहुंचाएगा?’’

‘‘अरे बेवकूफ, गाय मेरे घर ले चल. सुबह ही बीवी कह रही थी कि घर में दूध नहीं है. बच्चे परेशान करते हैं. अब घर का दूध हो जाएगा… समझा?’’ कुंजू प्रधान बोला.

‘‘लेकिन बड़े साहब और क्वार्टर?’’ उस चमचे ने सवाल किया.

‘‘मुझे न तो बड़े साहब से मतलब है और न ही क्वार्टर से. क्वार्टर तो धीमा का पहली लिस्ट में ही आ गया था. यह सब तो ड्रामा था.’’

कुंजू प्रधान दलित था. जब गांव में दलित कोटे की सीट आई, तो उस ने फौरन प्रधानी की दावेदारी ठोंक दी थी, क्योंकि अपनी बिरादरी में वही तो एक था, जो हिंदी में दस्तखत कर लेता था.

उधर गांव के पहले प्रधान भगौती ने भी अपने पुराने नौकर लालू, जो दलित था, का परचा भर दिया था, क्योंकि भगौती के कब्जे में काफी गैरकानूनी जमीन थी. उसे डर था, कहीं नया प्रधान उस जमीन के पट्टे आवंटित न करा दे.

इस जमीन के बारे में कुंजू भी अच्छी तरह जानता था, तभी तो उस ने चुनाव प्रचार में यह खबर फैला दी थी कि अगर वह प्रधान बन गया, तो गांव वालों के जमीन के पट्टे बनवा देगा.

जब यह खबर भगौती के कानों में पड़ी, तो उस ने फौरन कुंजू को हवेली में बुलवा लिया था, क्योंकि भगौती अच्छी तरह जानता था कि अगला प्रधान कुंजू ही होगा.

कुंजू और भगौती में समझौता हो गया था. बदले में भगौती ने कुंजू को 50 हजार रुपए नकद व लालू की दावेदारी वापस ले ली थी. लिहाजा, कुंजू प्रधान बन गया था.

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आज धीमा के क्वार्टर के लिए नींव की खुदाई होनी थी. रज्जो ने अगरबत्ती जलाई, पूजा की. धीमा ने लड्डू बांट कर खुदाई शुरू करा दी थी.

नकेलु फावड़े से खुदाई कर रहा था, तभी ‘खट’ की आवाज हुई. नकेलु ने फौरन फावड़ा रोक दिया. फिर अगले पल कुछ सोच कर उस ने दोबारा उसी जगह पर फावड़ा मारा, तो फिर वही ‘खट’ की आवाज आई.

‘‘कुछ है धीमा भाई…’’ नकेलु फुसफुसाया, ‘‘शायद खजाना है.’’

नकेलु की आंखों में चमक देख कर धीमा मुसकराया और बोला, ‘‘कुछ होगा तो देखा जाएगा. तू खोद.’’

‘‘नहीं धीमा भाई, शायद खजाना है. रात में खोदेंगे, किसी को पता नहीं चलेगा. अपनी सारी गरीबी खत्म हो जाएगी,’’ नकेलु ने कहा.

‘‘कुछ नहीं है नकेलु, तू नींव खोद. जो होगा देखा जाएगा.’’

नकेलु ने फिर फावड़ा मारा. जमीन के अंदर से एक बड़ा सा पत्थर निकला. पत्थर पर एक आकृति उभरी हुई थी.

‘‘अरे, यह तो किसी देवी की मूर्ति लगती है,’’ सड़क से गुजरते नन्हे ने कहा.

फिर क्या था. मूर्ति वाली खबर गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई और वहां पर अच्छीखासी भीड़ जुट गई.

‘‘अरे, यह तो किसी देवी की मूर्ति है…’’ नदंन पंडित ने कहा, ‘‘देवी की मूर्ति धोने के लिए कुछ ले आओ.’’

नदंन पंडित की बात का फौरन पालन हुआ. जुगनू पानी की बालटी ले आया.

बालटी में पानी देख कर नदंन पंडित चिल्लाया, ‘‘अरे बेवकूफ, पानी नहीं गाय का दूध ले कर आ.’’

नदंन पंडित का इतना कहना था कि जिस के घर पर जितना गाय का दूध था, फौरन उतना ही ले आया.

गांव में नदंन पंडित की बहुत बुरी हालत थी. उस की धर्म की दुकान बिलकुल नहीं चलती थी. आज से उन्हें अपना भविष्य संवरता लग रहा था.

