अंधविश्वास की बलि चढ़ती महिलाएं

छत्तीसगढ़ देश दुनिया का एक अजूबा राज्य है. दरअसल, छत्तीसगढ़ का ज्यादातर हिस्सा वन प्रांतर है, यहां बस्तर है, अबूझमाड़ है. यहां सरगुजा का पिछड़ा हुआ अंचल है तो रायगढ़ मुंगेली आदि जिलों की गरीब बेबस लाचार आवाम का रहवास भी.

यहां शिक्षा का स्तर निम्नतम है वहीं जीवन स्तर भी बेहद निम्न. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात जिस विकास और उजाले की उम्मीद यहां की आवाम कर रही थी उसका कहीं पता नहीं है. और आज भी दशकों पूर्व जैसा माहौल है आज भी यहां अंधविश्वास में महिलाओं की छोटी सी बात पर बेवजह हत्या हो जाती है. हाल ही में अंधविश्वास और टोना टोटका का एक मामला राज्य के रायगढ़ जिला के पास थाना पूंजीपथरा के बिलासखार में घटित हुआ. पत्नी की तबियत खराब रहने पर जादू टोने की शंका में 50 वर्षीय मीरा बाई की मुदगल (लकड़ी के गदा) से सिर में मार कर हत्या कर दी गई और यही नहीं घटना के बाद शव को जला दिया. बाद में घटना की रिपोर्ट मृतका के भाई किर्तन राठिया निवासी ग्राम पानीखेत द्वारा सात जुलाई को दर्ज करायी.

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पुलिस  बताती है कथित आरोपी राजू की पत्नी की तबीयत खराब रहती थी तब राजू शंका करता था कि मीराबाई जादू टोना करती है. छह जुलाई को राजू की पत्नी की तबीयत खराब होने पर राजू गुस्से में आकर घर में रखें लकड़ी के मुगद्ल गदा से महिला के सिर में ताबड़तोड़ वार कर हत्या कर  देता है. यहां अंधविश्वास में महिलाओं की अक्सर क्रूरतम  हत्या हो जाती है और शासन-प्रशासन सिर्फ औपचारिकता निभाता हुआ आंखें मूंदे हुए हैं.

अंधविश्वास का संजाल

छत्तीसगढ़ आसपास के अनेक राज्यों में जहां आदिवासी बाहुल्य हैं अंधविश्वास को लेकर के महिलाओं की हत्या हो जाती है.छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य झारखंड के साहिबगंज जिले के राधानगर थाना क्षेत्र की मोहनपुर पंचायत के मेंहदीपुर गांव की मतलू चाैराई नामक एक 60 वर्षीय महिला की हत्या डायन बताकर कर दी गई. जिस व्यक्ति ने हत्या की उसे यह शक था कि इसने उसके बेटे को जादू टोना कर मारा है. महिला की हत्या गांव के सकल टुडू ने विगत  7 जुलाई को गला काट कर की और दुस्साहसिक  ढंग से और धड़ से कटे सिर को लेकर बुधवार 8 जुलाई की सुबह वह थाने पहुंच गया.

पुलिस बताती है कि कि आरोपी का 25 वर्षीय बेटा साधिन टुडू बीमार था. उसे सर्दी खांसी थी और सोमवार 6 जुलाई की शाम उसकी मौत हो गई. उसकी मौत के बाद गांव में यह अफवाह फैल गई कि जादू टोना कर मतलू चाैराई ने उसकी जान ले ली. इसके बाद साधिन का पिता अपने बेटे का अंतिम संस्कार करने के बजाय महिला की हत्या तय करने का ठान लिया. उसने मंगलवार 7 जुलाई की रात मतलू की गर्दन काट कर हत्या कर दी और कट हुआ सिर लेकर अगली सुबह राधानगर थाना पहुंच गया.

इससे पहले हाल में ही रांची जिले के लापुंग में दो भाइयों ने मिल कर अपनी चाची की डायन होने के संदेह में हत्या कर दी थी. रांची जिले के लापुंग थाना क्षेत्र के चालगी केवट टोली की रहने वाली 56 वर्षीया फुलमरी होनो की हत्या शनिवार 4 जुलाई को उनके दो भतीजों ने धारदार हथियार से कर दी. जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है ऐसा कोई महीना नहीं व्यतीत होता जब कुछ पुरुष और महिलाओं की तंत्र मंत्र के नाम पर हत्या नहीं हो जाती.

