New Year 2024: नई आस का नया सवेरा

New Year Special: नया साल (New Year) आ गया है. सब एक दूसरे को बधाई (Greetings) दे रहे हैं और कह रहे हैं कि साल 2024 (Year 2024) आपके लिए खुशियां लाए. आप बाहर से कितने ही उपाय कर लें, सकारात्मक सोच की पचास किताबें पढ़ लें, सोचसोच कर पचासों वस्तुएं संगृहीत कर लें जो आप के लिए सुखदायक हैं, परंतु यदि आप की आंतरिक विचारणा अनर्गल, आत्मपीड़ित व निंदक है, आप ढुलमुल नीति के हैं, तब आप के जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आने वाला नहीं. हमारे व्यवहार के गलत तरीके हमारे जीवन में तनाव लाते हैं, दुख से ही हमें अधिक परिचित कराते हैं. हम हर सुखात्मक स्थिति में भी तकलीफ ही तलाश करते हैं. क्या हो चुका है, यह हमें प्रीतिकर नहीं लगता, पर जो नहीं हुआ है उस पर हमारी दृष्टि लगी रहती है. हम स्वयं शांति चाहते हैं, हर काम में परफैक्शन तलाश करते हैं, तब हमारी निगाह हमेशा कमियां तलाश करने में चली जाती है और हम तो दुखी होते ही हैं, दूसरे के लिए भी दुखात्मक भावनाएं पैदा करते हैं. चाहे घर पर हों या कार्यालय में, हम कहीं भी खुश नहीं रह सकते, हम जीवन को दयनीय और दुखात्मक बनाते चले जाते हैं.

शेखर साहब बड़े अफसर रहे हैं. कार्यालय में आते ही वे पहले अपनी नाक पर उंगली रख कर सगुन देते. तब कुरसी पर बैठते. बजर बजाते, पीए अंदर आता तो सगुन देखते, सगुन चला तो अंदर आने देते, वरना वापस भेज देते. पूरा कार्यालय परेशान था. वे मेहनती व ईमानदार भी थे. पर न वे खुश रह पाते थे न किसी और को रहने दे सकते थे. एक बार उन के बड़े साहब आए. उन्हें यह पता था. वे अपने साथ नसवार से रंगा लिफाफा लाए थे. उन्हें दिया तो वे अचानक छींकने लग गए. शेखर साहब घबरा गए. सगुन जो बिगड़ गया था. बड़े साहब ने समझाया, सगुन की बात नहीं है, कागज में नसवार लगी है. छींक आएगी ही. सगुन को पालना बंद करो. तुम ने सब को दुखी कर रखा है.

जिंदगी चलने का नाम है

आप ने नट का खेल अवश्य देखा होगा. नट अपने संतुलन से बांस के सहारे रस्सी पर कुशलता से चलता है. यह जीवन जीने की वह कला है, जो बिना धन दिए प्राप्त की जा सकती है. कुछ रास्ते हैं, जहां आप खुशहाल जीवन को दुखी बना देते हैं जबकि दुखी जीवन को भी खुशी से जीने लायक बना सकते हैं.

हम अकसर आदर्शवादी विचारों से प्रभावित होते हैं. हमें बाहर यह बताया जाता है कि हम गलत बातों को छोड़ दें, यह समझाया जाता है कि जहां तक हो सके गलत विचारधारा को कम करते जाएं, इस से धीरेधीरे आप नकारात्मक सोच के प्रवाह से बाहर आते जाएंगे. पर यह भी उतना प्रभावशाली नहीं है.

हमारे भीतर नकारात्मकता का पहला वेग तेज उफान की तरह तब आता है, जब हम अपनेआप को दूसरों के साथ तुलना कर के देखते हैं. बचपन में यह सिखाया गया है, तुम्हें क्लास में फर्स्ट आना है. मातापिता हमेशा अपने बच्चे की दूसरों के साथ तुलना कर के उस का मूल्यांकन करते हैं.

क्या कभी हम ने अपनेआप से, अपनी कार्यकुशलता को, अपनी उत्पादकता को सराहा है? हमें यह सिखाया गया है कि इस से अहंकार पैदा हो जाता है. पर यह सोचना उचित नहीं है.

तुलना अपनेआप से करें

अपनी उपलब्धियों से तुलना करें. कल घूमने नहीं गया, व्यायाम नहीं किया, ब्लडशुगर बढ़ गई है आदि. अपनेआप अपने स्वास्थ्य के प्रति ध्यान जाएगा. ऐसे ही, कल बगीचे में पानी दिया था. पौधे अच्छे लग रहे हैं. आप हमेशा अपने आज की अपने कल से तुलना कर, बेहतर खुशी पा सकते हैं, अपनी कार्यकुशलता को बढ़ा सकते हैं. सुबह उठते ही समय अपनेआप को दें, आज यह काम करना है, टारगेट जो संभव हो उस से कम ही रखें. रात को एक बार अवश्य सोचें, कितना हो गया, क्या कमी रही, बस नींद गहरी आएगी. अपनेआप पर विश्वास आना शुरू होगा. खुश रहने की यह पहली सीढ़ी है.

खुद चुनें अपनी राह

आप बीमार हैं, अस्वस्थ हैं. अकसर आप पाएंगे कि पचासों लोग आप को देखने आ रहे हैं, वे सब के सब आप को सलाह दे रहे हैं. जहां खुशी होती है, वहां लोग नहीं जाते, पर जहां कहीं अभाव या कमी होती है, वहां सलाह देने वालों की जमात जमा हो जाती है. तो क्या हम सब को सुनने के लिए तैयार बैठे हैं? हम हमेशा सब को खुश नहीं कर सकते, सब की बातों को मान कर अपना रास्ता नहीं बना सकते.

माना सलाह और सलाहकार जीवन में महत्त्वपूर्ण हैं, पर रास्ता हमें स्वयं ही तय करना है. हर व्यक्ति को उस के सामर्थ्य की पहचान है. जो व्यक्ति, इस राह पर चले हों, उन की सफलता या असफलता के अनुभव ही आप के लिए सहायक हो सकते हैं. यह याद रहे. जिस किसी ने अपने अनुभव को बताया है, वह अतीत की घटना हो चुकी है. वर्तमान में हर घटना नई होती है. यहां दोहराव नहीं होता. चुनौती का सामना मात्र वर्तमान में ही रह कर होता है. हो सकता है, जो निर्णय लिया है, उस में कमी रह गई हो, वांछित लाभ न मिला हो पर यह असफलता आगे की रणनीति बनाने में सहायक होगी. जो कहा गया है, उसे सुनें. परंतु अपनी आंतरिक विचारणा का आधार न बनने दें.

तू दुख का सागर है

फिल्म ‘सीमा’ में मन्ना डे द्वारा गाया गीत ‘तू प्यार का सागर है’…आज उल्टा हो गया है. चारों ओर नकारात्मकता के सागर हिलोरे लेते रहते हैं. आज टैलीविजन, समाचारपत्र, नकारात्मकता के भंडार हो गए हैं. सुबह से ही टीवी पर राशियों व 9 ग्रहों का नकारात्मक मेला करोड़ों लोगों को नकारात्मक कर के कमजोर बनाने में लग जाता है. रोजाना पचासों ज्योतिषी, बारह खाने और 9 ग्रह की रामलीला बेच कर करोड़ों रुपए कमाते हैं. टीवी का रिमोट अपने हाथ में है. अपने मन को सजग रखें. ऐसी परिस्थितियों से नकारात्मकता बढ़ती है और आशावाद की जगह निराशावाद जन्म लेता है. इस से बचें. मन को सृजनात्मक कार्यों से जोड़ने का प्रयास करें.

कल ही की बात है शर्माजी बता रहे थे. उन्हें रात के 11 बजे उन की बेटी ने नींद से जगा कर फोन पर बताया कि दामाद के पिता का पुराने प्रेमसंबंध का पता लगने पर दोनों पितापुत्र बहुत झगड़ रहे थे. यह बात परिवार में घटी पुरानी घटना थी. घटना भी हजारों मील दूर की थी. यह बात अगले दिन भी तो बताई जा सकती थी. इस बात से शर्माजी रात भर बेचैन रहे. नकारात्मक लहरों में डूबे रहे.

लोगों का काम है कहना

मेरी एक परिचित मेरे पास आई हुई थीं. उन्होंने बताया कि वे कुछ दूरी पर शनि मंदिर में गई थी. वहां पूजा करवाई थी. ‘पूजा…’ मैं चौंक गया. क्या शनि की भी पूजा होती है? हमारा मन इसीलिए इतना नकारात्मक हो गया है कि हम सब तरफ भय को ही देख पाते हैं. थोड़ी सी भी कठिनाई आई नहीं कि हम पंडित, ज्योतिषी, बाबा की शरण में पहुंच जाते हैं.

हमारा मन जैसा होता जाता है, वह उन्हीं बातों को संगृहीत करने लग जाता है. यह उस की आदत है. हम जब निरंतर चाहे अपने परिवार में हों या पड़ोस में, इन नेगेटिव लोगों से घिरे रहते हैं तो वे सचमुच हमारी रचनात्मकता को सोख लेते हैं. आप आशावादी कैसे होंगे जब आप के वातावरण में नकारात्मक लहरें चारों ओर से धक्के मार रही हों.

खुश रहना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. हम खुश रहें तो दवाओं का आधा खर्चा कम हो जाता है साथ ही, हमारी कार्यकुशलता भी बढ़ जाती है. वाणिज्य की भाषा में इस से बड़ा कोई इन्वेस्टमैंट नहीं है, जहां मुनाफा बहुत ज्यादा है.

