‘‘अरी ओ लल्लन की बहू, देख तेरी चिट्ठी आई है...’’

यह सुन कर कुएं से पानी भर रही खूबसूरत सी लड़की ने अपनी कजरारी आंखों से पीछे मुड़ कर देखा कि किस में इतनी हिम्मत आ गई जो उस के ससुर का नाम इस तरह पुकार रहा है. यों तो उस की शादी के कुछ ही महीने बीते थे, पर यह वह अच्छी तरह जानती थी कि उस के ससुर की घर और गांव में बड़ी इज्जत थी.

उस के ससुर 2 जवान बेटों के बाप हैं और दोनों बेटे फौज में हवलदार हैं. वह यानी सरला बड़े बेटे की बहू है और छोटे बेटे की अभी शादी नहीं हुई है. बेटों की मां की मौत दोनों के बचपन में ही हो गई थी.

सरला बोली, ‘‘हां, बोलो डाकिया काका, क्यों पुकार रहे हो?’’

‘‘अरी बहू, बात ही ऐसी है कि हम तेरे घर जाने का इंतजार न कर सके. तू मुझे यहां पानी भरती दिखाई दी तो मैं यहीं आ गया. तेरे पति की चिट्ठी आई है और वह भी तेरे नाम से.’’

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इतना सुनते ही सरला शरमा गई और चिट्ठी को उन के हाथ से ले कर बड़े प्यार से पलटपलट कर देखने लगी और चिट्ठी को छाती में ऐसे भींच लिया जैसे राघव ही आ गया हो.

सरला मुश्किल से राघव के साथ एक महीना रह पाई थी. इस के बाद राघव को सरहद से बुलावा आ गया. बस एक बार गांव के पंचायत औफिस से फोन से बात हुई थी. पर वहां साथ में बाबा थे तो सरला बस सुनती रही, कुछ कह न पाई.

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