Lockdown में लोग पढ़ रहे ‘मस्त मस्त’ कहानियां

वैसे तो इंटरनेट के जमाने मे पोर्नोग्राफी की डिमांस सबसे ज़्यादा होती है. 21 दिन के लौक डाउन के दौर में पोर्नोग्राफी के साथ ही साथ लोग सेक्स की भवनाओ को उभारने वाली मस्त मस्त कहानियां लोग सबसे ज्यादा पढ़ रहे है. इसकी दो सबसे बड़ी वजह है एक तो पोर्नोग्राफी की तमाम साइड बंद हो चुकी है दूसरे वीडियो और फोटो डाउन लोड करने के लिए ज्यादा इंटरनेट स्पीड चाहिए होती है. लोगो का डेटा जल्दी खत्म हो जाता है.

एक सबसे बड़ी परेशानी यह है कि फोटो और वीडियो देखने के लिए  एकांत का समय होना जरूरी होता है. इससे बचने के लिए लोग अब फोटो या वीडियो की जगह पर सेक्स की कहानियां पढ़ना पंसद करते है. इसको पढ़ते समय किसी के द्वारा देखे जाने का खतरा कम होता है.

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कुछ लोगो को सेक्स का जो आंनद किसी कहानी को पढ़ने में आता है वो फोटो देंखने और वीडियो देखने मे कम आता है. इस लिए लॉक डाउन के इस दौर में लोगो ने विडियो और फोटो से अधिक कहानी पढ़ने में जोर दिया.

सेक्सी स्टोरीज का बिजनेस :

इस तरह की कहानियां हिंदी सेक्स स्टोरी के रूप में सर्च की जाती है. वैसे यह कहानियां पूरी तरह से मनगठन्त होती हैं पर इनका प्रस्तुतिकरण सच्ची कहानियों जैसा होता हैं. कुछ कहानियां एक बार मे खत्म हो जाती हैं. कुछ कहानियां एक दो सीरीज में लिखी होती हैं. इस तरह की सेक्सी कहानियों का अपना पूरा बाज़ार होता हैं.

बहुत पहले ऐसी किताबे पीली पन्नी में पैक हो कर बिकती थी. इनमे 64 पेज होते थे तो इनको “चोसठिया” भी कहते थे. यह किताबे बहुत अच्छी प्रिंट नही होती थी और इनमे बहुत गलतियां भी होती थी. इनके लेखक के नाम पर मस्तराम लिखा होता था.

समय के साथ बदले रंग

1990 के बाद जब कलर प्रिंटिंग का दौर आया तो इस तरह की किताबें पीली पन्नी से बाहर आ गई. इस दौर में यह “मन मंथन” और ऐसे ही कई अलग अलग नामो से बिकने लगी. इस दौर में ही “मस्तराम की कहानियां” नाम से भी कुछ प्रकाशन शुरू हुए. थोक के भाव छपने वाली यह किताबे खुद को कानूनी कार्यवाही से बचने के लिए “सेक्स समस्याओ” के नाम इनका प्रकाशन होता था. समस्या के प्रश्न कहानी की तरह से लंबी होती थी. इनका समाधान कुछ लाइनों में ही खत्म हो जाता था. कुछ सालों में इनकी शिकायत शुरू हुई तो इनको छपना बन्द हो गया चोरी छिपे ही बिकती थी. पर इनका बाजार बंद हो गया. इसके बाद ज़ब इंटरनेट और और वेबसाइट का चलन शुरू हुआ तो नेट पर ऐसी कहानियां लोग लिखने और पढ़ने लगे.

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सविता भाभी डौटकौम

इंटरनेट के दौर में “सविता भाभी डॉटकॉम” से यह शुरू हुआ. इसमे कहानी के साथ कॉमिक टाइप के किरदारों से कहानी पढ़ाई जाती थी. पोर्नोग्राफी साइटों पर रोक से “सविता भाभी डॉटकॉम” बन्द हो गया. अब सीधी कहानियों को लिखा जाने लगा.

यह कहानियां आपबीती के रूप में लिखी जाती हैं. यह कहानी कम अश्लील अधिक होती है. यह  आमतौर पर देवर भाभी, जीजा साली, औफिस सहयोगी, दोस्त और दूसरे तमाम रिश्तों के बीच की होती है.

#lockdown: भूखे पेट की कुलबुलाहट, गांव वाले हो रहे परेशान

कोरोना का कहर बाहर ही नहीं, बल्कि पेट के भीतर भी जारी है. देशभर में तालाबंदी होने से तमाम राज्यों ने अपनी सीमाएं बंद कर रखी हैं. जो जहां है, वहीं का हो कर रह गया है. इतना ही नहीं, गांवों में बुरी हालत है क्योंकि गरीब दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं.

जी हां, वाकई गांवों में रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों को रोटी नहीं मिल पा रही है. भूख से कलपते इन गरीबों का खयाल कोई नहीं ले रहा.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के बुजुर्गा गांव में वनवासी मुसहर बस्ती में कामगार और गरीब मजदूर परिवारों का हाल बड़ा ही बेहाल है. इन के पास तालाबंदी के चलते कोई काम नहीं है और न ही उन तक राशन पहुंच पाया है.

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ये गरीब मजदूर परिवार हर रोज खानेकमाने वाले हैं. इन दिनों इन लोगों को रोजीरोटी की किल्लत आ गई हैं. घर मे खाने को अनाज का दाना नहीं है. भूख मिटाने के लिए ये लोग सुबहसवेरे ही निकल पड़ते हैं खेतों की ओर. उन सूने पड़े खेतों में बचे हुए छोटे आलू बीन कर घर ला रहे हैं और इन आलू को नमक के साथ खा कर अपनी जिंदगी किसी तरह गुजरबसर करने को मजबूर हैं.

