बलि और हैवानियत का गंदा खेल

हमारे देश में सैकड़ों सालों से अंधविश्वास चला आ रहा है. दिमाग में कहीं न कहीं यह झूठ घर करा दिया गया है कि अगर गड़ा हुआ पैसा हासिल करना है, तो किसी मासूम की बलि देनी होगी. जबकि हकीकत यह है कि यह एक ऐसा झूठ है, जो न जाने कितनी किताबों में लिखा गया है और अब सोशल मीडिया में भी फैलता चला जा रहा है.

ऐसे में कमअक्ल लोग किसी की जान ले कर रातोंरात अमीर बनना चाहते हैं. मगर पुलिस की पकड़ में आ कर जेल की चक्की पीसते हैं और ऐसा अपराध कर बैठते हैं, जिस की सजा तो मिलनी ही है.

सचाई यह है कि यह विज्ञान का युग है. अंधविश्वास की छाई धुंध को विज्ञान के सहारे साफ किया जा सकता है, मगर फिर अंधविश्वास के चलते एक मासूम बच्चे की जान ले ली गई.

देश के सब से बड़े धार्मिक प्रदेश कहलाने वाले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में एक तथाकथित तांत्रिक ने2 नौजवानों के साथ मिल कर एक 8 साल के मासूम बच्चे की गला रेत कर हत्या कर दी थी और तंत्रमंत्र का कर्मकांड किया गया था. उस बच्चे की लाश को गड्डा खोद कर छिपा दिया गया था.

ऐसे लोगों को यह लगता है कि अंधविश्वास के चलते किसी की जान ले कर के वे बच जाएंगे और कोई उन्हें पकड़ नहीं सकता, मगर ऐसे लोग पकड़ ही लिए जाते हैं. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.

अंधविश्वास के मारे इन बेवकूफों को लगता है कि ऐसा करने से जंगल में कहीं गड़ा ‘खजाना’ मिल जाएगा, मगर आज भी ऐसे अनपढ़ लोग हैं, जिन्हें लगता है कि जादूटोना, तंत्रमंत्र या कर्मकांड के सहारे गड़ा खजाना मिल सकता है.

समाज विज्ञानी डाक्टर संजय गुप्ता के मुताबिक, आज तकनीक दूरदराज के इलाकों तक पहुंच चुकी है और इस के जरीए ज्यादातर लोगों तक कई भ्रामक जानकारियां पहुंच जाती हैं. मगर जिस विज्ञान और तकनीक के सहारे नासमझी पर पड़े परदे को हटाने में मदद मिल सकती है, उसी के सहारे कुछ लोग अंधविश्वास और लालच में बलि प्रथा जैसे भयावाह कांड कर जाते हैं, जो कमअक्ली और पढ़ाईलिखाई की कमी का नतीजा है.

डाक्टर जीआर पंजवानी के मुताबिक, कोई भी इनसान इंटरनैट पर अपनी दिलचस्पी से जो सामग्री देखतापढ़ता है, उसे उसी से संबंधित चीजें दिखाई देने लगती हैं, फिर पढ़ाईलिखाई की कमी और अंधश्रद्धा के चलते, जिस का मूल लालच है, अंधविश्वास के जाल में लोग उल?ा जाते हैं और अपराध कर बैठते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता सनद दास दीवान के मुताबिक, अपराध होने पर कानूनी कार्यवाही होगी, मगर इस से पहले हमारा समाज और कानून सोया रहता है, जबकि आदिवासी अंचल में इस तरह की वारदातें होती रहती हैं. लिहाजा, इस के लिए सरकार को सजग हो कर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए.

हाईकोर्ट के एडवोकेट बीके शुक्ला ने बताया कि एक मामला उन की निगाह में ऐसा आया था, जिस में एक मासूम की बलि दी गई थी. कोर्ट ने अपराधियों को सजा दी थी.

दरअसल, इस की मूल वजह पैसा हासिल करना होता है. सच तो यह है कि लालच में आ कर पढ़ाईलिखाई की कमी के चलते यह अपराथ हो जाता है.

लोगों को यह सम?ाना चाहिए कि किसी भी अपराध की सजा से वे किसी भी हालत में बच नहीं सकते और सब से बड़ी बात यह है कि ऐसे अपराध करने वालों को समाज को भी बताना चाहिए कि उन के हाथों से ऐसा कांड हो गया और उन्हें कुछ भी नहीं मिला, उन के हाथ खाली के खाली रह गए.

फूटती जवानी के डर और खुदकुशी की कसमसाहट

इसे जागरूकता की कमी कहें या फिर अनपढ़ता, लड़के हों या लड़कियां, एक उम्र आने पर उन के शरीर में कुछ बदलाव होते हैं और अगर ऐसे समय में सम?ादारी और सब्र का परिचय नहीं दिया जाए, तो जिंदगी में कुछ अनहोनी भी हो सकती है. ऐसे ही एक वाकिए में एक लड़की जब अपनी माहवारी के दर्द को सहन नहीं कर पाई और न ही अपनी मां को कुछ बता पाई, तो उस ने खुदकुशी का रास्ता चुन कर लिया.

