गोल्डन ईगल का जाल : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

रंजना के पति राजू की 15 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उस समय रंजना के चारों बच्चे, 2 बेटे और 2 बेटियां छोटे थे. ऐसे में विधवा औरत के कंधों पर अगर 4 बच्चे पालने की जिम्मेदारी आ जाए तो उस के लिए मुश्किल हो जाती है. बिना मर्द के राह में कई रोड़े आ जाते हैं, अंजना के साथ भी यही हुआ.

उस के पास बदायूं के मोहल्ला लोटनपुरा में पति राजू का बनाया घर तो था, लेकिन जमापूंजी या आय का कोई साधन नहीं था. मजबूरी में उसे 2 बच्चों आशीष और नेहा की जिम्मेदारी अपने जेठ सरवन को सौंपनी पड़ी, जो पड़ोस में ही रहते थे.

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2 बच्चों बेटे अनिल और बेटी नीना को साथ ले कर उस ने घर से थोड़ी दूर बसे गांव कुंवरपुर निवासी छोटे के साथ बिना किसी विधिविधान के रहना शुरू कर दिया. समाज के सहयोग से बने नए पति के साथ रहने को बैठना कहा जाता है. रंजना के बच्चे समय के साथ बड़े होने लगे. सारी बातों को समझने लायक हुए तो उन्होंने पढ़ाई में विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया. आशीष के स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद नेहा ने भी स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर ली.

नेहा जवान और बालिग हो चुकी थी. गौरवर्ण वाली नेहा की देहयष्टि आकर्षक थी, चेहरे पर मासूमियत. झील सी गहरी आंखों में तो कोई भी उतरने को तैयार हो जाता. नेहा पर कालेज में कई युवक फिदा थे. जब वह कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में कंप्यूटर सीखने के लिए जाने लगी तो वहां आने वाले युवक भी उस पर डोरे डालने लगे.

लेकिन नेहा किसी को भाव नहीं देती थी, न ही उन में से कोई उस के दिल को भाया था. फिर एक दिन उस की जिंदगी का वह दिन भी आया, जब उस के दिल में किसी ने दस्तक दे दी.

एक स्मार्ट और दर्शनीय युवक ने उस की कंप्यूटर क्लास में आना शुरू किया. वह काफी मिलनसार और हंसमुख था. पहले दिन वह सब से बारीबारी से मिला और अपना परिचय दिया. उस ने अपना नाम राजकुमार बताया. नेहा को ऐसा लगा जैसे वह नाम का ही नहीं, उस के दिल का राजकुमार भी है.

नेहा ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया. समय के साथ दोनों में दोस्ती हो गई. साथ बैठ कर दोनों खूब बातें करने लगे. राजकुमार भी उस में दिलचस्पी ले रहा था. वह नेहा की खूबसूरती को चुपचाप निहारता रहता था.

असल में राजकुमार की नजर नेहा पर ही थी. वह उसी के लिए वहां आया था. उस ने नेहा के नजदीक रहने, उस से मेलजोल बढ़ाने के लिए ही कंप्यूटर क्लासेज जौइन की थी. नेहा को वह अपने दिल की रानी बनाना चाहता था.

प्यार की शुरुआत

बातें करतेकरते नेहा ने भी कई बार गौर किया कि राजकुमार नजरें चुरा कर उसे निहारता है. इस का मतलब यह था कि वह भी उसे दिल ही दिल में चाहता है, लेकिन मन की बात कह नहीं पा रहा है या फिर मौके की तलाश में है.

उस के बारे में सोच कर नेहा मन ही मन खुश थी. राजकुमार नेहा को हंसाने और उस का दिल बहलाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था. एक दिन कंप्यूटर क्लासेज खत्म होने पर जब सब घर जाने लगे तो रास्ते में राजकुमार ने नेहा को रोक लिया. नेहा ने प्रश्नवाचक निगाहों से उस की ओर देखा तो वह बोला, ‘‘नेहा, एक मिनट के लिए रुक जाओ. मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘नेहा, पहले वादा करो कि तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी तो बुरा नहीं मानोगी.’’

‘‘मुझे पता तो चले कि बात क्या है? बुरा मानना या न मानना तो बाद की बात है.’’

‘‘आई लव यू नेहा… आई लव यू. हां नेहा, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. अगर तुम मेरे प्यार को स्वीकार कर लो तो मेरी जिंदगी संवर जाएगी.’’

‘‘तुम्हारी यह कहने की हिम्मत कैसे हुई?’’

नेहा की तीखी आवाज सुन कर राजकुमार सकपका गया. उस की हालत देख कर नेहा खिलखिला कर हंस पड़ी.

नेहा को हंसता देख राजकुमार ने प्रश्नवाचक निगाहों से उस की ओर देखा तो नेहा बोली, ‘‘बस इतने में घबरा गए. मैं भी तुम से प्यार करती हूं और यह भी जानती थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन मैं चाहती थी कि पहल तुम ही करो.’’

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राजकुमार ने खुश हो कर उसे गले लगाना चाहा तो नेहा पीछे हटते हुए बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, हम दोनों सड़क पर खड़े हैं. यह खुशी रोक कर रखो, समय आने पर जता देना.’’ कह कर नेहा वहां से चली गई.

दूसरे दिन दोनों सुनसान जगह पर एकांत में झाडि़यों के पीछे बैठ गए.

राजकुमार ने नेहा का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘नेहा, तुम्हारा फूलों सा चेहरा और कलियों जैसी मुसकान देख ऐसा लगा जैसे मेरे जीवन की बगिया में बहार आ गई है. आज मैं इतना खुश हूं कि बयान नहीं कर सकता.’’

नेहा अपनी सुंदरता की तारीफ सुन कर शरमाते हुए बोली, ‘‘तुम बेकार में मेरी तारीफ किए जा रहे हो, जैसी भी हूं, तुम्हारे सामने हूं. मैं अपनी सुंदरता पर प्यार लुटाने का अधिकार तुम्हें पहले ही दे चुकी हूं.’’

‘‘तुम्हारी खूबसूरती और शरारत भरी बातों ने ही मेरा दिल जीत लिया है.’’ कह कर राजकुमार ने उसे अपने सीने से लगा लिया.

इस के बाद दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. नेहा और राजकुमार एक जाति के नहीं थे. इसलिए उन के परिवार उन के विवाह के लिए तैयार नहीं होंगे, यह बात दोनों जानते थे.

हालांकि राजकुमार ने नेहा को कभी अपने परिवार से नहीं मिलाया था, न इस बारे में कुछ बताया था. नेहा ने राजकुमार को अपने भाई व ताऊ से मिलवाया, लेकिन वे नेहा का रिश्ता राजकुमार से जोड़ने को तैयार नहीं हुए.

उन दिनों नेहा की मां रंजना अपने पति छोटे के साथ उत्तराखंड के रूद्रपुर में रह रही थी. नेहा राजकुमार के साथ मां के पास गई और मां पर राजकुमार से विवाह का दबाव डालने लगी. उस ने मां को धमकाया भी कि अगर राजकुमार से उस का विवाह नहीं हुआ तो वह हाथ की नस काट कर अपनी जान दे देगी.

