Best Story In Hindi: जुल्म की सजा – समरथ सिंह की कारगुजारी

Best Story In Hindi: उत्तर प्रदेश के बदायूं, शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिलों की सीमाओं को छूता, रामगंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ गांव पिरथीपुर यों तो बदायूं जिले का अंग है, पर जिले तक इस की पहुंच उतनी ही मुश्किल है, जितनी मुश्किल शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद जिला हैडक्वार्टर तक की है.

कभी इस गांव की दक्षिण दिशा में बहने वाली रामगंगा ने जब साल 1917 में कटान किया और नदी की धार पिरथीपुर के उत्तर जा पहुंची, तो पिरथीपुर बदायूं जिले से पूरी तरह कट गया. गांव के लोगों द्वारा नदी पार करने के लिए गांव के पूरब और पश्चिम में 10-10 कोस तक कोई पुल नहीं था, इसलिए उन की दुनिया पिरथीपुर और आसपास के गांवों तक ही सिमटी थी, जिस में 3 किलोमीटर पर एक प्राइमरी स्कूल, 5 किलोमीटर पर एक पुलिस चौकी और हफ्ते में 2 दिन लगने वाला बाजार था.

सड़क, बिजली और अस्पताल पिरथीपुर वालों के लिए दूसरी दुनिया के शब्द थे. सरकारी अमला भी इस गांव में सालों तक नहीं आता था.

देश और प्रदेश में चाहे जिस राजनीतिक पार्टी की सरकार हो, पर पिरथीपुर में तो समरथ सिंह का ही राज चलता था. आम चुनाव के दिनों में राजनीतिक पार्टियों के जो नुमाइंदे पिरथीपुर गांव तक पहुंचने की हिम्मत जुटा पाते थे, वे भी समरथ सिंह को ही अपनी पार्टी का झंडा दे कर और वोट दिलाने की अपील कर के लौट जाते थे, क्योंकि वे जानते थे कि पूरे गांव के वोट उसी को मिलेंगे, जिस की ओर ठाकुर समरथ सिंह इशारा कर देंगे.

पिरथीपुर गांव की ज्यादातर जमीन रेतीली और कम उपजाऊ थी. समरथ सिंह ने उपजाऊ जमीनें चकबंदी में अपने नाम करवा ली थीं. जो कम उपजाऊ जमीन दूसरे गांव वालों के नाम थी, उस का भी ज्यादातर भाग समरथ सिंह के पास गिरवी रखा था.

समरथ सिंह के पास साहूकारी का लाइसैंस था और गांव का कोई बाशिंदा ऐसा नहीं था, जिस ने सारे कागजात पर अपने दस्तखत कर के या अंगूठा लगा कर समरथ सिंह के हवाले न कर दिया हो. इस तरह सभी गांव वालों की गरदनें समरथ सिंह के मजबूत हाथों में थीं.

पिरथीपुर गांव में समरथ सिंह से आंख मिला कर बात करने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी. पासपड़ोस के ज्यादातर लोग भी समरथ सिंह के ही कर्जदार थे.

समरथ सिंह की पहुंच शासन तक थी. क्षेत्र के विधायक और सांसद से ले कर उपजिलाधिकारी तक पहुंच रखने वाले समरथ सिंह के खिलाफ जाने की हिम्मत पुलिस वाले भी नहीं करते थे.

समरथ सिंह के 3 बेटे थे. तीनों बेटों की शादी कर के उन्हें 10-10 एकड़ जमीन और रहने लायक अलग मकान दे कर समरथ सिंह ने उन्हें अपने राजपाट से दूर कर दिया था. उन की अपनी कोठी में पत्नी सीता देवी और बेटी गरिमा रहते थे.

गरिमा समरथ सिंह की आखिरी औलाद थी. वह अपने पिता की बहुत दुलारी थी. पूरे पिरथीपुर में ठाकुर समरथ सिंह से कोई बेखौफ था, तो वह गरिमा ही थी.

सीता देवी को समरथ सिंह ने उन के बैडरूम से ले कर रसोईघर तक सिमटा दिया था. घर में उन का दखल भी रसोई और बेटी तक ही था. इस के आगे की बात करना तो दूर, सोचना भी उन के लिए बैन था.

कोठी के पश्चिमी भाग के एक कमरे में समरथ सिंह सोते थे और उसी कमरे में वे जमींदारी, साहूकारी, नेतागीरी व दादागीरी के काम चलाते थे. वहां जाने की इजाजत सीता देवी को भी नहीं थी.

समरथ सरकार के नाम से पूरे पिरथीपुर में मशहूर समरथ सिंह की कोठी में बाहरी लोगों का आनाजाना पश्चिमी दरवाजे से ही होता था. इस दरवाजे से बरामदे में होते हुए उन के दफ्तर और बैडरूम तक पहुंचा जा सकता था.

कोठी के पश्चिमी भाग में दखल देना परिवार वालों के लिए ही नहीं, बल्कि नौकरचाकरों के लिए भी मना था.

अपने पिता की दुलारी गरिमा बचपन से ही कोठी के उस भाग में दौड़तीखेलती रही थी, इसलिए बहुत टोकाटाकी के बाद भी वह कभीकभार उधर चली ही जाती थी.

गांव की हर नई बहू को ‘समरथ सरकार’ से आशीर्वाद लेने जाने की प्रथा थी. कोठी के इसी पश्चिमी हिस्से में समरथ सिंह जितने दिन चाहते, उसे आशीर्वाद देते थे और जब उन का जी भर जाता था, तो उपहार के तौर पर गहने दे कर उसे पश्चिमी दरवाजे से निकाल कर उस के घर पहुंचा दिया जाता था.

आतेजाते हुए कभी गांव की किसी बहूबेटी पर समरथ सिंह की नजर पड़ जाती, तो उसे भी कोठी देखने का न्योता भिजवा देते, जिसे पा कर उसे कोठी में हर हाल में आना ही होता था.

समरथ सिंह की इमेज भले ही कठोर और बेरहम रहनुमा की थी, पर वे दयालु भी कम नहीं थे. खुशीखुशी आशीर्वाद लेने वालों पर उन की कृपा बरसती थी. अनेक औरतें जबतब उन का आशीर्वाद लेने के लिए कोठी का पश्चिमी दरवाजा खटखटाती रहती थीं, ताकि उन के

पति को फसल उपजाने के लिए अच्छी जमीन मिल सके, दवा व इलाज और शादीब्याह के खर्च वगैरह को पूरा करने हेतु नकद रुपए मिल सकें.

लेकिन बात न मानने से समरथ सिंह को सख्त चिढ़ थी. राधे ने अपनी बहू को आशीर्वाद लेने के लिए कोठी पर भेजने से मना कर दिया था. उस की बहू को समरथ के आदमी रात के अंधेरे में घर से उठा ले गए और तीसरे दिन उस की लाश कुएं में तैरती मिली थी.

अपनी नईनवेली पत्नी की लाश देख कर राधे का बेटा सुनील अपना आपा खो बैठा और पूरे गांव के सामने समरथ सिंह पर हत्या का आरोप लगाते हुए गालियां बकने लगा.

2 घंटे के अंदर पुलिस उसे गांव से उठा ले गई और पत्नी की हत्या के आरोप में जेल भेज दिया. बाद में ठाकुर के आदमियों की गवाही पर उसे उम्रकैद की सजा हो गई.

राधे की पत्नी अपने एकलौते बेटे की यह हालत बरदाश्त न कर सकी और पागल हो गई. इस घटना से घबरा कर कई इज्जतदार परिवार पिरथीपुर गांव से भाग गए.

समरथ सिंह ने भी बचेखुचे लोगों से साफसाफ कह दिया कि पिरथीपुर में समरथ सिंह की मरजी ही चलेगी. जिसे उन की मरजी के मुताबिक जीने में एतराज हो, वह गांव छोड़ कर चला जाए. इसी में उस की भलाई है.

समरथ सिंह की बेटी गरिमा जब थोड़ी बड़ी हुई, तो समरथ सिंह ने उस का स्कूल जाना बंद करा दिया. अब वह दिनरात घर में ही रहती थी.

गरमी के मौसम में एक दिन दोपहर में उसे नींद नहीं आ रही थी. वह लेटेलेटे ऊब गई, तो अपने कमरे से बाहर निकल कर छत पर चली गई और टहलने लगी.

अचानक उसे कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर कुछ आहट सुनाई दी. उस ने झांक कर देखा, तो दंग रह गई. समरथ सिंह का खास लठैत भरोसे एक औरत को ले कर आया था. कुछ देर बाद कोठी का पश्चिमी दरवाजा बंद हो गया और भरोसे दरवाजे के पास ही चारपाई डाल कर कोठी के बाहर सो गया.

गरिमा छत से उतर कर दबे पैर कोठी के बैन इलाके में चली गई. अपने पिता के बैडरूम की खिड़की के बंद दरवाजे के बीच से उस ने कमरे के अंदर झांका, तो दंग रह गई. उस के पिता नशे में धुत्त एक लड़की के कपड़े उतार रहे थे. वह लड़की सिसकते हुए कपड़े उतारे जाने का विरोध कर रही थी.

जबरन उस के सारे कपड़े उतार कर उन्होंने उस लड़की को किसी बच्चे की तरह अपनी बांहों में उठा कर चूमना शुरू कर दिया. फिर वे पलंग की ओर बढ़े और उसे पलंग पर लिटा कर किसी राक्षस की तरह उछल कर उस पर सवार हो गए.

गरिमा सांस रोके यह सब देखती रही और पिता का शरीर ढीला पड़ते ही दबे पैर वहां से निकल कर अपने कमरे में आ गई. उसे यह देख कर बहुत अच्छा लगा और बेचैनी भी महसूस हुई.

अब गरिमा दिनभर सोती और रात को अपने पिता की करतूत देखने के लिए बेचैन रहती.

अपने पिता की रासलीला देखदेख कर गरिमा भी काम की आग से भभक उठती थी.

एक दिन समरथ सिंह भरोसे को ले कर किसी काम से जिला हैडक्वार्टर गए हुए थे. दोपहर एकडेढ़ बजे उन का कारिंदा भूरे, जिस की उम्र तकरीबन 20 साल होगी, हलबैल ले कर आया.

बैलों को बांध कर वह पशुशाला के बाहर लगे नल पर नहाने लगा, तभी गरिमा की निगाह उस पर पड़ गई. वह देर तक उस की गठीली देह देखती रही.

जब भूरे कपड़े पहन कर अपने घर जाने लगा, तो गरिमा ने उसे बुलाया. भूरे कोठरी के दरवाजे पर आया, तो गरिमा ने उसे अपने साथ आने को कहा.

गरिमा को पता था कि उस की मां भोजन कर के आराम करने के लिए अपने कमरे में जा चुकी है.

गरिमा भूरे को ले कर कोठी के पश्चिमी दरवाजे की ओर बढ़ी, तो भूरे ठिठक कर खड़ा हो गया. गरिमा ने लपक कर उस का गरीबान पकड़ लिया और घसीटते हुए अपने पिता के कमरे की ओर ले जाने लगी.

भूरे कसाई के पीछेपीछे बूचड़खाने की ओर जाती हुई गाय के समान ही गरिमा के पीछेपीछे चल पड़ा.

पिता के कमरे में पहुंच कर गरिमा ने दरवाजा बंद कर लिया और भूरे को कपड़े उतारने का आदेश दिया. भूरे उस का आदेश सुन कर हैरान रह गया.

उसे चुप खड़ा देख कर गरिमा ने खूंटी पर टंगा हंटर उतार लिया और दांत पीसते हुए कहा, ‘‘अगर अपना भला चाहते हो, तो जैसा मैं कह रही हूं, वैसा ही चुपचाप करते जाओ.’’

भूरे ने अपने कपड़े उतार दिए, तो गरिमा ने अपने पिता की ही तरह उसे चूमनाचाटना शुरू कर दिया. फिर पलंग पर ढकेल कर अपने पिता की तरह उस पर सवार हो गई.

भूरे कहां तक खुद पर काबू रखता? वह गरिमा पर उसी तरह टूट पड़ा, जिस तरह समरथ सिंह अपने शिकार पर टूटते थे.

गरिमा ने कोठी के पश्चिमी दरवाजे से भूरे को इस हिदायत के साथ बाहर निकाल दिया कि कल फिर इसी समय कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर आ जाए. साथ ही, यह धमकी भी दी कि अगर वह समय पर नहीं आया, तो उसकी शिकायत समरथ सिंह तक पहुंच जाएगी कि उस ने उन की बेटी के साथ जबरदस्ती की है.

भूरे के लिए एक ओर कुआं था, तो दूसरी ओर खाई. उस ने सोचा कि अगर वह गरिमा के कहे मुताबिक दोपहर में कोठी के अंदर गया, तो वह फिर अगले दिन आने को कहेगी और एक न एक दिन यह राज समरथ सिंह पर खुल जाएगा और तब उस की जान पर बन आएगी. मगर वह गरिमा का आदेश नहीं मानेगा, तो वह भूखी शेरनी उसे सजा दिलाने के लिए उस पर झूठा आरोप लगाएगी और उस दशा में भी उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा.

मजबूरन भूरे न चाहते हुए भी अगले दिन तय समय पर कोठी के पश्चिमी दरवाजे पर हाजिर हो गया, जहां गरिमा उस का इंतजार करती मिली.

अब यह खेल रोज खेला जाने लगा. 6 महीने बीततेबीतते गरिमा पेट से हो गई. भूरे को जिस दिन इस बात का पता चला. वह रात में ही अपना पूरा परिवार ले कर पिरथीपुर से गायब हो गया.

गरिमा 3-4 महीने से ज्यादा यह राज छिपाए न रख सकी और शक होने पर जब सीता देवी ने उस से कड़ाई से पूछताछ की, तो उस ने अपनी मां के सामने पेट से होना मान लिया. फिर भी उस ने भूरे का नाम नहीं लिया.

सीता देवी ने नौकरानी से समरथ सिंह को बुलवाया और उन्हें गरिमा के पेट से होने की जानकारी दी, तो वे पागल हो उठे और सीता देवी को ही पीटने लगे. जब वे उन्हें पीटपीट कर थक गए, तो गरिमा को आवाज दी.

2-3 बार आवाज देने पर गरिमा डरते हुए समरथ सिंह के सामने आई. उन्होंने रिवाल्वर निकाल कर गरिमा को गोली मार दी.

कुछ देर तक समरथ सिंह बेटी की लाश के पास बैठे रहे, फिर सीता देवी से पानी मांग कर पिया. तभी फायर की आवाज सुन कर उन के तीनों बेटे और लठैत भरोसे दौड़े हुए आए.

समरथ सिंह ने उन्हें शांत रहने का इशारा किया, फिर जेब से रुपए निकाल कर बड़े बेटे को देते हुए कहा, ‘‘जल्दी से जल्दी कफन का इंतजाम करो और 2 लोगों को लकड़ी ले कर नदी किनारे भेजो. खुद भी वहीं पहुंचो.’’

समरथ सिंह के बेटे पिता की बात सुन कर आंसू पोंछते हुए भरोसे के साथ बाहर निकल गए.

एक घंटे के अंदर लाश ले कर वे लोग नदी किनारे पहुंचे. चिता के ऊपर बेटी को लिटा कर समरथ सिंह जैसे ही आग लगाने के लिए बढ़े, तभी वहां पुलिस आ गई और दारोगा ने उन्हें चिता में आग लगाने से रोक दिया.