यह घटना बताती है कि जवानी के आगाज का समय कितना ध्यान बरतने वाला होता है. ऐसे समय में कोई भी नौजवान भटक सकता है और मौत को गले लगा सकता है या फिर कोई ऐसी अनहोनी भी कर सकता है, जिस का खमियाजा उसे जिंदगीभर भुगतना पड़ सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि उस के बाद परिवार वाले अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाएंगे.

आज हम इस रिपोर्ट में ऐसे ही कुछ मामलों के साथ आप को और समाज को अलर्ट मोड पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. एक बानगी :

* 14 साल की उम्र आतेआते जब सुधीर की मूंछें निकलने लगीं, तो वह चिंतित हो गया. उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था कि उस के चेहरे पर ठीक नाक के नीचे मूंछें उगें और वह परेशान हो गया.

* 12 साल की उम्र में जब सोनाली को पहली दफा माहवारी हुई, तो वह घबरा गई. वह बड़ी परेशान हो रही थी. ऐसे में एक सहेली ने जब उसे इस के बारे में अच्छी तरह से बताया, तो उस के बाद ही वह सामान्य हो पाई.

* राजेश की जिंदगी में जैसे ही जवानी ने दस्तक दी, तो उसे ऐसेवैसे सपने आने लगे. वह सोच में पड़ गया कि यह क्या हो रहा है. बाद में एक वीडियो देख कर उसे सबकुछ सम?ा में आता चला गया.

* दरअसल, जिंदगी का यही सच है और सभी के साथ ऐसा समय या पल आते ही हैं. ऐसे में अगर कोई सब्र और सम?ादारी से काम न ले, तो वह मुसीबत में भी पड़ सकता है. लिहाजा, ऐसे

समय में आप को कतई शर्म नहीं करनी चाहिए और घबराना नहीं चाहिए, बल्कि इस दिशा में जागरूक होने की कोशिश करनी चाहिए.

आज सोशल मीडिया का जमाना है. आप दुनिया की हर एक बात को सम?ा सकते हैं और अपनी जिंदगी को सुंदर और सुखद बना सकते हैं. बस, आप को कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए, जो आप को नुकसान पहुंचा सकता हो.

डरी हुई लड़की की कहानी दरअसल, मुंबई से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है. वहां के मालवणी इलाके में रहने वाली

14 साल की लड़की रजनी (बदला हुआ नाम) ने अपनी पहली माहवारी के दौरान दर्दनाक अनुभव के बाद कथिततौर पर खुदकुशी कर ली थी. जब तक परिवार वालों ने यह देखा और सम?ा, तब तक बड़ी देर हो चुकी थी. उस की लाश घर में लटकी हुई मिली थी.

यह हैरानपरेशान करने वाला मामला मलाड (पश्चिम) के मालवणी इलाके में हुआ था, जहां रहने वाली 14 साल की एक लड़की रजनी की लाश रात में अपने घर के अंदर लोहे के एक एंगल से लटकी हुई पाई गई थी.

पुलिस के मुताबिक, वह नाबालिग लड़की अपने परिवार के साथ गावदेवी मंदिर के पास लक्ष्मी चाल में रहती थी. कथिततौर पर वह किशोरी माहवारी के बारे में गलत जानकारी होने के चलते तनाव में रहती थी. ऐसा लगता है कि उसे सही समय पर सटीक जानकारी नहीं मिल पाई होगी, तभी तो माना जा रहा है कि उस ने यह कठोर कदम उठा लिया होगा.

पुलिस के मुताबिक, देर शाम को जब घर में कोई नहीं था, तो उस लड़की ने खुदकुशी कर ली. जब परिवार वालों और पड़ोसियों को इस कांड के बारे में पता चला, तो वे उसे कांदिवली के सरकारी अस्पताल में ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.

मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अफसर ने कहा, ‘‘शुरुआती पूछताछ के दौरान लड़की के रिश्तेदारों ने बताया कि लड़की को हाल ही में पहली बार माहवारी आने के बाद दर्दनाक अनुभव हुआ था. इसे ले कर वह काफी परेशान थी और मानसिक तनाव में थी, इसलिए हो सकता है कि उस ने इस वजह से अपनी जान दे दी हो.’’

कुलमिला कर कह सकते हैं कि अगर उस लड़की को सही समय पर सही सलाह मिल जाती तो पक्का है कि वह खुदकुशी करने जैसा कड़ा कदम कभी नहीं उठाती. मांबाप को भी चाहिए कि ऐसे समय में वे बच्चों को सही सलाह दें या फिर उन्हें किसी माहिर डाक्टर के पास ले जाएं.

किशोरों की आत्महत्या : माता पिता दोषी कैसे?

यह सोच से बाहर है कि मांबाप के दबाव के चलते कोई बच्चा खुदकुशी कर ले, मगर समाज में अकसर ऐसी घटनाएं घट जाती हैं, जो एक सीख दी जाती हैं कि मांबाप को बच्चों के प्रति अपना बरताव अच्छा रखना चाहिए. हम कुछ ऐसी घटनाओं के साथ आप को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर हम मांबाप हैं, तो हमें बहुत ही सोचसमझ कर अपना बरताव उन के प्रति रखना होगा.

