क्या काँग्रेस अपना परचम फिर लहरा पाएगी

गुजरात व हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के, दिल्ली की म्युनिसिपल कमेटी के, उत्तर प्रदेश, बिहार व उड़ीसा के उपचुनावों से एक बात साफ है कि न तो भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कोई बड़ा माहौल बना है और न ही भारतीय जनता पार्टी इस देश की अकेली राजनीतिक ताकत है. जो सोचते हैं कि मोदी है तो जहां है वे भी गलत हैं और जो सोचते हैं कि धर्म से ज्यादा महंगाई बीरोजगारी, ङ्क्षहदूमुसलिम खाई से जनता परेशान है, वे भी गलत है.

गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सीटें बढ़ा ली क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में बोट बंट गई. गुजरात की जनता का बड़ा हिस्सा अगर भाजपा से नाराज है तो भी उसे सुस्त कांग्रेस औैर बडबोली आम आदमी पार्टी में पूरी तरह भरोसा नहीं हुआ. गुजरात में वोट बंटने का फायदा भारतीय जनता पार्टी को जम कर हुआ और उम्मीद करनी चाहिए कि नरेंद्र मोदी की दिल्ली की सरकार अब तोहफे की शक्ल में अरङ्क्षवद केजरीवाल को दिल्ली राज्य सरकार और म्यूनिसिपल कमेटी चलाने में रोकटोक कम कर देंगे. उपराज्यपाल के भाषण केंद्र सरकार लगाकर अरङ्क्षवद केजरीवाल को कीलें चुभाती  रहती है.

कांग्रेस का कुछ होगा, यह नहीं कहा जा सकता. गुजरात में हार धक्का है पर हिमाचल की अच्छी जीत एक मैडल है. हां यह जरूर लग रहा है कि जो लोग भारत को धर्म, जाति और बोली पर तोडऩे में लगे है, वे अभी चुप नहीं हुए है और राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा में मिलते प्यार और साथ से उन्हें कोर्ई फर्क नहीं पड़ता.

देशों को चलाने के लिए आज ऐसे लोग चाहिए जो हर जने को सही मौका दे और हर नागरिक को बराबर का समझें. जो सरकार हर काम में भेदभाव करे और हर फैसले में धर्म या जाति का पहलू छिपा हो, वह चुनाव भले जीत जाए, अपने लोगों का भला नहीं कर सकती. धर्म पर टिकी सरकारें मंदिरों, चर्चों का बनवा सकती हैं पर नौकरियां नहीं दे सकीं. आज भारत के लाखों युवा पढऩे और नौकरी करने दूसरे देशों में जा रहे हैं और विश्वगुरू का दावा करने वाली सरकार के दौरान यह गिनती बढ़ती जा रही है. यहां विश्व गुरू नहीं, विश्व सेवक बनाए जा रहे हैं. भारतीय युवा दूसरे देशों में जा कर वे काम करते हैं जो यहां करने पर उन्हें धर्म और जाति से बाहर निकाल दिया जाए.

अफसोस यह है कि भाजपा सरकार का यह चुनावी मुद्दा था ही नहीं. सरकार तो मान अपमान, धर्म, जाति, मंदिर की बात करती रही और कम से कम गुजरात में तो जीत गई.

देश में तरक्की हो रही है तो उन मेहनती लोगों की वजह से जो खेतों और कारखानों में काम कर रहे हैं और गंदी बस्तियों में जानवरों की तरह रह रहे हैं. देश में किसानों के मकान और जीवन स्तर हो या मजदूरों का उस की ङ्क्षचता किसी को नहीं क्योंकि ऐसी सरकारें चुनी जा रही है जो इन बातों को नजरअंदाज कर के धर्म का ढोल पीट कर वोट पा जाते हैं.

ये चुनाव आगे सरकारों को कोई सबक सिखाएंगे, इस की कोई उम्मीद न करें. हर पार्टी अपनी सरकार वैसे ही चलाएगी. जैसी उस से चलती है. मुश्किल है कि आम आदमी को सरकार पर कुछ ज्यादा भरोसा है कि वह अपने टूटफूट के फैसलों से सब ठीक कर देगी. उसे लगता है तोडज़ोड़ कर बनाई गई महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, मध्यप्रदेश जैसी सरकारें भी ठीक हैं. चुनावों में तोडफ़ोड़ की कोई सजा पार्टी को नहीं मिलती. नतीजा साफ है जनता को सुनहरे दिनों को भूल जाना चाहिए. यहां तो हमेशा धुंधला माहौल रहेगा.

‘बिग बौस’ फेम अर्शी खान ने 6 महीने में छोड़ी राजनीति, जानें क्यों

बिग बौस की एक्स कंटेस्टेंट अर्शी खान हमेशा किसी न किसी वजह से सुर्खियों में रहती हैं. फरवरी के महीने में अर्शी ने ऐलान किया था कि वे भारतीय नेशनल कांग्रेस ज्वाइन कर रही हैं और 2019 के जनरल इलेक्शंस में भाग लेंगी. लेकिन 6 महीने बाद अर्शी ने राजनीति को छोड़ने का फैसला किया है. अर्शी ने इसकी जानकारी ट्विटर पर दी है.

अर्शी ने ट्वीट किया, मेरे एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बढ़ते हुए काम को देखते हुए मेरे लिए राजनीति में सक्रिय रहना मुश्किल हो गया है. मैं भारतीय नेशनल कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देती हूँ। मैं पार्टी को मुझपर विश्वास करने और मुझे समाज की देखभाल करने का मौक़ा देने के लिए शुक्रिया करती हूँ. आप सभी के प्यार और सपोर्ट के लिए शुक्रिया.

 

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बता दें कि बिग बॉस के घर में अर्शी की दोस्ती शिल्पा शिंदे और उसके बाद विकास गुप्ता से थी.

बिग बॉस से बाहर आने के बाद भी अर्शी काफी सुर्खियों में रही है। इतना ही नहीं साल 2017 की गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च की गई एंटरटेनर बनी थीं. शो से बाहर आने के बाद अर्शी एक गाने की म्यूजिक वीडियो प्रोड्यूसर बन गई थीं.

अर्शी सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहती हैं और अपनी कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

सोनभद्र नरसंहार चुप है सरकार

हत्या का आरोप भले ही ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर के ऊपर लगा हो, पर सही माने में इस हत्याकांड में तहसील और थाना लैवल से ले कर जिला प्रशासन तक का हर अमला जिम्मेदार है.

जमीन से जुड़े मसलों में थाना और तहसील एकदूसरे पर मामले को टालते रहते हैं. ऐसे में नेताओं और दबंगों की पौबारह रहती है. कमजोर आदमी अपनी ही जमीन पर कब्जा लेने के लिए यहां से वहां भटकता रहता है.

सोनभद्र में हुए जमीनी झगड़े में भी उत्तर प्रदेश की सरकार तब जागी, जब दिल्ली से कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सोनभद्र में डेरा डाला और आदिवासी परिवारों से मिलने की बात पर अड़ गईं.

शुरुआत में प्रदेश सरकार ने मरने वालों के परिवार को 5 लाख रुपए का मुआवजा देने की बात कही, पर प्रियंका गांधी के संघर्ष के बाद मुआवजे की रकम बढ़ा कर 20 लाख रुपए करने और जमीन को वे लोग ही जोतेबोते रहेंगे, यह भरोसा भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देना पड़ा. बाद में मुख्यमंत्री खुद पीडि़त लोगों से मिलने गए.

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यह था मामला

17 जुलाई, 2019 को सोनभद्र जिले के घोरावल इलाके के उभ्भा गांव में दर्जनों की तादाद में ट्रैक्टर 148 बीघा जमीन को घेरे खड़े थे. उन पर तकरीबन 300 लोग सवार थे.

यह देख कर गांव के लोग दबंगों को खेत जोतने से रोकने के लिए आगे बढ़े. थोड़ी ही देर में झगड़ा बढ़ गया. ग्राम प्रधान की तरफ से गांव वालों पर हमला बोल दिया गया.

लाठीडंडे से हुए इस हमले के बीचबीच में गोली चलने की आवाजें भी आने लगीं. गांव वाले एकदूसरे से बचने के लिए भागने की जुगत करने लगे. पर जो लोग भाग नहीं पाए, वे वहीं जमीन पर गिर गए.

सोनभद्र घोरावल कोतवाली क्षेत्र में ग्राम पंचायत मूर्तिया के उभ्भा पुरवा में 148 बीघा खेत जोतने के लिए गांव का प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर 32 ट्रैक्टर ले कर पहुंचा था. इन ट्रैक्टरों पर तकरीबन

300 लोग सवार थे. ये लोग अपने साथ लाठीडंडा, भालाबल्लम, राइफल, बंदूक वगैरह ले कर आए थे.