इन लोगों का कहना है कि वे ईंटभट्टों पर काम करते थे. लॉकडाउन के कारण काम बंद है. इस वजह से मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है. दुकानदार बिना पैसा लिए सामान देने को तैयार नहीं है.

हालात ये है कि जो आलू खेतों से चुन कर लाए थे वो भी खत्म हो रहे हैं और सरकारी मदद भी नहीं मिली है. ऐसे में इस बस्ती के सभी बच्चे और औरतें भी भूखे रहने को मजबूर हैं और बचे हुए आलू पर निर्भर हैं.

इस गांव में गरीब लोग सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब ही नहीं जानते और न ही साफसफाई का ध्यान रखते, सब एकदूसरे के साथ वैसे ही बिना किसी परहेज के रह रहे हैं. वे इस वक्त भोजन न मिलने के कारण ज्यादा परेशान हैं.

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गाजीपुर के डीएम को जब यह समस्या बताई गई तो वे जान कर हैरान हो गए. वे चौंकने वाले अंदाज में बोले कि ये सभी लोग तो चिन्हित हैं. पता नहीं, क्यों अब तक उन परिवारों में राहत सामान नहीं पहुंचा, मैं खुद हैरान हूं, वहीं प्रशासन का कहना है कि हम तत्काल उन गरीबों को खाद्यान्न मुहैया करा रहे हैं.

यह तो महज एक गांव की तसवीर है. न जाने कितने गांव होंगे जो इस तरह की भूख जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं.

है कोई उपाय किसी के पास इन गरीबों की भूख मिटाने का. नहीं तो ये बेचारे बेमौत मारे जाएंगे, कोरोना से नहीं भूख से.

#lockdown: खाली जेब लौटे मजदूरों की सुध कौन लेगा

हर साल लाखों लोगों का पलायन उत्तर प्रदेश और बिहार से दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद, अहमदाबाद, पानीपत जैसे शहरों के लिए होता है. अपने परिवार को गाँव में छोड़ सैकड़ों किलोमीटर दूर रोजगार की तलाश में आने वाले इन कामगारों की दुश्वारियां यहाँ भी कम नहीं होती हैं. यहाँ आने के बाद इन्हें उनकी मेहनत के लिहाज से तो मजदूरी नहीं मिल पाती है ऊपर से कमरे का किराया, खाने की चिंता और गाँव में रह रहे अपने माँ-बाप, बीबी बच्चों के लिए पैसे बचाने की चिंता अलग होती है, ऐसे में यह मजदूर पैसों की बचत नहीं कर पाते हैं. अब जब से कोरोना जैसी महामारी देश में पैर पसार रही है तब से लॉक डाउन के चलते लोग अपने घरों में कैद होकर रह गएँ है. फैक्ट्रियों में उत्पादन बंद हैं, निर्माण कार्य से जुड़े सारे काम ठप पड़े हैं, या यह कह लिया जाए की रोजगार देनें वाले सभी जरियों पर पाबन्दी लगा दी गई है.

अब जब देश में कोरोना महामारी के चलते देश में लॉक डाउन लगाया गया है तो अपने गाँव घर से दूर रह रहे कामगारों के सामने काम बंद होने के चलते जो सबसे बड़ी समस्या आनी थी वह है पेट की भूख मिटाना. ऐसे में इन कामगारों के सामनें पलायन ही एक उपाय बचा था. जब की उन्हें पता था की कोरोना एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है. लेकिन उन लोगों नें अपने सामने आने वाले हालात को भांप कर पलायन करना ही उचित समझा. क्यों की यह लोग इन बड़े शहरों में बिमारी से मरें यह न मरें लेकिन भुखमरी से जरुर मर जाते.

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पलायन करने वाले कामगार जब सैकड़ों किलोमीटर पैदल, रिक्सा ट्रकों में जानवर की तरह किसी तरह से ठूंस कर अपने गाँव-घर पहुचें तो उनके चेहरे पर आया पसीना और निराशा उनके हालात को बयान कर रहें थे. उनके चेहरे से थकान साफ़ नजर आ रही थी. इसके साथ उन्हें पुलिसिया ज्यादती का शिकार भी होना पड़ा.

कोरोना के खौफ से अलग-थलग पड़ गए हैं कामगार
यह कामगार जैसे तैसे अपनें गाँवों में पहंच तो गए हैं लेकिन कोरोना के चलते अभी भी ये लोग अपने परिवारों से नहीं मिल सकतें हैं. क्यों की इन लोगों को 14 दिनों के लिए गाँव के बाहर किया गया है. वहीँ इन कामगारों के परिवारों में कोरोना का खौफ साफ़ देखा जा सकता है. क्वैरैंटीन यानी बिमारी के दौरान लोगों से अलग किये गए या एकांत में रखे गए इन कामगारों से इनके परिवार के लोग मोबाईल से हाल-चाल तो ले रहें हैं लेकिन सरकारी बंदिशों और कोरोना के खौफ के चलते यह लोग अपने परिवार के सदस्यों से भी नहीं मिल पा रहें हैं. इस दशा में यह कामगार घुटघुट जीनें को मजबूर हैं. क्वैरैंटीन में घर से दूर रह रहे इन कामगारों को अपने परिवार की चिंता भी सता रहीं हैं.

