गरीब और अनपढ़ लोगों से जब उन के बच्चों को स्कूल भेजने और पढ़ाने की बात कही जाती है, तो उन का यही जवाब होता है, ‘इन को कौन सा पढ़लिख कर कलक्टर बाबू बनना है. पढ़ाईलिखाई बड़े और पैसे वालों के लिए होती है. स्कूल जा कर समय खराब करने से अच्छा है कि मेहनतमजदूरी कर के दो पैसे कमाए जाएं. इस से घरपरिवार की मदद हो सकेगी. लड़की को दूसरे घर जाना है. पढ़ालिखा कर क्या फायदा?’
गरीब अनपढ़ लोगों को अपने हकों का पता नहीं होता है. पौराणिक किताबों और कहानियों में यह बारबार कहा गया कि दलित तबके के लिए पढ़ाईलिखाई नहीं है.
इस का असर यह है कि गरीब अनपढ़ अपने बच्चों को पढ़ने नहीं देते. बच्चे पढ़ सकें, इस के लिए जरूरी है कि मांबाप भी सजग हों और वे बच्चों को स्कूल भेजें, पर पौराणिक कहानियों ने हमारे दिमाग पर ऐसा असर किया है कि मांबाप जागरूक ही नहीं होना चाहते हैं.
आज भी एससी और एसटी तबके में लड़कों की पढ़ाईलिखाई तो खराब है ही, लड़कियों की पढ़ाईलिखाई और भी ज्यादा खराब हालत में है. 5वीं जमात के बाद स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों में
यह तादाद सब से ज्यादा है. तकरीबन 42 फीसदी लड़कियां 5वीं जमात के बाद, 67 फीसदी लड़कियां 8वीं जमात के बाद और 77 फीसदी लड़कियां 10वीं जमात के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं.
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ऊंची तालीम में भी दलित तबके की लड़कियों की तादाद सब से कम है. आदिवासी और दलित तबके में लड़कियों की पढ़ाईलिखाई की हालत बहुत बुरी है. इस की सब से बड़ी वजह है कि 8वीं जमात के बाद लड़कियों को घर के कामकाज में ?ांक दिया जाता है, वहीं 10वीं जमात तक आतेआते ज्यादातर लड़कियों की शादी हो जाती है. यह भी देखा गया है कि जब लड़कियां पढ़लिख लेती हैं, तो वे घरपरिवार और समाज को मदद करने के लायक हो जाती हैं.