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Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर

एक बार महुआ ने फिरोजा से ऐसे ही पूछ लिया, ‘‘ऐ लाडो, तुझे इन लाइन मारने वाले लड़कों में कोई पसंद है?’’

फिरोजा मुसकराते हुए बोली, ‘‘पहले तू बता.’’

‘‘मुझे तो घसीटा पसंद है, अब तू बता…’’

‘‘मेरा दिल तो आफताब पर फिदा रहता है और कभी निकाह करूंगी तो इसी से.’’

लेकिन बाद में फिरोजा का ज्यादा बाहर घूमना उस के घर वालों ने बंद कर दिया था और जब कभी किसी काम से वह बाहर निकलती, तो उस की मां जद्दन बी उसे बुरके में भेजतीं और कहतीं कि महुआ को साथ ले लेना.

महुआ को उस का बुरका पहनना अच्छा लगता, तब वह उस से कह उठती, ‘‘फिरोजा, मेरा भी बुरका पहनने का बहुत मन करता है.’’

‘‘ठीक है, मैं कभी तुझे बुरका गिफ्ट करूंगी.’’

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इफिर जब बाजार में आफताब या घसीटा में से कोई टकरा जाता तो दोनों अपनेअपने चाहने वाले को इशारे से करीब बुलातीं और कहीं सुनसान में मिलने का प्लान बनातीं.

इस तरह फिरोजा की आफताब से और महुआ की घसीटा की से दोस्ती बढ़ी, पर प्यार की पेंगे जिस रफ्तार से बढ़नी चाहिए थीं, वैसी बढ़ न सकीं.

हामिद मियां को शायद भनक लग गई थी कि उन की बेटी फिरोजा का किसी लड़के के इश्क में गिरफ्तार होना शुरू हुआ है, इसलिए उन्होंने फिरोजा के घर से बाहर निकलने पर पूरी तरह रोक लगा दी थी.

उधर बांके ने भी महुआ पर सख्ती पर रखी थी, क्योंकि वह बस्ती के लड़कों की हरकतें देखता रहता था और जानता था कि वह एक पल ही होता है जब इस उम्र का प्यार कुछ भी करा सकता?है.

महुआ और फिरोजा के दिन ऐसे ही कट रहे थे. उन का मिलना भी कम हो गया था.

बांके रोज सुबह 8 बजे अपना टिफिन का डिब्बा ले कर काम पर निकल जाता उस के बाद चमकी भी झाड़बुहारी और पोंछे के काम के लिए उस बस्ती के बाहर कुछ दूर बने फ्लैटों में काम करने के लिए चली जाती.

उन के जाते ही महुआ अपनी झुग्गी की साफसफाई, जूठे बरतन मांजना, बाहर से बालटीबालटी पानी ला कर टंकियों में भरना, सारे घर के कपड़े धोना जैसे कामों में बिजी हो जाती.

4-5 महीने देखते ही देखते निकल गए, पर महुआ और फिरोजा उसी बस्ती में 10 घरों के फर्क से रहते हुए भी नहीं मिल पाईं.

आज कई महीनों बाद महुआ ने मन में पक्का इरादा कर लिया कि अगर फिरोजा ज्यादा सख्ती के चलते घर से नहीं निकल पा रही है, तो वह तो मिलने जा सकती है.

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और आज उसे मौका भी मिल ही गया. बांके के काम पर निकल जाने के कुछ देर बाद जब चमकी भी काम पर चली गई तो महुआ ने देखा कि सामने से जद्दन बी अपने शौहर के साथ रिकशे पर बैठ कर जा रही थीं. महुआ ने उन्हें सलाम किया फिर पूछ लिया, ‘‘कहां जा रही हैं जद्दन बूआ?’’

‘‘फिरोजा के अब्बा को दवाखाना ले जा रही हूं. पता नहीं कौन सी बीमारी लगा बैठे हैं. दिनभर घर में ही पड़े रहते हैं. तुम तो देखती ही हो कि फिरोजा तो कहीं आतीजाती नहीं, बस मुझे ही हर काम के लिए दौड़ना पड़ता है.’’

उन के दूर जाते ही महुआ ने घर में ताला लगाया और फिरोजा के पास पहुंच गई. बेचैनी महुआ से छिपी नहीं. उसे ऐसा लगा कि फिरोजा किसी बात को ले कर मन ही मन घुट रही है.

महुआ ने पूछा, ‘‘तुम्हारे अब्बा ने ऐसा क्या कह दिया जो तुम इतना परेशान हो रही हो?’’

‘‘महुआ, अब्बा का कहा मुझे कभी बुरा नहीं लगा, पर उन्होंने तो मेरी जिंदगी ही बरबाद कर दी और मुझे किसी के लायक नहीं छोड़ा,’’ कहते हुए उस ने महुआ को सबकुछ बता दिया और अपनी कलाई और पैरों पर बांधी गई रस्सियों के निशान दिखाते हुए बोली, ‘‘अपनी हवस पूरी करने के लिए वे मेरे हाथपैर तक बांध देते थे और मुंह में कपड़ा ठूंस देते थे.’’ इतना कह कर वह महुआ के सीने से चिपट कर रो पड़ी.

जब महुआ फिरोजा के पास से जाने लगी तो वह एक रेशमी नया काला बुरका उसे देते हुए बोली, ‘‘यह मेरी अमानत तुम्हारे लिए.’’

फिरोजा की उस अमानत को अपने सीने से दवाए महुआ फिर आने का वादा कर के घर वापस चली गई. अभी घर के सारे काम बाकी पड़े थे, जिन्हें उसे समय से निबटाना था.

उस के कुछ महीनों बाद ही एक दिन जब महुआ सवेरे उठी तो देखा कि सामने वाले रेलवे ट्रैक पर लोगों की भीड़ जमा है.

जब उस ने लोगों से पूछा तो बस्ती के एक आदमी ने बताया, ‘‘हामिद मियां की बेटी ने रेल से कट कर अपनी जान दे दी…’’

बस्ती वालों की शिनाख्त पर फिरोजा की लाश को पोस्ट मौर्टम के लिए भेज दिया गया.

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