आखिर हम हर मामूली बात को भी ज्यादा गंभीरता से क्यों लेते हैं? आम बोलचाल में अधिक कहना, बतियाना, हमारा स्वभाव हो गया है. पहले टैलीफोन पर बात करना कठिन था, महंगा बहुत था. बाहर की कौल सुबह से शाम तक नहीं लग पाती थी. तनाव कम था. अब मोबाइल क्रांति है. खाने वाली बाई फोन कर कहती है, ‘मैं शाम को नहीं आऊंगी.’ पूछा जाता है, ‘क्यों? 3 दिन पहले भी छुट्टी ली थी.’ वह फोन काट देती है. गृहिणी नाराज हो जाती है. वह फिर फोन करती है. वह फोन नहीं उठाती है. संघर्ष शुरू हो गया, परिवार अचानक तनाव में चला जाता है.

आज हालत यह है कि आप कहीं भी हों, मोबाइल हमेशा आप को जोड़े रखता है. सगाइयां विवाह के पहले टूट जाती हैं. आप को बतियाने का शौक है. पैसे कम लगते हैं, जो कहना…नहीं कहना है…सब कह दिया जाता है.

चुप रहने का अपना मजा है, अपने को बोलते हुए भी सुनें और खुश रहना एक बार आदत में आ गया तो कैसी भी कठिनाई आए, आप की सामना करने की ताकत बढ़ जाएगी. क्या आप यह नहीं चाहते हैं?

New Year 2022: नई जिंदगी की शुरुआत

फूलमनी जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही बुतरू के स्टाइल पर फिदा हो गई. प्यार के झांसे में आ कर एक दिन बिना सोचेसमझे वह अपना घर छोड़ उस के साथ शहर भाग आई. शादीशुदा जिंदगी क्या होती है, दोनों ही इस का ककहरा भी नहीं जानते थे. भाग कर शहर तो आ गए, लेकिन बुतरू कोई काम ही नहीं करना चाहता था. वह बस्ती के बगल वाली सड़क पर दिनभर हंडि़या बेचने वाली औरतों के पास निठल्ला बैठा बातें करता और हंडि़या पीता रहता था. इसी तरह दिन महीनों में बीत गए और खाने के लाले पड़ने लगे.

फूलमनी कब तक बुतरू के आसरे बैठे रहती. उस ने अगल बगल की औरतों से दोस्ती गांठी. उन्होंने फूलमनी को ठेकेदारी में रेजा का काम दिलवा दिया. वह काम करने जाने लगी और बुतरू घर संभालने लगा. जल्द ही दोनों का प्यार छूमंतर हो गया.

बुतरू दिनभर घर में अकेला बैठा रहता. शाम को जब फूलमनी काम से घर लौटती, वह उस से सारा पैसा छीन लेता और गालीगलौज पर आमादा हो जाता, ‘‘तू अब आ रही है. दिनभर अपने भरतार के घर गई थी पैसा कमाने… ला दे, कितना पैसा लाई है…’’

फूलमनी दिनभर ठेकेदारी में ईंटबालू ढोतेढोते थक कर चूर हो जाती. घर लौट कर जमीन पर ही बिना हाथमुंह धोए, बिना खाना खाए लेट जाती. ऊपर से शराब के नशे में चूर बुतरू उस के आराम में खलल डालते हुए किसी भी अंग पर बेधड़क हाथ चला देता. वह छटपटा कर रह जाती.

एक तो हाड़तोड़ मेहनत, ऊपर से बुतरू की मार खाखा कर फूलमनी का गदराया बदन गलने लगा था. तरहतरह के खयाल उस के मन में आते रहते. कभी सोचती, ‘कितनी बड़ी गलती की ऐसे शराबी से शादी कर के. वह जवानी के जोश में भाग आई. इस से अच्छा तो वह सुखराम मिस्त्री है. उम्र में बुतरू से थोड़ा बड़ा ही होगा, पर अच्छा आदमी है. कितने प्यार से बात करता है…’

सुखराम फूलमनी के साथ ही ठेकेदारी में मिस्त्री का काम करता था. वह अकेला ही रहता था. पढ़ालिखा तो नहीं था, पर सोचविचार का अच्छा था. सुबहसवेरे नहाधो कर वह काम पर चला आता. शाम को लौट कर जो भी सुबह का पानीभात बचा रहता, उसे प्यार से खापी कर सो जाता.

शनिवार को सुखराम की खूब मौज रहती. उस दिन ठेकेदार हफ्तेभर की मजदूरी देता था. रविवार को सुखराम अपने ही घर में मुरगा पकाता था. मौजमस्ती करने के लिए थोड़ी शराब भी पी लेता और जम कर मुरगा खाता.

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फूलमनी से सुखराम की नईनई जानपहचान हुई थी. एक रविवार को उस ने फूलमनी को भी अपने घर मुरगा खाने के लिए बुलाया, पर वह लाज के मारे नहीं गई.

साइट पर ठेकेदार का मुंशी सुखराम के साथ फूलमनी को ही भेजता था. सुखराम जब बिल्डिंग की दीवारें जोड़ता, तो फूलमनी फुरती दिखाते हुए जल्दीजल्दी उसे जुगाड़ मसलन ईंटबालू देती जाती थी.

सुखराम को बैठने की फुरसत ही नहीं मिलती थी. काम के समय दोनों की जोड़ी अच्छी बैठती थी. काम करते हुए कभीकभी वे मजाक भी कर लिया करते थे. लंच के समय दोनों साथ ही खाना खाते. खाना भी एकदूसरे से साझा करते. आपस में एकदूसरे के सुखदुख के बारे में भी बतियाते थे.

एक दिन मुंशी ने सुखराम के साथ दूसरी रेजा को काम पर जाने के लिए भेजा, तो सुखराम उस से मिन्नतें करने लगा कि उस के साथ फूलमनी को ही भेज दे.

मुंशी ने तिरछी नजरों से सुखराम को देखा और कहा, ‘‘क्या बात है सुखराम, तुम फूलमनी को ही अपने साथ क्यों रखना चाहते हो?’’

सुखराम थोड़ा झेंप सा गया, फिर बोला ‘‘बाबू, बात यह है कि फूलमनी मेरे काम को अच्छी तरह समझती है कि कब मुझे क्या जुगाड़ चाहिए. इस से काम करने में आसानी होती है.’’

‘‘ठीक है, तुम फूलमनी को अपने साथ रखो, मुझे कोई एतराज नहीं है. बस, काम सही से होना चाहिए… लेकिन, आज तो फूलमनी काम पर आई नहीं है. आज तुम इसी नई रेजा से काम चला लो.’’

झक मार कर सुखराम ने उस नई रेजा को अपने साथ रख लिया, मगर उस से उस के काम करने की पटरी नहीं बैठी, तो वह भी लंच में सिरदर्द का बहाना बना कर हाफ डे कर के घर निकल गया. दरअसल, फूलमनी के नहीं आने से उस का मन काम में नहीं लग रहा था.

दूसरे दिन सुखराम ने बस्ती जा कर फूलमनी का पता लगाया, तो मालूम हुआ कि बुतरू ने घर में रखे 20 किलो चावल बेच दिए हैं. फूलमनी से उस का खूब झगड़ा हुआ है. गुस्से में आ कर बुतरू ने उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गई. वह तो उसे मारे ही जा रहा था, पर बस्ती के लोगों ने किसी तरह उस की जान बचाई.

सुखराम ने पड़ोस में पूछा, ‘‘बुतरू अभी कहां है?’’

किसी ने बताया कि वह शराब पी कर बेहोश पड़ा है. सुखराम हिम्मत कर के फूलमनी के घर गया. चौखट पर खड़े हो कर आवाज दी, तो फूलमनी आवाज सुन कर झोंपड़ी से बाहर आई. उस का चेहरा उतरा हुआ था.

सुखराम से उस की हालत देखी न गई. वह परेशान हो गया, लेकिन कर भी क्या सकता था. उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘क्या हुआ, जो 2 दिन से काम पर नहीं आ रही हो?’’

दर्द से कराहती फूलमनी ने कहा, ‘‘अब इस चांडाल के साथ रहा नहीं जाता सुखराम. यह नामर्द न कुछ करता है और न ही मुझे कुछ करने देता है. घर में खाने को चावल का एक दाना तक नहीं छोड़ा. सारे चावल बेच कर शराब पी गया.’’

‘‘जितना सहोगी उतना ही जुल्म होगा तुम पर. अब मैं तुम से क्या कहूं. कल काम पर आ जाना. तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता है,’’ इतना कह कर सुखराम वहां से चला आया.

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सुखराम के जाने के बाद बहुत देर तक फूलमनी के मन में यह सवाल उठता रहा कि क्या सचमुच सुखराम उसे चाहता है? फिर वह खुद ही लजा गई. वह भी तो उसे चाहने लगी है. कुछ शब्दों के एक वाक्य ने उस के मन पर इतना गहरा असर किया कि वह अपने सारे दुखदर्द भूल गई. उसे ऐसा लगने लगा, जैसे सुखराम उसे साइकिल के कैरियर पर बैठा कर ऐसी जगह लिए जा रहा है, जहां दोनों का अपना सुखी संसार होगा. वह भी पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाह रही थी. बस आगे और आगे खुले आसमान की ओर देख रही थी.

अचानक फूलमनी सपनों के संसार से लौट आई. एक गहरी सांस भरी कि काश, ऐसा बुतरू भी होता. कितना प्यार करती थी वह उस से. उस की खातिर अपने मांबाप को छोड़ कर यहां भाग आई और इस का सिला यह मिल रहा है. आंखों से आंसुओं की बूंदें टपक आईं. बुतरू का नाम आते ही उस का मन फिर कसैला हो गया.

