सौजन्य- मनोहर कहानियां
सन 2014 में जेल से छूटने के बाद मुकीम काला ने अपने गैंग के साथ 15 फरवरी, 2015 को सहारनपुर के तनिष्क ज्वैलरी शोरूम में इंसपेक्टर की वरदी में 10 करोड़ की डकैती डाली थी. उसी दरमियान उस ने तीतरो में 2 सगे भाइयों की हत्या और सहारनपुर में सिपाही राहुल ढाका की हत्या कर दी थी.
इस वारदात के बाद यूपी एसटीएफ ने मुकीम काला और उस के शार्प शूटर साबिर जंधेड़ी को 20 अक्तूबर, 2015 को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने उस से गिरफ्तारी के दौरान एके-47 भी बरामद की थी.
मुन्ना बजरंगी का करीबी था मेराज
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बदमाशों के खिलाफ सख्त काररवाई का संदेश दिया तो इस के बाद गैंग के कई बदमाश ढेर कर दिए गए. मुकीम काला को पिछले दिनों ही हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिला कारागार से सहारनपुर जिला कारागार में निरुद्ध किया गया था. मुकीम काला 7 मई, 2021 को चित्रकूट जेल आया था.
मुकीम काला के साथ ही उत्तर प्रदेश का एक कुख्यात अपराधी मेराज भी चित्रकूट जेल में अंशुल द्वारा की गई गोलीबारी में मारा गया था.
मेराज अली बसपा के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की गैंग का सदस्य था. हालांकि उस की नजदीकी मुन्ना बजरंगी से ज्यादा थी. इसी साल 20 मार्च, 2021 को वाराणसी जेल से चित्रकूट जेल में उस का ट्रांसफर हुआ था.
मूलरूप से गाजीपुर निवासी मेराज बनारस के जैतपुर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. मुख्तार अंसारी हो या मुन्ना बजरंगी, दोनों की गैंगों के लिए असलहों का इंतजाम मेराज ही करता था. वह फरजी दस्तावेजों पर असलहों का लाइसैंस बनवाने का भी मास्टरमाइंड था.
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मेराज मुन्ना बजरंगी के लिए अदालतों में पैरवी करने से ले कर गवाहों को तोड़ने का भी काम करता था. अक्तूबर 2020 में जैतपुरा पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था. तब फरजी तरीके से बनवाए गए 9 लाइसेंसी पिस्तौल और रायफल की जानकारी हुई थी.
इस वारदात के बाद जब पुलिस ने चित्रकूट जेल में मारे गए तीनों कैदियों के शवों का पोस्टमार्टम कराया तो पता चला कि मेराज के सिर में एक और सीने में 2 गोलियां लगी थीं. जबकि मुकीम के गोलियों से छलनी बदन में 13 गोलियों के निशान थे.
2 जेलर आए शक के दायरे में
उस के शरीर में करीब 5 गोलियां मिलीं. इधर अंशुल के शरीर में करीब 20 फायर आर्म इंजरी मिलीं, वह पुलिस की गोलियों से मारा गया था.
जेल गोलीकांड की जांच करने वाले दल ने जेल में उस दिन ड्यूटी पर तैनात जेल वार्डनों के साथ मौके पर मौजूद बंदियों, अंशुल द्वारा बंधक बनाए गए कैदियों से भी पूछताछ की. जेल के सभी सीसीटीवी फुटेज कब्जे में लिए. कैदियों की बातचीत के लिए जेल में लगे पीसीओ का पूरा रिकौर्ड कब्जे में लिया और पूरी जेल की तलाशी कराई.
पुलिस को शूटआउट के बाद आस्ट्रिया मेड ग्लोक पिस्तौल व एक खाली मैग्जीन जेल से बरामद हुई. ये वही पिस्तौल थी, जिस से अंशुल ने गोलियां चलाई थीं.