पहली घटना

बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में एक लड़के ने सिर्फ इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि मां उसे अकसर जल्दी उठने और हर काम समय से करने के लिए कहा करती थीं.

दूसरी घटना

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक लड़की में खुदकुशी कर ली. पुलिस की जांचपड़ताल में यह सामने आया कि मांबाप उस की पढ़ाई और ट्यूशन पर ज्यादा जोर दे रहे थे और उसे मोबाइल से भी दूर रखा जा रहा था.

तीसरी घटना

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक गांव में एक किशोर ने इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि मांबाप उसे अनुशासन का पाठ पढ़ाया करते थे.

ताजा मामले में मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में 17 साल एक लड़की ने कथिततौर से अपने बाप की शराब पीने की लत और मां के प्रति उस के हिंसक बरताव से परेशान हो कर खुदकुशी कर ली.

खरगोन के बड़वाह थाने के प्रभारी निर्मल श्रीवास ने बताया कि को रावत पलासिया गांव में एक किशोरी ने खुदकुशी कर ली. उन के मुताबिक, लड़की का एक तथाकथित सुसाइड नोट मिला है, जिस में उस ने तफसील से लिखा है कि उस के पिता शराब पीने के आदी हैं और अकसर उस की मां के साथ मारपीट करते हैं.

अफसर ने सुसाइड नोट का हवाला देते हुए बताया कि किशोरी ने पुलिस पर उस के पिता के खिलाफ शिकायत के बावजूद कार्यवाही न करने का भी आरोप भी लगाया. हालांकि, अभिवाहक ने पुलिस के खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि पुलिस ने लड़की के पिता के खिलाफ शिकायत पर कार्यवाही की और उस से अच्छे बरताव के लिए बौंड भरवाया है.

खरगोन के पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीना के मुताबिक, लड़की के पिता के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी. उन्होंने आगे कहा कि पुलिस ने पहले भी शिकायतों पर कार्यवाही की थी और उसे गिरफ्तार भी किया था. उन के मुताबिक, खुदकुशी करने वाली लड़की की छोटी बहन ने भी अपने पिता पर बहुत ज्यादा शराब पीने और उन की मां पर हमला करने का आरोप लगाया था.

इस सिलसिले में पुलिस अफसर विवेक शर्मा कहते हैं कि दरअसल शराब ही इस की खास वजह है.

डाक्टर जीआर पंजवानी कहते हैं कि अशिक्षा के चलते इस तरह की घटनाएं समाज में घट रही हैं और आज जागरूकता फैलाने की जरूरत है.

फूटती जवानी के डर और खुदकुशी की कसमसाहट

इसे जागरूकता की कमी कहें या फिर अनपढ़ता, लड़के हों या लड़कियां एक उम्र आने पर उन के शरीर में कुछ बदलाव होते हैं और अगर ऐसे समय में समझदारी और सब्र का परिचय नहीं दिया जाए, तो जिंदगी में कुछ अनहोनी भी हो सकती है. ऐसे ही एक वाकिए में एक लड़की जब अपनी माहवारी के दर्द को सहन नहीं कर पाई और न ही अपनी मां को कुछ बता पाई, तो उस ने खुदकुशी का रास्ता चुन कर लिया.

यह घटना बताती है कि जवानी के आगाज का समय कितना ध्यान बरतने वाला होता है. ऐसे समय में कोई भी नौजवान भटक सकता है और मौत को गले लगा सकता है या फिर कोई ऐसी अनहोनी भी कर सकता है, जिस का खमियाजा उसे जिंदगीभर भुगतना पड़ सकता है. सब से बड़ी बात यह है कि उस के बाद परिवार वाले अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाएंगे.

आज हम इस रिपोर्ट में ऐसे ही कुछ मामलों के साथ आप को और समाज को अलर्ट मोड पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. एक बानगी :

-14 साल की उम्र आतेआते जब सुधीर की मूंछ निकलने लगी, तो वह चिंतित हो गया. उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था कि उस के चेहरे पर ठीक नाक के नीचे मूंछ उगे और वह परेशान हो गया.

-12 साल की उम्र में जब सोनाली को पहली दफा माहवारी हुई, तो वह घबरा गई. वह बड़ी परेशान हो रही थी. ऐसे में एक सहेली ने जब उसे इस के बारे में अच्छी तरह से बताया, तो उस के ही बाद वह सामान्य हो पाई.

-राजेश की जिंदगी में जैसे ही जवानी ने दस्तक दी, तो उसे ऐसेवैसे सपने आने लगे. वह सोच में पड़ गया कि यह क्या हो रहा है. बाद में एक वीडियो देख कर उसे सबकुछ समझ में आता चला गया.

दरअसल, जिंदगी का यही सच है और सभी के साथ ऐसा समय या पल आते ही हैं. ऐसे में अगर कोई सब्र और समझदारी से काम न ले, तो वह मुसीबत में भी पड़ सकता है. लिहाजा, ऐसे समय में आप को कतई शर्म नहीं करनी चाहिए और घबराना नहीं चाहिए, बल्कि इस दिशा में जागरूक होने की कोशिश करनी चाहिए.