अगले दिन सुबहसवेरे फूलमनी काम पर आई, तो उसे देख कर सुखराम का मन मयूर नाच उठा. काम बांटते समय मुंशी ने कहा, ‘‘सुखराम के साथ फूलमनी जाएगी.’’

साइट पर सुखराम आगेआगे अपने औजार ले कर चल पड़ा, पीछेपीछे फूलमनी पाटा, बेलचा, सीमेंट ढोने वाला तसला ले कर चल रही थी.

सुखराम ने पीछे घूम कर फूलमनी को एक बार फिर देखा. वह भी उसे ही देख रही थी. दोनों चुप थे. तभी सुखराम ने फूलमनी से कहा, ‘‘तुम ऐसे कब तक बुतरू से पिटती रहोगी फूलमनी?’’

‘‘देखें, जब तक मेरी किस्मत में लिखा है,’’ फूलमनी बोली.

‘‘तुम छोड़ क्यों नहीं देती उसे?’’ सुखराम ने सवाल किया.

‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’

‘‘मैं जो तुम्हारे साथ हूं.’’

‘‘एक बार तो घर छोड़ चुकी हूं और कितनी बार छोडंू? अब तो उसी के साथ जीना और मरना है.’’

‘‘ऐसे निकम्मे के हाथों पिटतेपिटाते एक दिन तुम्हारी जान चली जाएगी फूलमनी. क्या तुम मेरा कहा मानोगी?’’

‘‘बोलो…’’

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‘‘बुतरू एक जोंक की तरह है, जो तुम्हारे बदन को चूस रहा है. कभी आईने में तुम ने अपनी शक्ल देखी है. एक बार देखो. जब तुम पहली बार आई थीं, कैसी लगती थीं. आज कैसी लग रही हो. तुम एक बार मेरा यकीन कर के मेरे साथ चलो. हमारी अपनी प्यार की दुनिया होगी. हम दोनों इज्जत से कमाएंगेखाएंगे.’’

बातें करतेकरते दोनों उस जगह पहुंच चुके थे, जहां उन्हें काम करना था. आसपास कोई नहीं था. वे दोनों एकदूसरे की आंखों में समा चुके थे.

New Year 2022: नई जिंदगी- भाग 1: क्यों सुमित्रा डरी थी

लेखक-अरुणा त्रिपाठी

कई बार इनसान की मजबूरी उस के मुंह पर ताला लगा देती है और वह चाह कर भी नहीं कह पाता जो कहना चाहता है. सुमित्रा के साथ भी यही था. घर की जरूरतों के अलावा कम उम्र के बच्चों के भरणपोषण का बोझ उन की सोच पर परदा डाले हुए था. वह अपनी शंका का समाधान बेटी से करना चाहती थीं पर मन में कहीं डर था जो बहुत कुछ जानसमझ कर भी उन्हें नासमझ बनाए हुए था.

पति की असामयिक मौत ने उन की कमर ही तोड़ दी थी. 4 छोटे बच्चों व 1 सयानी बेटी का बोझ ले कर वह किस के दरवाजे पर जाएं. उन की बड़ी बेटी कल्पना पर ही घर का सारा बोझ आ पड़ा था. उन्होंने साल भर के अंदर बेटी के हाथ पीले करने का विचार बनाया था क्योंकि बेटी कल्पना को कांस्टेबल की नौकरी मिल गई थी. आज बेटी की नौकरी न होती तो सुमित्रा के सामने भीख मांगने की नौबत आ गई होती.

बच्चे कभी स्कूल फीस के लिए तो कभी यूनीफार्म के लिए झींका करते और सुमित्रा उन पर झुंझलाती रहतीं, ‘‘कहां से लाऊं इतना पैसा कि तुम सब की मांग पूरी करूं. मुझे ही बाजार में ले जाओ और बेच कर सब अपनीअपनी इच्छा पूरी कर लो.’’

कल्पना कितनी बार घर में ऐसे दृश्य देख चुकी थी. आर्थिक तंगी के चलते आएदिन चिकचिक लगी रहती. उस की कमाई से दो वक्त की रोटी छोड़ खर्च के लिए बचता ही क्या था. भाई- बहनों के सहमेसहमे चेहरे उस की नींद उड़ा देते थे और वह घंटों बिस्तर पर पड़ी सोचा करती थी.

कल्पना की ड्यूटी गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर थी. वह रोज देखती कि उस के साथी सिपाही किस प्रकार से सीधेसादे यात्रियों को परेशान कर पैसा ऐंठते थे. ट्रेन से उतरने के बाद सभी को प्लेटफार्म से बाहर जाने की जल्दी रहती है. बस, इसी का वे वरदी वाले पूरा लाभ उठा रहे थे.

‘‘कोई गैरकानूनी चीज तो नहीं है. खोलो अटैची,’’ कह कर हड़काते और सीधेसादे यात्री खोलनेदिखाने और बंद करने की परेशानी से बचने के लिए 10- 20 रुपए का नोट आगे कर देते. सिपाही मुसकरा देते और बिना जांचेदेखे आगे बढ़ जाने देते.

यदि कोई पैसे देने में आनाकानी करता, कानून की बात करता तो वे उस की अटैची, सूटकेस खोल कर सामान इस कदर इधरउधर सीढि़यों पर बिखेर देते कि उसे समेट कर रखने में भी भारी असुविधा होती और दूसरे यात्रियों को एक सबक मिल जाता.

ऐसे ही एक युवक का हाथ एक सिपाही ने पकड़ा जो होस्टल से आ रहा था. सिपाही ने कहा, ‘‘अपना सामान खोलो.’’

लड़का किसी वीआईपी का था, जिसे सी.आई.एस.एफ. की सुरक्षा प्राप्त थी. इस से पहले कि लड़का कुछ बोलता उस के पिता के सुरक्षादल के इंस्पेक्टर ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘अरे, यह मेरे साहब का लड़का है.’’

तुरंत सिपाही के हाथों की पकड़ ढीली हो गई और वह बेशर्मी से हंस पड़ा. एक बुजुर्ग यह कहते हुए निकल गए, ‘‘बरखुरदार, आज रिश्वतखोरी में नौकरी से हाथ धो बैठते.’’

कल्पना यह सबकुछ देख कर चकित रह गई लेकिन उस सिपाही पर इस का कुछ असर नहीं पड़ा था. उस ने वह वैसे ही अपना धंधा चालू रखा था. जाहिर है भ्रष्ट कमाई का जब कुछ हिस्सा अधिकारी की जेब में जाएगा तो मातहत बेखौफ तो काम करेगा ही.

कल्पना का जब भी अपनी मां सुमित्रा से सामना होता, वह नजरें नहीं मिलाती बल्कि हमेशा अपने को व्यस्त दर्शाती. उस के चेहरे की झुंझलाहट मां की प्रश्न भरी नजरों से उस को बचाने में सफल रहती और सुमित्रा चाह कर भी कुछ पूछने का साहस नहीं कर पातीं.

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कमाऊ बेटी ने घर की स्थिति को पटरी पर ला दिया था. रोजरोज की परेशानी और दुकानदार से उधार को ले कर तकरार व कहासुनी से सुमित्रा को राहत मिल गई थी. उसे याद आता कि जब कभी दुकानदार पिछले कर्ज को ले कर पड़ोसियों के सामने फजीहत करता, वह शर्म से पानीपानी हो जाती थीं पर छोटेछोटे बच्चों के लिए तमाम लाजशर्म ताक पर रख उलटे  हंसते हुए कहतीं कि अगली बार उधार जरूर चुकता कर दूंगी. दुकानदार एक हिकारत भरी नजर डाल कर इशारा करता कि जाओ. सुमित्रा तकदीर को कोसते घर पहुंचतीं और बाहर का सारा गुस्सा बच्चों पर उतार देती थीं.

आज उन को इस शर्मिंदगी व झुंझलाहट से नजात मिल गई थी. कल्पना ने घर की काया ही पलट दी थी. उन्हें बेटी पर बड़ा प्यार आता. कुछ समय तक तो उन का ध्यान इस ओर नहीं गया कि परिस्थिति में इतना आश्चर्यजनक बदलाव इतनी जल्दी कैसे और क्यों आ गया किंतु धीरेधीरे उन के मन में कुछ शंका हुई. कई दिनों तक अपने से सवालजवाब करने की हिम्मत बटोरी उन्होंने और से पूछा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कल्पना बेटी कि तुम दिन की ड्यूटी के बाद फिर रात को क्यों जाती हो…’’

अभी सुमित्रा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कल्पना ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘मां, मैं डबल ड्यूटी करती हूं. और कुछ पूछना है?’’

कल्पना ने यह बात इतने रूखे और तल्ख शब्दों में कही कि वह चुप हो गईं. चाह कर भी आगे कुछ न पूछ पाईं और कल्पना अपना पर्स उठा कर घर से निकल गई. हर रोज का यह सिलसिला देख एक दिन सुमित्रा का धैर्य टूट गया. कल्पना आधी रात को लौटी तो वह ऊंचे स्वर में बोलीं, आखिर ऐसी कौन सी ड्यूटी है जो आधी रात बीते घर लौटती हो. मैं दिन भर घर के काम में पिसती हूं, रात तुम्हारी चिंता में चहलकदमी करते बिताती हूं.

मां की बात सुन कर कल्पना का प्रेम उन के प्रति जाग उठा था पर फिर पता नहीं क्या सोच कर पीछे हट गई, मानो मां के निकट जाने का उस में साहस न हो.

