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Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर

घसीटा ऐसे ही दिल मसोस कर रह जाता. उसे कहीं राहत मिलती तो महुआ के करीब पहुंच कर. एक वही थी, जिस का प्यार पा कर वह सबकुछ भूल जाता, इसलिए जब भी अपने घर से निकलता तो साइकिल की घंटी बजाता हुआ ही निकलता और महुआ के घर के सामने घंटी बजाने की रफ्तार तेज हो जाती.

एक दिन दूर से ही घंटी की आवाज सुन कर महुआ बाहरी दरवाजे पर

खड़ी हो गई और उस से बोली, ‘‘अरे, तुम से एक जरूरी काम है. तुम अंदर

आ जाओ.’’

महुआ उसे अपने कमरे में ले गई और पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से प्यार करते हो?’’

‘‘हां, बहुत ज्यादा... और तुम से ही शादी करना चाहता हूं, पर पता नहीं पिताजी और भैयाभाभी तैयार होंगे

या नहीं.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?’’ जब महुआ ने पूछा, तो वह बोला, ‘‘अरे महुआ, मेरी भाभी बहुत तेज हैं. घर में उन की ही चलती है. मुझ से तो कई बार कह चुकी है कि तुम कहीं और न मुंह मार देना देवरजी, मैं तुम्हारी शादी अपनी छोटी बहन से ही करवाऊंगी, लेकिन मुझे उन की छोटी बहन बिलकुल पसंद नहीं है,’’ कहतेकहते जब घसीटा चुप हुआ, तो महुआ बोली, ‘‘और इधर मेरा

बाप मेरी शादी किसी से भी नहीं होने देगा, जबकि मैं तुम को ही अपना मान चुकी हूं.’’

‘‘तो फिर...?’’ घसीटा ने चिंता जताई.

‘‘हमें हर हाल में भाग कर शादी करनी होगी. बोलो, इस के लिए तुम तैयार हो?’’

घसीटा सोच में पड़ गया. कुछ देर बाद वह बोला, ‘‘मान लो, हम भाग भी जाते हैं, तो जाएंगे कहां?’’

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