नंदन पंडित ने मूर्ति को दूध से अच्छी तरह से धोया, फिर मूर्ति को जमीन पर गमछा बिछा कर 2 ईंटों की टेक लगा कर रख दिया. उस के बाद 10 रुपए का एक नोट रख कर माथा टेक दिया.

इस के बाद नंदन पंडित मुुंह में कोई मंत्र बुदबुदाने लग गया था. लेकिन उस की नजर गमछे पर रखे नोटों पर टिकी थी. गांव वाले बारीबारी से वहां माथा टेक रहे थे.

धीमा और रज्जो यह सब बड़ी हैरानी से देख रहे थे. उन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा.

‘‘यह देवी की जगह है, यहां पर मंदिर बनना चाहिए,’’ भीड़ में से कोई बोला.

‘हांहां, मंदिर बनना चाहिए,’ समर्थन में कई आवाजें एकसाथ उभरीं.

दूसरे दिन कुंजू प्रधान के यहां सभा हुई. सभा में पूरे गांव वालों ने मंदिर बनाने का प्रस्ताव रखा और आखिर में यही तय हुआ कि मंदिर वहीं बनेगा, जहां मूर्ति निकली है और धीमा को कोई दूसरी जगह दे दी जाएगी.

धीमा को गांव के बाहर थोड़ी सी जमीन दे दी गई, जहां वह फूंस की झोंपड़ी डाल कर रहने लगा था.

धीमा अब तक अच्छी तरह समझ चुका था कि सरकारी क्वार्टर के चक्कर में उस की पुश्तैनी जमीन भी हाथ से निकल चुकी है.

मंदिर बनने का काम इतनी तेजी से चला कि जल्दी ही मंदिर बन गया. गांव वालों ने बढ़चढ़ कर चंदा दिया था.

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आज मंदिर में भंडारा था. कई दिनों से पूजापाठ हो रहा था. नंदन पंडित अच्छी तरह से मंदिर पर काबिज हो चुका था.

खुले आसमान के नीचे फूंस की झोंपड़ी के नीचे बैठा धीमा अपने बच्चों को सीने से लगाए बुदबुदाए जा रहा था, ‘‘वाह रे ऊपर वाले, इनसान की जमीन पर इनसान का कब्जा तो सुना था, मगर कोई यह तो बताए कि जब ऊपर वाला ही इनसान की जमीन पर कब्जा कर ले, तो फरियाद किस से करें?’’

Serial Story- बुलबुला: भाग 3

उसे अपनी मां को दिया वचन याद रहा और उस ने शराब नहीं पी. नशे में होने के बावजूद उसे जल्दी से नींद नहीं आई थी. सीमा से जुड़ी बहुत सी बीती घटनाओं को याद करते हुए वह कभी गुस्से तो कभी दुख और अफसोस के भावों से भर जाता. अपने दोनों बच्चे उसे बहुत याद आ रहे थे. अपनी जिंदगी को समाप्त कर लेने का भाव कई बार उस के मन में उठा, लेकिन बच्चों के भविष्य के प्रति अपने उत्तरदायित्व को महसूस करते हुए उस ने आत्महत्या के विचार को अपने मन में मजबूत जड़ें नहीं जमाने दी थीं.

अगले दिन सुबह अपनी मां और दोनों छोटे भाइयों के आने पर ही राकेश की नींद टूटी थी. उस की चिंता ने इन तीनों के चेहरों पर तनाव और घबराहट के भाव पैदा किए हुए थे.

मां मकान की रजिस्ट्री साथ लाई थीं. अपने दोनों छोटे बेटों उमेश और नरेश की रजामंदी से उस ने मकान बेचने के लिए वह रजिस्ट्री राकेश को सौंप दी.

‘‘बेटा, मकान तो फिर बन जाते हैं, पर मैं ने अपना बेटा खो दिया तो उसे कहां से लाऊंगी? इस शहर में तू कुछ भी ले कर नहीं आया था. फिर तू ने अपनी लगन और मेहनत से लाखों कमाए. आज बाजार में मंदी आई है तो ज्यादा दुखी मत हो. यह खराब वक्त भी जरूर बीत जाएगा. मकान बेच कर तू अपने सिर पर बना कर्जे का बोझ फौरन कम कर,’’ अपने बड़े बेटे का प्यार से माथा चूमते हुए उन की पलकें नम हो उठी थीं.