यह सुनते ही समरथ सिंह गुस्से से आगबबूला हो गए और तकरीबन चीखते हुए बोले, ‘‘तुम अपनी हद से आगे बढ़ रहे हो दारोगा.’’

‘‘नहीं, मैं अपना फर्ज निभा रहा हूं. राधे ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है कि आप ने अपनी बेटी की गोली मार कर हत्या कर दी है, इसलिए पोस्टमार्टम कराए बिना लाश को जलाया नहीं जा सकता.’’

समरथ सिंह ने दारोगा के पीछे खड़े राधे को जलती आंखों से देखा. वे कुछ देर गंभीर चिंता में खड़े रहे, फिर रिवाल्वर से अपने सिर में गोली मार ली.

इस घटना को देख कर वहां मौजूद लोग सन्न रह गए, तभी पगली दौड़ती हुई आई और दम तोड़ रहे समरथ सिंह के पास घुटनों के बल बैठ कर ताली बजाते हुए बोली, ‘‘देखो ठाकुर, तेरे जुल्मों की सजा तेरे साथ तेरी औलाद को भी भोगनी पड़ी. खुद ही जला कर अपनी सोने की लंका राख कर ली.’’

जैसेजैसे समरथ सिंह की सांस धीमी पड़ रही थी, वहां मौजूद लोगों में गुलामी से छुटकारा पाने का एहसास तेज होता जा रहा था. Best Story In Hindi

Hindi Crime Story: नागिन से जहरीली औरत

Hindi Crime Story: घड़ी का अलार्म बजने के साथ ही संगीता सो कर उठ गई. उस समय सुबह के साढ़े 5 बजे थे. संगीता के उठने का रोज यही समय था. उस के पति मुकेश की लुधियाना की दुर्गा कालोनी स्थित अपने घर में ही किराने की दुकान थी. इस कालोनी में अधिकांश मजदूर तबके के लोग रहते थे, जो सुबह ही रोजमर्रा की चीजें दूध, चीनी, चायपत्ती आदि सामान लेने उस की दुकान पर आते थे, इसलिए वह सुबह जल्दी दुकान खोल लेता था. लेकिन उस दिन उस ने दुकान अभी तक नहीं खोली थी.

मुकेश छत पर सो रहा था. गैस चूल्हे पर चाय कापानी चढ़ाने के बाद संगीता ने पति को जगाने के लिए बड़ी बेटी को छत पर भेजा. दरअसल एक दिन पहले स्वतंत्रता दिवस का दिन होने की वजह से पूरे परिवार ने छत पर पतंगें उड़ाने के साथ हुल्लड़बाजी की थी.

उसी मोहल्ले में रहने वाला मुकेश का छोटा भाई रमेश भी अपनी पत्नीबच्चों के साथ वहां आ गया था, लेकिन रात को खाना खाने के बाद वह पत्नीबच्चों सहित अपने घर चला गया था. संगीता अपने बच्चों के साथ सोने के लिए नीचे गई थी. जबकि मुकेश छोटे बेटे करन के साथ छत पर ही सो गया था.

मुकेश को जगाने के लिए बेटी जब छत पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर उस की चीख निकल गई. बेटी के चीखने की आवाज सुन कर संगीता छत पर गई तो वह भी अपनी चीख नहीं रोक सकी. क्योंकि उस का पति मुकेश लहूलुहान पड़ा था. उस की मौत हो चुकी थी. संगीता रोने लगी. उस की और बेटी की रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. तभी किसी ने पुलिस को और मुकेश के भाई रमेश को यह खबर कर दी.

रमेश चूंकि उसी मोहल्ले में रहता था, इसलिए भाई की हत्या की खबर सुन कर वह तुरंत वहां पहुंच गया. बड़े भाई की लाश देख कर उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्योंकि रात को तो सब ने मिल बैठ कर खाना खाया था.कुछ ही देर में थाना फोकल पौइंट के इंसपेक्टर अमनदीप सिंह बराड़ दलबल के साथ दुर्गा कालोनी पहुंच गए.

इंसपेक्टर अमनदीप ने घटनास्थल का मुआयना किया. मुकेश की खून से लथपथ लाश एक चारपाई पर पड़ी थी. देख कर लग रहा था कि उस के सिर और चेहरे पर किसी भारी चीज से वार किए गए थे.

छत पर 3 कमरे बने थे. एक कमरे में मृतक का दोस्त शामजी पासवान अपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था. एक कमरे में मृतक का 7 वर्षीय बेटा करन सो रहा था और मृतक आंगन में बिछी चारपाई पर था.

जब मृतक पर वार किया गया होगा तो उस की चीख भी निकली होगी. यही सोच कर पुलिस ने शामजी पासवान से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गहरीनींद में सोने की वजह से उस ने कोई आवाज नहीं सुनी थी.

निरीक्षण करने पर इंसपेक्टर अमनदीप ने देखा कि छत पर जाने का केवल एक ही रास्ता था. उस दरवाजे में ताला लगाया जाता था. मृतक की पत्नी संगीता से पूछने पर पता चला कि सीढि़यों के दरवाजे पर ताला उस रात भी लगाया गया था. जब ताला लगा था तो वह किस ने खोला. इंसपेक्टर ने संगीता से पूछा तो वह कुछ नहीं बोली.

कुल मिला कर यह बात साबित हुई कि बिना ताला खोले या घर वालों की मरजी के बिना किसी का भी छत पर जाना संभव नहीं था.

बहरहाल घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और रमेश की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की तहकीकात शुरू कर दी. यह बात 16 अगस्त, 2018 की है.

पूछताछ करने पर रमेश ने इंसपेक्टर अमनदीप को बताया, ‘‘कल 15 अगस्त होने की वजह से भैया मुकेश ने हमें अपने घर बुला लिया था. दिन भर हम सब लोग मिल कर पतंगें उड़ाते रहे. शाम को संगीता भाभी ने खाना बनाया.

‘‘भैया और मैं ने पहले शराब पी फिर खाना खाया. बाद में मैं अपने बच्चों के साथ रात के करीब 9 बजे अपने घर चला गया था. सुबह होने पर मुझे भैया की हत्या की खबर मिली.’’

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस में बताया गया कि मुकेश की मौत सिर पर किसी भारी चीज के वार करने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद इंसपेक्टर अमनदीप अपने अधीनस्थों के साथ बैठे इस केस पर चर्चा कर रहे थे.

उन की समझ में यह नहीं आ रहा था कि कोई बाहर का आदमी मृतक की छत पर कैसे पहुंच सकता है. क्योंकि मृतक के मकान के साथ ऊंचेऊंचे मकान बने हुए हैं.

उन ऊंचे मकानों से नीचे वाले मकान पर उतरना बहुत खतरनाक था. मान लो अगर कोई किसी तरह नीचे उतर भी गया तो मुकेश की हत्या कर के वहां से कैसे गया. क्योंकि संगीता के अनुसार सीढि़यों वाला और घर का दरवाजा अंदर से बंद था. सुबह उस ने ही सीढि़यों का और घर का मुख्य दरवाजा खोला था.

संदेह करने वाली बात यह थी कि छत पर रहने वाले किराएदार शामजी को इस बात की तनिक भी भनक नहीं थी और ना ही उस ने कोई आवाज सुनी थी. यह हैरत की बात थी. यह सब देखनेसमझने के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि जो भी हुआ था, घर के अंदर ही हुआ था. इस मामले में बाहर के किसी आदमी का हाथ नहीं था.

क्योंकि मृतक या उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पड़ोसियों ने भी किसी को उस के यहां आतेजाते नहीं देखा था. इंसपेक्टर अमनदीप सिंह ने अपने खबरियों को इस परिवार की कुंडली निकलने के लिए कहा.

जल्द ही पुलिस को कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. इस के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने मृतक के छोटे भाई रमेश को थाने बुला कर उस से बड़ी बारीकी से पूछताछ की तो मुकेश की हत्या का कारण समझ में आ गया.

रमेश से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने पुलिस टीम के साथ संगीता के घर छापा मारा लेकिन तब तक वह और उस का किराएदार शामजी पासवान घर से फरार हो चुके थे.

थानाप्रभारी ने संगीता और शामजी को तलाश करने के लिए एसआई रिचा, एएसआई हरजीत सिंह, हवलदार विजय कुमार, हरविंदर सिंह, अनिल कुमार, बुआ सिंह और सिपाही परमिंदर की टीम को उन की तलाश के लिए लगा दिया.

पुलिस टीम ने सभी संभावित जगहों पर उन्हें तलाशा लेकिन वह नहीं मिले. फिर एक मुखबिर की सूचना पर इस टीम ने 22 अगस्त, 2018 को संगीता और शामजी पासवान को ढंडारी रेलवे स्टेशन से दबोच लिया.

दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने मुकेश की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसी दिन दोनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड में दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के दौरान मुकेश की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

संगीता बचपन से ही अल्हड़ किस्म की थी. अपने मांबाप की लाडली होने के कारण वह मनमरजी करती थी. मात्र 12 साल की उम्र में उस की शादी मुकेश के साथ कर दी गई. मुकेश बिहार के लक्खीसराय जिले के गांव महिसोनी का रहने वाला था. मुकेश अपने 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

मांबाप का नियंत्रण न होने की वजह से संगीता पहले से ही बिगड़ी हुई थी. मुकेश से शादी हो जाने के बाद भी वह नहीं सुधरी. ससुराल में भी उस ने कई लड़कों से संबंध बना लिए. ससुराल वालों ने उसे ऊंचनीच और मानमर्यादा का पाठ पढ़ाया पर संगीता की समझ में किसी की कोई बात नहीं आती थी.

कई साल पहले मुकेश काम की तलाश में लुधियाना आ गया था. लुधियाना में काम सेट होने के बाद मुकेश संगीता को यह सोच कर अपने साथ ले आया कि गांव से दूर एक नए माहौल में शायद वह सुधर जाए. बाद में अपने दोनों भाइयों को भी उस ने लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना आने के बाद मुकेश ने कड़ी मेहनत कर के पैसापैसा बचाया और दुर्गा कालोनी में अपना खुद का मकान बना लिया.

करीब 3 साल पहले मुकेश ने फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और अपने घर में ही किराने की दुकान खोल ली. अब घर रह कर ही उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. मकान के ऊपर एक कमरा उस ने शामजी पासवान को किराए पर दे रखा था. शामजी मुकेश का दोस्त था. कभी दोनों एक साथ फैक्ट्री में काम किया करते थे.

शामजी बड़ा चतुर था. उस की नजर शुरू से ही संगीता पर थी. मुकेश ने जब साइकिल पार्ट्स फैक्ट्री का काम छोड़ दिया, तब उस की जगह संगीता ने फैक्ट्री में जाना शुरू कर दिया था. संगीता और शामजी दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. यहीं से दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए.

शामजी शादीशुदा था. लेकिन उस का कोई बच्चा नहीं था. उस की पत्नी साधारण और सीधीसादी थी. उसे अपने पति और संगीता के बींच संबंधों का पता नहीं चल पाया था.

एक दिन संगीता के बेटे ने अपनी मां शामजी को एक बिस्तर में देखा तो उस ने यह बात अपने पिता को बता दी. इस के बाद मुकेश सतर्क हो गया. एक दिन उस ने भी अपनी पत्नी को शामजी के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने शामजी को खरीखोटी सुनाई और उस से कमरा खाली करने के लिए कह दिया.

संगीता मुकेश पर हावी रहती थी उस ने पति से झगड़ा करते हुए कह दिया कि शामजी उसी मकान में रहेगा. अगर उसे निकाला गया तो वह भी उसी के साथ चली जाएगी. इस धमकी पर मुकेश डर गया. फलस्वरूप संगीता ने शामजी को कमरा खाली नहीं करने दिया.

इस बात को ले कर घर में हर समय कलह रहने लगी. मुकेश पत्नी से नौकरी छोड़ने को कहता था, जबकि वह नौकरी छोड़ने को तैयार नहीं थी.

मुकेश ने किसी तरह पत्नी को समझा कर साइकिल फैक्ट्री से नौकरी छुड़वा कर, के.एस. मुंजाल धागा फैक्ट्री में लगवा दी. अलग फैक्ट्री में काम करने से संगीता और शामजी की बाहर मुलाकात नहीं हो पाती थी.

इस से संगीता और शामजी दोनों परेशान रहने लगे. अंतत: दोनों ने मुकेश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. योजना बनाने के बाद संगीता ने पति से अपने किए पर माफी मांग ली और वादा किया कि भविष्य में वह शामजी से नहीं मिलेगी.

योजना को अंजाम देने के लिए शामजी ने 2 हथौड़े खरीद लिए थे. इस के बाद दोनों हत्या करने का मौका तलाशते रहे. संगीता के 5 बच्चे थे. वह अकसर घर पर रहते थे, जिन की वजह से उन्हें हत्या करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर 15 अगस्त वाले दिन उन्हें मौका मिल गया.

मुकेश शराब पीने का आदी था. शाम को मुकेश ने अपने छोटे भाई रमेश के साथ शराब पी थी. खाना खा कर रमेश अपने घर चला गया था. संगीता ने पति से झगड़ा किया. संगीता जानती थी कि झगड़े के बाद पति छत पर ही सोएगा. हुआ भी यही.

मुकेश अपने छोटे बेटे के साथ छत पर सो गया. संगीता नीचे आ गई. इस के बाद जब रात गहरा गई तो रात 2 बजे संगीता छत पर पहुंची. शामजी भी अपने कमरे से बाहर निकल आया. बिना कोई अवसर गंवाए संगीता ने अपने पति के पैर कस कर पकड़े और पासवान ने उस के सिर पर हथौड़े के भरपूर वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

नशे में धुत होने के कारण उस की चीख तक नहीं निकल सकी. मुकेश की हत्या के बाद शामजी पासवान अपने कमरे में सोने चला गया. जबकि संगीता नीचे कमरे में आ गई. लेकिन उसे सारी रात नींद नहीं आई. सुबह जब बेटी ने छत पर जा कर खून देख कर शोर मचाया. जिस के बाद संगीता ने रोने का ड्रामा करना शुरू कर दिया. पुलिस को पहले से ही संगीता पर शक था. क्योंकि संगीता का रोना महज एक ढोंग दिखाई दे रहा था.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने उन दोनों की निशानदेही पर घर के पीछे खाली प्लौट में भरे पानी में फेंका गया हथौड़ा बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद संगीता और शामजी को फिर से अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर दोनों को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

इस पूरे प्रकरण में दया की पात्र शामजी की पत्नी थी. वह इतनी साधारण और भोली थी कि उसे अभी तक यह भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उस के पति ने मकान मालिक की हत्या कर दी है. वह मृतक मुकेश के पांचों बच्चों का ध्यान रखे हुए है और सभी को सुबहशाम खाना बना कर खिला रही है.     ?

-पुलिस सूत्रों पर आधारित, Hindi Crime Story

Hindi Kahani: वासना का पानी पीकर बनी पतिहंता

Hindi Kahani: सुनील अपनी ड्यूटी से रोजाना रात 9 बजे तक अपने घर वापस पहुंच जाता था. पिछले 12 सालों से उस का यही रूटीन था. लेकिन 21 मई, 2019 को रात के 10 बज गए, वह घर नहीं लौटा.