यह पिस्टल छोटे असलहों में सब से घातक हथियार माना जाता है. यही वजह है कि 9 एमएम के इस ग्लोक पिस्तौल की सिविल यानी पब्लिक को सप्लाई प्रतिबंधित है. यह सेना और पुलिस के जवानों को दी जाती है. सवाल उठता है कि सरकारी सप्लाई वाला यह हथियार गैंगस्टर अंशुल को कहां से मिला?
पुलिस जांच में एक और भी बात अभी तक सामने आई है. पता चला कि अंशुल को जिस हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा गया था, वहां की सुरक्षा की जिम्मेदारी डिप्टी जेलर पीयूष और अरविंद की थी.
दोनों जेलर बिना किसी बड़े कारण के 10 मई को अचानक छुट्टी पर चले गए थे. ये 13 मई को लौट कर आए थे. माना जा रहा है कि दोनों जेलरों की छुट्टी के दौरान ही जेल में पिस्तौल पहुंचाई गई थी.
जांच में यह भी सामने आया है कि चित्रकूट के पहाड़ी थानाक्षेत्र के परसौजा गांव का निवासी मनोज इस जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.
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मनोज जेल में मादक पदार्थों की सप्लाई से ले कर कैदियों से बैठकी के रुपए तक वसूलने का काम करता है. वह जेल अधिकारियों का खास है. मनोज अंशुल की खातिरदारी में लगा रहता था.
पुलिस जांच में सामने आया है कि अंशुल जेल में एंड्रायड फोन इस्तेमाल करता था. अंशुल के एनकाउंटर के बाद यह फोन भी पुलिस के हाथ लगा. लेकिन जांच अफसर और लोकल पुलिस इस की जानकारी छिपा रही हैं.
दरअसल, इस वारदात को अंजाम देने के लिए अंशुल ने किसकिस से संपर्क किया. इस की जानकारी फोन में इस्तेमाल हो रहे सिम की काल डिटेल्स से मिल सकती है.
जेल वार्डन जगमोहन पर प्रश्नचिह्न
काल डिटेल्स निकलने पर कई प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता सामने आने के डर से फोन के बारे में अफसर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.
चित्रकूट जेल शूटआउट मामले में जुटी जांच समिति के हाथ और भी कई अहम जानकारियां लगी हैं.
खुलासा हुआ है कि चित्रकूट जेल में जब अंशुल दीक्षित ने मेराज और मुकीम की हत्या के बाद 5 बंदियों को बंधक बनाया था तो एक जेल वार्डन जगमोहन, अंशुल से बातचीत कर सरेंडर करने को कह रहा था. यह वही जेल वार्डन जगमोहन था, जो बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या के समय भी मौजूद था.
अब यह महज इत्तफाक है या कोई बड़ी साजिश, इस की जांच में पुलिस और एजेंसियां जुटी हुई हैं. 14 मई को शूटआउट के बाद जब अंशुल दीक्षित को घेरा जा रहा था तो उस वक्त भी जगमोहन की वहां मौजूदगी कई सवाल उठाती है.
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चित्रकूट जेल के घटनाक्रम को देख कर अंदाजा लगाया जा रहा है कि जेल में हुई वारदात मुन्ना बजरंगी की तरह कौन्ट्रैक्ट किलिंग का मामला है. अंशुल को पता था कि मुन्ना की हत्या के बाद सुनील राठी पर कोई आंच नहीं आई थी.
इसी तरह अंशुल को शायद यह भरोसा दिलाया गया होगा कि मेराज और मुकीम को मार कर वह भी सुरक्षित बच जाएगा.
कोरोना काल में जब एक साल से ज्यादा का समय बीत जाने पर भी कैदियों की उन के परिजनों से मिलाई तक नहीं हो रही थी. ऐसे में अंशुल के पास घातक हथियार का पहुंचना और कुछ दिन पहले ही एक के बाद एक मेराज व मुकीम काला का इस जेल में आना साबित करता है कि साजिश के तार बहुत गहरे हैं.