राजकुमार की खुली पोल

रंजना बेटी को खो देने के डर से सहम गई. नेहा के पीछे पड़ने से आखिर रंजना को बेटी की जिद के आगे झुकना पड़ा. उस ने बेटी नेहा का विवाह हिंदू रीतिरिवाज से राजकुमार से कर दिया. यह डेढ़ साल पहले की बात है. दोनों वहीं रहने लगे.

कुछ दिनों बाद राजकुमार उसे दिल्ली ले आया. दिल्ली में रहते हुए वह एक फर्नीचर की दुकान पर काम करने लगा, वह पेशे से बढ़ई था. फिर एक दिन नेहा के सामने उस की पोल खुल गई. राजकुमार का असली नाम आसिफ उर्फ बाबा था.

आसिफ उर्फ बाबा बदायूं के निकटवर्ती गांव शेखूपुर का रहने वाला था. उस के पिता शकील खेतीकिसानी करते थे. आसिफ 4 भाई व 2 बहनों में तीसरे नंबर का था.

2018 में बदायूं शहर के खंडसारी मोहल्ला निवासी हिस्ट्रीशीटर रहे नईम उर्फ राजा की छह सड़का के नजदीक गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जिस में 17 लोगों के नाम सामने आए थे. उन में आसिफ के पिता शकील और बड़े भाई साबिर का भी नाम था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था, तब से दोनों जेल में हैं.

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आसिफ का विवाह ढाई साल पहले आगरा की अर्शी के साथ हुआ था. उस से आसिफ का एक डे़ढ साल का बेटा भी है. आसिफ शातिर और खुराफाती था. वह उन मुसलिम युवकों में से था जो हिंदू नाम रख कर हिंदू युवतियों को प्रेमजाल में फंसाते हैं और उन से विवाह कर लेते है. उस के बाद उन्हें अपना धर्म स्वीकार कर के अपने साथ रहने को मजबूर करते हैं. ये लोग युवती के न मानने पर उस की जान लेने से भी पीछे नहीं हटते.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

कोरोना : प्रधानमंत्री का नाम, बीमा ठगी का मायाजाल

हमारे देश में आम आदमी इतना सीधा साधा अथवा सज्जन  है कि बात बात पर “चतुर सुजान” लोग उन्हें ठगने का मायाजाल रचते रहते हैं, और सफलीभूत भी हो जाते हैं. अब कोरोना वायरस के समय काल में ठगों ने  “प्रधानमंत्री बीमा” के नाम पर आम लोगों को ठगी का शिकार बनाना शुरू कर दिया है.

देश में कोरोना की रफ्तार एक ओर जहां थम नहीं रही है, वहीं दूसरी ओर अब कोरोना के नाम पर ठगी करने का मामला शिकायत के पश्चात पुलिस ने पकड़ा है. छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल के बलरामपुर में कोरोना बीमा के नाम पर लाखों रुपए की ठगी करने का  मामला सामने आया है. पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि बीमा के नाम पर ठगी का मायाजाल रखने वाले दो आरोपियों को दबोचा गया है.

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बलरामपुर पुलिस के शब्दों में दो  व्यक्तियों ने “कोरोना बीमा प्रधानमंत्री की योजना” बताकर 12 से ज्यादा लोगों से लाखों रुपए वसूले गए है. इस ठगी का एहसास होने पर वाड्रफनगर थाना पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई .वहीं दोनों की पहचान कर पुलिस ने गिरफ्तार करने में सफलता पाई है.

महिलाओं को बनाया ठगी का शिकार

गांव कोटराही निवासी उर्मिला देवांगन ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी कि 10 नवंबर को शाम छह बजे बाइक से दो लोग पहुंचे और बोले कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की “कोरोना कवच योजना” पर बीमा स्कीम आई है. उसका लाभ उठा लो वरना बहुत जल्दी यह योजना बंद हो जाएगी. यही नहीं उन्होंने साफ-साफ कहा-” बीमा करने के लिए उन्हें सरपंच ने भेजा है.”

इसके बाद उन्होंने आधार कार्ड और बैंक का खाता नम्बर मांग लिया. यही नहीं ठगों ने ठगी की शिकार  महिला से बायोमैट्रिक मशीन में अंगूठा लगवाया. उन लोगों का व्यवहार कुछ ऐसा था कि मानो वह लोग जो कर रहे हैं वह बिल्कुल सही है. कुछ दिन बाद महिला अपने पासबुक को लेकर सेंट्रल बैंक गई तो पता चला कि उसके खाते से पांच हजार रुपए गायब है. महिला के रिपोर्ट के बाद खुलासा हुआ कि उर्मिला, फूलबास, पतंगों, सुकुन्ती, सुखमन सभी इसी तरह ठगी की वारदात की शिकार हुई है.जांच में खुलासा हुआ कि रमकोला निवासी जाकिर मोमिन और सज्जाद मोमिन का ठगी में हाथ है. पुलिस द्वारा शक के आधार में हिरासत पर लेकर जांच की गई तो आरोपियों ने अपराध कबूल कर लिया.उनसे लैपटॉप, थंब स्कैनर और नकद डेढ़ हजार रुपए रुपए जब्त किए गए.

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पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि आरोपियों ने सैकड़ों लोगों से अलग अलग जिलों में ठगी की वारदात को अंजाम दिया है. जांच में कई तरह की बातों का खुलासा हुआ है. आरोपी कोरोना से मौत पर पांच लाख और बीमार होने और रोजाना ढाई सौ मिलने का झांसा दिया करते थे. जब कोरोना संक्रमण नहीं था तब भी वे अंगूठा लगवाकर ठगी करते थे और बैंक खातों से पैसा निकाल लेते थे. आरोपी जब महिला के पास पहुंचे तो उन्होंने खुद को एचडीएफसी बैंक का कर्मचारी बताया था.

समझदारी और लालच से बचाओ

छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य अंचल है जहां शिक्षा का अभाव है. ऐसे में यहां सरकारी योजनाओं के नाम पर ठगी का मायाजाल रचना आसान हो जाता है. कभी मछली पालन के नाम पर तो कभी नौकरी लगाने के नाम पर यहां लोगों को खड़े-खड़े ठगने के कितने ही उदाहरण हैं. अब नई ठगी का मायाजाल प्रधानमंत्री बीमा योजना का है जो यह बताता है कि कोरोना वायरस के इस भीषण समय में अगर आप कोरोना  से संक्रमित हो जाते हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह योजना आपके लिए रक्षा कवच का काम करेगी और सीधे-साधे अपढ़ लोग इनके जाल में फंसते चले गए. उनके दस्तावेजों को लेकर फिंगरप्रिंट लेकर उनके खातों से ठग रुपए उड़ाने लगे मगर जैसा कि हमेशा होता है अपराधी अंततः बेनकाब होता ही है यहां भी यही हुआ.

पुलिस अधिकारी इंद्रजीत सिंह का इस संदर्भ में मानना है कि छत्तीसगढ़ में ठगी का प्रतिशत  आमतौर पर इसलिए अत्यधिक है क्योंकि यहां लोग अशिक्षित हैं नियम कायदों को नहीं जानने के कारण किसी की भी बातों में आकर अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज दिखा देते हैं, उन्हें फोटो कॉपी दे देते हैं और अंततः ठगे जाते हैं.

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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता डॉ उत्पल अग्रवाल के अनुसार छत्तीसगढ़ में जनजागृति आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है. मगर सरकार इस दिशा में कोई काम नहीं कर रही है जब तक शिक्षा की ज्योति छत्तीसगढ़ में नहीं जलेगी आम लोग ठगी का शिकार ऐसे ही होते रहेंगे.

