मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बने ‘नीरो कोरोना’ : रिपोर्ट पॉजिटिव भी नेगेटिव भी!

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को लेकर, आपने लापरवाही का ऐसा घटनाक्रम कहीं नहीं देखा होगा. आइए! आपको ले चलते हैं आज छत्तीसगढ़ – जहां भूपेश बघेल की सरकार है. जहां कोरोना नाम मात्र को नहीं था और आज कोरोना जयपुर, इंदौर, भोपाल रांची से भी आगे निकल रहा है.

जी हां! यह कमाल यहां डॉक्टरों ने दिखाया है की एक पेशेंट की दो रिपोर्ट आ गई – एक में बताया कोरोना नेगेटिव और दूसरे में कोरोना पॉजिटिव. है ना कमाल की बात.

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यहां छत्तीसगढ़ में सब कुछ संभव है.क्योंकि यहां मुखिया भूपेश बघेल का प्रशासनिक अश्व कहे जाने वाली व्यवस्था पर जरा भी अंकुश नहीं है. एक समय में जब छत्तीसगढ़ में कोरोना वायरस दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता था. तब की हुई लापरवाही ने आज छत्तीसगढ़ को कोरोना वायरस की खंदक की लड़ाई के बीच ला खड़ा किया है. इसका खामियाजा यहां की आवाम झेल रही है. और सरकार केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर के रुपए पैसों की मदद मांग रही है. यह दृश्य देखकर बेहद कोफ्त होती है कि छत्तीसगढ़ किस तरह लूज पुंज हाथों में आकर तबाही की ओर बढ़ रहा है. जिसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है यह एक मामला -जब एक युवक की कोरोना पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों रिपोर्ट आज सार्वजनिक हो करके सुर्खियों में है. और आम जनता सवाल पूछ रही है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी! छत्तीसगढ़ में यह क्या हो रहा है और आप इस पर क्या एक्शन करने जा रहे हैं?

बेवजह मारा गया युवक!

सबसे दुखद स्थिति यह है कि बिलासपुर के “अपोलो अस्पताल” ने पॉजिटिव बताकर उसी के मुताबिक़  उपचार  किया और युवा मरीज की अंततः  तड़प-तड़प कर मौत हो गई.

दूसरी तरफ उसी युवक को-

“सिम्स” ने बताया निगेटिव. संपूर्ण घटनाक्रम इस प्रकार है कि अपोलो अस्पताल बिलासपुर में मनेंद्रगढ़ निवासी शुभम कुमार यादव नामक जिस युवक का कोविड-19 के पॉजिटिव मरीज के रूप में इलाज किया जा रहा था. उसी मरीज के कोरोना वायरस कोविड-19 की कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट को सिम्स द्वारा नेगेटिव बताया  है . अब, किस रिपोर्ट को सही मानें और किसे गलत…यह सवाल मनेंद्रगढ़ के मृतक शुभम कुमार यादव के परिजनों को हैरान कर रहा है. और हैरानी की बात ही है की अपोलो जैसा प्रतिष्ठित अस्पताल उस मरीज को कोविड-19 का पॉजिटिव बताकर इलाज कर रहा था जिसकी टेस्ट रिपोर्ट को छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (सिम्स) अपनी रिपोर्ट में नेगेटिव बता रहा है.

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यह एक उदाहरण है जो साफ बता रहा है कि  छत्तीसगढ़ में कोरोनावायरस कोविड-19 के नाम पर मरीजों के साथ इस तरह का जानलेवा खिलवाड़ किया जा रहा है. चिंता की स्थिति यह है कि सिम्स के द्वारा नेगेटिव बताए गए जिस शुभम यादव  को पॉजिटिव बता कर अपोलो अस्पताल के द्वारा पता नहीं कौन सा उपचार किया जा रहा था? जिससे उसकी मौत हो गई. प्रदेश शासन और जिला प्रशासन तथा सीएमएचओ बिलासपुर को इस मामले को गंभीरता से लेकर पूरी जांच करनी चाहिए मगर सभी विभाग मौन है, अगर जांच की जाती है तो  दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है.  क्या  प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग इसे भी गंभीर आपराधिक चूक का मामला नहीं मानता..?

क्या दोषी लोगों पर सख्त कार्रवाई नहीं होनी चाहिए ताकि आगामी समय में कोरोना वायरस जैसे महामारी को लेकर के चिकित्सा प्रबंधन स्वास्थ्य अधिकारी कर्मचारी मुस्तैद रहें. यहां ऐसी अफरा-तफरी मची हुई है जिसे देखकर शर्म आती है क्योंकि शासन प्रशासन की नाक के नीचे किसी  एक की लाश, किसी को दे दी जाती है यहां कोरोना मरीज के मरने के बाद “शव” अदला बदली का खेल भी आंखें बंद करके जारी है. और शासन किसी पर कोई एक्शन नहीं ले रहा था गाज नहीं गिरा रहा.

नामी राजधानियां  पीछे हुईं

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कोरोना का जबरदस्त विस्फोट हुआ है.यहां हालात देश के गंभीर संक्रमण वाले शहरों से कहीं आगे निकल चुकी है राजधानी‌ रायपुर में कोरोना संक्रमण के वर्तमान के आंकड़ों को देखा जाए तो  रायपुर में जितने मरीज प्रतिदिन सामने आ रहे हैं और जितने अस्पतालों में भर्ती हैं, उतने कभी कोरोना संक्रमण के लिए चर्चित जयपुर, जोधपुर, इंदौर, भोपाल, जबलपुर, रांची, लखनऊ और कानपुर में नहीं है.जबकि रांची को छोड़कर बाकी सभी शहर आबादी के लिहाज से रायपुर से दो और तीन गुना ज्यादा बड़े हैं.

यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि भोपाल, जयपुर और लखनऊ जैसे बड़े महानगरों के साथ-साथ बड़े राज्यों की राजधानी भी है. हां राहत  की खबर यह है कि है कि रायपुर में मौतों का आंकड़ा कम है, इस मामले में भोपाल, इंदौर और जयपुर से रायपुर पीछे है.

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साथ ही यह भी सच है कि राजधानी रायपुर में मरीजों के स्वस्थ होने की दर यानी रिकवरी रेट भी इन शहरों से कम है.

विशेषज्ञों के अनुसार रायपुर में लगातार बढ़ रहे मरीजों में वे लोग ज्यादातर हैं जो प्राइमरी कांटेक्ट में आए हैं, इस कारण एक मोहल्ला या एक घर से बड़ी संख्या में लोग कोरोना से संक्रमित निकल रहे हैं.

छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल

सरकार अपने सिस्टम को दुरूस्त करने में लगातार  फ्लॉप सिद्ध  हुई है, यही कारण है कि रायपुर समेत छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण नगरों के के हालात लगातार बदतर होते जा रहे है.

जानकारी के अनुसार रायपुर में संक्रमण की जांच के लिए  जांच सेंटरों में कलेक्ट किए गए प्रभावितों के सैम्पल भी “गुम” हो रहे हैं.जिसके कारण भी सिर्फ चक्कर काटते पीड़ितों का संक्रमण बढ़ रहा है. वहीं उनकी जान जाने का खतरा बढ़ता जा रहा है.