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आवश्यकता जागरूकता की

छत्तीसगढ़ सहित देश में ऐसे अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता की दरकार अभी भी बनी हुई है इसके लिए छत्तीसगढ़ में टोनही अधिनियम बनाया गया है मगर वह भी कागजों में सिमटा हुआ है ऐसे में लगभग तीन दशक से अंधविश्वास और तंत्र मंत्र के खिलाफ जागरूकता फैला रहे डॉक्टर दिनेश मिश्रा की पहल एक आशा की किरण जगाती है.

डॉ. दिनेश मिश्र  के अनुसार  अंधविश्वास में  की गई ये हत्याएं अत्यंत शर्मनाक व दुःखद हैं. जादू टोने जैसे मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं है और कोई महिला डायन/टोनही नहीं होती. यह अंधविश्वास है, जिस पर ग्रामीणों को भरोसा नहीं करना चाहिए. विभिन्न बीमारियों के अलग-अलग कारण व लक्षण होते हैं. संक्रमण, कुपोषण, दुर्घटनाओं से लोग अस्वस्थ होते है, जिसका सही परीक्षण एवं उपचार किया जाना चाहिए. किसी भी बैगा, गुनिया के द्वारा फैलाये भ्रम व अंधविश्वास में पड़ कर कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए. मगर सच तो यह है कि शासन, प्रशासन व छत्तीसगढ़ की सामाजिक संस्थाएं हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई हैं और महिलाएं अंधविश्वास की चपेट में आकर मारी जा रही है.

धर्म के नाम पर औरतों को भरमाता सोशल मीडिया

हाल ही में भारत ने चीन के मशहूर एप ‘टिकटौक’ पर बैन लगा दिया है. अब इस से भारत को कितना फायदा होगा या नुकसान, यह हमारा मुद्दा नहीं है, बल्कि हम तो उस बात से चिंतित हैं, जो सदियों से भारतीय समाज को धर्म के नाम पर घोटघोट कर पिलाई गई है खासकर औरतों को कि अगर वे अपने पति की सेवा करेंगी तो घर में बरकत होगी, बरकत ही नहीं छप्पर फाड़ कर रुपया बरसेगा. इस पूरे प्रपंच में धन की देवी लक्ष्मी और विष्णु का उदाहरण दिया जाता है और साथ ही उन छोटे देवता रूपी ग्रहों का सहारा लिया जाता है, जो अगर अपनी चाल टेढ़ी कर दें तो अच्छेखासे इनसान की जिंदगी में कयामत आ जाए.

पहले हम सोशल मीडिया के समुद्र में तैर रहे एक छोटे से वीडियो की चर्चा करेंगे, जो देखने में एकदम आम सा लगेगा, पर वह हमारी बुद्धि को भ्रष्ट करने की पूरी ताकत रखता है. एक मजेदार बात यह कि वह अलगअलग लोगों द्वारा अलगअलग घरों और माहौल में बनाया गया है, पर अंधविश्वास का जहर पूरे असर के साथ हमारे दिमाग में भर देता है.

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वीडियो की शुरुआत कुछ इस तरह होती है कि एक साधारण से कमरे में एक पलंग बिछा है और उस पर एक ठीकठाक रूपरंग की शादीशुदा औरत बैठी अपने पति के पैर दबा रही है.

अगर कमरे की बात करें तो यह एक लोअर मिडिल क्लास परिवार का लगता है, जहां उस औरत के बगल में एक टेबल फैन रखा हुआ है और पलंग भी ज्यादा महंगा नहीं है. वह औरत जिस आदमी के पैर दबा रही है उस का चेहरा नहीं दिखाया गया है, पर जिस तरह से वह औरत उस आदमी के पैर दबा रही है, वह एक ‘राजा बाबू’ टाइप आदमी ज्यादा लग रहा है.