गांव में पहुंचते ही इन लोगों ने ट्रैक्टरों से खेत जोतना शुरू कर दिया. जब गांव वालों ने इस की खिलाफत

की तो प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर और उन के लोगों ने उन पर लाठीडंडे, भालाबल्लम के साथ ही राइफल और बंदूक से भी गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

उभ्भा पुरवा गांव सोनभद्र के जिला हैडक्वार्टर राबर्ट्सगंज से 55-56 किलोमीटर दूर है. ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर ने तकरीबन 80 बीघा जमीन

2 साल पहले खरीदी थी. वह उसी जमीन का कब्जा लेने पहुंचा था.

संघर्ष के दौरान असलहा से ले कर गंड़ासे तक चलने लगे. आदिवासियों के विरोध के बाद बाहरी लोगों ने आधे घंटे तक उन पर गोलीबारी की.

फायरिंग तकरीबन आधा घंटे तक चलती रही. इस में 10 लोगों की मौत हुई और 25 लोग घायल हो गए थे. मारे गए लोगों में 3 औरतें और 7 मर्द शामिल थे.

प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर का दावा है कि उस ने इस इलाके में 80 बीघा जमीन खरीदी थी. इस जमीन पर गांव वालों ने कब्जा किया हुआ था और वे इसे खाली नहीं कर रहे थे. इसी जमीन का कब्जा लेने के लिए वह 32 ट्रैक्टरों में 300 लोगों को भर कर लाया था.

इस इलाके में गोंड और गुर्जर समुदाय के लोग रहते हैं. गुर्जर दूध बेचने का काम करते हैं. यह इलाका जंगलों से घिरा है. यहां सिंचाई का कोई साधन नहीं है, इसलिए लोकल लोग बारिश के पानी से वनभूमि पर खरीफ के मौसम में मक्का और अरहर की खेती करते हैं. इस इलाके में वनभूमि पर कब्जे को ले कर अकसर झगड़ा होता रहता है.

देर से पहुंची पुलिस

जमीन का झगड़ा गुर्जर व गोड जाति के बीच शुरू हुआ था, जो देखते ही देखते खूनी खेल में बदल गया. गांव में लाशें बिछ गईं. इस वारदात से पूरे जिले में हड़कंप मच गया. सोनभद्र और मिर्जापुर इलाके ही नहीं, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और देश की राजधानी दिल्ली तक हिल गई.

गांव वाले कहते हैं कि पुलिस को बुलाने के लिए 100 नंबर डायल करने के बाद भी पुलिस वहां बहुत देर से पहुंची. प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर के साथ आए लोगों ने 32 ट्रैक्टरों का घेरा बना कर गांव वालों को उस के अंदर कैद कर लिया था. इस के बाद उन की पिटाई शुरू कर दी थी.

वारदात के बाद पहुंची पुलिस ने घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, घोरावल में भरती कराया. गंभीर रूप से घायल आधा दर्जन लोगों को जिला अस्पताल भेजा गया और लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में जमीन पर कब्जे को ले कर हुए इस हत्याकांड में पुलिस ने मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर, उन के भाई और भतीजे समेत 26 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

इस मामले में पुलिस ने 28 लोगों को नामजद किया है जबकि 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है.

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पुलिस ने बताया कि इस हत्याकांड में इस्तेमाल किए गए 2 हथियार भी बरामद कर लिए गए हैं. पुलिस ने गांव के लल्लू सिंह की तहरीर पर मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर और उन के भाइयों समेत सभी पर हत्या और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अधिनियम ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह को हर मामले पर नजर बनाए रखने का निर्देश दिया है. उन्होंने घटना का संज्ञान लेते हुए मिर्जापुर के मंडलायुक्त व वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक को घटना के कारणों की संयुक्त रूप से जांच करने के निर्देश दिए हैं.

खूनी जमीन की कहानी

घोरावल के उभ्भा गांव में खूनी जमीन की कहानी बहुत लंबी है. इस की शुरुआत साल 1900 से हुई थी. इस के पहले यहां की जमीन पर आदिवासी काबिज थे. इस जमीन पर वे बोआई  और जुताई करते थे.

17 दिसंबर, 1955 में बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी बना कर तकरीबन 639 बीघा जमीन उस के नाम करा दी.

इस के बाद महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर के 148 बीघा जमीन अपनी बेटी आशा मिश्रा पत्नी प्रभात कुमार मिश्रा, पटना के नाम करा दी.

महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा के दामाद आईएएस अफसर थे. ऐसे में राबर्ट्सगंज के तहसीलदार ने दबाव में आ कर काम किया. यही जमीन बाद में आशा मिश्रा की बेटी विनीता शर्मा उर्फ किरन कुमार पत्नी भानु प्रसाद आईएएस निवासी भागलपुर के नाम कर दी.

जमीन परिवार के लोगों के नाम होती रही, पर उस पर खेती का काम आदिवासी लोग करते थे. जमीन से जो पैदा होता था, उस का पैसा आदिवासी आईएएस परिवार को देते रहते थे.

17 अक्तूबर, 2017 को विनीता शर्मा ने जमीन को गांव के ही प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर को बेच दिया. तब से ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर जमीन पर कब्जा करने की फिराक में था.

इस जमीन के विवाद की जानकारी सभी जिम्मेदार लोगों को थी. यहां तक कि इस की शिकायत आईजीआरएस पोर्टल पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार से की गई थी. बिना किसी तरह से निस्तारण किए इस को निस्तारित बता कर मामले को रफादफा कर दिया था.

मूर्तिया के रहने वाले रामराज की शिकायत पर मार्च, 2018 में अपर मुख्य सचिव, सचिव, राजस्व एवं आपदा विभाग और जुलाई, 2018 में जिलाधिकारी सोनभद्र को नियमानुसार कार्यवाही के लिए भेजा गया.

अगस्त, 2018 में तहसीलदार की जांच आख्या प्रकरण के बाबत वाद न्यायालय सिविल जज सीनियर डिवीजन सोनभद्र के यहां विचाराधीन है. वर्तमान में प्रशासनिक आधार पर किसी तरह की कार्यवाही की जानी मुमकिन नहीं है. इस के बाद इसे निस्तारित दिखा दिया गया.

7 अप्रैल, 2019 को राजकुमार ने शिकायत दर्ज कराई कि उन की अरहर की फसल आदिवासियों ने काट ली. इस के बाद घोरावल थाने में 30 आदिवासियों के नाम मुकदमा लिख दिया गया, जबकि आदिवासियों की शिकायत पर दूसरे पक्ष पर कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई.

नरसंहार के बाद अब ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर के बारे में छानबीन की जा रही है. उस के द्वारा कराए गए कामों की गहनता से जांचपड़ताल की जा रही है.

दबाव में जागी सरकार

तकरीबन 12,000 की आबादी वाले उभ्भा गांव के 125 घरों की बस्ती में टूटी सड़कें, तार के इंतजार में खड़े बिजली के खंभे बदहाली की कहानी बताते हैं. इस गांव के लोग सरकार की योजनाओं के पहुंचने का सालोंसाल से इंतजार करते थे, लेकिन 17 जुलाई को हुई नरसंहार की वारदात के बाद यहां पहली बार शासन की योजनाएं पहुंचने लगी है.

63 साल से भी ज्यादा उम्र की कमलावती कहती हैं, ‘‘हमारी उम्र के लोगों को वृद्धावस्था पैंशन मिलती है, लेकिन हमारा नाम काट दिया गया. हमें आज तक पैंशन का फायदा नहीं मिला, न ही किसी दूसरी सरकारी योजना का फायदा मिला है.

‘‘इस घटना के बाद लगे कैंप में अब फार्म भरवाया गया है. इतने दिन तक तो हमें पता भी नहीं था कि सरकार की कौनकौन सी योजनाएं चलती हैं. राशनकार्ड तो बना था, लेकिन राशन नहीं मिलता था. इस नरसंहार में हम ने अपना बेटा खोया है, तब जा कर आवास के लिए फार्म भरवाया गया है.’’

इसी गांव की रहने वाली लालती देवी कहती हैं, ‘‘पहले न तो गांव में बिजली थी और न ही किसी के पास पक्का मकान था. इतनी बड़ी बस्ती में महज एक पक्का मकान था. घटना के बाद आवास के लिए फार्म भरवाया गया है. राशनकार्ड भी बन गया है. इलाज के लिए आयुष्मान भारत योजना का कार्ड भी बना दिया गया.’’

लालदेई कहती हैं, ‘‘इस घटना के बाद गांव में अधिकारियों का आना शुरू हुआ है. अब पूछपूछ कर योजनाओं का फायदा दे रहे हैं. नया बिजली कनैक्शन दे रहे हैं. आवास के लिए आवेदन हो रहा है. सरकार की योजनाएं तो इतनी चलती हैं, पर इस घटना के पहले बिजली कनैक्शन, आवास, शौचालय कुछ भी नहीं था.’’

खेल कब्जे का

सोनभद्र में एक लाख हैक्टेयर से ज्यादा वन भूमि पर गैरकानूनी तरीके से नेता, अफसर और दबंग काबिज हैं. जिले में तैनात हुए ज्यादातर अफसरों ने करोड़ों की जमीन वन और राजस्व विभाग के मुलाजिमों की मिलीभगत से अपने नाम पर ली है.

