‘‘कितनी खूबसूरत लग रही है निवेदिता दुलहन के वेश में. गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें और तीखातिकोना चेहरा,’’ समता मौसी दुलहन की बलाएं लेते हुए बोलीं.
‘‘काश, दूल्हे के बारे में भी यही कहा जा सकता…’’ घर आए मेहमानों में से किसी ने कहा.
‘‘यह बात तो है… कहां हमारी निवेदिता एमए तक पढ़ी है… इतनी खूबसूरत और आश्रय सिर्फ 12वीं जमात तक पढ़ा है. पिता की मौत के बाद उन की जगह ही नौकरी लग गई है. रंग भी कुछ दबा हुआ है,’’ निवेदिता की बूआ ने कहा.
निवेदिता के घर में भी पैसा नहीं था. अगर उस के मातापिता को शादी की जल्दी थी. निवेदिता और पढ़ना भी चाहती थी, पर उस की शादी तय कर दी गई.
‘‘हां, कमाताखाता लड़का देख कर शादी कर रहे हैं,’’ किसी ने बात को आगे बढ़ाया.
शादी के बाद रात को निवेदिता सुहाग सेज पर बैठी हुई थी और उम्मीद के मुताबिक बिना किसी तामझाम व दिखावे के आश्रय कमरे में आ गया और गंभीर अंदाज में बोला, ‘‘निवेदिता, आज हमारे मिलन की पहली रात है और ऐसा दस्तूर है कि इस दिन गिफ्ट जरूर दिया जाना चाहिए.
‘‘तुम्हें मेरी माली हालत पता ही है. पहले पिताजी की बीमारी के चलते लिया हुआ कर्ज उतारना पड़ा. इसी वजह से कुछ भी बचत नहीं हुई. फिर भी मैं तुम्हारे लिए यह घड़ी लाया हूं.
‘‘यह घड़ी सस्ती जरूर है, पर समय महंगी घडि़यों के बराबर ही बताती है. यह भी बताती है कि समय कीमती है, इसे बरबाद मत करो. और भी कुछ उपहार चाहिए हों तो मांग सकती हो, बशर्ते वह खरीदना मेरी हद में हो.’’
‘‘क्या मैं ऐसा कुछ चाहूं, जो आप की हद में हो तो आप देंगे?’’ निवेदिता ने झिझकते हुए पूछा.
‘‘जरूर,’’ आश्रय ने जवाब दिया.
‘‘मैं राज्य लोक सेवा आयोग की प्रशासनिक परीक्षा में बैठना चाहती हूं. क्या आप मुझे इजाजत देंगे? मुझे ओबीसी कोटे में जल्दी ही नौकरी भी मिल सकती है,’’ निवेदिता ने पूछा.
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‘‘तुम्हारी पढ़ाई के लैवल के बारे में मैं अच्छी तरह से जानता हूं. निवेदिता, तुम इस एग्जाम में बैठ सकती हो. एक बार पतिपत्नी के संबंध बन जाने के बाद काबू करना मुश्किल होता है, इसलिए मैं चाहता हूं कि जब तक तुम अपने इम्तिहान में कामयाब न हो जाओ, तब तक हम दोनों एक नहीं होंगे’’
‘‘क्या…? आप ने मुझ से शादी किसी मजबूरी में की है? क्या आप मुझे प्यार नहीं करते हैं?’’ निवेदिता ने घबरा कर पूछा, क्योंकि उसे इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी.
‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तुम्हें काफी दिन से देख रहा हूं. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हारे कामयाब होने के बाद ही हम दोनों इस प्यार के सच्चे हकदार होंगे,’’ आश्रय ने निवेदिता की गोरीगोरी कलाइयों को पकड़ते हुए कहा.
‘‘और, अगर मेरा चयन नहीं हो पाया तो…?’’ निवेदिता ने सवाल किया.
‘‘जब भी जोकुछ होगा, सिर्फ तुम्हारी रजामंदी से होगा,’’ आश्रय बोला.
‘‘बाहर सब को क्या जवाब देंगे?’’ निवेदिता ने पूछा.
‘‘किसी को कुछ कहने की जरूरत नहीं है. बस, इतना कहना है कि हमें अगले 3 साल तक बच्चे की जरूरत नहीं है,’’ आश्रय ने जवाब दिया.
‘‘वाह… आश्रय, मैं कल से ही पढ़ाई शुरू कर देती हूं.’’
दूसरे दिन से निवेदिता ने पढ़ाई शुरू कर दी. आश्रय ने अपनी मम्मी को भी निवेदिता की इच्छा के बारे में बता दिया. घर में 3 लोगों का काम बहुत ज्यादा नहीं था. रसोईघर का ज्यादातर काम आश्रय की मम्मी कर देती थीं.