संदेह का वायरस

संदेह का वायरस : भाग 2

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

65 वर्षीय महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के लालगंज बाजार के रहने वाले थे. अच्छे काश्तकार होने के साथ वह एक उच्चकुल के ब्राह्मण थे. गांव में उन की काफी इज्जत थी. उन का पूरा परिवार गांव में रहता था. महेंद्रनाथ सालों पहले मुंबई आ बस गए. वह करीब 30 सालों से महानगर नवी मुंबई के घनसोली इलाके में रहते आ रहे थे और फलों का व्यवसाय करते थे.

28 वर्षीय अंबुज तिवारी उन का बेटा था, जिसे वह बहुत प्यार करते थे. स्वस्थ, सुंदर अंबुज तिवारी ने साइंस से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. फलस्वरूप उसे मुंबई जैसे महानगर में नौकरी के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा.

पढ़ाई पूरी कर के वह सन 2010 में नौकरी के लिए पिता के पास मुंबई आ गया था. मुंबई में उसे कुर्ला की एक जानीमानी सीमेंट मिक्सिंग कंपनी में क्वालिटी सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई. अंबुज तिवारी जिस फर्म में काम करता था, उसी में श्रीकांत चौबे भी नौकरी कर रहा था. वह फर्म में टैंपो ड्राइवर था. वह माल डिलिवरी करता था.

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23 वर्षीय श्रीकांत जयनारायण चौबे भी मूलरूप से आजमगढ़ का ही रहने वाला था. जल्दी ही दोनों की जानपहचान दोस्ती में बदल गई. जब भी मौका मिलता, दोनों घूमनेफिरने निकल जाते थे.

अच्छी नौकरी और अंबुज की बढ़ती उम्र को देखते हुए महेंद्रनाथ तिवारी अंबुज की शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते थे. उन्होंने जानपहचान और नातेरिश्तेदारी में अंबुज की शादी की बात चलाई तो उन्हें नीलम के बारे में जानकारी मिली.

बातचीत के बाद 2016 में नीलम और अंबुज की शादी हो गई. शादी के बाद अंबुज ने कुछ दिनों के लिए नीलम को अपनी मां की सेवा के लिए गांव में छोड़ दिया था. वह खुद पिता के साथ मुंबई में रहता रहा. बीचबीच में वह छुट्टी ले कर गांव जाता रहता था.

मगर नीलम इस से संतुष्ट नहीं थी. वह उस से इस बात की शिकायत करती थी कि उस के बिना उसे गांव अच्छा नहीं लगता. वह सारी रात उस को याद करकर के करवटें बदलती है. वैसे भी तुम्हें और पापा को खाना बनाने में तकलीफ होती होगी. नीलम की शिकायत वाजिब थी. क्योंकि वह जवान और नईनवेली दुलहन थी. उस के भी अपने सपने और अरमान थे. उस का भी दिल पति के साथ रहने के लिए मचलता था, पर अंबुज की अपनी कुछ विवशताएं थीं.

उस की मां बूढ़ी हो चली थी. मुंबई में वह पिता के साथ रहता था. घर छोटा था, ऐसे में वह घर में कैसे रहेगी. काफी सोचविचार के बाद उसे नीलम की जिद पर उसे मुंबई ले कर आना पड़ा.

नीलम को अपने पति और ससुर के साथ रहते हुए लगभग एक साल से अधिक हो गया था. मुंबई आ कर नीलम ने घर और रसोई का सारा काम संभाल लिया था. पति के साथ नीलम बहुत खुश थी. मगर उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रही. उस के सुखी जीवन में परेशानी कुछ इस कदर आ कर बैठ गई कि उस का मानसम्मान सब रेत की दीवार की तरह ढह गया.

फोन बना परेशानी

नीलम का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह चंचल स्वभाव और खुले विचारों वाली हंसमुख और मिलनसार युवती थी. घर का कामकाज निपटा कर वह दिल बहलाने के लिए फोन पर अपनी फ्रैंड्स और मायके वालों के साथ चिपक जाती थी.

इस बीच जब अंबुज को नीलम से बात करने की इच्छा होती थी तो उस का फोन बिजी रहता था, जिसे ले कर अंबुज के मन में तरहतरह के खयाल आने लगे थे. धीरेधीरे यही खयाल संदेह का वायरस बन कर अंबुज के दिमाग में बैठ गया.

उसे लगा कि नीलम का गांव में किसी युवक के साथ चक्कर है. इस बारे में अंबुज ने जब नीलम से बात की तो वह स्तब्ध रह गई. फिर उस ने अपने आप को संभाल लिया और कहा कि यह सब उस के मन का वहम है.

नीलम के लाख सफाई देने के बाद भी संदेह का वायरस अंबुज के दिमाग से नहीं गया. वह बातबात पर अकसर नीलम से लड़ाई और मारपीट करने लगा. संदेह का वायरस उस के दिमाग में कुछ इस प्रकार घुसा था कि उस ने नीलम को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.

घटना वाली रात अंबुज पिता महेंद्रनाथ तिवारी को बिना बताए नीलम को यह कह कर साथ ले गया कि उस के दोस्त की बर्थडे पार्टी है. दोनों श्रीकांत चौबे के घर अर्जुनवाड़ी आ गए.

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अर्जुनवाड़ी में श्रीकांत चौबे के घर कोई पार्टी न देख नीलम को ठीक नहीं लगा क्योंकि अंबुज उसे झूठ बोल कर लाया था. इसलिए वह अंबुज से घर लौटने की जिद करने लगी. इस पर अंबुज ने उस के दुपट्टे से गला कस दिया और तब तक कसता रहा जब तक नीलम के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए.

अंबुज की इस हरकत से श्रीकांत चौबे बुरी तरह डर गया. श्रीकांत को अंबुज तिवारी की यह योजना मालूम नहीं थी. उस ने अंबुज को खाना खाने के लिए बुलाया था. नीलम की हत्या करने के बाद अंबुज ने उस के शव को ठिकाने लगाने के लिए श्रीकांत चौबे से मदद मांगी.

दोस्ती के नाते श्रीकांत उस की मदद करने को तैयार हो गया. उस की मजबूरी यह भी थी कि लाश उस के घर में पड़ी थी. दोनों ने नीलम के शव को प्लास्टिक के ड्रम में डाल कर टैंपो पर लाद दिया और मुंबई-पुणे हाइवे के दोपाली और लोनावला के बीच घनी झाडि़यों में डाल आए, जहां से पुलिस ने शव बरामद कर लिया.

अंबुज महेंद्रनाथ तिवारी और श्रीकांत जयनारायण चौबे से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. बाद में दोनों को अदालत पर पेश कर के तलोजा जेल भेज दिया गया. वारदात में इस्तेमाल टैंपो को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था.

संदेह का वायरस : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

नवी मुंबई के उपनगर घनसोली के रहने वाले महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी की बहू नीलम और बेटा अंबुज तिवारी 22 जुलाई, 2020 की शाम साढ़े 5 बजे बिना किसी को बताए घर से निकल गए. पतिपत्नी थे, कहीं भी घूमने जा सकते थे, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया.