पत्नी सुनीता को उस की चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन मिलाया तो फोन भी स्विच्ड औफ मिला. वह परेशान हो गई कि करे तो क्या करे. घर से कुछ दूर ही सुनीता का देवर राहुल रहता था. सुनीता अपने 18 वर्षीय बेटे नवजोत के साथ देवर राहुल के यहां पहुंच गई. घबराई हुई हालत में आई भाभी को देख कर राहुल ने पूछा, ‘‘भाभी, क्या हुआ, आप इतनी परेशान क्यों हैं?’’

‘‘तुम्हारे भैया अभी तक घर नहीं आए. उन का फोन भी नहीं मिल रहा. पता नहीं कहां चले गए. मुझे बड़ी चिंता हो रही है. तुम जा कर उन का पता लगाओ. मेरा तो दिल घबरा रहा है. उन्होंने 8 बजे मुझे फोन पर बताया था कि थोड़ी देर में घर पहुंच रहे हैं, खाना तैयार रखना. लेकिन अभी तक नहीं आए.’’

45 वर्षीय सुनील मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले मोहनलाल का बड़ा बेटा था. सुनील के अलावा उन के 3 बेटे और एक बेटी थी. सभी शादीशुदा थे. सुनील लगभग 13 बरस पहले काम की तलाश में लुधियाना आया था. कुछ दिनों बाद यहीं के जनकपुरी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित प्रवीण गर्ग की धागा फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. फिर वह यहीं के थाना सराभा नगर के अंतर्गत आने वाले गांव सुनेत में किराए का घर ले कर रहने लगा. बाद में उस ने अपनी पत्नी और बच्चों को भी लुधियाना में अपने पास बुला लिया.

जब सुनील ने धागा फैक्ट्री में अपनी पहचान बना ली तो अपने छोटे भाई राहुल को भी लुधियाना बुलवा लिया. उस ने राहुल की भी एक दूसरी फैक्ट्री में नौकरी लगवा दी. राहुल भी अपने बीवीबच्चों को लुधियाना ले आया और सुनील से 2 गली छोड़ कर किराए के मकान में रहने लगा.

पिछले 12 सालों से सुनील का रोज का नियम था कि वह रोज ठीक साढे़ 8 बजे काम के लिए घर से अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल पर निकलता था और पौने 9 बजे अपने मालिक प्रवीण गर्ग की गुरुदेव नगर स्थित कोठी पर पहुंच जाता. वह अपनी साइकिल कोठी पर खड़ी कर के वहां से फैक्ट्री की बाइक द्वारा फैक्ट्री जाता था. इसी तरह वह शाम को भी साढ़े 8 बजे छुट्टी कर फैक्ट्री से मालिक की कोठी जाता और वहां बाइक खड़ी कर अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल द्वारा 9 बजे तक अपने घर पहुंच जाता था.

पिछले 12 सालों में उस के इस नियम में 10 मिनट का भी बदलाव नहीं आया था. 21 मई, 2019 को भी वह रोज की तरह काम पर गया था पर वापस नहीं लौटा. इसलिए परिजनों का चिंतित होना स्वाभाविक था. राहुल अपने भतीजे नवजोत और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर सब से पहले अपने भाई के मालिक प्रवीण गर्ग की कोठी पर पहुंचा.

प्रवीण ने उसे बताया कि सुनील तो साढ़े 8 बजे कोठी पर फैक्ट्री की चाबियां दे कर घर चला गया था. प्रवीण ने राहुल को सलाह दी कि सब से पहले वह थाने जा कर इस बात की खबर करे. प्रवीण गर्ग की सलाह मान कर राहुल सीधे थाना डिवीजन नंबर-5 पहुंचा और अपने सुनील के लापता होने की बात बताई.

उस समय थाने में तैनात ड्यूटी अफसर ने राहुल से कहा, ‘‘अभी कुछ देर पहले सिविल अस्पताल में एक आदमी की लाश लाई गई थी, जिस के शरीर पर चोटों के निशान थे. लाश अस्पताल की मोर्चरी में रखी है, आप अस्पताल जा कर पहले उस लाश को देख लें. कहीं वह लाश आप के भाई की न हो.’’

राहुल पड़ोसियों के साथ सिविल अस्पताल पहुंच गया. अस्पताल में जैसे ही राहुल ने स्ट्रेचर पर रखी लाश देखी तो उस की चीख निकल गई. वह लाश उस के भाई सुनील की ही थी.

राहुल ने फोन द्वारा इस बात की सूचना अपनी भाभी सुनीता को दे कर अस्पताल आने के लिए कहा. उधर लाश की शिनाख्त होने के बाद आगे की काररवाई के लिए डाक्टरों ने यह खबर थाना दुगरी के अंतर्गत आने वाली पुलिस चौकी शहीद भगत सिंह नगर को दे दी. सुनील की लाश उसी चौकी के क्षेत्र में मिली थी.

दरअसल, 21 मई 2019 की रात 10 बजे किसी राहगीर ने लुधियाना पुलिस कंट्रोलरूम को फोन द्वारा यह खबर दी थी कि पखोवाल स्थित सिटी सेंटर के पास सड़क किनारे एक आदमी की लाश पड़ी है. कंट्रोलरूम ने यह खबर संबंधित पुलिस चौकी शहीद भगत सिंह नगर को दे दी थी.

सूचना मिलते ही चौकी इंचार्ज एएसआई सुनील कुमार, हवलदार गुरमेल सिंह, दलजीत सिंह और सिपाही हरपिंदर सिंह के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने इस की सूचना एडिशनल डीसीपी-2 जस किरनजीत सिंह, एसीपी (साउथ) जश्नदीप सिंह के अलावा क्राइम टीम को भी दे दी थी.

लाश का निरीक्षण करने पर उस की जेब से बरामद पर्स से 65 रुपए और एक मोबाइल फोन मिला. फोन टूटीफूटी हालत में था, जिसे बाद में चंडीगढ़ स्थित फोरैंसिक लैब भेजा गया था. लाश के पास ही एक बैग भी पड़ा था, जिस में खाने का टिफिन था. मृतक के सिर पर चोट का निशान था, जिस का खून बह कर उस के शरीर और कपड़ों पर फैल गया था.

उस समय लाश की शिनाख्त नहीं हो पाने पर एएसआई सुनील कुमार ने मौके की काररवाई पूरी कर लाश सिविल अस्पताल भेज दी थी.

अस्पताल द्वारा लाश की शिनाख्त होने की सूचना एएसआई सुनील कुमार को मिली तो वह सिविल अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने अस्पताल में मौजूद मृतक की पत्नी सुनीता और भाई राहुल से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए और राहुल के बयानों के आधार पर सुनील की हत्या का मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर आगे की तहकीकात शुरू कर दी.

एएसआई सुनील कुमार ने मृतक की फैक्ट्री में उस के साथ काम करने वालों के अलावा उस के मालिक प्रवीण गर्ग से भी पूछताछ की. यहां तक कि मृतक के पड़ोसियों से भी मृतक और उस के परिवार के बारे में जानकारी हासिल की गई, पर कोई क्लू हाथ नहीं लगा.

सब का यही कहना था कि सुनील सीधासादा शरीफ इंसान था. उस की न तो किसी से कोई दुश्मनी थी और न कोई लड़ाईझगड़ा. अपने घर से काम पर जाना और वापस घर लौट कर अपने बच्चों में मग्न रहना ही दिनचर्या थी.

एएसआई सुनील की समझ में एक बात नहीं आ रही थी कि मृतक की लाश इतनी दूर सिटी सेंटर के पास कैसे पहुंची, जबकि उस के घर आने का रूट चीमा चौक की ओर से था. उस की इलैक्ट्रिक साइकिल भी नहीं मिली. महज साइकिल के लिए कोई किसी की हत्या करेगा, यह बात किसी को हजम नहीं हो रही थी.

बहरहाल, अगले दिन मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था और उस का गला चेन जैसी किसी चीज से घोटा गया था. मृतक के शरीर पर चोट के भी निशान थे. इस से यही लग रहा था कि हत्या से पहले मृतक की खूब पिटाई की गई थी. उस की हत्या का कारण दम घुटना बताया गया.

पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के घर वालों के हवाले कर दी गई. सुनील की हत्या हुए एक सप्ताह बीत चुका था. अभी तक पुलिस के हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा था. मृतक की साइकिल का भी पता नहीं चल पा रहा था.

एएसआई सुनील कुमार ने एक बार फिर इस केस पर बड़ी बारीकी से गौर किया. उन्होंने मृतक की पत्नी, भाई और अन्य लोगों के बयानों को ध्यान से पढ़ा. उन्हें पत्नी सुनीता के बयानों में झोल नजर आया तो उन्होंने उस के फोन की कालडिटेल्स निकलवा कर चैक कीं.

सुनीता की काल डिटेल्स में 2 बातें सामने आईं. एक तो उस ने पुलिस को यह झूठा बयान दिया था कि पति ने उसे 8 बजे फोन कर कहा था कि वह घर आ रहा है, खाना तैयार रखना.

लेकिन कालडिटेल्स से पता चला कि मृतक ने नहीं बल्कि खुद सुनीता ने उसे सवा 8 बजे और साढ़े 8 बजे फोन किए थे. दूसरी बात यह कि सुनीता की कालडिटेल्स में एक ऐसा नंबर था, जिस पर सुनीता की दिन में कई बार घंटों तक बातें होती थीं. घटना वाली रात 21 मई को भी मृतक को फोन करने के अलावा सुनीता की रात साढ़े 7 बजे से ले कर रात 11 बजे तक लगातार बातें हुई थीं.

यह फोन नंबर किस का था, यह जानने के लिए एएसआई सुनील कुमार ने मृतक के भाई और बेटे से जब पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. बहरहाल, एएसआई सुनील कुमार ने 2 महिला सिपाहियों को सादे लिबास में सुनीता पर नजर रखने के लिए लगा दिया. साथ ही मुखबिरों को सुनीता की जन्मकुंडली पता लगाने के लिए कहा. इस के अलावा उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह नंबर आई ब्लौक निवासी मनदीप सिंह उर्फ दीपा का है.

मनदीप पेशे से आटो चालक था. सन 2018 में वह जालसाजी के केस में जेल भी जा चुका था. मनदीप शादीशुदा था और उस की 3 साल की एक बेटी भी थी. हालांकि उस की शादी 4 साल पहले ही हुई थी, लेकिन उस की पत्नी से नहीं बनती थी. पत्नी ने उस के खिलाफ वूमन सेल में केस दायर कर रखा था.

सुनीता पर नजर रखने वाली महिला और मुखबिरों ने यह जानकारी दी कि सुनीता और मनदीप के बीच नाजायज संबंध हैं. इस बीच फोरैंसिक लैब भेजा गया मृतक का फोन ठीक हो कर आ गया, जिस ने इस हत्याकांड को पूरी तरह बेनकाब कर दिया.

एएसआई सुनील कुमार ने उसी दिन सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए पुलिस को गुमराह करने के लिए तरहतरह की कहानियां सुनाने लगी. जब उसे महिला हवलदार सुरजीत कौर के हवाले किया गया तो उस ने पूरा सच उगल दिया.

सुनीता की निशानदेही पर उसी दिन 3 जून को 30 वर्षीय मनदीप सिंह उर्फ दीपा, 18 वर्षीय रमन राजपूत, 23 वर्षीय सन्नी कुमार और 21 वर्षीय प्रकाश को भाई रणधीर सिंह चौक से जेन कार सहित गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन्होंने सुनीता और मनदीप के कहने पर सुनील की हत्या की थी.

पांचों अभियुक्तों को उसी दिन अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में सुनील हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह पति और जवान बच्चों के रहते परपुरुष की बांहों में देहसुख तलाशने वाली एक औरत के मूर्खतापूर्ण कारनामे का नतीजा थी.

सुनील जब धागा फैक्ट्री में अपनी नौकरी पर चला जाता था तो सुनीता घर पर अकेली रह जाती थी. इसी के मद्देनजर उस ने पास ही स्थित प्ले वे स्कूल में चपरासी की नौकरी कर ली. पतिपत्नी के कमाने से घर ठीक से चलने लगा.

इसी प्ले वे स्कूल में मनदीप उर्फ दीपा की बेटी भी पढ़ती थी. पहले मनदीप की पत्नी अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने और लेने आया करती थी, पर एक बार मनदीप अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने आया तब उस की मुलाकात सुनीता से हुई.

सुनीता को देखते ही वह उस का दीवाना हो गया. हालांकि सुनीता उस से उम्र में 10-11 साल बड़ी थी, पर उस में ऐसी कशिश थी, जो मनदीप के मन भा गई. यह बात करीब 9 महीने पहले की है.

सुनीता से नजदीकियां बढ़ाने के लिए मनदीप रोज बेटी को स्कूल छोड़ने के लिए आने लगा. इधर सुनीता भी मनदीप पर पूरी तरह फिदा हो थी. आग दोनों तरफ बराबर लगी थी. इस का एक कारण यह था कि अपनी उम्र के 40वें पड़ाव पर पहुंचने के बाद और 3 युवा बच्चों की मां होने के बावजूद सुनीता के शरीर में गजब का आकर्षण था.

दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद पति सुनील जब घर लौटता तो खाना खाते ही सो जाता था. जबकि उस की बगल में लेटी सुनीता उस से कुछ और ही अपेक्षा करती थी. लेकिन सुनील उस की जरूरत को नहीं समझता था. उसे मनदीप जैसे ही किसी पुरुष की तलाश थी, जो उस की तमन्नाओं को पूरा कर सके.

यही हाल मनदीप का भी था. पत्नी से मनमुटाव होने के कारण वह उसे अपने पास फटकने नहीं देती थी, इसलिए जल्दी ही सुनीता और मनदीप में दोस्ती हो गई, जिसे नाजायज रिश्ते में बदलते देर नहीं लगी थी. पति और बच्चों को स्कूल भेजने के बाद सुनीता स्कूल जाने के बहाने घर से निकलती और मनदीप के साथ घूमतीफिरती. कई महीनों तक दोनों के बीच यह संबंध चलते रहे.

इसी बीच अचानक सुनील को सुनीता के बदले रंगढंग ने चौंका दिया. उस ने अपने बच्चों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि स्कूल से लौटने के बाद मम्मी बनसंवर कर न जाने कहां जाती हैं और आप के काम से लौटने के कुछ देर पहले वापस लौट आती हैं. सुनील को तो पहले से ही शक था, उस ने सुनीता का पीछा किया और उसे मनदीप के साथ बातें करते पकड़ लिया. यह 2 मई, 2019 की बात है.

मनदीप की बात को ले कर सुनील का सुनीता से खूब झगड़ा हुआ और उस ने सुनीता का स्कूल जाना बंद करवा दिया. यहां तक कि उस ने उस का फोन भी उस से ले लिया.

बाद में सुनीता ने माफी मांग कर भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की कसम खाई और स्कूल जाना शुरू कर दिया था. बात करने के लिए मनदीप ने उसे एक नया फोन और सिमकार्ड दे दिया था. वे दोनों फोन पर बातें करते, मिल भी लेते थे. पर अब वे पहले जैसे आजाद नहीं थे.

इस तरह चोरीछिपे मिलने से सुनीता परेशान हो गई. एक दिन सुनीता ने अपने मन की पीड़ा जाहिर करते हुए मनदीप से कहा, ‘‘मनदीप, तुम कैसे मर्द हो, जो एक मरियल से आदमी को भी ठिकाने नहीं लगा सकते. तुम भी जानते हो कि सुनील के जीते जी हमारा मिलना मुश्किल हो गया है.’’