अपने दोनों छोटे भाइयों को गले लगाने के बाद राकेश एक नए उत्साह, हौसले और आत्मविश्वास के साथ आफिस जाने को घर से निकला.

‘तू इस शहर में कुछ भी तो ले कर नहीं आया था,’ अपनी मां के मुंह से निकले इस वाक्य को बारबार मन में दोहरा कर राकेश व्यापार में हुए भारी घाटे के सदमे से खुद को उबरता देख हलका महसूस कर रहा था.

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उस दिन वह आफिस में बेहद व्यस्त रहा. उसे नुकसान पहुंचाने वाले कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने पड़े, पर उन्हें लेते हुए उस का न कलेजा कांपा, न मन को पीड़ा हुई.

उस दिन रात 8 बजे के करीब जब राकेश अपनी ससुराल पहुंचा तो कई हफ्तों से उस के मन पर बना चिंता और तनाव का कोहरा बहुत हद तक छंट चुका था.

राकेश के होंठों पर मुसकान और हाथों में मिठाई का डब्बा देख सीमा और उस के घर वाले असमंजस का शिकार हो गए. अपने बच्चों के साथ हंसताबोलता राकेश उन के लिए पहेली बन गया था. हैरानी के मारे वे अपने मन में उस के प्रति बसे नाराजगी और शिकायत के भावों को भुला ही बैठे.

‘‘तुम्हारे जेवर और फ्लैट अब सुरक्षित हैं, सीमा. हमारे बीच बनी झगड़े की जड़ नष्ट हो गई है. इसलिए सारा सामान समेट कर घर लौटने की तैयारी करो,’’ अपनी पत्नी को ऐसा आदेश देते हुए राकेश रहस्यमय अंदाज में मुसकरा रहा था.

‘‘मार्किट में तो कोई बदलाव आया नहीं है. फिर आप ने कैसे सारी समस्या हल की है?’’ सोमनाथजी ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछा.

‘‘मैं ने जो किया है उसे जान कर आप सब क्या करेंगे?’’

‘‘हम यह जानकारी इसलिए चाहते हैं कि कल को तुम सीमा के साथ जेवरों व फ्लैट को ले कर फिर से झगड़ा और मारपीट न शुरू कर दो.’’

‘‘तब सुनिए, मैं ने तांबा घाटे में ही बेचने का फैसला करने के साथसाथ मकान को एक बैंक के पास गिरवी रख दिया है.’’

‘‘तुम्हारी मां और दोनों भाई मकान को गिरवी रख देने के लिए राजी हो गए हैं?’’

‘‘बिलकुल हो गए हैं. आखिर उन का मुझ से खून का रिश्ता है. मैं जेल जाऊं या आत्महत्या कर लूं, ऐसी कल्पना ही उन के दिलों को बुरी तरह से कंपा गई थी. आप सब लोग उन की भावनाओं को नहीं समझ सकेंगे,’’ राकेश के स्वर में मौजूद व्यंग्य के भावों से उस के सासससुर, साले व पत्नी तिलमिला उठे.

सीमा ने चिढ़ कर सवाल पूछा, ‘‘अपना बिजनेस चौपट कर के अब आगे क्या करने का इरादा है?’’

‘‘माई डियर, अपने कैरियर की शुरुआत मैं ने कमीशन एजेंट के काम से की थी और अब फिर से वही बन जाऊंगा. बहुत लंबाचौड़ा व्यापार फैलाया था, पर वह सारी सफलता पानी का बुलबुला साबित हुई.

‘‘वह बुलबुला बड़ा रंगीन था और अन्य लाखोंकरोड़ों लोगों की तरह मैं किसी पागल की तरह उस के पीछे दौड़ा. जब अपनी नियति के अनुरूप बुलबुला अचानक फूटा तो मैं ने अपने होशोहवास घबरा कर खो दिए थे.

‘‘लेकिन अब मेरी समझ में आ गया है कि बुलबुले तो हमेशा अचानक ही फूटते हैं. लालच के कारण जैसा बेवकूफ मैं इस बार बना हूं वैसा फिर कभी नहीं बनूंगा,’’ राकेश ने नाटकीय अंदाज में अपने कान पकड़े और फिर ठहाका मार कर हंस पड़ा.

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‘‘यों हंस कर अपना सबकुछ बरबाद होने की खुशी जाहिर कर रहे हो क्या? समाज में अब कितनी बेइज्जती के साथ जीना पड़ेगा, जरा इस पर भी कुछ सोचविचार करो,’’ सीमा का चेहरा एकाएक ही गुस्से से लाल हो उठा.