अब आप पूछेंगे कि भाई इस वीडियो में खास क्या है? तो खास यह है कि वीडियो में जिस औरत का प्रवचननुमा ज्ञान सुनाई दे रहा है, वह है असली मुद्दे की जड़.

दरअसल, जब वह औरत अपने पति के पैर दबा रही होती है, तो बैकग्राउंड में किसी औरत की आवाज सुनाई देती है, ‘हरेक पत्नी को अपने पति के पैर रोज दबाने चाहिए. इस का कारण यह है कि मर्दों के घुटनों से ले कर उंगली तक का भाग शनि होता है और स्त्री की कलाई से ले कर उंगली तक का भाग शुक्र होता है. जब शनि का प्रभाव शुक्र पर पड़ता है तो धन की प्राप्ति के योग बनते हैं. आप ने अकसर देखा होगा तसवीरों में कि लक्ष्मीजी विष्णुजी के पैर दबाती हैं.’

इसी तरह का एक और वीडियो परखते हैं. यह सीन भी तकरीबन पहले सीन की तरह ही है, पर किरदारों के साथसाथ माहौल बदल गया है और स्क्रिप्ट के संवाद भी. इस सीन में दिखाई गई खूबसूरत औरत ने किसी सैलून से अपने बाल कलर करा रखे हैं और वह मौडर्न कपड़े पहने हुए है. हाथ पर टैटू बना है और कलाई पर स्मार्ट वाच बंधी है. घर भी अच्छाखासा लग रहा है. पर पलंग के बदले पत्नी सोफे पर बैठी अपने पति के पैर दबा रही है.

लगे हाथ बैकग्राउंड से आती आवाज का भी लुत्फ उठा लेते हैं. औरत बोल रही है, ‘मेरे पति हैं मेरा गुरूर. मुझ को अपनी पलकों पर बैठाते हैं, दिनभर मेहनत कर के कमाते हैं, पर मेरी हर फरमाइश पर दोनों हाथों से लुटाते हैं. शाम को जब थकेहारे घर आते हैं, फिर भी मुझे देख कर मुसकराते हैं.’

इन दोनों वीडियो में पत्नी अपने पति के पैर दबा रही है. वैसे, किसी के पैर दबाने में कोई बुराई नहीं है, पर जिस तरह से औरत को मर्द के पैर दबाते दिखाया गया है, वह बड़ा सवाल खड़ा करता है कि आज के जमाने में जहां औरतें किसी भी तरह से मर्दों से कम नहीं हैं, वहां इस तरह के वीडियो बनाने और दिखाने का मकसद क्या हो सकता है?

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दरअसल, यह सब उन पोंगापंथियों की चाल है, जो नहीं चाहते हैं कि औरतों को वाकई मर्दों के बराबर समझा जाए, इसलिए उन्हें धर्म की चाशनी में डुबो कर ज्ञान दिया जाता है कि पुराणों में जो लिखा है वह ब्रह्मवाक्य है और जब धन की देवी लक्ष्मी अपने नाथ विष्णु के पैर दबा कर पूरी दुनिया के धन की मालकिन बन सकती हैं, तो आप भी अपने पति के पैर दबा कर धन के घर आने का रास्ता तो बना ही सकती हैं.

यहां पर लक्ष्मी और विष्णु का ही उदाहरण ही नहीं लिया गया है, बल्कि 2 ग्रहों शनि और शुक्र का भी मेल मिलाया जाता है. हमारे दिमाग में भर दिया गया है कि शनि और शुक्र जैसे तमाम ग्रह बड़े मूडी होते हैं, उन्होंने जरा सी भी चाल टेढ़ी की नहीं, हमारी शामत आ जाएगी. ऐसा भरम फैला दिया गया है कि औरत को लगे अगर वह अपने हाथों से पति परमेश्वर के पैर नहीं दबाएगी तो लक्ष्मी रूठ जाएगी.