रायपुर के सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम गुप्ता के अनुसार सरकार  से अपेक्षा है कि सिर्फ चापलूस अधिकारियों के द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के बाद खुश हो जाने वाले प्लान से वे बाहर आएं वहीं

राजस्थान के “भीलवाड़ा” या मध्यप्रदेश के “इंदौर मॉडल” को अपनाते हुए, कोरोना संक्रमण की रोकथाम में विफल रायपुर के प्रशासनिक सिस्टम पर अपनी तीव्र प्रखर दृष्टि डालें.

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भूपेश बघेल की “गोबर गणेश” सरकार!

भूपेश सरकार का एक निर्णय आज छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में चर्चा का सबब बना हुआ है. यही नहीं छत्तीसगढ़ से बाहर देश भर में लोग इसका मजाक और मीम बना रहे हैं. यह निर्णय है गोधन के “गोबर” खरीदी का. भूपेश बघेल स्वयं को एक गांव किसान का लड़का कहने में फक्र महसूस करते हैं और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने निरंतर स्वयं को एक आम छत्तीसगढ़िया मानुष सिद्ध करने का प्रयास किया है. कई योजनाएं छत्तीसगढ़ की अस्मिता से जुड़ी हुई हैं.

अब जब उन्होंने गोबर को 1रूपये 50 पैसे किलो खरीदने का ऐलान किया है विपक्ष भाजपा सहित एक बड़े वर्ग ने उनके इस निर्णय पर व्यंग बाण छोड़ने शुरू कर दिए हैं. जिसमें सरकार के गोबर खरीदी के निर्णय का माखौल उड़ाया गया है .भूपेश सरकार की इस बहुचर्चित पहल का क्या परिणाम सामने आएगा यह आने वाला वक्त बताएगा मगर राजनीति की बिसात पर चौपड़ बिछ चुकी है. यह अहम कदम भूपेश बघेल के लिए मील का पत्थर सिद्ध होने जा रहा है. अगर सफल हुआ तो वाह वाह! और असफल हुआ तो एक ऐसा तमगा जो वर्षों वर्ष लोग याद करेंगे और भूपेश बघेल की हंसी तो  उड़ेगी ही.

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मजाक- दर मजाक

मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ को छत्तीसगढ़ की अपनी पहचान विकसित करने की कोशिश की है. पहले पहल उन्होंने नारा दिया,- ‘नरवा गरवा घुरवा बाड़ी’ का  यह नारा एक मुख्यमंत्री के रूप में आम जनता के लिए संदेश बन जाता लोग अपनाते तो प्रदेश का भला होता. मगर भूपेश बघेल ने आगे आकर इसे सरकारी अधोवस्त्र पहना कर खड़ा कर दिया. गांव गांव में नरवा गरवा घुरवा बाड़ी के नारे चस्पां  हो गए मगर जमीन पर हकीकत में कुछ नहीं दिखता. गौठान बना दिए गए भूपेश बघेल बड़े उत्साहित स्वयं गांव गांव पहुंचते और उद्घाटन करते मगर गोठान बनने के बाद करोड़ों रुपए खर्च के बाद किसी भी गोठान का कोई लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है.

सरकारी धन और मशीनरी का जैसा दुरुपयोग भूपेश बघेल के नेतृत्व में दिखाई देता है वह पीड़ादायक है. यह एक योजना जब जमीन पर अंतिम सांसे ले रही है भूपेश बघेल ने गोबर खरीदी की योजना लांच कर दी है जिसका मजाक कुछ ऐसे उड़ रहा है.

पहला – छत्तीसगढ़ दुनिया का पहला ऐसा राज्य जहां चावल सस्ता और गोबर महंगा- चावल 1रूपये किलो गोबर 1.5 रुपए किलो .

दूसरा – सीजी  पीएससी प्री में 140 प्लस कट आफ आने और क्लियर नहीं होने से हतोत्साहित छात्रों में राज्य सरकार के द्वारा गोबर खरीदने के निर्णय ने उम्मीद की नई किरण जगा दी है.

कई छात्र अब सीजी पीएससी की तैयारी ना करके गोबर बीनने का काम करने की सोच रहे हैं उत्साहित युवाओं  ने पटाखे फोड़े.

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तीसरा – राज्य सरकार भविष्य में – गोबर बिनइया, दुध दुहैया ,गोबरहीन इत्यादि पदों का सृजन करके, वैकेंसी निकालने की सोच रही है. चौथा- नरवा गरवा अऊ बाड़ी, सबला गोबर बिनना है संगवारी।

पढ़ाई को दो कुर्बानी…

गोबर खरीदी के निर्णय के बाद विपक्ष भाजपा के नेता भूपेश बघेल सरकार पर मानो पिल पड़े  है. सबसे ज्यादा आक्रमक हुए भाजपा की विगत डॉ. रमन सरकार के मंत्री रहे अजय चंद्राकर उन्होंने ट्वीट कर भूपेश बघेल की गोबर खरीदी नीति पर वज्र प्रहार किया उन्होंने लिखा – “ पढ़ाई को दो कुर्बानी, गोबर बिनवाने की तुमसे भूपेश सरकार ने अब ठानी” अजय चंद्राकर ने सोशल मीडिया के माध्यम से भूपेश बघेल सरकार पर तंज कसते हुए गोबर योजना पर सवाल खड़े कर दिए हैं.  जिससे कांग्रेस बौखला गई है और प्रवक्ता भाजपा के 15 वर्ष की नीतियों पर तंज कस सवाल खड़े कर रहे हैं . नेताओं की शह पर कांग्रेस कार्यकर्ता हुंकार भर रहे हैं कि अजय चंद्राकर के खिलाफ थाने में एफ आई आर दर्ज करवाई जाएगी तो पलट कर अजय चंद्राकर ने कहा है,- थाने में क्या, इटली में रिपोर्ट दर्ज करवाओ.

मगर लाख टके का सवाल यह है की गोबर खरीदने का ख्याल छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने ऐसी स्थिति में किया है जब उसके दरबार में  रुचिर गर्ग जैसे अनेक बुद्धिजीवी रत्न हैं.

डेढ़ वर्ष के अल्प समय में छत्तीसगढ़ में कई सरकारी नीतियों से हवा निकल रही है. गोठान इसका ज्वलंत उदाहरण है जहां एक भी गाय का बसेरा नहीं है और यह योजना मुंह चिढाते हुए जुगाली कर रही है. ऐसे में प्रदेश को ऊर्जा, शिक्षा, उद्योग के क्षेत्र में अपने पैरों पर खड़ा करने की जगह आम लोगों को भ्रमित करने वाली, पीछे धकेलने वाली योजनाओं से प्रदेश का भविष्य क्या होगा यह अभी से दिखाई देने लगा है.

भूपेश सरकार का कोरोना काल

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार कोरोना अर्थात कोविड-19 को लेकर इतनी मशगूल है कि राजधानी रायपुर से लेकर आम शहरों तक कोरोना को लेकर ऐसे ऐसे मंजर  दिखाई देते हैं की साफ साफ  सवाल किया  जा सकता है कि कोरोना को लेकर सरकार इतनी लचर व्यवस्था  कैसे कर सकती है.