आज सोशल मीडिया का जमाना है. आप दुनिया की हर एक बात को समझ सकते हैं और अपनी जिंदगी को सुंदर और सुखद बना सकते हैं. बस, आप को कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए, जो आप को नुकसान पहुंचा सकता हो.

डरी हुई लड़की की कहानी

दरअसल, मुंबई से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है. मुंबई के मालवणी इलाके में रहने वाली 14 साल की लड़की रजनी (बदला हुआ नाम) ने अपनी पहली माहवारी के दौरान दर्दनाक अनुभव के बाद कथिततौर पर खुदकुशी कर ली थी. जब तक परिवार वालों ने यह देखा और समझा, तब तक बड़ी देर हो चुकी थी. उस की लाश घर में लटकी हुई मिली थी.

यह हैरानपरेशान करने वाला मामला मलाड (पश्चिम) के मालवणी इलाके में हुआ था, जहां रहने वाली 14 साल की एक लड़की रजनी की लाश रात में अपने घर के अंदर लोहे के एक एंगल से लटकी हुई पाई गई थी.

पुलिस के मुताबिक, वह नाबालिग लड़की अपने परिवार के साथ गावदेवी मंदिर के पास लक्ष्मी चाल में रहती थी. कथिततौर पर वह किशोरी माहवारी के बारे में गलत जानकारी होने के चलते तनाव में रहती थी. ऐसा लगता है कि उसे सही समय पर सटीक जानकारी नहीं मिल पाई होगी, तभी तो माना जा रहा है कि उस ने यह कठोर कदम उठा लिया होगा.

पुलिस के मुताबिक, देर शाम में जब घर में कोई नहीं था, तो उस लड़की ने खुदकुशी कर ली. जब परिवार वालों और पड़ोसियों को इस कांड के बारे में पता चला, तो वे उसे कांदिवली के सरकारी अस्पताल में ले गए, जहां डाक्टरों ने लड़की को मरा हुआ बता दिया.

मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अफसर ने कहा, “शुरुआती पूछताछ के दौरान लड़की के रिश्तेदारों ने बताया कि लड़की को हाल ही में पहली बार माहवारी आने के बाद दर्दनाक अनुभव हुआ था. इसे ले कर वह काफी परेशान थी और मानसिक तनाव में थी, इसलिए हो सकता है कि उस ने इस वजह से अपनी जान दे दी हो.”

कुलमिला कह सकते हैं कि अगर उस लड़की को सही समय पर सही सलाह मिल जाती, तो पक्का है कि वह खुदकुशी करने जैसा कड़ा कदम कभी नहीं उठाती. मांबाप को भी चाहिए कि ऐसे समय में वे बच्चों को सही सलाह दें या फिर उन्हें किसी माहिर डाक्टर के पास ले जाएं.

एक कुत्ते की मौत: युवती के फांसी लगाने का मनोविज्ञान

जी हां! यह एक सच्ची घटना है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जिला रायगढ़ में घटित घटना सौ फीसदी सच है. मामला पुलिस जांच में है इसलिए जो तथ्य सामने आए हैं उनकी बिनाह पर कहा जा सकता है कि एक युवती ने सचमुच अपने कुत्ते, जिसे वह “बाबू” कह कर पुकारती थी,की मौत के बाद अवसाद ग्रस्त होकर फांसी लगा आत्महत्या कर ली.

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला के गोरखा गांव निवासी दिलीप सिंह ने लगभग चार वर्ष पहले घर में एक कुत्ता लाया था. विगत दिनों कुछ दिनों की बीमारी के पश्चात कुत्ते की मृत्यु हो गई . इधर पालतू कुत्ते बाबू की मौत से दु:खी होकर युवती फांसी पर चढ़ गई. इस घटनाक्रम के पश्चात लोगों में यह जन चर्चा का विषय बना हुआ है और लोग चकित हैं. रायगढ़ जिले के पुलिस कप्तान संतोष सिंह ने बताया कि जिले के कोतरा रोड थाना क्षेत्र के अंतर्गत गोरखा गांव में पालतू कुत्ते की मौत से दुखी 21 वर्षीय प्रियांशु सिंह ने फांसी लगाकर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली. प्रियांशु स्थानीय महाविद्यालय में एम कॉम की छात्रा थी.

पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पुलिस को युवती की आत्महत्या की जानकारी मिली तब गोरखा गांव के लिए पुलिस दल रवाना किया गया तथा शव बरामद किया गया. ग्राम गोरखा गांव निवासी दिलीप सिंह के द्वारा करीब चार वर्ष पहले एक कुत्ता पाला गया था. इस दौरान युवा होती युवा होती प्रियांशु सिंह का अपने घरेलू पालतू कुत्ते से स्नेह बढ़ता चला गया और जब वह बिमार हुआ तब भी प्रियांशु बहुत दुखी रहा करती थी मगर किसी ने यह नहीं सोचा था कि कुत्ते की मौत के बाद प्रियांशु ऐसा सख्त कदम भी उठा सकती है. दरअसल, अक्सर इस तरह की घटनाएं घटती हैं मगर यह घटनाएं दुर्लभ होती हैं. ऐसे में आज हमारे इस लेख का विषय यह है कि इस घटनाक्रम के पीछे आखिर मनोविज्ञान क्या होता है और इससे कैसे बचा जा सकता है.