पीढि़यों से जमीन जोत रहे वनवासियों का शोषण भी किसी से छिपा नहीं है.

5 साल पहले यानी साल 2014 में वन विभाग के ही मुख्य वन संरक्षक (भूअभिलेख एवं बंदोबस्त) एके जैन ने एक रिपोर्ट दी थी और पूरे मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश भी की थी. यह रिपोर्ट फाइलों में दब गई थी.

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इस रिपोर्ट के मुताबिक, सोनभद्र में जंगल की जमीन की लूट मची हुई है. अब तक एक लाख हैक्टेयर से ज्यादा जमीन गैरकानूनी तरीके से बाहर से आए ‘रसूखदारों’ या उन की संस्थाओं के नाम की जा चुकी है. यह प्रदेश की कुल वन भूमि का 6 फीसदी हिस्सा है.

इस पूरे मामले से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने की सिफारिश भी की थी. रिपोर्ट के मुताबिक, सोनभद्र में 1987 से ले कर अब तक एक लाख हैक्टेयर जमीन को गैरकानूनी तरीके से गैर वन भूमि घोषित कर दिया गया है, जबकि भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा के तहत यह जमीन ‘वन भूमि’ घोषित की गई थी.

रिपोर्ट में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बिना इसे किसी शख्स या प्रोजैक्ट के लिए नहीं दिया जा सकता. वन भूमि को ले कर होने वाला खेल यहीं नहीं रुका है, बल्कि धीरेधीरे अवैध कब्जेदारों को असंक्रमणीय से संक्रमणीय भूमिधर अधिकार यानी जमीन एकदूसरे को बेचने के अधिकार भी लगातार दिए जा रहे हैं.

यह वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का सरासर उल्लंघन है. साल 2009 में राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. इस में कहा गया था कि सोनभद्र में गैर वन भूमि घोषित करने में वन बंदोबस्त अधिकारी (एफएसओ) ने खुद को प्राप्त अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर के अनियमितता की है.

हालात का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 40 साल पहले सोनभद्र के रेनूकूट इलाके में 1,75,896.490 हैक्टेयर भूमि को धारा 4 के तहत लाया गया था. लेकिन इस में महज 49,044,89 हैक्टेयर भूमि ही वन विभाग को पक्के तौर पर (धारा-20 के तहत) मिल सकी.

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यही हाल ओबरा व सोनभद्र वन प्रभाग और कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र में है. वन विभाग के ही मुख्य वन संरक्षक (भूअभिलेख एवं बंदोबस्त) एके जैन की यह रिपोर्ट बताती है कि सोनभद्र ही नहीं, बल्कि ऐसे तमाम जिलों में वन भूमि से वहां के रहने वालों को बेदखल किया जा रहा है.          द्य

शौचालय में चढ़ा चूल्हा

इस मामले में और ज्यादा विवाद तो तब बढ़ा जब 23 जुलाई को राज्य की महिला विकास मंत्री इमरती देवी ने कहा, ‘‘आप को समझना चाहिए कि शौचालय के अंदर एक दीवार है. उस के एक तरफ सीट रखी है और दूसरी तरफ खाना पक रहा है. इस में क्या समस्या है?

‘‘हमारे घरों के कमरों में भी अटैच्ड लैट्रिनबाथरूम होते हैं. क्या हम लोग या हमारे घर आने वाले मेहमान हमारे घर का खाना खाने से इनकार कर देते हैं कि आप के घर में अटैच्ड लैट्रिनबाथरूम है?’’

गहलोत की खरीखरी

जयपुर. 23 जुलाई को कांग्रेस के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कर्नाटक के नाटक पर कहा, ‘‘यह घटनाक्रम लंबे समय से चल रहा है. पूरा देश देख रहा है कि किस तरह मोदीजी को भारी बहुमत मिला लेकिन

आम जनता को उम्मीद नहीं थी कि जीतने के बावजूद राजग सरकार इस तरह की हरकत करेगी…

‘‘कर्नाटक में आप तमाशा देख ही रहे हैं. जोकुछ हो रहा है वह जनता के जेहन में बैठ रहा है और आने वाले वक्त में उन्हें यह भारी पड़ेगा. इन की खुद की पार्टी में बगावत होगी, यह मैं कह सकता हूं…

‘‘ये लोग लोकतंत्र को खत्म करने का खेल खेल रहे हैं. इन का बस चले तो हिंदुस्तान भर में यही काम करेंगे. और कोई काम तो है नहीं इन के पास. देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है, नौजवानों में गुस्सा पैदा हो रहा है, किसान खुदकुशी कर रहे हैं, इन्हें उस की चिंता नहीं है.’’

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नेता के भाई की धोखाधड़ी

देहरादून. 23 जुलाई को उत्तराखंड के बड़े कांग्रेस नेता किशोर उपाध्याय के छोटे भाई

सचिन पर ब्लैकमेलिंग और धोखाधड़ी के आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाया गया.

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस संबंध में जून महीने में एक बिल्डर द्वारा की गई शिकायत पर जांच के आदेश दिए थे. बिल्डर मुकेश जोशी ने मुख्यमंत्री से मिल कर अपने बिजनैस पार्टनर रह चुके सचिन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने एसएम होस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड नाम के बिजनैस जौइंट वैंचर में उन के 50 फीसदी शेयर उन के फर्जी दस्तखत कर अपनी पत्नी के नाम कर दिए थे.

मुकेश जोशी ने सचिन पर ब्लैकमेल करने का भी आरोप लगाते हुए उन के बड़े भाई किशोर उपाध्याय की राजनीतिक हैसियत को देखते हुए अपनी जान के खतरे का डर भी जताया था. किशोर उपाध्याय उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं.

दिल्ली की मोदी से नई मांग

नई दिल्ली. अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्रीय करों में दिल्ली की हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग को ले कर शहर के विकास के लिए केंद्र सरकार से पैसे से मदद मांगी है.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने 25 जुलाई को 15वें वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह से मुलाकात की, उन्हें एक ज्ञापन सौंपा और कहा कि जिस तरह से केंद्र सरकार बाकी राज्यों को पैसा देती है, उसी तरह से केंद्रीय करों में दिल्ली को उस की वाजिब हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.

मीडिया के साथ बातचीत में अरविंद केजरीवाल ने बताया कि केंद्र सरकार को दिल्ली तकरीबन पौने

2 लाख करोड़ रुपए इनकम टैक्स जमा कर के देती है, उस में से दिल्ली को यहां के विकास के लिए केवल 325 करोड़ रुपए ही वापस मिलते हैं. सालों से इतना ही पैसा दिया जाता रहा है. बाकी राज्यों की तरह दिल्ली के नगरनिगमों को भी पैसा दिया जाना चाहिए.

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बैकफुट पर आजम खां

लखनऊ. समाजवादी पार्टी के बड़े नेता और सांसद आजम खां ने 24 जुलाई को लोकसभा में भाजपा की

एक सांसद रमा देवी पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी, जिस के बाद उन्हें लेने के देने पड़ गए. उन की इतनी किरकिरी हुई कि रमा देवी को अपनी बहन जैसा बताना पड़ा.

लेकिन देश की महिला नेताओं को आजम खां का ऐसा कहना रास नहीं आया. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, भाजपा नेता जया प्रदा समेत कई दिग्गज नेताओं द्वारा आजम खां के कथन की निंदा की गई.

इतना ही नहीं, बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी आजम खां की टिप्पणी को अशोभनीय बताते हुए उन्हें सभी औरतों से माफी मांगने को कहा. बाद में आजम खां ने माफी भी मांगी.

झटके पर लगा झटका

मुंबई. लगता है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है. 24 जुलाई को उस की मुंबई इकाई के प्रमुख और महाराष्ट्र के मंत्री रह चुके सचिन अहिर शिव सेना में शामिल हो गए थे और बाद में सुनने में आया कि इस दल की महाराष्ट्र महिला विंग की अध्यक्ष चित्रा वाघ ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया. उन्होंने कहा, ‘‘मैं नैशनलिस्ट महिला महाराष्ट्र प्रदेश के अध्यक्ष पद और एनसीपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देती हूं.’’

लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन और नेताओं द्वारा पार्टी छोड़ने से राकांपा का महाराष्ट्र में जनाधार खतरे में दिखाई पड़ने लगा है. नेता पार्टी न छोड़ें, इस के लिए ठाणे में राकांपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने हवन कराया, पर लगता है, वह भी काम नहीं आया.

रिकौर्ड घंटे चली बैठक

गांधीनगर. गुजरात की 14वीं विधानसभा ने एक दिन की सब से लंबी बैठक के साल 1993 के अपने ही रिकौर्ड को तोड़ दिया. 26 और 27 जुलाई को विधानसभा की कार्यवाही 17 घंटे और 40 मिनट तक चली थी. यह 26 जुलाई की सुबह 10 बजे शुरू हुई थी और अगले दिन के तड़के 3 बज कर 40 मिनट पर खत्म हुई थी.