‘‘मां, तुम से कितनी बार कहा है कि मेरे लिए मत जागा करो. एक चाबी मेरे पास है न. तुम अंदर से लाक कर के सो जाया करो. मैं जब ड्यूटी से लौटूंगी, खुद ताला खोल कर आ जाया करूंगी.’’

‘‘पहले तुम अपनी शक्ल शीशे में देखो, लगता है सारा तेज किसी ने चूस लिया है,’’ सुमित्रा बेहद कठोर लहजे में बोलीं.

कल्पना के भीतर एक टीस उठी और वह अपनी मां के कहे शब्दों का विरोध न कर सकी.

सुबह का समय था. पक्षियों की चहचहाहट के साथ सूर्य की किरणों ने अपने रंग बिखेरे. सुमित्रा का पूरा परिवार आंगन में बैठा चाय पी रहा था. उन की एक पड़ोसिन भी आ गई थीं. कल्पना को देख वह बोली, ‘‘अरे, बिटिया, तुम तो पुलिस में सिपाही हो, तुम्हारी बड़ी धाक होगी. तुम ने तो अपने घर की काया ही पलट दी. तुम्हें कितनी तनख्वाह मिलती है?’’

कल्पना ऐसे प्रश्नों से बचना चाहती थी. इस से पहले कि वह कुछ बोलती उस की छोटी बहन ने अपनी दीदी की तनख्वाह बढ़ाचढ़ा कर बता दी तो घर के बाकी लोग खिलखिला कर हंस दिए और बात आईगई हो गई.

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सुमित्रा बड़ी बेटी की मेहनत को देख कर एक अजीब कशमकश में जी रही थीं. इस मानसिक तनाव से बचने के लिए सुमित्रा ने सिलाई का काम शुरू कर दिया पर बडे़ घरों की औरतें अपने कपड़े सिलने को न देती थीं और मजदूर घरों से पर्याप्त सिलाई न मिलती इसलिए उन्होंने दरजी की दुकानों से तुरपाई के लिए कपडे़ लाना शुरू कर दिया. शुरुआत में हर काम में थोड़ीबहुत कठिनाई आती है सो उन्हें भी संघर्ष करना पड़ा.

जैसेजैसे सुमित्रा की बाजार में पहचान बनी वैसेवैसे उन का काम भी बढ़ता गया. अब उन्हें घर पर बैठे ही आर्डर मिलने लगे तो उन्होंने अपनी एक टेलरिंग की दुकान खोल ली.

5 सालों के संघर्ष के बाद सुमित्रा को दुकान से अच्छीखासी आय होने लगी. अब उन्हें दम मारने की भी फुरसत नहीं मिलती. कई कारीगर दुकान पर अपना हाथ बंटाने के लिए रख लिए थे.

New Year 2022- नई जिंदगी: क्यों सुमित्रा डरी थी

New Year 2022- नई जिंदगी- भाग 2: क्यों सुमित्रा डरी थी

लेखक-अरुणा त्रिपाठी

कल्पना ड्यूटी से आने के बाद औंधेमुंह बिस्तर पर लेट गई. छोटी बहन खाना खाने के लिए 2 बार बुलाने आई पर हर बार उसे डांट कर भगा दिया. सुमित्रा खुद आईं और बेटी की पीठ पर हाथ फेरते हुए बडे़ प्यार से पूछा, ‘‘क्या बात है बेटी, खाना ठंडा हो रहा है?’’

कल्पना उठ कर बैठ गई. उस के रोंआसे चेहरे को देख कर सुमित्रा भांप गई कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उन्होंने पुचकारते हुए कहा, ‘‘बहादुर बच्चे दुखी नहीं होते. जरूर कुछ आफिस में किसी से कहासुनी हो गई होगी, क्यों?’’

‘‘वह चपरासी, दो टके का आदमी मुझ से कहता है कि मेरी औकात क्या है…’’ कल्पना रो पड़ी.

‘‘वजह?’’ सुमित्रा ने धीरे से पूछा.

‘‘यह सब इस कारण क्योंकि वह मुझ से ज्यादा तनख्वाह पाता है. एक सिपाही की कुछ हैसियत नहीं होती, मां.’’

‘‘ज्यादा तनख्वाह पाता है तो उस की उम्र भी तुम से दोगुनी होगी. इस में इतनी हीनभावना पालने की क्या जरूरत…’’

मां के कहे को अनसुना करते हुए कल्पना बीच में बोली, ‘‘सारे दिन हाथ में डंडा घुमाओ या फिर सलाम ठोंको. इस के अलावा सिपाही का कोई काम नहीं. किसी ताकतवर अपराधी को पकड़ लो तो उलटे आफत. किसी की शिकायत अधिकारी से करने जाओ तो वह ऐसे देखता है मानो वह बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो और फिर इस की भी कीमत मांगता है. तुम से क्या बताऊं, मां, इन अधिकारियों के कारण ही तो मैं…’’

आवेश में कहतेकहते कल्पना की जबान एकदम से रुक गई फिर चिंतित स्वर में बोली, ‘‘जीनेखाने की कीमत चुकानी पड़ती है. तुम जाओ मां, मैं आज कुछ भी नहीं खाऊंगी. मुझे भूख नहीं है.’’

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कहते हैं न कि चोर जब तक पकड़ा नहीं जाता चोर नहीं कहलाता. लोग गलत काम करने से उतना नहीं डरते जितना समाज में होने वाली बदनामी से डरते हैं. समाज के सामने यदि सबकुछ ढकाछिपा है तो सब ठीक. अपनी नजर में अपनी इज्जत की कोई परवा नहीं करता. सुमित्रा अपनी बेटी के दफ्तर व वहां के काम के ढंग से वाकिफ थीं इसलिए उन्होंने निष्कर्ष यही निकाला कि बेटी सयानी है, उस की जितनी जल्दी हो सके शादी कर देनी चाहिए.

सुमित्रा को अब किसी सहारे की जरूरत नहीं थी क्योंकि उन की अपनी दुकान अच्छी चलने लगी थी. बेटी अपने घर चली जाए तो वह एक जिम्मेदारी से छुटकारा पा सकें, यही सोच कर उन्होंने कुछ लोगों से कल्पना के विवाह की चर्चा की. चूंकि घर की आर्थिक स्थिति ठीक होने के बाद वे भी अब सुखदुख के साथी बने खडे़ थे जो तंगी के समय उस के घर की ओर देखते भी नहीं थे. अब खतरा नहीं था कि सुमित्रा अपना दुखड़ा सुना कर उन से अपने लिए कुछ उम्मीद कर सकती हैं. अब कुछ देने की स्थिति में भी वह थीं.

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सुमित्रा के बडे़ भाई एक रिश्ता ले कर आए थे. अच्छे खातापीता परिवार था. जमीनजायदाद काफी थी. लड़के के पिता कसबे के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में थे और उन की राजनीतिक पहुंच थी. कल्पना की सुंदरता से प्रभावित हो कर वह यह शादी 1 रुपए में करना चाहते थे. दहेज न ले कर वह चाहते थे लाखों लोगों की वाहवाही व प्रचार, क्योंकि उन की नजर अगले विधानसभा चुनाव पर टिकी थी और सुमित्रा जैसी विधवा दर्जी की सिपाही बेटी के साथ अपने बेरोजगार बेटे का विवाह कर वह न केवल एक विधवा बेसहारा को धन्य कर देना चाहते थे बल्कि उस पूरे इलाके में वाहवाही पाना चाहते थे.

कल्पना का विवाह हो गया. सुमित्रा ने राहत की सांस ली. बेटी के पांव पूज वह अपने को धन्य मान रही थीं. बेटी को विदा करते समय सभी बड़ीबूढ़ी व खुद सुमित्रा उसे समझा रही थीं कि अब वही तुम्हारा घर है. सुख मिले या दुख सब चुपचाप सहना. मां के घर से बेटी की डोली उठती है और पति के घर से अर्थी.

कल्पना की सुहागरात थी. फूलों से महकते कमरे में एक विशेष मादकता बिखरी थी. वह डरीसहमी सेज पर बैठी थी. तमाम कुशंकाओं से उस का जी घबरा रहा था. एक तरफ खुशी तो दूसरी तरफ भय से शरीर में विचित्र संवेदना हो रही थी. नईनवेली दुलहन जैसी उत्तेजना के स्थान पर आशंकित उस का मन उस सेज से उठ कर भाग जाने को कर रहा था. वह अजीब पसोपेश में पड़ी थी कि उस के पति प्रमेश ने कमरे में प्रवेश किया. वह बिस्तर पर सिकुड़ कर बैठ गई और उस का दिल जोर से धड़कने लगा. चेहरे पर रक्तप्रवाह बढ़ जाने से वह रक्तिम हो उठा था. इतने खूबसूरत तराशे चेहरे पर पसीने की बूंदें फफोलों की तरह जान पड़ रही थीं.

प्रमेश ने जैसे ही घूंघट उठाया और दोनों की नजरें मिलीं वह सकते में आ गया. उस का हाथ पीछे हट गया. उस ने कल्पना को परे ढकेलते हुए कहा, ‘‘ऐसा लगता है हम पहले भी कहीं मिल चुके  हैं.’’

‘‘मुझे याद नहीं,’’ कल्पना ने धीमे स्वर में कहा.

क्रोध के मारे प्रमेश की मांसपेशियां तन गईं. उस के माथे पर बल पड़ गए और होंठ व नथुने फड़कने लगे. शरीर कांपने से वह उत्तेजित हो कर बोला, ‘‘तुम झूठ बोल रही हो, तुम्हें सब अच्छी तरह से याद है.’’