मनदीप ने उसे भरोसा दिया कि काम हो जाएगा. फिर दोनों ने मिल कर सुनील की हत्या की योजना बनाई. अब मनदीप के सामने समस्या यह थी कि वह यह काम अकेले नहीं कर सकता था.

नवंबर, 2019 में मनदीप जब जालसाजी के केस में जेल गया था, तब उस की मुलाकात जेल में बंद पंकज राजपूत से हुई थी. पंकज लुधियाना के थाना टिब्बा में दर्ज दफा 307 के केस में बंद था.

दोनों की जेल में मुलाकात हुई और दोस्ती हो गई थी. कुछ दिन बाद मनदीप की जमानत हो गई और वह जेल से बाहर आ गया. बाहर आने के बाद वह बीचबीच में पंकज से जेल में मुलाकात करने जाता रहता था.

सुनील की हत्या की योजना बनाने के बाद उस ने जेल जा कर पंकज को अपनी समस्या के बारे में बताया. पंकज ने उसे अपने 2 साथियों रमन और प्रकाश के बारे में बताया.

उस ने मनदीप के फोन से रमन को फोन कर मनदीप का साथ देने को कह दिया. रमन ने इस काम के लिए 10 हजार रुपए मांगे, जो मनदीप ने दे दिए थे. रमन और प्रकाश ने अपने साथ सन्नी को भी शामिल कर लिया था.

सुनीता ने किराए के हत्यारों को सुनील का पूरा रुटीन बता दिया कि वह कितने बजे काम पर जाता है, कितने बजे किस रास्ते से घर लौटता है, वगैरह.

इन बदमाशों ने तय किया कि सुनील को घर लौटते समय रास्ते में कहीं घेर लिया जाएगा. सुनील की हत्या के लिए 20 मई, 2019 का दिन चुना गया था पर टाइमिंग गलत होने से उस दिन सुनील बच गया.

अगले दिन 21 मई को रात 8 बजे मनदीप सन्नी को अपने साथ ले कर बीआरएस नगर से अपनी जेन कार द्वारा एक धार्मिक स्थल पर पहुंचा. रमन और प्रकाश भी बाइक से वहां पहुंच गए थे. इस के बाद चारों सुनील के मालिक की कोठी के पास मंडराने लगे.

सुनील अपने मालिक की कोठी पर फैक्ट्री की चाबियां देने के बाद अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल से घर के निकला तो चीमा चौक के पास चारों ने उसे घेर कर जेन कार में डाल लिया. उस की साइकिल सन्नी ले कर चला गया जो उस ने लेयर वैली में फेंक दी थी.

सुनील को कार में डालने के बाद मनदीप ने उस के सिर पर लोहे की रौड से वार कर उसे घायल कर दिया. फिर सब ने मिल कर उस की खूब पिटाई की. इस के बाद साइकिल की चेन उस के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया.

सुनील की हत्या करने के बाद वे उस की लाश को सिटी सेंटर ले आए और सड़क किनारे सुनसान जगह पर फेंक कर रात 11 बजे तक सड़कों पर घूमते रहे. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए. शाम साढ़े 7 बजे से रात के 11 बजे तक सुनीता लगातार फोन द्वारा मनदीप के संपर्क में थी. वह उस से पलपल की खबर ले रही थी.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चेन भी बरामद कर ली, लेकिन कथा लिखे जाने तक मृतक की साइकिल बरामद नहीं हो सकी.

रिमांड खत्म होने के बाद पुलिस ने सुनील की हत्या के अपराध में उस की पत्नी सुनीता, सुनीता के प्रेमी मनदीप उर्फ दीपा, रमन, प्रकाश और सन्नी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. Hindi Kahani

Hindi Crime Story: अपमान और नफरत की साजिश

Hindi Crime Story: मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को बहुत चाहता था. थोड़ी कोशिश के बाद न सिर्फ उस की यह मुराद पूरी हुई बल्कि रुक्मिणी से उस की शादी भी हो गई. शादी के कुछ दिनों बाद ही ऐसा क्या हुआ कि उस ने अपनी पत्नी रुक्मिणी के ऊपर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी…

पहली मई, 2019 की बात है. दिन के करीब 12 बजे का समय था, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर से

करीब 90 किलोमीटर दूर थाना पारनेर क्षेत्र के गांव निधोज में उस समय अफरातफरी मच गई, जब गांव के एक घर में अचानक आग के धुएं, लपटों और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हुईं. चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. लेकिन घर के मुख्यद्वार पर ताला लटका देख खुद को असहाय महसूस करने लगे.

दरवाजा टूटते ही घर के अंदर से 3 बच्चे, एक युवक और युवती निकल कर बाहर आए. बच्चों की हालत तो ठीक थी, लेकिन युवती और युवक की स्थिति काफी नाजुक थी. गांव वालों ने आननफानन में एंबुलेंस बुला कर उन्हें स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उन का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पुणे के सेसूनडाक अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. साथ ही इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम से मिली जानकारी पर थाना पारनेर के इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने चार्जरूम में मौजूद ड्यूटी अफसर को बुला कर तुरंत इस मामले की डायरी बनवाई और बिना विलंब के एएसआई विजय कुमार बोत्रो, सिपाही भालचंद्र दिवटे, शिवाजी कावड़े और अन्ना वोरगे के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने अपने मोबाइल फोन से मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में पहुंची, वहां काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. इन में अधिकतर उस युवक और युवती के सगेसंबंधी थे. पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम रुक्मिणी है और युवक का नाम मंगेश रणसिंग लोहार. रुक्मिणी लगभग 70 प्रतिशत और मंगेश 30 प्रतिशत जल चुका था. अधिक जल जाने के कारण रुक्मिणी बयान देने की स्थिति में नहीं थी. मंगेश रणसिंग भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं था.

इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने मंगेश रणसिंग और अस्पताल के डाक्टरों से बात की. इस के बाद वह अस्पताल में पुलिस को छोड़ कर खुद घटनास्थल पर आ गए.

घटना रसोईघर के अंदर घटी थी, जहां उन्हें पैट्रोल की एक खाली बोतल मिली. रसोईघर में बिखरे खाना बनाने के सामान देख कर लग रहा था, जैसे घटना से पहले वहां पर हाथापाई हुई हो.

जांचपड़ताल के बाद उन्होंने आग से बच गए बच्चों से पूछताछ की. बच्चे सहमे हुए थे. उन से कोई खास बात पता नहीं चली. वह गांव वालों से पूछताछ कर थाने आ गए. मंगेश रणसिंग के भाई महेश रणसिंग को वह साथ ले आए थे. उसी के बयान के आधार पर रुक्मिणी के परिवार वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.

इस मामले में रुक्मिणी का बयान महत्त्वपूर्ण था. लेकिन वह कोई बयान दर्ज करवा पाती, इस के पहले ही 5 मई, 2019 को उस की मृत्यु हो गई. मंगेश रणसिंग और उस के भाई महेश रणसिंग के बयानों के आधार पर यह मामला औनर किलिंग का निकला.

रुक्मिणी की मौत के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसे ले कर सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग सड़क पर उतर आए और संबंधित लोगों की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. इस से जांच टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव बढ़ गया. उसी दबाव में पुलिस टीम ने रुक्मिणी के चाचा घनश्याम सरोज और मामा सुरेंद्र भारतीय को गिरफ्तार कर लिया. रुक्मिणी के पिता मौका देख कर फरार हो गए थे.

पुलिस रुक्मिणी के मातापिता को गिरफ्तार कर पाती, इस से पहले ही इस केस ने एक नया मोड़ ले लिया. रुक्मिणी और मंगेश रणसिंग के साथ आग में फंसे बच्चों ने जब अपना मुंह खोला तो मामला एकदम अलग निकला. बच्चों के बयान के अनुसार पुलिस ने जब गहन जांच की तो मंगेश रणसिंग स्वयं ही उन के राडार पर आ गया.

मामला औनर किलिंग का न हो कर एक गहरी साजिश का था. इस साजिश के तहत मंगेश रणसिंग ने अपनी पत्नी की हत्या करने की योजना बनाई थी. पुलिस ने जब मंगेश से विस्तृत पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए रुक्मिणी हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह रुक्मिणी के परिवार वालों और रुक्मिणी के प्रति नफरत से भरी हुई थी.

23 वर्षीय मंगेश रणसिंग गांव निधोज का रहने वाला था. उस के पिता चंद्रकांत रणसिंग जाति से लोहार थे. वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर राजगीर का काम करते थे. घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी गांव में उन की काफी इज्जत थी. सीधेसादे सरल स्वभाव के चंद्रकांत रणसिंग के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी प्रिया और 3 बेटे महेश रणसिंग और ओंकार रणसिंग थे.

मंगेश रणसिंग परिवार में सब से छोटा था. वह अपने दोस्तों के साथ सारा दिन आवारागर्दी करता था. गांव के स्कूल से वह किसी तरह 8वीं पास कर पाया था. बाद में वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा. धीरेधीरे उस में पिता के सारे गुण आ गए. राजगीर के काम में माहिर हो जाने के बाद उसे पुणे की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई.

वैसे तो मंगेश को पुणे से गांव आनाजाना बहुत कम हो पाता था, लेकिन जब भी वह अपने गांव आता था तो गांव में अपने आवारा दोस्तों के साथ दिन भर इधरउधर घूमता और सार्वजनिक जगहों पर बैठ कर गप्पें मारता. इसी के चलते जब उस ने रुक्मिणी को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया.

20 वर्षीय रुक्मिणी और मंगेश का एक ही गांव था. उस का परिवार भी उसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता था, जिस पर मंगेश अपने पिता के साथ काम करता था. इस से मंगेश रणसिंग का रुक्मिणी के करीब आना आसान हो गया था. रुक्मिणी का परिवार उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता रामा रामफल भारतीय जाति से पासी थे. सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में गांव से अहमदनगर आ गए थे. बाद में वह अहमदनगर के गांव निधोज में बस गए थे. यहीं पर उन्हें एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया था.

बाद में उन्होंने अपनी पत्नी सरोज और साले सुरेंद्र को भी वहीं बुला लिया था. परिवार में रामा रामफल भारतीय के अलावा पत्नी, 2 बेटियां रुक्मिणी व 5 वर्षीय करिश्मा थीं.

अक्खड़ स्वभाव की रुक्मिणी जितनी सुंदर थी, उतनी ही शोख और चंचल भी थी. मंगेश रणसिंग को वह अच्छी लगी तो वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा.

मंगेश रणसिंग पहली ही नजर में रुक्मिणी का दीवाना हो गया था. वह रुक्मिणी को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. उस की यह मुराद पूरी भी हुई.

कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक्मिणी के परिवार वालों का काम करने की वजह से मंगेश रणसिंग की राह काफी आसान हो गई थी. वह पहले तो 1-2 बार रुक्मिणी के परिवार वालों के बहाने उस के घर गया. इस के बाद वह मौका देख कर अकेले ही रुक्मिणी के घर आनेजाने लगा.

मंगेश रुक्मिणी से मीठीमीठी बातें कर उसे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता. साथ ही उसे पैसे भी देता और उस के लिए बाजार से उस की जरूरत का सामान भी लाता. जब भी वह रुक्मिणी से मिलने उस के घर जाता, उस के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता. साथ ही उस के भाई और बहन के लिए भी खानेपीने की चीजें ले जाता था.

मांबाप की जानपहचान और उस का व्यवहार देख कर रुक्मिणी भी मंगेश की इज्जत करती थी. रुक्मिणी उस के लिए चायनाश्ता करा कर ही भेजती थी. मंगेश रणसिंह तो रुक्मिणी का दीवाना था ही, रुक्मिणी भी इतनी नादान नहीं थी. 20 वर्षीय रुक्मिणी सब कुछ समझती थी.

वह भी धीरेधीरे मंगेश रणसिंग की ओर खिंचने लगी थी. फिर एक समय ऐसा भी आया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह मंगेश की बांहों में आ गिरी.

अब दोनों की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एकदूसरे के लिए बेचैन रहने लगे. उन के प्यार की ज्वाला जब तेज हुई तो उस की लपट उन के घर वालों तक ही नहीं बल्कि अन्य लोगों तक भी जा पहुंची.

मामला नाजुक था, दोनों परिवारों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों शादी करने के अपने फैसले पर अड़े रहे.

आखिरकार मंगेश रणसिंग के परिवार वालों ने उस की जिद की वजह से अपनी सहमति दे दी. लेकिन रुक्मिणी के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. फिर भी वह पत्नी के समझाने पर राजी हो गए. अलगअलग जाति के होने के कारण दोनों की शादी में उन का कोई नातेरिश्तेदार शामिल नहीं हुआ.

एक सादे समारोह में दोनों की शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में दरार आने लगी. दोनों के प्यार का बुखार उतरने लगा था. दोनों छोटीछोटी बातों को ले कर आपस में उलझ जाते थे. अंतत: नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

30 अप्रैल, 2019 को मंगेश रणसिंग ने किसी बात को ले कर रुक्मिणी को बुरी तरह पीट दिया था. रुक्मिणी ने इस की शिकायत मां निर्मला से कर दी, जिस की वजह से रुक्मिणी की मां ने उसे अपने घर बुला लिया. उस समय रुक्मिणी 2 महीने के पेट से थी. इस के बाद जब मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को लाने के लिए उस के घर गया तो रुक्मिणी के परिवार वालों ने उसे आड़ेहाथों लिया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया.

रुक्मिणी के परिवार वालों के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग नाराज हो गया. उस ने इस अपमान के लिए रुक्मिणी के घर वालों को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली.

बदमाश प्रवृत्ति के मंगेश रणसिंग की इस धमकी से रुक्मिणी के परिवार वाले डर गए, जिस की वजह से वे रुक्मिणी को न तो घर में अकेला छोड़ते थे और न ही बाहर आनेजाने देते थे.  रुक्मिणी का परिवार सुबह काम पर जाता तो रुक्मिणी को उस के छोटे भाइयों और छोटी बहन के साथ घर के अंदर कर बाहर से दरवाजे पर ताला डाल देते थे, जिस से मंगेश उन की गैरमौजूदगी में वहां आ कर रुक्मिणी को परेशान न कर सके.

इस सब से मंगेश को रुक्मिणी और उस के परिवार वालों से और ज्यादा नफरत हो गई. उस की यही नफरत एक क्रूर फैसले में बदल गई. उस ने रुक्मिणी की हत्या कर पूरे परिवार को फंसाने की साजिश रच डाली.

घटना के दिन जब रुक्मिणी के परिवार वाले अपनेअपने काम पर निकल गए तो अपनी योजना के अनुसार मंगेश पहले पैट्रोल पंप पर जा कर इस बहाने से एक बोतल पैट्रोल खरीद लाया कि रास्ते में उस के दोस्त की मोटरसाइकिल बंद हो गई है. यही बात उस ने रास्ते में मिले अपने दोस्त सलमान से भी कही.

फिर वह रुक्मिणी के घर पहुंच गया. उस समय रुक्मिणी रसोईघर में अपने भाई और बहन के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. घर के दरवाजे पर पहुंच कर मंगेश रणसिंग जोरजोर दरवाजा पीटते हुए रुक्मिणी का नाम ले कर चिल्लाने लगा. वह ताले की चाबी मांग रहा था.