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हम साथ साथ हैं!

रायगढ़ जिला के पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह ने हमारे संवाददाता को जानकारी दी कि दिलीप सिंह की बेटी प्रियांशु कुत्ते बाबू की खुद देखभाल करती थी और कुत्ता अक्सर प्रियांशु के साथ ही रहता था. उन्होंने बताया कि लगभग 12 दिनों तक बीमार रहने के बाद विगत दिनों कुत्ते की मृत्यु हो गई . पालतू कुत्ते की अप्रत्याशित मौत का सदमा संभवतः प्रियांशु सिंह बर्दाश्त नहीं कर पाई अपने पालतू कुत्ते की मौत से प्रियांशु दु:खी थी. घटना दिवस सुबह सात बजे जब घर के सदस्य कुत्ते के शव को दफनाने की तैयारी कर रहे थे तब उन्होंने प्रियांशु को वहां नहीं देखा. बाद में जब परिजन प्रियांशु के कमरे में पहुंचे तब उन्होंने उसके शव को एक गंमछे से फांसी पर लटकते हुए पाया.

आत्महत्या की पालतू कुत्ते बाबू के साथ थ्योरी इसलिए पुलिस और लोग सच मान रहे हैं क्योंकि
घटनास्थल से एक पत्र बरामद किया है जिसमें प्रियांशु ने कहा है- वह बाबू( कुत्ते) की मौत से दु:खी है और उसने अपने शव को कुत्ते के साथ दफनाने का अनुरोध किया है.

इस संपूर्ण घटनाक्रम के पश्चात स्पष्ट हो जाता है कि प्रियांशु सिंह अपने पालतू कुत्ते बाबू के साथ कितना घुल मिल चुकी थी.

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आत्महत्या का मनोविज्ञान

पुलिस ने युवती के शव को पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया है तथा मर्ग कायम कर लिया गया है. प्रियांशु के परिजन बताते हैं बाबू (कुत्ते) के शव को प्रियांशु की अंतिम इच्छा के अनुसार दफनाया गया है. वहीं डॉक्टर जी. आर. पंजवानी ऐसी “आत्महत्याओं” के मनोविज्ञान के बारे में बताते हुए कहते हैं- दरअसल यह किशोर अवस्था की एक ग्रंथि है जिसमें कोमल मन के साथ किशोर मन अपने आसपास के पशुओं आदि के साथ इतना आत्मीय हो जाता है कि उन्हें अगर कुछ हो जाए तो जीवन निरर्थक लगने लगता है ऐसे संक्रमण समय में परिजनों को चाहिए कि उन्हें ढाढस बंधाते हुए उन पर निगाह रखें. प्रियांशु सिंह मामले में भी अगर परिजन होश मंदी के साथ काम लेते तो शायद यह बड़ी घटना घटित होने से रह जाती. वहीं डॉक्टर आशीष अग्रवाल के मुताबिक ऐसी घटना दुर्लभ ही घटित होती है मगर यह सच है कि जब घर के पालतू पशु से अत्यधिक आत्मीयता लगा हो जाता है तो भावुक मन के लोग आत्महत्या का कदम उठा लेते हैं. ऐसे में यही सलाह दी जा सकती है कि घर की बड़े बुजुर्गों को विशेष रूप से बच्चों और युवाओं को समझाइश देते रहना चाहिए.

उत्तर प्रदेश: गुस्सा जाहिर करती जनता

त्रेता युग के रामराज में सरकार के लोग वेशभूषा बदल कर जनता के दुखदर्द को राजा तक पहुंचाने का काम करते थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रामराज में जनता अब गुस्सा जाहिर करने लगी है. गुस्सा जाहिर करने के लिए जनता अपनी जान को भी दांव पर लगाने से परहेज नहीं कर रही है.

अपनी आवाज को सरकार तक पहुंचाने के लिए लोग विधानसभा भवन और भाजपा कार्यालय के सामने आत्मदाह करने लगे हैं. आत्मदाह की आधा दर्जन घटनाएं इस का सुबूत हैं.

अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद प्रदेश में रामराज बनाने का दावा फेल हो चुका है. जनता की बात नहीं सुनी जा रही, जिस से भड़के लोग आत्मदाह का रास्ता चुन रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा भवन, लोकभवन और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय के बीच 200 मीटर की लंबी सड़क आत्मदाह का केंद्र बन गई है. हाई सिक्योरिटी जोन में विधानसभा के चारों तरफ 650 वर्गमीटर का विशेष निगरानी घेरा बनाया गया है. यहां के चप्पेचप्पे पर अत्याधुनिक साधनों से लैस पुलिस लगाई गई है.

पुलिस को गच्चा देने के लिए पीडि़त पक्ष ने आत्मदाह की जगह वहीं पर बड़ी मात्रा मे नींद की गोलियां खा कर जान देने की कोशिश शुरू कर दी. अक्तूबर महीने में विधानसभा भवन के सामने इस तरह की 6 घटनाएं घट चुकी हैं.