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कल्पना को जिस बात का भय था वही हुआ. प्रमेश के हावभाव को देखते हुए वह अब अपने को संयत कर चुकी थी. आने वाले आंधी, तूफान व बाढ़ से सामना करने की शक्ति उस में आ गई थी. वह इस सच को जान गई थी कि अब उसे सच के धरातल पर सबकुछ सहना, झेलना व पाना था.

New Year 2022: नई जिंदगी- भाग 4: क्यों सुमित्रा डरी थी

लेखक- अरुणा त्रिपाठी

कल्पना किंकर्तव्यविमूढ़ हो थोड़ी देर खड़ी सोचती रही कि संभव है प्रमेश उसे माफ कर दे. एक नई ईमानदार जिंदगी जीने का संकल्प ले एकदूसरे के दोषों को भुला दे तो दूसरे की निगाह में गिरने से भी बच जाएंगे और उसे तो नवजीवन ही मिल जाएगा. वह सारा जीवन प्रमेश की दासी बन कर काट देगी. इसी मनमंथन में डूबी थी कि बाहर नातेरिश्तेदारों की हलचल सुनाई पड़ने लगी.

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कल्पना के मामा रस्मोरिवाज के अनुसार उसे विदा करा ले गए. घर पहुंच कर कल्पना के मामा सुमित्रा से बोले, ‘‘दीदी, कल्पना ने तो सब का मन मोह लिया है. सब ने बडे़ प्रेम से इसे विदा किया. मेरे स्वागत- सत्कार में भी कोई कमी नहीं रखी. पैसे का घमंड उन्हें छू नहीं सका है. क्यों कल्पना बेटी, मैं गलत तो नहीं कह रहा?’’

कल्पना मानो नींद से जागी हो. वह अपने ही खयालों में डूबी थी. बनावटी हंसी हंस कर बोली, ‘‘हां मामाजी, आप सही कह रहे हैं.’’

इतना सुनना था कि सुमित्रा ने तो पूरे महल्ले में उस की ससुराल के बखान में खूब गीत गाए. जो कोई बेटी से मिलने आता उसी से आगे बढ़ कर वह बतातीं :

‘‘देखो, इतना बड़ा घर, जमीन- जायदाद पर घमंड छू नहीं गया है इस के ससुराल वालों को. मेरी बेटी को रानी की तरह सम्मान देते हैं. मुझ बेवा का उन्हें आशीर्वाद लगे कि वे दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें. चौधरीजी जबजब चुनाव लड़ें तबतब जीतें.’’

महल्ले में कभी कोई हंस कर कह देता, ‘‘कल्पना जैसी सुंदर लड़की पूरे महल्ले में नहीं है. इस का रूपरंग इसे इतने बडे़ घर में ले गया. इस मामले में चौधरीजी की तारीफ तो करनी ही पडे़गी क्योंकि दहेज के आगे लड़की के रूपगुण की कद्र आज के जमाने में कौन करता है. यह तो उन का बड़प्पन है.’’

छोटे भाईबहनों की जिद पर उस दिन कल्पना उन्हें घुमाने ले गई थी. एक दुकान पर आइसक्रीम खरीद रही थी कि पीछे से किसी ने उस की आंखों को हथेली से

ढांप कर उस से

पूछा, ‘‘पहचानो तो जानें?’’

यह सुरीली आवाज ज्यों ही कल्पना के कानों में पड़ी वह हंसते हुए बोली, ‘‘अच्छा, हाथ हटाओ. मैं ने तुम्हें पहचान लिया. तुम मधु हो.’’

मधु ने हाथ हटा लिया और खिल- खिला पड़ी.

‘‘आओ कल्पना, आइसक्रीम ले कर सामने वाले पार्क में बैठते हैं,’’ मधु ने कहा तो वे सब पार्क की ओर बढ़ गए.

कोमल हरी घास पर बैठते दोनों ने थोड़ी राहत की सांस ली. बच्चे पार्क में लगे झूले की तरफ बढ़ गए. मधु और कल्पना अकेले रह गईं.

मधु ने कल्पना के कंधों पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘तुम खुश तो हो न?’’

‘‘हां,’’ कल्पना ने उपेक्षा से कहा.

‘‘इस संक्षिप्त उत्तर से मुझे यही लगता है कि तुम कुछ छिपा रही हो.’’

‘‘छिपाऊंगी भला क्यों,’’ हंसते हुए कल्पना बोली, ‘‘हो सकता है कि देखने वालों को खुश न लगती हूं क्योंकि नए लोगों के बीच में अपने को एडजस्ट करने में समय तो लगेगा ही. कहां हम साधारण लोग और कहां वे पैसे वाले.’’

मधु ने एक लंबी सांस खींची और कहा, ‘‘देखो कल्पना, समाज में आज भी औरत और पुरुष के लिए अलगअलग मापदंड हैं. जो चीज आदमी के लिए गर्व की बात हो सकती है वही औरत के लिए अवांछनीय…’’

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क्षण भर को कल्पना कांप गई. वह जान गई कि मधु क्या कहना चाहती है. उस ने प्रत्यक्ष यही दर्शाया कि उसे अपने वैवाहिक संबंधों की चर्चा में कोई दिलचस्पी नहीं है. प्रमेश उस का पति है और वह उस की निंदा नहीं सुनना चाह रही थी. किंतु मधु उस की परेशानी समझ कर भी उसे सबकुछ बताने के लिए बेचैन थी इसीलिए कल्पना का हाथ मजबूती से पकड़ कर मधु बोली, ‘‘मैं तेरी सहेली हूं. तेरे दिल का हाल मुझ से छिपा नहीं है. प्रमेश नशे में धुत मुझे कल जिस होटल के कमरे में मिला था बस, तेरे ऊपर गालियों की बौछार कर रहा था. कह रहा था कि सुंदरता के जाल में बिना सोचेसमझे फंस गया. सोसाइटी में उस के परिवार की एक इमेज है, इस कारण परिवार वाले चुप हैं. पापा के मंत्री बनते ही कल्पना नाम का कांटा मैं अपने जीवन से निकाल फेंकूंगा और एक आजाद पंछी की तरह आकाश में उड़ता रहूंगा.’’

‘‘यह सुन कर मैं ने अनजान बनते हुए पूछा, ‘कल्पना कौन है?’ तो प्रमेश बोला, ‘तुम्हारी तरह एक कालगर्ल.’’’

क्षणभर को कल्पना का चेहरा स्याह हो गया. ढकीछिपी बात सामने वाले पर उजागर हो जाए तो व्यक्ति अपने को कटे पत्ते सा महसूस करने लगता है. यही हाल कल्पना का था. घर लौटी तो उस के चेहरे की बदली रंगत को देख सुमित्रा ने पूछा, ‘‘क्या बात है…घूमने गई थी खुश होने के लिए या उदास होने को? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां मां,’’ एक लंबी सांस खींच कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘मां, मैं ने नौकरी छोड़ कर ठीक नहीं किया.’’

सुमित्रा कल्पना के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, तुम इतने बडे़ घर में ब्याही गई हो, तुम्हें अब क्या जरूरत है नौकरी की. मेरी दुकान भी अच्छीखासी चलती है. खाने व जीने भर को खूब मिल जाता है.’’

‘‘मां, मरे को गंगा किनारे फूंक कर लोग कथा सुनते हैं. तुम ने भी मुझे विदा कर यही किया होगा,’’ झुंझला कर कल्पना जाने क्या सोच यह कह गई.

‘‘यह क्या अंटसंट बक रही है? सभी बेटी विदा कर जो करते हैं वह मैं ने भी किया है तो इस में गलत क्या है?’’

कल्पना प्रथा व रीतिरिवाज पर बहुत कुछ बोलना चाह रही थी क्योंकि उस के भीतर एक झुंझलाहट थी जिसे वह किसी से बांट नहीं सकती थी पर बेटी को चुप देख कर मां बोलीं, ‘‘तुम्हारे ओवरटाइम को ले कर मैं आज बता रही हूं कि बहुत सशंकित थी पर आज लगता है कि मेरी शंका गलत थी और मेरी बेटी अपनी जगह सही थी.’’

यह सुन कर कल्पना भीतर तक हिल गई. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. अगले ही क्षण अपने को संभालते हुए उस ने बात बदल दी. यह सोच कर कि कहीं मां अपनी शंका उजागर कर उस के मुंह पर कीचड़ के काले धब्बे न देख लें.

3 माह गुजर गए. कल्पना को विदा कराने कोई नहीं आया. महल्ले की छींटाकशी व कानाफूसी जब सुमित्रा के कानों तक पहुंची तो उन्होंने खुद कल्पना के ससुराल फोन किया. फोन चौधरीजी ने खुद उठाया.

वह बोलीं, ‘‘भाई साहब प्रणाम. 3 महीने हो गए कल्पना को मायके आए. बेटी मां के घर पर बोझ नहीं होती पर विवाह के बाद वह अपने घर ही शोभा देती है.’’

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चौधरीजी ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘बहनजी, प्रमेश तो साल भर के लिए ट्रेनिंग पर गया है. सोचा, बहू का मन अकेले क्या लगेगा?’’

‘‘पर लोग तो तरहतरह की बातें कर रहे हैं.’’

‘‘जनताजनार्दन की बात है तो कुछ सोचना पडे़गा.’’

‘‘आप कहें चौधरीजी तो कल्पना के मामा खुद ही छोड़ जाएं,’’ शीघ्रता से सुमित्रा बोलीं.

चौधरीजी ने ‘ठीक है’ कह कर फोन काट दिया.

