Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
पुलिस ने फिरोजा के घर आ कर भी सूत्र जमा करने शुरू किए. उर्दू में लिखे सुसाइड नोट और पोस्टमौर्टम की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस फिरोजा के अब्बा को गिरफ्तार कर लिया.
अखबार में छपी पोस्ट मौर्टम की रिपोर्ट के आधार पर फिरोजा ने जब सुसाइड किया उस समय वह पेट से थी. उस के बाद कई रातों तक महुआ सो नहीं पाई. उसे यही अफसोस होता रहा कि सबकुछ जानते हुए भी वह अपनी पक्की सहेली फिरोजा से उस दिन के बाद से मिल नहीं पाई.
समय अपनी रफ्तार से भागता रहा. फिरोजा के हादसे के बाद महुआ ने अनुभव किया कि किसी के भी नजरों से ओझल हो जाने के बाद आसपास के माहौल में बस 2-3 दिन ही असर रहता है उस के बाद यह दुनिया पहले की तरह ही सांसें लेने लगता है.
हामिद मियां के जेल जाने के बाद जद्दन बी भी झुग्गी बेच कर, अपने भाई के साथ कहीं चली गईं. उन की झुग्गी को जिस ने खरीदा वह बांके का पिता मुरारी था.
मुरारी का पूरा परिवार फलसब्जी बेच कर गुजारा करता था. मुरारी तो ठेले पर सब्जी सजा कर सवेरे 10 बजे निकल जाता था.
हालांकि मुरारी की फलों की स्थाई दुकान थी, पर वह, उस ने अपने दोनों लड़कों नवीन और घसीटा को सौंप रखी थी.
नवीन शादीशुदा था और बांके से 6 साल बड़ा था. दुकान पर नवीन ही बैठता था. दोपहर में जब वह खाना खाने घर आता तो उस की पत्नी कुसुम ही दुकान की गद्दी संभालती.
घसीटा को कभी भी दुकान पर बैठने का मौका, उस के भैयाभाभी देते ही नहीं थे और यह बात घसीटा को बहुत बुरी लगती थी. उसे तो चकरघिन्नी की तरह पूरे दिन इधर से उधर दौड़ाते ही रहते थे.
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