छत्तीसगढ़ में कोरोना को लेकर कोई ठोस रणनीति तैयारी अथवा शासन प्रशासन की गतिविधि नजर नहीं आती. लोगों को मानो भेड़ बकरियों की तरह चरने के लिए छोड़ दिया गया है. कहीं कोई नियम कानून, कायदा दिखाई नहीं देता. यह सारे हालात देखकर  कहा जा सकता है कि भूपेश बघेल सरकार कोरोना  को लेकर ऐसी ऐसी गलतियां कर रही है जो आने वाले समय में जनजीवन पर भारी पड़ सकती हैं. हालांकि छत्तीसगढ़ में कोरोना बेहद काबू में है .मगर जैसी परिस्थितियां निर्मित हुई है, उससे यह अभी भी विस्फोटक रूप ले सकती है. आज जब दुनिया में कोरोना को लेकर हाहाकार मचा हुआ है.हम अपने देश में ही देख रहे हैं कि दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात में किस तरह स्थिति बेकाबू हुई जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन असहाय हो चुका है. ऐसे में इस भीषण संक्रमणकारी बीमारी को छत्तीसगढ़ में जिस सहजता  से लिया जा रहा है वह बेहद चिंताजनक है. इस  रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत बयां की जा रही है-

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अपने गाल बजाती भूपेश  सरकार!

भूपेश बघेल सरकार निसंदेह प्रारंभिक समय काल में कोरोना को लेकर बेहद अलर्ट थी. शासन प्रशासन चुस्त-दुरुस्त था ऐसा प्रतीत होता था कि इस भयंकर महामारी को बहुत ही गंभीरता से लिया जा रहा है. उस समय काल में सरकार की चहुँ ओर  हो प्रशंसा हो रही थी मीडिया में भी यह संदेश प्रमुख था कि छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार कोविड-19 को लेकर बेहद गंभीर है और सफलता की और आगे बढ़ रही है मगर जैसे-जैसे समय व्यतीत होगा चला गया कोरोना को लेकर के भूपेश बघेल सरकार के हाथ-पांव ठंडे पड़ने लगे. सरकार ने भी बड़ी गंभीरता के साथ गांव और शहरों को लाक डाउन करने में पूरी ताकत झोंक दी और यह स्थिति की सरकार की बिना इजाजत के  कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता था.

उस समय काल में छत्तीसगढ़ में कोरोना काबू में था.इसी दरमियान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार से कोरोना को लेकर के बड़ा पैकेज मांगा या यह 30,000 करोड़ रुपए का था. सरकार लोगों के हित में खड़ी दिखाई दे रही थी मगर छत्तीसगढ़ में साहब गुटका तंबाकू, गुड़ाखू जैसी प्रतिबंधित चीजें हवाओं में उड़ रही थी और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था ऐसा प्रतीत होता था कि मानो छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की कोई चिड़िया है ही नहीं. इस दरमियान एक तरफ सरकार अपने गाल बजा रही थी दूसरी तरफ ब्लैक मार्केटिंये और ऐसी महामारियो का लाभ उठाने वाले लोग लाखों-करोड़ों रुपये से अपनी थैलियां भर रहे  थे. जिन पर सरकार का कोई अंकुश नहीं था हां छोटी-छोटी दुकानों के चालान कर रहे थे मगर तब तक वे लाखों रुपए कमा चुके थे.

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कहां है कोरोना विषाणु !

छत्तीसगढ़ में इन दिनों कोरोना कोविड-19 को लेकर सारे दरवाजे खुल चुके हैं .कहीं कोई नियम कानून का पालन नहीं हो रहा है. कोरोना महामारी से जो सबक सरकार को लेने चाहिए सरकार उन्हें नहीं लेना चाहती. और फिर वही ढर्रा शुरू हो गया है जो कोरोना काल के पूर्व था.

छत्तीसगढ़ जैसे पूर्व में था वैसा ही सब कुछ चल रहा है. जबकि पंद्रह  वर्षों बाद भाजपा से मुक्त होकर प्रदेश को एक नया नेतृत्व मिला है. कांग्रेस डेढ़ दशक तक विपक्ष में थी और संघर्ष करती रही मगर ऐसा लगता है कि सत्ता में आने के बाद भाजपा का या कहें सत्ता का रंग कांग्रेस पर भी चढ़ चुका है.  यही कारण है कि इस महामारी का कोई भी सबक कोई भी समीक्षा करके मूलभूत बदलाव सरकार ने शासन प्रशासन की व्यवस्था में करने का कोई प्रयास नहीं किया है शहर की गलियां हो या गांव की आज भी गंदगी के ढेर हैं. जहां से फिर कोई संक्रमण कारी बीमारी फूट  सकती है. महामारी के समय में भी करोड़ों रुपए का गोलमाल होता स्पष्ट दिखाई दिया. शासन-प्रशासन ऐसा है हो गया था लोगों को कोई भी राहत देने का काम छत्तीसगढ़ सरकार करते हुए दिखाई नहीं दी. जो भी प्रयास हुए वह भी “थोथा चना बाजे घना” वाली स्थिति में था. सरकार ने पूरे छत्तीसगढ़ को खोल दिया है कोई भी कहीं भी आ जा सकता है.सोशल डिस्टेंसिंग समाप्त हो चुकी है, फिजिकल डिस्ट्रेसिंग कहीं दिखाई नहीं देती. सड़क के दुकाने, बाजार मे सब कुछ पूर्ववत हो चला है. ऐसे में सवाल यह है कि अगरचे आगे कोरोना का विस्फोट हुआ तो छत्तीसगढ़ सरकार इसे कैसे रोक पाएगी?

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भूपेश-राहुल और सर्वे का इंद्रजाल 

छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा में आजकल एक ही चर्चा सरगर्म है, अखबारों और सोशल मीडिया में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक सर्वे के अनुसार कांग्रेस के आलाकमान रहे राहुल गांधी से लोकप्रियता में आगे बताया गया है. यह समाचार और सर्वे की राजनीति किसी की समझ में आ रही है और किसी की नहीं. मगर असल किस्सा यह है कि भूपेश बघेल को एक मुख्यमंत्री के रूप में राहुल गांधी से लोकप्रियता में अव्वल बताने के पीछे बहुतेरे समीकरण हैं. हम आज यह सवाल उठाना चाहते हैं कि आखिर कोई मुख्यमंत्री बनने के बाद लोकप्रियता के शिखर पर कैसे पहुंच जाता है. कोई सर्वे कंपनी रातों-रात सर्वे करके अपने बने बनाए खांचों को कैसे लोगों को परोसती है. और लोग बड़े आनंद के साथ उसे लुफ्त उठाते हुए सच मानने लगते हैं. मगर ऐसा कुछ भी नहीं होता. दरअसल, यह एक ऐसा मायाजाल है जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री और महत्वपूर्ण लोगों को फंसा कर पिंजरे में कैद कर लिया जाता है.यह सब क्या है? क्या है इसकी हकीकत और पर्दे के पीछे की कहानी  आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताने का प्रयास कर रहे हैं.

भूपेश पर डाला डोरा!