निवेदिता देर रात तक पढ़ती, तो आश्रय बीच में चाय या कौफी बना कर उसे दे देता. कभीकभार सिर दुखने पर अपने हाथों से तब तक हलकीहलकी मसाज करता, जब तक कि निवेदिता की आंख न लग जाती.
आखिरकार वह ऐतिहासिक पल भी आ ही गया, जब निवेदिता सभी लिखित इम्तिहानों और इंटरव्यू में कामयाब हो कर डिप्टी कलक्टर बन गई.
‘‘अब सिर्फ प्यार,’’ निवेदिता आश्रय के गले में बांहों का फंदा डाल कर बोली.
‘‘मेहनत तो तुम्हारी ही है निवेदिता. मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ था. तुम मेरी पत्नी हो गुलाम नहीं. आज तो सिर्फ और सिर्फ प्यार होगा,’’ आश्रय मुसकराता हुआ बोला.
अभी वे दोनों बात कर ही रहे थे कि अचानक आश्रय के मोबाइल फोन की घंटी बजी.
‘‘क्या…? कब…? अच्छाअच्छा… हम अभी पहुंचते हैं,’’ आश्रय घबराई आवाज में बोला.
‘‘क्या हुआ…?’’ निवेदिता ने चिंतित हो कर पूछा.
‘‘कुछ नहीं, बस तुम्हारे पापा की थोड़ी सी तबीयत खराब हो गई है,’’ आश्रय ने बताया.
निवेदिता और आश्रय जब तक पहुंचते, तब तक निवेदिता के पापा की मौत हो चुकी थी. अपनी मां को हिम्मत देने के लिए निवेदिता को वहीं पर रुकना पड़ा.
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निवेदिता को अपनी ट्रेनिंग की सूचना मिली, जो कि उस के मायके से तकरीबन 300 किलोमीटर दूर थी.
जौइन करने के साथ ही पता चला कि निवेदिता को अनुकूल शर्मा के अंडर ट्रेनिंग लेनी है.
अनुकूल शर्मा कुछ समय पहले तक निवेदिता के गृह जिले में ही थे और उन की अच्छे अफसरों में गिनती होती है.
अनुकूल शर्मा आ गए और अपने चैंबर में घुस गए. इजाजत ले कर निवेदिता भी चैंबर में आ गई.
‘‘तुम्हारे साथ वह बाहर कौन था?’’ लेटर देखते हुए अनुकूल शर्मा ने पूछा.
‘‘मेरे पति हैं,’’ निवेदिता ने कहा.
‘‘अब अगले 3 महीनों तक घरबार, पति, बच्चे सब भूल जाओ… समझी?’’ अनुकूल शर्मा ने कहा.
‘‘जी,’’ निवेदिता ने जवाब दिया.
‘‘मैं जा रहा हूं निवेदिता. अगले 3 महीनों तक खूब मेहनत करो. आगे की जिंदगी बहुत अच्छी होगी,’’ जातेजाते आश्रय ने निवेदिता से कहा.
अनुकूल शर्मा के अंडर में निवेदिता की टे्रनिंग खूब अच्छी चल रही थी. निवेदिता को अब तक सरकारी गाड़ी नहीं मिली थी. इसी वजह से वह अनुकूल शर्मा के साथ उन्हीं की सरकारी गाड़ी से टूर पर जाती थी.
ऐसे ही एक दिन जब वे दोनों टूर से लौट रहे थे, तो अनुकूल शर्मा बोले, ‘‘मुझे लगता है निवेदिता, तुम्हारे साथ ज्यादती हुई है.’’
‘‘आप को ऐसा क्यों लगता है सर…’’ निवेदिता ने अचरज भाव से पूछा.
‘‘तुम इतनी खूबसूरत और होशियार हो और तुम्हारा पति 12वीं जमात पास क्लर्क,’’ अनुकूल शर्मा ने कहा.
‘‘जिंदगी में हमें जो मिलता है, उसे हम बदल नहीं सकते,’’ निवेदिता बोली.
‘‘हम चाहें तो कुछ भी बदल सकते हैं. तुम ने भी यह नौकरी पा कर अपनी जिंदगी बदल दी है.’’
‘‘पर, अब किया क्या जा सकता है. आज मैं जोकुछ भी हूं, आश्रय के चलते ही हूं,’’ निवेदिता बोली.
‘‘कल उसी आश्रय के चलते तुम्हें शर्मिंदगी होगी. किसी पार्टी में तुम उसे ले जा नहीं पाओगी. तुम्हारे पीछे लोग उसे मखमल में टाट का पैबंद बताएंगे. रही कुछ करने की बात तो उस ने तुम पर कितने रुपए खर्च किए होंगे? लाख 2 लाख. तुम उसे 5 लाख दे कर हिसाब चुकता कर दो.