राकेश ने किसी दार्शनिक के अंदाज में जवाब दिया, ‘‘सीमा, बाजार की भारी उथलपुथल ने लाखों लोगों को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है. ऐसे संकट का सामना इनसान अलगअलग ढंग से करता है. जो लोग समाज की नजरों में चमकदमक की जिंदगी जीना महत्त्वपूर्ण मानते हैं वे ऐसे कठिन समय में टूट कर बिखर जाते हैं. उन्हें हार्टअटैक पड़ते हैं, वे आत्महत्या करते हैं.

‘‘दूसरी तरह के लोग बदली परिस्थितियों का सामना हौसले और आत्मविश्वास के साथ करते हैं. वे अपनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के महत्त्व को समझते हैं. अपनों का सहारा और प्रेम उन की ताकत होता है. देखो, मेरी मां और भाइयों ने मेरा साथ दे कर मुझे संकट से निकाल ही लिया है न. जीवन की खुशियां और सुखशांति ऐसे रिश्तों से बनती हैं न कि धनदौलत के अंबार से…पर यह बात शायद तुम नहीं समझोगी.’’

सीमा से कोई जवाब देते नहीं बना. अचानक गहरी उदासी ने उसे घेर लिया और वह गरदन झुकाए लौटने की तैयारी करने कमरे में चली गई.

Serial Story- बुलबुला: भाग 1

सिर्फ 3 महीने के अंदर राकेश की हंसीखुशी से भरी दुनिया जबरदस्त उथलपुथल का शिकार हो गई.

विश्व बाजार में आई आर्थिक मंदी से उस का तांबे का व्यापार भी प्रभावित हुआ था. अपनी पूंजी डूब जाने के साथसाथ सिर पर भारी कर्जा और हो गया था. कहीं से भी आगे कर्ज मिलने की उम्मीदें खत्म हो गई थीं. बाजार में पैसा था ही नहीं.

ऐसे कठिन समय में पत्नी सीमा भी उस का साथ छोड़ कर दोनों बच्चों के साथ मायके चली गई. उसे दुख इस का भी था कि ऐसा करने की न तो सीमा ने उस से इजाजत ली और न उसे इस कदम को उठाने की जानकारी ही दी.

जिस औरत ने 18 साल पहले अग्नि को साक्षी मान कर हमेशा सुखदुख में उस का साथ निभाने की सौगंध खाई थी, उस से ऐसे रूखे व कठोर व्यवहार की कतई उम्मीद राकेश को नहीं थी.

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जबरदस्त तनाव से जूझ रहे राकेश का मन अकेले घर में घुसने को राजी नहीं हुआ, तो वह सीमा को मनाने के लिए अपनी ससुराल चला आया.

वहां उस की बेटी शिखा और बेटा रोहित ही उसे देख कर खुश हुए. सीमा, उस के मातापिता और भैयाभाभी शुष्क और नाराजगी भरे अंदाज में उस से मिले.

राकेश खुद को अंदर से बड़ा थका और टूटा हुआ सा महसूस कर रहा था. इस वक्त वह नींद की गोली खा कर सोना चाहता था पर मजबूरन उसे अपनी पत्नी व ससुराल वालों के साथ बहस में उलझना पड़ा.

‘‘क्या हम ने अपनी बेटी तुम्हें मारपीट कर के दुखी रखने के लिए दी थी?’’ बड़े आक्रामक अंदाज में यह सवाल पूछ कर उस के ससुर सोमनाथजी ने वार्तालाप शुरू किया.

‘‘आजकल मैं बहुत टेंशन में जी रहा हूं, पापा. कल रात मेरा गुस्से में सीमा पर जो हाथ उठा, उस के लिए मैं माफी चाहता हूं,’’ बात को आगे न बढ़ाने के इरादे से राकेश ने शांत लहजे में फौरन क्षमा मांग ली.

‘‘जीजाजी, आप ने तो पिछले कई महीनों से दीदी का जीना हराम कर रखा है. न आप से बिजनेस संभलता है और न शराब. गलतियां आप की और गालियां सुनें दीदी. नहीं, हम दीदी को आप के साथ और अत्याचार सहने के लिए नहीं भेजेंगे,’’ उस के साले समीर ने गुस्से से भरी आवाज में ये फैसला राकेश को सुना दिया.