शनिवार, 27 जुलाई को जारी की गई एक प्रैस रिलीज के मुताबिक, ‘चौथे सैशन का आखिरी दिन गुजरात विधानसभा के लिए ऐतिहासिक रहा क्योंकि इस की कार्यवाही 17 घंटे और 40 मिनट तक चली और इस से 6 जनवरी, 1993 का रिकौर्ड टूट गया.’

6 जनवरी, 1993 को विधानसभा की कार्यवाही

12 घंटे और 8 मिनट तक चली थी. इस सिलसिले में विधानसभा अध्यक्ष के ऐलान के बाद विधायकों और अफसरों ने इस ‘ऐतिहासिक घटना’ पर खुशी मनाई.

पूर्व विधायक की चिंता

श्रीनगर. जम्मूकश्मीर के विधायक रह चुके शेख अब्दुल राशिद ने रविवार, 28 जुलाई को केंद्र सरकार पर लोगों के बीच डर पैदा करने की कोशिश का आरोप लगाया और यह अपील की कि केंद्र कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाए.

अवामी इत्तेहाद पार्टी के प्रमुख शेख अब्दुल राशिद ने कहा कि भाजपा वाली केंद्र सरकार को राज्य में ‘प्रयोग’ करना बंद करना चाहिए और यहां अतिरिक्त बलों की तैनाती को ले कर अफवाहों पर जवाब देना चाहिए. उन्होंने केंद्र को अनुच्छेद 35ए या अनुच्छेद 350 के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ आगाह भी किया.

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राजद में फिर टूट

पटना. केंद्रीय मंत्री रह चुके मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने रविवार, 28 जुलाई को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) की सदस्यता ले ली.

राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद के बड़े नेता माने जाने वाले मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने हालिया लोकसभा चुनावों में टिकट नहीं मिलने से नाराज हो कर राजद से नाता तोड़ लिया था.

मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने कहा कि जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में हो रहे न्याय के साथ विकास, खासकर बिहार के अल्पसंख्यकों के लिए सरकार द्वारा जितनी भी जनोपयोगी योजनाएं बनाई और चलाई गई हैं, इस से पहले किसी भी पार्टी की सरकार द्वारा ऐसा नहीं हुआ है.

‘दो भैसों की लड़ाई में पूरा देश चौपट हो गया’- हीरा सिंह मरकाम

साक्षात्कार – हीरा सिंह मरकाम राष्ट्रीय अध्यक्ष गोंडवाना गणतंत्र पार्टी

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के सुप्रीमो हीरा सिंह छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की राजनीति के एक बड़े स्तंभ कहे जाते हैं. हीरा सिंह ने शिक्षक से विधायक और अपनी पार्टी गठन करने के पश्चात समाज को एकजुट करने का अथक प्रयास किया है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इनकी गहरी पकड़ है यही कारण है कि राहुल गांधी हो या अखिलेश यादव अथवा अजीत जोगी आप से गठबंधन की अपेक्षा रखते हैं. प्रस्तुत है विश्व आदिवासी दिवस पर उनसे हुई एक विशेष बातचीत…

दादा, 80 वर्ष की उम्र में जीवन का क्या निचोड़ है, आपका क्या संदेश है…?
मेरा जन्म प्रकृति के बीच गांव में हुआ. जब हम ऊपर देखते थे तो पेड़ से फल मिल जाते थे नीचे कोरहाई के जंगल में एक घंटे मे टोकरी भर कर भरपूर कांदा- फल मिल जाता था .कहां गया सब….मैं तो कहूंगा सरकार जिसको छुती है छूत लग जाती है, कहीं कोई सफलता नहीं है . सब कुछ निजीकरण करते चले जाते हैं क्योंकि राजा की नियत न हो राजा का चरित्र न हो तो देश और अवाम का भला कैसे होगा. मै ठीक बाकी दुनिया खराब है आज का फलसफा यही है चाहे सत्ता में कोई बैठे.
हम कर रहे हैं वहीं ठीक है एक साधु ने लिखा था न ! दो भैसा की लड़ाई में चिरकुट होगे नाव ! गांव के सुम्मत के गांधी बाबा के सुम्मत के… दो भैसा के लड़ाई में…. तो दो भैसा की लड़ाई में पूरा देश चौपट हो गया .

अर्थात आपका इशारा भाजपा और कांग्रेस पार्टियों की तरफ है और राजनीतिक दल अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे…

हां इनको देश से कोई लेना देना नहीं है आप अच्छी तरह जानते हैं जिनका सिर्फ देश सेवा का लक्ष्य नहीं वह नेता रातों रात अरबपति हो जाते हैं. अमित शाह का बेटा 80 हजार से 12 हजार करोड़ रुपए कमा लेता है . आखिर कौन सा यंत्र है इनके पास. रातों-रात… और भी तो भाई हैं 80 हजार वाले जो पैसा लगा पसीना बहाते हैं तब भी उनका पैसा बढ़ता नहीं है . बाबू, अफसरों के चक्कर में ठेकेदारी कर फंस जाता है, हाथ जोड़ गिङगिडाता है.

आप राजनीति में आने से पूर्व शिक्षक थे, नौकरी की थी?
हां, मैं आठ डिपार्टमेंट संभालता था. बोरों में नोट होते थे . दस दस चपरासी होते थे. मैं कभी तनख्वाह नहीं बाटंता था, चपरासी बाटंते थे . बाबू कहते थे,- दादा! फंस जाओगे किसी दिन. मैं कहता,- मैं तो रखवार हूं पैसा तो उन्हीं का है. बेईमानी करेंगे तो फिर दूसरे दिन 11 से 4 बजे पढ़ाऊंगा. 5 बजे के बाद तनख्वाह बाटूंगा तो आधी रात को घर जाएंगे . सब समझ में आ जाएगा . तब एक नोट भी ज्यादा चला जाता तो लेकर वापिस आ जाते और कहते- ‘दादा! यह ज्यादा ले गए थे . ऐसी इमानदारी का युग था, शिक्षक बच्चों को अपने बेटे से ज्यादा चाहता था .आज तो अगर आपने बच्चों को ट्यूशन नहीं पढ़ाई तो वह बच्चा गया.

आगामी चुनाव में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की क्या रणनीति होगी ?
देखो! हमने मेहनत से अपने वोटर तैयार किए हैं हम उन्हें भटकने नहीं देंगे…. आने वाले समय में जैसे ही स्वस्थ होऊंगा मैं चुनावी सभाओ मैं पहुंचूगा . मैं वोटर को अन्नदाता और श्रमवीर मानता हूं उनके सम्मान के लिए काम करूंगा.

आपने किसान की बात की… क्या आप भी खेती किसानी से जुड़े रहे हैं ?
हां,मैं सुबह 4 बजे उठ जाया करता था विधायक बनने के बाद भी मैं खेती करता था. 4 बजे सुबह नागर फांद देता था. सब्जियां लगी हुई है जिसको चाहिए ले जाए… देख कर सीखे यह आशा थी. आज तो वह स्थिति नहीं रही स्वास्थ्य साथ नहीं देता.

आप की पार्टी और आप का विजन क्या है ?
0 जल, जंगल, जमीन है गोंडवाना के अधीन . हमारा ग्रह ग्राम तिवरता (जिला कोरबा ) कोयला खदान द्वारा अधिग्रहित नहीं है मगर सबसे ज्यादा भोग रहा है पूरी सड़क पेड़ नाले खेत रास्ते दमा के पेशेंट है क्या दे रही कोयला कंपनी आवाम को. सामाजिक सहभागिता यानी सीएसआर की राशि जिलाधीश अपने पास मंगा लेता है.डिस्टिक माइनिंग फंड ( ङीएमएफ ) को मनमाना खर्च किया जा रहा…है लोग दमा, ह्रदय रोग से बीमार हो रहे हैं आसपास के सभी गांव प्रभावित हो रहे हैं. सामाजिक,राजनीतिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रभावित हो रहे ,युवा शराब की लत से पीड़ित हो गए, परिवार नष्ट हो रहे .

विश्व आदिवासी दिवस पर आपका आदिवासी समाज को क्या संदेश है?

पहली बात है हमअपना ‘वोट’ का महत्व समझ जाए .वोट बिके नहीं,अगर बिकेगा तो यही कहा जाएगा कि तुमने वोट दिया थोड़ी है,हमने तो तुम्हारा वोट खरीदा है इस अपमान से बच जाओ.यह शिक्षा गोंडवाना दे रही है .जहां तक केंद्र की बात है चुनाव की … क्षेत्रीय दलों का भी बड़ा महत्व है…. नरबलि नहीं होत है समय होत बलवान अर्जुन लुटे भिलनी वहीं अर्जुन वही बाण …. यही भवितव्य है.

क्षेत्रीय दलों की क्या भूमिका देखते हैं आप वर्तमान चुनावी समर में ?
देखिए ममता, नवीन,लालू,अखिलेश यादव जी मायावती सभी अपने अपने दृष्टिकोण बदले हुए हैं और चाह रहे हैं कि अरस्तू ने कहा था अगर जनता में घोर असंतोष हो जाए तो पड़ोसी देश पर हमला कर दो…जनता देश भक्ति के धारा में बह जाएगी और तुम चुनाव जीत जाओगे यही आज देश की स्थिति बनी हुई है तो 358 ईसवी पूर्व अरस्तू ने यह बता दिया था जो अभी नजर आ रहा है .

 नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों की कार्यप्रणाली आप देख रहे हैं कुछ कहेंगे…?
0 नरेंद्र मोदी जो बाण चला रहे हैं वह हृदयगाही नहीं है दरअसल दोनों के दोनों के पास प्रधानमंत्री पद की समझ, योग्यता में कमी दिखाई दे रही है. मुखिया मुख सो चाहिए खान पान को एक पाले पोसे अंग तुलसी सहित विवेक. आपको, सबको समान मानकर चलना चाहिए क्या मुसलमानों ने आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी उन्हें कहां बसाओगे ? देश में गृह युद्ध शुरू हो जाएगा उनमें भी देश प्रेम है या फिर सविधान बदल दो धर्मनिरपेक्षता खत्म कर दो.यह धार्मिक सोचनीय स्थिति है.

कोरबा संसदीय क्षेत्र आपका गृह जिला है यहां गोंडवाना क्या करने जा रही है ?

सांपनाथ और नागनाथ वाली स्थिति है. इसमें कुछ फर्क नहीं नाग धार्मिक भाव है. आज नरवा, गरवा, धुरवा,बाड़ी की बात हो रही है यह कहां शुरू हुआ.

भूपेश सरकार ने किसानों के लिए ऐतिहासिक काम प्रारंभ किया है कर्जा मुक्ति…
(बीच में ही कटाते हुए) … क्या किसानों को स्वावलंबी बनाया आपने ?
जो कर्ज माफ किया, 2500 रुपए क्विंटल धान का ले रहे हो, जब आगे चावल ₹70 किलो बिकेगा तब किसके ऊपर आएगा?यह प्रत्यक्ष रूप से जनता का शोषण है, हाथी के दांत दिखाने के और खाने के अलग… किसान आगे फिर लाठी गोली खाएगा… कर्मचारी तो हड़ताल करके अपना वेतन बढ़वा लेगा कर्ज़ माफी का लालीपाप है . खेत स्मार्ट हो, किसान स्मार्ट हो जाएगा गांव और देश स्मार्ट हो जाएगा.

गोंडवाना की सरकार बनती है तो वह सरकार कैसी होगी क्या कल्पना है आपकी?
0 हमारी सरकार गांव की सरकार होगी. हम आदर्श के रूप में एक गांव को मॉडल के रूप में विकसित करके दिखाएंगे की क्या जब यह गांव माडल बन सकता है तो बाकी गांव क्यों नहीं… भ्रष्टाचार. शोषणविहीन, ऋणमुक्त प्रगतिधर्मी समाज व्यवस्था यह हमारा मूल मंत्र है.जल जंगल जमीन गांव की प्रभुसत्ता होगी गांव स्वावलंबी होगा सब कुछ गांव का आज की तरह नहीं की रेत ,नाला, सड़क सब कुछ सरकार का और हम किसके हैं भई…!

पौलिटिकल राउंडअप: भाजपा में चुनावी सरगर्मी

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने बताया कि सोमवार, 8 जुलाई को हुई एक बैठक में फैसला लिया गया था कि ‘दिल्ली के मन की बात, बीजेपी के साथ’ अभियान चलाया जाएगा. सदस्यता अभियान के साथ इस कवायद की शुरुआत हो चुकी है.

पार्टी नेता अलगअलग इलाकों में जा कर लोगों से बात कर के उन की राय जानेंगे और पार्टी अपना चुनावी घोषणापत्र तैयार करेगी. पार्टी जनता से जुड़े तमाम मुद्दों पर कानूनी राय भी लेगी, ताकि आगे चल कर कानूनी अड़चनों का सामना न करना पड़े.

लौट आए अखिलेश यादव

लखनऊ. पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती के साथ महागठबंधन बना कर भाजपा से लोहा लेने का फार्मूला फुस होने के बाद समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा अखिलेश यादव राजनीति से थोड़ा कट से गए थे, पर जुलाई महीने के दूसरे हफ्ते में वे पूरे जोश के साथ वापस अपने कार्यालय में आ गए.

उत्तर प्रदेश की 12 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि समाजवादी पार्टी इन चुनावों के लिए अपनी तैयारियां शुरू करेगी. वैसे, पार्टी कार्यकर्ताओं को बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती के रुख पर अखिलेश यादव के कुछ कहने का अब भी इंतजार है.

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राहुल आए रंग में

अहमदाबाद. राहुल गांधी भाजपा पर हमला करने से नहीं चूक रहे हैं और प्रधानमंत्री के गढ़ में जा कर जनता के सामने अपनी बात रख रहे हैं.

राहुल गांधी ने शुक्रवार, 12 जुलाई को आरोप लगाया कि भाजपा सरकारें गिराने के लिए ‘धनबल’ और ‘डरानेधमकाने’ का सहारा ले रही हैं.

याद रहे कि कर्नाटक में 13 महीने पुरानी कांग्रेस और जद (एस) की गठबंधन सरकार से 2 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया है और कांग्रेस के 13 विधायकों समेत कुल 16 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं.

राहुल गांधी मानहानि के एक मामले में मैट्रोपोलिटन अदालत के सामने पेशी के लिए अहमदाबाद आए हुए थे. मानहानि का यह मामला अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक की तरफ से दायर किया गया है जिस में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एक निदेशक हैं. राहुल गांधी ने खुद को बेकुसूर बताया और उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई.

मानहानि के कानून का आजकल अखबारों और राजनीतिबाजों को अदालतों में घसीटने के लिए जम कर इस्तेमाल किया जा रहा है.

ममता हुईं ममतामयी

कोलकाता. ममता बनर्जी ने साबित कर दिया है कि राजनीति उन के खून में बसी है. हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बढ़ते दबदबे के बाद उन्होंने खूब कड़े तेवर दिखाए थे और पूरे दमखम के साथ लोहा लिया था. पर जब बात नहीं बनी और उन्हें लगा कि इस से पार्टी को आने वाले विधानसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है तो वे मोम की तरह पिघल गईं और गुरुवार, 11 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस के सभी विधायकों से कहा कि वे और विनम्र हो कर जनता से मिलें और अपनी पिछली गलतियों के लिए उन से माफी मांगें.

लगता है कि लोकसभा चुनाव में मिले करारे झटके के बाद से ममता बनर्जी बहुतकुछ नया सीख गई हैं और अभी से ही विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जीजान से जुट गई?हैं.

‘दिग्गी राजा’ का दांव

पुणे. अपने चहेतों में ‘दिग्गी राजा’ के नाम से मशहूर कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने शुक्रवार, 12 जुलाई को कर्नाटक और गोवा के हालात पर दावा किया कि नोटबंदी के दौरान भाजपा ने खूब पैसा बनाया और अब उसी पैसे का इस्तेमाल कर पार्टी विधायकों को खरीद रही है. विधायकों को ऐसे खरीदा जा रहा है जैसे बाजार से सामान खरीदा जाता है.

हालांकि, दिग्विजय सिंह ने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार पूरी तरह सुरक्षित है. मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास 121 विधायकों का समर्थन है.

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पत्नियों की सरकार से गुहार

श्रीनगर. जम्मूकश्मीर पर अपना नियंत्रण बनाने के मनसूबे पालने वाली भाजपा के सामने एक नई चुनौती आ गई है. बात यह है कि भारतपाकिस्तान नियंत्रण रेखा के उस पार से एक पुनर्वास योजना के तहत वापस आए पूर्व कश्मीरी आतंकवादियों की पाकिस्तानी पत्नियों ने शुक्रवार, 12 जुलाई को केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की थी कि उन्हें या तो भारतीय नागरिकता दी जाए या फिर वापस भेज दिया जाए.

ऐसी महिलाओं में शामिल ऐबटाबाद की रहने वाली तैयबा ने कहा, ‘‘हम कुल 350 महिलाएं हैं. हमें यहां का नागरिक बनाया जाए, जैसा किसी भी देश में पुरुषों के साथ विवाह करने वाली महिलाओं के साथ होता है. हम भारत सरकार और राज्य सरकार से अपील करती हैं कि या तो हमें पासपोर्ट प्रदान किए जाएं या वापस जाने के लिए यात्रा दस्तावेज प्रदान किए जाएं.’’

 हिमाचल के नए राज्यपाल

शिमला. भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता कलराज मिश्र को हिमाचल प्रदेश का नया राज्यपाल बनाया गया है. याद रहे कि कभी उत्तर प्रदेश और भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता रहे कलराज मिश्र को नरेंद्र मोदी सरकार के 2014 से 2019 के पहले कार्यकाल में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया था, हालांकि उन्होंने साल 2017 में ही मंत्री पद छोड़ दिया था. इस के बाद कलराज मिश्र ने साल 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था.

कलराज मिश्र को आचार्य देवव्रत की जगह हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है जबकि आचार्य देवव्रत को गुजरात का राज्यपाल बनाया गया है.