पर ऐसा कैसे हो सकता है? अगर हर पत्नी के हाथों में शुक्र की ताकत और उस के पति के पैरों में शनि का वास है और उन के मेल से घर में धनवर्षा होती है, तो फिर सब को शादी के बाद यही काम करना चाहिए. पति पलंग तोड़े और पत्नी अपने हाथों से उस के पैर दबाए. घर की सारी तंगी दूर हो जाएगी. जब पैसा अंटी में होगा तो कोई क्लेश भी नहीं होगा. हर तरफ खुशहाली का माहौल होगा और हर दिन त्योहार सा मनेगा.

दूसरा वीडियो धर्म के अंधविश्वास को तो बढ़ावा नहीं देता है, पर यह दिखाता है कि पति चाहे कैसा भी हो, अगर वह किसी औरत यानी अपनी पत्नी को पाल रहा है तो उस के पैर ही नहीं दबाने हैं, बल्कि उन्हें अपने सिरमाथे पर लगा कर रखना है, जिस से वह हमेशा आप पर दोनों हाथों से रुपए लुटाता रहे.

इन दोनों वीडियो की गंभीरता इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि इन में दिखाई गई औरतें पढ़ीलिखी लग रही हैं और शहर में रहती हैं. पक्का मकान है और दूसरी सुखसुविधाएं भी मौजूद हैं. हो सकता है वे खुद भी कमाई करती हों या फिर गृहिणी ही सही, लेकिन देहाती और अनपढ़ तो कतई नहीं हैं.

जब इस तरह की औरतों को ही औरतों की तरक्की का दुश्मन दिखाया जाए तो समझ लीजिए, मामला आप को उलझाने के लिए बुना गया है. जब से धर्म की हिमायती सरकार इस देश में आई है, सनातन के नाम पर उस हर चीज को खूबसूरती के साथ पेश किया जाने लगा है, जो तर्क की कसौटी पर कहीं नहीं टिकती है. सीधी सी बात है कि आज के महंगाई के जमाने में पत्नी अपने पति के पैर दबा कर या उस के चरण अपने माथे पर लगा कर घर को धनवान या खुशहाल नहीं बना सकती है, पर अगर वह पति की तरह अपने कंधे पर लैपटौप टांग कर किसी मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करती है तो परिवार में दोहरी कमाई का सुख जरूर दे सकती है. अगर वह हाउस वाइफ है तो क्या हुआ, घर को सजासंवार कर रख सकती है, घर का हिसाबकिताब अपने हाथ में ले कर पति की चिंता को आधा कर सकती है.

चलो मान लिया कि पति थकाहारा घर आया है और चाहता है कि कोई उस के पैर दबा कर थकान मिटा दे, तो एक अच्छे जीवनसाथी की तरह उस की यह फरमाइश पूरी करने में कोई हर्ज नहीं है. पर अगर ऐसा ही पत्नी चाहती है तो पति को भी अपनी पत्नी के पैर दबाने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए. इस से शुक्र और शनि जैसे ग्रह नाराज हो जाएंगे, यह तो पता नहीं पर पतिपत्नी का प्यार जरूर बढ़ जाएगा. धनवर्षा न सही प्यार की बारिश जरूर हो जाएगी.

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छुआछूत से जूझते जवान लड़के लड़कियां

भले ही हम आधुनिक होने के कितने ही दाबे कर लें,मगर दकियानूसी ख्याल और परम्पराओं से हम बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. आज भी समाज के एक बड़े तबके में फैली छुआछूत की समस्या कोरोना रोग से कम नहीं है. छुआछूत केवल गांव देहात के कम पढ़े लिखे लोगों के बीच की ही समस्या नहीं है,बल्कि इसे शहरों के सभ्य और पढ़ें लिखे माने जाने वाले लोग भी पाल पोस रहे हैं.सामाजिक समानता का दावा करने वाले नेता भी इन दकियानूसी ख्यालों से उबर नहीं पाए हैं.

जून माह के अंतिम हफ्ते में मध्यप्रदेश में सोशल मीडिया चल रही एक खबर ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी.   रायसेन जिले के एक कद्दावर‌ भाजपा नेता रामपाल सिंह  के घर पर आयोजित किसी कार्यक्रम का फोटो वायरल हो रहा है, जिसमें भाजपा के नेता स्टील की थाली मेंं और डॉ प्रभुराम चौधरी डिस्पोजल थाली में एक साथ खाना खाते दिखाई दे रहे हैं.ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और हाल ही मंत्री बने डॉ प्रभु राम चौधरी अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं हैं. यैसे में सवाल उठ रहे हैं कि प्रभुराम चौधरी को डिस्पोजल थाली में क्यों खाना खिलाया गया. इस घटनाक्रम को मप्र कांग्रेस ने  दलितों का अपमान बताया है.