घर वाले तब परेशान हुए, जब दोनों शाम को लौट कर नहीं आए. परेशानी तब हदें पार कर गई जब अगले दिन भी दोनों न तो घर लौटे और न ही फोन किया. दोनों के फोन भी स्विच्ड औफ थे, सो उन से बात भी नहीं हो पा रही थी.

मामला जवान बहू और बेटे का था, इसलिए घर वाले सोच रहे थे कि दोनों जवान हैं, कहीं दूर घूमने भी जा सकते हैं. फिर भी जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर वालों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, इस की खास वजह थी उन के मोबाइल स्विच्ड औफ होना.

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हैरानपरेशान महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी पूरी रात पूरे दिन 10 बजे तक उन की तलाश जानपहचान वालों और नातेरिश्तेदारों के यहां करते रहे. जब कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के मन में किसी तरह की अनहोनी को ले कर तरहतरह के विचार आने लगे.

जब सारी कोशिशें बेकार गईं तो महेंद्रनाथ हरिहर तिवारी रात साढ़े 10 बजे कुछ नातेरिश्तेदारों के साथ थाना रबाले पहुंचे और थानाप्रभारी योगेश गावड़े को सारी बातें बता दीं. योगेश गावड़े ने उन के बेटे और बहू की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

गुमशुदगी की शिकायत दर्ज होते ही थानाप्रभारी योगेश गावड़े हरकत में आ गए. उन्होंने इस मामले की जानकारी पहले पुलिस कमिश्नर संजय कुमार, जौइंट सीपी राजकुमार व्हटकर, डीसीपी जोन-1 पंकज दहाणे, एसीपी (वाशी डिवीजन) विनायक वस्त के साथ नवी मुंबई पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

इस के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए इस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर गिरधर गोरे को सौंप दी. उन की सहायता के लिए इंसपेक्टर उमेश गवली, सहायक इंसपेक्टर तुकाराम निंबालकर, प्रवीण फड़तरे, संदीप पाटिल और अमित शेलार को नियुक्त किया गया.

जांच की जिम्मेदारी मिलते ही इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अपने सहायकों के साथ मामले पर गहराई से विचार कर के जांच की रूपरेखा तैयार की ताकि जांच तेजी से हो सके. सब से पहले उन्होंने गुमशुदा अंबुज तिवारी और उस की पत्नी नीलम तिवारी के हुलिए सहित उन की फोटो नवी मुंबई के सभी पुलिस थानों को भेजे. साथ ही यह संदेश भी दिया गया कि उन के बारे में कहीं से कोई सूचना मिले तो जानकारी दें. साथ ही तेजतर्रार मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया था.

इस के बाद इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अंबुज और नीलम के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए. जहांजहां उन के मिलने की संभावना थी, गिरधर गोरे ने वहांवहां अपनी टीम भेजी. लेकिन अंबुज और नीलम के बारे में कहीं से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली, जिस के सहारे उन तक पहुंचा जा सके.

उन के पड़ोसियों ने यह जरूर बताया कि अंबुज और नीलम की अकसर तकरार होती थी. लेकिन दोनों घर छोड़ कर कहां गए होंगे, किसी को कोई जानकारी नहीं थी. जिस फर्म में अंबुज काम करता था, वहां से भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

इंसपेक्टर गिरधर गोरे अपनी टीम के साथ जांच तो कर रहे थे, लेकिन उन की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि पतिपत्नी दोनों वयस्क थे, जहां जाना चाहते, आजा सकते थे. फिर लौकडाउन में उन का बिना किसी को कुछ बताए घर से निकल जाना और पूरे दिनरात घर न आना, रहस्यमय था.

कहां गए होंगे और क्यों गए होंगे, यह गुत्थी सुलझ नहीं रही थी. इस गुत्थी को सुलझाने में पुलिस टीम को 4 से 5 दिन लग गए. जब यह गुत्थी सुलझी तो जांच टीम अवाक रह गई.

मुखबिर ने दिया सूत्र

28 जुलाई, 2020 को इंसपेक्टर गिरधर गोरे को एक मुखबिर ने खबर दी कि जिस अंबुज और नीलम तिवारी को वह खोज रहे हैं, उन्हें घनसोली की अर्जुनवाड़ी में देखा गया है. यह खबर मिलते ही इंसपेक्टर गिरधर गोरे ने अपनी काररवाई के लिए टीम को सजग कर दिया.

उन की टीम ने छापा मार कर अंबुज तिवारी को अपनी गिरफ्त में लिया और उसे वरिष्ठ अधिकारियों के सामने ले जाया गया. अधिकारियों ने उस से फौरी तौर पर पूछताछ कर के जांच टीम के हवाले कर दिया.

जांच टीम ने जब उस से नीलम के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की. लेकिन जांच टीम उस की बातों से सहमत नहीं थी. उस के चेहरे से मक्कारी साफ झलक रही थी, वह कुछ छिपा रहा था. सच की तह में जाने के लिए जब उसे रिमांड पर लिया तो उसे बोलना पड़ा.

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अंबुज ने बताया कि उस ने अपने दोस्त के साथ मिल कर नीलम की हत्या कर दी है. उस ने आगे बताया कि नीलम के शव को प्लास्टिक के ड्रम में डाल कर वह और उस का दोस्त टैंपो से मुंबई-पुणे हाइवे होते हुए लोनावला के पास गांव दापोली के पास पहुंचे और लाश घनी झाडि़यों में छिपा दी.

पुलिस टीम को नीलम तिवारी का शव बरामद करना था. अंबुज तिवारी के बयान पर पुलिस टीम ने अपराध में शामिल उस के दोस्त श्रीकांत चौबे को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अंबुज तिवारी की बातों की पुष्टि की.

श्रीकांत चौबे की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम दोनों को ले कर मुंबई-पुणे हाइवे के लोनावला, दापोली के बीच पहुंची और प्लास्टिक का वह ड्रम बरामद कर लिया. ड्रम का ढक्कन खोल कर नीलम तिवारी का शव बाहर निकाला गया फिर बारीकी से उस का निरीक्षण कर के पंचनामा बनाया गया. शव को पोस्टमार्टम के लिए मुंबई के गांधी अस्पताल भेज कर पुलिस टीम थाने लौट आई. पूछताछ में नीलम तिवारी हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह थी –

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

प्रेम के लिए कुर्बानी

प्रेम के लिए कुर्बानी : भाग 2

पुलिस ने आरोपी नरगिस को उस के घर से ही गिरफ्तार कर लिया. नरगिस को थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. नरगिस और महबूब के घर वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली –

जिला मुरादाबाद में कांठ मिश्रीपुर रोड पर स्थित है गांव मोड़ा पट्टी. शमशाद हुसैन इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. शमशाद हुसैन पेशे से कारपेंटर था. उस की आर्थिक स्थिति शुरू से ही मजबूत थी. उस के 6 बच्चों में महबूब आलम तीसरे नंबर का था. इस समय उस के पांचों बेटे कामधंधा कर कमाने लगे थे.

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महबूब ने कांठ में ही स्टील वेल्ंिडग का काम सीख लिया था. काम सीखने के बाद उस ने ठेके पर काम करना शुरू किया. धीरेधीरे शहर के आसपास उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी.