छत्तीसगढ़ के लगभग सभी प्रमुख दैनिक, सोशल मीडिया में, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  से जुड़ी एक खबर प्रकाशित हुई, जो आईएएनएस-सीवोटर के एक कथित अनसुने सर्वे से संबंधित थी. जिसमें बताया गया था कि एक सर्वे हुआ है जिसमें कांग्रेश के विभिन्न मुख्यमंत्रियों और राहुल गांधी के संदर्भ में जानकारी एकत्रित की गई तो यह तथ्य सामने आया है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राहुल गांधी से भी आगे निकलकर लोकप्रिय हो चुके हैं.

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बता दें कि, पूर्व सरकार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह भी कई दफ़ा अव्वल घोषित हुए थे, परन्तु बुरी तरह चुनावी जन-परीक्षा में फेल हुए थे. तब ये भी भी सुगबुगाहट थी कि, ऐसे विभिन्न सर्वे, वजन आधारित करवाए जाते हैं.

बहरहाल, ये तब की बात थी, तथा जरूरी नहीं कि, अब भी ऐसा ही कुछ परदे के पीछे से हो रहा हो.

ऐसे में, इस बात पर गाल बजा सकते  हैं कि, जब मात्र लगभग डेढ़ साल में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल , सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों में भी अव्वल हो चुके हैं, तो अवश्य ही आगामी एक-दो वर्षों में वे कांग्रेस के अखिल भारत स्तर पर सबसे लोकप्रिय व प्रभावशाली नेता के रूप में उभरेंगे. ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि, कथित रूप से इतनी अल्प अवधि में, इन्होंने पंजाब के कैप्टेन अमरिंदर सिंह तथा राजस्थान के अशोक गहलोत को, इस कथित  सर्वे रिपोर्ट मे, बहुत  पीछे छोड़  दिया है.

ऐसे में, सवाल यह है  है कि,  आगामी 2-3 साल में अखिल भारतीय  राष्ट्रीय कांग्रेस की अगुवाई एक सामर्थवान छत्तीसगढ़िया नेता करेगा, यह  प्रदेश हेतु अति गौरव की बात होगी. इसलिए, तेज़ी से बढने वालों की टांग खीचने के स्थापित कांग्रेसी इतिहास के मद्देनज़र, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बेहद सावधान व सजग रहना होगा.

क्योंकि ऐसे सर्वे हमारी आज की आधुनिक व्यवस्था में होते रहते हैं. जो सिर्फ मुंह दिखाई के अलावा कुछ भी नहीं होते. इनका कोई आधार नहीं होता और अगर कोई इसे सच मान कर हवा में उड़ने लगे तो उसके पर कटना अवश्यंभावी है.

निपटाने का खेल 

ऐसे कथित सर्वे सुगबुगाहट  छोड़ कर चले जाते हैं और अंध भक्तों को ऐसा मसाला दे जाते हैं जिसे वे भज भज कर  खुश होते रहते हैं. छत्तीसगढ़ की जमीनी सच्चाई को जानने वाले यह सच्चाई जानते हैं कि भूपेश बघेल मुख्यमंत्री के रूप में देश के आला और अपनी पहचान बना चुके कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों और नेताओं के अभी बहुत पीछे हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह या अशोक गहलोत या अभी-अभी मध्य प्रदेश से हटाए गए कमलनाथ जैसे नेताओं के सामने भूपेश बघेल एक बेहद नए राजनीतिक खिलाड़ी हैं मगर इसके बावजूद सर्वे में बड़े मुख्यमंत्री कद के लोगों को पीछे दिखाकर सर्वे करने वालों ने एक मायाजाल बुनने की कोशिश की है. इंतिहा तब हो जाती है जब किसी को प्रसन्न करने अथवा निपटाने के लिए पार्टी के आलाकमान से भी आगे दिखा दिया जाता है. छत्तीसगढ़ में यह चर्चा अपने सबाब पर है कि इंद्रधनुषी सर्वे का मकसद आखिर क्या है?

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इस मसले पर कांग्रेस के एक सामान्य से कार्यकर्ता सलाह देते हुए कहते हैं मुख्यमंत्री को, इस प्रकाशित सुने-सुनाए सर्वे के आंकड़ों को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है.

भूपेश बघेल: साकी, प्याले में शराब डाल दे

छत्तीसगढ़ में शराबबंदी को अपना हथियार बनाकर 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की वैतरणी पार करने वाले भूपेश बघेल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शराबबंदी के मामले पर कैसे करवट बदल रहे हैं, यह सारा देश देख चुका है. अब जब कोरोना का संकट सर पर है, शराबबंदी को लेकर भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार के उछल कूद के नजारे देखकर सत्ता की उथली नीतियों पर आप और हम हंस  भी नहीं सकते. जहां 15 वर्ष तक सत्ता के बाहर जाकर कांग्रेस  की हालत पतली हो गई थी और  आदर्श बघारने लगी थी वहीं सत्ता सिंहासन  में बैठने के बाद वही कांग्रेस और उसके चेहरे शराबबंदी को लेकर  नित्य नए-नए तर्क दे रहे हैं.

कथनी और करनी में जो अंतर आया है वह राजनीति की असलियत को नंगे पन के साथ  उघाड़ कर सामने रख देता है. यहां हम आपको बताना चाहते हैं कोरोना वायरस महामारी के पश्चात लाक डाउन की स्थिति में भी छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार ने दोनों हाथों से शराब बेचा. शायद आपको विश्वास ना हो … मगर यह 100 फीसदी सही बात है. आप शायद कल्पना भी नहीं कर सकते कि 22 मार्च 2020 को जब प्रधानमंत्री के आह्वान पर संपूर्ण देश में लॉक डाउन था छत्तीसगढ़ में देसी और विदेशी शराब की दुकाने खुली हुई थी जिसकी बड़ी निंदा हुई. मगर सरकार ने इस पर कोई नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए दो शब्द कहने से भी गुरेज किया.

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मर रहे है  आम लोग…

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में संदिग्ध परिस्थितियों में दो लोगों की मौत हो गई. मौत शराब नहीं मिलने और  स्पिरिट पीने की वजह से हुई बताई जा रही है.दरअसल, लाॅकडाउन होने की वजह से शराब दुकानें  बंद है, फलत: कुछ  दोस्तों ने स्पिरिट पीकर अपनी लत दूर करने की कोशिश की, मगर  उन्हे अपनी  जिंदगी से हाथ धोना पड़ गया.यह  घटना रायपुर के गोलाबाजार थाना क्षेत्र में बाँसटाल की है. यहां रहने वाले तीन लोगों ने शराब की जगह स्पिरिट का सेवन कर लिया . इससे उनकी तबियत बिगड़ गई. फिर इनमें से दो लोग असगर खान (43 वर्ष) और दिनेश समुंदर (45 वर्ष) की मौत हो गई है. रायपुर के महापौर  एजाज ढेबर बताते हैं – जिस तरह कोरोना वायरस के मद्देनजर शराब की दुकानें बंद की गई है. यह उसका ही असर है. महापौर ने बताया  उनके पास यह खबर भी आई है कि एक युवक ने शराब ना मिलने की वजह से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली .

सरकार चाहती है प्याले छलका लो…

उपरोक्त दो युवकों की मौत की बिनाह पर भूपेश बघेल की सरकार यह पटकथा तैयार कर रही है कि कैसे शराब की दुकाने जल्द से जल्द छत्तीसगढ़ में खुल जाएं. दरअसल, यह माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में सरकार के हाथों में शराब दुकानें चल रही हैं जो  दुधारू गाय के समान है. इस बिजनेस से बेपनाह पैसा आता है. इसका सबसे ज्वलंत तथ्य यही है कि जब देशभर में 14 अप्रैल 2020 तक लाक डाउन है तब सरकार की तरफ से यह बात बारंबार सामने लायी गई है की आगामी 0 7 अप्रैल तक ही शराब दुकानें बंद हैं. यानी यह कहा जा सकता है कि जैसे ही हालत थोड़ी भी   सामान्य होंगे छत्तीसगढ़ की सरकार सबसे पहले देशी और विदेशी शराब की दुकानों पर खोल देगी. क्योंकि प्रतिदिन करोड़ों रुपए की इनकम सरकार को शराब से होती रही है. अब सच यही  है  की छत्तीसगढ़ की जनता, आम गरीब आदमी, भूखा मर जाए कोरोना  की चपेट में आकर  तिल तिल कर मर जाए, छत्तीसगढ़ की  सरकार को उससे कोई लेना देना नहीं है. लोकतंत्र के इस  संवैधानिक छत्रछाया में यह सब बेहद दर्दनाक और दुखद है.

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छत्तीसगढ़ मे छापे: भूपेश की चाह और राह!

छत्तीसगढ़ मे अचानक पड़ने वाले आयकर के छापों दबिश  से मानो प्रदेश की राजनीति पर बिजली गिर गई. छत्तीसगढ़ सरकार और आयकर विभाग  यानी केंद्रीय सत्ता आमने-सामने आ गए. आयकर विभाग के अधिकारियों पर दबाव बनाने उनकी गाड़ियां जप्त कर ली गई, सारा नाटक सुर्खिया  बनता रहा. प्रतिक्रिया दूर तलक गई . इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जाने अनजाने में इंवॉल्व कर दिया गया. छत्तीसगढ़ के संदर्भ में या अपने आप ने पहली घटना है जब संवैधानिक संस्था द्वारा की गई कार्यवाही पर प्रतिक्रिया इतनी तल्ख हो गई.

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से  छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुलाकात की. उन्हें इतना भी सब्र  नहीं रहा कि इस मसले पर मोबाइल पर, वीडियो कॉन्फ्रेंस पर हालात की जानकारी  दी जा सकती थी.मगर हडबडी ऐसी की सीधे सरकारी प्लेन पर दिल्ली कूच कर गए, जब मौसम बिगड़ा, तो रात राजस्थान जयपुर में गुजारनी पड़ी. यहां यह भी समझना होगा कि आयकर के छापों को क्या कांग्रेस के अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी रोक सकती है? अच्छा होता राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए भूपेश बघेल मुख्यमंत्री की बहैसियत सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से बात करते जिसका संदेश संपूर्ण प्रदेश में सकारात्मक साबित होता.

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 मत चूको चौहान

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कि राजनीतिक परिपक्वता यहीं पर दांव पर लग गई. जब उन्होंने केंद्रीय आयकर विभाग के छापों के बाद घबराकर प्रतिक्रिया व्यक्त करनी शुरू कर दी. ऐसे मामलों में उन्हें धीरज और समझदारी से अपने पद की गरिमा के अनुकूल व्यवहार करना चाहिए था. यह सब जानते हैं कि आयकर विभाग का छापा सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ सरकार को परिसर में लाने के लिए था मुख्यमंत्री और कांग्रेस सरकार के चहेते लोगों पर छापे पड़ना यह संकेत था कि छत्तीसगढ़ सरकार अपनी सीमा में रहे. ऐसे में सूझबूझ  की दरकार तो यही थी कि 15 वर्षों बाद सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में इस छापों से हमदर्दी हासिल करके दिखाती मगर छत्तीसगढ़ की जनता में इसका संदेश विपरीत चला गया मुख्यमंत्री के बड़े-बड़े सलाहकार सोते रह गए मानो उनके हाथों के तोते उड़ गए और स्वयं मुख्यमंत्री मत चूको चौहान की जगह झुक गए चौहान हो कर रह गए.

सोनिया गाँधी की परिक्रमा 

दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी से मुलाकात के दौरान कांग्रेस के प्रदेश के कर्णधार कहे जाने वाले  पीएल पुनिया भी मौजूद रहे. बघेल और पुनिया ने सोनिया गांधी से चर्चा की. चर्चा के दौरान बघेल ने प्रदेश में चल रहे आईटी छापा की जानकारी दी.मुलाकात कर बाहर निकलने के बाद बघेल और पुनिया ने पत्रकारों से चर्चा में कहा कि हमने राष्ट्रीय नेतृत्व आईटी छापा के बारे में पूरी जानकारी दे दी है. छापा के पीछे केन्द्र की राजनीतिक दुर्भावना साफ तौर देखी जा सकती है. राज्य सरकार को बिना सूचित किए जिस तरह से आईटी की कार्रवाई हुई यह पूरी तरह से संघीय ढाँचा के खिलाफ है. इस मामले में हम कानूनी सलाह लेकर आगे क्या करना इस बारे में सोचेंगे. हम केंद्र सरकार की किसी भी कार्रवाई से डरने वाले नहीं है.

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वहीं पीएल पुनिया ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार डरी हुई है. मोदी सरकार छत्तीसगढ़ में भाजपा के नेताओं और भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों पर हो रही कार्रवाई से घबराई हुई नज़र आती है. नान घोटाला से लेकर पनामा पेपर में जिस तरह भाजपा के नेता घिरे हुए और इस पर भूपेश सरकार की ओर से कराई जाँच को प्रभावित अब राज्य सरकार के खिलाफ आईटी कार्रवाई कर महौल बनाने की कोशिश कर रही है. राज्य सरकार को बिना भरोसे में लिए जिस तरह से कार्रवाई हुई वह संवैधानिक नहीं है. इस मामले को हम संसद सत्र में उठाएंगे.

इंकम टैक्स विभाग की ओर से 27 फरवरी  को मारे गए छापे की जानकारी चार दिनों बाद 2 मार्च  दी गई. उसमें विभाग द्वारा किसी व्यक्ति विशेष चाहे अधिकारी, व्यवसायी एवं राजनीति से जुड़े किसी के संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी दे पाने में असमर्थ रहे. इंकम टैक्स कमिश्नर सुरभि अहलुवालिया द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में केवल ग्रुप ऑफ इंडिविजुअल्स, हवाला कारोबारी, व्यवसायियों, शराब कारोबारी, खनिज कार्यों से जुड़े व्यापारी तथा अन्य प्रकरणों से जुड़कर धनराशि अर्जित करने वालों के घर छापे मारे गए.

प्रदेश में बीते चार दिनों से चल रहे आयकर विभाग की छापेमारी को लेकर अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर अपनी आपत्ति जताई है. मुख्यमंत्री ने छापा को राजनीति से प्रेरित बताते हुए इसमें केंद्रीय बल के इस्तेमाल को दुर्भाग्यपूर्ण और असंवैधानिक बताते हुए इसे कानूनी नजरिए से भी गलत बताया है.