खाली जेब लौटे कामगारों के लिए नाकाफी है सरकारी सहायता-
गाँव और घर से बाहर लोगों से अलग किये गए इन कामगारों के सामने जो सबसे बड़ी चिंता है वह है पलायन के चलते उनकी खाली जेबें. क्यों की अचानक बंद हुए काम के कारण जिन फैक्ट्रियों और जगहों पर यह कामगार काम कर रहें थे वहां से उन्हें आने जाने के किराए भर के पैसे भी बड़ी मुश्किल से मिल पायें हैं. ऐसे में यह दिहाड़ी कामगार खाली जेबें लेकर ही पलायन करने को मजबूर हो गये. इस वजह गाँवों में रह रहे इनके परिवार के लोगों के सामनें भी संकट आ खड़ा हुआ है.

इस संकट से उबारने के लिए केन्द्र व विभिन्न राज्यों के सरकारों नें कई तरह की सहूलियतों को देनें का एलान किया है. लेकिन सरकारों द्वारा इन कामगारों जो सहूलियतें दिए जाने का वादा किया गया था. वह कई जगहों पर अभी तक मिल ही नहीं पाईं हैं और जहाँ मिल भी रहीं हैं वह नाकाफी हैं. क्यों की इससे बुनियादी जरूरतें भी नहीं पूरी होने वालीं हैं. परिवारों से अलग रखे गए इन कामगारों का कहना हैं की वह हर रोज 500 रूपये तक की कमाई वाली दिहाड़ी में जब परिवार का खर्चा बड़ी मुश्किल से चला पातें हैं तो सरकार के जरिये मुहैया कराये जा रहें चंद रुपयों से महीनें भर का खर्च चलना मुश्किल हैं. इसके अलावा जो अनाज भी वितरित किया जा रहा है वह भी महीनें भर के लिए नाकाफी है. लोगों का कहना सरकार को हम कामगारों पर विशेष ध्यान देनें की जरूरत हैं.

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देश के तरक्की में दिहाड़ी कामगारों का बड़ा रोल है अगर हालात के अधीन होकर यह टूट गये तो कोरोना जैसी महामारी से हम उबर भी जायेंगे लेकिन इससे अर्थव्यवस्था पर जो असर होगा उससे उबरनें में सालों लग सकतें हैं. इस लिए सरकार को दूसरी जरुरी चीजों की तरह कामगारों पर भी विशेष ध्यान देनें की जरूरत है. और जो भी सरकारी सहयोग दिया जा रहा है उसमें वाजिब बढ़ोतरी कर तेजी लाने की भी जरुरत है.

#lockdown: पलायन कर रहे लोगों से कितना बढ़ा कोरोना का खतरा

लौकडाउन के बावजूद लोग घर से बाहर निकल रहे हैं, न सिर्फ  निकल रहे हैं, बल्कि भीड़ भी इकट्ठी हो रही है अगर ये सब नहीं रुका तो इस बात में कोई दोराय नहीं है कि भारत पर बहुत बड़ा संकट आ सकता है ये बात खुद एक्सपर्ट्स कह रहे हैं. कोरोना जिस तरीके से फैलता है ऐसे में इन पलायन कर रहे मजदूरों को रोका नहीं गया यदि सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो स्थिति बहुत बिगड़ जाएगी फिर आप वो दिन भी दूर नहीं जब देश में कोरोना अपनी थर्ड स्टेज में पहुंच जाएगा. अब आप खुद सोचिए कि जो मजदूर पलायन कर रहें हैं वो एक साथ भीड़ में इकट्ठा होकर निकल रहे हैं वो कितने सारे लोगों के संपर्क में आ रहे हैं.

पैदल जा रहे हैं रास्ते में कई जगह रुक भी रहे हैं.सोशल डिस्टेंस की बात की जा रही है ताकि कोरोना अपनी थर्ड स्टेज पर न पहुंच पाए लेकिन फिर भी लोग मानने को तैयार नहीं है.लेकिन यहां पर बात ये भी है कि जो दिहाड़ी मजदूर हैं उनकी मजबूरी है पलायन करना क्योंकि लॉकडाउन की वजह से उनका काम रुक गया है न कमा पा रहे हैं न खाने को कुछ है तो ऐसे में उनकी मजबूरी है पलायन करना लेकिन अब सबसे बड़ा खतरा यही है कि कोरोना और भी ज्यादा बढ़ सकता है.

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आज एक खबर राजस्थान के डूंगरपुर से आई जहां इंदौर से 2 बाप-बेटे बाइक से ट्रैवल करके अपने गांव राजस्थान के डूंगरपुर पहुंचे थे बाद में वो कोरोना पॉजिटिव पाए गए. इन बाप बेटे ने कुल 300 किलोमीटर 6 घंटे 42 मिनट का सफर तय किया और इस सफर में ये बाप बेटे कितने लोगों से मिले होंगे? कहां-कहां रुके होंगे, कितनी चीजों को छुआ होगा, रास्ते में कितनों के संपर्क में आए होंगे और तो और अपने घर पहुंचकर कितने लोगों के संपर्क में आए होंगे? ये कुछ ऐसे सवाल चिंता बढ़ाने वाले हैं क्योंकि वो कोरोना पॉजिटिव हैं.