लगभग 3 साल पहले की बात है. नरगिस अपने पति नौशाद को फोन मिला रही थी. लेकिन गलती से फोन किसी और के नंबर से कनेक्ट हो गया. बातों में पता चला कि वह नंबर गांव मोड़ा पट्टी निवासी महबूब का है. महबूब से बात करना उसे अच्छा लगा.

महबूब को भी उस की बातें अच्छी लगीं. बात खत्म हो जाने के बाद महबूब ने उसी वक्त नरगिस के नंबर को अपने मोबाइल में सेव कर लिया था.

उस के कई दिन बाद महबूब ने फिर से वही नंबर ट्राई किया तो फोन नरगिस ने ही उठाया. उस के बाद महबूब ने नरगिस को विश्वास में लेते हुए उस के घर की पूरी हकीकत जान ली.

एक बार दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला चालू हुआ तो दोस्ती पर ही जा कर रुका. दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो महबूब नरगिस के घर तक पहुंच गया.

महबूब पहली बार नरगिस के घर जा कर उस से मिला तो उस ने उस का परिचय अपने बच्चों व ससुराल वालों से अपने दूर के खालू के लड़के के रूप में कराया. उस के बाद महबूब का नौशाद की गैरमौजूदगी में आनाजाना बढ़ गया. उसी आनेजाने के दौरान महबूब और नरगिस के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

नौशाद अकसर काम के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था. उस के तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. वैसे भी महबूब का घर नरगिस के गांव से करीब 7 किलोमीटर दूर था. जब कभी नरगिस घर पर अकेली होती तो वह महबूब को फोन कर के बुला लेती. फिर दोनों मौके का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी करते. दोनों के बीच यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा.

इसी दौरान महबूब कांठ छोड़ कर काम करने गोवा चला गया. महबूब के गोवा जाते ही नरगिस खोईखोई सी रहने लगी. इस के बाद भी दोनों के बीच मोबाइल पर प्रेम कहानी चलती रही. गोवा में स्टील वेल्डिंग का काम कर के महबूब ने काफी पैसे कमाए. उस कमाई का अधिकांश हिस्सा वह नरगिस पर खर्च करता.

महबूब जब कभी गोवा से अपने घर कांठ आता तो वह नरगिस के साथसाथ उस के बच्चों के लिए भी काफी गिफ्ट ले कर आता था. वह सारी रात उसी के पास सोता और फिर दिन निकलते ही अपने गांव मोड़ा पट्टी चला जाता था.

महबूब का नरगिस के साथ करीब 3 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था, लेकिन उस ने इस बात की भनक अपने परिवार वालों को नहीं लगने दी थी. लेकिन नरगिस के ससुराल वाले जरूर महबूब और नरगिस के रिश्ते को ले कर शक करने लगे थे.

नौशाद का भाई शमशाद ग्रामप्रधान था. नरगिस के क्रियाकलापों की वजह से गांव में उस की बहुत बदनामी हो रही थी. उस के सभी भाई परेशान थे.

नौशाद का परिवार अलग घर में रहता था. उस के भाई अपनेअपने घरों में रहते थे. जिस के कारण वह महबूब और नरगिस को रंगेहाथों पकड़ने में असफल हो रहे थे.

महबूब अगस्त के महीने में घर आया और फिर गोवा वापस चला गया था. गोवा जाते ही घर पर उस की शादी की बात चली. बात तय हो जाने के बाद 18 सितंबर को रिश्ता होने की बात पक्की हो गई. जिस के लिए मजबूरी में उसे फिर से गोवा से गांव आना पड़ा.

15 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने भाई शकील के मोबाइल पर बात कर कहा था कि 18 सितंबर की सुबह वह घर पहुंच जाएगा. 16 सितंबर को वह गोवा से चल कर देर रात दिल्ली पहुंचा. दिल्ली के कीर्ति नगर में उस के जीजा गुड्डू रहते थे. वह सीधे अपने जीजा के पास चला गया.

16 सितंबर की रात को उस ने नरगिस से फोन पर बात की तो उसे पता चला कि उस का पति पानीपत, हरियाणा काम करने गया हुआ है. यह जानकारी मिलने पर उस ने सीधे नरगिस के घर जाने की योजना बना ली. उसी योजना के मुताबिक महबूब 17 सितंबर की देर रात दिल्ली से नरगिस के गांव पाठंगी पहुंचा. उस वक्त तक उस के बच्चे सो चुके थे. लेकिन नौशाद के बड़े भाई ग्राम प्रधान शहजाद को इस बात का पता चल गया था.

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भले ही नरगिस ने महबूब को अपना रिश्तेदार बता रखा था. लेकिन उस का वक्तबेवक्त आनाजाना ससुराल वालों को खलने लगा था.

गांव में हो रही बदनामी से बचने के लिए ग्राम प्रधान शहजाद और उस का छोटा भाई दिलशाद महबूब को सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.

17 सितंबर की रात नरगिस के ससुराल वालों को महबूब के आने का पता चल गया था. वे देर रात तक नरगिस के बच्चों के सोने का इंतजार करते रहे. जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि बच्चे सो चुके हैं, दोनों भाई मौका पाते ही नौशाद के घर में घुस कर छिप गए. रात में उन्होंने नरगिस और महबूब को आपतिजनक स्थिति में देख लिया.

दोनों को उस स्थिति में देखते ही शहजाद और दिलशाद का खून खौल उठा. नरगिस को उन्होंने बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद दोनों ने महबूब को डंडों से मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ ही देर में महबूब की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उस की लाश छिपाने के उद्देश्य से घर में रखे संदूक में डाल दी. फिर वे उस की लाश ठिकाने लगाने की जुगत मे लग गए.

लेकिन उन्हें लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो नरगिस को वही पाठ पढ़ा कर घर से गायब हो गए, जो उस ने अपने पति और पुलिस वालों को बताया था.

उधर 17 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने घर फोन कर जानकारी दी थी कि वह गोवा से दिल्ली गुड्डू जीजा के घर आ गया है और कल सुबह गांव पहुंच जाएगा. उस के बाद उस का मोबाइल फोन बंद हो गया था.

घर वालों ने सोचा कि शायद उस के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. फिर भी उन्हें तसल्ली इस बात की थी कि वह गोवा से ठीकठाक दिल्ली पहुंच गया था. उस के बाद भी उस के परिवार वाले बीचबीच में उस का नंबर मिलाते रहे. लेकिन उस से बात नहीं हो पा रही थी.

जब काफी समय बाद भी महबूब से बात नहीं हो सकी. तो शमशाद हुसैन ने अपने दामाद गुड्डू को फोन किया. गुड्डू ने बताया कि महबूब उन के घर 16 सितंबर की रात पहुंचा था और 17 सितंबर की दोपहर में ही वह घर जाने की बात कह कर चला गया था. यह सुन कर घर वाले परेशान थे. पुलिस द्वारा फोन करने पर ही उन्हें हत्या की जानकारी हुई.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने शमशाद की तहरीर पर मृतक महबूब की प्रेमिका नरगिस, उस के पति नौशाद, जेठ शहजाद तथा दिलशाद के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया.

हालांकि नरगिस और उस के पति नौशाद ने स्वयं स्वीकार किया था कि हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. नौशाद ने बताया कि हत्या वाली रात वह पानीपत में था. जांच में बेकुसूर पाए जाने पर पुलिस ने नौशाद को छोड़ दिया.