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सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस फोटो में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए  डॉ प्रभु राम चौधरी, सिलवानी के भाजपा विधायक रामपाल सिंह, सांची के भाजपा विधायक सुरेंद्र पटवा और भाजपा के संगठन मंत्री आशुतोष तिवारी के साथ भोजन करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसमें बीजेपी के संगठन मंत्री आशुतोष तिवारी स्टील की थाली में भोजन खाते हुए दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उनके सामने बैठे डॉ प्रभु राम चौधरी डिस्पोजेबल थाली में खाना खा रहे हैं.  कांग्रेस के पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का कहना है कि प्रभु राम चौधरी को डिस्पोजेबल थाली में भोजन परोसा जाना अनुसूचित जाति वर्ग का अपमान है. यह  दलितों को लेकर भाजपा की सोच को जाहिर करता है.

समाज में जाति गत भेदभाव कोई नई बात नहीं है. आये दिन देश के अलग-अलग इलाकों में दलितों से छुआछूत रखने और उन पर अत्याचार करने की घटनाएं होती रहती हैं.आज भी गांव कस्बों के सामाजिक ढांचे में ऊंची जाति के दबंगों के रसूख और गुंडागर्दी के चलते दलित और पिछड़े वर्ग के लोग जिल्लत भरी जिंदगी जी रहे हैं.गांवों में होने वाले शादी और रसोई में दलितों को खुले मैदान में बैठकर खाना खिलाया  जाता है और और खाने के बाद अपनी पत्तलें उन्हें खुद उठाकर फेंकना पड़ता है.शिक्षक मानकलाल अहिरवार बताते हैं कि गांवों में मज़दूरी का काम दलित और कम पढ़े लिखे पिछड़ो को करना पड़ता है.  दबंग परिवार के लोग अपने घर के दीगर कामों के अलावा अनाज बोने से लेकर फसल काटने तक के सारे काम करवाते हैं और  बाकी मौकों पर छुआछूत रखते हैं. इस छुआछूत बनाये रखने में  पंडे पुजारी धर्म का भय दिखाते हैं.

ऊंची जाति के दबंग दिन के उजाले में दलितों को अछूत मानते हैं और मौका मिलने पर रात के अंधेरे में दलितों की बहन, बेटियों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं. यही हाल अपने आपको श्रेष्ठ समझने वाले पंडितों का भी है,जो दिन में तो कथा,पुराण सुनाते हैं और रात होते ही शराब की बोतलें खोलते हैं.

*कैसे निपटते जवान लड़के लड़कियां*

पुरानी पीढ़ी के लोगों को तो पंडे पुजारियों ने समझा दिया था कि तुम दलित के घर पैदा हुए हो,तो जीवन भर तुम्हें दबंगों की गुलामी करनी होगी. बिना पढे लिखे लोगों ने इसे काफी हद तक स्वीकार कर भी लिया था, लेकिन पढ़ें लिखे जवान लड़के-लड़कियां समाज में  फैली छुआछूत की इस समस्या से ज्यादा जूझ रहे हैं.

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छुआछूत की वजह से दलित नौजवान समाज के ऊंची जाति के लोगों से दूरी रखने लगे हैं.शादी, विवाह और दूसरे खुशी के मौके पर बैंड बाजा बजाने वाले बृजेश बंशकार ने बताया कि   हमसे बैंड बजवाकर लोग खुशियां तो मनाते हैं, लेकिन छुआछूत की भावना रखकर हमारे लिए खाना के लिए अंदर नहीं बुलाते हैं,खुले मैदान और गंदी जगह पर बैठा कर  हमें खाना परोसा जाता है.  आड़ेगांव कला के धोबी  का काम कर रहे  युवा सुरेंद्र रजक ने बताया कि हम घर-घर जाकर लोगों के गंदे कपड़ों के धोने के बाद साफ कपड़े लेकर उनके घर जाते हैं तो हमें घृणा की नजरों से देखते हैं.