दरवाजे पर आए मंगेश से न तो रुक्मिणी ने कोई बात की और न दरवाजे की चाबी दी. वह उस की तरफ कोई ध्यान न देते हुए खाना बनाने में लगी रही.

रुक्मिणी के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग का पारा और चढ़ गया. वह किसी तरह घर की दीवार फांद कर रुक्मिणी के पास पहुंच गया और उस से मारपीट करने लगा. बाद में उस ने अपने साथ लाई बोतल का सारा पैट्रोल  रुक्मिणी के ऊपर डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया.

मंगेश की इस हरकत से रुक्मिणी के भाईबहन बुरी तरह डर गए थे. वे भाग कर रसोई के एक कोने में छिप गए. जब आग की लपटें भड़कीं तो रुक्मिणी दौड़ कर मंगेश से कुछ इस तरह लिपट गई कि मंगेश को उस के चंगुल से छूटना मुश्किल हो गया. इसीलिए वह भी रुक्मिणी के साथ 30 प्रतिशत जल गया.

इस के बावजूद भी मंगेश का शातिरपन कम नहीं हुआ. अस्पताल में उस ने रुक्मिणी के परिवार वालों के विरुद्ध बयान दे दिया. उस का कहना था कि उस की इस हालत के लिए उस के ससुराल वाले जिम्मेदार हैं.

उस की शादी लवमैरिज और अंतरजातीय हुई थी. यह बात रुक्मिणी के घर वालों को पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे घर बुला कर पहले उसे मारापीटा और जब रुक्मिणी उसे बचाने के लिए आई तो उन्होंने दोनों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

अपमान और नफरत की आग में जलते मंगेश रणसिंग की योजना रुक्मिणी के परिवार वालों के प्रति काफी हद तक कामयाब हो गई थी. लेकिन रुक्मिणी के भाई और उस के दोस्त सलमान के बयान से मामला उलटा पड़ गया.

अब यह केस औनर किलिंग का न हो कर पति और पत्नी के कलह का था, जिस की जांच पुलिस ने गहराई से कर मंगेश रणसिंग को अपनी हिरासत में ले लिया.

उस से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 307, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद रुक्मिणी के परिवार वालों को रिहा कर दिया गया. Hindi Crime Story

Hindi Crime Story: शिवानी की मर्डर मिस्ट्री – कौन था कातिल

Hindi Crime Story: विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री.

20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी. लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.

उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे.

कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई.

गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं.

लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.

शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी.

उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी.

इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था.

पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.

पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.

पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई.

योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया.

पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी.

वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.

पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.

पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

पति और पत्नी के रिश्ते की नींव एकदूसरे के विश्वास पर टिकी होती है, कई बार यह नींव शक की वजह से कमजोर पड़ जाती है.

इस के चलते मजबूत से मजबूत रिश्ता भी टूटने की कगार पर पहुंच जाता है या टूट कर बिखर जाता है. शिवानी के मामले में भी यही हुआ. काश! पुष्कर पत्नी पर शक न करता तो शायद उस का परिवार बरबाद न होता. Hindi Crime Story

Story In Hindi: समुद्र से सागर तक

Story In Hindi: 3 दिनों से बंद फ्लैट की साफसफाई और हर चीज व्यवस्थित कर के साक्षी लैपटौप और मोबाइल फोन ले कर बैठी तो फोन में बिना देखे तमाम मैसेज पड़े थे. लैपटौप में भी तमाम मेल थे. पिछले 3 दिनों में लैपटौप की कौन कहे, मोबाइल तक देखने को नहीं मिला था. मां को फोन भी वह तब करती थी, जब बिस्तर पर सोने के लिए लेटती थी. मां से बातें करतेकरते वह सो जाती तो मां को ही फोन बंद करना पड़ता.

पहले उस ने लैपटौप पर मेल पढ़ने शुरू किए. वह एकएक मैसेज पढ़ने लगी. ‘‘हाय, क्या कर रही हो? आज आप औनलाइन होने में देर क्यों कर रही हैं?’’

‘‘अरे कहां है आप? कल भी पूरा दिन इंतजार करता रहा, पर आप का कोई जवाब ही नहीं आया?’’

‘‘अब चिंता हो रही है. सब ठीकठाक तो है न?’’

‘‘मानता हूं काम में बिजी हो, पर एक मैसेज तो कर ही सकती हो.’’ सारे मैसेज एक ही व्यक्ति के थे.

मैसेज पढ़ कर हलकी सी मुसकान आ गई सरिता के चेहरे पर. उसे यह जान कर अच्छा लगा कि कोई तो है जो उस की राह देखता है, उस की चिंता करता है. उस ने मैसेज टाइप करना शुरू किया.

‘‘मैं अपने इस संबंध को नाम देना चाहती हूं. आखिर हम कब तक बिना नाम के संबंध में बंधे रहेंगे. आप का तो पता नहीं, पर मैं तो अब संबंध की डोर में बंध गई हूं. यही सवाल मैं ने आप से पहले भी किया था, पर न जाने क्यों आप इस सवाल का जवाब टालते रहे. जवाब देने की कौन कहे, आप बात ही करना बंद कर देते हो. आखिर क्यों.?

‘‘एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए. बिना किसी नाम का दिशाहीन संबंध मुझे पसंद नहीं है. हमेशा दुविधा में रहना अच्छा नहीं लगता. पिछले 3 दिनों से आप के संदेश की राह देख रही हूं. गुस्सा तो बहुत आता है पर आप पर गुस्सा करने का हक है भी या नहीं, यह मुझे पता नहीं. आखिर मैं आप के किसी काम की या आप मेरे किस काम के..?

‘‘आप के साथ भी मुझे मर्यादा तय करनी है. है कोई मर्यादा? आप को पता होना चाहिए, अब मैं दुविधा में नहीं रहना चाहती. मैं आप को किसी संबंध में बांधने के लिए जबरदस्ती मजबूर नहीं कर रही हूं. पर अगर संबंध जैसा कुछ है तो उसे एक नाम तो देना ही पड़ेगा. खूब सोचविचार कर बताइएगा.

‘‘मेरे लिए आप का जवाब महत्त्वपूर्ण है. मैं आप की कौन हूं? इतनी निकटता के बाद भी यह पूछना पड़ रहा है, जो मुझे बहुत खटक रहा है. —आप के जवाब के इंतजार में सरिता.’’

सरिता काफी देर तक लैपटौप पर नजरें गड़ाए रही. उन के बीच पहली बार ऐसा नहीं हो रहा था. इस के पहले भी सरिता ने कुछ इसी तरह की या इस से कुछ अलग तरह की बात कही थी. पर हर बार किसी न किसी बहाने बात टल जाती थी. देखा जाए तो दोनों के बीच कोई खास संबंध नहीं था. दोनों कभी मिले भी नहीं थे. एकदूसरे से न कोई वादा किया था, न कोई वचन दिया था.

बस, उन के बीच बातों का ही व्यवहार था. कभी खत्म न हो, ऐसी बातें. उस की बातें सरिता को बहुत अच्छी लगती थीं. दोनों दिनभर एकदूसरे को मेल या चैटिंग करते रहते. बीचबीच में अपना काम कर के फिर चैटिंग पर लग जाते. समयसमय पर मेल भी करते.

दोनों की जानपहचान अनायास ही हुई थी. मेल आईडी टाइप करने में हुई एक अक्षर की अदलाबदली की तरह से. ध्यान नहीं दिया और मेल सैंड हो गया. उस के रिप्लाय में आया. सौरी, सामने से फिर जवाब, करतेकरते दोनों को एकदूसरे का जवाब देने की आदत सी पड़ गई.

जल्दी ही उन की बातें एकदूसरे की जरूरत बन गईं. दोनों का परिचय हुए 3 महीने हो चुके थे, पर ऐसा लगता था, जैसे वे न जाने कब से परिचित हैं, दोनों में गहरा लगाव हो गया था, उन का स्वभाव भी अलग था और व्यवसाय भी, फिर भी दोनों नजदीक आ गए थे.

वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कालेज में हिंदी का प्रोफेसर था. साहित्य का भंडार था उस के पास. कभी वह खुद की लिखी कोई गजल या शायरी सुनाता तो कभी अपनी यूनिवर्सिटी की मजाकिया बातें कह कर हंसाता. सरिता उस की छोटी से छोटी बात ध्यान से सुनती और पढ़ती. उस के साथ के क्षणों में, उस की बातों में आसपास का सब बिसार कर खो सी जाती.

पर जब वह 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई तो मन जैसे अपनी बात कहने को विकल हो उठा. आज दिल की बात कह ही देनी है, यह निश्चय कर के वह दाहिने कान के पीछे निकल आई लट को अंगुलियों में ले कर डेस्क पर रखे लैपटौप की स्क्रीन में खो गई. जैसे वह सामने बैठा है और वह उस की आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात कह रही है. वह मैसेज टाइप करने लगी.

‘‘हाय 3 दिनों के लिए कंपनी टूर पर मुंबई गई थी. जाने का प्लान अचानक बना, इसलिए तुम्हें बता नहीं सकी, बहुत परेशान किया न तुम्हें? पर सच कहूं, 3 दिनों तक तुम से दूर रह कर मेरे मन में हिम्मत आई कि मैं अपने मन की बात तुम से खुल कर कह सकूं. क्या करूं, थोड़ी डरपोक हूं न? आज तुम्हें मैं अपने एक दूसरे मित्र से मिलवाती हूं. अभी नईनई मित्रता हुई है जानते हो किस से? जी हां, दरिया से… हां, दरिया, समुद्र, सागर…

‘‘नजर में न भरा जा सके, इतना विशाल, चाहे जितना देखो, कभी मन न भरे. इतना आकर्षक कि मन करता है हमेशा देखते रहो. मेरे लिए यह सागर हमेशा एक रहस्य ही रहा है. कहीं कलकल बहता है तो कहीं एकदम शांत तो कहीं एकदम तूफानी.

‘‘समुद्र मुझे बहुत प्यारा लगता है. घंटों उस के सान्निध्य में बैठी रहती हूं, फिर भी थकान नहीं लगती. पर मेरा यह प्यार दूरदूर से है. दूर से ही बैठ कर उस की लहरों को उछलते देखना, उस की आवाज को मन में भर लेना. इस तरह देखा जाए तो यह सागर मेरा ‘लौंग डिसटेंस फ्रेंड’ कहा जा सकता है, एकदम तुम्हारी ही तरह. हम मन भर कर बात करते हैं, कभीकभी एकदूसरे से गुस्सा भी होते हैं, पर जब नजदीकी की बात आती है तो मैं डर जाती हूं. दूर से ही नमस्कार करने लगती हूं.

‘‘पर इस सब को कहीं एक किनारे रख दो. मैं भले ही सागर के करीब न जाऊं, दूर से ही उसे देखती रहूं, पर वह किसी न किसी युक्ति से मुझे हैरान करने आ ही जाता है. दूर रहते हुए भी उस की हलकी सी हवा का झोंका मेरे शरीर में समा जाता है. मजाल है कि मैं उस के स्पर्श से खुद को बचा पाऊं. एकदम तुम्हारी ही तरह वह भी जिद्दी है.

‘‘उस की इस शरारत से कल मेरे मन में एक नटखट विचार आया. मन में आया कि क्यों न हिम्मत कर के एक कदम उस की ओर बढ़ाऊं. चप्पल उतार कर उस की ओर बढ़ी. एकदम किनारे रह कर पैर पानी में छू जाए इतना ही बढ़ी थी. वह पहले से भी ज्यादा पागल बन कर मेरी ओर बढ़ा और मुझे पूरी तरह भिगो दिया. जैसे कह रहा हो, बस मैं तुम्हारी पहल की ही राह देख रहा था, बाकी मैं तो तुम्हें कब से भिगोने को तैयार था.

‘‘मैं उस के इस अथाह प्रेम में डूबी वहीं की वहीं खड़ी रह गई. मैं ने तो केवल पैर धोने के लिए पानी मांगा था, उस ने मुझे पूरी की पूरी अपने में समा लिया था. कहीं सागर तुम्हारा रूप ले कर तो नहीं आया था? शायद नाम की वजह से दोनों का स्वभाव भी एक जैसा हो. वह समुद्र और तुम सागर. दोनों का स्थान मेरे मन में एक ही है. सच कहूं, अगर मैं एक कदम आगे बढ़ाऊं तो क्या तुम मुझे खुद में समा लोगे? —तुम्हारी बनने को आतुर सरिता’’

क्या जवाब आता है, यह जानने के लिए सरिता का दिल जोजोर से धड़कने लगा था. दिल में जो आया, वह कह दिया. अब क्या होगा, यह देखने के लिए वह एकटक स्क्रीन को ताकती रही.

सागर में उछाल मार रहे समुद्र की एक फोटो भेजी. मतलब सरिता की पहल को उस ने स्वीकार कर लिया था.

प्रकृति के नियम के अनुसार फिर एक सरिता बहती हुई अपने सागर मे मिलने का अनोखा मिलन रचने जा रही थी. Story In Hindi

Hindi Story: फंसे ऐश करने में – क्या प्रकाश और सुरेंद्र की लालसा हो पाई पूरी

Hindi Story: सुरेंद्र पहले ऐसा नहीं था. वह अपने परिवार में मस्त रहता था, पर काम करते उस के दोस्त प्रकाश ने उस की सोच बदल दी. वे दोनों सैंट्रल रेलवे मुंबई के तकनीकी विभाग में थे और बहुमंजिला इमारत में अपने फ्लैट में रहते थे.

सुरेंद्र का फ्लैट तीसरी मंजिल पर था, जबकि प्रकाश का पहली मंजिल पर. सुरेंद्र तकरीबन 54 साल का था और प्रकाश भी उसी का हमउम्र था. दोनों के पत्नी व बच्चे उन के साथ ही रहते थे.एक बार उन दोनों के परिवार वाले त्योहार में शामिल होने के लिए किसी रिश्तेदारी में चले गए.

शाम को दफ्तर से लौटने पर दोनों बैठ कर जाम चढ़ाते, फिर घूमने निकल जाते. खापी कर दोनों देर रात को लौटते.  बच्चे बड़े हो गए थे. उन की पढ़ाई और कैरियर बनाने की चिंता सताने लगती. बड़ी होती बेटियों की शादी की चिंता से छुटकारा पाने के लिए दोनों बोतल खोल कर बैठ जाते. ह्विस्की के रंगीन नशे में आसपास घूमती खूबसूरत लड़कियों को पाने की लालसा उन की बातचीत का मुद्दा बनने लगीं.

बुढ़ाती पत्नियां पुरानी लगने लगीं. वे दोनों किसी जवान लड़की के आगोश में खोने के सपने देखने लगे. प्रकाश ने मौजमस्ती के लिए सुरेंद्र को राजी किया और एक कालगर्ल को ले आया. शराब और शबाब के मेल से दोनों रातें रंगीन करते रहे. बीवीबच्चों के लौट आने पर ही यह सिलसिला बंद हुआ.

दिसंबर का महीना था. मौसम खुशगवार था. प्रकाश अपने परिवार के साथ कहीं बाहर गया था. सुरेंद्र के परिवार वाले भी मुंबई में ही एक रिश्तेदारी में गए थे और उन सब का रात को वहीं रुकने का प्रोग्राम था.दफ्तर से लौटते समय रास्ते में सुरेंद्र को जूली मिल गई.