विज के फिर बिगड़े बोल

अंबाला. हरियाणा के बड़े भाजपाई नेता और राज्य सरकार में मंत्री अनिल विज ने बड़ी ओछी बात कह दी. हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दिए गए इस्तीफे पर अंबाला में 6 जुलाई को अनिल विज ने कहा, ‘‘यह तो उन का फैमिली ड्रामा है. राजीव गांधी ने कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है, लेकिन उन के बेटे राहुल ने इस्तीफा दिया तो एक कुत्ता भी नहीं भूंका.’’

इस से पहले फरवरी, 2019 में अनिल विज ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तुलना ‘रामायण’ की एक किरदार ताड़का से की थी. तब उन्होंने कहा था, ‘‘छोटे होते थे जब रामलीला देखने जाया करते थे तो उस में एक सीन आया करता था कि ऋषिमुनि जब यज्ञ किया करते थे तो ताड़का आ कर उस में रुकावट डाल दिया करती थी. ठीक उसी तरह की भूमिका ममता बनर्जी कर रही हैं.’’

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लगेगी चुनावी पाठशाला

रायपुर. छत्तीसगढ़ में वोटरों में जागरूकता लाने के लिए चुनाव पाठशाला की शुरुआत की जाने वाली है. इन पाठशालाओं में रोचक खेल और मनोरंजक कार्यक्रमों का सहारा लिया जाएगा. वैसे, राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटिंग के प्रति जागरूक करने के लिए चुनावी पाठशालाएं लगाई गई थीं जिन में चुनावी साक्षरता क्लबों का भी सहारा लिया गया था.

संयुक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी समीर विश्नोई का इस मसले पर कहना है कि पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी साक्षरता

क्लब के जरीए बेहतर काम किया गया था. इस से छत्तीसगढ़ में वोटरों में जागरूकता बढ़ी है.

आखिर क्यों कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं नुसरत जहां

बंगाली ऐक्ट्रैस से सांसद बनीं नुसरत जहां नेता से अधिक बेपनाह खूबसूरती और अपने अलग अंदाज के लिए आजकल चर्चा में हैं.
टीएमसी सांसद नुसरत अब शादी के 2 महीनों बाद हनीमून पर हैं और उन का यह हनीमून अब चर्चा में है.
अभिनेत्री से नेता बनीं नुसरत जहां ने जब से राजनीति में कदम रखा है, तब से कठमुल्लों के निशाने पर रही हैं. राजनीति में पहले ही दिन अपने गेटअप और ड्रैस को ले कर कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गईं और ट्रोल हुई थीं.

स्वर्ग जगहों से नहीं

इसी साल 19 जून को कोलकाता के जानेमाने बिजनैसमैन निखिल जैन से नुसरत जहां ने शादी की है. शादी के के 2 महीने बाद वे पति संग हनीमून मनाने निकली हैं.
इस हनीमून को यादगार बनाने के लिए उन्होंने अपनी कई खूबसूरत तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कीं और शीर्षक दिया,’बेहतर हो कि आप का सिर बादलों में हो और आप को पता हो कि आप कहां हो. स्वर्ग जगहों से नहीं बल्कि खूबसूरत पलों, आपसी जुङाव और वक्त की चमक में मौजूद होते हैं.’

तसवीरें देख कर लगता है कि वे मालदीव्स में हनीमून मना रही हैं पर असल में वे कहां हैं यह नहीं पता चल पा रहा है.
हालांकि सोशल मीडिया पर हर किसी को नुसरत का यह अंदाज खूब पसंद आ रहा है. वे वेस्टर्न आउटफिट्स में नजर आ रही हैं और बेहद खूबसूरत दिख रही हैं.

फतवा जारी हो चुका है

शादी के बाद मांगटीका, साङी और मांग में सिंदूर लगाने की वजह से नुसरत पर फतवा भी जारी हो चुका है. कट्टरपंथी लोगों ने नुसरत की आलोचना करते हुए उन्हें धर्म विरोधी बताया है. हालांकि नुसरत जहां ने ऐसे लोगों को अपने अंदाज में जवाब भी दिया है.

वेस्टर्न आउटफिट्स और शानदार गेटअप में नुसरत जहां ने यह संदेश दिया है कि नेता बनने के लिए झूठा आवरण ओढने की कोई जरूरत नहीं है. अपने खुद के अंदाज में रहते हुए भी लोगों का दिल जीता जा सकता है.
नुसरत मानती हैं कि किसी नेता अथवा सांसद की पहचान उस के लिबास से नहीं जनता का काम कर के होती है और जिसे वह बखूबी कर रही हैं. ऐसे चंद लोग जो जातिमजहब के नाम से समाज को बांटने की कोशिश करते हैं उस की कोई फिक्र करने की जरूरत नहीं करनी चाहिए.
सच कहा, बात में तो दम है.

Edited by- Neelesh singh sisodia

उन्नाव की उलझन

चूंकि अपराधी भारतीय जनता पार्टी का नेता है, उसे हर तरह की मनमानी करने का पैदाइशी हक है और उस के रास्ते में जो आएगा उस की मौत भी होगी तो बड़ी बात नहीं. इस लड़की के पिता को पकड़ कर जेल में ठूंस दिया गया कि उस ने अपनी बेटी को शिकायत करने से क्यों नहीं रोका. वहां उसे मार डाला गया.

उस लड़की ने खुद को जलाने की कोशिश की तो उस पर तोहमत लगा दी गई. लड़की के चाचा को गिरफ्तार कर लिया गया और अदालत से सजा दिला दी गई. अब जब लड़की, उस की चाची और चाची की बहन जेल में बंद चाचा वकील के साथ लौट कर गाड़ी से आ रहे थे तो एक बड़े ट्रक ने उसे टक्कर मार कर चकनाचूर कर दिया जिस में चाची और चाची की बहन मारी गईं. लड़की बच गई जो न अस्पताल में सुरक्षित है, न घर में रहेगी. मां को हर हाल में समझौता करना पड़ेगा. वह कब तक सरकार से लड़ेगी?

यह कहानी आज की नहीं सदियों की है. देश में बलात्कार की शिकार ही जिम्मेदार है, बलात्कारी नहीं. बलात्कारी का तो हक है खासतौर पर अगर वह शिकार से ऊंची जाति का हो. पहले लड़कियों के पास कुएं या नदी में कूदने या फांसी लगाने के अलावा कोई और रास्ता न था, आज पुलिस में शिकायत का हक है पर तभी अगर दूसरी तरफ का कुछ कमजोर हो, पैसे और रसूख वाला न हो. जिस पर बलात्कार का आरोप है और जो जेल में बंद है, उसे शुक्रिया कहने 4 जुलाई को भारतीय जनता पार्टी के सांसद साक्षी महाराज जेल में पहुंचे थे और उन्होंने कहा था, ‘‘हमारे यहां के यशस्वी और लोकप्रिय विधायक कुलदीप सेंगर जो काफी दिनों से यहां हैं. चुनाव के बाद उन्हें धन्यवाद देना उचित समझा तो मिलने आ गया.’’

यह लड़की भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर के घर नौकरी मांगने के लिए 2017 में गई थी. उस का कहना है कि उस के साथ गलत काम किया गया था. शिकायत करने के बाद उस के घर वालों को धमकियां मिल रही थीं और अब अमलीजामा पहना दिया गया है.

इस मामले में बहुतकुछ नहीं होगा. सबकुछ रफादफा हो जाएगा, क्योंकि गलत तो लड़की ही थी, क्योंकि ऐसे मामले में गलती लड़की की ही होती है. ‘रामायण’ तक में अहल्या और सीता गलत थीं. सजाएं उन्हें ही मिली थीं. ऐसे समय जब पौराणिक युग को वापस लाया जा रहा हो, जब पिछले जन्मों के कर्मों के फल का पाठ पढ़ाने वाली किताबों को ही अकेला ज्ञान माना जा रहा हो, यह तो होना ही था.

यह संदेश है बलात्कार की शिकार हर लड़की को कि बलात्कार के बाद घर जाए, नहाए, क्रोसिन की 4 गोलियां ले कर सो जाए और हादसे को भूल कर अगली बार इसे दोहराने को तैयार रहे. यह तो होगा ही अगर वह जरा भी जवान है. बच्चियों और प्रौढ़ों को भी नहीं छोड़ा जाता और उन के लिए भी संदेश है कि हम 2019 में नहीं 919 में रह रहे हैं, जब इस देश में पूरी तरह धर्म राज था. सुनहरे दिन लौट रहे हैं.

सोशल मीडिया की दहशत

पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों पर बढ़ते मारपीट के मामलों के पीछे ह्वाट्सएप, ट्विटर और फेसबुक बहुत हद तक जिम्मेदार हैं, क्योंकि ये अफवाहों, अश्लीलता, गंदीभद्दी गालियों, जातिसूचक बकवास को दूरदूर तक ले जाते हैं. पहले जो बात गांव की चौपाल के पास के पेड़ के नीचे तक, शहर में महल्ले की चाय की दुकान या कालेज की कैंटीन तक रहती थी अब मीलों, सैकड़ों मीलों, चली जाती है.

