कोरोना का कहर बाहर ही नहीं, बल्कि पेट के भीतर भी जारी है. देशभर में तालाबंदी होने से तमाम राज्यों ने अपनी सीमाएं बंद कर रखी हैं. जो जहां है, वहीं का हो कर रह गया है. इतना ही नहीं, गांवों में बुरी हालत है क्योंकि गरीब दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं.
जी हां, वाकई गांवों में रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों को रोटी नहीं मिल पा रही है. भूख से कलपते इन गरीबों का खयाल कोई नहीं ले रहा.
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के बुजुर्गा गांव में वनवासी मुसहर बस्ती में कामगार और गरीब मजदूर परिवारों का हाल बड़ा ही बेहाल है. इन के पास तालाबंदी के चलते कोई काम नहीं है और न ही उन तक राशन पहुंच पाया है.
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ये गरीब मजदूर परिवार हर रोज खानेकमाने वाले हैं. इन दिनों इन लोगों को रोजीरोटी की किल्लत आ गई हैं. घर मे खाने को अनाज का दाना नहीं है. भूख मिटाने के लिए ये लोग सुबहसवेरे ही निकल पड़ते हैं खेतों की ओर. उन सूने पड़े खेतों में बचे हुए छोटे आलू बीन कर घर ला रहे हैं और इन आलू को नमक के साथ खा कर अपनी जिंदगी किसी तरह गुजरबसर करने को मजबूर हैं.
इन लोगों का कहना है कि वे ईंटभट्टों पर काम करते थे. लॉकडाउन के कारण काम बंद है. इस वजह से मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है. दुकानदार बिना पैसा लिए सामान देने को तैयार नहीं है.
हालात ये है कि जो आलू खेतों से चुन कर लाए थे वो भी खत्म हो रहे हैं और सरकारी मदद भी नहीं मिली है. ऐसे में इस बस्ती के सभी बच्चे और औरतें भी भूखे रहने को मजबूर हैं और बचे हुए आलू पर निर्भर हैं.
इस गांव में गरीब लोग सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब ही नहीं जानते और न ही साफसफाई का ध्यान रखते, सब एकदूसरे के साथ वैसे ही बिना किसी परहेज के रह रहे हैं. वे इस वक्त भोजन न मिलने के कारण ज्यादा परेशान हैं.
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गाजीपुर के डीएम को जब यह समस्या बताई गई तो वे जान कर हैरान हो गए. वे चौंकने वाले अंदाज में बोले कि ये सभी लोग तो चिन्हित हैं. पता नहीं, क्यों अब तक उन परिवारों में राहत सामान नहीं पहुंचा, मैं खुद हैरान हूं, वहीं प्रशासन का कहना है कि हम तत्काल उन गरीबों को खाद्यान्न मुहैया करा रहे हैं.
यह तो महज एक गांव की तसवीर है. न जाने कितने गांव होंगे जो इस तरह की भूख जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं.
है कोई उपाय किसी के पास इन गरीबों की भूख मिटाने का. नहीं तो ये बेचारे बेमौत मारे जाएंगे, कोरोना से नहीं भूख से.