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18 सितंबर को पुलिस ने नरगिस को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम के लिए कुर्बानी : भाग 1

18 सितंबर 2020 को देर रात थाना कांठ के थानाप्रभारी अजय कुमार गौतम के मोबाइल पर किसी अंजान व्यक्ति का फोन आया. फोन करने वाले ने बताया, ‘‘सर, मैं ऊमरी कलां के पास पाठंगी गांव के प्रधान शहजाद का छोटा भाई नौशाद बोल रहा हूं. सर, हमारे घर में एक युवक की मौत हो गई है. आप जल्द आ जाइए.’’

‘‘मौत कैसे हो गई, क्या हुआ था उसे?’’ अजय कुमार गौतम ने उस युवक से पूछा.

‘‘सर, संदूक में दम घुटने से…’’ युवक ने जबाव दिया.

यह जानकारी देने के बाद नौशाद ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

नौशाद की बात सुनते ही थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ गड़बड़ है. लिहाजा कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर वह पाठंगी गांव जा पहुंचे.

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जिस वक्त गांव में पुलिस पहुंची, अधिकांश लोग सो चुके थे. फिर भी गांव में देर रात पुलिस की गाड़ी देख कर कुछ लोग एकत्र हो गए. पुलिस की जिप्सी रुकते ही सब से पहले नौशाद पुलिस के सामने हाजिर हुआ. वह बोला, ‘‘सर, मेरा नाम ही नौशाद अली है. मैं ने ही आप को फोन किया था. आइए सर, मैं आप को युवक की लाश दिखाता हूं.’’ कह कर नौशाद अली पुलिसकर्मियों को अपने घर के अंदर ले गया.

घर के अंदर जाते ही नौशाद ने अपने घर में रखा संदूक खोला. संदूक खुलते ही बदबू का गुबार निकला. जिस की वजह से पुलिस का वहां रुकना मुश्किल हो गया. बदबू कम हुई तो पुलिस ने मृतक की लाश देखी. फिर लोगों की मदद से लाश को संदूक से बाहर निकलवाया.

मृतक हृष्टपुष्ट युवक था. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि उस के शरीर पर तमाम चोटों के निशान थे. उस के सिर से काफी खून भी निकल कर जम गया था. संभवत: ज्यादा खून बहने से ही उस की मौत हुई थी.

थानाप्रभारी गौतम ने इस मामले की जानकारी सीओ बलराम सिंह को भी दे दी थी. सूचना मिलते ही सीओ साहब भी पाठंगी गांव पहुंच गए और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य एकत्र किए.

नौशाद के घर से ही पुलिस को मृतक का एक बैग भी मिला, जिस में से पुलिस को शराब की एक बोतल के साथसाथ 2 बीयर की बोतलें, मृतक का आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज भी मिले. आधार कार्ड पर नाम महबूब आलम पुत्र शमशाद, निवासी मोड़ा पट्टी, कांठ लिखा था.

पुलिस ने नौशाद से मृतक युवक के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मैं पानीपत में काम करता हूं. घर पर मेरे बीवीबच्चे रहते हैं. इसलिए मैं इस के बारे में नहीं जानता. लेकिन पत्नी नरगिस ने बताया कि यह उस का दूर का रिश्तेदार है. मैं पानीपत में था तो आज सुबह मेरी बीवी नरगिस का फोन आया. उस ने फोन पर बताया कि घर पर कुछ अनहोनी हो गई है. इसलिए जितनी जल्दी हो सके, फौरन घर पहुंचो.’’

नौशाद ने बताया कि बीवी की बात सुनते ही वह अपना कामधंधा छोड़ कर तुरंत घर चला आया था. घर आने पर पत्नी ने बताया कि महबूब उस का दूर का रिश्तेदार था. 17 सितंबर, 2020 की देर रात वह हमारे घर पहुंचा. उस वक्त तीनों बच्चे सो चुके थे. लेकिन बड़ा बेटा अचानक जाग गया. बेटे के डर की वजह से महबूब घर में रखे संदूक में छिप कर बैठ गया. बेटा 2 घंटे बाद सोया तो मैं ने संदूक खोल कर देखा. तब तक दम घुटने से वह मर चुका था.

नौशाद ने पुलिस को बताया कि घर में किसी व्यक्ति की मौत हो जाने की बात सुनते ही उस के हाथपांव फूल गए. संदूक में पड़ी लाश के बारे में सोचसोच कर उस का सिर फटा जा रहा था.

उसे अपनी बीवी पर भी कुछ शक हुआ. वह समझ नहीं पा रहा था कि अगर लड़का सोते से उठ गया तो उसे संदूक में छिपने की क्या जरूरत थी. इस घटना से उसे बीवी पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन घर में जो बला पड़ी थी, पहले उस से कैसे निपटा जाए, वह उसे ले कर परेशान था.

दोपहर से शाम तक उस ने कई बार उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. घर की बदनामी को देखते हुए वह न तो इस बात का जिक्र अपने घर वालों से कर सकता था और न ही खुद कोई निर्णय ले पा रहा था.

जब इस मामले में उस के दिमाग ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया तो उस ने पुलिस को सूचना देने का फैसला लिया. उस के बाद ही उस ने पुलिस को फोन कर घटना की जानकारी दी.

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जब पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में लगी थी, नरगिस घर के आंगन में ही डरीसहमी सी बैठी थी. नौशाद की बताई कहानी से पुलिस को मामला समझने में देर नहीं लगी. लेकिन हैरत की बात यह थी कि 2 घंटे संदूक में बंद रहने से उस की मौत कैसे हो गई. क्योंकि बक्सा काफी बड़ा भी था और खाली भी था. सवाल यह था कि मृतक के शरीर पर चोटों के निशान कहां से आए.

पुलिस को मृतक की जेब से एक मोबाइल मिला, जो उस वक्त बंद था. पुलिस ने उसे औन कर के उस की जांच की तो पता चला कि उस के फोन पर नरगिस ने ही आखिरी काल की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने नरगिस से भी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरगिस ने अपने पति की बताई रटीरटाई बात दोहरा दीं. उस वक्त तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस युवक की मौत की जांच में लगी थी. उसी दौरान मृतक के मोबाइल पर शमशाद नामक व्यक्ति का फोन आया.

फोन थानाप्रभारी गौतम ने रिसीव किया. जैसे ही उन्होंने हैलो कहा तभी दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अरे बेटा, मैं तुम्हारा अब्बू बोल रहा हूं. तुम कहां हो? कल से तुम्हारा फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘शमशाद जी, आप कहां से बोल रहे हैं और आप का बेटा कहां गया हुआ है?’’ अजय कुमार गौतम ने शमशाद से प्रश्न किया.

आवाज उन के बेटे की नहीं थी. मोबाइल किसी और के रिसीव करने से शमशाद हुसैन चिंतित हो उठे. वह तुरंत बोले, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं? यह नंबर तो मेरे बेटे महबूब आलम का है. आप के पास कहां से आया?’’

‘‘मैं कांठ थाने का थानेदार अजय कुमार गौतम बोल रहा हूं.’’

पुलिस का नाम सुनते ही शमशाद अहमद घबरा गए. उन के दिमाग में तरहतरह शंकाएं घूमने लगीं.

