विपक्ष के कई दलों और सांसदों के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने सूचना का अधिकार कानून में संशोधन संबंधी एक विधेयक को मंजूरी दी है.

राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया. साथ ही सदन ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के लिए लाए गए विपक्ष के सदस्यों के प्रस्तावों को 75 के मुकाबले 117 मतों से खारिज कर दिया.
कांग्रेस सहित विपक्ष के कई सदस्यों ने इस का कड़ा विरोध किया.
नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने विरोध करते हुए आरोप लगाया,"आज पूरे सदन ने देख लिया कि आप ने चुनाव में 303 सीटें कैसे प्राप्त की थीं? ऐसा लगता है जैसे सरकार संसद को एक सरकारी विभाग की तरह चलाने की मंशा रखती है."
इस के बाद विरोध में कई विपक्षी दलों के सदस्य वाक आउट कर गए.

विधेयक में क्या है प्रावधान

इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्तें केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे.
इस संशोधन विधेयक पर विपक्ष ने एतराज जताते हुए कहा कि सरकार सूचना के अधिकार कानून पर भी अपनी पकङ मजबूत बना कर उसे अपने हिसाब से डील करना चाहती है.
इस पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा,"हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासनकाल में सूचना के अधिकार की अवधारणा सामने आई थी. कोई कानून और उस के पीछे की अवधारणा एक सतत प्रक्रिया है जिस से सरकारें समयसमय पर जरूरत के अनुरूप संशोधित करती रहती हैं."
मंत्री ने आगे कहा,"मैं ने कभी यह नहीं कहा कि मोदी सरकार के शासनकाल में आरटीआई संबंधित कोई पोर्टल जारी किया गया था. मोदी सरकार के शासनकाल में एक ऐप जारी किया गया है. इस की मदद से कोई रात 12 बजे के बाद भी सूचना के अधिकार के लिए आवेदन कर सकता है."

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