जूली को वह और प्रकाश 2-3 बार अपने फ्लैट पर ला चुके थे.जूली 35 साल के आसपास की अच्छी कदकाठी की खूबसूरत औरत थी, जो चोरीछिपे कालगर्ल का धंधा कर के चार पैसे कमा लेती थी. लटके?ाटके दिखा कर वह अपने कुछ चुने हुए ग्राहकों को संतुष्ट करने की कला बखूबी जानती थी, इसलिए उस की मांग बनी हुई थी.5 सौ रुपए और 2 बीयर की बोतलों पर सौदा पक्का हुआ.

बृहस्पतिवार का दिन था.रात को तकरीबन 9 बजे अपने वादे के मुताबिक जूली आ गई और दोनों खानेपीने और रासरंग में मस्त हो गए.रात को 2 बजे सुरेंद्र के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. पत्नी की आवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं दरवाजे पर खड़ीखड़ी कालबेल बजा रही हूं और तुम घोड़े बेच कर सो रहे हो क्या? जल्दी से दरवाजा खोलो.’यह सुन कर सुरेंद्र के बदन में डर की एक ठंडी लहर घूम गई.

पत्नी और बेटी ने अगर जूली को देख लिया तो…? पत्नी तो हंगामा खड़ा कर देगी. बेटी को तो वह मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. अड़ोसपड़ोस में जो बदनामी होगी, सो अलग.सुरेंद्र ने जूली को तुरंत पीछे बालकनी से नीचे कूद जाने को कहा.‘‘कैसे?’’ जूली घबरा कर बोली.सुरेंद्र ने डबलबैड की बैडशीट उठा कर बालकनी की रेलिंग से बांध कर लटका दी, पर वह छोटी पड़ रही थी.

उस ने पत्नी की एक साड़ी निकाल कर बैडशीट के निचले सिरे से बांध कर साड़ी लटका दी. अब उस का सिरा नीचे जमीन तक पहुंच रहा था.‘‘इसी चादर और साड़ी की रस्सी को पकड़ कर तुम लटक जाओ और धीरेधीरे उतर जाओ,’’ सुरेंद्र ने जूली को सम?ाते हुए कहा.जूली ने वैसा ही किया.

रस्सी से लटक कर वह नीचे की ओर जाने लगी.यह देख कर सुरेंद्र ने राहत की सांस ली. बालकनी का दरवाजा बंद कर के उस ने कमरे का दरवाजा खोल दिया. पत्नी और बेटी ?ाल्लाती हुईं अंदर आ गईं. थोड़ी ही देर में वे तीनों सो गए.रात के 3 बजे दरवाजे पर जोरजोर से  खटखटाने की आवाज सुन कर ?ां?ालाते हुए सुरेंद्र ने दरवाजा खोला, तो देखा सामने पुलिस खड़ी थी.

डंडा हिलाते हुए इंस्पैक्टर ने बालकनी का दरवाजा खोला और वहां से नीचे ?ांकने लगा. सुरेंद्र की पत्नी और बेटी डर के मारे इंस्पैक्टर को हैरानी से देखने लगीं.‘‘गार्ड ने बताया कि आप का नाम सुरेंद्र है और आप इसी फ्लैट में रहते हैं?’’ इंस्पैक्टर ने सवालिया नजरों से घूरते हुए पूछा. ‘‘जी हां…’’ सुरेंद्र सकपकाते हुए बोला, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आधी रात को अचानक… आखिर बात क्या है?’’‘‘बात बहुत ही गंभीर है मिस्टर सुरेंद्र. हम आप को इसी समय हिरासत में ले रहे हैं.

’’‘लेकिन क्यों?’ सुरेंद्र की पत्नी और बेटी दोनों एकसाथ चिल्लाईं.बालकनी की रेलिंग से बंधी चादर व साड़ी को दिखाते हुए इंस्पैक्टर बोला, ‘‘नीचे एक औरत की लाश पाई गई है. वह इसी रस्सी के सहारे इस फ्लैट से भाग रही थी, मगर साड़ी उस का वजन न सह सकी और गांठ खुल गई, जिस से वह फर्श पर जा गिरी और सिर फट जाने से तुरंत मर गई.’’‘‘वह चोरी कर के भाग रही होगी,’’

पत्नी ने कहा.‘‘नहीं, उसे आप के पति ने आप के आने पर भगाया. वह चोर नहीं कालगर्ल थी. ‘‘मु?ो इस बिल्डिंग के गार्ड ने बताया कि आप रात को 2 बजे बाहर से आई हो. 2 बज कर, 15 मिनट पर गार्ड को किसी के गिरने व चीखने की आवाज सुनाई पड़ी. उस ने जा कर देखा और पुलिस को सूचित किया.’’रात के साढ़े 3 बजे सुरेंद्र को पुलिस गिरफ्तार कर के थाने ले गई और सुबह 10 बजे कोर्ट में पेश कर के रिमांड की मांग की. कोर्ट ने गैरइरादतन हत्या का आरोपी मानते हुए सुरेंद्र को 3 दिन की रिमांड पर पुलिस कस्टडी में दे दिया. Hindi Story

Story In Hindi: वसूली – क्या हुआ था रधिया के साथ

Story In Hindi: रधिया का पति बिकाऊ एक बड़े शहर में दिहाड़ी मजदूर था. रधिया पहले गांव में ही रहती थी, पर कुछ महीने पहले बिकाऊ उसे शहर में ले आया था. वे दोनों एक झुग्गी बस्ती में किराए की कोठरी ले कर रहते थे.

रधिया को खाना बनाने से ले कर हर काम उसी कोठरी में ही करना पड़ता था. सुबहशाम निबटने के लिए उसे बोतल ले कर सड़क के किनारे जाना पड़ता था. उसे शुरू में खुले में नहाने में बड़ी शर्म आती थी. पता नहीं कौन देख ले, पर धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई.

बिकाऊ 2 रोटी खा कर और 4-6 टिफिन में ले कर सुबह 7 बजे निकलता, तो फिर रात के 9 बजे से पहले नहीं आता था. उस की 12 घंटे की ड्यूटी थी.

जब बिकाऊ को महीने की तनख्वाह मिलती, तो रधिया बिना बताए ही समझ जाती थी, क्योंकि उस दिन वह दारू पी कर आता था. रधिया के लिए वह दोने में जलेबी लाता और रात को उस का कचूमर निकाल देता.

बिकाऊ रधिया से बहुत प्यार करता था, पर उस की तनख्वाह ही इतनी कम थी कि वह रधिया के लिए कभी साड़ी या कोई दूसरी चीज नहीं ला पाता था.

एक दिन दोपहर में रधिया अपनी कोठरी में लेटी थी कि दरवाजे पर कुछ आहट हुई. वह बाहर निकली, तो सामने एक जवान औरत को देखा.

उस औरत ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मेरा नाम मालती है. मैं बगल की झुग्गी में ही रहती हूं. तुम जब से आई हो, कभी तुम्हें बाहर निकलते नहीं देखा. मर्द तो काम पर चले जाते हैं. बाहर निकलोगी, तभी तो जानपहचान बढ़ेगी. अकेले पड़ेपड़े तो तुम परेशान हो जाओगी. चलो, मेरे कमरे पर, वहां चल कर बातें करते हैं.’’

रधिया ने कहा, ‘‘मैं यहां नई आई हूं. किसी को जानती तक नहीं.’’

‘‘अरे, कोठरी से निकलोगी, तब तो किसी को जानोगी.’’

रधिया ने अपनी कोठरी में ताला लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

जब वह मालती की झुग्गी में घुसी, तो दंग रह गई. उस की झुग्गी में

2 कोठरी थी. रंगीन टैलीविजन, फ्रिज, जिस में से पानी निकाल कर उस ने रधिया को पिलाया.

रधिया ने कभी फ्रिज नहीं देखा था, न ही उस के बारे में सुना था.

रधिया ने पूछा, ‘‘बहन, यह कैसी अलमारी है?’’

इस पर मालती मन ही मन मुसकरा दी. उस ने कहा, ‘‘यह अलमारी नहीं, फ्रिज है. इस में रखने पर खानेपीने की कोई चीज हफ्तों तक खराब नहीं होती. पानी ठंडा रहता है. बर्फ जमा सकते हैं. पिछले महीने ही तो पूरे 10 हजार रुपए में लिया है.’’

रधिया ने हैरानी से पूछा, ‘‘बहन, तुम्हारे आदमी क्या काम करते हैं?’’

मालती ने कहा, ‘‘वही जो तुम्हारे आदमी करते हैं. बगल वाली कैमिकल फैक्टरी में मजदूर हैं. पर उन की कमाई से यह सब नहीं है. मैं भी तो काम करती हूं. यहां रहने वाली ज्यादातर औरतें काम करती हैं, नहीं तो घर नहीं चले.

‘‘बहन, मैं तो कहती हूं कि तुम भी कहीं काम पकड़ लो. काम करोगी, तो मन भी बहला रहेगा और हाथ में दो पैसे भी आएंगे.’’

‘‘पर मुझे क्या काम मिलेगा? मैं तो अनपढ़ हूं.’’

‘‘तो मैं कौन सी पढ़ीलिखी हूं. किसी तरह दस्तखत कर लेती हूं. यहां अनपढ़ों के लिए भी काम की कमी नहीं है. तुम चौकाबरतन तो कर सकती हो? कपड़े तो साफ कर सकती हो? चायनाश्ता तो बना सकती हो? ऐसे काम कोठियों में खूब मिलते हैं और पैसे भी अच्छे मिलते हैं. नाश्ताचाय तो हर रोज मिलता ही है, त्योहारों पर नए कपड़े और दीवाली पर गिफ्ट.’’

‘‘आज मैं अपनी कमाई में से ही 2 बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हूं. इन की कमाई तो झुग्गी के किराए, राशन और दारू में ही खर्च हो जाती है.’’

‘‘क्या मुझे काम मिलेगा?’’ रधिया ने जल्दी से पूछा.

‘‘करना चाहोगी, तो कल से ही काम मिलेगा. जहां मैं काम करती हूं, उस के बगल में रहने वाली कोठी की मालकिन कामवाली के बारे में पूछ रही थीं. वे एक बड़े स्कूल में पढ़ाती हैं. उन के मर्द वकील हैं. 2 बच्चे हैं, जो मां के साथ ही स्कूल जाते हैं.

‘‘मैं आज शाम को ही पूछ लूंगी और पैसे की बात भी कर लूंगी. मालिकमालकिन अगर तुम्हारे काम से खुश हुए, तो तनख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई भी हो जाती है.’’

इस बीच मालती ने प्लेट में बिसकुट और नमकीन सजा कर उस के सामने रख दिए. गैस पर चाय चढ़ा रखी थी.

चाय पीने के बाद मालती ने रधिया से कहा कि वह चाहे, तो अभी उस के साथ चली चले. मैडम 2 बजे घर आ जाती हैं. आज ही बात पक्की कर ले और कल से काम पर लग जा.

मालती ने यह भी बताया कि हर काम के अलग से पैसे मिलते हैं. अगर सफाई करानी हो, तो उस के 3 सौ रुपए. कपड़े भी धुलवाने हों, तो उस के अलग से 3 सौ रुपए. अगर सारे काम कराने हों, तो कम से कम 2 हजार रुपए.

मालती कपड़े बदलने लगी. उस ने रधिया से कहा, ‘‘चल, तू भी कपड़े बदल ले. पैसे की बात मैं करूंगी. चायनाश्ता तो बनाना जानती होगी?’’

‘‘हां दीदी, मैं सब जानती हूं. मीटमछली भी बना लेती हूं,’’ रधिया ने कहा. उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. अगर वह महीने में 2 हजार रुपए कमाएगी, तो उस की सारी परेशानी दूर हो जाएंगी.

रधिया तेजी से अपनी झुग्गी में आई. नई साड़ी पहनी और नया ब्लाउज भी. पैरों में वही प्लास्टिक की लाल चप्पल थी. उस ने आंखों में काजल लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

रधिया थी तो सांवली, पर जोबन उस का गदराया हुआ था और नैननक्श बड़े तीखे थे. गांव में न जाने कितने मर्द उस पर मरते थे, पर उस ने किसी को हाथ नहीं लगाने दिया. इस मामले में वह बड़ी पक्की थी.

रास्ते में मालती ने कहा, ‘‘बहन, अगर तुम्हारा काम बन गया, तो मैं महीने की पहली पगार का आधा हिस्सा लूंगी. यहां यही रिवाज है.’’

मालती एक कोठी के आगे रुकी. उस ने घंटी बजाई, तो मालकिन ने दरवाजा खोला.

मालती ने उन्हें नमस्ते किया. रधिया ने भी हाथ जोड़ कर नमस्ते किया. मालती 2 साल पहले उन के घर भी काम कर चुकी थी.

गेट खोल कर अंदर जाते ही मालती ने कहा, ‘‘मैडमजी, मैं आप के लिए बाई ले कर आई हूं.’’

‘‘अच्छा, बाई तो बड़ी खूबसूरत है. पहले कहीं काम किया है?’’ मैडम ने रधिया से पूछा.

मालती ने जवाब दिया, ‘‘अभी गांव से आई है, पर हर काम जानती है. मीटमछली तो ऐसी बनाती है कि खाओ तो उंगलियां चाटती रह जाओ. मेरे इलाके की ही है, इसीलिए मैं आप के पास ले कर आई हूं. अब आप बताओ कि कितने काम कराने हैं?’’

मैडम ने कहा, ‘‘देख मालती, काम तो सारे ही कराने हैं. सुबह का नाश्ता और दिन में लंच तैयार करना होगा. रात का डिनर मैं खुद तैयार कर लूंगी. कपड़े धोने ही पड़ेंगे, साफसफाई, बरतनपोंछा… यही सारे काम हैं. सुबह जल्दी आना होगा. मैं साढ़े 7 बजे तक घर से निकल जाती हूं.’’

इस के बाद मैडम ने मोलभाव किया और पूछा, ‘‘कल से काम करोगी?’’

‘‘मैं कल से ही आ जाऊंगी. जब काम करना ही है, तो कल क्या और परसों क्या?’’ रधिया ने कहा.

रात में जब बिकाऊ घर लौटा, तो रधिया ने उसे सारी रामकहानी सुनाई.

बिकाऊ ने कहा, ‘‘यह तो ठीक है कि तू काम पर जाएगी, पर कोठियों में रहने वाले लोग बड़े घटिया होते हैं. कामवालियों पर बुरी नजर रखते हैं. यह मालती बड़ी खेलीखाई औरत है. जिन कोठियों में काम करती है, वहां मर्दों को फांस कर वह खूब पैसे ऐंठती है. ऐसे ही नहीं, इस के पास फ्रिज और महंगीमहंगी चीजें हैं.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘मुझ पर कोई हाथ ऐसे ही नहीं लगा सकता. गांव में भी मेरे पीछे कुछ छिछोरे लगे थे, पर मैं ने किसी को घास नहीं डाली.

‘‘एक दिन दोपहर में मैं कुएं से पानी भरने गई थी. जेठ की दोपहरी, रास्ता एकदम सुनसान था. तभी न जाने कहां से बाबू साहब का बड़ा लड़का आ टपका और अचानक उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं ने उसे ऐसा धक्का दिया कि कुएं में गिरतेगिरते बचा और फिर भाग ही खड़ा हुआ.