4 मामलों में आग लगा कर जान देने की कोशिश की गई, जिस में 2 औरतों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. विधानसभा भवन और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय अपनी दुखभरी दास्तान कहने के लिए हौट स्पौट बन गया है.

विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह की घटनाएं अनलौक 2 के बाद से तेज हुईं. 17 जुलाई को अमेठी की रहने वाली सोफिया और उस की बेटी ने खुद को आग लगा ली. सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान सोफिया की मौत हो गई.

13 अक्तूबर को महाराजगंज जिले की रहले वाली अंजलि तिवारी उर्फ आयशा ने भाजपा प्रदेश कार्यालय के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. जली अवस्था में पुलिस ने सिविल अस्पताल में भरती कराया, जहां उस की मौत हो गई.

19 अक्तूबर को लखनऊ के ही हुसैनगंज इलाके के रहने वाले सुरेंद्र चक्रवर्ती ने आत्मदाह करने की कोशिश की. इसी दिन बाराबंकी का रहने वाला परिवार भी आत्मदाह के इरादे से विधानसभा भवन के सामने पहुंचा था. उसे पुलिस ने पहले ही पकड़ लिया था.

22 अक्तूबर को बेबी खान नामक औरत नींद की गोलियां खा कर बदहवास हालत में विधानसभा गेट के सामने पहुंची, पर पुलिस ने उस को भी पकड़ लिया था.

कोई नहीं सुनता दर्द

जैसेजैसे सरकार ने जनता की आवाज को सुनना बंद कर दिया है, वैसेवैसे इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. फिल्म ‘शोले’ में पानी की टंकी के ऊपर चढ़ कर बसंती से मिलने की जिद को सभी ने देखा था. अखिलेश सरकार में परेशान एक नौजवान विधानसभा भवन के सामने पेड़ पर चढ़ कर फांसी लगाने की जिद कर रहा था.

आत्मदाह करने वाले सुरेंद्र चक्रवर्ती डायमंड डेरी कालोनी में जावेद के घर में किराए के मकान में रहता था. वह फोटोकौपी मशीन का कारोबार करता था. साल 2013 से मकान के किराए को ले कर विवाद चल रहा था.

‘तालाबंदी’ के दौरान बेरोजगारी बढ़ने से सुरेंद्र बेहद परेशान था. ऐसे में जब मकान मालिक ने उस का सामान घर से निकाल कर सड़क पर फेंक दिया, तब आर्थिक तंगी में उसे विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने का रास्ता ही सम झ आया.

लखनऊ के सिविल अस्पताल में भरती सुरेंद्र चक्रवर्ती ने बताया, ‘मेरा किराएदारी का मुकदमा चल रहा था. ऐसे में मेरे सामान को जब घर से बाहर फेंक दिया गया, तो मेरे सामने कोई रास्ता नहीं था. पुलिस भी मेरी बात सुन नहीं रही थी. वह मकान मालिक के दबाव में थी. मैं कब तक चुप रहता.

‘मु झे लगा कि अब जान की कीमत पर ही सही पर गूंगेबहरे प्रशासन के सामने अपनी बात कहनी है. मेरे घर से विधानसभा की दूरी एक किलोमीटर थी. मु झे लगा कि अगर सरकार के सामने अपनी आवाज उठाई जाए तो शायद वह मेरी पीड़ा सुन सकेगी. ऐसे में विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने का फैसला किया.’

बाराबंकी का रहने वाला नसीर और उस का परिवार भी विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने पहुंचा था, पर पुलिस ने पहले ही पकड़ लिया. नसीर सरकारी जमीन पर दुकान लगाता था. नगरनिगम ने दुकान तोड़ दी. परेशान नसीर को कुछ सम झ नहीं आया, तो सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उस ने यह रास्ता चुना था.

लखनऊ के राजाजीपुरम की रहने वाली बेबी खान का भाई अपराधी था. पुलिस उसे पकड़ने घर जाती थी. जब वह नहीं मिलता था, तो पुलिस घर वालों के साथ गालीगलौज और बदतमीजी करती थी. पुलिस की इस हरकत से बचने के लिए उस ने यह कदम उठाया.

लखनऊ के ही सिविल अस्पताल में भरती बेबी खान ने बताया, ‘मेरे भाई को पुलिस परेशान कर रही थी. उसे पुराने मुकदमों की धमकी दे कर जेल भेजने के लिए पकड़ने की कोशिश कर रही थी. भाई का मेरे घर किसी भी तरह से कोई आनाजाना नहीं था. इस के बाद भी हर दूसरेतीसरे दिन पुलिस हमारे घर पहुंच जाती थी. पुलिस अकसर रात को घर जाती थी.

‘हम जिस महल्ले में रहते हैं, वहां बदनामी होती थी. हम ने कई बार पुलिस को सम झाने की कोशिश की कि हम से उस का कोई मतलब नहीं है. ऐसे में उलटे पुलिस हमें ही धमकी दे रही थी. ऐसी बदनामी से बचने के लिए ही हम ने विधानसभा और भाजपा के औफिस के सामने जान देने का संकल्प ले लिया था.’