कल्पना ससुराल वापस आ गई. वातावरण काफी बदला हुआ था. रिश्तेदार जा चुके थे. घर की औरतें उसे अछूत समझ कर न बात करतीं न ढंग से उस की बात का उत्तर देतीं. खाना बनाने से ले कर बरतन साफ करने तक का सारा काम कल्पना  को अकेले करना पड़ता था. दिन भर की थकी जब वह अपने कमरे में जाती तो मरणासन्न हो जाती पर उसे काम करने में एक संतोष, एक आशा की किरण दिखाई दे रही थी. हो न हो उस की सेवा सभी के दिलों को जीत ले और वह उसे माफ कर दें.

विधानसभा के चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी थी. चौधरीजी के घर गहमागहमी शुरू हो गई थी. तमाम नेता बैठक में विचारविमर्श कर रहे थे कि आज की राजनीति में सबकुछ अनिश्चित है. मतदाता विस्मय से बदलते परिदृश्यों को देख रहा है. थोडे़थोडे़ समय में होने वाले चुनावों में उस का विश्वास नहीं रहा. अब की बार कोई नया मुद्दा होना चाहिए जो लोगों के दिलों में उतर जाएं. फिर कुछ नेता चौधरीजी की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘‘क्या रखा जाए मुद्दा, चौधरीजी.’’

‘‘हमारा नारा होगा, ‘समर्थ, गरीब कन्याओं को वधू बनाएं, नई रोशनी घर में लाएं.’’’ चौधरीजी सीना तान कर बोले, ‘‘इस का असर जादू की तरह होगा. दुर्बल समुदाय का वोट हमारी पार्टी की झोली में गिरेगा क्योंकि यह सत्य पर आधारित है. आप लोगों को तो पता ही है मैं ने अपने बेटे की शादी….’’

चौधरी की बात पूरी होने से पहले एकसाथ कई आवाजें हवा में गूंजीं.

‘‘जीहां, जीहां. आप के बेटे ने तो बिना ननुकर किए आप की पसंद को अपनी पसंद बना लिया…नहीं तो आजकल के लड़के बिना देखे, बात किए राजी कहां होते हैं.’’

चौधरीजी इस पर टीकाटिप्पणी करने के बजाय आगे बोले, ‘‘अन्य सभी राजनीतिक दलों के बारे में यह जान लिया गया है कि वे जो कहते हैं वह करते नहीं हैं. हर राजनीतिक पार्टी झूठ और वचन भंग के दलदल में धंसती पाई गई है. हमारे संकल्पों में एक तरह की फौलादी ताकत दिखाई पड़ती है. भारतीय स्वयं कमजोर हैं पर सचाई की कद्र करते हैं.’’

चुनाव का दिन भी आ गया. चौधरीजी का नारा हट कर था. घिसेपिटे नारे जाति, धर्म, भ्रष्टाचार से बिलकुल अलग. लोग भी घिसेपिटे नारे पुराने रेकार्डों की तरह सुन कर थक गए थे. एक नया नारा ‘उद्धार’ अपने नए आकर्षण के साथ लोगों के दिलों में उतर गया. नौजवानों में एक नई लहर दौड़ गई और वोट चौधरीजी के पक्ष में खूब गिरे.

New Year 2022: नई जिंदगी- भाग 5: क्यों सुमित्रा डरी थी

राजनीति में एक परंपरा सी बन गई है. आकर्षक नारा दे कर जीतो और उस के बाद उस नारे का खून कर दो. चौधरीजी के विचार इस से इतर न थे. परंपरा का निर्वाह करना वह बखूबी जानते थे. राजनीति का चस्का ही ऐसा होता है कि कुरसी के लिए लोग अपनी बीवीबच्चों तक को दांव पर लगा देते हैं. स्वार्थ और लोभ राजनीति को कठोर व बेशर्म बना देते हैं.

इधर चौधरीजी चुनाव जीते उधर योजना के अनुसार कल्पना को खत्म करने के लिए कई हथकंडे अपनाए गए. पर हर बार वह साफ बच गई. उसे खरोंच तक न लगी. चौधरीजी का परिवार तो यही सोचता कि पता नहीं कौन सा रहस्यमयी चमत्कार हो जाता है जो वह बच जाती है पर हकीकत तो यह थी कि पुलिस में सालों नौकरी कर कल्पना यह तो जान ही गई थी कि उस के खिलाफ घर में षड्यंत्र रचा गया है अत: वह अपना हर कदम फूंकफूंक कर रखती थी.

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एक बार उस को छत पर सूख रहे कपड़ोें को लाने भेजा गया और पीछे सीढि़यों पर मोबिल आयल डाल दिया गया पर वह कपड़ों का गट्ठर सुरक्षित ले कर उतर आई. यहां भी कल्पना की सूझबूझ काम आई. इसी प्रकार टांड़ पर आगे 10 लिटर का भारी कूकर रख बाहर से एग्जास्ट फैन के छेद से डंडे द्वारा कुकर को जोर से ठेला गया ताकि सीधे नीचे खड़ी कल्पना के सिर पर गिरे जो उस समय रोटी बना रही थी पर जैसे ही डंडे को कुकर की तरफ बढ़ते उस ने देखा अपने हाथ की लोई गिरा कर उसे उठाने के लिए वह आगे सरक गई. इतने में कुकर ठीक उसी जगह गिरा जहां वह खड़ी थी.

कल्पना ने इस घटना पर सब के सामने यही जाहिर किया कि कुकर गिरने के पीछे बिल्ली की करतूत है, क्योंकि एक दिन रात में उस ने ज्यों रसोई की बत्ती जलाई थी कि ऊपर से यही कुकर गिरा था. ऊपर नजर डाली तो मोटी बिल्ली थी जो उसी छेद से भाग गई थी. इस के बाद खुद मेज पर चढ़ कर कल्पना ने उस कुकर को आगे से हटा कर पीछे दीवार के सहारे लगा दिया था.

दरअसल, घर के लोग कल्पना को कुछ इस तरह जान से मारना चाह रहे थे कि उन की बदनामी न हो. ऐसा लगे कि वह कोई हादसा था और उस हादसे के बाद चौधरीजी मन ही मन सोच रहे थे कि वह कल्पना की प्रतिमा गांव के चौराहे पर लगवा देंगे और उस प्रतिमा का अनावरण उस की मां से करा देंगे. वोट तो जो उन के पक्ष में पड़ने थे वह पड़ ही गए हैं. अब दुर्घटना की खबर मिलते ही एक कुशल एक्टर की भूमिका थोड़ी देर जनता के सामने करनी है और इसी का रिहर्सल मन ही मन वह करने लगे.

अपने खयालों में खोए चौधरीजी यह भूल गए कि वह रफ्तार से सड़क पर गाड़ी चला रहे हैं. सामने से आता एक ट्रक चौधरीजी की गाड़ी पर अनियंत्रित हो कर टक्कर मार गया.

आग की तरह उन की दुर्घटना की खबर चारों ओर फैल गई. चौधरीजी काफी घायल हो गए थे. उन का दाहिना टखना इतनी बुरी तरह कुचल गया था कि उसे काटना डाक्टरों की मजबूरी बन गई थी. बड़ी मुश्किल से उन्हें होश आया था. होश आने पर उन्होंने देखा कि उन के हाथों पर प्लास्टर चढ़ा है और घर पर उन्हें कम से कम 6 माह तक विश्राम करना था.

शुरुआत में तो बेटे, पत्नी और परिवार के दूसरे लोगों ने उन की देखभाल की पर धीरेधीरे सभी अपने रोजमर्रा के कामों में मशगूल हो गए क्योंकि घर पर बैठना किसी को रास नहीं आ रहा था.

चौधरी की मजबूरी थी बिस्तर पर पडे़ रहना. घर पर नर्स, नौकर व कल्पना ही बचते थे. चौधरीजी का मलमूत्र बाहर फेंकने में नर्स नखरे दिखाती थी. जमादार कभी आता कभी नहीं आता. ऐसे में कल्पना चुपचाप पौट बाहर ले कर जाती और फिर साफ कर वापस उन की चारपाई के नीचे रख देती.

चौधरीजी की पत्नी सजसंवर कर पर्स लटका जब घर से निकलतीं तो ऐसा लगता मानो उन के न जाने से बाहर का कामकाज सब ठप हो जाएगा.

कहते हैं कि विपरीत परिस्थिति में लोगों के ज्ञानचक्षु काम करने लगते हैं. उस की तार्किक शक्ति बढ़ जाती है. सभी बातें दर्पण की तरह उसे साफ दिखाई पड़ने लगती हैं. वह अपने को भी जानने लगता है और आसपास के वातावरण की सचाई को भी पहचानने लगता है. इनसान मीठी चुपड़ी बातों से अनुकूल समय में धोखा खा सकता है पर विषम दशा में मन सिर्फ सच को देखता है. कोई धोखा कोई बातें अपना जादू चलाने में सफल नहीं होतीं.

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चौधरीजी को पत्नी, बेटे सब स्वार्थी जान पड़ रहे थे. सब मतलब के यार जिन्हें सिर्फ उन से मिलने वाले लाभ से सरोकार था. बस, कोई अपना समय उन के पास बैठ कर बरबाद नहीं करना चाहता था. सभी का सुबह घर से निकलने के पहले मानो हाजिरी देना जरूरी हो, उन के कमरे में आते और कभी नर्स को कभी कल्पना को निर्देश दे कर चले जाते ताकि सुनने वाले को ऐसा लगे कि उन्हें कितनी चिंता है.