‘‘मैं दबने वाली नहीं हूं. पर मैं ने बात कर ली है. दुनिया में बुरेभले हर तरह के लोग हैं.’’

बिकाऊ ने कहा, ‘‘तू जैसा ठीक समझ. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है.’’

दूसरे दिन रधिया सुबह जल्दी उठी और मालती को साथ ले कर 6 बजे तक कोठी पर पहुंच गई. मालकिन ने उसे सारा काम समझाया.

रधिया ने जल्दी से पोंछा लगा दिया, गैस जला कर चाय भी बना दी.

‘‘तू भी समय से नाश्ता कर लेना. चाहो तो बाथरूम में नहा भी सकती हो. साहब निकल जाएं, तो कुछ कपड़े हैं, उन्हें धो लेना.’’

थोड़ी देर में रधिया साहब के लिए चाय बनाने चली गई. ‘ठक’ की आवाज कर वह कमरे में आ गई और बैड के पास रखी छोटी मेज पर टे्र को रख दिया.

साहब ने रधिया को गौर से देखा और कहा, ‘‘देखना, बाहर अखबार डाल गया होगा. जरा लेती आना.’’

रधिया बाहर से अखबार ले कर आ गई और साहब की तरफ बढ़ा दिया. इसी बीच साहब ने 5 सौ का एक नोट उस की तरफ बढ़ाया.

रधिया ने कहा, ‘‘यह क्या?’’

‘‘यह रख ले. मालती ने तुझ से 5 सौ रुपए ले लिए होंगे. पहले वह यहां काम कर चुकी है.

‘‘तुम ये 5 सौ रुपए ले लो, पर मैडम से मत कहना. तनख्वाह मिलने पर मैं अलग से 5 सौ तुझे फिर दे दूंगा. यह मुआवजा समझना.’’

लेकिन रधिया ने अपना हाथ नहीं बढ़ाया. इस पर साहब ने उसे 5 सौ के

2 नोट लेने को कहा.

रधिया ने साहब के बारबार कहने पर पैसे ले लिए और कपड़े धोने में लग गई. कपड़े धो कर जब तक उन्हें छत पर सुखाने डाला, तब तक साहब नहाधो कर तैयार थे. उस ने उन के नाश्ते के लिए आमलेट और ब्रैड तैयार किया, फिर चाय बनाई.

नाश्ता करने के बाद साहब बोले, ‘‘तू ने तो अच्छा नाश्ता तैयार किया. पर नाश्ते से ज्यादा तू अच्छी लगी.’’

चाय देते समय उस ने जानबूझ कर ब्लाउज का बटन ढीला कर दिया और ओढ़नी किनारे रख दी.

‘‘अब मैं चलता हूं. किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझ से कहना. संकोच करने की जरूरत नहीं है.’’

साहब ने उसे टैलीविजन खोलना और बंद कर के दिखाया और अपना बैग रधिया को पकड़ा दिया.

बैग ले कर रधिया उन के पीछेपीछे कार तक गई. साहब ने उस के हाथों से बैग लिया. न जाने कैसे साहब की उंगलियां उस के हाथों से छू गईं.

रधिया भी 2 सैकंड के लिए रोमांचित हो उठी.

साहब के जाने के बाद रधिया ने गेट बंद किया. फिर वह कोठी के अंदर आई और दरवाजा बंद कर लिया.

वह नहाने के लिए बाथरूम में गई. ऐसा बाथरूम उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था. तरहतरह के साबुन, तेल की शीशियां और शैंपू की शीशी, आदमकद आईना.

रधिया को लगा कि वह किसी दूसरी दुनिया में आ गई है. कपड़े उतार कर पहली बार जब से वह गांव से आई थी, उस ने जम कर साबुन लगा कर नहाया और फिर बाथरूम में टंगे तौलिए से देह पोंछ कर मैडम का दिया पुराना सूट पहन कर अपनेआप को आदमकद आईने में निहारा. उसे लगा कि वह रधिया नहीं, कोई और ही औरत है.

अपने कपड़े धो कर रधिया उन्हें भी छत पर डाल आई. फिर बचे हुए परांठे खा लिए. थोड़ी चाय बच गई थी. उसे गरम कर पी लिया, नहीं तो बरबाद ही होती.

धीरेधीरे रधिया ने उस घर के सारे तौरतरीके सीख लिए. वह सारा काम जल्दीजल्दी निबटा देती और किसी को शिकायत का मौका नहीं देती. मैडम उस के काम से काफी खुश थीं. एक महीना कब बीत गया, उसे पता ही नहीं चला. महीना पूरा होते ही मैडम ने उसे बकाया पगार दे दी.

उस दिन वह काफी खुश थी. शाम तक जब वह अपनी झुग्गी में लौटी, तो उस ने सब से पहले एक हजार रुपए जा कर मालती को दे दिए.

मालती ने उसे चाय पिलाई और हालचाल पूछा. उस ने इशारों में ही पूछा कि साहब से कोई दिक्कत तो नहीं.

रधिया ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है.’’

मालती ने कहा, ‘‘अगर तू चाहे, तो शाम को किसी और घर में लग जा. और कुछ नहीं, तो हजार रुपए वहां से भी मिल जाएंगे.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘सोचूंगी… अपने घर का भी तो काम है.’’

साहब तो अपनी चाय उसी से लेते. जब मैडम आसपास न हों, तो उसे ही देखते रहते और रधिया मजे लेती रहती.

रधिया समझ गई थी कि मालिक की निगाह उस की जवानी पर है. वे उसे पैसे देते, तो वह पहले लेने से मना करती, पर वे जबरन उसे दे ही डालते और कहते, ‘‘देख रधिया, अपने पास पैसों की कमी नहीं है. फिर हजार रुपए की आज कीमत ही क्या है? तेरे काम ने मेरा दिल जीत लिया है. कई औरतों ने इस घर में काम किया, पर तेरी सुघड़ता उन में नहीं थी.’’

रधिया चुप रह जाती. साहब कुछ हाथ मारना चाहते थे, पर समझ ही नहीं आता था.

एक दिन मैडम ने उस से कहा, ‘‘रधिया, हमारे स्कूल से टूर जा रहा है. मैं भी जा रही हूं और बच्चे भी, घर में सिर्फ साहब रहेंगे. हमें टूर से लौटने में 10 दिन लगेंगे.

‘‘आनेजाने के टाइम का तुम समझ लेना. साहब को कोई दिक्कत न हो.

‘‘पहले आमलेट बना दे… और तू ऐसा करना, लंच के साथ डिनर भी तैयार कर फ्रिज में रख देना. साहब रात में गरम कर के खा लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रधिया ने कहा और अपने काम में लग गई.

मैडम की गए 10वां दिन था. रधिया जब ठीक समय पर चाय और पानी का गिलास ले कर साहब के कमरे में पहुंची, तो उन्होंने कहा, ‘‘आज कोर्ट नहीं जाना है. वकीलों ने हड़ताल कर दी है. फ्रिज में एक बोतल पड़ी होगी, वह ले आ. मैं थोड़ी ब्रांडी लूंगा, मुझे ठंड लग गई है.’’

रधिया रसोई में आमलेट बनाने चली गई. आमलेट बना कर उसे प्लेट में रख कर वह साहब के कमरे में गई, तो वे वहां नहीं थे. उस ने सोचा कि शायद बाथरूम गए होंगे. साहब तब तक वहां आ गए थे.

‘‘वाह रधिया, वाह, तू ने तो फटाफट काम कर दिया. तू बड़ी अच्छी है. आ चाय पी.

‘‘ये ले हजार रुपए. मनपसंद साड़ी खरीद लेना.’’

‘‘किस बात के पैसे साहब? पगार तो मैं लेती ही हूं,’’ रधिया ने कहा.

‘‘अरे, लेले. पैसे बड़े काम आते हैं. मना मत कर,’’ कहतेकहते साहब ने उस का हाथ पकड़ लिया और पैसे उस के ब्लाउज में डाल दिए.

रधिया पीछे हटी. तब तक साहब ने उस के ब्लाउज में हाथ डाल दिया था और उस के ब्लाउज के बटन टूट गए थे.

रधिया ने एक जोर का धक्का दिया. साहब बिस्तर पर गिर पड़े. इस बीच रधिया भी उन पर गिर गई.

रधिया ने एक जोरदार चुम्मा गाल पर लगाया और बोली, ‘‘साहब, 5 हजार और दो. देखो, मैडम बच्चों के साथ चली आ रही हैं.’’

साहब ने कहा, ‘‘रधिया, तू जल्दी यहां से निकल,’’ और अपना पूरा पर्स उसे पकड़ा दिया. Story In Hindi

Story In Hindi: बाबा का सच – अंधविश्वास की एक सच्ची कहानी

Story In Hindi: मेरा तबादला उज्जैन से इंदौर के एक थाने में हो गया था. मैं ने बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन आया. रेल चलने के साथ ही उज्जैन के थाने में रहते हुए वहां गुजारे दिनों की यादें ताजा होने लगीं. हुआ यह था कि एक दिन एक मुखबिर थाने में आ कर बोला, ‘‘सर, एक बाबा पास के ही एक गांव खाचरोंद में एक विधवा के घर ठहरा हुआ है. मुझे उस का बरताव कुछ गलत लग रहा है.’’

उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया. फिर मेरे पास उस बाबा के खिलाफ कोई ठोस सुबूत भी नहीं था. लेकिन मुखबिर से मिली सूचना को हलके में लेना भी गलत था, सो उसी रात  मैं सादा कपड़ों में उस विधवा के घर जा पहुंचा. उस औरत ने पूछा, ‘‘आप किस से मिलना चाहते हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘दीदी, मैं ने सुना है कि आप के यहां कोई चमत्कारी बाबा ठहरे हैं, इसीलिए मैं उन से मिलने आया हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, अभी तो बाबा अपने किसी भक्त के घर गए हैं.’’

‘‘अगर आप को कोई एतराज न हो, तो क्या मैं आप से उन बाबा के बारे में कुछ बातें जान सकता हूं? दरअसल, मेरी एक बेटी है, जो बचपन से ही बीमार रहती है. मैं उस का इलाज इन बाबा से कराना चाहता हूं.’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, जितनी जानकारी मेरे पास है, वह मैं आप को बता सकती हूं.

‘‘एक दिन ये बाबा अपने 2 शिष्यों के साथ रात 8 बजे मेरे घर आए थे.

‘‘बाबा बोले थे, ‘तुम्हारे पति के गुजरने के बाद से तुम तंगहाल जिंदगी जी रही हो, जबकि उस के दादाजी परिवार के लिए लाखों रुपयों का सोना इस घर में दबा कर गए हैं.

‘‘‘ऐसा कर कि तेरे बीच वाले कमरे की पूर्व दिशा वाला कोना थोड़ा खोद और फिर देख चमत्कार.’

‘‘मैं अपने बीच वाले कमरे में गई, तभी उन के दोनों शिष्य भी मेरे पीछेपीछे आ गए और बोले, ‘बहन, यह है तुम्हारे कमरे की पूर्व दिशा का कोना.’

‘‘मैं ने कोने को थोड़ा उकेरा, करीब 7-8 इंच कुरेदने के बाद मेरे हाथ में एक सिक्का लगा, जो एकदम पीला था.

‘‘उस सिक्के को अपनी हथेली पर रख कर बाबा बोले, ‘ऐसे हजारों सिक्के इस कमरे में दबे हैं. अगर तू चाहे, तो हम उन्हें निकाल कर तुझे दे सकते हैं.’

‘‘मैं ने बाबा से पूछा, ‘बाबा, ये दबे हुए सिक्के बाहर निकालने के लिए क्या करना होगा?’

‘‘वे बोले, ‘तुझे कुछ नहीं करना है. जो कुछ करेंगे, हम ही करेंगे, लेकिन तुम्हारे मकान के बीच के कमरे की खुदाई करनी होगी, वह भी रात में… चुपचाप… धीरेधीरे, क्योंकि अगर सरकार को यह मालूम पड़ गया कि तुम्हारे मकान में सोने के सिक्के गड़े हुए हैं, तो वह उस पर अपना हक जमा लेगी और तुम्हें उस में से कुछ नहीं मिलेगा.’

‘‘आगे वे बोले, ‘देखो, रात में चुपचाप खुदाई के लिए मजदूर लाने होंगे, वह भी किसी दूसरे गांव से, ताकि गांव वालों को कुछ पता न चल सके. इस खुदाई के काम में पैसा तो खर्च होगा ही. तुम्हारे पति ने तुम्हारे नाम पर डाकखाने में जो रुपया जमा कर रखा है, तुम उसे निकाल लो.’

‘‘इस के बाद बाबा ने कहा, ‘हम महीने भर बाद फिर से इस गांव में आएंगे, तब तक तुम पैसों का इंतजाम कर के रखना.’

‘‘डाकखाने में रखे 4 लाख रुपयों में से अब तक मैं बाबा को 2 लाख रुपए दे चुकी हूं.’’

‘‘दीदी, क्या मैं आप के बीच वाले कमरे को देख सकता हूं?’’

वह औरत बोली, ‘‘भैया, वैसे तो बाबा ने मना किया है, लेकिन इस समय वे यहां नहीं हैं, इसलिए आप देख लीजिए.’’

मैं फौरन उठा और बीच के कमरे में जा पहुंचा. मैं ने देखा कि सारा कमरा 2-2 फुट खुदा हुआ था और उस की मिट्टी एक कोने में पड़ी हुई थी. मुझे लगा कि अगर अब कानूनी कार्यवाही करने में देर हुई, तो इस औरत के पास बचे 2 लाख रुपए भी वह बाबा ले जाएगा.

मैं ने उस औरत से कहा, ‘‘दीदी, मैं इस इलाके का थानेदार हूं और मुझे उस पाखंडी बाबा के बारे में जानकारी मिली थी, इसलिए मैं यहां आया हूं.

‘‘आप मेरे साथ थाने चलिए और उस बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाइए, ताकि मैं उसे गिरफ्तार कर सकूं.’’

उस औरत को भी अपने ठगे जाने का एहसास हो गया था, इसलिए वह मेरे साथ थाने आई और उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी. चूंकि बाबा घाघ था, इसलिए उस ने उस औरत के घर के नुक्कड़ पर ही अपने एक शिष्य को नजर रखने के लिए  बैठा दिया था. इसलिए उसे यह पता चलते ही कि मैं उस औरत को ले कर उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने थाने ले गया हूं. वह बाबा उस गांव को छोड़ कर भाग गया. इस के बाद मैं ने आसपास के गांवों में मुखबिरों से जानकारी भी निकलवाई, लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

मैं यादों की बहती नदी से बाहर आया, तब तक गाड़ी इंदौर रेलवे स्टेशन पर आ कर ठहर गई थी. जब मैं ने इंदौर का थाना जौइन किया, तब एक दिन एक फाइल पर मेरी नजर रुक गई. उसे पढ़ कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. रिपोर्ट में लिखा था, ‘गडे़ धन के लालच में एक मां ने अपने 7 साला बेटे का खून इंजैक्शन से निकाला.’ उस मां के खिलाफ लड़के के दादाजी और महल्ले वालों ने यह रिपोर्ट लिखाई थी. यह पढ़ कर मैं सोच में पड़ गया कि कहीं यह वही खाचरोंद गांव वाला बाबा ही तो नहीं है.