यह मानना पड़ेगा कि ऊंची जातियों के पढ़ेलिखों में ऐसे बहुत से सोशल मीडिया लड़ाकू हैं जो तुर्कीबतुर्की जवाब देने में माहिर हैं. वे सैकड़ों में सही साफ बात कहने वाले की खाल उतार देते हैं. उन के पास सच नहीं होता तो वे झूठ पर उतर आते हैं, उन के पास जवाब नहीं होता तो गाली पर उतर आते हैं. वे बारबार पाकिस्तान भेजने की धमकी दे सकते हैं.

इन सोशल मीडिया बहादुरों ने चाहे कभी मजदूरी न की हो, कोई सामान न ढोया हो, किसी सीमा पर पहरेदारी न की हो, कुछ देश के लिए बनाया न हो, पर ये देशभक्त ऐसे बने रहते हैं मानो भारत इन की वजह से एक है और सैनिक, व्यापारी, किसान, मजदूर, बेरोजगार से ये ज्यादा देश के लिए मर रहे हैं.

इन के पास पढ़ेलिखों का मुंह बंद करने की ताकत आ गई है क्योंकि ये शोर मचा कर सही बात को कुचल सकते हैं. इन के पास समय ही समय है इसलिए ये हर तरह की टेढ़ीमेढ़ी बात गढ़ सकते हैं. ये दलितों के अत्याचारों की कहानियां बना सकते हैं. ये मुसलमानों द्वारा की गई हत्याओं की झूठी कहानियों को ऐसे फैला सकते हैं मानो ये वहीं खड़े थे. दलितों की पिटाई पर ये शिकायत करने वाले की खाल खींच सकते हैं.

ये आदतें इन्हें पीढि़यों से मिली हुई हैं. पीढि़यों से उलटीसुलटी कहानियां कहकह कर ही देशभर में झूठ के मंदिर फैले हुए हैं और वहां से इन लोगों को अच्छी आमदनी होती है. वास्तु, भविष्य, टोनेटोटके, कुंडली, हवनपूजन के नाम पर इन की आमदनी पक्की है. चूंकि पढ़ाई में अच्छे होते हैं, किताबें इन के हिसाब से बनती हैं, इन्हीं के साथी परीक्षा लेते हैं, नौकरियां इन को ही मिलती हैं. जो आरक्षण पा कर कुछ ले रहे हैं वे डरेसहमे रहते हैं, चुप रहते हैं, उन के मुंह से बस ‘जी हुजूर’, ‘जय भीम’, ‘जय अंबेडकर’ निकलता है.

वैसे भी पिछड़ों और दलितों के तो मन में गहरे बैठा है कि वे तो पिछले जन्मों के पापों का फल भोग ही रहे हैं, अगर उन्होंने इन लोगों को जवाब दिया तो उन का हाल शंबूक और एकलव्य जैसा होगा, उन्हें मरने के लिए घटोत्कच की तरह आगे कर दिया जाएगा. वे तो आज भी गंदे सीवर में डूब कर उसे साफ करने भर लायक हैं. वे ट्विटर, फेसबुक, ह्वाट्सएप की तो छोडि़ए एक पोस्टर भी नहीं पढ़ने की हिम्मत रखते. वे क्या मुंहतोड़ जवाब देंगे. और जवाब नहीं दोगे तो बोलने वाले की हिम्मत बढ़ेगी ही, वह मुंह भी चलाएगा और हाथपैर भी चलाएगा ही.

भाजपा में चुनावी सरगर्मी

नई दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पानी पीपी कर कोसने वाली भारतीय जनता पार्टी अब लगता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हीं के पैतरे आजमाना चाहती है तभी तो उस ने ऐलान किया है कि अगले विधानसभा चुनावों में वह अपना घोषणापत्र जनता की राय ले कर बनाएगी.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने बताया कि सोमवार, 8 जुलाई को हुई एक बैठक में फैसला लिया गया था कि ‘दिल्ली के मन की बात, बीजेपी के साथ’ अभियान चलाया जाएगा. सदस्यता अभियान के साथ इस कवायद की शुरुआत हो चुकी है.

पार्टी नेता अलगअलग इलाकों में जा कर लोगों से बात कर के उन की राय जानेंगे और पार्टी अपना चुनावी घोषणापत्र तैयार करेगी. पार्टी जनता से जुड़े तमाम मुद्दों पर कानूनी राय भी लेगी, ताकि आगे चल कर कानूनी अड़चनों का सामना न करना पड़े.

लौट आए अखिलेश यादव

लखनऊ. पिछले लोकसभा चुनाव में मायावती के साथ महागठबंधन बना कर भाजपा से लोहा लेने का फार्मूला फुस होने के बाद समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा अखिलेश यादव राजनीति से थोड़ा कट से गए थे, पर जुलाई महीने के दूसरे हफ्ते में वे पूरे जोश के साथ वापस अपने कार्यालय में आ गए.

उत्तर प्रदेश की 12 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि समाजवादी पार्टी इन चुनावों के लिए अपनी तैयारियां शुरू करेगी. वैसे, पार्टी कार्यकर्ताओं को बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती के रुख पर अखिलेश यादव के कुछ कहने का अब भी इंतजार है.

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राहुल आए रंग में

अहमदाबाद. राहुल गांधी भाजपा पर हमला करने से नहीं चूक रहे हैं और प्रधानमंत्री के गढ़ में जा कर जनता के सामने अपनी बात रख रहे हैं.

राहुल गांधी ने शुक्रवार, 12 जुलाई को आरोप लगाया कि भाजपा सरकारें गिराने के लिए ‘धनबल’ और ‘डरानेधमकाने’ का सहारा ले रही हैं.

याद रहे कि कर्नाटक में 13 महीने पुरानी कांग्रेस और जद (एस) की गठबंधन सरकार से 2 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया है और कांग्रेस के 13 विधायकों समेत कुल 16 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं.

राहुल गांधी मानहानि के एक मामले में मैट्रोपोलिटन अदालत के सामने पेशी के लिए अहमदाबाद आए हुए थे. मानहानि का यह मामला अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक की तरफ से दायर किया गया है जिस में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एक निदेशक हैं. राहुल गांधी ने खुद को बेकुसूर बताया और उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई.

मानहानि के कानून का आजकल अखबारों और राजनीतिबाजों को अदालतों में घसीटने के लिए जम कर इस्तेमाल किया जा रहा है.

ममता हुईं ममतामयी

कोलकाता. ममता बनर्जी ने साबित कर दिया है कि राजनीति उन के खून में बसी है. हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बढ़ते दबदबे के बाद उन्होंने खूब कड़े तेवर दिखाए थे और पूरे दमखम के साथ लोहा लिया था. पर जब बात नहीं बनी और उन्हें लगा कि इस से पार्टी को आने वाले विधानसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है तो वे मोम की तरह पिघल गईं और गुरुवार, 11 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस के सभी विधायकों से कहा कि वे और विनम्र हो कर जनता से मिलें और अपनी पिछली गलतियों के लिए उन से माफी मांगें.

लगता है कि लोकसभा चुनाव में मिले करारे झटके के बाद से ममता बनर्जी बहुतकुछ नया सीख गई हैं और अभी से ही विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जीजान से जुट गई?हैं.

‘दिग्गी राजा’ का दांव

पुणे. अपने चहेतों में ‘दिग्गी राजा’ के नाम से मशहूर कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने शुक्रवार, 12 जुलाई को कर्नाटक और गोवा के हालात पर दावा किया कि नोटबंदी के दौरान भाजपा ने खूब पैसा बनाया और अब उसी पैसे का इस्तेमाल कर पार्टी विधायकों को खरीद रही है. विधायकों को ऐसे खरीदा जा रहा है जैसे बाजार से सामान खरीदा जाता है.

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हालांकि, दिग्विजय सिंह ने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार पूरी तरह सुरक्षित है. मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास 121 विधायकों का समर्थन है.

पत्नियों की सरकार से गुहार

श्रीनगर. जम्मूकश्मीर पर अपना नियंत्रण बनाने के मनसूबे पालने वाली भाजपा के सामने एक नई चुनौती आ गई है. बात यह है कि भारतपाकिस्तान नियंत्रण रेखा के उस पार से एक पुनर्वास योजना के तहत वापस आए पूर्व कश्मीरी आतंकवादियों की पाकिस्तानी पत्नियों ने शुक्रवार, 12 जुलाई को केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की थी कि उन्हें या तो भारतीय नागरिकता दी जाए या फिर वापस भेज दिया जाए.

ऐसी महिलाओं में शामिल ऐबटाबाद की रहने वाली तैयबा ने कहा, ‘‘हम कुल 350 महिलाएं हैं. हमें यहां का नागरिक बनाया जाए, जैसा किसी भी देश में पुरुषों के साथ विवाह करने वाली महिलाओं के साथ होता है. हम भारत सरकार और राज्य सरकार से अपील करती हैं कि या तो हमें पासपोर्ट प्रदान किए जाएं या वापस जाने के लिए यात्रा दस्तावेज प्रदान किए जाएं.’’