‘‘मैं ने भी अपनी देहाती पत्नी से तलाक के लिए अर्जी दी हुई है, क्योंकि वह मेरे स्टेटस के मुताबिक नहीं है. तुम भी ऐसा कर सकती हो. कल पछताने से आज सही फैसला लेना बेहतर है…’’ अनुकूल शर्मा बोले, ‘‘मुझे तो लगता है कि आश्रय मर्द ही नहीं है, वरना 3 साल तक कौन पति ऐसा होगा, जो अपनी पत्नी से दूर रहेगा?’’
निवेदिता ने कोई जवाब नहीं दिया.
दरअसल, पिछले 2 महीने से कुछ ज्यादा समय से साथ रहने के चलते अनुकूल शर्मा को ऐसा लगने लगा था कि निवेदिता उन की तरफ खिंच रही है.
एक दिन अचानक निवेदिता के पास कलक्टर का फोन पहुंचा और उसे तुरंत मिलने के लिए बुलाया गया.
‘‘बधाई हो निवेदिता, अनुकूल शर्मा जैसे काबिल अफसर ने आप की बहुत अच्छी रिपोर्ट दी है,’’ कलक्टर खुश हो कर बोले.
‘शुक्रिया सर’ कह कर निवेदिता कलक्टर औफिस से बाहर आ गई.
‘‘बधाई हो निवेदिता, एक पार्टी तो बनती ही है. ऐसा करते हैं कि आज तुम औफिस का चार्ज ले लो. शनिवार और रविवार की छुट्टी है. हम पास के शहर चलेंगे. वहां पार्टी करेंगे. सबकुछ मेरी तरफ से होगा,’’ अनुकूल शर्मा बोले.
‘‘जी सर,’’ कह कर निवेदिता अपने नए औफिस में चार्ज लेने चली गई.
जब आश्रय को निवेदिता के चार्ज लेने की बात पता चली, तो वह बहुत खुश हुआ. उस ने फोन पर अपने मन की बात कही.
‘‘तुम्हें देखने की बहुत इच्छा हो रही है. शनिवार और रविवार को छुट्टी है. मैं वहां आ जाता हूं.’’
‘‘अरे, नहींनहीं. शनिवार और रविवार को तो मुझे कलक्टर साहब के साथ राजधानी जाना है,’’ निवेदिता ने झूठ बोलते हुए उसे रोक दिया.
शुक्रवार की शाम जब आश्रय दफ्तर से घर लौटा, तो रसोईघर में से हलवा बनने की मस्त महक आ रही थी.
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‘‘मां, आज हलवा क्यों बन रहा है? कोई त्योहार है क्या?’’ दरवाजे से अंदर आते हुए आश्रय ने पूछा.
‘‘त्योहार से भी बढ़ कर है…’’ मां रसोईघर में से ही बोलीं.
‘‘मैं समझा नहीं,’’ आश्रय ने पूछा.
‘‘तो रसोईघर के भीतर आ कर देख ले,’’ मां बोलीं.
‘‘अरे, निवेदिता तुम…’’ रसोईघर में घुसते ही आश्रय खुशी से चिल्लाया.
निवेदिता ने अपनी स्थायी नियुक्ति तक की पूरी बात आश्रय को बता दी.
‘‘चलो निवेदिता, शाम का खाना हम कहीं बाहर खाते हैं,’’ आश्रय बोला.
‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. इन 3 दिनों का एक पल भी मुझे किसी के साथ शेयर नहीं करना है. मुझे सिर्फ तुम और तुम चाहिए,’’ निवेदिता किसी जिद्दी बच्ची सी बोली.
शनिवार की सुबह तकरीबन 10 बजे अनुकूल शर्मा का फोन आया, ‘निवेदिता, कहां हो तुम? हमें पार्टी केलिए जाना था.’
‘‘सर, मैं स्वर्ग में हूं और यहां से नहीं आ सकती.’’
‘स्वर्ग… वह कहां है?’ अनुकूल शर्मा ने हैरानी से पूछा.
‘‘सर, यह हर उस जगह है, जहां पतिपत्नी अपने परिवार के साथ रहते हैं. मैं भी अपने पति के साथ हूं. आप ने ट्रेनिंग के दौरान मुझे एक बात सिखाई थी कि सोने का गहना कितना ही बड़ा क्यों न हो, अगर उस में छोटा सा हीरा लग जाए तो उस की कीमत दोगुनी हो जाती है.
‘‘आश्रय भी मेरी जिंदगी का एक ऐसा ही हीरा है, जिस के लगने से मेरी जिंदगी अनमोल हो गई है. मुझे कभी भी आश्रय के चलते कोई शर्मिंदगी नहीं होगी.
‘‘धन्यवाद और नमस्कार सर. मैं आप से 2 दिन बाद मिलती हूं,’’ इतना कह कर निवेदिता ने फोन काट दिया.