मैं ने सबइंस्पैक्टर मोहन से कहा, ‘‘मैं इस मामले में उस लड़के के दादाजी से बात करना चाहता हूं. उन्हें थाने आने के लिए कहिए.’’

रात के तकरीबन 10 बजे एक बुजुर्ग  मेरे क्वार्टर पर आए. मैं ने उन से उन का परिचय पूछा. तब वे बोले, ‘‘मैं ही उस लड़के का दादाजी हूं.’’

‘‘दादाजी, मैं इस केस को जानना चाहता हूं,’’ मैं ने पूछा.

वे बताने लगे, ‘‘सर, घर में गड़े धन के लालच में बहू ने अपने 7 साल के बेटे की जान की परवाह किए बगैर इंजैक्शन से उस का खून निकाला और तांत्रिक बाबा को पूजा के लिए सौंप दिया.’’

‘‘दादाजी, आप मुझे उस बाबा के बारे में कुछ बताइए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, यह बात तब शुरू हुई, जब कुछ दिनों के लिए मैं अपने गांव गया था. फसल कटने वाली थी, इसलिए मेरा गांव जाना जरूरी था. उन्हीं दिनों यह तांत्रिक बाबा हमारे घर आया और बहू से बोला कि तुम्हारे घर में गड़ा हुआ धन है. इसे निकालने से पहले थोड़ी पूजापाठ करानी पड़ेगी.’’

‘‘मेरी बहू उस के कहने में आ गई. फिर उस तांत्रिक बाबा ने रात को अपना काम करना शुरू किया. पहले दिन उस ने नीबू, अंडा, कलेजी और सिंदूर का धुआं कर उसे पूरे घर में घुमाया, फिर उस ने बीच के कमरे में अपना त्रिशूल एक जगह जमीन पर गाड़ा और कहा कि यहां खोदने पर गड़ा धन मिलेगा.

‘‘उस के शिष्यों ने एक जगह 2 फुट का गड्ढा खोदा. चूंकि रात के 12 बज चुके थे, इसलिए उन्होंने यह कहते हुए काम रोक दिया कि अब खुदाई कल करेंगे.

‘‘इसी बीच मेरी 5 साल की पोती उस कमरे में आ गई. उसे देख कर तांत्रिक गुस्से में लालपीला हो गया और बोला कि आज की पूजा का तो सत्यानाश हो गया है. यह बच्ची यहां कैसे आ गई? अब इस का कोई उपचार खोजना पड़ेगा.

‘‘अगले दिन रात के 12 बजे वह तांत्रिक अकेला ही घर आया और बहू से बोला, ‘तू गड़ा हुआ धन पाना चाहती है या नहीं?’

‘‘बहू लालची थी, इसलिए बोली, ‘हां बाबा.’

‘‘फिर बाबा तैश में आ कर बोला, ‘कल रात उस बच्ची को कमरे में नहीं आने देना चाहिए था. अब उस बच्ची को भी ‘पूजा’ में बैठा कर अकेले में तांत्रिक क्रिया करनी पड़ेगी. जाओ और उस बच्ची को ले आओ.

‘‘इस पर मेरी बहू ने कहा, ‘लेकिन बाबा, वह तो सो रही है.’

‘‘बाबा बोला, ‘ठीक है, मैं ही उसे अपनी विधि से यहां ले कर आता हूं.

‘‘अगले दिन सुबह उस बच्ची ने अपनी दादी को बताया, ‘रात को वह तांत्रिक बाबा मुझे उठा कर बीच के कमरे में ले गया और मेरे सारे कपड़े उतार कर उस ने मेरे साथ गंदा काम किया.’

‘‘जब मेरी पत्नी ने बहू से पूछा, तो वह बोली, ‘बच्ची तो नादान है. कुछ भी कहती रहती है. आप ध्यान मत दो.’

‘‘अगले दिन बाबा ने बीच का कमरा खोद दिया. लेकिन कुछ नहीं निकला. फिर वह बाबा बोला, ‘बाई, लगता है कि तुम्हारे ही पुरखे तुम्हारे वंश का खून चाहते हैं, तुम्हें अपने बेटे की ‘बलि’ देनी होगी या उस का खून निकाल कर चढ़ाना होगा.’

‘‘गड़े धन के लालच में मां ने बिना कोई परवाह किए अपने बेटे का खून ‘इंजैक्शन’ से खींचा और उस का इस्तेमाल तांत्रिक क्रिया करने के लिए बाबा को दे दिया.

‘‘यह सब देख कर मेरी पत्नी से रहा नहीं गया और उस ने फोन पर ये सब बातें मुझे बताईं. मैं तभी सारे काम छोड़ कर इंदौर आया और अपने पोते और महल्ले वालों को ले कर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई.’’

‘‘दादाजी, इस समय वह तांत्रिक बाबा कहां है?’’

‘‘सर, मेरी बहू अभी भी उस के मोहपाश में बंधी है. चूंकि उसे मालूम पड़ चुका है कि मैं ने उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है, इसलिए वह हमारे घर नहीं आ रहा है, लेकिन मैं उस पर नजर रखे हुए हूं.’’

सुबह एक मुखबिर आया और बोला, ‘‘सर, एक सूचना मिली है कि अपने इलाके की एक मलिन बस्ती में एक तांत्रिक आज ही आ कर ठहरा है.’’

रात के 12 बजे मैं अपने कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचा. एक पुलिस वाले ने एक मकान से  धुआं निकलते देखा. हम ने चारों तरफ से उस मकान को घेर लिया. जब मैं ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया, तो एक अधेड़ औरत ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘क्या है? यहां पूजा हो रही है. आप जाइए.’’

इतना सुनते ही मैं ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया और बीच के कमरे में पहुंचा. मुझे देखते ही वह तांत्रिक बाबा भागने की कोशिश करने लगा, तभी मेरे साथ आए पुलिस वालों ने उसे घेर लिया और गाड़ी में डाल कर थाने ले आए.

थाने में थर्ड डिगरी देने पर उस ने अपने सारे अपराध कबूल कर लिए, जिस में खाचरोंद गांव में की गई ठगी भी शामिल थी. मैं थाने में बैठा सोच रहा था कि अखबारों में गड़े धन निकालने के बारे में ऐसे ठग बाबाओं की खबरें अकसर छपती ही रहती हैं, फिर भी न जाने क्यों लोग ऐसे बाबाओं के बहकावे में आ कर अपनी मेहनत की कमाई को उन के हाथों सौंप कर ठगे जाते हैं? Story In Hindi

Hindi Kahani: साहब की चतुराई – क्या था रामलाल का आइडिया?

Hindi Kahani: तबादले पर जाने वाला नौजवान अफसर विजय आने वाले नौजवान अफसर नितिन को अपने बंगले पर ला कर उसे चपरासी रामलाल के बारे में बता रहा था. नितिन ने जब चपरासी रामलाल की फिल्म हीरोइन जैसी खूबसूरत बीवी को देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया. नितिन बोला, ‘‘यार, तुम्हारी यह चपरासी की बीवी तो कमाल की है. तुम ने तो इस के साथ खूब मजे किए होंगे?’’ ‘‘नहीं यार, ये छोटे लोग बहुत ही धर्मकर्म पर चलते हैं और इस के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ये लोग पद और पैसे के लिए अपनी इज्जत को नहीं बेचते हैं. मैं ने भी इसे लालच दे कर पटाने की खूब कोशिश की थी, मगर इस ने साफ मना कर दिया था.’’

यह सुन कर नितिन विजय की ओर हैरानी से देखने लगा.

नितिन को इस तरह देख विजय अपनी सफाई में बोला, ‘‘ये छोटे लोग हम लोगों की तरह नहीं होते हैं, जो अपने किसी काम को बड़े अफसर से कराने के लिए अपनी बहनबेटियों और बीवियों को भी उन के साथ सुला देते हैं. हमारी बहनबेटियों और बीवियों को भी सोने में कोई दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि वे तो अपने स्कूल और कालेज की पढ़ाई करते समय अपने कितने ही बौयफ्रैंड्स के साथ सो चुकी होती हैं.’’ इतना सुन कर नितिन मन ही मन  उस चपरासी की बीवी को पटाने की तरकीब सोचने लगा.

विजय से चार्ज लेने के बाद नितिन अपने सरकारी बंगले में रहने लग गया था. शाम को जब वह अपने बंगले पर आया, तो चपरासी रामलाल उस से बोला, ‘‘साहब, आप को शराब पीने का शौक हो तो लाऊं? पुराने साहब तो रोजाना पीने के लिए बोतल मंगवाते थे.’’

‘‘और क्याक्या मंगवाते थे तुम्हारे पुराने साहब?’’

चपरासी रामलाल बोला, ‘‘कालेज में पढ़ने वाली लड़की भी मंगवाते थे. वे पूरी रात के उसे 2 हजार रुपए देते थे.’’ ‘‘ले आना,’’ सुन कर नितिन ने उस से कहा, तो वह उन के लिए शराब की बोतल और उस लड़की को ले आया था.

उस लड़की और उस अफसर ने शराब पी कर रातभर खूब मजे किए. जाते समय नितिन ने उसे 3 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि वह चपरासी रामलाल से कहे कि तुम्हारे ये कैसे साहब हैं, जिन्होंने रातभर मेरे साथ कुछ किया ही नहीं था, बल्कि मुझे छुआ भी नहीं था, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए मुफ्त में दे दिए हैं.’’ उस लड़की ने चपरासी रामलाल से यह सब कहने की हामी भर ली. जब वह लड़की वहां से जाने लगी, तो चपरासी रामलाल से बोली, ‘‘तुम्हारे ये साहब तो बेकार ही रातभर लड़की को अपने बंगले पर रखते हैं, उस के साथ कुछ करते भी नहीं हैं, मगर फिर भी उस को पैसे देते हैं. तुम्हारे साहब का तो दिमाग ही खराब है.’’

यह सुन कर चपरासी रामलाल हैरान हो कर उस की ओर देखने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो रातभर मुझे छुआ भी नहीं, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए दे दिए हैं,’’ कह कर वह वहां से चली गई. उस लड़की की बातें सुन कर चपरासी रामलाल सोचने लगा था कि उस के अफसर का दिमाग खराब है या वे औरत के काबिल नहीं हैं, फिर भी उन्हें औरतों को अपने साथ सुला कर उन पर अपने पैसे लुटाने का शौक है. चपरासी रामलाल अपने कमरे पर आ कर बीवी सरला से बोला, ‘‘हमारे ये नए साहब तो बेकार ही अपने पैसे लड़की पर लुटाते हैं.’’ ‘‘वह कैसे?’’ सुन कर सरला ने रामलाल से पूछा, तो वह बोला, ‘‘कल रात को मैं साहब के लिए एक लड़की लाया था, लेकिन उन्होंने उस के साथ कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने उसे छुआ भी नहीं, मगर फिर भी उन्होंने उसे 3 हजार रुपए दे दिए.’’

यह सुन कर उस की बीवी सरला हैरानी से उस की ओर देखने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘क्यों न अपने इस साहब से हम पैसे कमाएं?’’ ‘‘वह कैसे?’’ सरला ने उस से पूछा, तो वह बोला, ‘‘तुम इस साहब के साथ सो जाया करो. यह साहब तुम्हारे साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मुफ्त में ही हम को पैसे मिल जाएंगे. उन पैसों से हम अपने लिए नएनए गहने भी बनवा लेंगे और जरूरत का सामान भी खरीद लेंगे.

‘‘मेरा कितने दिनों से नई मोटरसाइकिल खरीदने का मन कर रहा है, मगर पैसे न होने से खरीद ही नहीं पाता हूं. जब तुम्हें नएनए गहनों में नए कपड़े पहना कर मोटरसाइकिल पर बिठा कर अपने गांव और ससुराल ले जाऊंगा, तो वे लोग हम से कितने खुश होंगे. हमारी तो वहां पर धाक ही जम जाएगी.’’ ‘‘कहीं यह तुम्हारा साहब मुझ से मजे लेने लग गया तो…’’ खूबसूरत बीवी सरला ने अपना शक जाहिर किया, तो वह उसे तसल्ली देते हुए बोला, ‘‘तुम इस बात की चिंता मत करो. वह तुम से मजे नहीं लेगा.’’

पति रामलाल की इस बात को सुन कर बीवी सरला अपने साहब के साथ सोने के लिए तैयार हो गई. शाम को अपने साहब के लिए शराब लाने के बाद रात को चपरासी रामलाल ने अपनी बीवी सरला को उन के कमरे में भेज दिया. साहब जब उस पर हावी होने लगे, तो उसे बड़ी हैरानी हो रही थी, क्योंकि उस के पति ने तो उस से कहा था कि साहब उसे छुएगा भी नहीं, मगर उस का साहब तो उस पर ऐसा हावी हुआ था कि… रातभर में साहब ने उसे इतना ज्यादा थका दिया था कि वह सो न सकी. सरला को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन गुस्से को दबा कर मुसकराते हुए दूसरे दिन अपने पति से वह बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो मुझे छुआ भी नहीं. हम ने मुफ्त में ही उन से पैसे कमा लिए.’’ यह सुन कर उस का पति रामलाल अपनी अक्लमंदी पर खुशी से मुसकराने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘मुझे रातभर तुम्हारी याद सताती रही थी. क्यों न हम तुम्हारी बहन नीता को गांव से बुला कर तुम्हारे साहब के साथ सुला दिया करें. ‘‘तुम्हारा साहब उस के साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मिले पैसों से हम उस की शादी भी धूमधाम से कर देंगे.’’

यह सुन कर रामलाल बीवी सरला की इस बात पर सहमत हो गया. वह उस से बोला, ‘‘तुम इस बारे में नीता को समझा देना. मैं आज ही उसे फोन कर के बुलवा लूंगा.’’ शाम को जब चपरासी रामलाल की बहन नीता वहां पर आई, तो सरला उस से बोली, ‘‘ननदजी, तुम गांव के लड़कों को मुफ्त में ही मजे देती फिरती हो. किसी दिन किसी ने देख लिया, तो गांव में बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम यहीं रह कर हमारे साहब के साथ रातभर सो कर मजे भी लो और पैसे भी कमाओ.’’ यह सुन कर उस की ननद नीता खुशी से झूम उठी थी. रातभर वह साहब के साथ मौजमस्ती कर के सुबह जब उन के कमरे से निकली, तो बहुत खुश थी. साहब ने उसे 5 हजार रुपए दिए थे. कुछ ही दिनों में चपरासी रामलाल अपने लिए नई मोटरसाइकिल ले आया था और अपनी बीवी सरला और बहन नीता के लिए नएनए जेवर और कपड़े भी खरीद चुका था, क्योंकि उस के साहब अपने से बड़े अफसरों को खुश रखने के लिए उन दोनों को उन के पास भेजने लगे थे. एक दिन सरला और नीता आपस में बातें करते हुए कह रही थीं कि उन के साहब तो रातभर उन्हें इतने मजे देते हैं कि उन्हें मजा आ जाता है.

उन की इन बातों को जब चपरासी रामलाल ने सुना, तो वह अपने साहब की इस चतुराई पर हैरान हो उठा था. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. रामलाल ने सोचा कि जो हो रहा है, होने दो. उन से पैसे तो मिल ही रहे हैं. उन पैसों के चलते ही उस की अपने गांव और ससुराल में धाक जम चुकी थी, क्योंकि आजकल लोग पैसा देखते हैं, चरित्र नहीं. Hindi Kahani

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