Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
उसे अपनी मां चमकी से तो अपने बचाव की कोई उम्मीद नहीं थी और अब जब उसे अपने पिता की गंदी नीयत का पता चल गया है, तो उसे जल्दी ही कोई फैसला लेना था.
एक घसीटा ही ऐसा है, जो उस के बारे में अच्छा सोचता?है, उसे चाहता भी है, इसलिए उसे इस घर के माहौल से अपने को निकालना होगा.
दिनभर वह यही सब सोचती रही.
3 बजे जब मां आई, तो वह टैलीविजन देख रही थी.
मां ने आते ही रोज की तरह पूछा, ‘‘क्या करती रही दिनभर?’’
उस का मन तो हुआ कि पिता की आज वाली हरकत वह मां को बता दे, पर वह जानती थी कि उस की मां उसी से कहेगी, ‘तू क्यों उघड़े कपड़ों में उन के सामने गई? तुझे खुद पिता से बच कर रहना चाहिए.’
और अगर हिम्मत कर के वह अपने पति बांके से ऐसी हरकत पूछेगी, तो सिवा पिटने के उसे कुछ भी हासिल नहीं होगा, इसलिए उस ने रोज वाला ही जवाब दिया, ‘‘बस घर के काम निबटाती रह और रात के भोजन की तैयारी कर के रख दे.’’
आज बिंदा पर डोरे डालने की अपनी कामयाबी पर खुश होने के चलते बांके का मूड अच्छा था और आज वह दारू पी कर नहीं आया था, बल्कि ले कर आया था. साथ में पकापकाया मांस और रोटियां भी ले लाया था.
वह आते ही बोला, ‘‘आज तुम दोनों को खाना बनाने की फुरसत... लो, थैला पकड़ो और खाना लगाओ, सब मिल कर खाते हैं.’’
‘‘लेकिन, मेरा पेट गड़बड़ है. मैं आज मांस नहीं खाऊंगी. मैं लौकी की सब्जी बना कर खाऊंगी,’’ महुआ के मुंह से ऐसा सुन कर बांके के मुंह से गाली निकलनी शुरू हो गई, ‘‘बड़ी हो गई है, तो इस के नखरे नहीं मिलते. कहती है कि मांस नहीं खाऊंगी. कितने मन से इस के लिए मैं मांस लाया था...’’ कहते हुए वह उठ कर महुआ को पीटने के लिए लपका, तो चमकी उस के बचाव के लिए बीच में आ गई. बोली, ‘‘इस के पेट में बहुत दर्द है. इस के हिस्से का रख देंगे, कल खा लेगी... आप की बच्ची है.’’