महाराजगंज की रहने वाली अंजलि तिवारी उर्फ आयशा छत्तीसगढ की रहने वाली थी. महाराजगंज के अखिलेश के साथ उस की शादी हुई. इस के बाद दोनों में विवाद हो गया और वे अलग हो गए.

अंजलि ने मोहम्मद आलम के साथ निकाह किया और आयशा बन कर उस के साथ रहने लगी. कुछ दिन के बाद मोहम्मद आलम नौकरी करने अरब चला गया, तो उस के घर वालों ने आयशा को ससुराल से निकाल दिया.

अंजलि ने पुलिस में शिकायत की, तो पुलिस ने सुनी नहीं. लिहाजा, उस ने आत्मदाह करने का फैसला लिया.

युद्ध सी तैयारी

आत्मदाह की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस को युद्ध की सी तैयारी करनी पड़ी है. विधानसभा भवन और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय के सामने आत्मदाह और जान देने की घटनाओं को रोकने के लिए हर 10 कदम पर पुलिस लगा दी गई है.

पुलिस कमिश्नर सुजीत कुमार पांडेय बताते हैं, ‘इस क्षेत्र में आनेजाने वालों पर नजर रखी जा रही है. पुलिस के साथ अग्निशमन वाहन, आग बु झाने के उपकरण, कंबल और एंबुलैंस का इंतजाम किया गया है. इस के साथ ही सभी थानों को हाई अलर्ट भेजा गया है, जिस में आत्मदाह की धमकी देने वालों की सूचनाएं जमा करने और जरूरी कार्यवाही करने के लिए कहा गया है.’

विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह जैसी घटनाओं को रोकने के लिए 18 पुलिस टीमों को तैनात किया गया है. इस के अलावा 50 कंबल, 15 अग्निशमन उपकरण, 4 दोपहिया वाहन, 3 चारपहिया वाहन, एक अग्निशमन वाहन और एक एंबुलैंस वाहन तैनात किया गया है.

विधानसभा भवन लखनऊ के चारबाग से हजरतगंज मुख्य मार्ग पर बना है. मुख्य सड़क मार्ग होने के चलते यहां पर यातायात खूब रहता है. अब यह मार्ग रात के समय बंद कर दिया गया है. सुबह 6 बजे से यह मार्ग यातायात के लिए खोला जाता है. शनिवार और रविवार को यह रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया गया है.

बढ़ रहा है असंतोष

वरिष्ठ पत्रकार योगेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘सभी घटनाओं की विवेचना करें तो एक बात साफतौर पर दिखती है कि व्यवस्था के प्रति जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है. लोगों को सम झ नहीं आ रहा है कि वह किस से अपनी बात कहे. थानों में पुलिस अपनी मनमानी करती है. कई बार वह आरोपी के साथ मिल कर पीडि़त के ऊपर ही दबाव बनाने लगती है. अपराध की तमाम घटनाओं में यह बात सामने आती है.

‘उन्नाव के चर्चित रेप कांड, जिस में भाजपा के विधायक रहे कुलदीप सेंगर पर आरोप था, में भी जब उन्नाव की पुलिस ने लड़की की बात नहीं सुनी, तो लड़की ने मुख्यमंत्री आवास के पास आत्मदाह करने की कोशिश की थी. उस के बाद उस के मामले में पुलिस ने सुनवाई शुरू की थी.

‘ये घटनाएं देखदेख कर दूसरे परेशान लोगों को भी यही रास्ता आसान लगता है, जिस से ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं.’

4 पीएम अखबार के संपादक संजय शर्मा कहते हैं, ‘पुलिस नहीं सुनती तो लोग अपने जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों, सांसद और विधायक के पास फरियाद ले कर जाते हैं. पिछले दिनों पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी और उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग के 2 फोन ओडियो वायरल हुए, जिन में उन्होंने पीडि़तों की बात नहीं सुनी. उन्हें बुराभला कहा. वे पीडि़त दोनों मामलों में अपने परिजनों के अस्पताल में भरती होने का दर्द बता कर मदद मांगने गए थे.

‘जब पीडि़त जनता की बात नहीं सुनी जाती तो उसे अपनी बात सुनवाने के लिए यह रास्ता ही दिखता है, जिस की वजह से इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं.’

मनोविज्ञानी समाजसेवी डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘इस तरह के मामलों में जिस तरह से मीडिया रिपोर्टिंग करने लगी है, उस में भी संवदेनशीलता की जरूरत है. मीडिया का समाज पर बहुत असर पड़ता है. इन घटनाओं को देख कर लगता है कि अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का यह सब से आसान रास्ता है.

‘अगर लोगों को शुरुआती लैवल पर सुन लिया जाए और परेशानी को दूर कर दिया जाए, तो लोग ऐसे कदम कम उठाएंगे.’

आत्महत्या : तुम मायके मत जइयो!

