नीतीश कुमार सरकार कुदरत के एक छोटे से भार के आगे इस तरह बेबस रह जाएगी, इस की उम्मीद नहीं थी. यह ठीक है कि बारिश बहुत ज्यादा थी, पर यह भी ठीक है न कि बरसों से जिस तरह पटना को चलाया जा रहा था वह कोई तालियां बजाने वाला काम न था.
देश के दूसरे शहरों की तरह अनापशनाप बनते मकान, नालों में फेंका जाता कूड़ा ताकि बाद में उन पर झुग्गियां बन जाएं, संकरी होती सड़कें, नालियों पर बेतहाशा कब्जा, चारों तरफ गंद के ढेर बारिश के लिए तो खुली दावत हैं कहर मचाने के लिए. बारिशें तो होंगी ही, पर अच्छी सरकार वही है जो हर तरह से तैयार रहे, वरना जनता बिना सरकार के कैसे बुरी है.
सरकार जनता को लूटने के लिए नहीं, कानून बनाए रखने के लिए, रंगदारी रोकने और कुदरत से लड़ने से बचने के तरीके ढूंढ़ने के लिए ही होती है. बिहार के लिए बाढ़ कोई नई चीज नहीं हैं, हां इतनी बारिश नई है. गंगा हर साल बाढ़ के निशान पर पहुंचती है और हर दूसरेतीसरे साल नेपाल की तराई में जबरदस्त बारिश की वजह से बहुत बड़े इलाके में पानी भर जाता है. इस बार पटना को भी पानी ने दूसरे कई जिलों समेत अपनी चपेट में ले लिया और पटना के ऊंचों के घरों में भी बाढ़ का पानी पहुंच गया. वैसे तो हर साल जब खेतों में पानी भरता है तो किसी के कानों पर जूं भी नहीं रेंगती है. देश वैसे ही चलता रहता है. कुदरत के आगे आदमी की क्या बिसात.