हरिओम नाई अपने सेलून पर हजामत बनाने का काम  करते हैं. वे कहते हैं कि यदि हम दलित वर्ग के लोगों की दाढ़ी, कटिंग करते हैं,तो ऊंची जाति के लोग हमारी दुकान पर नहीं आते और हमें भला बुरा भी कहते हैं.  प्रदेश की राजधानी भोपाल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर संतोष अहरवाल ने बताया कि भोपाल ,इंदौर , जबलपुर जैसे शहरों में भी कहीं ना कहीं जातिगत भेदभाव होता है और रूम किराए पर लेने में भी मशक्कत करनी पड़ती है.मकान मालिक यदि किराये के रूम के आजू बाजू रहता है तो वह जाति पूछकर दलितों को  रुम किराये पर देने मना कर देता है. कालेज पढ़ने वाली पिंकी जाटव बताती हैं कि शहर के कालेज में पढ़ने वाली ऊंची जाति की लड़कियां हमें भाव‌ नहीं देती. सजने संवरने की आस में ब्यूटी पार्लर जाने पर भी जातिगत भेद भाव किया जाता है.

अपनी आंखों में नये सपने लिए नौजवानों  ने छुआछूत की बजह कुछ नौजवानों ने अपने परम्परागत काम धंधे छोड़ दिये हैं,तो क‌ई ने गांव कस्बों से पलायन का रास्ता अख्तियार कर लिया है.

अहमदाबाद की डायमंड फैक्ट्री में काम करने वाले सैकड़ों लोग लौक डाउन में वापस गांव आ तो गए, लेकिन छुआछूत की समस्या के चलते कोई काम धंधा नहीं मिल सका. अब वापस जाने ठेकेदारों के फोन आ रहे हैं,तो वे इज्जत की जिंदगी जीने फिर से गांव छोड़ कर जाने तैयार हो रहे हैं. सूरत में ब्यूटी पार्लर चलाने वाली युवती कंचन चौधरी गांव की युवतियों को ब्यूटी पार्लर का काम सिखाने का हुनर रखती है, परन्तु कस्बों की लड़कियां छुआछूत की बजह से सीखना नहीं चाहती.कंचन कहती हैं कि अब वे भी परिवार के साथ वापस सूरत जाकर अपना काम धंधा संभालेंगी.

दरअसल आज भी गांवों में पुस्तैनी काम कर रहे बसोर, मेहतर, मोची, धोबी,नाई लोगों को दूसरे काम करने की इजाजत नहीं है और पुस्तैनी कामों में छुआछूत आड़े आती है. इनसे बचने की जुगत में नौजवान अपने गांव कस्बों से दूर शहर जाकर मनमर्जी का काम करने लगे हैं.

*विसंगतियों के बावजूद न‌ई उम्मीदें भी*

समाज में फैली छुआछूत की बीमारी के बीच कुछ लोग यैसे भी है ं ,जो समाज को उम्मीद की रोशनी भी दिखा रहे हैं.होशंगाबाद के छोटे से गांव पुरैना के मुकेश बसेडिया लगातार दलित आदिवासी समाज की लड़कियों की शादियां रचाकर छुआछूत दूर करने की अनूठी पहल कर रहे हैं. मुकेश दलित लोगों के साथ छुआछूत नहीं बल्कि समता का व्यवहार करते हैं खान-पान से लेकर आने जाने तक और उनकी मदद करने तत्पर रहते हैं. इस बजह से उन्हें उनकी ब्राम्हण समाज के लोगों के कोप का सामना करना पड़ता है.

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लौक डाउन में मुकेश बसेड़िया ने आदिवासी अंचलों के दर्जनों गांवों में रोज ही राशन पानी से लेकर , मच्छरदानी,दबाईयां पहुंचाई हैं और आदिवासी महिला पुरुषों को बिना किसी जाति गत भेदभाव के  उन्हें हर संभव मदद पहुंचाने का काम किया है.