‘‘तुम आग में घी डाल कर मेरी घरगृहस्थी को तोड़ने की कोशिश मत करो, समीर,’’ राकेश ने अपने साले को डांट दिया.

‘‘अभी घर न लौटने का फैसला मेरा है, राकेश,’’ इन शब्दों को मुंह से निकाल कर सीमा ने राकेश को चौंका दिया.

‘‘परेशानियों से भरे इस समय में क्या तुम मेरा साथ छोड़ रही हो,’’ राकेश एकदम से भावुक हो उठा,  ‘‘मुझे बच्चों से अगर दूर रहना पड़ा तो मैं पागल हो जाऊंगा, सीमा.’’

‘‘और अगर मैं तुम्हारे साथ रही तो मेरे दिमाग की नस फट जाएगी,’’ सीमा ने पलट कर क्रोधित लहजे में जवाब दिया.

‘‘बच्चों जैसी बातें मत करो. इस वक्त तुम्हें मेरा साथ देना चाहिए या मेरी परेशानियां और बढ़ानी चाहिए?’’

‘‘राकेश, तुम एक बात अच्छी तरह से समझ लो,’’ सोमनाथजी बीच में बोल पड़े, ‘‘बिजनेस में हुए घाटे को पूरा करने के लिए सीमा अपने जेवर नहीं बेचेगी. उस के नाम पर जो फ्लैट है, उस को बेचने की बात भी तुम भूल जाओ.’’

‘‘इन को बेचे बिना मेरी समस्याओं का अंत नहीं होगा, पापा. इस महत्त्वपूर्ण बात को आप सब क्यों नहीं समझ रहे हैं?’’ राकेश गुस्सा हो उठा.

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‘‘तुम्हारे बिजनेस में पहले ही लाखों डूब चुके हैं. ये जेवर ही भविष्य में शिखा की शादी और रोहित की पढ़ाई के काम आएंगे. कल को सिर पर सुरक्षित छत उस फ्लैट से ही मिलेगी तुम सब को. तुम जिस मकान में रह रहे हो, उसे क्यों नहीं बेच देते हो,’’ राकेश की सास सुमन ने तीखे लहजे में सवाल पूछा.

‘‘अपने इस सवाल का जवाब आप को मालूम है, मम्मी. इस मकान में मेरे दोनों छोटे भाइयों का भी हिस्सा है. ये मकान मेरे पिता ने बनाया था.’’

‘‘लेकिन इस की देखभाल पर हमेशा सिर्फ तुम ने अकेले ही खर्च किया है. तुम्हारे दोनों भाइयों को रहने के लिए इस मकान की जरूरत भी नहीं. मेरी समझ से तुम्हें इस मकान को बेचने का पूरा अधिकार है.’’

‘‘भाइयों को हिस्सा दे कर जो मुझे मिलेगा, उस से मेरा कर्ज नहीं…’’

‘‘तब तुम भाइयों को उन का हिस्सा अभी मत दो,’’ सोमनाथजी ने उसे टोकते हुए सलाह दी.

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भोजपुरी एक्ट्रेस Monalisa हुईं कोरोना की शिकार, रोकी गई Namak Ishq ka की शूटिंग

एंटरटेनमेंट जगत में कई सितारे कोरोना वायरस का शिकार हो चुके हैं तो इसी बीच अब खबर आ रही है कि भोजपुरी एक्ट्रेस मोनालिसा कोरोना की शिकार हो चुकी है. मोनालिसा इन दिनों सीरियल नमक इश्क में नजर आ रही है.

रिपोर्ट के मुताबिक मोनालिसा की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. और इसी वजह से सीरियल नमक इश्क का शूटिंग को रोक दिया है. इतना ही नहीं शो की पूरी टीम का कोरोना वायरस टेस्ट करवाया गया है जिनमें कुछ लोगों की रिपोर्ट निगेटिव आई है.

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हालांकि मोनालिसा ने इस खबर पर किसी तरह का कोई बयान दिया है. मोनालिसा के फैंस सोशल मीडिया के जरिए उनके तबियत के बारे में जानने के लिए बेताब हैं.

 

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बता दें कि मोनालिसा से पहले  एक्टर अमर उपाध्याय और प्रियाल महाजन को कोरोना वायरस हो गया था. इसके अलावा सीरियल गुम है किसी के प्यार फेम नील भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा को भी कोरोना हो गया था.

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