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भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा के कुछ यक्ष-प्रश्न

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अमेरिका यात्रा प्रदेश में चर्चा का और आलोचना का सबब बनी हुई है. छत्तीसगढ़ सरकार का तर्क है भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा से छत्तीसगढ़ की शान, मान मे वृद्धि हुई है. अमेरिका से छत्तीसगढ़ उद्योग धंधे, पैसे आएंगे. जबकि विपक्ष विशेषकर डॉ. रमन सिंह और धरमलाल कौशिक ने भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि एक तरफ छत्तीसगढ़ में किसान त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, खून के आंसू बहा रहे हैं. सरकार धान का एक-एक दाना खरीदा नहीं पा रही है और मुख्यमंत्री अमेरिका जैसे समृद्ध देश में पिकनिक मना रहे है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा पर जिस तरह भाजपा हमलावर हुई है उससे कांग्रेस तिलमिला गई है और 15 वर्ष भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के विदेश यात्रा का ब्यौरा मांग रही है.कांग्रेस कहती है भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा सफल है भाजपा कहती है कि भूपेश बघेल  की यात्रा असफल है! और छत्तीसगढ़ की अस्मिता उड़ान पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली है. अब सवाल है कि यहां की आवाम अमेरिका यात्रा को लेकर क्या धारणा बनाती है या जिस तरह भाजपा के 15 वर्षों के कार्यकाल में डॉ रमन सिंह और उनका मंत्रिमंडल विदेश भ्रमण करता रहा,अधिकारी विदेश मे खरीददारी करते रहे वहीं सब कुछ कांग्रेस की सरकार में भी होगा? यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब शायद न कांग्रेस के पास है न भाजपा के पास.

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भूपेश बघेल की निवेशकों के साथ बैठक

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  ने पहले चरण में सैन फ्रांसिस्को में करीब 250 निवेशकों से संवाद किया. आधिकारिक  जानकारी के अनुसार, बघेल को अमेरिकी निवेशकों से छत्तीसगढ़ में उद्योग लगाने के लिए अनेक  प्रस्ताव मिले हैं. यात्रा के अगले पड़ाव के लिए मुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ की टीम बोस्टन गयी जहां बघेल इंस्टीट्यूट फॉर कम्पीटिटीवनेस में वहां के औद्योगिक प्रतिनिधियों को छत्तीसगढ़ में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया.

यात्रा के पहले पड़ाव में मुख्यमंत्री बघेल ने सैन फ्रांसिस्को के सिलिकन वैली और रेड वुड शोर्स में औद्योगिक प्रतिनिधियों और निवेशकों से सीधी चर्चा की.उन्होंने निवेशकों को बताया कि छत्तीसगढ़ ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के लिए भारत के शीर्ष राज्यों में शामिल है। उन्होंने भरोसा जताया कि छत्तीसगढ़ निवेश करने के लिए सबसे अच्छी जगह है, क्योंकि यह देश के मध्य में स्थित है और यहां बेहतर कनेक्टिविटी है.

उन्होंने कहा कि राज्य की नई औद्योगिक नीति निवेशकों के लिए काफी अनुकूल है।बघेल ने एक इंटरव्यू मे कहा, ”हमारा राज्य खनिज समृद्ध है और हमारे यहां खनिज आधारित कई उद्योग हैं। हम अमेरिका की कंपनियों और निवेशकों को आने तथा मुख्य क्षेत्रों में अवसर तलाशने का न्यौता देते हैं.”छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री  अमेरिका के कई शहरों की यात्रा पर रहे. वह इस दौरान विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर राज्य की, निवेशकों के अनुकूल और कारोबार सुगम नीतियों की जानकारी देते रहे .

भूपेश बघेल की दृष्टि 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि उनकी सरकार अगले कुछ साल राज्य के लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाने पर ध्यान देगी. राज्य सरकार गरीबी हटाने तथा खनिज, इस्पात एवं विद्युत जैसे मुख्य उद्योगों के साथ ही कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण, सूचना प्रौद्योगिकी, जैव इथेनॉल, इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र एवं परिधान, इंजीनियरिंग एवं रक्षा, उच्च शिक्षा, दवा, वाहन आदि जैसे क्षेत्रों के लिये भी प्रतिबद्ध है.

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मुख्यमंत्री के अनुसार, ” हमारा लक्ष्य लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाना है. यदि लोगों के पास खरीदने का पैसा नहीं हो तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम कितने उद्योग लगाते हैं.बघेल ने कहा कि इस संतुलन को बनाये रखने के लिये लोगों की क्रयशक्ति बढ़ाना महत्वपूर्ण है, जो अंतत: उद्योगों और कंपनियों को फायदा  छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल का अमेरिका की कंपनियों को राज्य में निवेश का न्योता दिया .

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अमेरिका की कंपनियों को राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार खनिज व इस्पात जैसे मुख्य क्षेत्रों के साथ ही छत्तीसगढ़ के सर्वांगीण विकास में ध्यान केंद्रित कर रही है.”

छत्तीसगढ़ : सुपर सीएम भूपेश चले अमेरिका!

छत्तीसगढ़ के सुपर सीएम बन चुके भूपेश बघेल अपनी प्रथम विदेश यात्रा पर “अमेरिका” के लिए निकल पड़े हैं. भूपेश बघेल 11 फरवरी  अर्थात आज से अमेरिका के दौरे पर रहेंगे. इस दौरान  मुख्यमंत्री सैनफ्रांसिस्को, बोस्टन और न्यूयौर्क में कुछ  कार्यक्रमों में शामिल होंगे. 15 से 16 फरवरी को हार्वर्ड में आयोजित ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ के विशेष चर्चा में शिरकत करेंगे , जहां ‘लोकतांत्रिक भारत में जाति और राजनीति’ विषय पर व्याख्यान भी देंगे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अमेरिका यात्रा इन दिनों छत्तीसगढ़ में चर्चा में है जहां सरकार यह बता रही है कि यह यात्रा अमेरिका के उद्योगपतियों को निवेश के लिए मील का पत्थर बनेगी  वहीं भाजपा नेताओं सहित  पहले  के सुपर  मुख्यमंत्री  रहे अजीत जोगी ने गहरे तंज किए हैं.अजीत जोगी ने यात्रा के एक दिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ छत्तीसगढ़ में पेंड्रा जिला के उद्घाटन मौके पर तंज का बाण चलाते हुए कहा – भूपेश बघेल अमेरिका जा रहे हैं,आज पेंड्रा जिला का उद्घाटन है उनसे आग्रह है कि “पेंड्रा जिला” को भी अमेरिका जैसा बना दें! अजीत जोगी आजकल भूपेश बघेल पर संकेतिक हमले कर रहे हैं. उनके इस तंज में छिपा हुआ है कि मुख्यमंत्री जी अमेरिका तो जा रहे हैं पेंड्रा और छत्तीसगढ़ क्या अमेरिका जैसा बन पाएगा!