हालांकि सरकार प्रवासियों पर एक्शन लेती दिख रही है बहुत जल्द इस पर रोक भी लग जाएगी और ने भरोसा दिलाया है कि जो भी लोग फंसे हैं उनके खाने का भी पूरा खयाल रखा जाएगा उन्हें भोजन उपलब्ध कराया जाएगा. गृह मंत्रालय ने स्टेट डिजास्टर रिलीफ फंड को प्रवासियों की मदद में देने का ऐलान कर दिया है. देश के जिस भी हिस्से में प्रवासी फंसे हैं उन प्रवासीयों को गृह मंत्रालय डिजास्टर रिलीफ फंड से खाना,  रहना, मेडिकल केयर, कपड़े  उपलब्ध कराएगा क्योंकि लौकडाउन के चलते दिहाड़ी मजदूरों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है.

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कोरोना के चलते लौकडाउन की वजह से कई यात्री जम्मू में फंस गए हैं. ये यात्री माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए यहां आए थें. हालांकि इन लोगों के लिए खालसा एड फाउंडेशन की तरफ से लंगर की व्यवस्था भी की गई है.कई जगहों पर प्रशासन जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आया है.अब रेलवे ने भी गरीब लोगों के लिए खाने व्यवस्था की  है. रेलवे दिल्ली में चार मुख्य रेलवे स्टेशन जैसे निजामुद्दीन, नई दिल्ली, आनंद विहार और शकूर बस्ती स्टेशन के बाहर करीब 20 हजार लोगों को खाना खिलाएगी. चंडीगढ़ प्रशासन ने भी गुरुद्वारों की मदद से जरूरतमंदों के लिए खाना पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है.सभी जरूरतमंद लोगों को दोनो वक्त खाना दिया जा रहा है ताकि कोई भी भूखा ना रहे.लेकिन फिर भी अंत में सवाल वही की लोगों के पलायन से जो खतरा आता दिख रहा है अब तक उसे कैसे रोका जाए.

हद पर भुखमरी और महामारी, सरकार की नाकामी का नतीजा

जब न्यूज चैनल पर एक क्लिप दिखाया गया जिसमे एक प्रवासी मजदुर साइकिल पर अपने बीवी बच्चे को बिठाकर सैकड़ो किलोमीटर की दूरी तय कर रहा था उसका बच्च्चा  निढाल सा साइकिल के डंडे पर बैठा था , बैठा क्या था लेटा हुआ था और उसका माथा साइकिल के हैंडल पर टिका हुआ था, कसम से हलक से खाना नही उतरा.

सरकार की अदूरदर्शिता और अनियोजित कदम का नतीजा है कि लाखों दिहाड़ी मजदूर, ग़रीब तबक़े के लोग आज सड़कों पर भुखमरी और महामारी का शिकार होने के कगार पर हैं. सैंकड़ो किलोमीटर दूर अपने घरों की ओर पैदल जाने को मजबूर ये ग़रीब लोग. इनकी दुर्दशा को देखकर – जानकर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है. कल से लाखों की संख्या में ऐसे लोगों को यूपी सरकार ने बुलंदशहर जिले की बॉर्डर पर रोक रखा है. रोटी-पानी को तरसते इन लोगों का हाल बेहाल है. अभी टीवी पर देख रहा था कि एक पुलिस अधिकारी माइक पर घोषणा करते हुए इन्हें झिड़कते हुए कह रही थी कि बस यहीं बैठे रहो. आगे बढ़ने की कोशिश की तो ठीक नहीं रहेगा.

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जब संवाददाता ने उस अधिकारी से पूछा कि कल से इन्हें यहीं रोक रखा है, कब तक इन्हें आगे जाने की कोई व्यवस्था की जाएगी. जबाब मिला कि सरकार इस पर गंभीरता से सोच रही है. कोई निर्णय होने पर आगे के क़दम का ऐलान किया जाएगा. त्वरित फैसले लेने का ढो.ल पीटने वाली सरकार अभी तक कोई फैसला नहीं ले सकी है. मुसीबत में फंसे इन गरीबों के प्रति सरकार की ये हद दर्जे की बेदर्दी है. अधिकांश राज्य में कमोबेश यही स्थिति है.

दूसरी तरफ अमीरों एवं खाते-पीते घरों के लोगों को यही सरकार उन्हें चीन, इटली आदि देशों से विमान के ज़रिए सरकारी खर्चे पर इस देश में ससम्मान लाने का काम किया है. त्वरित कार्यवाही करने की राग अलापते हुए सरकार ने अपनी पीठ ख़ूब थपथपाई है.

15 लाख लोग जनवरी से इस देश में आए हैं. ये लोग ही बाहर से इस बीमारी को हमारे देश में लाए हैं. एयरपोर्ट पर रोककर उनको 14 दिन तक अलग रखकर उन पर निगरानी रखनी चाहिए थी. सरकारी तंत्र में घुसपैठ रखने वाली संभ्रांत वर्ग की कनिका कपूर तो बेरोकटोक पार्टियां करती रही और औरों को बीमारी का तोहफा बांटती रही.

आज सड़को पर फंसे ये ग़रीब अगर कावड़ियों के वेश में होते या फिर धार्मिक उन्माद से परिचालित होकर कहीं तोड़फोड़ करने के लिए आगे बढ़ रहे होते तो इनकी ख़ूब आवभगत होती. याद कीजिए पिछले कुछ सालों में यूपी के डीजीपी सड़कों पर हुड़दंग करते चलते कावड़ियों पर हेलीकॉप्टर से फूलों की वर्षा करते रहे हैं. सरकार की आंखों का तारा बनने की होड़ में कई धनाढ्य लोग धर्म की चादर ओढ़े हुड़दंगियों की खाने-पीने की मुफ़्त सेवा कर धन्य होते हैं. पर इन गरीबों के लिए कुछ सुविधा जुटाने में किसी की कोई रुचि नहीं.

