राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत का छत्तीसगढ़ में आगमन हुआ है. वैसे तो आम भाषा में यह कहा जाता है कि संघ एक सामाजिक हिंदुत्ववादी जागृति मंच है उसका राजनीति से कोई सरोकार नहीं है.

मगर सभी जानते हैं कि उसका एजेंडा देश  प्रदेश में भाजपा को सत्ता सिंहासन  तक पहुंचाना है. अब जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की चूले  हिली हुई हैं. उसकी बुरी स्थिति है. संघ प्रमुख का छत्तीसगढ़ दौरा अनेक अर्थों को बयां करता है. आम आदमी किसी भी विशिष्ट  जन के आगमन को सामान्य रूप से लेता है. मगर राजनीतिक दुकानदारी में हर एक राजनीतिक दल ऐसे मौकों पर अपनी पैनी निगाह रखता है.

संघ प्रमुख के दौरे पर भी कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपने-अपने तरकश के तीर चलाते रहे हैं. जहां कांग्रेस अपनी तीक्ष्ण नजर  डॉक्टर मोहन भागवत की दौरे पर रखे हुए थी वहीं भाजपा में भी अंदरखाने घात प्रतिघात का दौर चलता रहा. इस रिपोर्ट में डॉक्टर मोहन भागवत के छत्तीसगढ़ प्रवास की हलचल को समझने का प्रयास किया गया है.

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यहां यह बताना लाजिमी होगा कि डॉक्टर मोहन भागवत के छत्तीसगढ़ प्रवास को प्रारंभ से ही राजनीति से दूर बताया गया और उद्घोषणा की गई थी की भागवत किसी भी राजनीतिक शख्स से नहीं मिलेंगे. जो सिरे से ही एक सफेद झूठ है. तीन दिवसीय दौरे की सच्चाई यह है कि कोरोना वायरस के इस संक्रमण काल में भी सारे नियम कायदों को धता बताते हुए डॉक्टर मोहन भागवत कथित रूप से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए संघ और भाजपा के दिग्गज  जनों से अलग-अलग बैठक करते रहे. भाजपा के प्रथम पंक्ति के नेता डॉ रमन सिंह, धरमलाल कौशिक बृजमोहन अग्रवाल ने कोई  बयां जारी नहीं किया मगर भीतर कि आग आखिर धुआं बनकर संपूर्ण राजनीतिक फिज़ा में फैल गई. जब संघ के दाएं हाथ कहे जाने वाले भाजपा के उपाध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने ने अपना दृष्टिकोण मीडिया में  रखकर भाजपा की खामियां गिना दी.

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