किसान मजदूरों के जवान बेटे पुनः बिहार और उत्तरप्रदेश के गांवो से महानगरों की ओर लौटने लगे. ठीकेदारों कम्पनी के मैनेजरों का फोन आने लगा. इधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का रोज अखबारों और टी वी पर यह ब्यान सुनने को मिल रहा है कि प्रवासी मजदूरों को हर हाल में रोजगार दिया जाएगा.लेकिन जमीनी सच्चाई अलग है. मुख्यमंत्रीजी आप कहाँ देंगे रोजगार.आपके पास भाषण के सिवा रोजगार देने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं है.

किसान मजदूर के बेटे समझ गये हैं कि फजीहत जितनी भी झेलनी पड़े परिवार और अपना पेट भरने के लिए काम तो कहीं न कहीं करना ही पड़ेगा.यहाँ काम मिलना संभव नहीं है ?खेती का हाल और ही बुरा है. खेती में मजदूरी करने के लिए बड़े किसानों के यहाँ सालों भर काम नहीं है. साधरण किसान के बेटे अगर खेती भी करेंगे तो उससे कोई लाभ नहीं है.

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हिमाचल प्रदेश के धागा उद्योग फैक्ट्री में काम करनेवाले अजय कुमार और उनकी पत्नी शुष्मा देवी जो लॉक डाउन में कम्पनी बन्द होने की वजह से अपने गृह जिला औरंगाबाद आ गए हैं.शुष्मा देवी ने बतायीं की हम

दोनों वहाँ काम करते थे.हम वहाँ दवा बनाने वाले कम्पनी में डब्बा में दवा भरने का काम करते थे.हमारे पति धागा कम्पनी में काम करते थे.उन्हें 15000 हजार और मुझे 1000 रुपये वेतन मिलता था.दोनों मिलाकर 25000 हजार रुपये मिल जाता था.दो बच्चों को आराम से पढ़ा लिखा रहे थे.प्रतिमहिना उसी में से बचाकर सास ससुर के लिए भी सात आठ हजार महीना भेजते रहते थे.लेकिन इस कोरोना की बीमारी ने तो हमलोगों को बड़ा मुश्किल में डाल दिया.पति के कम्पनी से फोन आ रहा है.पुनः काम पर लौटने के लिए हमलोग मन बना रहे हैं जाने के लिए.यहाँ हमलोग क्या करेंगे ? हमलोग मनरेगा में डेली ढोने और कुदाल चलाने वाला काम नहीं कर सकते.यहाँ और दूसरे चीज में किसी प्रकार का कोई स्कोप नहीं है.

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