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नोट: ताज़ा समाचार के अनुसार अब यूपी सरकार ने रोडवेज की कुछ बसें भेजने का फ़ैसला किया है. बेहिसाब भीड़ और बसों की संख्या सीमित.

#coronavirus: यूपी के बरेली में मजदूरों को नहलाया गया कैमिकल के पानी से

सिर पर बड़ी बड़ी गठरियां, चेहरे पर मायूसी और बच्चों को पीठ पर लादे पलायन करते दिल्ली में मजदूरों की तसवीरें आप भूले नहीं होंगे. ये वही मजदूर हैं, जिन से शहरों को गति मिली, सङकें और अस्पताल बन कर तैयार हुए पर जब मुसीबत आई तो दिल्ली बेबस दिखी. नेता घरों में रामायण और महाभारत देखने में व्यस्त रहे. बस कुछ बचा था तो डर और अफवाहों का माहौल, जिस की गिरफ्त में आए मजदूरों के दुखदर्द को सुनने वाला शायद कोई नहीं था.

मजदूरों के पलायन की तसवीरें इतनी भयावह थीं कि देख कर रौंगटे भी खड़े हो जाएं.

दिल्ली के बाद अब यूपी में भी कुछ ऐसी ही भयावह तसवीरें देखने को मिली हैं, जहां एक बार फिर गरीब मजदूरों की बेबसी का मजाक उड़ाया गया.

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सैनिटाइज के नाम पर इंसानियत को शर्मसार करती घटना

यह घटना उस वक्त घटी जब लौकडाउन के दौरान उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में पहुंचे प्रवासी मजदूरों को बीच सड़क पर बैठा कर उन के ऊपर सैनेटाइजर का छिड़काव किया गया. घटना सामने आने के बाद कोरोना वायरस के खतरों के बीच सियासी घमासान भी शुरू हो गया और विपक्ष के नेताओं ने योगी सरकार की आलोचना करनी शुरू कर दी.

सैनिटाइज के नाम पर इंसानियत को शर्मसार करती इस घटना का तूल पकङना लाजिम भी था जब एक बस स्टैंड के पास सङक के एक कोने में मजदूरों के ऊपर पानी की बौछारें मारी जा रही थीं.

त्वचा के लिए नुकसानदेह है यह कैमिकल

इस पानी को सोडियम हाइपोक्लोराइड यानी लिक्विड ब्लीच के साथ मिलाया गया था. अग्निशमन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर यह काररवाई की गई थी जबकि चिकित्सकों के मुताबिक इस तरल ब्लीच को पानी में मिलाया जाना कतई उचित नहीं है. यह त्वचा पर लगाने पर जलन और खुजली भी पैदा कर सकता है. पानी में मिलाया गया यह कैमिकल आमतौर पर फर्श को साफ करने के लिए कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता है.

मचा सियासी घमासान

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घटना का वीडियो वायरल होने के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने ट्वीट करते हुए कहा, ”यूपी सरकार से गुजारिश है कि हम सब मिल कर इस आपदा के खिलाफ लड़ रहे हैं, लेकिन कृपा कर के ऐसे अमानवीय काम मत करिए. मजदूरों ने पहले ही बहुत दुख झेल लिए हैं. उन को कैमिकल डाल कर इस तरह नहलाइए मत. इस से उन का बचाव नहीं होगा बल्कि उन की सेहत के लिए और खतरे पैदा हो जाएंगे.”

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जवाब दे राज्य सरकार

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर प्रदेश की योगी सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट कर पूछा कि यात्रियों पर सेनिटाइजेशन के लिए किए गए कैमिकल छिड़काव से उठे कुछ सवाल का जवाब आप देंगे कि-
• इस के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्या निर्देश हैं?
• कैमिकल से हो रही जलन का क्या इलाज है?
• भीगे लोगों के कपड़े बदलने की क्या व्यवस्था की गई?
• साथ में भीगे खाने के सामान की क्या वैकल्पिक व्यवस्था है?

तेवर में दिखीं बहनजी

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा अध्यक्ष मायावती ने भी योगी सरकार की आलोचना की और कहा,”देश में जारी जबरदस्ती लौकडाउन के दौरान जनउपेक्षा व जुल्मज्यादती की अनेक तसवीरें मीडिया में आम हैं पर प्रवासी मजदूरों पर यूपी के बरेली में कीटनााशक दवा का छिड़काव करना अमानवीयता का पराकाष्ठा है.”

यों भी इस घटना ने एकबारगी यह एहसास दिला ही दिया कि यह वही देश है जहां की मंदिरें भी जातपात में बंटी हुई हैं और जहां की धार्मिक आडंबरों में भी छूआछूत दिखता है. फिर तो ये मजदूर थे, जो हालात के मारे थे और शायद तभी योगी सरकार के राज में इन मजदूरों को कैमिकलयुक्त पानी का छिड़काव कर शुद्ध किया गया बिना यह जाने कि यह कैमिकल उलटे इन मजदूरों को और बीमार कर सकता है.
लौकडाऊन की घोषणा के बाद कमी तो केंद्र सरकार की भी रही जिस ने एकबारगी फिर से नोटबंदी की भयावहता की याद ताजा करा दी. देश तब भी अफरातफरी के माहौल में था और आज भी उसी हाल में है.