जब उन्हें यह जानकारी मिली कि बेटे का मोबाइल पुलिस के पास है तो वे किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो गए. तभी अजय कुमार गौतम ने शमशाद हुसैन को बताया कि उन के बेटे के साथ एक अनहोनी हो गई है. वह तुरंत पाठंगी गांव आ जाएं.

पुलिस द्वारा जानकारी मिलने पर शमशाद हुसैन अपने घर वालों के साथ पाठंगी गांव जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उन का बेटा महबूब अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस की संदूक में बंद होने के कारण दम घुटने से मौत हो गई है.

यह जानकारी मिलते ही शमशाद हुसैन के परिवार में मातम छा गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की गला घोंट कर हत्या करने की बात सामने आई. मृतक के शरीर पर भी चोटों के काफी निशान पाए गए थे, जिन से साफ जाहिर था कि मृत्यु से पहले उस के साथ मारपीट की गई थी और मृतक ने हमलावरों से काफी संघर्ष किया था.

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इस केस में मृतक के पिता शमशाद हुसैन की तहरीर पर पुलिस ने नरगिस, उस के पति नौशाद, ग्रामप्रधान शहजाद और दिलशाद के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

औनलाइन फ्रैंडशिप : चली गई इज्जत

दूर के ढोल सुहावने. यह कहावत कभीकभार दूर के ढोल लाएं शामत में बदल जाती है और सामने वाले को पता भी नहीं चलता है. दिल्ली की एक लड़की के साथ ऐसा ही हुआ. 20 साल की वह लड़की रोहिणी इलाके में रहती थी और सोशल मीडिया के जरीए रोहतक के एक लड़के से दोस्ती कर बैठी.

ज्यादा गहरी दोस्ती होने के बाद उस लड़के ने लड़की को रोहतक मिलने के लिए बुला लिया. लड़की खुश हुई और लड़के के बताए गए एक होटल डायमंड में जा पहुंची.

लड़की के मन क्या चल रहा था, यह तो पता नहीं, पर उस लड़के के इरादे ठीक नहीं थे. होटल में उस लड़के ने लड़की के साथ पहले खुद रेप किया, फिर अपने एक दोस्त को बुला कर उस को भी रेप का भागीदार बनाया. इतना ही नहीं, उस लड़की को जबान न खोलने की धमकी दी और होटल में बंधक बना कर 4 दिन तक उस का गैंगरेप किया.

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यह मामला रोहतक में दिल्ली बाईपास के नजदीक विनय नगर के होटल डायमंड का है, जहां से पीड़िता ने किसी तरह हिम्मत कर के अपने मोबाइल फोन से अपनी बहन को वहां की लोकेशन भेजी. इस के अलावा उस लड़की ने होटल के कमरे की खिड़की से अपने कपड़े और बैग को भी नीचे सड़क पर फेंक दिया. इस से आसपास के लोगों को शक हुआ और उन्होंने पुलिस बुला ली. इसी बीच पीड़िता की बहन भी वहां पहुंच गई.

इस के बाद एक पुलिस टीम ने होटल डायमंड पर दबिश दी और लड़की को बचाया और उस की मैडिकल जांच की गई.

रोहतक की अर्बन ऐस्टेट पुलिस ने पीड़िता की शिकायत पर झज्जर के दीपक और प्रवीण के खिलाफ आईपीसी की धारा 370, 376, 343 के तहत केस दर्ज कर लिया.

इसी तरह मध्य प्रदेश की इंदौर जिला क्राइम ब्रांच ने साइबर अपराधियों की ऐसे गिरोह की पहचान की, जो सोशल मीडिया पर प्रोफाइल बना कर अच्छेभले परिवार के मर्दऔरतों को फंसा कर लाखों रुपए वसूल चुका है. एक आईटी कंपनी के संचालक की पत्नी, डाक्टर और कारोबारी इन लोगों के शिकार बन चुके हैं.

आरोपियों ने पहले उन से दोस्ती की, फिर बेहूदा चैटिंग शुरू कर दी. धीरेधीरे बात औनलाइन कपड़े उतारने तक पहुंच गई और उन की वीडियो और फोटो रिकौर्ड कर ली. बाद में आईपी एड्रेस, काल डिटेल और बैंक खातों की जांच में पता चला कि अपराधी बिहार, झारखंड और दिल्ली के हैं.

ऐसी बहुत सी वारदातें देशभर में  होती रहती हैं. सोशल मीडिया हमारे दिलोदिमाग पर इतना ज्यादा असर डाल चुका है कि हम अच्छेबुरे के बारे में सोच ही नहीं पाते हैं. लड़कियां और औरतें ऐसे जालसाजों के झांसे में ज्यादा आती हैं.

पर अगर आप इन सब पचड़ों में नहीं फंसना चाहती हैं, तो इन बातों का रखें खयाल :

-औनलाइन फ्रैंडशिप में उतावलेपन में अपना फोन नंबर और ईमेल शेयर न करें. जिस लड़के से आप सोशल मीडिया पर चैटिंग कर रही हैं, वह पूरी तरह से अनजान होता है. वह  फोन नंबर पा कर आप को तंग कर सकता है. आप के फोन नंबर का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है.

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-किसी ऐसे लड़के से दोस्ती न करें, जिस के साथ आप के म्यूचुअल फ्रैंड न हों. किसी से चैटिंग शुरू करने के पहले उस के बारे में अच्छी तरह से जान लें. फेक आईडी वाले आप को कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.

-अपनी पर्सनल जानकारी औनलाइन फ्रैंड को मत दें. अपने परिवार के बारे में कोई बात मत बताएं. अपने घर, दफ्तर का पता बताने से भी बचें. इस का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है.

-कभी भी अपने पर्सनल फोटो, वीडियो शेयर मत करें. अगर वह ऐसी डिमांड करता है तो कड़े शब्दों में मना कर दें. ऐसी तसवीरों में फेरबदल कर के आप को ब्लैकमेल  किया जा सकता है.

-बेहूदा बातें करने से बचें. हो सकता है सामने वाला आप की बातों को रिकौर्ड कर रहा हो.

-सोशल मीडिया से बेहतर किताबें आप की दोस्त होती हैं. अच्छी पत्रिकाएं पढ़ें.

प्यार की सूली पर लटकी अंजली : भाग 3

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

अंजलि की यह बात राकेश को बुरी नहीं लगी, बल्कि उसे उस पर और भी प्यार उमड़ आया था. अंजलि की एक खास सहेली खुशबू थी, वह अपने दिल की हर बात उसी से शेयर करती थी. उस ने उसे यह भी बता दिया था कि राकेश उस पर फिदा है.

राकेश ने जब देखा कि उस की दाल नहीं गल रही है तो उस ने उस की सहेली खुशबू को पटा कर उसे सीढि़यां बनाया. राकेश ने खुशबू से अंजलि तक अपने प्यार का पैगाम भिजवा दिया.

खुशबू ने अंजलि के सामने राकेश की ऐसी जोरदार वकालत की कि उस ने राकेश के प्यार को स्वीकृति दे दी. पते की बात यह थी कि राकेश ने खुशबू से भी अपने शादीशुदा होने की बात छिपा ली थी. खुशबू के जरिए राकेश और अंजलि एकदूसरे के करीब आए. दोनों ही एकदूसरे से प्रेम करने लगे थे.