चौधरीजी इस झूठे दिखावे से भीतर से दुखी तो होते थे पर इसे भी वह अपने कर्मों का दंड मानने लगे थे. अब वह पहले वाले चौधरी नहीं थे. मौत के मुंह से क्या निकले उन की पूरी काया ही पलट गई थी. बाहर भोलीभाली जनता को ठगने वाला यदि अपने ही लोगों से ठगा जाए तो क्या बुराई है. जो फसल बोई है उसे काटना तो पडे़गा ही न. यह सोच सबकुछ जानसमझ कर भी वह परिवार वालों के सामने अनजान बने रहते.

इस भीड़ में कल्पना द्वारा की गई सच्ची सेवा व उन के प्रति उस की निष्ठा अपनी अलग पहचान बना गई. जो देखभाल चौधरीजी की घर पर कल्पना ने की उस से वह द्रवित हुए बिना न रह सके. एक दिन सब के जाने के बाद बिस्तर पर पडे़ चौधरीजी ने अपने दोनों हाथ जोड़ कल्पना से कहा, ‘‘बेटी, मुझे माफ कर दो.’’

उन के बोलने में प्रायश्चित की पीड़ा थी. वह समझ रहे थे कि इस लड़की पर क्याक्या अत्याचार नहीं किए गए पर उस ने उफ् तक न किया. क्या यह जानती न होगी कि घर भर के लोग उस के साथ क्या खेल रच रहे हैं.

कल्पना जान कर भी अनजान बनते हुए बोली, ‘‘आप मेरे पिता समान हैं. मुझ से माफी मांग कर शर्मिंदा न कीजिए.’’

चौधरीजी मन ही मन अपने को धिक्कारने लगे. क्या उन का निखट्टू बेटा दूध का धुला है. आवारा आज भी ऐयाशी करता है. उस के पास उन की बनाई जायदाद के अलावा अपना क्या है? आज घर से निकाल दिया जाए तो दानेदाने को तरसे. उस की क्या मजबूरी है जो ऐयाशी करता है.

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सारे दिन आवारा घूमने के अलावा उस को आता भी क्या है. इस त्यागमयी सुंदर पत्नी को छोड़ने की कल्पना भी कैसे कर सकता है. यह तो उस निठल्ले को भी धीरेधीरे राह पर ले आएगी. ऐसी कार्यकुशल पत्नी पा कर तो उसे धन्य हो जाना चाहिए. किसी मजबूरी में उठा गलत कदम यदि अपनी सही राह पकड़ ले तो दूसरों का पथप्रदर्शक बन सकता है. वह कल्पना के साथ अब अपने जीते जी अन्याय न होने देंगे. सोचतेसोचते चौधरी की आंख लग गई. उन का चेहरा तनावमुक्त था.

New Year 2022: नई जिंदगी- भाग 3: क्यों सुमित्रा डरी थी

लेखक-अरुणा त्रिपाठी

प्रमेश उस के चेहरे को गौर से देखते हुए आगे बोला, ‘‘तुम कालगर्ल हो. स्त्री के नाम पर कलंक. इतना बड़ा धोखा मेरे परिवार के साथ करने की तुम्हारे घर वालों की हिम्मत कैसे हुई? मैं अभी जा कर सब को तुम्हारी असलियत बताता हूं.’’

यह कह कर प्रमेश ने जैसे ही उठने का उपक्रम किया, कल्पना दोनों हाथ बंद दरवाजे पर रख कर सामने खड़ी हो गई और बोली, ‘‘पहले आप मेरी मजबूरी भी सुन लीजिए फिर आप को जो भी फैसला लेना है, लीजिए. मेरा जीवन तो तबाह हो गया जिस की आशंका से मैं कुछ पल पहले तक बहुत विचलित थी. कम से कम अब उस दशा से मुझे मुक्ति मिल गई है. मेरे गले में मेरा अतीत फांस की तरह गड़ रहा था. अफसोस है कि ऐसा कुछ मैं ने शादी की स्वीकृति देने से पहले यदि महसूस किया होता तो आज यह दिन मुझे न देखना पड़ता.

‘‘हर युवा लड़की के दिल में अरमान होते हैं कि उस का एक घर, पति व परिवार हो और यह भावना ही मेरे जीवन की ठोस धरती पर ज्यादा प्रबल हो गई थी, नहीं तो मुझे क्या अधिकार था किसी को धोखा देने का.’’

कल्पना एक पल को रुकी. उस ने प्रमेश को देखा जिस के चेहरे पर पहले जैसी उत्तेजना नहीं थी. वह आगे बोली, ‘‘यह सच है कि मैं कालगर्ल का धंधा करती थी लेकिन यह भी सच है कि मैं कालगर्ल स्वेच्छा से नहीं बनी बल्कि मेरे हालात ने मुझे कालगर्ल बनाया. जब मुझे सिपाही की नौकरी मिली तो मैं बहुत खुश थी. एक दिन मेरे अधिकारी ने मुझे बुलाया और पूछा कि तुम्हारा जाति प्रमाणपत्र कहां है. यदि तुम ने फौरन जाति प्रमाणपत्र नहीं जमा किया तो तुम्हारी नौकरी चली जाएगी. नौकरी जाने का भय मुझ पर इस कदर हावी था कि मैं घबराहट में समझ न सकी कि क्या करूं.

‘‘मेरा जन्म बिहार में हुआ था. वहां आनेजाने में लगभग एक सप्ताह लग जाता. फिर जाते ही प्रमाणपत्र तो नहीं मिल जाता. मेरी आंखों के सामने मेरे छोटे भाईबहन व मां के उम्मीद से भरे चेहरे घूम गए, जिन्हें मेरा ही सहारा था. वैसे भी हम लोग पिता की मृत्यु के बाद घोर गरीबी में दिन गुजार रहे थे. मेरी नौकरी से घर में सूखी रोटी का इंतजाम होता था.

‘‘मैं अपने अधिकारी से बहुत गिड़गिड़ाई कि कम से कम 10 दिन की छुट्टी व कुछ पैसा एडवांस दे दें तो मैं जाति प्रमाणपत्र ला दूंगी किंतु वह टस से मस नहीं हुए. उलटे उन्होंने कहा कि तुम्हारी नई नौकरी है, अभी छुट्टी भी नहीं मिल सकती और न ही एडवांस पैसा.

‘‘यह सुन कर मेरे हाथपैर फूल गए. मैं उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाई और शायद यही मेरी सब से बड़ी भूल थी. यदि हड़बड़ाहट के बजाय मैं ने थोड़ा धैर्य से काम लिया होता तो मैं उन के झांसे में आने से शायद बच जाती.

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‘‘मैं कुछ भी सोच पाने की स्थिति में न थी और इस का अधिकारी ने पूरापूरा फायदा उठाया और मुझे भरोसा दिया कि यदि मैं उन के आदेशों का पालन करती रही तो मुझे न तो बिहार जाना पडे़गा और न ही एडवांस रुपयों की जरूरत पडे़गी. उन्होंने उस शाम मुझे अपने बताए स्थान पर बुलाया और एक पेय पिलाया जिस से मुझे हलकाहलका नशा छा गया. उस के बाद उन्होंने मेरे शरीर के साथ मनमानी की और मेरे पर्स में कुछ रुपए डाल दिए. इस के बाद तो मैं उन के हाथ की कठपुतली बन गई.

‘‘मैं ने तो अपनी मजबूरी बता दी और आज भी स्वीकारती हूं कि यदि मैं ने धैर्य से काम लिया होता तो इस विनाश से बच जाती पर आप की क्या मजबूरी थी? आप बाहर जा कर अपने रिश्तेदारों के बीच अपनी सफाई में क्या कहेंगे? आप एक कालगर्ल के साथ क्या कर रहे थे, इस का उत्तर आप दे पाएंगे?’’

दरवाजे से अपना हाथ हटाते हुए कल्पना बोली, ‘‘बाहर जाने से पहले मेरा कुसूर बता दीजिए फिर जो सजा आप मुझे देंगे वह मंजूर होगी.’’

प्रमेश अपने सिर को दोनों हाथों में पकडे़ चुपचाप आंखें फाडे़ छत की ओर देख रहा था. कल्पना भी दरवाजा छोड़ कर दीवार से टिक कर जमीन पर बैठ गई. मनमंथन दोनों में चल रहा था. कल्पना आशंकित थी कि समाज में औरत और आदमी के लिए आज भी अलगअलग मापदंड हैं. प्रमेश पुरुष है, घरपरिवार वाले उस का ही साथ देंगे. उस में दोष क्यों देखेंगे? सारी लांछनाकलंक तो उस के हिस्से में आएगा. अब तो मां के यहां भी ठिकाना न रहेगा.

अपने कलंकित जीवन से छुटकारा पाने के लिए उसे यह हक तो कतई न था कि दूसरों को अंधेरे में रखती. यह तो इत्तफाक था कि प्रमेश दूध का धुला नहीं है. आज यदि किसी चरित्रवान युवक के साथ ब्याह दी जाती तो क्या अपने अंत:-करण से कभी सुखशांति पाती. जरूर उस के मन का चोर उसे जबतब घेरता. हमेशा यह भय बना रहता कि कहीं कोई उसे पहचान न ले. इतनी दूर तक सोच कर ही उसे विवाह करना था. क्या पता जीवन के सफर में कोई ऐसा हमराही मिल ही जाता जो सबकुछ जान कर भी उस का हाथ थामने को तैयार हो जाता.