योगीराज में सब राम भरोसे

उधर योगी आदित्यनाथ के ही राज में एक और वायरल वीडियो ने यूपी की कानून व्यवस्था को कटघरे में ला खङा किया है, जिस में आगरा एक्सप्रेसवे पर एक बस में यात्रा कर रहे यात्रियों से 100 किलोमीटर की यात्रा के लिए 400 रूपए वसूले जा रहे थे. वायरल वीडियो में यह साफ है कि इस बस में पहले तो यात्रियों को बैठा दिया गया और फिर बाद में 400-400 रूपए वसूले गए, वह भी ऐसे हालात में जब मजदूरों की हालत पतली थी और जेब में नाममात्र के पैसे. वायरल वीडियो में लोग पुलिस पर आरोप लगा रहे हैं कि उन की मिलीभगत से ही यह सब किया गया.

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वैसे भी योगी सरकार पर तो यह आरोप भी लग रहे हैं कि जब देश में कोरोना महामारी का रूप ले चुका था, तब उन के राज्य के कई मंत्री राम मंदिर निर्माण को ले कर कार्यक्रम में व्यस्त थे और कई घरों में बैठ कर रामायण और महाभारत देख रहे थे और देखें भी क्यों न क्योंकि यूपी में सब ‘राम भरोसे’ ही तो है.

#coronavirus: सेनेटाइजर के गलत इस्तेमाल से बन आई जान पर

सेनेटाइजर से हाथ और मोबाइल फोन को साफ रखने की सरकार द्वारा और डाक्टरों द्वारा भी यह हिदायत दी गई, लोग मानने भी लगे. पर इस का गलत इस्तेमाल एक शख्स को इतना भारी पड़ गया कि उस की जान जाने की नौबत आ गई. हालांकि दिल्ली के डाक्टरों ने इस शख्स की जान बचा ली है.

दरअसल, हरियाणा के रेवाड़ी में एक शख्स अपने रसोईघर में खड़ा हो कर अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन को सेनेटाइजर से साफ कर रहा था और पत्नी गैस चूल्हे पर खाना बना रही थी. इसी दौरान सैनिटाइजर ने आग पकड़ ली, जिस से वह शख्स तकरीबन 35 फीसदी तक झुलस गया.

आननफानन इस शख्स को रेवाड़ी से दिल्ली ला कर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डाक्टरों ने 35 फीसदी तक जल चुके उस शख्स की जान बचा ली.

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वजह पूछने पर डाक्टरों ने बताया कि मोबाइल साफ करने के दौरान सेनेटाइजर उस शख्स के कुरते पर गिर गया था. सेनेटाइजर में पाए जाने वाले एल्कोहल की वजह से वहां चूल्हा जलने के कारण कुरते ने आग पकड़ ली.

आग लगने के कारण उस शख्स का चेहरा, छाती, पेट और हाथ जल गए हैं.

बता दें कि सेनेटाइजर में 75 फीसदी तक एल्कोहल पाया जाता है और एल्कोहल के ज्वलनशील होने की वजह से आग लगने की संभावना बढ़ जाती है.

डाक्टरों ने सेनेटाइजर को ले कर सावधानी बरतने को कहा है, वहीं जरूरत से ज्यादा सेनेटाइजर का इस्तेमाल करने के लिए मना किया है. साथ ही, हर चीज को सेनेटाइज करने की जरूरत नहीं है. इस का इस्तेमाल करने से पहले जो भी जरूरी सावधानी है, बरतने को कहा है.

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#coronavirus: दुनिया कोरोना से जूझ रही है, ये अवैध शराब बेच रहे हैं

नंगी आंखों से न दिखने वाले एक वायरस ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई हुई है. हर देश में मातम सा छाया है, लोग अनजाने डर की गिरफ्त में हैं, न जाने कितने अपनी जान गंवा चुके हैं, पूरा संसार ठप हो चुका है, लोग अपने घरों में दुबके हैं, जो बेघर हैं उन्हें भी अपनी जान की फिक्र है, दो वक्त की रोटी का इंतजार है. इस के बावजूद बहुत से ऐसे असामाजिक तत्त्व हैं जो अब भी शराब जैसी सामाजिक बुराई की गैरकानूनी सप्लाई कर रहे हैं.

देश की राजधानी नई दिल्ली से सटे हरियाणा में ही ,फरीदाबाद जिले को ही देख लें. फरीदाबाद जिले के बल्लभगढ़ में तिगांव थाना पुलिस ने गांव मंझावली में 28 मार्च की शाम को दबिश दे कर देशी शराब ठेके के एक मुलाजिम और 2 ग्राहकों को गिरफ्तार कर केस दर्ज किया.

इसी तरह बल्लभगढ़ में ही क्राइम ब्रांच सैक्टर 65 की टीम ने शहर की भूदत्त कालोनी में 29 मार्च को सरेआम कार में गैरकानूनी तरीके से शराब बेच रहे एक नौजवान को गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से अंगरेजी शराब की 10 पेटियां बरामद हुईं.

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क्राइम ब्रांच सैक्टर 65 के हैड कांस्टेबल संदीप ने बताया कि वे पुलिस टीम के साथ गश्त कर रहे थे कि एक मुखबिर ने उन्हें बताया कि संदीप नाम का एक आदमी किसी प्राइवेट स्कूल के पास कार में शराब बेच रहा है. पुलिस ने वहां दबिश दी और संदीप को धर दबोचा.