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और यह सभी जानते हैं कि छत्तीसगढ़ ना कभी लंदन बन सकता है, अमेरिका या जापान अथवा चीन मगर राजनेता देशों का दौरा करके चाहते हैं हमारा राज्य भी विकसित हो जाए. यह कैसे होगा कब होगा यह जनता को सोचना होगा.अजीत जोगी के मेहमान स्वरूप उपस्थिति और तंज के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शालीनता से कहा कि पेंड्रा जिला को “अमेरिका” बनाने के लिए सभी का सहयोग चाहिए. जाहिर है मुख्यमंत्री ने सच को स्वीकार किया और यह संकेत दिया कि सत्ता के साथ-साथ विपक्ष के ताल पर ही छत्तीसगढ़ का “विकास” हो सकता है.

दरियादिल  मुख्यमंत्री भूपेश!

आपको बताते चलें कि छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल को लगभग सवा साल  हो गए हैं और यह आपकी पहली विदेश यात्रा है. जब इस अमेरिका यात्रा का समाचार सुर्खियों में आया तो विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर चरणदास महंत ने  बिना झिझक मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वह भी अमेरिका चलना चाहेंगे. मुख्यमंत्री ने दरियादिली दिखाते हुए अपने साथ अपने अग्रज राजनेता और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास को भी ले लिया है.इस तरह छत्तीसगढ़ के 2 बड़े राजनीतिज्ञ अमेरिका के राजकीय दौरे पर निकल पड़े हैं . ऐसे में याद आता है डॉ रमन सिंह के विदेश भ्रमण के अनेक दौरे, जो उन्होंने मुख्यमंत्री मंत्री रहते हुए किए थे और जनता ने इन दोनों का इस्तकबाल किया था.

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  10 दिवसीय अमेरिका प्रवास पर हार्वर्ड में आयोजित ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ में शामिल होने के साथ ही उद्योग से जुड़े विभिन्न प्रतिनिधियों से चर्चा कर उन्हें छत्तीसगढ़ में निवेश के लिए आकर्षित करेंगे, मुख्यमंत्री अमेरिका में रहने वाले छत्तीसगढ़ियों से भी मुलाक़ात करेंगे. इसके अलावा बोस्टन के गवर्नर और नोबल विजेता अभिजीत बनर्जी से मुलाक़ात का भी कार्यक्रम है.

भूपेश बघेल का ‘दिल’

बता दें ‘इंडिया कॉन्फ्रेंस’ मूल रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत पर ध्यान केंद्रित करने वाले सबसे बड़े छात्र-सम्मेलन में से एक है. यह हार्वर्ड बिजनेस स्कूल और हार्वर्ड केनेडी स्कूल में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के स्नातक छात्रों द्वारा आयोजित किया जाता है. इनकी 17वीं वर्षगांठ पर 15 और 16 फरवरी को भूपेश बघेल व डाक्टर  चरणदास महंत  कार्यक्रम में शामिल होंगे. यहां उल्लेखनीय है कि जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  अमेरिका जाने ही वाले थे जब पत्रकारों ने उन्हें घेरा और अमेरिका यात्रा पर बातचीत की तब भूपेश बघेल ने कहा वे भले ही 10 दिनों के लिए अमेरिका जा रहे हैं मगर उनका “दिल” तो छत्तीसगढ़ में ही रहेगा.

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सीमेंट : भूपेश, विपक्ष और अफवाहें

छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल सीमेंट के मसले पर इन दिनों विपक्ष भाजपा और आम जनता के निशाने पर है. कांग्रेस की सरकार आने के बाद अब धीरे-धीरे ही सही माफियाओं के मुंह खुलने लगे हैं. जिनमें सबसे आगे है- सीमेंट के बड़े कारोबारी और फैक्ट्रियां.  यह चर्चा सरगम है कि फैक्ट्रियों को खुली छूट दे दी गई है, की दाम आप बढ़ा लो! सत्ता और सीमेंट किंग आपस में एक हो चुके हैं. परिणाम स्वरूप सीमेंट के भाव बेतहाशा बढ़ते चले गए. लगभग प्रति बैग 20 रुपये  का अतिरिक्त भार अब उठाना होगा.

प्रदेश में इस मसले पर एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है सीमेंट के साथ-साथ रेत माफिया भी करोड़ों रुपए का खेल कर रहा है. वहीं यह भी खबर आ रही है कि स्टील के दाम भी बढ़ने जा रहे हैं. यह सब भूपेश बघेल की सरकार के समय हो रहा है जिन्होंने लंबे समय तक विपक्ष की राजनीति करते हुए इन्हीं मसलों पर डॉक्टर रमन सरकार को घेरा था.

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इधर सीमेंट की कीमतों में हो चुके  इजाफे से  सियासत गरमाते जा रही है. नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर राज्य सरकार पर उद्योगपतियों से सांठगांठ का खुला  आरोप लगा दिया  है. कौशिक ने कहा कि महीनेभर के भीतर दो बार सीमेंट के दाम बढ़ना कई सवाल खड़ा करता है. उद्योगपतियों और सरकार की मिलीभगत से छत्तीसगढ़ की जनता के जेब मे “डाका” डाला जा रहा है.कौशिक ने कहा कि सरकार जिस प्रकार से गुपचुप तरीके से उनके साथ बैठकें कर रही है, उस समय आरोप लगाया था कि सीमेंट के दामों में वृध्दि होगी. लेकिन उनके प्रवक्ता ने कहा था कि धरमलाल कौशिक के पास कोई काम नहीं है. मैं जिस बात को बोलता हूं प्रमाणिकता के साथ बोलता हूं, आज वो बात सच साबित हो गई कि ये लोग सीमेंट के रेट को कैसे बढ़ा रहे हैं. सरकार ने उद्योगपतियों के सामने घुटने टेक दिए हैं, इसका क्या कारण है वो मैं नहीं जानता लेकिन इनकी मिलीभगत से ये संभव नहीं है.

एक करोड़ का डाका!!

धरमलाल कौशिक ने जो आरोप लगाए हैं वह सोचने को विवश करते हैं और सच्चाई के निकट प्रतीत होते हैं  उन्होंने कहा,  छत्तीसगढ़ में सीमेंट के जो उपभोक्ता हैं खासकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो काम चल रहा है, अब उसका रेट बढ़ेगा. छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से 1 करोड़ प्रतिदिन के हिसाब से डाका डाला जा रहा है.

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महीने के हिसाब से छत्तीसगढ़ के लोगों के जेब से निकाला जा रहा है ये अत्यंत दुर्भाग्य जनक घटना है.  भूपेश सरकार को इस पर रोक लगानी होगी मै उद्योगपतियों से भी आग्रह करूंगा कि रेट कम करें. छत्तीसगढ़ की फिजा में सीमेंट रेट  स्टील चर्चा का सबब बने हुए हैं गली चौराहे और नुक्कड़ पर सीमेंट की बेतहाशा दाम बढ़ने पर चर्चा हो गई है सीधे-सीधे इसका असर कांग्रेश की भूपेश सरकार की छवि पर पड़ रहा है.

सीमेंट के दाम पर घमासान

छत्तीसगढ़ में सीमेंट के बढ़ते  दाम  सियासी मुद्दा बन जाते हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय काल 2003 में यहां सीमेंट की कीमत  प्रति बैग सौ स्र्पये से  भी कम थी.राजनीति  घुसी तो 2004 में दाम सीधे 120 स्र्पये प्रति बैग हो गया. 2005 के शुरूआत में डॉ रमन सिंह के आशीर्वाद से सीमेंट के दाम 155  रुपए और 2006 में यह दाम सीधे 200 के पार पहुंच गया.