पति और पत्नी का संबंध कहा जाता है कि सात जन्मों का गठबंधन होता है. ऐसे में जब  आसपास यह देखते हैं कि कोई महिला अथवा पुरुष इसलिए आत्महत्या कर लेता है कि उसके साथी ने उसे समझने से इंकार कर दिया. और प्रताड़ना का दौर कुछ ऐसा बढ़ा की पुरुष हो या फिर स्त्री उसके सामने आत्महत्या के द्वारा अपनी इहलीला समाप्त करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता.

यह त्रासदी इतनी भीषण है कि आए दिन ऐसी घटनाएं सुर्ख़ियों में रहती है. आज हम इस लेख में यह विवेचना का प्रयास करेंगे कि शादीशुदा पुरुष, ऐसी कौन सी परिस्थितियां होती हैं, जब गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर लेते हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ में ऐसी अनेक घटनाएं घटी हुई जिसमें पुरुषों ने अपनी पत्नी अथवा सांस पर आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली.

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ऐसे ही एक परिवार से जब यह संवाददाता मिला और चर्चा की तो अनेक ऐसे तथ्य खुलकर सामने आ गए जिन्हें समझना और जानना आज एक जागरूक पाठक के लिए बहुत जरूरी है.

प्रथम घटना-

छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में हाईकोर्ट के एक वकील ने आत्महत्या कर ली. सुसाइड नोट में लिखा कि वह पत्नी के व्यवहार से क्षुब्ध होकर आत्महत्या कर रहा है. वह अपनी धर्मपत्नी से प्रताड़ित हो रहा है.

दूसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला में एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में लिखा कि उसे पत्नी की प्रताड़ना के कारण आत्महत्या करनी पड़ रही है.

तीसरी घटना-

जिला कोरबा के एक व्यापारी ने आत्महत्या कर ली जांच पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि उसका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था. पत्नी के व्यवहार के कारण उसने अपनी जान दे दी.

मैं मायके चली जाऊंगी…!

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कबीर नगर थाना क्षेत्र में पत्नी और सास से प्रताड़ित होकर एक शख्स द्वारा द्वारा आत्महत्या का मामला सुर्खियों में है. पुलिस द्वारा मिली जानकारी के अनुसार मौके से पुलिस को  दो पन्नों का सुसाइड नोट मृतक के जेब से मिला है. कबीर नगर थाने मैं पदस्थ पुलिस अधिकारी के अनुसार मृतक ने अपनी मौत का जिम्मेदार अपनी पत्नी और सास को बताया है.

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सुसाइड नोट में मृतक ने लिखा है – उसकी पत्नी बार-बार घर में झगड़ा कर के अपने मायके चली जाती थी और  दो साल की बेटी से भी  मिलने नहीं दिया जाता था. जिसके कारण तनाव में आकर उसने आत्महत्या कर ली. मृतक का नाम मनीष चावड़ा है.  इस मामले में अब तक पुलिस अन्य एंगल से भी तहकीकात कर रही है. मगर जो तथ्य सामने आए हैं उनके अनुसार जब पत्नी अक्सर अपने मायके से संबंध रखे हुए थी. दरअसल, जब पत्नी बार-बार पति को छोड़कर चले जाती है तो डिप्रेशन में आकर पुरुष आत्महत्या कर लेते हैं. ऐसी अनेक घटनाएं घटित हो चुकी है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए पति और पत्नी दोनों  एक दूसरे की भावना का सम्मान करते हुए यह जानने और समझने की दरकार है कि पूरी जिंदगी दुख सुख में साथ  निभाना है. अगर यह बात गांठ बांध ली जाए तो आत्महत्या और तलाक अर्थात संबंध विच्छेद के मामलों में कमी आ सकती है.

मां और भाइयों की नासमझी

आत्महत्या और संबंध विच्छेद के मामलों में आमतौर पर देखा गया है कि विवाह के पश्चात भी अपनी बेटी और बहन के साथ मायके वालों  के गठबंधन कुछ ऐसे होते हैं कि पति बेचारा विवश और असहाय  हो जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर रमाकांत श्रीवास कहते हैं- यहां यह बात समझने की है कि बेटी के ब्याह के पश्चात मायके पक्ष को यह समझना चाहिए कि अब बेटी की विदाई हो चुकी है और जब तलक उसके साथ अत्याचार, अथवा प्रताड़ना की घटना सामने नहीं आती, छोटी-छोटी बातों पर उसे प्रोत्साहित करने का मतलब यह होगा कि बेटी के वैवाहिक जीवन में जहर घोलना.

उम्र के इस पड़ाव में परिस्थितियां कुछ ऐसी मोड़ लेती है कि पति बेचारा मानसिक रूप से परेशान होकर आत्महत्या कर लेता है. और इस तरह एक  सुखद परिवार टूट कर बिखर जाता है. कई बार देखा गया है कि बाद में पति की मौत के बाद पत्नी को यह समझ आता है कि उसने कितनी बड़ी भूल कर दी. अतः समझदारी का ताकाजा यही है कि जब हाथ थामा है तो पति का साथ दें और छोटी-छोटी बातों पर कभी भी परिवार को तोड़ने की कोशिश दोनों ही पक्ष में से कोई भी न करें.

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