दोनों की आंखों में प्रथम मिलन की खुमारी दूरदूर तक नजर नहीं आ रही थी. फटी आंखों से दोनों सोच में डूबे सुबह होने का इंतजार कर रहे थे. चिडि़यों की चहचहाहट से सुबह होने का आभास होते ही प्रमेश उठा, अपने केशों को हाथ के पोरों से संवार और कमरे से निकलने के पहले कल्पना से बोला, ‘‘देखो, जो हुआ सो हुआ. तुम किसी प्रकार का नाटक नहीं करोगी, समझीं. हमारा परिवार इज्जतदार लोगों का है.’’

साल ‘2020’ में ऐसे सजेगी फिल्मी दुनिया

1 जनवरी की दस्तक से ही साल 2020 हम से रूबरू हो चुका है. फिल्मी दुनिया का पिछला साल किसी को रास आया, तो कोई एक अदद हिट फिल्म को तरस गया. फिल्म ‘कबीर सिंह’ में शाहिद कपूर की अदाकारी ने चौंकाया, तो वहीं अक्षय कुमार ने हिट पर हिट फिल्में दे कर मस्त माल बनाया. इतना ही नहीं, गंजे ‘बाला’ बने आयुष्मान खुराना ने सब को हंसाया. साथ ही, इस फिल्म से लोगों को सीख भी मिली कि अपनी शारीरिक कमजोरी का दुख मनाने का कोई फायदा नहीं है. आप जैसे हैं वैसे ही खूबसूरत हैं.

इस साल भी फिल्म कलाकारों में एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ मचेगी. इन में से एक फिल्म है ‘83’. उम्मीद की जा रही है कि रणवीर सिंह की यह फिल्म 10 अप्रैल, 2020 को रिलीज होगी.

कबीर खान के डायरैक्शन में बनी इस फिल्म की कहानी साल 1983 में हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप और इस में भारत की ऐतिहासिक जीत से जुड़ी है. इस फिल्म में रणवीर सिंह के साथ उन की पत्नी दीपिका पादुकोण भी हैं.

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इस साल अक्षय कुमार की 4 बड़ी फिल्में आएंगी. मार्च महीने में वे रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सूर्यवंशी’ में पुलिस अफसर के किरदार में दिखाई देंगे, तो मई महीने में उन की फिल्म ‘लक्ष्मी बम’ रिलीज होगी. यह दक्षिण भारत की एक हौररकौमेडी फिल्म ‘कंचना’ का हिंदी रीमेक है. वहीं फिल्म ‘पृथ्वीराज’ में वे तलवार भांजते नजर आएंगे. इस फिल्म से विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर भी अपना फिल्मी डैब्यू कर रही हैं. फिल्म ‘बच्चन पांडे’ साल 2020 में क्रिसमस पर रिलीज हो सकती है. यह फिल्म साल 2014 में आई दक्षिण भारतीय फिल्म ‘वीरम’ का हिंदी रीमेक है.

पिछला साल रितिक रोशन के लिए भी उम्मीद की एक नई किरण ले कर आया था. उन की फिल्म ‘सुपर 30’ और ‘वार’ ने खूब नाम और दाम कमाया था. फिल्म ‘वार’ ने तो कमाई के नए रिकौर्ड बना दिए थे. साल 2020 में रितिक रोशन चौथी बार ‘क्रिश’ बन कर आएंगे.

टाइगर श्रौफ की साल 2020 में बहुचर्चित फिल्म ‘रैंबो’ 2 अक्तूबर को रिलीज हो सकती है. यह फिल्म हौलीवुड के फेमस ऐक्टर सिल्वैस्टर स्टैलोन की फिल्म ‘रैंबो’ पर बनी बताई जा रही है.

इस फिल्म को फिल्मकार साजिद नाडियाडवाला बना रहे हैं. इस से पहले टाइगर श्रौफ और श्रद्धा कपूर की फिल्म ‘बागी 3’ मार्च महीने में आ सकती है. इस फिल्म का डायरैक्शन अहमद खान करेंगे.

इतना ही नहीं, अपने जमाने की हिट फिल्म रही ‘सड़क’ का सीक्वल 25 मार्च को ‘सड़क 2’ नाम से आएगा. इस फिल्म में आलिया भट्ट, संजय दत्त और आदित्य रौय कपूर अहम किरदारों में हैं. इस फिल्म का डायरैक्शन महेश भट्ट ने किया है.

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रणबीर कपूर और वाणी कपूर की फिल्म ‘शमशेरा’ 31 जुलाई को रिलीज होगी. यह यशराज बैनर की एक बड़े बजट की फिल्म बताई जा रही है.

बड़ी फिल्मों की बात हो और करण जौहर का जिक्र न आए, ऐसा कैसे हो सकता है. वे ‘तख्त’ नाम की एक बड़ी और बहुत ज्यादा फिल्म सितारों की फिल्म बना रहे हैं, जिस में रणवीर सिंह, करीना कपूर, आलिया भट्ट, भूमि पेडनेकर, जाह्नवी कपूर, अनिल कपूर और विकी कौशल होंगे. इस फिल्म में जाह्नवी कपूर और अनिल कपूर की चाचाभतीजी की जोड़ी पहली बार नजर आएगी.

फिल्म ‘तानाजी: द अनसंग वारियर’ में अजय देवगन को एक योद्धा के रूप में दिखाया गया है. इस फिल्म को साल 1670 में हुए सिंहगढ़ युद्ध पर फिल्माया गया है, जिस में तानाजी मालुसरे ने लड़ाई लड़ी थी. यह फिल्म 24 जनवरी, 2020 को रिलीज हो सकती है. इस फिल्म के डायरैक्टर ओम रावत हैं. इस फिल्म में अजय देवगन के साथ काजोल, सैफ अली खान और जगपति बाबू भी हैं.

फिल्म ‘छपाक’ में एसिड अटैक की पीडि़ता लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी को दिखाया गया है. इस फिल्म में लक्ष्मी अग्रवाल का रोल दीपिका पादुकोण ने निभाया है, जो 10 जनवरी, 2020 को रिलीज हो सकती है. मेघना गुलजार ने इस फिल्म का डायरैक्शन किया है.

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वरुण धवन की फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर’, ‘रणभूमि’ और ‘कुली नंबर 1’, कंगना राणावत की फिल्म ‘पंगा’, आदित्य रौय कपूर की फिल्म ‘मलंग’, आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’, अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘चेहरे’ और ‘गुलाबो सिताबो’ भी इसी साल रिलीज हो सकती हैं.

नए साल में भोजपुरी की गोल्डन गर्ल मचाएंगी धमाल

भोजपुरी सिनेमा में बहुत ही कम समय में अपने एक्टिग के जरिये पहचान बनाने वाली गोल्डन गर्ल सोनालिका प्रसाद के लिए नया साल बेहद खास रहने वाला है. टीवी न्यूज़ चैनलो में बतौर एंकर अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली सोनालिका प्रसाद आज के दौर की भोजपुरी में शीर्ष अभिनेत्रियों की लिस्ट में शुमार हैं.

सोनालिका ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत निर्देशक रजनीश मिश्रा के निर्देशन में बनी भोजपुरी फिल्म राजतिलक से की थी, तो किसी ने सोचा नहीं था की यह फिल्म कमाई का रिकार्ड तोड़ेगी. इस फिल्म में गोल्डन गर्ल सोनालिका सुपरस्टार अरविंद अकेला उर्फ कल्लू के विपरीत नजर आई थी. फिल्म को लोगों ने काफी पसंद किया था. खास करके नई नवेली अभिनेत्री सोनालिका प्रसाद के दमदार अभिनय को.

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इस फिल्म की सफलता के बाद सोनालिका के सामने फिल्मों की लाइन सी लग गई. वर्ष 2019 उनके एक्टिंग के नजरिए काफी व्यस्तता वाला रहा. वह बहुत ही कम समय में दर्जन भर से ज्यादा फिल्मे कर चुकी है. जिनमे राजतिलक, लैला -मजनू, सडक, धनिया, कलाकार, गुमराह, ओम जय जगदीश, बड़े मिया छोटे मिया, राबिनहूड पांडे प्रमुख हैं.  इन फिल्मों में से अधिकांश नए वर्ष में बड़े पर्दे पर दस्तक देने को बेकरार हैं. वहीं फिल्म बड़े मिया छोटे मिया, ओम जय जगदीश और गुमराह मे अभिनेत्री सोनालिका प्रसाद गोरखपुर के सांसद और भोजपुरी जगत के मेगास्टार रवि किशन  के विपरीत नजर आएंगी.
गोल्डन गर्ल सोनालिका प्रसाद ने वर्ष 2019 में बड़े अवार्ड शो सबरंग अवार्ड शो-कोलकाता, सिंगापुर अवार्ड शो, मे भी हिस्सा लिया. जिसमें इन्होने होस्ट कर अपनी मनमोहक परफौरमेंस से सबका दिल जीत लिया था. साथ ही उन्होने बिग मैजिक गंगा चैनल पर प्रसारित लोकप्रिय प्रोग्राम “बिरहा के बाहुबली” में भी जुबली स्टार दिनेश लाल यादव और मनोज सिंह टाइगर उर्फ बतासा चाचा के साथ प्रोग्राम को होस्ट किया.

नए साल को लेकर सोनालिका प्रसाद काफी उत्साहित है क्यों की इस वर्ष उनकी दर्जन भर फिल्में रिलीज जो होंगी. यह दर्शकों पर काफी अच्छा प्रभाव छोड़ेंगी. फिल्हाल अभिनेत्री सोनालिका प्रसाद अपनी फिल्म “बड़े मिया छोटे मिया”, “गुमराह” और “ओम जय जगदीश” की शूटिंग में व्यस्त हैं.

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