जब- जब दाम बढ़े तब-तब इसका विरोध भी होता  है .आगे सन 2008 में दाम सीधे 250 से 300 पहुंच गये.अजीत जोगी  और जनता ने इस वृद्धि का  तीव्र विरोध  किया.भाजपा  सरकार पर सीमेंट कंपनियों से मिलीभगत सरंक्षण  का आरोप लगा. आगे  आर्थिक मंदी के कारण सीमेंट के दाम गिर कर  250 तक पहुंच गये. दिसंबर 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के समय दाम 225 से 230 रुपये ही था.

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भूपेश बघेल: धान खरीदी का दर्द!

छत्तीसगढ़ में  किसान के लिए धान बेचना एक दर्द, यातना बन गया है, तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए धान खरीदी सरदर्द बन चुकी है. सरकार का एक ऐसा कदम, जिसके लिए कहा जा सकता है कि “ना उगलते बने न निगलते बने”. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, यहां  धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर, सरकार बोनस के साथ किया करती थी.

एक उत्सव के रूप में, गांव गांव में किसान खुशहाल दिखाई देते थे.धान मंडियों में किसानों का मेला लगा रहता था. रमन सिंह के समयकाल में  2100 रुपए कुंटल में सरकार धान खरीदी किया करती थी. मगर किसानों को खुश करने के लिए भूपेश बघेल ने एक बड़ा दांव चला कि कांग्रेस सरकार आती है तो 2500 रुपये  क्विंटल धान का दिया जाएगा. और 2018 के विधानसभा चुनाव में इसी मुद्दे पर भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया. अब स्थितियां बदल रही है भूपेश सरकार के पास किसानों के लिए  25 सौ रुपये  तो है नहीं, हां! आश्वासन का एक बड़ा पिटारा जरूर है.

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इस रिपोर्ट में हम धान खरीदी को लेकर के ग्राउंड की सच्चाई को आपके सामने प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे. हमारे संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के 4 जिलों रायपुर, बेमेतरा,  जांजगीर, कोरबा  के किसानों से बातचीत की जिस का सारांश प्रस्तुत है-

भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने 

धान खरीदी मामले को लेकर भाजपा कांग्रेस  आमने-सामने है. भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा है. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के बयान को लेकर बीजेपी ने बड़ा आरोप लगाया है. प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने कहा कि मंत्री अमरजीत भगत का ये कहना कि खरीदी की तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी!कांग्रेस सरकार की किसान विरोधी मानसिकता को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि “पंचायत चुनाव” निपटते कांग्रेस का नकाब उतर गया है. कांग्रेस ने अब अपना असल चेहरा दिखा दिया है. कांग्रेस का यही चरित्र है. बीजेपी लगातार कांग्रेस की मंशा को लेकर सवाल उठाती रही है.

उसेंडी ने कहा कि किसानों को धान ख़रीदी के नाम पर “ख़ून के आँसू” रुलाने वाली सरकार ने धान ख़रीदी की मियाद नहीं बढ़ाने का एलान करके अपने अकर्मण्यता का  परिचय दिया है. भूपेश सरकार द्वारा पहले धान ख़रीदी एक माह विलंब से शुरू की गई और किसानों का पूरा धान 25सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर पर ख़रीदने से बचने के लिए नित-नए नियमों के तुगलकी फ़रमानों का छल-प्रपंच रचा गया, धान की लिमिट तय करके किसानों को चिंता में डाला, धान का रक़बा घटाने तक का  कृत्य तक किया, ख़रीदी केंद्रों से धान का समय पर उठाव नहीं करके धान ख़रीदी में दिक़्क़तें पैदा कीं और इस तरह पिछले वर्ष के मुक़ाबले इस साल लाखों मीटरिक टन धान कम ख़रीदा गया.

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भाजपा के एक बड़े नेता शिवरतन शर्मा ने ने कहा कि खाद्य मंत्री का यह एलान किसानों के साथ दग़ाबाज़ी का प्रदेश सरकार द्वारा लिखा गया काला अध्याय है और कांग्रेस को इस दग़ाबाज़ी की समय पर भारी क़ीमत  चुकानी  पड़ेगी.

भाजपा के समय काल में संसदीय सचिव रहे लखन देवांगन कहते हैं  पंचायत चुनावों के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धान ख़रीदी की समय-सीमा बढ़ाने की बात कही थी, तो अब मुख्यमंत्री को यह सफाई देनी ही होगी कि उनके वादे के बावजूद उनकी सरकार के मंत्री किस आधार पर समय-सीमा नहीं बढ़ाने की बात कह रहे हैं?

छत्तीसगढ़ में भाजपा के बड़े नेता चाहे वे डॉ रमन सिंह हों अथवा विक्रम उसेंडी सभी एक सुर में भूपेश बघेल सरकार को धान खरीदी के मसले पर घेर चुके हैं. मगर कहते हैं ना सत्ता कठोर होती है वह हाथी की मदमस्त चाल से अपनी ही धुन में चलती है वही सत्य छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है.

किसानों के चेहरे मुरझाए क्यों हैं?

छत्तीसगढ़ में धान खरीदी के दरमियान किसान और आम आदमी जहां प्रसन्न दिखाई देता था वहीं आजकल किसान और गांव के आम आदमी दुखी, पीड़ित दिखाई देते हैं. किसान को पटवारी के यहां, राजस्व निरीक्षक के यहां, तहसीलदार के यहां कई कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. खाद्य अधिकारियों की नकेल कसी हुई है. एसडीएम और कलेक्टर की निगाह एक एक किसान पर लगी हुई है. कहीं कोई किसान पीछे दरवाजे से सरकार को इधर उधर का धान न थमा दे.

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किसानों की ऐसी निगरानी की जा रही है, मानो किसान कोई अपराधी हो. एक किसान ने बताया कि स्थिति इतनी बदतर है कि हमारे बच्चों के लिए चॉकलेट खरीदने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं! एक अन्य  किसान के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में धान बिक नहीं पाया तो चुनाव में हम कुछ भी खर्च  नहीं कर पाए. इन्हीं विसंगतियों के बीच धान खरीदी का उपक्रम जारी है. जो मात्र अब 10 दिन बच गया है. मगर बीते दो महीने किसानों के लिए एक त्रासदी, पीड़ा और दर्द छोड़ कर गया है जो शायद किसान कभी नहीं भूल पाएगा.

इस दरमियान छत्तीसगढ़ सरकार की धान खरीदी नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ की अनेक जिलों में किसानों ने चक्का जाम किया आंदोलन किया मगर सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी .  शायद भूपेश बघेल सरकार यह कहना चाहती है कि हे किसान! अगर पच्चीस सौ रुपये कुंटल में धान बचोगे तो सरकार के नियम कायदे रूपी प्रताड़ना से तो गुज़रना ही होगा. अंतिम  मे यह कि भूपेश बघेल स्वयं को किसान कहते हैं उनसे यही गुजारिश है कि एक  दिन भेष बदलकर किसी अनजान गांव, अनजान किसानों के बीच पहुंच जाएं और उनसे बात कर ले तो सारा सच उनके सामने खुली किताब की तरह होगा.

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