फरीदाबाद से सटे हथीन इलाके में बहीन थाना पुलिस ने निषेधाज्ञा के दौरान एक आदमी को गिरफ्तार कर उस के पास से अवैध देशी शराब पकड़ी. इसी तरह बल्लभगढ़ इलाके के गांव सागरपुर में पुलिस ने शराब की 29 बोतलें बरामद कीं.

इस सिलसिले में एएसआई अजय कुमार ने बताया कि मिली खबर के मुताबिक पुलिस उस दुकान पर पहुंची जहां से यह शराब बेची जा रही थी. वहां एक आदमी शराब लेने आया. दुकानदार ने दुकान के शटर के नीचे से उसे शराब का एक अद्धा पकड़ा दिया.  बस, तभी पुलिस ने उस दुकानदार को पकड़ लिया.

ये तो थे पुलिस की शाबाशी के काम पर बल्लभगढ़ में ही एक वर्दीधारी ने लौकडाउन के दौरान कार में बैठ कर शराब पी और लोगों को डरायाधमकाया भी.

रविवार, 29 मार्च का यह मामला बल्लभगढ़ के मलेरना रोड का था जहां एक पुलिस वाला अपने 3 साथियों के साथ कार में बैठ कर शराब पीता मिला. इतना ही नहीं, वह हंगामा भी कर रहा था. आते जाते लोगों को परेशान कर रहा था.

जब दूसरे पुलिस वाले वहां पहुंचे तो वह उन से भी उलझने लगा. पुलिस की चैकिंग में गाड़ी से शराब की बोतल, गिलास और कुछ फल भी मिले. इतने में वह पुलिस हवलदार वहां से भाग गया.

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लोकल लोग दबी जबान में बोल रहे थे कि वहां गई पुलिस ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की, जबकि पुलिस बोल रही है कि उस हवलदार की पहचान कर ली गई है और उस पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी.

कोरोना: चीन, अमेरिका और नरेंद्र मोदी

दुनिया की महाशक्ति अमेरिका, चीन इत्यादि जो कभी किसी बड़े से बड़े ब्रह्मास्त्र यानी मिसाइलों को थामने की शक्ति रखते थे, आज  कोरोना  वायरस के  समक्ष बेबस दिखाई दे रहे हैं. एक अदद कोरोना वायरस के दंश झेलते हुए…! आज से पहले, कोई ऐसा कहता, सोचता तो उसे खारिज कर दिया जाता. हथियारों की होड़, ऊंची परमाणु शक्तियों से समृद्ध ऐश्वर्या पूर्ण जीवन और उच्च संस्था शीर्ष पर मानव सभ्यता, आज एक वायरस के समक्ष कैसी बेबस है. यह देखकर आप क्या यह महसूस नहीं करते हैं की एक दिन तो  ऐसा होना ही था.

दरअसल, कोरोना वायरस चीन की ईजाद है, वुहान शहर की प्रयोगशाला से वैज्ञानिकों, डॉक्टरों को धत्ता बता, उन्हें ही मार यह निकल पड़ा. कहते हैं, चीन इसके लिए दोषी है, जिसने संपूर्ण मानवता को खतरे में डाल दिया है. इस भूमिका के पश्चात इस लेख का जो विषय है हम उस पर आते हैं. कोरोना वायरस को लेकर जो स्थितियां हैं उससे प्रतीत होता है की चीन, अमेरिका सहित अन्य  प्रमुख  राष्ट्र  को नेस्तनाबूद करने आमदा है.दुनिया की  सबसे  ताकतवर हस्ती  राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को झुकाना चीन का उद्देश्य पूर्ति होता दिखाई दे रहा है, दुनिया पर अपने वर्चस्व की रणनीति के तहत कोरोना वायरस की इजाद की गई है. और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जिस तरह अमेरिका के आगे पीछे घूम रहे थे, चीन को नीचा दिखाने की कोशिश उनकी बांडी लैंग्वेज से अक्सर दिखाई पड़ती थी के दुष्परिणाम स्वरूप भारत भी चीन के एजेंडे पर है.

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कोरोना :  चीन की मानसिकता

नरेंद्र दामोदरदास मोदी जैसे ही प्रधानमंत्री बने उन्होंने विश्व नेता बनने भूमिका बनानी शुरू कर दी. उनकी चाल ढाल, भाव भंगिमा ऐसी रही की भारत एक महाशक्तिशाली राष्ट्र है और उसके प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी विश्व को अपनी मुट्ठी में भींच लेंगे .

यही गतिविधि थी की नरेंद्र मोदी ने प्रथम कार्यकाल में “दुनिया भर” का चक्कर लगाया और हर जगह मोदी- मोदी के नारे लगवाए . चीन के राष्ट्रपति अमेरिका के राष्ट्रपति हो या जापान, जर्मनी के प्रमुख सब जगह बेवजह यह दिखाया गया की नरेंद्र मोदी एक सशक्त नेता हैं और जल्द ही दुनिया का नेतृत्व करेंगे.भारत  पुनः  विश्व गुरु बनेगा.दरअसल, जब कोई छोटा आदमी बड़ी-बड़ी बातें करता है तो उसे डपट दिया जाता है… यह मानसिकता हर जगह है. भले ही वह सही हो… नरेंद्र दामोदरदास मोदी के इन हाव भाव, एक्शन से चीन का चिढ़ना स्वाभाविक है.