*दलित बच्चों भी होते हैं जुर्म का शिकार* 

दलितों पर उत्पीड़न के मामले रोज ही समाचार पत्र पत्रिकाओं के किस्से बनते हैं. सरकार समानता और समरसता का ढोल पीट रही है , लेकिन हालात यैसे हैं कि दलित अपनी रोजी-रोटी के लिए समाज का यह व्यवहार भी झेलने मजबूर है.

कभी स्कूलों में दलित बच्चों के साथ छुआछूत का व्यवहार  किया जाता है ,तो कभी उन्हे हेंडपंप पर पानी पीने से रोका जाता है. एक यैसा ही मामला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में जुलाई 2019 में आया था ,जहां  ग्राम पंचायत मस्तापुर के प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूल में अनुसूचित जाति,जनजाति के बच्चों को हाथों में मध्याह्न भोजन दिया जा रहा था .छात्रों ने अपनी आपबीती विभाग के अधिकारियों को बताकर कहा था कि स्कूल में भोजन देने वाले स्व.सहायता समूह में राजपूत जाति की महिलाओं को रसोइया रखने के कारण वे  निचली जाति के लड़के लड़कियों से दुआछूत रखती हैं. बच्चों को अछूत मानकर उन्हे हाथ में खाना परोसा जाता है . यदि वे अपने घर से थाली ले जाते हैं ,तो थालियों को बच्चों को खुद ही साफ करना पड़ता है. दलितों को छुआछूत से बचाने बनाये गये तमाम कानून केवल किताबों और भाषणों में सिमटकर रह गये हैं.

इसी प्रकार  अगस्त 2019 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रामपुर प्राइमरी स्कूल में में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया था. यहां पर स्कूल में बच्चों को दिए जाने वाले मिड डे मील में जातिगत भेदभाव के चलते दलित बच्चों को उंची जाति के अन्य बच्चों से अलग बैठाकर भोजन दिया जाता था . रामपुर के प्राइमरी स्कूल में कुछ ऊंची जाति के छात्र खाना खाने के लिए अपने घरों से बर्तन लेकर आते थे और वे अपने बर्तनों में खाना लेकर दलित समुदाय के बच्चों से अलग बैठकर खाना खाते थे . बच्चों के इस भेदभाव का विडियो भी सोशल मीडिया में वायरल हुआ था . महात्मा गांधी की  150 वीं  जयंती मनाने के बाद भी गांधी जी के विचारों और सिद्धांतों का ढिंढोरा तो सरकारों द्वारा खूब पीटा जा रहा है , परन्तु सामाजिक ताने-बाने में दलितों और ऊंची जाति के ठाकुर, पंडितों में जातिगत भेद भाव की लकीर खिंची हुई है.

दलितों के नाम पर राजनीति करने वाली बसपा , गौड़ वाना गणतंत्र, जैसी सियासी पार्टियां भी केवल सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर खामोश हैं.  यैसे में किस तरह यह उम्मीद की जा सकती है कि आजादी के 73 साल बाद भी अंबेडकर के संविधान की दुहाई देने वाला भारत छुआछूत मुक्त हो पायेगा . समाज के ऊंची जाति के लोग आज भी दलितों का मानसिक और शारीरिक शोषण कर उनके हितों से उन्हे बंचित रखे हुए हैं. वे नहीं चाहते कि दलितों के बच्चे पढ़ लिख कर कुछ करें, क्योंकि यैसा होने पर दबंगों के घर नौकरों की तरह काम कौन करेगा? लौक डाउन की वजह से शहरों से गांव लौटे दलित और मजदूरों और उनके पढ़ें लिखे बच्चों के साथ गांव कस्बों में  जातिगत भेदभाव किया जा रहा है. गांव देहात के दलित और मजदूरों के परिवार पेट की भूख की खातिर अपमान का घूंट पीकर अपनी जिंदगी जीने मजबूर हैं.

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बड़ा सवाल यह है कि  नागरिकता कानून के बहाने दूसरे देशों के नागरिकों की प्रताड़ना की चिंता करने वाली सरकार अपने देश के दलितों और मजदूरों के इस उत्पीड़न को आखिर कब खत्म कर पायेगी.

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