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राकेश अंजलि का पहला प्यार था. उस का प्रेम निश्छल और पाकीजा था. वह उसे जीजान से प्यार करने लगी थी. जबकि राकेश शातिर और छलिया था. उसे अंजलि से नहीं बल्कि उस के गोरे बदन से प्रेम था. वह सिर्फ उस के जिस्म का भूखा था और जिस्मानी रिश्ता बना कर उसे छोड़ देना चाहता था.

इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था. उस ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो अंजलि उस के इस प्रस्ताव को ठुकरा नहीं सकी और शादी के लिए हां कर दी. इधर अंजलि के मांबाप ने उस की शादी झांसी के एक इंजीनियर के साथ पक्की कर दी थी. यह बात अंजलि को तब पता चली जब उसे गोदभराई की तारीख बताई गई. यह सुन कर अंजलि को झटका लगा. अपने प्यार की बात वह मांबाप से बताने ही वाली थी कि उसे अपनी शादी तय होने की खबर मिल गई.

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राकेश ने धोखा किया था अंजलि के साथ

अंजलि अपनी शादी तय होने वाली बात राकेश को बताने ही जा रही थी कि उसे राकेश के शादीशुदा होने की बात पता चली. यह जान कर अंजलि को बड़ा दुख हुआ. अपने साथ होने वाले इस धोखे की बात पता चलते ही अंजलि टूट सी गई और परेशान रहने लगी. उसे राकेश से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह उसे इतना बड़ा धोखा दे सकता है.

प्यार में धोखा खाने के बाद अंजलि टूट सी गई थी. फरवरी, 2019 में उस की गोदभराई थी. गोदभराई में अंजलि घर आई तो जरूर थी, लेकिन उसे इस शादी से कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. शादी को ले कर जो उत्साह उस के चेहरे पर होना चाहिए था, वह नदारद था. इसे मांबाप के साथ उस की बहनों ने भी महसूस किया था. खैर, गोदभराई की रस्म पूरी होने के बाद 5 मई, 2019 को अंजलि की शादी की तारीख पक्की हुई थी. इत्तफाक से उस तारीख पर चुनाव होना था, इसलिए शादी की तारीख आगे बढ़ा दी गई. गोदभराई की रस्म पूरी होने के बाद अंजलि नौकरी पर लौट आई थी.

प्यार में धोखा खाने के बाद अंजलि का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. वह हमेशा उदास रहती थी. अंजलि को अकेली या उदास देख कर उस के मकान मालिक की दोनों बेटियां रिया और सीमा उस के पास जा कर बैठ जाती थीं. दोनों के आ जाने से अंजलि का मन लग जाता और थोड़ा समय अच्छे से कट जाया करता था.

20 मई, 2019 को स्कूलों में 45 दिन का ग्रीष्मकालीन अवकाश हुआ. छुट्टी होते ही विद्यालय के सभी अध्यापक अपनेअपने घर चले गए. अंजलि की सहेली खुशबू भी अपने घर आ गई थी. अंजलि ने भी 22 मई को घर जाने की तैयारी कर ली थी.

21 मई, 2019 के दिन अंजलि के कमरे पर कई लोग आतेजाते रहे. दोपहर बाद जब अंजलि काम से फारिग हुई तो रोज की तरह रिया और सीमा उस के कमरे में चली गईं. तीनों बैठ कर घंटों इधरउधर की बातें करती रहीं. साढ़े 3 बजे के करीब दोनों बहनें अपने कमरे में वापस लौट आई थीं.

क्या रहस्य बन कर रह जाएगी अंजलि की मौत

रिया और सीमा के वहां से जाने के बाद अंजलि के पास उस की छोटी बहन मनोरमा का फोन आया था. वह उस से पूछ रही थी कि विद्यालय में छुट्टियां हो गई हैं, घर कब आ रही हो. उस ने छोटी बहन से कहा कि आज शाम को घर के लिए रवाना होऊंगी.

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इस के बाद अंजलि फोन पर ही रोने लगी. मनोरमा ने उस से रोने की वजह पूछी तो उस ने फोन पर कुछ नहीं बताया. बस इतना ही कहा कि घर आने के बाद सब बताऊंगी. इस के बाद फोन कट गया. इस के ठीक आधे घंटे बाद रहस्यमय तरीके से अंजलि के कमरे से धुएं का बड़ा गुबार उठा. बाद में रहस्यमय तरीके से पंखे से झूलती उस की लाश मिली.

बहरहाल, मोहना पुलिस की करतूत से बेसिक शिक्षा अधिकारी राम सिंह भी आहत हैं. बीएसए राम सिंह ने आरोप लगाया कि मंगलवार 21 मई को जब घटना की जानकारी हुई तो वह शाम करीब 6 बजे गौहनिया स्थित अंजलि यादव के कमरे पर पहुंचे. वहां मौजूद एक दरोगा ने उन्हें नीचे ही रोक दिया. जब उन्होंने परिचय दिया तब जा कर परिसर में बैठने की अनुमति दी गई. एसपी डा. धर्मवीर सिंह से बात करने के बाद उन्हें कमरे में जाने दिया गया.

वहां पर 5 पुलिस वाले बैठे हुए थे. शव के गले में लोहे का तार बंधा हुआ था. पैर जंजीर से बांधा गया था. सवाल यह है कि अगर अंजलि को आत्महत्या करनी थी तो उस ने गला व पैर क्यों बांधा था. फिर उस ने दरवाजे पर बाहर ताला कैसे लगा लिया.

इस सवाल का जवाब पुलिस के पास नहीं था. सवाल सुन कर पुलिस का बस इतना ही कहना था कि पुलिस हत्या और आत्महत्या दोनों पहलू पर जांच कर रही है. इस के लिए स्वाट टीम को भी लगा दिया गया है. महिला पुलिस भी अलग से जांच कर रही है. दोषियों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.

उधर 24 मई, 2019 को राज्य महिला आयोग की सचिव अंजू चौधरी ने शिक्षिका अंजलि यादव कांड का संज्ञान लिया. आयोग की टीम ने गौहनिया बाजार स्थित घटनास्थल का निरीक्षण किया. पूरे मामले को संदिग्ध मानते हुए महिला आयोग ने प्रदेश सरकार से उच्चस्तरीय जांच करने की अनुशंसा की.

आयोग की सचिव अंजू चौधरी ने पहले दिन से ही इस मामले को आत्महत्या मानने पर पुलिस विभाग को आड़े हाथों लिया. उन्होंने फोन पर परिजनों से बात की और उन्हें न्याय दिलाने का आश्वासन दिया.

खैर, अंजलि की मौत पूरी तरह रहस्य बन कर रह गई है. उस ने आत्महत्या की या किसी ने उस की हत्या कर के आत्महत्या का रूप दिया, पुलिस दोनों पहलुओं से जांच कर रही है.

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अंजलि से राकेश के प्रेम संबंध थे, यह सच था. उस ने उसे धोखा दिया, यह भी सच था. पुलिस ने राकेश को अंजलि को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के आरोप में जेल भेज दिया. शायद पुलिस ने यह इसलिए किया होगा कि जनाक्रोश को शांत किया जा सके.

कथा लिखे जाने तक पुलिस अंजलि कांड की गुत्थी को सुलझाने में जुटी हुई थी. क्या पुलिस इस गुत्थी को सुलझा पाएगी, यह अभी कहा नहीं जा सकता. द्य

—कथा में रिया और सीमा परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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