पाकिस्तान का मामला हो या चीन का सीमा विवाद, नरेंद्र मोदी का एक्शन, चीन के प्रमुख को कतई पसंद नहीं आता होगा. यही कारण है की जब “कोरोना का प्रकोप”भारत में प्रसारित हो रहा है और चीन उस पर काबू पा चुका है तो उसका  प्रशिक्षण आदि तक चीन भारत को शेयर नहीं कर रहा है.

कोरोना : चीन की रणनीति

कोरोना को लेकर चीन की रणनीति को अभी  समीक्षक समझने का प्रयास कर रहे हैं. मगर जो तथ्य सामने आ रहे हैं उसमें यह तो स्पष्ट है  की कोरोना चीन की ईजाद है. क्षति होने के बाद भी चीन ने उस पर काबू पा लिया है और पुनः उसकी गाड़ी पटरी पर लौट रही है. पार्क,सड़कें खुल गई हैं मगर दूसरी तरफ विश्व में तबाही मची हुई है. अमेरिका,भारत सहित दुनिया के 182 देश कोरोना की चपेट में है. विश्व की अर्थव्यवस्था, मानव सभ्यता रसातल में जाने की परिस्थितियां निर्मित हो चुकी है. भारत में ही देखें, सारी ट्रेन, फैक्ट्रियां, सड़क बंद है.क्या यह भारत को घुटनों पर लाने के लिए पर्याप्त नहीं है.इन हालातों में भारत  50 वर्ष पीछे चला जाएगा.

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चीन से गुहार जरूरी

ऐसे समय में भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को, सारी कुंठाये भूल बिसार कर,चीन के राष्ट्अध्यक्ष से चर्चा करके मदद मांगनी चाहिए. भारत अर्थव्यवस्था, सामरिक शक्ति, और समृद्धि के समक्ष बेहद कमतर है, जब दुनिया के महा शक्तिशाली देश कोरोना से निजात नहीं पा पा रहे हैं तो भारत अपने दम पर कैसे विजय प्राप्त करेगा. ऐसे में चीन से सवांद करके उससे मदद मांगनी चाहिए .भारत-चीन भाई भाई का वास्ता देकर, एक पड़ोसी का वास्ता देकर भारत को मदद मांगनी चाहिए. चीन ही ऐसा उत्स है जहां से कोरोना प्रारंभ हुआ था, और वही है जो, इसे खत्म करने की ताकत रखता है यह दुनिया देख चुकी है.

#Lockdown: बेजुबानों का भी है शहर

लौकडाउन हो जाने से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों के तमाम हजारों गरीब कामगार अपने गांव लौट रहे हैं, वहीं जंगली जानवर भी कैद से निकल सड़कों पर उतर आए हैं.

इन जानवरों के सड़कों पर उतरने से घरों में रह रहे लोगों में भय बना हुआ है कि ये जानवर कहीं घरों में घुस कर हमला न कर दें, वहीं सड़कों से अपने गांव जा रहे लोग भी डरेसहमे हैं.

इन जानवरों के सड़कों पर दिख जाने से लोग भी अपने घरों की खिड़कियों से अजीब नजरों से देख रहे हैं और इन के फोटो मोबाइल में कैद कर रहे हैं.

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देहरादून, केरल, चंडीगढ़, नोएडा की सड़कों के अलावा भी कई जगहों पर ऐसे दुर्लभ प्रजाति के जानवरों को देखा गया.

हालांकि इंसानों पर हमले की कोई खबर नहीं है. ये जानवर अभी तो कैद से बाहर निकल खेतों को बर्बाद कर रहे हैं. इस वजह से किसानों को फसलों के और भी चौपट हो जाने की उम्मीद है.

विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे कस्तूरी बिलाव को भारतीय वन सेवा के कुछ अधिकारियों ने देखा है. केरल के कोझीकोड में सड़क पर घूमते कस्तूरी बिलाव का वीडियो साझा करते हुए कहा कि यह जीव गंभीर रूप से खतरे में हैं और अब सिर्फ 250 वयस्क बिलाव ही बचे हैं. कस्तूरी बिलाव को आखिरी बार 1990 में देखा गया था.

फ़िल्म कलाकार अर्जुन कपूर ने भी विलुप्त हो रही प्रजाति के जानवरों के वीडियो साझा किए हैं. केरल की सड़कों पर एक भारतीय कस्तूरी बिलाव का वीडियो है, जो दुर्लभ जानवरों की केटेगिरी में आता है. उन्होंने अपने इंस्टाग्राम पर कैप्शन में लिखा है, मालाबार कस्तूरी बिलाव. यह बेहद दुर्लभ प्रजाति का जानवर है.

इस के अलावा नोएडा के सेक्टर-38 में नीलगाय सड़क पर घूमती दिखी है, वहीं चीतल देहरादून की सड़कों पर दौड़ता दिख रहा है. चंडीगढ़ में भी सड़क पर सांभर हिरण नजर आया है, वहीं मध्य प्रदेश की सड़कों पर जंगली जानवर घूमते नजर आ रहे हैं.

कोरोना वायरस के इस दौर ने यह सच्चाई उगल दी है कि प्रकृति कैसे खुद को संभाल कर फिर से मजबूत हो सकती है.

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शहरी इलाकों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में भी मौसम साफ हो जाने से हर तरह के पक्षी नजर आ रहे हैं और उन की चहचहाहट सुनाई दे रही है. वहीं इंसानी दखल कम होने से प्रकृति एक बार फिर से मजबूत हो रही है.

एक तरफ बेजबानों जंगली जानवरों का सड़क पर दिखना कौतूहल का विषय है, वहीं इन की भूख से बेहाली की सुध भी एक बड़ी चुनौती है.

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