हिमाचल के नए राज्यपाल

शिमला. भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता कलराज मिश्र को हिमाचल प्रदेश का नया राज्यपाल बनाया गया है. याद रहे कि कभी उत्तर प्रदेश और भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता रहे कलराज मिश्र को नरेंद्र मोदी सरकार के 2014 से 2019 के पहले कार्यकाल में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया था, हालांकि उन्होंने साल 2017 में ही मंत्री पद छोड़ दिया था. इस के बाद कलराज मिश्र ने साल 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था.

कलराज मिश्र को आचार्य देवव्रत की जगह हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है

जबकि आचार्य देवव्रत को गुजरात का राज्यपाल बनाया गया है.

विज के फिर बिगड़े बोल

अंबाला. हरियाणा के बड़े भाजपाई नेता और राज्य सरकार में मंत्री अनिल विज ने बड़ी ओछी बात कह दी. हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दिए गए इस्तीफे पर अंबाला में 6 जुलाई को अनिल विज ने कहा, ‘‘यह तो उन का फैमिली ड्रामा है. राजीव गांधी ने कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है, लेकिन उन के बेटे राहुल ने इस्तीफा दिया तो एक कुत्ता भी नहीं भूंका.’’

इस से पहले फरवरी, 2019 में अनिल विज ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तुलना ‘रामायण’ की एक किरदार ताड़का से की थी. तब उन्होंने कहा था, ‘‘छोटे होते थे जब रामलीला देखने जाया करते थे तो उस में एक सीन आया करता था कि ऋषिमुनि जब यज्ञ किया करते थे तो ताड़का आ कर उस में रुकावट डाल दिया करती थी. ठीक उसी तरह की भूमिका ममता बनर्जी कर रही हैं.’’

लगेगी चुनावी पाठशाला

रायपुर. छत्तीसगढ़ में वोटरों में जागरूकता लाने के लिए चुनाव पाठशाला की शुरुआत की जाने वाली है. इन पाठशालाओं में रोचक खेल और मनोरंजक कार्यक्रमों का सहारा लिया जाएगा. वैसे, राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटिंग के प्रति जागरूक करने के लिए चुनावी पाठशालाएं लगाई गई थीं जिन में चुनावी साक्षरता क्लबों का भी सहारा लिया गया था.

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संयुक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी समीर विश्नोई का इस मसले पर कहना है कि पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी साक्षरता

क्लब के जरीए बेहतर काम किया गया था. इस से छत्तीसगढ़ में वोटरों में जागरूकता बढ़ी है.        द्य

हिंदुत्व और राष्ट्रवाद

अब घबराया हुआ है क्योंकि भाजपा के अंधभक्त अब पौराणिक कानून को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के बराबर समझने लगे हैं. सोशल मीडिया में यह ज्यादा दिख रहा है.

नरेंद्र मोदी ने फिलहाल अपने जानेपहचाने चेहरों को बेवजह बेमतलब की बातें न बोलने की बात कह दी है पर उन के लाखों भक्त जिन्होंने बिना भाजपा के मैंबर बने पिछले 6-7 सालों में सोशल मीडिया पर लगातार पहले राहुल गांधी, फिर जब मायावती से फैसला नहीं हुआ तो उन्हें गालियों से नवाजा है, अब अपनी निशानेबाजी नहीं छोड़ रहे.

गौतम गंभीर और सुषमा स्वराज तक को नहीं छोड़ा गया जो भाजपा के ही हैं क्योंकि उन्होंने मुसलिमों को बचाने की कोशिश कर डाली. बहुत से टीवी पत्रकार जिन्होंने न चाहते हुए भी भाजपा की खिंचाई करते हुए उसे मुफ्त पब्लिसिटी दी इन को नहीं छोड़ा क्योंकि वे हिंदूवादी जयजयकार करने से कतरा रहे थे.

ये भक्त असल में अब भाजपा के भी कंट्रोल से बाहर हैं. थे तो वे पहले भी किसी के कंट्रोल के बाहर, पर तब उन की पैठ बस घरोंपरिवारों, दुकानों, व्यापारों तक थी. अब ये राजा बनवाने वाले कहे जा रहे हैं और राजा के नाम पर ये किसी से कुछ भी करा सकते हैं. जो काम ये पहले गांवों के चौराहों पर बैठ कर किया करते थे, अब मोबाइल के सहारे कर रहे हैं. इन के पास शब्दों का भंडार है. फालतू समय है. ये दिनभर नएनए शब्द गढ़ कर बात का बतंगड़ बना सकते हैं और अपनी सफाई देने वाले की धुलाई कर सकते हैं. धर्म के नाम पर सदाचार, नैतिकता की बात करने वाले अपने नाम से ट्विटर और फेसबुक पर मांबहन की गालियां भी दे सकते हैं.

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ये लोग बेहद ताकतवर हो चले हैं क्योंकि भाजपा को इस मुफ्तखोरों की विशाल भीड़ की जरूरत रहेगी ताकि अपने हकों को मांगने वाले कभी सिर न उठा पाएं. जिस ने हक मांगा उसे फौरन देशद्रोही कह डाला जाएगा. जैसे कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल व चंद्रशेखर आजाद को जेलों में सड़ाया गया, वैसे हर गांव, कसबे, शहरी महल्ले मेंहोने लगेगा.

देश के दलित, मुसलिमों, पिछड़ों, सिखों, ईसाइयों को ही नहीं, ऊंची जातियों के पढ़ेलिखे भी खतरे में हैं क्योंकि यह फौज अपने पूज्य के खिलाफ एक शब्द न सुनने को तैयार कर दी गई है. इन के पास समय और पैसा है क्योंकि ये ही जागरणों, आरतियों, तीर्थयात्राओं, मंदिरों, कुंडलियों, धर्म के धंधों पर कब्जा जमाए हुए हैं, इन्हें न किसानों की फिक्र है, न बेरोजगारों की, न सड़कों पर सोने वालों की पर हिंदू धर्म और उस की चहेती पार्टी बनी रहे.

राम का नाम लेने से परलोक में स्वर्ग मिले या न मिले इहलोक में सत्ता तो मिल ही रही है. भारतीय जनता पार्टी अब नए पैतरे में ‘भारत माता की जय’ का नारा छोड़ कर पश्चिम बंगाल में ‘जय श्रीराम’ के नारे को इस्तेमाल कर रही है और चूंकि ममता बनर्जी के गढ़ में भाजपा ने अच्छीखासी कामयाबी पा ली है, उसे उम्मीद है कि रामजी उस की नैया पार करा ही देंगे.

राम का नाम ले कर देश के गरीब और अमीर दोनों ही सदियों से अपना वर्तमान व भविष्य लिखते आए हैं. यह बात अलग है कि देश का रामनामी गरीब गरीब बना रहा है और अमीर भी कष्टों से दूर नहीं रहा. राम का नाम लेने वालों को बीमारियां, कारोबार में नुकसान, पारिवारिक क्लेश, अपराधियों से सामना उसी तरह करना पड़ता रहा है जैसे किसी को भी किसी भी समाज में करना पड़ता है. गरीब का तो हाल और बुरा रहा है. वह इस देश में हमेशा ही गरीबी में जिया है.

राम के मंदिर को बनवाने या राम के नाम को ले कर राजनीति करना वैसे गलत है, क्योंकि अगर राम में यकीन हो तो भी यह किसी इनसान का अपना निजी मामला है. एक छोटे या बड़े समूह को कोई हक नहीं कि उसे अपने मतलब के लिए दूसरों पर थोपे और मारपिटाई पर उतर आए. आज देशभर में राम के नाम पर तरहतरह के बवाल करने का मानो लाइसैंस मिल गया है क्योंकि राम को राष्ट्रवाद की चाशनी में लपेट कर इस तरह वोटरों को परोसा गया कि वे देशभक्ति व रामभक्ति में फर्क ही नहीं कर पाए.

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सरकार का काम धर्म चलाना नहीं, प्रशासन चलाना है, टैक्स जमा करना है, इंसाफ कायम रखना है, बुनियादी चीजें बनवाना है, देश की हिफाजत करना है, नागरिकों की जानमाल की सिक्योरिटी करना है, इन में राम नाम कहीं नहीं आता. पूजापाठ से तो 2 दाने गेहूं के भी नहीं उग सकते.

हां, राम के नाम पर धार्मिक धंधे जोर से चल सकते हैं अगर जनता को बहकाया जा सके कि उस से उस की माली तरक्की होगी, बीमारियां दूर होंगी, मुसीबतें खत्म होंगी. यह बात इतनी पीढि़यों से कही जा रही है और इतने यकीन से कही जा रही है कि लोगों की दिमागी बीमारी का हिस्सा बन गई है. लोग अब फिर अपनी सोच से नहीं, नारों पर फैसले लेने लगे हैं. पहले देश 2500 साल इसी वजह से गुलाम सा रहा है. अब गुलामी चाहे न हो, गरीबी जरूर बनी रहेगी.

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